Arastu (hindi)

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  • Words: 50,083
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अर तु सुकश कमार

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दो श द

अर तू (ई.पू. 384-322) का ज म यूनान क एक रा य मेसेडोिनया क

िस नगर टजीरा म आ था। उनक िपता राजा िफिलप क यहाँ िचिक सक थे। अर तू ने अ य िवषय क अ ययन क साथ-साथ िचिक सा शा का भी गहन अ ययन िकया था। एथस म लेटो (अफलातून) क अकादमी म अर तू क वेश (17व या 30व वष) क समय क िवषय म मतभेद ह, िफर भी यह कहा जा सकता ह िक उ ह लेटो का पया सा य िमला। ायः यह माना जाता ह िक एथस ने अर तू स श िश य और लेटो स श गु दूसरा उ प नह िकया। अर तू क िविभ िवषय क िनरी ण और खोज म अ यंत िच थी। लेटो क मृ यु क उपरांत अर तू का अकादमी से नाता टट गया और वह एिशया माइनर म हरिमयस क पास चले गए। वहाँ उनका हरिमयस क भतीजी से िववाह हो गया। कछ ही समय क प ा ईरान क राजा ने हरिमयस को यु म मारकर उसका रा य हड़प िलया, तब अर तू पुनः राजा िफिलप क आमं ण पर मेसेडोिनया म उसक पु िसकदर को पढ़ाने हतु गए। अर तू लगभग ई.पू. 334 म पुनः एथस लौट और लेटो क अकादमी से अलग िलिसयम नामक िव ालय क थापना क । वह अर तू ने अपना शेष जीवन यतीत िकया। अ ययपन-अ यापन क ि से अर तू क िवशेष िचयाँ या- या थ , यह कहना अ यंत किठन ह। राजनीित, इितहास, याय, मनोिव ान, किवता, नाटक, योितष, भौितक , िचिक सा, गिणत, ाणी िव ान आिद ऐसा कोई भी िवषय नह ह, जो उनक अ ययन े से बाहर हो और िजस पर उ ह ने अपनी लेखनी न चलाई हो। कहा जाता ह िक लेटो क दोन आँख आकाश क ओर लगी रहती थ , जबिक अर तू क एक आँख आकाश क ओर और दूसरी आँख पृ वी क ओर लगी रहती थी। य िप लेटो और अर तू दोन ही दाशिनक थे, िकतु अर तू एक त व ानी होने क साथ ही एक वै ािनक भी थे। वह त व ान म भी वै ािनक िविध का योग करते थे। जहाँ तक अर तू क त व ान संबंधी िवचार का न ह, यह तो प ही ह िक अर तू अपने गु क िवचार क आलोचना करते ए आगे बढ़ते ह। लेटो क मा यता थी िक य जग क एक ेणी क सम त व तुएँ एक यय क ितिनिध होती ह। य जग क व तुएँ न र ह, जबिक यय शा त ह। इस कार लेटो ने अनजाने म ैतवाद क थापना कर दी। अर तू ने यह तो अनुभव िकया िक कोई व तु ह, िजसक कारण सभी मनु य मनु य ह, सभी ि भुज ि भुज ह और सभी गाएँ गाएँ ह, िकतु उ ह ने लेटो क इस िस ांत को अ वीकार कर िदया िक एक ेणी या जाित से संबंिधत सम त व तुएँ उस जाित से संवाद रखनेवाले शा त यय ारा िनिमत क जाती ह। अिन य व तु िन य यय से कसे ज म पा सकती ह? अर तू क राजनीितक िवचार पर लेटो क कित ‘लॉज’ का भाव भी िदखाई देता ह। कारण ‘ रप लक’ लेटो क युवाव था क रचना ह और ‘लॉज’ उनक प रप ाव था क । िसजिवक ने तो यहाँ तक िलखा ह िक जहाँ पर लेटो का िचंतन समा होता ह, वहाँ से अर तू क िचंतनधारा आरभ होती ह। अर तू ने लेटो क दाशिनक शासक का िस ांत और सामािजक यव था संबंधी िवचार क इतनी कट आलोचना क िक लेटो को वयं यह कहना पड़ा िक अर तू उस बछड़ क समान ह, जो माता क दूध को चूसकर सुखा देने क उपरांत माता को ही लात मारने लगता ह। अर तू ने देखा िक मानवजाित क थित िनरतर बदलती रहती ह। भले ही उ े य एक ही हो, तो भी साधन म प रवतन होता रहता ह। रा य का काम अपने नाग रक क र ा करना, उनक जीवन को सुखी-समृ

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बनाना और सदाचरण क प र थितय को सुगम बनाना ह। अर तू रा य को एक िवकासशील कितज य एवं राजनीितक समुदाय मानते ह। अर तू ने अपने मुख ंथ ‘पॉिलिट स’ क तीसर भाग म रा य क वग करण का उ ेख िकया ह। यह उ ेखनीय ह िक रा य का उनका वग करण संिवधान का वग करण ही ह। अर तू यह मानते ह िक रा य अथवा उसक संिवधान का व प एक िन त म म प रवितत होता रहता ह। राजतं िवकत होने पर वे छाचारी िनरकश तं का प ले लेता ह। वे छाचारी िनरकश तं िवकत होकर कलीन तं का, कलीन तं िवकत होकर पूँजीवादी तं का थान ले लेता ह। पूँजीवादी तं िवकत होकर संयत जनतं का थान ले लेता ह। संयत जनतं िवकत होकर पुनः राजतं को ज म देता ह। अर तू संयत जनतं को सव े मानते ह, य िक उसम संपि और वतं ता का सम वय होता ह। इस पु तक म महा दाशिनक अर तू क जीवन एवं िचंतन पर काश डालने का यास िकया गया ह।

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ब मुखी ितभा क धनी अर तू

पा

ा य स यता और सं कित का मूल ोत ह यूनानी ान-िव ान, और यूनानी ान-िव ान क मूल ेरणा का क थी अर तू क ितभा। यूनानी भाषा म अर तू का वा तिवक नाम ह अ र तोतेलेस। उनका ज म ई.पू. 384 म टजीरा नगर म आ था। उनक िपता िनकोमाजरवस मेसेडोिनया क राजा अ युंतस तीय क राजवै थे। आरभ म बालक अर तू क िश ा-दी ा िपता क िनरी ण म ई। कदािच वे अर तू को भी अपने ही यवसाय म दीि त करना चाहते थे, िकतु शी ही उनक मृ यु हो जाने क कारण अर तू का जीवन-माग बदल गया और वह ई.पू. 368 क लगभग एथस म आकर उ ह ने लेटो क िस िव ापीठ (अकादमी) म वेश ले िलया। उ ह ने लगभग बीस वष तक लेटो का स संग लाभ पाया। उनक चरण म बैठकर अनेक िव ा का िविधव अ ययन एवं मनन और बाद म कछ वष तक अ यापन भी िकया। लेटो अर तू क ितभा से अ यिधक भािवत थे, उ ह िव ापीठ का म त क कहा करते थे। हालाँिक अर तू ने लेटो क अनेक िस ांत का ढ़तापूवक खंडन िकया, िफर भी गु -िश य क संबंध ायः उनक जीवन क अंतकाल तक मधुर ही बने रह। ई.पू. 348 क लगभग लेटो क मृ यु क प ा अर तू हरिमयस क िनमं ण पर एथस छोड़कर चले आए। उ ह ने अ सौस नगर म अकादमी क शाखा थािपत क । इसी वष हरिमयस क पो या क या क साथ िववाह िकया, िजसक गभ से एक पु ी का ज म आ। दुभा यवश अर तू क प नी का जीवनकाल अ य प रहा और उसक मृ यु क बाद अर तू टजीरा क एक मिहला हरपीिलस क साथ रहने लगे, िजससे उनका िविधव ◌् िववाह नह आ था। हरपीिलस से भी अर तू क एक ही संतान ई, िजसका नाम था िनकोमाजस। ई.पू. 343 म अर तू क भा य का िसतारा चमका और मेसेडोिनया क राजा िफिलप ने उ ह अपने राजकमार िसकदर का िश क िनयु िकया। िसंहासन पर आ ढ़ हो जाने क उपरांत भी िसकदर का अर तू क साथ संबंध रहा। एक अनु ुित क अनुसार, कदािच अर तू ने इिलयड का य का संपादन अपने िश य िसकदर क िलए िकया था। ई.पू. 335 म अर तू ने एथस क िनकट अपोलो म अपना एक वतं िव ापीठ ‘ यूकउस’ नाम से थािपत िकया, जहाँ िव ा क ायः सभी अंग -उपांग का अ ययन-अ यापन होता था। अर तू क अ यापन शैली बड़ी िविच थी। वह ायः टहलते ए वचन िकया करते थे और इसी आधार पर उनक िश ा प ित का नामकरण आ ह। ई.पू. 323 म बेबीलोन म िसकदर क मृ यु हो गई, तभी से अर तू का संकटकाल आरभ आ। िसकदर तथा मेसेडोन राजवंश क साथ उनका संबंध और उनका िनभ क वतं जीवन-दशन, दोन ही बाधक िस ए। उस समय यह आशंका होने लगी िक कह उनका हाल भी सुकरात क जैसा ही न हो। इस तरह ाणर ा क िलए उ ह एथस से पलायन करना पड़ा। एथस छोड़ते समय उनका यह कहना था—‘म एथस इसिलए छोड़ रहा िक कह एथस क जनता दशन क िव दूसरी बार अपराध न कर बैठ।’ लौटने क एक वष बाद ई.पू. 322 म अपनी ज मभूिम टजीरा क िनकट फलिकस नामक नगरी म आं रोग क कारण उनक मृ यु हो गई। अर तू क य व क िवषय म ब त ही कम त य उपल ध ह। कछ अनु ुितय क आधार पर उनक िजस व प का िनमाण आ ह, उसक अनुसार वह एक ीणकाय य थे। उनक आँख छोटी-छोटी और िसर सपाट

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था। बोलने म शायद वह तुतलाते थे, िफर भी कल िमलाकर उनका य व आकषक था और वभाव अ यंत संवेदनशील। आिथक ि से उनका जीवन सुखी था। अपने िव ाथ जीवन म उ ह आकषक व और अलंकार धारण करने म िवशेष अिभ िच थी। दाशिनक क िवरोधी कछ ाचीन इितहासकार ने उ ह ैण और िवलासी तक कहा ह। वह उपहासि य और यु प मित थे। जीवन म अिभभावक , आ यदाता और अपने िम का िनरतर संर ण ा होने से उनका वभाव भी , िशिथल-संक प और पलायनशील हो गया था, िकतु उनका दय मानवीय गुण से ओत- ोत था। अर तू ने जहाँ अपने सभी प रजन क िलए उिचत यव था क थी, वह दास क िलए भी वह यह वसीयत छोड़ गए थे िक उनम से कछ को मु कर िदया जाए और कछ का भरण-पोषण यथाव होता रह। अर तू क ितभा ब मुखी थी। य िप भौितक िव ान और उसक अंतगत भी ाणी िव ान ही उनका मु य िवषय था, तथािप वह अनेक िवधा क आचाय थे। ान-िव ान का कोई भी ऐसा े नह था, िजसे उनक ितभा का आलोक ा न आ हो। कहते ह िक अपने 62 वष क जीवनकाल म उ ह ने ायः 400 ंथ क रचना क । q

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अर तू क समय तक यूनानी िचंतन

अर तू क सािह य से अर तू क िचंतन का ही नह ब

क अर तू क समय तक क यूनानी िचंतन क सभी सू का पता चल जाता ह। वह पहले पा ा य िवचारक थे, िज ह ने भौितक जग संबंधी अ ययन एवं मानवीय अ ययन क सीमाएँ िनधा रत करने का य न िकया था और िविभ िवषय क अंतगत ऐितहािसक िविध का अनुसरण करते ए अपने िवचार य िकए थे। थान- थान पर वह होमर से लेकर लेटो तक को याद करते ह। वैसे तो यूनानी दशन का ारभ तब से माना जाता ह, जब ईसा पूव छठी शता दी क म य भाग म थेलीज नामक दाशिनक ने जल को जग का मूल त व घोिषत िकया था। थेलीज क समय से िवकिसत होनेवाले भौितक दशन को, अर तू क समय म ही ाचीन सां कितक धारणा का फल माना जाने लगा था। वयं अर तू ने िलखा ह िक कछ लोग क मत से थेलीज से ब त पहले, पुराने जमाने क यूनािनय ने भी जल को मूल त व मानकर ओिकएनस और टचीज अथवा जल देवता और जल देवी को संसार िपता और माता कहा था। िन य ही अर तू का संकत होमर क इिलयड नामक महाका य क ओर था।

होमरकालीन क पनाएँ

इिलयड पढ़ने से भी यही धारणा बनती ह िक ाचीन यूनािनय क सामने वे सभी सम याएँ थ , िजन पर आगे चलकर दाशिनक ने िवचार िकया। वे जानना चाहते थे िक संसार क उ पि कसे ई, मनु य कहाँ से आया, वह कसे जीिवत रहता ह, उसक जीवन क घटना क पीछ कौन सा कारण िछपा रहता ह और मरने पर कछ शेष रहता ह अथवा नह ? इन न क ठीक-ठीक उ र न सोच पाने क कारण पा ा य जग क उस युग का मनु य भौितक उपादान को साकार बनाकर अपनी िज ासा शांत कर रहा था। मानवीय सृि क सम या को वह देवी-देवता क क पना से हल कर रहा था। होमरकालीन देववाद का कोई यव थत प नह था, पर इसम काय-कारण संबंध क तथा िनयमन क आकां ा िछपी ई थी। जीवन बड़ा ही अिन त था, िकतु भोले-भाले यूनानी इतना अव य समझ रह थे िक जो कछ होता ह, िकसी-न-िकसी िनयम क अनुसार होता ह, िकसी-न-िकसी कारण से होता ह। इसीिलए वे सभी मानवीय घटना को देवता क म थे मढ़ते थे, पर दैवीय याय क क पना भी करते थे। ोजन यु म दो यो ा क िभड़ने पर उनक िवचार से वही मर रहा था िजसक भा य का पलड़ा ‘िज स’ क तराजू पर हलका पड़ रहा था। मरने क बाद उसक आ मा, िजसे वे जीिवत पु ष क छायामा समझ रह थे, ‘ह ज क देश को चली जाती थी।’ ये सब िवचार ब त समय तक यूनािनय क िचंतन को य अथवा अ य प से भािवत करते रह। इस समय क िचंतन म नैितक प क ब त कमी थी, य िक मनु य अपने सभी काय को देवता क इ छा पर िनभर मानने क कारण जहाँ उ ह उिचत काय का ेय दे रहा था, वह अनुिचत काय का दोष भी लगा रहा था। यही कारण ह िक सुकरात को ईसा पूव चौथी शता दी म सां कितक नैितकता क िव आवाज उठाने क अपराध म ाणदंड भोगना पड़ा, पर यह थित तो ब त समय बाद उ प ई। ईसा पूव छठी शता दी तक होमरकालीन स यता को ही यु -यु बनाने क य न होते रह।

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हिसयड का देव सृि

वणन

होमर से एक शता दी बाद ईसा पूव आठव शता दी म हिसयड नामक किव ने सां कितक देवी-देवता क वंश-वृ तैयार िकए। उसक वणन से मानवीय िचंतन म एक आव यक प रवतन क सूचना िमलती ह। अब तक यूनान का मनु य सृि क ंखला म म और यव था क आकां ा करने लगा था। इसी क फल व प हिसयड ने सृि क िवकास क तीन सोपान बनाए। सृि क पहले चरण म कऑस (शू य), िगया (पृ वी) और इरास (काम) क उ पि ई। इनम से काम क क पना ेरक त व क क पना ह। आगे चलकर एंपीडा ीज ने हिसयड क इसी काम को और होमर क िड कॉड ( ेष) को संयोग-िवयोग क िनयम म प रणत िकया। शू य और पृ वी ने सृि का म आगे बढ़ाया। दूसर चरण म शू य से अंधकार (इरवस) और राि उपजे। इन दोन क संयोग से शू य को भरनेवाला सू म तरल ‘ईथर’ और एमरा अथवा िदन उ प आ। िगया अथवा पृ वी ने आकाश उ प िकया और िफर दोन ने िमलकर टाइटन प रवार उ प िकया। इस टाइटन प रवार म ही पु ष ोनॉस और ओिकएनस तथा याँ ‘ रया’ और रधीज थ , िजनम से ोनॉस और रया ने देव संतित तथा ओिकएनस और रधीज ने जल प रय को उ प िकया। तीसर चरण म देवता और जल प रय क संयोग से यो ा क उ पि होती ह और इनक पतन से धीर-धीर मानवीय सृि का िवकास होता ह। इस सृि वणन म भावी िवचारक क िलए ब त से संकत थे। इसम एक ही मूल से पूरी सृि क िवकास क बात थी, एक अिन त वभाववाले पदाथ से दो िन त, िकतु िव वभाववाली व तु क िवकास क बात थी। टाइटन ने ही ओलंपस पर रहनेवाले देव और भूिम पर रहनेवाली जलप रय को उ प िकया था, पर अभी एक मूल त व से शेष भौितक व तु क िवकास क बात तथा टाइटन से मानवीय सृि क िवकास तक क कहानी पूरी नह ई थी। ऑिफयस क गीत क परपरा ने इसे पूरा करने का य न िकया।

@BOOKHOUSE1 ऑिफयस का संगीत

सातव शता दी ईसा पूव क आसपास यूनान म ऑिफयस क गीत क परपरा बन गई थी। लगभग येक यूनानी किव ऑिफयस क नाम पर चिलत गीत क कथा को नए गीत का प दे रहा था। क ण रस का पुट िमल जाने से ये गीत ब त लोकि य हो गए थे और इ ह ने जन धारणा को ब त भािवत िकया था। इन गीत म सृि क कथाएँ गाई जाती थ , िकतु डायोनीसस जैि यस क तथा थम मनु य क उ पि क कहािनयाँ मु य थ । ये कहािनयाँ सं ेप म इस कार ह— िजपस ने डमीटर क पु ी पस फोनी से डायोनीसस नामक पु उ प िकया और उसे संसार का भावी शासक िनयु िकया। टाइटन ने इसे नापसंद िकया और एक िदन अवसर पाकर उ ह ने डायोनीसस को मारकर उसक टकड़ िकए और आपस म बाँटकर खाने लगे। अक मा देवी एथीना क िनगाह पड़ गई और उसने डायोनीसस क दय को िनगलकर उसका बीज अपने म सुरि त कर िलया और उससे पुनः डायोनीसस क उ पि क । इस बार उसका नाम डायोनीसस जैि स पड़ा। डायोनीसस को खा जाने क अपराध म जीयस ने अपना व छोड़कर टाइटन को भ म कर िदया, पर यह सोचकर िक टाइटन क शरीर म उनक पु का अंश था, उ ह ने सारी भ म इक ी कर उसे थम मनु य का प िदया।

इन कहािनय म मनु य क धा कित और आ मा क आवागमन पर िवचार िकया गया था य िक िजस भ म से पहला मनु य बना था, उसम ‘टाइटन ’ क आसुरी कित और ‘डायोनीसस’ क देव कित क अंश थे। इसक साथ ही एक जीवन से दूसर जीवन म जाने क बात थी। ऑिफयस क गीत-परपरा ने पाइथागोरस क सं दाय को भािवत िकया था, इसिलए उस सं दाय म भी आवागमन क बात मानी जाती थी। कहा जाता ह िक पाइथागोरस क मत से एथस का िस दाशिनक लेटो भी काफ भािवत था।

दशन क उ पि

छठी शता दी ईसा पूव तक यूनािनय म इतनी तक बु जाग चुक थी िक ये अपनी सां कितक कहािनय पर आलोचना मक ि डालने लगे थे। इसी बीच एिशया माइनर म फारस क हमले शु हो गए थे। इनक कारण ाचीन देववाद म यूनािनय का िव ास कम हो चला था। ई.पू. 546 म लीिडया क शासक सस क हार हो जाने से भौितक सम या पर नवीन ढग से सोचने क आव यकता को पूण समथन िमल गया। कहा जाता ह िक यूनानी दशन का ज मदाता थेलीज सस का वै ािनक परामशदाता था।

भौितक दशन

थेलीज ने जग क उ पि क संबंध म िवचार िकया और कहा िक जल से ही संसार क सब व तुएँ उ प ई ह। इस कार पहले-पहल यूनान म भौितक दशन का सू पात आ। थेलीज ने जल को संसार का मूल ोत मानकर भौितक एकत ववाद क थापना क थी। एनेकिजिमनीज और हरा ाइिटस ने वायु और अ न को ाथिमक त व मानकर इसी धारा म योग िदया, िकतु एंपीडॉ ीज ने एकत ववाद को अपया समझकर ब त ववाद का समथन िकया। उसने जल, वायु और अ न क साथ पृ वी को रखकर चार त व से जग क उ पि का समथन िकया। आगे चलकर डमो टस ने असं य अणु से जग क उ पि बतलाई, िकतु यूनानी दशन म एंपीडॉ ीज का मत ही मा य रहा। अर तू ने भी चार त व क मत को ही वीकार िकया था। अणुवाद को वीकित न ा होने का िवशेष कारण यह था िक अणुवािदय ने िविभ अणु म गुण-भेद नह माना था। अणु से उ प व तु क वभाव का भेद उ ह ने अणु क आकार, म तथा थित क भेद पर िनभर माना था। इसीिलए यूनानी दशनकाल म इस मत को मा यता ा न हो सक । ाचीन यूनानी भौितकवाद म एक बड़ी कमी यह थी िक इसम गित क या या नह हो पाई थी। एनेकिजिमनीज ने वायु क घन और िवरल होने से जल तथा अ न क उ पि का अनुमान िकया था। हरा ाइटस ने अ न से सभी व तु का और सभी व तु का अ न म पांतर होना ही उ पि और िवनाश का अथ बतलाया था। एंपीडॉ ीज ने संयोग और िवयोग को उ पि और िवनाश का मा यम माना था। िकसी ने इस बात पर िवचार नह िकया था िक गित य होती ह और कसे होती ह? अणुवािदय ने गित को अणु धम मानकर इस सम या को ही समा कर देना उिचत समझा था।

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बु

वाद

अपनी अपूणता क कारण यूनान म भौितकवाद उस काल म पनप न सका। इसका एक कारण यह भी था िक पुराने देववाद का भाव अभी ब त कम नह हो पाया था, िफर भौितक जग का ान इतना अपूण था िक

दाशिनक को अपनी गु थय को सुलझाने क िलए बौ क यय का सहारा लेना ही पड़ता था। इसिलए जहाँ दाशिनक क एक समूह ने जल, वायु आिद भौितक त व का ाथिमक अ त व माना, वह दूसरी धारा ने ाथिमक अ त व को असीम, स , िव ान आिद नाम िदए। इस बु वादी परपरा का भौितकवाद क साथ ही ज म आ था। एनेकिजमैडर ने िजस समय असीम को संसार का ोत कहा था, लगभग उसी समय थेलीज और एनेकिजिमनीज जल और वायु को परम त व बता रह थे। इतना ही नह , ब क यूनानी दशन म शु भौितकवाद खोज पाना ही किठन ह। हरा ाइटस अ न से व तु क आिवभाव को अधोमाग और अ न से व तु क ितरोभाव को ऊ वमाग कहता ह और स य ान म दोन माग क एकता का समथन करता ह। िन य ही यूनानी भौितकवादी अपने भौितक त व को थूल और सू म दोन प म देख रह थे, िकतु बु वाद को िवशेष प से पाइथागोरस, पारमेनाइडीज और एनेकजागोरस ने सबक िदया।

पाइथागोरस

पाइथागोरस सैमोस नामक ीप का रहनेवाला था, िकतु ई.पू. 532 म वह दि णी इटली क ोटोना नामक थान पर चला गया था। वहाँ उसने अपने धािमक सं दाय क थापना क थी। यह सं दाय गिणत और संगीत क अ ययन पर िवशेष बल देता था। यहाँ तक िक इस सं दाय ने सं या को व तु का सार मान िलया था और आकाश को िव संगीत का मापक। इनम से पहले िवचार से लेटो का जाितय का उ व मानना सं या से व तु क उ पि मानने क समान ह। अर तू ने पाइथागोरस क िव संगीत क मान को ही िव क गित का अचल क माना था। पाइथागोरस क मत म आ मा क वतं अ त व और आवागमन क िस ांत को भी वीकार िकया गया था। इतना ही नह , पाइथागोरस क अनुयायी कमवाद म भी िन ा रखते थे। लेटो क फ डो नामक संवाद म सुकरात पाइथागोरस क आ मा संबंधी िवचार का ही समथन करता ह।

@BOOKHOUSE1 पारमेनाइडीज

पारमेनाइडीज का समय ई.पू. 540 से ई.पू. 470 माना जाता ह। वह हरा ाइटस क मत से प रिचत था। इस मत म व तु जग को अ न का पांतर बताकर उसक िम या होने क ओर संकत िकया गया था। पारमेनाइडीज ने बलपूवक उपदेश िदया िक स क अित र और कछ स य नह ह। उसने स को अनािद, अनंत, अ तीय, अिवन र तथा सावभौम कहा था। उसका कथन था िक स अचल ह। इसम गित नह होती। गित अथवा प रवतन कवल म ह। इस कार उसने एक िनरपे स य को संसार का मूलाधार बताकर आगे चलकर िवकिसत होनेवाले यया मक अ ैतवाद क िकए माग बना िदया।

एनेकजागोरस

पारमेनाइडीज क दशन से भािवत होकर एनेकजागोरस ने कहा िक ारभ म संसार ब त ही अ यव थत था, िकतु बु त व ने उ प होकर िमि त पदाथ म गित उ प क , िजससे सभी व तु ने अलग-अलग प हण िकए। एनेकजागोरस क इस मत ने दो आव यक सुझाव िदए थे। एक यह था िक संसार का आिद कारण चेतन ह और दूसरा यह िक गित का ोत, पदाथवािदय क भाँित पदाथ म न खोजकर उनसे बाहर खोजना चािहए। एनेकजागोरस क िस ांत ने मनोिव ान क िवकास क िलए भी थान बना िदया था, िकतु अभी तक

यूनानी दशन का कोई यव थत प नह बन पाया था, कवल फटकर िवचार ढर सार एकि त हो गए थे।

सोिफ ट िवचारक

ईसा पूव पाँचव शता दी क म य म यूनान म सोिफ ट कहलानेवाले िश क का एक दल तैयार आ, िजसने युवक को घूम-घूमकर संभाषण क िश ा देना ारभ िकया। ये िश क धन लेकर िश ा देते थे, इसिलए सुकरात और लेटो ने इनक ब त िनंदा क थी। वैसे इन िश क ने ब त से ऐसे काम िकए थे, िजनसे िचंतन प ित क िवकास म सहायता िमली। ॉिड स नामक एक सोिफ ट ने िमलते-जुलते श द क अथ का भेद समझाने क िलए पु तक िलख । उस समय तक यूनानी भाषा का न तो कोई कोश बना था और ही न याकरण। पहले-पहल सोिफ ट क ही समय म िव ािथय को ान ा कराने क िनिम पाठ तैयार िकए गए थे। इन सब काय से िश ण प ित का िवकास आ। िश ण क आव यकता से ही यव थत ढग से िवचार को य करने का य न आरभ आ और या या प ितय का भी िवकास होने लगा। िस ह िक सोिफ ट िकसी भी वा य का मनमाना अथ िनकाल सकते थे। इनक इस काय से िवचारक को ब त लाभ आ। उनक समझ म आया िक िबना िचंतन का मानदंड थर ए या याएँ सीिमत नह क जा सकत । अर तू क तादा य क िनयम ‘लॉ ऑफ आइडिटटी’ को सोिफ ट क या या प ित क िति या का फल मान लेना अनुिचत न होगा। सोिफ ट म सबसे वृ ोटगोरस था। वह मनु य को सभी मानदंड का ज मदाता मानने क िलए यूनानी दशन म िस हो गया ह, िकतु इस मत क कारण उसे थूल य वाद का समथक नह समझना चािहए। उसका कथन उस समय तक िवकिसत सभी यूनानी मत पर एक संि िट पणी ह, तब तक िकसी तािकक शैली का िवकास नह आ था। िजस िवचारक क समझ म जो आया था, वही उसने उपदेश क प म कह िदया था। ोटगोरस क कथन से सुकरात, लेटो और अर तू ने संकत िलये और तक िवधा का िवकास आ।

@BOOKHOUSE1 सुकरात

सोिफ टो क ही काल म यूनान क िस दाशिनक सुकरात (सो टीज) का ज म आ था। िस इितहासकार ोट ने सुकरात का समय ई.पू. 469 से 399 माना ह। सभी मा य िववरण से पता चलता ह िक सुकरात एथस नगर क एक साधारण मूितकार क घर पैदा आ था, िकतु अपने आदश जीवन, सामािजक यवहार तथा आ म- याग क कारण उसने यूनानी दाशिनक म सव े थान ा िकया। सुकरात ने न तो कोई नौकरीचाकरी क और न अपने पैतृक यवसाय म िवशेष िच ली। उ ह ने अपना संपूण जीवन दशन क सेवा म लगा िदया। इसक बदले म एथस क जनतं ने स र वष क उ म सुकरात पर अधािमक होने, धन लेकर िश ा देने और युवक को रा य क िव भड़काने क आरोप लगाए और उ ह मृ युदंड िदया। सुकरात ने वयं कछ नह िलखा था। उनक दाशिनक िवचार को जानने क मु य ोत लेटो तथा अर तू क ंथ ह। लेटो क सािह य का अ ययन करने वाले िव ान क िवचार से अपॉलॉजी, टो, यू ीफोन, लैचेज, अयॉन, ोटगोरस, कारिमडीज, लाइिसस नामक संवाद म आ ोपांत तथा रप लक क पहले भाग म सुकरात क ही िवचार िमलते ह। इसीिलए लेटो क उपयु संवाद सुकरातीय कह जाते ह। अर तू ने अपनी ‘मेटािफिजका’ नामक त व

िव ा संबंधी पु तक म तथा नीितशा क पु तक म सुकरात क दाशिनक तथा नीित संबंधी िवचार क उ रण देकर उन पर अपनी समी ाएँ तुत क ह। जेनोफोन क ‘मेमोरिविलया’ से भी सुकरात क संबंध म ब त सी बात मालूम होती ह, मगर वह पु तक एक भ क सं मरण क प म ह, इसिलए मत क सा य क ि से मह वपूण नह ह। जेनोफोन क पु तक क िवप म अ र टोफनीज का हसन ह, िजसम सुकरात क जमकर िख ी उड़ाई गई ह। लेटो क अपॉलॉजी म उ हसन का उ ेख िमलता ह, पर हसन को िकसी गंभीर िवचार का आधार नह बनाया जा सकता।

तकशैली का िवकास

अर तू क ‘मेटािफिजका’ म सुकरात को तक क आगमन प ित तथा सामा य प रभाषा का आिव कारक बतलाया गया ह। लेटो क संवाद से तथा जेनोफोन क मेमोरिविलया से भी अर तू क उ कथन क पुि होती ह। दोन म सुकरात क संवाद ह, िजनम वह साहस, िमताचरण, याय आिद नैितक गुण क प रभाषाएँ िन त करने क य न करता आ िदखाया गया ह। इ ह संग से सुकरात क आगमन प ित का प रचय िमलता ह। पहले वह िकसी प रिचत उदाहरण क आधार पर अपने िवचार क प रभाषा बना लेते थे, िफर वह दूसर उदाहरण लेकर देखते थे िक उनक पूवक पत प रभाषा ठीक ह अथवा नह । ुिट िदखाई देने पर वह प रभाषा म सुधार कर लेते थे। इस ि या को वह तब तक जारी रखते थे, जब तक उ ह नवीन उदाहरण िमलते जाते थे। यान देकर देख तो सुकरात क परी ण िविध कवल आगमना मक या िनगमना मक नह ह। वह एक ही उदाहरण का िव ेषण कर एक सामा य प रभाषा बना लेते थे, िफर जैसे-जैसे उस प रभाषा का अ य उदाहरण पर योग करते जाते थे, उनक प रभाषा िव तृत होती जाती थी। उदाहरण क सहार प रभाषा का िवकास होने से उनक िविध आगमना मक ह, िकतु िचंतन क येक तर पर क पत प रभाषा का िविश उदाहरण पर योग करने से िनगमन भी होता जा रहा ह। इसी प ित म ं ा मक िविध तथा अिवरोध क िनयम क भी दशन होते ह। प रभाषा क िवकास म िविभ तर क प रभाषा क एक ंखला बनती थी। इनम से अंितम प रभाषा को छोड़कर शेष सभी प रभाषा का िदए ए उदाहरण पर योग होने पर िकसी-न-िकसी त य से िवरोध पड़ता था, तभी उनम सुधार क आव यकता होती थी। यिद अिवरोध क िनयम का पालन न िकया जाता तो एक ही प रभाषा का उ रो र िवकास न होकर एक ही िवचार क ब त सी प रभाषाएँ ा होत । िवरोध क आ ह से प रभाषा म प रवतन िकए जाने पर नवीन प रभाषा को अ वीकत प रभाषा म िनिहत पूववाद और उसक मानिसक ितवाद का संवाद मानना पड़गा। इसीिलए सुकरात को प रभाषा क िविध तथा आगमन और िनगमन क िविधय क साथ-साथ ं ा मक िविध और अिवरोध क िनयम का िवकास करने का भी ेय िमलना चािहए।

@BOOKHOUSE1 नैितक िचंतन का िवकास

िवषय क ि से सुकरात को ही नैितक िचंतन क ाथिमकता थािपत करने का ेय िमलना चािहए। अर तू ने ‘मेटािफिजका’ म उ ेख िकया ह िक सुकरात ने भौितक सम या क ओर यान न देकर अपने को आजीवन नैितक परामश म संल न रखा। अर तू ने यह भी िलखा ह िक सुकरात का य न नैितक जीवन क पथ- दशन क िलए िकसी सावभौम स य क खोज करने का था। लेटो क ‘फ डो’ नामक संवाद म मृ यु पूव सुकरात ने अपने

उप थत िम तथा िश य से कहा ह िक जब तक हम शरीर म ह और शरीर क दुगुण से हमारी आ मा दूिषत ह, तब तक हमारी इ छा पूण नह होगी और वह ह स य को ा करने क । सुकरात नैितकता का अथ स यवहार मा नह समझते थे। वह कमवाद म िव ास करते थे और मानव जीवन को स य ान क अनुसंधान का मा यम समझते थे। वह कम और ान क सम वय क पोषक थे। उनक िवचार से स य ान क अनु प जीवन िबताना ही स ी नैितकता ह।

सुकरात का ान िस ांत

सुकरात क िवचार को ठीक-ठीक जानने क िलए ान िस ांत को समझना आव यक ह। उनक अथ म ान तभी ा हो सकता ह, जब आ मा मन, बु तथा इि य क बंधन से मु होकर स य का सा ा कार कर। वह कहते थे िक स य का ान न होने क कारण ही लोग अनैितक कम करते ह। मानव बु पर उसे अिधक िव ास नह था। लेटो क ‘फ डो’ म सुकरात ने कहा ह—‘‘िव ास क यो य तीत होने पर भी मूल िस ांत का भलीभाँित परी ण करना चािहए। संतोष द परी ण क बाद मानव बु पर पूरा भरोसा न करक तक का अनुसरण करना चािहए। इनम भी सरलता और प ता का अनुभव होने पर ही समझना चािहए िक अब अिधक छानबीन क आव यकता नह ह।’’ सुकरात क कथन से पता चलता ह िक वह स य ान को िकतना दु ह मानते थे। इसीिलए उ ह ने आजीवन अपने ान का परी ण करते रहने का सवदा उपदेश िदया।

@BOOKHOUSE1 सुकरात क धािमक िवचार

वह ड फ क ‘अपोलो’ क भ थे और उ ह को अपने जीवन का पथ- दशक मानते थे। उनका िव ास था िक अपोलो उ ह समय-समय पर कत य और अकत य का ान करने क िलए संकत करते रहते थे। लेटो क ‘अपोलॉजी’ म सुकरात ने यह बात यायाधीश क सामने भी कही थी। इससे पता चलता ह िक वह स य ान क उपल ध क िलए परी ण क अित र नैितक जीवन िबताकर दैवीय पथ दशन ा करना भी आव यक समझते थे, इसिलए वह िव ान को भा याधीन मानते थे। अर तू ने इसक िलए उनक आलोचना क ह, िकतु दोन क ि य म अंतर ह। सुकरात िव ान का अथ पा रमािथक ान और अर तू तािकक ान समझते थे।

लेटो (ई.पू. 427-347)

सुकरात ने सबसे अिधक लेटो को भािवत िकया था। वही सुकरात क िश य म सबसे अिधक ितभावान थे। िजस समय सुकरात को मृ युदंड िमला था, लेटो क अव था अ ाईस वष थी। उस समय तक लेटो का िवचार राजनीितक जीवन िबताने का था, िकतु सुकरात को अ यायपूण मृ युदंड िदए जाने पर उ ह ने अपना िवचार बदल िलया। अब उ ह ने अपनी िश ा क ारा ऐसे य उ प करने का संक प िकया, जो शासन स ा को अपने हाथ म लेकर नैितक रा य क थापना कर सक। अपना काय पूरा करने क िनिम सुझाव ा करने क िलए वह दस वष िम , िसमली, इटली आिद थान म घूमते रह। इसी बीच िसरा यूज क डायोनीिसयस थम क संपक म रहकर उ ह ने तानाशाही क गितिविध का अ ययन िकया। अंत म वह ई.पू. 389 म एथस वापस आए और वहाँ पर अकादमी नामक एक िश ण सं था क थापना क ।

लेटो वयं अपनी सं था का धान बने और इस सं था म उ ह ने सुकरात क िवचार क अनु प िश ा देना आरभ िकया। अकादमी क िश ा क ारा वह एथस क शासन यव था म आमूल प रवतन करने क अिभलाषा कर रह थे। अकादमी क िव ािथय को पहले गिणत, योितष, संगीत, तकशा , राजनीित और नीितशा क िश ा दी जाती थी। इन िवषय म पारगत हो जाने पर उ ह अ या म क उपदेश िदए जाते थे। बारह वष तक अकादमी का संचालन करने क बाद लेटो ई.पू. 367 म िसरा यूज गए। इस समय डायोनीिसयस थम क मृ यु हो चुक थी और उसका पु जो अभी कम उ था, डायोनीिसयस तीय क नाम से शासन का भार सँभाल रहा था। लेटो को अपना काय पूरा करने का अवसर िदखाई िदया। उ ह ने सोचा िक युवा शासक को भािवत कर नैितक रा य क थापना कराई जा सकती थी, िकतु वहाँ लेटो क दाल न गली और वह वापस चले गए। िफर भी वह पाँच वष तक इसी य न म लगे रह। ई.पू. 362 म वह अंितम बार िसरा यूज गए और सदैव क िलए िनराश होकर लौट आए। उनक अकादमी बराबर चल रही थी और ई.पू. 347 तक वह अपना सारा समय िश ण काय करने और संवाद िलखने म लगाते रह।

