Gurutva Jyotish E-magazine January-2017

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गुरुत्व कामाारम द्व़या प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिक

जनवरी-2017

NON PROFIT PUBLICATION

.

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FREE E CIRCULAR

गरु ु त्व ज्मोततष ऩत्रिका जनवयी-2017

सॊऩादक

च त ॊ न जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोततष ववबाग

गुरुत्व कामाारम

92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA

पोन

91+9338213418, 91+9238328785, ईभेर

[email protected], [email protected],

वेफ

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ऩत्रिका प्रस्ततु त

च त ॊ न जोशी,

स्वस्स्तक.ऎन.जोशी पोटो ग्राफपक्स

च त ॊ न जोशी, स्वस्स्तक आटा हभाये भख् ु म सहमोगी

स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक सोफ्टे क इस्डडमा सर)

गरु ु त्व ज्मोततष भाससक ई-ऩत्रिका भें रेखन हे तु फ्रीराॊस (स्वतॊि) रेखकों का स्वागत हैं...



गिरुत्व ज्योऽतष म़ऽसक इ-पऽिक़ में अपके द्व़ऱ ऽिखे गये मंि, यंि, तंि, ज्योऽतष,

ऄंक

फें गशिइ,

टैरों,

ज्योऽतष, रे की

एवं

व़स्ति, ऄन्य

अध्य़ऽत्मक ज्ञ़न वधधक िेख को प्रक़ऽशत करने हेति भेज सकते हैं। ऄऽधक ज़नक़रा हेति संपकध करें ।

GURUTVA KARYALAY BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- [email protected], [email protected]

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स्थामी औय अडम रेख संप़दकीय

4

दैऽनक शिभ एवं ऄशिभ समय ज्ञ़न त़ऽिक़

87

जनवरा 2017 म़ऽसक पंच़ंग

72

ददन के चौघऽडये

88

जनवरा-2017 म़ऽसक व्रत-पवध-त्यौह़र

74

ददन दक होऱ - सीयोदय से सीय़धस्त तक

89

जनवरा-2017 ऽवशेष योग

87

ग्रह चिन जनवरा 2017

90

वप्रम आस्त्भम फॊध/ु फहहन जम गुरुदे व







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हभायी शब ु काभनाएॊ आऩके साथ हैं…..

त ॊ न जोशी



गुरुत्व ज्योतिष

*****

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श क से संबंऽधत सीचऩ

 पऽिक़ में प्रक़ऽशत मकर संक्ऱऽन्त ए



*****

से संबंऽधत सभा ज़नक़राय़ं गिरुत्व क़य़धिय के

ऄऽधक़रों के स़थ अरऽित हैं।  पऽिक़ में प्रक़ऽशत ए वर्णणत मकर संक्ऱऽन्त के प्रभ़व को ऩऽस्तक/ऄऽवश्व़सि व्यऽि म़ि पठन स़मग्रा समझ सकते हैं।  मकर संक्ऱऽन्त क संक्ऱऽन्त





से संबंऽधत होने के क़रण भ़रऽतय श़स्त्रों से प्रेररत होकर मकर

ज़नक़रा दा गइ हैं।

 मकर संक्ऱऽन्त के प्रभ़व से संबंऽधत ऽवषयो दक सत्यत़ ऄथव़ प्ऱम़ऽणकत़ पर दकसा भा प्रक़र दक ऽजन्मेद़रा क़य़धिय य़ संप़दक की नहीं हैं।  मकर संक्ऱऽन्त के प्रभ़व की प्ऱम़ऽणकत़ एवं प्रभ़व की ऽजन्मेद़रा िेखक, क़य़धिय य़ संप़दक दक नहीं हैं और ऩ हीं प्ऱम़ऽणकत़ एवं प्रभ़व की ऽजन्मेद़रा ब़रे में ज़नक़रा देने हेति िेखक, क़य़धिय य़ संप़दक दकसा भा प्रक़र से ब़ध्य हैं। 



से संबंऽधत िेखो में प़ठक क़ ऄपऩ ऽवश्व़स होऩ न होऩ ईनकी आच्छ़ एवं अवश्यक पर

ऽनध़धररत हैं। दकसा भा व्यऽि ऽवशेष को दकसा भा प्रक़र से आन ऽवषयो में ऽवश्व़स करने ऩ करने क़ ऄंऽतम ऽनणधय स्वयं क़ होग़।  मकर संक्ऱऽन्त की ज़नक़रा से संबंऽधत प़ठक द्व़ऱ दकसा भा प्रक़र दक अपत्ता स्वाक़यध नहीं होगा। 



से संबंऽधत िेख हम़रे वषो के ऄनिभव एवं ऄनिशंध़न के अध़र पर ददए गए हैं। हम दकसा

भा व्यऽि ऽवशेष द्व़ऱ प्रयोग दकये ज़ने व़िे ऽजन्मेद़रा नहह िेते हैं। यह ऽजन्मेद़रा





क मंि- यंि य़ ऄन्य प्रयोग य़ ईप़योकी ब

मंि-यंि य़ ऄन्य प्रयोग य़ ईप़योको

करने व़िे व्यऽि दक स्वयं की होगा। क्योदक आन ऽवषयो में नैऽतक म़नदंडों, स़म़ऽजक, क़नीना ऽनयमों के ऽखि़फ कोइ व्यऽि यदद नाजा स्व़थध पीर्णत हेति प्रयोग कत़ध हैं ऄथव़ प्रयोग के करने मे ििरट होने पर प्रऽतकी ि पररण़म संभव हैं। 



से संबंऽधत ज़नक़रा को म़न ने से प्ऱप्त होने व़िे ि़भ, ह़ना दक ऽजन्मेद़रा क़य़धिय य़

संप़दक दक नहीं हैं।  हम़रे द्व़ऱ पोस्ट दकये गये सभा मंि-यंि य़ ईप़य हमने सैकडोब़र स्वयं पर एवं ऄन्य हम़रे बंधिगण पर प्रयोग दकये हैं ऽजस्से हमे हर प्रयोग य़ मंि-यंि य़ ईप़यो द्व़ऱ ऽनऽित सफित़ प्ऱप्त हुइ हैं।  मकर संक्ऱऽन्त ऽवशेज्ञ





,

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पीवध दकसा ज़नक़र

की सि़ह ऄवश्यिें।

ऄऽधक ज़नक़रा हेति अप क़य़धिय में संपकध कर सकते हैं।

(सभा ऽवव़दो के ऽिये के वि भिवनेश्वर न्य़य़िय हा म़न्य होग़।)

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उत्तभ स्वास््म राब के सरमे कये सूमा स्तोि का ऩाठ

च सूमा स्तोि

त ॊ न जोशी

भें सूमा दे व के २१ ऩववि, शुब एवॊ गोऩनीम नाभ हैं।

स्िोत्र :

सय ू य दे व के २१ नाम :

'ववकतान, वववस्वान, भाताण्ड, बास्कय, यवव, रोकप्रकाशक, श्रीभान, रोक ऺु, भहे श्वय, रोकसाऺी, त्रिरोकेश, कताा, हत्ताा, तसभस्राहा, तऩन, ताऩन, शुच , सप्ताश्ववाहन, गबस्स्तहस्त, ब्रह्भा औय सवादेव नभस्कृत-

सय य े व के इक्कीस नामों का यह स्िोत्र भगवान सय ू द ू य को सवयदा प्रिय है ।'

(ब्रह्म ऩुराण : 31.31-33)

सम ू ा स्तोि

का तनमभीत सम ू ोदम एवॊ सम ू ाास्त के सभम ऩाठ कयने से व्मस्क्त सफ ऩऩों से भक् ु त होकय, उसका

शरीर तनरोगी होता हैं, एवॊ धन की ववृ ि कय व्मस्क्त का मश जाता हैं। सूमा स्तोि

यों औय पेराने वारा हैं। इसे स्तोियाज बी काहा

को तीनों रोकों भें प्रससवि प्राप्त हैं।

सॊऩण य ंत्र को ऩज ू ा प्राण-प्रततस्ठठत सूयय ू ा स्थान भे स्थाऩीत कय के तनत्म मॊि को धऩ ू -दीऩ कयने से ववशेष राब प्राप्त होता हैं।

सूमा मॊि

सूमा के अशुब प्रबाव को दयु कयने के सरए अऩने ऩूजन स्थान भें वैहदक भॊिों द्वाया प्राण प्रततस्ठठत सूमा मॊि को स्थावऩत कयना राब प्रद होता हैं। स्जससे योग, आचध-व्माचध की ऩीडाएॊ शाॊत होती हैं। मूल्य 255 से 10900 िक

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मकर संक्ऱंऽत के ददन द़न क़ ऽवशेष महत्व हैं। पिऱतन क़ि से भ़रत में पिण्यि़भ के ऽिए पिण्यक़ि में







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हा स्ऩन-द़न आत्य़दद शिभ कमध दकये ज़ते रहे हैं। ऽवद्व़नो

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के मत से मकर संक्ऱंऽत के ददन ध़र्णमक स़ऽहत्य-पिस्तक आत्य़दा धमध स्थिों में द़न दकये ज़ते हैं।



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संक्ऱंऽत के ददन द़न करने से प्ऱप्त

होने व़िे पिण्य क़ फि ऄन्य ददनों की तििऩ में बढ ज़त़ हैं। आस ऽिये मकर संक्ऱंऽत के ददन यथ़संभव दकसा गराब को ऄन्नद़न, ऽति एवं गिड क़ द़न करऩ शिभद़यक

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म़ऩ गय़ हैं। ऽति य़ ऽति से बने िड्डी य़ दफर ऽति के ऄन्य ख़द्ध पद़थध भा द़न में ददये ज़ सकते हैं।



:

मकर संक्ऱंऽन्त क़ ध़र्णमक एवं अध्य़ऽत्मक महत्व म़ऩ ज़त़ हैं। म़न्यत़ हैं दक आस ददन सीयध के ईत्तऱय़ण में प्रवेश करने से देविोक में ऱऽि सम़प्त होता हैं और ददन की शिरूअत होता है। देविोक क़ द्व़ऱ जो सीयध के दऽिण़यण होने से 6 महाने तक बंद होत़ हैं मंकर संक्ऱऽन्त के ददन खिि ज़त़ हैं। आस ददन द़न आत्य़दा पिण्य कमध दकये ज़ते हैं ईनक़ शिभ फि प्ऱप्त होत़ है। मकर संक्ऱऽन्त में स्ऩन एवं द़न क़ भा ऽवशेष मह़त्मय श़स्त्रों में बत़य़ गय़ है।

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भ़रताय धमध ग्रंथों में स्ऩन क़ ऄथध शिद्धत़ एवं

सीयोदय से पीवध स्ऩन दिग्ध स्ऩन के सम़न फि देत़ है ऄत:

स़ऽत्वकत़ है। ऄत: स्ऩन को दकसा भा शिभ कमध करने से

आन ऄवसरों पर पीणध शिऽद्ध हेति पिण्य क़ि में स्ऩन करने की परम्पऱ यिगो से चिा अ रहा है।

पहिे दकय़ ज़त़ है। मकर ऱऽश में सीयध के प्रवेश से सीयध क़ सत्व एवं रज गिण बढ़ ज़त़ है जो सीयध की तेज दकरणों से हम़रे शरार में प्रवेश करत़ है। यह ऄिौदकक दकरणें हम़रे शरार को ओज, बि और स्व़स््य प्रद़न करे , ऄत: आन दकरणों को ग्रहण करने हेति तन-मन की शिऽद्ध के ऽिए पिण्यक़ि में स्ऩन करने क़ ऽवध़न बत़य़ गय़ है। भ़रताय धमध श़स्त्रो के ऄनिस़र प्ऱत: सीयोदय से कि छ घंटे पहिे क़ समय पिण्य क़ि म़ऩ ज़त़ है। पिण्य क़ि में स्ऩन करऩ ऄत्यंत पिण्य फिद़या म़ऩ गय़ है। धमधश़स्त्रों के मित़ऽबक शिभ संयोगो पर जि में देवत़ओं एवं ताथों क़ व़स होत़ है। आस ऽिये आन ऄवसरों में नदा ऄथव़ सरोवर में स्ऩन करऩ शिभफिद़यक होत़ हैं। मकर संक्ऱंऽन्त पर



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सीयध की ईप़सऩ सभा ग्रहों में सीयधदव े सबसे तेजस्वा और क़ंऽतमय हैं। आसऽिए ध़र्णमक म़न्यत़ हैं की सीयध अऱधऩ से शरार भा सिंदर और क़ंऽतमय होत़ है। ह्रदय रोऽगयों के ऽिए भा सीयधदव े की ईप़सऩ करने से ऽवशेष ि़भ होत़ है। ईन्हें अददत्य ह्रदय स्तोि क़ ऽनयऽमत प़ठ करऩ भा ऽवशेष ि़भद़यक होत़ हैं। आससे सीयधदव े प्रसन्न होते हैं और ऽनरोगा व दाघ़धयि होने क़ अऽशव़धद प्रद़न करते हैं। मनोव़ंऽछत फि प़ने के ऽिए ऽनम्न मंि क़ ईच्च़रण करें । ॎ ह्रीं ह्रीं सीय़धय सहस्रदकरणऱय मनोव़ंऽछत फिम् देऽह देऽह स्व़ह़॥ सीयधदव े की ऽवशेष कु प़ प़ने के ऽिए प्रत्येक रऽवव़र गिड और च़वि को नदा य़ बहते प़ना में प्रव़ऽहत करें । त़ंबे क़ ऽसक्क़ नदा में प्रव़ऽहत करने से भा सीयधदव े त़ की कु प़ रहता है। सीयध अऱधऩ क़ सबसे ईत्तम समय सिबह क़ होत़ है। सीयध मंि ॎ जप़कि सिम संक़शं क़श्यपेयं मह़द्यिऽतम। तमो रर सवधपषपघ्नं सीयधमषवषह्य़म्यहम। ॎ ह्ऱं ह्रीं ह्रौं स: सीय़धय नम:॥ ॎ ह्रीं घुऽण सीयध अददत्य श्रीं ओम्। ॎ अददत्य़य ऽवद्महे म़तधण्ड़य धामऽह तन्न सीय:ध प्रचोदय़त्।

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ऽवद्य़ प्ऱऽप्त हेति सरस्वता कवच और यंि आज के आधतु नक मग भें ु

आवश्मकताओॊ भें से

एक

सशऺा प्रास्प्त जीवन की भहत्वऩण ू ा

है । हहडद ू धभा भें

ऽवद्य़ की अचधठठािी दे वी

सयस्वती को भाना जाता हैं। इस सरए दे वी सयस्वती की ऩज ा ा ू ा-अ न से कृऩा प्राप्त कयने से फवु ि कुशाग्र एवॊ तीव्र होती है । आज के सवु वकससत सभाज भें

ायों ओय फदरते ऩरयवेश एवॊ

आधतु नकता की दौड भें नमे-नमे खोज एवॊ सॊशोधन के आधायो ऩय

फच् ो के फौचधक स्तय ऩय अच्छे ववकास हे तु ववसबडन ऩयीऺा, प्रततमोचगता एवॊ प्रततस्ऩधााएॊ होती यहती हैं, स्जस भें फच् े का

फवु िभान होना अतत आवश्मक हो जाता हैं। अडमथा फच् ा

ऩयीऺा, प्रततमोचगता एवॊ प्रततस्ऩधाा भें ऩीछड जाता हैं, स्जससे

आजके ऩढे -सरखे आधतु नक फवु ि से सस ु ॊऩडन रोग फच् े को भख ू ा अथवा फवु िहीन मा अल्ऩफवु ि सभझते हैं। एसे फच् ो को हीन

बावना से दे खने रोगो को हभने दे खा हैं, आऩने बी कई सैकडो फाय अवश्म दे खा होगा?

ऐसे फच् ो की फवु ि को कुशाग्र एवॊ तीव्र हो, फच् ो की

फौविक ऺभता औय स्भयण शस्क्त का ववकास हो इस सरए

सयस्वती कव

अत्मॊत राबदामक हो सकता हैं।

सयस्वती कव

को

दे वी सयस्वती के ऩयॊ भ दर ा तेजस्वी ू ब

भॊिो द्व़ऱ ऩण ू ा भॊिससि औय ऩण ू ा

त ै डममक् ु त फकमा जाता हैं। स्जस्से

जो फच् े भॊि जऩ अथवा ऩज ा ा नहीॊ कय सकते वह ववशेष राब ू ा-अ न

प्राप्त कय सके औय जो फच् े ऩज ा ा कयते हैं, उडहें दे वी सयस्वती ू ा-अ न

सयस्वती कव

सयस्वती कव

की कृऩा शीघ्र प्राप्त हो इस सरमे सयस्वती कव

अत्मॊत राबदामक होता हैं।

औय मॊि के ववषम भें अचधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।

: भल् ू म: 550 औय 460

>> Order Now

सयस्वती मॊि :भल् ू म : 370 से 1450 तक

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गुरुत्व ज्योतिष

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मकर संक्ऱऽन्त औ सीयध ईप़सऩ क़ महत्व

च

त ॊ न जोशी,

.ऎ .

ऽजस प्रक़र सीयध के ऽबऩ जावन दक कल्पऩ भा नहीं की ज़ सकता है। आस ऽिए श़स्त्रों में सीयध को ग्रहों क़

ददन िोग ऽति-गिड के पद़थो क़ प्रयोग ख़ने एवं द़न

ऱज म़ऩ गय़ हैं, ज्योऽतष में सीयध को अत्म़, ऽपत़,

मकर संक्ऱऽन्त को सम्पीणध ददन पिण्यक़ि हेति स्ऩन-

ऱज़, क़ क़रक ग्रह म़ऩ हैं तो सीयध पिि शऽनदेव को न्य़य और प्रज़ क़ क़रक ग्रह म़ऩ हैं। ज्योऽतष श़स्त्र के ऄनिस़र में ऽजन व्यऽियों की जन्म कि ण्डिा में सीय-ध शऽन की यिऽत हो, य़ सीयध -शऽन के

आत्य़दद के रुप में करते है। द़न अदद हेति क़ सवोत्तम मिहूतध म़ऩ ज़त़ है। ध़र्णमक म़न्यत़ हैं की म़घ म़स में सीयध जब मकर ऱऽश में होत़ है तब आसक़ पीण्यध ि़भ प्ऱप्त करने के ऽिए देवा-देवत़

ऄशिभ फि प्ऱप्त हो रहे हों, ईन व्यऽियों को मकर

पु्वािोक पर अते है। ऄतः म़घ म़स एवं मकर में सीयध के प्रवेश पर मकर

संक्ऱऽन्त क़ व्रत ऄवश्य करऩ, एवं सीय-ध शऽन की क़रक

संक्ऱऽन्त क़ ददन द़न- पिण्य के ऽिए ऽवशेष महत्वपीणध

वस्तिओं क़ द़न करऩ च़ऽहए।

म़ऩ गय़ है। आस ददन व्रत-ईपव़स रखकर, ऽति, कं बि,

ऽजस से व्यऽि को सीयध-शऽन दोनों ग्रहों दक शिभत़ प्ऱप्त होता है। ऽजस पररव़र में ऽपत़ य़ पिि के अपस में संबंध ऄच्छे न हो ईन्हें यह संबंधों में मधिरत़ ि़ने हेति आस व्रत को करऩ च़ऽहए। मकर संक्ऱऽन्त के ददन सीयध मकर ऱऽश में प्रवेश कर रहे है. आस ददन को सीयध ईप़सऩ क़ ददन हा म़ऩ ज़त़ है, सीयध के मकर ऱऽश में प्रवेश करने के ब़द, ऄगिे दो महानो के ऽिए शऽन की स्व़ऽमत्व व़िा मकर और किं भ ऱऽशयों में सीयध के रहने से और ऽपत़-पिि में बैर भ़व ऽस्थऽत से मनिष्यों को कि प्रभ़व बचने हेति हम़रे ऽवद्व़न ॠऽष-मिऽनयों ने मकर संक्ऱऽन्त पर ताथध स्ऩन, द़न और ध़र्णमक कमधक़ंड ददत्य़दद की सि़ह दा है। ज्योऽतष श़स्त्र के ऄनिस़र तेि शऽन की, और गिड सीयध की क़रक वस्ति हैं, ऄतः मकर संक्ऱंऽत पर ऽति और गिड से बने पद़थों क़ ईपयोग करने और ईसके द़न क़ महत्व है। ऽजस प्रक़र ऽति से तेि ऽनकित़ है, यहा क़रण है दक शऽन और सीयध को प्रसन्न करने के ऽिए आस

ईना वस्त्र अदद द़न करने क़ महत्व है।

*** 2017 संक्ऱऽन्त पवध के ददन से खर म़स सम़प्त होने से शिभ क़यो क़ मिहूतध शिरु होत़ है। आस ददन से सीयधदव े दऽिण़यण से ऽनकि कर ईतऱयण में प्रवेश करते है। ध़र्णमक म़न्यत़ के ऄनिश़र देवत़गण छ: म़ह की ऽनद्ऱ से ज़गते है। अध्य़ऽत्मक दुष्टा से सीयध क़ मकर ऱऽश में प्रवेश करऩ, एक नये जावन व नया ईज़ध की शिरुअत क़ ददन होत़ है। आसा ऽिए प्ऱचान क़ि से हा आस ददन को शिभ म़ऩ ज़त़ रह़ है। हम़रे ऽवद्व़न ऊऽष-मिऽनयो क़ कथन हैं की आस ददन प्ऱरम्भ दकये गये शिभ क़यध ऽवशेष शिभ फिद़यक होते हैं। धमधश़स्त्रों में मकरसंक्ऱऽत के पवध को देवद़न पवध भा कह़ है।

गुरुत्व ज्योतिष

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दस मह़ ऽवद्य़ पीजन यंि Das Mahavidy a Poojan Yantra | Dasmahavidy a Pujan Yantra

दस मह़ ऽवद्य़ पीजन यंि को देवा दस मह़ ऽवद्य़ की शऽियों से यिि ऄत्यंत प्रभ़वश़िा और दििधभ यंि म़ऩ गय़ हैं। आस यंि के म़ध्यम से स़धक के पररव़र पर दसो मह़ऽवद्य़ओं क़ अऽशव़धद प्ऱप्त होत़ हैं। दस मह़ ऽवद्य़ यंि के ऽनयऽमत पीजन-दशधन से मनिष्य की सभा मनोक़मऩओं की पीर्णत होता हैं। दस मह़ ऽवद्य़ यंि स़धक की समस्त आच्छ़ओं को पीणध करने में समथध हैं। दस मह़ ऽवद्य़ यंि मनिष्य को शऽिसंपन्न एवं भीऽमव़न बऩने में समथध हैं। दस मह़ ऽवद्य़ यंि के श्रद्ध़पीवधक पीजन से शाघ्र देवा कु प़ प्ऱप्त होता हैं और स़धक को दस मह़ ऽवद्य़ देवायों की कु प़ से संस़र की समस्त ऽसऽद्धयों की प्ऱऽप्त संभव हैं। देवा दस मह़ ऽवद्य़ की कु प़ से स़धक को धमध, ऄथध, क़म व् मोि चतिर्णवध पिरुष़थों की प्ऱऽप्त हो सकता हैं। दस मह़ ऽवद्य़ यंि में म़ाँ दिग़ध के दस ऄवत़रों क़ अशाव़धद सम़ऽहत हैं, आस ऽिए दस मह़ ऽवद्य़ यंि को के पीजन एवं दशधन म़ि से व्यऽि ऄपने जावन को ऽनरं तर ऄऽधक से ऄऽधक स़थधक एवं सफि बऩने में समथध हो सकत़ हैं। देवा के अऽशव़धद से व्यऽि को ज्ञ़न, सिख, धनसंपद़, ऐश्वयध, रूप-सौंदयध की प्ऱऽप्त संभव हैं। व्यऽि को व़द-ऽवव़द में शििओं पर ऽवजय की प्ऱऽप्त होता हैं। दश मह़ऽवद्य़ को श़स्त्रों में अद्य़ भगवता के दस भेद कहे गये हैं, जो क्रमशः (1) क़िा, (2) त़ऱ, (3) षोडशा, (4) भिवनेश्वरा, (5) भैरवा, (6) ऽछन्नमस्त़, (7) धीम़वता, (8) बगि़, (9) म़तंगा एवं (10) कम़ऽत्मक़। आस सभा देवा स्वरुपों को, सऽम्मऽित रुप में दशमह़ऽवद्य़ के ऩम से ज़ऩ ज़त़ हैं। भल् ू म:- Rs.2350 से 12500 तक उप्रब्द्ि >> Shop Online

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गुरुत्व ज्योतिष

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ऱऽश के ऄनिस़र सफित़ के ईप़य

च जावन में सिख और दिःख अते ज़ते रहते हैं। हर व्यऽि जावन में सिख दक क़मऩ करत़ हैं। दिःख क़ ऩम सिनने म़ि से व्यऽि ईस्से धुण़ करत़ हैं। यदद जावन में दकसा प्रक़र से दिःख अये तो, कि छ व्यऽि दकसा ऩ दकसा ईप़यो से ऄपने दिःख को दीर करने क़ प्रय़स करत़ हैं और कि छ दिःख क़ रोऩ रोते हुवे ऄपने भ़ग्य को कोसते रहते हैं। दिःख को दीर करने हेति ज्योऽतषा ईप़यो से व्यऽि ऄपना ऱऽश के ऄनिश़र ईप़यो को ऄपऩ कर पीणध श्रध्ध़ एवं ऽवश्व़स से शाघ्र ि़भ प्ऱप्त कर ऄपने दिःखो को दीर कर सकत़ हैं। मेष ऱऽश मेष ऱऽश के िोगों को दकसा भा प्रक़र के दिःखो एवं संकटो के ऽनव़रण हेति श्रा गणेश जा दक अऱधऩ ऄवश्य करना च़ऽहये।  हर मंगिव़र को हनिम़न जा को बेसन के िड्डी क़ भोग िग़ये और िड्डी के प्रस़द को मंददर में ब़ंटदें। हनिम़न जा के दशधन करते समय पहिे पैर देखें दफर देखे दफर ऄपना नजर ईपरकी और करते हुवे मिख देखें।  धन वुऽद्ध हेति मछऽियों को अटे दक गोिाय़ बऩकर ऽखि़ये और पऽियों को द़ऩ ड़िे।  ऽशि़ से संबंऽधत समस्य़ दीर करने के ऽिए ि़ि फी ि के पौधे िग़एं।  स्व़स््य ि़भ हेति ि़ि रोिा(की मकी म) ड़ि कर सीयध को जि चढ़़एं।

त ॊ न जोशी

 रोजग़र से संबंऽधत ददक्कत अरहा हो तो म़थे पर के सर क़ टाक़ िग़एं।  भीऽम-भवन से संबंऽधत ऽवव़द को सििझ़ने के ऽिए श्रा गणेश दक अऱधऩ करें ।  ऽशि़ से संबंऽधत समस्य़ दीर करने के ऽिए ग़य को हऱ च़ऱ ऽखि़एं।  द़ंपत्य जावन की परे श़नाय़ं दीर करने के ऽिएं मंगिव़र के ददन हनिम़न मंददर में शिद्ध घा क़ दो मिख व़ि़ दापक जि़एं और ि़ि फी ि की म़ि़ चढ़़एं। ऽमथिन ऱऽश क़यध ऽसऽद्ध हेति हरे रं ग क़ रुम़ि हमेश़ ऄपने प़स रखें।  बाम़रा में पैस़ खचध हो रह़ हो तो जरुर मंद व्यऽि को माठ़ व नमकीन दोनों प्रक़र क़ भोजन क़रएं।  भीऽम-भवन से संबंऽधत ऽवव़द को सििझ़ने के ऽिए ऱत में बिजिगों को दीध पाि़एं।

वुषभ ऱऽश व्यवस़याक क़यो में ऽवध्न-ब़ध़एं अरहा हो तो 21 गिरुव़र को गराब ब्ऱम्हण को भोजन कऱएं।  ऄप़ऽहज व्यऽि को द़न दें।  नौकरा से संबंऽधत परे श़ना हो तो ऽनयमात पापि में जि चढ़़एं और कौए को माठा रोटा ड़िें।

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गुरुत्व ज्योतिष

 घर में किह होता हो तो नवऱि में दिग़ध सप्तशता क़ प़ठ करें और शिक्ि पि की चतिथी को एक कि म़रा कन्य़ को भोजन कऱएं।  दफ्तर की परे श़ऽनयों से बचने के ऽिए 1 स़बीत हल्दा की ग़ंठ िेकर ईसे बहते प़ना में बह़ दें और 1 स़बीत हल्दा की ग़ंठ को ऄपने दफ्तर में सिरऽित रख िें।  नौकरा-व्यवस़य के क़यो में ऽवध्न-ब़ध़एं अरहा हो तो गराब व्यऽि को क़ि़ कं बि द़न दें।  ऄपने म़न-सम्म़न एवं प्रऽतष्ठ़ बढ़ने हेति प़ना में थोडा दफटकरा ड़ि कर स्ऩन करें । ककध ऱऽश ऄऩवश्यक दकसा से व़द-ऽवव़द से बचने हेति ि़ि चंदन ऽशव मंददर में द़न करें ।  धन संचय हेति दकसा देवा मंददर में गिप्त द़न करें और ऄपना म़ं की सेव़ करें ।  क़यध ऽसऽद्ध हेति ऽनयऽमत पीजन के ब़द चंदन क़ टाक़ िग़एं।  स्व़स््य संबंऽधत समस्य़ दीर करने हेति बडे-बिजिगों दक ब़त क़ अदर, सम्म़न करें ।  दकसा नये क़यध दक शिरुव़त करने से पीरव ऽपतरों को य़द करें ।  धन की आच्छ़ हो तो घर में ि़ि फी ि के पौधे िग़एं। हसह ऱऽश स्व़स््य संबंऽधत समस्य़ दीर करने हेति शिक्रव़र के ददन बहते प़ना में स़त ब़द़म और एक ऩररयि प्रव़ऽहत करें ।  क़यध ऽसऽद्ध हेति स़त शिक्रव़र कि एं में दफटकरा क़ टि कड़़ ड़िें।  ऽशि़ से संबंऽधत समस्य़ दीर करने के ऽिए कि त्ते को रोटा ऽखि़एं।  भ़ग्योदय हेति ि़ि रं ग क़ रुम़ि ऄपने प़स रखें।  सौभ़ग्य वुऽद्ध हेति गणेश जा को सिख़ मेव़ चढ़एं।

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 ऄपने म़न-सम्म़न एवं प्रऽतष्ठ़ बढ़ने हेति ऽनयऽमत सीयध को ऄध्य दें और ि़ि चंदन क़ टाक़ िग़एं। कन्य़ ऱऽश स्व़स््य संबंऽधत समस्य़ दीर करने हेति बिधव़र को ग़य को हरें मींग ऽखि़एं।  क़यध ऽसऽद्ध हेति घर में गंग़जि रखें।  ऄऩवश्यक दकसा से व़द-ऽवव़द से बचने हेति ख़ने के ब़द सौंफ ख़एं।  धन संबंऽधत समस्य़एं दीर करने हेति ऽशवजा क़ पीजन करें ।  भ़ग्योदय हेति हरे रं ग के कपडो क़ प्रयोग ऄऽधक करें ।  ऽशि़ से संबंऽधत समस्य़ दीर करने के ऽिए हर शऽनव़र को पापि के पेड़ को जि चढ़़एं।  द़ंपत्य सिख में वुऽद्ध हेति गिरुव़र के ददन ग़यको चने दक द़ि में गिड ऽमि़कर ऽखि़एं। तिि़ ऱऽश स्व़स््य संबंऽधत समस्य़ दीर करने हेति ग़यको सफे द रं गक़ ऽमष्ठ़ ऽखि़एं।  अर्णथक समस्य़एं दीर करने हेति हनिम़न मंददर में हसदीर चढ़एं।  भीऽम-भवन से संबंऽधत समस्य़ दीर करने हेति शऽनव़र के ददन हनिम़न मंददर में सरसो तेि क़ ददप जि़एं।  क़यो में ऽवध्न-ब़ध़एं अरहा हो तो दकसा देवा मंददर में ऽनयऽमत दशधन करें ।  ऽशि़ से संबंऽधत समस्य़ दीर करने के ऽिए चंदन और के सर क़ ऽतिक करें ।  भ़ग्य वुऽद्ध हेति ग़य को हरा घ़स ऽखि़एं। वुऽिक ऱऽश अर्णथक समस्य़एं दीर करने हेति दकसा मंददर ऄथव़ धमधस्थ़न पर द़न करें ।  भीऽम-भवन से संबंऽधत ऽवव़द को सििझ़ने के पापि के नाचे ताि के तेि क़ दाप जि़एं।

गुरुत्व ज्योतिष

 द़ंपत्य जावन की परे श़नाय़ं दीर करने के ऽिएं सफे द वस्त्र एवं ऽमष्ठ़न गराब को द़न दें।  भ़ग्य वुऽद्ध हेति सफे द फी ि व़िे पौधे िग़कर ईसक़ हसचन करें । ऄपने प़स ि़ि रुम़ि रखे।  क़यध ऽसऽद्ध हेति ि़ि चंदन और ि़ि पिष्प ड़ि कर सीयध को जि चढ़़एं।  स्व़स््य से संबंऽधत समस्य़ दीर करने हेति हनिम़नजा के चरणो से हसदीर िेकर ऄपने मस्तक पर िग़एं। धनि ऱऽश अर्णथक समस्य़एं दीर करने हेति शऽनव़र को पापि में जि चढ़कर तेि क़ ददपक ज़ि़एं।  द़ंपत्य सिख में के ऽिए तििसा में जि ड़िें।  ऄऩवश्यक दकसा से व़द-ऽवव़द से बचने हेति च़ंदा के बरतन में ऱत में जि भरदें और सिबह ईस जि को पाएं।  स्व़स््य ि़भ हेति ग़य को चनेकी द़ि के स़थ थोड़ गिड और चिटकी हल्दा ऽमि़कर ऽखि़एं।  ऽशि़ से संबंऽधत समस्य़ दीर करने के ऽिए त़ंबे के बरतन में प़ना भर कर ऄपने कमरे में रखें और सिबह ईसे पौधों में ड़ि दें। मकर ऱऽश स्व़स््य ि़भ हेति शऽनव़र के ददन पापि के नाचे सरसो के तेि क़ ददपक जि़एं और जि चढ़एं।  अर्णथक समस्य़एं दीर करने हेति शिक्रव़र को सफे द ग़य को च़वि में घा और चाना ड़ि कर ऽखि़एं।  भीऽम-भवन से संबंऽधत क़यो में सफित़ हेति हनिम़न जा की पीज़ करें और हनिम़न मंददर में हसदीर चढ़एं।

Mantra Siddha

Gomti Chakra

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 द़ंपत्य सिख में वुऽद्ध हेति ब़राश क़ प़ना क़ंच दक बोति में भरकर रखें।  भ़ग्योदय हेति ग़य को हरा घ़स य़ हरें मीग ं ऽखि़एं।  नौकरा व्यवस़य के कयो में सफित़ हेति िक्ष्मा मंददर में ग़य के घा क़ ददपक जि़एं। किं भ ऱऽश स्व़स््य ि़भ हेति शऽनव़र के ददन रोटा पर सरसो क़ तेि िग़कर कि त्ते और कौएं को ऽखि़एं।  अर्णथक ि़भ के ऽिये ऄपने घर में पािे फी ि क़ पौध़ िग़एं।  भीऽम-भवन से संबंऽधत क़यो में सफित़ हेति चाटाओं को चाना ड़िें.  ऽशि़ से संबंऽधत समस्य़ दीर करने के ऽिए गणपऽत जा की पीज़ करें ।  द़ंपत्य सिख में वुऽद्ध हेति ऱत को त़ंबे के प़ि में जिभरकर रख िे और सिबह में ईस जि को ि़ि पिष्प व़िे पौधों में ड़िदें।  भ़ग्य वुऽद्ध हेति शिक्रव़र के ददन घर में सफे द ऽमष्ठ़न प़क़एं और पररव़र के स़थ में ख़एं। मान ऱऽश क़यध में सफित़ हेति म़थे पर के सर और चंदन क़ ऽतिक िग़एं।  नौकरा में परे श़ना अ रहा हो तो पापि में जि चढ़एं।  अर्णथक परे श़ना के ऽनव़रण हेति तेि में चेहऱ देख कर तेि क़ द़न कर दें।  भीऽम-भवन से संबंऽधत समस्य़ हेति ग़यको हरा घ़स ऽखि़एं।  भ़ग्य वुऽद्ध हेति हनिम़न मंददर में बेसन के िड्डि क़ भोग िग़एं।  नौकरा-व्यवस़य में ईन्नऽत हेति 7 स़बीत हल्दा को पािे कपडे में ब़ंध कर ऄपने घर में सिरऽित रखदें।  स्व़स््य संबंऽधत समस्य़ के ऽनव़रण हेति स्ऩन के प़ना में ि़िचंदन घास कर ऽमि़कर स्ऩन करें ।

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दिग़ध बास़ यंिD urg Bisa Yantra

श़स्त्रोि मत के ऄनिश़र दिग़ध बास़ यंि दिभ़धग्य को दीर कर व्यऽि के सोये हुवे भ़ग्य को जग़ने व़ि़ म़ऩ गय़ हैं। दिग़ध बास़ यंि द्व़ऱ व्यऽि को जावन में धन से संबंऽधत संस्य़ओं में ि़भ प्ऱप्त होत़ हैं। जो व्यऽि अर्णथक समस्य़से परे श़न हों, वह व्यऽि यदद नवऱिों में प्ऱण प्रऽतऽष्ठत दकय़ गय़ दिग़ध बास़ यंि को स्थ़ऽप्त कर िेत़ हैं, तो ईसकी धन, रोजग़र एवं व्यवस़य से संबंधा सभा समस्यों क़ शाघ्र हा ऄंत होने िगत़ हैं। नवऱि के ददनो में प्ऱण प्रऽतऽष्ठत दिग़ध बास़ यंि को ऄपने घर-दिक़न-ओदफस-फै क्टरा में स्थ़ऽपत करने से ऽवशेष ि़भ प्ऱप्त होत़ हैं, व्यऽि शाघ्र हा ऄपने व्य़प़र में वुऽद्ध एवं ऄपना अर्णथक ऽस्थता में सिध़र होत़ देखेंग।े संपीणध प्ऱण प्रऽतऽष्ठत एवं पीणध चैतन्य दिग़ध बास़ यंि को शिभ मिहूतध में ऄपने घर-दिक़न-ओदफस में स्थ़ऽपत करने से ऽवशेष ि़भ प्ऱप्त होत़ हैं। मल् ू य: Rs.730 से Rs.10900 िक >> Shop Online

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॥ अथश्री आहदत्म रृदम स्तोि ॥ व़ल्मादक ऱम़यण में वर्णणत है के "अददत्य हृदय स्तोि" भगव़न् श्रा ऱम को यिद्ध में ऱवण पर ऽवजय प्ऱऽप्त हेति ऄगस्त्य ऊऽष ने ददय़ थ़। अज के भौऽतक यिग में अददत्य हृदय स्तोि क़ ऽनत्य प़ठ मनिष्य के जावन के ऄनेक कष्टों दीर करने मे समथध है। अददत्य हृदय स्तोि के ऽनयऽमत प़ठ से व्यऽि को म़नऽसक कष्ट, हृदय रोग, म़नऽसक तऩव, शिि ओर

अग ॎ रऽश्ममते हृदय़य नमः। ॎ समिद्यते ऽशरसे स्व़ह़। ॎ देव़सिरनमस्कु त़य ऽशख़यै वषट् । ॎ ऽववस्वते कवच़य हुम्। ॎ भ़स्कऱय नेििय़य वौषट् । ॎ भिवनेश्वऱय ऄस्त्ऱय फट् ।

ऄसफित़ओं पर ऽवजय प्ऱप्त में सह़यक है। ऽवद्व़नों क़ ऄनिभव हैं की अददत्य हृदय स्तोि मनिष्य को सभा

आस प्रक़र न्य़स करके ऽनम्ऩंदकत मंि से भगव़न सीयध क़ ध्य़न एवं नमस्क़र करें

प्रक़र के प़पों और कष्टों से मिऽि हेति ईत्तम, तथ़ मनिष्य

ॎ भीभिधवः स्वः तत्सऽवतिवधरेण्यं भगो देवस्य धामऽह ऽधयो यो नः प्रचोदय़त्।

की अयि, ईज़ध और प्रऽतष्ठ़ बढ़ने व़ि़ ऄऽत सवधमंगिक़रा ऽवजय स्तोि है।

ततो यिद्धपररश्ऱन्तं समरे ऽचन्तय़ ऽस्थतम्। ऱवणं च़ग्रतो दुष्टव़ यिद्ध़य समिपऽस्थतम्॥१॥

ग ॎ ऄस्य अददत्य हृदयस्तोिस्य़गस्त्यऊऽषरनिष्टिपछन्दः,

अथ : जब श्रा ऱमचन्द्रजा यिद्ध से थककर ऽचऽन्तत

अददत्येहृदयभीतो भगव़न ब्रह्म़ देवत़ ऽनरस्त़शेषऽवघ्नतय़ ब्रह्मऽवद्य़ऽसद्धौ सवधि जयऽसद्धौ च ऽवऽनयोगः।

रणभीऽम में खड़े थे। तब ऱवण यिद्ध के ऽिए ईनके स़मने ईपऽस्थत हो गय़। दैवतैि सम़गम्य द्रष्टि मभ्य़गतो रणम्। ईपगम्य़ब्रवाद् ऱममगरत्यो भगव़ंस्तद़॥२॥ अथ : यह देख भगव़न ऄगस्त्य मिऽन, जो देवत़ओं के

ॎ ऄगस्त्यऊषये नमः, ऽशरऽस। ऄनिष्टिपछन्दसे नमः,

स़थ यिद्ध देखने के ऽिए अये थे, श्राऱम के प़स ज़कर

मिखे। अददत्यहृदयभीतब्रह्मदेवत़यै नमः हृदद।

बोिे।

ॎ बाज़य नमः, गिह्यो। रऽश्ममते शिये नमः, प़दयो। ॎ तत्सऽवतिररत्य़ददग़यिाकीिक़य नमः ऩभौ।

ऱम ऱम मह़ब़हो श्रुणि गिह्यं सऩतनम्। येन सव़धनरान् वत्स समरे ऽवजऽयष्यसे॥३॥ अथ : सबके हृदय में रमण करने व़िे मह़ब़हो ऱम !



