(16) Harikesh Meena Hindi.pdf

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पूव राज थान के लोक सािह य म िचि त समाज और सं कृित (करौली एवं सवाई माधोपुर िजले के िवशेष स दभ म)

कोटा िव विव ालय, कोटा क पीएच. डी. क उपािध हेतु तुत

शोध- ब ध

शोध-िनदशक : डॉ. पूरणमल मीना अ य , िह दी िवभाग

शोधाथ ह रकेश मीना या याता, िह दी

राजक य क या महािव ालय, सवाईमाधोपुर (राज.)

राजक य क या महािव ाय करौली (राज थान)

िह दी िवभाग कोटा िव विव ालय, कोटा 2016

डॉ. पूरणमल मीना अ य , िह दी िवभाग, राजक य क या महािव ालय, सवाईमाधोपुर (राज.)

माण-प मािणत िकया जाता है िक ी ह रकेश मीना ने कोटा िव विव ालय, कोटा क डॉ टर ऑफ िफलॉसफ (िह दी) क उपािध हेतु ‘पूव राज थान के लोक सािह य म िचि त समाज और सं कृित (करौली एवं सवाई माधोपुर िजले के िवशेष स दभ म)’ िवषय पर तु त शोध- ब ध मेरे िनदशन म पूण िकया है। इनका यह काय मौिलक तथा तरीय है। इस िनिम इ ह ने कािशत, अ कािशत एवं अ य साम ी का अनुशीलन िकया है। म इसे कोटा िव विव ालय, कोटा क पीएच.डी. क उपािध हेतु तुत करने क अनुमित देता हँ।

िदनांक :

डॉ. पूरणमल मीना (शोध-िनदशक)

पूव राज थान के लोक सािह य म िचि त समाज और सं कृ ित (करोली एवं सवाईमाधोपुर िजले के िवशेष स दभ म)

िवषयानु मिणका

ा कथन 1.

अ याय थम : राज थान का संगठना मक ढाँचा : एक प रचय

पृ सं या i-viii

1-42

— नामकरण और या या — भौगोिलक प रचय — ऐितहािसक संरचना (गठन) — पूव राज थान — करौली - सवाईमाधोपुर

2.

अ याय ि तीय : राज थान एवं पूव राज थान का लोकसािह य — लोक सािह य : अथ एवं व प — राज थानी लोकसािह य क अवधारणा — वग करण : प - ग प — लोकगीत, लोक कहावत, लोकपहेिलयां, लोकत ग — लोककथाएँ (बात), लोकगाथाएँ (पवाड़े), लोकना ( याल), लोकनृ य, लोकवा , लोकिव वास, लो रया, करौली सवाई माधोपुर का लोकसािह य।

43-117

3.

अ याय तृतीय : सं कृ ित एवं समाज का सामा य 118-154 अ ययन — सं कृ ित यु पि परक अथ एवं प रभाषा — िवकास का सोपान — भौगोिलक ि थित और सं कृ ित पर भाव : लोक सं कृ ित, प रभाषाएँ, मूलत व, उ े य — करौली सवाई माधोपुर िजले क लोकसं कृ ित : समाज, अथ प रभाषाएँ — भारतीय समाज — भारतीय समाज एवं सं कृ ित क िवशेषताएँ — सां कृ ितक बहलतावाद — िविवधता म एकता — सारांश

4.

अ याय चतुथ : करौली एवं सवाई माधोपुर िजले के लोक सािह य म िचि त सं कृ ित — थाप यकला — लोकमूितकला — लोक िच कला — लोकसंगीत — लोकवा — लोकनृ य — लोकसािह य — मंगलाचरण िवधान — दानशीलता

155-191

— ेम क मह ा — संसार क न वरता — सारांश।

5.

अ याय पंचम : करौली एवं सवाई माधोपुर के लोक सािह य म िचि त समाज

192-245

— प रवार — सं कार — लोको सव — िविभ न जाितयाँ (मीणा) — लोकदेवता — उपवास — त लोकिव वास ृ धानता — किष ृ प — समाज का िवकत

6.

अ याय ष ठ : पूव राज थान के लोक सािह य का वैि वक मह व

246-261

— अथ एवं व प — प रभाषाएँ — लोकसािह य — लोकसािह य का संर ण — पूव राज थान के लोकसािह य को करौली एवं सवाई माधोपुर का योगदान

उपसंहार

262-267

स दभ थ सूची

268-273

ा कथन िव व रंगमंच पर म न जाने िकतनी सं कृ ितय ने अपने वैभव का दशन िकया है तथा नाना सं कृ ितय के उ थान पतन क कथा दबी हई है , िक तु भारतीय सं कृ ित क अिमट छाप राज थानी सं कृ ित क िविश ट पहचान बन गई है। लोकसािह य म समाज व सं कृ ित को अपनी पर परा व रीितय , िढ़य , पुरातन लोकिव वास का समावेश होता है। भारतीय सं कृ ित सवजनिहताय व ‘वसुधैव कट ु ु बकम्’ क भावना से ओत- ोत है। येक नाग रक को अपने िवचार को कट करने क पूण वत ता है। िबना िकसी भेद -भाव के समान जाित, धम, स दाय व िबना िलंग भेद के सभी को धािमक, सामािजक, वैचा रक काय म सहभािगता का अिधकार ा त है। पूव राज थान क सां कृ ितक धरोहर क चचा कर तो राज थानी धरा के कण-कण म याग, तप व समपण, बिलदान क महक उठती है जो स पूण भारत के म तक म तेज को कट करती है। पूव राज थान के लोकसािह य म लोकसं कृ ित क अ ु ण और सवकािलक अमृतधारा वािहत होकर मानव मा के क याण का उद्घोष करती है। यह पर परा अतीत और वतमान को जोड़ने वाली कड़ी का काय करती है , जो समाज क आ मा का ितिब ब है। लोकजीवन क िविवध भंिगमाओं का अवलोकन लोकसं कृ ित म प ट ि गोचर है। शौय, राग-िवराग, िच तन मनन, आशाृ , पशु-पालन, नदी, तालाब, िनराशा, आदश क थापना, मयादा का पालन, किष

ii

फल-फल ू व ऋतुओं म होने वाले प रवतन का भाव मानवीय सोच म प रवतन कर सद् िवचार का उ मे ष कट करता है। यथाथ के धरातल पर मानव एकता का स देश देने म लोकसं कृ ित क महती भूिमका रहती है। पूव राज थान के करौली-सवाई माधोपुर े क सं कृ ित क िविश टता पिव तम तपोभूिम के थल से िमलने वाली सद् ेरणा का ही प रणाम है। यहाँ के येक ाणी का क य मातृभूिम क र ाथ सव व समपण क भावना रही है। राजा ह मीर के आदश का अनुसरण करना है। यहाँ के वन म िविभ न जीव-ज तुओं व पशुओं का वत िवचरण करना इस बात को प ट करता है िक वीरभूिम म सबको ृ म खली वत जीवन जीने का अिधकार है। कित ु साँस लेकर उ मु त गगन म पंिछय को उड़ने का अिधकार है, वैसे ही उ मु तता, व छ दता, अिभनवता, ठहराव, बहाव, गित म गमन, िनमलता एवं िविवधता तथा िम ी के िविवध रंग व उसक गंध क महक, लोकजीवन के िविवध रंग , िव वास -अिव वास , आ था, आ याि मक चेतना क अनुगूंज से स पू ण पूव अंचल म एक धुन सुनाई देती है। देवी-देवताओं क तीथ थली करौली क कै ला मैया, मदनमोहन जी, महावीर जी, ृ से स पूण रणथ भोर के गणेश जी, चौथ माता, िशवाड़ (ईशरदा) क कपा अंचलवािसय म ई वर के ित ढ़ आ था बनी हई है। पूव अंचल का लोक सािह य स पूण राज थान के लोकजीवन का उ कष है। करौली व सवाई माधोपुर े को िपछड़ा े मानते ह, िक तु लोकसािह य का अ ययन िकया तो वहाँ पया त सािह य है। लोक पर पराओं, देवी-देवताओं, ामीण व शहरी सं कृ ित म कोई िवशेष प रवतन न होकर मानव से मानव को जोड़ने क एक िविश ट पर परा है, िजसम हमारे यौहार, पव एवं उ सव म ातृभाव समानता व एकता क गूँज प ट प रलि त है। िविवध वग के स दाय , धमावलि बय के होने पर भी धम िनरपे ता है। असिह णु ता के िलए लोकसं कृ ित म कोई थान नह है।

iii

लोकसािह य व सं कृ ित का समावेश समाज म रहकर ही समझा जा सकता है। तुत शोध ब ध म सं कार , पर पराओं, िढ़य एवं पुरानी िवचारधाराओं का िव लेषणा मक अ ययन िकया है। तुत शोध- ब ध को छ: अ याय म िवभ त कर अनुसंधान तुत िकया है जो िन नानुसार है— ृ कर अ याय थम म राज थान देश के संगठना मक ढाँचे को वग कत उसक ाचीन पर पराओं का उ ले ख है। भारतीय सं कृ ित का िवकास व पतन दोन को तुत िकया है। राज थान नाम कै से पड़ा िफर इसके नाम म िकतनी बार प रवतन होकर राज थान नाम हआ। भौगोिलक ि से राज थान ांत का े फल, जनसं या क ि से पहले और आज म िकतना प रवतन हआ। ऐितहािसक स दभ म राज थान देश के े म चार िदशाओं म या- या मह व है। पूव राज थान क सीमा अ य देश से िकतनी जुड़ी है तथा उनका प रवेश भाषा सं कृ ित व समाज से तुलना मक अ ययन िकया है। पूव राज थान के करौली व सवाई माधोपुर िजल के आस-पास के िजल से िमलती-जुलती सं कृ ित व भाषा का प रचया मक अ ययन िकया है। अ याय ि तीय म राज थान देश व पूव राज थान के लोक सािह य का अनुसंधान िकया है। लोकसािह य का िवशद िववेचन अथ व प तथा प रभाषाएँ भारतीय एवं पा चा य िवचारक के मत के अनुसार तु त है। राज थानी लोकसािह य क अवधारणा को प ट िकया है , िफर राज थानी लोक सािह य को ग -प म बाँटा है तथा लोकगीत, लोककहावत, लोकपहेिलयाँ, लोकम आिद का िव तृ त वणन उदाहरण सिहत तुत है। ग म लोककथाएँ (बात), लोकगाथाएँ (पवाड़े), पूवाचल क सं कृ ित के िविवध उदाहरण देकर तु त िकये ह। लोकना ( याल), लोकनृ य के अंचल के उदाहरण ारा प ट करने का यास िकया है।

iv

लोकवा , लोकिव वास क चचा क है, लो रय के िविवध उदाहरण तु त ह। अ त म करौली िजले व सवाई माधोपुर िजले का लोकसािह य तुत िकया है। अ याय तृतीय म सं कृ ित समाज का सामा य अ ययन करते हए पूव राज थान के करौली सवाई माधोपुर े क लोकसं कृ ित के व प का िव लेषणा मक अ ययन िकया है। सं कृ ित के िविवध सोपान का प रचया मक अ ययन कर भौगोिलक ि थित व सां कृ ितक ि थित पर पड़ने वाले भाव तथा प रवेश क िवसंगितय का अ ययन िकया है। लोक सं कृ ित का प रचय, प रभाषाएँ, मूल त व एवं उ े य का प रचया मक िव लेषण तुत िकया है। साथ ही करौली व सवाई माधोपुर िजले क लोकसं कृ ित क अिवरल धारा का अमृतपान िकया है। समाज का अथ व प, भारतीय समाज, स यता, सां कृ ितक धरोहर, सं कृ ित क िवशेषताएँ उि लिखत ह। सां कृ ितक बहलतावाद, िविवधता म एकता के लोकसं कृ ित व समाज म चिलत करौली, सवाई माधोपुर के लोकसािह य के नवीन उदाहरण तुत-शोध- ब ध म संकिलत ह। अ त म सम िववेचन का सारांश तुत है। अ याय चतुथ म करौली एवं सवाई माधोपुर िजले के लोकसािह य म िचि त सं कृ ित का व प प रभाषाएँ एवं िवचारक के मत को तु त िकया है। थाप य कला, लोकमूितकला, लोक िच कला, लोकसंगीत, लोकवा , लोकनृ य, लोकसािह य, मंगलाचरण िवधान दानशीलता म लोकसािह य के िविवध उदाहरण का समावेश करते हए िव तृत चचा क है। ेम क मह ा, संसार क न वरता, बारह माह के यौहार का िवशद िववेचन तु त शोध- ब ध म उि लिखत है, जो ऊजावान जनसमुदाय के मुख से िनकलने वाले मधुर संगीत क तान से म मु ध करने वाले लोकसंगीत का भाव पू वाचल क धरोहर है।