लेटो क ंथ

लेटो ने अपने जीवन क बयालीस वष िश ा देने और संवाद िलखने म यतीत िकए। परपरा से छ ीस संवाद ा ए ह, जो लेटो क कह जाते ह। इन संवाद को ईसा क पहली शता दी म ेसाइलस नामक िकसी िव ा ने चार-चार संवाद क नौ भाग म संगृहीत िकया था, आधुिनक काल क िव ा इनम से कछ को अ ासंिगक मानने लगे ह मगर ए.ई. टलर ने अ ाईस को और ड रक कोपु टन ने चौबीस को िनिववाद प से लेटो ारा िलखा आ माना ह। िव ान का िवचार ह िक लेटो ने अपने ारिभक संवाद म सुकरात क िवचार िदए ह और बाद क संवाद म अपने िवचार िदए ह। िजन संवाद म सुकरात क िवचार िमलते ह, उनक नाम ऊपर िदए जा चुक ह। ‘िस पोिजयम, फ डो, रप लक (पहला भाग छोड़कर), फ डस, थीटीटस, पारमेनाइडीज, सोिफ ट, ट समेन, िफले स, टाइिमयस, िटयस, लाज और एपीनोिमस’ को लेटो क िवचार का ोतक माना जाता ह। संवाद क ढाँच से तो यह िनणय कर पाना बड़ा किठन ह िक लेटो का मत िकस संवाद म ह, य िक लाज को छोड़कर सभी म सुकरात मुख व ा ह। फ डो को ायः सुकरातीय नह माना जाता, पर वही एक ऐसा संवाद ह, िजसम सुकरात क मुख से उनक अंितम िश ाएँ कहलाई गई ह। ऐसी दशा म हम परपरा पर िव ास करना होगा। इन संवाद से लेटो क भौितक दशन, ान िस ांत, आ मा क िव ान, ययवाद, नैितक दशन, राजनीित शा तथा िश ा, कला और स दय संबंधी िवचार का प रचय िमलता ह।

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लेटो का भौितक दशन

अपने गु सुकरात क भाँित लेटो भी भौितक िवषय क ओर से अिधकतर उदासीन ही रह। कवल उनक ‘टाइिमयस’ नामक संवाद म मु य पा टाइिमयस सृि क कथा कहता ह। उनका कथन ह िक ई र ने सबसे पहले अ न, पृ वी, जल और वायु को, जो पहले से िव मान थे, तीन भाग म बाँटा। अ न और पृ वी को अलग

कर उसने जल और वायु को उसक बीच म रख िदया। इस कार िदखाई देनेवाले आकाश क उ पि ई, िफर उसने आ मा को आकाश क म य म रखकर िन य जग क रचना क । इस िववरण म आ मा क उ पि क िवषय म टाइिमयस का कहना ह िक ई र ने अिवभा य तथा अप रवतनशील त व और िवभा य तथा शरीर से संबंध रखनेवाले त व से एक तीसर कार क त व का िनमाण िकया, िफर इस कार बने ए तीन त व से आ मा का िनमाण िकया। मेटा िफिजका म अर तू ने बतलाया ह िक लेटो ‘मह ’ और ‘अ प’ को िन य तथा अनंत मानते थे। अर तू क ही अनुसार इन दो त व से िजस तीसर त व क रचना ई थी, वह ‘देश’ था। िकसी कार इस िववरण से हम यही नतीजा िनकाल सकते ह िक लेटो क अनुसार िन य संसार का शरीर अ न और पृ वी आिद चार थूल त व से बना ह। इस शरीर क चरण म पृ वी और शीष पर अ न ह। बीच का भाग जल और वायुमय ह। आ मा इस शरीर का ाण ह, जो तीन त व से बनी ह। टाइिमयस क अनुसार, िन य संसार क रचना ई र क शा त संक प क अनुसार ई थी। इस संसार को बना लेने पर रचियता ने इसका एक ित प बनाने का िवचार कर ‘समय’ उ प िकया। समय म ‘गित’ उ प ई, िजससे ‘था’, ‘ह’ और ‘होगा’ अथवा भूत, वतमान और भिव य क भेद उ प हो गए। अब उसने शा त रचना क ित प का सृजन िकया। मूल रचना म चार त व थे, इसिलए उसने चार कार क ाणी उ प िकए। ये थे— आकाश क देवता, वायु म िवचरणशील प ी, जलचर तथा अनेक कार क भूिमचर। उ संवाद क िव रचना संबंधी संग म िकसी कार का िववाद नह ह। टाइिमयस कहता ह, अ य पा सुनते ह। पूर संवाद को पढ़कर यही लगता ह िक लेटो रचना क संग म अपनी परपरा अनुमोिदत धािमक धारणा को य देना चाहते थे। कल िमलाकर वह इतना ही कहना चाहते ह िक ई र ने थूल और सू म त व क संयोग से वग का िनमाण िकया, जो िन य ह, शा त ह, पूण ह, िफर उसी ने इसका अपूण प उ प िकया, जो हमारा जग ह। इन दोन म स य और स य क ित प का संबंध होने से िन य और अिन य का, स और अस का ं वा तिवक नह रह जाता। यवहार को परमाथ का ित प बताकर लेटो उस खाई को भर देना चाहते थे, जो हरा ाइटस और पारमेनाइडीज ने प रणाम और स ा क सम याएँ उठाकर पैदा कर दी थी। उ ह ने टाइिमयस से कहलाया भी ह िक स य संसार का ान बु से होता ह, अस य का इि य से, िकतु अस य कवल म नह ह, य िक वह स य क छाया ह। सचमुच लेटो का भौितक दशन उसक अ या मवाद क अ प छाया ह।

@BOOKHOUSE1 लेटो का ान िस ांत

‘थीटीटस’ नामक संवाद से लेटो क ान संबंधी मत का पता चलता ह। सुकरात को ान क कित क िवषय म िज ासा होती ह और वह थीटीटस और िथयोडोरस नामक दो िम क सहयोग से िकसी-न-िकसी िनणय पर प चना चाहते ह। िवचार का माग बताने क िलए सुकरात अपने सहयोिगय को हरा ाइटस क त व िव ान और ोटगोरस क ान-िस ांत का मरण कराते ह। िदए ए संकत क ेरणा से थीटीटस कहता ह िक ‘ य ही ान ह।’ सुकरात इस िवचार क आलोचना करते ह। उनका कहना ह िक य मा को ही ान मान लेने पर एक तो य से बा ान क संभावना न हो जाती ह, दूसर मृितज य ान क िलए थान नह बचता। िफर वह

ोटगोरस क मत क तािकक या या करते ह। उनका कथन ह िक येक य क य को ान मानने पर तीन किठनाइयाँ उ प ह गी— 1. दो य य क य म भेद होने पर कोई िनणय संभव नह होगा। 2. िवप को अस य िस नह िकया जा सकगा। 3. िवप को स य ान मानने पर ोटगोरस क या या खंिडत हो जाएगी। इन तक क आ ह से थीटीटस अपना िवचार वापस ले लेते ह और उिचत स मित को ान कहते ह। इसम भी किठनाइयाँ दिशत क जाने पर वह कहते ह िक उिचत स मित क साथ ही स मित क तािकक या या जोड़ देने से वह ान कहलाएगी। यह भी ठीक न ठहरने पर वह कहते ह िक िजन व तु क संबंध म स मित दी जाए, उनका पारप रक भेद भी प कर िदया जाए तो वह ान होगा। सुकरात इन सबका भी खंडन कर देते ह और कहते ह िक इस िवषय से पता चल गया िक कौन-कौन व तुएँ ान से िभ ह, तब वह बतलाते ह िक— 1. आ मा स और अस क सामा य धारणा म भेद करती ह। अ य धारणा का ान इि य से होता ह। 2. स अथवा त व शा त ह। 3. इि याँ अपने िवषय का ान कर लेती ह, िकतु उनक सार का तथा पार प रक िवरोध का ान िव ेषण और तुलना क ारा आ मा ही करती ह। 4. ज म से ही इि य क मा यम से आ मा तक प चते रहने पर सामा य संवेद क स य का तथा उनक योग का ान िश ा और अनुभव से होता ह। यहाँ पर िन य ही ऐंि क ान और आ मक ान म भेद िकया गया ह, िकतु ऐंि क ान को अस य और म नह बतलाया गया ह। वह कवल अपूण ह, पर िश ा और अनुभव से िवकिसत िव ेषण और तुलना क श याँ उसे पूण बना सकती ह। पूण होने पर वह सामा य अथवा सावभौम होता ह। यह लेटो का ान संबंधी दशन ह। इसम मनोवै ािनक त य भी ह। सीखना, धारण करना और या ान को ान का अवयव बताकर मृित क अ ययन क संकत िदए गए ह। संवेदन, य और िनणय तक ान का िवकास बताकर सामा य ाना मक ि या का संि अ ययन तुत िकया गया ह। िव ेषण और तुलना को ान का मा यम कहकर िचंतन क ि या क अ ययन क सुझाव िदए गए ह। िश ा और अनुभव को ान का आधार बताकर सीखने क ि या पीिठका बना दी गई ह। कमी कवल उिचत िव ेषण क ह, िकतु इस िव ेषण क िलए शता दय तक अ ययन और िचंतन क आव यकता थी। लेटो वह पहले य थे, िज ह ने भावी अ ययन क िलए ये उपयोगी संकत छोड़ थे।

@BOOKHOUSE1 लेटो का आ मा िव ान

लेटो क सभी संवाद म आ मा क िवषय म कछ-न-कछ कहा गया ह, िकतु ‘टाइिमयस’, ‘फ डो’, ‘फ स’ और ‘लाज’ से मु य बात का सं ह िकया जा सकता ह। ‘टाइिमयस’ क अनुसार, आिद देव ने एक अमर आ मा को उ प िकया था। उसक पु अथवा देवता ने उसे पहले दो भाग म बाँटकर एक भाग को िसर म और दूसर भाग को दय से कठ तक थान िदया। दूसर भाग क भी दो भाग िकए। इनम से एक को कठ से रीढ़ क ह ी तक और दूसर को रीढ़ क ह ी से नािभ तक

सीिमत कर िदया। इस कार एक आ मा क तीन िवभाग बन गए। इनम से िसर म रहनेवाली आ मा अमर ह, शेष दो कार क न र। शरीर क नीचे वाले भाग म थत आ मा अमर आ मा क अधीन रहती ह। आ मा का संग ‘फ डो’ म भी आया ह, िकतु दूसर प म। वहाँ पर शरीर और आ मा क संबंध क चचा ई ह। सुकरात ने और अ भेद से दो कार क अ त व बताए ह। को प रवतनशील और अ को अप रवतनशील कहा गया ह। इस िवभाजन क प ा शरीर को और आ मा को अ अ त व बताया गया ह। आगे चलकर सुकरात क मा यम से यह भी सूिचत िकया गया ह िक शरीर और आ मा का संयोग होते ही शरीर का धम आ मा क आ ा का पालन करना और आ मा का धम शरीर पर शासन करना हो जाता ह। फ डो म आ मा क मृ यु क बाद क दशाएँ भी बताई गई ह। जीवनकाल म शरीर से उदासीन रहनेवाल क आ मा मृ यु क बाद ई र का सा य ा करती ह। यह जीवन का परम ल य ह। इसक िवपरीत शरीर म रहने क समय जो आ मा शरीर से पूरा लगाव रखती ह, वह बार-बार शरीर से अपना संबंध थािपत करती रहती ह। यह मो और पुनज म क बात ह। इन दोन अव था को मानिसक ि पर िनभर बताया गया ह। लेटो ने सुकरात क दशन क अ ययन से इस कार क धारणा बन जाने को ही उ अ ययन का ल य बतलाया ह, िकतु मो तभी ा होता ह, जब अंत समय म भी यही धारणा बनी रह। अंत समय म जो शरीर का साथ नह छोड़ना चाहता, वह बार-बार ज म लेता ह और बार-बार मरता ह, भले ही उसने जीवन भर शरीर से लगाव न रखा हो। ‘लाज’ म मृ यु क बाद जीवनकाल क अपराध क दंड भोगने क भी बात आई ह। दूसर ज म म पहले ज म म िकए ए अ याय का बदला चुकाने क भी बात कही गई ह। ‘लाज’ म सुकरात नह ह। उनका थान िकसी अप रिचत एथस क िनवासी ने ले िलया ह। वह अपराध क चचा करते ए संबंिधय क ह या को ब त बड़ा अपराध बतलाता ह। वही कहता ह िक जीवन म िजन अपराध का दंड नह िमल पाता, उनक िलए मृ युलोक म यातनाएँ सहनी पड़ती ह अथवा िफर ज म लेकर उसे उसी कार मरना पड़ता ह जैसे उसने पूवज म म दूसर को मारा था। उ अप रिचत क कथन का आधार गु धािमक उपदेश ह। यह संग ‘लाज’ क नौव अ याय म आया ह। इसे पढ़कर लेटो क अपने देश क धािमक परपरा क समथक होने म संदेह नह रह जाता।

@BOOKHOUSE1 लेटो का ययवाद

लेटो ने अपने ‘पारमेनाइडीज’ नामक संवाद म सुकरात, जीनो और पारमेनाइडीज क बातचीत कराई ह। सुकरात जीनो से पूछते ह, ‘‘ या तुम यह नह मानते िक समानता और असमानता क यय होते ह? इ ह िवरोधी यय क बीच तुम और म तथा तमाम व तुएँ, िज ह हम अनेक कहते ह, थत ह।’’ जीनो उ र नह देता। तब पारमेनाइडीज सुकरात से पूछता ह, ‘‘ या तुम ‘समानता’ से िभ ‘समानता क यय’ क अ त व म तथा ‘एक’, ‘अनेक’ आिद क यय क िभ अ त व म िव ास करते हो?’’ सुकरात ने कहा, ‘‘म तो समझता िक ये होते ह।’’ इस पर पारमेनाइडीज ने पूछा, ‘‘िफर तो िम ी, क चड़ और बाक आिद क भी यय होते ह गे?’’ सुकरात कछ न कह सक तब पारमेनाइडीज ने कहा, ‘‘अभी तुम क े हो।’’ संभवतः सुकरात व तु और उनक यय क अंतर क सम या का िनणय नह कर सक थे। लेटो ने यह

काम पूरा िकया। अर तू ने िलखा ह िक लेटो को व तु म वे सभी गुण न िमल सक थे, जो प रभाषा क अनुसार उनम होने चािहए। इसीिलए प रभाषा को व तु का प देकर उसने उ ह यय कहा। इस िवचार से लेटो का ययवाद ( योरी ऑफ आइिडयाज) व तु म िछपे ए सामा य गुण को व तु का प देने का य न ह। लेटो क यय संसार और उसक रचियता क बीच क र थान को भरने का य न करते ह। कहा जाता ह िक ययवाद लेटो क अनाव यक सृि ह। आलोचना क प म यह कथन ठीक हो सकता ह, िकतु लेटो ने यय िस ांत क ारा अपनी नैितक िश ा का माग श त करना चाहा था। वह कहना चाहते थे िक इस लोक से पर एक सू म स ा का लोक ह, जो स य ह, पूण ह, सुंदर ह। उसी लोक क व तु का आ य पाकर इस लोक क व तुएँ गुणवान होती ह। इस कार यय क लोक म िव ास उ प कराकर वह मनु य को उसी पूण लोक क आदश को अपनाने क िलए े रत करना चाहते थे। लेटो क मत को समझने क िलए यान रखना होगा िक वह मूलतः नैितक िवचारक थे।

लेटो क नैितक िवचार

लेटो क नैितक िवचार ‘िफले स’ और ‘लाज’ नामक संवाद म िमलते ह। िफले स म वह पूणता को नैितक अ छाई क कित मानते ह और मानव जीवन क सभी अ छाइय को पाँच ेिणय म बाँटते ह। इस ेणी िवभाजन म उसने संतुिलत म यम और उपयु को पहला, सुघढ़, सुंदर और पूण को दूसरा, बु और बु म ा को तीसरा, िव ान, कला और उिचत स मित को चौथा तथा सुख को पाँचवाँ थान िदया था। इन अ छाइय क कित पर यान देने से तिनक भी संदेह नह रह जाता िक लेटो बौ क संतुलन को मानव जीवन का मु य येय मानते थे। इसीिलए उ ह ने थम ेणी क तीन अ छाइय म संतुलन को सव थम थान िदया। उनक मत म ये सभी अ छाइयाँ पर पर असंब नह ह, ब क एक ही कम ंखला क िविवध अंग ह। संतुिलत मन से, यो यायो य का िवचार कर म य माग का अनुसरण करनेवाले य क काय सुघढ़, सुंदर तथा पूण हो सकते ह। ऐसे ही काय करनेवाला य धीर-धीर बु का िवकास कर बु मान बनता ह, िकतु इस कार काय करने क िलए िव ान क अ ययन क कला क अ यास क और अनुभवी लोग क स मितय से िश ा ा करने क आव यकता होती ह। यिद िकसी ने िनरतर अ यास कर इस कार कम करने का वभाव बना िलया तो िन य ही उसका जीवन सुखमय होगा। यही लेटो क नैितक िश ा का वा तिवक अथ ह। लेटो जीवन को कला क प म देखते थे। पूणता उ प करने क िलए िजस कार सामा य कलाकार को अपनी कलाकितय म अिधक-से-अिधक सुघढ़ता एवं सुंदरता लाने का अ यास करना पड़ता ह, अ ययन और िचंतन करना पड़ता ह तथा दूसर े कलाकार का उसक समीप रहकर अथवा उनक कलाकितय को देखकर अनुकरण करना पड़ता ह, उसी कार जीवन क कलाकार को भी िनरतर अ यास क आव यकता होती ह। उसे वै ािनक का िचंतन और कलाकार का मनोयोग चािहए, इसीिलए लेटो ने सबको उ िवषय क िश ा ा करने क सलाह दी थी। लेटो क नैितक उपदेश का सारांश यही ह िक येक य को जीवन म कला मक पूणता लाने का य न करना चािहए। ‘लाज’ क पहली पु तक म लेटो ने एक बार िफर नैितक संग उठाया ह। यहाँ वह बु म ा, िमताचरण, याय और साहस को नैितक गुण कहते ह। इतना ही नह , वह इ ह दैवीय गुण ठहराते ह और रा य को ऐसी यव था करने क स मित देते ह, िजससे नाग रक म उपयु गुण उ प हो सक। लाज म उ ह ने इन गुण क

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अित र चार मानवीय अ छाइयाँ बतलाई ह। ये वा य, स दय, श तथा अथ ह। वह इ ह यव थत जीवन म उपकारक मानते थे और इसीिलए उ ह अिजत करना सबक िलए आव यक समझते थे। लेटो क संवाद म यावहा रक जीवन क संप ता क संबंध म िकतने ही संकत िमलते ह, िकतु उनक नैितक िश ा का कोई सु यव थत प नह ह। ऐसा लगता ह िक िव तृत िचंतनशील जीवन म मानवीय आचरण क िजन वांछनीय अवयव क ओर उनका यान गया, उन सबको शुभ बतलाकर उ ह ने उ ह मानवीय आकां ा का िवषय बताने का यास िकया। िविभ संग म प रगिणत शुभ को िकसी एक ही संदभ म एक नह िकया। िफर भी ऐसे संकत िमलते ह, िजनसे यह समझा जा सकता ह िक वह सभी शुभ को एक ही उ े य का पूरक मानते थे और वह उ े य जीवन क पूणता ह। इसे ा करने पर ही मनु य का जीवन सुखमय हो सकता ह।

लेटो क राजनीित संबंधी िवचार

लेटो क राजनीित संबंधी िवचार ‘ ट समैन’ तथा ‘लाज’ म िमलते ह। नगर क यव था करना और नाग रक को नैितक माग पर चलाते रहना—वह रा य का उ रदािय व समझते थे, िकतु इसे दंड िवधान क ारा नह , उिचत िश ा और िनरी ण क ारा वह संभव मानते थे। इसीिलए िनयामक क उ रदािय व िगनाते समय उ ह ने सामािजक तथा यावसाियक जीवन क िनयं ण क अित र वैवािहक संबंध से लेकर बालक क खेलकद और िश ा आिद का िनयं ण भी उसे स प िदया। लेटो क िवचार से बालक क वृि याँ पैतृक गुण पर िनभर करती ह। उसका वभाव माता और िपता क वभाव क योग से बनता ह। इसीिलए दांप य क िनरी ण क िबना वांिछत वभाव क बालक उ प नह िकए जा सकते। ‘ ट समैन’ म उ ह ने कहा ह िक शासक को ऐसे पदािधकारी िनयु करने चािहए, जो िववाह से पूव भावी पित और प नी क गुण क जाँच कर ले। साथ ही िनयमन क ारा इस कार क जाँच क िबना होनेवाले वैवािहक संबंध को अवैध घोिषत कर देना चािहए। यो य संबंध क िनणय क िलए उ ह ने बताया ह िक वैवािहक संबंध म साहस और न ता क मै ी होनी चािहए। लेटो ने शासक क िलए िशशु क देखभाल का अ छा बंध करना ब त ही आव यक बतलाया ह। उ ह ने रा य को िशशु गृह का समुिचत बंध करने क सलाह दी ह, य िक िशशु क देखभाल िश ा का सबसे आव यक अंग ह। िव ालय क िश ा क संबंध म भी लेटो ने सुझाव िदए थे। उनका कथन ह िक बालक क पा य पु तक पर रा य का पूण िनयं ण होना चािहए, िजससे उनक हाथ म सभी कार क पु तक न जा सक, तभी उनम वांिछत िवचार उ प िकए जा सकगे। लेटो क अनुसार, बालक क िलए िलखी ई ग क पु तक म यव थत जीवन म िच उ प करानेवाले िवचार होने चािहए। उनक पु तक म यु क वणन िबलकल नह आने चािहए, य िक उ ह पढ़कर बालक म लड़ने-झगड़ने क वृि पैदा होती ह, जो नाग रक यव था एवं शांत जीवन म बाधा प चाती ह। बालक को वे ही पाठ पढ़ाए जाने चािहए िजनसे उ ह शांित क लाभ का ान हो। प क पु तक म देवता क ाथनाएँ, नेता क श तयाँ और शुभ कम म स ित ा आिद िवषय होने चािहए। उनम दूिषत च र को थान नह िमलना चािहए। रा य को चािहए िक किवय क िलए िनयम बना दे िक वे अपनी का य कितय म यायपूण, सुंदर तथा शुभ च र को ही थान द।

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इस कार िनयंि त िश ा क ारा तैयार िकए ए नाग रक क सामािजक आचरण का िनरी ण करने क िलए लेटो ने रा य को िनरी क िनयु करने क सलाह दी थी। उ ह ने कहा था िक च र िनरी क को देखते रहना चािहए िक नाग रक अपने से बड़ का, देवभ का तथा िवदेिशय का स मान करते ह या नह । उ ह यह भी देखना चािहए िक नाग रक अपने आपको दूसर से बढ़कर तो नह समझते ह। इस तरह लेटो ने रा य को नगा रक क शील और िश ाचार क िनिम िनयम बनाने और उन िनयम का पालन कराने क िलए उिचत िनरी ण का बंध करने क स मित दी थी। साथ ही इस किठन उ रदािय व को सफलतापूवक वहन कर सकने क िनिम लेटो ने शासक को उिचत िश ा ा करने, रा य को ो साहन देने, रा य क सीमा को संकिचत रखने और अवांिछत य य से रा य को मु रखने क भी स मित दी थी। उनका कहना था िक छोट रा य म यव था रखना उतना ही सरल ह, िजतना िकसी बड़ प रवार म। इसीिलए लेटो ने रा य क सीमा-संकोच पर ब त बल िदया था। लेटो क िवचार से शासक को बा यकाल से ही ऐसी िश ा िमलनी चािहए िक वह संपूण रा को अपना प रवार समझ सक। उसे गिणत, योितष और दशन का पंिडत होना चािहए। उसका बौ क तर इतना ऊचा होना चािहए िक वह रा क सभी सद य क सम याओ को समझ सक और िविभ प र थितय म अपने कत य का पालन कर सक। शासक म लेटो क अनुसार, सम ि होनी चािहए, िजससे वह सबको समान याय दे सक। उसम कौशल होना चािहए, िजससे वह नाग रक क ित यो य यवहार कर सक। सबसे अिधक शासक म नाग रक क िहत क कामना होनी चािहए। व तुतः लेटो उस रा य क क पना कर रह थे, िजसम नाग रक और शासक क बीच उसी कार क संबंध ह , िजस कार क संबंध िकसी िव तृत प रवार म प रवार क सद य और प रवार क बड़-बुजुग क बीच होते ह। वह नाग रक म भी चराचर वही संबंध चाहते थे, जो प रवार क सद य क बीच होते ह। इन संबंध को वह िश ा और िनयमन से संभव मानते थे। यही उनक राजनीित का सारभूत संदेश ह।

@BOOKHOUSE1 लेटो क कला और स दय संबंधी िवचार

लेटो संपूण िव को ही एक कला क प म देखते थे। उ ह ने अपने ‘सोिफ ट’ नामक संवाद म कला क चचा करते ए अपने मु य पा से कहलवाया ह िक संसार क पशु-पि य , वन पितय को देखकर हम या िवचारना चािहए? यह िक उ ह ई र ने बनाया ह अथवा यह िक उ ह जड़ कित ने ज म िदया ह? लेटो क पा क बात सुनकर बरबस ही शु ाचाय क याद आ जाती ह, िज ह ने सू का भा य करते ए सां यवािदय क िव कहा था िक संसार म सुंदर भवन आिद देखकर तो िकसी अ छ िश पी क क पना क जाती ह, िकतु शरीर और आ मा से यु संसार को देखकर उसे जड़ कित ारा िनिमत कहा जाता ह। लेटो का उ िवचार ब त कछ इसी कार का ह। वह िव को ई र क कला मक वृि का फल मानते थे। यह लेटो क कला संबंधी िवचार क पहली मा यता ह। रचना और अनुकरण क भेद से वह कला क भी सदा दो प मानते थे। लेटो क िवचार से रचना म स य व तु क उ पि होती ह और अनुकरण क ारा व तु क अनुकित उ प क जाती ह। ये दोन कार क कलाएँ कता क भेद से दो-दो कार क होती ह। लेटो का थम कलाकार

ई र ह, िजसने वग क रचना क , अमर आ मा क रचना क और देव-सृि क शु आत क , यह स य कला थी। इसी का अनुकरण कर देवता ने अस संसार क उ पि क , िजसक फल व प मानवीय सृि का िवकास आ। इस कार दैवीय कला क दो प उ प ए। इसी का अनुकरण कर मनु य ने भी दो कार क कलाकितयाँ उ प क । देवता क ारा िनिमत व तु का अनुकरण कर उ ह ने व तु का िनमाण िकया और िफर उन व तु क आकितयाँ भी बनाई। फ स म सुकरात कहते ह िक पृ वी पर आने से पूव आ मा अमर क बीच िनवास करती थी। अचानक कोई भूल हो जाने पर उसक पंख कट गए और वह पृ वी पर आ िगरी। इस कथन से यह संकत िमलता ह िक वग से उतरी ई आ मा म दैवीय सं कार रहते ह। उ ह सं कार क आधार पर उसे इस भूलोक म जहाँ कह विगक स दय क झलक िमलती ह, वह आक होती ह और मृित से उसका सा य उ प करने क कोिशश करती ह। इस कार मानवीय रचना होती ह। यह रचना व तुतः देवता का अनुकरण ह। q

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यूनानी िचंतन-धारा म अर तू का मह व

ीक दशन क िकसी भी इितहास को पढ़ने से यह पता चलता ह िक यूनानी िचंतन-धारा म सबसे अिधक

मह वपूण थान सुकरात, लेटो और अर तू क गु -िश य परपरा का ह। एक भारतीय लेखक ने तो यहाँ तक कहा ह िक इस कार क े िचंतक क तीन पीि़ढयाँ अ य सार संसार म कह नह िमलत । इसम कोई संदेह नह िक अगर यूनानी दशन म से सुकरात, लेटो और अर तू को िनकाल िदया जाए तो कछ शेष नह रह जाता। सुकरात से पूव का िचंतन यूनानी दशन क पूव पीिठका ह और अर तू क प ा का िचंतन िनवाण क ओर अ सर होते ए दीपक क िटमिटमाहट ह, जो लेटो क रचना म िनवाण से पूव अंितम बार भभककर बुझ जाती ह। इन तीन गु -िश य से संसार को जो काश िमला ह, वह मानव जाित क अमू य िनिध ह। इनम से सुकरात ने तो कछ िलखा ही नह , उसक तुलना कबीर दास से क जा सकती ह, िज ह ने कहा था िक ‘मिस कागद डबो नह कलम ग ो निह हाथ।’ पर इसम भी कोई संदेह नह िक एक समय सम एथस नगर सुकरात क संवाद से आंदोिलत हो उठा था। अपनी अंतरा मा क पुकार का अनुसरण करते ए उ ह ने अ य सब यवसाय को धता बताकर स य, सदाचार और याय इ यािद क खोज को ही अपने जीवन का ल य बनाया। इस खोज म उ ह ने िनममतापूवक बड़-बड़ क धारणा का खोखलापन उ ािटत िकया। अंत म उ ह अपने िवचार वातं य का मू य चुकाना पड़ा। एथस ने अपने आलोचक को मा नह िकया। लोक यायालय ने सुकरात क शरीर को िवष का याला िपलाकर िमटा िदया, पर उनक स या वेषण ने उ ह अमरता दान क । मनु मृित म ा ण क िलए जो आदेश िन निलिखत ोक म िमलता ह, वह सुकरात क जीवन म अ रशः च रताथ आ— स माना ा णो िन यमु जे षािदव। अमृत येय चाकां ेदपमान य सवदा॥ सुकरात का िश य लेटो यह सब देखकर िकतना िख आ होगा—यह क पना करने का िवषय ह, पर िजस लोक-िव ोभ ने स या वेषक सुकरात क ाण ले िलये, वह या लेटो और सुकरात क घिन संबंध से प रिचत नह था? इसीिलए कछ समय तक लेटो को अपने ाण क र ा क िलए एथस को यागना पड़ा। उ ह ने अपना जीवन अपने गु क उ े य क पूित क िलए उ सग कर िदया। लेटो ने कहा िक जब तक नगर क शासक िवचारवान दाशिनक नह ह गे, तब तक अ याय का अंत और शांित क ा नह हो सकती। इस िस ांत को काया वत करने क िलए लेटो ने या- या क नह सह। वह एथस क सं ांत प रवार से संब थे एवं उनक संबंिधय का नगर क राजनीित म बोलबाला था। अगर वह चाहते तो राजनीित म सि य भाग लेकर उ पद ा कर सकते थे, पर उ ह ने सब मह वाकां ाएँ यागकर िश क और लेखक क जीवन का वरण िकया। जब लेटो को ऐसा अवसर ा होता तीत आ िक वह ीक जग क राजनीित को अपने आदश क िदशा म मोड़ सकगे तो उ ह ने दो बार िसरा यूज क शासक को आदश शासक बनाने का यास भी िकया। इस उ ाकां ा का उ ह महगा मू य चुकाना पड़ा। दास क प म िबकना पड़ा। एक कार से ह र ं क कथा क पुनरावृि उनक जीवन म ई। जब उ ह ने देखा िक समय इतना िवपरीत ह िक उनक िवचार को वा तिवक राजनीित म काया वत करना संभव नह ह तो उ ह ने यूरोप क थम िव िव ालय ‘अकादमी’ क थापना क और अपने राजनीितक आदश को अनूठी ग रचना क प म अमरता दान क ।

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जब लेटो अपने िव ालय से दूसरी बार आदश राजा क िनमाण क अिभलाषा दय म लेकर िसरा यूज गए ए थे तब उनक अनुप थित म अर तू ने अकादमी म िव ाथ क प म वेश िलया और वह लगभग 20 वष अकादमी म ान संचय िकया। लेटो इस िश य क ितभा और प र म से अ यंत भािवत थे। अर तू िव ालय का म त क था और पु तक का ेमी। अपने गु क ित उसक दय म अगाध ा थी, पर जैसे-जैसे अर तू क ितभा प रप ता क ओर बढ़ती गई, वैसे-वैसे दोन क दाशिनक िवचार का भेद भी प होता गया। इसक बावजूद यह बात िनिववाद थी िक अर तू भी अपने गु और दादा गु क भांित िवल ण ितभा से संप य थे। यूनानी राजनीित और दशन क िकसी पु तक को देखा जाए तो वहाँ आरभ म भूिमका भाग म इन पु तक क िव ा लेखक यूनान क ितभा क तुलना अ य देश क ितभा से करते पाए जाएँग।े वे वहाँ यही कहते िमलगे िक यूनानी म त क अथवा बु क िवशेषता उसक यु यु ता अथवा िववेक परायणता ह अथा यूनानी बु लॉिजकल ह, रशनल ह। पर जब हम उसी यूनानी म त क क यवहार को देखते ह तो हम इन मनीिषय का दावा िनराधार तीत होता ह। सुकरात को एथस क यायालय ारा िवषपान ारा ाणदंड िदया जाना, लेटो को दास प म बेचा जाना और अर तू जैसे कांड एवं ितभाशाली िव ा को अकादमी का धान न बनाकर यूिनयस जैसे साधारण य को यह पद देना, िसकदर का िव िवजय क मह वाकां ा धारण करक अपने पर भी संयम न रख सकना एवं इसी कारण अकाल काल कविलत हो जाना इ यािद िकतने ही माण यूनान क इितहास से ऐसे तुत िकए जा सकते ह, जो यह प िस करते ह िक य य क बात दूसरी ह, सामूिहक प से यूनानी ितभा िववेकशील नह थी। तभी तो अर तू को िसकदर क मृ यु क बाद (एथसवासी कह दशन क ित दूसरी बार अपराध न कर बैठ इसिलए) एथस को याग देना पड़ा। हालाँिक अर तू को अपने िव ा मातृ मंिदर ‘अकादमी’ म उिचत स मान ा नह आ, उ ह ने अपने अ यवसाय से तथा अपने िश य िसकदर और िम क सहायता से एक दूसरा िव ालय थािपत िकया और वहाँ पर एक नवीन वै ािनक शोध ि या आरभ क । जीवन क अंितम बीस वष म उ ह ने अपने िविवध िवषय क ंथ क प म थम ानकोष का िनमाण िकया। इस सम उ ोग से उनक ारा वह ान योित जलाई गई, जो सैकड़ वष तक पा ा य देश म मानव क जीवन पथ को आलोिकत करती रही। पा ा य जग म आज िजस स यता का बोलबाला ह, उसक जड़ ाचीन यूनान क स यता म िनिहत ह। यह यूनानी स यता अर तू क ितभा म अिधकतम आ मचेतना को ा ई, इसीिलए आज क पा ा य जग को समझने क िलए अर तू को समझना आव यक ह। आज का युग िव ान का युग ह और अर तू ने संसार को सबसे पहली वै ािनक प रभाषा दी थी। यूरोप का कोई नवीन और ाचीन दशन- थान ऐसा नह , जो िबना अर तू क संदभ क भली-भाँित समझा जा सक। चाह डाइले टकल मैटी रयिल म ( ं ा मक भौितकवाद) हो, चाह िफलासफ ऑफ ऑगिन म (अवयवी दशन) हो, सबक क पना भवन क न व अर तू क िवचार म ह—ये सब उसी वाणी का उपयोग करते ह, जो अर तू ने उ ह िसखाई ह। अनेक शता दय तक ईसाई धम को सबसे समथ समथन अर तू क तक शा और परा िव ा से ही िमला। यिद ईसाई धम को यह बल न िमला होता तो इस धम पर या बीती होती—यह कहना किठन ह। ईसाइय क धम िव ान का नाम िथयोलॉजी सीधे अर तू क भाषा से ही उठा िलया गया ह। यही बात ए ेलीिसया (कलीसा, चच) क

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िवषय म भी कही जा सकती ह। इतना ही नह , ईसाई धम अपने अनेक िस ांत क िलए भी अर तू का ऋणी ह। ईसाइय क सभी िस दाशिनक िवचारक अर तू क िश य थे। दूसरी ओर यिद इसलाम क िवकास पर ि पात कर तो वहाँ पर भी ब त कछ इसी कार क थित ि गोचर होती ह। अरब और पेन म इसलाम क वण युग म मुसलमान िव ान ारा अर तू क दशन का यापक अ ययन िकया गया। अरबी भाषा म अर तू क ब त सी रचना का अनुवाद आ। आजकल ये अनुवाद अर तू पर शोध करनेवाल क िलए पाठ िनधारण क साधक बन रह ह। सूद को अ ा मानने का िस ांत इसलाम को अर तू से ही िमला तीत होता ह। राजनीित और समाजनीित क े म भी अर तू ने सम यूरोप का पथ दशन िकया। इितहास क अ ययन को वै ािनक प देने म उ ह ने पया योगदान िदया था। एथस क संिवधान क प म उ ह ने हमको िव क थम संिवधान क परखा दान क ह। का यकाल क े म उनका का यशा यूरोप क आलोचना सािह य म सबसे अिधक यापक भावशाली ंथ रहा ह। यह छोटा सा अधूरा ंथ सवथा िवल ण ह। अर तू क ितभा क आलोक क चमक और उसक िवचार का च यूह हजार वष तक प म क देश क मनीिषय क िचंतन को बंदी बनाकर अिभभूत िकए रहा। आज उसका आकषण और उपयोिगता िबलकल समा हो गई ह—ऐसा नह कहा जा सकता। दांते क अमर श द म—अर तू ानवान क गु ह। q