यह सऩतन गोपनाय स्तोि सिनो। वत्स ! आसके जप से

ॎ रऽश्ममते ऄंगिष्ठ़भ्य़म् नमः। ॎ समिद्यते तजधनाभ्य़म् नमः। ॎ देव़सिरनमस्कु त़य मध्यम़भ्य़म् नमः। ॎ ऽववरवते ऄऩऽमक़भ्य़म् नमः। ॎ भ़स्कऱय कऽनऽष्ठक़भ्य़म् नमः। ॎ भिवनेश्वऱय करतिकरपुष्ठ़भ्य़म् नमः।

तिम यिद्ध में ऄपने समस्त शििओं पर ऽवजय प़ओगे। अददत्यहृदयं पिण्यं सवधशििऽवऩशनम्। जय़वहं जपं ऽनत्यमियं परमं ऽशवम्॥४॥ अथ : आस गोपनाय स्तोि क़ ऩम है अददत्यहृदय। यह परम पऽवि और सम्पीणध शििओं क़ ऩश करने व़ि़

गुरुत्व ज्योतिष

है। आसके जप से सद़ ऽवजय की प्ऱऽप्त होता है। यह ऽनत्य ऄक्ष्य और परम कल्य़णक़रा स्तोि है। सवधमंगिम़ंगल्यं सवधप़पप्रण़शनम्। ऽचन्त़शोकप्रशमनम़यिवधधैनमित्तमम्॥५॥

अददत्यः सऽवत़ सीयधः खगः पीष़ गभ़धऽस्तम़न्। सिवणधसदुशो भ़निऽहरण्यरे त़ ददव़करः॥१०॥ अथ : आन्हीं के ऩम ऄददऽतपिि, सऽवत़, सीय,ध खग,

अथ : सम्पीणध मंगिों क़ भा मंगि है। आससे सब प़पों क़ ऩश होत़ है। यह ऽचन्त़ और शोक को ऽमट़ने व़ि़ तथ़ अयि को बढ़़ने व़ि़ ईत्तम स़धन है। रऽश्ममन्तं समिद्यन्तं देव़सिरनमस्कु तम्। पीजयस्व ऽववस्वन्तं भ़स्करं भिवनेश्वरम्॥६॥ अथ : भगव़न सीयध ऄपना ऄनन्त दकरणों से सिशोऽभत हैं। ये ऽनत्य ईदय होने व़िे, देवत़ और ऄसिरों से नमस्कु त, ऽववस्व़न् ऩम से प्रऽसद्ध, प्रभ़ क़ ऽवस्त़र करने व़िे और संस़र के स्व़मा हैं।

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आनक़

(रऽश्ममते नमः, समिद्यते नमः, देव़सिरनमस्कत़य नमः, ऽववस्वते नमः, भ़स्कऱय नमः, भिवनेश्वऱय नमः आन ऩम मंिों के द्व़ऱ) पीजन करो। सवधदव े त़मको ह्येष तेजस्वा रऽश्मभ़वनः। एष देव़सिरगण़ाँल्िोक़न् प़ऽत गभऽस्तऽभः॥७॥ अथ : सम्पीणध देवत़ आन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की

पीष़, गभधऽस्तम़न्, सिवधणसदुश, भ़नि, ऽहरण्यरे त़, ददव़कर, हररदश्वः सहस्ऱर्णचः सप्तसऽप्तमधराऽचम़न्। ऽतऽमरोन्मथनः शम्भीस्त्ष्ट़ म़तधण्डकोंऻशिम़न्॥११॥ अथ : हररदश्व, सहस्ऱर्णच, ऽतऽमरोन्मथन, शम्भी, त्वष्ट़, ऄंशिम़न, ऽहरण्यगभधः ऽशऽशरस्तपनोऻहरकरो रऽवः। ऄऽिगभोऻददतेः पििः शंखः ऽशऽशरऩशनः॥१२॥ अथ : ऽहरण्यगभध, ऽशऽशर, तपन, ऄहरकर, रऽव, ऄऽिगभध, ऄददऽतपिि, शंख, ऽशऽशरऩशन, व्योमऩथस्तमोभेदा ऊम्यजिःस़मप़रगः। घनवुऽष्टरप़ं ऽमिो ऽवन्ध्यवाथाप्िवंगमः॥१३॥ अथ : व्योमऩथ, तमोभेदा, ऊग, यजिः और स़मवेद के प़रग़मा, घनवुऽष्ट, ऄप़ं ऽमि, ऽवन्ध्याथाप्िवंगम, अतपा मण्डिा मुत्यिः हपगिः सवधत़पनः। कऽवर्णवश्वो मह़तेज़ रिः सवधभवोदभवः॥१४॥

ऱऽश तथ़ ऄपना दकरणों से जगत को सत्त़ एवं स्फी र्णत प्रद़न करने व़िे हैं। ये हा ऄपना रऽश्मयों क़ प्रस़र करके देवत़ और ऄसिरों सऽहत सम्पीणध िोकों क़ प़िन करते हैं।

अथ : अतपा, मण्डिा, मुत्यि, हपगि, सवधत़पन, कऽव,

एष ब्रह्म़ च ऽवष्णिि ऽशवः स्कन्दः प्रज़पऽतः। महेन्द्रो धनदः क़िो यमः सोमो ह्यप़ं पऽतः॥८॥

नििग्रहत़ऱण़मऽधपो ऽवश्वभ़वनः। तेजस़मऽप तेजस्वा द्व़दश़त्मन् नमोऻस्ति ते॥१५॥

ऽवश्व, मह़तेजस्वा, रि, सवधभवोदभव,

अथ : ये हा ब्रह्म़, ऽवष्णि, ऽशव, स्कन्द, प्रज़पऽत, आन्द्र,

अथ : निि, ग्रह और त़रों के स्व़मा, ऽवश्वभ़वन,

कि बेर, क़ि, यम, चन्द्रम़, वरूण,

तेजऽस्वयों में भा ऄऽत तेजस्वा तथ़ द्व़दश़त्म़ हैं। प्रऽसद्ध सीयधदव े अपको नमस्क़र है।

ऽपतरो वसवः स़ध्य़ ऄऽश्वनौ मरुतो मनिः। व़यिवधऽन्हः प्रज़ः प्ऱण ऊतिकत़ध प्रभ़करः॥९॥ अथ : ऽपतर, वसि, स़ध्य, ऄऽश्वनाकि म़र, मरुदगण,

नमः पीव़धय ऽगरये पऽिम़य़द्रये नमः। ज्योऽतगधण़ऩं पतये ददऩऽधपतये नमः॥१६॥

मनि, व़यि, ऄऽि, प्रज़, प्ऱण, ऊतिओं को प्रकट करने

अथ : पीवधऽगरा ईदय़चि तथ़ पऽिमऽगरर ऄस्त़चि

व़िे तथ़ प्रक़श के पिंज हैं।

के रूप में अपको नमस्क़र है। ग्रहों और त़रों के स्व़मा

गुरुत्व ज्योतिष

तथ़ ददन के ऄऽधपऽत अपको प्रण़म है। जय़य जयभद्ऱय हयधश्व़य नमो नमः। नमो नमः सहस्ऱंशो अददत्य़य नमो नमः॥१७॥ अथ : अप जय स्वरूप तथ़ ऽवजय और कल्य़ण के द़त़ है। अपके रथ में हरे रं ग के घोड़े िगे रहते हैं। अपको ब़रं ब़र नमस्क़र है। सहस्रों दकरणों से सिशोऽभत

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हरर (ऄज्ञ़न क़ हरण करने व़िे) और ऽवश्वकम़ध (संस़र की सुऽष्ट करने व़िे) हैं, तम के ऩशक, प्रक़शस्वरूप और जगत के स़िा हैं, अपको नमस्क़र है। ऩशयत्येष वै भीतं तमेव सुजऽत प्रभिः। प़यत्येष तपत्येष वषधत्येष गभऽस्तऽभः॥२२॥

भगव़न सीयध ! अपको ब़रं ब़र प्रण़म है। अप ऄददऽत के

अथ : रघिनन्दन! ये भगव़न सीयध हा सम्पीणध भीतों क़

पिि होने के क़रण अददत्य ऩम से प्रऽसद्ध है, अपको

संह़र, सुऽष्ट और प़िन करते हैं। ये हा ऄपना दकरणों से

नमस्क़र है। नम ईग्ऱय वाऱय स़रं ग़य नमो नमः। नमः पद्मप्रबोध़य प्रचण्ड़य नमोऻस्ति ते॥१८॥ अथ : अप ईग्र, वार, और स़रं ग सीयधदव े को नमस्क़र है। कमिों को ऽवकऽसत करने व़िे प्रचंड तेजध़रा म़तधण्ड को प्रण़म है । ब्रह्मेश़ऩच्यितेश़य सिऱय़ददत्यवचधसे। भ़स्वते सवधभि़य रौद्ऱय वपिषे नमः॥१९॥ अथ : अप ब्रह्म़, ऽशव और ऽवष्णि के भा स्व़मा हैं। सीर अपकी संज्ञ़ हैं, यह सीयम ध ण्डि अपक़ हा तेज है, अप प्रक़श से पररपीणध हैं, सबको स्व़ह़ कर देने व़ि़ ऄऽि अपक़ हा स्वरूप है, अप रौद्ररूप ध़रण करने व़िे हैं, अपको नमस्क़र है। तमोघ्ऩय ऽहमघ्ऩय शििघ्ऩय़ऽमत़त्मने। कु तघ्नघ्ऩय देव़य ज्योऽतष़ं पतये नमः॥२०॥ अथ : अप ऄज्ञ़न और ऄन्धक़र के ऩशक, जड़त़ एवं शात के ऽनव़रक तथ़ शिि क़ ऩश करने व़िे हैं, अपक़ स्वरूप ऄप्रमेय है। अप कु तघ्नों क़ ऩश करने व़िे, सम्पीणध ज्योऽतयों के स्व़मा और देवस्वरूप हैं, अपको नमस्क़र है। तप्तच़माकऱभ़य हस्ये ऽवश्वकमधणे। नमस्तमोऻऽभऽनघ्ऩय रुचये िोकस़ऽिणे॥२१॥ अथ : अपकी प्रभ़ तप़ये हुए सिवणध के सम़न है, अप

गमी पहुाँच़ते और वष़ध करते हैं। एष सिप्तेषि ज़गर्णत भीतेषि पररऽनऽष्ठतः। एष चैव़ऽिहोिं च फिं चैव़ऽिहोऽिण़म्॥२३॥ अथ : ये सब भीतों में ऄन्तय़धमारूप से ऽस्थत होकर ईनके सो ज़ने पर भा ज़गते रहते हैं। ये हा ऄऽिहोि तथ़ ऄऽिहोिा पिरुषों को ऽमिने व़िे फि हैं। देव़ि क्रतविैव क्रतीऩं फिमेव च। य़ऽन कु त्य़ऽन िोके षि सवेषि परमप्रभिः॥२४॥ अथ : देवत़, यज्ञ और यज्ञों के फि भा ये हा हैं। सम्पीणध िोकों में ऽजतना दक्रय़एाँ होता हैं, ईन सबक़ फि देने में ये हा पीणध समथध हैं। एनम़पत्सि कु च्रेषि क़न्त़रे षि भयेषि च। कीतधयन् पिरुषः कऽिन्ऩवसादऽत ऱघव॥२५॥ अथ : ऱघव ! ऽवपऽत्त में, कष्ट में, दिगधम म़गध में तथ़ और दकसा भय के ऄवसर पर जो कोइ पिरुष आन सीयधदव े क़ कीतधन करत़ है, ईसे दिःख नहीं भोगऩ पड़त़। पीजयस्वैनमेक़ग्रो देवदेवं जगत्पऽतम्। एतत् ऽिगिऽणतं जप्तव़ यिद्धष े ि ऽवजऽयऽष्त॥२६॥ अथ : आसऽिए तिम एक़ग्रऽचत होकर आन देव़ऽधदेव जगदाश्वर की पीज़ करो। आस अददत्य हृदय क़ तान ब़र जप करने से तिम यिद्ध में ऽवजय प़ओगे। ऄऽस्मन् िणे मह़ब़हो ऱवणं त्वं जऽहष्यऽस। एवमिक्त्व़ ततोऻगस्त्यो जग़म स यथ़गतम्॥२७॥ अथ : मह़ब़हो ! तिम आसा िण ऱवण क़ वध कर

गुरुत्व ज्योतिष

सकोगे। आतऩ कहकर ऄगस्त्य जा जैसे अये थे, ईसा प्रक़र चिे गये। ध़रय़म़स सिप्रातो ऱघवः प्रयत़त्मव़न्॥२८॥ ईनक़

ईपदेश

सिनकर

ऱवणं प्रेक्ष्य हृष्ट़त्म़ जय़थे समिप़गमत्। सवधयत्नेन महत़ वुतस्तस्य वधेऻभवत्॥२९॥ अथ : ऱवण की ओर देख़ और ईत्स़हपीवधक ऽवजय

एतच्ुत्व़ मह़तेज़, नष्टशोकोऻभवत् तद़। अथ :

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मह़तेजस्वा

श्राऱमचन्द्रजा क़ शोक दीर हो गय़। ईन्होंने प्रसन्न होकर शिद्धऽचत्त से अददत्यहृदय को ध़रण दकय़ और तान ब़र अचमन करके शिऽद्ध की। अददत्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हषधमव़प्तव़न्। ऽिऱचम्य शिऽचभीधत्व़ धनिऱद़य वायधव़न्॥२९॥ अथ : भगव़न सीयध की ओर देखते हुए आसक़ तान ब़र जप दकय़। आससे ईन्हें बड़़ हषध हुअ। दफर परम पऱक्रमा रघिऩथजा ने धनिष ईठ़कर

प़ने के ऽिए वे अगे बढ़े। ईन्होंने पीऱ प्रयत्न करके ऱवण के वध क़ ऽनिय दकय़। ऄथ रऽवरवदऽन्नराक्ष्य ऱमं मिददतऩः परमं प्रहृष्यम़णः। ऽनऽशचरपऽतसंियं ऽवददत्व़ सिरगणमध्यगतो वचस्त्वरे ऽत।।31।। अथ : ईस समय देवत़ओं के मध्य में खड़े हुए भगव़न सीयध ने प्रसन्न होकर श्राऱमचन्द्रजा की ओर देख़ और ऽनश़चऱज ऱवण के ऽवऩश क़ समय ऽनकट ज़नकर हषधपीवधक कह़ रघिनन्दन ! ऄब जल्दा करो। आत्य़षे श्रामद्ऱम़यणे व़ल्माकीये अददक़व्ये यिद्धक़ण्डे पंच़ऽधकशततमः सगधः। ।आऽत संपीणंम।् ।

मंि ऽसद्ध स्फरटक श्रा यंि "श्रा यंि" सबसे महत्वपीणध एवं शऽिश़िा यंि है। "श्रा यंि" को यंि ऱज कह़ ज़त़ है क्योदक यह ऄत्यन्त शिभ फ़िदया यंि है। जो न के वि दीसरे यन्िो से ऄऽधक से ऄऽधक ि़भ देने मे समथध है एवं संस़र के हर व्यऽि के ऽिए फ़यदेमंद स़ऽबत होत़ है। पीणध प्ऱण-प्रऽतऽष्ठत एवं पीणध चैतन्य यिि "श्रा यंि" ऽजस व्यऽि के घर मे होत़ है ईसके ऽिये "श्रा यंि" ऄत्यन्त फ़िद़या ऽसद्ध होत़ है ईसके दशधन म़ि से ऄन-ऽगनत ि़भ एवं सिख की प्ऱऽप्त होऽत है। "श्रा यंि" मे सम़इ ऄऽद्वताय एवं ऄद्रश्य शऽि मनिष्य की समस्त शिभ आच्छ़ओं को पीऱ करने मे समथध होऽत है। ऽजस्से ईसक़ जावन से हत़श़ और ऽनऱश़ दीर होकर वह मनिष्य ऄसफ़ित़ से सफ़ित़ दक और ऽनरन्तर गऽत

करने िगत़ है एवं ईसे जावन मे समस्त भौऽतक सिखो दक प्ऱऽप्त होऽत है। "श्रा यंि" मनिष्य जावन में ईत्पन्न होने व़िा समस्य़-ब़ध़ एवं नक़ऱत्मक ईज़ध को दीर कर सक़रत्मक ईज़ध क़ ऽनम़धण करने मे समथध है। "श्रा यंि" की स्थ़पन से घर य़ व्य़प़र के स्थ़न पर स्थ़ऽपत करने से व़स्ति दोष य व़स्ति से सम्बऽन्धत परे श़ऽन मे न्यिनत़ अऽत है व सिख-समुऽद्ध, श़ंऽत एवं ऐश्वयध दक प्रऽप्त होता है।

गरु ु त्व कायायऱय भे "श्री मॊि" 12 ग्राभ से 2250 Gram (2.25Kg) तक फक साइज भे उप्रब्द्ध है .

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॥ऄथ श्राच़ििषोपऽनषदः॥ ऽवऽनयोग ॎ ऄस्य़ि़ििषाऽवद्य़य़ ऄऽहबिधध्न्य ऊऽषः, ग़यिा छन्दः, सीयो देवत़, ॎ बाजम् नमः शऽिः, स्व़ह़ कीिकम्, चििरोग ऽनवुत्तये जपे ऽवऽनयोगः। चििष्मता ऽवद्य़ः ॎ चििः चििः चििः तेज ऽस्थरो भव। म़ं प़ऽह प़ऽह। त्वररतम् चििरोग़न् शमय शमय। मम़ज़तरूपं तेजो दशधय दशधय। यथ़ ऄहमंधोनस्य़ं तथ़ कल्पय कल्पय। कल्य़ण कि रु कि रु य़ऽन मम् पीवधजन्मो प़र्णजत़ऽन चििः प्रऽतरोधक दिष्कु त़ऽन सव़धऽण ऽनमीधिय ऽनमीधिय। ॎ नमः चििस्तेजोद़िे ददव्य़य भ़स्कऱय। ॎ नमः कल्य़णकऱय ऄमुत़य।ॎ नमः सीय़धय। ॎ नमो भगवते सीय़धय ऄऽितेजसे नमः। खेचऱय नमः महते नमः।रजसे नमः।तमसे नमः। ऄसतो म़ सद गमय।तमसो म़ ज्योऽतगधमय।मुत्योम़ं ऄमुतं गमय। ईष्णो भगव़न्छि ऽचरूपः।हंसो भगव़न् शिऽच प्रऽतरूपः। ॎ ऽवश्वरूपं घुऽणनं ज़तवेदसं ऽहरण्मयं ज्योऽतरूपं तपन्तम्। सहस्त्र रऽश्मः शतध़ वतधम़नः पिरः प्रज़ऩम् ईदयत्येष सीयधः।। ॎ नमो भगवते श्रासीय़धय अददत्य़य़ ऄऽि तेजसे ऄहो व़ऽहऽन व़ऽहऽन स्व़ह़।। ॎ वयः सिपण़ध ईपसेदरि रन्द्रं ऽप्रयमेध़ ऊषयो ऩधम़ऩः। ऄप ध्व़न्तमीणिधऽह पीर्णध- चििम् ईग्ध्यस्म़ऽन्नधयेव बद्ध़न्।। ॎ पिण्डराक़ि़य नमः। ॎ पिष्करे िण़य नमः। ॎ कमिेिण़य नमः। ॎ ऽवश्वरूप़य नमः। ॎ श्रामह़ऽवष्णवे नमः।

ॎ सीयधऩऱयण़य नमः।। ॎ श़ऽन्तः श़ऽन्तः श़ऽन्तः।। य आम़ं च़ििष्मतीं ऽवद्य़ं ब्ऱह्मणो ऽनत्यम् ऄधायते न तस्य ऄऽिरोगो भवऽत। न तस्य कि िे ऄंधो भवऽत। ऄष्टौ ब्ऱह्मण़न् ग्ऱहऽयत्व़ ऽवद्य़ऽसऽद्धः भवऽत।. ऽवश्वरूपं घुऽणनं ज़तवेदसं ऽहरण्मयं पिरुषं ज्योऽतरूपमं तपतं सहस्त्र रऽश्मः। शतध़वतधम़नः पिरः प्रज़ऩम् ईदयत्येष सीयधः। ॎ नमो भगवते अददत्य़य।। ।।आऽत स्तोिम्।। ऄथ़धत: हे सीयधदव े ! हे चिि के ऄऽभम़ना सीयद ध व े ! अप अंखों में चिि के तेजरूप से ऽस्थर हो ज़एं। मेरा रि़ करें , रि़ करें । मेरा अाँख के रोगों क़ शाघ्र ऩश करें , शमन करें । मिझे ऄपऩ सिवणध जैस़ तेज ददखि़ दें, ददखि़ दें। ऽजससे मैं ऄंध़ न होउं, कु पय़ ऐसे ईप़य करें । मेऱ कल्य़ण करें , कल्य़ण करें । दशधन शऽि क़ ऄवरोध करने व़िे मेरे पीवधजन्म के ऽजतने भा प़प हैं, सबको जड़ से सम़प्त कर दें, ईनक़ समीि ऩश करें । ॎ नेिों के प्रक़श भगव़न सीयधदव े को नमस्क़र है। ॎ अक़शऽवह़रा को नमस्क़र है। परम श्रेष्ठ स्वरूप को नमस्क़र है। सब में दक्रय़ शऽि ईत्पन्न करने व़िे रजो गिणरूप भगव़न सीयध को नमस्क़र है। ऄन्धक़र को ऄपने भातर िान कर िेने व़िे तमोगिण के अश्रयभीत भगव़न सीयध को नमस्क़र है। हे भगव़न ! अप मिझे ऄसत से सत की ओर िे चिे। मुत्यि से ऄमुत की ओर िे चिे। उज़ध स्वरूप भगव़न अप शिऽचरूप हैं। हंस स्वरूप भगव़न सीयध अप शिऽच तथ़ ऄप्रऽतरूप हैं। अपके तेजोमय स्वरूप की कोइ बऱबरा नहीं कर सकत़। जो सऽच्चद़नन्द स्वरूप हैं, सम्पीणध ऽवश्व ऽजनक़ रूप है, जो दकरणों में सिशोऽभत एवं भीत अदद तानों क़िों की ब़तें

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ज़नने व़िे हैं, जो ज्योऽत स्वरूप, ऽहरण्मय पिरूष के

ऽछप़ दाऽजये, हम़रे नेिों को प्रक़श से पीणध कीऽजये

रूप में तप रहे हैं, आस सम्पीणध ऽवश्व के जो एकम़ि

तथ़ ऄपऩ ददव्य प्रक़श देकर मिि कीऽजये। ॎ पिण्डराक़ि़य नमः। ॎ पिष्करे िण़य नमः। ॎ कमिेिण़य नमः। ॎ ऽवश्वरूप़य नमः। ॎ श्रामह़ऽवष्णवे नमः। ॎ सीयधऩऱयण़य नमः।।

ईत्पऽत्त स्थ़न हैं, ईस प्रचण्ड प्रत़पव़िे भगव़न सीयध को हम नमस्क़र करते हैं। वे सीयधदव े समस्त प्रज़ओ के समि ईददत हो रहे हैं। षऽड्वध ऐश्वयधसम्पन्न भगव़न अददत्य को नमस्क़र है। ईनकी प्रभ़ ददन क़ भ़र वहन करने व़िा है, हम ईन भगव़न को ईत्तम अहुऽत समर्णपत करते हैं। ऽजन्हें मेध़ ऄत्यन्त ऽप्रय है, वे ऊऽषगण ईत्तम पंखों व़िे पिा के रूप में भगव़न सीयध के प़स गये और आस प्रक़र प्ऱथधऩ करने िगे भगवन ! आस ऄन्धक़र को

जो मनिष्य आस चििष्मताऽवद्य़ क़ ऽनत्य प़ठ करत़ है, ईसे नेि सम्बन्धा कोइ रोग नहीं होत़। ईसके कि ि में कोइ ऄंध़ नहीं होत़। अठ मनिष्य को आस ऽवद्य़ क़ द़न करने पर आसक़ ग्रहण कऱ देने पर आस ऽवद्य़ की ऽसऽद्ध होता है। ।।आऽत संपीणंम्।

भॊि ससि दर ा साभग्री ु ब

भॊि ससि भारा

हत्था जोडी- Rs- 550, 730, 1450, 1900, 2800

स्पहटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250

ससमाय ससॊगी- Rs- 1050, 1450, 1900, 2800

सपेद

त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450

यक्त (रार)

कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,

भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above

दक्षऺणावतॉ शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900

ववधुत भारा - Rs- 100, 190

भोतत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900

ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460

भामा जार- Rs- 251, 551, 751

कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280

इडर जार- Rs- 251, 551, 751

हल्दी भारा - Rs- 150, 280

धन ववृ ि हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550)

तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370

घोडे की नार- Rs.351, 551, 751

नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above

ऩीरी कौड़िमाॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181

नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730

हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181

हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 190 280, 460, 730

रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111

भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above

नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-111

ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above

कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,

वैजमॊती भारा Rs- 100,190

गोभती

क्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101, 151, 201,

रुराऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450

गोभती

क्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से 550

भूल्म भें अॊतय छोटे से फिे आकाय के कायण हैं।

(अतत दर ा फिे आकाय भें 5 ग्राभ से 11 ग्राभ भें उऩरब्द्ध) ु ब

ॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640 ॊदन - Rs- 100, 190, 280

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भॊि ससि ऩडना गणेश बगवान श्री गणेश फवु ि औय सशऺा के कायक ग्रह फध ु के अचधऩतत

दे वता हैं। ऩडना गणेश फुध के सकायात्भक प्रबाव को फठाता हैं एवॊ

वास्तु उऩाम हे तु सवाश्रेठठ

नकायात्भक प्रबाव को कभ कयता हैं।. ऩडन गणेश के प्रबाव से व्माऩाय औय धन भें ववृ ि

भें ववृ ि होती हैं। फच् ो फक ऩढाई हे तु बी ववशेष पर प्रद हैं ऩडना गणेश इस के प्रबाव से फच् े फक फुवि कूशाग्र होकय उसके आत्भववश्वास भें बी ववशेष ववृ ि होती हैं। भानससक अशाॊतत को कभ कयने भें भदद कयता हैं, व्मस्क्त द्व़ऱ अवशोवषत हयी ववफकयण शाॊती प्रदान कयती हैं, व्मस्क्त के शायीय के तॊि को तनमॊत्रित कयती हैं। स्जगय, पेपिे, जीब, भस्स्तठक औय तॊत्रिका तॊि इत्माहद योग भें सहामक होते हैं। कीभती ऩत्थय भयगज के फने होते हैं।

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भॊि ससि भॊगर गणेश भूॊगा गणेश को ववध्नेश्वय औय ससवि ववनामक के रूऩ भें जाना जाता हैं। इस सरमे भूॊगा गणेश ऩूजन के सरए अत्मॊत राबकायी हैं। गणेश जो ववध्न नाश एवॊ शीघ्र पर फक प्रास्प्त हे तु ववशेष राबदामी हैं।

भूॊगा गणेश घय एवॊ व्मवसाम भें ऩूजन हे तु स्थावऩत कयने से गणेशजी का आशीवााद शीघ्र प्राप्त होता हैं। क्मोफक रार यॊ ग औय रार भॊग ू े को ऩववि भाना गमा हैं। रार भॊग ू ा शायीरयक औय

भानससक शस्क्तमों का ववकास कयने हे तु ववशेष सहामक हैं। हहॊसक प्रवस्ृ त्त औय गुस्से को तनमॊत्रित कयने हे तु बी भूॊगा

गणेश फक ऩूजा राब प्रद हैं। एसी रोकभाडमता हैं फक भॊगर गणेश को स्थावऩत कयने से बगवान गणेश फक कृऩा शस्क्त ोयी, रूट, आग, अकस्भात से ववशेष सुयऺा प्राप्त होती हैं, स्जस्से घय भें मा दक ु ान भें उडनती एवॊ सुयऺा हे तु भूॊगा गणेश

स्थावऩत फकमा जासकता हैं।

प्राण प्रततस्ठठत भूॊगा गणेश फक स्थाऩना से बाग्मोदम, शयीय भें खून की कभी, गबाऩात से फ ाव, फुखाय,

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ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शस्क्त भें ववृ ि, शिु ववजम, तॊि भॊि के दठु ट प्रबा, बूत-प्रेत बम, वाहन दघ ा नाओॊ, ु ट हभरा,

ोय, तूपान, आग, त्रफजरी से फ ाव होता हैं। एवॊ जडभ कॊु डरी भें भॊगर ग्रह के ऩीड़ित होने ऩय सभरने वारे

हातनकय प्रबावों से भुस्क्त सभरती हैं।

जो व्मस्क्त उऩयोक्त राब प्राप्त कयना ाहते हैं उनके सरमे भॊि ससि भॊग ू ा गणेश अत्मचधक पामदे भॊद हैं।

भूॊगा गणेश फक तनमसभत रूऩ से ऩूजा कयने से मह अत्मचधक प्रबावशारी होता हैं एवॊ इसके शुब प्रबाव से सुख सौबाग्म फक प्रास्प्त होकय जीवन के साये सॊकटो का स्वत् तनवायण होजाता हैं। Rs.550 से Rs.8200 िक >> Order Now

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गोमता चक्र  गोमता चक्र को ध़रण करऩ भ़ग्योदयक़रा म़ऩ गय़ हैं। गोमता चक्रको, देवा मह़िक्ष्मा के प्रऽतक के रुप में पीजन-ध़रण ऽजय़ ज़त़ हैं।  यह म़ऩ ज़त़ है दक गोमता चक्र को ध़रण करने से मनिष्य के धन, वैभव एवं समुऽद्ध में वुऽद्ध होता हैं। देवा िक्ष्मा क़ अऽशव़धद प्ऱप्त होत़ हैं।  घर, दिक़नें, क़य़धिय अदद जगह के मिख्य द्व़र गोमऽत चक्र को िटक़ ने से सिख, श़ंऽत और समुऽद्ध प्ऱप्त होता हैं।

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2 जनवरा : पौष शिक्ि चतिथी (

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पौष शिक्ि व्रत ऽवऽध पीवधक करने व़िे मनिष्य को

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(ि़रऽसद्ध ऄथ़धत: पकते हुए घामें नमक ड़िकर ईसे ऽनक़ि दे और दफर अटेको सेंककर मोदक बऩवे)

धन-संपऽत्त क़ ऄभ़व नहीं रहत़। ईसा सभा प्रक़र के सिख सौभ़ग्य की प्ऱऽप्त होता हैं।

8 जनवरा: पौष शिक्ि एक़दशा (

गणेश जा की कथ़: एक कथ़ के ऄनिस़र, जब ऱवण ने स्वगधिोक में सभा देवत़ओं को पऱऽजत कर ईन पर ऽवजय प्ऱप्त कर ऽिय़। तब ऱवण संध्य़ करते हुए दकऽष्कन्ध़ ऱजध़ना के व़नरों के ऱज़ ब़ऽि को भा पकड़ ने की कोऽशश की। संध्य़ करते हुए जब ऱवण ने ब़ऽि को पकड़़ तो ब़ऽि ने ऱवण को ऄपना बगि में दब़य़ और ऄपना ऱजध़ना िे गय़ और ऄपने पिि ऄंगद को ईसने ऱवण खेिने के ऽिए सौंप ददय़ ऄंगद ने ऱवण को रस्सा से ब़ाँधकर घिम़ऩ शिरु कर ददय़, ऱवण देखकर दकऽष्कन्ध़ व़सा हाँसने िगें। ऱवण को ऄपने ऄऽभम़न के क़रण वह आस ऽस्थऽत मे थ़। ऱवण की आस ह़ित को ईसके द़द़ पििस्त्य मिऽन सहन नहीं कर प़ए और ईन्होंने ऱवण से कह़ दक आस ऽस्थऽत से छि टक़ऱ च़ऽहए तो ऽवघ्न ऽवऩशक गणेश जा की अऱधऩ करो ऱवण ने द़द़ पििस्त्य मिऽन की ब़त सिनकर गणेश जा की तपस्य़ की और ऄपने स़रे बंधनों से मिऽि ऽमि गइ।

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पिऱणों के ऄनिस़र पौष म़ह की शिक्ि एक़दशा क़ व्रत रखने व ऄनिष्ठ़न करने से भद्ऱवता के ऱज़ सिकेति को पिि रत्न की प्ऱऽप्त हुइ था, तभा से पौष म़ह की शिक्ि पि की एक़दशा को पििद़ एक़दशा कह़ ज़ने िग़। जो ऽन:संत़न है, वह दंपऽत्त आस ददन भगव़न ऽवष्णि की ऽवऽधवत पीज़-ऄचधऩ करते है। एक श

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ऄजिधन ने श्रा कु ष्ण से ऄनिरोध दकय़ कु प्य़ अप पौष म़ह के शिक्ि पि की एक़दशा क़ ऩम एवं ऽवऽध ऽवस्त़र सऽहत बत़एं। श्राकु ष्ण बोिे "हे ऄजिधन ! पौष म़स की शिक्ि पि की एक़दशा क़ ऩम पििद़ है। आस व्रत में ऩऱयण भगव़न क़ पीजन करऩ च़ऽहए। संस़र में पििद़ एक़द्शा व्रत के सम़न ऄन्य दीसऱ व्रत नहीं है । आसके पिण्य से मनिष्य तपस्वा, ऽवद्व़न और धनव़न् होत़ है। आस संबंध में जो िोककथ़ प्रचऽित है, वह मैं तिमसे कहत़ हूं,

5 जनवरा: पौष शिक्ि सप्तमा (

)

अददत्यपिऱण में ईल्िेख हैं के ईभयसप्तमा व्रत पौष शिक्ि सप्तमाको ईपव़स करके तानों समय क्रमशः प्ऱतः मध्य़ह और स़यंक़ि सीयधदव े क़ ऽवऽध-ऽवध़न से गन्ध, पिष्प और घुत़ददसे पीजन करे और ि़रऽसद्ध मोदक क़ नैवेद्य ऄपधण करे । ब्ऱह्मणों को भोजन कऱये, द़न-पीण्य आत्य़दद से ईन्हें प्रसन्न करे और भीऽमपर शयन करे , आस व्रत से मनिष्य की सभा क़मऩ सफि होता है।

तिम आसे ध्य़नपीवधक सिनो एक समय भद्ऱवता नगरा में सिकेतिम़न ऩम क़ ऱज़ ऱज्य करत़ थ़। वह ऽनःसन्त़न थ़। ईसकी पत्ना क़ ऩम शैव्य़ थ़। शैव्य़ सन्त़नहान होने के क़रण सदैव हचऽतत रहता था। सिकेतिम़न को भा आस क़रण बड़ा हचत़ था दक ईसके ब़द ईसे और ईसके पीवज ध ों क़ ऽपण्डद़न कौन करे ग़। ऱज़ के प़स सभा प्रक़र की संपन्नत़ होने के ईपऱंत भा मन में ऄसंतोष थ़। ईसक़ एकम़ि क़रण

गुरुत्व ज्योतिष

पििहानत़ थ़। ऽजस घर में पिि न हो वह़ं सदैव ऄंधेऱ हा

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रहत़ है। आस तरह ऱज़ ऱत-ददन आसा हचत़ से आतऩ

ऽवश्वदेव हैं। अज से प़ंच ददन ब़द म़घ स्ऩन है और हम आस सरोवर पर स्ऩन करने अये हैं।

व्यऽथत हो गय़ दक ईसके मन में ऄपऩ देह त्य़ग देने की

यह ज़नकर ऱज़ बोि़ मिऽनश्वर ! मेरे कोइ पिि

आच्छ़ ईत्पन्न हो गइ, परन्ति वह सोचने िग़ दक

नहीं है, यदद अप मिझ पर प्रसन्न हैं तो कु प़ कर मिझे एक

अत्महत्य़ करऩ तो मह़प़प है। ऄतः ईसने आस ऽवच़र को मन से ऽनक़ि ददय़। एक ददन आन्हीं ऽवच़रों में डी ब़ हुअ वह घोड़े पर सव़र

पिि क़ वरद़न दाऽजए।

होकर वन को चि ददय़। ऱज़ घोड़े पर सव़र होकर वन, पऽियों और वुिों को देखने िग़। ईसने वन में देख़ दक सभा प्ऱणा ऄपने बच्चों के स़थ ऽवचरण कर रहे हैं। वन के दुश्यों को देखकर ऱज़ और ऄऽधक व्यऽथत हो गय़ दक वह पििहान क्यों है? आसा सोच-ऽवच़र में दोपहर हो गया। ऄब ऱज़ को भीख और प्य़स िगने िगा। वह सोचने िग़ दक मैंने ऄनेक शिभ कमध दकय़ है परन्ति दफर भा मिझे यह दिःख क्यों ऽमि रह़ है ? अऽखर आसक़ क़रण क्य़ है? ऄपना समस्य़ दकससे कहूं? कौन मेरा व्यथ़ को सिनेग़ ? यहा सब सोचते-ऽवच़रते ऱज़ की प्य़स तेज हो गया ईसक़ कं ठ सीखने िग़ और प़ना की ति़श में अगे बढ़़। कि छ हा अगे ऱज़को एक सरोवर ददख़, ऽजस में सिंदर कमि ऽखिे थे। सरोवर में स़रस, हंस, मगरमच्छ अदद जिक्रीड़़ कर रहे थे। सरोवर के च़रों तरफ मिऽनयों के अश्रम थे। ईस समय ऱज़ के द़ऽहने ऄंग फड़कने िगे। आसे शिभ शकि न समझकर ऱज़ मन में प्रसन्न होकर घोड़े से ईतऱ और सरोवर के दकऩरे बैठे मिऽनयों को दंडवत करके ईनके सम्मिख बैठ गय़। मिऽन बोिे - हे ऱजन ! हम तिमसे ऄत्यन्त प्रसन्न हैं, तिम्ह़रा क्य़ आच्छ़ है, सो कहो ।"

मिऽन बोिे - हे ऱजन ! अज पििद़ एक़दशा है। अप आसक़ व्रत करें । भगव़न ऩऱयण की कु प़ से अपके घर ऄवश्य हा पिि होग़। मिऽन के बत़एं ऄनिस़र ऱज़ ने पििद़ एक़दशा व्रत दकय़ और द्व़दशा को व्रत क़ प़रण दकय़ और मिऽनयों को प्रण़म करके ऄपने महि में व़पस अ गय़। भगव़न श्रा ऽवष्णि की कु प़ से कि छ ददनों ब़द हा ऱना ने गभध ध़रण दकय़ और नौ म़ह के पश्च़त से ईत्तम पिि ईत्पन्न हुअ। वह ऱजकि म़र बड़़ होने पर ऄत्यन्त वार, धनव़न, यशस्वा और प्रज़प़िक हुअ। श्राकु ष्ण भगव़न् बोिे हे ऄजिधन ! पिि की प्ऱऽप्त के ऽिए पििद़ एक़दशा क़ व्रत करऩ च़ऽहए। पिि प्ऱऽप्त के ऽिए आससे बढ़कर दीसऱ कोइ व्रत नहीं है। जो व्यऽक्त पििद़ एक़दशा के म़ह़त्म्य को पढ़त़-सिनत़ तथ़ ऽवऽधपीवधक आसक़ व्रत करत़ है, ईसे सवधगिण सम्पन्न पििरत्न की प्ऱऽप्त होता है। श्रा ऩऱयण की कु प़ से वह प्ऱणा मोि क़ ऄऽधक़रा होत़ है। आस कऽियिग में ईत्तम संत़न की प्ऱऽप्त क़ ईत्तम स़धन पििद़ एक़दशा क़ व्रत हा है। प़ठको से ऽनवेदन अज के अधिऽनक यिग में पििद़ एक़दशा व्रत से ईत्तम संत़न की प्ऱऽप्त होता हैं, व्रत क़ त़त्पयध ईत्तम संत़न से च़हें वह िड़क़ हो य़ िड़की हो, ऄतः के वि पिि संत़न की क़मऩ से यह व्रत न करें ।

ऱज़ ने ईनसे पीछ़ - मिऽनश्वरो ! अप कौन हैं ? और

10 जनवरा: पौष शिक्ि ियोदशा (घ

दकसऽिए यह़ं पध़रे हैं ?