v

अ याय प चम् म करौली सवाई मधोपुर े के लोक सािह य म िचि त समाज व लोक सािह य का सम वया मक व प लोक सािह य म िकतना भावशाली है। लोकसािह य से भािवत पूव अंचल के लोग के जनजीवन का खला ु द तावेज है। पौरािणक व ऐितहािसक प से पूव राज थान के दोन िजल — करौली व सवाई-माधोपुर—का िविश ट मह व रहा है। लोकसािह य ऐसी िवधा है जो लोकगीत, संगीत, लोकगाथाओं व लोककथाओं पर चलती है। भारतीय पर परा ‘वसुधैव कट ु ु बकम्’ वाली उि सं कृ ित प रवेश व िवचारधाराओं से समाज को न यता दान करती है। ाचीनकाल से संयु त प रवार म रहने वाले लोग म सहयोग पर पर ेम क भावना अंचलवािसय म ि गोचर होती है , लेिकन आज के वातावरण म व पा चा य िश ा के भाव म होने वाले प रवतन के कारण छोटा प रवार सुखी प रवार क धारणा मानवीय सोच भी बन चुक है। लेिकन पूव राज थानी लोकजीवन म याग, तप, ा, स मान अ तनकाल म भी चिलत है। तुत शोध- ब ध म क य परायणता से ओत- ोत सामािजक िवचारधारा का िव लेषण िकया गया है। भाई-बिहन का ेम, पित-प नी स ब ध, माता-िपता के ित समपण क भावना व हमारे सं कार का िव तृत अ ययन िकया है। िववाह, भात भरने, पु ज मने के लोकगीत म राज थानी सं कृ ित के रंग-िबरंगे फल ू क छटा ि गत है। लोको सव म होिलका, दीपावली, गणगौर, र ाब धन, शीतला टमी, तीज, नवरा , अ यतृतीया, पीपल नवमी, एकादशी (देवउठनी, देवसोनी), मकर स ांित आिद उ सव पव को पूव राज थानी अंचल म गीत के मा यम से लोकचेतना क अिभ यि का िव लेषण करने का यास िकया है। अ याय ष ठ म राज थानी लोक सािह य म लोकचेतना क अिभ यि लोक सं कृ ित क िवराट सम वया मक चेतना है, जो राज थानी बहरंगी सं कृ ित क अिवरल छटा क झलक पूव राज थान के करौली व सवाईमाधोपुर अंचल म प ट

vi

ि गोचर है। भारतीय सं कृ ित वेद, वेदांग , उपिनषद् व पुराण, रामायण, महाभारत एवं ीमद् भगवत गीता के आदश का पालन करने म याग व अपने क य के ित सजग रहकर जीवन को सजना मक गित दान करते ह। वात यो र भारत म हमारे आदश म प रवतन ुत गित से होता आया है, जो प रवेश क सं कृ ित म िनर तर बदलाव क ि थित पैदा िकये हए ह। समकालीन जनजीवन म कई िवसंगितयाँ पैदा कर चुका है िक तु भारतीय आदश का भाव आज भी वीरभूिम राज थान क लोकचेतना, लोकजीवन के उ सव , पव , यौहार व लोकगीत के मा यम से कट होती है। उपसंहार म पूव राज थान के लोकदेवता, देिवय के ित आ था भाव क मूल चेतना जीवन क वैि वकता को भी कट करती है। तु त शोध ब ध के सारांश प म राज थानी सं कृ ित क िविश ट पर पराओं से होने वाले जुड़ाव, यहाँ क धरा क गंध, निदयाँ, पवतमालाएँ, अरावली क छटा, यहाँ के िविभ न ृ अभयार य, रणथ भोर, व यजीव अभयार य, िजसम गणेश जी महाराज क कपा देशवािसय पर रहती है तथा िवशाल मेल का आयोजन करौली वाली मैया के चै के नौरा म राज थान देश के अलावा स पू ण भारतीय इस पिव धरा पर आते ह। अ य सं कृ ितय से िभ न राज थानी सं कृ ित क छाप आज भी है जो अधुनातन स दभ को पश करते हए मने तुत शोध ब ध म नवीनतम उदाहरण देकर नवीन आयाम थािपत करने का िवन यास िकया है। तुत शोध- ब ध पू य गु वर डॉ. पूरणमल मीना, अ य , िह दी िवभाग, राजक य क या महािव ालय, सवाईमाधोपुर के नेतृ व म ‘पूव राज थान के लोक सािह य म िचि त समाज और सं कृ ित’ (करौली एवं सवाई माधोपुर िजले के िवशेष संदभ म) क स ेरणा से े रत होकर िलखा गया है। इनक सहजता, ृ व नेह के ित कछ सरलता, कपा ु भी कह पाने म असमथ हँ अत : ी चरण म सादर णाम िनवेिदत करते हए आशीवाद क कामना है।

vii

इसी म म ेय गु वर डॉ. पी.डी. मीना, पूव ाचाय व डॉ. हेतु भार ाज ( यात, सािह यकार एवं आलोचक) ने अपने िव ता पूण सुझाव देकर इस द ु ह काय को आसान बनाया और मेरा पथ आलोिकत िकया। इस अवसर पर म उनके दय से ावनत हँ। म आभारी हँ मेरे प रवारजन के ित िज ह ने मुझे उ चतर िश ा हेतु े रत िकया व शै िणक वातावरण दान िकया। मेरी ेरणा के ोत पू य िपताजी ी मोहन िसंह व पू य ममतामयी माता ीमती राम ी देवी, िज ह ने य -अ य अनेक क ट सहकर भी मुझे सबकछ ु दान िकया। इस अवसर पर म उनके ित सदैव ऋणी रहँगा। इसी म म मेरी ेरणा क ोत मेरी धमप नी ीमती कृ णा देवी ( धानाचाय), रा.उ.मा.िव ालय, सरमथुरा; अनुज सरनाम िसंह (व र ठ ब धक, पॉवर ि ड, भारत सरकार), रोिहत कमार ु , िनरी क (आयकर िवभाग), िवकास शमा ( ब धक, सेल, भारत सरकार) जीजाजी ी राजे िसंह एवं ी जग नाथ जी, िज ह ने मुझे पल-पल ल य क ओर बढ़ने हेतु िनर तर े रत िकया। उनके ित ृ हँ। सृजना के इ ह ण म पु राहल, पु ी रितका व भतीजे भािवक, दय से कत िचराग़, अंशू दादा, अ ना (अन त) क आ मीयता को मेरा मानस अनुभव करता है। इस अवसर पर उ ह मेरा शुभाशीष। म दय से आभारी हँ डॉ. जयपाल मीना (पूव ाचाय, राजक य महािव ालय, करौली), डॉ. गोिव द सहाय मीना, या याता, िह दी, राजक य महािव ालय, िह डौन िसटी, डॉ. अशोक शा ी ( या याता, िह दी), अिभ न िम ी गोरेलाल मीना ( या याता, िह दी) ी महे िसंह मीना ( या याता, िह दी), ी वीरे कमार ु शमा, पु तकालया य , राजक य क या महािव ालय, करौली का, िज ह ने समय-समय पर पु तक उपल ध करवाने म व लोकगीत सं ह करवाने म

viii

ृ ता ािपत सहयोग दान कर शोध ब ध को स प न करवाया। उनके ित कत करता हँ। इसके अित र त उन सभी गु जन िव त् जन , िह दी िवभाग, राजक य क या महािव ालय, सवाई माधोपुर, के ीय पु तकालय, राज थान िव विव ालय, जयपुर ृ ता ािपत करता हँ, िज ह ने य व अ य प से के ित िदल से अपनी कत सहयोग दान िकया है। म दय से आभारी हँ ी बी.एल. मीना ( ाचाय), डॉ. ऋिष कमार ु शमा, ( या याता, समाजशा ), डॉ. गुंजन गग, ( या याता, सं कृ त), डॉ. कसु ु म शमा, ( या याता, गृहिव ान), डॉ. मंजू शमा, ( या याता, अं ेजी) ी महेश चंद मीना (सहायक लेखािधकारी), ी राजकमार ु शमा (सहायक कायालय अधी क), ी हेमे मीना (व र ठ िलिपक) एवं सम त महािव ालय प रवार, राजक य क या महािव ालय, करौली (राज थान) का, िज ह ने इस दु ह काय क स प नता म सहयोग दान िकया तथा मेरा पथ आलोिकत िकया। सु िचपूण टंकण हेतु िवशाल क यूटस को साधुवाद। ।। इित शुभम्।। ह रके श मीना शोधाथ या याता (िह दी) राजक य क या महािव ालय, करौली (राज थान)

अ याय- थम

राज थान का संगठना मक ढाँचा - एक प रचय

राज थान ृ शत-शत नमन राज थान क पिव मनोरम व ाकितक ोत से बनी वसु धरा को जो स पूण िव व म म धरा के नाम से सुिव यात है। इस पिव भूिम ने वीरता और शौय के सैकड़ उदाहरण तुत िकये ह। इस धरा पर धधकती अि न वालाओं म सव व समिपत करने वाली वीरागंनाओं ने जौहर कर मातृभूिम व नारी जाित क ित ठा बचाकर सं कृ ित को गौरवाि वत िकया है। म धरा के कण-कण म शौय, ओज व बिलदान क ेरणा आज भी िदखलाई देती है। वीर भूिम राज थान का सां कृ िक वैभव बेजोड़ है। यागमयी ललनाओं, साहसी वीर , ममतामयी याग क मूितयाँ और ग रमामयी सं कृ ित के इस देश का भौगोिलक ऐितहािसक और ृ ाकितक हरी भरी धरती का लाव य देखते ही बनता है जो अरावली क छोटी-छोटी पहािड़य मानो सु दरी ने माला धारण कर रखी हो। 1. राज थान श द का व प राज थान श द को कई अथ म इितहास, सं कृ ित व स यता के यगु म प रवितत नाम से स बोिधत िकया है। ‘राज थान’, ‘रायथाण’ या ‘रा य थान’ श द कभी राजपूताना के प म यु त हआ है। सामंतयगीन ु प र य का अवलोकन कर तो ‘जै स टॉड़’ िवचारक ने ‘एना ट ए ड एि टिविटज ऑफ द राज थान’ शीषक से

2

थ िलखा िजसम राज थान के िविवध व प क चचा क है। कनल टॉड ने जो िलखा व राज थान (रायथाण) श द से प ट अिभिहत होता है। उस समय अजमेर देशी रयासत म शािमल नह था। राज थान म छोटी-छोटी रयासत थी। थान का राजा अथात् े ठ थान के प म ‘राज थान’ ने गौरवाि वत िकया। इसी अ ुण पर परा ने गित पकड़ी और नवीन प और अथ म रायथाण, राज थान, म भूिम के कारण म थल या म थल श द का योग भी पढ़ने को िमला है। राज थानी िमट् टी का कण-कण शौय और वीरता से ओत- ोत है, िजसम एक ओर तो अरावली पवतमालाएँ ह तथा दसरी ू और म धरा क मृगमरीिचकाएँ भािवत िकये िबना नह रहती ह। भौगोिलक ि थित, ाचीन थ िशलालेख व इितहास से स बि धत आ यान यह सब िविदत होता है। भौगोिलक प रचय—वीर भूिम राज थान का नाम वयं एक सां कृ ितक एकता का प रचायक है। िजसक पर पराओं का सा ी इितहास है। शौय, परा म, याग, बिलदान एवं स पदाओं क धरती राज थान भारत के उ र पि चमी भाग म 0 0 25.3 से 78.17 पूव देशा तर के म य ि थत है।1 इसके उ र म पंजाब, दि ण म गुजरात, पूव म उ र देश, उ र-पूव म ह रयाणा व िद ली, दि णी पूव म म य देश ांत अवि थत ह। इसके पि चम म पािक तान क अ तरा टीय सीमा लगती है। राज थान रा य का ल बाई चौड़ाई व े फल क ि से भारत का सबसे बड़ा रा य है। सव थम कनल टॉमस ने (िमलटी मैमोयस) 1957 म तथा इसके बाद कनल जे स टॉड ने 1886 ई. के िलए रायथाण श द का योग िकया था,2 जो िक राजाओं तथा उनके थान का सूचक है और लोक चिलत ‘रायथान’ श द का 1. आर.एल. भ ला — राज थान सामा य ान, पृ. 23 2. कनल टॉड - ऐन स एि टिविटज ऑफ राज थान : भूिम से उदधृत

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पा तर है। राज थान श द का योग उ लिखत ‘मैमोयस’ से पूव के िलखे राज थानी भाषा के ‘नैणसी री यात’ (सं. 1687-1727) और राज पक थ म भी देखने को िमलता है। वहाँ यह श द राज थान ांत के प म नह वरन् राजधानी के अथ म यु त हआ है, जैसािक पुरातन थ से ात होता है — ‘‘स वत 1672 राणा अमरिसंह शाहजादे। खरम ु सूँ िमिलयो। तहा पछै राणो अमरिसंघ। उदैपुर आयो तथा पछै राज थान उदैपुर हवौ।’’1 आगे अ य उदाहरण से भी प ट होता है स तपुरी िसरताज त अपवग हँ समकारण। उ रधाम अजोहया ओपै नाम ामपुर ऊपर िथरते राज थान मिह इक इ भौम साम य। एक आण अख ड ख डमाण ाण नवख ड।।’’2 म भूिम के संदभ म राज थान का उ लेख वैिदक यगु से ही होता आ रहा है। ऋ वेद म (1.35.6) सू त म ‘म ’ श द का योग हआ है। महाभारत के वनपव म (240-14) तथा वृ संिहता म भी प ट अंिकत है। बीकानेर के राजाओं के नाम के साथ जंगल घर बादशाह क उपािध लगती रही है। कभी इसका नाम कु , जांगल, भा ेय, जांगल अिहछ पुर (नागौर) म थी।3 गंगानगर के आस-पास का े योयु य, अलवर, जयपुर, म य4, अजमेर के िनकट का े पु करायण5, आबू के

1. 2. 3. 4. 5.

