Gurutva Jyotish Sep-2011

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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका

NON PROFIT PUBLICATION

ससतम्फय- 2011

FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ससतम्फय 2011 सिॊतन जोशी

सॊऩादक

गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग

गुरुत्व कामाारम

सॊऩका

92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA

पोन

91+9338213418, 91+9238328785,

ईभेर

[email protected], [email protected],

वेफ

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ऩत्रिका प्रस्तुसत

सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी

पोटो ग्राफपक्स

सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा

हभाये भुख्म सहमोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक सोफ्टे क इस्डडमा सर)

ई- जडभ ऩत्रिका अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी के साथ १००+ ऩेज भं प्रस्तुत

E HOROSCOPE Create By Advanced Astrology Excellent Prediction 100+ Pages

फहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- [email protected], [email protected]

अनुक्रभ गणेश ितुथॉ त्रवशेष सवाप्रथभ ऩूजनीम कैसे फने श्री गणेश?

6

गणेशबुजॊगभ ्

32

क्मं शुबकामं भं सवाप्रथभ ऩूजा होती हं गणेशजी

10

भनोवाॊसित परो फक प्रासद्ऱ हे तु ससत्रद्ध प्रद गणऩसत

33

की?

स्तोि

गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता

11

सॊकद्शहयणॊ गणेशाद्शकभ ्

34

सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन

12

गणेश ऩॊच्ियत्नभ ्

34

गणेश गामिी भॊि

17

एकदडत शयणागसत स्तोिभ ्

35

अनॊत ितुदाशी व्रत उत्तभ परदामी होता हं ।

18

गणेश ऩूजन से वास्तु दोष सनवायण

36

गणेशजी को दव ु ाा-दर िढ़ाने का भॊि

19

गणेश वाहन भूषक केसे फना

37

गणेश ऩूजन भं कोन से पूर िढाए।

20

गणेश स्तवन

38

सॊकटनाशन गणेशस्तोिभ ्

20

त्रवष्णुकृतॊ गणेशस्तोिभ ्

38

शाऩ के कायण गणऩसत ऩूजन भं तुरसी सनत्रषद्ध हं ?

21

गणऩसतस्तोिभ ्

39

गणेश के िभत्कायी भॊि

22

॥श्री त्रवघ्नेद्वयाद्शोत्तय शतनाभस्तोिभ ् ॥

39

गणेश के कल्माणकायी भॊि

22

ससत्रद्ध त्रवनामक व्रत त्रवधान

40

।।गणऩसत अथवाशीषा।।

25

40

गणेश ऩूजन से ग्रहऩीडा दयू होती हं ।

सॊकद्शहय ितुथॉ व्रत का प्रायॊ ब कफ हुवा

26

गणेश कविभ ्

41

गणेश ितुथॉ ऩय िॊद्र दशान सनषेध क्मं...

27

गणेशद्रादशनाभस्तोिभ ्।

41

ऋण भुत्रि त्रवशेष ऋण हयण श्री गणेश भॊि साधना

42

ज्मोसतष औय ऋण

53

श्रीऋण हयण कतृा गणऩसत स्तोि

43

भहत्रषा वास्ल्भकी ने सिड़ीभाय को शाऩ फदमा

57

ऋणभोिक भॊगर स्तोि

43

ज्मोसतष से जान ऋण से भुत्रि कफ सभरेगी?

58

ऋण भोिन भहा गणऩसत स्तोि

44

सुख-स्भृत्रद्ध के सरमे जाने ऋण(कजा) कफ रे औय कफ दे

60

रार फकताफ से जाने कण

45

स्थामी रेख सॊऩादकीम

4

दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका

79

गुरु ऩुष्माभृत मोग

65

फदन के िौघफडमे

80

भाससक यासश पर

66

फदन फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक

81

ससतम्फय 2011 भाससक ऩॊिाॊग

71

ग्रह िरन ससतम्फय -2011

82

ससतम्फय-2011 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय

73

सूिना

90

ससतम्फय 2011 -त्रवशेष मोग

79

हभाया उद्दे श्म

91

सॊऩादकीम त्रप्रम आस्त्भम फॊधु/ फफहन जम गुरुदे व

वक्रतुॊड भहाकाम सूमाकोफट सभप्रब:

सनत्रवघ्ा नॊ कुरु भे दे व: सवाकामेषु सवादा हे रॊफे शयीय औय हाथी सभान भुख ॊ वारे गणेशजी, आऩ कयोड़ं सूमा के सभान िभकीरे हं । कृ ऩा कय भेये साये काभं भं आने वारी फाधाओॊ त्रवघ्नो को आऩ सदा दयू कयते यहं ।

गणऩसत शब्द का अथा हं । गण(सभूह)+ऩसत (स्वाभी) = सभूह के स्वाभी को सेनाऩसत अथाात गणऩसत कहते हं । भानव शयीय भं ऩाॉि ऻानेस्डद्रमाॉ, ऩाॉि कभेस्डद्रमाॉ औय िाय अडत्कयण होते हं । एवॊ इस शत्रिओॊ को जो शत्रिमाॊ सॊिासरत कयती हं उडहीॊ को िौदह दे वता कहते हं । इन सबी दे वताओॊ के भूर प्रेयक बगवान श्रीगणेश हं । बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा शुबायॊ ब से ऩूवा बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा-अिाना की जाती हं । इस सरमे मे फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा उस कामा का "श्री गणेश कयना" कहाॊ जाता हं । प्रत्मक शुब कामा मा अनुद्षान कयने के ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” भॊि का उच्िायण फकमा जाता हं । बगवान गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं के दाता भाना गमा है । क्मोफक सायी ससत्रद्धमाॉ बगवान श्री गणेश भं वास कयती हं ।

बगवान श्री गणेश सभस्त त्रवघ्नं को टारने वारे हं , दमा एवॊ कृ ऩा के असत सुद ॊ य भहासागय हं , तीनो रोक के कल्माण हे तु बगवान गणऩसत सफ प्रकाय से मोग्म हं । शास्त्रोि विन से इस कल्मुग भं तीव्र पर प्रदान कयने वारे बगवान गणेश औय भाता कारी हं । इस सरमे कहाॊ गमा हं ।

करा िण्डीत्रवनामकौ

अथाात ्: करमुग भं िण्डी औय त्रवनामक की आयाधना ससत्रद्धदामक औय परदामी होता है । धभा शास्त्रोभं ऩॊिदे वं की उऩासना कयने का त्रवधान हं । आफदत्मॊ गणनाथॊ ि दे वीॊ रूद्रॊ ि केशवभ ्।

ऩॊिदै वतसभत्मुिॊ सवाकभासु ऩूजमेत ्।। (शब्दकल्ऩद्रभ ु )

बावाथा: - ऩॊिदे वं फक उऩासना का ब्रह्माॊड के ऩॊिबूतं के साथ सॊफध ॊ है । ऩॊिबूत ऩृथ्वी, जर, तेज, वामु औय आकाश से फनते हं । औय ऩॊिबूत के आसधऩत्म के कायण से आफदत्म, गणनाथ(गणेश), दे वी, रूद्र औय केशव मे ऩॊिदे व बी ऩूजनीम हं । हय एक तत्त्व का हय एक दे वता स्वाभी हं ।

इस गणेश ितुथॉ के शुब अवसय ऩय आऩ अऩने जीवन भं फदन प्रसतफदन अऩने उद्दे श्म फक ऩूसता हे तु अग्रस्णम होते यहे आऩकी सकर भनोकाभनाएॊ ऩूणा हो एवॊ आऩके सबी शुब कामा बगवान श्री गणेश के आसशवााद से त्रफना फकसी सॊकट के ऩूणा होते यहे हभायी मफह भॊगर काभना हं ......

‘मावत स्जवेत सुखभ स्जवेत, ऋणॊ कृ त्वा घृतॊ त्रऩफेत।’ अथाात् जफ तक स्जमो सुख से स्जमो, ऋण रेकय घी त्रऩमो। दे ह के बस्भी बूत हो जाने ऩय दफ ु ाया इस सॊसाय भं आना कहाॉ से होगा। आज के आधुसनक मुग भं ऋण की सभस्मा असभय-भध्मभ-गयीव हय वगा फक हं । ऋण मा कजा ऎसे शब्द हं स्जसको सुनने भाि से व्मत्रि को उदास, स्खडन मा अवसाद भहसूस होता हं । क्मोफक कजा के फोझ भं दफा हुवा व्मत्रि सदै व भानससक सिॊता औय ऩये शानी भहसूस कयता हं । व्मत्रि हभेशा सोिता यहता हं की सभम ऩय कजा ना िुका ऩाने ऩय सभाज भं उसका भान-सम्भान व प्रसतद्षा सभट्टी भं सभर जामेगी, रोक नीॊदा हो जामेगी औय वह सोिता हं की उसे कजा के त्रऩॊड से भुत्रि कफ सभरेगी? वह कजा भुि कफ होगा? व्मत्रि को ना फदन भं िैन सभरता हं औय न ही यात भं शकून सभरता हं । व्मत्रि के यातो की सनॊद हयाभ हो जाती हं । आज सभाज भं व्मत्रि बौसतकता के दौड भं अॊधा हो गमा हं । असभय हो मा गरयव हय व्मत्रि व्मत्रि फदन यात एक कयके फकसी ना फकसी प्रकाय से असधक से असधक भािा भं धन एकत्रित कयना िाहता हं । असभय औय असभय फनना िाहता हं औय गयीव असभय फनना िाहता हं । क्मोफक एसा बी नहीॊ हं की कजा ससपा गयीफ को मा भध्मभ वगॉ रोगो को रेना ऩड़ता हं फडे से फडे असभयं को बी कजा रेना ऩड़ जाता हं । आज ज्मादातय व्मत्रि कजा के भक्कड़ जार भं उरझा हुआ हं ।

आज कोई व्मत्रि धन उधाय दे कय योते

हुवे सभरता हं तो कोई धन रेकय ऩिता ते हुवे आसानी से सभरता हं । 10-20 वषा ऩहरे फकसी से कजाा रेने के सरए रयस्तेदय-सभि-साहुकाय को ढे यं सभडनतं कयनी होती थीॊ ऩय अफ सभम फदर गमा हं गरी-गरी उधाय दे ने के सरमे फंक वारे रोन/क्रेफडट काडा दे ते फपयते यहते हं । ज्मोसतष भं रारफकताफ के अनुशाय केवर आसथाक ऋण ही भानव जीवन के फाधक नहीॊ हं उसके उऩयाॊत बी त्रऩतृ ऋण, भातृ ऋण, स्त्री ऋण, फहन-फेटी का ऋण, सनदा मी ऋण, अऻान का ऋण, दै त्रव ऋण, सॊफसॊ ध (रयश्तेदायी) का ऋण, स्वऋण आफद ऋण भानव के जीवन भं सुख-सभृत्रद्ध व उडनसत भं फाधक होते हं । आऩ सबी के भागादशान हे तु इस अॊक भं रारफकताफ भं उल्रेस्खत ऋण को त्रवस्तायऩूवाक भझामा जा यहा हं तथा उनके उऩाम बी फदमे जा यहे हं । बयतीम ऋत्रष-भुसन एवॊ त्रवद्रानो ने अऩने मोगफर व अनुबवो से कजा से भुत्रि हे तु त्रवसबडन स्तोि, भॊि, मॊि, उऩाम, प्रमोग इत्मादी फतामे हं स्जनका प्रमोग कय व्मत्रि सयरता से ऋणभुि हो सकता हं । हभायी शुबकाभनाएॊ आऩके साथ हं …..

सिॊतन जोशी

ससतम्फय 2011

6

सवाप्रथभ ऩूजनीम कैसे फने श्री गणेश?

 सिॊतन जोशी बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा कयने के ऩूवा

गमा। जफ इस त्रववादने फडा रुऩ धायण कय सरमे तफ

बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा की जाती हं इसी सरमे मे

सबी दे वता अऩने-अऩने फर फुत्रद्धअ के फर ऩय दावे

फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा कामा का "श्री

प्रस्तुत कयने रगे। कोई ऩयीणाभ नहीॊ आता दे ख सफ

गणेश कयना" कहा जाता हं । एवॊ प्रत्मक शुब कामा मा

दे वताओॊ ने सनणाम सरमा फक िरकय बगवान श्री त्रवष्णु

अनुद्षान कयने के ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” का उच्िायण

फकमा जाता हं । गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं को दे ने वारा भाना गमा है । सायी ससत्रद्धमाॉ गणेश भं वास कयती हं । इसके ऩीिे भुख्म कायण हं की बगवान श्री गणेश सभस्त त्रवघ्नं को टारने वारे हं , दमा एवॊ कृ ऩा के असत सुॊदय भहासागय हं , एवॊ तीनो रोक के कल्माण हे तु

बगवान

गणऩसत

को सनणाामक फना कय उनसे पैसरा कयवामा जाम। सबी दे व गण त्रवष्णु रोक भे उऩस्स्थत हो गमे, बगवान त्रवष्णु ने इस भुद्दे को गॊबीय होते दे ख श्री त्रवष्णु ने सबी दे वताओॊ को अऩने साथ रेकय सशवरोक भं ऩहुि

गमे। सशवजी ने कहा इसका सही सनदान सृत्रद्शकताा

ब्रह्माजी

फह

फताएॊगे।

सशवजी श्री त्रवष्णु एवॊ अडम दे वताओॊ के साथ सभरकय

सफ प्रकाय से मोग्म हं ।

ब्रह्मरोक

सभस्त त्रवघ्न फाधाओॊ

ब्रह्माजी को सायी फाते

त्रवनामक हं । गणेशजी

उनसे पैसरा कयने का

को दयू कयने वारे गणेश त्रवद्या-फुत्रद्ध

के

अथाह

सागय एवॊ त्रवधाता हं । बगवान गणेश को सवा प्रथभ ऩूजे जाने के त्रवषम भं कुि त्रवशेष रोक कथा प्रिसरत हं । इन त्रवशेष एवॊ रोकत्रप्रम कथाओॊ का वणान महा कय यहं हं । इस के सॊदबा भं एक कथा है फक भहत्रषा वेद व्मास ने भहाबायत को से फोरकय सरखवामा था, स्जसे स्वमॊ गणेशजी ने सरखा था। अडम कोई बी इस ग्रॊथ को तीव्रता से सरखने भं सभथा नहीॊ था। सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम हो? कथा इस प्रकाय हं : तीनो रोक भं सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम हो?, इस फात को रेकय सभस्त दे वताओॊ भं त्रववाद खडा हो

त्रवस्ताय

ऩहुिं

से

औय फताकय

अनुयोध फकमा। ब्रह्माजी ने कहा प्रथभ ऩूजनीम वहीॊ होगा जो जो ऩूये ब्रह्माण्ड के तीन िक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटे गा। सभस्त दे वता ब्रह्माण्ड का िक्कय रगाने के सरए अऩने अऩने वाहनं ऩय सवाय होकय सनकर ऩड़े । रेफकन, गणेशजी का वाहन भूषक था। बरा भूषक ऩय सवाय हो गणेश कैसे ब्रह्माण्ड के तीन िक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटकय सपर होते। रेफकन गणऩसत ऩयभ त्रवद्या-फुत्रद्धभान एवॊ ितुय थे। गणऩसत ने अऩने वाहन भूषक ऩय सवाय हो कय अऩने भाता-त्रऩत फक तीन प्रदस्ऺणा ऩूयी की औय जा ऩहुॉिे सनणाामक

ब्रह्माजी के ऩास। ब्रह्माजी ने जफ ऩूिा फक वे क्मं नहीॊ गए ब्रह्माण्ड के िक्कय ऩूये कयने, तो गजाननजी ने जवाफ फदमा फक

ससतम्फय 2011

7

भाता-त्रऩत भं तीनं रोक, सभस्त ब्रह्माण्ड, सभस्त तीथा,

उऩस्स्थसत भं भाता ऩावाती ने त्रविाय फकमा फक उनका

सभस्त दे व औय सभस्त ऩुण्म त्रवद्यभान होते हं ।

स्वमॊ का एक सेवक होना िाफहमे, जो ऩयभ

अत् जफ भंने अऩने भाता-त्रऩत की ऩरयक्रभा ऩूयी कय री, तो इसका तात्ऩमा है फक भंने ऩूये ब्रह्माण्ड की प्रदस्ऺणा ऩूयी

कामाकुशर तथा उनकी आऻा का सतत ऩारन कयने भं कबी त्रविसरत न हो। इस प्रकाय सोिकय भाता ऩावाती नं अऩने भॊगरभम ऩावनतभ शयीय के

कय री। उनकी मह तकासॊगत मुत्रि

भैर से अऩनी भामा शत्रि से फार

स्वीकाय कय री गई औय इस तयह वे सबी

गणेश को उत्ऩडन फकमा।

रोक भं सवाभाडम 'सवाप्रथभ ऩूज्म' भाने

एक सभम जफ भाता ऩावाती

गए।

भानसयोवय भं स्नान कय यही थी तफ

सरॊगऩुयाण के अनुसाय (105।

उडहंने स्नान स्थर ऩय कोई आ न

15-27) – एक फाय असुयं से िस्त

सके इस हे तु अऩनी भामा से गणेश

दे वतागणं द्राया की गई प्राथाना से बगवान

सशव

ने

सुय-सभुदाम

को जडभ दे कय 'फार गणेश' को ऩहया

को

असबद्श वय दे कय आद्वस्त फकमा। कुि ही सभम के ऩद्ळात तीनो रोक के दे वासधदे व भहादे व बगवान सशव का भाता ऩावाती के सम्भुख ऩयब्रह्म स्वरूऩ गणेश जी का प्राकट्म हुआ।

सवात्रवघ्नेश भोदक त्रप्रम गणऩसतजी का जातकभााफद सॊस्काय के ऩद्ळात ् बगवान

सशव ने अऩने ऩुि को उसका कताव्म

भॊि ससद्ध ऩडना गणेश हं । ऩडना गणेश फुध के सकायात्भक

सकते हं । मह सुनकय बगवान सशव

प्रबाव

यास्ते से हटने का कहते हं फकॊतु गणेश

कायक ग्रह फुध के असधऩसत दे वता

कय कहते हं फक आऩ उधय नहीॊ जा

प्रबाव को फठाता हं एवॊ नकायात्भक

क्रोसधत हो जाते हं औय गणेश जी को

को कभ कयता हं ।. ऩडन

गणेश के प्रबाव से व्माऩाय औय धन भं वृत्रद्ध भं वृत्रद्ध होती हं । फच्िो फक

अनुद्षान

इत्माफद

शुब

कभं

का

फक

अनुद्षान

कये गा, उसका

भॊगर

बी

रोग पर की काभना से ब्रह्मा, त्रवष्णु, इडद्र अथवा अडम दे वताओॊ की बी

ऩूजा कयं गे, फकडतु तुम्हायी ऩूजा नहीॊ कयं गे, उडहं तुभ त्रवघ्नं द्राया फाधा ऩहुॉिाओगे।

फुत्रद्ध

कूशाग्र

होकय

उसके

आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती हं । भानससक अशाॊसत को कभ कयने भं

सशव

फक

जाता है । मुद्ध के दौयान क्रोसधत होकय सशवजी फार गणेश का ससय धड़ से अरग कय दे ते हं । सशव के इस कृ त्म का जफ ऩावाती को ऩता िरता है तो वे त्रवराऩ औय क्रोध से प्ररम का सृजन कयते हुए कहती है फक तुभने भेये ऩुि

व्मत्रि के शायीय के तॊि को सनमॊत्रित

ऩावातीजी के द्ु ख को दे खकय

हयी त्रवफकयण शाॊती प्रदान कयती हं ,

को भाय डारा।

कयती

सशवजी ने उऩस्स्थत गणको आदे श दे ते

हं ।

स्जगय,

पेपड़े , जीब,

भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्माफद योग

Rs.550 से Rs.8200 तक अन

जी अड़े यहते हं तफ दोनं भं मुद्ध हो

भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत

भयगज के फने होते हं ।

गणेशजी की ऩौयास्णक कथा बगवान

ऩडना गणेश इस के प्रबाव से फच्िे

भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय

जडभ की कथा बी फड़ी योिक है ।

इसी दौयान बगवान सशव उधय आ जाते हं । गणेशजी सशवजी को योक

ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं

अभॊगर भं ऩरयणत हो जामेगा। जो

दे ने के सरए सनमुि कय फदमा।

बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के

सभझाते हुए आशीवााद फदमा फक जो

तुम्हायी ऩूजा फकमे त्रफना ऩूजा ऩाठ,

शुब,

हुवे कहा सफसे ऩहरा जीव सभरे, उसका ससय काटकय इस फारक के धड़ ऩय रगा दो, तो मह फारक जीत्रवत हो उठे गा। सेवको को सफसे ऩहरे हाथी का एक फच्िा सभरा। उडहंने उसका ससय राकय फारक

ससतम्फय 2011

8

के धड़ ऩय रगा फदमा, फारक जीत्रवत हो उठा।

कये इस सरमे बगवान त्रवष्णु अडम दे वताओॊ के साथ भं

उस अवसय ऩय तीनो दे वताओॊ ने उडहं सबी रोक

तम फकम फक गणेश सबी भाॊगरीक कामो भं अग्रणीम

भं अग्रऩूज्मता का वय प्रदान फकमा औय उडहं सवा अध्मऺ

ऩूजे जामंगे एवॊ उनके ऩूजन के त्रफना कोई बी दे वता ऩूजा

ऩद ऩय त्रवयाजभान फकमा। स्कॊद ऩुयाण

ग्रहण नहीॊ कयं गे।

ब्रह्मवैवताऩुयाण के अनुसाय (गणऩसतखण्ड) – सशव-ऩावाती के त्रववाह होने के फाद उनकी कोई सॊतान नहीॊ हुई, तो सशवजी ने ऩावातीजी से बगवान

इस ऩय बगवान ् त्रवष्णु ने श्रेद्षतभ उऩहायं से

बगवान गजानन फक ऩूजा फक औय वयदान फदमा फक

सवााग्रे तव ऩूजा ि भमा दत्ता सुयोत्तभ।

त्रवष्णु के शुबपरप्रद ‘ऩुण्मक’ व्रत कयने को कहा ऩावाती

सवाऩूज्मद्ळ मोगीडद्रो बव वत्सेत्मुवाि तभ ्।।

के ‘ऩुण्मक’ व्रत से बगवान त्रवष्णु ने प्रसडन हो कय ऩावातीजी को ऩुि प्रासद्ऱ का वयदान फदमा। ‘ऩुण्मक’ व्रत के प्रबाव से ऩावातीजी को एक ऩुि उत्ऩडन हुवा। ऩुि जडभ फक फात सुन कय सबी दे व, ऋत्रष, गॊधवा आफद सफ गण फारक के दशान हे तु ऩधाये । इन दे व गणो भं शसन भहायाज बी उऩस्स्थत हुवे। फकडतु शसनदे व ने ऩत्नी द्राया फदमे गमे शाऩ के कायण फारक का दशान

नहीॊ फकमा। ऩयडतु भाता ऩावाती के फाय-फाय कहने ऩय शसनदे व नं जेसे फह अऩनी द्रत्रद्श सशशु फारके उऩय ऩडी, उसी ऺण

फारक गणेश का गदा न धड़ से अरग हो

गमा। भाता ऩावाती के त्रवरऩ कयने ऩय बगवान ् त्रवष्णु

ऩुष्ऩबद्रा नदी के अयण्म से एक गजसशशु का भस्तक

(गणऩसतखॊ. 13। 2) बावाथा: ‘सुयश्रेद्ष! भंने सफसे ऩहरे तुम्हायी ऩूजा फक है , अत् वत्स! तुभ सवाऩूज्म तथा मोगीडद्र हो जाओ।’ ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं ही एक अडम प्रसॊगाडतगात ऩुिवत्सरा ऩावाती ने गणेश भफहभा का फखान कयते हुए ऩयशुयाभ से कहा –

त्वफद्रधॊ रऺकोफटॊ ि हडतुॊ शिो गणेद्वय्। स्जतेस्डद्रमाणाॊ प्रवयो नफह हस्डत ि भस्ऺकाभ ्।।

तेजसा कृ ष्णतुल्मोऽमॊ कृ ष्णाॊद्ळ गणेद्वय्। दे वाद्ळाडमे कृ ष्णकरा् ऩूजास्म ऩुयतस्तत्।।

काटकय रामे औय गणेशजी के भस्तक ऩय रगा फदमा।

(ब्रह्मवैवताऩु., गणऩसतख., 44। 26-27)

गजभुख रगे होने के कायण कोई गणेश फक उऩेऺा न

बावाथा: स्जतेस्डद्रम ऩुरूषं भं श्रेद्ष गणेश तुभभं जैसे

क्मा आऩ फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं ? आऩके ऩास अऩनी सभस्माओॊ से िुटकाया ऩाने हे तु ऩूजा-अिाना, साधना, भॊि जाऩ इत्माफद कयने का सभम नहीॊ हं ? अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना फकसी त्रवशेष ऩूजा-अिाना, त्रवसध-त्रवधान के आऩको अऩने कामा भं सपरता प्राद्ऱ कय सके एवॊ आऩको अऩने जीवन के सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सके इस सरमे गुरुत्व कामाारत द्राया हभाया उद्दे श्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि त्रवसबडन प्रकाय के मडि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का है ।

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ससतम्फय 2011

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राखं-कयोड़ं जडतुओॊ को भाय डारने की शत्रि है ; ऩयडतु

3. तेज (अस्ग्न) शत्रि (भहे द्वयी)

तुभने भक्खी ऩय बी हाथ नहीॊ उठामा। श्रीकृ ष्ण के अॊश

4. भरूत ् (वामु) सूमा (अस्ग्न)

से उत्ऩडन हुआ वह गणेश तेज भं श्रीकृ ष्ण के ही सभान

5. व्मोभ (आकाश) त्रवष्णु

है । अडम दे वता श्रीकृ ष्ण की कराएॉ हं । इसीसे इसकी अग्रऩूजा होती है ।

बगवान ् श्रीसशव ऩृथ्वी तत्त्व के असधऩसत होने के

शास्त्रीम भतसे

कायण उनकी सशवसरॊग के रुऩ भं ऩासथाव-ऩूजा का त्रवधान

शास्त्रोभं ऩॊिदे वं की उऩासना कयने का त्रवधान हं ।

हं । बगवान ् त्रवष्णु के आकाश तत्त्व के असधऩसत होने के

आफदत्मॊ गणनाथॊ ि दे वीॊ रूद्रॊ ि केशवभ ्। ऩॊिदै वतसभत्मुिॊ सवाकभासु ऩूजमेत ्।।

(शब्दकल्ऩद्रभ ु ) बावाथा: - ऩॊिदे वं फक उऩासना का ब्रह्माॊड के ऩॊिबूतं के साथ सॊफॊध है । ऩॊिबूत ऩृथ्वी, जर, तेज, वामु औय आकाश से फनते हं । औय ऩॊिबूत के आसधऩत्म के कायण से आफदत्म, गणनाथ(गणेश), दे वी, रूद्र औय केशव मे ऩॊिदे व बी ऩूजनीम हं । हय एक तत्त्व का हय एक दे वता स्वाभी हं -

कायण उनकी शब्दं द्राया स्तुसत कयने का त्रवधान हं । बगवती दे वी के अस्ग्न तत्त्व का असधऩसत होने के कायण उनका अस्ग्नकुण्ड भं हवनाफद के द्राया ऩूजा कयने का त्रवधान हं । श्रीगणेश के जरतत्त्व के असधऩसत होने के कायण उनकी सवाप्रथभ ऩूजा कयने का त्रवधान हं , क्मंफक ब्रह्माॊद भं सवाप्रथभ उत्ऩडन होने वारे जीव तत्त्व ‘जर’ का असधऩसत होने के कायण गणेशजी ही प्रथभ ऩूज्म के असधकायी होते हं । आिामा भनु का कथन है “अऩ एि ससजाादौ तासु फीजभवासृजत ्।”

आकाशस्मासधऩो त्रवष्णुयग्नेद्ळैव भहे द्वयी।

वामो् सूम्ा स्ऺतेयीशो जीवनस्म गणासधऩ्।।

(भनुस्भृसत 1)

बावाथा:- क्रभ इस प्रकाय हं भहाबूत असधऩसत

बावाथा:

1. स्ऺसत (ऩृथ्वी) सशव

इस प्रभाण से सृत्रद्श के आफद भं एकभाि वताभान जर का

2. अऩ ् (जर) गणेश

असधऩसत गणेश हं ।

ऩसत-ऩत्नी भं करह सनवायण हे तु मफद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा के सभस्त साधान होते हुए बी िोटी-िोटी फातो भं ऩसत-ऩत्नी के त्रफि भे करह होता

यहता हं , तो घय के स्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि वशीकयण कवि एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं त्रफना फकसी ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मफद आऩ भॊि ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी

वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवाना िाहते हं, तो सॊऩका आऩ कय सकते हं ।

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ससतम्फय 2011

क्मं शुबकामं भं सवाप्रथभ ऩूजा होती हं गणेशजी की?

 सिॊतन जोशी गणऩसत शब्द का अथा हं । गण(सभूह)+ऩसत (स्वाभी) = सभूह के स्वाभी को सेनाऩसत अथाात गणऩसत कहते हं । भानव शयीय भं ऩाॉि ऻानेस्डद्रमाॉ, ऩाॉि कभेस्डद्रमाॉ औय िाय अडत्कयण होते हं । एवॊ इस शत्रिओॊ को जो शत्रिमाॊ सॊिासरत कयती हं उडहीॊ को िौदह दे वता कहते हं । इन सबी दे वताओॊ के भूर प्रेयक हं बगवान श्रीगणेश। बगवान गणऩसत शब्दब्रह्म अथाात ् ओॊकाय के प्रतीक हं , इनकी भहत्व का मह हीॊ भुख्म कायण हं । श्रीगणऩत्मथवाशीषा भं वस्णात हं ओॊकाय का ही व्मि स्वरूऩ गणऩसत दे वता हं । इसी कायण सबी प्रकाय के शुब भाॊगसरक कामं औय दे वता-प्रसतद्षाऩनाओॊ भं बगवान गणऩसत फक प्रथभ ऩूजा फक जाती हं । स्जस प्रकाय से प्रत्मेक भॊि फक शत्रि को फढाने के सरमे भॊि के आगं ॐ (ओभ ्)

आवश्मक रगा होता हं । उसी प्रकाय प्रत्मेक शुब भाॊगसरक कामं

के सरमे ऩय बगवान ् गणऩसत की ऩूजा एवॊ स्भयण असनवामा भानी गई हं । इस सबी शास्त्र एवॊ वैफदक धभा, सम्प्रदामं ने

इस प्रािीन ऩयम्ऩया को एक भत से स्वीकाय फकमा हं इसका सदीमं से बगवान गणे श जी क प्रथभ ऩूजन कयने फक ऩयॊ ऩया का अनुसयण कयते िरे आयहे हं । गणेश जी की ही ऩूजा सफसे ऩहरे क्मं होती है , इसकी ऩौयास्णक कथा इस प्रकाय है ऩद्मऩुयाण के अनुसाय (सृत्रद्शखण्ड 61। 1 से 63। 11) – एक फदन व्मासजी के सशष्म ने अऩने गुरूदे व को प्रणाभ कयके प्रद्ल फकमा फक गुरूदे व! आऩ भुझे दे वताओॊ के ऩूजन का सुसनस्द्ळत क्रभ फतराइमे। प्रसतफदन फक ऩूजा भं सफसे ऩहरे फकसका ऩूजन कयना िाफहमे ? तफ व्मासजी ने कहा:

त्रवघ्नं को दयू कयने के सरमे सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी िाफहमे। ऩूवक ा ार भं

ऩावाती दे वी को दे वताओॊ ने अभृत से तैमाय फकमा हुआ एक फदव्म भोदक फदमा। भोदक दे खकय दोनं फारक (स्कडद तथा गणेश) भाता से भाॉगने रगे। तफ भाता ने भोदक के प्रबावं का वणान कयते हुए कहा फक तुभ दोनो भं से जो

धभााियण के द्राया श्रेद्षता प्राद्ऱ कयके आमेगा, उसी को भं मह भोदक दॉ ग ू ी। भाता की ऐसी फात सुनकय स्कडद भमूय ऩय

आरूढ़ हो कय अल्ऩ भुहूतब ा य भं सफ तीथं की स्डनान कय सरमा। इधय रम्फोदयधायी गणेशजी भाता-त्रऩता की ऩरयक्रभा

कयके त्रऩताजी के सम्भुख खड़े हो गमे। तफ ऩावातीजी ने कहा- सभस्त तीथं भं फकमा हुआ स्डनान, सम्ऩूणा दे वताओॊ को

फकमा हुआ नभस्काय, सफ मऻं का अनुद्षान तथा सफ प्रकाय के व्रत, भडि, मोग औय सॊमभ का ऩारन- मे सबी साधन भाता-त्रऩता के ऩूजन के सोरहवं अॊश के फयाफय बी नहीॊ हो सकते।

इससरमे मह गणेश सैकड़ं ऩुिं औय सैकड़ं गणं से बी फढ़कय श्रेद्ष है । अत् दे वताओॊ का फनामा हुआ मह भोदक भं गणेश को ही अऩाण कयती हूॉ। भाता-त्रऩता की बत्रि के कायण ही गणेश जी की प्रत्मेक शुब भॊगर भं सफसे ऩहरे ऩूजा होगी।

तत्ऩद्ळात ् भहादे वजी फोरे- इस गणेश के ही अग्रऩूजन से सम्ऩूणा दे वता प्रसडन हंजाते हं । इस सरमे तुभहं

सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी िाफहमे।

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ससतम्फय 2011

गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता

 सिॊतन जोशी वैऻासनक ऩद्धसत के अनुसाय ब्रह्माॊड भं सभम व अनॊत आकाश के असतरयि सभस्त वस्तुएॊ भमाादा मुि हं । स्जस प्रकाय सभम का न ही कोई प्रायॊ ब है न ही कोई अॊत है । अनॊत आकाश की बी सभम की तयह कोई भमाादा नहीॊ है । इसका कहीॊ बी प्रायॊ ब मा अॊत नहीॊहोता। आधुसनक भानव ने इन दोनं तत्वं को हभेशा सभझने का व अऩने अनुसाय इनभं भ्रभण कयने का प्रमास फकमा हं ऩयडतु उसे सपरता प्राद्ऱ नहीॊ

हुई है ।

साभाडमत् भुहूता का अथा है फकसी बी कामा को कयने के सरए सफसे शुब सभम व सतसथ िमन

कयना। कामा ऩूणत ा ् परदामक हो इसके सर, सभस्त ग्रहं व अडम ज्मोसतष तत्वं का तेज इस प्रकाय

केस्डद्रत फकमा जाता है फक वे दष्ु प्रबावं को त्रवपर कय दे ते हं । वे भनुष्म की जडभ कुण्डरी की सभस्त फाधाओॊ को हटाने भं व दम ु ोगो को दफाने मा घटाने भं सहामक होते हं ।

शुब भुहूता ग्रहो का ऎसा अनूठा सॊगभ है फक वह कामा कयने वारे व्मत्रि को ऩूणत ा ् सपरता की

ओय अग्रस्त कय दे ता है ।

फहडद ू धभा भं शुब कामा केवर शुब भुहूता दे खकय फकए जाने का त्रवधान हं । इसी त्रवधान के

अनुसाय श्रीगणेश ितुथॉ के फदन बगवान श्रीगणेश की स्थाऩना के श्रेद्ष भुहूता आऩकी अनुकूरता हे तु दशााने का प्रमास फकमा जा यहा हं । फहडद ू धभा ग्रॊथं के अनुसाय शुब भुहूता दे खकय फकए गए कामा सनस्द्ळत शुब व सपरता दे ने वारे होते हं ।

श्रीगणेश ितुथॉ के सरमे (1 ससतॊफय 2011 गुरुवाय) प्रात्

6:20 से 7:50 तक

भध्माह्न् सॊध्मा्

शुब

12:20 से 1:30 तक राब 4:50 से 6:20 तक शुब

अडम शुब सभम

वृस्द्ळक रग्न भं (दोऩहय 11:44 से दोऩहय 1:30 तक ) तथा कुॊब रग्न भं (सॊध्मा 5:52 से सॊध्मा 7: 03 तक) बगवान श्रीगणेश प्रसतभा की स्थाऩना की जा सकती हं । क्मंफक ज्मोसतष के अनुशाय वृस्द्ळक औय कुॊब दोनं स्स्थय रग्न हं । स्स्थय रग्न भं फकमा गमा कोई बी शुब कामा स्थाई होता हं ।

त्रवद्रानो के भतानुशाय शुब प्रायॊ ब मासन आधा कामा स्वत् ऩूण।ा

ससतम्फय 2011

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सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन

 त्रवजम ठाकुय श्री गणेशजी की ऩूजा से व्मत्रि को फुत्रद्ध, त्रवद्या,

ऩत्रवि कयण:

त्रववेक योग, व्मासध एवॊ सभस्त त्रवध्न-फाधाओॊ का स्वत्

सफसे ऩहरे ऩूजन साभग्री व गणेश प्रसतभा सिि ऩत्रवि

नाश होता है

कयण कयं

श्री गणेशजी की कृ ऩा प्राद्ऱ होने से व्मत्रि के भुस्श्कर से भुस्श्कर कामा बी आसान हो जाते हं । स्जन

रोगो

को

व्मवसाम-नौकयी

भं

त्रवऩयीत

ऩरयणाभ प्राद्ऱ हो यहे हं, ऩारयवारयक तनाव, आसथाक तॊगी, योगं से ऩीड़ा हो यही हो एवॊ व्मत्रि को अथक भेहनत कयने के उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ु ख, सनयाशा प्राद्ऱ हो

अऩत्रवि् ऩत्रविो वा सवाावस्थाॊ गतो त्रऩ वा।

म् स्भये त ् ऩुण्डयीकाऺॊ स फाह्याभ्मडतय् शुसि्॥

इस भॊि से शयीय औय ऩूजन साभग्री ऩय जर िीटं इसे अॊदय फाहय औय फहाय दोनं शुद्ध हो जाता है आिभन:

ॐ केशवाम नभ:

यही हो, तो एसे व्मत्रिमो की सभस्मा के सनवायण हे तु

ॐ नायामण नभ:

ितुथॉ के फदन मा फुधवाय के फदन श्री गणेशजी की

ॐ भध्वामे नभ:

त्रवशेष ऩूजा-अिाना कयने का त्रवधान शास्त्रं भं फतामा हं ।

हस्तो प्रऺल्म हसशाकेशम नभ :

स्जसके पर से व्मत्रि की फकस्भत फदर जाती हं औय उसे जीवन भं सुख, सभृत्रद्ध एवॊ ऎद्वमा की प्रासद्ऱ होती हं । श्री गणेश जी का ऩूजन अरग-अरग उद्दे श्म एवॊ काभनाऩूसता हे तु अरग-अरग भॊि व त्रवसध-त्रवधान से फकमा जाता हं , इस सरमे महाॊ दशााई गई ऩूजन त्रवसध भं अॊतय होना साभाडम हं । सबी ऩाठको के भागादशान हे तु श्री गणेश जी का ऩूजन त्रवधान फदमा जा यहा हं ।

त्व ि धायम भा दे त्रव ऩत्रवि कुरू ि आसनभ॥्

यऺा भॊि:

'अऩक्राभडतु बूतासन त्रऩशािा् सवातो फदशा।

अऩसऩाडतु ते बूता् मे बूता् बूसभसॊस्स्थता्। मे बूता त्रवनकताायस्ते नद्शडतु सशवाऻमा।'

ऩूजन साभग्री: कुॊकुॊभ, केसय, ससॊदयू , अवीय-गुरार, ऩुष्ऩ औय भारा, ऩान,

ॐ ऩृथ्वी त्वमा धृता रोका दे त्रव त्व त्रवद्गणुनाधृता्।

सवेषाभवयोधेन ब्रह्मकभा सभायबे।

गणेश ऩूजा:

िारव,

आसान सुत्रद्ध:

सुऩायी,

ऩॊिाभृत,

ऩॊिभेवा,

गॊगाजर,

त्रफरऩि, धूऩ-दीऩ, नैवैद्य भं रड्डू (रड्डू 3,5,7,11 त्रवषभ सॊख्मा भं) मा गूड अथवा सभश्री का प्रसाद रगाएॊ। रंग, इरामिी, नायीमर, करश, 1 सभटय रार कऩडा, फयक, इि, जनेऊ, त्रऩरी सयसं, इत्माफद आवश्मक साभग्रीमाॊ।

इस भॊि से दशं फदशाओॊ भं त्रऩरा सयसं सिटके स्जसेस सभस्त बूत प्रेत फाधाओॊ का सनवायण होता है स्वस्ती वािन:

स्वस्स्त न इडद्रो वृद्धश्रवा: स्वस्स्त न: ऩूषा त्रवद्ववेदा:।

स्वस्स्तनस्ता यऺो अरयद्शनेसभ: स्वस्स्त नो फृहस्ऩसतादधात॥ इस के फाद श्री गणेश जी के भॊगर ऩाठ कयना िाफहए जो की इस प्रकाय है

ससतम्फय 2011

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रॊफोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्ननाशो त्रवनामक्।

गणेश जी का भॊगर ऩाठ:

सुभुखद्ळैकदडतद्ळ कत्रऩरो गजकणाक:।

धुम्रकेतुय ् गणाध्मऺो बारिॊद्रो गजानन॥

रम्फोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्रनाशो त्रवनामक:॥

द्रादशैतासन नाभासन म् ऩठे च्िृणु मादऽत्रऩ॥

द्राद्रशैतासन नाभासन म: ऩठे च्िे णुमादत्रऩ॥

सॊग्राभे सॊकटे िैव त्रवघ्नस्तस्म न जामते॥

सॊग्राभे सॊकटे िैव त्रवघ्रस्तस्म न जामते॥

प्रसडन वदनॊ ध्मामेत ् सवा त्रवघ्नोऩशाॊतमे॥

धूम्रकेतुगण ा ाध्मऺो बारिडद्रो गजानन:।

त्रवद्यायॊ बे त्रववाहे ि प्रवेशे सनगाभे तथा।

त्रवद्यायम्बे त्रववाहे ि प्रवेशे सनगाभे तथा।

शुक्राॊफय धयॊ दे वॊ शसशवणं ितुबज ुा भ ्।

जऩेद् गणऩसत स्तोिॊ षस्ड्बभाासे परॊ रबेत ्।

एकाग्रसिन होकय गणेश का ध्मान कयना िाफहए

सॊवॊत्सये ण ससत्रद्धॊ ि रबते नाि सॊशम्॥

श्री गणेश का ध्मान कयं : गजाननॊ

बूतगणाफद

सेत्रवतभ ्

कत्रऩत्थ

वक्रतुॊड भहाकाम सूमक ा ोफट सभ प्रब।

जम्फूपर

िारुबऺणभ।् उभासुतभ ् शोक त्रवनाश कायकभ ् नभासभ त्रवघ्नेद्वय ऩाद ऩॊकजभ॥् ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्िायण कयं ।

सनत्रवाघ्नॊ कुरु भे दे व सवा कामेषु सवादा॥

असबस्ससताथा ससद्धध्मथं ऩूस्जतो म् सुयासुयै्। सवा त्रवघ्न हयस्तस्भै गणासधऩतमे नभ्॥

त्रवघ्नेद्वयाम वयदाम सुयत्रप्रमाम रॊफोदयाम सकराम

जगस्त्धताम। नागाननाम श्रुसतमऻ त्रवबुत्रषताम गौयीसुताम

आह्वानॊ: इस भॊि से श्री गणेश का आहवान कये मा भन ही भन भं श्री गणेश जी को ऩधायने के सरमे त्रवनसत कयं । हाथभं

गणनाथ नभो नभस्ते॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् गणेशॊ स्भयासभ भॊि का उच्िायण कयके ऩुष्ऩ अत्रऩात कयं

अऺत रेकय आहवान कयं ।

आगच्ि बगवडदे व स्थाने िाि स्स्थयो बव

मावत्ऩूजाॊ करयष्मासभ तावत्वॊ सस्डनधौ बव।। ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ्

षोडशोऩिाय गणऩतीऩूजन:

अस्मै प्राण् प्रसतद्षडतु अस्मै प्राणा् ऺयडतु ि। अस्मै दे वतभिीमा भाभहे सत ि कद्ळन॥

गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्िायण कयके अऺते डारदं ..... इस भॊि से श्री गणेश की भूसता मा प्रसतभा ऩय हल्दी मा कुभकुभ से यॊ गे िारव डारं। मफद प्रसतभा के प्रहरे से प्राण-प्रसतद्षा हो गई हं तो आवश्मिा नहीॊ हं तफ केवर सुऩायी ऩय ही िारव डारं।

आसनॊ: आसन सभत्रऩात कयं । मफद ऩहरे से वस्त्र त्रफिामा हुवा हं तो उस स्थान ऩय हल्दी मा कुभकुभ से यॊ गे अऺत डारकय ऩुष्ऩ अत्रऩात कयं ।

यम्मॊ सुशोबनॊ फदव्मॊ सवा सौख्म कयॊ शुबभ ्। आसनॊ ि भमादत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वय॥

स्भयण:

हाथभं ऩुष्ऩ रेकय श्री गणेशजी का स्भयण कयं । नभस्तस्भै गणेशाम सवा त्रवध्न त्रवनासशने॥ कामाायॊबेषु सवेषु ऩूस्जतो म् सुयैयत्रऩ।

सुभुखद्ळैक दॊ तद्ळ कत्रऩरो गजकणाक्॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आसनॊ सभऩामासभ॥

मफद द्ऴोक ऩढने भं कफठनाई हो तो आसन सभऩाासभ श्री गॊ गणेशाम नभ् का उच्िायण कयते हुवे गणेश जी के ियण धोमे।

ससतम्फय 2011

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ऩाद्यॊ:

उष्णोदकॊ सनभारॊ ि सवा सौगडध सॊमुतभ ्। ऩाद प्रऺारनाथााम दत्तॊ ते प्रसतगृह्यताभ ्॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ऩाद्यॊ सभऩामासभ॥

इस के स्थान ऩय ऩम् स्नानभ ् सभऩामासभ गॊ गणेशाम

नभ् का उच्िायण कये तथा ऩम् के स्थान ऩय दध ू कहं , दहीॊ कहं , धृतभ ् कहं , भधु कहं , शकाया कहं के स्नान कयामे।

ऩमसस्तु सभुद्भूतॊ भधुयाम्रॊ शसशप्रबभ ् ।

दध्मानीतॊ भमा दे व स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥

अघ्मं:

नवनीतसभुत्ऩडनॊ सवासॊतोषकायकभ ् ।

आिभनीभं जर, पूर, पर, िॊदन, अऺत, दस्ऺणा

घृतॊ तुभ्मॊ प्रदास्मासभ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥

इत्माफद हाथ भं यख कय सनम्न भॊि का उच्िायण कयं ...