श़स्त्रोि म़न्यत़ हैं की पौष शिक्ि ियोदशा को भगव़नक़ पीजन-ऄचधन करके ब्ऱह्मणको घा क़ द़न देने से मनिष्य की सभा ऄभाष्ट क़मऩएाँ ऽसद्ध होता हैं।

मिऽन बोिे - ऱजन ! अज पिि की आच्छ़ करने व़िे को ईत्तम सन्त़न देने व़िा पििद़ एक़दशा है। हम िोग

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गुरुत्व ज्योतिष

म़घ म़स प्ऱरं भ 13 जनवरा ( घ

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पिऱणों मे म़घ, क़र्णतक और वैश़ख मह़ पऽवि महाने म़ने गये हैं। आन महानों में ताथधस्थ़ऩददपर स्ऩनद़न अदद करनेसे ऄनन्त फि प्ऱप्त होत़ है। स्त्ऱनक़िि सीयोदयः अथ : स्ऩन हेति सीयोदय क़ समय श्रेष्ठ है । ईत्तमं ति सनििं ििप्तत़रं ति मध्यमम् । सऽवतयिधददते भीप ततो हानं प्रकीर्णततम् ॥ ( ब्ऱह्मे ) अथ : सीयोदयके ब़द ऽजतऩ ऽविम्ब हो ईतऩ हा स्ऩन ऽनष्फि म़ऩ ज़त़ है। स्ऩन के समय स्मरण करे पिष्कऱददऽन ताथ़धऽत गङ्ग़द्य़ः सररतस्तथ़। अगच्छन्ति पऽवि़ऽण स्त्ऱनक़िे सद़ मम॥१॥ हररद्व़रे कि श़वते ऽबल्वके नािपवधते। स्त्ऱत्व़ कनखिे ताथे पिनजधन्म न ऽवद्यते॥२॥ ऄयोध्य़ मथिऱ म़य़ क़शा क़ञ्चा ऄवऽन्तक़। पिरा द्व़ऱवता ज्ञेय़ः सप्तैत़ मोिद़ऽयक़ः॥३॥ गंगे च यमिने चैव गोद़वरर सरस्वऽत। नमधदे ऽसन्धि क़वेरर जिेऻऽस्मन संऽनहध कि रु॥४॥ सररत्तोयं मह़वेगं नवकि म्भऽस्थतं तथ़। व़यिऩ त़ऽडतं ऱिौ गङ्गस्त्ऱनसमं स्मुतम्॥ अथ : वेगसे बहनेव़िा दकसा भा नदाके जिसे स्ऩन करे य़ ऱतभर छतपर रखे हुए जिपीणध घटसे स्ऩन करे । य़ ददनभर सीयधदकरणोंसे तपे हुए जिसे स्ऩन करे । स्ऩनके अरम्भमें ईच्च़रण करें । अपस्त्वमऽस देवश े ज्योऽतष़ं पऽतरे व च। प़पं ऩशय मे देव व़डमनः कमधऽभः कु तम्॥ दफर जि िेकर ईच्च़रण करते हुवे स्ऩन करें । दिःखद़ररद्रयऩश़य श्राऽवष्णोस्तोषण़य च। प्ऱतःस्ऩनं करोम्यद्य म़घे प़पऽवऩशनम्॥ इश्वरकी प्ऱथधऩ करे और स्ऩन करनेके पि़त् आस मंि क़ ईच्च़रण करें सऽविे प्रसऽविे च परं ध़म जिे मम। त्वत्तेजस़ पररभ्रष्टं प़पं य़ति सहस्त्रध़॥ सीयधदव े को ऄर्घयध देकर हररक़ पीजन य़ स्मरण करे ।

म़घ स्ऩन सभा वगध के िोग यथ़ ऽनयम ऽनत्यप्रऽत म़घस्ऩन कर सकते हैं। एक़दश्य़ं शिक्िपिे पौषम़से सम़रभेत् । द्व़दश्य़ं पौणधम़स्य़ं व़ शिक्िपिे सम़पऩम् ॥ पिण्य़न्य़ह़ऽन हिशत्ति मकरस्थे ददव़करे । एवं स्ऩऩवस़ने ति भोज्यं देयमव़ररतम् । भोजयेऽद्वज दंपत्य़न्भीषयेद्वस्त्रभीषणैः स्ऩन ऄवऽध य़ तो पौष शिक्ि एक़दशासे म़घ शिक्ि एक़दशातक य़ पौष शिक्ि पीर्णणम़से म़घ शिक्ि पीर्णणम़तक ऄथव़ मकर संक्ऱंऽत से किं भ संक्ऱंऽत तक ऽनयऽमत स्त्ऱन करे और यथ़ संभव मौन रहे। ध़र्णमक क़यों से जिड़े रहें। ब्ऱह्मणोंको वस्त्र अदद भेट कर प्रसन्न करें । ब्ऱह्मण दंपऽत्त को ऽवऽभन्न भोजन कऱएं। सीयो मे प्रायत़ं देवो ऽवष्णिमीर्णतऽनरञ्जनः। ईि मंि से सीयधकी प्ऱथधऩ करे । स्वयं ऽनऱह़र, श़क़ह़र, फि़ह़र य़ दिग्ध़ह़र व्रत ऄथव़ एकभिि भोजन ग्रहण कर व्रत करे । आस प्रक़र संयम भ़वके स़थ स्ऩन करे तो ऄश्वमेध अददके सम़न फि प्ऱप्त होत़ है और व्रता के सब प्रक़रके प़पत़प तथ़ दिःख दीर हो ज़ते हैं । 14 जनवरा ( क

)

संक्ऱऽन्त व्रत पौष म़स की मकर संक्ऱंऽत के ददन पऽवि नददयों ऄथव़ त़ि़बों में प्ऱतः स्ऩन-द़न करने क़ श़स्त्रोि ऽवध़न है। द़न में ऄऽधकतर: ऽखचड़ा, उना वस्त्र, कं बि आत्य़दद क़ द़न गराबों में करने क़ ऽवध़न हैं। म़घ कु ष्ण चतिथी 16 जनवरा (

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वक्रतिण्डचतिथी पौऱऽणक ग्रंथ भऽवष्योत्तर के ऄनिश़र म़घ कु ष्ण चन्द्रोदयव्य़ऽपना चतिथीको वक्रतिण्डचतिथी कहते हैं। आस व्रतक़ अरम्भ गणपऽतप्रातये संकष्टचतिथीव्रतं कररष्ये क़

गुरुत्व ज्योतिष

ईच्च़रण कर संकल्प से करे । स़यंक़िमें गणेशजाक़ और चन्द्रोदयके समय चन्द्रक़ पीजन करके ऄर्घयध दे। आस व्रतको म़घसे अरम्भ करके हर महानेमें करे तो संकटक़ ऩश हो ज़त़ है। 23 जनवरा (

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ऄन्न, ऽति अदद द़न करने से धन-ध़न्य में वुऽद्ध होता है। एक श

कथ

एक ब़र ऩरद मिऽन भगव़न ऽवष्णि के ध़म वैकिण्ठ पहुंचे। वह़ाँ ऩरदजा हे भगवन् ! अपको नमस्क़र है। षऽतति़ एक़द्शा के व्रत क़ पिण्य क्य़ है ? ईनकी क्य़

षटऽति़ एक़दशा म़घ म़स के कु ष्ण पि की

कथ़ है, सो कु प़ कर कऽहए। ऩरद की ऽवनता सिनकर श्रा

एक़दशा को कहते हैं। आस ददन भगव़न ऽवष्णि की पीज़-

ऽवष्णि भगव़न बोिे - "हे ऩरद ! मैं तिमसे एक सत्य घटऩ

ऄचधऩ की ज़ता है। आस ददन क़िे ऽति के द़न क़ ऽवशेष महत्व है। शरार पर ऽति के तेि की म़ऽिश कर जि में

कहत़ हूं, ध्य़नपीवधक सिनो - प्ऱचान क़ि में मुत्यििोक में

ऽति ड़िकर ईससे स्ऩन करने क़ ऽवध़न हैं।, ऽति जिप़न तथ़ ऽति के पकव़नों को आस ददन ख़ने तथ़ ब्ऱह्मण को भा ऽखि़ने क़ ऽवशेष महत्व है। आस ददन ऽति क़ हवन करके ऱऽि ज़गरण क़ ऽवध़न है। पंच़मुत में ऽति ऽमि़कर भगव़न को स्ऩन कऱने से ऽवशेष महत्व है। क

ग आस ददन छ: प्रक़र के ऽति प्रयोग करने क़ ऽवध़न

हैं आस ऽिए आसे "षटऽति़ एक़दशा" के ऩम से ज़ऩ ज़त़ हैं। ध़र्णमक म़न्यत़ हैं की आस ददन जो मनिष्य ऽजतने

एक ब्ऱह्मणा रहता था। ईसके ब्ऱह्मण की मुत्यि हो चिकी था। िेदकन ईसकी पत्ना मिझ में बहुत हा श्रद्ध़ एवं भऽि रखता था। एक ब़र ईसने एक महाने तक व्रत रखकर मेरा अऱधऩ की। व्रत के प्रभ़व से ईसक़ शरार शिद्ध हो गय़, परं ति वह कभा ब्ऱह्मण एवं देवत़ओं के ऽनऽमत्त ऄन्न द़न नहीं करता था। ऄत: मैंने सोच़ दक यह स्त्रा वैकिण्ठ में रहकर भा ऄतुप्त रहेगा। ऄत: मैं ईसके कल्य़ण हेति स्वयं एक ददन ब्ऱह्मणा से ऽभि़ िेने गय़। वह ब्ऱह्मणा बोिा - हे मह़ऱज ! अप यह़ं दकसऽिए अये हैं ? मैंने कह़ - मिझे ऽभि़ च़ऽहए। आस पर

आस एक़दशा पर ऽति क़ ऽनम्नऽिऽखत छ: प्रक़र से प्रयोग

ईसने मिझे एक ऽमट्टा क़ हपड दे ददय़। मैं ईसे िेकर स्वगध िौट अय़। कि छ ददनों पि़त वह देह त्य़ग कर मेरे िोक में अ गइ। यह़ाँ ईसे एक कि रटय़ और अम क़ पेड़ ऽमि़। ख़िा कि रटय़ को देखकर वह घबऱकर मेरे प़स अइ और

दकय़ ज़त़ है

बोिा दक मैं तो धमधपऱयण हूाँ, दफर मिझे ख़िा कि रटय़

१). ऽति स्ऩन, २). ऽति की ईबटन, ३). ऽतिोदक, ४).

क्यों ऽमिा? तब मैंने ईसे बत़य़ दक यह ऄन्न द़न नहीं

ऽति क़ हवन, ५). ऽति क़ भोजन, ६). ऽति क़ द़न,

करने तथ़ मिझे ऽमट्टा क़ ऽपण्ड देने से हुअ है। मैंने दफर

ऽति द़न करत़ है, वह ईतने हा सहस्त्र वषध स्वगध में ऽनव़स करत़ है।

आस प्रक़र छः रूपों में ऽतिों क़ प्रयोग 'षटऽति़'

ईसे बत़य़ दक जब देव कन्य़एं अपसे ऽमिने अएं, तब

कहि़त़ है। षटऽति़ एक़दशा क़ म़ह़त्य ऄनेक प्रक़र के प़प दीर करने में समथध हैं।

अप कि रटय़ क़ द्व़र तभा खोिऩ जब तक वे अपको

क म़न्यत़ हैं की 'षटऽति़ एक़दशा' के व्रत से जह़ाँ मनिष्य क़ श़रार की शिऽद्ध और अरोग्यकी प्ऱऽप्त होता है, वहीं

'षटऽति़ एक़दशा' के व्रत क़ ऽवध़न न बत़एं। ब्ऱह्मण की स्त्रा ने ऐस़ हा दकय़ और ऽजन ऽवऽधयों को देवकन्य़ ने कह़ थ़, ईस ऽवऽध से 'षटऽति़ एक़दशा' क़ व्रत दकय़। व्रत के प्रभ़व से ईसकी कि रटय़ ऄन्न-धन से भर गइ।

गुरुत्व ज्योतिष

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आसऽिए हे ऩरद! आस ब़त को सत्य म़नों दक जो व्यऽि आस एक़दशा क़ व्रत करत़ है और ऽति एवं ऄन्नद़न

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करत़ है, ईसे मिऽि और वैभव की प्ऱऽप्त होता है।

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षटऽति़ एक़दशा व्रत से मनिष्यों को जन्म-जन्म की अरोग्यत़ प्ऱप्त होता है। 27

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गुरुत्व ज्योतिष





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द्व़दश मह़ यंि यंि को ऄऽत प्ऱऽचन एवं दििधभ यंिो के संकिन से हम़रे वषो के ऄनिसंध़न द्व़ऱ बऩय़ गय़ हैं।  सहस्त्ऱिा िक्ष्मा अबद्ध यंि  परम दििधभ वशाकरण यंि,  अकऽस्मक धन प्ऱऽप्त यंि  भ़ग्योदय यंि  पीणध पौरुष प्ऱऽप्त क़मदेव यंि  मनोव़ंऽछत क़यध ऽसऽद्ध यंि  रोग ऽनवुऽत्त यंि  ऱज्य ब़ध़ ऽनवुऽत्त यंि  स़धऩ ऽसऽद्ध यंि  गुहस्थ सिख यंि  शिि दमन यंि  शाघ्र ऽवव़ह संपन्न गौरा ऄनंग यंि ईपरोि सभा यंिो को द्व़दश मह़ यंि के रुप में श़स्त्रोि ऽवऽध-ऽवध़न से मंि ऽसद्ध पीणध प्ऱणप्रऽतऽष्ठत एवं चैतन्य यिि दकये ज़ते हैं। ऽजसे स्थ़पात कर ऽबऩ दकसा पीज़ ऄचधऩ-ऽवऽध ऽवध़न ऽवशेष ि़भ प्ऱप्त कर सकते हैं। मल् ू य: Rs.2350 से Rs.10900 >> Shop Online | Order Now

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गुरुत्व ज्योतिष

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 ऽहन्दि धमध में श्रायंि सव़धऽधक िोकऽप्रय एवं प्ऱचान यंि है, श्रायंि की अऱध्य़ देवा स्वयं श्राऽवद्य़ ऄथ़धत ऽिपिर सिन्दरा देवा हैं, श्रायंि को देवाके हा रूप में म़न्यत़ ददगइ है। श्रायंि को ऄत्य़ऽधक शऽिश़िा व िऽित़देवा क़ पीजन चक्र म़ऩ ज़त़ है, श्रायंि को िैिोक्य मोहन ऄथ़धत तानों िोकों क़ मोहन करने व़ि़ यन्ि भा कह़ं ज़त़ है। श्रायंि

में

सवध

रि़क़रा,

सवधकष्टऩशक,

सवधव्य़ऽध-ऽनव़रक ऽवशेष गिण होने के क़रण श्रायंि को सवध ऽसऽद्धप्रद एवं सवध सौभ़ग्य द़यक म़ऩ ज़त़ है। श्रायंि को सरि शब्दों में िक्ष्मा यंि कह़ ज़त़

च त ॊ न जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी

कह़ यह श्रा यंि मनिष्यों क़ सभा प्रक़र से कल्य़ण करे ग़। श्रा यंि परम ब्रह्म स्वरूपा अदद देवा भगवता मह़ऽिपिर सिदरं ा की ईप़सऩ क़ सवधश्रेष्ठ यंि है क्योंदक श्रा चक्र हा देवाक़ ऽनव़स स्थि है। श्रा यंि में देवा स्वयं ऽवऱजम़न होता हैं आसाऽिए श्रा यंि ऽवश्व क़ कल्य़ण करने व़ि़ है। अज के अधिऽनक यिग में मनिष्य ऽवऽभन्न प्रक़र की समस्य़ओं से ग्रस्त है, एसा ऽस्थऽत में यदद मनिष्य पीणध श्रद्ध़भ़व और ऽवश्व़स से श्रायंि की स्थ़पऩ करें तो यह यंि ईसके ऽिए चमत्क़रा ऽसद्व हो सकत़ है। मंि ऽसद्ध एवं प्ऱण-प्रऽतऽष्ठत श्रा यंि को कोइ भा मनिष्य च़हे वह धनव़न हो य़ ऽनधधन वहाँ ऄपने घर,

हैं, क्योदक श्रायंि को धन के अगमन हेति सवधश्रेष्ठ यंि

दिक़न, ऑदफस आत्य़दद व्यवस़याक स्थ़नों पर स्थ़ऽपत

म़ऩ गय़ हैं। ऽवद्व़नों क़ कथन हैं की श्रायंि ऄिौदकक शऽियों व चमत्क़रा शऽियों से पररपीणध गिप्त शऽियों क़ प्रमिख के न्द्र ऽबन्दि है। श्रायंि को सभा देवा-देवत़ओं के यंिों में सवधश्रेष्ठ यंि कह़ गय़ है। यहीं क़रण हैं, दक श्रायंि को यंिऱज,

कर सकत़ हैं। ऽवद्व़नो क़ ऄनिभव हैं की श्रायंि क़ प्रऽतदन पीजन करने से देवा िक्ष्मा प्रसन्न होता है और मनिष्य क़ सभा प्रक़र से मंगि करता हैं। म़ं मह़िक्ष्मा की कु प़ से मनिष्य ददन प्रऽतददन सिख-समुऽद्ध एवं ऐश्वयध को प्ऱप्त कर अनंदमय जावन व्यतात करत़ हैं। पौऱऽणक धमधग्रंथों में वर्णणत हैं की श्रा यंि

यंि ऽशरोमऽण भा कह़ ज़त़ है।

अददक़िान ऽवद्य़ क़ द्योतक हैं, भ़रतवषध में

श्रायंि से जिडाऺ पौऱऽणक कथ़ धमधग्रंथों में श्रा यंि के संदभध में एक प्रचऽित कथ़ क़ वणधन ऽमित़ है। कथ़के ऄनिस़र एक ब़र अददगिरु शंकऱच़यधजा ने कै ि़श पर भगव़न ऽशवजा को करठन तपस्य़ द्व़ऱ प्रसन्न कर ऽिय़। भगव़न भोिेऩथ ने प्रसन्न होकर शंकऱच़यधजा से वर म़ंगने के ऽिए कह़। अददगिरु शंकऱच़यधजा ने ऽशवजा से ऽवश्व कल्य़ण क़ ईप़य पीछ़। पीछे गये प्रश्न पर भगव़न भोिेऩथ ने स्वयं शंकऱच़यध को स़ि़त िक्ष्मा स्वरूप श्रा यंि की ऽवस्तुत मऽहम़ बत़इ और

प्ऱचानक़ि में भा व़स्तिकि़ ऄत्यन्त समुद्व था। और अज के अधिऽनक यिग में प्ऱयः हर मनिष्य व़स्ति के म़ध्यम से भा प्रक़र के सिख प्ऱप्त करऩ च़हत़ है। ईनके ऽिए श्रायंि की स्थ़पऩ ऄत्यंत महत्वपीणध है। क्योदक ज़नक़रों क़ म़नऩ हैं की श्रा यंि में ब्रह्म़ण्ड की ईत्पऽत्त और ऽवक़स क़ रहस्य ऽछप़ हैं। ऽवद्व़नो के मत़निश़र श्रायंि में श्रा शब्द की व्य़ख्य़ आस प्रक़र से की गइ हैं "श्रयत य़ स़ श्रा" ऄथ़धत जो श्रवण की ज़ये, वह श्रा हैं। ऽनत्य परब्रह्म़ से अश्रयण प्ऱप्त करता हो, वह श्रा हैं।

गुरुत्व ज्योतिष

श्रायंि क़ ऄन्य ऄथध हैं श्रा क़ यंि। यंि शब्द "यम" ध़ति क़ घोतक हैं। (यम ध़ति से बऩ हैं) यन्ि शब्द गुह शब्द को प्रकट करत़ हैं। ऽजस प्रक़र गुह में सब वस्तिओं क़ ऽनयंिण होत़ हैं ईसा प्रक़र श्रायंि को प्ऱप्त करने य़ ऽनयंऽित करने के ऽिए श्रायंि सवधश्रेष्ठ म़ध्य हैं। प्ऱयः सभा िोगोने ऄपने दैऽनक जावन में ऄनेक ब़र देख़ होग़ की दकसा श्रेष्ठ एवं पीज्य मनिष्यों के ऩम के अगे िोग "श्रा" शब्द क़ प्रयोग करते हैं। मनिष्य की श्रेष्ठत़ के ऄनिक्रम के ऄनिश़र ईनकी ऩमके अगे 3, 4, 5, 8 ब़र तक "श्रा" शब्द प्रयोग क़ श़स्त्रों में ईल्िेख ऽमि़ हैं। प्रध़न पाठ़ऽधश्वर/पाठ़ऽधपऽत ऄथव़ दकसा संप्रद़य ऽवशेष के प्रध़ऩच़यों के ऩम के अगे य़ पाछे

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ऽवऽभन्न त़ंऽिक ग्रंथों में श्रा यंि के ऽवषय में ऽजतऩ वणधन ऽमित़ हैं ईतऩ और दकसा ऽवषय पर नहीं ऽमित़! श्रायंि में ऽस्थत नौ चक्रों क़ वणधन रुद्रय़मि तंि में वर्णणत हैं

ऽबन्दिऽिकोणवसिकोणदश़रयिग्म मन्वस्न्ऩगदिसंयितषोडश़रम्। वुत्तियं च धरणासदनियं च श्राचक्रमे त दिददतं परदेवत़य़ः॥

ऄथ़धत: श्रायंि के नौ चक्र क्रम में १. ऽबन्दि, २. ऽिकोण, ३. अठ ऽिकोणों क़ समीह, ४. दस ऽिकोणों क़ समीह, ५.

दस ऽिकोणों क़ समीह, ६. चौदह ऽिकोणों क़

1008 ब़र तक "श्रा" क़ प्रयोग दकय़ ज़त़ हैं। क्योदक

समीह, ७. अठ दिों व़ि़ कमि, ८. सोिह दिों व़ि़

"श्रा" शब्द क़ सरि ऄथध "िक्ष्मा" होत़ हैं। िेदकन ऽवऽभन्न धमधग्रथ ं ों में "श्रा" शब्द क़ ऄथध मह़ऽिपिरसिन्दरा होने क़ ईल्िेख ऽमित़ हैं। **कि छ धमधश़स्त्रों एवं ग्रंथों में वर्णणत हैं की "श्रा मह़िक्ष्मा" ने मह़ऽिपिरसिन्दरा की ऽचरक़ि अऱधऩ करके ईसने ऄनेक वरद़न प्ऱप्त दकये हैं। िक्ष्माजा को प्ऱप्त आन्हीं वरद़नों से एक वरद़न "श्रा" शब्द से ख्य़ऽत प्ऱप्त करने क़ भा प्ऱप्त हुव़। तभा से श्रा शब्द क़ ऄथध िक्ष्मा समझ़ ज़ने िग़!

कमि, ९. भीपिर ।

** धमधश़स्त्रों एवं ग्रंथों क़ संदभध हररतयनसंऽहत़, ब्रह्म़ण्डपिऱणोत्तरखण्ड आत्य़दद। श्राचक्र से संबंऽधत मत शंकऱच़य़ध कु त अनन्द सौदयध िहरा में वर्णणत हैं

चतिर्णभः श्राकण्ठै ः ऽशव्यिवऽतऽभः पञ्चऽभरऽप. प्रऽभन्ऩऽभः शम्भोनधवऽभरऽप मीिप्रकु ऽतऽभः । िश्रयित्व़ररशदसिदिकि़ऽिविय-. ऽिरे ख़ऽभः स़धं तव कोण़ः पररणत़ः । श्रायंि क़ ऽवषय ऄत्यन्त गहन हैं, िेदकन यह़ाँ हम प़ठकों के म़गधदशधन हेति आसक़ संऽिप्त ऽववरण देने क़ प्रय़स कर रहे हैं।

आन चक्रों को ऽभन्न-ऽभन्न रं गों से दश़धने क़ ऽवध़न हैं, कमि के

ऽभतर दश़धये गय क्रमशः

२,३,४,५,६ के कि ि ऽमि़कर जो ४३ ऽिकोण (आन ४३ ऽिकोण की सह़यत़ से ऄन्य ऽिकोण कि ि ऽमि़कर १०८ बनते हैं।) दश़धये गये हैं ईसके ऽवषय में अनन्द सौदयध िहरा क़ ईल्िेख ईपर दश़धय़ गय़ हैं। आन चक्रों में यदद ऽिकोण ईध्वधमिखा हो तो वह चक्र ऽशवप्रध़न कहि़त़ हैं एवं यदद बाच क़ ऽिकोण ऄधोमिखा य़ स्व़ऽभमिऽख हो तो वह शऽि प्रध़न यंि कह़ ज़त़ हैं। श्रायंि से संबंऽधत ऽवषय ऄत्यंत व्य़पक

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गुरुत्व ज्योतिष

हैं यहा क़रण हैं की श्रायंि क़ पीजन दऽिण-म़गध एवं ब़म-म़गध दोनों ऽवऽध य़ प्रयोग से दकय़ ज़त़ हैं, ऽजसक़ ऽवस्तुत वणधन ऽिपिरत़ऽपना ईपऽनषद एवं ऽिपिऱ ईपऽनषद में सम़न रुप से वर्णणत हैं। श्रायंि में नौ चक्रों के ऩम एवं ईसके ऽभन्न-ऽभन्न रं गों क्रम क्रमशः आस प्रक़र है.. (१) सव़धनन्दमय (के न्द्रस्थ रि ऽबन्दि) (२) सवध ऽसऽद्धप्रद (पािे रं ग क़ ऽिकोण) (३) सवधरि़क़र (हरें रं ग के अठ ऽिकोणों क़ समीह) (४) सवध रोग हर (क़िे रं ग के दस ऽिकोणों क़ समीह) (५) सव़धथध स़धक (ि़ि रं ग के दस ऽिकोणों क़ समीह) (६) सवध सौभ़ग्यद़यक (नािे रं ग के चौदह ऽिकोणों क़ समीह) (७) सवध संिोभि (गिि़बा रं ग के अठ दिों व़ि़ कमि) (८) सव़धश़पररपीरक (पािे रं ग के सोिह दिों व़ि़ कमि) (९) िैिोक्य मोहन (हरे रं ग क़ ब़हरा स्थि ऄथ़धत भीपिर) श्रा यन्ि के नौ चक्रों क़ ऽवस्तुत वणधन

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पाठों की ऄऽधष्ठ़िा देवा क़मेश्वरा, ब्रजेश्वरा तथ़ भगम़ऽिना हैं जो प्रकु ऽत, महत् तथ़ ऄऽभम़न हैं। सवधरि़क़र चक्र: सवधरि़क़र चक्र जो अठ ऽिकोणों क़ समीह हैं, आस ऽिकोणों की ऄऽधष्ठ़िा देवाय़ाँ व़ऽसना, क़मेश्वरा, मोऽहना, ऽवमि़, अरुण़, जऽयना, सवैश्वरा थथ़ कौऽिना हैं जो क्रमशः शातः, ईष्ण, सिख, दिःख, आच्छ़, सत्त्व, रज तथ़ तम की स्व़ऽमना हैं। आस चक्र क़ स़धक गिणों पर ऄऽधक़र करने और द्वन्द्व करने में समथध होत़ हैं। सवध रोग हर चक्र: सवध रोग हर चक्र जो दस ऽिकोणों क़ समीह हैं, आस ऽिकोणों की ऄऽधष्ठ़िा देवाय़ाँ सवधज्ञ़, सवधशऽिप्रद़, सवेश्वयधप्रद़,

सवधज्ञ़नमया,

सवधव्य़ऽधऩऽशना,

सव़धध़ऱ, सवधप़पहऱ, सव़धनन्दमया, सवधरि़ तथ़ सवेऽप्सतफिप्रद़ हैं, जो क्रमशः रे चक, प़चक, शोषक,

सव़धनन्दमय चक्र: सव़धनन्दमय चक्र की ऄऽधष्ठ़िा देवा िऽित़ ऄथव़

द़हक, प्ि़वक, ि़रक, ईद्ध़रक, िोभक, जम्भक तथ़

ऽिपिरसिन्दरा हैं, जो ऄपने अवरण में देवत़ओं के भेद से

सव़धथध स़धक चक्र:

कहीं पर षोडश देवायों में मिख्य म़ना गया हैं और कहीं पर ऄष्ट म़तुक़ओं में सवधश्रेष्ठ म़ना गया हैं, कहीं पर ऄष्ट वऽशना देवत़ओं की ऄऽधऩऽयक़ म़ना गया हैं। यह भेद प्रस्त़र ऄिग-ऄिग भेद से हुए हैं और यथ़ क्रम से आन तानों प्रस्त़रों के ऩम मेरु, कै ि़स तथ़ भीः प्रस्त़र हैं। यहा श्रायंि की ईप़सऩ के प्रमिख प्रक़र म़ने ज़ते हैं। सवध ऽसऽद्धप्रद चक्र: सवध ऽसऽद्धप्रद चक्र जो एक ऽिकोण हैं, आस ऽिकोण के तानों कोण को क़मरुप, पीण़धऽगरर तथ़ ज़िन्धर पाठ कह़ं गय़ हैं। आनके मध्य में औड्य़णपाठ हैं, प्रथम तानों

मोहक वऽननकि़ओं की स्व़ऽमना हैं। सव़धथध स़धक चक्र जो दस ऽिकोणों क़ समीह हैं, आस ऽिकोणों की ऄऽधष्ठ़िा देवाय़ाँ दस प्ऱणों की स्व़ऽमना हैं, जो क्रमशः सवधऽसऽद्धप्रद़, सवधसम्पत्प्रद़, सवधऽप्रयंकरा, सवधमंगिक़ररणा, सवधक़मप्रद़, सवधदःि ख ऽवमोचना, सवधमुत्यिप्रशमना, सवध ऽवध्नऽनव़ररणा, सव़ंगसिन्दरा तथ़ सवध सौभ़ग्यद़ऽयना हैं। सवध सौभ़ग्यद़यक चक्र: सवध सौभ़ग्यद़यक चक्र जो चौदह ऽिकोणों क़ समीह हैं, आस ऽिकोणों की ऄऽधष्ठ़िा देवाय़ाँ सवधसि ं ोऽभणा, सवधऽवद्ऱऽवणा,

सव़धकर्णषणा,

सव़धनि़ददना,

गुरुत्व ज्योतिष

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सवधसम्मोऽहना, सवधस्तऽम्भना, सवधऄऽम्भना, सवधवशंकरा,

ब़हर ब़िा रख़। आन च़रों ऽवभ़गों में क्रमशः दस

सवंऱजना,

मिद्ऱशऽिय़ाँ, दस ददकप़ि, अठ म़तुक़एाँ तथ़ दश

सवोन्म़ददना,

सव़धथस ध ़धना,

सवधसम्पऽत्तपीरणा, सवधमन्िमया, सवधद्वन्द्वियंकरा हैं। यह देवाय़ं मिख्य ऩऽड़यों की स्व़माना हैं, जो क्रमशः ऄिम्बिस़, कि हु, ऽवश्वोदरा, व़रण़, हऽस्तऽजनव़, यशोवता, पयऽस्वना ग़न्ध़रा, पीष़, संऽखना, सरस्वता, आड़़, हपगि़ तथ़ सिषिम्ण़ हैं। सवध संिोभि चक्र: सवध संिोभि चक्र जो अठ दिों व़ि़ कमि हैं, आस ऄष्टदि की ऄऽधष्ठ़िा देवाय़ाँ ऄनंकिसिम़, ऄनंगमेखि़, ऄनंगमदऩ, ऄनंगमदऩतिऱ, ऄनंगरे ख़, ऄनंगवेऽगना, ऄनंगमदऩंकिश़ तथ़ ऄनंगम़ऽिना हैं, जो क्रमशः वचन, अद़न, गमन, ऽवसगध, अनन्द हान, ईप़द़न तथ़ ईपेि़ बिऽद्ध की स्व़ऽमना हैं।

ऽसऽद्धय़ाँ ऽस्तत हैं। दस मिद्ऱशऽियों के ऩम क्रमशः सवधसंिोऽभणा, सवधऽवद्ऱऽवणा,

सव़धकर्णषणा,

सव़धवेशकररणा,

सवोन्म़ददना, मह़ंकिश़, खेचरा, बाजमिद्ऱ, मह़योऽन तथ़ ऽिखऽण्डक़ हैं, ऽजसक़ अध़र दस अध़रों से हैं, आन अध़रों क़ ऽवस्तुत वणधन यह़ं करऩ संभ़व नहीं हैं। िेदकन आतऩ ऄवश्य है की आन अध़रों के रुप में हा श्रायंि तथ़ षतचक्रों क़ त़द़त्मय ऽसद्ध होत़ हैं। दस ददकप़ि के ऩम क्रमश: आं द्र, ऄऽि, यम, नऊऽत, वरुण, व़यि, कि बेर, इश्व, ऄनंत और ब्रह्म़। अठ म़तुक़ओं के ऩम क्रमशः ब्ऱह्मा, म़हेश्वरा, कौम़रा, वैष्णवा, व़ऱहा, ऐन्द्रा, च़मिण्ड़ तथ़ मह़िक्ष्मा हैं। आन म़तुक़ओं क़ पीजन क़ िक्ष्य क़म, क्रोध, िोभ, मोह, मद, म़त्सयध, प़प तथ़ पिण्य पर

सव़धश़पररपीरक चक्र: सव़धश़पररपीरक चक्र जो सोिह दिों व़ि़ कमि हैं,

ऽवजय प्ऱप्त करने हेति दकय़ ज़त़ हैं।

रुप़कर्णषणा, रस़कर्णषणा, गन्ध़कर्णषणा, ऽचत्त़कर्णषणा,

श्रायंि क़ ऽनम़धण और पीजन ज़नक़रों क़ कथन हैं की श्रायंि के ऽनम़धण हेति सवोत्तम ददन पौष म़स की संक्ऱंऽत के ददन रऽवव़र हो तो ऄऽत ईत्तम संयोग म़ऩ ज़त़ हैं। िेदकन एसे योग ऄत्यंत

धैय़धकर्णषणा,

दििधभ होते हैं, आस ऽिए यदद एस़ योग नहीं बन रह़ हो

आस ऄष्टदि की ऄऽधष्ठ़िा देवाय़ाँ क़म़कर्णषणा, बिद्धध्य़कर्णषणा,

बाज़कर्णषणा,

शब्द़कर्णषणा, स्मुत्य़कर्णषणा, अत्म़कर्णषणा,

स्पश़धकर्णषणा, ऩम़कर्णषणा,

ऄमुत़कर्णषणा

तथ़

शराऱकर्णषणा हैं, जो क्रमशः मन, बिऽद्ध, ऄहंक़र, शब्द, स्पशध, रुप, रस, गन्ध, ऽचत्त, धैयध स्मुऽत, ऩम, व़धधक्य, सीक्ष्म शरार, जावन तथ़ स्थीि शरार की स्व़ऽमना हैं। िैिोक्य मोहन चक्र: िैिोक्य मोहन चक्र जो ब़हरा स्थि हैं, ऽजसके च़र ऽवभ़ग हैं (क) षोडशदि कमि के ब़हरा च़रों वुत्तों के परे गड़़ग सदुश स्थि। (ख) आस स्थि से िगा हुइ पतिा ब़हरा रे ख़ (ग) दीसरा ब़हरा रे ख़ और (घ) सबसे

तो दकसा भा म़स की संक्ऱंऽत के ददन रऽवव़र हो तो भा शिभक़रा म़ऩ ज़त़ हैं ऄथव़ दकसा भा म़स की शिक्ि पि की ऄष्टमा के ददन रऽवव़र हो, य़ धनतेरस, दाप़विा, नवऱिा, रऽवपिष्य योग, गिरुपिष्य योग आत्य़दद होने पर भा यंि क़ ऽनम़धण दकय़ ज़ सकत़ हैं। यदद ईि सभा मिहूतध क़ संयोग न हो तो दकसा भा शिभ मिहूतध में यंि क़ ऽनम़धण शिद्धध़ति में करव़िें। ईत्तम तो यहीं होग़ दक श्रायंि को दकसा ज़नक़र व्यऽि के द्व़ऱ त़म्रपि, रजत य़ सिवणध पर ईत्कीणध करव़िें।

गुरुत्व ज्योतिष

पीजन  यंि प्ऱप्त हो ज़ये तो ब्रह्ममिहूतध में स्ऩऩदद से ऽनवुत्त हो कर, श़ंत ऽचत्त से पीव़धऽभमिख हो कर बैठ़ ज़ये।  श्रायंि क़ धीप-दाप, गंध पिष्प अदद ऄर्णपत कर ईसक़ षोडषोपच़र पीजन करे य़ ऽवद्व़न कमधक़ण्डा ब्ऱह्मण द्व़ऱ करव़कर ईसकी प्ऱण-प्रऽतष्ठ़ करव़ िें। ऄपने पीजन स्थ़न पर ि़ि वस्त्र ऽबछ़कर, ईस पर के सर य़ हल्दा रं गे हुवे ऄित से ऄष्टदि बऩकर ईस के ईपर यंि स्थ़ऽपत करऩ च़ऽहए। यंि क़ पीजन ऄथव़ प्ऱण-प्रऽतष्ठ़ पीणध हो ज़ने पर ऄगिे ददन श्रा यंि को शिभ मिहूतध में ऄपने घर, दिक़न, ऑदफस आत्य़दद व्यवस़याक स्थ़नों पर य़ ऽतजोरा, कै शबोक्स आत्य़दद धन रखने व़िे स्थ़नों पर पाि़ वस्त्र ऽबछ़कर स्थ़ऽपत करें ।  प्रऽतददन श्रायंि क़ पंचोपच़र पीजन और श्रासीि क़ ऽनयऽमत प़ठ करने से यह ऄत्य़ऽधक फिद़या ऽसद्ध होत़ हैं।  यदद प्रऽतददन पंचोपच़र पीजन य़ श्रासीि क़ प़ठ संभव न हो तो पीणध श्रद्ध़ भ़व से के वि धीप-ददप से पीजन एवं दशधन कर िक्ष्मा मंि क़ ज़प करऩ भा ि़भप्रद होत़ हैं।  िक्ष्मा मंि के ईच्च़रण के ऽिए स्फरटक य़ कमिगट्टे की म़ि़ श्रेष्ठ म़ना ज़ता हैं। (कमि गट्ट़ देवा िक्ष्मा को ऄत्यंत ऽप्रय हैं, देवा िक्ष्मा क़ ऽनव़स कमि के पिष्पों पर होत़ हैं।) श्रायंि ध्य़न मंि