नैणसी री यात— सर वती भ डार उदयपुर क ह तिलिखत ित, पृ. 27 नागरी चा रणी सभा ारा कािशत राज पक, पृ. 10-11 श दाथ िचंतामिण, पृ. 991 नागरी चा रण पि का, भाग-2, पृ. 333 राज थान ू ऐजे, पृ. 13

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आस-पास का भाग श भ देश (वागट)1 डंू गरपुर, बाँसवाड़ा, शाक भरी (सा तू) आिद नाम से स बोिधत िकया है। वत ता पूव राजपूताना नाम से अिभिहत था। देशी रा य का एक करण 25 माच, 1948 को अलवर, धौलपुर, करौली, भरतपुर को िमलाकर म य संघ का िनमाण िकया गया।2 इसम बाँसवाड़ा, बूँदी, डंू गरपुर, झालावाड़, िकशनगढ़, कोटा, तापगढ़, शाहपुरा (भीलवाड़ा) और ट क को िमलाया गया। 23 माच 1949 को उदयपुर को िमलाकर संयु त राज थान का िनमाण िकया। 14 जनवरी, 1949 को बृहत् राज थान क घोषणा क गई।3 नव बर, 1956 को अजमेर, बाँसवाड़ा, डंू गरपुर, िसरोही, मेरवाड़ा को िमलाकर वतमान राज थान का व प बना। 27 िजले िनि चत िकये िफर 32 िजले बने आज 33 िजले ह। िजनम तापगढ़ नया िजला शािमल ह। अरावली पवतमाला :- िव विव यात पवतमालाओं म इस पवतमाला का नाम िसि अिजत िकये हए है। यह पवतमाला आधुिनक नह करोड़ वष पुरानी है। िहमालय पवत से भी पुरानी अरावली पवतमाला है। िहमालय उठता गया तथा अरावली पवतमाला का काला तर म रण होने लगा और प थर के टकड़े ु -टकड़े ु होकर जैसलमेर तक पहँच गये। जैसा जैसलमेर का सूखा व रेतीला इलाका िदखाई देता है। व तु त: ऐसा नह था। इस स दभ म यह दोहा चिलत ह:‘‘पग पूगल धड़ कोटड़े उदरज बीकानेर। भूलो चूको जोधपुर ठावो जैसलमेर।।’’

1. ओझा : डंू गरपुर रा य का इितहास, पृ. 1 2. शमा यास - राज थान के इितहास का सव ण, पृ. 378 3. वही, पृ. 380

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अथात् अकाल कहता है , मेरे पैर पूगल (बीकानेर म एक थान) म ह, धड़ कोटडा (एक थान) है और मेरा पेट बीकानेर म है , म कभी जोधपुर म भी िमल जाता हँ; लेिकन थायी िनवास तो जैसलमे र ही है। पि चमी राज थान के रेत के धोर म धीरे-धीरे सुधार कर इि दरा गाँधी नहर के मा यम से हरा-भरा राज थान बनाने क कयावद शु क है। तेल, पेटोिलयम, िज सम आिद के पया त भ डार िमले ह। राज थान ांत का े फल 3 लाख 42 हजार, 239 वग िकलोमीटर है तथा देश का दसवाँ िह सा है। यहाँ क वीरता क कहािनयाँ बचपन म दादी माँ व नानी माँ ारा ब च को आज भी सुनायी जाती है। वषा एवं जलवायु—यह त य तो शा वत स य है, िक भारत म सवािधक वषा आसाम के चेरापूँजी म तथा सबसे कम राज थान के पि चमी भाग बाड़मेर ृ उपज हेतु उ म है। यहाँ जैसलमेर म होती है। यहाँ क जलवायु आरो य एवं किष अ य ा त क अपे ा राज थान म गिमय म पहाड़ व रेतीले भाग क तपन तथा लू चलती ह आँिधयाँ आती है। ‘पहाड़ी भाग म लू , पसीना, आँधी आिद का कोप नह रहता। ऐसे देश न अिधक ठ डे न गम रहते ह।’1 ऐितहािसक संरचना (गठन) सं कृित नदी क बहती वह अिवरल धारा है िजसके िनर तर वाह से सं कृ ित, स यता व प रवेश का उदय होता है, बढ़ता है और िफर पानी के बुल-बुले क तरह िसमट जाता है । अत: भारतीय सं कृ ित व स यता अित ाचीन है। अत: राज थान क ऐितहािसकता क चचा करने से पूव सं कृ ित का अिभ ान अिनवाय है। राज थान को म थल, रेिग तान, रायथाण, राजपूताना आिद नाम से स बोिधत िकया है। धीरे-धीरे प रवतन हआ देशी रयासत को एक कृ त कर उनक सीमाएँ समा कर दी गई। वंश पर परा का राज ख म कर वत शासन प ित ारंभ हई। 1. गोपीनाथ शमा : राज थान का सां कृ ितक इितहास, राज थान िह दी थ अकादमी जयपुर, पृ. 6, 7

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राज थान देश का िविभ न संभाग म गठन हआ िजनका िववरण िन नानुसार तुत करने का िवन यास है — 1. म य संघ (18 माच, 1948)—धीरे-धीरे वात यो र राज थान म देशी रयासत का िवलय हआ। अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली (वतमान म िजले ह) के त कालीन नरेश के सम िद ली म के ीय सरकार क तरफ से इनका िवलीनीकरण का ताव रखा तथा चार ने वीकार भी कर िलया। इस संघ का नाम ‘क हैया लाल मुशी’ के कहने पर ‘म य’ रखा गया। इन चार रयासत क सीमा 7536 वग मील तथा जनसं या 1,83,000 हजार के लगभग थी। त कालीन सरकार म खिनज एवं िव ुत मं ी िव णु नरह र गाड़िगल ने उद्घाटन िकया। अलवर म य देश क राजधानी, धौलपुर नरेश मुख राज, अलवर नरेश उपराज मुख तथा ी शोभाराम धानमं ी बनाए गये। यगल ु िकशोर चतुवदी गोपीलाल यादव (भरतपुर) उप धानमं ी तथा मा टर भोलानाथ (अलवर) डॉ. मंगल िसंह (धौलपुर) ी िचरंजी लाल शमा (करौली) म ी िनयु त िकये। भरतपुर, धौलपुर और करौली उस समय सूरसेन जनपद के अंश थे िजसक राजधानी मथुरा थी। 1 2. राज थान संघ—राज थान ांत के एक करण का दसरा ू तथा मह वपूण चरण 25 माच, 1948 को स प न हआ। जब कोटा, बूँदी, बांसवाडा, झालावाड, डंू गरपुर, तापगढ़, िकशनगढ़, ट क और शाहपुरा रयासत के शासक ने िमलकर ‘राज थान संघ’ का नया व प तैयार िकया। साथ ही शुभारंभ गाड़िगल महोदय के करकमल ारा संभव हो सका। राजधानी कोटा को बनाया तथा वहाँ के महारावल व डंू गरपुर के महारावल मश: राज मुख तथा उपराज मुख बनाये गये। धानमं ी के प म गोकल ु लाल असावा ने धानमं ी पद क शपथ ली। त कालीन धानमं ी के समय एक नवीन राह िनकली उनके म प रषद का गठन हो ही रहा था िक उदयपुर 1. डी.आर. आहजा : राज थान लोक सं कृ ित और सािह य, पृ. 3

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महाराणा ने तीन िदन बाद ही भारत सरकार के रयासती म ालय को एक प िलखकर ‘राज थानी संघ’ को नये रा य म शािमल होने क इ छा कट क । प रणाम व प शासन संचालन का काय पूवत िविधवत् चलता रहा। 3. संयु त राज थान—उदयपुर रयासत का िवलीनीकरण 18 अ ैल, 1948 को हआ तथा ‘संयु त राज थान’ बना, िजसका उद्घाटन वत भारत के थम धानम ी पं. जवाहर लाल नेह ने िकया। इस े का आकार 29,977 वग मीटर था। जनसं या क बात कह तो 42 लाख 60 हजार 918 थी। उदयपुर राजधानी बनाया। महाराणा भूपाल िसंह राज मुख बने तथा कोटा महाराव भीम िसंह को उपराज मुख व मािण य लाल वमा को धानम ी िनयु त िकया। मोहन लाल सुखािड़या, भूरे लाल बया, ेमनारायण माथुर (तीन उदयपुर) और बृज सु दर शमा (बूँदी) म ी के प म शािमल िकये गये। व तु त: वतमान राज थान का व प इ ह ृ राज थान का माग श त हआ। प को लेकर बना तथा राज थान स पूण एक कत 4. बृहत् राज थान (30 माच, 1949)—संयु त राज थान के समय तक जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर और िसरोही समेत पाँच छोटी-छोटी रयासत ही बची थी, जो एक करण म शािमल नह हई थी। 19 जुलाई, 1948 को के ीय सरकार के आदेशानुसार ‘लावा चीफ िशप’ को जयपुर रा य म शािमल कर िलया गया। जबिक कशलगढ़ क ‘चीफ िशप’ बाँसवाड़ा रयासत का अंग बन चुक थी। ु उपयु त रयासत म जयपुर, जोधपुर और बीकानेर अपने को वत रखना चाहती थी, लेिकन एक करण क ि या ती गित से चलने के कारण यह संभव नह हो पा रहा था। वत भारत के उप धानम ी व रयासती म ी ब लभ भाई पटेल क इ छा इन रयासत को िमलाकर संयु त राज थान बनाने क थी। वी.पी. मेनन को जयपुर नरेश मानिसंह के पास भेजा, साथ ही जोधपुर व बीकानेर के राजाओं के पास

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मसौदा भेजकर वीकृ ित मंगवाली थी। तदपरा ु त 14 जनवरी, 1949 को उदयपुर क सावजिनक सभा म पटेल ने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर रयासत के बृहत् राज थान म सै ाि तक प से सि मिलत होने क घोषणा क । संवत् 2006 तदानुसार 30 माच, 1949 को चै माह के शु लप क ितपदा ितिथ बुधवार को राज थान का थापना िदवस या नववष क ऐितहािसक घोषणा या उद्घाटन िकया। इस शुभ समारोह म राजा, महाराजा, म ी तथा सेना मुख उपि थत थे। अलवर, जयपुर, ट क, जोधपुर, कोटा, बाँसवाड़ा, धौलपुर, शाहपुरा के नवाब कशलगढ़ के राव हरे िसंह, सौरा ट के राज मुख जाम साहब ु नवानगर, भारत के थम धान सेनापित जनरल क रअ पा, एयर चीफ माशल एस मुखज के ीय खिनज एवं िव ुत म ी ी वी.एन. गाडिगल, मिणबेन पटेल, वी.पी. मेनन, गोकल ु भाई भट् ट, अजमेर के िस नेता ह रभाऊ उपा याय, जोधपुर के जयनारायण यास, मेवाड़ के ी मािण य लाल वमा, म य के धानम ी शोभाराम अ य मुख कां ेस के नेता, उ ोगपित और गणमा य नाग रक शािमल हए। इस समारोह म सरदार ब लभ भाई पटेल ने जयपुर महाराजा ी मानिसंह को राज मुख तथा कोटा महाराव ी भीम िसंह को उपजराज मुख तथा राज मुख ने ी हीरा लाल शा ी को नए रा य के धानम ी क शपथ िदलाई। 5. म य संघ का िवलय (15 मई, 1949)—बृहत् राज थान िनमाण करने के बाद म य संघ शािमल नह हआ था। उसका अि त व अभी भी पृथक् रा य के प म था। अलवर क भी देशी रयासत के एक करण क पहल शंसनीय थी। इसका कारण था िक इसक दो घटक रयासत अलवर और करौली तो एक मत से राज थान म स मिलत होने के िलए तैयार थी; लेिकन धौलपुर और भरतपुर इस असमंजस म थी िक वे उ र देश म िवलय ह या राज थान म। ी वी.पी. मेनन ने इनके नरेश से बात-चीत भी क , लेिकन कोई िनणय नह हो सका। प रणाम व प