अध्मा गृहाण दे वेश गॊध ऩुष्ऩऺतै् सह।

तरु ऩुष्ऩ सभुत्ऩडनॊ सुस्वादु भधुयॊ भधु ।

करुणा कुरु भं दे व गृहाणाध्मै् नभोस्तुते॥

तेज् ऩुत्रद्शकयॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥

भॊि का उच्िायण कयके अध्मा की साभग्रीमा अत्रऩात कयदं ।

भराऩहारयकाॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥

आिभन:

ऩॊिाभृत भमानीतॊ सनानाथा प्रसतघृहमताभ॥

इऺुसायसभुद्भूताॊ शका याॊ ऩुत्रद्शदाॊ शुबाभ ् ।

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् अघ्मं सभऩामासभ

सवा तीथा सभामुिॊ सुगसॊ ध सनभार जरभ ्। आिम्मताॊ भमा दत्तॊ गृहीत्वा ऩयभेद्वयॊ ॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आिभनॊ सभऩामासभ॥

स्नानॊ:

गॊगा ि मभुना ये वा तुॊगबद्रा सयस्वसत।

कावेयी सफहता नद्य् सद्य् स्नाथाभत्रऩाता॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् स्नानॊ सभऩामासभ भॊि का उच्िायण कयते हुवे स्नान कयामे।

ऩमो दसध धृत िैव भधु ि शका यामुतभ ्।

वस्त्रॊ: ऩॊिाभृत स्नान के फाद स्वच्ि कय के वस्त्र ऩहनामे मा सभत्रऩात कयं ।

सवा बूषाफदके सौम्मे रोकरज्जा सनवायणे । भमोऩऩाफदते तुभ्मॊ वाससी प्रसतगृहीताभ ् ॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् वस्त्रोऩवस्त्रे सभऩामासभ॥

मऻोऩवीत

ततऩद्ळमात सनम्न भॊि से मऻोऩवीत ऩहनामे

ऩॊिाभृत स्नान:

नवसभस्तॊतुसबमुि त्रिगुणॊ दे वताभमॊ।

तत ऩद्ळमात ऩॊिाभृत से क्रभश् दध ू , दही, घी, शहद,

शक्कय से स्नान कया कय शुद्धजर मा गॊगाजर से उि भॊि से ऩुन् स्वच्ि कयरे। तत ऩद्ळमात शुद्ध वस्त्र से ऩोि कय प्रसतत्रद्षत कयं । दध ू स्नान:

काभधेनु सभुत्ऩनॊ सवेषाॊ जीवन ऩयभ ्।

ऩावनॊ मऻ हे तुद्ळ ऩम: स्नानाथाभत्रऩातभ ्॥

सऩफीतॊ भमा दत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वयभ ्॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् मऻोऩत्रवतॊ सभऩामासभ॥

िॊदन:

ततऩद्ळमात रार िॊदन िढामे।

श्रीखण्ड िडदन फदव्मॊ केशयाफद सुभनीहयभ ्।

त्रवरेऩनॊ सुश्रद्ष िडदनॊ प्रसतगृहमतभ ्॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् कुॊकुभॊ सभऩामासभ॥

ससतम्फय 2011

15

कुॊकुॊभ:

ततऩद्ळमात कुॊकुॊभ अवीय-गुरार िढामे।

आबूषण:

ततऩद्ळमात आबूषण िढामे।

कुॊकुॊभ काभना फदव्मॊ काभना काभ सॊबवभ ्।

अरॊकायाडभहाफदव्माडनानायतन त्रवसनसभातान।

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् कुॊकुभॊ

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आबूषण

कुॊकुॊभ नासिातो दे व गृहाण ऩयभेद्वयभ ्॥

गृहाण दे व-दे वेश प्रसीद ऩयभेद्वय॥

सभऩामासभ॥

ससॊदयू :

ततऩद्ळमात ससॊदयू िढामे।

सभऩामासभ॥

इि:

ततऩद्ळमात इि अथाात ् सुगॊसधत तेर िढामे।

ससॊदयू ॊ शोबनॊ यिॊ सौबाग्मॊ सुखवधानभ ्। शुबदॊ काभदॊ िैव ससॊदयू ॊ प्रसतगृहमताभ।

िम्ऩकाशो वकुरॊ भारती भोगयाफदसब्।

वाससतॊ स्स्नग्ध तासेरु तैरॊ िारु प्रगृहमातभ ्॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ससॊदयू ॊ सभऩामासभ॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् तैरभ ् सभऩामासभ॥

अऺत:

धूऩ:

ततऩद्ळमात हल्दी मा कुॊकुॊभ से यॊ गे अऺत िढामे।

ततऩद्ळमात धूऩ आफद जरामे।

अऺताद्ळ सुयश्रेद्ष कुॊकुभािा् सुशोसबता्।

भमा सनवेफदता बक्त्मा गृहाण ऩयभेद्वरय॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् अऺतान ् सभऩामासभ॥

ऩुष्ऩ:

ततऩद्ळमात ऩुष्ऩ भारा आफद िढामे।

भाल्मादीसन सुगडधीसन भारत्मादीसन वै प्रबो। भमा नीतासन ऩुष्ऩास्ण गृहाण ऩयभेद्वय॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ऩुष्ऩास्ण सभऩामासभ॥

दव ू ाा:

ततऩद्ळमात दव ू ाा िढामे।

दव ु ाा कयाडसह रयतान भृतडभॊगर प्रदान। आनी ताॊस्तव ऩूजाथा गृहाण ऩयभेद्वय॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् दव ू ांकुयान सभऩामासभ॥

वनस्ऩसत यसोद्भूतो गॊधाढ्मो गॊध उत्तभ्।

आध्नम सवा दे वानाॊ धूऩोमॊ प्रसतगृह्यताभ ्॥

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् धूऩॊ सभऩामासभ॥ दीऩ:

ततऩद्ळमात दीऩ आफद जरामे।

आज्मेन वसताना मुिॊ वफह्नना ि प्रमोस्जतभ ् भमा। दीऩॊ गृहाण दे वेश िेरोक्म सतसभयाऩह॥।

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् दीऩॊ दशामासभ॥ नैवेद्य:

ततऩद्ळमात नैवेद्य अत्रऩात कयं ।

शका या खॊडखाद्यासन दसधऺीय घृतासन ि।

आहायॊ बक्ष्मॊ बोज्मॊ ि गृहाण गणनामक।

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् नैवेद्यॊ सनवेदमासभ॥ ततऩद्ळमात नैवेद्य ऩय जर सिडके। गॊ गणऩतमे नभ्

ससतम्फय 2011

16

ततऩद्ळमात इस भॊि का उच्िायण कयते हुवे ऩाॊि फाय बोजन कयामे.....

ॐ प्राणाम नभ्।

ॐ अऩानाम नभ्। ॐ व्मानाम नभ्।

ॐ उदानाम नभ्।

ॐ सभानाम नभ्।

ततऩद्ळमात इस भॊि का उच्िायण कयते हुवे जर अत्रऩात कयं ।

भध्मे ऩानीमॊ सभऩामासभ।

फपय से उि भॊि का ऩाॊि फाय उच्िायण कयते हुवे ऩाॊि फाय बोजन कयामे....

जर अत्रऩात कयं ....

ॐ गणेशाम नभ् उत्तय ऩोषणॊ सभऩामासभ।

ॐ गणेशाम नभ् हस्त प्रऺारनॊ सभऩामासभ। ॐ गणेशाम नभ् भुख प्रऺारनॊ सभऩामासभ।

हाथ से बोजन की गॊध दयू कयने हे तु िॊदनमुि ऩानी अत्रऩात कयं ।

ॐ गणेशाम नभ् कयोद्रतानाथे गॊधॊ सभऩामासभ.

भुख शुत्रद्ध हे तु ऩान-सुऩायी इरामिी औय रवॊग अत्रऩात

एरारवंग सॊमुिॊ ऩुगीपरॊ सभस्डवतभ ्,

प्रदस्ऺणा:

ततऩद्ळमात प्रदस्ऺणा कयं ।

मासन कासन ि ऩाऩासन जडभाडतय कृ तासन ि। तासन सवाास्ण नश्मडतु प्रदस्ऺणा ऩदे ऩदे ।

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् प्रदस्ऺणाॊ कयोसभ। आयती: नीयाजन-आयती प्रगट कय उसभं िॊदन-ऩुष्ऩ रगामे कऩुय प्रज्वसरत कयं ।

त्वभेव सवा ज्मोसतत्रष आतॉक्मॊ प्रसतगृह्यताभ ्॥

कऩुया ऩूयेण भनोहये ण सुवणा ऩािाडतय सॊस्स्थतेन। प्रफदद्ऱबासा सहगतेन नीयाजनॊ ते ऩरयत कयोसभ।

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् नीयाजनॊ सभऩामासभ।

॥श्री गणेश आयसत॥ जम गणेश जम गणेश जम गणेश दे वा जम गणेश जम गणेश जम गणेश दे वा. भाता जाकी ऩायवती त्रऩता भहादे वा॥ जम गणेश..... एकदडत दमावडत िायबुजाधायी भाथे ऩय सतरक सोहे भूसे की सवायी॥ जम गणेश..... ऩान िढ़े पर िढ़े औय िढ़े भेवा

ताॊफुरॊ ि भमा दत्तॊ गृहाण गणनामक.

रड्डु अन का बोग रगे सडत कयं सेवा॥ जम गणेश.....

सभऩामासभ।

फाॉझन को ऩुि दे त सनधान को भामा॥ जम गणेश.....

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् भुखवासॊ

दस्ऺणा:

सभऩामासभ।

िॊद्राफदत्मौ ि धयस्ण त्रवद्युदस्ग्न त्वभेव ि।

ततऩद्ळमात इस भॊि का उच्िायण कयते हुवे तीन फाय

कयं ।

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् दस्ऺणाॊ

अॊधे को आॉख दे त कोफढ़न को कामा ' सूय' श्माभ शयण आए सपर कीजे सेवा जम गणेश जम गणेश जम गणेश दे वा॥ जम गणेश.....

ततऩद्ळमात दस्ऺणा अत्रऩात कयं ।

फहयण्म गबा गबास्थॊ हे भफीजॊ त्रवबावसो।

अनॊत ऩूण्म परदभत् शाॊसतॊ प्रमच्ि भे॥।

आयती के िायो औय जर घुभामे फपय गणेशजी को आयती फदखामे खुद आयती रेकय हाथ धोरे।

ससतम्फय 2011

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फपय दोनो हाथकी अॊजसरभं ऩुष्ऩ रेकय ऩुष्ऩाॊजसर दं ।

नाना सुगॊधी ऩुष्ऩास्ण ऋतुकारोद्भवासन ि। ऩुष्ऩाॊजसर प्रदानेन प्रसीद गणनामक। ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ऩुष्ऩाॊजसर

त्रवशेष अध्मा: आिभनी भं जर, िावर, पूर, पर, िॊदन दस्ऺणा आफद अध्मा भं रे

यऺ यऺ गणाध्मऺ यऺ िेरोक्म यऺक।

सभऩामासभ।

बिनाभ बमॊकताा िाता बवबवाणावात ्॥ परेन पसरतॊ तोमॊ परेन पसरतॊ धनभ ्।

प्राथाना: त्रवघ्नेद्वयाम वयदाम सुयत्रप्रमाम रॊफोदयाम सकराम जगत्रद्धताम। नागाननाम श्रुसतमऻ त्रवबुत्रषताम गौयीसुताम

परास्मघ्मं प्रदानेन ऩूणाा सडतु भनोयथा्॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् त्रवशेषाघ्मं सभऩामासभ।

गणनाथ नभो नभस्ते। बिासतानाशन ऩयाम गणेद्वयाम सवेद्वयाम शुबदाम सुयेद्वयाम। त्रवद्याधयाम त्रवकटाम ि वाभनाम बत्रि प्रसडन वयदाम नभो नभस्ते।

ऺभाऩन:

आह्वानॊ न जानासभ न जानासभ त्रवसजानभ ्। ऩूजाॊ िैव न जानासभ ऺभस्व गणनामक॥

नभस्काय:

रॊफोदय नभस्तुभ्मॊ सतत भोदक त्रप्रम। सनत्रवाघ्नॊ कुरु भे दे व सवा कामेषु सवादा। ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् नभस्कायान ्

ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ऺभाऩनॊ सभऩामासभ॥ अनमा ऩूज्मा ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेश् त्रप्रमताभ ्॥

सभऩामासभ।

गणेश गामिी भॊि एकदडताम ् त्रवद्महे वक्रतुण्डाम धीभफह। तडनो दडती प्रिोदमात ्॥ (गणऩत्मुऩसनषद्)

तत्ऩुरुषाम त्रवद्महे वक्रतुण्डाम धीभफह। तडनो दडती प्रिोदमात ्॥(नायामणोऩसनषद्) तत्कयाटाम त्रवद्महे हस्स्तभुखाम धीभफह। तडनो दडती प्रिोदमात ्॥(भैिामणीसॊफहता)

रम्फोदयाम त्रवद्महे भहोदयाम धीभफह। तडनो दडती प्रिोदमात ्॥(अस्ग्नऩुयाण) भहोत्कटाम

त्रवद्महे वक्रतुण्डाम धीभफह। तडनो दडती प्रिोदमात ्॥(अस्ग्नऩुयाण)

ससतम्फय 2011

18

अनॊत ितुदाशी व्रत उत्तभ परदामी होता हं ।

 सिॊतन जोशी अनॊत ितुदाशी का व्रत बाद्रऩद शुक्र ऩऺ की ितुदाशी को फकमा जाता हं । इस फदन बगवान नायामण

नवीन अनॊत को धायण कय ऩुयाने का त्माग सनम्न भॊि से कयं -

डमूनासतरयिासन ऩरयस्पुटासन मानीह कभाास्ण भमा कृ तासन।

की कथा की जाती है । इस फदन अनडत बगवान की ऩूजा कयके बिगण वेद-ग्रॊथं का ऩाठ कयके सॊकटं से यऺा कयने वारा अनडतसूिफाॊधा जाता हं ।

सवाास्ण िैतासन भभ ऺभस्व प्रमाफह तुद्श् ऩुनयागभाम॥



(बोग) भं सनवेफदत ऩकवान दे कय स्वमॊ सऩरयवाय

अनॊत ितुदाशी का व्रत की ऩूजा दोऩहय भं की जाती हं । व्रत-ऩूजन त्रवधान: 

अनॊत ितुदाशी का व्रत वारे फदन व्रती को प्रात् स्नान कयके सनम्न भॊि से सॊकल्ऩ कयना िाफहमे।

भभास्खरऩाऩऺमऩूवक ा शुबपरवृद्धमे

श्रीभदनॊतप्रीसतकाभनमा अनॊतव्रतभहॊ करयष्मे। 

शास्त्रं भं मद्यत्रऩ व्रत का सॊकल्ऩ एवॊ ऩूजन फकसी ऩत्रवि नदी मा सयोवय के तट ऩय कयने का त्रवधान है , मफद महॊ सॊबव न हो, तो घय भं ऩूजागृह की स्वच्ि बूसभ को सुशोसबत कयके करश स्थात्रऩत कयं ।



करश ऩय अद्शदर कभर के सभान फने फतान ऩय शेषनाग की शैय्माऩय रेटे बगवान त्रवष्णु की भूसता अथवा सिि को यखं।



भूसता के सम्भुख कुभकुभ, केसय मा हल्दी से यॊ गा िौदह गाॉठं वारा 'अनॊत' अथाात सूि मा घागा बी यखं।



इसके फाद ॐ अनडतामनभ: भॊि से बगवान त्रवष्णु तथा अनॊतसूिकी षोडशोऩिाय-त्रवसधसे ऩूजा कयं ।



ऩूजनोऩयाॊत अनडतसूिको भॊि ऩढकय ऩुरुष अऩने दाफहने हाथ औय स्त्री फाएॊ हाथ भं फाॊध रं :

अनॊडतसागयभहासभुद्रेभग्नाडसभभ्मुद्धयवासुदेव।

अनॊतरूऩेत्रवसनमोस्जतात्भाह्यनडतरूऩामनभोनभस्ते॥

अनॊतसूिफाॊध रेने के ऩद्ळात फकसी ब्राह्मण को नैवेद्य प्रसाद ग्रहण कयं ।



ऩूजा के फाद व्रत-कथा को ऩढं मा सुनं।



अनॊत व्रत बगवान त्रवष्णु को प्रसडन कयने वारा तथा अनॊत परदामक भाना गमा है ।



अनॊत व्रत भं बगवान त्रवष्णु से धन-ऩुिाफद की काभना से फकमा जाता है ।



त्रवद्रानो के भत से अनॊत की िौदह गाॊठं िौदह रोकं की प्रतीक हं , स्जनभं अनॊत बगवान त्रवद्यभान हं ।

अनॊत ितु दाशी व्रतकथा ऩोयास्णक

कथाके

अनुशाय

एक

फाय

भहायाज

मुसधत्रद्षय ने याजसूममऻ फकमा। मऻभॊडऩ का सनभााण असत सुॊदय था ही, अद्भत ु बी था। उसभं जर भं स्थर तथा स्थर भं जर की भ्राॊसत उत्ऩडन होती थी। ऩूयी सावधानी

के फाद बी फहुत से असतसथ उस अद्भत ु भॊडऩ भं धोखा खा िुके थे। दम ु ोधन बी उस मऻभॊडऩ भं घूभते हुए स्थर के भ्रभ भं एक ताराफ भं सगय गए।

तफ बीभसेन तथा द्रौऩदी ने 'अॊधं की सॊतान अॊधी' कहकय दम ु ोधन का भजाक उड़ामा। इससे दम ु ोधन

सिढ़ गमा। उसके भन भं द्रे ष ऩैदा हो गमा औय भस्स्तक भं उस अऩभान का फदरा रेने के त्रविाय उऩजने रगे। कापी फदनं तक वह इसी उल्झन भं यहा फक आस्खय ऩाॉडवं से अऩने अऩभान का फदरा फकस प्रकाय सरमा जाए। तबी उसके भस्स्तष्क भं द्यूत क्रीड़ा भं ऩाॉडवं को हयाकय उस अऩभान का फदरा रेने की मुत्रि आई। उसने

ससतम्फय 2011

19

ऩाॉडवं को जुए के सरए न केवर आभॊत्रित ही फकमा

कंफडडम ऋत्रष ने सुशीरा से डोये के फाये भं ऩूिा तो

फस्ल्क उडहं जुए भं ऩयास्जत बी कय फदमा।

उसने सायी फात स्ऩद्श कय दी। ऩयॊ तु ऐद्वमा के भद भं

ऩयास्जत होकय ऩाॉडवं को फायह वषा के सरए

अॊधे हो िुके कंफडडम ऋत्रष को इससे कोई प्रसडनता नहीॊ

वनवास बोगना ऩड़ा। वन भं यहते हुए ऩाॉडव अनेक कद्श

हुई, फस्ल्क क्रोध भं आकय उडहंने उसके हाथ भं फॊधे डोये

से अऩना द्ु ख कहा तथा उसको दयू कयने का उऩाम

मह अनॊतजी का घोय अऩभान था। उनके इस

सहते यहे । एक फदन वन भं मुसधत्रद्षय ने बगवान श्रीकृ ष्ण

ऩूिा। तफ श्रीकृ ष्ण ने कहा- हे मुसधत्रद्षय! तुभ त्रवसधऩूवक ा अनॊत बगवान का व्रत कयो। इससे तुम्हाये साये सॊकट दयू हो जाएगा। तुम्हं हाया हुआ याज्म बी वाऩस सभर जाएगा।

मुसधत्रद्षय के आग्रह ऩय इस सॊदबा भं श्रीकृ ष्ण एक कथा सुनाते हुए फोरे- प्रािीन कार भं सुभडतु ब्राह्मण की

को तोड़कय आग भं जरा फदमा।

दष्ु कभा का ऩरयणाभ बी शीघ्र ही साभने आ गमा। कंफडडम भुसन द्ु खी यहने रगे।

उनकी सायी सम्ऩत्रत्त नद्श हो गई। इस दरयद्रता का

कायण ऩूिने ऩय सुशीरा ने डोये जराने की फात दोहयाई। तफ ऩद्ळाताऩ कयते हुए ऋत्रष 'अनॊत' की प्रासद्ऱ के सरए वन भं सनकर गए।

ऩयभ सुॊदयी तथा धभाऩयामण सुशीरा नाभक कडमा थी।

जफ वे बटकते-बटकते सनयाश होकय सगय ऩड़े तो

त्रववाह मोग्म होने ऩय ब्राह्मण ने उसका त्रववाह कंफडडम

बगवान अनॊत प्रकट होकय फोरे- 'हे कंफडडम! भेये

ऋत्रष से कय फदमा। कंफडडम ऋत्रष सुशीरा को रेकय

सतयस्काय के कायण ही तुभ द्ु खी हुए हो रेफकन तुभने

अऩने आश्रभ की ओय िरे तो यास्ते भं ही यात हो गई। वे एक नदी के तट ऩय सॊध्मा कयने रगे।

ऩद्ळाताऩ फकमा है , अत् भं प्रसडन हूॉ। ऩय घय जाकय त्रवसधऩूवक ा अनॊत व्रत कयो। िौदह वषा ऩमाडत व्रत कयने

सुशीरा ने दे खा- वहाॉ ऩय फहुत-सी स्स्त्रमाॉ सुॊदय-

से तुम्हाया साया द्ु ख दयू हो जाएगा। तुम्हं अनॊत सम्ऩत्रत्त

उत्सुकतावश सुशीरा ने उनसे उस ऩूजन के त्रवषम भं

कंफडडम ऋत्रष ने वैसा ही फकमा। उडहं साये क्रेशं

ऩूिा तो उडहंने त्रवसधऩूवक ा अनॊत व्रत की भहत्ता फता दी।

से भुत्रि सभर गई। श्रीकृ ष्ण की आऻा से मुसधत्रद्षय ने बी

सुशीरा ने वहीॊ उस व्रत का अनुद्षान कयके िौदह गाॊठं

बगवान अनॊत का व्रत फकमा स्जसके प्रबाव से ऩाॉडव

वारा डोया हाथ भं फाॉधा औय अऩने ऩसत के ऩास आ

भहाबायत के मुद्ध भं त्रवजमी हुए तथा सियकार तक

सुॊदय वस्त्र धायण कयके फकसी दे वता की ऩूजा कय यही हं ।

गई।

सभरेगी।

सनष्कॊटक याज्म कयते यहे ।

गणेशजी को दव ु ाा-दर िढ़ाने का भॊि

गणेशजी को 21 दव ु ाादर िढ़ाई जाती है । दो दव ु ाादर नीिे सरखे नाभभॊिं के साथ िढ़ाएॊ।

ॐ ईशऩुिाम नभ:। ॐ सवाससद्धप्रदाम नभ:।

ॐ गणासधऩाम नभ:।

ॐ एकदडताम नभ:।

ॐ उभाऩुिाम नभ:।

ॐ इबवक्िाम नभ:।

ॐ त्रवघ्ननाशनाम नभ:।

ॐ भूषकवाहनाम नभ:।

ॐ त्रवनामकाम नभ:।

ॐ कुभायगुयवे नभ:।

ससतम्फय 2011

20

गणेश ऩूजन भं कोन से पूर िढाए।

 सिॊतन जोशी गणेश जी को दव ू ाा सवाासधक त्रप्रम है । इस सरमे सपेद मा हयी दव ू ाा िढ़ानी िाफहए। दव ू ाा की तीन मा ऩाॉि ऩत्ती होनी िाफहए।

गणेश जी को तुरसी िोड़कय सबी ऩि औय ऩुष्ऩ त्रप्रम हं । गणेशजी ऩय तुरसी िढाना सनषेध हं ।

न तुरस्मा गणासधऩभ ् (ऩद्मऩुयाण) बावाथा :तुरसी से गणेशजी की ऩूजा कबी नहीॊ कयनी िाफहमे।

'गणेश तुरसी ऩि दग ु ाा नैव तु दव ू ाामा' (कासताक भाहात्म्म) बावाथा :गणेशजी की तुरसी ऩि से एवॊ दग ु ााजी की दव ू ाा ऩूजा नहीॊ

कयनी िाफहमे।

गणेशजी की ऩूजा भं भडदाय के रार पूर िढ़ाने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । रार ऩुष्ऩ के असतरयि ऩूजा भं द्वेत,ऩीरे पूर बी िढ़ाए जाते हं ।

सॊकटनाशन गणेशस्तोिभ ् सॊकटनाशन गणेश स्तोिभ ् का प्रसत फदन ऩाठ कयने से सभस्त प्रकाय के सॊकटोका नाश होता है , श्री गणेशजी फक कृ ऩा एवॊ सुख सभृत्रद्ध फक प्राद्ऱ होती है ।

वक्रतुॊड भहाकाम सूमक ा ोफट सभप्रब । सनत्रवाघ्नभ ् कुरु भं दे व सवा कामेषु सवादा ॥ त्रवघ्नेद्वयाम वयदाम सूयत्रप्रमाम रम्फोदयाम सकराम जगफद्रताम । नागाननाम श्रुसतमऻ त्रवबूत्रषताम गौयीसुताम गणनाथ नभोनभस्ते ॥ स्तोि:

प्रणम्म सशयसा दे वॊ गौयीऩुॊि त्रवनामकभ ् बिावासॊ स्भये सनत्मॊ आमुकाभाथाससद्धमे ॥ १ ॥ प्रथभॊ वक्रतुॊडॊ ि एकदॊ तॊ फद्रसतमकभ ् तृतीमॊ कृ ष्णत्रऩॊगाऺॊ गजवकिॊ ितुथक ा भ् ॥ २ ॥

रॊफोदयॊ ऩॊिभॊ ि षद्शभॊ त्रवकटभेव ि सद्ऱभॊ त्रवघ्नयाजॊ ि धूम्रवणं तथाअद्शकभ ् ॥ ३ ॥ नवॊ बारिॊद्रॊ ि दशभॊ तु त्रवनामकभ ् एकादशॊ गणऩसतॊ द्रादशॊ तु गजाननभ ् ॥ ४ ॥

द्रादशैतासन नाभासन त्रिसॊध्मॊ म: ऩठे डनय: न ि त्रवघ्नबमॊ तस्म सवा ससत्रद्ध कयॊ प्रबो ॥ ५ ॥ त्रवद्यासथा रबते त्रवद्याॊ धनासथा रबते धनभ ् ऩुिासथा रबते ऩुिाॊभोऺासथा रबते गसतभ ् ॥ ६ ॥ जऩेत्गणऩसतस्तोिॊ षडसबभासै: परॊ रबेत सॊवतसये णससत्रद्धॊ ि रबते नािसॊशम् ॥ ७ ॥

अद्शभ्मोब्राह्मणोभ्मस्म सरस्खत्वा म: सभऩामेत ् तस्म त्रवद्या बवेत्सवाा गणेशस्म प्रसादत् ॥ ८ ॥ ॥ इसतश्री नायदऩुयाणे ‘सॊकटनाशन गणेशस्तोिभ ्’ सॊऩूणभ ा ्॥

ससतम्फय 2011

21

शाऩ के कायण गणऩसत ऩूजन भं तुरसी सनत्रषद्ध हं ?

 सिॊतन जोशी तुरसी सभस्त ऩौधं भं

उनसे उनका ऩरयिम ऩूिा औय उनके वहाॊ आगभन का कायण

श्रेद्ष भानी जाती हं । फहॊ द ू

जानना िाहा। गणेश जी ने कहा भाता! तऩस्स्वमं का घ्मान

धभा भं सभस्त ऩूजन

बॊग कयना सदा ऩाऩजनक औय अभॊगरकायी होता हं ।

कभो भं तुरसी

शुबे! बगवान श्रीकृ ष्ण आऩका कल्माण कयं , भेये घ्मान बॊग से

को

प्रभुखता दी जाती हं ।

उत्ऩडन दोष आऩके सरए अभॊगरकायक न हो।

प्राम्

फहॊ द ू

इस ऩय तुरसी ने कहा—प्रबो! भं धभाात्भज की कडमा हूॊ औय

बी तुरसी का प्रमोग

अत: आऩ भुझसे त्रववाह कय रीस्जए। तुरसी की मह फात

सबी

भॊफदयं भं ियणाभृत भं

तऩस्मा भं सॊरग्न हूॊ। भेयी मह तऩस्मा ऩसत प्रासद्ऱ के सरए हं ।

होता हं । इसके ऩीिे

सुनकय फुत्रद्ध श्रेद्ष गणेश जी ने उत्तय फदमा हे भाता! त्रववाह कयना

ऎसी काभना होती है

फडा बमॊकय होता हं , भं ब्रम्हिायी हूॊ। त्रववाह तऩस्मा के सरए

फक तुरसी ग्रहण कयने से तुरसी अकार भृत्मु को हयने वारी तथा सवा व्मासधमं का नाश कयने वारी हं ।

नाशक, भोऺद्राय के यास्ता फॊद कयने वारा, बव फॊधन से फॊध,े

सॊशमं का उद्गभ स्थान हं । अत: आऩ भेयी ओय से अऩना घ्मान

ऩयडतु मही ऩूज्म तुरसी को बगवान श्री गणेश की ऩूजा भं सनत्रषद्ध भानी गई हं ।

हटा रं औय फकसी अडम को ऩसत के रूऩ भं तराश कयं । तफ कुत्रऩत होकय तुरसी ने बगवान गणेश को शाऩ दे ते हुए कहा

फक आऩका त्रववाह अवश्म होगा। मह सुनकय सशव ऩुि गणेश

शास्त्रं भं उल्रेख हं :

ने बी तुरसी को शाऩ फदमा दे वी, तुभ बी सनस्द्ळत रूऩ से असुयं

तुरसीॊ वजासमत्वा सवााण्मत्रऩ ऩिऩुष्ऩास्ण गणऩसतत्रप्रमास्ण।

द्राया ग्रस्त होकय वृऺ फन जाओगी।

(आिायबूषण)

इस शाऩ को सुनकय तुरसी ने व्मसथत होकय बगवान

गणेशजी को तुरसी िोड़कय सबी ऩि-ऩुष्ऩ त्रप्रम हं !