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तेज वी जीवन

अर तू का ज म ई.पू. 384 म

आ था और वह 62 वष तक जीिवत रह। भारतवष म उस समय नंद राजा का शासनकाल था। अर तू का ज म थान टजीरा ( तािगरस) नामक नगर था, जो खा किदक ाय ीप म थत था और आजकल ता ो कहलाता ह। यह नगर छोटा नगर ह। कछ लोग ने अर तू को इस नगर क उ री े का िनवासी होने क कारण पूणतया ीक च र से यु नह माना ह, पर उनक यह धारणा ठीक नह ह। टजीरा क िनवासी शत- ितशत स े ीक थे और यवन भाषा क एक उपभाषा बोलते थे। अर तू क िपता का नाम िनकोमारवस था और वह वै क पंचायत क सद य थे। िपता क वंशधर मेसेडोिनया से 8व अथवा 7व शता दी म टजीरा म आ बसे थे। अर तू क माता का नाम तस था और उनक पूवज यूवोइया देश क खा कस नगरी से आए थे। जीवन क अंत म अर तू ने इसी नगरी म अपना िनवास थान बना िलया था और यह उनका देहांत आ। अर तू क िपता िनकोमारवस मेसेडोिनया क राजा अिभ तास तीय क राजवै और िम थे। ऐसा अनुमान करना असंभव नह ह िक अर तू का लड़कपन मेसेडोिनया क राजधानी पै वास म यतीत आ होगा। अर तू ने जो अपने वै ािनक जीवन म भौितक िव ान और जीव िव ान क े म अिधक िच दिशत क , इसका मूल इसी वै कल म ज म होने और बा यकाल म एक िव यात वै िपता क भाव म रहने म िछपा आ ह। ऐसा कहा जाता ह िक इन वै प रवार क लड़क को उराही का काम बचपन से ही िसखाने क परपरा थी। संभव ह, अर तू ने इस िदशा म अपने िपता क यदा-कदा सहायता भी क हो। दुभा यवश अर तू क बचपन म ही उनक माता-िपता—दोन क मौत हो गई, पर ऐसा तीत होता ह िक उनक माता-िपता ने पया संपि छोड़ी थी। माता-िपता क गुजर जाने क बाद एक संबंधी ौसेनस उनका संर क बना। ौसेनस ने 18 वष क उ म अर तू को िश ा ा करने क िलए एथस भेज िदया, जो उस समय सार ीक जग म िश ा और िव ा का े क थान था। अर तू ई.पू. 357-56 म एथस आए। एथस म अर तू ने लेटो क ‘अकादमी’ नामक िश ा सं था म वेश िकया। लगभग 19 या 20 वष तक ( लेटो क मृ यु क समय तक) अर तू अकादमी क सद य रह। िजस समय वह अकादमी म िव ए लेटो िसरा यूज गए ए थे। चूँिक अकादमी उस समय क सबसे े िश ा सं था थी, इसिलए अर तू ने उसम दािखला िलया। जब गु और िश य का प रचय बढ़ा तो लेटो ने अर तू क गुण को पहचाना। वह इस होनहार िश य को सव म पढ़नेवाला और िव ालय का म त क कहा करते थे। अर तू ने इसी समय से अपने पु तकालय का सं ह आरभ कर िदया था। इतना ही नह , उ ह ने अपने गु क शैली का अनुसरण करते ए अनेक संवाद क रचना भी क । संभवतः इन संवाद का िवषय अपने गु क िवचार क या या करना था। दुभा यवश वे सब संवाद िजनक शैली अ यंत भावशाली थी, अब िवलु हो गए ह। माएगर इ यािद िव ान ने बड़ी खोज से उनक कछ संवाद और उनम विणत िस ांत को एकि त करने का यास िकया ह। आरिभक िव ाथ जीवन म अर तू पूणतया लेटो क भाव से अिभभूत थे, पर धीर-धीर जैस-े जैसे उनक अपने िवचार प रप ता को ा ए, वैसे-वैसे उनका अपने गु से मतभेद कट होने लगा। कहते तो यहाँ तक ह िक मतभेद क कारण दोन क संबंध भी पूवव अ छ नह रह। कछ भी हो, अर तू क सम रचना क येक पृ पर लेटो क भाव क छाप प देखी जा सकती ह। मतभेद हो जाने पर भी अर तू ने अपने गु क जीवनकाल म

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‘गु कल’ को नह छोड़ा और आजीवन वह लेटो क ित ावान ही बने रह। इस िव ाथ जीवन क अनेक िम उनक अिभ सखा बने रह। अकादमी कोई आजकल क ढग क िश ा क सं था नह थी। वह वतं कार से ान क खोज करनेवाले िज ासु का समाज था। िकसी िवशेष कार क िवचार प ित का कठोर िनयं ण उसम नह चलता था। ऐसे उ म वातावरण म िजस थम कोिट क कशा बु वाले अ ययनशील य ने अपने जीवन क े वष ‘नून-तेल-लकड़ी’ क िचंता से मु रहकर कवल ानाजन और स सं कार क उपल ध क िनिम यतीत िकए ह , उसक मानिसक कमाई का या कहना! यह आशा करना ही यथ था िक िव ालय का म त क अंत तक गु क िवचार का दपण बना रहगा। यिद ऐसा होता तो यह कहने क नौबत नह आती िक या तो अकादमी क िश ा कोरी तोता रटत ह या अर तू क ितभा ही मौिलकताशू य ह, पर दोन ही बात ऐसी नह थ । अर तू का अपना मौिलक िवकास अकादमी क समय से ही आरभ हो गया। अपने नए माग पर चल पड़ने पर भी अर तू कत न नह थे। अपने गु क िवषय म उ ह ने एक सुंदर किवता िलखी थी। उस किवता क रहते ए कोई य अर तू को गु ोही िस नह कर सकता। उस किवता क कछ पं य का िहदी अनुवाद इस कार ह— ‘वह नर था, दुजन को करना िजसका नामो ार नह , और शंसा का भी िजसक ह उनको अिधकार नह । वाचा और कमणा िजसने थम य यह िकया िवचार, जो ह साधु सुखी ह सोई, और सभी िन फल िनःसार। हाय! नह कोई हमम ह, उसक समता करने यो य।’ अकादमी को छोड़ने से पूव संभवतया अर तू ने ाकितक िव ान का अ यंत गंभीर अ ययन वयं आ म ेरणा से िकया था। शायद उ ह ने कछ िश ण काय भी आरभ कर िदया था, पर उनक भाषण ‘रतो रक’ क िवषय पर थे। इनम उ ह ने सुकरात क इस िश य क िवचार का खंडन िकया था, तथािप वह वयं सुकरात क प ित से ब त भािवत थे। ऐसा भी संभव ह िक अकादमी क िनवासकाल क समा क आसपास उनक उपल ध ंथ म से कछ क रचना आरभ हो चुक थी। इन सब त य क आधार पर यह कहा जा सकता ह िक लेटो क देहांत क समय अकादमी म अर तू से अिधक यो य य कोई नह था। ई.पू. 348-47 म लेटो क मृ यु क प ा लेटो क उ रािधकारी क पद पर यूिनयस िनयु आ, जो दशनशा को गिणत म पांत रत करने क िलए तुला रहता था। अर तू इस वृि क िवरोधी थे, िफर एथस का राजनीितक वातावरण भी परदेिसय क िलए खासकर मेसेडोिनया से संबंध रखनेवाले य य क िलए कछ िव ु ध हो उठा था। इसीिलए अर तू को अकादमी म बने रहना िचकर तीत नह आ। वह अपने एक सहपाठी खैनो ातोस क साथ एथस से अ सौस नामक नगर म चले गए और वहाँ पर अकादमी क एक शाखा थािपत क । यहाँ आने क िलए उ ह अतानयस क शासक हरिमयस ने आमंि त िकया था, जो वयं एक समय अकादमी म िश ाथ क प म रह चुका था। हरिमयस ज म से एक दास था, पर अपनी यो यता और कमठता क आधार पर उ ित करते-करते अतानयस का राजा बन गया था। अ सौस क िव मंडली उसी क संर ण म एकि त ई थी। अपने िम क भाव से हरिमयस दशन ेमी अथवा दाशिनक बन गया।

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इस अनुकल वातावरण म अर तू ने तीन वष यतीत िकए। इ ह िदन हरिमयस क भा जी और गोद ली ई पु ी पीिथयस क साथ अर तू का िववाह भी हो गया। इस संबंध से अर तू क पु ी का ज म आ, िजसका नाम माता क नाम पर पीिथयस ही रखा गया। अर तू क थम प नी का देहांत थोड़ समय प ा हो गया। तदुपरांत उ ह ने टजीरा क एक ी हरपीिलस को िबना िविधव िववाह क अपनी जीवन सहचरी बना िलया। हरपीिलस से एक पु का ज म आ, िजसका नाम िनकोमारवस था। अ सौस से अर तू लै बोस ीप क नगर िमतीलेन चले गए। संभव ह िक उ ह ने अकादमी क सहपाठी िथयो ा तस ने अर तू क िलए िमतीलेन म अ छ िनवास थान क यव था कर दी हो। एक दूसरा कारण यह हो सकता ह िक इसी समय क लगभग अर तू क िच जलचर जीव क अ ययन क ओर बढ़ी, इसीिलए उ ह ने चार ओर समु से िघर ए ीप को अपना िनवास थान बनाना अिधक अ छा समझा हो। अर तू क ािणिव ा संबंधी ंथ म इस समय क िनरी ण-परी ण का प रणाम भली कार ि गोचर होता ह। इसी समय क आसपास अर तू ने त व दशन और भौितक िव ान क ंथ क परखा तुत क होगी, इस कार का िन कष आधुिनक शोध क आधार पर सामने आया ह। ई.पू. 343 म अर तू का जीवन एक नवीन िदशा म मुड़ा। मेसेडोिनया क राजा िफिलप क िनमं ण पर वह राजकमार िसकदर क गु पद पर िनयु ए। राजभवन पै का नामक थान पर था। इस समय राजकमार क अव था कवल 13 वष थी। इस पद क उपल ध से अर तू क स मान और भाव म वृ अव य ई होगी। िफिलप तो संभवतः अर तू को बा यकाल से ही राजवै िनकोरमारवस क पु प म जानता था और आगे चलकर उनक िव तृत और िवल ण ानाजन क कथा भी सुनी होगी। इसीिलए अपने पु क िलए उसने अर तू को े अ यापक समझकर अपने यहाँ बुलाया होगा। अर तू ने भी अपने भाव का उपयोग अपने ज म थान टजीरा, अपने गु कल एथस और अपने िम िथयो ा तस क ज म थान एटसस क ओर से िफिलप क रोग का िनवारण करने क िलए िकया। कहते ह उनका िम िथयो ा तस भी उनक साथ पै ा गया था। इस बात का कोई प वणन नह िमलता िक अर तू का भाव िसकदर क जीवन पर िकतना और कसा पड़ा। संभवतया उ ह ने अपने िश य को होमर क का य और नाटककार क रचनाएँ मु य प से पढ़ाई ह गी। उस समय क िश ा म इ ह ंथ को सव प र थान ा था। परपरागत िकवदंती ह िक अर तू ने अपने िश य क िलए होमर क इिलयड नामक महाका य का संपादन िकया था और ‘एकराजतं ’ एवं ‘उपिनवेश’ नामक दो ंथ क रचना क थी। संभव ह िक पै ा क दरबार और िमथैजा क कोट म िनवास करते ए अर तू क मन म धीर-धीर राजनीित क अ ययन का बीज आरोिपत आ हो तथा उ ह ने सभी उपल ध रा य यव था क सं ह और अ ययन क योजना बनाई हो, पर यह सब क पना क बात ह। वा तिवकता यह ह िक अर तू और िसकदर क इस समय क संबंध क िवषय म ामािणक जानकारी उपल ध नह ह। संभव ह िक दोन क म य म घिन ता का ादुभाव नह आ। ई.पू. 340 म िसकदर अपने िपता क थान पर शासक िनयु आ और उसक िश ा क समा हो गई। अर तू का यहाँ रहने से जो सबसे ठोस काम आ, वह था—अंितपातेर नामक सरदार क िम ता। जब िसकदर एिशया क िवजय क अिभयान पर गया तो वह यूनान म अंितपातेर को अपना थानाप शासक िनयु कर गया और उस समय वह सम यूनान म सबसे मह वपूण य बन गया।

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ई.पू. 340 म अर तू अपने ज म थान म आकर बस गए। कछ समय प ा ई.पू. 335-34 म िफिलप क मृ यु क प ा अर तू पुनः एथस लौट आए। इस समय से उनक जीवन का सबसे मह वपूण भाग आरभ आ। एक ओर उनक िश य ने अपने िपता क िसंहासन को ा िकया, दूसरी ओर िसकदर क गु ने ान िवजय आरभ क। शी ही िसकदर िव िवजय क ओर बढ़ा और उसका गु अर तू ान िवजय क ओर। एक बार पुनः अकादमी क मु यािध ाता का पद खाली आ, पर अकादमी ने अर तू क ओर ि पात न करक उनक साथी खैनो ातेस को मु यािध ाता चुना। हालाँिक अर तू ने इतने पर भी अकादमी से अपना संबंध नह तोड़ा, िफर भी उ ह ने ई.पू. 335 म अपना वतं िव ालय थािपत कर िलया। एथस नगर क उ र-पूव क ओर क उपनगर अपोलो म लीकयस का मंिदर था। यह अर तू ने अपना िव ालय आरभ िकया। मंिदर क नाम पर इसका नाम भी लीकयस पड़ा। सं कत म इसको वृक र िव ालय कह सकते ह, य िक लीकयस सं कत क वृक श द का सजातीय ह। सुकरात िकसी समय इस थान पर ायः घूमने-िफरने आया करते थे। परदेिशय को एथस म अचल संपि खरीदने का अिधकार नह था, इसीिलए अर तू ने यहाँ कछ मकान िकराए पर लेकर अपने िव ालय क थापना क । अकादमी क कछ अ यंत िस य भी उनसे आ िमले। िश ण प ित यह थी िक ातःकाल अर तू अपने िश य क साथ घूमते-टहलते ए दशनशा क जिटल सम या का िववेचन करते थे। इस कारण उनक दशन- थान का नाम पैरीपैटिटक (पयटक) पड़ गया। सायंकाल को वह अपे ाकत कम जिटल िवषय पर ब सं यक ोता क सम या यान िदया करते थे। इस कार अर तू क कछ वचन अंतरग और जिटल होते थे और कछ बिहरग तथा सुबोध होते थे। इसका आशय यह नह ह िक उनक अंतरग वचन म कोई गूढ़ रह य िछपा आ था। वा तिवक बात यह ह िक कछ िवषय जैसे िक तकशा , भौितक और परािव ा ऐसे ह, जो अिधक गंभीर अ ययन क अपे ा करते ह और मु ी भर िव ािथय को आकिषत करते ह। सािह य और राजनीित इ यािद िवषय ऐसे ह, जो अिधक जनि य ह। जनता अिधक सं या म इनक ओर आक होती ह और इनको समझने म अिधक माथाप ी भी नह करनी पड़ती। इस िव ालय म अर तू ने अपने जीवन क लगभग बारह वष यतीत कर अनेक मह वपूण काय पूण िकए। सैकड़ ह तिलिखत पु तक एकि त करक थम पु तकालय थािपत िकया, जो आगे चलकर अले जड रया और परयामॉन क िवशाल पु तकालय क िलए आदश बना। इसी कार अनेक मानिच और अ ुत व तु का थम सं हालय अथवा अजायबघर भी थािपत िकया। कहते ह िक अर तू क िश य िसकदर ने उ ह भरपूर आिथक सहायता दान क एवं िशका रय , बहिलय और मछआर को यह िनदश िदया िक यिद उनको अपने े म कोई अ ुत अथवा वै ािनक मह व का जीव-जंतु अथवा व तु ा हो तो वे शी ाितशी उसक सूचना अर तू को द। अर तू ने िव ालय म उस समय क सभी िवधा और कला क अ ययन-अ यापन का बंध िकया। िव ालय क संचालन क िनयम भी अर तू ने बनाए थे। इन िनयम क अनुसार, िव ालय क येक सद य को बारी-बारी से 10 िदन सं था का शासन काय करना पड़ता था। संभव ह िक इसका आशय यह भी रहा हो िक दस िदन क इस शासक को दस िदन तक िकसी िस ांत का समथन और खंडन भी करना होता था। सब सद य एक साथ भोजन करते थे और महीने म एक बार संभोज (िसंपोिजयम) होता था िजसक िनयम

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अर तू ने िन त िकए थे। अनेक मामल म अर तू का िव ालय अकादमी क संतान था, पर कछ अंतर भी दोन म अव य था। अकादमी का झुकाव गिणत क ओर अिधक था, पर लीकयस ने जीव िव ान और इितहास क िवकास म अिधक योगदान िदया। िजन बारह या तेरह वष म अर तू लोकतं क अिध ाता रह, उनका सव प र काय था, उन या यान क रचना िजनक सू प िट पिणय को आजकल अर तू क ंथ कहा जाता ह। इस िवशाल ानय म उनक सहयोिगय और िश य ने भी अर तू क सहायता क थी, परतु इस सहायता क मा ा ब त अिधक नह थी। इस सम रचना काय क िलए िजस मानिसक श और संल नता क अिभ य अर तू ने क , वह असाधारण िक म क थी। अर तू ने िविभ िव ान का जो िवभाजन तुत िकया, यूरोप आज तक उसको मानता चला आ रहा ह। अनेक िव ान क े का उ ह ने पूवापे ा ब त अिधक िवकास और िव तार िकया एवं तकशा क तो वह आ वतक और शता दय तक एकछ िनयंता बने रह। यावहा रक े म भी अर तू क िव ालय ने राजनीित और सदाचारशा क िववेचना क कारण ता कािलक राजनीित और समाज पर अकादमी क अपे ा अिधक भाव डाला। अकादमी क मु यािध ाता का पद उ ह भले ही नह िमला, पर जो भाव और ित ा सुकरात और लेटो को अपने समय म ा थी, वह इस समय अर तू को ा थी और उनक ित ं ी अकादमी क मु यािध ाता क ित ा उनक अपे ा ब त कम थी। पर िसकदर क साथ अर तू क संबंध अंत तक अ छ नह रह सक। जब वह एिशया क िवजय क िलए िनकला था, तब उसक साथ अर तू का एक संबंधी, िजसका नाम क क थेनस था, इितहास लेखक क प म गया था। उस युवा ने स ा क यवहार क आलोचना करक उसको कर िदया। िसकदर ने उस पर यह दोषारोपण िकया िक उसने स ा क ह या क ष यं को भड़काया था। इस आरोप क प रणाम व प क क थेनस को फाँसी दे दी गई। इसक प ा उसने अर तू को भी अपने संबंधी क दु कम क िलए उ रदायी ठहराया। इसी समय वह भारतीय अिभयान म ऐसा उलझा िक उसको अर तू क िलए दंड िनधारण करने का अवकाश ही नह िमला। तो भी या आ, अर तू क सौभा य का न तो मानो अ त हो चुका था। ई.पू. 323 म िसकदर क मृ यु हो गई। य ही यह समाचार एथस प चा वहाँ मेसेडोिनया क शासन क िव िव ोह उठ खड़ा आ। हालाँिक अर तू को िफिलप और िफिलप क पु स ा िसकदर क सा ा यवादी नीित क साथ कोई सहानुभूित नह थी। एथस म यह तो सभी को मालूम था िक अर तू का मेसेडोिनया क राजकल से पुराना संबंध था और िसकदर का थानाप शासक अंितयातेर उनका घिन िम था। अर तू को सीधे दंड नह िदया जा सकता था, इसीिलए उनक िव यह आरोप लगाया गया िक उ ह ने देवापमान िकया था। इस आरोप का आधार यह था िक अर तू ने अतानयस क राजा हरिमयस क ई.पू. 342-341 म ह या क उपरांत उसक शंसा म एक किवता िलखी थी और इस किवता म अर तू ने अपने िम पर ायः देव व का मंडन िकया था। यह लगभग बीस साल पहले क बात थी, पर तो भी इसको पया दोष समझा गया। अर तू ने अपनी दूर ि से वातावरण को भली-भाँित समझ िलया। उ ह ने समय रहते अपने कछ िश य को साथ लेकर एथस का प र याग कर िदया और चुवोइया देश क खा कस नामक नगरी म शरण ली। अर तू का ज म थान टजीरा इसी नगरी का उपिनवेश था। यहाँ प चने क अगले वष ई.पू. 322 म 62 वष क

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अव था म अर तू ने शरीर याग िकया। एथस को यागते समय उ ह ने कहा था िक म एथसवािसय को दशनशा क िव दूसरी बार अपराध न करने देने क िलए ढ़संक प । यूनानी दाशिनक क जीवन क कहािनयाँ िलखनेवाले िदयोगेनेस लाएितयस ने अर तू क जीवनी म उनक वसीयतनामे को उ ृत िकया ह। इसक अनुसार, अर तू ने अपनी तीय सहचरी हरपीिलस क भलमनसाहत का उ ेख कर उसक शेष जीवन क िलए आिथक बंध िकया था। अर तू अपनी थम प नी पीिथयस और उसक णय को भी नह भुला सक थे, इसीिलए उ ह ने िलखा िक उसक अवशेष अर तू क ही क म रखे जाएँ। उ ह ने अपने दास क िलए भी कछ धन िदया था और ऐसा िनणय िकया था िक उनको बेचा न जाए। अनेक दास को उ ह ने वतं कर िदया था। इससे यह प ह िक अर तू कोर बु वादी ही नह थे, ब क उनका वभाव अ यंत ध और कत तापूण था। अर तू क आकित और वेशभूषा क िवषय म िन यपूवक कछ भी ात नह , हालाँिक इस िदशा म अटकलबािजयाँ ब त कछ क जाती ह। कहते ह िक वह ख वाट (गंजे) हो गए थे। उनक वाणी म हलक तुतलाहट थी और उनको अ छ व धारण करने का शौक था। यह भी कहा जाता ह िक उनक आँख, छोटी-छोटी थ और पैर पतले थे। रहन-सहन म वह अित संयमी नह थे। बातचीत करने म उनका वभाव मखौल उड़ाने का था। उनक जीवन क गितिविध और उनक वसीयतनामे से पता चलता ह िक अर तू क आिथक थित आजीवन अ छी रही। जब तक उनक अपने िश य से अनबन नह ई थी, तब तक िसकदर ने उनक पया सहायता क थी। जब वह अपने गु से आ, उसक कछ समय प ा उसक मृ यु हो गई। यूनान का थानाप शासक अंितयातेर अर तू का िम था। राजा क ड़ा सहचर, स ा क गु और शासक क िम अर तू क आिथक थित अ छी होनी ही चािहए थी।

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अर तू क रचनाएँ

ाचीन काल म अर तू क

रचना क संबंध म बड़ी अनोखी कहािनयाँ चिलत थ । उनक रचना क तीन पुरानी सूिचयाँ िमलती ह, पर इन सूिचय पर िवचार करने से पूव अर तू क ंथ क र ा क िविच कहानी जान लेना आव यक ह। उ ह ने अपनी सम रचनाएँ अपने िव ालय म अपने उ रािधकारी और िम िथयो ा तस को स प दी थ । िथयो ा तस ने वे नेलेयस को दे द । नेलेयस उ ह ोआद म अपने घर ले गया। यहाँ वे ब त समय तक उसक वंशधर क पास पड़ी रह । इन लोग का िव ा और िव ान तथा दशन से कोई संबंध नह था, इसीिलए यह सब ान एक कार से बाहरी दुिनया क िलए अ ात ही पड़ा रहा। इन पु तक क वामी यह अव य जानते थे िक ंथ ब मू य संपि ह। उस समय परगामय क राजा पु तक एकि त करने म जुट ए थे। राजा क हाथ लगने से बचाने क िलए नेलेयस क वंशधर ने इन पु तक को गभगृह म बंद कर िदया। वहाँ सीलन और क ट ने इन ंथ को पया हािन प चाई होगी। अंत म इस सं ह को एथस क एक पु तक ेमी ने मू य देकर ले िलया। इस स न का नाम अपैिलकन था। अपैिलकन का पु तक भंडार एक यु म रोमन अिधनायक सु का को लूट क भाग क प म ा आ। यह घटना ई.पू. 86 क ह। वह इस सं ह को रोम ले गया। आिखरकार पैरपैतेितक िव ालय क 11व धान आं ोिनकस रो स ने इन ंथ का संपादन करक िससरो क जीवनकाल म कािशत कराया। लेखक क मृ यु क लगभग 250 वष प ा उसक रचनाएँ काश म आई। यह कथा ापो नामक िव ा क कथन पर आधा रत ह। कछ आलोचक को इसक स यता पर संदेह ह, पर अिधकांश िव ा इसको ठीक समझते ह। अर तू क रचना क पुरानी सूिचय म उनक ंथ क सं या 400 बताई गई ह। एक सूची दाशिनक क जीवनच रत िलखनेवाले िदयोगेनेस लाएितएस ने अर तू क जीवनच रत क साथ दी ह। एक दूसरी सूची आं ोिनकस ने तुत क ह। इन दोन सूिचय म पूण सा य नह ह। एक तीसरी सूची हिम पस नामक िव ान ने लगभग ई.पू. 200 म बनाई थी एवं ऐसा अनुमािनत िकया जाता ह िक िदयोगेनेस लाएितएस क सूची हिम पस क सूची क आधार पर तुत क गई थी। इन सूिचय क पर पर तुलना करने से यह िन त प से ात हो जाता ह िक अर तू क ब त सी रचनाएँ लु भी हो गई ह। लेटो और अर तू दोन ही लेखक भी थे और मौिखक भाषण ारा िश ा देनेवाले गु भी। अर तू क आरिभक रचनाएँ तो लेटो क संवाद क समान वा ालाप क शैली म िलखी गई थ । उनम अर तू ने अपने गु का अनुकरण करते ए भाषा और शैली को सािह यक ि से अिधक भावो पादक बनाने का य न िकया था। चाह उनम उनक गु क संवाद क समान अ यिधक नाटक य त व न रहा हो, िफर भी उनम पया मम पिशता रही होगी, तभी िससरो और ंतीिलयन सरीखे िव ान ने उनक मु कठ से शंसा क ह। संभवतया ये रचनाएँ उस समय क थ , जब वह लेटो क अकादमी क सद य थे। उनक कछ संवाद क नाम तक वही ह, जो लेटो क संवाद क थे। जैसे पॉिलिट स, सौिफ टस, मैनेसैनस, सीपीिसयॉन, ी स इ यािद। सयात, ो ै ीकस नामक संवाद, जो याएगर क ि म अ यंत मह वपूण ह, लगभग इसी समय िलखा गया था। यह क स ीप क राजा थैिमसो क िलए िलखा गया था। यह ाचीन काल म अ यंत लोकि य पु तक समझी जाती थी और इयांिवलखस और िससरो ने इसको आधार और आदश मानकर अपनी रचनाएँ तुत क थ । इसक कछ समय प ा यात, दशनशा , अले जडर, याय, किव, धन-संपि सुकल म ज म, ाथना,

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िश ा, ने र थस और परोितकस इ यािद िलखे गए ह गे। इनम से कछ क िवषय म उनक नाम क अित र और कछ भी िविदत नह ह। इन ंथ क अित र अर तू ने कछ का य रचना भी क थी। उनक किवता क तीन उदाहरण िमलते ह—इनम कछ का य रचनाएँ स े किव दय का प रचय देती ह। यह भी िन त प से ात ह िक अर तू क ारा वै ािनक शोध क िलए और ंथ रचना क िलए ब त सी साम ी और िट पिणयाँ एकि त क गई थ । यह सब साम ी भी काल क गाल म समा गई। पुरानी सूिचय म अर तू क उपल ध रचना क भाग को भी वतं पु तक क प म कट िकया गया ह। िव ान ने प र मपूवक अ य लेखक क रचना म िमलनेवाले उ रण को एकि त करक उनक लु ंथ क परखा तुत करने का यास िकया ह। इन यास से अर तू क उपल ध और लु ंथ क संबंध पर भी काश पड़ा ह। िफर भी अर तू क त व ान क िव सनीय परखा तो उनक वतमान युग म िमलनेवाले ंथ क आधार पर ही तुत क जा सकती ह। तुत ंथ का िववरण िवषयानुसार सं ेप म िन निलिखत ह— 1. तकशा संबंधी ंथ। इस शा का नाम औगानन ह। इसक भाग ह—कटगोरीज, इटर ीटिशयौन, ायर अनालीिट स, पो टी रयर अनालीिट स, टौिप स, सौिफ टक ऐलखी। 2. भौितक शा संबंधी ंथ—िफिज स, डी कएलो, डी गैनेरिशयोन एंड करपिशयोन मेिट रयोलोिगका। 3. एक पु तक का नाम डी मु डो ह। यह सामा य दशन शा क पु तक ह। अिधकांश िव ान ने इसको अर तू क रचना नह माना ह। 4. मनोिव ान क िवषय म अर तू क कई छोट-छोट ामािणक ंथ िमलते ह। इनक नाम इस कार ह—डी अिनमा, पावा नातुरािलया िजसक अंतगत डी सै सू ऐट ससी िफिल स, डी मैमो रया एंड िटमीनी सैिनकाया, डी सौसे एंड िविगिलया, डी इनसौ नीन, डी िडवीनीिशयोन, डी ल गीटी यून ऐट ीपीटट िवतार, डी िवटा एट मौट, र परिशयोन, डी िवटा एट मौट क थम दो अ याय का नाम डी जुपटट ऐट सैने टट भी ह। डी परट इस गु छक म अंितम पु तक ह, परतु इसको अर तू क रचना नह माना जाता, य िक इसम मानवीय शरीर क कछ ऐसे त व का उ ेख ह, जो अर तू क समय तक ात नह थे। 5. ाकितक िव ान (अथा जीव-जग संबंधी िव ान) क े म अर तू क रचनाएँ ह—िह टो रया अनीमािलयुम, डी पाट वुस अनीमािलयुम, डी मोट अनीमािलयुम, डी इनफ सु अनीमािलयुम, डी गेनेरिशयोने अनीमािलयुम। अर तू क ंथ-सं ह म इसी िवषय से संबंध रखने वाली िन निलिखत पु तक भी पाई जाती ह, पर उनक ामािणकता संिद ध ह—डी कॉलॉरीयुस, फ िजयो नोमोिनका, डी लांिटस, डी िमरािवलीवुस आउ क टािटयौनीयुस, मेकािनका। डी लांिटस नामक पु तक अर तू ने िलखी अव य थी, पर वह न हो गई। इस समय जो पु तक इस नाम से उपल ध होती ह, वह यात दाम कस क िनकोलाकस क रचना क अरबी अनुवाद क लैिटन अनुवाद का पांतर ह। ॉबल स (सम याएँ) नाम क पु तक िन य ही अर तू क रचना नह ह। शता दय से ॉबल स क जो सं ह एकि त होते आ रह थे, उनम से ही इसका संकलन िकया गया था। संभवतया यह संकलन पाँचव या छठी शता दी म तुत िकया गया होगा। इनम सबसे अिधक जनि य ह संगीत क ॉबल स क दो सं ह, जो ई.पू. 300 अथवा ई.पू. 100 क रचना माने जाते ह। डी लीनेइस इ सैकािवलीवुस, डी िस नीस और इसी का एक भाग पटो म िसटस डी मैिल सो, खेनोफाने, गौिगया

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आिद रचनाएँ अर तू क पा ा कालीन िश य क रचनाएँ हो सकती ह, पर वयं अर तू क रचनाएँ नह ह। ये कछ अ य य य क ारा िकए गए पांतर भी हो सकते ह। 6. मेटािफिजका अर तू क अ यंत यात रचना ह, परतु इसक िविभ पु तक का इितहास बड़ा उलझा आ ह। 7. सदाचार क संबंध म अर तू क रचनाएँ िन निलिखत ह—िनकोमािखयन ऐिथ स, यूदेिमयन, ऐिथ स, मा ना मौरािलया, डी िवटटीवुसएट िवटाइस। कछ आलोचक यूदेिमयन ऐिथ स को अर तू क रचना नह मानते थे, पर अब इस िवषय म कछ मत प रवतन हो गया ह। दोन ऐिथ स नाम वाले ंथ का पार प रक संबंध अभी तक एक सम या बना आ ह। शेष दोन पु तक संभवतया अर तू क रचनाएँ नह , उनक सं दाय क पा ा कालीन रचनाएँ हो सकती ह। 8. राजनीित और अथशा क े म अर तू क िन निलिखत ंथ उपल ध ह—पोिलिट स (पौिलिटकोन), दी अथीिनयन कॉ टी यूशन, औइकोनोिमका। इनम से तीसरी पु तक म तीन अ याय ह, पर तीसरा अ याय मूल ीक भाषा म नह िमलता, कवल लैिटन अनुवाद क प म िमलता ह। वा तव म यह पु तक अर तू क रचना ह ही नह । कहते ह िक अर तू ने राजनीित क िव तृत अ ययन क िलए 158 नगर-रा क संिवधान को एकि त िकया था। वे सब िवकत हो गए, पर स 1891 म इन संिवधान म से एथस का संिवधान उपल ध हो गया। यह छोटी पु तक भी अनेक ि य से अ यंत मह वपूण ह। 9. भाषण कला, लेखन कला और का य कला पर अर तू क तीन पु तक ह—रटोिट स, टटो रका आड अले ज ाग और पैरी पोइितकस। इनम से दूसरी पु तक क ामािणकता संिद ध ह। पैरी पोइितकस अपूण प म उपल ध छोटी सी पु तक ह, पर इस पु तक ने यूरोप क सािह य पर हजार वष तक गंभीर भाव डाला ह। अर तू ने उपयु ंथ क अित र और भी ब त कछ िलखा था। उ ह ने नाटक क दशन का पूरा इितहास तुत िकया था, ओलंिपक खेल क िवजेता क सूची तुत क थी और 158 नगर-रा क संिवधान एकि त िकए थे, पर वतमान म उनक रचना क सं ह म यह सबकछ नह िमलता। उनक ंथ क जो पुरानी सूिचयाँ िमलती ह, उनम से ब त सी रचनाएँ भी अब नह िमलत , पर उन सूिचय क िवषय म भी यह िव ासपूवक नह कहा जा सकता िक वे उनक ही रचना क सूिचयाँ ह। कई एक थल पर तो ऐसा ह िक तुत रचना क एक िवभाग अथवा अ याय को एक अलग पु तक का नाम देकर सूची म स मिलत कर िलया गया ह। िफर जब इस समय उपल ध एवं अर तू क नाम से संब अनेक ंथ उनक नह ह तो जो उपल ध नह ह, उनक िवषय म तो यह जानने का कोई साधन ही नह ह िक वे उनक रचना थ अथवा नह । ाचीन काल क िव ास क यो य िव ान क सा य ारा यह कहा जा सकता ह िक अर तू का पया सािह य अव य लु हो चुका ह। ऑ सफोड िव िव ालय क मु णालय ने अर तू क उपल ध ंथ को मूल ीक भाषा और अं ेजी अनुवाद म कािशत िकया ह। मूल और अनुवाद दोन ही बारह-बारह िज द म ह और इन दोन ही सं करण क पृ सं या लगभग 3,500 होगी। ाचीन काल क दंत कथा म तो यहाँ तक कहा जाता था िक अर तू क रचनाएँ ऊट पर लदकर जाया करती थ । इसम कोई संदेह नह िक अर तू क ंथ पर िविवध भाषा म िवपुल सािह य का सृजन आ ह और आज भी इस सािह य का सृजन जारी ह।

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अर तू क शैली भी अपने ढग क अनोखी ही ह। वैसे कहने को वह किव भी थे और ाचीन काल म उनक कछ ऐसी रचनाएँ भी िमलती थ , जो अपनी शैली क सौ व क कारण अनुकरणीय मानी जाती थ , पर इस समय उनक जो ग रचनाएँ उपल ध ह, उनक शैली सािह यक नह , वै ािनक ढग क ह। उनक ंथ म ऐसे ब त कम थल िमलगे, िजनको मनोरम कहा जा सक। उनम मनोहारी ढग से िलखने और बोलने क मता थी—यह बात उनक सािह य क कछ थल और ाचीन काल क िव ान क सा य क आधार पर िनिववाद प से िस होती ह। उनक िव मान ंथ म ऐसे संकत क भरमार ह। उनक सभी रचना से प रिचत ए िबना उनक िकसी भी रचना का मम भली-भाँित समझ म नह आ सकता। डी.एस. माग िलयूथ ने अर तू क का यशा क सं करण क भूिमका म अर तू क शैली क तुलना पािणिन क सू ा मक शैली से क ह और दोन क समानता िव तारपूवक समझाई ह। इस शैली क िविच ता का अनुमान कछ इस बात से लगाया जा सकता ह िक यूमैन का पॉिलिट स का सं करण मूल ंथ क 224 पृ को 2,500 पृ क चार िज द म समझाने का यास करता ह। इस कार क शैली और इस कार क िवराट या याएँ सं कत भाषा क ंथ म ही िमल सकती ह। एक समय था, जब यह समझा जाता था िक अर तू क रचनाएँ िवकास म क प रिध से पर क व तु ह। लोग समझते थे िक अर तू ने जो िलखा ह वह प रप बु क उपज ह, परतु वह ा का युग अब नह रहा। आलोचक ने िवशेषकर जमन िव ा याएगर ने यह प िस करक िदखला िदया िक अर तू भी अ य मानव क समान ही थे। उनक बु का िवकास भी अ य लोग क समान आ था एवं उनक रचना म भी िविभ काल क िवकास म ारा ा िविभ तर पाए जाते ह। इस िवकास क िदशा या थी? इस न का उ र िव ान ने यह िदया ह िक अर तू ने िवचारक और लेखक का अपना जीवन अपने गु लेटो क ितभा क जादू क भाव क छाया म आरभ िकया। धीर-धीर इस जादू का भाव फ का पड़ता गया और अंत म जाकर उ ह ने अपना िपंड उस भाव से पूणतया छड़ा िलया और वह एक वतं िवचारक बन गए। एक कार से जो बात सुकरात और लेटो क संबंध म ठीक ह, वही लेटो और अर तू क संबंध म भी स य ह। िकसी महा य का भाव जहाँ एक महा ेरणा दान करता ह, वह िचरकाल तक हमारी ा को भी बाँधे रखना चाहता ह। इसीिलए अर तू को अपने गु क भाव से मु होने म पया समय लगा, िफर भी यह नह कहा जा सकता िक वह पूणतया उस भाव से मु हो ही गए। िवल यूरट ने ‘ ीस का जीवन’ नामक अपनी पु तक म िलखा ह—‘‘अर तू ने येक मोड़ पर लेटो का खंडन िकया ह, य िक वह अपनी रचना क येक पृ पर उनक ऋणी ह।’’ इसी कार टलर ने ‘अर तू’ नामक अपनी रचना म च रतनायक क ‘परािव ा’ (मेटािफिजका) नामक कित क आलोचना क अंत म यह बतलाया ह िक य िप इस ंथ क आरभ म अर तू ने लेटो का खंडन करने क ित ा क थी, पर अंत म ई र क व प का िनधारण करते ए उ ह अपने गु क ही वाणी बोलनी पड़ी ह। िफर भी दोन क ि कोण म पया मतभेद ह और यहाँ तक कहा जाता ह िक दाशिनक िचंतन का सम े लेटो और अर तू क िवचार-प ितय म बँटा आ ह। जो कोई भी दाशिनक िचंतन क वृि रखता ह, वह या तो लेटो क प ित और ि को अपनाता ह अथवा अर तू क ि और प ित को।