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शंकर देव क अ य ता म ी भुदयाल िह मत िसंह और आर.के . िसधवा क सिमित गिठत क गई, िजसने गाँव-गाँव घूमकर तथा सावजिनक सं थाओं क सा ी एकि त कर रयासती म ालय को राज थान के प म िसफा रश पेश क गई। इ ह त य के आधार पर मई 1, 1949 को भारत सरकार ‘म य संघ’ को राज थान म िमलाने के िलए िव ि जारी कर दी तथा मई माह क 15 तारीख सन् 1949 म ‘म य संघ’ को राज थान का अिभ न अंग बना िलया। इस प रवतन का प रणाम यह हआ िक म य के धान म ी ी शोभाराम शा ी मंि म डल म म ी के प म शािमल कर िलया गया। 6. िसरोही का िवलय (7 फरवरी, 1950)—सभी छोटी-छोटी रयासत का िवलय होने के बाद ‘म य संघ’ क तज पर िसरोही का िवलय िकया, िक तु गुराज देश व राज थान देश के राजनेताओं म पया त मतभेद था। अत: जनवरी, 1950 म िसरोही का िवभाजन कर आबू व देलवाड़ा तहसील को ब बई ांत तथा शेष भाग को राज थान म िमलाने का िनणय िलया गया। इसक ि याि वित 7 फरवरी, 1950 को स प न हई लेिकन आबू व देलवाडा को ब बई ांत (वतमान गुजरात) म िमलाने के कारण राज थान वािसय म यापक िति या हई और 6 वष बाद रा य के पुनगठन के समय आबू व देलवाड़ा को राज थान को देना पड़ा। 7. अजमेर का िवलय (1 नव बर, 1956)—देश क आजादी के बाद धीरे-धीरे छोटी-बड़ी रयासत का एक करण हआ और राज थान रा य का िवशाल व प बना िक तु अभी तक अजमेर शािमल नह हआ। भारत सरकार ारा फलजी अली क अ य ता म गिठत रा य पुनगठन आयोग क िशफा रश के आधार पर 1 नव बर 1956 को त कालीन अजमेर-मेरवाड़ा रा य को भी राज थान म सि मिलत कर िलया गया। जो िक अब तक के शािमल ‘सी’ ेणी का रा य था और िजसक पृथक् म ी प रषद् और िवधानसभा थी। साथ म मंदसौर (म य देश) क मानपुर

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तहसील का सुनेल ट पा गाँव राज थान देश म शािमल कर िलया गया और राज थान के झालावाड़ िजले का िसर ज उपिजला नये म य देश को स प िदया गया। इस कार वतमान राज थान के िनमाण क ि या सात चरण म स पूण हई तथा 19 देशी रयासत और तीन चीफिशप वाले े क जनता (एकाक ) एकतं से मु त होकर लोकत क मु यधारा म शािमल हई।1 इसी व प को अंगीकार करते हए राज थान देश नाम हआ जो आज सामािजक, राजनीितक एवं वैधािनक प िलये हए है, िजसम पूव े क यापकता म करौली व सवाई माधोपुर एक पूवाचल े के लोक सािह य का म िव लेषणा मक अनुसंधान कर रहा हँ। पूव राज थान म करौली—पूव राज थान म धौलपुर, सवाई माधोपुर, भरतपुर और करौली िजल आते ह। शत-शत नमन राज थान के पूवाचल के यश वी यदवंु िशय क राजधानी करौली व माता कै ला देवी को राजपूत क पुरानी राजधानी माना है जो िक वतमान म राज थान का 32 वां िजला है। करौली, सवाई माधोपुर, धौलपुर, कछ ु भरतपुर के आस -पास का े इसम आता है। करौली को फारसी म िशकार व िशकार गाह कहते ह। िह दी श द कोश म करौली को तलवार बताया गया है। ‘भ ावती नदी के िकनारे ’ जहाँ नैसिगक श ुतापूण (शेर-भेड़) एक साथ एक ही घाट पर पानी पीते िमले तो राजा अजुन देव को यह िवचार आना वाभािवक था िक यह थान िन चय ही क याणकारी होगा। िसंह पौर पर बाहर िशव प रवार खड़े गणेश जी का मंिदर थािपत कर 1348 म क याणकारी नाम रखा, जो काला तर म करौली नाम चिलत हआ।2 राजा अजुन देव करौली थापना से पूव मंडरायल दगु पर कािबज थे। इनके वंशज ितमनपाल जी ितमनगढ़ (मासलपुर) पर 1100 ई. म कािबज थे इसी कारण से करौली का इितहास ितमनगढ़ दगु से शु माना जाता है। 1. सीताराम झालानी — राज थान नूतन पुरातन स तम सं करण, पृ. 113-117 2. ह रचरण लाल गु ा — करौली राजपूत का इितहास, पृ. 5

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डॉ. गोपीनाथ शमा ने ‘राज थान का इितहास’ पु तक म ितमनगढ़ को ि भुरानगरी बताया है।1 इन सभी त य का िव लेषणा मक अ ययन व अ वेषण करने से यह त य प ट होता है िक ितमनगढ़ दगु से करौली के अंितम महाराज से गणे शपाल तक के शासन काल को चार भाग म िवभ त कर सकते ह। थम पूव म य यगु ि तीय िद ली स तनत बादशाह तथा तृतीय मुगलकाल के स ाट् और चतुथ भाग 1761 से 1947 का िववरण यािन िक करौली राजपूताने क स य, प रवेश व सं कृ ित िसंहावलोकन का यथाथपरक िव लेषण। करौली राजपूताने का समाज दो वग म िवभ त था। पहला उपभो ता तथा दसरा ू उ पादक वग। उपभो ता वग म शाही प रवार, सरदार अमीर, सरकारी कमचारी, यापारी आिद को स मिलत कर सकते ह। उ च वग भोगिवलास म िल त था। कामतृि हेतु नृ यांगनाएँ, वे याएँ व रि डयाँ मुजरे महिफल करती थी। पि डत, ृ पा व सेिवकाएँ योितिषय व संगीत को िविश ट स मान था। ड् योिढय पर कपा रखी जाती थी। करौली के चोबय का िवशेष मह व था। कवर ुँ (राजकमार ु ) कुँ वरानी (पु वधु) होती थी। ठाकरु का जोर रहता था। राजा बहादरु का काँसा बहत िस था िजसम मन सवामन के करीब भो यपदाथ रहता था। गरीब ा ण को दान देने क था चिलत थी। मृतकमचारी के वा रस को नौकरी देने का ावधान था। ृ , यापारी, िश पकार, कारीगर, द तकार था, जो दैिनक दसरा ू वग कषक ृ वग अिधकांश रा य म थे गुजर, माली, जीवन क उपयोगी व तु बनाते थे। कषक मीणा, जाट, जापत व काछी जाित का उ लेख िमलता है। करौली िह डौन के प थर से क मती ितमाएँ बनाई जाती थी। सभी जाितय म एकता का भाव था। िह द ु व 1. गोपीनाथ शमा — राज थान का सां कृ ितक इितहास, पृ. 6

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मुि लम धम का चलन था। करौली परकोटे म 12 दरवाजे थे। धािमक ि से करौली अ या म का के था। इसे धािमक नगरी के नाम से भी जानते ह। 400 मंिदर व 15 मि जद थी। कबीर शाह क मि जद वजीरपुर गेट के पास है। व व आभूषण का चलन वण क अपे ा चाँदी के अिधक थे। जयपुर क तज पर करौली म भी गणगौर पूजन यहाँ रा य क पूजा थी जो राजा मानकपाल क रानी अंगर कवर ं ने सव थम सन् 1779 म चालू क थी।1 पदा था का चलन था। मकान क अपे ा पाटोर (प थर) क छाँया थी। यहाँ पर मीणा जो िक खड़ी बोली बोलते थे तथा चोबया (चौबे), जो िक ज सं कृ ित के कायल थे। यहाँ के राजाओं का िनकास मथुरा के आस-पास होने से ज भाषा का भाव रहा। उस समय राजभाषा उद ू फारसी थी। सभी य हार का चलन था तथा कै ला मै या का मेला मनाया जाता था तथा राजक य अवकाश रहता था। फा गुन मिहने म िशवरा ी (सोरती) को राज थान, म य देश, उ र देश ांत से पशुओं का य-िव य का ल खी मेला लगता था। ीमद्भागवत पुराण के अनुसार कस ं ारा वसुदेव के छ: पु को मारने पर सातव पु बलराम जी को योगमाया ने संकषण ारा रोिहणी के गभ म थािपत कर िदया एवं आठव गभ म वयं भगवान् ी कृ ण ने ज म िलया। आठवाँ पु वयं कस ं के काल के प म हए। िबजली के अलौिकक काश के प म माया ने कै ला मै या का प िलया। यह मूित गागरौन के राजा मुकु ददास ख ची के बाद करौली के राजाओं क आरा य देवी है। मदनमोहन मंिदर पूव राज थान के करौली िजला मु यालय म ि थत है। यादव कल ु पर परा ाचीन मानी जाती रही है। ीकृ ण भी इनके पूवज रहे ह। करौली रा य का मूल पु ष 1. हरीचरण लाल गु ा : करौली राजपूताने का इितहास, पृ. 11

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िवजयपाल रहा है , िजसने अपनी राजधानी मथुरा से हटाकर मानी पवत पर ‘िवजयगढ़’ या ‘िवजयमि दर’ के नाम से िव.सं. 1097 म थािपत क । न ल किव ारा रिचत ‘िवजयपाल रासो’ इसी िवजयपाल से स बि धत था।1 िवजयपाल के पु तंवरपाल या ितमनपाल ने ितमनगढ़ को बनवाया और आस-पास के रा य जीते। बाद म म डरायल और बहादरपु ु र के गढ़ का िनमाण हआ। यादववंशी िनर त र मुसलमान से आ ा त होकर इधर-उधर वन म शरण पाते रहे। जादोवाटी और डाँगी जभाषा यहाँ क बोिलयाँ है। वतमान करौली क थापना सं. 1405 म महाराज अजुनपाल ारा हई।2 भरतपुर, धौलपुर, िह डौन व आस-पास के अचंल म िह डौन टेशन, भरतपुर, सवाई माधोपुर सब िडवीजन िद ली ब बई रेल माग पर आते ह। महाराज गोपालिसंह क अन य भि से स न होकर जयपुर के मदन मोहन जी ने व न म करौली आने का टा त िदया जो िक जयपुर नरेश ने आँख पर प ी बाँधे हए तीन मूितय म से मदन मोहन जी को पहचानने क शत रखी। इस शत म करोली के राजा सफल हए। 1742 म गुसाई सावलदास को साथ लेकर करौली पधारे। 1748 म ाण ित ठा क गई। वत ता पूव मि दर का वेश ार पूव िदशा से था। वत ता के बाद भ तगण क आवाजाही के कारण पि चम म एक अ य दरवाजा खोल िदया गया। मदन मोहन जी के मि दर म िवशाल 3 क है। मुगल क ब द रहता है । मि दर प रसर म िसंह पोल के बरामद म उ र-पूव कोने म के शराय जी, बीच म जग नाथ जी एवं दि ण पूव म आटाव वाले राधा कृ ण क ाचीन ितमाय भी ि थत है। भि मयी मीराँ ने भी इनक आराधना इस प म क ह। टेढी किट ढेटी कर मुरली टेढी पा लर अटके । देखत प मदन मोहन का, िपयत पीयषू न भटके ।।3 1. ह रचरण गु ा — करौली राजपूताना का इितहास, पृ. 6 2. ह रचरण गु ा — करौली राजपूताना का इितहास, पृ. 6 3. करौली राजपूताने का इितहास, ह रचरण लाल गु ा, पृ. 17

14

दशन आरितय का काय म .

नाम आरती

सं. 1. 2.

ी म ऋतु

वषा ऋतु

वैशाख

कृ ण अि वन

कृ ण काितक

ितपदा

ितपदा

ितपदा

ात: कालीन मंगला 4:00 ात: धूप

3.

ृंगार

4.