श्री गणेश की वॊदना की। तफ प्रसडन होकय गणेश जी ने तुरसी

गणऩसतजी को दव ू ाा असधक त्रप्रम है ।

से कहा हे भनोयभे! तुभ ऩौधं की सायबूता फनोगी औय

इनसे सम्फद्ध ब्रह्मकल्ऩ भं एक कथा सभरती हं

सभमाॊतय से बगवान नायामण फक त्रप्रमा फनोगी। सबी दे वता

एक सभम नवमौवन सम्ऩडन तुरसी दे वी नायामण ऩयामण होकय तऩस्मा के सनसभत्त से तीथो भं भ्रभण कयती हुई गॊगा तट

ऩय ऩहुॉिीॊ। वहाॉ ऩय उडहंने गणेश को दे खा, जो फक तरूण मुवा रग यहे थे। गणेशजी अत्मडत सुडदय, शुद्ध औय ऩीताम्फय

आऩसे स्नेह यखंगे ऩयडतु श्रीकृ ष्ण के सरए आऩ त्रवशेष त्रप्रम यहं गी। आऩकी ऩूजा भनुष्मं के सरए भुत्रि दासमनी होगी तथा भेये ऩूजन भं आऩ सदै व त्माज्म यहं गी। ऎसा कहकय गणेश जी ऩुन: तऩ कयने िरे गए। इधय तुरसी दे वी द:ु स्खत ह्वदम से

धायण फकए हुए आबूषणं से त्रवबूत्रषत थे, गणेश काभनायफहत,

ऩुष्कय भं जा ऩहुॊिी औय सनयाहाय यहकय तऩस्मा भं सॊरग्न हो

श्रीकृ ष्ण की आयाधना भं घ्मानयत थे। गणेशजी को दे खते ही

त्रप्रम ऩत्नी फनी यहीॊ। जफ शॊखिूड शॊकय जी के त्रिशूर से भृत्मु

स्जतेस्डद्रमं भं सवाश्रद्ष े , मोसगमं के मोगी थे गणेशजी वहाॊ

तुरसी का भन उनकी ओय आकत्रषात हो गमा। तफ तुरसी उनका उऩहास उडाने रगीॊ। घ्मानबॊग होने ऩय गणेश जी ने

गई। तत्ऩद्ळात गणेश के शाऩ से वह सियकार तक शॊखिूड की को प्राद्ऱ हुआ तो नायामण त्रप्रमा तुरसी का वृऺ रूऩ भं प्रादब ु ााव हुआ।

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गणेश के िभत्कायी भॊि

 सिॊतन जोशी ॐ गॊ गणऩतमे नभ् । एसा शास्त्रोि विन हं फक गणेश जी का मह भॊि िभत्कारयक औय तत्कार पर दे ने वारा भॊि हं । इस भॊि का ऩूणा बत्रिऩूवक ा जाऩ कयने से सभस्त फाधाएॊ दयू होती हं । षडाऺय का जऩ आसथाक प्रगसत व सभृस्ध्ददामक है ।

ॐ वक्रतुॊडाम हुभ ् । फकसी के द्राया फक गई ताॊत्रिक फक्रमा को नद्श

कयने के सरए, त्रवत्रवध काभनाओॊ फक शीघ्र ऩूसता के सरए उस्च्िद्श गणऩसत फक साधना फकजाती हं । उस्च्िद्श गणऩसत के भॊि का जाऩ अऺम बॊडाय प्रदान कयने वारा हं । ॐ हस्स्त त्रऩशासि सरखे स्वाहा । आरस्म, सनयाशा, करह, त्रवघ्न दयू कयने के सरए त्रवघ्नयाज रूऩ की आयाधना का मह भॊि जऩे ।

ॐ गॊ स्ऺप्रप्रसादनाम नभ:। भॊि जाऩ से कभा फॊधन, योगसनवायण, कुफुत्रद्ध,

गणेश के कल्माणकायी भॊि गणेश भॊि फक प्रसत फदन एक भारा भॊिजाऩ अवश्म कये । फदमे गमे भॊिो भे से कोई बी एक भॊिका जाऩ कये। (०१) गॊ ।

(०२) ग्रॊ ।

(०३) ग्रं ।

(०४) श्री गणेशाम नभ् । (०५) ॐ वयदाम नभ् ।

(०६) ॐ सुभॊगराम नभ् ।

कुसॊगत्रत्त, दब ू ााग्म, से भुत्रि होती हं । सभस्त

(०७) ॐ सिॊताभणमे नभ् ।

त्रवकास एवॊ आत्भफर की प्रासद्ऱ के सरए हे यम्फॊ

(०९) ॐ नभो बगवते गजाननाम ।

त्रवघ्न दयू होकय धन, आध्मास्त्भक िेतना के

(०८) ॐ वक्रतुॊडाम हुभ ् ।

गणऩसत का भॊि जऩे ।

(१०) ॐ गॊ गणऩतमे नभ् ।

ॐ गूॊ नभ:। योजगाय की प्रासद्ऱ व आसथाक सभृस्ध्द प्राद्ऱ होकय सुख सौबाग्म प्राद्ऱ होता हं ।

ॐ श्रीॊ ह्रीॊ क्रीॊ ग्रं गॊ गण्ऩत्मे वय वयदे नभ्

(११) ॐ ॐ श्री गणेशाम नभ् ।

मह भॊि के जऩ से व्मत्रि को जीवन भं फकसी बी प्रकाय का कद्श नहीॊ ये हता है । 

आसथाक स्स्थसत भे सुधाय होता है ।



एवॊ सवा प्रकायकी रयत्रद्ध-ससत्रद्ध प्राद्ऱ होती है ।

ॐ तत्ऩुरुषाम त्रवद्महे वक्रतुण्डाम धीभफह तडनो दस्डत् प्रिोदमात।

रक्ष्भी प्रासद्ऱ एवॊ व्मवसाम फाधाएॊ दयू कयने हे तु उत्तभ भानगमा हं ।

ॐ गी् गूॊ गणऩतमे नभ् स्वाहा। इस भॊि के जाऩ से सभस्त प्रकाय के त्रवघ्नो एवॊ सॊकटो का का नाश होता हं ।

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ॐ श्री गॊ सौबाग्म गणऩत्मे वय वयद सवाजनॊ भं

इस भॊि के जाऩ से दरयद्रता का नाश होकय, धन प्रासद्ऱ

वशभानम स्वाहा।

के प्रफर मोग फनने रगते हं ।

त्रववाह भं आने वारे दोषो को दयू कयने वारं को िैरोक्म भोहन गणेश भॊि का जऩ कयने से शीघ्र त्रववाह व अनुकूर जीवनसाथी की प्रासद्ऱ होती है ।

ॐ वक्रतुण्डे क द्रद्शाम क्रीॊहीॊ श्रीॊ गॊ गणऩतमे वय वयद सवाजनॊ भॊ दशभानम स्वाहा ।

इस भॊिं के असतरयि गणऩसत अथवाशीषा, सॊकटनाशक, गणेश स्त्रोत, गणेशकवि, सॊतान गणऩसत स्त्रोत, ऋणहताा गणऩसत स्त्रोत भमूयेश स्त्रोत, गणेश िारीसा का ऩाठ कयने से गणेश जी की शीघ्र कृ ऩा प्राद्ऱ होती है ।

ॐ गणेश भहारक्ष्म्मै नभ्।

व्माऩाय से सम्फस्डधत फाधाएॊ एवॊ ऩये शासनमाॊ सनवायण एवॊ व्माऩय भं सनयॊ तय उडनसत हे तु।

ॐ गॊ योग भुिमे पट्।

बमानक असाध्म योगं से ऩये शानी होने ऩय, उसित ईराज कयाने ऩय बी राब प्राद्ऱ नहीॊ होयहा हो, तो ऩूणा त्रवद्वास सं भॊि का जाऩ कयने से मा जानकाय व्मत्रि से जाऩ कयवाने से धीये -धीये योगी को योग से िुटकाया सभरता हं ।

ॐ वय वयदाम त्रवजम गणऩतमे नभ्।

इस भॊि के जाऩ से भुकदभे भं सपरता प्राद्ऱ होती हं ।



गॊ

गणऩतमे

सवात्रवघ्न

रम्फोदयाम ह्रीॊ गॊ नभ्।

हयाम

सवााम

सवागुयवे

वाद-त्रववाद, कोटा किहयी भं त्रवजम प्रासद्ऱ, शिु बम से िुटकाया ऩाने हे तु उत्तभ।

ॐ नभ् ससत्रद्धत्रवनामकाम सवाकामाकिे सवात्रवघ्न प्रशभनाम सवा याज्म वश्म कायनाम सवाजन सवा स्त्री ऩुरुषाकषाणाम श्री ॐ स्वाहा।

इस भॊि के जाऩ को मािा भं सपरता प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग फकमा जाता हं ।

ॐ हुॊ गॊ ग्रं हरयद्रा गणऩत्मे वयद वयद सवाजन रृदमे स्तम्बम स्वाहा। मह हरयद्रा गणेश साधना का िभत्कायी भॊि हं ।

ॐ ग्रं गॊ गणऩतमे नभ्। गृह करेश सनवायण एवॊ घय भं सुखशास्डत फक प्रासद्ऱ हे तु।

ॐ गॊ रक्ष्म्मौ आगच्ि आगच्ि पट्।

भॊि ससद्ध भूॊगा गणेश भूॊगा गणेश को त्रवध्नेद्वय औय ससत्रद्ध त्रवनामक के रूऩ भं जाना जाता हं । इस के ऩूजन से जीवन भं सुख सौबाग्म भं वृत्रद्ध होती हं । यि सॊिाय को सॊतुसरत कयता हं । भस्स्तष्क को तीव्रता प्रदान कय व्मत्रि को ितुय फनाता हं ।

फाय-फाय होने वारे गबाऩात से फिाव होता हं । भूॊगा गणेश

से फुखाय, नऩुॊसकता, सस्डनऩात औय िेिक जेसे योग भं राब प्राद्ऱ होता हं ।

Rs.550 से Rs.8200 तक गुरुत्व कामाारम:

Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785, E-mail Us:- [email protected], [email protected],

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जऩ त्रवसध

ॐ अडतरयऺाम स्वाहा।

इस भॊि के जाऩ से भनोकाभना ऩूसता के अवसय प्राद्ऱ होने

प्रात: स्नानाफद शुद्ध होकय कुश मा ऊन के आसन ऩय ऩूवा

रगते हं ।

फक औय भुख होकय फैठं। साभने गणॆशजी का सिि, मॊि

गॊ गणऩत्मे ऩुि वयदाम नभ्।

बगवान गजानन का ऩूजन कय प्रथभ फदन सॊकल्ऩ कयं ।

मा भूसता स्थासद्ऱ कयं

इस भॊि के जाऩ से उत्तभ सॊतान फक प्रासद्ऱ होती हं ।

इसके फाद बगवान ग्णेशका एकाग्रसित्त से ध्मान कयं । नैवेद्य भं मफद सॊबव होतो फूॊफद मा फेसन के रड्डू का

ॐ वय वयदाम त्रवजम गणऩतमे नभ्।

इस भॊि के जाऩ से भुकदभे भं सपरता प्राद्ऱ होती हं ।

ॐ श्री गणेश ऋण सिस्डध वये ण्म हुॊ नभ् पट ।

मह ऋण हताा भॊि हं । इस भॊि का सनमसभत जाऩ कयना िाफहए। इससे गणेश जी प्रसडन होते है औय साधक का ऋण िुकता होता है । कहा जाता है फक स्जसके घय भं एक फाय बी इस भॊि का उच्िायण हो जाता है है उसके घय भं कबी बी ऋण मा दरयद्रता नहीॊ आ सकती।

फपय षोडशोऩिाय मा ऩॊिोऩिाय से

बोग रगामे नहीॊ तो गुड का बोग रगामे । साधक को गणेशजी के सिि मा भूसता के सम्भुख शुद्ध घी का दीऩक जराए।

योज १०८ भारा का जाऩ कय ने से शीघ्र पर

फक प्रासद्ऱ होती हं । मफद एक फदन भं १०८ भारा सॊबव न हो तो ५४, २७,१८ मा ९ भाराओॊ का बी जाऩ फकमा जा सकता हं । भॊि जाऩ कयने भं मफद आऩ असभथा

हो, तो फकसी ब्राह्मण को उसित दस्ऺणा दे कय उनसे

जाऩ

कयवामा

जा

सकता

हं ।

भॊि ससद्ध स्पफटक श्री मॊि "श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्रिशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मडत शुब फ़रदमी मॊि है । जो न केवर दस ू ये मडिो से असधक से असधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय व्मत्रि के सरए पामदे भॊद सात्रफत होता है । ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतडम मुि "श्री मॊि" स्जस व्मत्रि के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मडत फ़रदामी ससद्ध होता है उसके दशान भाि से अन-सगनत राब एवॊ सुख की प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भे सभाई

अफद्रसतम एवॊ अद्रश्म शत्रि भनुष्म की सभस्त शुब इच्िाओॊ को ऩूया कयने भे सभथा होसत है । स्जस्से उसका जीवन से हताशा औय सनयाशा दयू होकय वह भनुष्म असफ़रता से सफ़रता फक औय सनयडतय गसत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो फक प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भं उत्ऩडन होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दयू कय सकायत्भक उजाा का सनभााण कयने भे सभथा है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के

स्थान ऩय स्थात्रऩत कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फस्डधत ऩये शासन भे डमुनता आसत है व सुख-सभृत्रद्ध, शाॊसत एवॊ ऐद्वमा फक प्रसद्ऱ होती है । गुरुत्व .

कामाारम भे "श्री मॊि" 12 ग्राभ से 75 ग्राभ तक फक साइज भे उसरब्ध है

भूल्म:- प्रसत ग्राभ Rs. 8.20 से Rs.28.00

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

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।।गणऩसत अथवाशीषा।। ॐ नभस्ते गणऩतमे। त्वभेव प्रत्मऺॊ तत्वभसस । त्वभेव केवरॊ कताा सस। त्वभेव केवरॊ धताासस। त्वभेव केवरॊ हताासस । त्वभेव सवं खस्ल्वदॊ ब्रह्मासस। त्व साऺादात्भासस सनत्मभ ्। ऋतॊ वस्च्भ। सत्मॊ वस्च्भ। अव त्व भाॊभ ्। अव विायभ ्। अव श्रोतायभ ्। अव दातायभ ्। अव धातायभ ्। अवा नूिानभव सशष्मभ ्।अव ऩद्ळातात ्।अव ऩुयस्तात ्। अवोत्तयात्तात ्। अव दस्ऺणात्तात ्। अव िोध्वाात्तात ्। अवाधयात्तात ्। सवातो भाॉ ऩाफह-ऩाफह सभॊतात ्। त्वॊ वाङ्भम स्त्वॊ सिडभम्। त्वभानॊदभसमस्त्वॊ ब्रह्मभम्। त्वॊ सस्च्िदानॊदात ् फद्रतीमोसस। त्वॊ प्रत्मऺॊ ब्रह्मासस। त्वॊ ऻानभमो त्रवऻानभमोसस। सवं जगफददॊ त्वत्तो जामते। सवं जगफददॊ त्वत्त स्स्तद्षसत। सवं जगफददॊ त्वसम वमभेष्मसत। सवं जगफददॊ त्वसम प्रत्मेसत। त्वॊ बूसभयाऩोनरो सनरो नब्। त्वॊ ित्वारय वाकूऩदासन। त्वॊ गुणिमातीत: त्वभवस्थािमातीत्। त्वॊ दे हिमातीत्। त्वॊ कारिमातीत्। त्वॊ भूराधाय स्स्थतोसस सनत्मॊ। त्वॊ शत्रि िमात्भक्। त्वाॊ मोसगनो ध्मामॊसत सनत्मॊ। त्वॊ ब्रह्मा त्वॊ त्रवष्णुस्त्वॊ रूद्रस्त्वॊ इॊ द्रस्त्वॊ अस्ग्नस्त्वॊ वामुस्त्वॊ सूमस् ा त्वॊ िॊद्रभास्त्वॊ ब्रह्मबूबव ुा :स्वयोभ ्। गणाफद ऩूवभ ा ुच्िामा वणााफदॊ तदनॊतयभ ्। अनुस्वाय: ऩयतय्। अधेडदर ु ससतभ ्। ताये ण ऋद्धॊ । एतत्तव भनुस्व रूऩभ ्। गकाय: ऩूवरू ा ऩभ ्। अकायो भध्मभरूऩभ ्। अनुस्वायद्ळाडत्मरूऩभ ्। त्रफडदरू ु त्तयरूऩभ ्। नाद: सॊधानभ ्। सॉ फहतासॊसध: सैषा गणेश त्रवद्या। गणकऋत्रष: सनिृद्गामिीच्िॊ द्। गणऩसतदे वता। ॐ गॊ गणऩतमे नभ्।एकदॊ ताम त्रवद्धभहे । वक्रतुण्डाम धीभफह। तडनो दॊ ती प्रिोदमात ्। एकदॊ तॊ ितुहास्तॊ ऩाशभॊकुश धारयणभ ्। यदॊ ि वयदॊ हस्तै त्रवाभ्राणॊ भूषकध्वजभ ्। यिॊ रॊफोदयॊ शूऩा कणाकॊ यिवाससभ ्। यिगॊधानु सरद्ऱाॊगॊ यिऩुष्ऩै: सुऩुस्जतभ ्। बिानुकॊत्रऩनॊ दे वॊ जगत्कायण भच्मुतभ ्। आत्रवबूत ा ॊ ि सृद्शमादौ प्रकृ ते ऩुरुषात्ऩयभ ्। एवॊ ध्मामसत मो सनत्मॊ स मोगी मोसगनाॊ वय्। नभो व्रातऩतमे। नभो गणऩतमे। नभ: प्रभथऩतमे। नभस्ते अस्तु रॊफोदयामै एकदॊ ताम। त्रवघ्ननासशने सशवसुताम। श्रीवयदभूतम ा े नभो नभ्। एतदथवा शीषा मोधीते। स ब्रह्म बूमाम कल्ऩते। स सवा त्रवघ्नैनफ ा ाध्मते। स सवात: सुखभेधते। स ऩच्िभहाऩाऩात्प्रभुच्मते। सामभधीमानो फदवसकृ तॊ ऩाऩॊ नाशमसत। प्रातयधीमानो यात्रिकृ तॊ ऩाऩॊ नाशमसत। सामॊ प्रात: प्रमुॊजानो अऩाऩो बवसत। सवािाधीमानो ड ऩत्रवघ्नो बवसत। धभााथक ा ाभभोऺॊ ि त्रवॊदसत। इदभथवाशीषाभसशष्माम न दे मभ ्। मो मफद भोहात ् दास्मसत स ऩाऩीमान ् बवसत। सहस्रावतानात ् मॊ मॊ काभभधीते तॊतभनेन साधमेत ्। अनेन गणऩसत भसबत्रषॊिसत स वाग्भी बवसत । ितुथ्मााभनश्र्नन जऩसत स त्रवद्यावान बवसत। इत्मथवाण वाक्मभ ्। ब्रह्माद्यावयणॊ त्रवद्यात ् न त्रफबेसत कदािनेसत। मो दव ा सत स वैश्रवणोऩभो बवसत। मो राजैमज ा सत स मशोवान बवसत स भेधावान बवसत। मो ू ांकुयं मज भोदक सहस्रेण मजसत स वाॊसित पर भवाप्रोसत। म: साज्मससभत्रद्भ माजसत स सवं रबते स सवं रबते। अद्शौ ब्राह्मणान ् सम्मग्ग्राहसमत्वा सूमा विास्वी बवसत। सूमग्र ा हे भहानद्याॊ प्रसतभा सॊसनधौ वा जप्त्वा ससद्धभॊिं बवसत। भहात्रवघ्नात ् प्रभुच्मते। भहादोषात ् प्रभुच्मते। भहाऩाऩात ् प्रभुच्मते। स सवात्रवद् बवसत से सवात्रवद् बवसत । म एवॊ वेद इत्मुऩसनषद्ध। ॥इसत श्री गणऩसत अथवाशीषा सम्ऩुणा ॥

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गणेश ऩूजन से ग्रहऩीडा दयू होती हं । गणऩसत सभस्त रोकंभं सवा प्रथभ ऩूजेजाने वारे एकभाि दे वाता हं । गणेश सभस्त गण के गणाध्मऺक होने के कायणा गणऩसत नाभ से बी जाने जाते हं । एवॊ

सुखो

फक

प्रासद्ऱ

एवॊ

अऩनी

व्मत्रि भं नेतत्ृ व कयने फक त्रवरऺण शत्रि का त्रवकास होता हं । बाई के सुख भं वृत्रद्ध होती हं । गणेशजी फुत्रद्ध औय त्रववेक के असधऩसत स्वासभ

भनुष्म को जीवन भं सभस्त प्रकाय फक रयत्रद्धससत्रद्ध

 सिॊतन जोशी

फुध ग्रह के असधऩसत दे व हं । अत: त्रवद्या-फुत्रद्ध प्रासद्ऱ के

सम्स्त

सरए गणेश जी की आयाधना अत्मॊत परदामी ससद्धो होती

आध्मास्त्भक-बौसतक इच्िाओॊ फक ऩूसता हे तु गणेश जी फक

हं । गणेशजी के ऩूजन से वाकशत्रि औय तकाशत्रि भं वृत्रद्ध

ऩूजा-अिाना एवॊ आयाधना अवश्म कयनी िाफहमे।

होती हं । फहन के सुख भं वृत्रद्ध होती हं ।

गणेशजी का ऩूजन अनाफदकार से िरा आ यहा हं ,

बगवान गणेश फृहस्ऩसत(गुरु) के सभान उदाय,

इसके असतरयि ज्मोसतष शास्त्रं के अनुशाय ग्रह

ऻानी एवॊ फुत्रद्ध कौशर भं सनऩूणा हं । गणेशजी का ऩूजन-

ऩीडा दयू कयने हे तु बगवान गणेश फक ऩूजा-अिाना कयने

अिान कयने से फृहस्ऩसत(गुरु) से सॊफॊसधत ऩीडा दयू होती

पर

व्मत्रि के धन औय सॊऩत्रत्त भं वृत्रद्ध होती हं । ऩसत के सुख

से

सभस्त ग्रहो के अशुब प्रबाव दयू होते हं एवॊ शुब फक प्रासद्ऱ

होती

हं ।

इस

सरमे

गणेश ऩूजाका

अत्मासधक भहत्व हं ।

वक्रतुण्ड भहाकाम सूमक ा ोफट सभप्रब्।

सनत्रवाघ्नॊ कुरू भे दे व सवा कामेषु सवादा।।

बगवान गणेश सूमा तेज के सभान तेजस्वी हं । गणेशजी का ऩूजन-अिान कयने से सूमा के प्रसतकूर प्रबाव का शभन होकय व्मत्रि के तेज-भान-सम्भान भं वृत्रद्ध होती हं , उसका मश िायं औय फढता हं । त्रऩता के सुख भं वृत्रद्ध होकय व्मत्रि का आध्मास्त्भक ऻान फढता हं । बगवान गणेश िॊद्र के सभान शाॊसत एवॊ शीतरता के प्रसतक हं । गणेशजी का ऩूजन-अिान कयने से िॊद्र के प्रसतकूर प्रबाव का नाश होकय व्मत्रि को भानससक शाॊसत प्राद्ऱ होती हं । िॊद्र भाता का कायक ग्रह हं इस सरमे गणेशजी के ऩूजन से भातृसुख भं वृत्रद्ध होती हं । बगवान गणेश भॊगर के सभान सशत्रिशारी एवॊ फरशारी हं । गणेशजी का ऩूजन-अिान कयने से भॊगर के अशुब प्रबाव दयू होते हं औय व्मत्रि फक फर-शत्रि भं वृत्रद्ध होती हं । गणेशजी के ऩूजन से ऋण भुत्रि सभरती हं । व्मत्रि के साहस, फर, ऩद औय प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं स्जस कायण

हं औय व्मत्रि कं आध्मास्त्भक ऻान का त्रवकास होता हं । भं वृत्रद्ध होती हं । बगवान गणेश धन, ऐद्वमा एवॊ सॊतान प्रदान कयने वारे शुक्र के असधऩसत हं । गणेशजी का ऩूजन कयने से शुक्र के अशुब प्रबाव का शभन होता हं । व्मत्रि को सभस्त बौसतक सुख साधन भं वृत्रद्ध होकय व्मत्रि के सौडदमा भं वृत्रद्ध होती हं । ऩसत के सुख भं वृत्रद्ध होती हं । बगवान गणेश सशव के ऩुि हं । बगवान सशव शसन के गुरु हं । गणेशजी का ऩूजन कयने से शसन से सॊफॊसधत ऩीडा दयू होती हं । बगवान गणेश हाथी के भुख एवॊ ऩुरुष शयीय मुि होने से याहू व केतू के बी असधऩसत दे व हं । गणेशजी का ऩूजन कयने से याहू व केतू से सॊफॊसधत ऩीडा

दयू होती हं । इससरमे नवग्रह फक शाॊसत भाि बगवान गणेश के स्भयण से ही हो जाती हं । इसभं कोई सॊदेह

नहीॊ हं । बगवान गणेश भं ऩूणा श्रद्धा एवॊ त्रवद्वास फक आवश्मिा हं । बगवान गणेश का ऩूजन अिान कयने से भनुष्म का जीवन सभस्त सुखो से बय जाता है । जडभ कुॊडरी भं िाहं होई बी ग्रह अस्त हो मा नीि हो अथवा ऩीफडत हो तो बगवान गणेश फक आयाधना से सबी ग्रहो के अशुब प्रबाव दयू होता हं एवॊ शुब परो फक प्रासद्ऱ होती हं ।

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गणेश ितुथॉ ऩय िॊद्र दशान सनषेध क्मं...

 सिॊतन जोशी गणेश ितुथॉ ऩय िॊद्र दशान सनषेध होने फक

इस प्रकाय सिजीत ने ऩुख्ता सफूत जुटाए त्रफना ही सभथ्मा

ऩौयास्णक भाडमता हं । शास्त्रंि विन के अनुशाय जो

प्रिाय कय फदमा फक श्री कृ ष्ण ने प्रसेनजीत की हत्मा

व्मत्रि

इस फदन िॊद्रभा को जाने-अडजाने

दे ख रेता हं उसे सभथ्मा करॊक रगता हं । उस ऩय झूठा आयोऩ रगता हं ।

कयवा दी हं । इस रोकसनॊदा से आहत होकय औय इसके सनवायण के सरए श्रीकृ ष्ण कई फदनं तक एक वन से दस ू ये वन बटक कय प्रसेनजीत को खोजते यहे औय

कथा

वहाॊ उडहं शेय द्राया प्रसेनजीत को

एक फाय जयासडध के

भाय डारने औय यीि द्राया भस्ण

बम से बगवान कृ ष्ण सभुद्र के फीि

नगय

फनाकय

रे जाने के सिह्न सभर गए।

वहाॊ

इडहीॊ सिह्नं के आधाय ऩय श्री

यहने रगे। बगवान कृ ष्ण ने

कृ ष्ण जाभवॊत की गुपा भं जा

स्जस नगय भं सनवास फकमा

ऩहुॊिे

था वह स्थान आज द्रारयका के

जाभवॊत

की

ऩुिी

भस्ण से खेर यही थी। उधय

नाभ से जाना जाता हं ।

जाभवॊत श्री कृ ष्ण से भस्ण नहीॊ

उस सभम द्रारयका ऩुयी

दे ने हे तु मुद्ध के सरए तैमाय हो

के सनवासी से प्रसडन होकय सूमा

गमा। सात फदन तक जफ श्री कृ ष्ण

बगवान ने सिजीत मादव नाभक व्मत्रि अऩनी स्मभडतक भस्ण वारी भारा अऩने गरे से उतायकय दे दी। मह भस्ण प्रसतफदन आठ सेय सोना प्रदान कयती थी। भस्ण ऩातेही सिजीत मादव सभृद्ध हो गमा। बगवान श्री कृ ष्ण को जफ मह फात ऩता िरी तो उडहंने सिजीत से स्मभडतक भस्ण ऩाने

जहाॊ

की इच्िा व्मि की।

रेफकन सिजीत ने भस्ण श्री कृ ष्ण को न दे कय अऩने बाई प्रसेनजीत को दे दी। एक फदन प्रसेनजीत सशकाय ऩय गमा जहाॊ एक शेय ने प्रसेनजीत को भायकय भस्ण रे री। मही यीिं के याजा औय याभामण कार के जाभवॊत ने शेय को भायकय भस्ण ऩय कब्जा कय सरमा था। कई फदनं तक प्रसेनजीत सशकाय से घय न रौटा तो सिजीत को सिॊता हुई औय उसने सोिा फक श्रीकृ ष्ण ने ही भस्ण ऩाने के सरए प्रसेनजीत की हत्मा कय दी।

गुपा से फाहय नहीॊ आए तो उनके सॊगी साथी उडहं भया हुआ जानकाय त्रवराऩ कयते

हुए द्रारयका रौट गए। २१ फदनं तक गुपा भं मुद्ध

िरता यहा औय कोई बी झुकने को तैमाय नहीॊ था। तफ

जाभवॊत को बान हुआ फक कहीॊ मे वह अवताय तो नहीॊ स्जनके दशान के सरए भुझे श्री याभिॊद्र जी से वयदान

सभरा था। तफ जाभवॊत ने अऩनी ऩुिी का त्रववाह श्री कृ ष्ण के साथ कय फदमा औय भस्ण दहे ज भं श्री कृ ष्ण को दे दी। उधय कृ ष्ण जफ भस्ण रेकय रौटे तो उडहंने सिजीत को भस्ण वाऩस कय दी। सिजीत अऩने फकए ऩय रस्ज्जत हुआ औय अऩनी ऩुिी सत्मबाभा का त्रववाह श्री कृ ष्ण के साथ कय फदमा।

कुि ही सभम फाद अक्रूय के कहने ऩय ऋतु वभाा ने सिजीत को भायकय भस्ण िीन री। श्री कृ ष्ण अऩने फड़े बाई फरयाभ के साथ उनसे मुद्ध कयने ऩहुॊिे। मुद्ध भं

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जीत हाससर होने वारी थी फक ऋतु वभाा ने भस्ण अक्रूय को दे दी औय बाग सनकरा। श्री कृ ष्ण ने मुद्ध तो जीत सरमा रेफकन भस्ण हाससर नहीॊ कय सके। जफ फरयाभ ने उनसे भस्ण के फाये भं ऩूिा तो उडहंने कहा फक भस्ण

ससतम्फय 2011

गणेशजी शाऩ सुनकय िॊद्रभा फहुत दख ु ी हुए। गणेशजी शाऩ के शाऩ वारी फाज िॊद्रभा ने सभस्त दे वताओॊ को

सोनाई तो सबी दे वताओॊ को सिॊता हुई। औय त्रविाय त्रवभशा कयने रगे फक िॊद्रभा ही यािी कार भं ऩृथ्वी का

उनके ऩास नहीॊ। ऐसे भं फरयाभ स्खडन होकय द्रारयका

आबूषण हं औय इसे दे खे त्रफना ऩृथ्वी ऩय यािी का कोई

जाने की फजाम इॊ द्रप्रस्थ रौट गए। उधय द्रारयका भं फपय

काभ ऩूया नहीॊ हो सकता। िॊद्रभा को साथ रेकय सबी

ििाा पैर गई फक श्री कृ ष्ण ने भस्ण के भोह भं बाई का

दे वता ब्रह्माजी के ऩास ऩहुिं। दे वताओॊ ने ब्रह्माजी को सायी

बी सतयस्काय कय फदमा। भस्ण के िरते झूठे राॊिनं से

घटना त्रवस्ताय से सुनाई उनकी फातं सुनकय ब्रह्माजी फोरे,

दख ु ी होकय श्री कृ ष्ण सोिने रगे फक ऐसा क्मं हो यहा

िॊद्रभा तुभने सबी गणं के अयाध्म दे व सशव-ऩावाती के

है । तफ नायद जी आए औय उडहंने कहा फक हे कृ ष्ण

ऩुि गणेश का अऩभान फकमा हं । मफद तुभ गणेश के शाऩ

तुभने बाद्रऩद भं शुक्र ितुथॉ की यात को िॊद्रभा के

से भुि होना िाहते हो तो श्रीगणेशजी का व्रत यखो। वे

दशान फकमेथे औय इसी कायण आऩको सभथ्मा करॊक

दमारु हं, तुम्हं भाप कय दं गे। िॊद्रभा गणेशजी को

झेरना ऩड़ यहा हं ।

प्रशडन कयने के सरमे कठोय व्रत-तऩस्मा कयने रगे।

श्रीकृ ष्ण िॊद्रभा के दशान फक फात त्रवस्ताय ऩूिने ऩय नायदजी ने श्रीकृ ष्ण को करॊक वारी मह कथा फताई

बगवान गणेश िॊद्रभा की कठोय तऩस्मा से प्रसडन हुए औय कहा वषाबय भं केवर एक फदन बाद्रऩद भं शुक्र

थी। एक फाय बगवान श्रीगणेश ब्रह्मरोक से होते हुए रौट

ितुथॉ की यात को जो तुम्हं दे खेगा, उसे ही कोई सभथ्मा

यहे थे फक िॊद्रभा को गणेशजी का स्थूर शयीय औय

करॊक रगेगा। फाकी फदन कुि नहीॊ होगा। ’ केवर एक ही

गजभुख दे खकय हॊ सी आ गई। गणेश जी को मह अऩभान

फदन करॊक रगने की फात सुनकय िॊद्रभा सभेत सबी

सहन नहीॊ हुआ। उडहंने िॊद्रभा को शाऩ दे ते हुए कहा,

दे वताओॊ ने याहत की साॊस री। तफ से बाद्रऩद भं शुक्र

'ऩाऩी तूने भेया भजाक उड़ामा हं । आज भं तुझे शाऩ दे ता

ितुथॉ की यात को िॊद्रभा के दशान का सनषेध हं ।

हूॊ फक जो बी तेया भुख दे खेगा, वह करॊफकत हो जामेगा।

 क्मा आऩके फच्िे कुसॊगती के सशकाय हं ?  क्मा आऩके फच्िे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं ?  क्मा आऩके फच्िे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं ? घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्िे को कुसॊगती से िुडाने हे तु फच्िे के नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवाना िाहते हं , तो सॊऩका इस कय सकते हं ।

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सवा कामा ससत्रद्ध कवि स्जस व्मत्रि को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे भनोवाॊसित सपरतामे एवॊ फकमे गमे कामा भं ससत्रद्ध (राब) प्राद्ऱ नहीॊ होती, उस व्मत्रि को सवा कामा ससत्रद्ध कवि अवश्म धायण कयना िाफहमे। कवि के प्रभुख राब: सवा कामा ससत्रद्ध कवि के द्राया सुख सभृत्रद्ध औय नव ग्रहं के नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण कयता व्मत्रि के जीवन से सवा प्रकाय के द:ु ख-दारयद्र का नाश हो कय सुख-सौबाग्म एवॊ उडनसत प्रासद्ऱ होकय जीवन भे ससब प्रकाय के शुब कामा ससद्ध होते हं । स्जसे धायण कयने से व्मत्रि मफद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे वृत्रद्ध होसत हं औय मफद नौकयी कयता होतो उसभे उडनसत होती हं ।  सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं सवाजन वशीकयण कवि के सभरे होने की वजह से धायण कयता की फात का दस ू ये व्मत्रिओ ऩय प्रबाव फना यहता हं ।  सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं अद्श रक्ष्भी कवि के सभरे होने की वजह से व्मत्रि ऩय भाॊ भहा सदा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं । स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद रक्ष्भी, (२)-धाडम रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।  सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं तॊि यऺा कवि के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू

होती हं , साथ ही नकायत्भन शत्रिमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस कवि के प्रबाव से इषाा-द्रे ष यखने वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दद्श ु प्रबावो से यऺाहोती हं ।

 सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं शिु त्रवजम कवि के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत

सभस्त ऩये शासनओ से स्वत् ही िुटकाया सभर जाता हं । कवि के प्रबाव से शिु धायण कताा व्मत्रि का िाहकय कुि नही त्रफगड सकते।

अडम कवि के फाये भे असधक जानकायी के सरमे कामाारम भं सॊऩका कये : फकसी व्मत्रि त्रवशेष को सवा कामा ससत्रद्ध कवि दे ने नही दे ना का अॊसतभ सनणाम हभाये ऩास सुयस्ऺत हं ।

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जैन धभाके त्रवसशद्श मॊिो की सूिी श्री िौफीस तीथंकयका भहान प्रबात्रवत िभत्कायी मॊि

श्री एकाऺी नारयमेय मॊि

श्री िोफीस तीथंकय मॊि

सवातो बद्र मॊि

कल्ऩवृऺ मॊि

सवा सॊऩत्रत्तकय मॊि

सिॊताभणी ऩाद्वानाथ मॊि

सवाकामा-सवा भनोकाभना ससत्रद्धअ मॊि (१३० सवातोबद्र मॊि)

सिॊताभणी मॊि (ऩंसफठमा मॊि)

ऋत्रष भॊडर मॊि

सिॊताभणी िक्र मॊि

जगदवल्रब कय मॊि

श्री िक्रेद्वयी मॊि

ऋत्रद्ध ससत्रद्ध भनोकाभना भान सम्भान प्रासद्ऱ मॊि

श्री घॊटाकणा भहावीय मॊि

ऋत्रद्ध ससत्रद्ध सभृत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि

श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि

त्रवषभ त्रवष सनग्रह कय मॊि

श्री ऩद्मावती मॊि

ऺुद्रो ऩद्रव सननााशन मॊि

श्री ऩद्मावती फीसा मॊि

फृहच्िक्र मॊि

श्री ऩाद्वाऩद्मावती ह्रंकाय मॊि

वॊध्मा शब्दाऩह मॊि

ऩद्मावती व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि

भृतवत्सा दोष सनवायण मॊि

श्री धयणेडद्र ऩद्मावती मॊि

काॊक वॊध्मादोष सनवायण मॊि

श्री ऩाद्वानाथ ध्मान मॊि

फारग्रह ऩीडा सनवायण मॊि

श्री ऩाद्वानाथ प्रबुका मॊि

रधुदेव कुर मॊि

बिाभय मॊि (गाथा नॊफय १ से ४४ तक)

नवगाथात्भक उवसग्गहयॊ स्तोिका त्रवसशद्श मॊि

भस्णबद्र मॊि

उवसग्गहयॊ मॊि

श्री मॊि

श्री ऩॊि भॊगर भहाश्रृत स्कॊध मॊि

श्री रक्ष्भी प्रासद्ऱ औय व्माऩाय वधाक मॊि

ह्रीॊकाय भम फीज भॊि

श्री रक्ष्भीकय मॊि

वधाभान त्रवद्या ऩट्ट मॊि

रक्ष्भी प्रासद्ऱ मॊि

त्रवद्या मॊि

भहात्रवजम मॊि

सौबाग्मकय मॊि

त्रवजमयाज मॊि

डाफकनी, शाफकनी, बम सनवायक मॊि

त्रवजम ऩतका मॊि

बूताफद सनग्रह कय मॊि

त्रवजम मॊि

ज्वय सनग्रह कय मॊि

ससद्धिक्र भहामॊि

शाफकनी सनग्रह कय मॊि

दस्ऺण भुखाम शॊख मॊि

आऩत्रत्त सनवायण मॊि

दस्ऺण भुखाम मॊि

शिुभुख स्तॊबन मॊि

(अनुबव ससद्ध सॊऩूणा श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि)

मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।

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घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि को स्थाऩीत कयने से साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं । सवा प्रकाय के योग बूत-प्रेत आफद उऩद्रव से यऺण होता हं । जहयीरे औय फहॊ सक प्राणीॊ से सॊफॊसधत बम दयू होते हं । अस्ग्न बम, िोयबम आफद दयू होते हं ।

दद्श ु व असुयी शत्रिमं से उत्ऩडन होने वारे बम

से मॊि के प्रबाव से दयू हो जाते हं ।

मॊि के ऩूजन से साधक को धन, सुख, सभृत्रद्ध,

ऎद्वमा, सॊतत्रत्त-सॊऩत्रत्त आफद की प्रासद्ऱ होती हं । साधक की सबी प्रकाय की सास्त्वक इच्िाओॊ की ऩूसता होती हं । मफद फकसी ऩरयवाय मा ऩरयवाय के सदस्मो ऩय वशीकयण,

भायण,

उच्िाटन

इत्माफद

जाद-ू टोने

वारे

प्रमोग फकमे गमं होतो इस मॊि के प्रबाव से स्वत् नद्श हो जाते हं औय बत्रवष्म भं मफद कोई प्रमोग कयता हं तो यऺण होता हं । कुि जानकायो के श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि से जुडे अद्धद्भुत अनुबव यहे हं । मफद घय भं श्री

घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि स्थात्रऩत फकमा हं औय मफद कोई इषाा, रोब, भोह मा शिुतावश मफद अनुसित कभा कयके फकसी बी उद्दे श्म से साधक को ऩये शान कयने का प्रमास कयता हं तो मॊि के प्रबाव से सॊऩूणा ऩरयवाय का यऺण तो होता ही हं , कबी-कबी शिु के द्राया फकमा गमा अनुसित कभा शिु ऩय ही उऩय उरट वाय होते दे खा हं ।

भूल्म:- Rs. 1450 से Rs. 8200 तक उसरब्द्ध

सॊऩका कयं । GURUTVA KARYALAY Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Email Us:- [email protected], [email protected] Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/

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॥गणेशबुजॊगभ ्॥ यणत्ऺुद्रघण्टासननादासबयाभॊ िरत्ताण्डवोद्दण्डवत्ऩद्मतारभ ् ।

रसत्तुस्डदराङ्गोऩरयव्मारहायॊ गणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ १ ॥ ध्वसनध्वॊसवीणारमोल्राससवक्िॊ स्पुयच्िुण्डदण्डोल्रसद्बीजऩूयभ ् । गरद्दऩासौगडध्मरोरासरभारॊ गणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ २ ॥ प्रकाशज्जऩायियडतप्रसून- प्रवारप्रबातारुणज्मोसतये कभ ् ।

प्ररम्फोदयॊ वक्रतुण्डै कदडतॊ गणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ ३ ॥ त्रवसििस्पुयद्रत्नभाराफकयीटॊ फकयीटोल्रसच्िडद्रये खात्रवबूषभ ् ।

त्रवबूषैकबूशॊ बवध्वॊसहे तुॊ गणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ ४ ॥ उदञ्िद्भज ु ावल्रयीदृश्मभूरो- च्िरद्धभ्रूरतात्रवभ्रभभ्राजदऺभ ् ।

भरुत्सुडदयीिाभयै ् सेव्मभानॊ गणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ ५ ॥ स्पुयस्डनद्षु यारोरत्रऩङ्गास्ऺतायॊ कृ ऩाकोभरोदायरीरावतायभ ् ।

करात्रफडदग ु ॊ गीमते मोसगवमै- गाणाधीशभीशानसूनुॊ तभीडे ॥ ६ ॥ मभेकाऺयॊ सनभारॊ सनत्रवाकल्ऩॊ गुणातीतभानडदभाकायशूडमभ ् ।

ऩयॊ ऩयभंकायभाडभामगबं । वदस्डत प्रगल्बॊ ऩुयाणॊ तभीडे ॥ ७ ॥ सिदानडदसाडद्राम शाडताम तुभ्मॊ नभो त्रवद्वकिे ि हिे ि तुभ्मभ ् । नभोऽनडतरीराम कैवल्मबासे नभो त्रवद्वफीज प्रसीदे शसूनो ॥ ८ ॥

इभॊ सुस्तवॊ प्रातरुत्थाम बक्त्मा ऩठे द्यस्तु भत्मो रबेत्सवाकाभान ् ।

गणेशप्रसादे न ससध्मस्डत वािो गणेशे त्रवबौ दर ा ॊ फकॊप्रसडने ॥ ९ ॥ ु ब

हत्था जोडी- Rs- 370

ससमाय ससॊगी- Rs- 370 त्रफल्री नार- Rs- 370

भॊि ससद्ध दर ा साभग्री ु ब घोडे की नार- Rs.351

भामा जार- Rs- 251

भोसत शॊख- Rs- 550

धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251

दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550

गुरुत्व कामाारम:

इडद्र जार- Rs- 251

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भनोवाॊसित परो फक प्रासद्ऱ हे तु ससत्रद्ध प्रद गणऩसत स्तोि

 सिॊतन जोशी प्रसतफदन इस स्तोि का ऩाठ कयने से भनोवाॊसित पर शीघ्र प्राद्ऱ होते हं । भनोवाॊसित पर प्राद्ऱ कयने हे तु गणेशजी के सिि मा भूसता

के साभने भॊि जाऩ कय सकते

हं । ऩूणा श्रद्धा एवॊ ऩूणा त्रवद्वास के साथ भनोवाॊसित पर प्रदान कयने वारे इस स्तोि का प्रसतफदन कभ से कभ 21 फाय ऩाठ अवश्म कयं ।

असधकस्म असधकॊ परभ ्।

जऩ स्जतना असधक हो सके उतना अच्िा है । मफद भॊि असधक फाय जाऩ कय सकं तो श्रेद्ष। प्रात् एवॊ सामॊकार दोनं सभम कयं , पर शीघ्र प्राद्ऱ होता है । काभना ऩूणा होने के ऩद्ळमात बी सनमसभत स्त्रोत रा ऩाठ कयते यहना िाफहए। कुि एक त्रवशेष ऩरयस्स्थसत भं ऩूवा जडभ के सॊसित कभा स्वरूऩ प्रायब्ध की प्रफरता के कायण भनोवाॊसित पर की प्रासद्ऱ मा तो दे यी सॊबव हं ! भनोवाॊसित पर की प्रासद्ऱ के अबाव भं मोग्म त्रवद्रान की सराह रेकय भागादशान प्राद्ऱ कयना उसित होगा। अत्रवद्वास व कुशॊका कयके आयाध्म के प्रसत अश्रद्धा व्मि कयने से व्मत्रि को प्रसतकूर प्ररयणाभ फह प्राद्ऱ होते हं । शास्त्रोि विन हं फक बगवान (इद्श) फक आयाधना कबी व्मथा नहीॊ जाती।

भॊि:-

गणऩसतत्रवाघ्नयाजो रम्फतुण्डो गजानन्। द्रै भातुयद्ळ हे यम्फ एकदडतो गणासधऩ्॥

त्रवनामकद्ळारुकणा् ऩशुऩारो बवात्भज्। द्रादशैतासन नाभासन प्रातरुत्थाम म् ऩठे त॥्

त्रवद्वॊ तस्म बवेद्रश्मॊ न ि त्रवघ्नॊ बवेत ् क्वसित।् (ऩद्म ऩु. ऩृ. 61।31-33)

बावाथा: गणऩसत, त्रवघ्नयाज, रम्फतुण्ड, गजानन, द्रै भातुय, हे यम्फ, एकदडत, गणासधऩ, त्रवनामक, िारुकणा, ऩशुऩार औय बवात्भज- गणेशजी के मह फायह