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अर तू क दाशिनक िवचार

िजस

कार भाषा का मुख याकरण ह, इसी कार िवचार का मुख तकशा ह। सुकरात और लेटो ने िजस िवचार प ित का सू पात िकया था, अर तू ने उसको प र कत और यव थत करक एक नवीन शा का प दे िदया। उ ह ने इसे ‘अनालीितका’ नाम िदया था, पर पा ा कालीन लेखक ने उनक तकशा संबंधी रचना को ‘औगानन’ नाम िदया। यूरोप म यह ंथ दो हजार वष तक तकशा क एकमा ामािणक पा य पु तक बना रहा। अर तू क मत म ान का साधन ानि याँ ह। इनसे जो य ान ा होता ह, उसम से एक ही कार क य से हमको जाित का ान होता ह, जो य या व तु नह होती। सम अनुभव को दस कार म िवभ िकया गया ह, जो कटगरीज कहलाते ह— 1. अिसया अथवा सी ए त—पदाथ अथवा जो ह। 2. पौसॉन—िकतना, मा ा। 3. पौइयॉन—कसा, िकस गुणवाला। 4. पौसित—संबंध। 5. पू—कहाँ, थान। 6. पौते—कब, समय। 7. कइ थाइ— थित। 8. एखैइन—अिधकार, रखना। 9. पौइऐइन—कतृ व। 10. ौइ टवैइन—कम व। य से ा ान क आधार पर वा य क रचना होती ह। तक म यु वा य ौतािसस कहलाते ह, जो चार कार क होते ह— 1. सामा य अथवा सािवक। 2. िवशेष। 3. िविध प। 4. िनषेध प। इन वा य म कछ प रभाषा वा य होते ह। अर तू ने प रभाषा क प रभाषा को अ यंत प र कत प दान िकया था। यिद िकसी व तु क जाित (गैनॉस) क कथन क साथ उस व तु क उपजाित क भेदक गुण का कथन कर िदया जाए तो उस व तु क प रभाषा उपल ध हो जाती ह। अनुमान वा य को िस कौिग मस कहते ह। इसक तीन अवयव होते ह, भारतीय अनुमान वा य क समान पाँच अवयव नह होते। इसका उदाहरण ह—‘‘सब मनु य म य ह, सुकरात मनु य ह, अतएव सुकरात म य ह।’’ इस कार का तक िडड टव तक कहलाता ह, पर अर तू ने इड टव तक का िववरण भी उप थत िकया और यवहार म भी उसका उपयोग िकया ह। तकशा म उ ह ने ह वाभास का भी वणन िकया ह और उनसे बचने क उपाय भी िलखे ह और यह सब होते

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ए वयं अनेक ह वाभास क सृि भी क ह। तथािप यह वीकार करना होगा िक वह िवचार क िनयम और अनुमान क िविधय एवं अ य तािकक प ितय क आिव कारक होने क नाते वै ािनक प ित क ज मदाता थे एवं उ ह ने सव थम वै ािनक िचंतन एवं आिव कार क िनिम िव ान क सहयोग क णाली का सू पात िकया। अर तू का तकशा और उनका अनुमान वा य िवचार क या या और प ीकरण क सव म साधन ह, पर वे नवीन स य क आिव कार क साधन नह ह। नवीन आिव कार क साधन क िलए पा ा य जग को बेकन और गैलीिलयो क समय तक ती ा करनी पड़ी, िफर भी ईसाई धम और इसलाम को अर तू क तकशा से ब त कछ पथ- दशन ा आ। अर तू क अनुमान का भाव भारतीय अनुमान वा य क िवकास पर भी पड़ा ह। हालाँिक भारतीय सां य दशन क उ पि अर तू क समय से पूव हो चुक थी, पर भारतीय अनुमान वा य आगे चलकर अर तू क िस कौिग मस क भाव से िवकिसत आ, मगर इस तरह क मत को भी संिद ध माना जाता रहा ह। इस कार वै ािनक ि या क माग को श त करक अर तू ने िव ान क े म या िस ा क ? यह न वाभािवक प से पूछा जा सकता ह। उस समय िव ान और दशन साइस और िफलासफ क े िवभ नह ए थे। इसीिलए अर तू क िव ान संबंधी गवेषणा क चचा भी उनक दाशिनक िवचार क साथ करना अनुिचत नह ह। िव ान क े म अर तू ने खोज का सू वहाँ से पकड़ा, जहाँ देमो तस ने उसे छोड़ा था। गिणत क े म अर तू और उनक िव ालय क िच और गित दोन ही अिधक नह थी। इस िदशा म लेटो क अकादमी अिधक आगे बढ़ी ई थी। गिणत क िवषय म अर तू ने कवल ारिभक िस ांत क चचा क ह। भौितक पर अर तू ने एक बड़ ंथ क रचना अव य क ह, पर इसम पदाथ, गित, थान, समय, सात य, असीम, भूमा, प रवतन, अंत (उ े य) इ यािद श द क प प रभाषाएँ िन त करने का य न अपे ाकत अिधक िकया ह। उ ह थित, गु वाकषण, गित, गितवृ इ यािद क सम या का भान था, पर वह इनका हल तुत करने म असफल रह। वेग क समानांतर चतुभुज का भी उ ह कछ आभास था। लीवर (टक) संबंधी िनयम को उ ह ने प विणत िकया ह। चं हण क िनरी ण क आधार पर उ ह ने यह िनणय िकया था िक आकाशीय िपंड और पृ वी तो िन य ही गोलाकार ह। उ ह यह भी पता था िक पृ वी क आयु िवशाल ह और इस पर अनेक युग-प रवतन हो चुक ह। उनक यह भी धारणा थी िक ायः सभी कलाएँ और िव ान बार-बार पूणता को प चकर िवन हो चुक ह। भौिमक प रवतन का मु य कारण उनक स मित म ताप ह। इसी कार उ ह ने मेघ, कहर, ओस, पाले, वषा, िहम, ओले, वायु, मेघ-गजन, िबजली, इ धनुष और उ का इ यािद अनेक भौितक त य क या या का य न िकया ह। हालाँिक आज क ान क ि से उनक या याएँ िवकट एवं प रहास यो य तीत होती ह, तथािप उनक िवशेषता यह ह िक उ ह ने ाकितक त य क या या ाकितक हतु से ही करने का य न िकया। िकसी अित ाकितक हतु को वीकार नह िकया। यह पहले कहा जा चुका ह िक अपनी कल मागत िश ा क कारण अर तू का झुकाव जीव िव ान क ओर अिधक था। इस े म उ ह ने ब त अिधक म और खोज क थी। अपने स ा िश य क आिथक सहायता एवं अ य िश य और सहयोिगय क य गत वै ािनक सहायता से उ ह ने एिशयन सागर क तटवत देश क पशुपि य एवं लता-वृ क संबंध म असं य त य और नमूने एकि त िकए। िसकदर क अपने बहिलय , िशका रय और मछआर को यह आ ा थी िक अर तू को िजस पदाथ अथवा जीव क नमून क अथवा जानकारी क

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आव यकता हो, वह उपल ध करा दी जाए। अर तू का ि कोण इस कार संतुिलत था िक वह त य को िवल ण िविवधता और उनम िनिहत आधारभूत िनयम दोन ही क पीछ समान प से समिपत थे। दोन म से िकसी क भी उपे ा करना उनका अभी नह था। उनका िवचार था िक सभी ाकितक पदाथ म चम कारपूणता उपल ध होती ह, इसीिलए जो िन न कोिट क जीव क उपे ा करता ह, वह वयं अपनी उपे ा करता ह। जीव को अर तू ने सर और अर —दो कोिटय म बाँटा, जो य िप वतमान क मे दंडवाले और िबना मे दंडवाले जीव-िवभाग से िबलकल तो नह िमलता, पर लगभग वैसा ही िवभाजन माना जा सकता ह। उ ह ने ािणय क इि य-सं थान और वृि य का भी िव तृत वणन िकया ह। पशु, प ी, मछली इ यािद क िवषय म उनक रहने क थान, गभाधान क समय, थानांतरगमन, उनक रोग इ यािद सभी संभव त य का िववेचन िकया ह। अर तू ने यह भी िलखा ह िक कछ नर ाणी भी दूध देते ह। जनन ि या का उ ह ने बड़ा सू म अ ययन िकया था, य िक इसी क ारा कित य य का संहार और जाितय का संर ण करती ह। इस जनन िव ान क े म 18व शता दी क अंत तक अर तू क समता करनेवाला कोई अ य वै ािनक यूरोप म नह आ। ािणय क वृि य क दो क ह—भोजन करना और जनन करना। संतान का िलंग या होगा, इसक िवषय म भी उ ह ने िवचार िकया था। अर तू ने जुड़वाँ मानव संतान क त य का भी अ ययन िकया और बतलाया िक अिधक-से-अिधक पाँच िशशु क एक साथ ज म का उ ेख इितहास म िमलता ह। उ ह ने एक ऐसी माता का भी उ ेख िकया ह, िजसने चार बार म बीस ब को उ प िकया था। अर तू ने गभाधान और िडब क िवकास क संबंध म भी ब त कछ िलखा ह। मुरगी क अंड म चूजे का िवकास म एक योग ारा अ यंत रोचक कार से विणत िकया ह। इसी क सा य उ ह ने मानवीय गभ क िवकास का भी वणन तुत िकया ह। उ ह जीव क अंग सा य क आधार पर सम ािणजग क एकता का भान था। एकाध थल पर तो वह आधुिनक िवकासवाद क अ यंत समीप प चा तीत होते ह। उनका कहना था िक कित क सत िवकास म कह प सीमाएँ नह बनी ह। जड़ जग से वन पित जग , वन पित जग से ािणजग और ािणजग से मानव जग म मशः प रवतन थोड़ा-थोड़ा करक होता गया ह। वह वानर अथवा वनमानुष को ािणय और मनु य क म यवत कड़ी मानते ह, पर यह जो उ ोित म कित म ि गोचर हो रहा ह, इसक ेरणा कह बाहर से नह िकतु सव एक आंत रक उ े य क स ा म िमल रही ह, िजसको अर तू ने ‘ऐ तैलैखी’ कहा ह। यह तो िनतांत वाभािवक ह िक अर तू ने इस े म ब त सी िविच भूल भी क ह। इन भूल म से कछ उनक िश य एवं सहयोिगय क भूल भी हो सकती ह। उनका ‘पशु का इितहास’ नामक ंथ जहाँ एक ओर अर तू क समय क ि से महा वै ािनक गित का प रचायक ह, वह आजकल क वै ािनक गित क ि से भूल का भंडार भी ह। उस समय मानव शरीर क चीरफाड़ को धािमक ि से विजत समझा जाता था, इसिलए मानव शरीर क आंत रक गठन का उनका ान पशु क शारी रक गठन क ान क अपे ा िन न कोिट का था। इसी कारण उ ह ने कहा ह िक मनु य क पसिलय क सं या आठ ह, य क दाँत सं या म पु ष क दाँत से कम होते ह, चेतना का थान म त क नह , दय ह, दय क धड़कन का रोग मनु य को ही होता ह। पशु क िवषय म उनक कछ ांत िवचार का नमूना यह ह—चूह ी म ऋतु म पानी पीने पर मर जाते ह, हािथय को

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कवल दो रोग होते ह—सद और अफारा, िफर भी ब त सी बात म इस िदशा म मनु य ने अभी हाल ही म ही अर तू से आगे कछ ान ा िकया ह। अर तू क िजस रचना को आज ‘परािव ा’ (मेटािफिजका) नाम िदया जाता ह, अर तू उसको थम दशन शा ( ोते िफलौसोिफया) अथवा देविव ा (ह िथयोलौिगक) कहते थे। इसका िवषय ह, मानव िववेक क प च क सीमा तक वा तिवक जग क मूल म िनिहत कारण और िस ांत क खोज करना। यही िव ा सव े िव ा ह। शेष सब िव ाएँ मानवीय ान क िवशेष िवभाग से संबंध रखती ह इसिलए एकदेशीय ह, परतु परािव ा सम मानव क समूचे ान े को अपनाती ह, इसिलए उसका मह व अ तीय ह। िफर अ य सब िव ान कछ आधारभूत िस ांत को मानकर उनक ऊपर अपना िनमाण करते ह, जैसे भौितक गित क अ त व को वीकार करक अपना काय आरभ करती ह, परतु ये िव ान इन िस ांत क त यता अथवा अस यता क िवषय म कछ िवचार नह कर सकते। परािव ा इन आधारभूत िस ांत का भी परी ण और थापन करती ह। मु यतया परािव ा म आिदकारण , स ा त व एवं उस िन य अशरीरी और गितशू य का अनुसंधान िकया गया ह, जो जग क सब गितय और आकितय का कारण ह। स ा क अनुसंधान म अर तू ने पदाथ को धानता दी ह। यह पदाथ उनक मत म पूणतया य गत त व ह तथा यह सवदा उ े य हो सकता ह, िवधेय नह । पदाथ अपने स ाकाल म प रवतन क होते रहने पर भी एक प रहता ह। न हो सकता ह िक इस पदाथ का िव ेषण करने पर इसक घटक त व क प म हमको िकन त व क उपल ध हो सकती ह तथा इसक िव ेषण से इसका जो व प अथवा ल ण हम उपल ध होता ह, वह इसे िकस कार ा होता ह? उदाहरण क िलए िकसी पदाथ को ले सकते ह, चाह वह मनु य क ारा िनिमत हो या कित ारा—जैसे एक लास अथवा घोड़ा। येक पदाथ िकसी भौितक त व से िनिमत होता ह तथा उसका कोई आकार होता ह। िजस भौितक त व से कोई पदाथ बना होता ह, उसको अर तू ने ‘ही ले’ (भौितक त व, मैटर) कहा ह। इस श द का अथ लकड़ी अथवा का भी ह। पदाथ क प म अथवा आकार क िलए अर तू ने ‘अइदॉस’ (फॉम) श द का योग िकया ह। यह मैटर और फॉम का भेद ऐसा नह ह, िजसे हम िकसी पदाथ म एक-दूसर से पृथक करक देख सक। हाँ, बु क ारा हम उसका िववेचन कर सकते ह। अर तू ने इस िव ेषण को कवल मू पदाथ तक ही सीिमत नह रखा ह। उ ह ने इसका िव तार करक मानव च र जैसे अमूत त व क िलए भी इसको लागू िकया ह। एक सीमा तक इस िव ेषण क तुलना हम सां य दशन क कित-िवकित संबंध से कर सकते ह, पर अर तू सां य क मूल कित को वीकार करने से िहचिकचाते ह। इसीिलए वह वा तव म कित क मूल प चार त व —पृ वी, जल, वायु और अ न को ही मानते ह। य िप उनका तक इन त व को भी इनसे पर िकसी सरलतर त व क िवकितयाँ मानने को िववश करता ह, तथािप वह िकसी ऐसे त व क स ा को वीकार नह करना चाहते, जो िवकित (िवशेष आकित) से शू य हो। िकसी भी पदाथ म कित और आकित—मैटर और फॉम का संबंध कोई थर अथवा थायी संबंध नह ह। येक िवकित आगे िवकिसत होनेवाली िवकित (िवशेष आकित) क िलए कित हो जाती ह। उदाहरण क िलए टकसाल म िजस धातु क िस बनते ह, वह कित अथवा मैटर कहलाएगी। पहले यह धातु छोट गोल खंड म िवभ क जाएगी। इन खंड क धातु इनक कित होगी और इनक मोटाई और गोलाई आकित िवशेष। अब इ ह

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खंड म ठ पे क ारा मूित और अ य िच अंिकत िकए जाएँगे। इस कार जो प रपूणता को प चे ए िस तैयार ह गे, उनक ि से उनका पहले का गोल खंड वाला प उनक कित था और उन पर अब अंिकत िकए ए िच उनक आकित फॉम। इसी कार ई अथवा ऊन से लेकर सूट क िनिमित तक अनेक कित िवकितय का िसलिसला होना संभव ह। वन पित जग , जीव जग और मानव जग म भी यही कित-िवकित का िसलिसला चला करता ह। एक किणका अंक रत होकर पादप का प हण करती ह। पौधा बढ़कर जल, फल और छाया यु महा वट वृ बन जाता ह। जीव जग म भी छोटा िशशु युवा बनता ह अथवा अंड म से ब ा िनकलता ह और कालांतर म पूण िवकास को ा हो जाता ह। यह िवकास म तभी तक चलता ह, जब तक ारभ क संभावना पूणतया अथवती नह हो जाती। वह किणका से पादप और उससे पूण िवकिसत वट वृ —बस इससे आगे यह म नह जाता। इसका आशय यह ह िक वट किणका म जो संभावना अथवती होने क कारण िनिहत थी, उसक मता पूण वट वृ क प तक प चने क थी। इसक उपरांत वह वयं वट किणका को उ प करने लगती ह। यही बात अ य े म भी च रताथ होती ह। अर तू ने संभावना को दीनािमस और उसक पूणता ा को एनगइया कहा ह। जग म जो प रवतन चलता रहता ह, वह चाह कित कत हो या मानव कत—उसक या या करने क िलए अर तू ने चार कार क कारण का िस ांत िनधा रत िकया। ‘िक कारण ?’ यह न अ यंत पुराना ह। उपिनषद क भाँित यह न ाचीन यूनानी दाशिनक ने भी पूछा था और इसक िविवध कार क उ र िदए थे। अर तू का िव ास था िक इस जिटल न का उ र यिद िकसी ने संतोष द िदया तो वयं उ ह ने कारण क िलए ीक भाषा म ‘अइतया’ श द आता ह, इसका अथ हतु और िनिम भी होता ह। चार कार क कारण अर तू ने इस कार िगनाए ह—मैटी रयल कॉज—समवापी कारण, वह पदाथ िजससे कोई व तु िनिमत होती ह। फॉमल कॉज अथा वह िनयम िजसक अनुसार कोई व तु िवकिसत या िनिमत ई ह। कता अथवा वह श , जो प रवतन को गित दान करता ह और परम अथवा चरम कारण फाइनल कॉज, जो इस सम ि या का प रणाम ह। ये चार कार क कारण ाकितक और मानव दोन ही तर पर िनरतर काम करते रहते ह। ाकितक जग से यिद वट वृ का उदाहरण ल तो वट किणका थम कारण, वट क िवकास का िनयम तीय कारण, िजस वट वृ क किणका से यह नया वृ उगा वह तृतीय कारण और चरम िवकास अथा उस अव था क गित, जबिक यह वट भी वट किणका को उ प करने लगे तथा िजसक िलए यह सब ि या चलती ह, चतुथ कारण ह। मानव जग म क हार क ारा बने ए घट को उदाहरण व प ले सकते ह। इस संग म िम ी थम कारण ह, घट क िविश आकित अथवा घट िनमाण का िनयम दूसरा कारण ह। कभकार िजसक चे ा से घट बना तीसरा कारण ह और वह उ े य अथवा िनिम जो घट क िनमाण से िस होता ह, िजसक िलए घट बना—वह चौथा कारण ह। कह -कह अर तू ने ‘एफ िशएंट कॉज’ क अंतगत गीता क पंचहतुवाद क दैव अथवा य छा को भी िगनाया ह। िकसी समवायी कारण से कता क ारा िकसी अ य व तु क िनमाण क ि या म गित क आव यकता होती ह। अर तू क मत म काय क उ पि क िलए समवापी कारण म गित होना अिनवाय ह, कता म उसका होना संभव नह । कता क िलए तो समवापी कारण म गित को े रत करना भर पया ह। सभी संक पत काय म मूलभूत िनिम कारण तो कता का संक पत उ े य अथवा िवचार होता ह और यह िवचार तो वयं गितमान नह होता।

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गितरिहत िनिम कारण का पदाथ म गित क ेरणा देना अर तू क धमदशन का अ यंत मह वपूण िस ांत ह। अर तू गित क अनेक कार मानते ह जैसे संभूित, िवनाश, अ यथाकरण, वृ , हािन, देशांतरीकरण, सरल, व ुल इ यािद। इसक अित र वह गित को सत और शा त मानते ह और इसी कार सृि को भी शा त वीकार करते ह। गित सात य क िलए गित को िन य ेरणा देनेवाले त व एवं ऐसे िन य पदाथ क आव यकता ह, िजसम िन य गित क स ा बनी रह सक। िजस पदाथ म िन य गित क स ा रहती ह, मैटर ह। इसी िन य गित से मैटर म उ रो र िविश आकार का ादुभाव आ करता ह। जो त व इस गित को ेरणा देता ह, वह ह देव अथवा ई र। यही अ े रत आ ेरक ह। अर तू ने मे स क 12व पु तक म ई र क व प का जो िन पण िकया ह, उसम उपिनष ितपािदत क स , िच और आनंद तथा िन य व आिद ल ण तो िमलते ह, पर मु य भेद यह ह िक अर तू का ई र जग म या नह ह, वह संसार क संचरण अथवा ि या से पर और िनतांत िनिल ह। उसक उ क स ामा म वह कमनीयता ह िक भौितक जग उससे ेरणा हण करक गितमान बना रहता ह और उ रो र िवकास को ा होता रहता ह। ई र शु सनातन त व ह, िजसका न इितहास ह और न िवकास। इसम भौितकता का अंश भी नह ह। उसक स ा जग क अ त व क िलए अप रहाय ह। न हो सकता ह िक यह ई र जो पूणतया िनरजन ह, या िन य भी ह? अर तू का ई र शु ि या ह, पर ऐसी ि या जो गितरिहत ह। ई र क ि या शु िचंतन व प ह और इस िचंतन का िवषय वह वयं अपने आप ह। वह वयं िचंतन करता ह और उसका िचंतन िचंतन क िवषय म ह, य िक इस िचंतन ि या म िकसी कार क िव न-बाधा नह ह, इसीिलए यह िनरतर चलनेवाला िचंतन िन य आनंद से सम वत रहता ह। ई र वयं जग क िवषय म िन ंत ही नह बेसुध ह, पर उसक स ा भौितक जग म एक लालसा अथवा ुधा को जगाकर उसको िनरतर गितमान बनाए रखती ह। िजस कार संसार क अ छ पदाथ वयं थर रहते ए भी दूसर को अपनी अ छाई से े रत करक गितमान करते ह, इसी कार ई र भी। जो िक सव म, शा त, आनंदमय सजीव िच मय स ा ह, सार िव को िकतनी बल ेरणा दे सकता ह—यह क पना से पर क बात ह। िजस 12व पु तक म ई र क उपयु उदा स ा का िववरण िमलता ह, वह लगभग खगोल क समािधक 50 अ य वतं ेरक का भी वणन तुत िकया गया ह। इन ेरक का और आ ेरक का पर पर कोई संबंध ह भी या नह , इसक चचा कह नह िमलती। जमन िव ा याएगर क मत म उपयु दो िविभ िस ांत अर तू क जीवन क िविभ समय से संबंध रखते ह। इतना तो प ह िक उपयु दोन िवचार से सम वय करने का य न नह िकया गया। म यकालीन िजन ईसाई संत दाशिनक ने अर तू क देविव ा को अपने धमशा का आधार बनाया, उनको ईसाई ई र और अर तू क ई र थािपत करने म बड़ी किठनाई का सामना करना पड़ा और िफर भी वे इस काय म पूणतया सफल नह हो सक। अर तू ने परािव ा का आरभ अपने गु क िस ांत का खंडन करने क िलए िकया था। लेटो ने जो प र यमान जग से पर आकित जग क स ा का ितपादन िकया था, वह अर तू को मा य नह था। उ ह ने जो ई र क व प का िन पण िकया ह, उसक अनुसार वह शु आकित क अित र और कछ नह ठहरता, य िक उसम भौितकता तो लेशमा भी नह ह।

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सम दाशिनक िचंतन और ान ा का उ े य ह—मानव जीवन क उ ित। मनु य क सुख म वृ । इसीिलए अर तू ने मानव जीवन क यावहा रक समु थान क िवषय म भी िव तार से िवचार िकया एवं सदाचार शा और राजनीित शा क े म अनेक ंथ क रचना क । मनु य क काय को अर तू ने दो ि कोण से देखा ह— य क काय क ि से और नाग रक समाज क सद य क ि से। यह ि कोण का भेद ह और यह भेद मनु य क काय को समझने क ि से िकया गया ह। य क काय क नीित का िववेचन सदाचार शा (ऐिथ स) म िकया गया ह और मानव क नाग रक प और त संबंधी नाग रक यव था का िववेचन राजनीित शा (पॉिलिट स) म िकया गया ह, पर उपयु दोन िववेचन और दोन ंथ एक दूसर से िबलकल पृथक और अछते ह , ऐसी बात नह ह। दोन ंथ म ब धा एक दूसर क ओर संकत िकया गया ह। यावहा रक जग म सव े कला राजनीित ह, य िक यह अपने उ े य क िस क िलए अ य सब कला ारा तुत व तु का उपयोग करती ह। अ य सब कला क िलए माग िनदश भी राजनीित से ही ा होता ह। राजनीित क एक अ यंत मह वपूण शाखा आचारशा ह, िजसम नगर क येक य क िलए े जीवन क खोज क जाती ह। जहाँ तक े जीवन क सामा य ल ण का संबंध ह—इसक िवषय म अर तू और उनक गु लेटो दोन का एक मत था िक सुखी जीवन े जीवन ह। मानव क िलए सुखी जीवन क तीन शत लेटो ने िनधा रत क थ — ऐसा जीवन वतः वांछनीय होना चािहए, वतः पया होना चािहए और बु मान मनु य क ि म अ य सब कार क जीवन से वर य होना चािहए। इन तीन शत को पूरा करनेवाले जीवन का ल ण बतलाने से पहले हम मनु य क वृि को भी जान लेना आव यक ह। िकसी भी व तु अथवा य क वृि से ता पय उस िवशेष कम से ह, िजसको वह व तु या य ही कर सकता ह—जैसे ने क वृि देखना ह। इसी कार मनु य क वृि जीवन का वह िविश कार होगा, जो मनु य क अित र अ य िकसी का, ई र अथवा मनु ये र ाणी का िह सा नह ह। इन सब बात पर िवचार करक अर तू इस िनणय पर प चते ह िक मनु य क िलए सुखी जीवन वह होगा, जो सि य हो और प रपूणतया े अ छाई क अनुसार यतीत िकया गया हो। इस कार क जीवन क िलए कछ भौितक सुिवधा का सौभा य भी आव यक होता ह। िम का साहचय, पया धन-संपि और वा य—ये सुखी जीवन क बा साधन ह। सुखी जीवन े भलाई अथवा अ छाई क अनुसार यतीत िकया गया जीवन ह, इसीिलए यह न उठता ह िक े भलाई या ह? भलाई दो कार क होती ह, एक बु क भलाई और दूसरी च र क भलाई। बु क भलाई अथवा स ु हमको यह बतलाती ह िक सुखी जीवन का िनयम या ह। च र क भलाई अथवा स र ता हमको उस िनयम क अनुसार आचरण करने म समथ बनाती ह। इन दोन क ही सहायता से मनु य आचारवान बनता ह। मनु य क िश ा म सदनुशासन ारा च र क भलाई, बु क भलाई क अपे ा पहले िसखाई जानी चािहए। जब हम मनोवेग एवं कामना आिद सहज वृि य पर संयम रखना सीख लेते ह, तब हमारी बु को यह सौ याव था ा होती ह, िजससे हम जीवन क सही िनयम को समझ सकते ह। स र ता क उपल ध स कम को बारबार करने से ा होती ह। स र ता क िलए स कम का ल ण जानना आव यक ह। अर तू ने स र ता और स कम का िनणय करने

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क िलए म यम माग का िन पण िकया ह। स र ता हमारी संक प श क वह यव था ह, जो हमार य व क अपे ा म यम माग का अनुसरण करती ह और म यम माग का िनधारण िववेक ारा उसी कार िकया जाता ह, िजस कार कोई समझदार कर सकता ह। इसका उदाहरण देने क िलए अर तू ने अनेक सहज मानवीय वृि य का िववरण उप थत िकया ह। अपने िवषय म दूसर को सूचना देना मनु य क सहज वृि ह, इस आ म काशन क तीन कार हो सकते ह— 1. गव य ारा अपने को वा तिवकता से बढ़कर बतलाना। 2. आ मावसादन ारा अपने को वा तिवकता से हीन बतलाना। 3. अपने िवषय म यथाथ त य कहना। इसी कार साहस, उदारता, संयम, स यपरायणता, वािभमान इ यािद स ुण, स कम अथवा स र ता क अंग को अितशय क म यवत गुण ह। इस म यम माग को अपने संबंध म जानकर उसका अनुसरण करना स र ता ह। इसक िलए स ु और सदाचरण क अ यास क आव यकता होती ह। अर तू को मनु य क इ छाश क वतं ता का िस ांत मा य ह और वह मनु य को उसक काय क िलए उ रदायी मानते ह। उनक मत म यावहा रक बु म ा का ल ण ह—मानव क िलए ेरक जीवन क सामा य व प को जानते ए उसक काश म उन काय को करना, जो वा तव म मनु य क िलए भले ह । सबसे अंत म अर तू िचंतन और मननपूण जीवन को सव थान देते ह। जीवन क सब काय और सारी यव थाएँ अवकाश क उपल ध क िलए ह। अवकाश काल म मनु य भौितक जीवन क बाधा-बंधन से मु होकर आ मतं ता क थित को ा करता ह। इसका उपयोग मनु य आ मिचंतन, ानिचंतन और कलािचंतन म करक मानवीय सीमा क भीतर ई रीय अनुभव ा करता ह। जो सुख ई र को वतः िन य उपल ध ह, उसको मनु य अवकाश क िचंतनमय ण म उपभोग करक मानव क िवकास क चरम िशखर पर आ ढ़ हो पाता ह। अर तू क मन म इस कार का जीवन मानव जीवन म िनिहत िद य जीवन का अनुसरण करता ह। इसक अनुसरण म मनु य को यथाश अपने को अमर बनाने का य न करना चािहए। इस कार लेटो क ित विन अर तू क िचंतन म बार-बार अचानक फट पड़ती ह। सदाचार शा क पूरक राजनीित शा , गृह बंध शा एवं एथस क संिवधान म अर तू ने अपने राजनीित और अथनीित संबंधी िवचार य िकए ह। अर तू क राजनीित संबंधी रचनाएँ पढ़ने से ात होता ह िक यूनानी पया राजनीितक चेतना से यु और मुकदमेबाज थे। सुकरात से कछ समय पहले से ही सौिफ ट नामक िवदेशी आचाय एथसवािसय को भाषण कला एवं ोता क िवचार का नेतृ व करने क कला क िश ा देने लगे थे। इतना ही नह , इस िवषय पर कछ पु तक भी िलखी जा चुक थ । इसॉ ातेस का िव ालय तो िवशेष प से इसी कला क िश ा देता था। अर तू क ‘रतौ रका’ नामक पु तक क िवशेषता यह ह िक पूववत लेखक क अपे ा उ ह ने भाषण म यु यु ता को अिधक मह व दान िकया ह, जबिक पूववत िव ान ने ोता क भावुकता और मनोवेग को उ ेिजत करने पर अिधक बल िदया था। अर तू क अनुसार, ‘रतौ रका’ मनु य को िकसी भी िवषय पर अपने अनुकल बनाने क संभव उपाय को देख पाने क श ह। मनु य को मना लेने क दो उपाय ह—1. िबना िवशेष अ ययन क साि य , यं णा अथवा िलिखत माण ारा, 2. व ा क िवशेष अ ययन इ यािद से तुत भाषण ारा। इस तीय उपाय क तीन कार ह, 1. व ा

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क च र अथवा य व से संबंध रखनेवाला कार, 2. ोता म मनोवेग को भड़कानेवाला कार और 3. कवल यु य क बल पर उपपि अथवा उसक आभास को उ प करनेवाला। यु याँ भी दो कार क होती ह —िवशेष और सामा य। भाषण कला क तीन भेद ह— 1. परामशदाता क व ृ व कला िकसी भावी काय प ित क भलाई-बुराई को दिशत करती ह। 2. समथक क व ृ व कला िकसी भूतकािलक कम क वैधता अथवा अवैधता को िस करती ह। 3. दशना मक व ृ व कला िकसी िव मान व तु अथवा य क े ता अथवा नीचता को दिशत करती ह। इसक अित र अर तू ने यह भी बतलाया ह िक राजनीितक भाषण म, घोषणा मक या यान म तथा यायालय क व ृता म िकस कार क यु याँ उिचत और उपयोगी होती ह। ‘रतौ रका’ क अंितम पु तक म अर तू ने शैली का िव तृत िववेचन िकया ह एवं प ता अथवा साद गुण और औिच य—ये दो शैली क िवशेष गुण माने ह। इन गुण क उपल ध क उपाय क चचा भी क गई ह। भाषण क ग शैली म छ भाव से लय का भी उपयोग िकया जाना चािहए। अर तू क पूववत लेखक ने भाषण को अनेक भाग म िवभ करने क योजनाएँ तुत क थ । अर तू ने उनका प रहास िकया ह। उनक मत म िकसी भी भाषण क कवल दो ही अंग हो सकते ह— 1. अपने प का कथन। 2. उसका उपपि पूवक ितपादन। इसक िवपरीत इसॉ ातेस ने भाषण क चार अंग िगनाए थे— 1. भूिमका। 2. अपने प का कथन। 3. उपपि । 4. समापन। अर तू इन चार अंग को तो कछ हद तक वीकार कर लेने को तैयार थे, पर इससे अिधक अंग िवभाजन उनको कदािप मा य नह था। ाचीन काल म इस िव ा का अिधक मान था, पर वतमान म इसक उतनी ित ा नह रही ह। अर तू का का यशा (पैरी पोइितकस) आकार म अ यंत लघु, मगर मह व म अ यंत गौरवशाली पु तक ह। इसका नामाथ ह का य रचना अथवा कवल रचनाशा । इस पु तक का यूरोप क सािह य पर गहरा भाव पड़ा। इटली, ांस और पेन क ना य रचना का िनयं ण इस ंथ क ारा सुदीघ काल तक होता रहा। अर तू ने इसका णयन बड़ी तैयारी क उपरांत िकया था, पर यह अ यंत खेद का िवषय ह िक यह ंथ अभी तक अपूण प म ही िमलता ह। कहते ह िक इसक एक पु तक और थी, जो वतमान युग म उपल ध नह ह। लेटो ने अपनी क पना क आदश नगर से किवय को बिह कत कर िदया था। उनक मत म वा तिवक जग आदश जग क धुँधली ितकित ह और का य इस धुँधली ितकित क और भी धुँधली ितकित होने क कारण स य से दोगुनी दूरी पर ह, इसीिलए या य ह। अर तू ने इस िस ांत का िवरोध िकया और का य एवं उसक िविभ शाखा क िवषय म एक वै ािनक ि कोण तुत करने क िलए इस ंथ क रचना क । यह दुभा य ही माना जाएगा िक इस पु तक का जो भाग

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उपल ध ह, उसम सामा य भूिमका क प ा कवल नाटक और नाटक क े म भी कवल गंभीर कित क ागेदी (दुःखांत नाटक) का ही िवशेष ितपादन िमलता ह। गीितका य, महाका य इ यािद अ य का यांश क िवषय का ितपादन िजस भाग म था, वह या तो िलखा ही नह गया या सवदा क िलए खो गया ह। का य क िवषय म अर तू क ि कोण म िकसी कार क रह या मक भावना नह थी। इस िवषय म उनका ि कोण िनतांत यावहा रक और य िनरपे ह। का य को अर तू भी अपने गु क समान जीवन क अनुकित मानते ह। इस प रभाषा क िवषय म ीक जग म िकसी को आपि नह थी, य िक उनक कला सभी े म अनुकरणा मक थी। इसका अथ वह नह समझा जाना चािहए, जो लेटो ने समझा था। किवता जीवन का अनुकरण ह इसीिलए वह जीवन क िनज व छाया ह—ऐसा समझना भारी भूल होगी। हम सोते-जागते सब समय जीवन और उसक अनुभव से िघर रहते ह। यही दशा किवय और कलाकार क भी होती ह, पर उनक सहानुभूितपूण अनुभव करने क श , संवेदनशीलता अ य साधारण जन क अपे ा अिधक समथ और सू म होती ह। जब वे इस अनुभव का कलाकितय म अनुकरण करते ह तो वे उसक साथ म अपने य व और अपनी क पना का योग कर देते ह, िजसक कारण उनक रचनाएँ न तो जीवन क तसवीर क स श शत- ितशत नकल होती ह और न जीवन क िनज व धुँधली छाया। क पना का योग उनको अनु ािणत करक आनंदमय और आकषक बना देता ह। का य और नाटक क े म ीक कलाकार ने अपने देश क पौरािणक गाथा को बार-बार हण िकया ह। यिद किवता और नाटक कवल अनुकित मा होते तो एक िवषय पर िविवध किवय ारा रची गई कितयाँ िबलकल एक सी होत , पर वा तिवक थित ऐसी नह ह। एक ही कथाव तु िविभ कलाकार क य व और क पना क ढग से अनुरिजत होकर हमार सामने एक पृथक कलाकित क प म आती ह। येक किव क रचना एक ही कथाव तु क अनुकित भी ह, पर य िक उसक य व ने उसक अपनी सी या या तुत क ह, इसीिलए वह अ य किवय क उसी िवषय क अ य कार क य व ारा क गई या या से पृथक ह। भारतवष म रामच रत को लेकर वा मीिक रामायण, आ या म रामायण, कब रामायण, रामच रतमानस, रामचंि का, वृि वासी रामायण एवं राधे याम कथावाचक क रामायण इ यािद न जाने िकतनी रचनाएँ तुत क गई ह। वे सभी रामच रत क अनुकितयाँ ह, पर िविभ किवय क य व और क पना क अिनवाय िभ ता क कारण वे सब एक दूसर से िभ ह। इसी िस ांत से जोड़कर नाटक क, खास तौर पर गंभीर अथवा दुःखांत नाटक क संबंध से तुत िकया गया अर तू का का य भी उपयोिगता का िस ांत ह। इसको भाविवरचन (का यािसस) का िस ांत कहा जाता ह। दैिनक जीवन म हमको अनेक बार भाषाितरक का अनुभव करना पड़ता ह। ब त सी प र थितय म मनोवेग ( ोध अथवा शोक क वेग) क कट घूँट पीने पड़ते ह। यह सब हमार मानिसक और शारी रक वा य तथा संतुलन क िलए खतर क बात ह। इसी कार क मनोवेग क शमन क िलए एथस म एवं अ य थान पर भी िदयोनीिषया नामक उ सव क समय नाटक का मंचन िकया जाता था। किव अपनी क पना ारा ाचीन यूनानी देवी-देवता और वीर पु ष तथा रमिणय क कायकलाप को अपनी ना यकित क प म तुत करता था। अिभनेता और नृ यमंडिलयाँ उसी को रगमंच पर तुत करते थे और जनता अपनी क पना क ारा उसक साथ त मय होकर यथाश उनक ेम,

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शोक और ोध का अनुभव करते ए इन भाव क अपने दय म संिचत अितरक क अिभ य ारा उससे मु होकर पुनः मानिसक और शारी रक संतुलन तथा वा य को ा कर लेती थी। अर तू राजवै क पु थे और उनको वै शा का अ छा ान था। यह भाविवरचन का िस ांत उ ह ने इसी ान क सहार ितपािदत िकया था, पर इस िस ांत म आधुिनक मनोिव ान क अवचेतन मानस क िस ांत का पूवाभास भी ि गोचर होता ह। अर तू क समय क जनता वष भर म दो बार इस भाव-िवरचन योग को हण करती थी। कला क प म सािवकता रहती ह—यह त य अर तू ने अपने गु से हण िकया था, पर कला का उ े य जीवन क यिभ य क ारा एक िविश कार का आनंद- दान हमार जीवन म भाषा-संतुलन क थापना करना ह, यह अर तू क आलोचनाशा क अपनी देन थी। अर तू ने इस ंथ म िवशेष प से ‘ ागेदी’ नामक नाटक का ही िववरण उप थत िकया ह। यह नाटक ऐसे काय क यिभ य ह, जो गंभीर, पूण और कछ िवशालता िलये हो। इसक भाषा नाटक क िविवध भाग म ा होनेवाले कला मक अलंकार से सजी-धजी होनी चािहए। यिभ य ि या मक होनी चािहए, वणना मक नह । दशक और पाठक म क णा और भय को उ प करक नाटक को उनम इ ह तथा अ य मनोवेग का प र कार करने क मता होनी चािहए। ागेदी क 6 अंग अथवा त व होते ह— 1. यमान प। 2. गीित। 3. श द चयन। 4. कथाव तु। 5. च र । 6. िवचार। आधी से अिधक पु तक म अर तू ने इ ह िवषय का िववेचन िकया ह। शेष पु तक म महाका य एवं ागेदी क भेद को ितपािदत िकया ह। िस ांसीसी िव ा िलयां रोिबन ने अपनी पु तक ‘ ीक थॉ स’ म अर तू क िवषय म सबसे लंबा अ याय िलखकर उसक मह ा का ितपादन एक वा य म इस कार िकया ह—

@BOOKHOUSE1 "He was a mighty encyclopaedist and a master teacher."