ददव्य़ पऱं सिघवि़रुण चक्ऱय़त़ं मीि़ददऽबन्दि पररपीणध कि़त्मक़य़म्। ऽस्थत्य़ऽत्मक़ शरघनिः सिऽणप़सहस्त़। श्राचक्रत़ं पररऽणत़ सततंनम़ऽम । श्रायंि प्ऱथधऩ मंि

ध्य़न के पिय़त श्रायंि की प्ऱथऩ करें ।

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धनं ध़न्यं धऱं हम्यध कीर्णतम़धयियधशः ऽश्रयम्। तिरग़न् दऽन्तनः पिि़न् मह़िक्ष्मा प्रयच्छ में॥ ऽवऽभन्न धमधग्रथ ं ों एवं श़स्त्रों के ऄनिश़र मंि ऽसद्ध, प्ऱणप्रऽतऽष्ठत, पीणध चैतन्ययिि श्रायंि के स़मने िक्ष्मा बाज मंि की म़ि़ जप करऩ ऄत्य़ऽधक ि़भप्रद ऽसद्ध होत़ हैं। िक्ष्मा बाज मंि

ॎ श्रीं ह्रीं श्रीं कमिे कमि़िये प्रसाद प्रसाद श्रीं ह्रीं श्रीं ॎ मह़िक्ष्मै नमः। श्रायंि के सम्मिख भोग िग़कर ईसे स्वयं और पररजनों को भा प्रस़द के रुपमें ब़ंट दें। श्रायंि से जिड़ा रोचक ब़ते। श्रायंि क़ ऽविक्ष्ण प्रभ़व हम़रे ऽवद्व़न ऊऽषमिऽनयों ने हज़रों वषध पीवध हा ज्ञ़त कर ऽिय़ थ़! अददगिरु शंकऱच़य़धजा ने श्रायंि के गीढ़ रहस्यों को ज्ञ़त कर ऽिय़ थ़। शंकऱच़य़धजा श्रायंि ऄद्द्भित प्रभ़वों से पररऽचत थे आस ऽिए ईनकी श्रायंि पर गहरा अस्थ़ एवं ऽवश्व़स के क़रण हा श्रा यंि को ईन्हो ने ऄपने सभा मठों में प्रऽतष्ठ़ एवं दैऽनक पीजन करने क़ सिझ़व ददय़ थ़, यहा क़रण हैं की अज ईनके प्रत्येक मठ में श्रायंि क़ ऽवऽधवत पीजन-ऄचधन दकय़ ज़त़ हैं। ऽवद्व़नों क़ म़नऩ हैं की दऽिण भ़रत के सिप्रऽसद्ध ऽतरुपऽत ब़ि़जा के मंददर की नींव में श्रायंि स्थ़ऽपत हैं। आतऩहा नहीं वह़ं मिख्य ऽवग्रह के पाठ में श्रायंि ईत्कीणध हैं। ऽजसक़ ऽनयऽमत ऽवऽध-ऽवध़न से पीजन दकय़ ज़त़ हैं! अबी के प्रऽसद्ध ददिव़ड़़ (देिव़ड़ऺ) के मंददर के खम्भों पर श्रायंि ऄंदकत हैं। पौऱऽणक िोक म़न्यत़ओं के ऄनिश़र सोमऩथ कें ऽवश्व प्रऽसद्ध मह़देव मंददर के भीगभध में सिवणध ऽशि़ पर श्रायंि क़ ईत्कीणध दकय़ गय़ थ़। ऽजसक़ पीजन गिप्त रुप से ऽवद्व़न ब्ऱह्मणों द्व़ऱ दकय़ ज़त़ थ़। आसा क़रण से पिऱतन क़ि से वह़ं ऄतिि सम्पऽत्त की ऽनत्य वष़ध होता था। यहा क़रण हैं की वह़ं ऄनमोि ऄरबों-खरबो के

गुरुत्व ज्योतिष

हारे -जव़हऱत बहुमील्य रत्न आत्य़दद ईसके स्थम्भों पर हा जऽड़त थे। ऽजसकी ख्य़ऽत सिन कर मोहम्मद गजनबा ने आसे िीट ऽिय़ और सोने की ि़िच में श्रायंि को टी कड़ों में क़टकर ऄपने स़थ िे गय़ तब से मंददर श्रायंि से ऽवऽहन म़ऩ ज़त़ हैं। गिजऱत के सीरत शहर में मेरुिक्ष्मा मंददर य़ श्रायंि मंददर ऽस्थत हैं आस मंददर क़ ऽनम़धण पीणध रुप से श्रायंि के अक़र में भव्य एवं ऽवश़ि रुप में दकय़ गय़ हैं। संपीणध मंददर को श्रायंि की अकु ऽत के ऄनिरुप ऽनर्णमत दकय़ गय़ हैं, मंददर के मध्य में श्रायंि स्थ़ऽपत हैं। एक प्रचऽित कथ़ के ऄनिश़र दकसा ऱज्य में भ़निप्रत़म ऩम क़ ऄऽत धमधभारु अध्य़ऽत्मक ऽवच़रों व़िे ऱज़ क़ ऱज थ़। वह बद्राऩथ क़ ईप़सक थ़। ईसके प़र श्रायंि थ़, कह़ं ज़त़ हैं की श्रायंि की ऽसऽद्धऄ ऱज़ के प़स था। ऱज़ आसा श्रायंि के म़ध्यम से देवभ़ष्य ज़नत़ थ़। श्रायंि के क़रण हा ईसे अक़शव़णा हुइ दक वह ऄपऩ ऱजप़ड त्य़गकर ऄपना कन्य़ क़ ब्य़ह म़िव़ के ऱज़ कनकप़ि से करके ऽहम़िय के प्रऽसद्ध बद्राध़म में अकर देव-दशधन क़ ि़भ प्ऱप्त करें । ऱज़ कनकप़ि ने ऄपने गिरु के ऽनदेश पर श्रायंि को नौटा ऩमक स्थ़न के चौऱहे में ऽवऽधवत पीजन कर भीऽमगत स्थ़ऽपत दकय़, जो स्थ़न क़ि़ंतर में नन्द़ देवा श्रापाठ के रुप में प्रऽसद्ध हुव़। भ़रत के स़थ-स़थ श्रायंि के प्रभ़वों की ज़नक़रा ऄन्य देशों में ऽनव़स करने व़िे भ़रताय एवं वह़ं के स्थ़ऽनय िोगो को भा ऄवश्य रहता होगा! क्योदक भ़रतव़सा जह़ं भा गये वह़ं श्रायंि को ऄपने स़थ िेकर गये और ऽनरं तर ईसके प्रभ़वों क़ ऽवस्त़र करते रहें। नेप़ि के पशिपऽतऩथ मंददर के मिख्य द्व़र पर श्रायंि ऽनर्णमत हैं।

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 अज कि श्रायंि की ऄपेि़ श्राचक्र यंि हा ऄऽधक देखने में अते हैं। िेदकन कि छ ज़नक़रों क़ म़नऩ हैं की बाज़िर की शऽि हा मंि यंि की अत्म़ एवं प्ऱण म़ने ज़ते हैं। य़मि ग्रंथ में वर्णणत हैं की श्रा यंि के दशधन म़ि से हा ऽवशेष ि़भ की प्ऱऽप्त हो ज़ता हैं।  यथ़-स़धध ऽिकोरटतोथेषि स्ऩत्व़ यत्फिमश्निते िभते तत्फिम् भक्त़, कु त्व़ श्रा चक्रदशधनम्।  ऽवद्व़नो ने ऄपने ऄनिभवों में प़य़ हैं दक श्रा यंि ऄत्यंत प्रभ़वश़िा यंि हैं, दक दैऽनक श्रद्ध़पीवधन श्रायंि के दशधनम़ि से शाघ्र हा मनिष्य की मनोक़मऩए पीणध होने िगता हैं। ऽिपिरत़ऽपना ईपऽनषद में ईल्िेख हैं:

श्रा चक्रं यो धेऽत्त स सदध वेऽत। स सकि़ंल्िोक़ऩकषधयऽत। सवध स्तम्भयऽत नािायििं चक्रं शििन्मररयऽत। गहत स्तम्भयऽत। ि़ि़यििं कु त्व़ सकििोकं वशाकरोऽत। नवििजपं कु त्व़ रुद्रत्वं प्ऱप्नोऽत। मुऽनकय़ वेऽष्टत कु त्व़ ऽवजया भवऽत। वतिधिे हुत्व़ ऽश्रयमतिि़ं प्ऱप्नोऽत। चतिरस्त्रे हुत्व़ वुऽष्टभधवऽत। ऽिकोणे हुत्व़ शिीन्म़रयऽत। गऽत स्तम्भयऽतः पिश्ज्प़ऽण हुत्व़ ऽवजया भवऽत। मह़रसहुधव़ध परम़नन्दऽनभधरो भवऽत। ऄथ़धत: जो श्रा यंि के रहस्य को ज़नत़ हैं वह सकि ब्रह्म़ण्ड के भीत, भऽवष्य, वतधम़न को ज़नत़ हैं। वह सकि ब्रह्म़ण्ड को अकर्णषत करत़ हैं, सवध िोकों को स्तऽम्भत करत़ हैं, नािे थोथे से आस चक्र क़ प्रयोग करने पर शििओं को म़रत़ हैं, गऽतम़न पद़थों को

 ऽजस श्रायंि में सभा चक्र एवं बाज मंि ऄंदकत हो वह संपीणध श्रायंि कह़ं ज़त़ हैं और जो यंि के वि

रोकने में समथध बनत़ हैं। ि़ि़रस के स़थ आसक़ प्रयोग करने से मनिष्य सकि िोकों के प्ऱऽणयों क़ वशाकरण करने में सफि होत़ हैं। श्रायंि के बाज मंि क़ नवि़ख जप करने से मनिष्य रुद्रत्व (ऽशवत्व ऄथ़धत ऽशव के

चक्रों से बऩ हो बाज, शऽि मंिों आत्य़दद से रऽहत

सम़न श़प देने, संह़र करने क़ स़म्यध) को प्ऱप्त

हो वह श्राचक्र यंि कह़ं ज़त़ हैं।

करत़ हैं। ऽमट्टा से वेऽष्टत (ऄथ़धत भिज़ में ध़रण करऩ)

गुरुत्व ज्योतिष

करने पर ऽवजयश्रा को प्ऱप्त करत़ हैं। भग(योऽन) की अकु ऽत व़िे किं ड़क़र यज्ञस्थि पर अहुऽत देने पर मनिष्य सब प्रक़र की ऽस्त्रयों को वशाभीत कर िेत़ हैं। वतधि़ अकु ऽत व़िे कि ण्ड पर अहुऽत देने पर मनिष्य ऄतिल्य ऱजिक्ष्मा को प्ऱप्त करत़ हैं। चतिष्कोण अकु ऽत व़िे कि ण्ड पर अहुऽत देने पर मनिष्य वष़ध को ईत्पन्न करत़ हैं। ऽिकोण अकु ऽत व़िे कि ण्ड पर अहुऽत देने पर मनिष्य शििओं को म़रत़ हैं। गऽत को स्तऽम्भत करत़ हैं। पिष्पों की अहुऽत देने पर ऽवमि यश एवं ऽवजय को प्ऱप्त करत़ हैं। मह़रस (ऄथ़धत ऽबल्व फि) की हऽव देकर परम़नंदत्व को प्ऱप्त हो ज़त़ हैं। श्राऽवद्य़ क़ महत्व: श्राऽवद्य़ स़ऽत्त्वक ईप़सऩओं में सवोपरर एवं सवध श्रेष्ठ स़धऩ हैं। ऽजस प्रक़र ऽवऽभन्न देवा-देवत़ओं की अऱधऩ से धन, ध़न्य, पशि संपद़ अदद िौदकक ऽसऽद्धय़ं प्ऱप्त हो ज़ता हैं। िेदकन श्राऽवद्य़ की अऱधऩ से धन, ध़न्य आत्य़दद भौऽतक सिख स़धन तो प्ऱप्त होते हा हैं ईसके स़थ-स़थ अत्म ज्ञ़न व परमतत्त्व की प्ऱऽप्त भा होता हैं। आस ऽवषय में श़स्त्रों में ईल्िेख हैं। यि़ऽस्त भोगो न च ति मोिो,यि़ऽस्त मोिो न च ति भोगः

श्रासिन्दरासेवतत्पऱण़ं, भोगश्च मोिश्च करस्थ एव। ऄथ़धत: जह़ाँ भोग है वह़ाँ मोि नहीं, जह़ाँ पर मोि हैं वह़ाँ भोग नहीं हो सकत़। िेदकन श्रा मह़िक्ष्मा की सेव़ से भोग व मोि दोनों हा सहज में प्ऱप्त हो ज़ते हैं। यदद क़रण हैं की हज़रों वषो से श्रा मह़िक्ष्मा की ईप़सऩ क़ प्रबि म़ध्यम श्रा यन्ि हा रह़ हैं। ऽिपिरोपऽनषद में क़दद-ह़दद ऽवद्य़ओं के ऩम से श्राऽवद्य़ क़ स्पष्ट ईल्िेख ऽमित़ हैं। श्राशंकऱच़यध कु त सौन्दयध िहरा एवं प्रपंचस़र अदद ग्रंथ श्रा यंि के शिद्ध एवं स़ऽत्त्वकत़ के सवोत्तम प्रम़ण हैं। कि छ ज़नक़र ऽवद्व़नों क़ कथन हैं की श्राऽवद्य़ गिरुगम्य हैं। आस ऽिए गिरुकु प़ के ऽबऩ प्ऱण-प्रऽतऽष्ठत य़

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ऄऽभमंऽित श्रा यंि ईत्तम फि नहीं देते। श्राअदद गिरु शंकऱच़यध जा को श्राऽवद्य़ की दाि़ योगेन्द्र श्रा गोऽवन्दप़द़च़यध से प्ऱप्त हुइ था। योगेन्द्र श्रा गोऽवन्दप़द़च़यध जा को श्राऽवद्य़ की दाि़ श्रा गौड़प़द़च़यध के गिरु भगव़न दत्त़िेय ने स्वयं दा था। आस प्रक़र श्राऽवद्य़ के ऄत्यंत प्ऱचान गिर-ऽशष्य परं पऱयें सवधि प्रऽसद्ध हैं। सिन्दरात़पनाय में ईल्िेख हैं की ऽजस प्रक़र घट, किश और किं भ तानों शब्द क़ एक हा ऄथध हैं ईसा प्रक़र यंि, देवत़ और गिरु यह तानों शब्द क़ एक हा हैं। कि छ ऽवद्व़नो क़ मत हैं की भोजपि पर ऽनर्णमत श्रायंि ऽवशेष प्रभ़वा होता हैं। क्योदक श़स्त्रों में वर्णणत हैं की "यः भीजधदपैयधज़ऽत स सव़धन्िभते" श्रायंि के तान प्रमिख प्रक़र हैं। 1. मेरुपुष्ठ, 2. की मधपुष्ठ, 3. भीपिष्ठ। कि छ ऽवद्वजनों क़ कथन हैं की श्रायंि को प्ऱणप्रऽतऽष्ठत करने क़ ऄऽधक़रा के वि वहा मनिष्य को होत़ हैं ऽजसने श्राऽवद्य़ की योग्य गिरु से ददि़ ऽि हो। योग्य गिरु से ददि़ प्ऱप्त दकय ऽबऩ बडेऺ से बडेऺ ऽवद्व़न ब्ऱह्मण को भा च़हे वह च़रों वेद क़ ज्ञ़त़ हो य़ पीज़-प़ठ में प्रखंड ऽवद्व़न हो ईसे भा श्रा यंि को ऄऽभमंऽित य़ प्ऱण-प्रऽतऽष्ठत करने क़ ऄऽधक़र नहीं हैं। यहा क़रण हैं की ऄज्ञ़नत़ वश दकये गये आस प्रक़रके पीजनों के क़रण अज बडेऺ से बडेऺ ऽवद्व़न ब्ऱह्मण के प़स ज्ञ़न तो खिब होत़ हैं िेदकन म़ं िक्ष्मा की ऽवशेष कु प़ ईसके पर नहीं होता!  ऽवद्व़नों क़ कथन हैं की ध़र्णमक म़न्यत़ के ऄनिश़र भोजपि की ऄपेि़ त़ंबे पर ऽनर्णमत श्रायंि क़ फि सौ गिऩ होत़ हैं।  त़ंबे पर ऽनर्णमत श्रायंि की ऄपेि़ च़ंदा पर ऽनर्णमत श्रायंि क़ फि ि़ख गिऩ होत़ हैं।  च़ंदा पर ऽनर्णमत श्रायंि की ऄपेि़ सिवणध पर ऽनर्णमत श्रायंि क़ फि करोड़ो गिऩ होत़ हैं।  रत्नस़गर ग्रंथ में रत्नों पर ऽनर्णमत ऽभन्न-ऽभन्न श्रायंि के फिों क़ वणधन ऽमित़ हैं।

गुरुत्व ज्योतिष

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 ऽजसमें स्फरटक पर बने श्रायंि को सवधश्रेष्ठ बत़य़ गय़ हैं। ऽवद्व़नों क़ मत हैं:

श्राऽवद्य़ के ऄद्भित चमत्क़रों में से एक क़ वणधन "शंकर ददऽग्वजय" में ऽमित़ हैं जो आस प्रक़र हैं।

 भोजपि पर ऽनर्णमत यंि 6 वषध तक प्रभ़वा रहत़ है।

गिरुगुह के ऽनयम ऄनिश़र अच़यध शंकर एक ददन दकसा ब्ऱह्मण के द्व़र पर ऽभि़ के ऽिए गए। वह ब्ऱह्मण बहुत

 त़ंबे में ऽनर्णमत श्रायंि 12 वषध तक प्रभ़वा रहत़ है।  च़ंदा में ऽनर्णमत श्रायंि 20 वषध तक प्रभ़वा रहत़ है।  और सिवणध में ऽनर्णमत श्रायंि अजावन प्रभ़वा रहत़ है। कि छ ऽवद्व़नो क़ मत हैं  भोजपि पर ऽनर्णमत यंि 1 वषध तक प्रभ़वा रहत़ है।  त़ंबे में ऽनर्णमत श्रायंि 2 वषध तक प्रभ़वा रहत़ है।  च़ंदा में ऽनर्णमत श्रायंि 12 वषध तक प्रभ़वा रहत़ है। और सिवणध में ऽनर्णमत श्रायंि अजावन प्रभ़वा रहत़ है। ऽवशेष नोट: हम़रे ऄनिभवों के ऄनिश़र यन्ि यदद शिद्ध ध़ति में ऽनर्णमत हो, तेजस्वा मंिों द्व़ऱ ऄऽभमंऽित हो तो वह अजावन प्रभ़वा रहत़ है, च़हे वह सोने, च़ंदा य़ त़ंबे में हा ऽनर्णमत क्यों न हो। एक शिद्ध ध़ति में ऽनर्णमत एवं पीणध ऽवऽध ऽवध़न से मंिऽसद्ध एवं प्ऱण-प्रऽतऽष्ठत दकय़ गय़ यंि जब तक व्यऽि के पीजन स्थ़न में स्थ़ऽपत रहत़ हैं तब तक वह प्रभ़वश़िा रहते देख़ गय़ हैं। आसमें जऱ भा संदह े नहीं हैं। के वि कि छ ऽवशेष यंि ऐसे होते हैं जो स़धऩ ऽवशेष य़ क़यध ई्ेश्य की सम़ऽप्त के पिय़त जि में ऽवसर्णजत करने होते हैं। यंि यदद दकसा क़रण से खंऽडत हो ज़ये, ईस पर ऄंदकत रे ख़, ऄंकन, बाज मंि अदद धींधिे हो ज़ये य़ सरित़ से ददख़इ नहीं देते हो तब, ऄथव़ दकसा क़रण से यंि ऄशिद्ध हो ज़ये ह़थ से ऽगर ज़ये तब ईसे जि में ऽवसर्णजत करके दीसऱ स्थ़ऽपत करिेऩ च़ऽहए। यंि के ऄशिद्ध, खंऽडत होने य़ ह़थों से ऽगरज़ने पर ईसके शिभ प्रभ़व में कमा अने िगता हैं।

जब अच़यध शंकर ऄपने गिरु के यह़ं रहते थे, तब

ऽनधधन थ़, ऽभि़ में देने के ऽिए ईसके घर में मिट्ठा भर च़वि भा नहीं थे। ऽनधधन ब्ऱह्मण की पत्ना ने अच़यध शंकर को एक अवंि़ देकर रोते हुए ऄपना ऄवस्थ़ बति़इ। ब्ऱह्मण पत्ना की दिःखद करुण ऽनधधनत़ की व्यथ़ सिनकर अच़यध शंकर क़ हृदय द्रऽवत हो गय़। अच़यध शंकर ने वहीं खडेऺ होकर, करुण ऽवगऽित ऽचत्त से श्राऽवद्य़ की ऄऽधष्ठ़िा देवा म़ाँ मह़िक्ष्मा की स्तिऽत प्ऱरम्भ की और अच़यध शंकर की व़णा से ऄऩय़स करुण़पीवधक कोमि क़न्त व़क्यों से अकु ष्ट हो कर म़ाँ मह़िक्ष्मा अच़यध शंकर के स़मने ऄपने ऽिभिवन मनोहर रुप में प्रकट हो गइ और कोमि शब्दों में कह़, पिि "मैने तिम्ह़ऱ ऄऽभप्ऱय ज़न ऽिय़ हैं, परन्ति आस ऽनधधन पररव़र ने पीवध जन्मों में ऐस़ कोइ भा सिकुत, पिण्य क़यध नहीं दकय़ हैं ऽजससे मैं आन्हें धन दे सकीाँ ।" म़ाँ मह़िक्ष्माजा के आन वचनों पर अच़यध शंकर ने बडेऺ हा ऽवनात शब्दों में म़ाँ मह़िक्ष्माजा से ऽनवेदन दकय़ की "पीवध जन्म में आस ब्ऱह्मण ने ऐस़ कोइ क़यध सिकुत क़यध नहीं दकय़ हैं ऽजसके फिस्वरुप ईसे धनसम्पऽत्त दा ज़ सके आससे क्य़ हुअ। मेरे जैसे ऽभििक को अंविे क़ द़न देकर आसने तो मह़न् पिण्य ऱऽश ऄर्णजत कर ऽिय़ हैं, आस क़रण यह पररव़र ऄतिि धन सम्पऽत्त क़ ऄऽधक़रा हो गय़ हैं, ऄतः यदद अप प्रसन्न हुइ हों तो आस पररव़र को द़ररद्रय से मिकत कर दाऽजये" अच़यध शंकर के आस ऽनवेदन क़ म़ाँ मह़िक्ष्मा खण्डन न कर सकीं और प्रसन्न होकर देवा ने कह़ "यहा होग़ अच़यध, मैं ईन्हें प्रचिर सोने के अंविे दीग ं ा।" देवा के मिख से आतऩ सिनने पर अच़यध शंकर नें ब्ऱह्मण पररव़र को शाघ्र धनव़न होने क़ अशाव़धद देकर गिरुगुह िौट गये। दीसरे ददन प्ऱतःक़ि ब्ऱह्मण पररव़र

गुरुत्व ज्योतिष

ने देख़, ईनके घर में सवधि सोने के अंविे ऽबखरे पडेऺ हैं। आस प्रक़र अच़यध शंकर नें श्राऽवद्य़ की ईप़सऩ से ब्ऱह्मण पररव़र को धनव़न बऩ ददय़। ऄऽधकतर िोगों ने श्रायंि को ऽचऽित हा देख़ होग़, ऽजससे यंि के ऽनम़धण की व़स्तऽवक ऽवऽध समझऩ करठन हैं। ऽचऽित यंिों में हमें के वि ईसकी िम्ब़इ और चौड़़इ हा नज़र अता हैं, ईच़इ नहीं होता। िेदकन व़स्तऽवक रुप से यंि की ईं च़इ भा होता हैं जो मिख्यरुप से घ़ति और पत्थरों से बने यंिों में ददख़इ ददता हैं। आस तरह के यंि को पत्थर पर क़टकर, स्फरटक, मरगच, प्रव़ि, पद्मऱगमऽण, आन्द्रनािमऽण, नािक़न्तमऽण आत्य़दद रत्नों पर देखने को ऽमिते हैं। आसके ऄि़व़ श़ऽिग्ऱमऽशि़, त़म्रपि, रजत पि ओर सिवणध में भा यंि बऩये ज़ते हैं। श्रायंि के ऽनम़धण में भी ऄथव़ मेरु दोनों पद्धऽतयों क़ ईपयोग होत़ हैं। श्रायंि की ऽवशेषत़ एवं ईपयोऽगत़ पौऱऽणक क़ि से हा ऽहन्दी संस्कु ऽत में श्राऽवद्य़ की ईप़सऩ ऄत्य़ऽधक प्रचऽित रहा हैं। यहा क़रण हैं की ऽहन्दी संस्कु ऽत में तब से िेकर अजतक बडेऺ-बडेऺ ऽवद्व़न अच़यध श्राऽवद्य़ के ईप़सक रहे हैं। श्रायंि में ऽस्थत नौ चक्रों के ऽभन्न-ऽभन्न प्रयोग से ि़भ: १ सव़धनन्दमय ऄथ़धत् सब प्रक़र क़ अनन्द देने व़ि़ हैं। २ सवध ऽसऽद्धप्रद ऄथ़धत् सभा प्रक़र की ऽसऽद्धयों को प्रद़न करने व़ि़ हैं। ३ सवधरि़क़र ऄथ़धत् सभा से रि़ करने व़ि़ हैं।

४ सवध रोगहर ऄथ़धत् सभा रोगों क़ हरण करने व़ि़ हैं। ५ सव़धथध स़धक ऄथ़धत् सभा क़यों की ऽसऽद्ध करने व़ि़ हैं। ६ सवध सौभ़ग्यद़यक ऄथ़धत् सभा सौभ़ग्य को प्रद़न करने व़ि़ हैं।

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७ सवध संिोभि ऄथ़धत् संिोभण करने व़ि़ हैं।

८ सव़धश़पररपीरक ऄथ़धत् सभा अश़ओं को पीरण करने व़ि़ हैं। ९ िैिोक्य मोहन ऄथ़धत् तानोिोक क़ मोहन करने व़ि़ हैं। यंि ऽनम़धण ऽवध़न  यदद श्रा यंि क़ ऽनम़धण भोजपि पर करऩ हो, तो तििसा, ऄऩर य़ मोरपंख की किम से रि चंदन से यंि क़ ऽनम़धण करऩ च़ऽहए। पािे रं ग हेति शिद्ध के सर क़ प्रयोग करऩ च़ऽहए।  ऄष्टगंध, ऽसन्दीर य़ किं कि म से भा यंि ऽिखे ज़ सकते हैं। आसके ऄि़व़ यंि को सिवणध, रजत, त़ंम्र, स्फरटक अदद मील्यव़न ध़ति य़ रत्नों पर ईत्कीणध कऱकर यंि क़ ऽनम़धण दकय़ ज़ सकत़ हैं।  यन्ि के ऽनम़धण हेति सवध प्रथन ऽिकोण बऩकर ईसके मध्य में ऽबन्दि दफर क्रमशः ईपर दश़धये गये अठ चक्रों को बऩऩ च़ऽहए।  श्राक्रम में ऽशवजा क़ कथन हैं दक जो मनिष्य सम रे ख़ न ऽिख कर, सम़न मिख न बऩकर श्रायंि क़ ऽनम़धण करत़ हैं, ईसक़ सवधस्व मैं हर िेत़ हूाँ।  ऽवद्व़नों क़ मत हैं की ऽजस स्थि पर ऽजस देवत़ क़ स्थ़न ऽनर्ददष्ट दकय़ गय़ हो, ईस स्थ़न पर देवत़ क़ पीजन नहीं करने पर स़धक के म़ंस और रि द्व़ऱ ईस देवत़ की प़रण़ होता हैं।  श्रा यंि के ऽनम़धण के समय दकसा पशि य़ भ़व़विम्बा जाव की दुऽष्ट नहीं पड़ना च़ऽहए, आस ऽिए सरकध हो कर यंि क़ ऽनम़धण करऩ च़ऽहए। यदद कोइ व्यऽि पशि के अगे श्रा यंि को ऽिखत़ हैं, तो वह मन्द-बिऽद्ध, स़धक ऄंगिय से होने व़िे प़प क़ भ़गा होत़ हैं।  भीत भैरव में ईल्िेख हैं दक यदद श्रा यंि को बऩते समय पद्म में के शर न बऩये। यदद कोइ व्यदक

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ऽनम़धण के समय पद्म के के शर के कल्पऩ करत़ हैं, तो भैरव गण योऽगऽनयों की सह़यत़ से ईसक़ ऩश कर देते हैं।  श्रा यंि को ऱऽिक़ि में नहीं ऽिखऩ च़ऽहए। ऱऽिक़ि में यंि क़ ऽनम़धण करने से देवा तत्क़ि स़धक को ऄऽभश़प देता हैं।  ऄपऱऽजत़, कर, वार और जव़ पिष्प में देवा ऽनव़स

 स्फरटक के यंि क़ पीजन करने से स़धक को सभा ऄऽभष्ट क़यों में सफित़ प्ऱप्त होता हैं। यंि के ऽवनष्ट होने पर ईसक़ प्ऱयऽित  यदद यंि दग्ध स्फि रटत य़ चोर के द्व़ऱ ऄपहृत हो ज़ये, तो स़ध को एक ददन ईपव़स करके देवत़ के मंि क़ एक ि़ख जप एवं जप संख्य़ क़ दश़ंश हवन तथ़ हवन क़ दश़ंश तपधण करऩ च़ऽहए। दफर भऽिभ़व से ऄपने गिरुदेव की अज्ञ़ से ब्ऱह्मण भोजन कऱये। कि छ ज़नक़र एक ि़ख जप को एक ऄयित ऄथ़धत दश सहस्त्र कहते हैं।

करता हैं। आस ऽिए आन पिष्प से देवा क़ पीजन दकय़ ज़ सकत़ हैं।  स्वच्छन्द भैरव में ईल्िेख हैं दक स्थऽण्डि के ईपर एक ह़थ के बऱबर यंि क़ ऽनम़धण करऩ च़ऽहए।

 यदद यंि के ििप्त-ऽचनन, स्फि रटत य़ खंऽडत होने पर

रत्ऩदद के यंि बऩने हो तो आच्छ़निस़र एक, दो,

ईस यंि को गंग़ अदद पऽवि नददयों के जि में, ताथध

तान ऄथव़ च़र तोिे के रत्न िेकर यन्ि बनव़य़ ज़ सकत़ हैं। आससे ऄऽधक पररम़ण के रत्न द्व़ऱ यंि क़ ऽनम़धण करने से स़धक प्ऱयऽित क़ भ़गा होत़ हैं।

य़ स़गर में ऽवसर्णजत करदेऩ च़ऽहए। श़स्त्रों में ईल्िेख हैं की यंि को ऽवसर्णजत न करके ईसे प़स रखने से स़धक की मुत्यि य़ ऽवऽवध दिःख होते हैं।

 ऽिध़ति क़ यंि बऩऩ हो तो, सिवणध, त़ंम्र और

श्राचक्र प़दोदक क़ म़ह़त्म्य:

रजन आन ऽिनों ध़तिओं क़ प्रयोग दकय़ ज़त़ हैं।

ब्रह्म़ण्ड में ऽस्थत ऽजतने ताथध स्थि हैं ईन सबके स्ऩन से सहस्त्र कोरट गिऩ ऄऽधक फि श्राचक्र प़दोदक

ऽजसमें दस भ़ग सोऩ (26.315 %), ब़रह भ़ग

के सेवन से ऽमित़ हैं। (गंग़, यमिऩ, नमधद़, गोद़वरा,

त़ंब़ (31.580%), और सोिह भ़ग रजत

गोमता, पिष्कर, प्रय़ग, हररद्व़र, व़ऱणसा, ऊऽषके श,

(42.105%),को एकि करके यंि क़ ऽनम़धण करऩ

ऽसन्धि, रे व़, सरस्वता अदद ताथध स्थि कहे ज़ते हैं।)

च़ऽहए। ऽिध़ति से बने यंि क़ पीजन करने से स़धक सौभ़ग्यश़िा होत़ हैं और शाघ्र हा ऄष्ट ऽसऽद्धय़ं प्ऱप्त होता हैं।

श्राचक्र के दशधन क़ फि:

 स्फरटक,

मरगच,

प्रव़ि,

पद्मऱगमऽण,

आन्द्रनािमऽण, नािक़न्तमऽण आत्य़दद रत्नों से बने श्रा यंि क़ पीजन करने से धन-सम्पऽत्त, स्त्रा-संत़न, म़न-सम्म़न और यश की प्ऱऽप्त होता हैं।  त़म्र के यंि क़ पीजन करने से क्ऱंऽत प्ऱप्त होता हैं।  सिवणध के यंि क़ पीजन करने से शिि ऩश होत़ हैं।  रजत के यंि क़ पीजन करने से स़धक क़ कल्य़ण होत़ हैं।

एक प्ऱण-प्रऽतऽष्ठत चैतन्ययिि दकये गये "श्रा यंि" के ऽवषय में ऽवद्व़नों क़ कथन हैं दक, ऽवऽध-ऽवध़न से सौ यज्ञ करने से जो फि प्ऱप्त होत़ हैं वहीं फि श्राचक्र क़ एक ब़र दशधन करने से ऽमित़ हैं। सोिह मह़द़नों के करने से जो पिण्य फि प्ऱप्त होत़ हैं वहीं फि श्राचक्र क़ एक ब़र दशधन करने से ऽमित़ हैं। स़ढेऺ तान कोरट(ऄथ़धत स़ढ़े तान करोड़) ताथों में स्ऩन करने से जो फि प्ऱप्त होत़ हैं, वहीं फि श्राचक्र क़ एक ब़र दशधन करने से ऽमित़ हैं। यदद मनिष्य व़स्तव में सिखा और सुमद्व होऩ च़हत़ है तो ईसे श्रायंि स्थ़पऩ ऄवश्य करना च़ऽहये।

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ऄऽभमंऽित श्रायंि अज ब़ज़र में रत्नों के बने श्रा यंि सरित़ से प्ऱप्त हो ज़ते हैं िेदकन यह सब वे ऽसद्ध, प्ऱण-प्रऽतऽष्ठत य़ चैतन्ययिि नहीं होते। जब श्रा यंि को पीणध श़स्त्रोंि ऽवऽध-ऽवध़न से तेजस्वा मंिों द्व़ऱ ऄऽभमंऽित य़ प्ऱणप्रऽतऽष्ठत दकय़ ज़त़ हैं तभा वह पीणध रुप से प्रभ़वश़िे एवं सिख-समुऽद्ध देने व़ि़ होत़ है। यह अवश्यक नहीं दक श्रा यंि दििधभ द्रव्यों य़ रत्नों क़ बऩ हो। यदद श्रायंि शिद्ध ध़ति में ऽनर्णमत एवं ऄखंऽडत हैं और यंि श़स्त्रोंि ऽवऽध-ऽवध़न से ऄऽभमंऽित य़ प्ऱण-प्रऽतऽष्ठत हैं तो वह श्रा यंि त़ंबे पर हा क्यो न बऩ हो वह ऽनऽित पीणध रुप से प्रभ़वश़िा हा रहत़ हैं। जब तक यंि मंिों द्व़ऱ ऽसद्ध नहीं होत़ तब तक वह श्रा प्रद़त़ ऄथ़धत धनसमुऽद्ध प्रद़न करने व़ि़ नहीं बनत़! ऽवऽभन्न द्रव्यों एवं ध़तिओं से ऽनर्णमत श्रा यंि क़ फि। स्फरटक श्रायंि स्फरटक रत्न पर ईत्कीणध दकय़ हुअ श्रा यंि दििधभ म़ऩ ज़त़ हैं और यह सभा द्रव्यों से ऄऽतशाघ्र फि प्रद़न करने व़ि़ रत्न है। स्फरटक श्रायंि मनिष्य की सभा भौऽतक एवं अध्य़ऽत्मक आच्छ़ओं को पीणध करने में समथध हैं। यदद दकसा स़धक को सौभ़ग्य से स्फरटक श्रा यंि प्ऱप्त हो ज़ए तो दकसा ऽवद्व़न से ईसको ऄऽभमंऽित करव़िे। स्फरटक श्रा यंि

रंक को भा वह ऱज़ बऩने में समथध हैं। स्फरटक श्रा यंि क़ पीजन करने से मनिष्य को धन की कभा कमा नहीं रहता। प़रद श्रायंि श़स्त्रों में प़रद ध़ति को भगव़न ऽशव क़ वायध कह़ गय़ है। शिद्ध प़रद से ऽनर्णमत श्रा यंि ऄऽत दििधभ तथ़ प्रभ़वश़िा होते है। धन प्ऱऽप्त हेति ईत्तम म़ऩ ज़त़ हैं। स्वणध श्रायंि स्वणध ध़ति में ऽनर्णमत श्रायंि संपीणध सिख एवं ऐश्वयध को प्रद़न करने व़ि़ हैं। एसे श्रा यंि को हमेंश़ ऽतजोरा में ऐसे रखऩ च़ऽहए दक पररव़र के ऄि़व़ दकसा ऄन्य व्यऽि क़ स्पशध न हो। रजत श्रायंि च़ंदा में ऽनर्णमत श्रायंि मिख्यतः व्य़वस़ऽयक प्रऽतष्ठ़नों में स्थ़ऽपत करने से ऽवशेष ि़भ की प्ऱऽप्त होता हैं। त़म्र श्रायंि त़ंबे में ऽनर्णमत श्रायंि ऽवशेषः घर, दिक़न, ओदफस आत्य़दद व्यवस़याक स्थि पर पीज़ स्थ़न पर ऽवशेष रुप से दकय़ ज़त़ हैं। त़ंबे में ऽनर्णमत श्रायंि क़ प्रऽतददन पीजन करने से अर्णथक ऽस्थता में सिध़र होत़ हैं। क़यधस्थि पर ग्ऱहक की द्रऽष्ट में अये ऐसे स्थ़ऽपत करने से क़रोंब़र में वुऽद्ध होता हैं। के वि श़स्त्रोंमें वर्णणत पद़थों पर हा यंि क़ ऽनम़धण करऩ श्रेष्ठ हैं, िकडा, कपड़े य़ पत्थर मील्यहान द्रव्य अदद पर श्रा यंि क़ ऽनम़धण नहीं करऩ चऽहए।

अभोघ भहाभत्ृ मॊुजम कव ऄमोद्य् भहाभत्ृ मॊज ु म कव

व उल्रेखखत अडम साभग्रीमों को शास्िोक्त ववचध-ववधान से ऽवद्व़न

ब्राह्भणो द्व़ऱ सवा ऱाख महामत्ृ यंज ु य मंत्र जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्व़ऱ तनसभात फकमा जाता हैं इस सरए कव