नाभ हं । जो व्मत्रि प्रात्कार उठकय इनका सनमसभत ऩाठ कयता हं , सॊऩूणा त्रवद्व

उनके वश भं हो जाता हं , तथा उसे जीवन भं कबी त्रवघ्न का साभना नहीॊ कयना ऩड़ता।

सयस्वती कवि एवॊ मॊि उत्तभ सशऺा एवॊ त्रवद्या प्रासद्ऱ के सरमे वॊसत ऩॊिभी ऩय दर ा तेजस्वी भॊि शत्रि द्राया ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतडम ु ब मुि सयस्वती कवि

औय सयस्वती मॊि के प्रमोग से सयरता एवॊ सहजता से भाॊ सयस्वती की कृ ऩा प्राद्ऱ कयं ।

भूल्म:280 से 1450 तक

ससतम्फय 2011

34

॥ सॊकद्शहयणॊ गणेशाद्शकभ ् ॥

॥गणेश ऩॊच्ियत्नभ ्॥

ॐ अस्म श्री सॊकद्शहयणस्तोिभडिस्म श्रीभहागणऩसतदे वता, सॊकद्शहयणाथा भुदा कयात्तभोदकभ ् सदा त्रवभुत्रिसाधकभ ् जऩे त्रवसनमोग्। ॐ





कायरूऩभ ् त्र्महसभसत

कराधयावतम्सकभ ् त्रवराससरोकयऺकभ ्।

ि

ऩयभ ् मत्स्वरूऩभ ् तुयीमभ ् अनामकैक नामकभ ् त्रवनासशतेबदै त्मकभ ् िैगुण्मातीतनीरॊ करमसत भनसस्तेज-ससडदयू -भूसताभ।् नताशुबाशुनाशकभ ् नभासभ तभ ् त्रवनामकभ ् ॥१॥ मोगीडद्रै ब्रह्म ा यडरै् सकर-गुणभमॊ श्रीहये डद्रे णसॊगॊ गॊ गॊ गॊ गॊ गणेशॊ गजभुखभसबतो व्माऩकॊ सिडतमस्डत ॥१॥ वॊ वॊ वॊ त्रवघ्नयाजॊ बजसत नतेतयासतबीकयभ ् नवोफदताकाबास्वयभ ् सनजबुजे

दस्ऺणे

डमस्तशुण्डॊ

क्रॊ

क्रॊ

क्रॊ

क्रोधभुद्रा-दसरत-रयऩुफरॊ नभत्सुयारयसनजायभ ् नतासधकाऩदद्र ु यभ ्।

कल्ऩवृऺस्म भूरे। दॊ दॊ दॊ दडतभेकॊ दधसत भुसनभुखॊ काभधेडवा सनषेव्मभ ् धॊ सुयेद्वयभ ् सनधीद्वयभ ् गजेद्वयभ ् गणेद्वयभ ् धॊ धॊ धायमडतॊ धनदभसतसघमॊ ससत्रद्ध-फुत्रद्ध-फद्रतीमभ ् ॥२॥ तुॊ तुॊ तुॊ तुॊगरूऩॊ भहे द्वयभ ् तभाश्रमे ऩयात्ऩयभ ् सनयडतयभ ् ॥२॥ गगनऩसथ

गतॊ

व्मासनुवडतॊ

फदगडतान ् क्रीॊ

क्रीॊ

क्रीॊकायनाथॊ

गसरतभदसभरल्रोर-भत्तासरभारभ।् ह्रीॊ ह्रीॊ ह्रीॊकायत्रऩॊगॊ सकरभुसनवय- सभस्तरोकशङ्कयभ ् सनयस्तदै त्मकुञ्जयभ ् ध्मेमभुण्डॊ ि शुण्डॊ श्रीॊ श्रीॊ श्रीॊ श्रीॊ श्रमडतॊ सनस्खर-सनसधकुरॊ नौसभ दये तयोदयभ ् वयभ ् वये बवक्िभऺयभ ्।

हे यम्फत्रफम्फभ ् ॥३॥ रं रं रंकायभाद्यॊ प्रणवसभव ऩदॊ भडिभुिावरीनाभ ् कृ ऩाकयभ ् ऺभाकयभ ् भुदाकयभ ् मशस्कयभ ् शुद्धॊ

त्रवघ्नेशफीजॊ

शसशकयसदृशॊ

मोसगनाॊ

ध्मानगम्मभ।् भनस्कयभ ् नभस्कृ ताॊ नभस्कयोसभ बास्वयभ ् ॥३॥

डॊ डॊ डॊ डाभरूऩॊ दसरतबवबमॊ सूमक ा ोफटप्रकाशभ ् मॊ मॊ मॊ मऻनाथॊ जऩसत भुसनवयो फाह्यभभ्मडतयॊ ि ॥४॥ हुॊ हुॊ हुॊ हे भवणं श्रुसत-गस्णतगुणॊ शूऩक ा णॊ कृ ऩारुॊ ध्मेमॊ सूमस् ा म त्रफम्फॊ ह्युयसस ि त्रवरसत ् सऩामऻोऩवीतभ।्

अफकञ्िनासताभाजानॊ सियडतनोत्रि बाजनभ ् ऩुयारयऩूवन ा डदनभ ् सुयारयगवािवाणभ ्।

भडिाणाॊ प्रऩञ्िनाशबीषणभ ् धनञ्जमाफद बूषणभ ् कऩोरदानवायणभ ् बजे ऩुयाणवायणभ ् ॥४॥ सद्ऱकोफट-प्रगुस्णत-भफहभाधायभोशॊ प्रऩद्ये ॥५॥ ऩूवं ऩीठॊ त्रिकोणॊ तदऩ ु रय स्वाहाहुॊपट् रुसियॊ

नभोडतैद्ष-ठठठ-सफहतै्

षट्कऩिॊ

ऩत्रविभ ्

स्वतेजद्ळतुस्रभ।्

मस्मोध्वं

ऩल्रवै्

सेव्मभानभ ्

शुद्धये खा

वसुदरकभरॊ

वो

भध्मे हुॊकायफीजॊ तदनु बगवत्

स्वाॊगषट्कॊ षडस्रे अद्शौ शिीद्ळ ससद्धीफाहुरगणऩसतत्रवद्श ा यद्ळाद्शकॊ ि ॥६॥

सनताडतकाडत दडतकास्डत भडतकाडतकात्भजभ ् असिडत्मरूऩ भडतहीन भडतयाम कृ डतनभ ्।

धभााद्यद्शौ प्रससद्धा दशफदसश त्रवफदता वा ध्वजाल्म् कऩारॊ तस्म ऺेिाफदनाथॊ रृदडतये सनयडतयभ ् वसडतभेव मोसगनाभ ् भुसनकुरभस्खरॊ भडिभुद्राभहे शभ।् एवॊ मो बत्रिमुिो जऩसत गणऩसतॊ ऩुष्ऩ- तभेकदडतभेव तभ ् त्रवसिडतमासभ सडततभ ् ॥५॥ धूऩा-ऺताद्यैनैवेद्यैभोदकानाॊ

स्तुसतमुत-त्रवरसद्-गीतवाफदि-नादै ्

॥७॥

याजानस्तस्म बृत्मा इव मुवसतकुरॊ दासवतसवा ् दास्ते रक्ष्भी् सवांगमुिा श्रमसत ि सदनॊ फकॊकया् सवारोका्। ऩुिा् ऩुत्र्म् ऩत्रविा यणबूत्रव त्रवजमी

भहागणेश ऩॊच्ियत्नभादये ण मोडवहभ ् प्रजल्ऩसत प्रबातके रृफदस्भयडगणेद्वयभ ्।

द्यूतवादे त्रऩ वीयो मस्मेशो त्रवघ्नयाजो सनवससत रृदमे बत्रिबाग्मस्म रुद्र् अयोगताभदोषताॊ सुसाफहतीॊ सुऩुिताॊ सभाफहतामुयद्शबूसतभभ्मुऩैसत सोसियात ् ॥६॥ ॥८॥ ॥ इसत श्री सॊकद्शहयणॊ गणेशाद्शकॊ सम्ऩूणभ ा ्॥ ॥इसत श्री गणेश ऩॊच्ियत्नभ ् सम्ऩुण॥ ा

ससतम्फय 2011

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एकदडत शयणागसत स्तोिभ ्

सॊस्थे

एकदडतभ ् शयणभ ् व्रजाभ:

ददस्डत वै कभापरासन सनत्मभ ्। मदाऻमा शैरगणा: स्स्थया वै

दे वषाम ऊिु: सदात्भरूऩॊ

सकराफदबूतभभासमनॊ

अनाफदभध्माडतत्रवहीनभेकॊ

शयणॊ

व्रजाभ:॥

अनडतसिद्रऩ ू भमॊ गणेशभबेदबेदाफदत्रवहीनभाद्यभ ्। रृफद प्रकाशस्म धयॊ स्वधीस्थॊ तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ सभासधसॊस्थॊ रृफद मोसगनाॊ

मॊ

प्रकाशरूऩेण

त्रवबातभेतभ ्।

सदा

सनयारम्फसभासधगम्मॊ तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ स्वत्रफम्फबावेन त्रवरासमुिाॊ प्रत्मऺभामाॊ त्रवत्रवधस्वरूऩाभ ्। स्ववीमाकॊ ति ददासत मो

वै

तभेकदडतॊ

शयणॊ

व्रजाभ:॥

त्वदीमवीमेण

सभथाबूतस्वभाममा सॊयसितॊ ि त्रवद्वभ ्। तुयीमकॊ ह्यात्भप्रतीसतसॊऻॊ

तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ त्वदीमसत्ताधयभेकदडतॊ गुणेद्वयॊ मॊ गुणफोसधतायभ ्। बजडतभत्मडतभजॊ त्रिसॊस्थॊ तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ ततस्त्वमा प्रेरयतनादकेन सुषुसद्ऱसॊऻॊ यसितॊ जगद् वै।

सभानरूऩॊ ह्युबमिसॊस्थॊ तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ तदे व त्रवद्वॊ कृ ऩमा प्रबूतॊ

फद्रबावभादौ तभसा त्रवबाडतभ ्। अनेकरूऩॊ

फबूव

जगदे कसॊस्थभ ्। सुसात्रत्तवक ् ॊ

ि

तथैकबूतॊ तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ ततस्त्वमा प्रेरयतकेन सृद्शॊ सूक्ष्भॊ

स्वऩडभनडतभाद्यॊ

तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ तदे व स्वऩन ् तऩसा गणेश सुससद्धरूऩॊ

त्रवत्रवधॊ फबूव। सदै करूऩॊ कृ ऩमा ि तेऽद्य तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥

त्वदाऻमा

जगदॊ शरूऩभ ्।

व्रजाभ:॥ तदे व

तेन

त्वमा

रृफदस्थॊ

त्रवसबडनजाग्रडभमभप्रभेमॊ जाग्रद्रजसा

त्रवबातॊ

तथा

तभेकदडतॊ

त्रवरोफकतॊ

सुसद्श ृ ॊ शयणॊ

त्वत्कृ ऩमा

स्भृतेन। फबूव सबडन ि सदै करूऩॊ तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ सदे व सृत्रद्शप्रकृ सतस्वबावात्तदडतये त्वॊ ि त्रवबासस सनत्मभ ्। सधम: प्रदाता गणनाथ एकस्तभेकदडतॊ

शयणॊ व्रजाभ:॥ त्वदाऻमा

सनत्मॊ

शयणॊ

बास्डत ग्रहाद्ळ सवे प्रकाशरूऩास्ण त्रवबास्डत खे वै। भ्रभस्डत सृत्रद्शकयो

स्वत्रवहायकामाास्तभेकदडतॊ त्रवधाता

त्वदाऻमा

ऩारक

प्रवहस्डत

नद्य:।

स्वतीथासॊस्थद्ळ

कृ त:

सभुद्रस्तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ मदाऻमा दे वगणा फदत्रवस्था

सोऽहभसिडत्मफोधभ ्।

तभेकदडतॊ

मदाऻमाऩ:

व्रजाभ:॥ त्वदाऻमा

एकत्रवष्णु:। त्वदाऻमा

तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:। मदाऻमा दे वगणा फदत्रवस्था ददस्डत वै कभापरासन सनत्मभ ्। मदाऻमा शैरगणा: स्स्थया वै तभेकदडतॊ

शयणॊ व्रजाभ:॥ मदाऻमा शेषधयाधयो वै मदाऻमा भोहप्रदद्ळ काभ:। मदाऻमा कारधयोऽमाभा ि तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ मदाऻमा

वासत

त्रवबासत

वामुमद ा ाऻमासगडजाठयाफदसॊस्थ:।

मदाऻमेदॊ सियाियॊ ि तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ मदडतये

सॊस्स्थतभेकदडतस्तदाऻमा सवासभदॊ त्रवबासत। अनडतरूऩॊ रृफद

फोधकॊ मस्तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ सुमोसगनो मोगफरेन साध्मॊ प्रकुवाते क: स्तवनेन स्तौसत। अत: प्रणाभेन सुससत्रद्धदोऽस्तु तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ गृत्सभद उवाि

एवॊ स्तुत्वा गणेशानॊ दे वा: सभुनम: प्रबुभ ्। तृष्णीॊ बावॊ प्रऩद्यैव ननृतुहाषासॊमत ु ा:॥ स तानुवाि प्रीतात्भा दे वषॉणाॊ स्तवेन वै। एकदडतो भहाबागो देवषॉन ् बिवत्सर:॥ एकदडत उवाि

स्तोिेणाहॊ प्रसडनोऽस्स्भ सुया: सत्रषागणा: फकर। वयदोऽहॊ वृणुत वो

दास्मासभ

भनसीस्ससतभ ्॥ बवत्कृ तॊ

भदीमॊ

मत ् स्तोिॊ

प्रीसतप्रदॊ ि तत ्। बत्रवष्मसत न सॊदेह: सवाससत्रद्धप्रदामकभ ्॥ मॊ

मसभच्िसत तॊ तॊ वै दास्मासभ स्तोिऩाठत:। ऩुिऩौिाफदकॊ सवा

करिॊ धनधाडमकभ ्॥ गजाद्वाफदकभत्मडतॊ याज्मबोगाफदकॊ रुवभ ्। बुत्रिॊ

भुत्रिॊ

ि

मोगॊ

वै

रबते

शास्डतदामकभ ्॥

भायणोच्िाटनादीसन याजफडधाफदकॊ ि मत ्। ऩठताॊ श्रृण्वताॊ नृणाॊ बवेच्ि फडधहीनता॥ एकत्रवॊशसतवायॊ

म: द्ऴोकानेवैकत्रवॊशतीन ्।

ऩठे च्ि रृफद भाॊ स्भृत्वा फदनासन त्वेकत्रवॊशसतभ ्॥ न तस्म दर ु ाबॊ

फकञ्ित ् त्रिषु रोकेषु वै बवेत ्। असाध्मॊ साध्मेडभत्मा: सवाि त्रवजमी बवेत ्॥ सनत्मॊ म: ऩठसत स्तोिॊ ब्रह्मबूत: स वै नय:। तस्म दशानत: सवे देवा: ऩूता बवस्डत ि॥

सॊहयको हयोऽत्रऩ तभेकदडतॊ शयणॊ व्रजाभ:॥ मदाऻमा बूसभजरेऽि 

प्रसतफदन इस इक्कीस द्ऴोकं का इक्कीस फदनं तक प्रसतफदन इक्कीस फाय ऩाठ कयता हं उसे सवाि त्रवजम प्राद्ऱ होती हं ।



इस स्तोि के ऩाठ से व्मत्रि को सवा इच्िीत वस्तु फक प्रासद्ऱ होती हं । ऩुि-ऩौि आफद, करि, धन-धाडम, उत्तभ वाहन एवॊ सभस्त बौसतक सुख साधनो एवॊ शाॊसत फक प्रासद्ऱ होती हं ।



अडम द्राया फकमे जाने वारे भायण, उच्िाटन औय भोहन आफद प्रमोग से व्मत्रि फक यऺा होती हं ।

ससतम्फय 2011

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गणेश ऩूजन से वास्तु दोष सनवायण

 सिॊतन जोशी फहॊ द ू सॊस्कृ सत भं बगवान गणेश सवा त्रवघ्न

त्रवनाशक भाना हं । इसी कायण गणऩसत जी का ऩूजन फकसी बी व्रत अनुद्षान भं सवा प्रथभ फकमा जाता हं । बवन भं वास्तु ऩूजन कयते सभम बी गणऩसत जी को प्रथभऩूजा जाता हं । स्जस घय भं सनमसभत गणऩसत जी का त्रवसध त्रवधान से ऩूजन

होता हं , वहाॊ सुख-सभृत्रद्ध एवॊ रयत्रद्ध-ससत्रद्ध का सनवास होता हं । गणेश प्रसतभा (भूसता) की स्थाऩना बवन के भुख्म द्राय के ऊऩय अॊदय-फहाय दोनो औय रगाने से असधक राब प्राद्ऱ होता हं । गणेश

प्रसतभा

(भूसता)

की

ऩूजा

घयभं

स्थाऩना कयने ऩय उडहं ससॊदयू िढाने से शुब पर फक प्रासद्ऱ होती हं ।

बवन भं द्रायवेध हो, अथाात बवन के भुख्म द्राय के साभने वृऺ, भॊफदय, स्तॊब आफद द्राय भं प्रवेश कयने वारी उजाा हे तु फाधक होने ऩय वास्तु भं उसे द्रायवेध भाना जाता हं । द्रायवेध होने ऩय वहाॊ यहने वारं भं उच्िाटन होता हं । ऐसे भं बवन के भुख्म द्राय ऩय गणोशजी की फैठी हुई प्रसतभा (भूसता) रगाने से द्रायवेध का सनवायण होता हं । रगानी िाफहए फकॊतु उसका आकाय 11 अॊगुर से असधक नहीॊ होना िाफहए।

ऩूजा स्थानभं ऩूजन के सरए गणेश जी की एक से असधक प्रसतभा (भूसता) यखना वस्जात हं ।

बाग्म रक्ष्भी फदब्फी सुख-शास्डत-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरमे बाग्म रक्ष्भी फदब्फी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग, व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा किेयी के कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्डिक फाधा, शिु बम, िोय बम जेसी अनेक ऩये शासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध फक प्रासद्ऱ होसत है , बाग्म

रक्ष्भी फदब्फी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), ससमाय ससडगी, त्रफस्ल्र नार, शॊख, कारीसफ़ेद-रार गुॊजा, इडद्र जार, भाम जार, ऩातार तुभडी जेसी अनेक दर ा साभग्री होती है । ु ब

भूल्म:- Rs. 910 से Rs. 8200 तक उसरब्द्ध

गुरुत्व कामाारम सॊऩका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785 c

ससतम्फय 2011

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गणेश वाहन भूषक केसे फना सभेरू ऩवात ऩय सौभरय ऋत्रष का आश्रभ था। उनकी अत्मॊत रूऩवान तथा ऩसतव्रता ऩत्नी का नाभ भनोभमी था। एक फदन ऋत्रषवय रकड़ी रेने के सरए वन भं िरे गए। उनके जाने के ऩद्ळमात भनोभमी गृहकामा भं व्मस्त हो गईं। उसी सभम एक दद्श ु कंि नाभक गॊधवा वहाॊ आमा। जफ कंि ने रावव्मभमी भनोभमी को दे खा, तो उसके बीतय काभ जागृत होगमा एवॊ वह व्माकुर हो गमा। कंि ने भनोभमी का हाथ ऩकड़ सरमा। योती व काॊऩती हुई भनोभमी उससे दमा की बीख भाॊगने रगी। उसी सभम वहा सौबरय ऋत्रष आ गए। उडहं गॊधवा को श्राऩ दे ते हुए कहा, तुभने िोय की बाॊसत भेयी सहधसभानी का हाथ ऩकड़ा हं , इस कायण तुभ अफसे भूषक

होकय

धयती

के

नीिे

औय

िोयी

कयके

अऩना

ऩेट

बयोगे।’

ऋत्रष का श्राऩ सुनकय गॊधवा ने ऋत्रष से प्राथाना की- हे ऋत्रषवय, अत्रववेक के कायण भंने आऩकी ऩत्नी के हाथ का स्ऩशा फकमा। भुझे ऺभा कय दं । ऋत्रष फोरे: कंि! भेया श्राऩ व्मथा नहीॊ होगा। तथात्रऩ द्राऩय भं भहत्रषा ऩयाशय के महाॊ गणऩसत दे व गजरूऩ भं प्रकट हंगे। तफ तुभ उनका वाहन फन जाओगे। इसके ऩद्ळमात तुम्हाया कल्माण होगा तथा दे वगण बी तुम्हाया सम्भान कयं गे।’

द्रादश भहा मॊि मॊि को असत प्रासिन एवॊ दर ा मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान द्राया फनामा गमा हं । ु ब

 ऩयभ दर ा वशीकयण मॊि, ु ब

 सहस्त्राऺी रक्ष्भी आफद्ध मॊि

 बाग्मोदम मॊि

 आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि

 भनोवाॊसित कामा ससत्रद्ध मॊि

 ऩूणा ऩौरुष प्रासद्ऱ काभदे व मॊि

 याज्म फाधा सनवृत्रत्त मॊि

 योग सनवृत्रत्त मॊि

 गृहस्थ सुख मॊि

 साधना ससत्रद्ध मॊि

 शीघ्र त्रववाह सॊऩडन गौयी अनॊग मॊि

 शिु दभन मॊि

उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ िैतडम मुि फकमे जाते हं । स्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा अिाना-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं ।

GURUTVA KARYALAY

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ससतम्फय 2011

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गणेश स्तवन श्री आफद कत्रव वाल्भीफक उवाि ितु:षत्रद्शकोटमाख्मत्रवद्याप्रदॊ त्वाॊ सुयािामात्रवद्याप्रदानाऩदानभ ्। कठाबीद्शत्रवद्याऩाकॊ दडतमुग्भॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥ स्वनाथॊ प्रधानॊ भहात्रवघडनाथॊ सनजेच्िात्रवसृद्शाण्डवृडदे शनाथभ ्। प्रबुॊ दस्ऺणास्मस्म त्रवद्याप्रदॊ त्वाॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥ त्रवबो व्माससशष्माफदत्रवद्यात्रवसशद्शत्रप्रमानेकत्रवद्याप्रदातायभाद्यभ ्। भहाशािदीऺागुरुॊ श्रेद्षदॊ त्वाॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥ त्रवधािे िमीभुख्मवेदाॊद्ळ मोगॊ भहात्रवष्णवे िागभाज शॊकयाम। फदशडतॊ ि सूमााम त्रवद्यायहस्मॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥ भहाफुत्रद्धऩुिाम िैकॊ ऩुयाणॊ फदशडतॊ गजास्मस्म भाहात्म्ममुिभ ्। सनजऻानशक्त्मा सभेतॊ ऩुयाणॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥ िमीशीषासायॊ रुिानेकभायॊ यभाफुत्रद्धदायॊ ऩयॊ ब्रह्मऩायभ ्। सुयस्तोभकामॊ गणौघासधनाथॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥ सिदानडदरूऩॊ भुसनध्मेमरूऩॊ गुणातीतभीशॊ सुयेशॊ गणेशभ ्। धयानडदरोकाफदवासत्रप्रमॊ त्वाॊ कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥ अनेकप्रतायॊ सुयिाब्जहायॊ ऩयॊ सनगुण ा ॊ त्रवद्वसद्धब्रह्मरूऩभ ्। भहावाक्मसॊदोहतात्ऩमाभूसता कत्रवॊ फुत्रद्धनाथॊ कवीनाॊ नभासभ॥ इदॊ मे तु कव्मद्शकॊ बत्रिमुिास्स्त्रसॊध्मॊ ऩठडते गजास्मॊ स्भयडत:। कत्रवत्वॊ सुवाक्माथाभत्मद्भत ु ॊ ते रबडते प्रसादाद् गणेशस्म भुत्रिभ ्॥

॥इसत श्री वाल्भीफक कृ त श्रीगणेश स्तोि सॊऩूणभ ा ्॥ पर: जो व्मत्रि श्रद्धा बाव से तीनोकार सुफह सॊध्मा एवॊ यािी के सभम वाल्भीफक कृ त श्रीगणेश का स्तवन कयते उडहे सबी बौसतक सुखो फक प्रासद्ऱ होकय उसे भोऺ को प्राद्ऱ कय रेता हं , एसा शास्रोि विन हं ।

त्रवष्णुकृतॊ गणेशस्तोिभ ् श्री नायामण उवाि अथ त्रवष्णु: सबाभध्मे सम्ऩूज्म तॊ गणेद्वयभ ्। तृद्शाव ऩयमा बक्त्मा सवात्रवघस्डवनाशकभ ्॥ श्री त्रवष्णु उवाि

ईश त्वाॊ स्तोतुसभच्िासभ ब्रह्मज्मोसत: सनातनभ ्। सनरूत्रऩतुभशिोऽहभनुरूऩभनीहकभ ्॥1॥ प्रवयॊ सवादेवानाॊ ससद्धानाॊ मोसगनाॊ

गुरुभ ्। सवास्वरूऩॊ सवेशॊ ऻानयासशस्वरूत्रऩणभ ्॥2॥ अव्मिभऺयॊ सनत्मॊ सत्मभात्भस्वरूत्रऩणभ ्। वामुतुल्मासतसनसराद्ऱॊ िाऺतॊ सवासास्ऺणभ ्॥3॥ सॊसायाणावऩाये

ि भामाऩोते सुदर ा े। कणाधायस्वरूऩॊ ु ब

ि बिानुग्रहकायकभ ्॥4॥ वयॊ

वये ण्मॊ

वयदॊ

वयदानाभऩीद्वयभ ्। ससद्धॊ ससत्रद्धस्वरूऩॊ ि ससत्रद्धदॊ ससत्रद्धसाधनभ ्॥5॥ ध्मानासतरयिॊ ध्मेमॊ ि ध्मानासाध्मॊ ि धासभाकभ ्।

धभास्वरूऩॊ धभाऻॊ धभााधभापरप्रदभ ्॥6॥ फीजॊ सॊसायवृऺाणाभङ्कुयॊ ि तदाश्रमभ ्। स्त्रीऩुडनऩुॊसकानाॊ ि रूऩभेतदतीस्डद्रमभ ्॥7॥ सवााद्यभग्रऩूज्मॊ ि सवाऩूज्मॊ गुणाणावभ ्। स्वेच्िमा सगुणॊ ब्रह्म सनगुण ा ॊ िात्रऩ स्वेच्िमा॥8॥ स्व्मॊ प्रकृ सतरूऩॊ ि प्राकृ तॊ प्रकृ ते: ऩयभ ्। त्वाॊ स्तोतुभऺभोऽनडत: सहस्त्रवदनेन ि॥9॥ न ऺभ: ऩञ्िवक्िद्ळ न ऺभद्ळतुयानन्। सयस्वती न शिा ि न

शिोऽहॊ तव स्तुतौ॥10॥ न शिाद्ळ ितुवेदा: के वा ते वेदवाफदन्॥11॥ इत्मेवॊ स्तवनॊ कृ त्वा सुयेशॊ सुयसॊसफद। सुयेशद्ळ सुयै: साद्र्ध त्रवययाभ यभाऩसत्॥12॥ इदॊ त्रवष्णुकृतॊ स्तोिॊ गणेशस्म ि म: ऩठे त ्। सामॊप्रातद्ळ भध्माह्ने बत्रिमुि: सभाफहत्॥13॥ तफद्रघस्डनघन ् कुरुते त्रवघनेद्व्सततॊ भुने। वधाते सवाकल्माणॊ कल्माणजनक: सदा॥14॥ मािाकारे ऩफठत्वा तु मो मासत

बत्रिऩूवक ा भ ्। तस्म सवााबीद्शससत्रद्धबावत्मेव न सॊशम्॥15॥ तेन दृद्शॊ ि द:ु स्वऩन ् सुस्वऩडभुऩजामते। कदात्रऩ न बवेत्तस्म ग्रहऩीडा ि दारुणा॥16॥ बवेद् त्रवनाश: शिूणाॊ फडधूनाॊ ि त्रववधानभ ्। शद्वफद्रघस्डवनाशद्ळ शद्वत ् सम्ऩफद्रवधानभ ्॥17॥ स्स्थया बवेद् गृहे रक्ष्भी: ऩुिऩौित्रववसधानी। सवैद्वमासभह प्रासम ह्यडते त्रवष्णुऩदॊ रबेत ्॥18॥ परॊ िात्रऩ ि तीथाानाॊ मऻानाॊ मद् बवेद् रुवभ ्। भहताॊ सवादानानाॊ श्री गणेशप्रसादत्॥19॥

ससतम्फय 2011

39

गणऩसतस्तोिभ ् सुवणावणासड ु दयॊ

ससतैकदडतफडधुयॊ

प्रपुल्रवारयजासनॊ

बजासभ

गृहीतऩाशकाङ्कुशॊ वयप्रदाबमप्रदभ ्। ितुबज ुा ॊ

ससडधुयाननभ ्॥

प्रशोसबतास्ङ्घमत्रद्शकभ ्।

ऩयाम्फमा।

गृहप्रदे डदस ु दयॊ ु ड

सनयडतयॊ

सुयासुयै:

सऩुिवाभरोिनै:

भदौघरुब्धिञ्िरासरभञ्जुगुस्ञ्जतायवॊ नभासभ

प्रिण्डयत्नकङ्कणॊ

कवीडद्रसित्तयञ्जकॊ

भहात्रवऩत्रत्तबञ्जकॊ

सनत्मभादये ण

सयत्नहे भनूऩुयप्रशोसबतास्ङ्घ्रऩङ्कजभ ्॥

मुगऺणप्रभोफदतभ ्।

बजे गजेडद्ररूत्रऩणभ ्॥ त्रवरयञ्ित्रवष्णुवस्डदतॊ

बुजङ्गभोऩवीसतनॊ

प्रदीद्ऱफाहुबूषणॊ

प्रबातसूमासड ु दयाम्फयद्रमप्रधारयणॊ

सुवणादण्डभस्ण्डतप्रिण्डिारुिाभयॊ षडऺयस्वरूत्रऩणॊ

फकयीटहायकुण्डरॊ

त्रिरोिनॊ

त्रवरूऩरोिनस्तुतॊ

भहाभखेद्शकभासु

सगयीशदशानेच्िमा

स्भृतॊ

बजासभ

प्रफुद्धसित्तयञ्जकॊ प्रभोदकणािारकभ ्। अनडमबत्रिभानवॊ

वक्रतुण्डनामकभ ्॥

दारयद्रमत्रवद्रावणभाशु

काभदॊ

स्तोिॊ

करिस्वजनेषु भैिी ऩुभान ् बवेदेकवयप्रसादात ्॥

सभत्रऩातॊ तुस्डदरभ ्॥

प्रिण्डभुत्रिदामॊ

ऩठे दे तदजस्त्रभादयात ्।

ऩुिी

इस स्तोिा का प्रसतफदन ऩाठ कयने से गणेशजी की कृ ऩा से उसे सॊतान राब, स्त्री प्रसत, सभि एवॊ स्वजनो से एवॊ ऩरयवाय भं प्रेभ बाव फढता हं ।

॥श्री त्रवघ्नेद्वयाद्शोत्तय शतनाभस्तोिभ ् ॥ त्रवनामको

त्रवघ्नयाजो

अस्ग्नगवास्च्िद

गौयीऩुिो

इडद्रश्रीप्रद्

सवाात्भक्

सृत्रद्शकताा

द्रै भािेमो

भुसनस्तुत्मो

रम्फोदयश्शूऩक ा णो फीजऩूयपरासिो श्रीदोज शाडत्

त्रवदत्त ु भ्

श्रीऩसत्

काडत्

स्वमॊकताा

तुद्शाव

शॊकय्

दव ू ाादरैत्रफाल्वऩिै् .

स्जतभडभथत्रवग्रह्

ऩुिॊ

सवाससत्रद्धप्रदामक् त्रिऩुयॊ

ऩुष्ऩैवाा

हॊ तुभुत्मत् िॊदनाऺतै्

ऩूतो

दऺोऽध्मऺो

सवाससत्रद्धप्रदश्शवातनो त्रप्रमश्शाॊतो

ब्रह्मिायी

ग्रहऩसत्

काभी

। ।



शवायीत्रप्रम्







गजानन्



















जफटर्

िक्रीऺुिाऩधृत ्

कसरकल्भषनाशन्







असश्रतश्रीकयस्सौम्मो

बिवाॊसितदामक्







ब्रह्मद्रे षत्रववस्जात्



१०



वीतबमो

दमामुतो

गदी

दाॊतो

याभासिातोत्रवसधनाागयाजमऻोऩवीतक्

सभस्तजगदाधायो अद्शोत्तयशतेनैवॊ



म् ।



ऩदाम्फुज्

धीयो



ऩूजमेदनेनैव

भामी नाम्नाॊ बक्त्मा

सवााडकाभानवासनोसत

११

वागीशस्स्सत्रद्धदामक्

शैरेडद्रतनुजोत्सङ्गखेरनोत्सुकभानस् ।





स्थूरतुण्डोऽग्रणी







ऻानी







कुराफद्रबेत्ता ।



सोभसूमाास्ग्नरोिन्

अकल्भषस्स्वमॊससद्धस्स्सद्धासिात् ।

फद्रजत्रप्रम्

एकदडतश्ितुफााहुश्ितुयश्शत्रिसॊमुत्

फद्रजत्रप्रमो

त्रवफुधेद्वय् ।

प्रसडनात्भा



त्रवग्रह्

दव ू ाात्रफल्वत्रप्रमोऽव्मिभूसतायद्भत ु भूसताभान ् रृद्शस्तुद्श्

कारो

सभाफहत्

ऩय्

स्वरावण्मसुधासायो

शुद्धफुत्रद्ध



साभघोषत्रप्रम्

अव्मम् ।

स्तुसतहत्रषात्

ऩाऩहायी

श्रीकॊथो



कृ सत्

कैवल्मसुखदस्सस्च्िदानडद

स्थूरकॊठ्



सनयञ्जन्

वयदश्शाद्वत्

प्रभत्तदै त्मबमद्

वाणीप्रदोअ्

बित्रवघ्नत्रवनाशन्

गुणातीतो

उत्ऩरकय्

िडद्रिूडाभस्ण्



स्कॊदाग्रजोव्मम्

दे वोनेकासिातस्श्शव्

हयब्राह्म

ऩाशाङ्कुशधयद्ळण्डो

गणेद्वय्।

त्रवघ्नेद्वयॊ



त्रवबुॊ



ससत्रद्धत्रवनामकभ ् सवात्रवघ्नै्





भूषकवाहन्





१२



१३



१४



१५



१६



प्रभुच्मते



40

ससतम्फय 2011

ससत्रद्ध त्रवनामक व्रत त्रवधान

 सिॊतन जोशी ससत्रद्ध त्रवनामक व्रत बाद्रऩद शुक्र ऩऺ की ितुथॉ को ही फकमा जाता है । शास्त्रोि भाडमता के अनुशाय फदन दोऩहय भं गणेशजी का जडभ हुआ था। इसीसरए इस ितुथॉ को त्रवनामक ितुथॉ, ससत्रद्धत्रवनामक ितुथॉ औय श्रीगणेश ितुथॉ के नाभ से जाना जाता है । इस सरमे ऩौयास्णक कार से ही इस सतसथ को गणेशोत्सव मा गणेश जडभोत्सव के रूऩ भं भनामा जाता हं । वैसे तो प्रत्मेक भास की ितुथॉ को गणेशजी का व्रत होता है । रेफकन बाद्रऩद के ितुसथा व्रत का त्रवशेष भाहात्म्म है । ऎसी भाडमता हं की इस फदन जो श्रधारु व्रत, उऩवास औय दान आफद शुब कामा फकमा जाता है , श्रीगणेश की कृ ऩा से सौ गुना पर प्राद्ऱ हो जाता हं । व्मत्रि को श्री त्रवनामक ितुथॉ कयने से भनोवाॊसित पर प्राद्ऱ होता है । शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से श्री गणेशजी का ऩूजन व व्रत इस प्रकाय कयना अत्मॊत राबप्रद होता हं ।

त्रवसध 

प्रात्कार स्नानआफद सनत्मकभा से शीघ्र सनवृत्त हो कय। अऩने साभथाम के अनुसाय ऩूणा बत्रि बाव से



बगवान गणेश की सोने, िाॊदी, ताॊफ,े ऩीतर मा सभट्टी से फनी प्रसतभा स्थात्रऩत कयं । भूसता को षोड़शोऩिाय ऩूजनआयती आफद से त्रवसध-वत ऩूजन कयं ।

 

गणेशजी की भूसता ऩय ससॊदयू िढ़ाएॊ।

गणेशजी का भॊि फोरते हुए 21 दव ु ाा दर िढ़ाएॊ।



श्री गणेशजी को रड्डु ओॊ का बोग रगाएॊ।



ब्राह्मण बोजन कयाएॊ औय ब्राह्मणं को दस्ऺणा प्रदान कयने के ऩद्ळात ् सॊध्मा के सभम स्वमॊ बोजन ग्रहण कयं ।



इस तयह ऩूजन कयने से बगवान श्रीगणेश असत प्रसडन होते हं औय अऩने बिं की सकर इच्िाओॊ की ऩूसता कयते हं ।

सॊकद्शहय ितुथॉ व्रत का प्रायॊ ब कफ हुवा सॊकद्शहय ितुदशॉ कथा् बायद्राज भुसन औय ऩृथ्वी के ऩुि भॊगर की कफठन तऩस्मा से प्रसडन होकय भाघ भास के कृ ष्ण ऩऺ भं ितुथॉ सतसथ को गणऩसत ने उनको दशान फदमे थे। गजानन के वयदान के परस्वरूऩ भॊगर कुभाय को इस फदन भॊगर ग्रह के रूऩ भं सौय भण्डर भं स्थान प्राद्ऱ हुवाथा। भॊगर

कुभाय को गजानन से मह बी वयदान सभरा फक भाघ कृ ष्ण ऩऺ की ितुदशॉ स्जसे सॊकद्शहय ितुथॉ के नाभ से जाना जाता हं उस फदन जो बी व्मत्रि गणऩसतजी का व्रत यखेगा उसके सबी प्रकाय के कद्श एवॊ त्रवघ्न सभाद्ऱ हो जाएॊगे। एक अडम कथा के अनुसाय बगवान शॊकय ने गणऩसतजी से प्रसडन होकय उडहं वयदान फदमा था फक भाघ कृ ष्ण ऩऺ की

ितुथॉ सतसथ को िडद्रभा भेये ससय से उतयकय गणेश के ससय ऩय शोबामभान होगा। इस फदन गणेश जी की उऩासना औय व्रत त्रिताऩ (तीनो प्रकाय के ताऩ) का हयण कयने वारा होगा। इस सतसथ को जो व्मत्रि श्रद्धा बत्रि से मुि होकय त्रवसध-त्रवधान से गणेश जी की ऩूजा कये गा उसे भनोवाॊसित पर फक प्रासद्ऱ होगी।

41

ससतम्फय 2011

गणेश कविभ ्

सॊसायभोहनस्मास्म कविस्म प्रजाऩसत्। ऋत्रषश्िडदद्ळ फृहती दे वो रम्फोदय: स्वमभ ्॥ धभााथक ा ाभभोऺेषु त्रवसनमोग: प्रकीसतात्। सवेषाॊ कविानाॊ ि सायबूतसभदॊ भुने॥ ॐ गॊ हुॊ श्रीगणेशाम स्वाहा भे ऩातु भस्तकभ ्। द्रात्रिॊशदऺयो भडिो रराटॊ भे सदावतु॥ ॐ ह्रीॊ क्रीॊ श्रीॊ गसभसत ि सॊततॊ ऩातु रोिनभ ्। तारुकॊ ऩातु त्रवघनेश: सॊततॊ धयणीतरे॥ ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीसभसत ि सॊततॊ ऩातु नाससकाभ ्। ॐ गं गॊ शूऩक ा णााम स्वाहा ऩात्वधयॊ भभ॥ दडतासन तारुकाॊ स्जह्वाॊ ऩातु भे षोडशाऺय्॥ ॐ रॊ श्रीॊ रम्फोदयामेसत स्वाहा गण्डॊ सदावतु। ॐ क्रीॊ ह्रीॊ त्रवघडनाशाम स्वाहा कणा सदावतु॥ ॐ श्रीॊ गॊ गजाननामेसत स्वाहा स्कडधॊ सदावतु। ॐ ह्रीॊ त्रवनामकामेसत स्वाहा ऩृद्षॊ सदावतु॥ ॐ क्रीॊ ह्रीसभसत कङ्कारॊ ऩातु वऺ:स्थरॊ ि गभ ्। कयौ ऩादौ सदा ऩातु सवााङ्गॊ त्रवघस्डनघडकृ त ्॥ प्राच्माॊ रम्फोदय: ऩातु आगनेय्माॊ त्रवघडनामक्। दस्ऺणे ऩातु त्रवघनेशो नैऋात्माॊ तु गजानन्॥ ऩस्द्ळभे ऩावातीऩुिो वामव्माॊ शॊकयात्भज्॥ कृ ष्णस्माॊशद्ळोत्तये ि ऩरयऩूणत ा भस्म ि॥ ऐशाडमाभेकदडतद्ळ हे यम्फ: ऩातु िोध्वात्। अधो गणासधऩ: ऩातु सवाऩूज्मद्ळ सवात्॥ स्वसने जागयणे िैव ऩातु भाॊ मोसगनाॊ गुरु्। इसत ते कसथतॊ वत्स सवाभडिौघत्रवग्रहभ ्। सॊसायभोहनॊ नाभ कविॊ ऩयभाद्भत ु भ ्॥ श्रीकृ ष्णेन ऩुया दत्तॊ गोरोके यासभण्डरे। वृडदावने त्रवनीताम भह्यॊ फदनकयात्भज्॥ भमा दत्तॊ ि तुभ्मॊ ि मस्भै कस्भै न दास्मसस। ऩयॊ वयॊ सवाऩूज्मॊ सवासङ्कटतायणभ ्॥ गुरुभभ्मच्मा त्रवसधवत ् कविॊ धायमेत्तु म्। कण्ठे वा दस्ऺणे फाहौ सोऽत्रऩ त्रवष्णुना सॊशम्॥ अद्वभेधसहस्त्रास्ण वाजऩेमशतासन ि। ग्रहे डद्रकविस्मास्म कराॊ नाहास्डत षोडशीभ ्॥ इदॊ कविभऻात्वा मो बजेच्िॊ कयात्भजभ ्। शतरऺप्रजद्ऱोऽत्रऩ न भडि: ससत्रद्धदामक्॥ ॥ इसत श्री गणेश कवि सॊऩूणभ ा ्॥