राजभोग

शीत ऋतु कृ ण

4:30 ात:

5:00 ात:

9:00 ात:

9:30 ात:

10:00 ात:

9:30 ात:

10:00 ात:

10:30 ात:

11:30 म या

12:00 म या

12:00 पट मंगल

12:30 पट मंगल

11:30

म या

11:30 पट मंगल 5.

सं याकालीन बाढ़ा 6:30 सांय

6:00 सांय

5:30 सांय

6.

धूप

6:50 सांय

6:20 सांय

5:50 सांय

7.

स या

7:10 सांय

6:40 सांय

6:10 सांय

8.

उ लई

7:30 से 8 राि

7 से 7:30 राि

6:30 से 7:00

9.

शयन मंगल पट

8:30 राि

8:00 राि

7:30 राि

9:00 पट मंगल

8:30 पटमंगल

8:00 पटमंगल

ीकृ ण भगवान् क मिहमा का अि तीय सौ दय इन तुितय ारा साकार होता िदखाई देता है। ीराधा मदनमोहन जी महाराज क आरती हे मदन मोहन तेरी आरती गाऊँ । आरती गाऊँ यारे तुमको रझाऊँ ।। मोर मुकु ट याके शीश पै सोहे, यारी वंशी मेरो मन मोहे। देख छिव बिलहारी म जाऊँ । हे मदनमोहन तेरी ....

15

राधा लिलता संग िवराज, शुभ शृंगार सिहत ये साज। शोभा िनरख सदा सुख पाऊँ । हे मदनमोहन तेरी .... चरण से िनकली गंगा यारी, िजसने सारी दिनयां ु तारी। उन चरण के म दशन पाऊँ । हे मदनमोहन तेरी .... दास अनाथ के नाथ आप हो, सुख द:ु ख जीवन साथी आप हो उन चरण को म शीश नभाऊँ । हे मदनमोहन तेरी .... बलदाऊ कौ छोटो भैया, कनुआ कह के बोले मैया माखन िम ी को भोग लगाऊँ । हे मदनमोहन तेरी .... ी ह रदास के यारे तुम हो मेरे मोहन जीवन धन हो। यारी छिव तेरी मन म वसाऊँ । हे मदनमोहन तेरी ....।1 अ ात किव के शव जी क मदनमोहन तुित जो मदनमोहन जी के मि दर म मंगला आरती एवं सुबह, शाम, धूप आरती पर गाई जाती है। ीमदनमोहन ाण यारे यामसु दर न द के । द:ु ख हरण अशरन शरन ी पद कमल ज च द के ।। मो दीन क है लाज तेरे हाथ मोहन जपित। मझधार म नैया पड़ी कर पार मोहन जगपित। संसार के ये खेल तमासे जो कछू सब भूिलयो। नरक से बचने के िलए वस यान तेर ही िकयो। ृ अब तक करी आगे भी नाथ िनभाईयो। इतनी कपा काम ोध मद लोभ से ज दी से नाथ छड़ाईय ।2 ु × × × 1. मदनमोहन मंिदर क आरती के समय एकि त लोग से सा ा कार ारा। 2. अ ात किव के शव : तुित व झांला आरती

16

तुम हो मेरे गु देव हो माता-िपता सव व हो।। पितदेव हो चाहे ाण जीवन आप ही सव हो। कमती ु िनवारण मदन मोहन नाथ सब संकट हरो। ल मी शरण राधा रमन मिण हरन मम मन वसो।। यहँ िचता िचत् ोपित सुता िचत् चोर कहय भु मोर कहाँ है। भी म ोण खडे दोउ देखत ख चत अ बर द ु ट महा है। पांचो पती थकहेर रहे ज नाथ उवारन देर कहा है। भरी सभा म उघारी करे मेरो चार भुजा को मुरारी कहाँ है। मं ज य निह तं करय निह वेद पुराण सु यो न वखा य बीत गये िदन य ही सभी बस मोहन मोहन ही पहचा य । तेरो कहावत तेरो कहावत दसर ू कोई म निह जा यो । के तो गरीबन लेउ िनभा निह छोड़ो गरीबन बाज कहानो। कचन ं महल अटारी तजी तज दीन महा कु जा सी दासी। राधा तजी सत् भामा तजी तिज मिण ना र तजे ज वासी। बंशी तजी सत् भामा तजी जिज मिण ना र तजे ज वासी। टेर सुनी जब ोपित क तब दौड के आये ा रका वासी। छोटे-से आप िवशाल सी सूरत ये सुत कौन के ठाडे री माई। मोर पंख ह र के िसर सोहत इ घटा छा बूंदन आई। चातुर से हौ चातुर से हौ जािदन मोहन वंशी बजाई। मानस देह क कौन कहे चार घड़ी जमुना ठहराई।। बीच सम दर नाव परी पतवार िबना विह जात है सारी। लाज के लंगर टटू गयो तब आशा बढी गोिव द ितहारी।। कर छटकाय िदयो मलहा ने डबू त है िवन दामन चेरी। ु पार लगे तो लगाओ नाथ नािह लोग हँ सगे बजाय हतेरी।।1

1. मुरारी लाल गु ा (सेवािनवृ िश क) : मदनमोहन क मिहमा, पृ. 4

17

तुत दोह के मा यम से मने आरा य राधाकृ ण क अनुपम छटा के मा यम से मन को िवरि से हटाकर आसि क ओर जोड़ा है — दोहा— राधा राधा कहत ही, भव बाधा िमट जाय। कोिट जनम क आपदा, नाम िलये स नसाय।। वृ दावन वंशी बजी, मोहे तीन लोक। वे तीनो माहे नह , रहे कौन-से लोक।। वृ दावन वािनक व यो, भँवर करे गुंजार। दलहन रानी रािधका, दलह ु ु ू न दकमार।। सीतापित क कोटरी च दन जडे िकवाड़। तारे लागे ेम के खोलो कृ ण मुरा र।। राम झरोखा बैठके सबको मुजरो ले। जैसी जाक चाकरी जैसो ही जाकू दे।। जल म बसै कमोदनी च बसै आकाश। जो तेरे शरणे वसै वाक तोकू लाज। दीनदयाल िवरद संभारी। हरह नाथ मम संकट भारी। तुत भजन के मा यम से वा स य रस क अनूठी अनुभूित ट य है— भजन यशोदा मैया झूंठो है लाड़ तु हारो। मेरी भोरी भैया झूंठो है लाड़ तु हारो। अपनी कोख से जनमो हो तो करती लाड़ हमारो। यशोदा मैया ... एक को नाम धरो तैने दाऊ, दजेू को कनुआ कारौ -2 तू ना जाने सब कोई जाने बृज को रहवे वारौ। यशोदा मैया ... दधू-पूत के नाम पै तेरे, पूत बतायो यारो-2

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ऊनत दधू छोड़कर भागी, लाल धरण पै डारौ। यशोदा मैया ... रा यो अनपढ़ बना वा रया, ना चटसार बैठारौ-2 खी रोटी बाँध गाँठ म गैयन संग िसधारो। यशोदा मैया ... दधू-दही घर म बहतेरे, गाँव म करत िबखरो-2 खावे कूँ दी ह होतो तो, काहे कूँ लूटतो यारो। यशोदा मैया ... काली दह म कद ू पड़ो, तैने धन मचायो भारो-2 तू य ना कदी ू जमुना म, कदो ू नैनन तारो। यशोदा मैया ... जािदन बाँध िदयो ऊखल से, रोवत रहयो िबचारो-2 रा यो सब से ेम बढायके लाल जगत् उिजयारो। यशोदा मैया ... यसोदा मैया झूठो है लाड तु हारो, मेरी भोरी मैया झूठो है लाड़।1 तुत भजन के मा यम से िवरह वणन को तु त िकया है — भजन 1. 2. 3. 4. 5.

अरे नागिनया बन के डस गई रे मोहन तेरी बांसु रया। रमिझम- रमिझम मेघा बरसे, चमके िबजु रया। म कै से आऊँ याम िक मेरी भ गे चुन रया। अरे नागिनया ... सास हटीली ननद छबीली, रोके डग रया। म कै से आऊँ याम िक मेरी बाजे पायिलया। अरे नागिनया ... म यमुना जल भरन गई, मेरे िसर पर गग रया। अरे पीछे से मारी ककिड़ ू गग रया। अरे नागिनया ... ं या, मेरी फटी बैठ कदम पर बंशी बजाबे, मोह लई सिखयाँ । अरे मेरो दीयो कलेजा तोड़, िजगर म बस गई बांसु रया। अरे नागिनया ... घर छोडया घर बार बाबुल, घर छोड़ी मायिड़या।

1. सा ा कार : गायक धवले मीणा से।

19

6.

1. 2. 3. 4.

अरे मने गोद िखल ते बीरन छोड़े हो गई बाव रया। अरे नागिनया ... घर छोडया घर बार ससुर, घर छोड़ी सासुिलया अरी मने पलना झुल ते ललना छोड़े हो गई बाब रया। अरे नागिनया ...।1 भजन मेरे बाँके िबहारी सुध लेना, दशन को तरस रहे नैना। राधामदनमोहन सुध लेना, दशन को तरस रहे नैना। पापी कपटी म हँ वामी, सब जानत हो अ तरयामी अपराध मा कर देना, दशन को तरह रहे नैना। मेरे .... म िनबल दीन खड़ा ारे , तुम िनधन के हो रखवारे। मेरी अरज भु सुन लेना, दशन को तरस रहे नैना। मेरे .... माया का फ दा उलझ रहा और कबह न तेरा नाम िलया। जप तप कछु धम बने ना, दशन को तरस रहे नैना। मेरे .... मेरी बीच भँवर म नाव पड़ी, और तेरे िबन कौन िखवैया है। मेरी नाव पार कर देना। दशन को तरस रहे नैना। मेरे बाँके िबहारी सुध लेना, दशन को तरस रहे नैना।2

तुत लोकगीत म राधा कृ ण क होली खेलने के संग से यह भजन रोचकता उ प न करता है — होली मैया बरसाने म होली है , मोय ेम स देशो आयो है ...2 मोय ेम स देश आयो है, बृषभान सुता ने बुलायो है। मैया बरसाने म ... 1. सा ा कार : मुरारीलाल गु ा से। 2. सा ा कार : मुरारीलाल गु ा से।

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(1) मेरे लाल तू है भोरो भारो, बरसाने क ना र बड़ी चपला। मत क रयो रार होरी म ... तोड— वालन कू य समझायो है। मैया बर साने म होली है... (2) पहँचे बरसाने न द नंदन ...2 पहंचत ही घेर िलये सखीयन ...2 िफर नार बनाई बरजोरी ...2 तोड—चोली लहंगा पहनायो। मैया बरसाने म होलह है ... (3) सुरमा नयनन म डार सखी ...2 नकअन ु िबच नथनी पहनाई ...2 कानन कडल ुं गल च हार ...2 तोड—भुज बाजू ब द पहनायो है। मैया बरसाने म होली है ... (4) मेहँदी माहबर िब दीया कमकम ु ु ...2 पायन पैजिनया पहनाई बृषभान लली ने माँ ग भरी ...2 तोड—रंग ेम का िबछआ ु पहनायो है। मैया बरसाने म होली है ... (5) िनज नयनन चौबे छब िनरख ...2 सब देव हँसे देदेतारी ...2 बरसाने अित आन द भयो ...2 तोड— बैकु ठ यहाँ चल आयो है। मैया बरसाने म होली है ...।1 लोकजीवन से जुड़े करौली, सवाई माधोपुर अंचवािसय ारा होली के उ सव पर गाये जाने वाले लोकगीत को तु त िकया है— होली म तो तोही संग होली खेलूंगी ...2 1. लोक लाज को मोय डर नह है। दिनयां ु के बोलन ने लहलऊँ गी। म तो तोही संग ...

1. लोकवािसय से सा ा कार।

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2. 3. 4. 5.

सास लडो चाहे िजठानी लडो। बलमा के बोलन ने सहलऊँ गी। म तो तोही संग ... नाय चिहये तेरे महल अटारी। म तो टटी ू झोपड़ी म रहलऊँ गी। म तो तोही संग ... नाय चािहये तेरे माखन िम ी। म तो सूखी रोटीनने खायलऊँ गी। म तो तोही संग ... पु षो म िपया मेरे घर अईयो। म तो भि क बतराय लऊँ गी। म तो तोही संग ...।1 करौली दगु का मह व

शहर के दय थल पर बना करौली िकला (रावल), धौलपुर, भरतपुर, आमेर के राजमहल से भी कह यादा मू यवान एवं सु दर है। ात: काल एवं सांय काल क बेला म सूय क र ताभ रि मय से ितिबि बत यह िकला अपनी विणम आभा से दशक का मन मोह लेता हे। लाल सफे द प थर का यह सामूिहक सौ दय अनोखे आकषण क सृि करता है। िजसे बार-बार देखने का मन करता है। इस िकले के चार ओर पहले धूलकोट था। बाद म फटाकोट तक कोट बना। ू कोट फट पड़ गया। महाराजा गोपाल िसंह ने ू जाने से बाद म उसका नाम फटाकोट ू सव थम करौली के चार ओर लाल प थर से प का परकोटा सन् 1730 म ँ 32 बुज एवं ाचीर म दीवार म दो िछ (आले) बनवाया। िजसम 40 फ ट ऊची रखे िजनम एक से द ु मन क सेना पर तीर एवं गोिलय से हार िकया जा सके । दसरे ू िछ से श ु सेना को आँख से दे खा जा सके व अि न वषा करने के िलए ाचीर पर चढ़कर श ु को घायल िकया जा सके । बुज पर चढ़ने के िलये 1.