अत्मॊत प्रबावशारी होता हैं।

अभोद्म ् भहाभत्ृ मॊज ु म कव कव

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अऩना नाभ, वऩता-भाता का नाभ, गोि, एक नमा पोटो बेजे

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उत्तभ स्वास््म राब के सरमे शमन औय वास्तु ससिाॊत

च 

त ॊ न जोशी

उत्तय की तयप ससय कयके सोनेसे धन, मश, आमु की हातन तथा भत्ृ मु प्राप्त होती हैं, अथाात ् आमु ऺीण हो जाती हैं। िाकभशर् शयने प्रवद्यािनमायुचि दक्षऺणो । ऩश्चिमे िबऱा चिन्िा हातनमत्ृ युरथोत्िरे ॥

( आिारमयूख् प्रवचवकमयिकाश ) शास्िभें उल्रेख हैं फक अऩने घयभें ऩुवा की तयप ससय कयके, ससुयारभें दक्षऺण की तयप ससय कयके औय ऩयदे श(ववदे श)भें ऩस्श् भ की तयप ससय कयके सोमे, ऩयॊ तु उत्तय की तयप ससय कयके कबी न सोमे – सवादा ऩूवा मा दक्षऺणकी तयप ससय कयके सोना

ाहहमे आमु

स्वगेहे िाश्क्िरा् सुप्याच्छ्वशुरे दक्षऺणाभशरा् ।

की ववृ ि होती हैं, उत्तय मा ऩस्श् भकी तयप ससय कयके सोने से आमु ऺीण होती हैं तथा शयीय भें योग उत्ऩडन होते हैं। नोत्िराभभमुख् सुप्याि ् ऩश्चिमाभभमुखो न ि ॥

(ऱघुव्यास स्मतृ ि २ । ८८)

उत्िरे ऩश्चिमे िैव न स्वऩेप्रि कदािन ् ॥

स्विादायु्ऺयम ् याति ब्रह्महा ऩुरुषो भवेि ् ।

न कुवीि िि् स्विं शस्िम ् ि ऩूवद य क्षऺणम ् ॥

( ऩदम ऩुरण, सश्ृ टि ५१। १२५ - १२६ )



ऩूवा की तयप ससय कयके सोनेसे व्मस्क्त को ववद्मा प्राप्त होती हैं।



दक्षऺण की तयप ससय कयके सोने से धन तथा आमुकी ववृ ि होती हैं ।



ऩस्श् भ की तयप ससय कयके सोने से प्रफर च डता होती हैं ।

ित्यश्क्िरा् िवासे िु नोदक्सुप्यात्कदािन ॥

(

आिारमयूख;

प्रवचवकमयिकाश

१०



४५

)

बायतीम सॊस्कृतत भें एसी भाडम ता हैं, की स्जस घय भे तनवास कयते हो उस घय के भुख्म द्वाय की औय ससय मा ऩैय कय के शमन कयने से अशुब प्रबाव प्राप्त होता हैं। क्मोफक भयणासि व्मस्क्तका ससय भुख्म द्वाय की तयप यखा जात हैं। 

धन - सम्ऩस्त्त इच्छा यखने वारे वारे व्मस्क्त को अडन, गौ, गुरु, अस्ग्न औय दे वता के शमन स्थान के ऊऩय नहीॊ सोना

ाहहमे । अथाांत: अडन यखने वारे

बण्डाय गह ृ , गौ-शारा, गुरु के शमन स्थान, ऩाकशारा(यसोई गह ृ ) औय भॊहदय के ऊऩय शमन मा शमन कऺ नहीॊ फनाना

ाहहमे ।

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उत्तभ स्वास््म राब के सरमे बोजन औय वास्तु ससिाॊत

च शास्िोक्त भतानुशाय बोजन सवादा ऩूवा अथवा उत्तयकी ओय भुख कयके कयना

ाहहमे।

भॉख ु कयके खाता हैं अथवा जो ससयभें वस्ि रऩेट कय

(ससय ढककय) खाता हैं, उसके द्वाया ग्रहण फकमे गमे अडन को सदा प्रेत ही खाते हैं ।

"िाड्मुखोदड्मुखो वाप्रऩ"

( प्रवटणु ऩुराण ३।११।७८)

"िाड्मुखऽन्नातन भुञ्ञी"

( वभसटठ स्मतृ ि १२।१५)

दक्षऺण अथवा ऩस्श् भकी ओय भुख कयके बोजन नहीॊ कयना

त ॊ न जोशी

ाहहमे।

यद् वेश्टििभशरा भुड्न्क्िे यद् भु्न्क्िे दक्षऺणामुख्। सोऩानत्कचि यद् भुड्न्क्िे सवं प्रवद्याि ् िदासुरम ् ॥

(महाभारि, अनु० ९०।१९)

जो ससयभें वस्ि रऩेटकय बोजन कयता हैं , जो दक्षऺणकी ओय भुख कयके बोजन कयता है तथा जो

प्ऩर-जूते

ऩहने बोजन कयता हैं, उसके द्वाया ग्रहण फकमे गमे बोजन को आसयु सभझना

भञ् ु ञीि नैवेह ि दक्षऺणामुखो न ि ििीच्छयामभभभोजनीयम ्॥

(वामनऩरु ाण १४।५१)

दक्षऺणकी ओय भख ु कयके बोजन कयनेसे उस बोजनभें

िाच्छयां

नरो

वारुणे

ि

(ऩाराशरस्मतृ ि १।५९)

अिऺाभऱिऩादस्िु यो भुड्न्के दक्षऺणामुख् ।

यो वेश्टििभशरा भुड्न्क्िे िेिा भुञ्ञश्न्ि तनत्यश् ॥

( स्कन्दऩुराण, िभास० २१६ । ४१)

जो त्रफना ऩैय धोमे बोजन कयता हैं, जो दक्षऺणकी ओय

ऱभेदायय ु ायमयां

भवेद्रोगी

आयप्रु वयत्िं

िेित्वमश्रि ु े

िथोत्िरे

। ॥

( ऩद्मऩरु ाण, सश्ृ टि० ५१ । १२८)

याऺसी प्रबाव आ जाता हैं।

' िद् वै रऺांभस भुञ्ञिे '

ाहहमे।

ऩव कयके बोजन कयने से व्मस्क्त की ू ा की ओय भख ु

आमु फढ़ती हैं। दक्षऺण की ओय भख ु कयके बोजन कयने से प्रेत तत्व की प्रास्प्त होती हैं। ऩस्श् भ की ओय भख ु कयके बोजन कयने से व्मस्क्त योगी होता हैं। उत्तय की

ओय भुख कयके बोजन कयने से व्मस्क्त की आमु तथा धन की प्रास्प्त एवॊ ववृ ि होती हैं ।

ऄष्ट िक्ष्मा कवच ऄष्ट िक्ष्मा कवच को ध़रण करने से व्यऽि पर सद़ म़ं मह़ िक्ष्मा की कु प़ एवं अशाव़धद बऩ रहत़ हैं। ऽजस्से म़ं िक्ष्मा के ऄष्ट रुप (१)-अदद िक्ष्मा, (२)-ध़न्य िक्ष्मा, (३)-धैराय िक्ष्मा, (४)-गज िक्ष्मा, (५)-संत़न िक्ष्मा, (६)-ऽवजय िक्ष्मा, (७)-ऽवद्य़ िक्ष्मा और (८)-धन िक्ष्मा आन सभा रुपो क़ स्वतः ऄशाव़धद प्ऱप्त होत़ हैं। मील्य म़ि: Rs-1050 >> Shop Online .

गुरुत्व ज्योतिष

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जऩ भारा का भहत्व

च धमध श़स्त्रों में म़ि़ को ऽवशेष महत्व ददय़ गय़ हैं। देवा-देवत़ को प्रसन्न करने हेति श़स्त्रों में म़ि़ क़ ऽवशेष महत्व बत़य़ गय़ हैं। मन्ि स़धऩ में भा म़ि़ क़ ऽवशेष महत्व बत़य़ गय़ हैं। क्योदक मन्ि स़धऩ की पीणध दक्रय़ एवं सफित़ म़ि़ पर ऽनभधर होता हैं। मन्ि के जप के समय मन्िोच्च़रण की गणऩ म़ि़ पर करऩ सिऽवध़जनक और सरि होत़ हैं। ऽवद्व़नो क़ कथन हैं की मन्ि जप एवं आष्ट ऽसऽद्ध के ऽिए यदद ऽनऽित म़ि़ क़ प्रयोग दकय़ ज़ए तो वह ऄऽधक क़रगर होत़ हैं। क्योदक संबंऽधत देवा-देवत़ की ऽप्रय वस्ति य़ पद़थध से बना होने के क़रण एवं ईस में कि छ ऽवशेष गिण होने से म़ि़ शाघ्र फि प्रद़न करने व़िा होता हैं। म़ि़ क़ मीि ि़भ होत़ हैं की मन्िों की गणऩ अस़ना से हो सके और दीसऱ ि़भ होत़ हैं श़स्त्रों में वर्णणत हैं की दकसा म़ि़ ऽवशेष से मन्ि ज़प करने से मन्ि ज़प क़ प्रभ़व कइ गिऩ बढ ज़त़ हैं। अपके म़गधदशधन के ऽिए श़स्त्रोि मत भा संिि दकए गए हैं। प्रमिख ग्रंथक़रो ने म़ि़ के तान प्रक़र बत़ये हैं। 1) कर म़ि़ 2) वणध म़ि़ 3) मऽण म़ि़ कर म़ि़: कर म़ि़ जप ईसे कहते हैं ऽजस में मन्ि क़ जप ईाँ गऽियों के पोरों पर ऽनऽित क्रम में दकय़ ज़त़ हैं, आस जप में पवध के क्रम पर ऽवशेष ध्य़न रखऩ पड़त़ हैं। आस ऽिये िम्बा ऄवऽध की स़धऩ य़ मन्ि जप के ऽिये यह ईपयिि नहीं हैं। जब मन्ि जप हज़रों - ि़खों की संख्य़

त ॊ न जोशी

में करने हो तो कर म़ि़ पर करऩ कष्ट प्रद होत़ हैं। कर म़ि़ क़ प्रयोग दैऽनक जप में य़ छोटा संख्य़ के जप में दकय़ ज़त़ हैं। कर म़ि़ से मन्ि जप करने के कि छ श़स्त्रोि ऽनयम बत़ए गए हैं। ऄऩऽमक़ के मध्य भ़ग से नाचे की ओर ऽगने, दफर कऽनष्ठ़ के मीि से ऄग्रभ़ग तक। आसके ब़द ऄऩऽमक़ और मध्यम़ के ऄग्रभ़ग होकर तजधना के मीि तक ऽगनता करें । आस प्रक़र से ऄऩऽमक़ के दो, कऽनष्ठ़

के

तान,

पिनः

ऄऩऽमक़ क़ एक, मध्यम़ क़ एक, और तजधना के तान पवध कि ि ऽमि़कर दस संख्य़ होता हैं। आस ऽवषय में श़स्त्रोि मत हैं:-

अरम्भ्य़ऩऽमक़ मध्यम् पव़धनयिक्त़न्यनिक्रम़त्। तजधनामीिपयधन्तं जपेददशसि ् पवधस॥ि मध्यम़ंगऽि िमीिे ति यतपवध ऽद्वतयं भवेत।् तं वैं मेरुं ऽवज़नायज्ज़प्पेतं ऩऽतिंघयेत॥् ऄथ़धत: ईाँ गििा के मध्य पवध (पोर) से अरम्भ कर के क्रम से 10 पवों पर बऱबर जपे। िेदकन मध्यम ऄंगििा के जड़ के दो पवों को छोड़ दे, क्योंदक वे ऄंगि ि ा के मेरु हैं और जप में मेरु क़ िंघन नहीं दकय़ ज़त़ हैं। कर म़ि़ के आस क्रम से प्ऱयः सभा ऽवद्व़न सहमत हैं। िेदकन ऽवऽभन्न ऄनिष्ठ़नो एवं स़धऩओं के ऄन्तर होने पर क्रम में बदि़व संभव हैं।

गुरुत्व ज्योतिष

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देवा ऄनिष्ठ़न:

ईच्च़रण करें , दफर मन्ि क़, ऽजसके क़रण मन्ि जप की

कि छ ऽवशेष देवा ऄनिष्ठ़नो में ऄऩऽमक़ के दो पवध,

की ि संख्य़ 50 होगा।

कऽनष्ठ़ के तान, पिनः ऄऩऽमक़ के ऄग्रभ़ग क़ एक, मध्यम़ के तान, और तजधना के मीि क़ एक पवध कि ि

ऄ वगध के

= 16

ऽमि़कर दस संख्य़ होता हैं।

क से प तक के

= 25

िक्ष्मा ऄनिष्ठ़न: मन्ि स़धऩ के ज़नक़र एवं ऽवद्व़नो के मत से कि छ

य से ह तक के

= 8

पिनः एक िक़र = 1

ऽवशेष िक्ष्मा ऄनिष्ठ़ में मध्यम़ के मीि में एक,

कि ि = 50

ऄऩऽमक़ के मीि में एक, कऽनष्ठ़ के तान, ऄऩऽमक़ और मध्यम़ के एक-एक ऄग्रभ़ग और तजधना के तान आर ऄप्रक़र कि ि ऽमि़कर दस संख्य़ पीणध होता हैं।

ऄ वगध के सोिह वणध आस प्रक़र हैं:-

कर म़ि़ पर मन्ि जप के ऽनयम:  कर म़ि़ पर जप करते समय ईं गऽिय़ं परस्पर एक

क वगध से प वगध तक के पच्चास वणध आस प्रक़र हैं:-

दीसरे से जिड़ा हुइ रखे, ऄिग-ऄिग न रखें।  हथेिा को थोड़ा ऄंदर की तरफ मिड़ा हुइ रखे।  कर म़ि़ करते समय मेरु क़ ईल्िंघन न करें । मध्यम़ के दो पवध को मेरु कह़ ज़त़ हैं।  कर म़ि़ करते समय पवों की संऽध क़ स्पशध ऽनऽषद्ध म़ऩ गय़ हैं।  ह़थो को हृदय के स़मने ईं गऽियों को थोड़ा झिक़कर और वस्त्र से ढककर हा जप करऩ च़ऽहए।  दस की संख्य़ में दकए ज़ने व़िे जप की ऽगनता

ऄ अ आ इ ई उ ऊ ॠ िु ॡ ए ऐ ओ औ ऄं ऄः कखगघङचछजझञटठडढणतथदधनपफ बभम य वगध से ह क़र तक अठ वणध आस प्रक़र हैं:-

यरिवशषसह

िक़र (ळक़र) क़ एव वणध हैं:-

ळ आस प्रक़र पच़र की संख्य़ हो ज़ने पर दफर िक़र से िौटकर ऄक़र तक अने पर पच़स और हो

करने के ऽिए ि़ख ऄथ़धत िि, ऽसन्दीर और गौ के सीखे

ज़येंगे, आस प्रक़र कि ि ऽमि़कर सौ की संख्य़ पीणध हो

कं डे (ईपिे) क़ चीणध कर के आन सबके ऽमश्रण की

ज़ता हैं।  वणध म़ि़ में "ि" को सिमेरु म़ऩ ज़त़ हैं ऄतःऄ आसक़ ईल्िंघन ऽनऽषद्ध हैं।  संस्कु त में "ि" और "ज्ञ" को स्वतंि ऄिर नहीं म़ने ज़ते सयिि ऄिर म़ने ज़ते हैं। आस ऽिए आन ऄिरों की गणऩ नहीं की ज़ता। आस क़रण गणऩ में स़त वगध की जगह अठ वगध होते हैं। अठव़ं वगध "शक़र" से प्ऱरं भ होत़ हैं। आसके द्व़ऱ " ऄं कं चं टं तं पं यं शं" यह गणऩ करके अठ ब़र और जप करऩ च़ऽहए। आस प्रक़र जप की संख्य़ 108 हो ज़ता हैं।

गोऽिय़ं बऩकर ईन्से गणऩ करना च़ऽहए।  ऄित, ईं गिा, पिष्प, चन्दन, ऽमट्टा, कं कड़ अदद क़ प्रयोग दशकों की गणऩ हेति करऩ वर्णजत हैं। वणधम़ि़: वणधम़ि़ क़ प्रयोग ऄन्तर जप और बऽहर जप दोनो प्रक़र के जप में सम़न रुप से दकय़ ज़त़ हैं। वणधम़ि़ जप ऄथ़धत ऄिरों के ऄिरों के द्व़ऱ ऄंख्य़ की गणऩ करऩ। आसके जप करने क़ ऽवध़न यह हैं दक पहिे वणधम़ि़ क़ एक ऄिर ऽबन्दि िग़कर

गुरुत्व ज्योतिष

आसे ऄिर म़ि़ के मऽण म़ऩ ज़त़ हैं। आनक़ मीि सीि कि ण्डऽिना शऽि हैं, जो मीि़ध़र चक्र से अज्ञ़चक्र तक सीि रुप में ऽवद्यम़न हैं। आस प्रक़र यह जप अरोह-ऄवरोह ऄथ़धत ईपर से नाचे तथ़ पिनः नाचे से उपर होत़ हैं। आस प्रक़र दकय़ हुअ जप पीणध एवं शाघ्र ऽसऽद्ध प्रद़न करने व़ि़ होत़ हैं। मऽणम़ि़: ऽजन स़धकों को ऄऽधक संख्य़ में जप करने हो, ईन्हें मऽणम़ि़ क़ प्रयोग करऩ च़ऽहए। आस म़ि़ को मऽणयों से ऄथ़धत मऽनय़ य़ मनकों से ऽपरोइ होने के क़रण हा आसे मऽणम़ि़ कह़ ज़त़ हैं। यह म़ि़ कइ

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 रुद्ऱि के द़नों की म़ि़ बऩते समय मनके ऽपरोते समय रुद्ऱि के मिहं और पिच्छ क़ ऽवशेष ध्य़न रखऩ च़ऽहए। रुद्ऱि में मिहं क़ भ़ग कि छ उाँच़ होत़ है और पिच्छ क़ भ़ग नाच़ होत़ हैं। रुद्ऱि के मनके ऽपरोते समय रखऩ च़ऽहये की दो रुद्ऱि के द़नों के मिहं से मिहं परस्पर ऽमिते हों, और पिच्छ से पिच्छ परस्पर ऽमिते हों।  वशाकरण में रि वणध के सीत की म़ि़ क़ प्रयोग करें , श़ंऽत कमध में सफे द(श्वेत) वणध के सीत की म़ि़,

तििसा, चंदन, शंख, कमिगट्ट़ (कमि बाज), सिवणध,

ऄऽभच़र कमध में कु ष्ण वणध ऄथ़धत क़िे वणध के सीत की म़ि़ क़ प्रयोग करऩ ि़भद़यक होत़ हैं। ऐश्वयध एवं संपऽत्त की प्ऱऽप्त के ऽिये रे शमा सीत से बना म़ि़ क़ प्रयोग करऩ च़ऽहए।  कि छ ऽवद्व़नो क़ मत हैं की ब्ऱह्मण वगध के िोगो कों

च़ंदा, कि शमीि, स्फरटक, मोता, हल्दा, पििजाव़ की

श्वेत वणध के सीत की म़ि़, िऽिय वगध के िोगो कों

बाज आत्य़दद पद़थों की म़ि़एं स़म़न्यतः प्रयोग की ज़ता हैं।

रि वणध के सीत की म़ि़, वैश्य वगध के िोगो कों

पद़थों से बना हुइ होता हैं। मऽणम़ि़ रत्न, रुद्ऱि,

स़म़न्यतः वैष्णवों के ऽिए तििसे तथ़ शैवों, श़िों के ऽिए रुद्ऱि की म़ि़ सवोत्तम म़ना गइ हैं। िेदकन आस ब़त क़ ध्य़न रहें की एक पद़थध की म़ि़ में दीसरे पद़थध क़ प्रयोग न दकय़ गय़ हों।  मन्ि जप के ऽिए संबंऽधत देवा-देवत़ से संबंऽधत पद़थध की म़ि़ क़ प्रयोग करऩ शाघ्र फि प्रद़न करने व़ि़ होत़ हैं।  ऄिग-ऄिग क़मऩपीर्णत, मन्ि स़धऩ य़ ऄनिष्ठ़ में शाघ्र सफित़ प्ऱप्त हो आस ऽिए भा ऄिग-ऄिग पद़थों की म़ि़ क़ प्रयोग करऩ च़ऽहए।  म़ि़ के मनके (द़ने) एक सम़न अक़र के हो, छोटे बड़े न हों।  म़ि़ में कि ि 108 मनको के स़थ 1 सिमेरु ऄिग से होऩ च़ऽहए।  श़स्त्रोि ऽवध़न के ऄनिस़र म़ि़ में प्रयोग होने व़ि़ ध़ग़ किं व़रा ब्ऱह्मण कन्य़ द्व़ऱ सीत क़तकर बऩय़ बऩग़ गय़ हों, तो शाघ्र फिदेने व़ि़ होत़ है ।

पात वणध के सीत की म़ि़ और शीद्रों वगध के िोगो कों कु ष्ण वणध के सीत की म़ि़ क़ प्रयोग करऩ श्रेष्ठ होता हैं।  रि वणध के सीत से बना म़ि़ क़ प्रयोग सब वणों के िोग प्ऱयः सभा प्रक़र के ऄनिष्ठ़न में कर सकते हैं।  दों मनको के बाच में ग़ंठ िग़इ हुइ म़ि़ प्रयोग और ऽबऩ ग़ंठ िगा म़ि़ क़ प्रयोग सम़न रुप से दकय़ ज़ सकत़ हैं।  म़ि़ को सोने-च़ंदा के त़र में भा गीथ ं कर बऩय़ ज़ सकत़ हैं।  सिमेरु के प़र ग़ंठ तान फे रे की य़ ढ़इ फे रे के िग़ना च़ऽहए।  म़ि़ क़ प्रत्येक मनक़ ऽपरोते समय आष्ट मन्ि क़ जप य़ "ॎ" क़ ईच्च़रण करते रहऩ च़ऽहए। ऽवशिद्ध दोषरहात ईपयिि म़ि़ की प्ऱऽप्त के ब़द य़ म़ि़ क़ ऽवऽधवत ऽनम़धण क़यध संपन्न हो ज़नेके पिय़त म़ि़क़ संस्क़र ऄवश्य करऩ य़ करव़ िेऩ च़ऽहये।

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गुरुत्व ज्योतिष

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ज्मोततष के अनुशाय शुब-अशुब भुहूता का प्रबाव?

 याकेश ऩॊडा आज की अत्माधतु नक वैऻातनक ऩितत के अनुसाय

ब्रह्भाणड भें सभम अथाात कार व अनॊत आकाश के अततरयक्त सभस्त वस्तुएॊ भमाादा मुक्त हैं। इस सरए सभम का न ही कोई प्रायॊ ब है न ही कोई अॊत है । अडम शब्द्दों भें

सभझे तो हभ एसे कोई बी ववशेष ऺण को च स्डहत नहीॊ कह सकते फक कफ सभम अस्स्तत्व भें आमा मा सभम इस ऺण से आयॊ ब होता है । इसी तयह हभ मह बी नहीॊ कह सकते है फक, इस ऺण के फाद सभम का अस्स्तत्व सभाप्त हो जाएगा?, मा सभम महाॉ रुक जाएगा। क्मोफक अनॊत आकाश की सभम की तयह कोई भमाादा नहीॊ है , इस सरए तो इसका कहीॊ बी प्रायॊ ब मा अॊत नहीॊ होता हैं। आधतु नक भानव ने इन दोनों तत्वों को हभेशा

भनुठम

उडहोंने सफसे भहत्त्वऩूण्ाा फात मह सभझी फक आकाशीम

वऩॊडों

के

सहमोग

से

फकतने

आश् माजनक रुऩ से अऩने भहत्वऩूणा कामों भें सपरता प्रास्प्त के सरए एवॊ जीवन क्रभ को अथाात अऩने बववठम

को उज्जवर कय सकता हैं। एक शुब भुहूता भें प्रायॊ ब फकमा गमा कोबी कामा भनुश्म को शीघ्र ही जीवन भें सबी प्रकाय सुख को प्राप्त कय अनेको उऩरस्ब्द्धमाॊ हदराने भें सभथा होता हैं। भुहूता

हभाये

ववद्वानो

द्वाया

खोज

की

गई

सवााचधक भहत्त्वऩण् ू ाा ऩरयकल्ऩना है । भह ु ू ता का अथा है

फकसी बी कामा को कयने के सरए सफसे सवााचधक उत्तभ सभम मा शब ु सभम व ततचथ का

मन कयना।

कामा ऩण् ू ाात् परदामक हो इसके सरए सभस्त

सभझने का व अऩने अनस ु ाय इनभें वव यण कयने का

ग्रहों व अडम ज्मोततष तत्वों का सक्ष् ू भ ववश्रेषण फकमा

नहीॊ हुई है । मे दोनों तत्व ववसबडन रुऩोंभें अऩना भहातम्म

भनुठम की जडभ कुण्डरी की सभस्त फाधाओॊ को दयू

प्रमास फकमा है , रेफकन उसे बी तक कोई सपरता प्राप्त

भनुठम ऩय जभाते आए है । मह दोनों तत्व भानव जीवन

जाता है फक वे दठु प्रबावों को ववपर कय दे ते है । वे कयने भें व दम ु ोगों को हटाने भें सहामक होते हैं।

भुहूता भनुठम के सरए ग्रह, नऺि एवॊ मोग का

को अत्मॊत ही भहत्वऩूण्ाा तयीके से भानुठम को प्रबाववत

ऎसा अनूठा सॊगभ है फक वह कामा कयने वारे भनुठम को

प्रा ीन ऋषी-भुतनमों को इन दोनों तत्वों का बरी

इस सरए ववद्वानो का भत हैं की भनुठम जफ बी

कयते है ।

बाॊतत फोध था। इस सरए उडहोंने अऩने आत्भीम एवॊ भनोफरस से साभ्मा, च त्त की एकाग्रता व केस्डरत ध्मान से, ऩूण्ाा

त ै डम व अिा

त ै डम शस्क्त व फर से

एवॊ उच् कोहट के ऻान व अऩनी हदव्म ऻान ऺु से इन तत्वों को सभझ सरमा था जो फक आज फक अत्माधतु नक तकनीक से कोसों दयू हैं।

उडहोंने दे खा व जाना कैसे सभम व अनॊत ब्रह्भाॊड

फक शस्क्तमाॊ हभें प्रबाववत कयती है , कैसे नऺिा व ग्रहों का भेर हभाये जीवन को भहत्त्वऩूण्ाा हदशा व ऩरयवतान दे ता है ।

ऩूण्ाात् सपरता की ओय उडभुख कय दे ता है ।

अऩने जीवन भें ऎसा भहत्वऩूणा कामा कयने जा यहा हों, स्जसभें उसका अचधक सभम व शस्क्त प्रमोग भें हुवा हो अथवा इस कामा का भनुठम के जीवन ऩय कापी सभम

तक प्रबाव यहने वारा हो, तफ उसे मह कामा शब ु भुहूता भें ही कयना

ाहहए। स्जससे मह कामा अतत शीघ्र

परदामक होगा व वहॉ अचधक सुखभमी व सॊतुठट जीवन व्मतीत कय सके।

ज्मोततष ववद्मा भें कामा का प्रायॊ ब सभम, कुण्डरी

व उसकी गणना कयके फकमा जाता है । इस सरए फकसी

बी शुबकामा कयने के सरए उसके प्रायॊ ब कयने का सभम

गुरुत्व ज्योतिष

-2017

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अथाात भुहूता अतत भहत्वऩूण्ाा होता है । भनुठम का बववठम

मोगाहद के शुबत्व का सूक्ष्भ अध्ममन कयके कुछ मोग

कयती हैं फक उसका जडभ फकस सभम हुआ था। रेफकन भनुठम फक ववडम्फना तो मह है फक भनुठम का स्वमॊ के

मोगों होते हैं, जो हजायों फुये प्रबाव हटा दे ते है । इस तयह

अडम फक्रमा-कराऩों ऩय उसका ऩूण्ाा तनमॊियण है । इस

प्रबाव डारते हैं।

सकता है । मही भुहूता की ऩरयबाषा है । महद कामा प्रायॊ ब का सभम शुब हैं तो कामापर तनस्श् त रुऩ से परदामक

जैसा की हभने फतामा की अशुब तत्त्व बी हभेशा ही

एवॊ जीवन की भहत्वऩण ू ा घटनाएॉ इस फात ऩय तनबाय

जडभ सभम ऩय कोई तनमॊिण नहीॊ है । रेफकन जीवन के

सरए वह कामा कयने का सभम स्वमॊ सुतनस्श् त कय

एवॊ इस्च्छत होगा। इस सरए तो कहाॉ जाता हैं की शुब प्रायॊ ब अथाात आधा कामा स्वत् ऩूण्ाा होना।

ऎसे बी होते हैं जो फक फकसी दोष ववशेषों को हटाने वारे

से, ऩॊ ाॊग तत्त्वों के शुबत्व के अततरयक्त बी वे सभस्त घटक फक अवश्म जाॉ

कयनी

ाहहए, जो भुहूता ऩय शुब

अशब ु मोग भौजद ू होते हैं। आवश्मकता है फकसी एसी मस्ु क्त की जो अशब घटकों को अचधक से अचधक कभ कय सकेए ु

अचधक अशब ु घटकों को हटा सके तथा उऩस्स्थत अशब ु

शब ु मोग

भह ु ू ता अच्छे व फयु े दोनों मोगों का सभश्रण है । कोई बी भह ु ू ता अऩने आऩ भें ऩण ू ा रुऩ से शब ु नहीॊ होता है , स्जस ऩय कोई बी फयु ा प्रबाव न हो। रेफकन ग्रहों के ववशेष

घटकों को प्रबावहीन कय सके। अत् अशब ु व दोषऩण ू ा सॊमोजन को दे ख ही फकसी भह ु ू ता का मन कयना ाहहए, इस प्रकाय सबी ऩरयस्स्थततमों का ऩण ू ा अध्ममन कयना आवश्मक होता है ।

भॊि ससि स्पहटक श्री मॊि "श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शस्क्तशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मडत शुब फ़रदमी मॊि

है । जो न केवर दस ू ये मडिो से अचधक से अचधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय व्मस्क्त के सरए पामदे भॊद सात्रफत होता है । ऩूणा प्राण-प्रततस्ठठत एवॊ ऩूणा

त ै डम मुक्त "श्री मॊि" स्जस व्मस्क्त के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मडत

फ़रदामी ससि होता है उसके दशान भाि से अन-चगनत राब एवॊ सुख की प्रास्प्त होतत है । "श्री मॊि" भे सभाई अहरततम एवॊ

अरश्म शस्क्त भनुठम की सभस्त शुब इच्छाओॊ को ऩूया कयने भे सभथा होतत है । स्जस्से उसका जीवन से हताशा औय तनयाशा दयू होकय वह भनुठम असफ़रता से सफ़रता फक औय तनयडतय गतत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौततक सुखो

फक प्रास्प्त होतत है । "श्री मॊि" भनुठम जीवन भें उत्ऩडन होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दयू कय सकायत्भक

उजाा का तनभााण कयने भे सभथा है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थावऩत कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फस्डधत ऩये शातन भे डमुनता आतत है व सुख-सभवृ ि, शाॊतत एवॊ ऐश्वमा फक प्रस्प्त होती है ।

गुरुत्व कायायऱय भे "श्री मॊि" 12 ग्राभ से 2250 Gram (2.25Kg) तक फक साइज भे उप्रब्द्ध है

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गुरुत्व ज्योतिष

-2017

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जडभ कॊु डरी भें नी

रग्नेश से योग औय ऩये शानी?

च मेष ऱग्न: भेष रग्न भें जडभ रेने वारे जातक फक कॊु डरी भें रग्नेश भॊगर रग्न बाव औय अठटभ बाव का स्वाभी होता हैं। कॊु डरी भें छोटी-भोटी उच्

तुथा बाव भें भॊगर नी

त ॊ न जोशी

का होने ऩय ज्मादातय व्मस्क्त को

ोट रगती याहती हैं, उसे शल्म च फकत्सा(ऑऩये शने) बी कयवानी ऩड सकती हैं। व्मस्क्त को रृदम भें ददा ,

यक्त ाऩ (हाई फी.ऩी), जरीम स्थान से बम, जहयीरे जीवजॊतु के काटने औय जहयीरे ऩदाथा से से कठट हो सकता

हैं। भात ृ ऩऺ से ऩये शानी, बूसभ-बवन इत्मादी सॊऩती से हातन हो सकती हैं।

शांति के उऩाय: उऩयोक्त ऩये शानी होने ऩय व्मस्क्त को भॊगर ग्रह फक शाॊतत हे तु भॊगरवाय को भग ूॊ ा, भसूय, घी, गुि, रार कऩिा, यक्त

द ॊ न, गेहूॉ, केसय, ताॉफा, रार पूर का दान कयने से शुब पर फक प्रास्प्त होती हैं।

वष ृ भ ऱग्न:वष ृ ब रग्न भें जडभ रेने वारे जातक फक कॊु डरी भें रग्नेश शुक्र रग्न बाव औय षठठभ बाव का स्वाभी होता हैं। कॊु डरी भें ऩॊ भ बाव भें शुक्र नी

का होने, ऩय शास्िोंक्त भत से शुक्र व्मस्क्त को जि फुवि अथाात

भख ू ा फनाता हैं। एसे व्मस्क्त का हदभाग गरत कामों फक औय ज्मादा अग्रस्त यहता हैं, स्जस्से व्मस्क्त अचधक से अचधक राब प्राप्त कयना ाहता हैं, औय सपरता बी प्राप्त कयता हैं। उसकी सभिता तनम्न-स्तय के रोगों के साथ होती हैं। व्मस्क्त नी

स्िी-ऩुरुष से सॊऩका यखने वारा हो

सकता हैं। व्मस्क्त को स्िी वगा के कायण कायावास फक सजा हो सकती हैं। शुक्र सौंदमा, बोग-ववरास, ऎश्वमा, अरॊकाय, यतत सुख, ऎशो-आयाभ, स्िी वगा इत्मादी ऩय अऩना स्वाभीत्व यखता हैं। इस सरमे इन सफके प्रतत व्मस्क्त का अचधक झुकाव रयि से कभजोय कय दे ता हैं, स्जस्से वह गरत कामों भें सरग्न हो सकता हैं। शांति के उऩाय: उऩयोक्त ऩये शानी होने ऩय व्मस्क्त को शुक्र ग्रह फक शाॊतत हे तु शुक्रवाय को श्वेत यत्न, सपेद कऩिा, घी, सपेद पूर, धऩ ू , अगयफत्ती, इि, सपेद

ावर, दध ू ,

ॊदन दान कयने से शब पर फक प्रास्प्त होती हैं। ु

भमथन ु ऱग्न: सभथन ु रग्न भें जडभ रेने वारे जातक फक कॊु डरी भें रग्नेश फुध रग्न बाव औय कॊु डरी भें दशभ भें फुध नी

ाॉदी,

तुथा बाव का स्वाभी होता हैं।

का होने, ऩय व्मस्क्त साॊस की नरी, आॊतड़िमाॉ, दभा, कप जनीत योग, गुह्म योग, गैस, साॊस पूरना,

उदय योग, वातयोग, कृठठ योग, भॊदास्ग्न, शर ू , पेपिे इत्मादी के योग से ऩीड़ित हो सकता हैं। व्मस्क्त को व्माऩाय, नौकयी, साझेदायी से बी ऩये शानी उठानी ऩि सकती हैं। व्मस्क्त को खासकय अऩने वऩता से सॊफॊधो भें कहठनाईमा आसकती हैं। शांति के उऩाय: उऩयोक्त ऩये शानी होने ऩय व्मस्क्त को फुध ग्रह फक शाॊतत हे तु फुधवाय को हया ऩडना, भॉग ू , घी, हया कऩिा, ाॉदी, पूर, काॉसे का फतान, कऩूय का दान कयने से शुब पर फक प्रास्प्त होती हैं।

गुरुत्व ज्योतिष

ककय ऱग्न: कका रग्न भें जडभ रेने वारे जातक फक कॊु डरी भें रग्नेश होता हैं। कॊु डरी भें ऩॊ भ भें

र ॊ नी

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र ॊ ऩॊ भ बाव भें स्स्थत हों ने ऩय

र ॊ भा नी का

का होने, ऩय व्मस्क्त को ज्मादातय गैस, यक्त ाऩ (ब्द्रड प्रेशय), ऩेट के योग,

भानससक अशाॊतत, दे हीक सौंदमा, कप, वात प्रकृतत, अतनॊरा, ऩाॊडुयोग, स्िी सॊफॊचधत योग इत्मादी से कठट हो सकता हैं। ऩय अशुब ग्रहों का प्रबाव होने ऩय व्मस्क्त को ऩय ऩागरऩन बी हो सकता हैं। शांति के उऩाय: उऩयोक्त ऩये शानी होने ऩय व्मस्क्त को

र ॊ ग्रह फक शाॊतत हे तु सोभवाय को भोती,

ाॉदी,

ावर,

ॊर ीनी,

जर से बया हुवा करश, सपेद कऩिा, दही, शॊख, सपेद पूर, साॉड आहद का दान कयने से शुब पर फक प्रास्प्त होती हैं। भसंह ऱग्न : ससॊह रग्न वारे जातकों का सम ू ा तत ृ ीम भें होगा तो नी

का होगा मा नेि, रृदम एवॊ हड्डी से सॊफॊचधत

फीभायी अवश्म होगी। ऐसा जातक कॊु हठत होगा। ऩयाक्रभहीन होगा व फयु े कामा भें फर हदखाने वारा होगा। ऐसा जातक

व्मथा की फातों को रेकय झगिे भें ऩिने वारा होगा। इनके छोटे बाई-फहन नहीॊ होंगे। महद फकसी कायणवश हुए बी तो उनसे रिता-झगिता यहेगा, रेफकन मे स्वमॊ बाग्मशारी होंगे क्मोंफक बाग्म ऩय उच् दृस्ठट ऩिेगी। शांति के उऩाय: अतनठट प्रबाव को कभ कयने के सरए भाखणक स्वणा भें फनवाकय शुक्र ऩऺ को 9 से 10 के फी व सूमद ा े व को प्रात् दध ू सभरा जर

ऩहनें

ढ़ाएॉ। उऩयोक्त ऩये शानी होने ऩय व्मस्क्त को सम ू ा ग्रह फक शाॊतत हेतु गेहूॉ, ताॉफा, घी,

गुि, भाखणक्म, रार कऩिा, भसूयकी दार, कनेय मा कभर के पूर, गौ दान कयने से शुब पर फक प्रास्प्त होती हैं कन्या ऱग्न :कडमा रग्न वारे जातकों का फुध दशभेश होकय सप्तभ बाव भें नी

का होने से दै तनक व्माऩाय-व्मवसाम

भें हातन, ऩाटा नय से धोखा, फेवपा ऩत्नी मा ऩतत सभरता है । ऐसा जातक शायीरयक दृस्ठट से प्रबावी होता है , रेफकन नौकयी भें सदै व ऩये शातनमों से गज ु यने वारा तथा शासन से अऩमश ही सभरता है । शांति के उऩाय: उऩयोक्त ऩये शानी होने ऩय व्मस्क्त को ऩडना ऩहनना

ाहहए। सवा फकरो हये खिे भॉग ू फहते ऩानी भें

फहाएॉ व प्रतत फध ु वाय भॉग ू की दार का अवश्म सेवन कयें , कोई बी एक हया कऩिा अवश्म ऩहनें मा रुभार मा ऩेन यखें।

नवयत्न जड़ित श्री मॊि शास्ि व न के अनस ु ाय शि ु सव ु णा मा यजत भें तनसभात श्री मॊि के

ायों औय महद नवयत्न जिवा ने ऩय मह

नवयत्न जड़ित श्री मॊि कहराता हैं। सबी यत्नो को उसके तनस्श् त स्थान ऩय जि कय रॉकेट के रूऩ भें धायण कयने