‘समथ िव और िस िश क’ एवं ‘ ािननां गु ’ अर तू दशन जग म सवदा क िलए अमर ह। िचरकाल तक ान-िव ान क गित म उनक िवचार बाधक बने तो इसम उनका दोष नह था। उ ह ने कह भी सव ता का दावा नह िकया। गलती क तो उनक प ा आनेवाली पीि़ढय ने। दाशिनक का स ा स कार ह, उनक िवचार क िनमम आलोचना—जैसािक वयं अर तू ने अपने गु क िवषय म िकया, पर उनक िश य ने उनक आलोचना न करक उनको सव मान िलया। q

ान मीमांसा

अर तू ऐसे पहले यूनानी दाशिनक थे, िज ह ने दशन, िव ान, कला आिद

ान क िविभ े क सीमाएँ िन त करने क य न िकए थे। उनसे पहले क दाशिनक ने िव क सम या पर िवचार तो िकया था, िकतु उ ह ने िवचार क प रिध िन त करने का य न िबलकल नह िकया था। भौितक िवचारक ने समझा िक कित म स मिलत त व का िव ेषण कर लेने पर िव का ान ा हो जाएगा। अर तू ने मेटािफिजका म कहा—‘‘ कित स ा का कवल एक सीिमत अंश ह।’’ उ ह ने यह भी कहा िक जो लोग कवल भौितक पदाथ को ही त व मान लेते ह, वे कई कार से भूल करते ह। सबसे बड़ी भूल तो यह करते ह िक वे सू म व तु क अ त व का ही िनराकरण कर देते ह। इसी संग म उ ह ने यह भी कहा िक उ पि और िवनाश क कारण भी वे नह बता पाते ह, य िक भौितक पदाथ को गित का ोत मान लेने पर वा तिवक ोत का पता नह चलता। य को वे कारण म उिचत थान नह दे पाते और न यह बता पाते ह िक अ न आिद त व िकस कार एक दूसर से उ प होते ह।

ेय क ाथिमकता

इस कार अर तू ने ान क सबसे पहली सम या यह बतलाई िक आंिशक स य को पूण स य नह समझा जाए। इस भूल से बचने का उ ह ने यह उपाय बतलाया िक ान को व तु का पूववत न माना जाए। उ ह ने कहा िक यूनानी दाशिनक यिद िव क िव तार पर िवचार कर ेय व तु क पूर े को अपने िचंतन का िवषय बना सक होते तो वे िजतना अनुसंधान कर सक थे, उसी को िव दशन न समझते। इस कार क म का िनवारण करने क िलए अर तू ने ‘कटगोरी’ (पदाथ िनणय) नामक ंथ म ान को व तु सापे िस करने का य न िकया। अर तू का कथन ह िक ान िकसी-न-िकसी व तु का होता ह। िजस व तु का ान होता ह, वह ान होने से पहले रहती ह, पर इसका यह ता पय नह ह िक जो व तु होती ह, उसका ान अव यंभावी होता ह। िबना ान ए भी व तु रह सकती ह। वह अपनी थित क िलए ान पर िनभर नह रहती। इसक िवपरीत ान व तु पर िनभर रहता ह। ेय व तु का नाश हो जाने पर ान क संभावना नह रह जाती। इस कार अर तू ान मीमांसा क िनिम त व मीमांसा क अिनवायता िस कर देते ह।

@BOOKHOUSE1 ान क िवभाग

अब वह ेय व तु का िव ेषण करते ह। उनक िवचार से व तुएँ तीन कार क होती ह—सदैव गितमान रहनेवाली व तुएँ, अचल व तुए,ँ जो चल व तु को गितमान करती ह और वे अचल व तुएँ, जो गितमान व तु से अलग नह क जा सकत । इ ह तीन कार क व तु को उ ह ने तीन शा अथवा िव ान क अ ययन का िवषय माना। भौितक शा अथवा मेटा िफिजका का िवषय गितमान व तु का अ ययन ह। ये व तुएँ पदाथ से िभ नह होत । प रवतन, उ पि और िवनाश का म इ ह व तु म पाया जाता ह। इ ह से िमलती-जुलती वे व तुएँ ह, जो अचल होते ए भी गितमान व तु म िनिहत होती ह, जैसे रखाएँ और वृ । इन व तु का अ ययन करनेवाला शा गिणत कहलाता ह। गित क अचल ोत का अ ययन थम िव ान का

िवषय ह। अर तू दशन को कभी ‘ थम िव ान’, कभी ‘दाशिनक िव ान’ और कभी ई र िवषयक शा कहते ह। उनक ंथ म दशन और िव ान श द का योग लगभग पयायवाची श द क भाँित आ ह। उपयु तीन अ ययन को उ ह ने ान क एक ही िवभाग म रखा था, िजसे वह सै ांितक ान कहते थे। उनक िवचार से ान क पूण िव तार को तीन िवभाग म बाँटा जा सकता ह, िज ह वह सै ांितक, यावहा रक तथा उ पादन संबंधी ान कहते थे। उ ह ने इन तीन क अलग-अलग उ े य भी बतलाए ह। सै ांितक ान स य क खोज म वृ होता ह, यावहा रक ान कम का िववेचन करता ह और उ पादन संबंधी ान उ पादन क िनयम बताने का य न करता ह। अर तू प ान ा करने क िलए अ ययन क िविभ े क सीमाएँ प कर लेना ब त ही आव यक समझते थे। साथ ही वह इनक पार प रक संबंध पर िनगाह रखना भी आव यक मानते थे।

सै ांितक िव ान

अर तू ने भौितक िव ान, गिणत और दशन को सै ांितक िव ान क अंतगत रखा था। उनक िववेचन से पता चलता ह िक वह दशन को सै ांितक अ ययन का उ तम िवकास मानते थे। उनक अनुसार, जग क सू माितसू म कारण का ान ही ‘दशन’ ह, िकतु यह ान एकाएक ा होनेवाला नह ह। ‘मेटािफिजका’ क ारभ म उ ह ने कहा ह िक मानव वभाव क कई कार से बंधन म होने क कारण िजस ान क हम खोज म ह, वह मानव श से पर समझा जा सकता ह। इस कार क ान का धीर-धीर िवकास िकया जा सकता ह। अर तू ने इस िवचार को कई संग म य िकया ह, ‘मेटािफिजका’ म ही उ ह ने बतलाया ह िक अिविश ान क आकां ा करनेवाले को पहले उन व तु का ान ा करना चािहए, जो सरलता से जानी जा सकती ह और िफर धीर-धीर उ तर ान क ओर बढ़ना चािहए। अपने इसी िवचार क कारण वह दशन क िज ासु को भौितक िव ान क अ ययन से ारभ कर धीर-धीर दशन क े म वेश करने क स मित देने क अिभ ाय से सै ांितक िव ान क िवभाजन म भौितक िव ान को सबसे नीचे, गिणत को म य म और दशन को सबसे ऊपर रखते ह।

@BOOKHOUSE1 गिणत क उपे ा

कहा जाता ह िक अर तू ने जहाँ भौितक िव ान, दशन और अ य मानवीय अ ययन पर इतने चुर सािह य क रचना क , वह गिणत क पूण उपे ा क , िकतु सै ांितक िव ान म उ ह ने गिणत को जो थान िदया ह, उससे उनक उपे ा ि का पता नह चलता। गिणत को उ ह ने भौितक शा से ऊचा थान िदया था। उनक मत से भौितक शा चल व तु का अ ययन करता ह, िकतु गिणत चल व तु म या अंश का। गिणत क शंसा म उ ह ने कहा ह िक गिणत स दय क मु य प का, जो यव था, सुघढ़ता और सीमाब ता ह, उसका िवशेष प से ान कराता ह। उनक समय म गिणत क इतनी मा यता बढ़ गई थी िक दाशिनक लोग गिणत को दशन का िवक प समझने लगे थे। गिणत को वह इतना मह व नह देना चाहते थे। इसिलए उ ह ने कहा था िक गिणत का सू म औिच य येक िवषय क अ ययन क िलए अपेि त नह ह, िकतु अपदाथ क अ ययन क िलए वह गिणत क सू मता का समथन भी करते ह। उनक इन िवचार से इस बात का समथन नह होता िक वह गिणत क ित उदासीन थे।

हो सकता ह िक गिणत क ारा ेय व तु को भौितक और दशन क व तु क बीच क कड़ी मानते ए भी वह उनका ान ा करना अपने गंत य तक प चने क िलए आव यक न समझते रह ह , य िक उनका येय चल व तु क ान से अचल व तु क ान तक प चना था। उनका अभी चल व तु से िभ अचल व तु का ान था, जबिक वह गिणत क ारा कवल चल व तु म या अचल त व का ान संभव मानते थे। अपने उ े य को पूरा करने क िलए उ ह ने अपने संपूण सािह य म, उ पादन संबंधी िव ान और यावहा रक िव ान से भौितक िव ान और दशन क अंतर को प करने का य न िकया ह।

उ पादन संबंधी िव ान

उ पादन संबंधी िव ान से अर तू का ता पय कला क ान से था। वह भौितक व तु क उ पि का रह य समझने क िलए उ पादन क कित पर िवचार करना आव यक समझते थे। उ ह मालूम था िक हरा ाइटस, अ न से व तु क उ पि और अ न म ही उनका लय मानते ए भी प रवतन को व तु का अंितम स य कह गए थे। अर तू ऐसी भूल नह करना चाहते थे, इसिलए उ ह ने उ पादन क गितिविध पर िवचार िकया। ऐसा करने पर उ ह तीन कार क उ पादन का पता चला— ाकितक उ पादन, कला मक उ पादन और आक मक उ पादन। इन तीन म उ ह कछ समानताएँ िदखाई द । िकसी भौितक व तु म प रवतन होने पर ही कोई दूसरी भौितक व तु उ प होती ह, चाह इस प रवतन का कारण कित हो, कला हो अथवा भा य हो। इस कार उ ह ने यह नतीजा िनकाला िक पदाथ क िबना िकसी कार का उ पादन संभव नह । दूसरी समानता उ ह ान क ि से िमली। उ ह ने देखा िक सभी कार क उ पादन का ान संभावना का ान ह। उनक िवचार से कित भी एक कार क संभावना या ‘पोटसी’ ह।

@BOOKHOUSE1 ाकितक और कला मक उ पादन म अंतर

अर तू क अनुसार पदाथ और संभावना म समानताएँ होने पर भी ाकितक और कला मक उ पादन म अंतर ह। कित क ारा उ प क जानेवाली व तु क िनिम व तु से बा नह होते। वृ से वृ और मनु य से मनु य उ प होता ह। कला मक उ पादन म प रवतन का ोत व तु म न होकर कलाकार म होता ह। इससे भी बढ़कर कित म होनेवाले प रवतन बँधे ए िनयम क अनुसार होते ह, िकतु कला संबंधी प रवतन कलाकार क संक प पर िनभर रहते ह। कला मक प रवतन म ाकितक िनयम क अिनवायता नह रहती। इस िवचार से अर तू इस नतीजे पर प चते ह िक कला को सै ांितक िव ान का िवषय नह बनाया जा सकता।

आक मक उ पादन क कित

अब अर तू आक मक अथवा भा य क अधीन समझी जानेवाली घटना क कित पर िवचार करते ह। ‘मेटािफिजका’ म उ ह ने कहा िक भा य उन आक मक घटना का कारण बन जाता ह, िज ह साधारण प म िकसी उ े य क पूित क िलए घिटत कराने का य न िकया जाता ह। भा य िवचार क उ े य को पूरा कर देता ह, िकतु भा यसूचक फल क ा करानेवाले कारण का पहले से कछ भी अनुमान नह िकया जा सकता, य िक वे अिन त होते ह। आक मक होने क नाते ये अिवशेष अथ म िकसी व तु क कारण भी नह होते। इस िवचार से अर तू इस नतीजे

पर प चते ह िक आक मक घटना का वै ािनक अ ययन संभव नह , य िक वै ािनक अ ययन िन त कारण क खोज करता ह। इस कार कला क अ ययन क भाँित अर तू आक मक घटना को भी सै ांितक अ ययन क िलए अनुपयु पाते ह।

यावहा रक ान का वभाव

कला क वभाव पर िवचार कर लेने पर िव ान और दशन का एक ही ित पध रह गया था—वह था यावहा रक िव ान। अर तू ने एियका िनकोमैिकया (िनकोमैक य नीित) म इसक वभाव पर िवचार िकया। उ ह ने देखा िक कला का संबंध मानवीय िनमाण से ह और यावहा रक िव ान का संबंध मानवीय कम से ह। दोन क िवषय अिन त ह। कलाकार उन व तु को नह बनाता, जो िन त प से उ प होती ह। वह प थर नह , प थर क मूित बनाता ह। इसी कार यावहा रक बु वाला मनु य अिनवाय प से िकए जानेवाले कम पर िवचार नह करता। उसक िवचार क िवषय वे ही कम ह, जो भले अथवा बुर माने जा सकते ह। अर तू ने इस कार यह िनणय िकया िक कला संबंधी ान॒से यावहा रक ान य िप िभ ह, तथािप दोन म अिन त िवषय क समानता ह। यावहा रक ान को भी कला संबंधी ान क ही भाँित सै ांितक अ ययन का िवषय नह बनाया जा सकता।

@BOOKHOUSE1 िव ान और दशन

उपयु िववेचन से अर तू को स े अथ म, ान क दो ही े िमले—भौितक जग का वह भाग, िजसम िनयिमत प से प रवतन होते ह और कित को उ ेिलत करनेवाला गित का अचल क , िजसक न कभी उ पि ई थी और न कभी िजसका िवनाश ही होगा। इ ह दोन का वह सै ांितक अ ययन संभव मानते थे और इसी अ ययन से ा ान को मशः िव ान और दशन मानते थे, िकतु यह िव ान और दशन का भेद आधुिनक ह। अर तू इन दोन अ ययन को एक ही ान संबंधी िवकास क दो तर समझते थे, इसीिलए वह कभी दोन अ ययन को दशन कहकर और कभी दोन को िव ान कहकर दूसर अ ययन को थम बतलाते थे। दशन को थम दशन अथवा थम िव ान कहने से अर तू का उ े य यह सूिचत करने का था िक वह थम अ त व का ान ह। अर तू क अनुसार, थम अ त व, िजसका ान ा करना, मनु य क संपूण ाना मक य न का फल ह, संसार का आिद कारण ह। वह अचल रहकर संसार को गित देता ह। उसी गित से कित म प रवतन का म चलता ह। उसी से उ ूत होनेवाली कारण-काय ंखला से भौितक जग का िव तार आ ह। वही व तु क िवनाश का भी कारण ह। आिद कारण का ान इतना ाथिमक होगा िक उसे िकसी माण प ित से ा नह िकया जा सकगा। इसी ान क िलए अर तू ने वै ािनक प ित का िवकास िकया था। उनका यह िवचार था िक वै ािनक अनुसंधान म काय से कारण का पता लगाते-लगाते जब हम ऐसे कारण को खोज िनकालगे, िजसक आगे िकसी कारण का खोज पाना किठन हो जाएगा, तभी हम दशन क िन त त व क उपल ध हो जाएगी। इसी िवचार क अनु प उ ह ने कहा था िक जो अ त व क ि से थम ह, उसक ान म अंितम उपल ध

होगी। इस कार अर तू का दशन संबंधी िवचार समझने क िलए वै ािनक िवकास क आव यक ह।

ि या को समझना

िव ान का िवकास

अर तू क अनुसार, साधारण ान से िव ान का िवकास होता ह। अलग-अलग घटना का ान सबसे िन न तर का ान ह। यह ान पशु को भी होता ह, य िक उनम संवेदन श रहती ह, िकतु पशु को अनुभव नह होता। अनुभव क िलए मरणश अपेि त ह। अर तू ने अनुभव क कित को ब त अ छी तरह समझा था। एक ही कार क घटना क अनेक मृितय का धारण होना ही अनुभव ह। जंतु क िवकास म म मनु य क तर पर ही मरणश उ प होती ह। अनुभव क बाद िव ान क बारी आती ह। िव ान ऐंि क य नह ह। वह ऐंि क य से ऊचे तर का ान ह, िकतु िबना ऐंि क य क अनुभव म गुँथे िव ान संभव नह । अर तू ने कहा ह िक य िविश व तु का ान ह। िव ान िविश व तु म िछपे ए सामा य गुण का ान ह। इसी ान से व तु क कारण प होते ह। अर तू क इन िवचार से ाना मक ि या म िव ान का थान मालूम होने क साथ-साथ उसक सामा य व प का भी पता चल जाता ह। िविश वभाव को समझने क िलए अर तू ने भौितक व तु क वभाव को टटोला था।

@BOOKHOUSE1 िव ान का वभाव

प रवतनशील व तु तथा घटना म अर तू को कछ शा त स य िदखाई िदया। उ ह ने यह पाया िक व तु म िनिहत कारण-काय संबंध िनयिमत ह। एक ही कार क प र थितय म दी ई व तु क यापार एक से होते ह। इस िनरी ण से उ ह ने व तु क िन त वभाव क क पना क और जब यह िज ासा क िक येक व तु का वभाव िन त य ह तो उ ह उ र िमला िक येक व तु म अप रवतनीय सार होता ह, िजसक कारण उसका वभाव बदलता नह । िव ान का पहला काम उ ह ने व तु क सार का अनुसंधान करना िन त िकया। अर तू ने िफर िवचार िकया िक व तु का वभाव न बदलने का या कारण ह और उ र म यह पाया िक व तु म कछ अप रवतनीय गुण होते ह, िकतु ऐसे गुण को िटकाने क िलए आधार भी तो चािहए। इस िवचार से अर तू इस नतीजे पर प चे िक येक व तु क सारभूत गुण क आधार क प म य होता ह। इसका पता लगाने का काम भी उ ह ने िव ान को स पा। इस कार िव ान क दो काम िन त हो गए। िव ान का तीसरा काम गित क ोत को खोजना ह। अर तू क िवचार से प रवतन क वभाव को िबना समझे ए व तु का वभाव नह समझा जा सकता और प रवतन का वभाव तभी समझा जा सकता ह, जब गित का कारण समझ िलया जाए। उनका कहना था िक उनसे पहले क िवचारक क यही सबसे बड़ी कमी थी िक वे गित क ोत का पता नह लगा सक थे। िव ान का चौथा काम उ ह ने व तु म होनेवाले प रवतन क उ े य का पता लगाना बतलाया। वह समझते थे िक िबना उ े य को जाने ए प रवतन क या या पूण नह होगी। अर तू पहले दाशिनक थे, िज ह ने कित क प रवतन को सो े य समझा और िव ान क िलए उ े य का अनुसंधान करना आव यक बतलाया।

िव ान क िवभाग यह िन त कर चुकने पर िक िव ान क ारा संपूण जग क व तु क चार कारण को बताकर उनक या या क जाएगी, अर तू क सामने यह न आया िक इस कार क अ ययन क िलए एक िव ान क आव यकता ह अथवा अनेक िव ान क । प ही ह िक एक िव ान पूर जग का अ ययन करने क िलए पया नह हो सकता, इसिलए िव ान क िवभाजन क सम या पैदा ई। अर तू ने देखा िक संसार क तमाम अ त व को िविभ जाितय तथा उपजाितय म बाँटा जा सकता ह, इसिलए उ ह ने एक वग क व तु क अ ययन क िलए एक िव ान क आव यकता का समथन िकया। उनक समय तक भौितक जग का इतना िव ेषण नह हो पाया था िक वह िविभ िव ान क उिचत व प तुत कर पाते, िकतु अपने िनरी ण क अनुपात म उ ह ने िविभ िव ान क व प िन त करने का य न िकया। उनक य न से भावी अ ययन क िनिम िविभ िव ान क नीव तो पड़ ही गई।

िव ान क सीमाएँ

अर तू ने अपने िववेचन म यह प िकया िक िवभागीय िव ान क े सीिमत होने क कारण उनक ारा ा िकया आ ान भी सीिमत वभाव का होगा। इस बात को समझाने क िलए उ ह ने पया तक िदए। येक िव ान क व तुएँ िविश होने से उसे कछ िविश िनयम क आव यकता होगी, िकतु येक िव ान क व तुएँ पूर अ त व क शाखा होने से दूसर िव ान क व तु से संब ह गी और उ ह िविश िनयम क सहायता से समझने का य न करने पर कछ अिधक यापक िनयम क आव यकता मालूम होगी। इन यापक िनयम को िव ान क कोई भी िविश शाखा ा न कर सकगी। इसिलए िव ान क येक िवभाग को कछ यापक िनयम क क पना करनी होगी। इतना ही नह मौिलक अ त व क संबंध म भी कछ स य वीकार करने ह गे। िबना इनक िकसी एक िवभाग क व तु क या या संभव नह होगी। ये स य िव ान क िलए इतने ाथिमक ह गे िक उ ह िस कर पाने क संभावना न होने से वयंिस मानना पड़गा। इस कार अर तू ने यह िदखलाया िक वै ािनक या याएँ ब त ही अधूरी ह गी। वे तीन कार क स य पर आधा रत ह गी—वा तिवक िनरी ण से ा स य, क पत स य और वयंिस स य। िफर भी अर तू ने यह क पना क िक वै ािनक अ ययन से अनुभव म इतनी वृ हो जाएगी िक दशन क अ ितपा िवषय का भान हो सकगा। अर तू क इस िवचार को समझने क िलए वै ािनक िविधय क उसक िववेचन को समझना आव यक ह।

@BOOKHOUSE1 वै ािनक अ ययन क िविधयाँ

अर तू ने व तु क वै ािनक अ ययन क िलए तकशा का िवकास िकया। उ ह ने तक को वतं िवषय न मानकर अ ययन क िविध कहा था। अर तू क इसी िवचार क अनु प म यकाल क लेखक ने तक को ‘ऑगनन’ नाम िदया था। उनक तक संबंधी सािह य म िनगमन शा का पूरा िवकास ा होता ह। ‘कटगरी’ नामक पु तक म पद क कित पर ‘डी इटर ेटशनी’ म तक वा य क कित पर, ‘अनािकिटका ायोरा’ म याय क तीन आकार पर और ‘सोिफ टस एलिकस’ म तकाभास क कित पर िवचार िकया गया ह।

इ ह िववेचन क संग म अर तू का िस भी िमल जाता ह।

तािकक वग का िस ांत तथा पाँच िवधेयधम पद का िस ांत

ं ा मक प ित

अर तू क समय म ं ा मक प ित का चलन था। सोिफ ट ने इसी प ित से काम िलया था। लेटो ने अपने सम त संवाद म इसी शैली से काम िलया था। अर तू ने इस िववाद क िलए उपयु तथा त व िन पण क िलए अनुपयु िस िकया। अर तू का कहना ह िक ं ा मक प ित का उ े य ान ा करना नह , िवप ी क मत का खंडन करना ह, िकतु कवल खंडन ही से ान का उ े य पूरा नह होता। िफर वह कहते ह िक िव ान क िवचार क िन त े होते ह, िकतु ं ा मक िवचार का कोई िन त े नह ह। इस आलोचना का आधार अर तू क समय म चिलत सोिफ ट क िववाद ह। उनक िवचार-िवमश का कोई िविश े नह था। अर तू क तीसरी आलोचना यह ह िक ं ा मक िचंतन साधारण प से वीकत स मितय क आधार पर अ सर होता ह और अंितम बात यह कहते ह िक ं ा मक िचंतन म स य वा य क नह , कवल संभािवत वा य क आव यकता रहती ह। इसे पु करने क िलए अर तू ने बतलाया िक यिद वा तिवक म य पद क थान पर कवल म य पद तीत होनेवाला पद रख िदया जाए तो भी ं ा मक याय बन जाएगा। इस कार अर तू ने ं ा मक प ित क अवै ािनकता का दशन िकया।

आगमन और िनगमन

@BOOKHOUSE1 ं ा मक प ित का ितर कार कर देने पर कवल दो िविधयाँ बच —आगमन और िनगमन। इनक कित पर अर तू ने ‘अनािकिटका पो टीिटओरा’ म िवचार िकया ह। उसे पढ़कर हम इस नतीजे पर प चते ह िक ब त सीिमत अथ म कवल िनगमन को ही वै ािनक िविध माना जा सकता ह। वह वै ािनक ान का अथ िन पण अथवा तािकक ितपादन समझते थे। आगमन क िबना िनगमन संभव नह ह, पर आगमन क ारा ा िकए ए ान का िन पण अथवा ितपादन संभव नह । िन पण क िलए ाथिमक स य क आव यकता होती ह, िज ह िन पण से ा नह िकया जा सकता। ये ाथिमक स य आगमन से ा होते ह। इस कार आगमन क िविध से ा िकया आ ान वै ािनक िविध से ा िकए ए ान से वतं तथा ऊचे तर का ह। इसे िस करने क य न म वै ािनक िविध को िनराश होना पड़ता ह। इस ान क सहज उपल ध होती ह। यहाँ पर सहज उपल ध ान और वै ािनक िन पण क पार प रक संबंध क सम या पर िवचार कर लेना आव यक ह। अर तू क िवचार से य ान क वृ होने पर व तु और गुण क पार प रक संबंध का जो सहज ान होता ह, वह आगमना मक ह—जैसे सभी मनु य न र ह। उसे अनेक ांत क आधार पर ा िकया जा सकता ह, पर इसे वै ािनक िन पण से िस नह िकया जा सकता। वै ािनक िन पण म इसका योग कर िकसी िविश मनु य क न रता िस भी क जा सकती ह। अर तू इन दोन िविधय क सतत योग से उ तम सामा य क उपल ध संभव बताते ह। उनका कथन ह िक कछ ांत क आधार पर हम एक सामा य िन कष ा कर उसका यिद वै ािनक िन पण म योग करते जाएँ तो धीर-धीर ांत क सं या बढ़ती जाएगी और हम अपने सहज उपल ध सामा य क स यता पर अिधकािधक िव ास होता जाएगा। इसी अ यास म उ रो र उ तर

तर क सामा य क उपल ध होगी। धीर-धीर सामा य क प रिध म िव तार होते-होते उ तम सामा य क उपल ध हो जाएगी। सं ेप म अर तू इतना ही कहते ह िक दशन क अ ितपा िवषय का ान सहज ह। उसे िकसी माण से ा नह िकया जा सकता, िकतु वै ािनक िन पण म अिधक काल तक लगे रहकर अनुभव म इतनी वृ क जा सकती ह िक उ उपल ध हो सक। य म िजस ान परपरा का सू पात होता ह, वही िवकास करते-करते चरम उपल धय तक प च जाती ह। अर तू ने उ रवत ान को पूववत ान से िवकिसत होनेवाला माना था। इसीिलए उ ह ने िन पण को साधारण ान और दशन क बीच रखकर वै ािनक िचंतन क अ यास का साधन बतलाया था। उनक ान िस ांत क सबसे बड़ी िवशेषता ह िक वह साधारण ान से दशन तक एक ही ाना मक ि या का िव तार मानते थे। उनक िवचार से संसार का ान पूण होने पर ही ई र क सहज उपल ध संभव ह। q

@BOOKHOUSE1

अर तू का भौितक िव ान

अर तू ने अपनी

ान मीमांसा क अनु प दशन क िवषय को समझने क िलए भौितक जग का अ ययन िकया। उ ह ने कहा था िक वै ािनक अ ययन क अनुभव से दशन क ेय त व क सहज उपिल ध संभव ह। इसी िवचार को उ ह ने अपने भौितक अ ययन क ारा भी काया वत िकया।

कित म आक मकता

अर तू ने व तु क काय-कारण संबंध पर िवचार कर ाकितक िनयम का े िन त िकया। उ ह ने देखा िक चार कारण क अनुप थित म िकसी काय का उ प होना संभव नह । काँसा जब तक मूित का आकार हण नह कर लेता, तब तक मूित नह बनती। इन दोन कारण क अित र पदाथ म गित उ प करने वाला िनिम कारण भी आव यक ह। मूितकार जब तक काँसे को मूित म ढालेगा नह तब तक मूित नह बनेगी। चौथा कारण उ े य ह। मूितकार क मन म मूित बनाने का संक प होने पर ही मूित बनेगी। ये सब आव यक िनयम ह। िकसी घटना म क पूण होने पर बीच क घटना म िन त संबंध होना अिनवाय ह, पर घटना म का पूण िवकास तभी हो सकता ह, जब बीच म गित का अवरोध न हो। यो यता मा से कोई उपादान अथवा िनिम िकसी काय का कारण नह हो सकता। गित का अबाध प िनिम और उपादान क संपक क थायी रहने पर िनभर करता ह। यह संपक कब तक बना रहगा, पहले से जाना नह जा सकता। गित का संचार होने क बाद गितमान व तु का वभाव वह नह रह जाता, जो पहले था। गित क वाह म िकतनी ही अड़चन पैदा हो सकती ह। पदाथ को चािलत करनेवाली चालक व तु वयं उसक पंदन से भािवत होकर ब त कछ बदल जाती ह। इन सब िनरी ण से अर तू ने यह नतीजा िनकाला िक कित म पाई जानेवाली िन तता का एक संदभ होता ह, िजसक बाहर कछ भी िन त नह ।

@BOOKHOUSE1 असीम का अथ

अर तू ने ‘असीम’ क वभाव पर िवचार कर यह बतलाया िक भौितक व तुएँ असीम नह हो सकत । व तुएँ दो ही कार क हो सकती ह—सरल अथवा जिटल। जिटल व तुएँ असीम नह हो सकत , य िक वे ब त से सरल अवयव से बनी होती ह और उन अवयव क असीम होने पर येक जिटल व तु म एक से अिधक असीम अवयव एक हो जाएँग।े सरल व तु म से कोई असीम नह हो सकती, नह तो वह अ य सीिमत सरल व तु को अपने म आ मसात कर न कर देगी। असीम व तु का कोई थान नह हो सकता। पहली बात तो यही ह िक असीम व तु िकसी थान िवशेष म रह ही नह सकती। अ य तक से भी यही िन कष ा होता ह। असीम व तु या तो सावयव हो सकती ह या िनरवयव। अवयव असीम होने पर असीम थान क आव यकता होगी। िनरवयव व तु क असीम होने क दो संभावनाएँ हो सकती ह—पूरी व तु असीम होने पर पूर िव म या होगी, तब वह या तो सदैव थर ही रह सकती ह या सदैव प र िमत रह सकती ह। व तु म थानीय गित होती ह। थान क िबना यह भी संभव नह होती। थान क होने का माण शू य क प रभाषा म िमलता ह। शू य क िलए कहा जाता ह िक वह व तु से र थान ह। थान ही नह होता तो र या होता? इस कार अर तू ने यह ठहराया िक थान होता ह। अब उ ह ने यह सोचना शु कर िदया िक वह या

होता ह? तीन संभावना पर उनक िनगाह पड़ी। थान भौितक िपंड हो सकता ह। िपंड को उ प करनेवाला भौितक पदाथ हो सकता ह अथवा उनका आकार हो सकता ह। इनम से एक को भी उ ह ने तकसंगत नह पाया। थान यिद िपंड होता तो दूसरी व तुएँ कहाँ रहत , िफर थान क िलए थान क आव यकता होती। थान को कित या आकित भी नह माना जा सकता, य िक ये दोन व तु म रहते ह। थान व तु से अलग होना चािहए, नह तो वह व तु क न होने क साथ ही न हो जाएगा, ऐसा होता नह ह। अंत म वह यह तय करते ह िक थान व तु क बाहर क वह गितहीन सीमा ह, जो व तु को अपने म थत रखती ह। अर तू भौितक व तु क थान म होने क तीन अथ बतलाते ह। कछ व तुएँ सचमुच थान म होती ह, कछ थान म होने क यो यता रखती ह और कछ को इसिलए थान म मान िलया जाता ह िक उनका कछ भाग थान म रहता ह। समावयव व तु क थान म होने पर उनक उन अवयव को भी थान म मान िलया जाता ह, जो थान म नह होते, य िक अवयव से अलग होकर वे थान से िघरने क यो यता रखते ह। गितशील व तुएँ िकसी थान िवशेष म न रहने पर भी थान म मानी जाती ह, य िक उनम थान म होने का वभाव रहता ह। आकाश को इसिलए थान म माना जाता ह िक उसक कछ अवयव थान म रहते ह। अर तू ने इस या या से यह िदखाने का य न िकया िक भौितक व तुएँ िकसी-न-िकसी प म थान म रहती ह। उसी म वे गित करती ह और िकसी कार का अवरोध न होने पर वे िकसी िन त थान क ओर बढ़ने का य न करती ह।

@BOOKHOUSE1 शू य का अथ

पाइथागोरस क मत म शू य को व तु क वभाव का कारण माना गया था। उ मत म सं या से व तु क उ पि मानी गई थी, इसिलए उ ह एक-दूसर से पृथक करने क िलए बीच-बीच म शू य थान होने क क पना क गई थी। अर तू ने अनेक यु य से शू य थान क क पना को अवा तिवक ठहराया। उ ह ने कहा िक व तु क चार ओर क थान को शू य मानने पर व तु क िन त आकार का समथन किठन होगा। व तु का शू य म थानांतरण समझना किठन होगा और गितमान व तु का िवराम असंभव हो जाएगा। इस कार अर तू ने यह िनणय िकया िक भौितक जग म शू य थान कह नह होता। यह हो सकता ह िक िकसी थान म भौितक िपंड न हो, पर यह नह हो सकता िक िकसी थान म पदाथ ही न हो। त व से शू य थान जग म नह ह। शू य का अथ वायु से पू रत थान हो सकता ह।

समय क या या

अर तू ने पूव और उ र अथवा पहले और पीछ क िवचार से समय को गित क सं या बतलाया। गित एक थान से ारभ होती ह और दूसर थान पर समा होती ह। अिवराम होने पर भी व तु क थानांतरण म पहले और पीछ का अंतर उ प हो जाता ह। गित क इन का पिनक अंश को समय क ‘अब’ कहलानेवाले भाग म थत समझा जाता ह। ये ण पर पर संल न रहने पर भी एक-दूसर से िभ होते ह, य िक इनका थानगत संदभ एक नह होता। िफर भी वे गित क िनरतरता क कारण एक-दूसर से इतने सट रहते ह िक समय क वाह म कह भी संिध खोज पाना किठन हो जाता ह। ण म बँट रहने क कारण ही अर तू समय को गित क सं या कहते ह।

समय क इस या या से उ ह मालूम आ िक भौितक घटनाएँ समय म उसी कार घिटत होती ह जैसे व तुएँ थान म थत होती ह। व तु का थान और समय से अिनवाय संबंध होता ह, य िक प रवतन क दो ही मु य अथ ह—िकसी व तु का एक थान से दूसर थान म चला जाना और समय क एक अंश से दूसर अंश म प च जाना। इसिलए कहा जाता ह िक समय ही व तु का नाश करता ह। इस अ ययन से उ ह िश ा िमली िक िन य व तुएँ काल-प र छद से वतं ह।

गित संबंधी िवचार

इतनी ासंिगक बात पर िवचार कर लेने पर अर तू सभी कार क प रवतन पर ि डालते ह। वह कित म चार कार क प रवतन देखते ह— 1. भाव से भाव म। 2. भाव से अभाव म। 3. अभाव से भाव म। 4. अभाव से अभाव म। इनम से तीन ही अ ययन क िवषय हो सकते ह, य िक अभाव क अभाव म प रवतन होने का अथ अ ात व तु का प रवतन ह। अभाव से भाव म प रवतन होने पर व तु क उ पि होती ह। भाव से अभाव म प रवतन होने पर व तु का िवनाश होता ह। इन प रवतन क पूण होने पर उ पि और िवनाश क अव थाएँ भी पूण होती ह। अधूर रहने पर उ पि और िवनाश भी अधूर रहते ह, िकतु इन प रवतन को गित नह कहते। गित म भाव से भाव म ही प रवतन होता ह। इस कार क प रवतन तीन होते ह— 1. गुण संबंधी। 2. प रमाण संबंधी। 3. थान संबंधी। गुण संबंधी प रवतन िवकार कहलाता ह। प रमाण संबंधी प रवतन को बु और स अथवा बढ़ना-घटना कहते ह। तीसरा थान संबंधी प रवतन गमन ह। यह दो कार का होता ह— 1. च ाकार। 2. रखाकार। िवकार म व तु का इतना प रवतन नह होता िक वह कोई दूसरी व तु कही जा सक। िवकार कवल ऐसे ही प रवतन उ प करता ह, िजनसे व तु का प य -का- य बना रह जैसे—ठडी व तु का गरम हो जाना, गरम से ठडा हो जाना, मीठ से ख ा और ख से मीठा हो जाना। िवकित क िनरी ण क आधार पर अर तू ने िनज व और सजीव व तु म भेद करने का य न िकया ह। िनज व व तु म इि य िवकार नह हो सकते। िनज व व तु को या मालूम िक कौन से प रवतन हो रह ह। सजीव ािणय को इस तरह का ान होता ह। वृ और स क िवषय म अर तू ने अिधक कछ नह कहा ह। उ ह ने बताया िक िवकार होने पर ही वृ अथवा स हो सकता ह। इस कार गित क तीन भेद मानते ए भी उ ह ने दो को िमला िदया, िफर वृ और स को थान म थत कहकर तीन को एक म घटा िदया। सचमुच अर तू ने गित क तीन भेद करते ए भी गमन को