॥गणेशद्रादशनाभस्तोिभ ्।।

शुक्राॊम्फयधयभ ् दे वभ ् शसशवणं ितुबज ुा भ ् । प्रसडनवदनभ ् ध्मामेत्सवात्रवघ्नोऩशाॊतमे ।।१।। अबीस्ससताथाससद्धध्मथं ऩूजेतो म: सुयासुयै्। सवात्रवघ्नहयस्तस्भै गणासधऩतमे नभ्।।२।।

गणानाभसधऩद्ळण्डो गजवक्िस्स्त्ररोिन्। प्रसडन बव भे सनत्मभ ् वयदातत्रवानामक ।।३।। सुभुखद्ळैकदडतद्ळ कत्रऩरो गजकणाक: रम्फोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्ननाशो त्रवनामक्।।४।।

धूम्रकेतुगण ा ाध्मऺो बारिॊद्रो गजानन्। द्रादशैतासन नाभासन गणेशस्म म: ऩठे त ् ।। ५ ।।

त्रवद्याथॉ रबते त्रवद्याभ ् धनाथॉ त्रवऩुरभ ् धनभ ् । इद्शकाभभ ् तु काभाथॉ धभााथॉ भोऺभऺमभ ् ।। ६ ।। त्रवद्यायभ्भे त्रववाहे ि प्रवेशे सनगाभे तथा सॊग्राभे सॊकटे द्ळैव त्रवघ्नस्तस्म न जामते ।। ७ ।। ॥इसत श्री गणेशद्रादशनाभ स्तोिभ ् सम्ऩुण॥ ा

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ससतम्फय 2011

ऋण हयण श्री गणेश भॊि साधना

 त्रवजम ठाकुय त्रवसनमोग्- ॐ अस्म श्रीऋण हयण कतृा गणऩसत भडिस्म सदा

जानु-जॊघे गणासधऩ्।

सशव ऋत्रष्, अनुद्शुऩ िडद्, श्रीऋण हताा गणऩसत दे वता, ग्रं

हरयद्रा् सवादा ऩातु, सवांगे गण-नामक्॥

फीजॊ, गॊ शत्रि्, गं कीरकॊ, भभ सकर ऋण नाशाथे जऩे

॥स्तोि-ऩाठ॥

त्रवसनमोग्।

सृष्ट्मादौ ब्रह्मणा सम्मक् , ऩूस्जत् पर-ससद्धमे। सदै व ऩावाती-

ऋष्माफद डमास्- सदा सशव ऋषमे नभ् सशयसस, अनुद्शुऩ िडदसे

ऩुि्, ऋण-नाशॊ कयोतु भे॥१॥

नभ् भुख,े श्रीऋण हताा गणऩसत दे वतामै नभ् रृफद, ग्रं

त्रिऩुयस्म वधात ् ऩूव-ं शम्बुना सम्मगसिात्। फहयण्म-

फीजाम नभ् गुह्य,े गॊ शिमे नभ् ऩादमो, गं कीरकाम नभ् नाबौ, भभ सकर ऋण नाशाथे जऩे त्रवसनमोगाम नभ् अच्जरौ। कय डमास्- ॐ गणेश अॊगद्ष ु ाभ्माॊ नभ्, ऋण सिस्डध तजानीभ्माॊ नभ्, वये ण्मॊ भध्मभाभ्माॊ नभ्, हॊु अनासभकाभ्माॊ नभ्, नभ् कसनत्रद्षकाभ्माॊ नभ्, पट् कय तर कय ऩृद्षाभ्माॊ नभ्। षडॊ ग डमास्- ॐ गणेश रृदमाम नभ्, ऋण सिस्डध सशयसे स्वाहा, वये ण्मॊ सशखामै वषट्, हॊु कविाम हुभ ्, नभ् नेि िमाम वौषट्, पट् अस्त्राम पट्। ध्मान्ॐ ससडदयू -वणं फद्र-बुजॊ गणेशॊ, रम्फोदयॊ ऩद्म-दरे सनत्रवद्शभ ्। ब्रह्माफद-दे वै् ऩरय-सेव्मभानॊ, ससद्धै मत ुा ॊ तॊ प्रणभासभ दे वभ ्।। आवाहन इत्माफद कय ऩञ्िोऩिायं मा भानससक ऩूजन कये । ॥कवि-ऩाठ॥

ॐ आभोदद्ळ सशय् ऩातु, प्रभोदद्ळ सशखोऩरय, सम्भोदो भ्रू-मुगे ऩातु, भ्रू-भध्मे ि गणाधीऩ्। गण-क्रीडद्ळऺुमग ुा ॊ, नासामाॊ गण-नामक्, स्जह्वामाॊ सुभुख् ऩातु, ग्रीवामाॊ दम् ु भुाख्॥ त्रवघ्नेशो रृदमे ऩातु, फाहु-मुग्भे सदा भभ, त्रवघ्न-कत्ताा ि उदये ,

कश्मसवादीनाॊ, वधाथे त्रवष्णुनासिात्॥२॥ भफहषस्म वधे दे व्मा, गण-नाथ् प्रऩूस्जत्। तायकस्म वधात ् ऩूव,ं कुभाये ण प्रऩुस्जत्॥३॥ बास्कये ण गणेशो फह, ऩूस्जतश्ित्रव-ससद्धमे। शसशना कास्डतवृद्धमथं, ऩूस्जतो गण-नामक्। ऩारनाम ि तऩसाॊ, त्रवद्वासभिेण ऩूस्जत्॥४॥ ॥पर-श्रुसत॥ इदॊ त्वृण-हय-स्तोिॊ, तीव्र-दारयद्र्म-नाशनभ ्, एक-वायॊ ऩठे स्डनत्मॊ, वषाभेकॊ सभाफहत्। दारयद्र्मॊ दारुणॊ त्मक्त्वा, कुफेय-सभताॊ व्रजेत ्।। उि त्रवधान सॊऩडन होने ऩय इस भॊि का १ भार मा कभ-सेकभ २१ फाय जऩ कये ।

भडि्- ॐ गणेश ऋणॊ सिस्डध वये ण्मॊ हुॊ नभ् पट्

वषा बय कवि औय भॊि का ऩाठ कयने से भनुष्म के दारयद्र्म का नाश होता है तथा रक्ष्भी प्राद्ऱ होती है ।

नोट: बगवान श्री गणेश की मह धन दामी साधना प्रमोग हं ।

साधना का प्रमोग ऩीरे यॊ ग के आसन ऩय ऩीरे वस्त्र धायण कय ऩीरे यॊ ग की भारा मा ऩीरे सूत भं फनी स्पफटक की भारा से

कयना अत्मॊत राबप्राद होता हं । साधना कार भं गणेशजी को

त्रवघ्न-हत्ताा ि सरॊगके।

ऩूजा भं दव ू ाा िढ़ाए।

गज-वक्िो कफट-दे शे, एक-दडतो सनतम्फके, रम्फोदय् सदा ऩातु,

भॊिोच्िायण भं क्रभश् त्रवसनमोग, डमास, ध्मान कय आवाहन

गुह्य-दे शे भभारुण्॥ व्मार-मऻोऩवीती भाॊ, ऩातु ऩाद-मुगे सदा, जाऩक् सवादा ऩातु,

औय ऩूजन कये । ऩूजन के ऩद्ळात ् कवि- ऩाठ कयने के फाद स्तोि का ऩाठ कये । स्तोि की सभासद्ऱ ऩय भॊि का जऩ कयं ।

ससतम्फय 2011

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श्रीऋण हयण कतृा गणऩसत स्तोि ध्मान ॐ ससडदयू -वणं फद्र-बुजॊ गणेशॊ रम्फोदयॊ ऩद्म-दरे सनत्रवद्शभ ्। ब्रह्माफद-दे वै् ऩरय-सेव्मभानॊ ससद्धै मुत ा ॊ तॊ प्रणासभ दे वभ ्॥ ॥भूर-ऩाठ॥ सृष्ट्मादौ ब्रह्मणा सम्मक् ऩूस्जत् पर-ससद्धमे। सदै व ऩावाती-ऩुि् ऋण-नाशॊ कयोतु भे॥१॥ त्रिऩुयस्म वधात ् ऩूवं शम्बुना सम्मगसिात्। सदै व ऩावाती-ऩुि् ऋण-नाशॊ कयोतु भे॥२॥ फहयण्म-कश्मसवादीनाॊ वधाथे त्रवष्णुनासिात्।

ऋणभोिक भॊगर स्तोि श्रीगणेशाम नभ् भङ्गरो बूसभऩुिद्ळ ऋणहताा धनप्रद्। स्स्थयासनो भहाकम् सवाकभात्रवयोधक् ॥१॥ रोफहतो रोफहताऺद्ळ साभगानाॊ कृ ऩाकय्। धयात्भज् कुजो बौभो बूसतदो बूसभनडदन्॥२॥ अङ्गायको मभद्ळैव सवायोगाऩहायक्। व्रुद्शे् कतााऽऩहताा ि सवाकाभपरप्रद्॥३॥ एतासन कुजनाभसन सनत्मॊ म् श्रद्धमा ऩठे त ्।

ऋणॊ न जामते तस्म धनॊ शीघ्रभवासनुमात ्॥४॥ धयणीगबासम्बूतॊ त्रवद्युत्कास्डतसभप्रबभ ्।

कुभायॊ शत्रिहस्तॊ ि भङ्गरॊ प्रणभाम्महभ ्॥५॥

सदै व ऩावाती-ऩुि् ऋण-नाशॊ कयोतु भे॥३॥

स्तोिभङ्गायकस्मैतत्ऩठनीमॊ सदा नृसब्।

भफहषस्म वधे दे व्मा गण-नाथ् प्रऩुस्जत्।

न तेषाॊ बौभजा ऩीडा स्वल्ऩाऽत्रऩ बवसत क्वसित ्॥६॥

सदै व ऩावाती-ऩुि् ऋण-नाशॊ कयोतु भे॥४॥

अङ्गायक भहाबाग बगवडबिवत्सर।

तायकस्म वधात ् ऩूवं कुभाये ण प्रऩूस्जत्। सदै व ऩावाती-ऩुि् ऋण-नाशॊ कयोतु भे॥५॥ बास्कये ण गणेशो फह ऩूस्जतश्ित्रव-ससद्धमे। सदै व ऩावाती-ऩुि् ऋण-नाशॊ कयोतु भे॥६॥ शसशना कास्डत-वृद्धमथं ऩूस्जतो गण-नामक्। सदै व ऩावाती-ऩुि् ऋण-नाशॊ कयोतु भे॥७॥ ऩारनाम ि तऩसाॊ त्रवद्वासभिेण ऩूस्जत्। सदै व ऩावाती-ऩुि् ऋण-नाशॊ कयोतु भे॥८॥ इदॊ त्वृण-हय-स्तोिॊ तीव्र-दारयद्र्म-नाशनॊ, एक-वायॊ ऩठे स्डनत्मॊ वषाभेकॊ साभफहत्। दारयद्र्मॊ दारुणॊ त्मक्त्वा कुफेय-सभताॊ व्रजेत ्॥९॥

त्वाॊ नभासभ भभाशेषभृणभाशु त्रवनाशम॥७॥ ऋणयोगाफददारयद्रमॊ मे िाडमे ह्यऩभृत्मव्। बमक्रेशभनस्ताऩा नश्मडतु भभ सवादा॥८॥ असतवक्ि दयु ायाध्मा बोगभुि स्जतात्भन्।

तुद्शो ददासस साम्राज्मॊ रुश्टो हयसस तत्ख्शणात ्॥९॥ त्रवरयॊ सिशक्रत्रवष्णूनाॊ भनुष्माणाॊ तु का कथा। तेन त्वॊ सवासत्त्वेन ग्रहयाजो भहाफर्॥१०॥ ऩुिाडदे फह धनॊ दे फह त्वाभस्स्भ शयणॊ गत्। ऋणदारयद्रमद्ु खेन शिूणाॊ ि बमात्तत्॥११॥ एसबद्राादशसब् द्ऴोकैमा् स्तौसत ि धयासुतभ ्।

भहसतॊ सश्रमभासनोसत ह्यऩयो धनदो मुवा॥१२॥ ॥इसत श्री ऋणभोिक भङ्गरस्तोिभ ् सम्ऩूनभ ा ्॥

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ससतम्फय 2011

ऋण भोिन भहा गणऩसत स्तोि

 त्रवजम ठाकुय त्रवसनमोग्- ॐ अस्म श्रीऋण भोिन भहा गणऩसत स्तोि भडिस्म बगवान ् शुक्रािामा ऋत्रष्, ऋण-भोिन-गणऩसत् दे वता, भभ-ऋण-भोिनाथं जऩे त्रवसनमोग्। ऋष्माफद-डमास्- बगवान ् शुक्रािामा ऋषमे नभ् सशयसस, ऋण-भोिन-गणऩसत दे वतामै नभ् रृफद, भभ-ऋण-भोिनाथे जऩे त्रवसनमोगाम नभ् अञ्जरौ। ॥भूर-स्तोि॥ ॐ स्भयासभ दे व-दे वेश !वक्र-तुणडॊ भहा-फरभ ्। षडऺयॊ कृ ऩा-ससडधु, नभासभ ऋण-भुिमे॥१॥ भहा-गणऩसतॊ दे वॊ, भहा-सत्त्वॊ भहा-फरभ ्। भहा-त्रवघ्न-हयॊ सौम्मॊ, नभासभ ऋण-भुिमे॥२॥ एकाऺयॊ एक-दडतॊ, एक-ब्रह्म सनातनभ ्। एकभेवाफद्रतीमॊ ि, नभासभ ऋण-भुिमे॥३॥ शुक्राम्फयॊ शुक्र-वणं, शुक्र-गडधानुरेऩनभ ्। सवा- शुक्र-भमॊ दे वॊ, नभासभ ऋण-भुिमे॥४॥ यिाम्फयॊ यि-वणं, यि-गडधानुरेऩनभ ्। यि-ऩुष्ऩै ऩूज्मभानॊ, नभासभ ऋण-भुिमे॥५॥ कृ ष्णाम्फयॊ कृ ष्ण-वणं, कृ ष्ण-गडधानुरेऩनभ ्। कृ ष्ण-ऩुष्ऩै ऩूज्मभानॊ, नभासभ ऋण-भुिमे॥६॥ ऩीताम्फयॊ ऩीत-वणं, ऩीत-गडधानुरेऩनभ ्। ऩीत-ऩुष्ऩै ऩूज्मभानॊ, नभासभ ऋण-भुिमे॥७॥ नीराम्फयॊ नीर-वणं, नीर-गडधानुरेऩनभ ्। नीर-ऩुष्ऩै ऩूज्मभानॊ, नभासभ ऋण-भुिमे॥८॥ धूम्राम्फयॊ धूम्र-वणं, धूम्र-गडधानुरेऩनभ ्। धूम्र-ऩुष्ऩै ऩूज्मभानॊ, नभासभ ऋण-भुिमे॥९॥ सवााम्फयॊ सवा-वणं, सवा- गडधानुरेऩनभ ्। सवा-ऩुष्ऩै ऩूज्मभानॊ, नभासभ ऋण-भुिमे॥१०॥ बद्र-जातॊ ि रुऩॊ ि, ऩाशाॊकुश-धयॊ शुबभ ्। सवा- त्रवघ्न-हयॊ दे वॊ, नभासभ ऋण-भुिमे॥११॥ ॥पर-श्रुसत॥ म् ऩठे त ् ऋण-हयॊ -स्तोिॊ, प्रात्-कारे सुधी नय्। षण्भासाभ्मडतये िैव, ऋणच्िे दो बत्रवष्मसत॥ बावाथा: जो व्मत्रि उि ऋण भोिन स्तोि का त्रवसध-त्रवधान व ऩूणा सनद्षा से सनमसभत प्रात् कार ऩाठ कयता हं उसके सभस्त प्रकाय के ऋणं से भुत्रि सभर जाती हं ।

गणेशजी को त्रप्रम हं ससॊदयू : गणेश ऩूजन भं ससॊदयू का उऩमोग अत्मॊत शुब एवॊ राबकायी होता हं । क्मोफकॊ

बगवान गणेशजीको ससॊदयू अत्मासधक त्रप्रम हं । गणेश जी को शुद्ध घी भं ससॊदयू सभराकय रेऩ िढाने से सुख औय

सौबाग्म फक प्रासद्ऱ होती हं । ससॊदयू ी यॊ ग के उऩमोग से व्मत्रि के फुत्रद्ध, आयोग्म, त्माग भं वृत्रद्ध होती हं । इसी सरमे प्राम् ज्मादातय साधु-सॊत के वस्त्र का यॊ ग ससॊदयू ी फह होता हं ।

गणेशजी फक सूॊड फकस ओय हो?: भॊफदय औय घय भं स्थात्रऩत फकजाने वारी बगवान गणेश प्रसतभा भं सूॊड फकसी प्रसतभा भं

दाईं तो फकसी प्रसतभा भं

फाईं ओय दे खने को सभरती हं । घय भं फाईं ओय सूॊडवारे गणेशही

स्थात्रऩत कयना शुब परप्रद भानागमा हं । क्मोफकॊ जहाॊ फाईं सूॊड वारे गणॆश सौम्म स्वरूऩ के प्रसतक हं , वहीॊ दाईं ओय तयप सूॊड वारे गणॆशजी अस्ग्न (उग्र) स्वरुऩ के भाने जाते हं ।

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रार फकताफ से जाने कण

 सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी रार फकताफ के अनुशाय त्रऩतृ ऋण, भातृ ऋण, स्त्री ऋण, फहन-फेटी का ऋण, सनदा मी ऋण, अऻान का ऋण, दै त्रव ऋण, सॊफॊसध (रयश्तेदायी) का ऋण, स्वऋण आफद ऋण भानव के जीवन भं सुख-सभृत्रद्ध व उडनसत भं फाधक होते हं । आऩ सबी के भागादशान हे तु महाॊ रारफकताफ भं उल्रेस्खत ऋण को त्रवस्तायऩूवक ा भझामा जा यहा हं तथा उनके उऩाम बी फदमे जा यहे हं । हभाये

त्रऩतृ ऋण: शास्त्रोि व आध्मास्त्भक भाडमताओॊ के अनुशाय हभाये ऩूवज ा ं अथाात त्रऩतयं का फक्रमाकभा आफद त्रवसधवत ऩूणा नहीॊ होने ऩय ऩूवज ा ं से हभं ऩये शानीमाॊ होती हं । इसे रारफकताफ भं त्रऩतृ ऋण की सऻा दी गई हं । रार फकताफ भं त्रऩतृ ऋण का सफसे फडा ससद्धाॊत हं "कये

असधकतय धभाशास्त्रो भं उल्रेख हं

की

"आऩको जो पर प्राद्ऱ होता हं वह केवर आऩके सॊसित

कोई, बये कोई" अथाात: ऩूवज ा ं की गरती का ऩरयणाभ ऩुि को बोगना ऩडता हं । ऐसा उस अवस्था भं होता है जफ

कभो का पर होता हं ।"

कभाण्मे वासधकायस्ते भा परेषु कदािन ्। (श्रीभद् बगवत गीता)

अथाात: त्रफना पर की अऩेऺा फकए कभा कयते यहो।

रार फकताफ औय ऋण

कोई व्मत्रि अऩने जीवन भं कोई दष्ु कभा कयता है , फकसी को हासन ऩॊहुिाता है मा कोई ऩाऩकभा कयता है तो उसके वॊश भं फकसी जातक को उसके फकए गए कुकभो का दष्ु पर बोगना ऩड़ता है , ऐसी अवस्था

रेफकन रार फकताफ के अनुशाय:

को ही त्रऩतृऋण कहाॊ जाता हं ।

"आऩको जो पर प्राद्ऱ होता हं वह केवर आऩके कभो का पर नहीॊ होता, फस्ल्क आऩको अऩने ऩूवज ा ं के कभो के पर बी बोगने ऩडता हं ।"

त्रवद्रानो के भत से याजा दशयथ ने अनजाने भं श्रवण कुभाय को तीय भाय स्जससे श्रवण कुभाय की भृत्मु से दख ु ी होकय उसके भाता-त्रऩता ने याजा दशयथ को मह

भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीर राब प्राद्ऱ होता हं ।

त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए

भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की कभी, गबाऩात से फिाव, फुखाय, िेिक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि के दद्श ा नाओॊ, हभरा, िोयी इत्मादी से फिाव होता हं । ु प्रबा, बूत-प्रेत बम, वाहन दघ ु ट

भूल्म भाि Rs- 550

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शाऩ फदमा "जैसे हभ ऩुि त्रवमोग भं भय यहे हं उसी

भं जो ग्रह ऩीफडत हो वहीॊ ग्रह ऩीफडत अवस्था भं

प्रकाय आऩ बी ऩुि त्रवमोग के कायण भृत्मु को प्राद्ऱ

ऩरयवाय के अडम व्मत्रिमं की जडभ कुॊडरी भं बी

कयं गे।"

होते हं ।

याजा दशयथ ऩुि त्रवमोग भं भृत्मु को प्राद्ऱ हुवे। श्रवण

रारफकताफ भं जो ग्रह अऩने घय भं, अऩने कायक घय



भं मा शिु के घय भं स्स्थत हो तो उस ग्रह को ऩीफडत

कुभाय को तीय से भायना याजा दशयथ का कभा था। ऩयॊ तु

भाना जाता हं ।

याभ का कोई अऩयाध न होने ऩय बी उडहं त्रऩता की गरती के कायण 14 सार का वनवास बोगना ऩडा। भहत्रषा वास्ल्भकी ने सिफडभाय को शाऩ

सिफडभाय हुवे हंगे रेफकन ् भहत्रषा के शाऩ के कायण फकसी को बी प्रसतद्षा प्राद्ऱ नहीॊ हुई। इन फातो से अनुभान

रगामा जा सकता हं की ऩूवज ा ं के दष्ु कभो का पर उनके वॊशजं को बोगना ऩड़ता हं । इसी को त्रऩतृ ऋण कहते हं ...

त्रऩतृ ऋण की ऩहिान: 



होता हं । कजा

के

दरदर

सबी रोग प्रबात्रवत होते हं । प्राम् दे खने भं आता हं की ऩरयवाय के फकसी एक सदस्म की जडभ कुॊडरी

पसे

भुत्रि प्राद्ऱ कयने हे तु शास्त्रोि त्रवधान से उत्तभ उऩाम होता हं भॊगर साधना का प्रमोग जो त्रवशेष राब प्रदान कयने भॊगर

इनसे होनेवारे असनद्ष से घय के

भं

व्मत्रिमं के सरमे कजा से

धभा स्थान मा ऩीऩर आफद ऩत्रवि

त्रऩतृ ऋण की भुख्म ऩहिान हं फक



का प्रमोग असत राब प्रद

मफद भकान के ऩड़ोस भं फकसी

त्रऩतृऋण फनता हं ।

ग्रह सॊकेत:

ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना

वारा होता हं ।

ऩेड़ हो औय उसे काटा जामे तो

वार शाऩ त्रऩतृदोष होता हं ।

ऋण भुत्रि

"भा सनषाद! प्रसतद्षाभ ् त्वभ गभ्

उसी कार से अफ तक हजायो राखो

रयश्तेदायं का दष्ु कभा मा ऩाऩकभा अथवा उडहं सभरने

भॊगर मॊि से

फदमा:

शाइवनी सभा।"

ऩीफडत ग्रह स्जस रयश्तेदायं के कायक होते हं उडहीॊ



साधना

का

प्रमोग

कोई बी व्मत्रि सयरता कय सकता से कयके शीघ्र राब प्राद्ऱ कय सकता हं । भॊगर मॊि

Rs.550 से Rs.8200 तक

मफद फकसी जडभ कुॊडरी भं 2,

5, 9, 12, बावो भं कोई बी ग्रह हो तो जातक त्रऩतृ ऋण से प्रबात्रवत होगा । 

कुॊडरी भं 2,5,7 भं से फकसी

बी बाव भं फुध, शुक्र मा याहु हो तो गुरु ऩीफडत हो जाता हं । 

मफद नवभ बाव भं गुरू के

साथ शुक्र स्स्थत हो, ितुथा बाव भं शसन औय केतु हं तथा िडद्रभा दशभ बाव भं हो तो जातक त्रऩतृ ऋण से ऩीस्िडत होता हं ।

फुध औय त्रऩतृऋण कुॊडरी भं मफद सनम्नानुसाय ग्रह स्स्थसत हो तो त्रऩतृऋण होता हं । 

फद्रतीम मा सद्ऱभ भं फुध औय

नवभ भं शुक्र हो । 

तृतीम भं फुध औय नवभ भं

याहु हो । 

ितुथा भं फुध औय नवभ भं

िडद्रभा हो ।

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ऩॊिभ भं फुध औय नवभ भं सूमा हो ।



षद्षभ भं फुध औय नवभ भं केतु हो ।

होता हं ।



दशभ मा एकादश भं फुध औय नवभ भं शसन हो ।





द्रादश भं फुध औय नवभ भं गुरू हो ।



उऩयोि ग्रह स्स्थसत भं फुध त्रवयोध कयने वारा फन

कुॊडरी भं मफद सनम्नानुसाय ग्रह स्स्थसत हो तो त्रऩतृऋण

न हो,

जाता हं औय अडम ग्रहं का पर त्रफगाडकय जातक को असनद्शकायक फनता हं । 

जो जातक के सभस्त ऩारयवायीक सदस्मो ऩय प्रबाव ऩडता हं । इस सरमे फुध का उऩाम कयना िाफहए।



फुध, शुक्र, शसन ग्रह 4 भं िॊद्र के साथ हो।



फुध मा केतु 1 मा 8 भं हो औय भॊगर 7 भं न हो,



िॊद्र 3 मा 6 भं हो औय फुध 2 मा 12 भं न हो,



सूम,ा िॊद्र मा याहु 2 मा 7 भं हो औय शुक्र 1 मा 8 भं न हो,



कुॊडरी भं मफद सनम्नानुसाय ग्रह स्स्थसत हो तो त्रऩतृऋण होता हं ।

 

उऩयोि ग्रह स्स्थसत जडभ कुॊडरी भं होने ऩय क्रभश् सूम,ा िॊद्र, भॊगर, फुध, शुक्र, शसन, याहु औय केतु ऩीफडत होते हं ।



फृहस्ऩसत कंद्र स्थान 1,4,7,10 भं स्स्थत हं औय फुध 3





फृहस्ऩसत कंद्र स्थान 1,4,7,10 भं स्स्थत हं औय फुध मा शुक्र 3 मा 6



भं हो,

फृहस्ऩसत कंद्र स्थान 1,4,7,10 भं स्स्थत हं औय शसन 3 मा 6 भं हो,



प्रबात्रवत होगा ।

फृहस्ऩसत कंद्र स्थान 1,4,7,10 भं स्स्थत हं औय याहु 12 भं हो,

उऩयोि ग्रह स्स्थसत भं फृहस्ऩसत से त्रऩतृऋण के सरए भहत्वऩूणा होती हं । इससरए फृहस्ऩसत उऩाम कयना िाफहए।

अडम ग्रहो से त्रऩतृऋण नोट: रारफकताफ भं ऋण से सॊफॊसधत मोग कुॊडरी भं इसका त्रविाय नहीॊ होता।

उऩयोि ग्रह मोग के असतरयि जडभ कुॊडरी भं 2, 5, 7, 12, बाव भं ऩीफडत होते हं तो जातक त्रऩतृ ऋण से

भं हो, 

इससरए जो ग्रह ऩीफडत हो उसका उऩाम कयना िाफहए।

5 भं हो, 

भं न हो औय

िॊद्र, भॊगर भं हो औय केतु 2 भं न हो,

फृहस्ऩसत कंद्र स्थान 1,4,7,10 भं स्स्थत हं औय शसन फृहस्ऩसत कंद्र स्थान 1,4,7,10 भं स्स्थत हं औय शुक्र

सूम,ा भॊगर एवॊ शुक्र 12 भं हो, याहु 6



2 भं हो, 

सूम,ा िॊद्र मा भॊगर 7 मा 10 भं हो औय शसन 3 मा 4 भं न हो,

फृहस्ऩसत औय त्रऩतृऋण



याहु, केतु मा शिु ग्रह 5 भं हो औय सूमा 1 मा 11 भं

पर: 

सभम से ऩहरे ही जातक के फार सपद हो जाते हं । जातक को वृद्धावस्था भं कद्श सभरते हं ।



धन हासन होती है शुरु हो जाता हं ।

उसी के साथ जातक का दब ु ााग्म



जातक का धन खो जाता हं मा िोयी हो जाता हं ।



घय की फयकत सभाद्ऱ होती जामे ।



िोटी अथाात सशखा के फार झडने रगते हं ।



त्रवद्या प्रासद्ऱ भं रुकावटे आती हं मा सशऺा अधूयी यह

केवर जडभ कुॊडरी भं रागु होते हं वषापर मा अडम

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जाती हं । 

जातक को सभाज भं भान हासन, फनते कामो भं रूकावट, सुख की जगह द:ु ख तथा सनयाशा प्राद्ऱ होती हो। सनदोष होने ऩय बी जेर जाना ऩडता हं ।

ऩरयवाय मा खानदान के हय एक सदस्म से ऩैसा इकट्ठा कयके धभा स्थान ऩय दान दं मा अऩने नजदीकी भॊफदय की सेवा भं दे तो ऐसे असनद्श पर का शभन हो जामेगा ।



ऩीऩर के ऩेड की दे खबार कयं ।



ससय ऩय ऩगड़ी (टोऩी) ऩहने अथाात फार खुरे न यखे ससय ढॊ क कय यखे मा कऩार ऩय केसय अथवा ऩीरे यॊ ग का सतरक रागाएॊ।



स्जन व्मत्रिमं को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फाद बी कजा से भुत्रि नहीॊ सभर यही हं

उऩाम: 

ऋण भुत्रि कवि

फकसी बी कामा को कयने से ऩूवा अऩनी नाक को साप कयरे।

स्व ऋण आस्स्तकता को त्माग कय जातक का नास्स्तक होना औय ऩुयाने मा ऩायॊ ऩरयक यीसत-रयवाजं को न भानना जातक के स्वऋण से ऩीस्िडत होना दशााता हं । स्वऋण के प्रबाव से जातक जीवन भं ऩहरे प्रगसत के उच्ि सशखय ऩय ऩहुॊि जाता हं , जातक स्वमॊ के फर ऩय अतुर धनसम्ऩत्रत्त अस्जात कयता हं । भान-सम्भान के कायण प्रससद्धख्मासत सभरती हं रेफकन सभम के साथ-साथ उसका बाग्मिक्र उल्टा घुभने रगता हं औय आकस्स्भक घटनाओॊ के कायण उसकी सायी धन-सॊऩदा खिा हो जाती हं मा िोयी हो जाता हं । उसकी भान-प्रसतद्षा यातो-यात धुसभर हो जाती हं । मह स्स्थसत तफ उत्ऩडन होती हं जफ जातक का ऩुि ग्मायाह भहीने मा ग्मायाह सार का होता हं। रार गाम मा बंस खो जाती हं मा भय जाती हं । स्वास्थ सॊफॊसधत सभस्माएॊ ऩये शान कयती हं । शयीय के अॊग भं अकड्न होना, फहरने-डु रने भं कफठनाई भहसूस होती हं । भुहॊ भं हय वि थूक आता यहता हं ।

उस व्मत्रि को ऋण भुत्रि कवि धायण कयना राबप्रद होता हं । ऋण भुत्रि कवि को धायण कय व्मत्रि त्रफना फकसी त्रवशेष ऩूजा अिाना के त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकता हं । क्मोफक ऋण भुत्रि कवि का सनभााण ईसी उद्दे श्म से फकमा जाता हं की जो व्मत्रि ऩूजा-ऩाठ भॊि जऩ इत्माफद कयने भं

असभथा हं उडके सरमे त्रवशेष रुऩ से फनामा जाता हं । ऋण भुत्रि कवि को व्मत्रि त्रफना फकसी ऩये शानी से शीघ्र राब प्राद्ऱ कय सकं। आज के आधुसनक मुग भं असधक से असधक सुख एवॊ साधनो की प्रासद्ऱ भं व्मत्रि इतना व्मस्त होता हं की उसके ऩास ना तो, उसित जानकायी होती हं की ऩूजा-अिाना केसे कयनी

िाफहमे, मफद उसित जानकायी प्राद्ऱ हो, तो बी व्मत्रि के ऩास उस साधना, ऩूजा, भॊि जऩ इत्माफद कयने के सरमे ऩमााद्ऱ सभम नफहॊ होता हं । एसे व्मत्रिमं के सरमे ऋण भुत्रि कवि मा कयज भुत्रि कवि अत्मॊत राबप्रद होता हं

असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।

GURUTVA KARYALAY PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- [email protected], [email protected]

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ग्रह सॊकेत: 

मफद कुॊडरी भं सूमा ऩॊिभ बाव भं ऩाऩी ग्रह से ऩीफडत

ऋण होता हं ।

जडभकुॊडरी के ऩॊिभ बाव भं ऩाऩी ग्रहं के होने से

ग्रह सॊकेत:

स्जससे जातक सनदोष होते हुए बी दोषी भाना जाता

है । उसे त्रवसबडन प्रकाय का शायीरयक कद्श सभरता है , कटा -किहयी भं हाय होती है औय सबी कामं भं अत्मासधक सॊघषा कयना ऩड़ता है ।

ऩहिान: 

जातक के घय के जभीन के नीिे अस्ग्नकुॊड फना हो मा उस घय भं सूमा की योशनी ित भं से आ यही हो तो जातक स्व ऋण से ऩीस्िडत होता है ।

असनद्श पर: 

रार फकताफ के अनुशाय ितुथा स्थान के केतु तो िडद्रभा ऩीस्िडत होता हं स्जससे भातृऋण भाना हं ।

ऩहिान: घय के सनकट स्स्थत नदी मा कुएॊ के ऩानी का उऩमोग गॊदगी साप कयने भं मा उसभं भर-भूि इत्माफद कयना मा उसभं गॊदगी डारना भात ऋण को दशााता हं ।

असनद्श पर: 



ऩशुओॊ का खोना व भयना स्वाबात्रवक हो जाता है ।



जातक का शयीय सनफार हो जाता है ।



भुॊह भं हभेशा गीराऩन-सा भहसूस होता है ।



मह घटना तफ शुरू होती है , जफ जातक के ऩुि की उम्र 12 सार के अडदय होती है ।

उऩाम:

जातक के कामो भं फाधाएॊ आसत हं उसे योजगाय की सिॊता सतासत यहती हं ।



अिानक सम्ऩत्रत्त नद्श हो जाती हं, घय भं ऩशुओॊ की भृत्मु, सशऺा प्रासद्ऱ भं फाधा, घय भं अिानक भृत्मु मा

अकस्भात ही इद्वय की त्रवनाश रीरा शुरू होती है औय दौरत शोहयत िुटफकमं भं खाक हो जाती है ।



ऩये शान यहने ऩय भाता को कद्श दे ना इत्माफद से भातृ

हो तो जातक स्व ऋण से ऩीस्िडत होता है मा स्वऋण होता है । 

कद्श दे ना अथाात दख ु ी कयना मा खुद भानससक रूऩ से

भृत्मु तुल्म कद्श दे ने वारा सभम प्रसतत होता हं । 

इस ऋण से ग्रस्त जातक को धन हासन होती है , योग रग जाता है , कई रोगो से ऋण रेना ऩड़ता है ।



प्रत्मेक कामा भं असपरता सभरती है । जातक की त्रविायशत्रि औय सहनशत्रि अथाात आत्भत्रवद्वास भं कभी हो जाती हं ।



एसे जातक को मफद कोई व्मत्रि सहामता कयना िाहता है तो उसे बी कद्श-सॊकट व असनद्श पर प्राद्ऱ होते है ।

सबी कुटु ॊ त्रफजन व रयश्तेदायं से सभान भािा भं धन इकट्ठा कयके सूमद ा े व की प्रशडनता हे तु हवन कयं ।



प्रसतफदन सूमा नभस्काय कयं ।



फकसी कामा को शुरू कयने से ऩहरे भुॊह भीठा कयं औय दो-िाय घूॊट ऩानी त्रऩमे, फपय कामा कयं ।

भातृ ऋण सॊतान का जडभ होने के फाद भाॊ को घय से फाहय कय दे ना तथा ऩरयवाय से उसे अरग कय दे ना मा उसे



घय का नर, ताराफ मा कुएॊ का ऩानी सूख जाता हं अथाात घय भं जर का सॊकट होने रगता हं ।

उऩाम:  अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान फहस्से भं िाॊदी रेकय फहते ऩानी भं फहानी िाफहए।

 फडे -फुजुगो का आशीवााद रे तो भातृ ऋण से शीघ्र भुत्रि सभरेगी ।

ससतम्फय 2011

50

स्त्री ऋण

मफद जातक के भं तृतीम मा छ्ठे बाव भं िडद्रभा हो तो

प्रसूसत के सभम स्त्री को फकसी रारि वश आकय भाय डारना भयवा डारने से स्त्री ऋण होता हं ।

फुध ऩीस्िडत होता है । ऋण होता हं ।

ग्रह सॊकेत:

ऩहिान

जडभ कुॊडरी भं फद्रतीम मा सद्ऱभ बाव भं सूम,ा िडद्र मा याहु



हो तो शुक्र ऩीफडत होता हं जो स्त्री ऋण होने का सॊकेत दे ता

शुक्र ऩीफडत होने ऩय जातक औय उसके ऩरयवाय के रोगो को अनेक द:ु ख सभरते हं औय उसके शुब कामं भं त्रवघ्न आता है ।

जातक की खुशी के यॊ ग भं बॊग ऩडता हं जैसे ऩरयवाय भं खुशी के अवसय ऩय अिानक अशुब सभािाय प्राद्ऱ हो, जैसे सनकट सॊफॊसध बमॊकय योग से ऩीफडत हो जाए। जातक का अॊगूठा त्रफना फकसी कायण सनस्ष्क्रम मा फेजान हो जामे, स्वसनदोष, त्विा के योग से ग्रस्त

तो मह

स्त्रीऋण होने का सॊकेत होते हं ।

उऩाम: 

अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान फहस्से भं धन रेकय गामं को बोजन कयाना िाफहए।



असनद्श से फिाता हं ।

फहन-फेटी का ऋण फकसी की रड़की मा फहन ऩय अत्मािाय फकए हं मा उसकी हत्मा की हं। दस ू यं के भासूभ फच्िं को फेि दे ना मा उनकी हत्मा की हो तो फहन-फेटी का ऋण ऩैदा

ग्रह सॊकेत:

सभम

अिानक

दब ु ााग्मऩूणा

अशुब

जातक ऩूयी तयह से



धनवान होते हुए बी कॊगार जैसा फन जाता हं ।



सॊघषा फना यहता है औय सगे-सॊफॊसधमं से सहामता नहीॊ

फयफाद हो जाता हं ।

सभरती। 

कबी कबी जातक को ऩुि सॊतान के जडभ के सभम बी दब ु ााग्म से सॊभुख्खीन होना ऩडता हं ।



जातक का स्वास्थ्म दफ ा होने रगता हं उसके दाॊत ु र फेकाय हो जाते हं ।



सूॊघने की शत्रि सभाद्ऱ हो जाती हं । दाॊऩत्म जीवन भं काभशत्रि का अबाव होने रगता हं ।

उऩाम: 

अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान फहस्से भं ऩीरे यॊ ग की कोफड़माॊ रेकय उसे जराकय उनकी

साप-सुथये वस्त्र सरीके से धायण कयने ऩय बी शुक्र के

होता हं ।

के



फकसी की भृत्मु हो जाना फकसी को रकवा होना मा कोई 

जडभ

घटनाएॊ घटती है ।

ऩहिान:



जातक के घय भं फहन-फेटी के त्रववाह के अवसय ऩय मा

है । 

फुध ऩीस्िडत होने से फहन-फेटी का

याख को फहते ऩानी भं प्रवाफहत कयना िाफहए। 

दाॊत साप यखे। नाक अवश्म सिदवामं इससे फुध का फुया प्रबाव कभ हो जाता हं ।

सॊफॊसधमं (रयश्तेदायी) का ऋण फकसी सभि मा सॊफसॊ ध को जहय दे दे ना, फकसी की तैमाय पसर को आग रगवा दे ना मा फकसी का भकान आग रगा दे ना। फकसी की बंस को भायने मा भयवाने से सॊफॊसध का ऋण होता हं ।