से व्मस्क्त को अनॊत एश्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रास्प्त होती हैं। व्मस्क्त को एसा आबास होता हैं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हैं। नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहों की अशब ु दशा का धायण कयने वारे व्मस्क्त ऩय प्रबाव नहीॊ

होता हैं। गरे भें होने के कायण मॊि ऩववि यहता हैं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हैं, वह गॊगा जर के सभान ऩववि होता हैं। इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदातम कहजाता हैं। जैसे अभत ृ से उत्तभ कोई औषचध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रास्प्त के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भें

नहीॊ हैं एसा शास्िोक्त व न हैं। इस प्रकाय के नवयत्न जड़ित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्वाया शुब भुहूता भें प्राण प्रततस्ठठत कयके फनावाए जाते हैं। GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

गुरुत्व ज्योतिष

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िुऱा ऱग्नतुरा रग्न वारों का स्वाभी शुक्र अठटभेश होकय द्वादश बाव भें होगा, जो नी

का होगा। ऐसे जातक

दव्ु मसानों भें ख ा कयने वारे होंगे एवॊ इडहें अनैततक कामों भें जेर बी जाना ऩि सकता है । ऐसा व्मस्क्त नशीरे ऩदाथों का सेवन कयने वारा, अनेक स्स्िमों से सॊऩका यखने वारा व तस्कय बी हो सकता है । शांति के उऩाय: ऐसे जातक को हीया तजानी भें

ाॉदी भें जिवाकय शुक्रवाय को धायण कयना

होने ऩय व्मस्क्त को शुक्र ग्रह फक शाॊतत हे तु श्वेत यत्न, इि, सपेद

ाॉदी,

ॊदन दान कयने से शुब पर फक प्रास्प्त होती हैं

ाहहए। उऩयोक्त ऩये शानी

ावर, दध ू , सपेद कऩिा, घी, सपेद पूर, धऩ ू , अगयफत्ती,

वश्ृ चिक ऱग्न :वस्ृ श् क रग्न वारे जातकों को षठठे श होकय नवभ बाग्म बाव भें नी

का भॊगर होगा। ऐसे जातकों को

बाग्मोडनतत भें फाधा आती है । धभा के प्रतत राऩयवाह होते हैं। इडहें अनेक फाय चगयने से

ोट रगती है एवॊ ऑऩये शन

बी कयना ऩि सकता है । ब्द्रडप्रेशय के सशकाय बी हो सकते हैं। इनको बाइमों से उत्तभ सहमोग सभरता है । वहीॊ मे ऩयाक्रभी बी होते हैं। भाता से शित ु ा यखने वारे बी हो सकते हैं।

शांति के उऩाय: उऩयोक्त ऩये शानी होने ऩय व्मस्क्त को भॉग ू ा ऩहनना श्रेमस्कय होता है । इनके सरए गि ु का सेवन व गुि दान कयना शुब होता हैं।

धनु ऱग्न: धनु रग्न वारे जातकों को

तुथेश होकय द्ववतीम बाव भें नी

का गुरु होगा। ऐसे जातकों को आॉखों की

फीभायी, भोततमात्रफडद बी होगा व्मस्क्त कोग श्भा बी रग सकता है। इनकी वाणी कबी-कबी दस ू ये रोगो को थोडी अव्मवहायऩूणा रग सकती हैं। इडहें ऩरयवाय से हातन तथा असहमोग सभरता यहता है । ऐसा जातक शीघ्र नशे के आचध हो सकते हैं।

शांति के उऩाय: जातक के सरए ऩुखयाज ऩहनना शुबदामक यहे गा। भें ऩानी सी ें व ऩीरे वस्ि अवश्म धायन कयें ।

मकर ऱग्न: भकय रग्न वारे जातकों को द्ववतीमेश होकय

ने की दार दान कयें व गुरुवाय को केरे की जि

तुथा बाव भें नी

का शतन होने से जातक का स्वबाव

अत्मॊत कठोय हो जाता हैं। घुटनों भें ददा व छाती भें ददा की सशकामत हो सकती है । व्मस्क्त की अऩनी भाता से नहीॊ

फनेगी मा फ ऩन से ही भाता का साथ छूट जाएगा। भकान, बूसभ, सॊऩस्त्त व वाहन से सॊफॊचधत कामो मा तनवेश से हातन ऩाएगा अथवा रम्फे सभम तक जभीन-जामदाद के भुकदभों भें पॉसा यह सकता है । याजनैततक कामो से ऩये शान यहे गी।

शांति के उऩाय: ऐसे जातकों को तनरभ ऩहनना शुब यहे गा। कारे उिद फहते ऩानी भें फहाएॉ व सयसों के तेर, रोहे के तवे का दान व कोहढ़मों को खाना खखराना शुबदामक यहे गा।

कंु भ ऱग्न: कॊु ब रग्न वारे जातकों को द्वादशेश होकय तत ृ ीम बाव भें नी

का शतन होगा। ऐसे जातकों को छोटे बाई-

फहनों का सख ु कभ सभरता हैं मा नहीॊ सभरता। वहीॊ सॊतान से सम्फस्डधत कठट बी फना यहता हैं। ववद्मा भें कभजोय यहता है । हाथ भें

ोटे रग सकती हैं। स्वबाव बी कटुता बया होता है । जोिों भें ददा , यीढ़ की हड्डी फढ़ने का खतया

यहता है । नाक, कान, गरे की फीभायी हो सकती है ।

शांति के उऩाय: ऐसे जातकों को तनरभ मा कटै रा ऩहनना शब ु यहे गा। कारे उिद फहते ऩानी भें फहाएॉ व सयसों के तेर, रोहे के तवे का दान व कोहढ़मों को खाना खखराना शब ु दामक यहे गा।

गुरुत्व ज्योतिष

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मीन ऱग्न: भीन रग्न वारे जातकों को दशभेश होकय एकादश बाव भें नी

का गुरु होगा। ऎसा व्मस्क्त थोडे व्मसनी,

घभॊडी, कटु व न फोरने वारा हो सकता है । जातक के फिे बाई-फहन का सुख ऩूणा नहीॊ सभरता। ऐसे जातक को ऩीसरमा, हदर भें छे द, स्जगय की फीभायी होती है । रोहे की वस्तु से हातन बी हो सकती है । ऩत्नी व सॊतान से ऩूणा सुख भें कभी यहती है । सशऺा उत्तभ होती है ।

शांति के उऩाय: जातक के सरए ऩुखयाज ऩहनना शुबदामक यहे गा।

ने की दार दान कयें व गुरुवाय को केरे की जि

भें ऩानी सी ें व ऩीरे वस्ि अवश्म धायन कयें ।

उऩयोक्त रग्न वारे जातकों को अतनठट प्रबाव हो तो उनके फ ाव हे तु साथ भें हदए गए अनब ु त ू उऩाम कयने से कठटों भें अवश्म कभी आएगी। व्मस्क्त को अऩने फकमे गए कभो का परतो बोगना ही ऩडता हैं।

याशी यत्न एवॊ उऩयत्न ववशेष मॊि हभायें महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोनेाॊहद-ताम्फे भें आऩकी आवश्मक्ता के अनुशाय फकसी बी बाषा/धभा के मॊिो को

आऩकी

अनुशाय सबी साईज एवॊ भल् ू म व क्वासरहट के

असरी नवयत्न एवॊ उऩयत्न बी उऩरब्द्ध है ।

आवश्मक

२२

अखॊड़डत फनाने उऩरब्द्ध हैं।

गेज

शुि

ड़डजाईन

के

ताम्फे

भें

की ववशेष सुववधाएॊ

हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भल् ू म ऩय उऩरब्द्ध हैं। ज्मोततष कामा से े़ जड ु े फध/ु फहन व यत्न व्मवसाम से जड ु े रोगो के सरमे ववशेष भल् ू म ऩय यत्न व अडम साभग्रीमा व अडम सवु वधाएॊ उऩरब्द्ध हैं।

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

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बरा वव ाय

 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी एसा पौऱऽणक म़न्यत़ हैं की पिवध क़ि में देव द़नव यिद्ध में ऽशव शंकर के देह से यह भद्ऱ ईत्पन्न हुइ हैं। ऄन्य म़न्यत़ के ऄनिश़र भद्ऱ भगव़न सीयध देव की पििा और शऽनदेव की बहन है। शऽन की तरह हा आसक़ स्वभ़व भा क्रीर म़ऩ गय़ है। आस ईग्र स्वभ़व को ऽनयंऽित करने के ऽिए हा भगव़न ब्रह्म़ ने ईसे क़िगणऩ ऄथ़धत पंच़ग के एक प्रमिख ऄंग करण में स्थ़पात दकय़। भद्ऱ की ईत्पऽत्त के ऽवषय में एस़ म़ऩ ज़त़ हैं की दैत्यों को म़रने के ऽिये भद्ऱ गदधभ (गध़) के मिख और िंबे पिछाँ सऽहत और तान पैर यिि ईत्पन्न हुइ है। हसह जैसा मिदे पर चढा हुइ स़त ह़थ और शिष्क पेटव़िा मह़भयंकर, ऽवकऱि मिखा, क़यध क़ ऩश करने व़िा, ऄऽि, ज्व़ि़ सऽहत देवों द्व़ऱ भेजा गइ भद्ऱ पु्वा पर ईतरा है। ऄतः शिभ क़यों में भद्ऱ त्य़गऩ हा सवधश्रेष्ठ है। भद्ऱ पंच़ंग के प़ंच ऄंगों में से एक ऄंग-'करण' पर अध़ररत है यह एक ऄशिभ योग है। भद्ऱ (ऽवऽष्ट करण) में ऄऽि िग़ऩ, दकसा को दण्ड देऩ आत्य़दद समस्त दिष्ट कमध तो दकये ज़ सकते हैं ककति दकसा भा म़ंगऽिक क़यध के ऽिए भद्ऱ सवधथ़ त्य़ज्य है। पौऱऽणक कथ़ के ऄनिस़र भद्ऱ भगव़न सीयध ऩऱयण की कन्य़ है, भद्ऱ सीयध की पत्ना छ़य़ से ईत्पन्न है। भद्ऱक़ स्वरुप क़िे वणध, िंबे के श तथ़ बड़े-बड़े द़ंतों व़िा तथ़ भयंकर रूप व़िा कन्य़ है। जन्म िेते हा भद्ऱ यज्ञों में ऽवघ्न-ब़ध़ पहुंच़ने िगा और ईत्सवों तथ़ मंगि-य़ि़ अदद में ईपद्रव करने िगा तथ़ संपीणध जगत को पाड़़ पहुंच़ने िगा। ईसके दिष्ट स्वभ़व को देख सीयध को ईसके ऽवव़ह की हचत़ होने िगा और वे सोचने िगे दक आस स्वेच्छ़ च़ररणा, दिष्ट़, कि रुप़ कन्य़ क़ ऽवव़ह दकसके स़थ दकय़ ज़य। सीयध ने

ऽजस-ऽजस देवत़, ऄसिर, दकन्नर अदद से भद्ऱ के ऽवव़ह क़ प्रस्त़व रख़, सभा ने ईनके प्रस्त़व ठि कऱ ददय़। यह़ं तक दक भद्ऱ ने सीयध देव द्व़ऱ बनव़ये गये ऄपने ऽवव़ह मण्डप, तोरण अदद नष्ट कर ददय़ तथ़ सभा िोगों को और भा ऄऽधक कष्ट देने िगा। ईसा समय देव-द़नव-म़नव के दिःख को देखकर ब्रह्म़ जा सीयध के प़स अये। सीयध से ऄपना कन्य़ को सन्म़गध पर ि़ने के ऽिए ब्रह्म़ जा से ईऽचत पऱमशध देने को कह़। तब ब्रह्म़ जा ने ऽवऽष्ट को बिि़कर कह़- 'भद्रे, बव, ब़िव, कौिव अदद करणों के ऄंत में तिम ऽनव़स करो और जो व्यऽि य़ि़, गुह प्रवेश तथ़ ऄन्य म़ंगऽिक क़यध तिम्ह़रे समय के दौऱन करे , तो तिम ईन्हीं में ऽवघ्न करो, जो तिम्ह़ऱ अदर न करे , ईनक़ क़यध तिम ऽबग़ड़ देऩ। आस प्रक़र ऽवऽष्ट को ईपदेश देकर ब्रह्म़ जा ऄपने िोग चिे गये। ब्रह्म़जा के ब़त सिनकर ऽवऽष्ट ऄपने समय में देवद़नव-म़नव समस्त प्ऱऽणयों को कष्ट देता हुइ घीमने िगा। आस प्रक़र भद्ऱ की ईत्पऽत्त हुइ। भद्ऱ क़ दिसऱ ऩम ऽवष्टा करण हैं। कु ष्णपि की तुताय़, दशमा और शीक्ि पि की चतिथी एक़दशा के ईत्तऱधध में एवं कु ष्णपि की सप्तमा, चतिदश ध ा, शिक्िपि की ऄष्टमा, पिर्णणम़ के पिव़धधध में भद्ऱ रहता है। ऽजस भद्ऱ के समय चाँद्रम़ मेष, वुष, ऽमथिन, वुऽिक ऱऽश में ऽस्थत हो तो भद्ऱ ऽनव़स स्वगध में रहत़ है। चंद्रम़ कन्य़,तिि़, धनि, मकर ऱऽश में हो तो भद्ऱ प़त़ि में व़स करता हैं और ककध , हसह, किं भ, मान ऱशा क़ चंद्रम़ हो तो भद्ऱ क़ भििोक पर ऽनव़स रहत़ है। श़स्त्रों के ऄनिस़र भििोक की भद्ऱ हा ऄशिभ म़ना ज़ता है। ऽतथा के पिव़धधध में (कु ष्णपि की सप्तमा

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एवं चतिदश ध ा और शिक्िपि की ऄष्टमा पीर्णणम़ ऽतथा ) ददन की भद्ऱ कहि़ता है। ऽतथा के ईत्तऱधध की (कु ष्णपि की तुताय़ एवं दशमा और शिक्िपि की चतिथी एवं एक़दशा) की भद्ऱ ऱिा की भद्ऱ कहि़ता है। यदद ददन की भद्ऱ ऱिा के समय और ऱिा की भद्ऱ ददन के समय अ ज़ये तो ईसे ऽवद्व़नो ने शिभ म़ऩ है।

ऽवद्व़नो के मत से:

ऄऽत अवश्यक क़यध अ ज़ए तो भद्ऱ की प्ऱरम्भ की 5 घटा जो भद्ऱ क़ मिख होता है, ऄवश्य हा त्य़गना

भदद्रक़ म़ऩ हैं।  ऽवशेष कर शऽनव़र की भद्ऱ ऄशिभ म़ना ज़ता हैं।

च़ऽहए। श्रेष्ठ तो यहा है की भद्ऱ को त्य़ग करके हा म़ंगिाक क़यध सम्पन्न करने च़ऽहए।

भद्ऱ व्रत भद्ऱ के ऄशिभ प्रभ़व से रि़ के ऽिए व्रत अदद

भद्ऱ फि

के ऽवध़न बत़ए गए हैं, ककति अस़न ईप़यों हैं, सिबह

भद्ऱ क़ मिख और पींछ:

भद्ऱ के द्व़दश ऩम ऄथ़धत 12 ऩम मंि क़ स्मरण

भद्ऱ प़ंच घड़ा मिख में, दो घड़ा कण्ठ में, ग्य़रह घड़ा

क़यधऽसऽद्ध के स़थ ऽवघ्न, रोग, भय को दीर कर ग्रहदोषों

हृदय में, च़र घड़ा पिच्छ में ऽस्थत रहता है।

को भा श़ंत करने व़ि़ म़ऩ गय़ है। भद्ऱ योग में क़यध ऽसऽद्ध के ऽिए प्रयोग दकए ज़ने व़ि़ मंि:

श़स्त्रोि मत से  जब भद्ऱ मिख में रहता है तो क़यध क़ ऩश होत़ हैं।  जब भद्ऱ कण्ठ में रहता है तो धन क़ ऩश होत़ हैं।  जब भद्ऱ हृदय में रहता है तो प्ऱण क़ ऩश होत़ हैं।  जब भद्ऱ ऩऽभ में रहता है तो किह होत़ हैं।  जब भद्ऱ करट में रहता है तो ऄथधऩश होत़ हैं।  िेदकन जब भद्ऱ पिच्छ में होता हैं, तो ऽवजय की प्ऱप्त एवं क़यध ऽसद्ध होते है।

क क







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 शऽनव़र की भद्ऱ को वुऽिकी,  गिरुव़र की भद्ऱ को पिण्यैवता,  रऽवव़र, बिधव़र और मंगिव़र की भद्ऱ को

धन्य़ दऽधमिखा भद्ऱ मह़म़रा खऱनऩ। क़िऱऽिमधह़रुद्ऱ ऽवऽष्टि कि िपिऽिक़॥ भैरवा च मह़क़िा ऄसिऱण़ं ियंकरा। द्व़दशैव ति ऩम़ऽन प्ऱतरुत्थ़य य: पठे त्॥ न च व्य़ऽधभधवेत् तस्य रोगा रोग़त्प्रमिच्यते। ग्रह्य: सवेनिकीि़: स्यिनध च ऽवघ्ऱदद ज़यते॥ श़स्त्रोि मत हैं, की जो व्यऽि प्ऱतः भद्ऱ के आन

क अ श क क

 सोमव़र और शिक्रव़र की भद्ऱ को कल्य़णा,

श क

,

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क क

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क श

गए

ब़रह ऩमों क़ स्मरण करत़ है ईसे दकसा भा व्य़ऽध क़ भय नहीं होत़ और ईसके सभा ग्रह ऄनिकीि हो ज़ते हैं। ईसके क़यों में कोइ ऽवघ्न नहीं होत़। यिद्ध में वह ऽवजय प्ऱप्त करत़ है, जो ऽवऽध पीवधक ऽवऽष्ट क़ पीजन करत़ है, ऽनःसंदह े ईसके सभा क़यध ऽसद्ध हो ज़ते हैं। भद्ऱ के व्रत की श़स्त्रोि ऽवऽध : ऽजस ददन भद्ऱ हो, ईस ददन व्रत-ईपव़स करऩ च़ऽहए। यदद ऱऽि के समय भद्ऱ हो तो दो ददन तक ईपव़स करऩ च़ऽहए। स्त्रा ऄथव़ पिरुष दोनो के ऽिए व्रत ऄऽधक ईपयिि होत़ हैं।

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व्रत के ददन व्रता को सवोषऽध यिि जि से स्ऩन करऩ च़ऽहए य़ नदा पर ज़कर ऽवऽध पीवक ध स्ऩन करऩ च़ऽहए। देवत़ तथ़ ऽपतरों क़ तपधण एवं पीजन

आस प्रक़र सिह भद्ऱव्रत करने के पिय़त ऄंत में ईद्य़पन करऩ च़ऽहए। िोहे की पाठ पर भद्ऱ की मीर्णत

कर कि श़ की भद्ऱ की मीर्णत बऩयें और गंध, पिष्प, धीप,

पिष्प अदद से ऽवऽधवत पीजन कर प्ऱथधऩ करना च़ऽहए।

दाप, नैवेद्य अदद से ईसकी पीजन करऩ च़ऽहए। भद्ऱ के

िोह़, बैि, ऽति, बछड़़ सऽहत क़िा ग़य, क़ि़ कं बि

ब़रह ऩमों से 108 ब़र हवन करके ब्ऱह्मण को भोजन

और यथ़शऽि दऽिण़ के स़थ वह मीर्णत ब्ऱह्मण को द़न करना च़ऽहए य़ ईसक़ ऽवसजधन कर दें। आस प्रक़र जो भा व्यऽि भद्ऱ व्रत एवं तदंतर ऽवऽध पीवधक व्रत क़ ईद्य़पन करत़ है ईसके दकसा भा क़यध में ऽवघ्न नहीं

करव़ऩ च़ऽहए स्वयं भा ऽति ऽमऽश्रत भोजन ग्रहण करऩ च़ऽहए। पीजन की सम़प्ता पर आस मन्ि से प्ऱथधऩ करना च़ऽहए।

छ़य़ सीयधसिते देऽव ऽवऽष्टररष्ट़थध द़ऽयना। पीऽजत़ऽस यथ़शक्त्य़ भद्रे भद्रप्रद़ भव॥

स्थ़ऽपत करना च़ऽहए, क़ि़ वस्त्र ऄर्णपत करके गन्ध,

पड़त़ तथ़ ईसे प्रेत, ग्रह, भीत, ऽपश़च, ड़दकना, श़दकना, यि, गंधवध, ऱिस अदद असिरा शऽि से दकसा प्रक़र क़ कष्ट नहीं हो सकत़।

100 से ऄऽधक जैन यंि हम़रे यह़ं जैन धमध के सभा प्रमिख, दििधभ एवं शाघ्र प्रभ़वश़िा यंि त़म्र पि, ऽसिवर (च़ंदा) ओर गोल्ड (सोने) मे ईपिब्ध हैं।

मंि ऽसद्ध यंि गिरुत्व क़य़धिय द्व़ऱ ऽवऽभन्न प्रक़र के यंि कोपर त़म्र पि, ऽसिवर (च़ंदा) ओर गोल्ड (सोने) मे ऽवऽभन्न प्रक़र की समस्य़ के ऄनिस़र बनव़ के मंि ऽसद्ध पीणध प्ऱणप्रऽतऽष्ठत एवं चैतन्य यिि दकये ज़ते है. ऽजसे स़ध़रण (जो पीज़-प़ठ नहा ज़नते य़ नहा कसकते) व्यऽि ऽबऩ दकसा पीज़ ऄचधऩ-ऽवऽध ऽवध़न ऽवशेष ि़भ प्ऱप्त कर सकते है. ऽजस मे प्रऽचन यंिो सऽहत हम़रे वषो के ऄनिसंध़न द्व़ऱ बऩए गये यंि भा सम़ऽहत है. आसके ऄिव़ अपकी अवश्यकत़ ऄनिश़र यंि बनव़ए ज़ते है. गिरुत्व क़य़धिय द्व़ऱ ईपिब्ध कऱये गये सभा यंि ऄखंऽडत एवं २२ गेज शिद्ध कोपर (त़म्र पि)- 99.99 टच शिद्ध ऽसिवर (च़ंदा) एवं 22 के रे ट गोल्ड (सोने) मे बनव़ए ज़ते है. यंि के ऽवषय मे ऄऽधक ज़नक़रा के ऽिये हेति सम्पकध करे

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गुरुत्व ज्योतिष

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हदशाशूर वव ाय

 ववजम ठाकुय हदशाशर ू के ववषम भें शास्िोक्त भत: शनौ

डरे त्मजेत्ऩूवाा, दक्षऺणाॊ

हदशाॊ गुयौ।

सूमे शुक्रे ऩस्श् भाम् , फुधे बौभे तथोत्तयभ ्॥

अथायि: शतनवाय औय

डरवाय अथाात सोभवाय को ऩूवा

हदशा को हदशाशूर होती हैं। फह ृ स्ऩततवाय (गुरुवाय) को दक्षऺण हदशा भें , इतवाय (यवववाय) औय शुक्रवाय को ऩस्श् भ भें औय भॊगर तथा फुधवाय को उत्तय हदशा भें शूर होती हैं। इस सरमे स्जस वाय को स्जस हदशा भें हदशाशूर हो उस हदशा भें मािा नहीॊ कयनी

अडम भत से:

सोभ शतन य ऩूयफ ना

हदशाशर ू ऩरयहाय के सरए 

यवववाय को घी ऩीकय।



सोभवाय को दध ू ऩीकय।

    

ाहहमे।

ारू। भॊगर फुध उत्तयहदससकार॥

यवव शुक्र जो ऩस्श् भ जाम। हातन होम ऩथ सुख नहहॊ ऩाम॥ गुयौ दस्क्खन कये ऩमाना, फपय नहीॊ सभझो ताको आना॥

अथायि: सोभवाय एवॊ शतनवाय को ऩूयफ हदशा भें तथा भॊगर एवॊ फुधवाय को उत्तय हदशा भें मािा नहीॊ कयनी

ाहहमे। यवववाय एवॊ शुक्रवाय को ऩस्श् भ हदशा भें मािा

कयना सवादा हातनकायक होता है । गुरूवाय के हदन तो दक्षऺण हदशा भें मािा कयना अशुब है । मे हदशाशुर

कहराते है । शास्िोक्त भाडमता के अनुशाय हदशाशूर वारी हदशा भें मािा कयने से कामा ससिी नहीॊ होता|

भॊगरवाय को गुड खाकय। फुधवाय को ततर खाकय। गुरुवाय को दही खाकय। शुक्रवाय को जौ खाकय।

शतनवाय को उडद खाकय मािा कयने से हदशाशूर का दोष ऩरयहाय भाना जाता हैं।

हदशाशर ू ऩरयहाय के अडम उऩाम 

हदशाशूर ऩरयहाय के सरए



यवववाय को ऩान का दान।



सोभवाय को



भॊगरवाय को छाछ का दान।



फध ु वाय को ऩठु ऩ का दान।

  

द ॊ न का दान।

गयु वाय को दही का दान।

शक्र ु वाय को धत ृ (घी) का दान। शतनवाय

को

कारे

ततर

का

दान

कयने

से

हदशाशूर ऩरयहाय हो जाता हैं। ***

असऱी 1 मख ु ी से 14 मख ु ी रुद्राऺ

गुरुत्व कायायऱय भें सॊऩूणा प्राणप्रततस्ठठत एवॊ असरी 1 भुखी से 14 भुखी तक के रुराऺ उऩरब्द्ध हैं। ज्मोततष कामा से े़ जुडे फॊध/ु फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे ववशेष भूल्म ऩय यत्न, उऩयत्न मॊि, रुराऺ व अडम दर ा ु ब साभग्रीमाॊ एवॊ अडम सुववधाएॊ उऩरब्द्ध हैं। रुराऺ के ववषम भें अचधक जानकायी के सरए कामाारम भें सॊऩका कयें ।

प्रवशेष यंत्र :

हभायें महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने- ाॊहद-ताम्फे भें आऩकी आवश्मक्ता के अनश ु ाय फकसी बी बाषा/धभा

के मॊिो को आऩकी आवश्मक ड़डजाईन के अनुशाय २२ गेज शुि ताम्फे भें अखॊड़डत फनाने की ववशेष सुववधाएॊ उऩरब्द्ध हैं। अचधक जानकायी के सरए कामाारम भें सॊऩका कयें ।

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गुरुत्व ज्योतिष

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हदशाशूर भहत्वऩूणा मा कताव्म भहत्वऩूणा है ?

 ववजम ठाकुय एक फाय एक याजा के ऊऩय उसके प्रततद्वॊदी याजा

हदशा भें तो भैंने जफ होश सम्बारा हैं अऩने खेत ऩय

ने हभरा कय हदमा। याजा ने याज ज्मोततषी को फुरामा ाहहए।

जाता यहा हूॉ औय भेये वऩताजी से रेकय दादा ऩयदादा बी जाते यहे हैं। ज्मोततषी ने कहा अच्छा अऩना हाथ हदखा।

ज्मोततषी ने उत्तय हदमा भहायाज स्जस हदशा से हभरा

फकसान ने ज्मोततषी को अऩना हाथ उरटा हदखामा

हुआ हे वह हदशा ऩूवा हैं औय आज उस हदशा भें हदशाशूर हे , आज हभें उस हदशा भें नहीॊ जाना ाहहमे। ज्मोततषी

ज्मोततषी ने कहा सीधा कय के हदखाओ।

की फात को व़जीय फी

भें काट कय फयाफय कह यहा हे

पेराए। हभाये ऺेि भे साऺात सशवजी का वास हे हभ को

फक भहायाज पौयन हभरा कयो। याजा ने कहा नहीॊ हभ

फकसी च ज का डय नहीॊ हैं। वह फकसान जम भहाकार

को ज्मोततषी की फात भननी है । ज्मोततशी ने कहा हभ

फोर कय

औय उनसे ऩूछा फक इस वक्त हभें क्मा कयना

को इस सभम उरटी हदशा भें अथाात ऩस्श् भ हदशा भें जाना

ाहहए। औय वो ऩस्श् भ की औय

र हदए।

यास्ते भें उनका व़जीय फाय-फाय कह यहा था

फकसान फोरा हभ सबखायी नही हैं जो हाथ

रा गमा।

फकसान की फात से याजा को बी अकर आइ औय उसने भॊिी से कहा वाऩस

रो औय हभरा फोरो, याजा

ने बी जम भहकार का नाया रगा कय हभरा फोर हदमा

भहायज हभरा कयो। रेफकन व़जीय की फात को याजा ने

औय जीत गमा।

नहीॊ सुना।

नोट: हदशाशूर भाि से अऩने कताव्म से ऩीछे हटना कोयी

जा यह था। ज्मोततषी ने उसे योका औय कहाॉ आज इधय

से तनऩटने के सरए हदशाशूर का वव ाय त्माग कय अऩनी

यासते भें उडहें एक फकसान सभरा जो ऩूवा हदशा की औय

हदशाशूर है इधय भत जाओ । फकसान फोरा ऩॊड़डतजी इस

भूखत ा होती हैं। इस सरए आकस्स्भक प्रसॊगो एवॊ घटनाओॊ फुवि एवॊ वववेक से कामा कयना

ाहहए।

शतन ऩीिा तनवायक

सॊऩण ू ा प्राणप्रततस्ठठत 22 गेज शि ु स्टीर भें तनसभात अखॊड़डत ऩौरुषाकाय शतन मॊि

ऩरु ु षाकाय शतन मॊि (स्टीर भें ) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हे तु शतन की कायक धातु शि ु स्टीर(रोहे ) भें फनामा गमा हैं। स्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राप्त होता हैं। महद जडभ कॊु डरी भें शतन प्रततकूर होने ऩय व्मस्क्त को

अनेक कामों भें असपरता प्राप्त होती है , कबी व्मवसाम भें घटा, नौकयी भें ऩये शानी, वाहन दघ ा ना, गह ु ट ृ क्रेश आहद

ऩये शानीमाॊ फढ़ती जाती है ऐसी स्स्थततमों भें प्राणप्रततस्ठठत ग्रह ऩीिा तनवायक शतन मॊि की अऩने को व्मऩाय स्थान मा े़ घय भें स्थाऩना कयने से अनेक राब सभरते हैं। महद शतन की ढै मा मा साढ़े साती का सभम हो तो इसे अवश्म ऩूजना ाहहए। शतनमॊि के ऩूजन भाि से व्मस्क्त को भत्ृ मु, कजा, कोटा केश, जोडो का ददा , फात योग तथा रम्फे सभम के सबी

प्रकाय के योग से ऩये शान व्मस्क्त के सरमे शतन मॊि अचधक राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आहद के रोगों को ऩदौडनतत बी शतन द्वाया ही सभरती है अत् मह मॊि अतत उऩमोगी मॊि है स्जसके द्वाया शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है ।

मल् ू य: 1050 से 8200

गुरुत्व ज्योतिष

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भॊि ससि दर ा साभग्री ु ब

भॊि ससि भारा

हत्था जोडी- Rs- 730, 1450, 2800, 3700, 7300, 8200

स्पहटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250

ससमाय ससॊगी- Rs- 1050, 1900, 5500

सपेद

त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450

यक्त (रार)

कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,

भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above

दक्षऺणावतॉ शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900

ववधुत भारा - Rs- 100, 190

भोतत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900

ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460

भामा जार- Rs- 251, 551, 751

कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280

इडर जार- Rs- 251, 551, 751

हल्दी भारा - Rs- 150, 280

धन ववृ ि हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550)

तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370

घोडे की नार- Rs.351, 551, 751

नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above

ऩीरी कौड़िमाॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181

नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730

हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181

हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 190 280, 460, 730

रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111

भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above

नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-111

ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above

कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,

वैजमॊती भारा Rs- 100,190

गोभती

क्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101, 151, 201,

रुराऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450

गोभती

क्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से 550

भूल्म भें अॊतय छोटे से फिे आकाय के कायण हैं।

(अतत दर ा फिे आकाय भें 5 ग्राभ से 11 ग्राभ भें उऩरब्द्ध) ु ब

ॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640 ॊदन - Rs- 100, 190, 280

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श्री हनुभान मॊि शास्िों भें उल्रेख हैं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमद ा े व ने ब्रह्भा जी के आदे श ऩय हनुभान जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भैं हनुभान को सबी शास्ि का ऩूणा ऻान दॉ ग ू ा। स्जससे मह तीनोरोक भें सवा श्रेठठ वक्ता होंगे तथा शास्ि ऽवद्य़ भें इडहें भहायत हाससर होगी औय इनके सभन फरशारी औय

कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुशाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषों की ववसबडन फीभारयमों दयू होती हैं, इस मॊि

भें अद्भत ु शस्क्त सभाहहत होने के कायण व्मस्क्त की स्वप्न दोष, धातु योग, यक्त दोष, वीमा दोष, भूछाा, नऩुॊसकता इत्माहद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भें अत्मडत राबकायी हैं। अथाात मह मॊि ऩौरुष को ऩुठट कयता हैं। श्री हनुभान मॊि व्मस्क्त को सॊकट, वाद-वववाद, बूत-प्रेत, द्यीत फक्रमा, ववषबम, ोय बम, याज्म बम, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्माहद से

सॊकटो से यऺा कयता हैं औय ससवि प्रदान कयने भें सऺभ हैं। श्री हनभ ु ान मॊि के ववषम भें अचधक जानकायी के सरमे

गरु ु त्व कामाारम भें सॊऩका कयें ।

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सवा कामा ससवि कव स्जस व्मस्क्त को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे

भनोवाॊतछत सपरतामे एवॊ फकमे गमे कामा भें ससवि (राब) होती, उस व्मस्क्त को सवा कामा ससवि कव

अवश्म धायण कयना

कवि के िमख ु ऱाभ: सवा कामा ससवि कव

प्राप्त नहीॊ ाहहमे।

के द्व़ऱ सख ु सभवृ ि औय

नव ग्रहों के नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण कयता व्मस्क्त के जीवन से सवा प्रकाय के द:ु ख-दारयर का नाश हो कय सख ु -सौबाग्म एवॊ उडनतत प्रास्प्त होकय जीवन भे ससब प्रकाय के शब ु कामा ससि होते हैं। स्जसे धायण

कयने से व्मस्क्त महद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे ववृ ि होतत हैं औय महद नौकयी कयता होतो उसभे उडनतत होती हैं।  सवा कामा ससवि कव

के साथ भें सवयजन वशीकरण कव

के सभरे होने की वजह से धायण कताा

की फात का दस ू ये व्मस्क्तओ ऩय प्रबाव फना यहता हैं।  सवा कामा ससवि कव

के साथ भें अटि ऱक्ष्मी कव

के सभरे होने की वजह से व्मस्क्त ऩय सदा

भाॊ भहा रक्ष्भी की कृऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हैं। स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अठट रुऩ (१)- आहद

रक्ष्भी, (२)- धाडम रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)- गज रक्ष्भी, (५)- सॊतान रक्ष्भी, (६)- ववजम रक्ष्भी, (७)- ऽवद्य़ रक्ष्भी औय (८)- धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राप्त होता हैं।  सवा कामा ससवि कव

के साथ भें िंत्र रऺा कव

के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू

होती हैं, साथ ही नकायात्भक शस्क्तमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मस्क्त ऩय नहीॊ होता। इस कव

के प्रबाव से इषाा-द्वेष यखने वारे व्मस्क्तओ द्वाया होने वारे दठु ट प्रबावो से यऺा होती हैं।

 सवा कामा ससवि कव

के साथ भें शत्रु प्रवजय कव

के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊचधत

सभस्त ऩये शातनओ से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हैं। कव का

ाहकय कुछ नही त्रफगाि सकते।

अडम कव

के प्रबाव से शिु धायण कताा व्मस्क्त

के फाये भे अचधक जानकायी के सरमे कामाारम भें सॊऩका कये :

फकसी व्मस्क्त ववशेष को सवा कामा ससवि कव

दे ने नही दे ना का अॊततभ तनणाम हभाये ऩास सुयक्षऺत हैं।

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गुरुत्व ज्योतिष

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भॊि ससि ऩायद प्रततभा ऩायद श्री मॊि

21 Gram से 5.250 Kg तक

ऩायद रक्ष्भी गणेश

100 Gram

ऩायद रक्ष्भी नायामण

ऩायद रक्ष्भी नायामण

121 Gram

100 Gram

उऩरब्द्ध ऩायद सशवसरॊग

ऩायद सशवसरॊग+नॊहद

21 Gram से 5.250 Kg तक

101 Gram से 5.250 Kg

उऩरब्द्ध

तक उऩरब्द्ध

ऩायद दग ु ाा

82 Gram ऩायद हनुभान 2

100 Gram

ऩायद सशवजी

ऩायद कारी

75 Gram

37 Gram

ऩायद दग ु ाा

ऩायद सयस्वती

ऩायद सयस्वती

100 Gram

50 Gram

225 Gram

ऩायद हनुभान 3

125 Gram

ऩायद हनुभान 1

100 Gram

ऩायद कुफेय

100 Gram

हभायें महाॊ सबी प्रकाय की भॊि ससि ऩायद प्रततभाएॊ, सशवसरॊग, वऩयासभड, भारा एवॊ गहु टका शि ु ऩायद भें उऩरब्द्ध हैं।

त्रफना भॊि ससि की हुई ऩायद प्रततभाएॊ थोक व्माऩायी भल् ू म ऩय उऩरब्द्ध हैं। े़ ज्मोततष, यत्न व्मवसाम, ऩज ू ा-ऩाठ इत्माहद ऺेि से जड ु े फॊध/ु फहन के सरमे हभायें ववशेष मॊि, कव , यत्न, रुराऺ व अडम दर ु ब साभग्रीमों ऩय ववशेष सत्रु फधाएॊ उऩरब्द्ध हैं। अचधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।

गुरुत्व ज्योतिष

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भॊि ससि गोभतत क्र

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GURUTVA KARYALAY Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785. Gomti Chakra 11 Pcs+11 Pcs Gomti Chakra 11 Pcs Gomati Email Us: Rakt Gunja+11 White Cowrie.. Chakra Sudarshan Chakra...... [email protected] 10% Off Rs. 325.00 30% Off Rs. 199.00 [email protected] Offer Price: Rs. 292.50 Offer Price: Rs. 139.30 Visit Us:www.gurutvakaryalay.com

गुरुत्व ज्योतिष

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हभाये ववशेष मॊि व्याऩार वप्रृ ि यंत्र: हभाये अनुबवों के अनुसाय मह मॊि व्माऩाय ववृ ि एवॊ ऩरयवाय भें सुख सभवृ ि हे तु ववशेष प्रबावशारी हैं।

भभू मऱाभ यंत्र: बूसभ, बवन, खेती से सॊफॊचधत व्मवसाम से जुिे रोगों के सरए बूसभराब मॊि ववशेष राबकायी ससि हुवा हैं।

िंत्र रऺा यंत्र: फकसी शिु द्व़ऱ फकमे गमे भॊि-तॊि आहद के प्रबाव को दयू कयने एवॊ बत ू , प्रेत नज़य आहद फयु ी शस्क्तमों से यऺा हे तु ववशेष प्रबावशारी हैं।

आकश्स्मक धन िाश्प्ि यंत्र: अऩने नाभ के अनस ु ाय ही भनठु म को आकस्स्भक धन प्रास्प्त हे तु परप्रद हैं इस मॊि के ऩूजन से साधक को अप्रत्मासशत धन राब प्राप्त होता हैं।

ाहे वह धन राब व्मवसाम से हो, नौकयी से हो, धन-

सॊऩस्त्त इत्माहद फकसी बी भाध्मभ से मह राब प्राप्त हो सकता हैं। हभाये वषों के अनुसॊधान एवॊ अनुबवों से हभने आकस्स्भक धन प्रास्प्त मॊि से शेमय ट्रे ड़डॊग, सोने- ाॊदी के व्माऩाय इत्माहद सॊफॊचधत ऺेि से जुडे रोगो को ववशेष रुऩ से आकस्स्भक धन राब प्राप्त होते दे खा हैं। आकस्स्भक धन प्रास्प्त मॊि से ववसबडन स्रोत से धनराब बी सभर सकता हैं।