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ही गित माना ह। इसी म पूरी व तु गितमान होती ह।

गमन का वभाव

रखाकार गित होने पर गितमान व तु सीधी रखा पर नीचे दाएँ और बाएँ चलती ह। च ाकार गित म पूरी व तु एक ही थान पर रहते ए अपनी अटल धुरी क चार ओर घूमती ह। अर तू इस दूसर कार क गित को ही ाथिमक तथा पूण िस करते ह। उनका कथन ह िक च ाकार गित अिवराम हो सकती ह। वह िन त हो सकती ह और उसम वेग समान रह सकता ह। रखाकार गित आिद और अंत से सीिमत रहती ह, य िक वे रखाएँ िजन पर गित होती ह, अनंत नह हो सकत । िजनम आिद और अंत ह, वे पूण नह हो सकत । च ाकार गित िकसी सीिमत रखा पर तो होती नह ह। अटल धुरी पर घूमनेवाली व तु िनरतर घूमती रह सकती ह। उसका थानांतरण तो होता नह , इसिलए उसम आिद और अंत नह होते। रखाकार गित अिन त होती ह, य िक वह िविभ थानीय संदभ को पार करती ह। च ाकार गित म व तु अपने िन त संदभ से बाहर नह जाती। अपने थानीय संदभ से हटकर दूसर थानीय संदभ म जाते ही व तु का ग या मक वभाव िभ हो जाता ह। वेग क समानता क ि से भी च ाकार गित रखाकार गित क अपे ा पूण होती ह। रखाकार गित का वेग आिद से अंत तक एक नह रह सकता। इसका कारण यह ह िक गितमान होने से पूव चलनशील व तु का वेग शू य होता ह। चिलत होने पर िजतना वह आगे बढ़ती ह, उतना ही उसका वेग बढ़ता जाता ह, िकतु वह अपने िवराम थान तक उसी वेग से नह जा सकती। इसीिलए अंितम िबंदु िजतना पास आता जाता ह, वेग उतना ही घटता जाता ह। च ाकार गित का न कोई ारिभक िबंदु होता ह, न अंितम। इसिलए च ाकार गित म िनरतर एक ही वेग रह सकता ह। इन िवशेषता क कारण अर तू ने च ाकार गित को ाथिमक तथा िन य माना। उ ह िवचार क आधार पर भौितक व तु को गित देनेवाले थम चालक क वभाव का अनुमान करने का य न िकया।

@BOOKHOUSE1 थम चालक का अनुमान

गमन क वभाव क अ ययन से अर तू ने यह िन य कर िलया था िक च ाकार गित का क ही भौितक व तु म िनरतर गित उ प कर सकता ह। अब उनक सामने यह न था िक वह कौन सी व तु ह। उ ह ने देखा िक अ न, वायु, जल और पृ वी म से िकसी म भी च ाकार गित क साम य नह ह। ये चार त व रखाकार गित ही कर सकते ह। अ न और वायु का वभाव ऊपर जाने का ह, पृ वी और जल का वभाव नीचे जाने का ह। इसिलए उ ह ने अनुमान लगाया िक इन चार भौितक त व से िभ कोई पाँचवाँ त व ह, िजसका वभाव अहिनश च क भाँित घूमने का ह। इसे अर तू ने ‘ईथर’ कहा। ‘ईथर’ का अथ सदैव भागते रहनेवाला होता ह। यहाँ पर अर तू वै ािनक क पना को ाचीन धािमक भावना से िमला देते ह। वह कहते ह िक ाचीन यूनािनय ने भौितक जग से पर देवलोक क क पना क थी और यह माना था िक भौितक घटनाएँ देवता क इ छा पर िनभर ह। वै ािनक ि से भी संसार का ऊपरी भाग िजसे आकाश कहते ह, िनरतर चिलत त व ‘ईथर’ से बना ह। ‘ईथर’ का अ य त व से संपक ह। इसीिलए ‘ईथर’ क गित अ य

त व को गितमान करती रहती ह। इस कार आकाश ही थम चालक ह। अटल धुरी पर घूमने क कारण उसका थानांतरण नह होता और इस अथ म वह िन ल ह।

थम चालक का वभाव

प रवतनशील चालक िव को िनरतर गित नह दे पाता। थम चालक म िकसी कार क प रवतन नह होते। इसक उ पि और इसक िवनाश क क पना नह क जा सकती, य िक ये प रवतन िवकार, वृ , स आिद प रवतन क िबना संभव नह ह। थम चालक से बाहर कछ भी नह ह। उससे बाहर न थान ह, न शू य ह और न समय ह, िकतु वह भी असीम नह ह। आकाश यिद असीम होता तो उसक क से प रिध तक क दूरी भी असीम होती और उस दशा म च ाकार गित क संभावना ही न हो जाती। असीम होने पर असीम समय म ही उसका च र पूरा होता, िकतु ऐसा नह होता ह। वृ ाकार होने से ही उसका सीिमत होना िस होता ह, य िक असीम रखा को मोड़कर वृ नह बनाया जा सकता। सोच-समझकर अर तू ने आकाश को सीिमत वृ ाकार िपंड माना। वह इसे पूण मानते थे और उनक िवचार से असीम पूण नह हो सकता। अर तू ने आकाश म चार प रिमितयाँ मानी थ । ये ऊपर, नीचे, दाएँ और बाएँ ह। उनका कथन ह िक आकाश म दो िसर ह। हम अपने ऊपर जो भाग िदखाई देता ह, वह आकाश का नीचेवाला िसरा ह। ऊपरवाला िसरा हम देख नह सकते। आकाश क दािहने भाग म िसतार चमकते ह और बायाँ भाग वह ह, िजसम वे अ त हो जाते ह। आकाश को वह जाित का ही नह , जीवन का भी ोत मानते थे। वह आकाश को जीवनमय कहते थे। इसे वह देवता का िनवास थान भी समझते थे। इस कार हम देखते ह िक अर तू ने अपने वै ािनक िचंतन क ारा उ ह िव ास को पु िकया, िज ह ाचीन िवचारक ने िबना िकसी अ ययन, अनुसंधान और यु य क मान िलया था। अर तू क वै ािनक अ ययन का यह अंश भौितक जग क िव तृत अ ययन क आधार पर सू म अ त व का अनुमान करने का संकत देता ह, िकतु उनक वै ािनक सािह य म चिलत अंधिव ास को िमटाने का पूरा यास िकया गया ह। उनक समय तक आकाशगंगा, उ कापात आिद घटना क अलौिकक या याएँ चिलत थ । अर तू ने िव का ऊ व और अधोलोक म िवभाजन कर यह िदखलाने का यास िकया िक चं मा क नीचे का भाग पूण प से भौितक ह। दैवीय न होने पर भी दैवीय समझी जानेवाली घटना क अधोलोक म थित िदखलाकर तथा भाप, ताप आिद को उनका कारण बतलाकर एक ओर उ ह ने परपरागत अ ान का िनराकरण िकया और दूसरी ओर भौितक िव ान क िवकास क ेरणा दी।

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का िवभाजन

ाचीन यूनािनय क िवचार से पृ वी और वग दो िभ लोक थे। वग म अमर का िनवास था और इस लोक क घटनाएँ उ ह क इ छा पर िनभर थ । अर तू ने इस धारणा क भौितक या या तुत क । उ ह ने कहा िक आकाश, पृ वी, जल, वायु और अ न से नह बना ह। वह ईथर नामक सू म त व से बना ह। ईथर क च ाकार गित से ही चार भौितक त व को, िजनका थान आकाश अथवा वग से नीचे ह, गित िमलती ह। वग का िव तार चं मा से ऊपर ह। सूय, चं मा, न और गु इसी ईथर िनिमत वग म थत ह। इस कार अर तू ने चं मा को िवभाजन रखा मानक िव को ईथर से बने ए ऊ वलोक और चार भौितक

त व से बने ए अधोलोक म बाँट िदया। अधोलोक चं मा से नीचे पृ वी तक फला आ ह। इसम एक क बाद एक चार त व क घेर अथवा मंडल ह। अ यंत लघु होने क कारण आकाश क ठीक नीचे अ न का मंडल ह। उसक नीचे वायु, वायु क नीचे जल और जल क नीचे अथवा गोलाकार जग क क म पृ वी थत ह।

आकाश क घटनाएँ

अर तू क सािह य म उन ि संबंधी घटना को, िज ह साधारण जन िसर क ऊपर घिटत होते देखकर आकाश म थत मानते ह, अंत र म थान िदया गया ह। आकाश िपंड क िवषय म उनका ान ब त अपूण था। वह वयं कहते थे िक दूर होने से वह आकाश िपंड क सफल िनरी ण म असमथ ह, िफर भी आकाश क घटना क संग म उ ह ने न क संगीत आिद क प म चिलत िकवदंितय को अवा तिवक िस करने का य न िकया। डी कोलो म उ ह ने बतलाया ह िक न म वतं प म गित नह होती। वे कवल गित करते ए तीत होते ह, य िक ई र क वृ िजनम न जड़ ए ह, घूमते रहते ह। अर तू ने पाइथागोरस क कथन का िवरोध िकया िक न से एक कार का संगीत िनकलता रहता ह। उ ह ने कहा िक आकाश क िपंड म यिद गित होती तो उनसे संगीत नह , तुमुल कोलाहल उ प होता, जो नीचे क संसार को किपत कर चूर-चूर कर देता, िकतु उनम गित नह ह। q

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अर तू क राजनीित

अर तू क ‘राजनीित’ नामक पु तक उनक ‘सदाचार शा

’ नामक पु तक से घिन संबंध रखती ह। वा तव म ये दोन पु तक एक-दूसर क पूरक ह। दोन पु तक म य -त एक-दूसर क ित संकत िमलते ह। पर कछ सम याएँ ऐसी ह, जो अर तू क ायः सभी रचना क संबंध म समान प से पाई जाती ह। इन रचना का वतमान प इनक संपादक क ारा िदया आ ह, जो आधुिनक शोधािथय क िलए किठनाइयाँ उ प करता ह। अनेक रचना क अवांतर पु तक का म इतना उलझा आ ह िक उसका सवस मत हल उपल ध हो ही नह सकता। िवशेष प से यह किठनाई मेटाफ िजका (परािव ा) और पॉिलिट स (राजनीित) नामक रचना क िवषय म सामने आती ह। अनेक थान पर लेखक ने ित ा क ह िक वह अमुक िवषय पर आगे चलकर िवचार करगा, पर उसने ऐसा नह िकया। िजस बात का उसने आगे िवचार करने का संकत िदया ह, उसका िववेचन ब त दूर आगे चलकर िकया ह। अनेक बार जो बात उसने एक थान पर कही ह, उसका अ य कह वयं िवरोध अथवा खंडन िकया ह। पुनरावृि क तो कोई बात ही नह । ऐसी िविच थित का कारण यह ह िक अर तू क कािशत ंथ—वे ंथ िजनको उ ह ने अंितम एवं पूण प देकर वयं कािशत िकया था; सब लु हो गए। जो रचनाएँ आज उनक नाम से उपल ध ह, वे या तो वयं उनक ारा अथवा उनक िश य ारा तुत िकए उनक या यान क संि मृित सू ह। इ ह को उनक संपादक ने अपनी सूझबूझ क अनुसार नाना ंथ क प म ंिथत कर िदया ह। संपादन का काय लेखक क जीवन काल से सैकड़ वष बाद आ, इसीिलए उनक सं दाय क अ य िव ान क कछ रचनाएँ भी िवचार सा य क आधार पर अ ात भाव से अर तू क रचना रािश म स मिलत हो गई। ब त सी साम ी वयं अर तू ने ही नो स क प म जानकारी का सं ह करने क िलए एकि त क थी। इनम से ब त कछ न हो गई और कछ रचना म संगृहीत हो गई। इ ह सब कारण से अर तू क राजनीित क पु तक का म भी एक सम या बन गया ह। आधुिनक िव ान और संपादक ने इस म क बड़ी बारीक क साथ समी ा क ह। ाचीन ीक ंथ म पु तक क भाग क गणना वणमाला क अ र क ारा क जाती थी। ंथ का एक भाग पु तक कहलाता था और उसका संबंध िवषय िववेचन से नह होता था। कारण यह था िक ंथ उस समय िवशेष कार से तैयार िकए ए चमड़ पर िलखे जाते थे। ंथ का िजतना भाग एक खाल पर आ जाता था, एक पु तक कहलाता था। लेटो क रप लक म 10 और अर तू क राजनीित म 8 पु तक ह। इसका अथ यह ह िक थम ंथ 10 खाल पर िलखा जाता था और दूसरा 8 खाल पर। कॉनफोड ने इसीिलए अपने रप लक क अनुवाद म इस चम बु का प र याग कर िवषय क ितपादन क ि से अ याय क क पना क ह। इस िवषय पर ायः सभी िव ा एकमत ह िक राजनीित एक कत अथवा समरस रचना नह ह। यह पर पर संबंध रखनेवाले िविवध िनबंध का समूह ह, जो िकसी आदश म से ंिथत नह िकए जा सक। यह भी संभव ह िक ये सब िनबंध िविभ समय पर तुत िकए गए ह । िजन पृथक-पृथक िनबंध का सं ह इस ंथ को बतलाया जाता ह, उनक सं या 5 या 6 ह। थम िनबंध म गृह थी का वणन िकया गया ह, जो िनतांत वाभािवक और आव यक ह, य िक गृह थयाँ ही

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मशः िवकिसत होकर कालांतर म नगर-रा का प धारण कर लेती ह। दूसरा िनबंध आदश यव था का वणन करता ह। इसम उन आदश यव था का भी वणन ह, िजनका कवल सै ांितक प म ताव िकया गया था और उन यव था का भी वणन ह, जो अनेक रा म यवहार म आ रही थ और आदश प होने क कारण स मान क ि से देखी जाती थ । तीसर भाग म राजनीितक यव था क सामा य िस ांत क चचा ह जैसे नाग रकता का व प, संिवधान अथवा यव था क भेद, िविवध यव था म याय िवतरण क िस ांत एवं राजपद क िस ांत इ यािद। चौथे भाग म जो िक राजनीित क दो पु तक म फला आ ह, ि या मक एवं वा तिवक राजनीित का वणन ह। यवहार म िविवध कार क िस ांत म िकस कार समझौता और स म ण होता ह और आदश िस ांत िकस कार नीचे उतर आते ह, ये सब िवषय इस भाग म पाए जाते ह। राजनीित क चौथी और पाँचव पु तक इसी िवषय को समिपत ह। छठी पु तक को भी कछ िव ा इसी चौथे भाग क अंतगत मानते ह। कछ अ य िव ान इसको पाँचवाँ भाग मानते ह। इस भाग म उन िविवध उपाय का वणन ह, िजनक ारा िविवध कार क यव था को थायी बनाने म सफलता िमलने क आशा क जा सकती ह। शेष दो पु तक (सातव और आठव ) म राजनीित क अंितम (छठ) भाग का राजनीितक आदश और आदश यव था का िववरण तुत िकया गया ह। इन भाग को अर तू ने मैथ स कहा ह, िजसका अथ िवभाग या यव था ह। कह नह सकते िक उपयु छह िवभाग और आठ पु तक को यह परपरागत म वयं अर तू ने िदया था अथवा उनक रचना क आरिभक संपादक ने, परतु आधुिनक िव ान ने इस म को एक सम या क प म ही देखा ह। इसका कारण यह ह िक तृतीय पु तक क अंितम खंड म यह कहा गया ह िक अब आदश अथवा े यव था का वणन आरभ होगा, पर वा तव म यह वणन सातव पु तक म आरभ आ ह। इतना ही नह , सातव पु तक का थम वा य कछ बदले ए प म तृतीय पु तक क अंितम वा य क प म िव मान ह, िजससे यह सूिचत होता ह िक अर तू अथवा उसक ारिभक संपादक का उ े य सातव पु तक को तृतीय पु तक क उपरांत रखने का था। इसक अित र चौथी पु तक म े यव था क वणन क ओर संकत ह, पर सातव -आठव पु तक म चौथी-पाँचव और छठी पु तक क ित कोई संकत नह ह। इससे भी यही सूिचत होता ह िक सातव और आठव पु तक तृतीय पु तक क त काल बाद आनी चािहए थ और चौथी, पाँचव तथा छठी उनक प ा आनी चािहए थ । इसी कार चौथी, पाँचव और छठी पु तक क म क िवषय म यह आपि ह िक छठी पु तक म चौथी पु तक क समा क िवषय को चालू रखा गया ह और पाँचव पु तक का िवषय इन दोन क म य म एक यवधान क प म रख िदया गया ह। अिधक अ छा म होता 4, 6, 5 पु तक का। इ ह अड़चन को यान म रखकर कछ िव ान ने राजनीित क पु तक क नवीन म का ताव िकया ह। अिधक िवचार करने पर यही उिचत तीत होता ह िक राजनीित क पु तक का परपरागत म ही अ य तािवत म क अपे ा अिधक तकस मत ह। यह जो कहा जाता ह िक तृतीय पु तक क प ा सातव पु तक आनी चािहए तो यह बात भाषा क िवचार से भले ही ठीक हो, तक क ि से ठीक नह ह। आदश यव था क िवषय म अपना िवचार तुत करने क पूव िव मान यव था और तािवत यव था

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क व प, उनक ुिटय और उनक आलोचना का ान आव यक ह। इ ह क आधार पर आदश यव था क भवन का िनमाण हो सकता ह। इसीिलए तृतीय पु तक क प ा राजनीित क वा तिवकता का अ ययन आव यक ह। इसी कार सभी कार क यव था को थािय व दान करनेवाले उपाय पर िवचार करने से पूव यव था म ांित और प रवतन होने क कारण जानना आव यक ह, इसीिलए पाँचव पु तक का चौथी पु तक क प ा आना आव यक ह। इन सब यु य क आधार पर कहा जा सकता ह िक य िप राजनीित क पु तक का परपरागत म भले ही िनतांत आदश न हो, तथािप उनक जो नवीन म तािवत िकए गए ह, उनक अपे ा वे अिधक तकसंगत ह। आरभ म सम संगिठत समाज और राजनीित क जड़ गृह थी क व प का िववेचन करक तदुपरांत मनीिषय ारा क पत ंथगत आदश यव था एवं सुशािसत माने जानेवाले रा म वा तव म लागू िकए गए े संिवधान का िवचार िकया गया ह। इसक उपरांत राजनीित क व प क और संिवधान क संभािवत कार क परखा तुत क गई ह। इसक प ा उपयु कार क िविभ कार क िम ण से जो वा तिवक संिवधान उ प ए ह अथवा हो सकते ह एवं इन िविभ कार क संिवधान क छ छाया म िकस कार क मनोवृि , जनता का िवकास और िकस कार का याय संभव हो सकता ह—इस सम उलझन को सुलझाने का य न िकया गया ह। तदुपरांत िविभ कार क संिवधान म िकन कारण से ांितयाँ उ प होती ह, यह समझाया गया ह। िजस कार रोग हो जाने क प ा उसका उपचार िकया जाता ह, इसी कार ांितय क कारण क प ा संिवधान को ांित से बचाने और थायी बनाने क उपाय बतलाए गए ह और अंत म अर तू ने सार अनुभव और ान क आधार पर सम अ ययन क िनचोड़ क प म आदश संिवधान एवं आदश शासन यव था क अपनी क पना तुत क ह। अर तू क रचनाएँ िजस प म उपल ध होती ह, उसको देखते ए यह म यु यु ता क ि से अ यंत संतोष द ह। इसक आगे यह न आता ह िक इस ंथ क रचना कब ई? इस न का उ र किठन इसिलए हो गया, य िक यह पता नह िक वयं अर तू ने इस ंथ को िकस प म छोड़ा। यिद यह मान िक अर तू ने इस पु तक को िव मान म िदया, तब तो यही वीकार करना पड़गा िक इस ंथ को उ ह ने िकसी िविश अवसर पर और सीिमत समय क भीतर तुत प िदया होगा। यह बात दूसरी ह िक इस ंथ म स मिलत साम ी का संकलन उ ह ने अलग-अलग अवसर और थान पर िकया हो—ऐसा तो सभी ंथकार करते ह। अर तू क ंथ क सम या अ य ंथकार क सम या से िभ ह। उनक ंथ क जो सूिचयाँ उपल ध होती ह, उनम से ब त ंथ सवदा क िलए िवलु हो गए ह एवं कछ नाम उन सूिचय म ऐसे िमलते ह, जो उनक कछ उपल ध ंथ क भाग मा ह। इससे यह िन कष िनकलता ह िक उनक ंथ क अलग-अलग भाग पृथक-पृथक ंथ माने जाते थे। सदाचार शा क संबंध म जो दो एिथ स नामक ंथ अर तू कत माने जाते ह, उनक कछ भाग िबलकल एक समान और शेष भाग एक-दूसर से िभ ह। यिद यह माना जाए िक अर तू क रचना का वतमान प उसक संपादक का िदया आ ह तो ंथ क समय क सम या अ यंत जिटल हो उठती ह। एक िवक प यह भी हो सकता ह िक कछ ंथ को अर तू ने वयं ंिथत और कािशत कर िदया हो और कछ को उनक संपादक ने संपािदत करक कािशत िकया हो। इस अिन त थित क कारण आधुिनक िव ान ने अनेक कार क क पनाएँ क ह। जमन िव ा बैनेर याएगर ने अपने िस ंथ ‘अर तू—उनक िवकास क

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इितहास का आधार’ म बड़ प र म से अर तू क रचना क िविवध तर को एक-दूसर से पृथक िकया ह और उनक समय को िनधा रत करने का यास िकया ह। याएगर ने बतलाया ह िक राजनीित क अंितम दो पु तक अर तू क ारिभक रचनाएँ ह, य िक उनम उनक गु लेटो का भाव ि गोचर होता ह। िजन रचना म इस कार का भाव पाया जाता ह, वे उस समय क रचनाएँ मानी जानी चािहए। िजस समय तक अर तू लेटो क आदशवाद क भाव से मु नह हो पाए थे। इसक िवपरीत याएगर क अनुयायी फॉन ऑिनम ने याएगर क प ित का अनुसरण करते ए ‘अर तू क राजनीित क उ पि का इितहास’ नामक अपने ंथ म यह िन कष िनकाला ह िक दो अंितम पु तक सबसे पीछ क रचनाएँ ह। वाकर ने एथस क संिवधान क संबंध म एनसाइ ोपीिडया ि टिनका म िलखा ह िक एथस का संिवधान पॉिलिट स क प ा काल क रचना ह, य िक उसम स ा िफिलप क मृ यु (ई.पू. 336) क पीछ क िकसी घटना का संकत नह ह, जबिक एथस क संिवधान म इसक प ा ई.पू. 329 तक क घटना का उ ेख ह। वाकर का मत ह िक पॉिलिट स अर तू क एथस क तीय िनवास काल क रचना ह अथा ई.पू. 335 से ई.पू. 322 क म य क रचना ह। अर तू क कछ पु तक का ि कोण यथाथवादी और कछ का आदशवादी ह, िजसक कारण इनको िविभ समय क रचना का सं ह मा माना गया ह। वाकर क मत म यह दलील गलत ह, य िक कोई भी लेखक ऐसा ही करता। जहाँ वह यथाथ थित का वणन करते ह, उनका ि कोण यथाथवादी ह तथा जहाँ वह आदश संिवधान क परखा तुत करते ह, वह उनका ि कोण आदशवादी ह। िजन दोष और खािमय क कारण इस पर असंगित का आरोप लगाया जाता ह, वैसे दोष तो आजकल क रचना म पाए जाते ह। इसीिलए पॉिलिट स को अर तू क जीवन क ौढ़तम भाग क अथा उस समय क , जबिक वह ‘लीकयस’ म मु यािध ाता थे, रचना वीकार करना ठीक होगा। इसक साथ ही यह भी वीकार करना ठीक होगा िक यह पु तक एक इकाई ह और सु ंिथत ह। ायः सभी पु तक म आगे-पीछ क पु तक क ित संकत िमलते ह। अर तू क उपल ध रचना और सम रचना क पुरानी समी ा को देखने से पता चलता ह िक उ ह ने अपने जीवन म िकसी समय ऐसा संक प अव य िकया होगा िक म सम ान को संगृहीत करक सं िथत कर जाऊगा। ब त संभव ह िक यह संक प अकादमी म अ ययन करते समय िकया हो। इतना तो इस समय उपल ध होनेवाले यूनानी सािह य से पता चलता ह िक अ य िकसी ीक लेखक क मह वाकां ा इस कार क नह थी। अपने इस संक प क अनुसार, उ ह ने त य का सं ह भी ब त पहले से आरभ कर िदया था और होना भी ऐसा ही चािहए था। इससे यह अनुमान तो नह िनकाला जाना चािहए िक उनक सब रचनाएँ फटकर असंगत त य क गठ रयाँ भर ह। ऐसा मानना िव क एक महा बु मान क ित घोर अ याय होगा। अर तू क रचनाएँ शैली क ि से तीन कार क ह— 1. संवादा मक रचनाएँ, जो उ ह ने अपने गु क शैली का अनुकरण कर तुत क थ , परतु जो अब नह िमलत । ाचीन काल म इनक पया याित थी और अनेक िव ान ने इनका अनुकरण िकया था। इनक लु हो जाने का कारण यह तीत होता ह िक इस कार क कला म अर तू कवल अनुकरण करनेवाले थे। इसीिलए उनक रचनाएँ अपने गु क रचना क तुलना म अिधक समय तक िटक नह सक । 2. दूसर कार क रचनाएँ अनेक कार क सूिचयाँ थ , िजनको अर तू, उनक सहयोिगय और िश य ने प र म

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और खोज से तुत िकया था तथा िजनका उपयोग िश ण और गं◌थ रचना म िकया गया था। एथस का संिवधान इस कार क रचना से बचा रहा ह और यह वयं अर तू क रचना माना जाता ह। अर तू िनगमना मक (इड टव) दाशिनक थे, इसीिलए उनक िवचार प ित और ंथ रचना इस कार क सूिचय क आधार पर ही चल सकती थी। अब इस कार क सूिचयाँ तो उपलबध नह होत , पर इतना िन य ह िक उनम से ब त का िनचोड़ उनक िविवध रचना म आ गया ह। 3. तीसर कार क रचनाएँ अर तू क िविवध िवषय क मृित-संिहताएँ ह। आजकल अर तू क यही रचनाएँ उपल ध ह। अपने िव ालय म िविवध िवषय पर या यान देना अर तू क पाठिविध का व प था। इन या यान म वह िजस िवषय का ितपादन करते थे और अंत म िजस िन कष पर प चते थे, उनको मृित क सहायता क िलए सू प म वह भी िलखते रह ह गे और उनक िश य भी। यही या यान क सू अर तू क उपल ध रचनाएँ ह। इनको समािधक आठ भाग म िवभ िकया जा सकता ह — 1. अनुभव क िव ेषण का शा अथवा तकशा । 2. भौितक िव ा। 3. परािव ा, थम दशन अथवा देविव ा। 4. जीव िव ान। 5. आ म िव ान या मनोिव ान। 6. सदाचार शा । 7. राजनीित शा । 8. सािह य और भाषा कला। इस कार अर तू क राजनीित उनक राजनीित शा संबंधी रचना म से एक ह। इसी कार क अ य उपल ध होनेवाली रचनाएँ एथस का संिवधान और आइकोनोिमका (गृह बंध िव ा) ह। लु ई रचना म ो टकस, राजिव ा और औपिनवेिशक का नाम िलया जाता ह। इनम से एक क रचना पस ीप क िकसी राजा को उपदेश देने क िनिम क गई थी और शेष दो क रचना िसकदर को उपदेश देने क िलए। यह संभव ह िक इन लु ए िनबंध क िवचार अर तू क पॉिलिट स म भी कह आ गए ह । आइकोनोिमका अर तू क उपल ध ंथ म िगनी अव य जाती ह, पर सभी िव ा इसको पा ा कालीन रचना मानते ह। अिधक संभावना यही ह िक यह उनक परपरा क िकसी िव ा क ारा ब त वष क प ा िलखी गई ह। इसक तीन पु तक म से एक पु तक (अंितम) तो कवल लैिटन भाषा क अनुवाद म िमलती ह, मूल ीक प म नह िमलती। पॉिलिट स क आरभ म अर तू ने यह िस िकया ह िक रा य कोई कि म अथवा मनु य क ऊपर बाहर से लादी ई सं था नह ह। इसका िवकास मनु य क आंत रक वभाव से आ ह। उनक गु लेटो का मत था िक रा य अथवा नगर-रा य मानव का ही िवकिसत प ह। इसी त य क पुि अर तू ने भी क ह। अर तू का कहना ह िक मनु य सामािजक ाणी ह अथा वह दूसर मनु य क साथ िहल-िमलकर रहता ह और इसी सामािजकता क ारा उसक व प क अिधकािधक अिभ य संभव ई ह। अर तू ने जीव िव ान का भी अ यंत गंभीर और िव तृत अ ययन िकया था। उ ह ने यह भी देखा था िक एक साथ िमल-जुलकर रहना कवल

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मनु य म ही नह और भी ब त से ािणय म पाया जाता ह, पर अ य ािणय क अपे ा मनु य क यह िवशेषता ह िक वह िवचारशील और िववेकवान ाणी ह, इसीिलए इसक सामािजकता िन न ेणी क पशु क सामािजकता से उ कोिट क , सजग और आगा-पीछा सोचनेवाली ह। यह िवचारशील सामािजक ाणी जब अपनी अंक रत होती ई िवचारशीलता क आधार पर अ य जीवधा रय से पृथक आ तो इसने िकसी-न-िकसी कार क अपे ाकत थायी िववाह प ित ारा सबसे पहले सामािजक सं था को उ प िकया। इस कार कटब क थापना ई। कछ अिधक बलशाली य य ने कटब को अिधक स म और समृ बनाने क िलए अ य िकसी मनु य को दास भी बनाया। अर तू ने इसी कार क प रवार क क पना म, िजसम पित-प नी, संतान और दास घटक प म िव मान ह — नगर, रा और उसक शासन प ित का बीज देखा। इस कटब का वामी इस बीज प रा य का शासक ह, पर उसका शासन इस रा य क येक घटक क ित पृथक कार का ह। वामी का प नी क ित जो शासन का कार ह, वह उस कोिट का ह, जो राजनियक क अपने साथी नाग रक पर शासन क कोिट ह। िपता का संतान क ित शासन उसी कार का ह, जैसा िकसी राजा का अपने जाजन क ित होता ह। वामी का दास क ित शासन संबंध एक पूणतया वतं , व छद, िकतु समझदार शासक क शासन क समान ह। पशु जीवन को पार करक समु त मानव ने जो थम सामािजक सं था को, कटब को थािपत िकया तो इससे उसका जीवन पूवापे ा अिधक और िवशाल बना, उसम मानवता का और अिधक फटन आ। मानव म नवीन अ छाइयाँ िवकिसत ई। ेह, वा स य और बंध मता अंक रत ई। इस िवकास क िलए भौितक आव यकता क पूित भी आव यक ह एवं काम करनेवाले दास क आव यकता भी ह। थम पु तक म अर तू ने दास था और धनाजन कला का िवशेष प से िववेचन िकया ह। इसका कारण यह ह िक जीवन क सुख-सुिवधामय होने क कारण भौितक साधन का होना आव यक ह एवं जीवन क अ छाई क ओर अ सर होने क िलए अवकाश क अिनवाय आव यकता ह। अर तू क समकालीन ीक जग म तथा होमर क समय से आरभ होनेवाले ीक इितहास म दास था नाग रक जीवन का एक अिवभा य अंग थी। ीक स यता क भ य भवन क न व दास क म पर पड़ी थी। यह ठीक हो सकता ह िक यूनािनय क दास था उतनी नृशंस नह थी, िजतनी रोमन लोग क , तथािप यह थी तो एक सामािजक बुराई ही। िव ा िवशेष क िलए भी िकसी समय िवशेष क वातावरण से ऊपर उठना िकतना किठन होता ह—इसका उदाहरण अर तू क दास था का िववेचन ह। उसक मत म दास वतं नाग रक क जीवनयापन करने का साधन ह और उसक सजीव संपि ह। दास म शारी रक श अिधक होती ह, पर बु कवल इतनी ही होती ह िक वह अपने वामी क आदेश को समझ सक। उसका काय वामी क जीवनयापन म सहायक होना ह। अर तू क मत क अनुसार, कित म उ म और अधम क िवरोधी कोिटयाँ सव पाई जाती ह। जहाँ इस कार क कोिटयाँ पाई जाएँ, वहाँ उ म शासन कर और अधम शािसत ह —यह दोन प क िलए लाभदायक होता ह। मनु य म कित ने इस कार भेद उ प िकया ह, पर वा तिवकता ऐसी नह थी। अकसर िविजत लोग को दास बना िलया जाता था। यहाँ तक िक एक बार तो लेटो तक को दास बनना पड़ गया था। इस कार क दासता अर तू को मा य नह थी। वह तो वाभािवक दास क दासता को ही वीकार करते ह। इसक साथ ही यह भी मानते थे िक यह आव यक नह ह िक दास का पु भी दास हो। यह िबलकल संभव ह िक दास का पु वतं नाग रक

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क समान िववेकसंप हो। इस कार दास और वतं नाग रक का अंतर िनतांत प नह ह। अर तू का कहना ह िक ीक लोग को अपनी ही जाित ( ीक जाित) क लोग को दास नह बनाना चािहए, य िक यु म सवदा उ म प क ही नह , उ म बल क िवजय होती ह और कवल बल क उ मता सब कार क उ मता से अिभ नह ह। इसीिलए ऐसा हो सकता ह िक यु म िविजत य उ मता म िवजेता से बढ़कर हो। ऐसी थित म उनको दास बनाने का कोई औिच य नह ह, य िक वे कत दास नह ह। यह मानकर िक वामी और दास क िहत एक समान ह, अर तू ने वािमय को दास क ित िम ता और समझदारी का बरताव करने क सीख दी ह और यह भी कहा ह िक अ छी सेवा करने पर दास को मु क आशा बँधानी चािहए। अपने दास क ित यवहार म उ ह ने इसी िस ांत का अनुसरण िकया था, िफर भी वा तिवकता यह ह िक मानव जाित म इस कार वाभािवक िवभाजन कह नह पाया जाता िक कछ य सवदा िववेकशील रहते ह और अ य य सवदा िववेकशू य। कभी-कभी मुिनय को भी मित म हो जाता ह और कभी-कभी मूख भी कालांतर म घोर प र म करने क फल व प कािलदास बन सकते ह। इसीिलए वामी और दास का भेद उिचत नह ह। वतं नाग रक क िलए जीवन क सजीव साधन दास क अित र और ब त सी व तुएँ चािहए। इसे धन-संपि कहते ह। इ ह ा करने क तीन ाकितक कार ह— 1. पशुचारण। 2. आखेट करना। 3. किष। तीय कार क अंतगत आखेट ही नह थल और जल पर द युकम और मछली मारना भी ह। मनु य को जीवनयापन क िलए िजतनी आव यकता हो, उसी सीमा तक इन वृि य का अनुसरण करना चािहए। यह गृह थी क बंध क िलए आव यक भी ह। इन कार को संपि ा करने का वाभािवक अथवा ाकितक उपाय इसिलए कहा गया ह िक इनक ारा उपयोगी व तु क उपयोगी मा ा म ा क जाती ह। इन कार क अित र धन-संपि कमाने क अ ाकितक उपाय भी ह, िजनम व तु क अदला-बदली साधन बनती ह। इसक साथ व तु म िविनमय मू य का िस ांत थािपत होता ह। येक व तु का एक मू य उसक य उपयोिगता होती ह जैसे लेखनी क वगत अथवा य उपयोिगता िलखना ह। इसक अित र उसका दूसरा मू य उसक िविनमय क उपयोिगता ह। हम लेखनी को िकसी अ य व तु अथवा मु ा से बदल सकते ह। जहाँ तक व तु का व तु क साथ िविनमय िकया जाता ह—यह एक सीमा तक वाभािवक ह, य िक इसक ारा एक सीमा तक अपने पास क अनुपयु अिधक व तु को दूसर को देकर उसक बदले उपयोगी व तु को ा िकया जा सकता ह। िविनमय का अ ाकितक व प तब ा होता ह, जब व तु का िविनमय धन (मु ा) क साथ होने लगता ह। धन (िस ) क िवशेषताएँ दो ह—एक तो ताँब,े चाँदी अथवा सोने क प म यह वयं उपयोगी होता ह तथा दूसर इसका एक थान से दूसर थान को ले जाना व तु को ले जाने क अपे ा अिधक सरल काम होता ह। अर तू क मत म िविनमय और यापार ारा अप रिमत धन एकि त करना अ वाभािवक और नीित-िव ह। इसी कार उ ह ने चतुर मनु य ारा ह तगत िकए गए यापार संबंधी एकािधकार का वणन तो िकया ह, पर