ग्रह सॊकेत:

ससतम्फय 2011

51

मफद जातक के जडभ कंडरी भं प्रथभ व अद्शभ बाव भं फुध



अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान

मा केतु हो तो भॊगर ऩीफडत होता हं औय भॊगर ऩीफडत

फहस्से भं ऩैसा इकट्ठ कयके गयीफं के सरमे दवाइमाॊ

होने से सॊफॊसध ऋण का रगता हं ।

खयीद कय धभा कामा हे तु फकसी वैद्य, हकीभ मा

ऩहिान:

डोक्टय मा औषधारम भं भुफ्तदे ।

 



यहते जातक उनसे नपयत कयता हं ।

सनदा मी ऋण:

अऩने

फच्िं का जडभफदन नहीॊ भनाता मा अडम ऩवा

त्मौहायं के अवसय भं खुशीमाॊ नहीॊ भनाता।

असनद्श पर: 

जातक के फासरग होते ही सभाज भं भान-सम्भान की प्रासद्ऱ होने रगती हं ।



ताॊफे का ससक्का नदी भं प्रवाफहत कये ।

जातक रयश्तेदाय एवॊ सॊफॊसधमं से सॊऩका अच्िे नहीॊ

जातक स्जस कामा भं हाथ डारता है , अऩने आऩ ही ससद्ध होने रगते हं ।



जातक को अऩाय धन सॊऩत्रत्त का सुख प्राद्ऱ होता हं ।



जातक से मफद कोई शिुता कयता हं तो वह स्वत: ही फयफाद हो जाता है ।

जीव हत्मा कयना मा फकसी का भकान धोखे से रे रेना मा उसका भूल्म न िुकाना मा हत्मा कय उसकी सम्ऩत्रत्त िीन रेने ऩय सनदा मी ऋण ऩैदा होता हं ।

ग्रह सॊकेत: मफद जातक भं दशभ मा एकादश बावं भं सूमा,िडद्रभा व भॊगर हं, तो वह शसन से ऩीस्िडत होता है औय शसन ऩीस्िडत होने से सनदा मीऋण फनता हं ।

ऩहिान: 

शसन के ऩीस्िडत होने से जातक का नाश होता हं ।



रगती हं औय अिानक बाग्म ऩरट जाता हं ।

ऩरयवाय भं त्रवऩत्रत्तमं ऩीिा नहीॊ िोडती।



घय भं असग्रकाॊड होता हं मा घय का ढह जाता हं ।



जातक ऩय त्रवसबडन भुसीफते आने रगती हं ।



ऩरयवाय के सदस्मं का आकस्स्भक दघ ा ना के कायण ु ट



जातक ने अस्जात की हुई सफ धन-सॊऩत्रत्तमाॊ स्वाहा हो



जातक को प्राम् सबी ऺेि भं सपरता प्राद्ऱ होने

जाती हं । 

सभथा होते हुवे सॊतान उत्ऩडन नहीॊ हो ऩाती। मफद सॊतान होती हं तो असधक फदन तक जीवीत नहीॊ यहती मा अऩॊग हो जाती हं ।



जातक का शयीय फरहीन होने रगता हं ।



एक आॊख भं कभजोयी हो जाती हं मा खयाफी आजाती

अऩॊग हो जाते हं मा ऩरयवाय के सदस्मं की भृत्मु होती हं । 

जातक के ससय के फारं का झड़ जाते हं कबी-कबी ऩरको औय बोहं के फार बी झड जाते हं ।



िोयी आफद असनद्श स्स्थसतमं का साभना कयना ऩड़ता है ।

उऩाम: 

अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान फहस्से भं एक ही फदन 100 भजदयू ं को उत्तभ बोजन

हं ।

कयामं।



जातक स्वबाव से क्रोधी सिड़सिड़ा हो जाता है ।



अनावश्म रोगो से रडाई झगडे कयने ऩय उतारु हो



जाता हं मह सफ

अजडभा ऋण

उऩाम:

रयश्तेदायी ऋण के कायण होता हं ।

भिरी ऩकड़कय को आटे की गोसरमाॊ स्खरामं।

ससतम्फय 2011

52

जातक का स्जन कोगं से वास्ता ऩडता हं उनके साथ भं



धोखाधडी कयके उनके वॊश को सभडाने से अजडभं का ऋण रगता हं । जातक

की

जडभ

कुॊडरी

भं

द्रादश

बाव

भे

सूम,ा िडद्रभा मा भॊगर स्स्थत हो तो याहु ऩीस्िडत हो जाता

है । याहु ऩीफडत होने ऩय जातक के उऩय अनजान मा अजडभे का ऋण रगता हं ।

जातक के घय के दस्ऺणी फहस्से की तयप वीयान शभशान बूसभ मा कत्रब्रस्तान मा बडबूजे की बट्टी



जातक ने फुयी सनमत से मा िर से दस ू ये की

सॊतान का नाश कय फदमा हो मा कुत्ते को भाय फदमा हो

अथवा रारि के कायण फकसी का धन हड़ऩ सरमा हो तो दै वी ऋण ऩैदा होता हं ।

ग्रह सॊकेत:

ऩहिान: 

रोगं से सॊफॊध भधुय यखे।

दै वी ऋण

ग्रह सॊकेत: स्जस

िठे बाव भं िडद्र मा भॊगर हो तो केतु ऩीस्िडत होता हं औय केतु ऩीस्िडत होने से दै वी ऋण होता हं ।

होती हं ।

ऩहिान:

घय के भुख्म दयवाजे के फाहय गॊदेऩानी की नारी फह



असनद्श पर:



याहु के प्रबाव से जातक ऩय अिानक असनद्श पर प्राद्ऱ होते हं ।



जातक का बाग्म दब ु ााग्म भं फदर जाता हं । डमाम के स्थान ऩय अडमाम प्राद्ऱ होता हं ।



िोयी, डाका, हत्मा, आगजनी, फरात्काय जैसे झुठे आयोऩ रगते हं । सनदोष होकय बी जेर जान ऩडता हं ।



कारे जानवय भय जाते हं , नाखून झड ने रगते हं ।



भानससक व शायीरयक ऺभता कभजोय हो जाती हं ।



शिु उबयने रगते हं ।

उऩाम: 

असनद्श पर:

जीत्रवत यही तो वह अऩाफहज,गूॊगी-फहयी होती हं । जातक का ऩरयवाय नद्श होता है , धन हासन होती है औय फॊद-ु फाॊधव त्रवद्वासघात कयते सभरते हं ।

उऩाम: 

अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान फहस्से भं धन रेकय कुत्तं को बोजन कयाना िाफहए।

अऩने ऩरयवाय मा कुटु ॊ फ के प्रत्मेक सदस्म से सभान फहस्से भं एक-एक श्रीपर (नारयमर) इकट्ठा कय

केतु ऩीफडत होने से ऩुि का नाश होता हं । ऩुि होती ही नहीॊ मफद हुई बी तो वह भय जाती हं औय मफद





रयश्तेदायं से फुयी नीमत यखना औय उसके वॊशजं को सभाद्ऱ कय दे ना।





दस ू ये की औराद को खत्भ कय दे ना कुत्तं को भाय दे ना।

यही होगी। 

ऩरयवाय के साथ यहं । सशखा अवश्म यखं। ससुयार के



फकसी त्रवधवा की भदद कयके आशीवााद प्राद्ऱ कयं ।

ऩानी भं प्रवाफहत कयं ।

अऩनी रार फकताफ कॊु डरी से उऩिाय जासनमे भाि RS:- 450

ससतम्फय 2011

53

ज्मोसतष औय ऋण

 सिॊतन जोशी ऋण मा कजा ऎसे शब्द हं स्जसको सुनने भाि से

री धन यासश को दौगुना, िौगुना मा सौगुना कय के कुि

व्मत्रि को उदास, स्खडन मा अवसाद भहसूस होता हं ।

धन यासश जभा हो जाने ऩय मा भेया उद्दे श्म ऩूणा हो जाने

क्मोफक कजा के फोझ भं दफा हुवा व्मत्रि सदै व भानससक

ऩय भं कजा रौटा दॊ ग ु ा। रेफकन वास्तत्रवक जीवन भं

सोिता यहता हं की सभम ऩय कजा ना िुका ऩाने ऩय

व्मत्रि कजा के दरदर भं ढस जाता हं ।

सिॊता औय ऩये शानी भहसूस कयता हं । व्मत्रि हभेशा

कबी-कबी ऎसा होना असधक कफठन हो जाता हं औय

सभाज भं उसका भान-सम्भान व प्रसतद्षा सभट्टी भं सभर

कजा एक एसा जार हं, स्जसभे व्मत्रि मफद एक

जामेगी, रोक नीॊदा हो जामेगी औय वह सोिता हं की उसे

कजा

के

त्रऩॊड

से

भुत्रि

कफ

फाय पस गमा तो पसता ही िरा जाता हं ।

गणेश रक्ष्भी मॊि

सभरेगी? वह कजा भुि कफ होगा? व्मत्रि को ना फदन भं िैन सभरता हं

ज्मोसतष

शास्त्र

के

ग्रॊथो

भं

त्रवसबडन प्रकाय के याजमोग, धनमोग आफद त्रवशेष मोगो का उल्रेख सभरता

औय न ही यात भं शकून सभरता हं ।

हं । फकसी जडभ कुॊडरी भं त्रवशेष प्रकाय

व्मत्रि के यातो की सनॊद हयाभ हो जाती

के याजमोग, धनमोग आफद होने के

हं ।

उऩयाॊत बी व्मत्रि अऩने जीवन भं आज

सभाज

भं

व्मत्रि

आसथाक सभस्मा से िस्त यहता हं । इस

बौसतकता के दौड भं अॊधा हो गमा हं ।

का एक प्रभुख कायण हं जातक कई

असभय हो मा गरयव हय व्मत्रि व्मत्रि

फाय कजा मा ऋण के फोझ के तरे दफ

फदन यात एक कयके फकसी ना फकसी

जाता हं औय कजा उसका ऩीिा नहीॊ

प्रकाय से असधक से असधक भािा भं धन एकत्रित कयना िाहता हं । असभय औय असभय फनना िाहता हं औय गयीव असभय फनना िाहता हं । क्मोफक एसा बी नहीॊ हं की कजा ससपा गयीफ को मा भध्मभ वगॉ रोगो को रेना ऩड़ता हं फडे से फडे असभयं को बी कजा रेना ऩड़ जाता हं ।

व्मत्रि सोिता हं अभुक राख, कयोड सभर जामे तफ आयभ करुॊ गा तफ भं िैन की नीॊद रूॊगा। उस िैन की नीॊद ऩाने के सरमे ऩहरे कजा रेता हं मह सोि कय अभुक धन यासश कजा रेता हं की कुि भहीने सार भं कजा

प्राण-प्रसतत्रद्षत गणेश रक्ष्भी मॊि को

अऩने

घय-दक ु ान-ओफपस-

पैक्टयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी भं स्थात्रऩत कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । मॊि के प्रबाव से बाग्म भं

उडनसत, भान-प्रसतद्षा एवॊ भं

वृत्रद्ध होती

स्स्थभं

सुधाय

हं

होता

एवॊ

हं ।

व्माऩय

आसथाक

गणेश

रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से

बगवान गणेश औय दे वी रक्ष्भी का सॊमुि आशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।

Rs.550 से Rs.8200 तक

िोडता। भूर तो भूर व्मत्रि को कजा िुकाने के सरमे कजा रेना ऩडता हं । स्जसके परस्वरुऩ कजा फदन-प्रसतफदन कभने के फजाम फढता ही जाता हं औय व्मत्रि अऩने जीवन का असधकतभ फहसा केवर कजा िुकाते िुकाते व्मसतत कय दे ता हं । याजमोग, धनमोग आफद शुब मोग होने ऩय बी ऎसा क्मं होता

हं ? क्मो जातक कजा के दरदर भं पसता िरा जाता हं ? सायावरी, आफद

ज्मोसतष

जातकाबयण, के

प्रभुख

स्कॊद

ग्रॊथो

के

अनुशाय व्मत्रि की जडभ कुॊडरी भं िाहे

फकतने

बी

याजमोग,

धनमोग

ससतम्फय 2011

54

आफद शुबमोग भौजुद हो रेफकन मफद कुॊडरी भं ग्रहो की स्स्थसत मफद अशुब हो तो जातक को कजा के फोझ से राद दे ती हं । जफ अशुब ग्रहो की भहादशा मा अॊतयदशा होती हं तफ कजा भं औय फढोतयी होती हं ।

मफद जडभ कुॊडरी भं तुरा यासश के 10 अॊश का सूमा

मफद जडभ कुॊडरी भं भेष सूमा भेष यासश का हो, नवाॊश भं तुरा यासश का हो कय 3,6,8,11,12 वं बावं को िोड कय अडम फकसी बाव भं स्स्थत हं।



मफद जडभ कुॊडरी भं वृस्द्ळक यासश के 3 अॊश का िॊद्र

उि ग्रह स्स्थती से जातक सूमा के कायण ऋणग्रस्त

मफद जडभ कुॊडरी भं िॊद्र के कायण केभद्रभ ु मोग फनयहा हो।



मफद जडभ कुॊडरी भं िॊद्र वृषब यासश का हो औय नवाॊश भं वृस्द्ळक यासश का हो कय 3,6,8,11,12 वं

मफद जडभ कुॊडरी भं तुरा का सूमा नवाॊश बी तुरा यासश का हो।



 

रग्न भं स्स्थत हो। 

िॊद्र: ितुथा बाव भं स्स्थत हो।

सूमा: 

होता हं ।

बावं को िोड कय अडम फकसी बाव भं स्स्थत हं। 

मफद जडभ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं िॊद्र वृस्द्ळक यासश का हो।



उि ग्रह स्स्थती से जातक ऋणग्रस्त होता हं ।



उि ग्रह स्स्थती से जातक िॊद्र

के कायण ऋणग्रस्त

होता हं ।

भॊि ससद्ध गणेश मॊि गणेश मॊि गणेश मॊि

रक्ष्भी गणेश मॊि एकाऺय (सॊऩूणा फीज भॊि सफहत)

गणेश ससद्ध मॊि ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस (Gold Plated) साईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

भूल्म 640 1250 1850 2700 4600 8200

गणऩसत मॊि

हरयद्रा गणेश मॊि ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस (Silver Plated) साईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

भूल्म 460 820 1250 2100 3700 6400

ताम्र ऩि ऩय (Copper) साईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- [email protected], [email protected] Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/

भूल्म 370 550 820 1450 2450 4600

ससतम्फय 2011

55

भॊगर:  

मफद जडभ कुॊडरी भं कका यासश के 28 अॊश का



होता हं ।

भॊगर रग्न भं स्स्थत हो।

शुक्र:

मफद जडभ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं भॊगर कका



यासश का हो।  

मफद जडभ कुॊडरी भं भकय यासश का भॊगर नवाॊश भं



उि ग्रह स्स्थती से जातक भॊगर के कायण ऋणग्रस्त

मफद जडभ कुॊडरी भं भीन यासश के 15 अॊश का फुध

कडमा यासश का हो।  

शसन:

यासश का हो।



मफद जडभ कुॊडरी भं कडमा यासश का फुध नवाॊश भं

मफद जडभ कुॊडरी भं भीन फुध वक्री होकय धन स्थान उि ग्रह स्स्थती से जातक फुध के कायण ऋणग्रस्त

गुरु:

 



मफद जडभ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं शसन भेष मफद जडभ कुॊडरी भं भेष यासश का शसन केडद्र मा त्रिकोण भं वक्री हो।



मफद जडभ कुॊडरी भं तुरा यासश का शसन नवाॊश भं भेष यासश का हो।



उि ग्रह स्स्थती से जातक शसन के कायण ऋणग्रस्त होता हं ।

मफद जडभ कुॊडरी भं भकय यासश के 5 अॊश का गुरु नवभ बाव भं स्स्थत हो।

दशा के अनुशाय ऋणग्रस्त होने के मोग

मफद जडभ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं गुरु भकय



गुरु नीि का हो, वक्री हो औय केडद्र मा त्रिकोण भं स्स्थत हो।

मफद रग्न से िठे बाव भं सूमा औय िॊद्र स्स्थत हो उस ऩय शसन की ऩूणा द्रत्रद्श हो तो सूमा एवॊ िॊद्र की भहादशा-अॊतयदशा भं कजा रेना ऩडता हं ।

मफद जडभ कुॊडरी भं कका यासश का गुरु नवाॊश भं नीि का हो।

अॊश का शसन

यासश का हो।

यासश का हो। 

मफद जडभ कुॊडरी भं भेष यासश के 20 फद्रसतम बाव भं स्स्थत हो।

होता हं ।



उि ग्रह स्स्थती से जातक शुक्र के कायण ऋणग्रस्त होता हं ।

भं स्स्थत हं।



मफद जडभ कुॊडरी भं नीि का शुक्र केडद्र मा त्रिकोण भं वक्री हो।

अडम फकसी बाव भं स्स्थत हं।



मफद जडभ कुॊडरी भं भीन यासश का शुक्र नवाॊश भं

मफद जडभ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं फुध भीन

भीन यासश का हो कय 3,6,11 वं बावं को िोड कय 

मफद जडभ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं शुक्र कडमा फकसी बाव भं स्स्थत हं।

सद्ऱभ बाव भं स्स्थत हो।





मफद जडभ कुॊडरी भं नीि एवॊ वक्री होकय केडद्र

फुध:



शुक्र ऩॊिभ बाव भं स्स्थत हो। यासश का हो कय 3,6,11 वं बावं को िोड कय अडम

होता हं । 

मफद जडभ कुॊडरी भं कडमा यासश के 27 अॊश का

कका यासश का हो। स्थान मा त्रिकोण भं स्स्थत हं। 

उि ग्रह स्स्थती से जातक गुरु के कायण ऋणग्रस्त



मफद जडभ कुॊडरी भं भेष यासश भं िॊद्र औय भॊगर स्स्थत हो उस ऩय शसन की ऩूणा द्रत्रद्श हो तो िॊद्र व भॊगर की भहादशा-अॊतयदशा भं कजा रेना ऩडता हं ।

ससतम्फय 2011

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मफद जडभ कुॊडरी भं शसन केडद्र स्थान भं स्स्थत हो, िॊद्र रग्न भं औय गुरु द्रादश बाव भं स्स्थत हो, तो



जातक ऩय कजा फना यहता हं । 

जातक हभेशा कजा के दरदर भं पसा यहता हं । .

बी धन घोतक बानो भं हो तो कजा होने की स्स्थते

मफद जडभ कुॊडरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश

फनी यहती हं ।

बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह केडद्र स्थान भं



स्स्थत हो तो जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता हं । 

का गुरु, एकादश बाव भं कका का भॊगर औय तृतीम

बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह तीसये बाव भं स्स्थत

बाव भं वृस्द्ळक का िॊद्र हो तो व्मत्रि हभेशा कजा के

हो द्रादश बाव का स्वाभी दस ू ये बाव भं हो तो जातक

फोझ से रदा यहता हं ।

मफद िॊद्र शसन के नवाॊश भं मा शसन से मुि हो कय गुसरका के 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं स्स्थत होने से बी जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता हं ।



मफद रग्न भं कडमा का शुक्र, ऩॊिभ बाव भं भकय

मफद जडभ कुॊडरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश

रग्नेश से द्रद्श हो तो कजा फना यहता हं । 

मफद 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं ऩाऩकतायी मोग भं फन जामे तो बी कजा फनता हं ।



कजा के िक्कय भं िारू यहता हं । 

मफद जडभ कुॊडरी भं रग्न से 22वाॊ द्रे ष्कोण होने ऩय

मफद जातक भं ये का नाभ का मोग हो तो बी बी

उऩय दशाामी गई दशा भं जातक न िाहते हुए बी ऋणग्रस्त हो जाता हं । कजा के फोझ से भुत्रि ऩाने हे तु शास्त्रं भं त्रवसबडन मॊि, भॊि, तॊि के अनेक उऩाम फतामे गमे हं स्जसे कयने ऩय व्मत्रि को शीघ्रता से ऋण के फोझ से िुटकाया सभर सके।

नवयत्न जफड़त श्री मॊि शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जड़वा ने ऩय मह नवयत्न

जफड़त श्री मॊि कहराता हं । सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जड़ कय रॉकेट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि

को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं । नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं । गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय को

रगते हं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे

अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं । इस प्रकाय के नवयत्न जफड़त श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं ।

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ससतम्फय 2011

57

भहत्रषा वास्ल्भकी ने सिड़ीभाय को शाऩ फदमा

 याकेश ऩॊडा भहत्रषा वास्ल्भकी ने सिड़ीभाय

शाऩ

अभृत के स्त्रोत का ऩता रगा सरमा। अभृत के स्त्रोत का

फदमा फक तुम्हं औय

ऩता रगने से कौए की प्रसडनता का फठकाना न

तुम्हायी

सम्ऩूणा

यहा। रेफकन तबी थके हुए कौए को जोयो की समास

कबी

रगी। वह अऩने आऩ ऩय सॊमभ न यख सका स्जस कायण

प्रसतद्षा नहीॊ सभरेगी

उसे ऋत्रष के आदे श का ध्मान न यखते हुए अभृत के



कुि

जासत इस

को

सनयडतय कई वषो तक ऩता रगाते-रगाते, उसने

को शाऩ

के

ऩी

सरमे।

तत्ऩद्ळात ् वह

ऋत्रष

के

ऩास

कायण सैकडो मुगं

गमा। उसने ऋत्रष को अभृत के स्त्रोत का ऩता फता

के त्रफतने के फाद बी

फदमा। उसने मह बी फता फदमा की उसने अभृत के कुि

आज

घूॊट ऩी बी सरमे ।

तक

फकसी

सिड़ीभाय को प्रसतद्षा नहीॊ सभरी औय आने वारे बत्रवष्म भं शामद न ही सभरेगी । मह अटर सत्म है की भातात्रऩता व ऩूवज ा ं के ऩाऩकभा मा गरती का पर वॊशजं को ही बुगतना ऩड़ता है । बायतीम ऩयॊ ऩया के अॊतयगत कौएॊ को अभृतऩामी ऩऺी भाना जाता है । क्मोफक कंएॊ को अडम ऩस्ऺमं की तुरना भं फदव्मदृत्रद्श सम्ऩडनता तथा बत्रवष्म ऻानी भाना जाता हं । मफह कायण हं की शकुन शास्त्र भं इस ऩऺी को सवोत्तभ भाना जाता हं । ऩोयास्णक भत हं फक सृत्रद्श के आफदकार भं कौए का यॊ ग एकदभ द्वेत होता था। तफ मह ऩऺी सफसे सुडदय औय प्रशॊसनीम भाना जाता था। एक फाय फकसी ऋत्रष ने कंएॊ से कहा फक तुभ तीव्र उड़ान वारे ऩऺी हो, तो तुभ दशं फदशा भं जाकय अभृत के स्त्रोत का ऩता रगाकय आओ। ऩता रगाकय सीधे भेये ऩास वाऩस आ जाना। उस अभृत को तभ स्वमॊ ऩीना भत।

घूॊट

इस ऩय ऋत्रष ने उसे शाऩ फदमा फक तूने अऩनी िंि

से

अभृत

के

स्त्रोत

को

अऩत्रवि

कय

फदमा

हं । इससरमे तू अफ से सवाि अत्रवद्वसनीम, सनडदनीम एवॊ घृस्णत प्राणी सभझा जामेगा। तू अबक्ष्म ऩदाथो का सेवन कये गा। रोग तेयी सनॊदा कयं गे अडम नबिय ऩऺी तुझे अऩनी त्रफयादयी से सनयस्कृ त कय तुझसे दयू -दयू यहं गे । िूॊफक तूने अभृत के कुि घूॊट ऩी सरमे हं , अत: जया-व्मासध से भुि होकय दीघा जीवन प्राद्ऱ कये गा। तेयी भृत्मु केवर दघ ा नाओॊ के कायण ही होगी। तेये शयीय का ु ट वणा द्वेत न यहकय अफ से कारा हो जामेगा,

रेफकन

अभृतऩामी होने के कायण वह िभकदाय फना यहे गा । उि घटना से सभस्त काक वॊश द्वेत के स्थान ऩय कृ ष्ण वणा का हो गमा। इसी कायण से कोई बी ऩशुऩऺी कंएॊ के शयीय का भाॊस नहीॊ खाता। अथाात ् गुनाह कोई कये , सजा बुगतेगा आने वारी ऩीढी मा सॊफॊधी ही ।

ससतम्फय 2011

58

ज्मोसतष से जान ऋण से भुत्रि कफ सभरेगी?

 सिॊतन जोशी आज के आधुसनक मुग भं जरूयत ऩडने ऩय रोग प्राम: कजा

दे नेवारी

सयकायी-गैय-सयकायी

सॊस्था

सभथुन यासश:

मा

जफ गोिय भं शसन ससॊह यासश मा भेष यासश भे

साहूकायो से कजा रेते हं । व्मत्रि अऩना कजा जल्दी से

स्स्थत हो, गुरु सभथुन यासश, तुरा यासश मा कुॊब यासश भं

जल्दी िुकता हो जाए, इसके सरए अनेक प्रमासयत बी

हो, शुक्र भीन यासश भं, याहु ससॊह यासश वृस्द्ळक यासश मा

कयता हं । वैफदक ज्मोसतष के ससद्धाॊतं के अनुसाय व्मत्रि

भेष यासश भं हो, फुध सभथुन यासश मा कडमा यासश भं हो

को ऋण से शीघ्र भुत्रि तफ सभरती है , जफ उसकी ग्रह

अथवा सूमा ससॊह यासश मा भेष यासश भं भ्रभण कय यह हो

दशा अनुकूर होती हं मफद ग्रह दशा प्रसतकूर होती हं तो

तफ कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।

कजा से भुत्रि शीघ्र नहीॊ सभरती उल्टा जातका कजा फढ़ जाता हं । ज्मोसतष के अनुशाय फायह यासशमं के अनुसाय कफ शीघ्र ऋण भुत्रि सॊबव होती हं । ऩाठको के भागादशान हे तु उसका त्रववयण प्रस्तुत हं ।

भेष यासश: जफ गोिय भं भॊगर भकय यासश, भेष यासश, सभथुन यासश, कडमा यासश मा कुॊब यासश भं भ्रभण कयता हं ।

कका यासश: जफ गोिय भं शसन कडमा यासश मा वृष यासश भं हो, गुरु का कका यासश, वृस्द्ळक यासश मा भीन यासश भं हो, याहु का कडमा यासश, वृस्द्ळक यासश, वृष यासश मा सभथुन यासश भं हो, िॊद्रभा कका यासश, वृष यासश मा भीन यासश भं हो, सूमा औय भॊगर वृष यासश, कडमा यासश भं हो तफ कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है । ससॊह यासश:

फृहस्ऩसत भेष यासश, ससॊह यासश, तुरा यासश मा धनु यासश भं

जफ गोिय भं शसन तुरा यासश मा सभथुन यासश भं

हो, सूमा सभथुन यासश, कडमा यासश, कुॊब यासश भं मा याहु

हो, गुरू का ससॊह यासश, धनु यासश मा भेष यासश भं हो, याहु

सभथुन यासश, कडमा यासश, कुॊब यासश भं भ्रभण कयता है ,

का तुरा यासश, भकय यासश मा सभथुन यासश भं हो, सूमा का

तफ कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।

ससॊह यासश, धनु यासश, भेष यासश मा सभथुन यासश भं हो, भॊगर सभथुन यासश भं स्स्थत हो तो

वृष यासश: जफ गोिय भं शसन कुॊब यासश, भीन यासश मा कका यासश भं भ्रभण कय यहा हो, फृहस्ऩसत वृष यासश, कडमा यासश मा वृस्द्ळक भं हो स्स्थत हो। शुक्र भीन यासश औय याहु कका यासश, तुरा यासश मा भीन यासश भं स्स्थत हो अथवा सूमा कका यासश मा भीन यासश भं भ्रभण कयता है , तफ कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।

कजा से शीघ्र भुत्रि

सभरती है । कडमा यासश: जफ गोिय भं शसन वृस्द्ळक यासश मा कका यासश भं हो, गुरू कडमा यासश, भीन यासश मा वृष यासश भं हो, याहु वृस्द्ळक यासश, कुॊब यासश, कका यासश भं हो, सूमा वृस्द्ळक यासश, कका यासश भं हो, फुध कडमा यासश, सभथुन यासश भं स्स्थत हो तो कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।

ससतम्फय 2011

59

तुरा यासश:

भकय यासश:

जफ गोिय भं शसन भकय यासश, ससॊह यासश मा धनु

जफ गोिय भं शसन तुरा यासश, भकय यासश, वृस्द्ळक

यासश भं हो, गुरू का तुरा यासश, सभथुन यासश भं हो, याहु

यासश, भीन यासश मा कुॊब यासश भं हो, गुय वृष यासश, कका

यासश भं हो मा शुक्र कुॊब यासश, तुरा यासश भं भ्रभण कय

मा सभथुन यासश भं हो मा सूमा औय भॊगर भीन यासश मा

धनु यासश, भीन यासश, ससॊह यासश भं हो, सूमा धनु यासश, ससॊह यहा हो तो कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।

यासश मा कडमा यासश भं हो, याहु भीन यासश, वृस्द्ळक यासश वृस्द्ळक यासश भं भ्रभण कय यहा हो तो कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।

वृस्द्ळक यासश: जफ गोिय भं शसन भकय यासश मा कडमा यासश भं हो मा गुरू वृस्द्ळक यासश भीन यासश मा कका यासश भं हो, याहु भकय यासश, भेष यासश मा कडमा

यासश भं हो, सूमा

भकय यासश मा कडमा यासश भं, भॊगर भकय यासश, वृस्द्ळक यासश मा भीन यासश भं भ्रभण कय यहा हो तो कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।

कुॊब यासश: जफ गोिय भं शसन भेष यासश, तुरा यासश, कुॊब यासश मा भकय यासश भं हो, गुरू कुॊब यासश, सभथुन यासश मा तुरा यासश भं हो, याहु भेष यासश, कका यासश मा धनु यासश भं हो अथवा सूमा औय भॊगर भेष यासश मा धनु यासश भं भ्रभण कय यहा हो तो कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है । भीन यासश:

धनु यासश: जफ गोिय भं शसन कुॊब यासश मा तुरा यासश भं हो, गुय धनु यासश, भीन यासश, ससॊह यासश मा भेष यासश भं

जफ गोिय भं शसन भकय यासश, कुॊब यासश मा वृष यासश भं हो, गुरू भीन यासश, कका यासश, वृस्द्ळक यासश मा

हो, याहु कुॊब यासश, वृष यासश मा तुरा यासश भं हो अथवा

धनु यासश भं हो, याहु वृष यासश, ससॊह यासश मा भकय यासश

यहा हो तो कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।

कय यहा हो तो कजा से शीघ्र भुत्रि सभरती है ।

सूमा औय भॊगर कुॊब यासश मा तुरा यासश भं भ्रभण कय

भं हो, सूमा औय भॊगर वृष यासश मा भकय यासश भं भ्रभण

ऩुरुषाकाय शसन मॊि सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत 22 गेज शुद्ध स्टीर भं सनसभात अखॊफडत ऩुरुषाकाय शसन मॊि (स्टीर भं) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हे तु शसन की कायक धातु शुद्ध स्टीर(रोहे ) भं फनामा गमा हं । स्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राद्ऱ होता हं । मफद जडभ कुॊडरी भं शसन प्रसतकूर होने ऩय व्मत्रि को अनेक कामं भं असपरता प्राद्ऱ होती है , कबी व्मवसाम भं घटा, नौकयी भं ऩये शानी, वाहन दघ ा ना, गृह क्रेश आफद ु ट ऩये शानीमाॊ फढ़ती जाती है ऐसी स्स्थसतमं भं प्राणप्रसतत्रद्षत ग्रह ऩीड़ा सनवायक शसन मॊि की अऩने को व्मऩाय स्थान मा

घय भं स्थाऩना कयने से अनेक राब सभरते हं । मफद शसन की ढै िमा मा साढ़े साती का सभम हो तो इसे अवश्म ऩूजना िाफहए। शसनमॊि के ऩूजन भाि से व्मत्रि को भृत्मु, कजा, कोटा केश, जोडो का ददा , फात योग तथा रम्फे सभम के सबी प्रकाय के योग से ऩये शान व्मत्रि के सरमे शसन मॊि असधक राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आफद के रोगं को ऩदौडनसत बी शसन द्राया ही सभरती है अत् मह मॊि असत उऩमोगी मॊि है स्जसके द्राया शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है ।

भूल्म: 1050 से 820

ससतम्फय 2011

60

सुख-स्भृत्रद्ध के सरमे जाने ऋण(कजा) कफ रे औय कफ दे

 सिॊतन जोशी आज के आधुसनक मुग भं ऋण सभस्मा असभय-

आवश्मकता प़ड जामे तो फुधवाय को कजा नहीॊ

दे ना

भध्मभ-गयीव हय वगा फक हं । आज ज्मादातय व्मत्रि कजा

िाफहमे फुधवाय को फदमे गमे कजा को प्राद्ऱ कयने भं

के भक्कड़ जार भं उरझा हुआ हं । आज कोई व्मत्रि धन

कफठनाई आती हं ।

ते हुवे आसानी से सभरता हं । 10-20 वषा ऩहरे फकसी से

से माद यखा जा सकता हं औय दै सनक जीवन भं उऩमोग

उधाय दे कय योते हुवे सभरता हं तो कोई धन रेकय ऩिता

मह ज्मोसतष का एक सयर सनमभ हं जो सयरता

कजाा रेने के सरए रयस्तेदय-सभि-साहुकाय को ढे यं सभडनतं

फकमा जा सकता हं ।

कयनी होती थीॊ ऩय अफ सभम फदर गमा हं गरी-गरी

ज्मोसतष भत से भॊगरवाय ऋण िुकाने के सरए

उधाय दे ने के सरमे फंक वारे रोन/क्रेफडट काडा दे ते फपयते

श्रेद्ष हं । फुधवाय धन सॊिम(सेत्रवॊग) के सवा श्रेद्ष फदन हं ।

यहते हं ।

फुधवाय को फंक भं धन जभा कयना, फफ़क्स फडऩोजीट

बयतीम ज्मोसतष भं कजा के रेन-दे न से सॊफॊधी इन सभस्माओॊ से दयू यहने के उऩाम फतरामे हं । ज्मोसतष

इत्माफद हे तु श्रेद्ष हं । मफद कजा रेने फक जरूयत होतो भॊगरवाय, सूमा

के त्रवशेष सनमभो को अऩना कय जीवन भं कजा से

सॊक्राॊसत का फदन, वृत्रद्ध मोग, स्जस यत्रववाय को हस्त नऺि

सॊफॊसधत सभस्माओॊ को अऩने अनुकूर फनामा जा सकता

हो, इन सॊमोग ऩय िाहे फकतनी ही ब़डी जरूयत हो इन

हं ,

फदनं भं ऋण कबी नहीॊ रेना िाफहमे,

व्मवसाम से जुडे रोगो को व्मवसाम से सॊफॊसधत

रेनदे न तो योज कयने ऩडते हं । एसे रोग मफद ज्मोसतष के

फदन ऩय टार दं ।

ससद्धाॊतो को अऩना ने धन से सॊफॊसधतत रेन-दे न अच्िा होता हं ।

ऋण रेना अगरे

मफद कजा दे ने फक जरूयत होतो फुधवाय, कृ त्रत्तका, योफहणी,

आद्राा,

आद्ऴेषा,

उत्तयापाल्गुनी,

उत्तयाषाढ़ा,

रेनदे न के फडे बुगतान हे तु सभम अवसध को

उत्तयाबाद्रऩद नऺिं भं, बद्रा, व्मसतऩात औय अभावस्मा के

ध्मान भं यखते हुवे असग्रभ एवॊ ऩद्ळमात बुगतान फकमा

सॊमोग ऩय फदमा गमा धन कबी वाऩस प्राद्ऱ नहीॊ होता मा

जामे तो त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं ।

धन प्राद्ऱ कयने भं अत्मासधक कफठनाईमा आती हं । , धन प्रासद्ऱ हे तु कोटा -केश, झग़डे इत्माफदके उऩयाॊत बी धान प्राद्ऱ

रेन-दे न हे तु भुख्म सनमभ हं ।

नहीॊ होता। हभने अऩने अनुबवो भं इस सॊमोग ऩय धन

ऋणे बौभे न ग्रहीमात, न दे मभ ् फुधवासये ।

गमा हं । इस सॊमोग ऩय धन रेने वारे का धन फटकता

ऋणच्िे दनभ ् बौभे कुमाात,् सॊिमे सोभ नॊदने॥

अथाात् धन के रेनदे न हे तु भॊगरवाय औय फुधवाय ब़डे भहत्व ऩूणा हं । भॊगरवाय को उधाय रेना अशुब होता हं तथा फुधवाय को उधाय दे ना अशुब होता हं । कजा रेने फक आवश्मकता प़ड जामे तो भॊगरवाय को कबी कजा नहीॊ रेना िाफहमे। भॊगरवाय को सरमे उधाय को िुकाने भं ब़डी कफठनाई आती हं । कजा दे ने फक

रेने औय धन दे ने वारे दोनो को ऩये शानीमाॊ झेरते दे खा नहीॊ एवॊ उस्की आसथाक स्स्थती धन िुकाने रामक नहीॊ

यहजाती। उसे कजा िुकाने हे तु औय कजा रेने फक नौफत आन ऩड़ती हं । इन ससद्धाॊतं को अऩना कय जीवन भं अऩनाने से फहुत िोटे -ब़डे त्रववादं से आसानी से फिा जा

सकता हं । क्मोफक आज के सभम भं त्रवषभ ऩरयस्स्थसतमं भं बी स्जसका रेनदे न अच्िा होता हं , उसका सभाज भं अच्िा प्रबाव फन जाता हं ।

ससतम्फय 2011

61

इन सनमभं को अऩनाकय साधायण व्मत्रि बी असाधायण

भृगसशया-ये वती-सििा-अनुयाधा-त्रवशाखा-ऩुष्म-श्रवण-धसनद्षा-

राब प्राद्ऱ कय सकता हं ।

शतसबषा औय अस्द्वनी नऺिं भं फकमा गमा सनवेश शुब

मफद

धन

का

कहीॊ

सनवेश

(जभीन-जामदाद,

यहता हं । सनवेश िय (भेष-कका-तुरा-भकय) रग्नो भं

शेयभाकेट, इडस्मोयं स, सोना, िाॊफद, त्रवदे शी भुद्रा, इत्मादी)

कयना उत्तभ होता हं । सनवेश कयने से ऩूवा मह दे ख रे फक

भं कयना हो तो भॊगरवाय औय फुधवाय के असतरयि अडम

रग्न से 8वं बाव भं कोई ग्रह न हो, इस सभम भं फकमा

वायं का िुनाव कयं । इसके असतरयि ऩुनवासु-स्वासत-

गमा ऩूॊस्ज सनवेश धन को फढ़ाता हं ।

भॊि ससद्ध रूद्राऺ Rate In Indian Rupee

Rudraksh List

Rate In Indian Rupee

Rudraksh List

एकभुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

2800, 5500

आठ भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

820,1250

एकभुखी रूद्राऺ (नेऩार)

750,1050, 1250,

आठ भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

1900

दो भुखी रूद्राऺ (हरयद्राय, याभेद्वय)

30,50,75

नौ भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

910,1250

दो भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

50,100,

नौ भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

2050

दो भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

450,1250

दस भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

1050,1250

तीन भुखी रूद्राऺ (हरयद्राय, याभेद्वय)

30,50,75,

दस भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

2100

तीन भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

50,100,

ग्मायह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

1250,

तीन भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

450,1250,

ग्मायह भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

2750,

िाय भुखी रूद्राऺ (हरयद्राय, याभेद्वय)

25,55,75,

फायह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

1900,

िाय भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

50,100,

फायह भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

2750,

ऩॊि भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

25,55,

तेयह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

3500, 4500,

ऩॊि भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

225, 550,

तेयह भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

6400,

िह भुखी रूद्राऺ (हरयद्राय, याभेद्वय)

25,55,75,

िौदह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

10500

िह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

50,100,

िौदह भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

14500

सात भुखी रूद्राऺ (हरयद्राय, याभेद्वय)

75, 155,

गौयीशॊकय रूद्राऺ

1450

सात भुखी रूद्राऺ (नेऩार)

225, 450,

गणेश रुद्राऺ (नेऩार)

550

सात भुखी रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

1250

गणेश रूद्राऺ (इडडोनेसशमा)

750

रुद्राऺ के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।

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ससतम्फय 2011

62

श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि फकसी बी व्मत्रि का जीवन तफ आसान फन जाता हं जफ उसके िायं औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश भं हं। जफ कोई व्मत्रि का आकषाण दस ु यो के उऩय एक िुम्फकीम प्रबाव डारता हं, तफ

रोग उसकी सहामता एवॊ

सेवा हे तु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना असधक कद्श व ऩये शानी से सॊऩडन हो जाते हं । आज के बौसतकता वाफद मुग भं हय व्मत्रि के सरमे दस ू यो को अऩनी औय खीिने हे तु एक प्रबावशासर िुॊफकत्व को कामभ

यखना असत आवश्मक हो जाता हं । आऩका आकषाण औय व्मत्रित्व आऩके िायो ओय से रोगं को आकत्रषात कये इस सरमे सयर उऩाम हं , श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि। क्मोफक बगवान श्री कृ ष्ण एक अरौफकव एवॊ फदवम िुॊफकीम व्मत्रित्व के धनी थे। इसी कायण से श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन एवॊ दशान से आकषाक व्मत्रित्व प्राद्ऱ होता हं । श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के साथ व्मत्रिको दृढ़ इच्िा शत्रि एवॊ उजाा प्राद्ऱ होती हं , स्जस्से व्मत्रि हभेशा एक बीड भं हभेशा आकषाण का कंद्र यहता हं ।

मफद फकसी व्मत्रि को अऩनी प्रसतबा व आत्भत्रवद्वास के स्तय भं वृत्रद्ध,

अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफि भं रयश्तो भं सुधाय कयने की ईच्िा होती हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ सात्रफत हो सकता हं । श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ

श्रीकृ ष्ण फीसा कवि श्रीकृ ष्ण

फीसा

कवि

को

केवर

त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण फकमा जाता हं । कवि को त्रवद्रान कभाकाॊडी

ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि

अॊको से व्मत्रि को अद्धद्भत ु आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हं जो व्मत्रि को

त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो

श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान

मुि कयके सनभााण फकमा जाता हं ।

सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भं अग्रस्णम फनाने भं सहामक ससद्ध होती हं ।

श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं । श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊिाय कयता हं , जो एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं ! 