ऩदौन्नति यंत्र: ऩदौडनतत मॊि नौकयी ऩैसा रोगो के सरए राबप्रद हैं। स्जन रोगों को अत्माचधक ऩरयश्रभ एवॊ श्रेठठ कामा कयने ऩय बी नौकयी भें उडनतत अथाात प्रभोशन नहीॊ सभर यहा हो उनके सरए मह ववशेष राबप्रद हो सकता हैं।

रत्नेचवरी यंत्र: यत्नेश्वयी मॊि हीये -जवाहयात, यत्न ऩत्थय, सोना- ाॊदी, ज्वैरयी से सॊफॊचधत व्मवसाम से जडु े रोगों के सरए अचधक प्रबावी हैं। शेय फाजाय भें सोने- ाॊदी जैसी फहुभूल्म धातुओॊ भें तनवेश कयने वारे रोगों के सरए बी ववशेष राबदाम हैं।

भभू म िाश्प्ि यंत्र: जो रोग खेती, व्मवसाम मा तनवास स्थान हे तु उत्तभ बसू भ आहद प्राप्त कयना

ाहते हैं, रेफकन

उस कामा भें कोई ना कोई अि न मा फाधा-ववघ्न आते यहते हो स्जस कायण कामा ऩण ू ा नहीॊ हो यहा हो, तो उनके सरए बूसभ प्रास्प्त मॊि उत्तभ परप्रद हो सकता हैं।

गह ु ान, ओफपस, पैक्टयी आहद के सरए बवन प्राप्त कयना ृ िाश्प्ि यंत्र: जो रोग स्वमॊ का घय, दक

ाहते हैं। मथाथा

प्रमासो के उऩयाॊत बी उनकी असबराषा ऩण ू ा नहीॊ हो ऩायही हो उनके सरए गह ृ प्रास्प्त मॊि ववशेष उऩमोगी ससि हो सकता हैं।

कैऱास धन रऺा यंत्र: कैरास धन यऺा मॊि धन ववृ ि एवॊ सुख सभवृ ि हे तु ववशेष परदाम हैं। आचथाक राब एवॊ सख ा रक्ष्भी मॊि ु सभवृ ि हे तु 19 दर ु ब

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ववसबडन रक्ष्भी मॊि

श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि)

भहारक्ष्भमै फीज मॊि

कनक धाया मॊि

श्री मॊि (भॊि यहहत)

भहारक्ष्भी फीसा मॊि

वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान

श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सहहत)

रक्ष्भी दामक ससि फीसा मॊि

श्री श्री मॊि

श्री मॊि (फीसा मॊि)

रक्ष्भी दाता फीसा मॊि

अॊकात्भक फीसा मॊि

श्री मॊि श्री सक् ू त मॊि

रक्ष्भी फीसा मॊि

ज्मेठठा रक्ष्भी भॊि ऩज ू न मॊि

श्री मॊि (कुभा ऩठृ ठीम)

रक्ष्भी गणेश मॊि

ससवि दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)

(रसरता भहात्रिऩयु सड ु दमै श्री भहारक्ष्भमैं श्रीभहामॊि)

धनदा मॊि >> Shop Online | Order Now

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गुरुत्व ज्योतिष

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सवाससविदामक भुहरका

इस भहु रका भें भॊग ू े को शब ु भह ु ू ता भें त्रिधातु (सव ु णा+यजत+ताॊफें) भें जिवा कय उसे शास्िोक्त ववचधववधान से ववसशठट तेजस्वी भॊिो द्व़ऱ सवाससविदामक फनाने हे तु प्राण-प्रततस्ठठत एवॊ ऩण ू ा

त ै डम मक् ु त

फकमा जाता हैं। इस भहु रका को फकसी बी वगा के व्मस्क्त हाथ की फकसी बी उॊ गरी भें धायण कय सकते हैं। महॊ भहु रका कबी फकसी बी स्स्थती भें अऩववि नहीॊ होती। इस सरए कबी भहु रका को

उतायने की आवश्मक्ता नहीॊ हैं। इसे धायण कयने से व्मस्क्त की सभस्माओॊ का सभाधान होने रगता

हैं। धायणकताा को जीवन भें सपरता प्रास्प्त एवॊ उडनतत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हैं औय जीवन भें सबी प्रकाय की ससविमाॊ बी शीध्र प्राप्त होती हैं।

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(नोि: इस भुहरका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फुया प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हैं।)

सवयभसप्रिदायक मद्रु द्रका के प्रवषय में अचधक जानकारी के भऱये हे िु समऩकय करें ।

ऩतत-ऩत्नी भें करह तनवायण हे तु महद ऩरयवायों भें सख ु -सवु वधा के सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भें ऩतत-ऩत्नी के त्रफ भे करह होता यहता हैं, तो घय के स्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गरु ु त्व कामाारत द्व़ऱ शास्िोक्त ववचध-ववधान से भॊि ससि प्राणप्रततस्ठठत ऩूणा

त ै डम मुक्त वशीकयण कव

एवॊ गह ृ करह नाशक ड़डब्द्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें त्रफना फकसी

ऩूजा, ववचध-ववधान से आऩ ववशेष राब प्राप्त कय सकते हैं। महद आऩ भॊि ससि ऩतत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गह ृ करह नाशक ड़डब्द्फी फनवाना

ाहते हैं, तो सॊऩका आऩ कय सकते हैं।

100 से अचधक जैन मॊि हभाये महाॊ जैन धभा के सबी प्रभुख, दर ा एवॊ शीघ्र प्रबावशारी मॊि ताम्र ऩि, ु ब ससरवय ( ाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे उऩरब्द्ध हैं।

हभाये महाॊ सबी प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय ( ाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है । इसके

अरावा आऩकी आवश्मकता अनस ु ाय आऩके द्व़ऱ प्राप्त (च ि, मॊि, ड़िज़ाईन) के अनरु ु ऩ मॊि बी

फनवाए जाते है. गुरुत्व कामाारम द्व़ऱ उऩरब्द्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊड़डत एवॊ 22 गेज शि ु कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 ट

शि ु ससरवय ( ाॊदी) एवॊ 22 केये ट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है । मॊि के

ववषम भे अचधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयें ।

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गुरुत्व ज्योतिष

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द्व़दश मह़ यंि यंि को ऄऽत प्ऱऽचन एवं दििधभ यंिो के संकिन से हम़रे वषो के ऄनिसंध़न द्व़ऱ बऩय़ गय़ हैं।  सहस्त्ऱिा िक्ष्मा अबद्ध यंि  परम दििधभ वशाकरण यंि,  अकऽस्मक धन प्ऱऽप्त यंि

 भ़ग्योदय यंि  मनोव़ंऽछत क़यध ऽसऽद्ध यंि  ऱज्य ब़ध़ ऽनवुऽत्त यंि  गुहस्थ सिख यंि  शाघ्र ऽवव़ह संपन्न गौरा ऄनंग यंि

 पीणध पौरुष प्ऱऽप्त क़मदेव यंि  रोग ऽनवुऽत्त यंि  स़धऩ ऽसऽद्ध यंि  शिि दमन यंि

ईपरोि सभा यंिो को द्व़दश मह़ यंि के रुप में श़स्त्रोि ऽवऽध-ऽवध़न से मंि ऽसद्ध पीणध प्ऱणप्रऽतऽष्ठत एवं चैतन्य यिि दकये ज़ते हैं। ऽजसे स्थ़पात कर ऽबऩ दकसा पीज़ ऄचधऩ-ऽवऽध ऽवध़न ऽवशेष ि़भ प्ऱप्त कर सकते हैं।

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 क्मा आऩके फच् े कुसॊगती के सशकाय हैं?  क्मा आऩके फच् े आऩका कहना नहीॊ भान यहे हैं?  क्मा आऩके फच् े घय भें अशाॊतत ऩैदा कय यहे हैं? घय ऩरयवाय भें शाॊतत एवॊ फच् े को कुसॊगती से छुडाने हे तु फच् े के नाभ से गुरुत्व कामाारत

द्व़ऱ शास्िोक्त ववचध-ववधान से भॊि ससि प्राण-प्रततस्ठठत ऩण ू ा

ैतडम मक् ु त वशीकयण कव

एवॊ एस.एन.ड़डब्द्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें स्थावऩत कय अल्ऩ ऩूजा, ववचध-ववधान से आऩ ववशेष राब प्राप्त कय सकते हैं। महद आऩ तो आऩ भॊि ससि वशीकयण कव एस.एन.ड़डब्द्फी फनवाना

एवॊ

ाहते हैं, तो सॊऩका इस कय सकते हैं।

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

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गुरुत्व ज्योतिष

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जनवयी-2017 भाससक ऩॊ ाॊग द्रद

वार माह ऩऺ तिचथ समाश्प्ि

नऺत्र

समाश्प्ि

योग

समाश्प्ि

करण

समाश्प्ि

िंद्र राभश

समाश्प्ि

1

3

15:33:42

16:01:49

09:26:12

15:33:42

28:29:00

2

4

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08:33:56

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-

3

5

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17:17:17

07:21:58

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4

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15:07:10

17:14:40

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5

7

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8

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9

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15

3

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16

4

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17

5

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14

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21:50:12

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1

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2

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3

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जनवयी-2017 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय द्रद

वार

माह

ऩऺ

तिचथ

समाश्प्ि

िमुख व्रि-त्योहार

1

3

15:33:42 नववषध प्ऱरं भ,

2

4

15:51:45

3

5

15:42:36

4

6

15:07:10 ऄन्नरूप़ षष्ठा (प.बंग़ि), स्कन्दषष्ठा व्रत

5

7

14:01:42 म़तधण्ड सप्तमा व्रत, ईभय सप्तमा व्रत

6

8

12:26:13

7

9

10:22:35 -

8

10

07:52:40

9

12

26:02:06

10

13

22:54:38 प्रदोष व्रत, घुतद़न ियोदशा

11

14

19:52:46

क ग श



, वरदऽवऩयक चतिथी व्रत,

श्रादिग़धष्टमा व्रत, श्राऄन्नपीण़धष्टमा व्रत, श़कम्भरा नवऱि-मह़पीज़ प्ऱरम्भ,

श ब

श ,

एक श क

, क श

बब

श -श

(ओ .), एक श

( .

,

श,

15

17:04:56

थ,

.), प्रय़ग मं कि म्भ स्ऩन श

श,

श,

अ क , श



स्ऩन-द़न हेति ईत्तम पौषा पीर्णणम़, 12

एक श

,शक

,

श़कम्भरा जयन्ता, पिष्य़ऽभषेक य़ि़, कौऽशकी-स्ऩन, ऄम्ब़जा क़ प्ऱकट्डोत्सव (गिजऱत), म़घ स्ऩन-ऽनयम प्ऱरम्भ, प्रय़गऱज में मह़कि म्भ क़ पवध-स्ऩन,

13

1

14:40:31

पऽवि म़घ म़स प्ऱरं भ, म़घ में क़शा एवं प्रय़ग के ऽिवेणा-संगम में म़सपयधन्त स्ऩन मह़पिण्यद़यक, धनि (खर) म़स सम़प्त मकर संक्ऱऽन्त क़ पिण्यक़ि सीयोदय से सीय़धस्त तक, ऽखचड़ा

14

2

12:49:49 (ई.भ़रत), ऽति संक्ऱऽन्त, ऽशऽशर संक्ऱऽन्त, पोंगि (द.भ़.), तऽमि

नववष़धरम्भ, सीयध ईत्तऱयण, गंग़स़गर य़ि़, प्रय़गऱज में

गुरुत्व ज्योतिष

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मह़कि म्भ पवध क़ प्ऱरं भ श़हा स्ऩन, म़घ ऽबहू (ऄसम), 15

3

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16

4

11:14:54

17

5

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18

6

12:49:15

19

7

14:37:47 पिि सप्तमा व्रत, भ़नि-सप्तमा (सीयधग्रहणतिल्य फिप्रद), श्राऱम़नन्द सप्तमा,

20

8

16:54:26 क

21

9

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22

10

22:00:27

23

11

24:21:42 षऽतति़ एक़दशा व्रत, प्रय़ग मह़कि म्भ क़ पवध-स्ऩन

24

12

26:23:14 ऽति द्व़दशा,

25

13

27:56:37

26

14

29:02:48 म़ऽसक ऽशवऱऽि व्रत, ऽशव चतिदश ध ा,





15

29:37:04





थ , मह़म़घा चतिथी,



09:50 क

, ऄन्वष्टक़ श्ऱद्ध,



श (

अ 27

,



)

,

-





, देव ऽपतुक़यध

हेति म़घा ऄम़वस्य़, मौना ऄम़वस क़ स्ऩन, ताथधऱज प्रय़ग में मह़कि म्भ मह़पवध श़हा स्ऩन, ब्रह्मस़ऽविा व्रत, द्व़परयिग़दद ऽतऽथ, ऽिवेणा ऄम़वस्य़ (ओड़ास़),

28

1

29:45:04 गिप्त ऽशऽशर नवऱि प्ऱरं भ,

29

2

29:25:51

30

3

28:44:07

गौरा तुताय़, गौरा ताज व्रत, वरदऽवऩयक चतिथी व्रत, ऽति चतिथी, कि न्द चतिथी, ईम़ चतिथी, ऽिपिऱ चतिथी, ढि ऽण्ढऽवऩयक चतिथी,

31

4

27:41:44

थ , अग क चतिथी, ख 09:21

थ,



क थ

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सॊऩूणा प्राणप्रततस्ठठत 22 गेज शुि स्टीर भें तनसभात अखॊड़डत

ऩुरुषाकार शतन यंत्र

ऩरु ु षाकाय शतन मॊि (स्टीर भें ) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हे तु शतन की कायक धातु शि ु स्टीर(रोहे ) भें फनामा गमा हैं। स्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राप्त होता हैं। महद

जडभ कॊु डरी भें शतन प्रततकूर होने ऩय व्मस्क्त को अनेक कामों भें असपरता प्राप्त होती है , कबी व्मवसाम भें घटा, नौकयी भें ऩये शानी, वाहन दघ ा ना, गहृ क्रेश आहद ऩये शानीमाॊ फढ़ती ु ट

जाती है ऐसी स्स्थततमों भें प्राणप्रततस्ठठत ग्रह ऩीिा तनवायक शतन मॊि की अऩने को व्मऩाय े़ स्थान मा घय भें स्थाऩना कयने से अनेक राब सभरते हैं। महद शतन की ढै मा मा साढ़े साती का सभम हो तो इसे अवश्म ऩूजना

ाहहए। शतनमॊि के ऩूजन भाि से व्मस्क्त को भत्ृ मु, कजा,

कोटा केश, जोडो का ददा , फात योग तथा रम्फे सभम के सबी प्रकाय के योग से ऩये शान व्मस्क्त के सरमे शतन मॊि अचधक राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आहद के रोगों को ऩदौडनतत बी शतन

द्व़ऱ ही सभरती है अत् मह मॊि अतत उऩमोगी मॊि है स्जसके द्व़ऱ शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है ।

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सॊऩूणा प्राणप्रततस्ठठत

22 गेज शुि स्टीर भें तनसभात अखॊड़डत

शतन तैततसा मॊि

शतनग्रह से सॊफॊचधत ऩीडा के तनवायण हे तु ववशेष राबकायी मॊि।

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गुरुत्व ज्योतिष

-2017

77

नवयत्न जड़ित श्री मॊि

शास्ि व न के अनुसाय शुि सुवणा मा यजत भें तनसभात श्री मॊि के

ायों औय महद

नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न जड़ित श्री मॊि कहराता हैं। सबी यत्नो को उसके तनस्श् त स्थान ऩय जि कय रॉकेट के रूऩ भें धायण कयने से व्मस्क्त को अनॊत एश्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रास्प्त होती हैं। व्मस्क्त को एसा आबास होता हैं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हैं। नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहों की अशब ु दशा का धायणकयने वारे व्मस्क्त ऩय प्रबाव नहीॊ होता हैं।

गरे भें होने के कायण मॊि ऩववि यहता हैं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हैं, वह गॊगा जर के सभान ऩववि होता हैं। इस सरमे इसे सफसे

तेजस्वी एवॊ परदातम कहजाता हैं। जैसे अभत ृ से उत्तभ कोई औषचध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रास्प्त के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भें नहीॊ हैं एसा शास्िोक्त व न हैं। इस

प्रकाय के नवयत्न जड़ित श्री मॊि गरू ु त्व कामाारम द्व़ऱ शब ु भह ु ू ता भें प्राण प्रततस्ठठत कयके फनावाए जाते हैं। Rs: 2350, 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 तक

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गुरुत्व ज्योतिष

78

-2017

भॊि ससि वाहन दघ ा ना नाशक भारुतत मॊि ु ट

ऩौयाखणक ग्रॊथो भें उल्रेख हैं की भहाबायत के मि ु के सभम अजन ुा के यथ के अग्रबाग ऩय भारुतत ध्वज एवॊ

भारुतत मडि रगा हुआ था। इसी मॊि के प्रबाव के कायण सॊऩण ू ा मि ु के दौयान हज़ायों-राखों प्रकाय के आग्नेम अस्िशस्िों का प्रहाय होने के फाद बी अजन ुा का यथ जया बी ऺततग्रस्त नहीॊ हुआ। बगवान श्री कृठण भारुतत मॊि के इस अद्भत ा नाग्रस्त कैसे हो ु ट ु यहस्म को जानते थे फक स्जस यथ मा वाहन की यऺा स्वमॊ श्री भारुतत नॊदन कयते हों, वह दघ

सकता हैं। वह यथ मा वाहन तो वामव े ा। ु ेग से, तनफााचधत रुऩ से अऩने रक्ष्म ऩय ववजम ऩतका रहयाता हुआ ऩहुॊ ग इसी सरमे श्री कृठण नें अजुन ा के यथ ऩय श्री भारुतत मॊि को अॊफकत कयवामा था। स्जन रोगों के स्कूटय, काय, फस, ट्रक इत्माहद वाहन फाय-फाय दघ ा ना ग्रस्त हो यहे हो!, अनावश्मक वाहन को ु ट

नुऺान हो यहा हों! उडहें हानी एवॊ दघ ा ना से यऺा के उद्देश्म से अऩने वाहन ऩय भॊि ससि श्री भारुतत मॊि अवश्म ु ट रगाना

ाहहए। जो रोग ट्राडस्ऩोहटां ग (ऩरयवहन) के व्मवसाम से जुडे हैं उनको श्रीभारुतत मॊि को अऩने वाहन भें अवश्म

स्थावऩत कयना

ाहहए, क्मोफक, इसी व्मवसाम से जुडे सैकडों रोगों का अनुबव यहा हैं की श्री भारुतत मॊि को स्थावऩत

कयने से उनके वाहन अचधक हदन तक अनावश्मक ख ो से एवॊ दघ ा नाओॊ से सुयक्षऺत यहे हैं। हभाया स्वमॊका एवॊ अडम ु ट

ऽवद्व़नो का अनुबव यहा हैं, की स्जन रोगों ने श्री भारुतत मॊि अऩने वाहन ऩय रगामा हैं, उन रोगों के वाहन फडी से फडी दघ ा नाओॊ से सुयक्षऺत यहते हैं। उनके वाहनो को कोई ववशेष नुक्शान इत्माहद नहीॊ होता हैं औय नाहीॊ अनावश्मक ु ट रुऩ से उसभें खयाफी आतत हैं।

वास्िु ियोग में मारुति यंत्र: मह भारुतत नॊदन श्री हनुभान जी का मॊि है । महद कोई जभीन त्रफक नहीॊ यही हो, मा उस

ऩय कोई वाद-वववाद हो, तो इच्छा के अनुरूऩ वहॉ जभीन उच त भूल्म ऩय त्रफक जामे इस सरमे इस भारुतत मॊि का प्रमोग फकमा जा सकता हैं। इस भारुतत मॊि के प्रमोग से जभीन शीघ्र त्रफक जाएगी मा वववादभुक्त हो जाएगी। इस सरमे मह मॊि दोहयी शस्क्त से मुक्त है ।

भारुतत मॊि के ववषम भें अचधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका कयें । मल् ू य Rs- 255 से 10900 िक

श्री हनुभान मॊि

शास्िों भें उल्रेख हैं की श्री हनभ ा े व ने ब्रह्भा जी के आदे श ऩय ु ान जी को बगवान सम ू द

हनुभान जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भैं हनुभान को सबी शास्ि का ऩूणा ऻान दॉ ग ू ा। स्जससे मह तीनोरोक भें सवा श्रेठठ वक्ता होंगे तथा शास्ि ऽवद्य़ भें इडहें भहायत हाससर होगी औय इनके सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुसाय हनभ ु ान मॊि की आयाधना से ऩरु ु षों की ववसबडन

फीभारयमों दयू होती हैं, इस मॊि भें अद्भत ु शस्क्त सभाहहत होने के कायण व्मस्क्त की स्वप्न दोष, धातु योग, यक्त दोष, वीमा दोष, भछ ू ाा, नऩॊस ु कता इत्माहद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भें अत्मडत राबकायी हैं। अथाात मह मॊि ऩौरुष को ऩठु ट कयता हैं। श्री हनभ ु ान मॊि व्मस्क्त को सॊकट, वाद-वववाद, बत ू -प्रेत, द्यीत फक्रमा, ववषबम,

ोय बम, याज्म बम,

भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्माहद से सॊकटो से यऺा कयता हैं औय ससवि प्रदान कयने भें सऺभ हैं।

श्री हनभ ु ान मॊि के ववषम भें अचधक जानकायी के सरमे गरु ु त्व कामाारम भें सॊऩका कयें । मल् ू य Rs- 730 से 10900 िक

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गुरुत्व ज्योतिष

79

-2017

प्रवभभन्न दे विाओं के यंत्र गणेश यंि गणेश यंि (संपीणध बाज मंि सऽहत) गणेश ऽसद्ध यंि एक़िर गणपऽत यंि

मह़मुत्यिंजय यंि ऱम रि़ यंि ऱज मह़मुत्यिंजय कवच यंि ऱम यंि मह़मुत्यिंजय पीजन यंि द्व़दश़िर ऽवष्णि मंि पीजन यंि मह़मुत्यिंजय यिि ऽशव खप्पर म़ह़ ऽशव ऽवष्णि बास़ यंि यंि हररद्ऱ गणेश यंि ऽशव पंच़िरा यंि गरुड पीजन यंि कि बेर यंि ऽशव यंि हचत़मणा यंि ऱज श्रा द्व़दश़िरा रुद्र पीजन यंि ऄऽद्वताय सवधक़म्य ऽसऽद्ध ऽशव यंि हचत़मणा यंि दत्त़िय यंि नुहसह पीजन यंि स्वण़धकषधण़ भैरव यंि दत्त यंि पंचदेव यंि हनिम़न पीजन यंि अपदिद्ध़रण बटिक भैरव यंि संत़न गोप़ि यंि हनिम़न यंि बटिक यंि श्रा कु ष्ण ऄष्ट़िरा मंि पीजन यंि संकट मोचन यंि व्यंकटेश यंि कु ष्ण बास़ यंि वार स़धन पीजन यंि क़तधवाय़धजिधन पीजन यंि सवध क़म प्रद भैरव यंि दऽिण़मीर्णत ध्य़नम् यंि मनोक़मऩ पीर्णत एवं कष्ट ऽनव़रण हेति ऽवशेष यंि व्य़प़र वुऽद्ध क़रक यंि ऄमुत तत्व संजावना क़य़ कल्प यंि िय त़पोंसे मिऽि द़त़ बास़ यंि व्य़प़र वुऽद्ध यंि ऽवजयऱज पंचदशा यंि मधिमेह ऽनव़रक यंि व्य़प़र वधधक यंि ऽवद्य़यश ऽवभीऽत ऱज सम्म़न प्रद ऽसद्ध ज्वर ऽनव़रण यंि बास़ यंि व्य़प़रोन्नऽत क़रा ऽसद्ध यंि सम्म़न द़यक यंि रोग कष्ट दररद्रत़ ऩशक यंि भ़ग्य वधधक यंि सिख श़ंऽत द़यक यंि रोग ऽनव़रक यंि स्वऽस्तक यंि ब़ि़ यंि तऩव मिि बास़ यंि सवध क़यध बास़ यंि ब़ि़ रि़ यंि ऽवद्यित म़नस यंि क़यध ऽसऽद्ध यंि गभध स्तम्भन यंि गुह किह ऩशक यंि सिख समुऽद्ध यंि पिि प्ऱऽप्त यंि किेश हरण बऽत्तस़ यंि सवध ररऽद्ध ऽसऽद्ध प्रद यंि प्रसीत़ भय ऩशक यंि वशाकरण यंि सवध सिख द़यक पैंसरठय़ यंि प्रसव-कष्टऩशक पंचदशा यंि मोऽहऽन वशाकरण यंि ऊऽद्ध ऽसऽद्ध द़त़ यंि श़ंऽत गोप़ि यंि कणध ऽपश़चना वशाकरण यंि सवध ऽसऽद्ध यंि ऽिशीि बाश़ यंि व़त़धिा स्तम्भन यंि स़बर ऽसऽद्ध यंि पंचदशा यंि (बास़ यंि यिि च़रों प्रक़रके ) व़स्ति यंि श़बरा यंि बेक़रा ऽनव़रण यंि श्रा मत्स्य यंि ऽसद्ध़श्रम यंि षोडशा यंि व़हन दिघधटऩ ऩशक यंि ज्योऽतष तंि ज्ञ़न ऽवज्ञ़न प्रद ऽसद्ध बास़ ऄडसरठय़ यंि प्रेत-ब़ध़ ऩशक यंि यंि ब्रह्म़ण्ड स़बर ऽसऽद्ध यंि ऄस्साय़ यंि भीत़दा व्य़ऽधहरण यंि कि ण्डऽिना ऽसऽद्ध यंि ऊऽद्ध क़रक यंि कष्ट ऽनव़रक ऽसऽद्ध बास़ यंि क्ऱऽन्त और श्रावधधक चौंतास़ यंि मन व़ंऽछत कन्य़ प्ऱऽप्त यंि भय ऩशक यंि श्रा िेम कल्य़णा ऽसऽद्ध मह़ यंि ऽवव़हकर यंि स्वप्न भय ऽनव़रक यंि ज्ञ़न द़त़ मह़ यंि िि ऽवघ्न ऽनव़रक यंि कि दुऽष्ट ऩशक यंि क़य़ कल्प यंि िि योग यंि श्रा शिि पऱभव यंि दाध़धयि ऄमुत तत्व संजावना यंि दररद्रत़ ऽवऩशक यंि शिि दमऩणधव पीजन यंि

गुरुत्व ज्योतिष

-2017

80

भॊि ससि ववशेष दै वी मॊि सचू अद्य शऽि दिग़ध बास़ यंि (ऄंब़जा बास़ यंि)

सरस्वता यंि

मह़न शऽि दिग़ध यंि (ऄंब़जा यंि)

सप्तसता मह़यंि(संपीणध बाज मंि सऽहत)

नव दिग़ध यंि

क़िा यंि

नव़णध यंि (च़मिंड़ यंि)

श्मश़न क़िा पीजन यंि

नव़णध बास़ यंि

दऽिण क़िा पीजन यंि

च़मिंड़ बास़ यंि ( नवग्रह यिि)

संकट मोऽचना क़ऽिक़ ऽसऽद्ध यंि

ऽिशीि बास़ यंि

खोऽडय़र यंि

बगि़ मिखा यंि

खोऽडय़र बास़ यंि

बगि़ मिखा पीजन यंि

ऄन्नपीण़ध पीज़ यंि

ऱज ऱजेश्वरा व़ंछ़ कल्पित़ यंि

एक़ंिा श्राफि यंि

भॊि ससि ववशेष रक्ष्भी मॊि सचू श्रा यंि (िक्ष्मा यंि)

मह़िक्ष्मयै बाज यंि

श्रा यंि (मंि रऽहत)

मह़िक्ष्मा बास़ यंि

श्रा यंि (संपीणध मंि सऽहत)

िक्ष्मा द़यक ऽसद्ध बास़ यंि

श्रा यंि (बास़ यंि)

िक्ष्मा द़त़ बास़ यंि

श्रा यंि श्रा सीि यंि

िक्ष्मा गणेश यंि

श्रा यंि (कि मध पुष्ठाय)

ज्येष्ठ़ िक्ष्मा मंि पीजन यंि

िक्ष्मा बास़ यंि

कनक ध़ऱ यंि

श्रा श्रा यंि (श्राश्रा िऽित़ मह़ऽिपिर सिन्दयै श्रा मह़िक्ष्मयैं श्रा मह़यंि)

वैभव िक्ष्मा यंि (मह़न ऽसऽद्ध द़यक श्रा मह़िक्ष्मा यंि)

ऄंक़त्मक बास़ यंि िाम्र ऩत्र ऩर सव ु णय ऩोऱीस (Gold Plated)

िाम्र ऩत्र ऩर रजि ऩोऱीस (Silver Plated)

िाम्र ऩत्र ऩर (Copper)

साईज 1” X 1”

भूल्म 460

साईज 1” X 1”

भूल्म 370

साईज 1” X 1”

भूल्म 255

2” X 2”

820

2” X 2”

640

2” X 2”

460

3” X 3”

1650

3” X 3”

1050

3” X 3”

730

4” X 4”

2350

4” X 4”

1450

4” X 4”

1050

6” X 6”

3700

6” X 6”

2800

6” X 6”

1900

9” X 9”

7300

9” X 9”

4600

9” X 9”

3250

12” X12”

12700

12” X12”

9100

12” X12”

7300

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गुरुत्व ज्योतिष

-2017

81

यासश यत्न भेष यासश:

भग ूॊ ा

Red Coral (Special)

वष ृ ब यासश:

हीया

Diamond (Special)

सभथन ु यासश:

कका यासश:

ससॊह यासश:

कडमा यासश:

Green Emerald

Naturel Pearl (Special)

Ruby (Old Berma) (Special)

Green Emerald

ऩडना

(Special)

भोती

5.25" Rs. 1050 6.25" Rs. 1250 7.25" Rs. 1450

10 cent Rs. 4100 20 cent Rs. 8200 30 cent Rs. 12500

5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 14500

5.25" 6.25" 7.25"

Rs. 910 Rs. 1250 Rs. 1450

8.25" Rs. 1800

40 cent Rs. 18500

8.25" Rs. 19000

8.25"

Rs. 1900

9.25" Rs. 2100 10.25" Rs. 2800

50 cent Rs. 23500

9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 28000

9.25" Rs. 2300 10.25" Rs. 2800

भाणेक

2.25" 3.25" 4.25" 5.25"

Rs. Rs. Rs. Rs.

ऩडना

(Special)

46000 75000 125000 280000

5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 14500

6.25" Rs. 525000

9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 28000

8.25" Rs. 19000

** All Weight In Rati

All Diamond are Full White Colour.

** All Weight In Rati

** All Weight In Rati

** All Weight In Rati

** All Weight In Rati

तुरा यासश:

वस्ृ श् क यासश:

धनु यासश:

कॊु ब यासश:

भीन यासश:

हीया

भग ूॊ ा

ऩख ु याज

भकय यासश:

नीरभ

नीरभ

Diamond (Special)

Red Coral

Y.Sapphire

B.Sapphire

B.Sapphire

Y.Sapphire

(Special)

(Special)

(Special)

(Special)

(Special)

10 cent 20 cent 30 cent 40 cent 50 cent

Rs. 4100 Rs. 8200 Rs. 12500 Rs. 18500 Rs. 23500

All Diamond are Full White Colour.

5.25" Rs. 1050 6.25" Rs. 1250 7.25" Rs. 1450 8.25" Rs. 1800 9.25" Rs. 2100 10.25" Rs. 2800 ** All Weight In Rati

ऩख ु याज

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

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* उऩमोक्त वजन औय भल् ू म से अचधक औय कभ वजन औय भल् ू म के यत्न एवॊ उऩयत्न बी हभाये महा व्माऩायी भल् ू म ऩय उप्रब्द्ध हैं।

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गुरुत्व ज्योतिष

-2017

82

भॊि ससि रूराऺ Rudraksh List एकभुखी रूराऺ (नेऩार)

Rate In Indian Rupee

Rudraksh List

730 to 3700 नौ भुखी रूराऺ (नेऩार)

Rate In Indian Rupee 1900 to 4600

दो भुखी रूराऺ (नेऩार)

55 to 280 दस भुखी रूराऺ (नेऩार)

2350 to 5500

तीन भख ु ी रूराऺ (नेऩार)

55 to 280 ग्मायह भख ु ी रूराऺ (नेऩार)

2800 to 5500

ाय भुखी रूराऺ (नेऩार)

55 to 190 फायह भुखी रूराऺ (नेऩार)

3700 to 7300

ऩॊ भुखी रूराऺ (नेऩार)

55 to 370 तेयह भुखी रूराऺ (नेऩार)

-

छह भुखी रूराऺ (नेऩार)

55 to 190

सात भुखी रूराऺ (नेऩार) आठ भख ु ी रूराऺ (नेऩार)

ौदह भुखी रूराऺ (नेऩार)

-

460 to 730 गौयीशॊकय रूराऺ (नेऩार)

-

1900 to 460 गणेश रुराऺ (नेऩार)

730 to 1450

* भूल्म भें अॊतय रुराऺ के आकाय औय गुणवत्ता के अनुसाय अरग-अरग होते हैं। उऩयोक्त भूल्म छोटे से फिे आकाय के अनुरुऩ दशाामे गमे हैं। कबी-कबी सॊबाववत हैं की छोटे आकाय के उत्तभ गण ु वत्ता वारे रुराऺ अचधक भूल्म भें प्राप्त हो सकते हैं।

प्रवशेष सि ू ना: फाजाय की स्स्थतत के अनुसाय, रूराऺ भल् ू म, हदन-फ-हदन फदरते यहते है , स्जस कायण हभायी भूल्म सू ी भें बी

फाजाय की स्स्थतत के अनुसाय ऩरयवतान होते यहते हैं, कृप्मा रुराऺ के सरए अऩना

बुगतान बेजने से ऩहरे रुराऺ के नमी भूल्म सू ी हे तु हभ से सॊऩका कयें ।

रुराऺ के ववषम भें अचधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।

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भॊि ससि दर ा साभग्री ु ब हत्था जोडी- Rs- 730

घोडे की नार- Rs.351

भामा जार- Rs- 251

त्रफल्री नार- Rs- 370

भोतत शॊख-Rs- 550 से 1450

धन ववृ ि हकीक सेट Rs-251

ससमाय ससॊगी- Rs- 1050

दक्षऺणावतॉ शॊख-Rs-550-2100

इडर जार- Rs- 251

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गुरुत्व ज्योतिष

-2017

83

श्रीकृठण फीसा मॊि

फकसी बी व्मस्क्त का जीवन तफ आसान फन जाता हैं जफ उसके वश भें हों। जफ कोई व्मस्क्त का आकषाण दस ु यो के उऩय एक

ायों औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके

म् ु फकीम प्रबाव डारता हैं, तफ

रोग उसकी सहामता

एवॊ सेवा हे तु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना अचधक कठट व ऩये शानी से सॊऩडन हो जाते हैं। आज के बौततकता वाहद मग ु भें हय व्मस्क्त के सरमे दस ू यो को अऩनी औय खी ने हे तु एक प्रबावशासर यखना अतत आवश्मक हो जाता हैं। आऩका आकषाण औय व्मस्क्तत्व आऩके

फ ॊु कत्व को कामभ

ायो ओय से रोगों को आकवषात कये इस

सरमे सयर उऩाम हैं, श्रीकृटण बीसा यंत्र। क्मोफक बगवान श्री कृठण एक अरौफकव एवॊ हदवम

फ ॊु कीम व्मस्क्तत्व के

धनी थे। इसी कायण से श्रीकृटण बीसा यंत्र के ऩूजन एवॊ दशान से आकषाक व्मस्क्तत्व प्राप्त होता हैं।

श्रीकृटण बीसा यंत्र के साथ व्मस्क्तको दृढ़ इच्छा शस्क्त एवॊ उजाा प्राप्त होती हैं, स्जस्से व्मस्क्त हभेशा एक

बीड भें हभेशा आकषाण का केंर यहता हैं।

महद फकसी व्मस्क्त को अऩनी प्रततबा व आत्भववश्वास के स्तय भें ववृ ि, अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफ

भें रयश्तो भें सुधाय कयने की ईच्छा

होती हैं उनके सरमे श्रीकृटण बीसा यंत्र का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ सात्रफत हो सकता हैं।

श्रीकृटण बीसा यंत्र ऩय अॊफकत शस्क्तशारी ववशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ

अॊको से व्मस्क्त को अद्भत ु आॊतरयक शस्क्तमाॊ प्राप्त होती हैं जो व्मस्क्त को सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भें अग्रखणम फनाने भें सहामक ससि होती हैं।

श्रीकृटण बीसा यंत्र के ऩूजन व तनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान

श्रीकृठण का आशीवााद प्राप्त कय सभाज भें स्वमॊ का ऄऽद्वताय स्थान स्थावऩत कयें ।

श्रीकृटण बीसा यंत्र अरौफकक ब्रह्भाॊडीम उजाा का सॊ ाय कयता हैं, जो

एक प्राकृस्त्त भाध्मभ से व्मस्क्त के बीतय सद्दबावना, सभवृ ि, सपरता, उत्तभ स्वास््म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शस्क्तशारी भाध्मभ हैं! 