ामीण ी-पु ष ारा िकया गया सा ा कार।

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सीिढ़य का िनमाण िकया गया। इस परकोटे म 6 दरवाजे एवं 12 िखड़िकयाँ रखी गई। िजनके िकवाड़ पर लोहे क क ल से सुर ा कायम क गई है। दोन एक-दसूरे से जुड़े हये ह। इसम पहले एक रा ता िसंह ार से दसरा ू रा ता मु य दरवाज से होकर था। रयासत समा होने के बाद िसंह ार वाला रा ता ब द कर िदया गया। बड़े रावल िसंह ार से घुसते ही पहले ीजी (मदन मोहन जी) मंिदर का चौक आता है। चौक से एक दरवाजे से पौली बरामदा पार कर दहलान िदखाई पड़ता है। जहाँ एक ओर अ वशाला हािथय को बांधने के खूँटे गड़े हये िदखाई देते ह। इस अंचल म 122 वगफ ट चौड़ा चबूतरा है। िजसका इितहास है िक करौली बसने से पूव यहाँ मचा (म या) मीण रहते थे। िज ह ने रावल बनाने का िवरोध िकया। राजा ने चतुराई एवं वीरता से कआ हेतु लगे मीणाओं को चबूतरे के अ द र खड् डे म डालकर ुँ खदवाने ु चबूतरा पटवा िदया। इस चबूतरे पर अ व को दाना डाला जाता था। अ वशाला के बगल म एक िखड़क िनकाली गई। जो शहर जाने हेतु गु रा ता बनाती है। चौक के बगल म जनानी रावल िदखाई पड़ती है। बड़े दरवाजे के अगल-बगल म कामदार के कायालय बनाये गये। जनानी रावल म दािसयाँ (पा ाय) रहती थ । इस रावल म मि दर था। िजसम गोपाल जी क मूित (दौलताबाद दि ण िवजय से लाई गई) रखी गई। बाद म वहाँ से नये मि दर म थािपत क गई। छोटे रावल को जाने हेतु दरवाजे अथात् रंगमहल के नीचे से गुजरना पड़ता था। इस बड़े दरवाजे पर पीतल क चादर एवं क ल जड़ी हई है तथा कला मक िचतराम बना हआ है। दरवाजे से िनकलते ही चौक िदखाई पड़ता है। जहाँ सव च शि का वास था। मु य दरवाजे से िनकलने पर बाहर तोपखाना दसरी ू ओर महल क दीवार के सहारे थाना चौक के बगल म नाहर कटहरा एवं महल का िपछवाड़ा िदखाई पड़ता है। आजकल इस रा ते के बगल म मदन मोहन जी के मि दर का रा ता बना िदया गया है।

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पुन: मु य दरवाजे पर आते ह, जहाँ सैिनक क पहरेदारी हेतु दोन बगल म वाटस है। इनके बगल म ‘भँवर बक’ जमादार खाना है। जहाँ कमचा रय को वेतन आिद िमलता था। यह पर एक चबूतरा है। िजस पर एक लोह क ल बी छड़ लगी हई है। राजा शेर का िशकार कर मरे शेर को यहाँ जनता को िदखाने हेतु डालता था। भँवर बक के बगल म सीिढ़याँ ऊपर गदधर को जाती है। सी िढ़य के बगल म ि पोिलया गेट है। िजस गेट के आले म एक अं ेज का न न िच बना है। िकवाड़ पर पीतल क क ल व च र चढ़ी है। अ दर नजर बगीची िदखाई पड़ती है। नजर बगीची के चार ओर घू मकर महल क बनावट को देखकर ि िटश सरकार के कनल क िटग ने कहा "In the same respect the linest building of the fort" यह िद ली िश प पर बना हआ है। कहते ह इसे देखकर िद ली बादशाह नाराज हो गया। बाद म गोपाल िसंह राजा ने अपनी चतुराई से बादशाह क नाराजगी दरू कर दी। इस कार बगीची से अ त:पुर म आने व मािनक महल म जाने हेतु कई रा ते ह, जो िकवाड़ ारा ढँ के हये ह। नजर बगीची म एक सीढ़ीनुमा कु ड है, िजसम फ बारा लगा हआ है। कु ड म रंग-िबरंगा पानी भरा रहता था। पानी के िनकास के िलये पाईप लाइन अ दर डली हई थी। जो शहर के बाहर िनकल जाता था। नजर बगीची के सामने गोपाल मि दर, बारहदरी िजसम 22 ख बे है। िजसम उ कृ ट िचतराम बारीक बेलबूटे बने हये व सामने राजा भँवर पाल का फोटो िजसम दो शेर पर हाथ रखे बैठा हआ तथा 4 बड़े शीशे लगे हये थे। िजसे दीवान-ए-आम कहा जाता है। यहाँ पर राजा फ रयादी क फ रयाद सुनता था। यही दरबार लगाता था व बाहर नजर बगीची म यौछावर भट होती रहती थी। होली के अवसर पर जनता िवशेष लु त उठाती थी। मािनक भवन, गोपाल अखाड़े, बा द खाना व सुरंग हेतु गेलेरी से जाना पड़ता है। गैलेरी के बाद चौक िदखाई पड़ता है, जहाँ बहत नरम घास थी। बगल म

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फौज कचहरी, िकरिकरी खाना यािन िचिड़याघर एवं बगल म मुरली मनोहर जी का मि दर जहाँ ितवष अ नकट ू होता था, िजसे जनता देखने जाती थी। चौक के बीच म टेडा कआँ ु के सामने गोपाल अखाड़ा है। िजसके अ दर देखने पर अब भी नरम-नरम िम ी मानो अभी गोठ् लगाई हो िमलती है। अखाड़ा चार ओर से ब द है। दीवार प थर पर जालीदार िजसम पशु -पि य , फल ू बेल क बेशक मती िश प देखने को िमलती है। अखाड़े म मुगद्र अब भी रखे हये ह। गोपाल अखाड़े के ऊपर तीसरी मंिजल पर सफे द प थर ारा िनिमत मािनक भवन है। िजसम गढ़वाल िश प म लकड़ी का गु बज िजस पर सोने का कलश था। ँ पर है िक पूरा करौली शहर िदखाई देता ह। इस भवन म जो िचतराम है। इतनी ऊचाई उसम िबलायती मेम के इंगिलश कलर म अधन न िभि िच है। जो उ म िच कला व द तकारी क िमसाल है। इससे राजा मािनक पास के कला एवं िवलािसता ि य होने का संकेत िमलता है। गोपाल अखाड़े के बगल म मकानाते ह, िजसम एक जाली से सुरंग िदखाई देती है। यह सुरंग िशकार गंज तक जाती है। जो शहर से 3 मील दरीू पर है। यह आजकल ब द है। पुन: नजर बगीची आते ह। यहाँ से कई रा ते सीिढ़य ारा महल क ऊपर मंिजल पर जाते ह िजसम जनानी ड् योिड़य , ान बँगला, शीशमहल, मोतीमहल, हर िवलास, रंगमहल आिद ह। ान बँगला म राजा भँवर पाल यान जप करता था। ात: िव ान से धम क चचा करता। अ त:पुर म रािनय से िमलता। शीशमहल जहाँ सोने चाँदी के पानी का काम व काँच के टकड़ ु से बना हआ है। दीवार पर बड़े -बड़े शीशे लगे हये थे, जो आज भी देखने म कािबले तारीफ है। यहाँ िनजी गुमट थी, िजसम रािनय के जेवरात रहते थे। महाराजा िनवास, खली ु छत, े गृह, गदघर (जहाँ राजा बडिम टन खेला करता था) आकषक था। इन सभी महल म प थर क जािलयाँ, फलबू ू ट, पि य , ृ क जािलयाँ , कमान दार झर खे (इन म भी कई उपख ड) जानवर क आकित

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ख ब म गिणतीय बरामद सीिढ़याँ बनाई गई, िजससे एक से दसरे ू महल म आसानी से आया जा सकता था। महल म गु वाता करने अ दर ही अ दर िकसी को भी बुलाया जा सकता था। भीषण गम म भी शीतल हवा के झोख इन महल म आते रहते ह। िजससे थकान दरू हो जाती है। रंगमहल दोन रावल को जोड़ते हए बड़े दरवाजे के ऊपर रंगमहल है। इसका िनमाण राजा मदन पाल ने करवाया। इसम सुंरगनुमा गेलेरी बड़े सु दर झरोखे एवं कमर का िनमाण है। िजसम बेल बूटे चमक ली कौडी पािलश फश व छत क दीवार पर काँच क सु दर प चीकारी सुनहरी कलम का मनमोहक काम िकया हआ है। काँच के टकड़े ु इस कार लगाये गये ह िक देखने वाले के फोटो ही फोटो िदखाई पड़ते ह। जो अनूठे सौ दय व कला ेम का प रचायक है। इसक तुलना आमेर के शीश महल से करे तो कोई अितशयोि नह होगी। काल के थपेड़ ने इस दगु को जजर कर िदया है, पर तु इसका थाप य आज भी पयटक को उनक िज ासाओं के िलये आकिषत करता है। राजा रािनय के दप से देदी यमान इन राज साद को आज काल क कािलमा ने घेर िलया है। रयासत का िवलय करते व त भारत सरकार ने यह घोषणा क थी िक रयासत के व प को खराब नह होने िदया जावेगा। आज तब पुरात व म सभी दगु का समावेश कर संर ण िकया जा रहा है। करौली के इन राज साद पर कोई यान नह िदया है। कई सौ वष के शानदार इितहास एवं गौरवशाली सं कृ ित का तीक करौली िकला व त क िकताब के म य रखा एक फू ल है िजसक खशबू ु बनाये रखना सरकार/ रयासत के वािसय का परम क य है। अ ैल 1902 वायसराय िद ली का खलीता आया। िजसम एडवड स तम क ताजपोशी पर िद ली बुलाया गया। खलीता पर नीचे िलखा -‘‘योर हाइनेस का

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ृ दी। िदनांक मुखिलस दो त कजन’’। महाराजा ने िद ली जाने क वीकित 25.12.1902 को महाराजा 500 हमरािहय के साथ पे शल टेन से िद ली पहँचे। वागत के िलये लेटफाम पर पोिलिटकल एजे ट मौजूद थे। 17 तोप क सलामी दी गई। वायसराय भी दसरी ू टेन से उतरे। 31 तोप क सलामी दी गई। उतरते ही महाराज से हाथ िमलाया। इतनी देर म एक पेशल टेन आ गई, िजसम देयर रॉयल हाईनेसेज ड् यक ू पधारे। िजनसे वायसराय ने हाथ िमलाया। सभी राजा अपने -अपने हािथय पर बैठकर सिकट हाउस जहाँ राजपूताने के अ य राजाओं क ठहरने क यव था थी पहँच गये। िफर तोप क आवाज आने लगी। वस त हाथी िजस पर करौली महाराज बैठे हये थे। वह डरा नह , िहला नह । बािक राजाओं के हाथी डर गये। राजा के हाथी पर जबिक दो जीिवत शेर अगल-बगल म िजन पर राजा का हाथ रखा था िफर भी हाथी तोप क आवाज से नह डरा। ये नजारा देखकर ड् यक ू वायसराय दंग रह गये । वायसराय ने महाराज से बाद म हाथी माँगना िजस पर चौधरी जी बोल पड़े महाराजा का हाथी बहरा है सुनता नह है। बस हाथी वायसराय ने नह िलया। इस कार महाराजा हाथी को बचाकर करौली ले आने म सफल रहे। अगले िदन िमिलटी क परेड़ देखने शरीक हये। जहाँ दीवाने-ए-आम म आनस बाँटे गये। महाराजा करौली को के .सी. का तमगा ड् यक ू ऑफ कनाट ने पहनाया। बाद म दरबार समाि क घोषणा क गई। सभी तहसील मु यालय पर अ पताल, ाइमरी कूल, डाकघर, जनाने अ पताल। सुप रटे डे ट जेल, अपील यूडीिशयल मे बर करौली म नगर पािलका थािपत क । करौली महल म ान बँगला, जनानी रहवास शीश महल व गद घर आिद बनवाये। नगाड़ खाना िकले से गु सुरंग बनवाई। आप िदनांक 3.8.1927 ावण सुदी 6 स वत 1884 म गोलोक वासी हो गये। राजा भले मर गये पर तु