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उसको नीित-िव ही बतलाया ह। याज ारा धन क वृ करना तो अर तू क मत म सबसे बुरी बात ह। संभवतया उनक ि म अ यिधक याज लेने और उसक ारा होनेवाली कजदार क तबाही क उदाहरण रह ह गे। इस कार अर तू ने आरिभक व तु को आरभ म वणन करने क अपनी प ित क अनुसार राजनीित अथवा नगर नीित क बीज गृह थ जीवन और धनाजन क व प का वणन िकया। गृह थी म गृह वामी दास, प नी और ब पर िजस कार से शासन चलाता ह, वही आगे चलकर विणत िविवध कार क शासन प ितय क बीज व प ह। अनेक प रवार, गृह थयाँ अथवा कटब िमलकर ाम का िनमाण करते ह और ये प रवार पुराने प रवार क शाखाएँ होते ह। इन ाम क िमलने से नगर, पुर अथवा पॉिलस बन जाते ह। ये सामािजक समुदाय मनु य क आव यकता क पूित क िलए िनिमत होते ह, इसीिलए इनका िवकास िनतांत वाभािवक ह। इनको वाभािवक कहने का यह आशय नह ह िक इनक िनमाण म मानव संक प का योग नह होता और न इसका ता पय यह ह िक अंत तक इन समुदाय का उ े य कवल भौितक आव यकता क पूित मा बना रहता ह। जैसे-जैसे मानव सं कित का िवकास होता ह और भौितक आव यकता क पूित से अवकाश िमलने लगता ह, वैस-े वैसे मानव जीवन अनेक कार क अ छ जीवन क क पना क ित य नशील होता ह, इसीिलए नाग रक जीवन का ल य भौितक आव यकता क पूित को अपने िह से म डालकर अिधक यापक और समु त करना हो जाता ह। अ छ जीवन क ा नाग रक जीवन का ल य मान लेने पर अब यह देखना आव यक हो जाता ह िक दाशिनक क िचंतन म और राजनियक क यवहार म अ छ जीवन क या- या क पनाएँ ह और उसक ा क िलए या- या उपाय कह और यवहार म लाए गए ह। िववेकशील ाणी होने क कारण मनु य पहले तो अपनी योजना बनाता ह और िफर उसको काया वत करता ह। अर तू ने नगर क िवकास म का वणन करने क उपरांत अपने समय तक क अ छ जीवन को ा करने क सै ांितक और यावहा रक नाग रक यव था का वणन और िफर उनका िव ेषण िकया ह। इस िदशा म सबसे पहले उ ह ने अपने गु लेटो क राजनीित संबंधी रचना क तरफ यान िदया ह। लेटो ने अपनी ‘पौिलतेइया’ अथवा ‘आदश नगर यव था’ नामक पु तक म इस िस ांत का ितपादन िकया था िक नाग रक जीवन म िजतनी अिधक एकता होगी, उतना ही अ छा नाग रक जीवन होगा। इस एकता क माग म सबसे बड़ी बाधा ह—कािमनी और कचन का मोह। इसे दूर करने क िलए लेटो ने य और ब क संबंध म सबक समानािधकार क िस ांत का ितपादन िकया और संपि क संबंध म भी इसी कार का ल य नाग रक क सम रखा। अर तू ने इस मत का खंडन िकया, य िक नगर तो व पतः अनेकता से सम वत होता ह, उसम एकता नह लाई जा सकती। लेटो को नगर क ब लतावादी व प का भान था और उ ह ने वयं नगर को तीन वग म िवभ िकया था। उ ह ने य , ब और संपि क संबंध म सबक समानािधकार क िस ांत का ितपादन िकया था, वह कवल शासक और सैिनक क िलए िकया था। इ ह वग म कािमनी, कचन और संपि क संबंध म जो िववाद उठ खड़ होते ह, वे नगर क िलए घातक िस होते ह। इसक आगे अर तू का कहना यह ह िक यिद एकता क आदश को नगर क िलए सव प र आदश मान िलया जाए तो भी वह एकता लेटो क ारा बतलाए ए माग पर चलने से ा नह हो सकती। आदश नगर क ब क

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दशा अनाथ जैसी होगी, जो सबक संतान होगा। उसक ित उसक अनिगनत माता-िपता का ेह गुिणत नह हो सकगा, बँटकर कम अव य हो जाएगा। मनु य का वभाव ही ऐसा ह िक उसक ती -से-ती मनोवेग यापक होकर िवपण हो जाते ह और उनक ती ता, सघनता, गंभीरता, उदासीनता और उथलेपन म िवलीन हो जाती ह। आिखर परमा मा तक को िव यापकता का मू य िनराकारता क प म चुकाना पड़ता ह। प रणामतः सामािजक माता-िपता और सामािजक पु पुि य म एक सावि क उदासीनता क अित र स े वा स य क दशन कह भी नह ह गे। इसी कार सबक संपि क , जो िकसी िविश य क अपनी संपि नह होगी, ऐसी ही दशा होगी। कोई उसक देखभाल करने का दािय व अपने ऊपर य लेगा? संपि क वािम व और उपभोग क तीन संभव िवक प हो सकते ह— वािम व य गत—उपभोग सावजिनक, वािम व सावजिनक—उपभोग य गत, वािम व और उपभोग दोन सावजिनक। इन तीन िवक प म से अर तू को थम िवक प मा य ह। अ य िवक प क िवषय म उ ह ने अनेक आपि याँ उठाई ह। सब मनु य न एक समान प र मी होते ह और न एक समान दािय वपूण, यिद संपि का वािम व और उपभोग दोन सावजिनक ह गे तो िवतरण िकसी कार भी संतोष द नह हो सकगा। यिद सावजिनक समानता का पालन िकया जाएगा तो िज ह ने अिधक प र म िकया ह, उनक ित अ याय होगा और यिद िवतरण यायपूण होगा तो समानािधकार का िस ांत नह िनभ सकगा। िजस संपि पर सबका समानािधकार होता ह, उसक िवषय म अनंत झगड़-िववाद िन य पैदा होते ह। इसक अित र संपि क य गत वािम व से एक कार क आ मतृ क ही ा नह होती ब क उदारता, दानशीलता इ यािद स ुण का भी िवकास इसी से संभव होता ह। यिद यह कह िक लेटो ने इस सा यवाद का ितपादन कवल शासक और र क क िलए िकया ह, सब नाग रक क िलए नह , तो न यह उठता ह िक यिद यह अ छा आदश ह तो इसको सीिमत य िकया? यिद यह क दायक ह तो नाग रक म से े य य ने या अपराध िकया ह िक वे क भोग और अ य लोग उनक बिलदान क आधार पर मौज उड़ाएँ। इन सब कारण से अर तू ने संपि क य गत वािम व और सावजिनक उपभोग का समथन िकया ह। यह स य ह िक संपि क य गत वािम व क कारण झगड़ अव य ह गे, पर इसका कारण मनु य क वभाव क ुिट हो सकती ह, जो संपि क वािम व को दूर करने से दूर नह हो सकती ब क उिचत कार क िश ा-दी ा से दूर क जा सकती ह। संपि क वािम व को सावजिनक बना देने पर भी झगड़ शीत तो या ह गे, घटगे भी नह , बढ़ भले ही जाएँ। लेटो और अर तू दोन का ही ि कोण आधुिनक अथशा क िस ांत से भािवत नह था। दोन ही नगर क जीवन से अ छ जीवन क ा म आनेवाली बाधा को दूर करना चाहते थे, इसीिलए जब अर तू संपि क सावजिनक वािम व का िवरोध करते ह तो यह अथ हरिगज नह समझना चािहए िक वह पूँजीवाद का समथन करते ह। अिधक संपि क सं ह का उ ह ने िवरोध िकया ह। उनका ि कोण यह ह िक संपि और प रवार पर य गत अिधकार नाग रक क सुख और स ृि य क िवकास का आधार ह, इसीिलए इसको समा नह करना चािहए। अितगामी एकता न संभव ह, न वांछनीय। अर तू का माग सवदा स यक कार का म यम माग ह। संपि क समानता और सावजिनकता पर उ ह ने गंभीरता

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क साथ िवचार िकया ह। संपि क समानता क माग म दो बड़ी बाधाएँ ह—एक, मनु य क यो यता और मता क असमानता और दूसर नाग रक क सं या क अ थरता। इन सब बात पर िवचार करक वह इस िन कष पर प चते ह िक ऐसी यव था क जानी चािहए, िजससे लोग को अ यिधक धन-दौलत क चाह न हो और बुर लोग को धन-दौलत क ा न हो। इसक उपरांत अर तू ने पाटा ते और काख दौन क शासन प ितय का िववरण तुत िकया ह एवं उनक गुण-दोष का िववेचन िकया ह। अर तू ने 158 संिवधान का सं ह िकया था। इसी ान का उ ह ने यहाँ उपयोग िकया ह। नगर-रा क संिवधान का ऐितहािसक और तुलना मक अ ययन करने क प ा उ ह ने एथस क पुराने संिवधान क संबंध म भी कछ िववरण पेश िकया ह, जो संभवतः ि ह। इस भाग का मह व ऐितहािसक और िववरणा मक ह। इस कार आदश नगर क सै ांितक और यावहा रक प का िववरण और आलोचना तुत करने क प ा अपनी िनगमना मक प ित क अनुसार अर तू नगर-रा संबंधी सामा य िस ांत अथवा िनयम का व प िनधा रत करते ह। उनक सबसे मु य िवशेषता ह—शु ल ण अथवा प रभाषा का ितपादन। इसीिलए वह यह िन त करने का य न करते ह िक नाग रक, नगर-रा और संिवधान िकसको कहते ह? शासन यव था क िकतने कार होते ह? इ यािद। नगर और नाग रक सापेि क श द ह। ीक नगर का व प एक समान नह था। इनक सं या लगभग 160 थी। एक िव ा ने भूम य सागर क चार ओर क तट पर थत इन छोट-छोट नगर को सरोवर क िकनार पर बैठ ए मेढक क उपमा दी ह। इनम से बड़-से-बड़ नगर-रा का े फल लगभग 1,000 वगमील था और ब त से नगर का े फल 100 वगमील से भी कम था। एक भारतीय िव ा ने इनक तुलना ाचीन भारतीय जनपद से क ह, पर भारतीय जनपद म और इन यवन नगर-रा म समानता क अपे ा िविभ ता अिधक थी। भारत क सुदीघकालीन इितहास म जनपद एकािधक बार राजनीितक एकता म आब हो सक, पर यवन नगर-रा म इस कार क प रपूण राजनीितक एकता कभी थािपत न हो सक । भारत एवं उसक सं कित आज भी भारतीय सं कित क भंडार म सुरि त ह, पर ीक नगर क सं कित को आज ीक देश क बाहर अिधक ाण िमला ह। भारतीय जनपद म े फल क अिधकता क कारण एकािधक बड़ नगर होना कोई असंभव अथवा अनहोनी बात नह थी, पर यूनानी नगर-रा म एक रा म एक ही बड़ा नगर होता था—शेष सार े फल म किष इ यािद काय करनेवाले ामीण लोग क ाम होते थे। इसक अित र सां कितक एकता क ि से यह नगर भी भारतीय जनपद क समान एक भाषा (िजसक उपभाषाएँ पर पर समझी जा सकती थ ) बोलते थे और एक धम को मानते थे और उनक शासन यव थाएँ भी अिधकांश म जनतं ा मक अथवा धिनक तं ा मक थ । उनक धािमक िव ास, देवी-देवता एवं तीथ थान भी एक थे। भारतीय जनपद क शासक म च वत व का जो आदश परपरा से चला आता था—उससे स ा बनने क जो मह वाकां ा जाग उठती थी, उसने इस िवशाल देश को अनेक बार एक बड़ी इकाई होने क ऐसी अिमट िवशेषता दान क , जो ीक नगर क भा य म नह बदी थी। यह भी वीकार करना होगा िक ीक नगर-रा क नाग रक म राजनीितक चेतना भारतीय जनपद क िनवािसय क अपे ा अिधक थी। इसी कारण भारतीय इितहास म जनतं और गणतं क अपे ा राजतं अिधक फला-

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फला, पर इस कथन का यह अथ नह ह िक ाचीन भारत क राजनीितक इितहास म जनतं और गणतं शासन प ित का िनतांत अभाव था एवं यूनानी नगर रा म राजतं नह था। अर तू को इन 158 अथवा 160 नगर क इितहास और राजनीितक यव था एवं अ य परपरा का अ छा ान था। वह यह भी जानते थे िक शासन प ित कवल बाहरी भाव का नाम नह ह, वह नाग रक एवं शासक क जीवन प ित भी ह, इसीिलए उ ह नगर और नाग रक क प रभाषा का िनमाण करने म िवशेष किठनाई का अनुभव आ। इितहास ने उ ह यह भी बतलाया िक अनेक बार शासन प ित म ांित हो जाने पर नए शासक ने पुराने शासक क दािय व को िनभाने से इनकार कर िदया और कह िदया िक वह तो रा का काम नह था। इसका अथ यह िक शासन प ित बदली िक रा बदला! यूनानी नगर म भौगोिलक सीमा म रहनेवाले सब लोग नाग रक नह होते थे। दास और िश पकार को ायः नाग रक नह माना जाता था। नाग रक क एक प रभाषा यह थी िक नाग रक वह ह, जो वय क हो और िजसक माता-िपता दोन नाग रक ह । इस प रभाषा क ुिट यह ह िक यह िकसी नगर क आरिभक नाग रक क संबंध म लागू नह होती। ीक नगर म बसे ए िवदेशी भी नाग रक नह माने जाते थे। नगर क पार प रक संिधय क अनुसार, ये िवदेशी नाग रक क साथ िववाद, यवहार (मुकदमेबाजी) और याय पाने का अिधकार रखते थे, पर पूण नाग रकता का अिधकार उनको नह िमलता था। इन किठनाइय को यान म रखते ए अर तू ने नाग रक का ल ण यह बतलाया िक िजस य क याय काय म, शासन-संस म सहभािगता ह, वह य नाग रक ह। यह प रभाषा कवल य जनतं ा मक शासन प ित क नाग रक क िलए उपयु ह, अ य प ितय क िलए उपयु नह । आधुिनक जनतं क नाग रक क संबंध म भी यह ल ण घिटत नह होगा, य िक आधुिनक जनतं म येक नाग रक को अपना ितिनिध चुनने एवं वयं ितिनिध चुने जाने का अिधकार होता ह। इस कार क था य जनतं ा मक शासन प ित म नह थी। नाग रकता का अिधकार उपिनवेश और अधीन नगर क िनवािसय को भी ा नह था। नगर क प रभाषा क संबंध म अर तू का िवचार ह िक नगर नाग रक क उस समुदाय को कहते ह, जो जीवन क अथवा अ छ जीवन क उ े य अथवा योजन क िलए पया हो। नगर क संबंध म अर तू ने इस मह वपूण न पर भी सू मता से िवचार िकया ह िक नगर क एकता और अिभ ता िकस त व पर िनभर ह। या इसक िलए नगर का एक ही थान पर बसा होना आव यक ह? अर तू भौगोिगक एकता को मह व नह देते। उनका िवचार ह िक नगर क एकता एवं अिभ ता उसक शासन प ित क एकता और अिभ ता पर िनभर करती ह। इसी कारण शासन अपने से पूववाले शासन क उ रदािय व से मुख मोड़ने का उप म करते देखे गए ह। हालाँिक कोई ऐसा िनयम नह ह िक शासन प ित बदल जाने पर पुरानी प ित क अंतगत वीकार िकए गए दािय व को याग देना चािहए। नाग रक क च र क िवषय म भी अर तू ने िविभ ि कोण से िवचार िकया ह। या उ म मनु य और उ म नाग रक क च र अिभ ह? या शासक और शासक क च र समान हो सकते ह? े नाग रक क ल ण या ह? इ यािद। िविभ नाग रक को रा क जीवन म पृथक-पृथक कत य पालन करने पड़ते ह, इसीिलए सब नाग रक क उ मता एक प नह हो सकती। नगर क र ा और उ ित सब नाग रक का समान ल य ह, इसीिलए जो नाग रक

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इस ल य को यान म रखते ए अपने कत य का पालन करता ह, वह उ म नाग रक ह। उ म मनु य और उ म नाग रक सामा यतया अिभ नह हो सकते। इतना ही नह , आदश नगर यव था म भी ऐसा होना संभव नह ह, य िक नाग रक क कत य क ब िवधता तो आदश यव था म भी अिनवाय ह और भले आदमी का च र सवथा एकिवध होता ह। कवल एक कार का नाग रक ऐसा हो सकता ह, जो भला आदमी और भला नाग रक भी हो। आदश नगर यव था म वह अ छा नगा रक िजसको शासक क िलए अपेि त नैितक बु म ा भी ा हो एवं शािसत जाजन क िलए अपेि त अ य गुण भी ा ह , ऐसा िवरल य होगा। अर तू क मत म वतं नाग रक पर वतं य क स श शासन करने क कला को वतं नाग रक क समान वतं य से शािसत होकर सीखा जा सकता ह—जैसे िक सैिनक िश ण म सैिनक अनुशासन म रहकर ही उ रो र सैिनक शासन क कला को सीखा जा सकता ह। अर तू ने सम नगरवािसय को दो भाग म िवभ कर िदया ह—एक भाग नाग रक का ह और दूसरा भाग िश पकार , िमक , कषक , दास इ यािद का ह, िजनको वह नाग रक जीवन क िलए आव यक तो मानते ह, पर नाग रक जीवन का अंग नह मानते। उनक मत म अवकाश क कमी और शरीर म क कारण ये लोग राजनीितक जीवन म भागीदार होने क यो यता नह रखते। यह तो मानव वभाव का एक परपरागत िवकत क पना क आधार पर िवभाजन ह, िजसक अनुसार अकारण ही अिधकांश जनता नाग रकता क अिधकार से वंिचत क जाती रही। पूणतया यायपूण प ित इस कार क िवभाजन को वीकार नह कर सकती, पर अर तू को ही या दोष िदया जाए, शत- ितशत यायपूण शासन प ित तो वतमान युग म भी वा तिवकता नह , आदश ही ह। नगर और नाग रक क प रभाषा क अ वेषण म शासन प ित क चचा वयं आ गई। न वाभािवक ह िक शासन प ितयाँ िकतने कार क होती ह और उनम े प ित कौन सी ह? नगर नाग रक का समूह ह और उसक शासन प ित नगा रक क सामूिहक जीवन का बंध ह। जब गृह थ का समूह अपने सामा य िहत क ेरणा से एक थान पर बसता ह तो नगर क वाभािवक उ पि होती ह। जहाँ मनु य का समूह िकसी दबाव म आकर एक थान पर अिन छा से रहता हो तो उसको कारागार कहना चािहए। इस ि से शासन प ित क दो ेिणयाँ बनती ह— 1. वे शासन प ितयाँ िजनम शासक अथवा शासक वग सावजिनक िहत को यान म रखकर शासन काय चलाते ह, इनको हम वा तिवक शासन प ितयाँ कह सकते ह। 2. दूसरी वे शासन प ितयाँ, िजनम शासक अथवा शासक वग कवल अपने िहत का यान रखते ह और सावजिनक िहत क उपे ा अथवा िवरोध करते ह। इनको हम िवकत शासन प ितयाँ कहगे। य िप शासन प ितय पर िवचार करने पर शासक और शािसत उभय प पर िनरतर ि रखनी पड़ती ह, िफर भी इस िवचार म मु य प से शासक प पर ही यान अिधक िदया जाता ह, इसीिलए अर तू ने शासन प ित क प रभाषा म बतलाया ह िक शासन प ित या संिवधान अथवा यव था िकसी रा म शासक पद अथवा िवशेष प से सव शासक पद क यव था का ही नाम ह। उपयु कत और िवकत शासन प ितय म अर तू क मतानुसार, शासन स ा एक य , अ पसं यक य य अथवा ब सं यक य य क हाथ म रह सकती ह। इस कार से िन निलिखत भेद क उ पि होती ह —

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कत प ितयाँ िवकत प ितयाँ स ा का थान

एक राजतं तानाशाही एक जन े जनतं धिनकतं अ पजन जनतं यव था जातं ब जन अर तू क इस िवभाजन का आधार ह—उसक नाग रक समाज क िव ेषण का प रणाम। उसने देखा िक ायः नाग रक समाज म एक ओर अमीर लोग ह तो दूसरी ओर िनधन जनता ह और कह -कह इन दोन क म य म एक म यम वग भी पाया जाता ह। कवल सं या को िवभाजन का आधार बनाने म एक किठनाई उ प होती ह, िजसका िववेचन करक अर तू इस नतीजे पर प चते ह िक य िप धिनकतं का श दाथ अ प जनतं ह और जातं का अथ जनतं ह, िफर भी यवहार म धिनकतं अमीर का तं ह और जातं गरीब का तं ह। अर तू ने सं या और संपि को संयु करक यह बतलाया ह िक धिनक तं धिनक लोग का शासन ह और जातं ब सं यक िनधन जनता का शासन। उपयु शासन प ितय म शासक पद का िवतरण अथवा िनधारण िविभ आधार पर आ करता ह। एक राजतं म राजा अपने सदाचार अथवा अ य गुण क कारण सव शासन स ा पर आ ढ़ होता ह। े जनतं म अ पसं यक शासक वग भी अ य लोग क अपे ा गुण और स नता म बढ़-चढ़ होने क कारण अपने पद को ा करता ह। जनतं यव था म पद िवतरण का आधार धन और जन का स मिलत त व रहता ह अथवा सैिनक स ा तुत करने क साम य देता ह। जातं म पद िवतरण वतं नाग रक क समानता क आधार पर होता ह। धिनकतं म लोग क आिथक मता का आधार और तानाशाही शासन प ित का आधार छल-कपट एवं ध गामु ती ह। अर तू ने नगर-रा क यव था का तुलना मक अ ययन करक यह देखा िक शासन यव था को रा क ायः िन निलिखत अंग का बंध करना पड़ता ह— 1. भोजन साम ी उ प करनेवाला वग। 2. िश पकार और िमक का वग। 3. यवसायी वग। 4. यो ा वग। 5. यायकता वग। 6. रा ीय पव और उ सव क िलए यय करनेवाला धिनक वग। 7. अिधकारी वग। 8. रा का िचंतन करनेवाला वग। इ ह वग क ारा नगर-रा का जीवन घिटत और संचािलत होता था। हालाँिक अर तू ने उपयु िववरण एकािधक थान पर तुत िकया ह और उनक बंधक-पटल क भी यव था का वणन िकया ह, पर इनको उ ह ने यव था क िवभाजन का आधार नह बनाया। संभव ह िक उ ह ने यह भी देखा हो िक ये सब अंग, सब रा म समान प से उपल ध नह होते। राजनीित िव ान क िवकास क साथ अर तू क िवभाजन क उपयोिगता उतनी नह रह गई ह, िजतनी ाचीन काल म थी। उनक िवभाजन क पृ भूिम म कवल यूनान क नगर-रा थे। सा ा य और आधुिनककालीन महा रा क िवषय एवं उनसे उ प होनेवाली सम या क िवषय म हम

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अर तू क रचना से अिधक पथ दशन नह पा सकते। इसका अथ यह भी नह ह िक अर तू का िवभाजन आज अ ासंिगक हो गया ह। तानाशाही, जातं , धिनकतं , े जनतं आज भी चल रह ह और अर तू ने उनक िवषय म जो कहा था, वह अब भी एक सीमा तक िव वािसय का पथ दशन कर रहा ह। अर तू ने देखा था िक सभी मत को माननेवाले याय क दुहाई देते ह और उसी क आधार पर स ा को आ मसात करना चाहते ह। यह याय ह या व तु? उ र िमला, समान क ित असमानता और असमान क ित असमानता अथा जो िजस यो य हो, उसक ित वैसा ही यवहार करना। जब इस िस ांत क यवहार क बात आती ह तब अर तू ने देखा िक यवहार म सब यु यु ता को ितलांजिल दे देते ह। यावहा रक राजनीित यह ह िक जनता क नाड़ी को परखकर ब मत को ि य लगनेवाले नगर खड़ करना, उसक बाद श को ह तगत कर मनमानी करना। अर तू ने गहर पैठकर देखा िक धनी लोग धन क े म दूसर से बढ़कर ह तो इसक आधार पर वे अपने को सभी बात म बढ़कर समझने क खुशफहमी पाल रह ह। दूसरी ओर वे लोग ह, जो वतं ज मा होने क समानता क आधार पर अपने को सभी बात म समान समझकर सब अिधकार म समानता क माँग कर रह ह। अगर धनी वग क दावे को वीकार िकया जाए तो ब सं यक लोग का असंतोष उ प होता ह और अगर समानतावािदय क बात मानी जाए तो अिधक यो यता और मतावाले य य क ित अ याय होता ह। इन दोन क कलह म रा क ल य क या दशा होती ह! अगर रा का ल य कवल धनाजन होता तो धनाधीश का ि कोण ही मा य वीकार िकया जा सकता था और ऐसी थित म ऐसे कोई भी दो नगर, िजनम यापा रक संिधयाँ ई होत , एक नगर माने जाते। दूसरी ओर, अगर रा का ल य कवल अ याय से र ा पाना होता और सबक वतं ता और समानता क र ा करना होता तो ब सं यक वतं नाग रक का ही प औिच यपूण होता। वा तिवकता यह ह िक रा का चरम ल य उपयु दोन ल य को अपनी न व म लेकर मानव क प रपूण उ मता क िशखर तक प चना ह। मानवता क पूण िवकास क िलए भौितक संपि क आव यक मा ा भी चािहए और समान वतं ता भी। ये दोन ही मानवता क िवकास क िलए आव यक शत ह, उसक सीमाएँ नह ह। नगर मानव क याण क िनिम िनिमत समाज ह, जो आ मिनभरता क िलए धन और सेना इ यािद को भी साधन प म सं ह करता ह, पर िजसका अंितम सा य प रपूण मानव जीवन ह। थान क एकता, सुर ा, िवचार संबंधी िनयम, यापार संबंधी संिधयाँ, धन ा इ यािद आंिशक ल य सब यथा थान इस िवशद एवं यापक ल य म सम वत हो जाते ह। यिद ऐसा ह तो िकसको शासक क पद क िलए वरण कर? धनवान को? वतं नाग रक को? कलपु को? नह ! कवल भले य को यह श ा होनी चािहए। मानव क े ता मानव म िनिहत भलाई ह और मानवता क समानता म ही भलाई ह और इस भलाई क र ा क िलए ही वतं ता का मू य ह। सुकरात, लेटो और अर तू क िचंतन म अ छाई, भलाई, स ुण इ यािद क अथ को पूणतया समझाने क िलए अलग वतं ंथ िलखे गए ह। अर तू का राजनीितक आदश अ पसं यक े जनतं क क पना पर आि त ह। िजसक पास पया अवकाश ह, िजसक पास अ यिधक धन नह ह और िजसक भौितक संपि म ेष को उ प करनेवाली िवषमता नह ह, जो िव म-परा म क भावना से मु ान-िव ान और कला क अनुसंधान म समिपत ह,

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िजसक भौितक आव यकताएँ नाग रकता से वंिचत नगर-िनवािसय क म ारा पूरी हो जाती ह तथा िजनको इसक बदले म कवल दयापूण यवहार िमलता ह। गेट क त वावधान म शािसत वाईमार आधुिनक इितहास म इस आदश क मूत क पना हो सकती ह। चतुथ शता दी क ीक जग और उससे पूव इितहास क संदभ म अर तू का आदश अव य सराहनीय ह। उपयु आदश क िस क िलए अर तू स कम क िलए रा क ओर से पुर कार और दु कम क िलए दंड क यव था ारा जनसाधारण को स कम परायण बनाने का भी िवधान करते ह और यावहा रक ि से यह ठीक भी ह। मनु य क अ छाई उसक म त क पर अंिकत नह होती, इसीिलए अर तू ने िनतांत िन प भाव से सब कार क शासन प ितय क समी ा करक यह जानने का य न िकया ह िक उपयु शासन प ितय म सव े कौन ह। ऐसा लगता ह िक अर तू का झुकाव जनतं वाद क ओर अिधक ह। अ छ मनु य क अपे ा ब त से साधारण मनु य भी सामूिहक प से अिधक अ छ होते ह। चाह चतुर य कछ कह, पर यह यवहार क कसौटी पर कसा आ अनुभव ह िक पंच म परमे र बसता ह। चतुर-से-चतुर य क योजनाएँ जब ब त से साधारण य य क स मिलत आलोचना का िवषय बनती ह तो उनम ऐसी ुिटयाँ ि गोचर होती ह, जो चतुरने को नह सूझ सक थ । अर तू िफर भी इस त य को शत- ितशत यवहार म लाने का आ ह नह करते। उनका कहना यही ह िक ब सं यक क सामूिहक बु म ा और अनुभव समाज म सारवान व तु ह, उसका उपयोग होना चािहए, उपे ा नह । उनका आ ह यह कदािप नह ह िक सबकछ उ ह को स प िदया जाए। यिद इस उपयोगी सामािजक यो यता को शासनािधकार से पूणतया बिह कत िकया जाता ह तो इससे िवशाल एवं यापक असंतोष उ प होता ह। शासक जो काय करते ह, उसका अ छा या बुरा भाव तो ब सं यक िशासत पर ही पड़ता ह। शासक वयं अपने काय क िवषय म उसी यापारी क समान यवहार करता ह, जो अपने अंगूर को कभी ख ा नह बतलाता। उसक काय का स ा मू यांकन शािसत का समुदाय ही कर सकता ह, इसीिलए यायोिचत यवहार यही ह िक शासक क िनयु अथवा पद युित इ यािद ब सं यक शािसत क स मित क अनुसार होनी चािहए। अर तू क मतानुसार, ब सं यक जनता य क समान भाविवराट भी नह होती। यह ठीक नह , जनता को उ ेिजत होने म समय अव य लगता ह, पर उ ेिजत भीड़ क उ ेजना क सम य क उ ेजना कछ भी नह ह। या िकसी रा म ऐसे पु ष क उ पि कभी संभव नह ह, जो गुणाितशय क कारण शेष सब नाग रक समदुय से य शः ही नह , समि शः से भी बढ़कर हो? इितहास क मनन क आधार पर और गंभीर िचंतन क प रणाम व प अर तू यह जानते थे िक ऐसा होने का दावा तो न जाने िकतन ने िकया ह, पर तब भी ऐसे य का होना िवरल हो सकता ह, असंभव नह ह। यिद ऐसा य िकसी रा म उ प हो जाए तो? अर तू ने िजन इितहास क पृ को पढ़ा था, उनम ऐसे य य क िलए जनतांि क रा म िनवासन, ह या, िवष का याला इ यािद पुर कार ा ए थे, पर अर तू क मत म जनता क िलए क याणकारी एवं उिचत माग खुशी से उनका अनुसरण करना ही ह। यह ह पु षो म का एकराजतं । इससे बढ़कर अ य कोई शासन यव था नह हो सकती, पर इितहास ने ऐसे पु ष को पहले सताकर मारा ह और मृ यु क प ा उनक पाषाण ितमा और समािधय को पूजा ह और

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कालांतर म उस पूजा को भी दूसर को पीि़डत करने का साधन बनाया ह। अर तू को वयं इसी कार क प र थित उ प होने पर अपने जीवन क सं या म एथस से पलायन करना पड़ा था। यह तो रही मानव प म देवता क एकराजतं क बात, िजसको अर तू सव े , िकतु असंभव ाय मानते ह। अ य कार क यव था क िवषय म अर तू का िवचार ह िक हम उनक भलाई और बुराई का िवचार िनरपे प से नह कर सकते। िकन नाग रक क िलए, िकस कार क यव था सव म ह? इस न का सही उ र तभी ठीक कार से िदया जा सकता ह, जब यह पता चल जाए िक िकन नाग रक का व प अथवा वभाव िकस कार का ह। यिद नाग रक ऐसे ह , िजनक म य म एक य अथवा एक प रवार स ुण म सव म हो तो उसक िलए एकराजतं सव े ह। यिद नाग रक ऐसे ह िक वतं नाग रक होते ए वे उ मता क कारण शासनादेश क मता रखनेवाले मनु य क शासन को सह सकते ह तो उनक िलए े जनतं सबसे अ छा ह। यिद नाग रक समुदाय म ऐसे यो ा का समूह ह, जो धिनक को उनक यो यतानुसार शासक बनानेवाले िनयमानुसार पयाय म म शासन करने और शोिषत होने क मता रखता ह तो उसक िलए ‘पौिलतेइया’ नाम क यव था ही ठीक ह और यिद नाग रक इन कार क अपे ा अिधक िवकत कार क ह तो उनक िलए िवकत कार क यव थाएँ ही संभव ह गी। यिद असंभव थित संभव न हो और पु षो म का आिवभाव न हो तो एकराजतं क अ य कार तो संभव होते ही ह। पाटा का राजतं इस कार का ह, जहाँ दोन राजकल सीिमत नेतृ व से यु ह, पर यह स ा राजतं नह ह। स ा राजतं वहाँ होता ह, जहाँ राजस ा एक य क हाथ म कि त होती ह, पर यिद यह राजा पूण पु षो म न हो तो उस एक अ छ से शासन क अपे ा अनेक अ छ का शासन ही बेहतर होगा। मान िलया जाए िक राजा पया प से अ छा ह तो भी यह उसक हािदक इ छा होगी िक उसक प ा उसक वंशधर क हाथ म शासन क बागडोर रह। ये वंशधर भी उसी क समान भले ह गे, इसका या पता? यूनान देश क राजा क पास य गत र क होते थे और वे चाहते तो इनका मनमाना उपयोग कर सकते थे। एथस क संिवधान म अर तू ने इनक दु पयोग क उदाहरण िदए ह। पूण पु षो म क िलए तो अर तू ने िनयम बंधन को अनाव यक माना था, पर अ य राजा तो पूण होते नह , इसीिलए इनक संग म अर तू ने इस सम या पर भी िवचार िकया ह िक ाधा य का िनयम होना चािहए या राजा का। मानव मनोवेग क वशीभूत होकर न जाने या कर बैठ। इसीिलए राजा का ाधा य नह होना चािहए, िववेक ारा िनधा रत कानून को सव प रता ा होनी चािहए। किठनाई यह ह िक िनयम भी िकसी शासन यव था अथवा िनयम िनमाता क ारा ही बनाया गया होगा और उसक िनमाता क अपूणता उसम ितफिलत होगी। िनयम क पास आँख नह होत । िकस िनयम का कहाँ उपयोग हो, यह बात हमेशा शासन सापे रहगी। अर तू ने िजन िनयम क ित प पात िदखलाया ह, इसका कारण उनक राजा अथवा शासक क व छद वे छाचा रता का िनयमन करने क इ छा थी। वह कानून म मौिलक प रवतन करने क िलए अ यंत सावधानी बरतने क प म थे। वह िनयम का थािय व चाहते थे। अर तू दय से ांितकारी नह थे, इसीिलए वह िनयम क े म प रपूित तो चाहते थे, पर जड़-मूल से ांित नह । जनतं क िविवध प म सबसे पहले अर तू ने उस यव था का वणन िकया ह, िजसम िनधन और धनवान सबको एक समान माना जाता ह। इसक प ा उस यव था को िलया ह, िजसम शासक और अिधका रय को िन न कोिट क िव ीय यो यता क आधार पर चुना जाता ह। िजन लोग म किष अथवा पशुचारण क यवसाय का

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ाधा य होता ह, उनम इस कार का जनतं वाभािवक प से पाया जाता ह और ऐसी जनता जनतं क िलए उपयु भी होती ह। कारण यह ह िक इस कार क जनता को अपने यवसाय क िविश ता क कारण सुदूर थान पर िबखर ए रहना पड़ता ह और अवकाश भी कम िमलता ह। इसीिलए वे आए िदन शासन क साथ छड़छाड़ करने से िवरत रहते ह और शासन काय को अपने से अिधक यो य य य को स पकर अपने धंध म लग जाते ह। यो य जनता ारा चुने जाने क बाद शासन चलाया करते ह और इस चुनाव क िनयं ण क अित र उन पर अ य कोई िनयं ण नह रहता। तृतीय कार क जनतं म िनद षज मा होने क आधार पर सब नाग रक को शासन काय म सहभािगता ा होती ह, परतु अवकाश क अभाव म उनका ऐसा करना यावहा रक प से संभव नह होता और प रणाम यही होता ह िक शासन काय म कानून को धानता ा होती ह। इसी से िमलती-जुलती थित वतं ज मा नाग रक क जनतं म भी उप थत होती ह। िजन नगर म जनसं या पूवापे ा ब त अिधक बढ़ जाती ह और कर वृ क कारण कोष म धन भी अिधक होता ह तो वहाँ ऐसे जनतं क उ पि होती ह, िजनम सं यािध य क कारण सबको अिधकार ा होता ह और रा क सावजिनक अनुदान क कारण सबको रा य शासन म भाग लेने का मौका भी उपल ध होता ह। धिनक लोग ायः अपने राजनीितक कत य क पालन से िवमुख अथवा अनुप थत रहते ह। प रणाम यह होता ह िक िनयम क ाधा य क थान पर िनधन लोग क समूह का शासन काय म ाधा य थािपत हो जाता ह। यह यव था तानाशाही से ब त िमलती ह एवं इसको एक कार से यव था का अभाव कहना चािहए। इसक उपरांत अर तू पॉिलटी नामक यव था का वणन तुत करते ह। अर तू से पूव क लेखक ने इस प ित क ओर यान नह िदया था, इसीिलए इसक िलए कोई िवशेष नाम नह िदया गया। वा तव म यह प ित धिनकतं और जनतं क उस स म ण का नाम ह, िजसका झुकाव जनतं क ओर होता ह। यिद इस िम ण का झुकाव धिनकतं क ओर अिधक होता ह तो इसको े जनतं कहते ह। िम ण कई कार से संभव ह, पर उन सबका उ े य धिनकतं और जनतं क म यवत माग पर चलना ह, इसीिलए इस यव था म न तो पदािधकार क ा क िलए उ िव ीय मता क आव यकता होती ह और न इसक िवपरीत िव ीय मता का िनतांत अभाव ही वीकार िकया जाता ह। प रणामतः इस यव था म स ा म यम वग क हाथ म रहती ह। अर तू क मत म म यम माग का जीवन सव े ह। जो लोग ब त धनवान होते ह, उनम िनरकशता और िहसा का भाव रहता ह और वे अनुशासन नह मानते। दूसरी ओर जो िनधन होते ह, उनको शासन करना नह आता। िजस समाज म कवल यही दो वग होते ह—वह वामी और दास का नगर ितर कार और ेष क ाला म जला करता ह। िजस नगर म म यम िव वाले म यम वग का आिध य होता ह, वही नगर सुखी हो सकता ह। इस वग को धनी और िनधन वग िव ास क ि से देखते ह। यिद इस वग का अभाव हो तो शासन प ित बड़ी आसानी से धिनकतं अथवा जनतं को लाँघकर तानाशाही क अव था को ा हो जाती ह। इस कार आदश यव था क उपरांत अर तू क मत म वा तिवक यवहार म ‘पौिलतेइया’ प ित े ह। इसक उदाहरण व प उ ह ने िकसी नगर क यव था का उ ेख नह िकया ह। संभवतया पाटा क यव था इस आदश क समीप प चती ह अथवा अगर एथस क संिवधान पर गौर कर तो ई.पू. 411 क थेरामेनेस क यव था