श्रीकृटण बीसा यंत्र के ऩूजन से व्मस्क्त के साभास्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रततठठा भें ववृ ि होती हैं।



ऽवद्व़नो के भतानस ु ाय श्रीकृटण बीसा यंत्र के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग केंहरत कयने से व्मस्क्त फक

ेतना शस्क्त जाग्रत होकय शीघ्र उच्

स्तय को

प्राप्तहोती हैं। 

जो ऩरु ु षों औय भहहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना औय उडहें अऩनी औय आकवषात कयना

बीसा यंत्र उत्तभ उऩाम ससि हो सकता हैं। 

ाहते हैं

ाहते हैं। उनके सरमे श्रीकृटण

श्रीकृठण फीसा कव श्रीकृठण

फीसा

कव

को

केवर

ववशेष शुब भुहुता भें तनभााण फकमा जाता हैं। कव को ऽवद्व़न कभाकाॊडी ब्राहभणों द्व़ऱ शब ु भह ु ु ता भें शास्िोक्त ववचध-ववधान से ववसशठट तेजस्वी

भॊिो

द्व़ऱ

प्रततस्ठठत ऩण ू ा

ससि

प्राण-

त ै डम मक् ु त कयके

तनभााण फकमा जाता हैं। स्जस के

पर स्वरुऩ धायण कयता व्मस्क्त को शीघ्र ऩूणा राब प्राप्त होता हैं। कव

को गरे भें धायण कयने से

वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता हैं। गरे

भें

धायण

कयने

से

कव

हभेशा रृदम के ऩास यहता हैं स्जस्से व्मस्क्त ऩय उसका राब अतत तीव्र एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हैं। मूऱय मात्र: 1900 >> Shop Now

ऩतत-ऩत्नी भें आऩसी प्रभ की ववृ ि औय सख ु ी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृटण बीसा यंत्र राबदामी होता हैं।

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गुरुत्व ज्योतिष

-2017

84

जैन धभाके ववसशठट मॊिो की सू ी

श्री

ौफीस तीथांकयका भहान प्रबाववत

श्री

ोफीस तीथांकय मॊि

भत्कायी मॊि

श्री एकाऺी नारयमेय मॊि सवातो बर मॊि

कल्ऩवऺ ृ मॊि

सवा सॊऩस्त्तकय मॊि

च त ॊ ाभणी ऩाश्वानाथ मॊि

सवाकामा-सवा भनोकाभना ससविअ मॊि (१३० सवातोबर मॊि)

च त ॊ ाभणी मॊि (ऩैंसहठमा मॊि)

ऋवष भॊडर मॊि

च त ॊ ाभणी

जगदवल्रब कय मॊि

श्री

क्र मॊि

क्रेश्वयी मॊि

ऋवि ससवि भनोकाभना भान सम्भान प्रास्प्त मॊि

श्री घॊटाकणा भहावीय मॊि

ऋवि ससवि सभवृ ि दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि

श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससवि भहामॊि

(अनब ु व ससि सॊऩण ू ा श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि)

ववषभ ववष तनग्रह कय मॊि

श्री ऩद्मावती मॊि

ऺुरो ऩरव तननााशन मॊि

श्री ऩद्मावती फीसा मॊि

फह ृ च् क्र मॊि

श्री ऩाश्वाऩद्मावती र्ह्रींकाय मॊि

वॊध्मा शब्द्दाऩह मॊि

ऩद्मावती व्माऩाय ववृ ि मॊि

भत ृ वत्सा दोष तनवायण मॊि

श्री ऩाश्वानाथ ध्मान मॊि

फारग्रह ऩीडा तनवायण मॊि

श्री ऩाश्वानाथ प्रबक ु ा मॊि

रधुदेव कुर मॊि

भखणबर मॊि

उवसग्गहयॊ मॊि

श्री मॊि

श्री ऩॊ

श्री रक्ष्भी प्रास्प्त औय व्माऩाय वधाक मॊि

र्ह्रीॊकाय भम फीज भॊि

श्री रक्ष्भीकय मॊि

वधाभान ऽवद्य़ ऩट्ट मॊि

रक्ष्भी प्रास्प्त मॊि

ऽवद्य़ मॊि

भहाववजम मॊि

सौबाग्मकय मॊि

ववजमयाज मॊि

डाफकनी, शाफकनी, बम तनवायक मॊि

ववजम ऩतका मॊि

बत ू ाहद तनग्रह कय मॊि

ववजम मॊि

ज्वय तनग्रह कय मॊि

ससि क्र भहामॊि

शाफकनी तनग्रह कय मॊि

दक्षऺण भख ु ाम शॊख मॊि

आऩस्त्त तनवायण मॊि

दक्षऺण भख ु ाम मॊि

शिभ ु ख ु स्तॊबन मॊि

श्री धयणेडर ऩद्मावती मॊि

काॊक वॊध्मादोष तनवायण मॊि

बक्ताभय मॊि (गाथा नॊफय १ से ४४ तक)

नवगाथात्भक उवसग्गहयॊ स्तोिका ववसशठट मॊि भॊगर भहाश्रत ृ स्कॊध मॊि

यंत्र के प्रवषय में अचधक जानकारी हे िु संऩकय करें ।

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गुरुत्व ज्योतिष

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घॊटाकणा भहावीय सवा ससवि भहामॊि को स्थाऩीत

कयने से साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩण ू ा होती हैं। सवा प्रकाय के योग बत ू -प्रेत आहद उऩरव से यऺण होता हैं।

जहयीरे औय हहॊसक प्राणीॊ से सॊफचॊ धत बम दयू होते हैं। अस्ग्न बम,

ोयबम आहद दयू होते हैं।

दठु ट व असयु ी शस्क्तमों से उत्ऩडन होने वारे बम

से मॊि के प्रबाव से दयू हो जाते हैं।

मॊि के ऩज ू न से साधक को धन, सख ु , सभवृ ि,

ऎश्वमा, सॊतस्त्त-सॊऩस्त्त आहद की प्रास्प्त होती हैं। साधक की सबी प्रकाय की सास्त्वक इच्छाओॊ की ऩतू ता होती हैं।

महद फकसी ऩरयवाय मा ऩरयवाय के सदस्मो ऩय

वशीकयण,

भायण,

उच् ाटन

इत्माहद

जाद-ू टोने

वारे

प्रमोग फकमे गमें होतो इस मॊि के प्रबाव से स्वत् नठट हो जाते हैं औय बववठम भें महद कोई प्रमोग कयता हैं तो यऺण होता हैं।

कुछ जानकायो के श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका

मॊि से जुडे अद्द्भत ु व यहे हैं। महद घय भें श्री ु अनब घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि स्थावऩत फकमा हैं औय महद कोई इषाा, रोब, भोह मा शित ु ावश महद अनचु त कभा

कयके फकसी बी उद्देश्म से साधक को ऩये शान कयने का प्रमास कयता हैं तो मॊि के प्रबाव से सॊऩण ू ा

ऩरयवाय का यऺण तो होता ही हैं, कबी-कबी शिु के द्व़ऱ फकमा गमा अनचु त कभा शिु ऩय ही उऩय उरट वाय होते दे खा हैं। मल् ू य:- Rs. 1650 से Rs. 10900 िक उप्ऱब्द्ि

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गुरुत्व ज्योतिष

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अभोघ भहाभत्ृ मुॊजम कव

ऄमोद्य् भहाभत्ृ मॊज ु म कव

व उल्रेखखत अडम साभग्रीमों को शास्िोक्त ववचध-ववधान से ऽवद्व़न

ब्राह्भणो द्व़ऱ सवा ऱाख महामत्ृ यंज ु य मंत्र जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्व़ऱ तनसभात फकमा जाता हैं इस सरए कव

अत्मॊत प्रबावशारी होता हैं।

अभोद्म ् भहाभत्ृ मॊज ु म कव कव

फनवाने हे त:ु

अऩना नाभ, वऩता-भाता का नाभ, गोि, एक नमा पोटो बेजे

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ऄमोद्य् मह़मुत्यिंजय कवच दक्षऺणा भाि: 10900

याशी यत्न एवॊ उऩयत्न ववशेष मॊि हभायें महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने- ाॊहदताम्फे भें आऩकी आवश्मक्ता के अनस ु ाय फकसी बी बाषा/धभा के मॊिो को आऩकी

आवश्मक ड़डजाईन के अनुसाय २२ गेज सबी साईज एवॊ भल् ू म व क्वासरहट के

असरी नवयत्न एवॊ उऩयत्न बी उऩरब्द्ध हैं।

शुि ताम्फे भें अखॊड़डत फनाने की ववशेष सवु वधाएॊ उऩरब्द्ध हैं।

हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भल् ू म ऩय उऩरब्द्ध हैं। ज्मोततष कामा से जड ु े फध/ु फहन व यत्न व्मवसाम से जड ु े रोगो के सरमे ववशेष भल् ू म ऩय यत्न व अडम साभग्रीमा व अडम सवु वधाएॊ उऩरब्द्ध हैं।

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े़

गुरुत्व ज्योतिष

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जनवरा 2017 -ऽवशेष योग क़यध ऽसऽद्ध योग 05

04:45

07



09

10:17

12

: 06:23

18

: 06:23

अग अग



अग



ग(

: 05:03

21

: 06:22

23

: 06:22

27

09:50





29

01:20

अग

अग



अग

ग(

: 05:44

ग 12

02:39 क

10:45

क)

: 06:22

: 08:04 क

10:40 क

31



अग

28

02:39 क

क 09







क)

11:04 क



: 06:23 क

ऽवघ्नक़रक भद्ऱ 02

03:45

05

02:01

03:51 क

18

12:49

01:17 क

22

: 08:44

10:00 क 04:33 क

08

06:30

अग

: 05:03 क

26

: 03:57

11

07.52

अग

: 06:25 क

31

06:30

14

12:09

अग

01:39 क

अग

11:39 क

योग फि :  क



 ग

क ग श क ग

क ग

,ए

क ग श क







क ग श क









क ग श क



 श

क क



श ग

श क



,ए

ए ग

श श

श ए





दैऽनक शिभ एवं ऄशिभ समय ज्ञ़न त़ऽिक़ गिऽिक क़ि (शिभ)

यम क़ि (ऄशिभ)

ऱहु क़ि (ऄशिभ)

व़र रऽवव़र

समय ऄवऽध

समय ऄवऽध

समय ऄवऽध

03:00 से 04:30

12:00 से 01:30

04:30 से 06:00

सोमव़र

01:30 से 03:00

10:30 से 12:00

07:30 से 09:00

मंगिव़र

12:00 से 01:30

09:00 से 10:30

03:00 से 04:30

बिधव़र

10:30 से 12:00

07:30 से 09:00

12:00 से 01:30

गिरुव़र

09:00 से 10:30

06:00 से 07:30

01:30 से 03:00

शिक्रव़र

07:30 से 09:00

03:00 से 04:30

10:30 से 12:00

शऽनव़र

06:00 से 07:30

01:30 से 03:00

09:00 से 10:30

: 03:41 क

गुरुत्व ज्योतिष

-2017

88

हदन के

ौघड़डमे

सभम

रऽवव़र सोमव़र

मंगिव़र बिधव़र गिरुव़र शिक्रव़र

शऽनव़र

06:00 से 07:30

ईद्वेग चि ि़भ ऄमुत क़ि शिभ रोग ईद्वेग

रोग ईद्वेग चि ि़भ ऄमुत क़ि शिभ रोग

क़ि शिभ रोग ईद्वेग चि ि़भ ऄमुत क़ि

07:30 से 09:00 09:00 से 10:30 10:30 से 12:00 12:00 से 01:30 01:30 से 03:00 03:00 से 04:30 04:30 से 06:00

ऄमुत क़ि शिभ रोग ईद्वेग चि ि़भ ऄमुत

यात के

ि़भ ऄमुत क़ि शिभ रोग ईद्वेग चि ि़भ

शिभ रोग ईद्वेग चि ि़भ ऄमुत क़ि शिभ

चि ि़भ ऄमुत क़ि शिभ रोग ईद्वेग चि

ौघड़डमे

सभम

रऽवव़र सोमव़र मंगिव़र

बिधव़र गिरुव़र शिक्रव़र

शऽनव़र

06:00 से 07:30

शिभ ऄमुत चि रोग क़ि ि़भ ईद्वेग शिभ

ईद्वेग शिभ ऄमुत चि रोग क़ि ि़भ ईद्वेग

ि़भ ईद्वेग शिभ ऄमुत चि रोग क़ि ि़भ

07:30 से 09:00 09:00 से 10:30 10:30 से 12:00 12:00 से 01:30 01:30 से 03:00 03:00 से 04:30 04:30 से 06:00

चि रोग क़ि ि़भ ईद्वेग शिभ ऄमुत चि

क़ि ि़भ ईद्वेग शिभ ऄमुत चि रोग क़ि

ऄमुत चि रोग क़ि ि़भ ईद्वेग शिभ ऄमुत

रोग क़ि ि़भ ईद्वेग शिभ ऄमुत चि रोग

शास्िोक्त भत के अनुशाय महद फकसी बी कामा का प्रायॊ ब शुब भुहूता मा शुब सभम ऩय फकमा जामे तो कामा भें सपरता प्राप्त होने फक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हैं। इस सरमे दै तनक शुब सभम ौघड़िमा दे खकय प्राप्त फकमा जा सकता हैं। नोि: प्राम् हदन औय यात्रि के

ौघड़िमे फक चगनती क्रभश् सम ू ोदम औय सम ू ाास्त से फक जाती हैं। प्रत्मेक ौघड़िमे फक अवचध 1

घॊटा 30 सभतनट अथाात डेढ़ घॊटा होती हैं। सभम के अनुसाय भध्मभ औय अशुब हैं।

ौघड़िमे को शुबाशुब तीन बागों भें फाॊटा जाता हैं, जो क्रभश् शुब,

* हय कामा के सरमे शब ु /अभत ृ /राब का

ौघड़डमे के स्वाभी ग्रह शुब

ौघड़डमा

ौघड़डमा स्वाभी ग्रह

शब ु

गरु ु

राब

फध ु

अभत ृ

र ॊ भा

भध्मभ

ौघड़डमा

ौघड़डमा स्वाभी ग्रह य

शक्र ु

अशुब ौघड़िमा ौघड़डमा

उद्फेग कार योग

स्वाभी ग्रह सम ू ा

शतन भॊगर

ौघड़िमा उत्तभ भाना जाता हैं।

* हय कामा के सरमे का

र/कार/योग/ईद्वेग

ौघड़िमा उच त नहीॊ भाना जाता।

गुरुत्व ज्योतिष

-2017

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हदन फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक

वाय

1.घॊ

2.घॊ

3.घॊ

4.घॊ

5.घॊ

6.घॊ

7.घॊ

8.घॊ

9.घॊ

यवववाय

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

ॊर

शतन

गुरु

भॊगर

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

सम ू ा

शक्र ु

शतन

गुरु

भॊगर

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

शतन

गरु ु

भॊगर

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

शतन

गुरु

भॊगर

सम ू ा

शक्र ु

गुरु

भॊगर

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

शतन

गुरु

भॊगर

सम ू ा

शक्र ु

शतन

गरु ु

भॊगर

शतन

गुरु

सोभवाय भॊगरवाय

ॊर

भॊगर

फध ु वाय

फध ु

शक्र ु वाय

शक्र ु

गरु ु वाय

शतनवाय यवववाय सोभवाय

शतन ॊर

गुरु

शतन

गरु ु

भॊगर

शतन

गुरु

भॊगर

गुरु

भॊगर

सम ू ा

गुरु

भॊगर

शतन

गरु ु

फध ु

सम ू ा ॊर

भॊगरवाय

शतन

फध ु

फध ु वाय

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

शक्र ु वाय

भॊगर

सम ू ा

शक्र ु

शतनवाय

ॊर

फध ु

शक्र ु

फध ु

गुरु भॊगर सम ू ा

शक्र ु

फध ु

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

ॊर

शक्र ु

फध ु

ॊर

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

शक्र ु

फध ु

ॊर

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

भॊगर सम ू ा

शक्र ु

फध ु

गुरु भॊगर सम ू ा

शक्र ु

शतन

गरु भॊगर ु

ॊर

ॊर

शतन ॊर

फध ु

यात फक होया – सम ू ाास्त से सम ू ोदम तक

शक्र ु

गरु ु वाय

भॊगर सम ू ा

ॊर

ॊर

शतन

शतन ॊर

फध ु

शतन

गुरु भॊगर

शतन ॊर

सम ू ा ॊर

गरु ु

भॊगर

शतन

गुरु

10.घॊ 11.घॊ 12.घॊ भॊगर

शतन

गुरु

भॊगर

शतन

गरु ु

ॊर

फध ु

सम ू ा

शक्र ु

फध ु

सम ू ा

शक्र ु

भॊगर फध ु

ॊर

शतन

गुरु

शक्र ु

ॊर

ॊर

ॊर

शतन ॊर

फध ु

सम ू ा ॊर

गुरु

शतन सम ू ा ॊर

भॊगर

होया भह ु ू ता को कामा ससवि के सरए ऩण ू ा परदामक एवॊ अ क ू भाना जाता हैं, हदन-यात के २४ घॊटों भें शब ु -अशब ु सभम को सभम से ऩव ू ा ऻात कय अऩने कामा ससवि के सरए प्रमोग कयना

ाहहमे।

ऽवद्व़नो के मत से आऽच्छत क़यध ऽसऽद्ध के ऽिए ग्रह से संबऽं धत होऱ क़ चिऩव करने से ऽवशेष ि़भ प्ऱप्त होत़ हैं।  सूमा फक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हैं। 

र ॊ भा फक होया सबी कामों के सरमे उत्तभ होती हैं।

 भॊगर फक होया कोटा -क ये ी के कामों के सरमे उत्तभ होती हैं।  फुध फक होया ऽवद्य़-फुवि अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हैं।

 गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ वववाह के सरमे उत्तभ होती हैं।  शुक्र फक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हैं।

 शतन फक होया धन-रव्म सॊफॊचधत कामा के सरमे उत्तभ होती हैं।

गुरुत्व ज्योतिष

ग्रह Day 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31

Sun

Mon

Ma

08:16:39

09:17:45

10:15:25

08:17:40

10:00:32

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गुरुत्व ज्योतिष

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सवा योगनाशक मॊि/कव भनुठम अऩने जीवन के ववसबडन सभम ऩय फकसी ना फकसी साध्म मा असाध्म योग से ग्रस्त होता हैं। उच त उऩ ाय से ज्मादातय साध्म योगो से तो भुस्क्त सभर जाती हैं, रेफकन कबी-कबी साध्म योग होकय बी असाध्म होजाते हैं, मा कोइ असाध्म योग से ग्रससत होजाते हैं। हजायो राखो रुऩमे ख ा कयने ऩय बी अचधक राब प्राप्त नहीॊ हो ऩाता। डॉक्टय द्व़ऱ हदजाने वारी दवाईमा अल्ऩ सभम के सरमे कायगय सात्रफत होती हैं, एसी स्स्थती भें राब प्रास्प्त के सरमे व्मस्क्त एक डॉक्टय से दस ू ये डॉक्टय के

क्कय रगाने को फाध्म हो जाता हैं।

बायतीम ऋषीमोने अऩने मोग साधना के प्रताऩ से योग शाॊतत हे तु ववसबडन आमुवेय औषधो के

अततरयक्त मॊि, भॊि एवॊ तॊि का उल्रेख अऩने ग्रॊथो भें कय भानव जीवन को राब प्रदान कयने का साथाक प्रमास हजायो वषा ऩव ू ा फकमा था। फवु िजीवो के भत से जो व्मस्क्त जीवनबय अऩनी हदन माा ऩय तनमभ, सॊमभ यख कय आहाय ग्रहण कयता हैं, एसे व्मस्क्त को ववसबडन योग से ग्रससत होने की सॊबावना कभ होती हैं। रेफकन आज के फदरते मुग भें एसे व्मस्क्त बी बमॊकय योग से ग्रस्त होते हदख जाते हैं। क्मोफक सभग्र सॊसाय कार के अधीन हैं। एवॊ भत्ृ मु तनस्श् त हैं स्जसे ववधाता के अरावा औय कोई टार नहीॊ सकता, रेफकन योग होने फक स्स्थती भें व्मस्क्त योग दयू कयने का प्रमास तो अवश्म कय सकता हैं। इस सरमे यंत्र मंत्र एवं िंत्र के कुशर जानकाय से मोग्म भागादशान रेकय व्मस्क्त योगो से भुस्क्त ऩाने का मा उसके प्रबावो को कभ कयने का प्रमास बी अवश्म कय सकता हैं।

ज्योतिष ऽवद्य़ के कुशर जानकय बी कार ऩरु ु षकी गणना कय अनेक योगो के अनेको यहस्म को

उजागय कय सकते हैं। ज्मोततष शास्ि के भाध्मभ से योग के भूरको ऩकडने भे सहमोग सभरता हैं, जहा आधुतनक च फकत्सा शास्ि अऺभ होजाता हैं वहा ज्मोततष शास्ि द्व़ऱ योग के भूर(जि) को ऩकड कय उसका तनदान कयना राबदामक एवॊ उऩामोगी ससि होता हैं। हय व्मस्क्त भें रार यॊ गकी कोसशकाए ऩाइ जाती हैं, स्जसका तनमभीत ववकास क्रभ फि तयीके से होता यहता हैं। जफ इन कोसशकाओ के क्रभ भें ऩरयवतान होता है मा ववखॊड़डन होता हैं तफ व्मस्क्त के शयीय भें स्वास््म सॊफॊधी ववकायो उत्ऩडन होते हैं। एवॊ इन कोसशकाओ का सॊफॊध नव ग्रहो के साथ होता हैं। स्जस्से योगो के होने के कायण व्मस्क्त के जडभाॊग से दशा-भहादशा एवॊ ग्रहो फक गो य स्स्थती से प्राप्त होता हैं। सवा योग तनवायण कव

एवॊ भहाभत्ृ मॊुजम मॊि के भाध्मभ से व्मस्क्त के जडभाॊग भें स्स्थत कभजोय एवॊ

ऩीड़डत ग्रहो के अशुब प्रबाव को कभ कयने का कामा सयरता ऩूवक ा फकमा जासकता हैं। जेसे हय व्मस्क्त को ब्रह्भाॊड फक उजाा एवॊ ऩ् ृ वी का गुरुत्वाकषाण फर प्रबावीत कताा हैं हठक उसी प्रकाय कव

एवॊ मॊि के भाध्मभ

से ब्रह्भाॊड फक उजाा के सकायात्भक प्रबाव से व्मस्क्त को सकायात्भक उजाा प्राप्त होती हैं स्जस्से योग के प्रबाव को कभ कय योग भुक्त कयने हे तु सहामता सभरती हैं। योग तनवायण हे तु भहाभत्ृ मुॊजम भॊि एवॊ मॊि का फडा भहत्व हैं। स्जस्से हहडद ू सॊस्कृतत का प्राम् हय

व्मस्क्त भहाभत्ृ मुॊजम भॊि से ऩरयच त हैं।

गुरुत्व ज्योतिष

-2017

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कवि के ऱाभ :

 एसा शास्िोक्त व न हैं स्जस घय भें भहाभत्ृ मुॊजम मॊि स्थावऩत होता हैं वहा तनवास कताा हो नाना प्रकाय फक आचध-व्माचध-उऩाचध से यऺा होती हैं।

 ऩूणा प्राण प्रततस्ठठत एवॊ ऩूणा

ैतडम मुक्त सवा योग तनवायण कव

फकसी बी उम्र एवॊ जातत धभा के रोग

ाहे स्िी हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हैं।

 जडभाॊगभें अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रततकूरता से योग उतऩडन होते हैं।

 कुछ योग सॊक्रभण से होते हैं एवॊ कुछ योग खान-ऩान फक अतनमसभतता औय अशुितासे उत्ऩडन होते हैं। कव

एवॊ मॊि द्व़ऱ एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नठट कय, स्वास््म राब औय शायीरयक यऺण

प्राप्त कयने हे तु सवा योगनाशक कव

एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हैं।

 आज के बौततकता वादी आधतु नक मग ु भे अनेक एसे योग होते हैं, स्जसका उऩ ाय ओऩये शन औय दवासे बी

कहठन हो जाता हैं। कुछ योग एसे होते हैं स्जसे फताने भें रोग हह फक ाते हैं शयभ अनुबव कयते हैं एसे योगो को योकने हे तु एवॊ उसके उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव

एवॊ मॊि राबादातम ससि होता हैं।

 प्रत्मेक व्मस्क्त फक जेसे-जेसे आमु फढती हैं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा कभ होती जाती हैं। स्जसके साथ अनेक प्रकाय के ववकाय ऩैदा होने रगते हैं एसी स्स्थती भें उऩ ाय हे तु सवायोगनाशक कव

एवॊ मॊि

परप्रद होता हैं।

 स्जस घय भें वऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक हह नऺिभे जडभ रेते हैं, तफ उसकी भाता के सरमे अचधक कठटदामक स्स्थती होती हैं। उऩ ाय हे तु भहाभत्ृ मुॊजम मॊि परप्रद होता हैं।

 स्जस व्मस्क्त का जडभ ऩरयचध मोगभे होता हैं उडहे होने वारे भत्ृ मु तुल्म कठट एवॊ होने वारे योग, च त ॊ ा भें उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव

नोि:- ऩूणा प्राण प्रततस्ठठत एवॊ ऩूणा

एवॊ मॊि शब ु परप्रद होता हैं।

ैतडम मुक्त सवा योग तनवायण कव

एवॊ मॊि के फाये भें अचधक जानकायी

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गुरुत्व ज्योतिष

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मंत्र भसि कवि

भॊि ससि कव को ववशेष प्रमोजन भें उऩमोग के सरए औय शीघ्र प्रबाव शारी फनाने के सरए तेजस्वी भॊिो द्व़ऱ शुब भहूता भें शुब हदन को तैमाय फकमे जाते है । अरग-अरग कव तैमाय कयने केसरए अरग-अरग तयह के भॊिो का प्रमोग फकमा जाता है ।

 क्मों न ु े भॊि ससि कव ?  उऩमोग भें आसान कोई प्रततफडध नहीॊ  कोई ववशेष तनतत-तनमभ नहीॊ  कोई फुया प्रबाव नहीॊ

मंत्र भसि कवि सचू ि

अभोघ भहाभत्ृ मॊज ु म कव याज याजेश्वयी कव

10900

श्रावऩत मोग तनवायण कव

1900

तॊि यऺा

730

11000

* सवा जन वशीकयण

1450

शिु ववजम

730

सवा कामा ससवि कव

4600

ससवि ववनामक कव

1450

वववाह फाधा तनवायण

730

श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससविप्रद कव

6400

सकर सम्भान प्रास्प्त कव

1450

730

सकर ससवि प्रद गामिी कव

6400

1450

सवा योग तनवायण

730

दस भहा ऽवद्य़ कव

आकषाण ववृ ि कव

व्माऩय ववृ ि

6400

वशीकयण नाशक कव

1450

730

नवदग ु ाा शस्क्त कव

6400

प्रीतत नाशक कव

योजगाय ववृ ि

1450

भस्स्तठक ऩस्ृ ठट वधाक

640

यसामन ससवि कव

6400

ॊडार मोग तनवायण कव

1450

ऩॊ दे व शस्क्त कव

6400

ग्रहण मोग तनवायण कव

1450

ववयोध नाशक

640

सुवणा रक्ष्भी कव

4600

अठट रक्ष्भी

1250

ववघ्न फाधा तनवायण

550

4600

भाॊगसरक मोग तनवायण कव

1250

नज़य यऺा

550

3250

सॊतान प्रास्प्त

1250

योजगाय प्रास्प्त

550

कारसऩा शाॊतत कव

2800

1050

2800

कामा ससवि

दब ु ााग्म नाशक

460

इठट ससवि कव

स्ऩे- व्माऩय ववृ ि

1050

* वशीकयण (2-3 व्मस्क्तके सरए)

ऩयदे श गभन औय राब प्रास्प्त कव

2350

आकस्स्भक धन प्रास्प्त

1050

* ऩत्नी वशीकयण

640

श्रीदग ु ाा फीसा कव

1900

स्वस्स्तक फीसा कव

1050

* ऩतत वशीकयण

640

अठट ववनामक कव

1900

हॊ स फीसा कव

1050

सयस्वती (कऺा +10 के सरए)

550

ववठणु फीसा कव

1900

स्वप्न बम तनवायण कव

1050

सयस्वती (कऺा 10 तकके सरए)

460

याभबर फीसा कव

1900

नवग्रह शाॊतत

910

* वशीकयण ( 1 व्मस्क्त के सरए)

640

कुफेय फीसा कव

1900

बूसभ राब

910

ससि सूमा कव

550

स्वणााकषाण बैयव कव *ववरऺण सकर याज वशीकयण कव

काभना ऩूतता

640

1050

गरुड फीसा कव

1900

काभ दे व

910

ससि

ससॊह फीसा कव

1900

ऩदों उडनतत

910

ससि भॊगर कव

550

नवााण फीसा कव

1900

910

ससि फुध कव

550

सॊकट भोच नी कासरका ससवि कव

ऋण भुस्क्त

1900

याभ यऺा कव

1900

हनभ ु ान कव

1900

बैयव यऺा कव

1900

सुदशान फीसा कव भहा सुदशान कव त्रिशूर फीसा कव धन प्रास्प्त

शतन सािेसाती औय ढ़ै मा कठट तनवायण कव

910 910 910 820 1900

ॊर कव

ससि गुरु कव

ससि शुक्र कव

ससि शतन कव ससि याहु कव ससि केतु कव

550

550 550 550 550 550

उऩयोक्त कव के अरावा अडम सभस्मा ववशेष के सभाधान हे तु एवॊ उद्देश्म ऩतू ता हे तु कव का तनभााण फकमा जाता हैं। कव के ववषम भें अचधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें । *कव

भाि शब ु कामा मा उद्देश्म के सरमे

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गुरुत्व ज्योतिष

-2017

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GURUTVA KARYALAY YANTRA LIST

EFFECTS

Our Splecial Yantra 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10

12 – YANTRA SET VYAPAR VRUDDHI YANTRA BHOOMI LABHA YANTRA TANTRA RAKSHA YANTRA AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA PADOUNNATI YANTRA RATNE SHWARI YANTRA BHUMI PRAPTI YANTRA GRUH PRAPTI YANTRA KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA

For all Family Troubles For Business Development For Farming Benefits For Protection Evil Sprite For Unexpected Wealth Benefits For Getting Promotion For Benefits of Gems & Jewellery For Land Obtained For Ready Made House -

Shastrokt Yantra 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42

AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) BHAGYA VARDHAK YANTRA BHAY NASHAK YANTRA CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA DARIDRA VINASHAK YANTRA DHANDA POOJAN YANTRA DHANDA YAKSHANI YANTRA GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) GARBHA STAMBHAN YANTRA GAYATRI BISHA YANTRA HANUMAN YANTRA JWAR NIVARAN YANTRA JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA YANTRA KALI YANTRA KALPVRUKSHA YANTRA KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) KANAK DHARA YANTRA KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA KARYA SHIDDHI YANTRA  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA KRISHNA BISHA YANTRA KUBER YANTRA LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA LAKSHAMI GANESH YANTRA MAHA MRUTYUNJAY YANTRA MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA NAVDURGA YANTRA

Blessing of Durga Win over Enemies Blessing of Bagala Mukhi For Good Luck For Fear Ending Blessing of Chamunda & Navgraha Blessing of Chhinnamasta For Poverty Ending For Good Wealth For Good Wealth Blessing of Lord Ganesh For Pregnancy Protection Blessing of Gayatri Blessing of Lord Hanuman For Fewer Ending For Astrology & Spritual Knowlage Blessing of Kali For Fullfill your all Ambition Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga Blessing of Maha Lakshami For Successes in work For Successes in all work Blessing of Lord Krishna Blessing of Kuber (Good wealth) For Obstaele Of marriage Blessing of Lakshami & Ganesh For Good Health Blessing of Shiva For Fullfill your all Ambition For Marriage with choice able Girl Blessing of Durga

गुरुत्व ज्योतिष

YANTRA LIST

43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64

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EFFECTS

NAVGRAHA SHANTI YANTRA NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA  SURYA YANTRA  CHANDRA YANTRA  MANGAL YANTRA  BUDHA YANTRA  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA)  SUKRA YANTRA  SHANI YANTRA (COPER & STEEL)  RAHU YANTRA  KETU YANTRA PITRU DOSH NIVARAN YANTRA PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA RAM YANTRA RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA SANKAT MOCHAN YANTRA SANTAN GOPAL YANTRA SANTAN PRAPTI YANTRA SARASWATI YANTRA SHIV YANTRA

For good effect of 9 Planets For good effect of 9 Planets Good effect of Sun Good effect of Moon Good effect of Mars Good effect of Mercury Good effect of Jyupiter Good effect of Venus Good effect of Saturn Good effect of Rahu Good effect of Ketu For Ancestor Fault Ending For Pregnancy Pain Ending For Benefits of State & Central Gov Blessing of Ram Blessing of Riddhi-Siddhi For Disease- Pain- Poverty Ending For Trouble Ending Blessing Lorg Krishana For child acquisition For child acquisition Blessing of Sawaswati (For Study & Education) Blessing of Shiv Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & 65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA) Peace SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth 66 For Bad Dreams Ending 67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Vehicle Accident Ending 68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All 69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending 70 For Education- Fame- state Award Winning 71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan) 72 Attraction For office Purpose 73 VASI KARAN YANTRA Attraction For Female  MOHINI VASI KARAN YANTRA 74 Attraction For Husband  PATI VASI KARAN YANTRA 75 Attraction For Wife  PATNI VASI KARAN YANTRA 76 Attraction For Marriage Purpose  VIVAH VASHI KARAN YANTRA 77 Yantra Available @:- Rs- 255, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..

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गुरुत्व ज्योतिष

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Gemstone Price List NAME OF GEM STONE

GENERAL

Emerald (ऩडना) Yellow Sapphire (ऩख ु याज) Blue Sapphire (नीरभ) White Sapphire (सफ़ेद ऩुखयाज) Bangkok Black Blue(बैंकोक नीऱम) Ruby (भाखणक) Ruby Berma (फभाा भाखणक) Speenal (नयभ भाखणक/रारडी) Pearl (भोतत) Red Coral (4 यतत तक) (रार भूॊगा) Red Coral (4 यतत से उऩय)( रार भूॊगा) White Coral (सफ़ेद भॊग ू ा) Cat’s Eye (रहसतु नमा) Cat’s Eye Orissa (उड़डसा रहसुतनमा) Gomed (गोभेद) Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) Zarakan (जयकन) Aquamarine (फेरुज) Lolite (नीरी) Turquoise (फफ़योजा) Golden Topaz (सन ु हरा) Real Topaz (उड़डसा ऩख ु याज/टोऩज) Blue Topaz (नीऱा िोऩज) White Topaz (सफ़ेद टोऩज) Amethyst (कटे रा) Opal (उऩर) Garnet (गायनेट) Tourmaline (तुभर ा ीन) Star Ruby (सुमक ा ाडत भखण) Black Star (कारा स्टाय) Green Onyx (ओनेक्स) Real Onyx (ओनेक्स) Lapis (राजवात) Moon Stone ( डरकाडत भखण) Rock Crystal (स्फ़हटक) Kidney Stone (दाना फफ़यॊ गी) Tiger Eye (टाइगय स्टोन) Jade (भयग ) Sun Stone (सन ससताया) Diamond (.05 to .20 Cent )

(हीया)

MEDIUM FINE

FINE

SUPER FINE

200.00 550.00 550.00 550.00 100.00 100.00 5500.00 300.00 30.00 75.00 120.00 20.00 25.00 460.00 15.00 300.00 350.00 210.00 50.00 15.00 15.00 60.00 60.00 60.00 20.00 30.00 30.00 120.00 45.00 15.00 09.00 60.00 15.00 12.00 09.00 09.00 03.00 12.00 12.00 50.00

500.00 1200.00 1200.00 1200.00 150.00 190.00 10000.00 600.00 60.00 90.00 150.00 28.00 45.00 640.00 27.00 410.00 450.00 320.00 120.00 30.00 30.00 120.00 90.00 90.00 30.00 45.00 45.00 140.00 75.00 30.00 12.00 90.00 25.00 21.00 12.00 11.00 05.00 19.00 19.00 100.00

1200.00 1900.00 1900.00 2800.00 1900.00 2800.00 1900.00 2800.00 200.00 500.00 370.00 730.00 2000.00 41000.00 1200.00 2100.00 90.00 120.00 12.00 180.00 190.00 280.00 42.00 51.00 90.00 120.00 1050.00 2800.00 60.00 90.00 640.00 1800.00 550.00 640.00 410.00 550.00 230.00 390.00 45.00 60.00 45.00 60.00 280.00 460.00 120.00 280.00 120.00 240.00 45.00 60.00 90.00 120.00 90.00 120.00 190.00 300.00 90.00 120.00 45.00 60.00 15.00 19.00 120.00 190.00 30.00 45.00 30.00 45.00 15.00 30.00 15.00 19.00 10.00 15.00 23.00 27.00 23.00 27.00 200.00 370.00

(Per Cent )

(Per Cent )

(PerCent )

(Per Cent)

SPECIAL

2800.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 1000.00 & above 1900.00 & above 55000.00 & above 3200.00 & above 280.00 & above 280.00 & above 550.00 & above 90.00 & above 190.00 & above 5500.00 & above 120.00 & above 2800.00 & above 910.00 & above 730.00 & above 500.00 & above 90.00 & above 90.00 & above 640.00 & above 460.00 & above 410.00& above 120.00 & above 190.00 & above 190.00 & above 730.00 & above 190.00 & above 100.00 & above 25.00 & above 280.00 & above 55.00 & above 100.00 & above 45.00 & above 21.00 & above 21.00 & above 45.00 & above 45.00 & above 460.00 & above (Per Cent )

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Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus

गुरुत्व ज्योतिष

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सू ना  ऩत्रिका भें प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के अचधकायों के साथ ही आयक्षऺत हैं।  रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन वव ायो से सहभत हों।  नास्स्तक/ अववश्वासु व्मस्क्त भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हैं।  ऩत्रिका भें प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मस्क्त ववशेष मा फकसी बी स्थान मा घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हैं।  प्रकासशत रेख ज्मोततष, अॊक ज्मोततष, वास्त,ु भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण महद फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तववक जीवन से भेर होता हैं तो मह भाि एक सॊमोग हैं।  प्रकासशत सबी रेख बायततम आध्मास्त्भक शास्िों से प्रेरयत होकय सरमे जाते हैं। इस कायण इन ववषमो फक सत्मता अथवा प्राभाखणकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक स्जडभेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हैं।  अडम रेखको द्व़ऱ प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभाखणकता एवॊ प्रबाव फक स्जडभेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हैं। औय नाहीॊ रेखक के ऩते हठकाने के फाये भें जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हैं।

 ज्मोततष, अॊक ज्मोततष, वास्त,ु भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भें ऩाठक का अऩना

ववश्वास होना आवश्मक हैं। फकसी बी व्मस्क्त ववशेष को फकसी बी प्रकाय से इन ववषमो भें ववश्वास कयने ना कयने का अॊततभ तनणाम स्वमॊ का होगा।

 ऩाठक द्व़ऱ फकसी बी प्रकाय फक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।  हभाये द्व़ऱ ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हैं। हभ

फकसी बी व्मस्क्त ववशेष द्व़ऱ प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अडम प्रमोग मा उऩामोकी स्जडभेदायी नहहॊ रेते हैं।

 मह स्जडभेदायी भॊि-मॊि मा अडम प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मस्क्त फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन ववषमो भें नैततक भानदॊ डों, साभास्जक, कानन ू ी तनमभों के खखराप कोई व्मस्क्त महद नीजी स्वाथा ऩतू ता हे तु प्रमोग कताा हैं अथवा प्रमोग के कयने भे िहु ट होने ऩय प्रततकूर ऩरयणाभ सॊबव हैं।

 हभाये द्व़ऱ ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अडम हभाये फॊधग ु ण ऩय प्रमोग फकमे हैं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्व़ऱ तनस्श् त सपरता प्राप्त हुई हैं।

 ऩाठकों फक भाॊग ऩय एक हह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का अचधकाय यखता हैं। ऩाठकों को एक रेख के ऩून् प्रकाशन से राब प्राप्त हो सकता हैं।

 अचधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भें सॊऩका कय सकते हैं। (सभी प्रववादो केभऱये केवऱ भुवनेचवर न्यायाऱय ही मान्य होगा।)

गुरुत्व ज्योतिष

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FREE E CIRCULAR

गुरुत्व ज्मोततष ऩत्रिका जनवयी-2017 सॊऩादक

च त ॊ न जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोततष ववबाग

गुरुत्व कामाारम

92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA पोन

91+9338213418, 91+9238328785 ईभेर

[email protected], [email protected], वेफ

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गुरुत्व ज्योतिष

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-2017

हभाया उद्देश्म वप्रम आस्त्भम फॊध/ु फहहन जम गरु ु दे व जहाॉ आधुतनक ववऻान सभाप्त हो जाता हैं। वहाॊ आध्मास्त्भक ऻान प्रायॊ ब हो

जाता हैं, बौततकता का आवयण ओढे व्मस्क्त जीवन भें हताशा औय तनयाशा भें फॊध जाता

हैं, औय उसे अऩने जीवन भें गततशीर होने के सरए भागा प्राप्त नहीॊ हो ऩाता क्मोफक बावनाए हह बवसागय हैं, स्जसभे भनुठम की सपरता औय असपरता तनहहत हैं। उसे

ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेठठकय सपरता हैं। सपरता को प्राप्त कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ अचधकाय हैं। ईसी सरमे हभायी शब ु काभना सदै व आऩ के साथ

हैं। आऩ अऩने कामा-उद्देश्म एवॊ अनक ा भॊि ु ू रता हे तु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दर ु ब शस्क्त से ऩूणा प्राण-प्रततस्ठठत च ज वस्तु का हभें शा प्रमोग कये जो १००% परदामक

हो। ईसी सरमे हभाया उद्देश्म महीॊ हे की शास्िोक्त ववचध-ववधान से ववसशठट तेजस्वी भॊिो द्व़ऱ ससि प्राण-प्रततस्ठठत ऩण ू ा ैतडम मक् ु त सबी प्रकाय के मडि- कव एवॊ शब ु परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहो ाने का हैं।

सूमा की फकयणे उस घय भें प्रवेश कयाऩाती हैं। जीस घय के खखिकी दयवाजे खुरे हों। GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785

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