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उनका इितहास कभी नह मरता। शव क ि या कम करते व त घोड़ व हािथय तक ने दन िकया। यहाँ तक िक रयाया कह उठीलूट िलया भँवर ने उपवन। लुटी न लेिकन गंध फल ू क ।। खोता कछ ु भी नह यहाँ पर। के वल िज द बदलती पोथी।। िसटी पैलेस यह महल करौली का आकषण है िजसका िनमाण अजुनपाल ने 14व शता दी म करवाया। इसके वतमान व प का ेय राजा गोपाल िसंह को जाता है। लाल बलुआ प थर से बने इस महल म सफे द प थर का भी खबसू ू रती से योग िकया गया है। दीवाने -ए-आम क जािलयाँ और रंगीन काँच से बने झरोखे ट य ह। 1950 म महल मदनमोहन ट ट को स प िदया गया।1 पशुमेला करौली म फरवरी माह म आयोिजत पशु मेले म पूव राज थान ही नह वरन् स पूण देश के पशुओं का य-िव य होता है। इस मेले म पशु दौड़ का आयोजन भी िकया जाता है। नागौरी माला व जोधपुरी पीतल िवशेष प से मेले म िमलती है। करौली, सवाई माधोपुर, धौलपुर, भरतपुर, िह डौन े ही नह वरन् अ य देश के लोग भी मसाला खरीदने आते ह। कै लादेवी अभयार य यह अभयार य करौली िजला मु यालय से 23 िकलोमीटर दि ण पि चम म ि थत है। इसक सीमा कै लादेवी मंिदर के समीप से ार भ होकर कणपुर, माधोपुर के अ यार य तक जुड़ी हई है। यहाँ मु यतया नीलगाय, तदएु, िसयार, िकगिफशर व ं 1. करौली िजला दशन। (िवक पीिडया से उ ृ त)

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कभी-कभी बाघ भी िदखाई देते ह। पयावरण क ि से व छ व हरा-भरा अभयार य है। ितमनगढ िकला (मासलपुर) पूव राज थान के करौली िजला मु यालय से 40 िकलोमीटर दरू अवि थत है। इस िकले का िनमाण 12व शता दी के म य हआ है। अपने काल म ितमनगढ़ थानीय स ा का के था। 1196 म यहाँ के राजा कवरपाल को हराकर मौह मद ुँ गौरी और उनके सेनापित कतु ु बु ीन ने इस पर अपना आिधप य थािपत िकया। िकले क िवशेषता यह है िक मु य ार पर मुगल थाप यकला का भाव प ट ि गोचर है। इसक ख डहर दीवार, देवालय तथा बाजार अपने मौिलक प को कट करते ह। िकले से सागर तालाब (झील) का िवहंगम य भी िदखाई देता है , िजसके स दभ म एक िकवदं ं ती है िक तालाब म पारस प थर है। पौरािणक द तकथाओं के मा यम से अंचलवािसय ने छोटे -छोटे लोकगीत का िनमाण िकया है। इन गीत क छटाएँ अिवरल धारा से देशवािसय म ेमभाव का संचार करती है । कै लादेवी का ल खी मेला करौली िजला मु यालय से 23 िक.मी. दि ण म पठार एवं निदय से िघरी तपोभूिम कै ला मै या के मि दर म िवशाल ांगण म भ त का जमावड़ा होता तथा भ तगण उ र देश, म य देश, आगरा, िद ली एवं गुजरात व आस-पास के सभी े से चै माह क कृ ण ादशी से शु ल प क ादशी तक मेला भरता है। साम ती शासन म राजा-महाराजा, सैिनक पदाित सभी दशन के िलए आते रहे ह, देवी माँ के जागरण भी होते ह तथा जयकार से पूरा प रसर गूँज उठता है। कै लामै या क आरती क झलक ट य है—

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आरती ी कै लाजी जय अ बे गौरी, मैया जय कै ला गौरी।।टेक।। माता जी को सब जग यावे ा िव णु हरी। जय अ बे गौरी ॥ माँग िस दरू िवराजत टीको मृग मद को। उ वल से दो नैना च वदन नीको।। जय अ बे गौरी ॥ कनक समान कलेवर र ा बर साजे। र पु प क माला क ठ मधु साजे। जय अ बे गौरी ॥ के ह र वाहन राजत ख ग खपर धारी। सुर नर मुिन जन सेवत, ितनके दख ु हारी।। जय अ बे गौरी ॥ कानन कु डल शोिभत नासा े मोती। कोिटक च िदवाकर, राजत सम योित।। जय अ बे गौरी ॥ श भु िनश भु िबडारे मिहषासुर घाती। धू िवलोचन नैना िनशिदन मदमाती।। जय अ बे गौरी ॥ च सठ योिगिन मंगल गावत नृ य करत भैर । बाजत ताल मृदंग और बाजे डम ।। जय अ बे गौरी ॥ भुजा चार अित शोिभत ख ग ख पर धारी। मन वाँिछत फल पावै सेवक नर-नारी।। जय अ बे गौरी ॥

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क न थाल िवराजत अगर कपूर बाती। धोलागढ़ म राजे कोिट रतन योती।। जय अ बे गौरी ॥ माताजी क आरती िनिशिदन जो यावै। कहत सदान द वामी, मन वांिछत फल पावै।। जय अ बे गौरी ॥ तुत आरती के मा यम से लोकजीवन म िन य क जाने वाली आरती म नवदगा ु प क साधना कट होती है — आरती ी अ बे जी अ बे तू है जगद बे काली, जय दगु ख पर वाली तेरे ही गुण गाव भारती। ओ मइ या हम सब उतार तेरी आरती।। तेरे जगत् के भ त जन पै भीड़ पड़ी है भारी मइ या भीड़ पड़ी है भारी। दानव दल पर टटू पड़ौ माँ करके िसंहसवारी।। सौ-सौ िसंह सी तू बलशाली अ ट भुजाओं वाली दु ट को तुम ललकारती औ म या हम सब उतार तेरी आरती अ बे तू है जगद बे .....।। माँ-बेटे का इस जग म है बड़ा ही िनमल नाता, मइ या बड़ा िनमल नाता पूत कपूत सुने बहतेरे, माता भई न कमाता ु

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सब पर क णा बरसाने वाली, िवपदा िमटाने वाली मैया भँवर से तू उबरती ओ मइ या हम सब उतार तेरी आरती। अ बे तू है जगद बे ....।। नह माँगते धन और दौलत न चाँदी ना सोना मइ या ना चाँदी ना सोना हम तो माँगे माँ तेरे मन का एक छोटा-सा कोना सब पर अमृत बरसाने वाली मन को हरसाने वाली सितय के सत् को सँ वारती ओ म या हम सब उतार तेरी आरती। अ बे तू है जगद बे ...।। रतन जिड़त िसंहासन बैठी है जग राजदलारी ु मइ या है जग राजदलारी ु माथे-मुकेट कान म कु डल, शोभा अद्भुत यारी यारी शोभ है अपर पारी वरनी न जाये दलारी ु , भारी से संकट टारती ओ मइ या हम सब उतार तेरी आरती अ बे तू है जगद बे ...।। घनन-घनन होय भवन म लाल वजा मि दर म चौमुख िदवला जले आँ गन म करे बढ़ो री धन म तोकूँ यावत नर और नारी, करके तेरी अ ारी कारज िबगड़े सँवारती

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ओ मइ या हम सबे उतार तेरी आरती अ बे तू है जगद बे ...।। पान फल ू सब लेकर आती ा भ त चढ़ाती मइ या ा भ त चढ़ाती गाती हँ म भट तु हारी खश ु हो जा मेरी महतारी भ तन क तू रखवाली ल मी से डर भर डारती ओ मइ या हम सब उतार तेरी आरती अ बे तू है जगद बे ...।। छोटा-सा प रवार हमारा इसे बनाये रखना मइ या इसे बनाये रखना इस बिगया म सदा खशी ु के फल ू िखलाती रहना। अ बे तू है जगद बे ...।। सदा भवानी दािहने स मुख रहत गणेश। पाँच देवर ा कर, ा िव णु महेश।। माँ दाता हम मंगला माँ को िदयो खायँ । माँ सी दाता छोड़के मांगन िकस घर जायँ ।। मइ या इतना दीिजयो जाम कट ु ु ब समाय। साधु ठाड़े ार पर वो भी न भूखा जाये।। बैल चढ़े शंकर िमले , ग ढ़ चढ़े भगवान्। िसंह चढ़ी दगु िमले, हो गये पूरन काम।। माता के दरबार म टनटन जी घनघोर। जाती ठाड़े ार पर दशन दीजो मोय।।

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मानव क भाँित देवी-देवताओं को भी भोजन, शयन व अ य कार क पूजा का िवधान है जो लोक सं कृ ित क झलक को कट करता है। यहाँ पर देवी के भोग के समय क जाने वाली आरती को तुत िकया गया है—1 भोग क आरती िच िच भोग लगाओ री मेरी मैया ेम से भोग लगाओ मेरी कै ला मैया पूरब, पि चम, उ र, दि ण चार िदशा से चली आ ओरी मेरी कै ला मैया िच- िच ........... खा सूखा भोग हमार , माँ करो गुजारो जइये ेम से खाओ री मेरी कै या कै ला मैया िच- िच ........... वीणा बतासे का भोग हमार पचमेल िमठाई का भोग तु हारो जइये ेम से पायो री मेरी मैया िच- िच ........... आप भी खाओ नौ बिहन को िखलाओ शेख बचे कट वायो री मेरी मैया िच- िच ........... ऐसो भोग लगाओ मेरी कै ला मैया सब अमृत है जाये री मेरी कै ला मैया िच- िच ........... 1. सा ा कार : पुजारी ी कै लादेवी मंिदर से िकया।

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राज थान के करौली िजले म कै लादेवी थान के मह व को इस कार तुत िकया है िक अंचलवािसय क देवी-देवताओं म असीम ा है। वह नव ह देवताओं को भी आरती ारा स न कर आशीवाद ा त करते ह तथा लोग के सुखी जीवन एवं दीघायु क मंगल कामना करते ह। शिनदेव जी क आरती ट य है— ी शिनदेवजी क आरती जय जय ी शिन देव भ न िहतकारी। सूरज के पु भु छाया महतारी॥ जय जय.. याम अंग व चतुभुज धारी। नीला बर धार जाप गज क असवारी॥ जय जय.. ट मुकु ट शीश रिजत िदपत हे िललारी। मु न क माला गले शोिभत बिलहारी॥ जय जय.. मोदक िम ान पान चढ़त ह सुपारी। लोहा ितल तेल उड़द मिहषी अित यारी॥ जय जय.. देव दनुज ऋिष मुिन सुम रत नर नारी। िव वनाथ धरत यान शरण ह तु हारी॥ जय जय.. देवनगरी करौली म वैसे तो बारह मिहन स सं ग होते ह िक तु चै के नवरा ा ृ का िवशेष मह व है। यहाँ का ाकितक सौ दय देखते ही बनता है। अंचल के नरनारी भि मय संगीत क तान म मदम त हो जाते ह तथा अ य देश से आने वाले भ तगण भी उनके साथ भि भाव म ितरोिहत हए िबना नह रहते। स पू ण नगरी लांगु रय व जगरात से पू रत होकर आरती को महाआरती का प दे देती है —

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एक लाँगु रयाँ क झलक िगनी के बीच अके लो लाँगु रया छोटी जोगनी यो कहे काँ टा लाय दे मोय ×

×

×

दै दै ल बो चौक लगु रयाँ बरस िदना आमगे। मैया नवरा म टेक— मैया नवरा म जब धरती पे आती है -2 िकसको या देना है-2 ये सोच के आती है। पहले नवरा े म, माँ सबक खबर लेती है दजेू नवरा े म, अपने खाते म िलख लेती है तीजे नवरा े म, बात आगे बढ़ाती है।। मैया ........ चौथे नवरा े म, माँ आसन लगाती है पाँचवे नवरा े म, आ गई हँ बताती है। छठे नवरा े म, सबको दशन कराती है।। मैया ........ सातव नवरा े म, खोल देती खजाने ह आठव नवरा े म, लग जाती लुटाने है नवे नवरा े म, दोन हाथ से लुटाती है। मैया ........ दसव िदन माँ क िवदाई जब आती है सारे धरती के लोग क जब आँख भर आती है भ त िफर आऊँ गी, वादा करके चली जाती है। मैया ........