श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं ।



त्रवद्रानो के भतानुशाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग कंफद्रत कयने से व्मत्रि फक िेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्ि स्तय

द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता हं । कवि को गरे भं धायण कयने से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता हं । गरे भं धायण कयने से कवि हभेशा रृदम के ऩास यहता हं स्जस्से व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं ।

को प्राद्ऱहोती हं । 

भूरम भाि: 1900

जो ऩुरुषं औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना िाहते हं औय उडहं अऩनी औय आकत्रषात कयना िाहते हं । उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं ।



ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं ।

भूल्म:- Rs. 550 से Rs. 8200 तक उसरब्द्ध

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ससतम्फय 2011

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याभ यऺा मॊि याभ यऺा मॊि सबी बम, फाधाओॊ से भुत्रि व कामो भं सपरता प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ मॊि हं । स्जसके प्रमोग से धन राब होता हं व व्मत्रि का सवांगी त्रवकाय होकय उसे सुख-सभृत्रद्ध, भानसम्भान की प्रासद्ऱ होती हं । याभ यऺा मॊि सबी प्रकाय के अशुब प्रबाव को दयू कय व्मत्रि को जीवन की सबी प्रकाय की कफठनाइमं से यऺा कयता हं । त्रवद्रानो के भत से जो व्मत्रि बगवान याभ के बि हं मा श्री हनुभानजी के बि हं उडहं अऩने सनवास स्थान, व्मवसामीक स्थान ऩय याभ यऺा मॊि को अवश्म स्थाऩीत कयना िाफहमे स्जससे आने वारे सॊकटो से यऺा हो उनका जीवन सुखभम व्मतीत हो सके एवॊ उनकी सभस्त आफद बौसतक व आध्मास्त्भक भनोकाभनाएॊ ऩूणा हो सके।

ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस

ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस

ताम्र ऩि ऩय

(Gold Plated)

(Silver Plated)

(Copper)

साईज

भूल्म

साईज

भूल्म

साईज

भूल्म

2” X 2”

640

2” X 2”

460

2” X 2”

370

3” X 3”

1250

3” X 3”

820

3” X 3”

550

4” X 4”

1850

4” X 4”

1250

4” X 4”

820

6” X 6”

2700

6” X 6”

2100

6” X 6”

1450

9” X 9”

4600

9” X 9”

3700

9” X 9”

2450

12” X12”

8200

12” X12”

6400

12” X12”

4600

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ससतम्फय 2011

64

अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवि अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि व

उल्रेस्खत अडम साभग्रीमं को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान

ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात कवि अत्मॊत प्रबावशारी होता हं ।

अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि कवि फनवाने हे तु: अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, गोि, एक नमा पोटो बेजे

अभोद्य् भहाभृत्मुज ॊ म

कवि

दस्ऺणा भाि: 10900

याशी यत्न एवॊ उऩयत्न त्रवशेष मॊि हभायं महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने-िाॊफदताम्फे भं आऩकी आवश्मिा के अनुशाय

फकसी बी बाषा/धभा के मॊिो को आऩकी

आवश्मक फडजाईन के अनुशाय २२ गेज सबी साईज एवॊ भूल्म व क्वासरफट के असरी नवयत्न एवॊ उऩयत्न बी उऩरब्ध है ।

शुद्ध ताम्फे भं अखॊफडत फनाने की त्रवशेष सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं ।

हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं । ज्मोसतष कामा से जुडेि फधु/फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अडम साभग्रीमा व अडम सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं ।

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ससतम्फय 2011

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गुरु ऩुष्माभृत मोग

 सिॊतन जोशी हय फदन फदरने वारे नऺि भे ऩुष्म नऺि बी



एक नऺि है , एवॊ अडदाज से हय २७वं फदन ऩुष्म नऺि

मोग फन जाता है अद्भत ु एवॊ अत्मॊत शुब पर प्रद

होता है । मह स्जस वाय को आता है , इसका नाभ बी उसी

अभृत मोग।

प्रकाय यखा जाता है ।



इसी प्रकाय गुरुवाय को ऩुष्म नऺि होने से गुरु 

गुरु ऩुष्म मोग के फाये भं त्रवद्रान ज्मोसतत्रषमो का 

वाहन, फही-खातं की खयीदायी एवॊ गुरु ग्रह से सॊफॊसधत 

हय व्मत्रि अऩने शुब कामो भं सपरता हे तु इस

कामा, फॊध हो िुके कामा शुरू कयने के सरमे

एवॊ

जीवन

के

कोई

बी

अडम

गुरुऩुष्माभृत

मोग

फहोत

कभ

फनता

है

जफ

गुरुवाय के फदन ऩुष्म नऺि होता है । तफ फनता है गुरु ऩुष्म मोग। 

गुरुवाय के फदन शुब कामो एवॊ आध्मात्भ से सॊफॊसधत कामा कयना असत शुब एवॊ भॊगरभम होता है ।



ऩुष्म नऺि बी सबी प्रकाय के शुब कामो एवॊ आध्मात्भ से जुडे कामो के सरमे असत शुब भाना गमा है ।

मह मोग त्रवशेष साधना के सरमे असत शुब एवॊ भाॊ भहारक्ष्भी का आह्वान कयके अत्मॊत सयरता

ग्रह हं । शसन को ज्मोसतष भं स्थासमत्व का प्रतीक भाना गमा हं । अत् ऩुष्म नऺि सफसे शुब नऺिो भं से एक हं ।

मफद यत्रववाय को ऩुष्म नऺि हो तो यत्रव

ऩुष्म मोग औय गुरुवाय को हो तो औय गुरु ऩुष्म

सपरता की सॊबावना होसत है । 

इस फदन त्रवद्रान एवॊ गुढ यहस्मो के जानकाय भाॊ

याजा फतामा गमा हं । स्जसका स्वाभी शसन

सूमोदम तक

भहत्वऩूणा ऺेि भं कामा कयने से 99.9% सनस्द्ळत

होता

शास्त्रो भं ऩुष्म नऺि को नऺिं का

यात्रि 2:44

जेसे नौकयी, व्माऩाय मा ऩरयवाय से जुड़े

पामदे भॊद

ऩुष्म नऺि का भहत्व क्मं हं ?

22/23 ससतॊफय

भहूता वारे फदन फकसी बी नमे कामा को

फेहद

जासकती है ।

सकता है औय अशुबता से फि सकता है । सपरता की प्रासद्ऱ के सरए इस अद्भत ु

सरए

से उनकी कृ ऩा द्रत्रद्श से सभृत्रद्ध औय शाॊसत प्राद्ऱ फक

शुब भहूता का िमन कय सफसे उऩमुि राब प्राद्ऱ कय फदन-प्रसतफदन

के

शीघ्र ऩयीणाभ दे ने वारा होता है ।

वस्तुए अत्मासधक राब प्रदान कयती है ।

भं

साधक

भहारक्ष्भी की साधना कयने की सराह दे ते है ।

कहना हं फक ऩुष्म नऺि भं धन प्रासद्ऱ, िाॊदी, सोना, नमे

जीवन

एक

हं गुरुऩुष्माभृत मोग।

ऩुष्म मोग कहाजात है ।

अऩने

जफ गुरुवाय के फदन ऩुष्म नऺि होता तफ मह

मोग कहराता हं । शास्त्रं भं ऩुष्म मोग को 100 दोषं को दयू कयने

वारा, शुब कामा उद्दे श्मो भं सनस्द्ळत सपरता प्रदान कयने

वारा एवॊ फहुभल् ू म वस्तुओॊ फक खयीदायी हे तु सफसे श्रेद्ष एवॊ शुब परदामी मोग भाना गमा है ।

गुरुवाय के फदन ऩुष्म नऺि के सॊमोग से सवााथा अभृतससत्रद्ध मोग फनता है । शसनवाय के फदन ऩुष्म नऺि के सॊमोग से सवााथसा सत्रद्ध मोग होता है । ऩुष्म नऺि को ब्रह्माजी का श्राऩ सभरा था। इससरए शास्त्रोि त्रवधान से ऩुष्म नऺि भं त्रववाह वस्जात भाना गमा है ।

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ससतम्फय 2011

भाससक यासश पर

 सिॊतन जोशी भेष:

1 से 15 ससतम्फय 2011 :भहत्वऩूणा कामो को कयने भं आऩ सपर हंगे। त्रऩता का स्वास्थ सिॊता का कायण हो सकता हं । आसथाक स्स्थती कभजोय हो सकती हं । नमे रोगो से सभिता होगी। कोटा किहयी के कामो भं सावधानी फते। त्रवयोसध एवॊ शिु ऩऺ से ऩये शानी हो सकती हं । सभि एवॊ ऩरयवाय के रोगो का सहमोग प्राद्ऱ होगा। बूसभ-बवन-वाहन फक प्राद्ऱी हो सकती हं । 16 से 30 ससतम्फय 2011 : आसथाक स्स्थती सुधये गी ऩयॊ तु धन सॊग्रह कयने भं कफठनाई होगी। त्रवऩयीत सरॊग के प्रसत आऩका असधक आकषाण यहे गा। दाॊम्ऩत्म सुख भं कभी हो सकती हं । सॊतान ऩऺ के प्रसत सिॊता यहे गी। सभि एवॊ ऩरयवाय के सहमोग से धन राब होगा। स्वास्थ्म सुख भं वृत्रद्ध होगी फपय बी खाने- ऩीने का त्रवशेष ध्मान यखना फहतकायी

यहे गा। व्मवसासमक मािा भं सपरता प्राद्ऱ हो सकती है ।

वृषब: 1 से 15 ससतम्फय 2011: नौकयी-व्मवसाम फदराव कयने का प्रमास कय यहे है तो फदराव फक सॊबावना फन यही हं । आऩकी कामा कूशरता से आसथाक उडनती हो सकती हं । आऩके कामा कूशरता आऩकी आभदनी भं अप्रत्मऺ रुऩ से वृत्रद्ध कय सकती हं । जीवन साथी से भन भुटाव हो सकते हं सावधानी फते। स्जसके कायण आऩकी भानससक सिॊता फढ सकती है । अऩने ऩरयवाय के रोग एवॊ सभि वगा का ऩूणा सहमोग प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩामेगा। 16 से 30 ससतम्फय 2011: भहत्व ऩूणा मािाओॊ को कुि सभम के सरमे स्थसगत कयना ऩड सकता हं । अऩने अनावश्मक खिो ऩय सनमस्डित कयने का प्रमास कयं । आऩके सबतय कुि सनयाशावादी बाव यह सकते हं स्जससे भानससक अशाॊसत हो सकती है । क्रोध एवॊ वाणी ऩय ऩूणा सनमॊिण यखने का प्रमास कयं एवॊ कोई बी शब्द का प्रमोग सोि त्रविाय कय कयं । ऩरयवाय के साथ रयस्ते भजफुत होने के सुअवसय प्राद्ऱ हंगे।

सभथुन:

1 से 15 ससतम्फय 2011 : कामा ऺेि भं उच्ि असधकायी एवॊ सहकभॉ

सहमोग प्राद्ऱ नहीॊ होगा, उनसे ऩये शासनमं सॊबव हं । सावधान यहं । आसथाक स्स्थती सुधये गी ऩयॊ तु धन सॊग्रह कयने भं कफठनाई होगी। आऩ ऩरयवाय के सदस्मं को अऩनी फात सभझाने भं असभथा हंगे। आऩको ऩारयवारयक सदस्म के स्वास्थ्म से सॊफॊसधत सिॊता हो सकती हं । ऩरयवाय की सुख -शास्डत को फनामे यखने का प्रमास कयं । 16 से 30 ससतम्फय 2011 : अऩने नाभ औय प्रसतद्षा कामभ यखने के सरमे आऩको ऩूणा मोजनाफद्ध तरयके से कामा कयना आऩके सरमे शुब परदामक ससद्ध होगा। फकमे गमे ऩूॊस्ज सनवेश द्राया आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ के मोग फन यहे है । इसके असतरयि अऩने स्वबाव को फदरते हुए सहमोग बाव स्वमॊ भं त्रवकससत कयं ।आऩके के स्वबाव भं दमा, भृदत ु ा व त्रवनम्रता भं वृत्रद्ध हो सकती हं ।

ससतम्फय 2011

67

कका: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : व्मवसासमक कामो भं सपरता प्राद्ऱ कय सकते हं । दयू स्थ स्थान फक मािाएॊ राब प्रासद्ऱ के मोग फना सकती हं । नौकयी-व्मवसाम भं फदराव का त्रविाय कय सकते है । आऩकी भानससक सिडताओॊ भं फढोतयी होगी। आऩके स्वबाव भं सौम्मता राने का प्रमास कयं । ऩरयवाय भं फकसी सदस्म के स्जद्दी स्वबाव के कायण आऩके ऩरयवाय भं भानससक अशाॊसत का भाहोर हो सकता है । 16 से 30 ससतम्फय 2011 : ऩूवा कार भं फकमे गमे कामा एवॊ रुके हुवे कामा से

आकस्स्भक धन राब प्राद्ऱ होगा। बूसभ- बवन-वाहन के क्रम-त्रवक्रम से राब प्राद्ऱ हो सकता हं । फकसी व्मत्रि त्रवशेष से वाद-त्रववाद से फिने का प्रमास कये । जीवन साथी से सहमोग प्राद्ऱ होगा। शुब सभािाय फक प्रासद्ऱ हो सकती हं । ऩरयवाय भं खुसशमो का भाहोर यहे गा औय ऩरयवाय भं फकसी नमे सदस्म फक वृत्रद्ध होने के मोग फन यहे है ।

ससॊह:

1 से 15 ससतम्फय 2011 : नौकयी-व्मवसाम भं फदराव का त्रविाय कय सकते है । अऩने कामा उद्दे श्म भं एकाग्र यहे रंगं की सनगाहं आऩके उऩय फटकी यहे गी। फकसी कामा भं राऩयवाही नुक्शान दे सकती हं । आऩ अऩने अॊदय आत्भफर भहसूस कयं गे। सभिं औय रयस्तेदायं के साथ शाॊसत औय प्रसडडता भहसूस होगी। आऩके अडतऻाान ऻान का त्रवकास हो सकता हं स्जस्से रक्ष्म प्रासद्ऱ भे राब प्राद्ऱ होगा। 16 से 30 ससतम्फय 2011 : रम्फे सभम से रुके हुवे कामा से आकस्स्भक धन राब प्राद्ऱ होगा। फकसी व्मत्रि त्रवशेष से वाद-त्रववाद से फिने का प्रमास कये । बूसभ- बवन-वाहन के क्रम-त्रवक्रम से राब प्राद्ऱ हो सकता हं । गुद्ऱ त्रवयोसध-शिुओॊ के कायण आसथाक हासन हो

सकती है । भहत्व ऩूणाा कामो को स्स्थगीत कयना मा फकसी नमे व्मत्रि को दे ना नुक्शान दे ह हो सकता हं ।

स्वास्थ्म भं

सगयावट हो सकती हं ।

कडमा: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : मह सभम आऩकी सभृत्रद्ध को दशााता हं । अऩनी वताभान स्स्थसत का आकरन कय अऩने प्रमासो को सुधाय सकते हं । आऩकी सपरता आऩके प्रमासं एवॊ ऩरयश्रभ ऩय सनबाय कयती हं । आऩकी सिऩी शत्रिमं

को ऩहिान कय

कामा कयना राबप्रद यहे गा। आऩका भन साॊसारयक कभो से हट कय आध्मास्त्भक एवॊ धासभाक कामो भं असधक रग सकता हं । 16 से 30 ससतम्फय 2011 : नमे उद्योग, भहत्वऩूणा क्रम-त्रवक्रम, व्मवसामीक मािा राबप्रद हो सकती हं । इस दौयान आऩ स्वस्थ एवॊ ताजगी भहसूस कयं गे। सभि एवॊ ऩरयवाय के रोगो के सहमोग से भन प्रसडन यहे गा। इस दौयान आऩ अऩने शिु एवॊ सभिो को आसानी से ऩहिान कय सकते हं । अनुकूर आवसयो का राब उठाए औय अऩने बाग्म को सुधायने का प्रमास कयं ।

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ससतम्फय 2011

तुरा: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : धन सॊफॊसधत रेनदे न, बूसभ-बवन इत्मादी से सॊफॊसधत कामो भं इस अवसध के दौयान आऩको सावधान औय सतका यहना िाफहए। अडमथा बायी हानी हो सकती हं । व्मवसामीक मािाएॊ कद्शप्रद हो सकती हं उसिर राब प्राद्ऱ होने भं त्रवरॊफ औय ऩूयाने बूगतान प्राद्ऱ होने भं त्रवरॊफ हो सकता हं । अनावश्मक खिो ऩय सनमॊिण कयने का प्रमास कयं अडमथा कजा के फोझ तरे रम्फे सभम के सरमे दफ सकते हं । 16 से 30 ससतम्फय 2011 : कफठन ऩरयश्रभ औय भेहनत के फाद भं सपरता प्राद्ऱ कय सकते हं । अऩनी बावानाओॊ एवॊ आवेगो को सनमॊत्रित कयं । कुि रोग आऩका त्रवयोध कय सकते हं स्जस्से आऩका भन उदास हो सकता हं । वाणी एवॊ क्रोध ऩय सनमॊिण यखे अडमथा आऩके फने फनामे कामा त्रफगड सकते हं । आऩके सह कभािायी मा सभि आऩके शिु फन सकते हं स्जस्से आसथाक हानी हो सकती हं । सतका यहं ।

वृस्द्ळक: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : सभम आऩके भहत्वऩूणा कामो एवॊ मोजनाओॊ हे तु अनुकूर है । इस दौयान आऩको असधकाॊशत् राबदामक औय सकायात्भक ऩरयणाभ प्राद्ऱ हंगे। ऩरयवाय एवॊ सभिवगा का ऩूणा सहमोग प्राद्ऱ होगा औय सभम आनॊद ऩूवक ा त्रफता सकते हं । इस दौयान आऩको को सही फदशा सभरेगी। आऩको आकस्स्भक धन राब प्राद्ऱ हो सकता है । 16 से 30 ससतम्फय 2011 : आऩ अऩने कामा का अच्िा प्रदशान कयने भं सभथा हंगे। इद्श सभिो एवॊ ऩरयवाय के सदस्मो से उऩहाय प्राद्ऱ हो सकता हं । आऩका स्वास्थम कभजोय हो सकता हं आऩ फकसी शायीरयक कद्श से ऩीफडत हो सकते हं । सावधानी से आऩ योग भु ि हो सकते हं । आऩके साभास्जक कामो के सरमे रोग आऩकी तायीप कयं गे। प्रेभ सम्फडधं भं सपर यहं गे।

धनु:

1 से 15 ससतम्फय 2011 : आऩके असधनस्थ कभािायी से सहमोग प्राद्ऱ कय सकते हं । आऩके सॊग्रफहत धन को कहीॊ ऩूॊस्ज सनवेश कयना, धन सॊफसॊ धत रेन-दे न कयना इस सभम असधक राबदामक होगा। ऩूणा ऩरयश्रभ एवॊ भेहनत के कामा का सनस्द्ळत राब प्राद्ऱ होगे। खान-ऩान का त्रवशेष ध्मान यखने फक आवश्मकता यहे गी अडमथा आऩका ऩेट प्रबात्रवत हो सकता हं । 16 से 30 ससतम्फय 2011 : सभम आऩके भहत्वऩूणा कामो एवॊ मोजनाओॊ हे तु अनुकूर है । इस दौयान आऩको असधकाॊशत् राबदामक औय सकायात्भक ऩरयणाभ प्राद्ऱ हंगे। व्मवसासमक रुकावटो भं कभी आमेगी। इस अवसध के शुरु भं व्मवसासमक ऺेि का त्रवस्ताय होगा। ऩरयवाय एवॊ सभिवगा का ऩूणा सहमोग प्राद्ऱ होगा औय सभम आनॊद ऩूवक ा

त्रफता सकते हं ।

ससतम्फय 2011

69

भकय:

1 से 15 ससतम्फय 2011 : इस अवसध भं आम के नमे स्त्रोत प्राद्ऱ होने के मोग फन यहे हं । इस दौयान व्मवसामीक मािाएॊ राबदामक हो सकती हं । कोई अत्रप्रम घटना हो सकती हं सावधान यहं । फहुभूल्म वस्तुओॊ को सॊबारकय यखे गुभ हो सकती हं मा िोरय हो सकती हं । आऩके बीतय दस ू यो के सरमे आसथाक एवॊ सनजी तौय ऩय सहामक होने के बाव जाग्रत हो सकते हं । 16 से 30 ससतम्फय 2011 : नई ऩरयमोजनाओॊ को शुरू कयने औय भहत्वऩूणा सनणाम रेने हे तु सभम

पामदे भॊद सात्रफत हो सकता हं । बूसभ-बवन इत्मादी भं ऩूॊस्ज सनवेश राबप्रद

यहे गा। नौकयी-व्मवसाम भं उनासत होगी। व्मवसामीक कामो के सरमे आऩको कजा रेना ऩड सकता हं जो राब प्रद ससद्ध हो सकता हं ।

कामा फक व्मस्तता, अत्मासधक बाग-दौड के कायण आऩको थकावट हो

सकती हं ।

कुॊब:

1 से 15 ससतम्फय 2011 : नमे कामो एवॊ मोजनाओॊ राब प्राद्ऱ होता यहे गा।

आऩके बौसतक सुख साधनो भं वृत्रद्ध होगी। व्मवसामीक कमो भं नमे अवसय प्राद्ऱ हो सकते हं । ऋण रेने-दे न से सॊफॊसधत कामो एवॊ सनणामो को टारना राबप्रद हो सकता हं । असनमभीत सभम ऩय बोजन कयना स्वास्थ्म को प्राबावीत कय सकता हं । इस दौयान व्मवसामीक मािाएॊ स्थगीत कयना उसित यहे गा। 16 से 30 ससतम्फय 2011 : इस दौयान क्रम-त्रवक्रम सॊफॊसधत भाभरो स्थसगत कयना उसित यहे गा अडमथा राब के स्थान ऩय नुकसान हो सकता हं ।

दोस्तं औय ऩरयवाय के

रोगो का सहमोग प्राद्ऱ होगा। आऩ भानससक तनाव से ग्रस्त हो सकते हं । अऩने खान-ऩान का त्रवशेष ध्मान यखे। इस अवसध भं असधक बोजन कयना ऩेट की सभस्माओॊ से ग्रस्त कय सकता हं । अत् सावधान यहं ।

भीन: 1 से 15 ससतम्फय 2011 : भहत्वऩूणा सनणमा रेने के सरए एवॊ भहत्वऩूणा मोजनाओॊ को अभर भं राने हे तु उत्तभ सभम यहे गा। ऩूवा से िर यहे कामो भं साभाडम राब प्राद्ऱ कय सकते हं । आऩके शिु ऩय आऩका प्रबाव यहे गा। जीवन साथी से सॊफॊधं भं सुधाय होगा। मािा सुखदाई औय परदाई यहे गी। ऩारयवारयक जीवन से आऩको खुसशमॉॊ एवॊ सॊतोष सभरेगा। 16 से 30 ससतम्फय 2011 : नौकयी-व्मवसाम भं सॊफॊधो का सूक्ष्भ अवरोकन कयना राब प्रद यहे गा। ऋण सॊफस्डधत रेन-दे न हे तु स्स्थती अनुकूर है । उच्िासधकायी एवॊ सहकभािायी का सहमोग प्राद्ऱ होगा।बौसतक सुख साधनो फक खयीदायी कय सकते हं । धन सम्फस्डधत त्रवषमं भं अत्मासधक व्मम होने की सम्बावना है। धासभाक औय आध्मास्त्भक कामो भं रुसि फढे गी।

ससतम्फय 2011

70

यासश यत्न भूॊगा

हीया

ऩडना

भोती

Red Coral

Diamond (Special)

Green Emerald

Naturel Pearl (Special)

(Special) 5.25" Rs. 1050 6.25" Rs. 1250 7.25" Rs. 1450 8.25" Rs. 1800 9.25" Rs. 2100 10.25" Rs. 2800

10 cent 20 cent 30 cent 40 cent 50 cent

Rs. 4100 Rs. 8200 Rs. 12500 Rs. 18500 Rs. 23500

(Special) 5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 8.25" Rs. 19000 9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 28000

5.25" 6.25" 7.25" 8.25" 9.25" 10.25"

Rs. 910 Rs. 1250 Rs. 1450 Rs. 1900 Rs. 2300 Rs. 2800

भाणेक

Ruby (Old Berma) (Special) 2.25" Rs. 12500 3.25" Rs. 15500 4.25" Rs. 28000 5.25" Rs. 46000 6.25" Rs. 82000

ऩडना

Green Emerald (Special) 5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 8.25" Rs. 19000 9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 28000

** All Weight In Rati

All Diamond are Full White Colour.

** All Weight In Rati

** All Weight In Rati

** All Weight In Rati

** All Weight In Rati

तुरा यासश:

वृस्द्ळक यासश:

धनु यासश:

भकय यासश:

कुॊब यासश:

भीन यासश:

हीया

भूॊगा

ऩुखयाज

नीरभ

नीरभ

ऩुखयाज

Diamond (Special)

Red Coral

Y.Sapphire

B.Sapphire

B.Sapphire

Y.Sapphire

(Special)

(Special)

(Special)

(Special)

(Special)

10 cent 20 cent 30 cent 40 cent 50 cent

Rs. 4100 Rs. 8200 Rs. 12500 Rs. 18500 Rs. 23500

All Diamond are Full White Colour.

5.25" Rs. 1050 6.25" Rs. 1250 7.25" Rs. 1450 8.25" Rs. 1800 9.25" Rs. 2100 10.25" Rs. 2800 ** All Weight In Rati

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000

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* उऩमोि वजन औय भूल्म से असधक औय कभ वजन औय भूल्म के यत्न एवॊ उऩयत्न बी हभाये महा व्माऩायी भूल्म ऩय उसरब्ध हं ।

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

ससतम्फय 2011

71

ससतम्फय 2011 भाससक ऩॊिाॊग फद

वाय

भाह

ऩऺ

सतसथ

सभासद्ऱ

नऺि

सभासद्ऱ

मोग

सभासद्ऱ

कयण

सभासद्ऱ

िॊद्र

यासश

सभासद्ऱ

1

गुरु

बाद्रऩद

शुक्र

ितुथॉ

19:03:33 सििा

25:26:03 शुक्र

22:51:21 वस्णज

08:37:18 कडमा

14:34:00

2

शुक्र

बाद्रऩद

शुक्र

ऩॊिभी

16:10:36 स्वाती

23:29:21 ब्रह्म

19:28:25 फारव

16:10:36 तुरा

-

3

शसन

बाद्रऩद

शुक्र

षद्षी

13:46:44 त्रवशाखा

22:02:40 इडद्र

16:28:55 तैसतर

13:46:44 तुरा

16:21:00

4

यत्रव

बाद्रऩद

शुक्र

सद्ऱभी

11:52:51 अनुयाधा

21:07:51 वैधसृ त

13:55:40 वस्णज

11:52:51 वृस्द्ळक

5

सोभ

बाद्रऩद

शुक्र

अद्शभी

10:34:36 जेद्षा

20:47:43 त्रवषकुॊब

11:50:32 फव

20:47:00 10:34:36 वृस्द्ळक

6

भॊगर बाद्रऩद

शुक्र

नवभी

09:50:05 भूर

20:58:32 प्रीसत

10:11:39 कौरव

09:50:05 धनु

-

7

फुध

बाद्रऩद

शुक्र

दशभी

09:38:24 ऩूवााषाढ़

21:41:12 आमुष्भान 08:59:01 गय

09:38:24 धनु

27:56:00

8

गुरु

बाद्रऩद

शुक्र

एकादशी

09:54:49 उत्तयाषाढ़

22:51:04 सौबाग्म

08:08:53 त्रवत्रद्श

09:54:49 भकय

-

9

शुक्र

बाद्रऩद

शुक्र

द्रादशी

10:37:30 श्रवण

24:24:22 शोबन

07:39:22 फारव

10:37:30 भकय

-

10

शसन

बाद्रऩद

शुक्र

िमोदशी

11:43:37 धसनद्षा

26:17:22 असतगॊड

07:27:40 तैसतर

11:43:37 भकय

13:18:00

11

यत्रव

बाद्रऩद

शुक्र

ितुदाशी

13:10:21 शतसबषा

28:30:58 सुकभाा

07:31:55 वस्णज

13:10:21 कुॊब

-

12

सोभ

बाद्रऩद

शुक्र

ऩूस्णाभा

14:56:46 ऩूवााबाद्रऩद

31:02:24 धृसत

07:53:01 फव

14:56:46 कुॊब

24:23:00

13

भॊगर आस्द्वन

कृ ष्ण

एकभ

17:01:01 ऩूवााबाद्रऩद

07:01:57 शूर

08:26:19 कौरव

17:01:01 भीन

-

14

फुध

आस्द्वन

कृ ष्ण

फद्रतीमा

19:20:15 उत्तयाबाद्रऩद

09:49:19 गॊड

09:12:45 तैसतर

06:09:56 भीन

-

15

गुरु

आस्द्वन

कृ ष्ण

तृतीमा

21:49:48 ये वसत

12:46:59 वृत्रद्ध

10:07:36 वस्णज

08:33:51 भीन

12:48:00

16

शुक्र

आस्द्वन

कृ ष्ण

ितुथॉ

24:24:02 अस्द्वनी

15:51:13 रुव

11:08:06 फव

11:06:13 भेष

-

17

शसन

आस्द्वन

कृ ष्ण

ऩॊिभी

26:49:50 बयणी

18:53:35 व्माघात

12:06:43 कौरव

13:38:35 भेष

25:36:00

18

यत्रव

आस्द्वन

कृ ष्ण

षद्षी

28:57:49 कृ सतका

21:40:01 हषाण

12:56:53 गय

15:56:53 वृष

-

ससतम्फय 2011

72

30:34:53 योफहस्ण

24:00:11 वज्र

13:29:15 त्रवत्रद्श

06:35:22 भृगसशया

25:42:52 ससत्रद्ध

13:35:22

07:31:11 आद्रा

26:38:41 व्मसतऩात 13:06:48

07:37:18 ऩुनवासु

26:45:44 वरयमान

11:59:48 गय

06:51:51 ऩुष्म

26:00:18 ऩरयग्रह

10:11:33

द्रादशी

26:53:18 अद्ऴेषा

24:28:55 सशव

07:40:10 कौरव

16:09:14 कका

24:29:00

कृ ष्ण

िमोदशी

23:52:52 भघा

22:18:10 साध्म

24:57:33 गय

13:27:33 ससॊह

-

आस्द्वन

कृ ष्ण

ितुदाशी

20:24:18 ऩूवाापाल्गुनी

19:38:22 शुब

20:56:11 त्रवत्रद्श

10:11:11 ससॊह

24:55:00

27

भॊगर आस्द्वन

कृ ष्ण

अभावस्मा 16:38:53 उत्तयापाल्गुनी 16:40:45 शुक्र

16:43:34 ितुष्ऩाद 06:33:15 कडमा

-

28

फुध

आस्द्वन

शुक्र

एकभ

12:47:50 हस्त

13:37:31 ब्रह्म

12:23:27 फव

12:47:50 कडमा

24:08:00

29

गुरु

आस्द्वन

शुक्र

फद्रतीमा

09:03:21

सििा

10:40:51 इडद्र

08:08:58 कौरव

09:03:21 तुरा

-

30

शुक्र

आस्द्वन

शुक्र

तृतीमा

26:31:03

स्वाती

08:01:59 त्रवषकुॊब

24:27:18 वस्णज

15:58:14 तुरा

-

19

सोभ

आस्द्वन

कृ ष्ण

20

भॊगर आस्द्वन

कृ ष्ण

21

फुध

आस्द्वन

कृ ष्ण

22

गुरु

आस्द्वन

कृ ष्ण

23

शुक्र

आस्द्वन

कृ ष्ण

24

शसन

आस्द्वन

कृ ष्ण

25

यत्रव

आस्द्वन

26

सोभ

सद्ऱभी सद्ऱभी /अद्शभी अद्शभी/ नवभी

दशभी दशभी/

एकादशी

फव कौरव

त्रवत्रद्श

17:50:49 वृष

06:35:22

07:31:11

वृष

12:57:00

सभथुन -

20:49:00 07:37:18 सभथुन

06:51:51

कका

-

 क्मा आऩको उच्ि असधकायी से ऩये शानी हं ?  क्मा आऩकी अऩने सहकभािायी से अनफन होती हं ?  क्मा आऩके असधनस्थ कभािायी आऩकी फात नही भानते? मफद आऩको अऩने उच्ि असधकायी, सहकभािायी, असधनस्थ कभािायी से ऩये शानी हं । आऩके अनूकुर कामा नहीॊ कयते मा आऩको

कयने नहीॊ दे ते? वह आऩकी फात नहीॊ भानतं? त्रफना वजह आऩको ऩये शान कयते हं ? अन आवश्मक कामा आऩसे कयवाते हं । आऩका

प्रभोशन रुकवादे ते हं । उसित कामा कयने ऩय बी आऩके कामा भं नुक्श सनकारते हं ? मफद आऩ इसी तयह फक फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं तो आऩ उन असधकायी, सहकभॉ, असधनस्थकभॉ मा अडम फकसी व्मत्रि त्रवशेष के नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसधत्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय-ओफपस भं

स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मफद आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवाना िाहते हं , तो गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं ।

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ससतम्फय 2011

73

ससतम्फय-2011 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय फद

वाय

भाह

ऩऺ

सतसथ

सभासद्ऱ

प्रभुख व्रत-त्मोहाय गणेश जडभ, ससत्रद्धत्रवनामक ितुथॉ व्रत, श्रीगणेशोत्सव

1

गुरु

बाद्रऩद

शुक्र

ितुथॉ

19:03:33

प्रायॊ ब, श्रीकृष्ण करॊफकनी ितुथॉ, आज िडद्र-दशान सनत्रषद्ध, सौबाग्म ितुथॉ (ऩ.फॊ), जैन सॊवत्सयी उत्सव, सशवा ितुथॉ, ऋत्रष ऩॊिभी, भध्माह्न भं सद्ऱऋत्रष ऩूजन, गगा ऋत्रष जमॊती, अॊसगया ऋत्रष जमॊती, आकाश ऩॊिभी (जैन), जैन सॊवत्सयी

2

शुक्र

बाद्रऩद

शुक्र

ऩॊिभी

16:10:36

(ऩॊिभी ऩऺ), गुरु ऩॊिभी, ऩुष्ऩाॊजसर व्रत 5 फदन (फद.जैन), स्कडद (कुभाय) षद्षी व्रत, ऩमुष ा ण ऩवा प्रायॊ ब-दशरऺण व्रत 10 फदन (फद.जैन)

3

शसन

बाद्रऩद

शुक्र

षद्षी

13:46:44

फरदे व िठ, श्रीफरयाभ जमॊती, सूमष ा द्षी व्रत, रोराका षद्षी, सोभनाथ व्रत, िॊदन षद्षी (जैन), बानु सद्ऱभी ऩवा, भुिाबयण सद्ऱभी व्रत, सॊतान सद्ऱभी व्रत, रसरता सद्ऱभी, भहात्रववाय व्रत, भहारक्ष्भी व्रत 16 फदन का

4

यत्रव

बाद्रऩद

शुक्र

सद्ऱभी

11:52:51

प्रायॊ ब (यात्रिकारीन अद्शभी से), सूमा भहाऩूजा, सनदोष-शीर सद्ऱभी

(जैन), नवाखाई, अऩयास्जता

ऩूजा, दादा

बाई

नौयोजी जमॊती श्रीदग ु ााद्शभी

व्रत,

श्रीअडनऩूणााद्शभी

व्रत,

श्रीयाधायानी-

जडभोत्सव, स्वाभी हरयदास जमॊती, ज्मेद्षा गौयी ऩूजन,

5

सोभ

बाद्रऩद

शुक्र

अद्शभी

10:34:36

दधीसि जमॊती, नॊदाद्शभी, दव ू ााद्शभी, गॊगाद्शभी, शायदाद्शभी, रल्रेद्वयी जमॊती, सन:शल्म अद्शभी (फद.जैन), भदय टे येसा स्भृसत फदवस, सशऺक फदवस, डा.याधाकृष्णन जमॊती

6

भॊगर

बाद्रऩद

शुक्र

नवभी

09:50:05

7

फुध

बाद्रऩद

शुक्र

दशभी

09:38:24

8

गुरु

बाद्रऩद

शुक्र

एकादशी

09:54:49

नडदा नवभी, अदख नवभी, श्रीिॊद्र जमॊती, तर नवभी, ु श्रीभद्भागवत जमॊती, आिामा तुरसी ऩट्टायोहण (जैन) दशावताय दशभी व्रत, तेजा दशभी, श्रीयाभदे व ऩीय नवयाि, सुगडध-धूऩ दशभी, अनडत व्रत प्रायॊब (फद.जैन) ऩद्मा एकादशी व्रत, ऩाद्ळा-ऩरयवतानी एकादशी, जरझूरनी एकादशी, कभाा-धभाा एकादशी, त्रवद्व साऺयता फदवस, प्रदोष व्रत, वाभन द्रादशी व्रत, वाभनावताय जमॊती, त्रवजमा

9

शुक्र

बाद्रऩद

शुक्र

द्रादशी

10:37:30

भहाद्रादशी व्रत, श्रवण द्रादशी, हरयवासय प्रात: 10.36 फजे तक, बुवनेद्वयी भहात्रवद्या जमॊती, त्रिजुगी नायामण भेरा,

ससतम्फय 2011

74

श्माभफाफा द्रादशी, इडद्रऩूजन, ओनभ,

10

शसन

बाद्रऩद

शुक्र

िमोदशी

11:43:37

त्रवतस्ता िमोदशी, यत्निम व्रत 3 फदन (फद.जैन), गोत्रियाि व्रत प्रायॊब, गोत्रवॊद वल्रबऩॊत जमॊती, अनडत ितुदाशी व्रत, भध्माह्न भं अनडत बगवान का ऩूजन, अनडतसूि फाॊधना, अनडतनाग मािा (ज.कश्भीय),

11

यत्रव

बाद्रऩद

शुक्र

ितुदाशी

13:10:21

ऩासथाव गणेश-त्रवसजान, गणेशोत्सव ऩूण,ा ऩूस्णाभा व्रत, श्रीसत्मनायामण व्रत-कथा, त्रवनोफा बावे जमॊती, ऺभाऩणी ऩवा(फद.जैन), स्नान-दान हे तु उत्तभ बाद्रऩदी ऩूस्णाभा, उभा-भहे द्वय व्रत, रोकऩार-ऩूजन, गोत्रियाि

12

सोभ

बाद्रऩद

शुक्र

ऩूस्णाभा

14:56:46

एवॊ

बागवत

सद्ऱाह

ऩूण,ा

दसरऺण व्रत प्रायॊब, भताडतय से भहारम प्रायॊ ब, ऩूस्णाभा का श्राद्ध, प्रौद्षऩदी श्राद्ध, सॊडमाससमं का िातुभाास शुरू, सॊध्मा-ऩूजन प्रायॊ ब, अम्फाजी भेरा (गु), इडद्र-गोत्रवडद ऩूजा (उड़ीसा), ऩमुष ा ण ऩवा (फदगॊ.जैन) ऺभावाणी ऩवा (फद.जैन), त्रऩतृऩऺ प्रायॊ ब-श्राद्ध एवॊ तऩाण कभा 15 फदन, प्रसतऩदा

13

भॊगर

आस्द्वन

कृष्ण

एकभ

17:01:01

(ऩयीवा) का श्राद्ध, आस्द्वन भं दध ू को त्मागं, पसरी सन ् 1418 शुरू, अशूडम

शमन

व्रत,

षोडशकयण

व्रत

भुत्रद्षत्रवधान ऩूणा (फद.जैन),

14

फुध

आस्द्वन

कृष्ण

फद्रतीमा

19:20:15

15

गुरु

आस्द्वन

कृष्ण

तृतीमा

21:49:48

16

शुक्र

आस्द्वन

कृष्ण

ितुथॉ

24:24:02

फद्रतीमा (दज ू ) का श्राद्ध, याद्सबाषा फहडदी फदवस, भहादे वी वभाा जमॊती, तृतीमा (तीज) का श्राद्ध, सॊकद्शी गणेश ितुथॉ व्रत(िॊ.उ.या.8.22), ितुथॉ (िौथ) का श्राद्ध, त्रवद्व ओजोन फदवस त्रवद्वकभाा ऩूजा, ऩॊिभी का श्राद्ध, बयणी श्राद्ध, कडमा-