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इस कार क तीत होगी। िविवध कार क यव था क िवकास क ऐितहािसक म क िवषय म अर तू का मत ह िक वे ायः एकराजतं से े जनतं , धिनकतं और तानाशाही क प को धारण करती ई जनतं क अव था को ा होती ह, पर यह सामा य वृि का िद दशन ह। इसी कार जनतं क वृि भी सौ य जनतं से अितगामी जनतं क ओर रहती ह। इसी संग म अर तू ने धिनकतं क चार और तानाशाही क तीन भेद बतलाए ह। धिनकतं क थम भेद म पदािधकार आिथक यो यता क आधार पर ा होता ह। दूसर भेद म नाग रक को पदािधकार ा क िलए और भी ऊची आिथक यो यता क आव यकता होती ह और पदािधका रय का चुनाव भी ऐसे नाग रक ारा िकया जाता ह, जो आिथक यो यता से संप होते ह। धिनकतं क तीसर भेद म पदािधकार कल मागत होता ह। अंितम भेद म कल मागत शासन प ित क साथ ही शासन काय म कानून क थान पर य का ाधा य होता ह। तानाशाही क तीन भेद म से थम दो भेद अ एकराजतं और अ तानाशाही तं कह गए ह। इनम चुनाव ारा शासक बनता ह और उसका शासन िनयमानुसार चलता ह। इसिलए इस सीमा तक उसका शासन एकराजतं प ित क तु य ह। वह अपने को वामी समझकर जा पर दास क समान शासन करता ह, इसिलए उसका शासन एक सीमा तक तानाशाही कार का होता ह। तानाशाही का असली प वह होता ह, िजसम शासक जाजन पर एकमा अपने वाथ क ि से शासन करता ह। रा शासन क तीन अंग ह— 1. िवचारक। 2. कायसंचालक। 3. यायकतागण। इन सबक िनयु और संघटन क िवषय म भी अर तू ने िव तार से िवचार िकया ह। इन अंग क यव था िविभ शासन प ितय क अनुसार िकस कार होनी चािहए, इस पर िवचार करते ए उ ह ने िवचारकमंडल क संबंध म एक मह वपूण सुझाव िदया ह िक िवचारकमंडल म नाग रक क समान सं यक सद य चुनकर आने चािहए। कायसंचालक मंडल क संबंध म िनयु य क 27 कार क संभावना पर िवचार िकया ह और यह बतलाया ह िक कौन िकस कार क यव था क िलए उिचत रहगा। यायालय म आठ िविभ कार िगनाए ह और उनक संघटन क तीन अलग-अलग िविधयाँ बतलाई ह। ये िविधयाँ मशः जनतं , धिनकतं और यव थातं प ितय क अनु प होती ह। इस कार िविवध यव था का िववरण समा हो जाता ह। यव था क व प क अ ययन क प ा अर तू उनम होनेवाली ांितय क कारण एवं उनको दूर कर नीित थािपत करने क उपाय क मीमांसा करते ह। मानव शरीर क भाँित शासन यव थाएँ भी णाव था को ा हो सकती ह और समुिचत उपचार ारा उनक रोग का भी िनराकरण और उपराम संभव ह। जनतं ा मक मनोवृि वाला जनसमूह समानता का बल समथक होता ह। वह असमानता को नह सह सकता और उसको सभी े से हटाने का य न करता ह। धिनकतं क ेमी धन-संपि क असमानता क आधार पर यह दावा करते ह िक जो संपदा म दूसर से बड़ ह, वे सभी बात म अ य लोग से बढ़कर माने जाने चािहए। यिद ऐसा नह होता तो वे समझते ह िक याय नह आ। इसी कार क मनोवृि को ांितकारी मनोवृि कहा जा

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सकता ह। ांित क कारण को पूणतया नह िगनाया जा सकता। मुख कारण ह कछ लोग का लाभ और स मान को अ यिधक ा कर लेना और अ य लोग को अ यायपूवक उनसे वंिचत रखना। शासक क धृ ता, कछ य य को अ यिधक मह व क ा , जाजन अथवा मह वाकां ी जाजन का ितर कार, रा क िकसी अंग क असंतुिलत वृ , चुनाव म ष यं और चालबािजयाँ, अिव ासपा लोग को शासनािधकार क ा , छोट-छोट प रवतन क ित असावधानी इ यािद। यिद इन कारण को और सू मता क साथ देखा जाए तो गेट क उ से सहमत होना पड़गा िक ांितयाँ सवदा शासक क दोष क कारण उ प होती ह, शािसत क दोष क कारण नह । ांितय का भाव एक सा नह होता। कभी ांितकारी लोग सम यव था को बदल डालते ह तो कभी वे स ा ह तगत करक ही संतु हो जाते ह। कभी ांित क प रणाम व प जनतं अथवा धिनकतं का व प पहले क अपे ा अिधक गहरा हो जाता ह तो कभी अिधक हलका हो जाता ह। इसी कार कभी-कभी ांित का ल य कवल िकसी शासन क िवशेष सं था को ही बदल डालना होता ह एवं कभी-कभी ांित का रोष िकसी य िवशेष को ही अपना ल य बनाता ह। ांित क सामा य कारण क अित र पृथक-पृथक यव था म ांित क कछ िवशेष कारण भी होते ह। उदाहरण क तौर पर—जनतं म लोकनायक क अितगामी वृि य क कारण धिनकवग जनतं क िव मोचा बनाकर उसको उखाड़ फकता ह और धिनकतं को थािपत कर देता ह अथवा कभी-कभी लोकनायक ही जनतं को समा करक उसक थान पर तानाशाही क थापना कर देते ह। धिनकतं क दुःखदायी एवं पीड़ापूण शासन क िव जा िव ोह खड़ा कर देती ह और धिनकतं क भीतर फट पड़ जाती ह, तब कोई धनी य लोकनायक बन जाता ह। े जनतं म ांित उ प होने का कारण होता ह, अ य प सं यक लोग का स मानभाजन होना, िजससे अ य मह वाकां ी लोग क ेष-भावना भड़कने लगती ह। यव था तं म यिद जनतं ा मक और धिनकतं ा मक त व का संतुिलत स म ण नह हो पाता तो ांित हो जाया करती ह। यह कहना सवदा सरल नह होता िक िकस कार क यव था का ांित क प ा या पांतर होगा। यव था प ित ायः जनतं क प को हण कर लेती ह, पर कभी धिनकतं म भी बदल सकती ह। इसी कार य िप े जनतं ांित ारा ायः धिनकतं म प रवितत आ करती ह, पर कभी जनतं भी उसका थान हण कर सकता ह। अर तू ने इन सब कार क प रवतन से बचने और सब कार क यव था को थािय व दान करनेवाले उपाय भी बतलाए ह। इन उपाय को देखकर कछ आलोचक ने अर तू को मािकयावेली को फित देनेवाला कहा ह, पर ऐसा कहना उिचत नह । जो य प रपूण पु षो म क शासन को सव े मानता ह, उसका िनक प ितय क थािय व क िविध बतलाना कवल राजनीित शा क पूण वै ािनकता क ि क कारण ह, न िक किटलता क चार क िनिम । ांितय को रोकने क उपाय म अर तू क मत म सव थम ह—शासक क ारा कानून का पालन और र ण। यिद शासक छोटी-से-छोटी बात म भी िनयम का पालन कर एवं मामूली-से-मामूली प रवतन क अवहलना न कर तो उनका शासन उथल-पुथल से मु रह सकता ह। जनता क ित छल का यवहार भी नह िकया जाना चािहए, य िक छल का भंडाफोड़ अव यंभावी ह। अर तू क मत म शासन प ित का नाम अथवा बाहरी प उसक थािय व से िवशेष संबंध नह रखता। शासन

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प ित िकसी भी कार क हो, यिद शासक जनता क ित समझदारी का यवहार कर, उसक ित अ छ संबंध बनाए रह, मह वाकां ी य य क स मान को ठस न प चाए, सामा य जनता क धन का दु पयोग न कर, यथासंभव जनता को अथवा कम-से-कम उसम से मु य-मु य य य को शासन काय म कछ भाग दान कर तो िकसी भी नाम और कार वाली प ित थायी हो सकती ह। जनता क स मुख िकसी कार क भय को, िवशेषकर िवदेशी श ु क आ मण क आतंक को बनाए रखना भी लाभदायक होता ह। शासक दल क बीच एकजुटता का होना आव यक ह। जा क बीच भेदनीित को इस सीमा तक बरतना चािहए िक िकसी भी एक दल को अ यिधक सबल नह बन जाने देना चािहए। यिद जाजन म िकसी कारण से संपि क िवतरण म प रवतन उप थत हो तो इन प रवतन का बड़ी सावधानी से िनरी ण करना चािहए। यिद कोई य एक साथ िनधन से धनवान अथवा धनवान से िनधन हो जाता ह तो इसका भाव रा क िलए भयावह हो सकता ह। सबसे अिधक ांित का भय कोष संबंधी गड़बि़डय से होता ह, इसीिलए राजक य आय- यय का लेखा-जोखा िबलकल ईमानदारी और प ता क साथ तैयार िकया जाना चािहए। यिद शासन प ित धिनकतं हो तो उसको जनतं ा मक जनता क ित ेषपूण नह , वर यायपूण यवहार करना चािहए। जो अपने िवरोिधय को संतु कर सकता ह, वह सब भय से मु हो जाता ह। उ पद पर यो य य य क िनयु से भी जनता म अशांित नह फलती। मुख शासक म शासन प ित क ित ा, शासन काय क मता और ामािणकता—ये तीन गुण पाए जाने चािहए। यिद तीन गुण एक साथ न िमल सक तो दो िमल और यिद िकसी पद क िलए िविश कार क यो यता एवं मता आव यक हो तो उस मता का िवशेष िवचार िकया जाना चािहए, शेष दो गुण का अिधक याल नह िकया जाना चािहए। वैसे तो अर तू ायः सदाचार अथवा स ृि पर ही अिधक बल देते ह, पर वह अ छ अथ म यथाथवादी ह और स ृि म आचरण और बु दोन क उ मता स मिलत ह। जैसािक बताया जा चुका ह—अर तू जनतं और धिनकतं का ाण िवरोधीवाद क साथ समझौता करने म ही समझते ह। उनक अनुसार, िवशु कार क यव था क अपे ा िमि त यव थाएँ अिधक थायी हो सकती ह। तानाशाही शासन को दो कार से सुर ा ा हो सकती ह। बुरा उपाय तो यह होगा िक तानाशाह जनता को इतना दीन-हीन और अपंग बना दे िक वह िसर न उठा सक। अ छा उपाय यह ह िक तानाशाह कवल अपने वाथ छोड़कर राजा क समान जा का िहतैषी बन जाए। राजनीित क अंितम दो पु तक म अर तू ने आदश नगर यव था क परखा तुत करने का यास िकया ह। वा तव म वह आदश यव था क संबंध म सामा य िवचार को य करक उसक िश ा क परखा ही तुत कर सक ह। शासन प ित कवल शासन बंध का ही नाम नह ह, वह एक जीवन प ित भी होती ह, इसीिलए आदश शासन प ित क परखा तुत करने से पूव अर तू ने वांछनीय जीवन क झाँक तुत करने का य न िकया ह। हर तरह क संपदाएँ तीन भाग म बाँटी जा सकती ह— 1. भौितक संपदाएँ। 2. शारी रक संपदाएँ। 3. आ या मक संपदाएँ।

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अपने सदाचारशा म अर तू ने अनुभव क आधार पर इस िस ांत का ितपादन िकया था िक य िप इन संपदा म से उपे णीय कोई नह ह, िफर भी उ कोिट क स ृि क योग म भौितक संपदा क साधारण मा ा क ा से भी मनु य को उससे अिधक सुख ा होता ह, जो भौितक संपदा क अ यिधक मा ा और थोड़ी सी स ृि क योग से उपल ध होती ह। सच तो यह ह िक भौितक संपदाएँ एक सीमा तक ही संपदा रहती ह, पर सीमा का उ ंघन करने पर िवपदा बन जाती ह। स ृि क मा ा िजतनी अिधक हो, उतनी ही अ छी, इस िदशा म ‘अित’ विजत नह ह। भौितक और शारी रक संपदाएँ आ मिहत क िलए अभी ह, अ यथा उनका कोई मह व नह ह। रा जीवन म स ृि क साथ-साथ भौितक संपदा क भी पया मा ा होनी चािहए िजससे स कम परायण जीवन प ित संभव हो सक। स ृि मय जीवन को सव म मान लेने पर भी अर तू यवसाय और राजनीित म संल न जीवन क अपे ा िचंतन एवं मननपरायण जीवन को ही अिधक वर य मानते ह। उनक मत म कमठता अनेक कार क हो सकती ह। वह जो य दूसर पर शासन करना और अिधक-से-अिधक राजनीितक स ा को अपनी मु ी म रखना ही कमठता का आदश मानते ह, अर तू उनसे सहमत नह । इसी कार वह उनसे भी सहमत नह , जो यह मानते ह िक वैधािनक शासन भी य क याण का िवरोधी ह। सव प र स ा तभी अ छी होती ह, जब उसका यवहार दासतु य जन क ित िकया जाता ह, अ यथा वह बुराई म प रणत हो जाती ह। दूसरी ओर य िप वतं जीवन परतं जीवन क अपे ा अिधक बेहतर होता ह, पर सभी शासन यव थाएँ भु शासन व प नह होत । कमठ जीवन का ता पय कवल उस जीवन से नह ह, िजसम इतरजन का संपक अिनवाय हो। वयं िवचार भी ि या ह और साधारण ि या नह , िद य ि या ह। इस कार अभी तम जीवन क व प का िनधारण करक अर तू आदश नगर क िच क परखा तुत करते ह। ऐसे नगर क थम शत ह—पया जनसं या, जो न सुखी जीवन क आव यकता क िलए कम हो और न अ यिधक। अर तू ने कषक, यवसायी, िश पी और िमक क अित र वतं नाग रक क जो यूनतम और अिधकतम सं या का संकत िकया ह, वह उभय प म अ प ह। अिधक-से-अिधक सं या इतनी होनी चािहए िक उसको एक नजर म देखा जा सक और एक य क आवाज उन सबको सुनाई पड़ सक। अर तू को िवशाल नगर क क पना ि य नह थी एवं उनक िश य ने जो सा ा य िनमाण आरभ िकया था, उसक ित उनक सहानुभूित नह थी। वह तो राजनीितक चरम िवकास क प म ऐसे नगर को ही देख रह थे, िजसक वतं नाग रक एक-दूसर से प रिचत ह । उनक मतानुसार, िजस नगर क नाग रक पर पर प रिचत न ह , वहाँ े शासन और िनद ष याय संभव नह ह, पर भिव य ने उनक इस कार क आशंका को िनमूल िस कर िदया। रा य क भूिम क िवषय म उनका मत यह था िक उसका े फल इतना होना चािहए िक उसक उपज से वतं एवं आरामदायक जीवन का पोषण संभव हो सक, पर इतना अिधक नह होना चािहए, िजससे िवलािसता का िवकास संभव हो। यु क संभावना को यान म रखते ए नगर का थान श ु क वेश क िलए दुगम एवं नगर िनवािसय क आवाजाही क िलए सुगम होना चािहए। अ छा हो, यिद सम े फल एक नजर म देखा जा सक। यिद थित समु क करीब हो तो यु और जीवन क आव यकता क ा क िलए सुिवधा रहती ह। यह नगर यापार क मंडी भी होना चािहए, िजससे नगर क आव यकताएँ अ य थान से पूण क जा सक और अपनी आव यक व तुएँ दूसर थान को भेजी जा सक। यापार का उ े य अमयािदत धन कमाना नह होना चािहए। ीक जाित क च र क िवषय म भी अर तू क

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अपनी धारणा थी िक यह जाित उ साह एवं बु म ा दोन से ही यु ह। यिद यह िकसी कार से एक रा म संघिटत हो सक तो सार संसार पर शासन कर सकती ह। शासन यव था का िवचार करने से पूव यह देख लेना आव यक ह िक इस आदश नगर-रा म िकतने कार क काय आव यक ह गे और उनको पूण करने क िलए िकस-िकस वग क य य क आव यकता होगी। इस ि से नगर को िन निलिखत वग क आव यकता होगी— 1. कषक वग। 2. िश पकार वग। 3. यो ा वग। 4. धिनक वग। 5. पुरोिहत वग। 6. यायकता गण। इन वग म से कषक अवकाश क अभाव क कारण एवं िश पकार स ृि क अभाव क कारण राजनीितक जीवन म भाग नह ले सकते। शेष वग क यव था इस कार क होनी चािहए िक जब वे युवा ह तो यो ा दल म रह, युवाव था पार कर चुकने पर शासक बना िदए जाएँ और वृ होने पर पुरोिहत। थावर संपि भी इ ह लोग क हाथ म रहनी चािहए, न िक कषक क। इस कार अर तू क आदश नगर म भी लगभग उसी कार का सामािजक भेद होगा, जैसािक भारतीय समाज म ज और जेतर वग म था। हालाँिक अर तू को भू-संपि पर सबक समान अिधकार का िस ांत मा य नह था, िफर भी उ ह ने सावजिनक पूजाअचना क यय और स मिलत भोज क यय क िलए भू-संपि क एक भाग को सावजिनक संपि बनाने का सुझाव अव य िदया था। स मिलत भोज उनक ि म नाग रक एकता क वृ म सहायक होते ह। शेष भू-संपि पृथक-पृथक नाग रक क य गत संपि क प म इस कार बँटी होनी चािहए िक येक य को एक भूखंड ब ती क समीप और दूसरा सीमा क पास िमले, िजससे िवभाजन यायसंगत हो और यु होने पर सब उसको जीतने क िलए समान प से उ म कर सक। इस कार नगर क बस जाने पर यह न सामने आता ह िक नगरवािसय को सुखी होने का सबसे महा अवसर िकस कार क शासन यव था से उपल ध हो सकता ह? यह तो पहले कहा जा चुका ह िक सुख क उपल ध मु यतया स ृि से एवं गौणतया भौितक पदाथ से होती ह और स ु का संबंध कित, आदत और तकसंगत जीवन िनयम से ह। अंितम दो उपाय िश ा से संबंिधत ह। सवथा िनद ष प रपूण पु षो म क उ पि न तो मनु य क वश क बात ह और न िश ा ारा ही उसका िनमाण संभव ह। जब कोई एक नाग रक अथवा कछ नाग रक इतने िनिववाद प से यो य ह गे ही नह तो उनक थायी शासक बनने का न भी नह उठ सकगा। इसीिलए यही उपाय शेष रह जाएगा िक नाग रक को ऐसी िश ा दी जाए, िजससे वे आरभ म आ ाकारी और अ छ नाग रक बन सक और कालांतर म इस आ ाका रता को सीखकर अ छ शासक भी बन सक। इस कार शािसत होने म कोई िगरावट क बात नह ह, य िक इसका उ े य उ म ह। मानव जीवन का उ े य ह िववेक, जो मानव जीवन क िनयम का िनमाता ह। यह िववेक भी यवहारा मक और िचंतना मक दो कार का होता ह। थम कार क िववेक का संबंध यु और यवसाय से ह और दूसर का संबंध शांित और

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अवकाश से। दूसर कार का िववेक थम कार क यवसाया मक िववेक से बढ़कर ह, य िक यवसाय और यु का भी य उ े य शांित और अवकाश को उपल ध करना ही ह। इसीिलए यु और अिधकार जमाने को ही रा ीय स ा का चरम उ े य मानने से बढ़कर और अिधक बड़ी भूल नह हो सकती। हमार साहस और बल का थम उपयोग यह होना चािहए िक हमको कोई दास न बना सक। तदुपरांत यिद जीतकर सा ा य क ा कर सक तो हमारा शासन शािसत क िहत क िलए होना चािहए। हम भुता कवल उन लोग पर जतानी चािहए, जो दास ह। अर तू क मत म य और रा दोन क िलए सदाचार क िनयम एक समान ह, इसीिलए उसक तुलना मािकयावेली से कदािप नह क जानी चािहए। िश ा का उ े य िववेक का साधन ह, पर िववेक क उपल ध वासना पर संयम ा करती ह। वासना का संयम शरीर क संयम ारा उपल ध होता ह और शरीर क सं कार ब त कछ माता-िपता से ा होते ह। इसीिलए अर तू ने िश ा क संबंध म यापक ि रखी ह और सु जनन एवं िववाह इ यािद क संबंध म और शरीर क िवकास क संबंध म भी उपयोगी सुझाव उप थत िकए ह। ब क भोजन, यायाम और मनोरजन क िवषय म भी उ ह ने उ म सीख दी ह। आपक यव था क नाग रक का आचरण भी आदश होना चािहए और एक समान आदश होना चािहए। ऐसा तभी संभव ह, जब ब क िश ा य गत प से उनक माता-िपता क ऊपर न छोड़ी जाए, ब क रा ही सबको समान प से अपना अंग मानकर एक समान िश ा का सबक िलए बंध कर। नगर क भौितक आव यकता क पूित करनेवाले वग तो नाग रक होते नह , इसिलए अर तू ने िश ा का जो व प तुत िकया ह, उसम उ ोग-धंध क िश ा क िलए कोई थान नह ह। यह िश ा मु य प से सदाचार और स ृि क िश ा ह। िशशु क अंग संचालन से लेकर 5 वष क अव था तक क िश ा म िशशु क पोषण इ यािद क चचा ह, जब वे भाषा समझने लग तो उनको सदाचारपरक कहािनयाँ सुनाने और कसंगित से बचाने का िवधान िकया गया ह। पाँच से सात वष तक क अव था क ब को अपने से बड़ ब को काय करते ए देखना चािहए, य िक आगे चलकर उनको भी वही करने ह गे। इसक उपरांत पढ़ने, िलखने, िच ांकन करने, यायाम करने और संगीत का अ यास करने क िश ा का समय आता ह, जो 21 वष क अव था तक चलता ह। अर तू अ यिधक यायाम का भी समथन नह करते। संगीत िश ा क िविवध कार क उपयोिगता पर िवचार करक अर तू उसक आचारसंबंधी मह व पर ही बल देते ह, पर संगीत क िश ा का उ े य पेशेवर संगीत बनाना नह , आ मा को सं कितवान बनाना ह। राजनीित क समा एक सम या ह। आदश यव था क चचा संगीत िश ा क िववरण क साथ समा हो जाती ह। िन य ही पाठक यह सोचने क िलए िववश हो जाता ह िक इस ंथ का कछ भाग या तो न हो गया ह अथवा लेखक उसको पूरा नह कर सका। आठव पु तक क छोट आकार से भी इस धारणा को बल िमलता ह, पर यह भी संभव ह िक यिद िश ा ठीक कार क हो तो और सब बात अपने आप ठीक हो जाती ह, पर वा तव म िश ा का वणन भी तो पूरा नह हो पाया ह। िजस कार अ य एकािधक थल पर अर तू क िववेचन अचानक अधूर रह गए ह, इसी कार यहाँ भी आ ह। इस कार यूनानी नगर-रा क परपरा क मा यम से अर तू ने अपने राजनीित संबंधी िवचार को य िकया। यह परपरा वतं नाग रक , दास तथा कषक क और ीक तथा बबर क भेद को मानकर चलती ह।

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अर तू ने अपने िश य िसकदर को इस भेद को बनाए रखने का उपदेश िदया, पर उसने इस िवषय म अपने गु क उपदेश को नह माना और ऐसे सा ा य क न व डाली, िजसम उसने वयं को ीक और पिशयन दोन का समान प से वामी माना और अपने अधीन ीक और पिशयन म कोई भेद नह िकया। इस कार नगर-रा क धारणा क साथ ही िव -रा क भावना का उदय आ। ीक और बबर को और वतं नाग रक एवं िमक को एक समान समझने क भावना अंक रत ई। यह भावना यूरोप म ई.पू. 300 से 1500 ई वी तक बनी रही। q

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एथस का संिवधान

एथस का संिवधान अर तू क

रचना म एक मह वपूण पु तक ह। अर तू क संबंध म चिलत परपरागत कथा म यह बात िस थी िक उ ह ने ीक जग क नगर क 158 संिवधान का सं ह िकया था। संभव ह िक इनम से अनेक संिवधान को उसक सहयोिगय और िश य ने तुत िकया हो। इ ह म एक संिवधान एथस का भी था, िजसको संभवतया वयं अर तू ने ही िलखा था। सातव शता दी ई वी तक एथस क संिवधान क अ त व क माण िमलते थे, पर सातव शता दी क कछ समय प ा यह लु हो गया। 19व शता दी क अंत म िम म इस पु तक क एक ित उपल ध हो गई। इसम चार अलग-अलग य य क िलखावट थी और संभवतया यह ित थम शता दी क थी। इसको ि िटश यूिजयम क टय ने खरीद िलया और कयॉन ने स 1891 म इसको थम बार कािशत िकया। बिलन क िम देशीय यूिजयम ने इससे कछ पहले स 1880 म िकसी एक अ यंत खंिडत ितिलिप क कछ भाग कािशत िकए थे। िजस कार भारतवष म कौिट य क अथशा और भास क नाटक का काशन अ यंत मह वपूण घटना मानी जाती ह, उसी कार इस ंथ का काशन ीक सािह य और इितहास क संबंध म िवशेष मह व रखता ह। आरभ म तो इसक रचनाकाल और रचियता क संबंध म पया िववाद रहा, पर धीर-धीर िव ान क प र म क प रणाम व प यह बात िस हो गई िक यह संिवधान अर तू क ही रचना ह और इसका रचनाकाल भी एथस म अर तू क तीय िनवासकाल क सीमा क भीतर िन त हो चुका ह। जब टीकाकार और वैयाकरण क ंथ म पाए जानेवाले अर तू क लु ंथ क उ रण क तुलना इस पु तक से क गई तो उनम से ब त से इस पु तक म िमल गए। इसी कार अर तू क संिवधान संबंधी ब त से िवचार भी इसम िमल गए। जो नह िमले, उनक िवषय म यह अनुमान िकया जाता ह िक उनम से कछ इस रचना क आरभ म रह ह गे, जो ि िटश यूिजयमवाली ित म नह ह और कछ अंत म रह ह गे, जो उपल ध ित म बुरी तरह खंिडत ह। इसम एथस क िजस यव था का वणन िव मान संिवधान कहकर िकया ह, उसको जनतं कहा ह। ई.पू. 322 म अंितपातेर क शासनकाल म जनतं को समा कर िदया गया था। इस संिवधान म सामॉस को एथस क अधीन कहा गया ह। यह त य ई.पू. 338 क थित क ओर संकत करता ह। ई.पू. 322 क लगभग सामॉस एथस क हाथ से िनकल गया था। नौसेना से संबंध रखनेवाले कछ संकत ई.पू. 334 क बाद क घटना क ओर संकत करते ह। एक घटना ऐसी भी विणत ह, िजसका संबंध ई.पू. 329 से ह। इससे यह िन कष िनकलता ह िक इसक रचना ई.पू. 329 और ई.पू. 322 क म य ई होगी। यह समय पॉिलिट स क रचना क प ा का ह, य िक इसम मेसेडोिनया क शासक िफिलप क मृ यु (ई.पू. 336) क उपरांत क िकसी घटना का उ ेख नह ह। इस पु तक क शैली एवं अनेक मह वपूण त य क िवषय म इसका राजनीित से िवरोध होने क कारण आरभ म कई िव ा इसको अर तू क रचना नह मानते थे। उनका यह भी िवचार था िक इस पु तक क लेखक को त य क मह व क अनुपात का भान नह था और ऐितहािसक अंत ि भी ा नह थी। बस कहािनयाँ कहने क िच उसम आव यकता से अिधक थी।

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जैसे-जैसे इसका अिधक सू म अ ययन िकया गया, िव ान क आ था इसक ामािणकता क िवषय म अिधक ढ़ होती गई। ाचीन काल म जहाँ भी इसका उ ेख िमलता ह, इसको िन त प से अर तू क रचना बतलाया गया ह। इसका रचनाकाल, जो िक अंतःसा य से िस होता ह, वह भी इसी त य क पुि करता ह। वह समय अर तू क दूसर एथस िनवासकाल से िभ ह। जब इसक तुलना ‘राजनीित’ से करते ह तो समता और िवरोध दोन ही ि गोचर होते ह। इसका समाधान यह ह िक एथस का संिवधान राजनीित क अनेक वष पहले तुत िकया गया था और कालांतर म अर तू का मत अनेक िवषय म बदल जाना वाभािवक ह। इसम तो कोई संदेह नह िक अर तू ने जो 158 संिवधान का सं ह िकया था, उसम से अनेक संिवधान उनक िश य और सहयोिगय ारा तुत िकए गए ह गे। एथस का संिवधान उन सबम सबसे अिधक मह वपूण था, इसीिलए अिधक संभावना इसी बात क ह िक इसको वयं उ ह ने िलखा हो। इसक शैली म िम ण का आभास नह िमलता। अर तू इितहास क ित गंभीर िदलच पी रखते थे। इस े म उ ह ने वयं भी ब त साम ी का सं ह िकया था। इस साम ी का उपयोग उ ह ने अपनी रचना म यथा थान समुिचत तरीक से िकया ह। एथस क संिवधान म उ ह ने ऐितहािसक साम ी को कहाँ से हण िकया, इसक िवषय म िव ान ने पया शोध िकया ह। इस पु तक क साम ी हरोडो स, यूिथदमस, िसनोफॉन क ऐितहािसक रचनाएँ और सौलॉन क किवताएँ ह। इन सबक अपे ा संभवतया अर तू ने आं ाितयौन क पु तक ‘अ रथस’ का योग अिधक िकया था। इसक अित र कछ और ऐितहािसक पु तक का उपयोग अर तू ने इसको िलखने म िकया होगा जैसे ऐफोरस, खैदेमस और फानोदमस क रचनाएँ। एथस का संिवधान दो भाग म िवभ ह। थम भाग ऐितहािसक िवकास का िववरण तुत करता ह और आरभ से लेकर 41व खंड क अंत तक चलता ह। इसम एथस क मौिलक संिवधान और उसम समय-समय पर ए प रवतन का िववरण ह, पर ारभ का भाग खंिडत ह, इसीिलए यह कहना किठन ह िक अनुपल ध भाग म या था। संभव ह िक उसम मौिलक संिवधान का संि प और एक-दो शासक ारा िकए गए प रवतन का वणन रहा हो। शेष भाग म ाफो, सौलॉन, पैइिसस ातस, ैइ थैनस िसर स का अिभयान, अ रयौपागस क मह ा और अिफया ते ारा उसक मह ा का अपहरण, पेरी ीज, लोकनायक का उ थान, 400 क ांित एवं 30 का शासन इ यािद य य और िवषय का वणन ह। दूसर भाग म एथस क उस संिवधान का िववरण िदया गया ह, जो इस पु तक क रचना क समय (ई.पू. 329322) तक िव मान था। एथस क नाग रक होने क शत, युवा नाग रक क िश ा-दी ा, संस का व प और काय, ाका ारा चुने जानेवाले पदािधकारी, नौ आखन और उनक काय, मतदान से चुने जानेवाले सैिनक अिधकारी और यायालय क यायकता क िनयु और कत य इ यािद िविवध िवषय का वणन दूसर भाग म पाया जाता ह। ारिभक भाग क समान पु तक का अंितम भाग भी ब त खंिडत ह। यह कहना किठन ह िक शेष भाग म या था। अर तू ने इस पु तक म अनेक कथा एवं ाचीन परपरा क गाथा को स मिलत करक सवसाधारण क िच क यो य बना िदया ह। ‘एथस का संिवधान’ का मह व अनेक ि य से आँका जा सकता ह। थम तो अर तू क नाम से िजसका

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संबंध हो, ऐसी िकसी भी रचना का पुन ार वतः मह वपूण हो जाता ह। दूसर, एथस क इितहास क िवषय म— िवशेषकर वै ािनक इितहास क िवषय म भी इस रचना का मह व कम नह ह। इस रचना का वह भाग जो अर तू क समय क संिवधान का वणन करता ह, सवथा िव सनीय ह, य िक अर तू क वै ािनक ि से तुत िकया आ िववरण सारवान होना ही चािहए। जो घटनाएँ अर तू क िलए भूतकाल क ह, उनका िववरण अर तू क अपने अनुभव पर आि त नह ह, वह तो त कालीन समय क लेखक क सा य पर आधा रत ह। उनम भी कछ लेखक ऐसे थे, जो अ यिधक िव सनीय थे और शेष लेखक उतने अिधक िव सनीय नह थे, इसीिलए सम पु तक क साम ी पूणतया ामािणक ह, ऐसा नह कह सकते। हालाँिक इसक शैली सीधी-सादी और सरल ह और ंथकार क आलोचनाएँ भी समझदारी क प रचायक ह, िफर भी यह कोई महा रचना नह कही जा सकती। अर तू का का यशा भी छोट आकार क पु तक ह, पर वह मह व म ‘संिवधान’ क अपे ा अिधक मह वपूण ह। पॉिलिट स क तुलना म यह पु तक आकार म ही नह कार म भी कम ह। जो सू म दाशिनक नज रया पॉिलिट स म नजर आता ह, उसका इसम सवथा अभाव ह। अनेक थल पर लेखक क कथन म भी िवरोधाभास नजर आता ह। इन सब दोष क होते ए भी ‘एथस का संिवधान’ का मह व असाधारण ही माना जाता ह। प मी देश क इितहास म उपल ध होनेवाला यह सबसे पुराना संिवधान ह। जब से (स 1891) म इसका पता चला ह, उससे पूव क एथस क संिवधान से संबंध रखनेवाली सब रचनाएँ िनरथक िस हो गई ह। इस पु तक से इस िवषय म सव म कोिट का सा य ह तगत हो गया ह। पा ा य जग क मुख जनतं का संिवधान तकरीबन पूण प म हमार सामने आ गया ह। अर तू क ‘राजनीित’ क अ ययन क िलए भी यह पु तक ब त सहायक हो सकती ह। यह संभव ह िक तीय भाग क अपे ा थम भाग कम िव सनीय हो, तथािप उससे भी जो जानकारी ा होती ह, वह भी सामा य नह ह। एथस नगर यूरोप क दि ण म अि का देश म थत ह। समु से इसक कम-से-कम दूरी तीन मील ह। नगर क चारदीवारी क भीतर ऊचे थान ह, अ ोपोिलस, जो एथस का गढ़ अथवा िकला था, नगर क म य भाग म थत था। अरयोपागस अ ोपोिलस से प म क ओर ह और ी स जो अ ोपोिलस से उ र-प म िदशा म ह। नगर क मंडी का नाम अगोरा था। यह नगर क करािमकस भाग म थी, जो अ ोपोिलस और अरयोपागस से प म और उ र-प म क ओर था। इसी क पास दो अलग-अलग तंभांिकत माग थे। बाहरी करािमकस चारदीवारी क बाहर था, इसम नगर का मशान था। अ ोपोिलस क दि णी ढाल क ओर िदयोनीिसयस का रग थल था। दि ण-पूव िदशा म िजउस का मंिदर था, जो अपूण पड़ा आ था। चारदीवारी म वैसे तो अनेक ार थे, पर मु य ार नगर क उ र-प म म था और िदपीलॉन कहलाता था। यहाँ से कौलोनस और लेटो क अकादमी नामक महािव ालय क ओर सड़क जाती थ । इसी ार क समीप एक दूसरा ार था, जो धम ार कहलाता था, िजससे ए यूिसस क ओर माग जाता था। अ य ार से िपराएयस फालेरस और सूिनयम इ यािद थान क ओर सड़क जाती थ । संभवतया छठी शता दी म िपिस ातस क शासनकाल म सार नगर क जल-संकट का िनवारण करने क िलए एक जलागार बनाया गया था। नगर िनवािसय क भवन धूप म पकाई ई ईट क बने होते थे और अ ोपोिलस क आसपास तंग टढ़ी-मेढ़ी गिलय क दोन ओर ये भवन बने रह ह गे। ये मकान देखने म अ छ नह लगते थे। नगर क प म म कफ सस नामक नदी बहती थी एवं इलीसस नदी दि ण-पूव और दि ण क ओर, पर यह नदी ायः सूखी पड़ी रहती थी।

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अ यंत ाचीनकाल म यहाँ ीक जाित क लोग नह बसते थे। उस समय यहाँ क स यता मीकनाइ क स यता थी। उसम इयोिनया से ीक लोग ने आकर अपनी स यता का िम ण आरभ कर िदया था और कालांतर म पुरानी स यता का अंत हो गया। आठव शता दी तक सारा नगर एक इकाई नह बना था। आठव शता दी म िविभ ब तयाँ िमलकर एक बड़ी नगरी बन गई। कहते ह िक यह एकता ीिसयस क समय म थािपत ई थी। अ ोपोिलस इस नगरी क राजधानी थी। नगर का नाम अथेना देवी क नाम पर पड़ा। कहते ह िक अ यंत ाचीनकाल म अथेना देवी और ोसेरस नामक देवता क बीच म अि का देश पर आिधप य ा करने क िलए िववाद िछड़ गया। अ य देवता ने यह िन य िकया िक िववाद करनेवाल म से जो भी अि कावािसय क िलए अिधक उपयोगी व तु क भट देगा, उसी का अिधकार अि का पर हो जाएगा। पोसेइदन ने अपने ि शूल को पृ वी पर पटक िदया, िजससे एक घोड़ा उ प आ, पर अथेना देवी ने जैतून का वृ उ प िकया। देवता ने जैतून क वृ को अिधक उपयोगी समझकर एथेना को िवजय ी दान क । सािह य, कला, दशन और इितहास क े म एथस नगर क देन अतुलनीय ह। पाँचव और चौथी शता दी म इस नगर ने जो सवतो मुखी उ ित क , उसक कारण इसका नाम िव क इितहास म अमर हो गया। राजनीित क े म एथस अिधक उ ित नह कर सका, उसका सा ा य िटकाऊ नह रहा, पर सं कित क े म उसको शा त गौरव ा ह। q

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मह वपूण ितिथयाँ ई.पू. 384 टजीरा म अर तू का ज म। ई.पू. 367 एथस गए और लेटो से िश ा हण करने लगे। ई.पू. 356 िसकदर महा का ज म। ई.पू. 347 लेटो का िनधन आ। अर तू एथस छोड़कर अटरिनयस क शासक हरिमयस क दरबार म गए और अ सौस म रहने लगे। ई.पू. 345 िमिटलेन गए और बाद म टजीरा लौट आए। ई.पू. 343 मेसेडोिनया क शासक िफिलप ने िसकदर को िश ा देने क िलए अर तू को आमंि त िकया। ई.पू. 341 हरिमयस का िनधन। ई.पू. 336 िफिलप क ह या ई। िसकदर राजा बना। ई.पू. 335 एथस लौटकर अ यापन करने लगे। ई.पू. 323 िसकदर का िनधन। ई.पू. 322 एथस से खा कस गए, जहाँ देहांत हो गया। q

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संदभ ंथ 1. ीक िथंकस गो पज 2. द िलजेसी ऑफ ीस आर.ड यू. िलिवंग टोन 3. द ीक यू ऑफ लाइफ जी.एल. िडिफनसन 4. लेटो एंड ए र टोटल ई. बकर 5. ए र टोटल ड यू.डी. रोज 6. िह ी ऑफ पॉिलिटकल थॉट पी. डोएल 7. इ ोड शन ट ए र टोटल रचड मेकन 8. ए र टोटल ए.ई. टलर 9. ए र टोट स कशे शन ऑफ द टट ए.सी. ेडली 10. लेटो एंड ए र टोटल भंडारी एंड सेठी 11. द टोरी ऑफ िफलॉ फ टट िवलड qqq

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