17

शसन

आस्द्वन

कृष्ण

ऩॊिभी

26:49:50

सॊक्रास्डत फदन 11.47 फजे, सॊक्रास्डत का ऩुण्मकार फदन 11.47 से सॊध्मा 6.11 तक, सॊकल्ऩ भं प्रमोजनीम ‘शयद् ऋतु’ प्रायॊ ब, भाधवदे व सतसथ, षद्षी (िठ) का श्राद्ध, कृत्रत्तका श्राद्ध, कत्रऩरा षद्षी, िडद्रषद्षी

18

यत्रव

आस्द्वन

कृष्ण

षद्षी

28:57:49

19

सोभ

आस्द्वन

कृष्ण

सद्ऱभी

30:34:53

सद्ऱभी का श्राद्ध, साफहफ सद्ऱभी,

20

भॊगर

आस्द्वन

कृष्ण

सद्ऱभी /अद्शभी

06:35:22

काराद्शभी

व्रत,

व्रत, अद्शभी

का

श्राद्ध, जीत्रवत्ऩुत्रिका

व्रत,

ससतम्फय 2011

75

भहारक्ष्भी अद्शभी- 16 फदवसीम व्रत ऩूण,ा कारी जमॊती (भताॊतय से), गमा भध्माद्शभी

21

फुध

आस्द्वन

कृष्ण

अद्शभी/ नवभी

07:31:11

22

गुरु

आस्द्वन

कृष्ण

दशभी

07:37:18

भातृनवभी सौबाग्मवती

स्स्त्रमं

(सुहासगनं)

का श्राद्ध,

जीत्रवत्ऩुत्रिका व्रत का ऩायण दशभी का श्राद्ध, गुरु नानकदे व की ऩुण्मसतसथ, ऩुष्म नऺि (यात्रि 10.22 से) एकादशी (ग्मायस) का श्राद्ध, इॊ फदया एकादशी व्रत, सूमा

23

शुक्र

आस्द्वन

कृष्ण

दशभी/ एकादशी

06:51:51

सामन तुरा भं फदन 2.36 फजे, शयद् सम्ऩात, सूमा दस्ऺण गोराद्र्ध भं, भहात्रवषुव फदवस, ऩुष्म नऺि (यात्रि 10.29 तक)

24

शसन

आस्द्वन

कृष्ण

द्रादशी

26:53:18

इॊ फदया एकादशी व्रत (सनम्फाका वैष्णव), द्रादशी (फायस) का श्राद्ध, सॊडमाससमं-मसत वैष्णवं का श्राद्ध प्रदोष व्रत, भाससक सशवयात्रि व्रत, िमोदशी (तेयस) का

25

यत्रव

आस्द्वन

कृष्ण

िमोदशी

23:52:52

श्राद्ध, भघा श्राद्ध, गजच्िामा मोग (त्रऩतयं को अऺम तृसद्ऱकायक), आिामा श्रीयाभ शभाा जमॊती, ऩॊ. दीनदमार उऩाध्माम जमॊती सशव ितुदाशी व्रत, दभ ु ायण श्राद्ध-शस्त्र, त्रवष, अस्ग्न, जर,

26

सोभ

आस्द्वन

कृष्ण

ितुदाशी

20:24:18

दघ ा ना से भृत का श्राद्ध, भताॊतय से ितुदाशी (िौदस) का ु ट श्राद्ध, फकडतु धभाग्रडथं के अनुसाय ितुदाशी का श्राद्ध अभावस्मा भं फकमा जाना शास्त्रोसित, त्रवद्व रृदम फदवस स्नान-दान-श्राद्ध

27

भॊगर

आस्द्वन

कृष्ण

अभावस्मा

हे तु

उत्तभ

अभावस्मा,

त्रऩतृत्रवसजानी

अभावस, सवात्रऩतृ-श्राद्ध, अऻात भयणसतसथ वारे ऩूवज ा ं का

16:38:53

श्राद्ध आज, धभाससडधु के भतानुसाय ऩूस्णाभा (ऩूनभ) का

श्राद्ध आज, भहारमा सभाद्ऱ, त्रवद्व ऩमाटन फदवस, याजा याभभोहन याम स्भृसत फदवस

शायदीम नवयाि प्रायॊ ब, करश-घट स्थाऩना, करश-स्थाऩना

28

फुध

आस्द्वन

शुक्र

एकभ

का भूहुत-ा प्रात: सूमोदम से फदन 1.38 फजे के भध्म शुब,

12:47:50

बगवती नौका ऩय आमीॊ, पर-धाडम उत्ऩादन भं कभी,

नाती द्राया नाना-नानी का श्राद्ध, भहायाज अग्रसेन एवॊ सयदाय बगत ससॊह जमॊती,

29

गुरु

आस्द्वन

शुक्र

फद्रतीमा

30

शुक्र

आस्द्वन

शुक्र

तृतीमा

09:03:21

नवीन िॊद्र-दशान, ईद्वयिॊद्र त्रवद्यासागय जमॊती, ये भडत-

ऩूजन, 26:31:03

वयदत्रवनामक ितुथॉ व्रत, भाना ितुथॉ (फॊगार, उड़ीसा),

यथोत्सव ितुथॉ, फंकं की अद्र्धवात्रषाक रेखाफॊदी

ससतम्फय 2011

76

गणेश रक्ष्भी मॊि प्राण-प्रसतत्रद्षत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दक ु ान-ओफपस-पैक्टयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी भं स्थात्रऩत कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । मॊि के प्रबाव से बाग्म भं उडनसत, भान-प्रसतद्षा एवॊ

व्माऩय भं वृत्रद्ध होती

हं एवॊ आसथाक स्स्थभं सुधाय होता हं । गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से बगवान गणेश औय दे वी रक्ष्भी का

Rs.550 से Rs.8200 तक

सॊमुि आशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।

भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीर राब प्राद्ऱ होता हं ।

त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए भॊगर

मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की कभी, गबाऩात से फिाव, फुखाय, िेिक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि के दद्श ु प्रबा,

भूल्म भाि Rs- 550

बूत-प्रेत बम, वाहन दघ ा नाओॊ, हभरा, िोयी इत्मादी से फिाव होता हं । ु ट

कुफेय मॊि कुफेय मॊि के ऩूजन से स्वणा राब, यत्न राब, ऩैतक ृ सम्ऩत्ती एवॊ गड़े हुए धन से राब प्रासद्ऱ फक काभना कयने वारे व्मत्रि के सरमे कुफेय मॊि अत्मडत सपरता दामक होता हं । एसा शास्त्रोि विन हं । कुफेय मॊि के ऩूजन से एकासधक स्त्रोि से धन का प्राद्ऱ

होकय धन सॊिम होता हं ।

ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस

ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस

ताम्र ऩि ऩय

(Gold Plated)

(Silver Plated)

(Copper)

साईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

भूल्म 640 1250 1850 2700 4600 8200

साईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

भूल्म 460 820 1250 2100 3700 6400

साईज 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- [email protected], [email protected]

भूल्म 370 550 820 1450 2450 4600

77

ससतम्फय 2011

नवयत्न जफड़त श्री मॊि शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जड़वा ने ऩय मह नवयत्न जफड़त श्री मॊि कहराता हं । सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जड़ कय रॉकेट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं । नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं । गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हं , वह गॊगा

जर के सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं । इस प्रकाय के नवयत्न जफड़त श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं ।

अद्श रक्ष्भी कवि अद्श रक्ष्भी कवि को धायण कयने से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं । स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद रक्ष्भी, (२)-धाडम रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का स्वत् अशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।

भूल्म भाि: Rs-1050

भॊि ससद्ध व्माऩाय वृत्रद्ध कवि व्माऩाय वृत्रद्ध कवि व्माऩाय के शीघ्र उडनसत के सरए उत्तभ हं । िाहं कोई बी व्माऩाय हो अगय उसभं राब के स्थान ऩय फाय-फाय हासन हो यही हं । फकसी प्रकाय से व्माऩाय भं फाय-फाय फाॊधा उत्ऩडन हो यही हो! तो सॊऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत भॊि

ससद्ध ऩूणा िैतडम मुि व्माऩात वृत्रद्ध मॊि को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थात्रऩत कयने से शीघ्र ही व्माऩाय वृत्रद्ध एवॊ

भूल्म भाि: Rs.370 & 730

सनतडतय राब प्राद्ऱ होता हं ।

भॊगर मॊि (त्रिकोण) भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीर राब प्राद्ऱ होता हं । त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं ।

भूल्म भाि Rs- 550

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78

ससतम्फय 2011

त्रववाह सॊफॊसधत सभस्मा क्मा आऩके रडके-रडकी फक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनके वैवाफहक जीवन भं खुसशमाॊ कभ होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं । एसी स्स्थती होने ऩय अऩने रडके -रडकी फक कुॊडरी का अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके वैवाफहक सुख को कभ कयने वारे दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं ।

सशऺा से सॊफॊसधत सभस्मा क्मा आऩके रडके-रडकी की ऩढाई भं अनावश्मक रूऩ से फाधा-त्रवघ्न मा रुकावटे हो यही हं ? फच्िो को अऩने ऩूणा ऩरयश्रभ एवॊ भेहनत का उसित पर नहीॊ सभर यहा? अऩने रडके-रडकी की कुॊडरी का त्रवस्तृत अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके त्रवद्या अध्ममन भं आनेवारी रुकावट एवॊ दोषो के कायण एवॊ उन दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं ।

क्मा आऩ फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं ? आऩके ऩास अऩनी सभस्माओॊ से िुटकाया ऩाने हे तु ऩूजा-अिाना, साधना, भॊि जाऩ इत्माफद कयने का सभम नहीॊ हं ? अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना फकसी त्रवशेष ऩूजा-अिाना, त्रवसध-त्रवधान के आऩको अऩने कामा भं सपरता प्राद्ऱ कय सके एवॊ आऩको अऩने जीवन के सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सके इस सरमे गुरुत्व कामाारत द्राया हभाया उद्दे श्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि त्रवसबडन प्रकाय के मडि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का है ।

ज्मोसतष सॊफॊसधत त्रवशेष ऩयाभशा ज्मोसत त्रवऻान, अॊक ज्मोसतष, वास्तु एवॊ आध्मास्त्भक ऻान सं सॊफॊसधत त्रवषमं भं हभाये 30 वषो से असधक वषा के अनुबवं के साथ ज्मोसतस से जुडे नमे-नमे सॊशोधन के आधाय ऩय आऩ अऩनी हय सभस्मा के सयर सभाधान प्राद्ऱ कय सकते हं ।

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Email Us:- [email protected], [email protected]

ओनेक्स जो व्मत्रि ऩडना धायण कयने भे असभथा हो उडहं फुध ग्रह के उऩयत्न ओनेक्स को धायण कयना िाफहए।

उच्ि सशऺा प्रासद्ऱ हे तु औय स्भयण शत्रि के त्रवकास हे तु ओनेक्स यत्न की अॊगूठी को दामं हाथ की सफसे िोटी उॊ गरी मा रॉकेट फनवा कय गरे भं धायण कयं । ओनेक्स यत्न धायण कयने से त्रवद्या-फुत्रद्ध की प्रासद्ऱ हो होकय स्भयण शत्रि का त्रवकास होता हं ।

ससतम्फय 2011

79

ससतम्फय 2011 -त्रवशेष मोग कामा ससत्रद्ध मोग फदनाॊक मोग अवसध

फदनाॊक

मोग अवसध

9

सूमोदम से यात्रि 12.23 तक

19

सम्ऩूणा फदन-यात

13

प्रात: 7.02 से फदन-यात

22

सम्ऩूणा फदन-यात

15

सूमोदम से फदन-यात

28

सूमोदम से 1.38 तक

16

सूमोदम से फदन 3.50 तक अभृत मोग

19

यात्रि 11.59 से यातबय

यात्रि 2.44 से सूमोदम तक

22/23

फद्रऩुष्कय (दोगुना पर) मोग 20

सूमोदम से प्रात: 6.34 तक त्रिऩुष्कय मोग (तीनगुना पर)

3

फदन 1.45 से यात्रि 10.02 तक गुरु-ऩुष्माभृत मोग

22/23 ससतॊफय को यात्रि 2.44 से सूमोदम तक

मोग पर : 

कामा ससत्रद्ध मोग भे फकमे गमे शुब कामा भे सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ होती हं, एसा शास्त्रोि विन हं ।



फद्रऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हं । एसा शास्त्रोि विन हं ।



त्रिऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हं । एसा शास्त्रोि विन हं ।



गुरु ऩुष्माभृत मोग भं फकमे गमे फकमे गमे शुब कामा भे शुब परो की प्रासद्ऱ होती हं , एसा शास्त्रोि विन हं ।

दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका गुसरक कार

मभ कार

(शुब)

(अशुब)

सभम अवसध

सभम अवसध

सभम अवसध

यत्रववाय

03:00 से 04:30

12:00 से 01:30

04:30 से 06:00

सोभवाय

01:30 से 03:00

10:30 से 12:00

07:30 से 09:00

भॊगरवाय

12:00 से 01:30

09:00 से 10:30

03:00 से 04:30

फुधवाय

10:30 से 12:00

07:30 से 09:00

12:00 से 01:30

गुरुवाय

09:00 से 10:30

06:00 से 07:30

01:30 से 03:00

शुक्रवाय

07:30 से 09:00

03:00 से 04:30

10:30 से 12:00

शसनवाय

06:00 से 07:30

01:30 से 03:00

09:00 से 10:30

वाय

याहु कार (अशुब)

ससतम्फय 2011

80

फदन के िौघफडमे सभम

यत्रववाय

सोभवाय

भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय

शुक्रवाय

शसनवाय

06:00 से 07:30

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

शुब

िर

कार

07:30 से 09:00

िर

कार

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

शुब

09:00 से 10:30

राब

शुब

िर

कार

उद्रे ग

अभृत

योग

10:30 से 12:00

अभृत

योग

राब

शुब

िर

कार

उद्रे ग

12:00 से 01:30

कार

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

शुब

िर

01:30 से 03:00

शुब

िर

कार

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

03:00 से 04:30

योग

राब

शुब

िर

कार

उद्रे ग

अभृत

04:30 से 06:00

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

शुब

िर

कार

यात के िौघफडमे सभम

यत्रववाय

सोभवाय

भॊगरवाय

फुधवाय गुरुवाय

शुक्रवाय

शसनवाय

06:00 से 07:30

शुब

िर

कार

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

07:30 से 09:00

अभृत

योग

राब

शुब

िर

कार

उद्रे ग

09:00 से 10:30

िर

कार

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

शुब

10:30 से 12:00

योग

राब

शुब

िर

कार

उद्रे ग

अभृत

12:00 से 01:30

कार

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

शुब

िर

01:30 से 03:00

राब

शुब

िर

कार

उद्रे ग

अभृत

योग

03:00 से 04:30

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

शुब

िर

कार

04:30 से 06:00

शुब

िर

कार

उद्रे ग

अभृत

योग

राब

शास्त्रोि भत के अनुशाय मफद फकसी बी कामा का प्रायॊ ब शुब भुहूता मा शुब सभम ऩय फकमा जामे तो कामा भं सपरता

प्राद्ऱ होने फक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हं । इस सरमे दै सनक शुब सभम िौघफड़मा दे खकय प्राद्ऱ फकमा जा सकता हं ।

नोट: प्राम् फदन औय यात्रि के िौघफड़मे फक सगनती क्रभश् सूमोदम औय सूमाास्त से फक जाती हं । प्रत्मेक िौघफड़मे फक अवसध 1 घॊटा 30 सभसनट अथाात डे ढ़ घॊटा होती हं । सभम के अनुसाय िौघफड़मे को शुबाशुब तीन बागं भं फाॊटा जाता हं , जो क्रभश् शुब, भध्मभ औय अशुब हं ।

िौघफडमे के स्वाभी ग्रह

* हय कामा के सरमे शुब/अभृत/राब का

शुब िौघफडमा

भध्मभ िौघफडमा

अशुब िौघफड़मा

िौघफडमा स्वाभी ग्रह

िौघफडमा स्वाभी ग्रह

िौघफडमा

स्वाभी ग्रह

शुब

गुरु

िय

उद्बे ग

सूमा

अभृत

िॊद्रभा

कार

शसन

राब

फुध

योग

भॊगर

शुक्र

िौघफड़मा उत्तभ भाना जाता हं । * हय कामा के सरमे िर/कार/योग/उद्रे ग का िौघफड़मा उसित नहीॊ भाना जाता।

ससतम्फय 2011

81

फदन फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक वाय

1.घॊ

2.घॊ

3.घॊ

4.घॊ

5.घॊ

6.घॊ

7.घॊ

8.घॊ

9.घॊ

यत्रववाय

सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

सोभवाय

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

भॊगरवाय

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

फुधवाय

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

गुरुवाय

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

शुक्रवाय

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

शसनवाय

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

िॊद्र

10.घॊ 11.घॊ 12.घॊ

यात फक होया – सूमाास्त से सूमोदम तक यत्रववाय

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

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भॊगर

सूमा

शुक्र

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भॊगरवाय

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुधवाय

सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरुवाय

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्रवाय

भॊगर

सूमा

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फुध

शसन

गुरु

भॊगर

सूमा

शुक्र

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शसनवाय

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर सूमा

शुक्र

फुध

िॊद्र

शसन

गुरु

भॊगर

िॊद्र

होया भुहूता को कामा ससत्रद्ध के सरए ऩूणा परदामक एवॊ अिूक भाना जाता हं , फदन-यात के २४ घॊटं भं शुब-अशुब सभम को सभम से ऩूवा ऻात कय अऩने कामा ससत्रद्ध के सरए प्रमोग कयना िाफहमे।

त्रवद्रानो के भत से इस्च्ित कामा ससत्रद्ध के सरए ग्रह से सॊफॊसधत होया का िुनाव कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं ।  सूमा फक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हं ।  िॊद्रभा फक होया सबी कामं के सरमे उत्तभ होती हं ।  भॊगर फक होया कोटा-किेयी के कामं के सरमे उत्तभ होती हं ।  फुध फक होया त्रवद्या-फुत्रद्ध अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हं ।  गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ त्रववाह के सरमे उत्तभ होती हं ।  शुक्र फक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हं ।  शसन फक होया धन-द्रव्म सॊफॊसधत कामा के सरमे उत्तभ होती हं ।

ससतम्फय 2011

82

ग्रह िरन ससतम्फय -2011 Day 1

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सवा योगनाशक मॊि/कवि भनुष्म अऩने जीवन के त्रवसबडन सभम ऩय फकसी ना फकसी साध्म मा असाध्म योग से ग्रस्त होता हं । उसित उऩिाय से ज्मादातय साध्म योगो से तो भुत्रि सभर जाती हं , रेफकन कबी-कबी साध्म योग होकय बी असाध्मा होजाते हं , मा कोइ असाध्म योग से ग्रससत होजाते हं । हजायो राखो रुऩमे खिा कयने ऩय बी असधक राब प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता। डॉक्टय द्राया फदजाने वारी दवाईमा अल्ऩ सभम के सरमे कायगय सात्रफत होती हं , एसस स्स्थती भं राबा प्रासद्ऱ के सरमे व्मत्रि एक डॉक्टय से दस ू ये डॉक्टय के िक्कय रगाने को फाध्म हो जाता हं । बायतीम ऋषीमोने अऩने मोग साधना के प्रताऩ से योग शाॊसत हे तु त्रवसबडन आमुवेय औषधो के असतरयि मॊि, भॊि एवॊ तॊि उल्रेख अऩने ग्रॊथो भं कय भानव जीवन को राब प्रदान कयने का साथाक प्रमास हजायो वषा ऩूवा फकमा था। फुत्रद्धजीवो के भत से जो व्मत्रि जीवनबय अऩनी फदनिमाा ऩय सनमभ, सॊमभ यख कय आहाय ग्रहण कयता हं , एसे व्मत्रि को त्रवसबडन योग से ग्रससत होने की सॊबावना कभ होती हं । रेफकन आज के फदरते मुग भं एसे व्मत्रि बी बमॊकय योग से ग्रस्त होते फदख जाते हं । क्मोफक सभग्र सॊसाय कार के अधीन हं । एवॊ भृत्मु सनस्द्ळत हं स्जसे त्रवधाता के अरावा औय कोई टार नहीॊ सकता, रेफकन योग होने फक स्स्थती भं व्मत्रि योग दयू कयने का प्रमास तो अवश्म कय सकता हं ।

इस सरमे मॊि भॊि एवॊ तॊि के कुशर जानकाय से मोग्म भागादशान रेकय व्मत्रि योगो से भुत्रि ऩाने का मा उसके प्रबावो को कभ कयने का प्रमास बी अवश्म कय सकता हं । ज्मोसतष त्रवद्या के कुशर जानकय बी कार ऩुरुषकी गणना कय अनेक योगो के अनेको यहस्म को उजागय कय सकते हं । ज्मोसतष शास्त्र के भाध्मभ से योग के भूरको ऩकडने भे सहमोग सभरता हं , जहा आधुसनक सिफकत्सा शास्त्र

अऺभ होजाता हं वहा ज्मोसतष शास्त्र द्राया योग के भूर(जड़) को ऩकड कय उसका सनदान कयना राबदामक एवॊ उऩामोगी ससद्ध होता हं । हय व्मत्रि भं रार यॊ गकी कोसशकाए ऩाइ जाती हं , स्जसका सनमभीत त्रवकास क्रभ फद्ध तयीके से होता यहता हं । जफ इन कोसशकाओ के क्रभ भं ऩरयवतान होता है मा त्रवखॊफडन होता हं तफ व्मत्रि के शयीय भं स्वास्थ्म सॊफॊधी त्रवकायो उत्ऩडन होते हं । एवॊ इन कोसशकाओ का सॊफॊध नव ग्रहो के साथ होता हं । स्जस्से योगो के होने के कायणा व्मत्रिके जडभाॊग से दशा-भहादशा एवॊ ग्रहो फक गोिय भं स्स्थती से प्राद्ऱ होता हं । सवा योग सनवायण कवि एवॊ भहाभृत्मुॊजम मॊि के भाध्मभ से व्मत्रि के जडभाॊग भं स्स्थत कभजोय एवॊ ऩीफडत ग्रहो के अशुब प्रबाव को कभ कयने का कामा सयरता ऩूवक ा फकमा जासकता हं । जेसे हय व्मत्रि को ब्रह्माॊड फक उजाा एवॊ ऩृथ्वी का गुरुत्वाकषाण फर प्रबावीत कताा हं फठक उसी प्रकाय कवि एवॊ मॊि के भाध्मभ से ब्रह्माॊड फक उजाा के सकायात्भक प्रबाव से व्मत्रि को सकायात्भक उजाा प्राद्ऱ होती हं स्जस्से योग के प्रबाव को कभ कय योग भुि कयने हे तु सहामता सभरती हं । योग सनवायण हे तु भहाभृत्मुॊजम भॊि एवॊ मॊि का फडा भहत्व हं । स्जस्से फहडद ू सॊस्कृ सत का प्राम् हय व्मत्रि

भहाभृत्मुॊजम भॊि से ऩरयसित हं ।

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ससतम्फय 2011

कवि के राब : 

एसा शास्त्रोि विन हं स्जस घय भं भहाभृत्मुॊजम मॊि स्थात्रऩत होता हं वहा सनवास कताा हो नाना प्रकाय फक आसध-व्मासध-उऩासध से यऺा होती हं ।



ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतडम मुि सवा योग सनवायण कवि फकसी बी उम्र एवॊ जासत धभा के रोग िाहे स्त्री हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हं ।



जडभाॊगभं अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रसतकूरता से योग उतऩडन होते हं ।



कुि योग सॊक्रभण से होते हं एवॊ कुि योग खान-ऩान फक असनमसभतता औय अशुद्धतासे उत्ऩडन होते हं । कवि एवॊ मॊि द्राया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नद्श कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण प्राद्ऱ कयने हे तु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हं ।



आज के बौसतकता वादी आधुसनक मुगभे अनेक एसे योग होते हं , स्जसका उऩिाय ओऩये शन औय दवासे बी कफठन हो जाता हं । कुि योग एसे होते हं स्जसे फताने भं रोग फहिफकिाते हं शयभ अनुबव कयते हं एसे योगो को योकने हे तु एवॊ उसके उऩिाय हे तु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि राबादासम ससद्ध होता हं ।



प्रत्मेक व्मत्रि फक जेसे-जेसे आमु फढती हं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा होती जाती हं । स्जसके साथ अनेक प्रकाय के त्रवकाय ऩैदा होने रगते हं एसी स्स्थती भं उऩिाय हे तु सवायोगनाशक कवि एवॊ मॊि परप्रद होता हं ।



स्जस घय भं त्रऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक फह नऺिभे जडभ रेते हं, तफ उसकी भाता के सरमे असधक कद्शदामक स्स्थती होती हं । उऩिाय हे तु भहाभृत्मुॊजम मॊि परप्रद होता हं ।



स्जस व्मत्रि का जडभ ऩरयसध मोगभे होता हं उडहे होने वारे भृत्मु तुल्म कद्श एवॊ होने वारे योग, सिॊता भं उऩिाय हे तु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि शुब परप्रद होता हं ।

नोट:- ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतडम मुि सवा योग सनवायण कवि एवॊ मॊि के फाये भं असधक जानकायी हे तु हभ से सॊऩका कयं ।

Declaration Notice    

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भॊि ससद्ध कवि

भॊि ससद्ध कवि को त्रवशेष प्रमोजन भं उऩमोग के सरए औय शीघ्र प्रबाव शारी फनाने के सरए तेजस्वी भॊिो द्राया शुब भहूता भं शुब फदन को तैमाय फकमे जाते है . अरग-अरग कवि तैमाय कयने केसरए अरग-अरग तयह के भॊिो का प्रमोग फकमा जाता है .

 क्मं िुने भॊि ससद्ध कवि?  उऩमोग भं आसान कोई प्रसतफडध नहीॊ  कोई त्रवशेष सनसत-सनमभ नहीॊ  कोई फुया प्रबाव नहीॊ  कवि के फाये भं असधक जानकायी हे तु

कवि सूसि

सवा कामा ससत्रद्ध कवि - 3700/-

ऋण भुत्रि कवि - 730/-

त्रवयोध नाशक कविा- 550/-

सवाजन वशीकयण कवि - 1050/-*

नवग्रह शाॊसत कवि- 730/-

अद्श रक्ष्भी कवि - 1050/-

तॊि यऺा कवि- 730/-

वशीकयण कवि- 550/-* (2-3 व्मत्रिके सरए)

आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ कवि-910/-

शिु त्रवजम कवि - 640/- *

नज़य यऺा कवि - 460/-

बूसभ राब कवि - 910/-

ऩदं उडनसत कवि- 640/-

व्माऩय वृत्रद्ध कवि - 370/-

सॊतान प्रासद्ऱ कवि - 910/-

धन प्रासद्ऱ कवि- 640/-

ऩसत वशीकयण कवि - 370/-*

कामा ससत्रद्ध कवि - 910/-

त्रववाह फाधा सनवायण कवि- 640/-

काभ दे व कवि - 820/-

भस्स्तष्क ऩृत्रद्श वधाक कवि- 640/-

दब ु ााग्म नाशक कवि - 370/-

जगत भोहन कवि -730/-*

काभना ऩूसता कवि- 550/-

स्ऩे -व्माऩाय वृत्रद्ध कवि - 730/-

त्रवघ्न फाधा सनवायण कवि- 550/-

ऩत्नी वशीकयण कवि - 460/-*

सयस्वती कवक - 370/- कऺा+ 10 के सरए

सयस्वती कवक- 280/- कऺा 10 तक के सरए वशीकयण कवि - 280/-* 1 व्मत्रि के सरए

*कवि भाि शुब कामा मा उद्दे श्म के सरमे

GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/ Email Us:- [email protected], [email protected] (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION) (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)

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YANTRA LIST Our Splecial Yantra 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10

12 – YANTRA SET VYAPAR VRUDDHI YANTRA BHOOMI LABHA YANTRA TANTRA RAKSHA YANTRA AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA PADOUNNATI YANTRA RATNE SHWARI YANTRA BHUMI PRAPTI YANTRA GRUH PRAPTI YANTRA KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA

ससतम्फय 2011

EFFECTS For all Family Troubles For Business Development For Farming Benefits For Protection Evil Sprite For Unexpected Wealth Benefits For Getting Promotion For Benefits of Gems & Jewellery For Land Obtained For Ready Made House -

Shastrokt Yantra 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42

AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) BHAGYA VARDHAK YANTRA BHAY NASHAK YANTRA CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA DARIDRA VINASHAK YANTRA DHANDA POOJAN YANTRA DHANDA YAKSHANI YANTRA GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) GARBHA STAMBHAN YANTRA GAYATRI BISHA YANTRA HANUMAN YANTRA JWAR NIVARAN YANTRA JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA YANTRA KALI YANTRA KALPVRUKSHA YANTRA KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) KANAK DHARA YANTRA KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA KARYA SHIDDHI YANTRA  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA KRISHNA BISHA YANTRA KUBER YANTRA LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA LAKSHAMI GANESH YANTRA MAHA MRUTYUNJAY YANTRA MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA NAVDURGA YANTRA

Blessing of Durga Win over Enemies Blessing of Bagala Mukhi For Good Luck For Fear Ending Blessing of Chamunda & Navgraha Blessing of Chhinnamasta For Poverty Ending For Good Wealth For Good Wealth Blessing of Lord Ganesh For Pregnancy Protection Blessing of Gayatri Blessing of Lord Hanuman For Fewer Ending For Astrology & Spritual Knowlage Blessing of Kali For Fullfill your all Ambition Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga Blessing of Maha Lakshami For Successes in work For Successes in all work Blessing of Lord Krishna Blessing of Kuber (Good wealth) For Obstaele Of marriage Blessing of Lakshami & Ganesh For Good Health Blessing of Shiva For Fullfill your all Ambition For Marriage with choice able Girl Blessing of Durga

ससतम्फय 2011

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YANTRA LIST

43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64

EFFECTS

NAVGRAHA SHANTI YANTRA NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA  SURYA YANTRA  CHANDRA YANTRA  MANGAL YANTRA  BUDHA YANTRA  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA)  SUKRA YANTRA  SHANI YANTRA (COPER & STEEL)  RAHU YANTRA  KETU YANTRA PITRU DOSH NIVARAN YANTRA PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA RAM YANTRA RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA SANKAT MOCHAN YANTRA SANTAN GOPAL YANTRA SANTAN PRAPTI YANTRA SARASWATI YANTRA SHIV YANTRA

For good effect of 9 Planets For good effect of 9 Planets Good effect of Sun Good effect of Moon Good effect of Mars Good effect of Mercury Good effect of Jyupiter Good effect of Venus Good effect of Saturn Good effect of Rahu Good effect of Ketu For Ancestor Fault Ending For Pregnancy Pain Ending For Benefits of State & Central Gov Blessing of Ram Blessing of Riddhi-Siddhi For Disease- Pain- Poverty Ending For Trouble Ending Blessing Lorg Krishana For child acquisition For child acquisition Blessing of Sawaswati (For Study & Education) Blessing of Shiv Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & 65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA) Peace SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth 66 For Bad Dreams Ending 67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA For Vehicle Accident Ending 68 VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All 69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes For Bulding Defect Ending 70 VASTU YANTRA For Education- Fame- state Award Winning 71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan) 72 Attraction For office Purpose 73 VASI KARAN YANTRA Attraction For Female  MOHINI VASI KARAN YANTRA 74 Attraction For Husband  PATI VASI KARAN YANTRA 75 Attraction For Wife  PATNI VASI KARAN YANTRA 76 Attraction For Marriage Purpose  VIVAH VASHI KARAN YANTRA 77 Yantra Available @:- Rs- 190, 280, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..

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GURUTVA KARYALAY NAME OF GEM STONE

Emerald (ऩडना) Yellow Sapphire (ऩुखयाज) Blue Sapphire (नीरभ) White Sapphire (सफ़ेद ऩुखयाज) Bangkok Black Blue(फंकोक नीरभ) Ruby (भास्णक) Ruby Berma (फभाा भास्णक) Speenal (नयभ भास्णक/रारडी) Pearl (भोसत) Red Coral (4 jrh rd) (रार भूॊगा) Red Coral (4 jrh ls mij) (रार भूॊगा) White Coral (सफ़ेद भूॊगा) Cat’s Eye (रहसुसनमा) Cat’s Eye Orissa (उफडसा रहसुसनमा) Gomed (गोभेद) Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) Zarakan (जयकन) Aquamarine (फेरुज) Lolite (नीरी) Turquoise (फफ़योजा) Golden Topaz (सुनहरा) Real Topaz (उफडसा ऩुखयाज/टोऩज) Blue Topaz (नीरा टोऩज) White Topaz (सफ़ेद टोऩज) Amethyst (कटे रा) Opal (उऩर) Garnet (गायनेट) Tourmaline (तुभारीन) Star Ruby (सुमक ा ाडत भस्ण) Black Star (कारा स्टाय) Green Onyx (ओनेक्स) Real Onyx (ओनेक्स) Lapis (राजवात) Moon Stone (िडद्रकाडत भस्ण) Rock Crystal (स्फ़फटक) Kidney Stone (दाना फफ़यॊ गी) Tiger Eye (टाइगय स्टोन) Jade (भयगि) Sun Stone (सन ससताया) Diamond (हीया) (.05 to .20 Cent )

GENERAL

MEDIUM FINE

100.00 370.00 370.00 370.00 80.00 55.00 2800.00 300.00 30.00 55.00 90.00 15.00 18.00 210.00 15.00 300.00 150.00 190.00 50.00 15.00 15.00 60.00 60.00 50.00 15.00 30.00 30.00 120.00 45.00 10.00 09.00 60.00 15.00 12.00 09.00 09.00 03.00 12.00 12.00 50.00

500.00 900.00 900.00 900.00 150.00 190.00 3700.00 600.00 60.00 75.00 120.00 24.00 27.00 410.00 27.00 410.00 230.00 280.00 120.00 20.00 20.00 90.00 90.00 90.00 20.00 45.00 45.00 140.00 75.00 20.00 12.00 90.00 25.00 21.00 12.00 11.00 05.00 19.00 19.00 100.00

(Per Cent )

(Per Cent )

FINE

SUPER FINE

1200.00 1900.00 1500.00 2800.00 1500.00 2800.00 1500.00 2400.00 200.00 500.00 370.00 730.00 4500.00 10000.00 1200.00 2100.00 90.00 120.00 90.00 120.00 140.00 180.00 33.00 42.00 60.00 90.00 640.00 1800.00 60.00 90.00 640.00 1800.00 330.00 410.00 370.00 550.00 230.00 390.00 30.00 45.00 30.00 45.00 120.00 280.00 120.00 280.00 120.00 240.00 30.00 45.00 90.00 120.00 90.00 120.00 190.00 300.00 90.00 120.00 30.00 40.00 15.00 19.00 120.00 190.00 30.00 45.00 30.00 45.00 15.00 30.00 15.00 19.00 10.00 15.00 23.00 27.00 23.00 27.00 200.00 370.00 (PerCent )

SPECIAL

2800.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 1000.00 & above 1900.00 & above 21000.00 & above 3200.00 & above 280.00 & above 180.00 & above 280.00 & above 51.00 & above 120.00 & above 2800.00 & above 120.00 & above 2800.00 & above 550.00 & above 730.00 & above 500.00 & above 55.00 & above 55.00 & above 460.00 & above 460.00 & above 410.00& above 55.00 & above 190.00 & above 190.00 & above 730.00 & above 190.00 & above 50.00 & above 25.00 & above 280.00 & above 55.00 & above 100.00 & above 45.00 & above 21.00 & above 21.00 & above 45.00 & above 45.00 & above 460.00 & above

(Per Cent)

(Per Cent )

Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus *** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about

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ससतम्फय 2011

BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION We are mostly engaged in spreading the ancient knowledge of Astrology, Numerology, Vastu and Spiritual Science in the modern context, across the world. Our research and experiments on the basic principals of various ancient sciences for the use of common man. exhaustive guide lines exhibited in the original Sanskrit texts

BOOK APPOINTMENT PHONE/ CHAT CONSULTATION Please book an appointment with Our expert Astrologers for an internet chart . We would require your birth details and basic area of questions so that our expert can be ready and give you rapid replied. You can indicate the area of question in the special comments box. In case you want more than one person reading, then please mention in the special comment box . We shall confirm before we set the appointment. Please choose from :

PHONE/ CHAT CONSULTATION Consultation 30 Min.: Consultation 45 Min.: Consultation 60 Min.:

RS. 1250/-* RS. 1900/-* RS. 2500/-*

*While booking the appointment in Addvance

How Does it work Phone/Chat Consultation This is a unique service of GURUATVA KARYALAY where we offer you the option of having a personalized discussion with our expert astrologers. There is no limit on the number of question although time is of consideration. Once you request for the consultation, with a suggestion as to your convenient time we get back with a confirmation whether the time is available for consultation or not.  We send you a Phone Number at the designated time of the appointment  We send you a Chat URL / ID to visit at the designated time of the appointment  You would need to refer your Booking number before the chat is initiated  Please remember it takes about 1-2 minutes before the chat process is initiated.  Once the chat is initiated you can commence asking your questions and clarifications  We recommend 25 minutes when you need to consult for one persona Only and usually the time is sufficient for 3-5 questions depending on the timing questions that are put.  For more than these questions or one birth charts we would recommend 60/45 minutes Phone/chat is recommended  Our expert is assisted by our technician and so chatting & typing is not a bottle neck In special cases we don't have the time available about your Specific Questions We will taken some time for properly Analysis your birth chart and we get back with an alternate or ask you for an alternate. All the time mentioned is Indian Standard Time which is + 5.30 hr ahead of G.M.T. Many clients prefer the chat so that many questions that come up during a personal discussion can be answered right away. BOOKING FOR PHONE/ CHAT CONSULTATION PLEASE CONTECT

GURUTVA KARYALAY Call Us:- 91+9338213418, 91+9238328785. Email Us:- [email protected], [email protected], [email protected],

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ससतम्फय 2011

सूिना  ऩत्रिका भं प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं ।  रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन त्रविायो से सहभत हं।  नास्स्तक/ अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं ।  ऩत्रिका भं प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष मा फकसी बी स्थान मा घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हं ।  प्रकासशत रेख ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण मफद फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तत्रवक जीवन से भेर होता हं तो मह भाि एक सॊमोग हं ।  प्रकासशत सबी रेख बायसतम आध्मास्त्भक शास्त्रं से प्रेरयत होकय सरमे जाते हं । इस कायण इन त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक स्जडभेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं ।  अडम रेखको द्राया प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव फक स्जडभेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं । औय नाहीॊ रेखक के ऩते फठकाने के फाये भं जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं ।  ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं । फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।  ऩाठक द्राया फकसी बी प्रकाय फक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।  हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशध ॊ ान के आधाय ऩय सरखे होते हं । हभ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अडम प्रमोग मा उऩामोकी स्जडभेदायी नफहॊ रेते हं ।  मह स्जडभेदायी भॊि-मॊि मा अडम प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं , साभास्जक , कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकूर ऩरयणाभ सॊबव हं ।  हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अडम हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हं ।  ऩाठकं फक भाॊग ऩय एक फह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का असधकाय यखता हं । ऩाठकं को एक रेख के ऩून् प्रकाशन से राब प्राद्ऱ हो सकता हं ।  असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं । (सबी त्रववादो केसरमे केवर बुवनेद्वय डमामारम ही भाडम होगा।)

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ससतम्फय 2011

FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ससतम्फय -2011 सॊऩादक

सिॊतन जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग

गुरुत्व कामाारम

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ससतम्फय 2011

हभाया उद्दे श्म त्रप्रम आस्त्भम फॊधु/ फफहन जम गुरुदे व जहाॉ आधुसनक त्रवऻान सभाद्ऱ हो जाता है । वहाॊ आध्मास्त्भक ऻान प्रायॊ ब हो जाता है , बौसतकता का आवयण ओढे व्मत्रि जीवन भं हताशा औय सनयाशा भं फॊध जाता है , औय उसे अऩने जीवन भं गसतशीर होने के सरए भागा प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता क्मोफक बावनाए फह बवसागय है , स्जसभे भनुष्म की सपरता औय असपरता सनफहत है । उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेद्षकय सपरता है । सपरता को प्राद्ऱ कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ असधकाय है । ईसी सरमे हभायी शुब काभना सदै व आऩ के साथ है । आऩ अऩने कामा-उद्दे श्म एवॊ अनुकूरता हे तु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दर ा भॊि शत्रि से ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत सिज वस्तु का हभंशा ु ब प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे हभाया उद्दे श्म महीॊ हे की शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि सबी प्रकाय के मडि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का है ।

सूमा की फकयणे उस घय भं प्रवेश कयाऩाती है । जीस घय के स्खड़की दयवाजे खुरे हं।

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SEP 2011

ससतम्फय 2011

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