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राज थान देश के पूवाचल के पिव तीथ म कै लामै या का अपना मह व है। यहाँ भ तगण बारहमास दशनाथ आकर अपने को ध य मानते ह तथा आशीवाद हण करते ह िक तु ावण मास क ह रयाली का अनूठा संगम ि गोचर होता है — सावन म बरसे बद रया सावन क बरसे बद रया माँ क भीजे चुंद रया माँ क ...... लाल चोला मै या का चमचम चमके माथे क िबंिदया दमदम दमके हाथ म झलके मुंद रया। माँ क ...... छाई ह रयाली झूमे अ बुआ क डाली होके मतवाली कके ू कोयिलया काली बादल म कड़के िबिजरया। माँ क ...... ऊँचा भवन है तेरा ऊँ चा है डेरा कै से चढँू पाँ िफसले ह मेरा टेढ़ी मेढ़ी है डग रया। माँ क ...... काली घटा पानी बरसा के लाई झूला झूले मेरी वै नो माई भ त पै माँ क नज रया। माँ क ...... सवाई माधोपुर एक प रचय पूवाचल क तपोभूिम म सवाई माधोपुर पूव राज थान का गढ मु ते वर नाम से सुिव यात राणा ह मीर क नगर है, िजसके चार ओर ह रयाली क घटाओं से

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यहाँ का वातावरण देखते ही बनता है। सवाई माधोपुर को बसाने का ेय जयपुर नरेश सवाई माधोिसंह थम (1650-1667 ई.) को है।1 सवाई माधोपुर िजले म पूव राज थान के करौली रयासत और जयपुर रा य क तीन िनजामत, िजनम सवाई माधोपुर, गंगापुर तथा िह डौन सि मिलत थी। वतमान म इस िजले म गंगापुर, बामणवास और बोली एवं माधोपुर उपख ड म िवभािजत है।2 इितहास िस व पौरािणक आरा यदेव ि ने गढ़गणेश का िव व िव यात मंिदर है जो िक अित ाचीन है। यहाँ सवाईमाधोपुर ही नह , स पूण राज थान के नरनारी थम देव के प म मानते ह तथा मांगिलक काय (िववाह) िनम ण डाक ारा/ यि गत थम िनम ण देने के बाद ही शुभकाय ार भ करते ह। ऐसी राज थानी सं कृ ित क पुरातन पर परा है जो आज भी ये क समाज ारा अनुकरणीय है। सवाई माधोपुर को लेकर पुरातन इितहास के माण िमलते ह। यह इितहास िस रणथ भोर दगु सवाई माधोपुर से 13 िकलोमीटर घने जंगल म अवि थत है। दगु के तीन ओर एक िवशाल खाई अवि थत है, जो जलयु त है। यहाँ का िकला सु ढ़ है तथा परकोटा भी मजबूत है। नामकरण म पया त िभ नताएँ ि गोचर ह। इस दगु का िनमाण चौहान ारा िकया गया है। जन ुित के अनुसार इस दगु के समीप प ला सरोवर था, िजसके तट पर प ऋिष ने तप या क । दो ितभाशाली राजकमार ु जय त और रणधीर के िशकार खेलने के समय ऋिष क उपि थित म इस दगु का नाम रण त भपुर रखा।3

1. िजलेवार सां कृ ितक सव ण, जवाहर कला के जयपुर, 1995 2. िजलेवार सां कृ ितक सव ण, जवाहर कला के जयपुर, 1995 3. िजलेवार सां कृ ितक सव ण, जवाहर कला के जयपुर, 1995

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भारतीय सं कृ ित क पर परा के अनुसार िकसी भी काय का शुभार भ मांगिलक तर पर गणेश व दना से िकया जाता है। अत: म भी उसी पर परा के अनु प व दना करता हँ — आरती ी गणेश जी जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाक पावती िपता महादेवा। पान चढ़े फल ु को भोग लागे संत करे सेवा। जय... ू चढ़े और चढ़े मेवा, लडवन एक द त दयावंत चार भुजाधारी, म तक पे िसंदरू सोहे मूसे क सेवारी। जय ... अ धेन कू आँख देत कोिढन को काया। बाँझन को पु देत िनधन को माया। जय... दीनन क लाज राखो, श भु सुतवारी, कामना को पूरी करो जग बिलहारी। जय...1 गीत गणेश जी सब देव ने फल ू बरसाये , मेरे आज गजान द आये। देवा कौन तु हारी माता, और कौन िपता तु हारे। देवा गौरा हमारी माता, भोले बाबा िपता हमारे, मेरे आज गजान द आये। देवा काहे के व तु हारे, काहे को ितलक लगाए। देवा रेशम के व तु हारे, और च दन ितलक लगाए। देवा काहे क पूजा तु हारी, और काहे का भोग लगाए। देवा अगर कपूर क पूजा, लडवन ु भोग लगाए। देवा काहे क झारी तु हारी, और कोनस पीवन हारे। देवा ताँबे क झारी तु हारी, गजान द पीवन वारे, मेरे आज गजान द आये।2

1. सा ा कार, गणेश मंिदर पुजारी से। 2. सा ा कार, गणेश मंिदर पुजारी से।

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पूव राज थान के दि ण पूव म सवाई माधोपुर िजले क इ गढ़, जो िक पिव पौरािणक देव थान है, िजसम अंचल के ही नह स पूण भारत के नर-नारी यहाँ आकर माता के माथा टेक कर म नत माँगते ह, िजसे बीजासनी नाम से जाना जाता है— माता बीजासनी सांची सांची है बीजासनी मेरी माय, इ दरगढ़ बाँको है बाँके बाक खारी है, खोर बीच मड़ यारौ, सकल मड़ यारौ है। वे तो राजा गणेश पाल आवै, तेरी जात जंिगया ने यारौ, भरोसो मैया यारौ है। वे तो सब रानी लागे यारे पाँव, चुड़ला म िचत यारी नैनन को सुरमा यारौ, माथे क िबि दया यारी, पैरन के िबछआ ु यारे, गोद जडला ू यारौ है, भरोसो मैया यारौ है। साँची साँची है बीजासनी मेरी माय। माता बरवासन इतरी अमर गढ़, इतरी गोठरा, तौ बीच सकल मड़ यारौ वरवासन, एक बरवासन, एक लासन बाक खोर घणी। याही रै अमरगढ़ क महतौ भी आयौ तो, लायौ है दाढ़ी वारो भोग। बरसावन ... याही रै करौली को राजा भी आयो तो लायौ है छ घने बरवासन... याही री नगर के या ी जी आये, तो लाये है पान बताशे बरवासन, एकलासन बाक खोर घणीना रयल री भेट बरवासन एकलासन बाक ... याही री नगर क बह बेटी भी आई। तो लाई है वामन नौ बरवासन एक लासन बाक ... बामन कू मैया पूडी लापसी, साधून भोग घने बरवासन तेरे भवन मैया यास लगत है, तो काली िसल निदया बहाई िबरवासन

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तेरे भवन मैया धूप लगत है, आड़े टेढ़े त बू बनाये िबरवासन तेरे भवन मैया भूख लगत है, आड़ी हाट जुड़ाई िबरवासन एकलासन बाक खोर घणी।1 सवाई माधोपुर से जयपुर रेलमाग पर अवि थत ‘चौथ का बरवाड़ा’ म चौथ माता का मंिदर है। वहाँ का मंिदर देवभूिम के प म सुिव यात है जो िक ‘ईशरदा’ के समीप है जहाँ एकादशवा िशविलंग है, िजसे ‘धु मे वर’ महादेव के प म पूजते ह और िफर माता क महाआरती म नर-नारी संगीत व नृ य को भजन का प देकर अरदास करते ह। करवाचौथ को काितक मास म मिहलाएँ व पु ष त रखते ह तथा ि याँ अपने पित क ल बी उ क कामना करती है। आज के भौितकवादी वातावरण, पा चा य स यता के भाव के बाद भी भारतीय सं कृ ित क पर परा ई वर के ित आ था िव मान है— तेरे मि दर म आशा तेरे मि दर म आशा के दीप जलाने आया हँ। करोगी पूण अिभलाषा यही उ मीद लाया हँ।। तेरी गौरवमयी गाथा को, वेद और शा गाते ह। म सुनके मिहमा महामाया शरण म तेरी आया हँ।। तेरे मि दर म आशा .............. ना पूजा-पाठ कछ ु जानूँ, ना सेवा अचन िच तन। म तेरा तु छ सेवक बनके , सेवा भाव लाया हँ।। तेरे मि दर म आशा .............. दय म ीत चरण क क ँ िदन-रात आराधन। 1. लालजी राम मीना (आड़ाडँूगर) से सा ा कार।

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करो वीकार आराधन, म िक मत का सताया हँ।। तेरे मि दर म आशा .............. ह टटेू तार वीणा के मगर झ कार बाक है। म टटेू तार पर सरगम, सुनाने मन क आया हँ।। तेरे मि दर म आशा .............. दर बदर ठोकर खाकर के अपनी माँ को पाया है बसाने माँ के चरण म, नया संसार आया हँ।। तेरे मि दर म आशा .............. ये माँ बेटे का दिनया ु म बड़ा ही उ च नाता है। मा म ुिटयाँ कराने अपनी, माँ से आया हँ।। तेरे मि दर म आशा .............. िन कष राज थानी गौरवशाली पर परा म पूव अंचल क धरोहर वीरता, याग ओज के कारण सदैव व दनीय रही है। पुरातन इितहास इस त य का वलंत उदाहरण है िक यहाँ क िम ी के कण-कण म शौय, परा म, याग, तप और वािभमान क मु ाता रही है। राज थान देश का पूव अंचल हरी-भरी खेती-खिलहान से पू रत सवसमाज म सामंज य क एक छटा ामीण लोक जीवन क सं कृ ित सापे मन:ि थित का ोतक है। पुरातन एवं अधुनातन सं कृ ित के म य यावहा रक एवं सै ाि तक प रवतन िनर तर हए ह। अं ेज , मुसलमान , ईसाई िमशन रय ने राज िकया िक तु मूल सं कृ ित का तिनक भी ास करने क ताकत उन दशि ु य म नह पनप पाई। आपसी सद्भाव, याग, ेम, परोपकार आिद भाव के कारण अ य ा त क अपे ा राज थानी सं कृ ित पूव से पि चम व उ र से दि ण तक क वीरता के

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िविवध उदाहरण तुत करती है। माता कै लादेवी का चम कार राज थान ही नह , स पूण देश क जनता, यहाँ तक िक मुसलमान धमावल बी भी मानते ह। दसरा ू मदनमोहन जी का मंिदर यगु पुराना है िक जधाम से कम नह है। आज वही पर प रा नाथ ारा के ीनाथ जी तथा जयपुर के गोिव द देव जी क है। इस कार राज थानी सं कृ ित का कण-कण सद्भाव, ेम व परोपकार से िमि त व क याणकारी ि गोचर है। आज प रवतन मानवीय िवचार का हआ है , लोग क ा, िव वास आ था के कारण स यता व सं कृ ित वही है। वै ािनक यगु होते हए भी दैवीय आ था िनर तर बढ़ रही है। 

अ याय-ि तीय

राज थान एवं पूव राज थान का लोक सािह य भारतीय सं कृ ित क साम यवान, ऊजावान शि याँ लोक सािह य म ि थत है। िविभ न सं कृ ितय क अपनी पर पराएँ ह, जो िनर तर चली आ रही ह। इितहास इन सभी त य को मािणत करता है। इसी स दभ म राज थान देश क सं कृ ित म लोक जीवन, लोक पर पराओं का अपना मह व है। पूव राज थान का लोक सािह य अमू य िनिध है। देश म चिलत िढ़ य पर पराओं के अद्भुत शौय, परा म सौ दय और मानवीय मू य का मह व है। राज थान म अकाल, वषा क कमी, ृ क पैदावार म कमी होने पर भी राज थान वािसय के ओज, वीरता और किष आ मिव वास को कम नह कर सके । अपनी सं कृ ित क र ा के िलए आन-बान, शान और बिलदान देने म पीछे नह है। यह पिव भूिम वीर को ज म देने वाली है। ना रय का जौहर, पु ष का पौ ष, वाणी, याग, बिलदान और समपण का भाव यहाँ येक यि म समाया हआ है। गाँव-गाँव म तथा घर-घर म राज थान लोक-कला व लोक-सािह य क प दन पूण ित के दशन होते ह। ेम, याग, रोमांस कथाओं ‘ढोला मा रा दहा ू ’ ‘जलाल बूनना’, ‘नागजनी नगव ती’, ‘ रसालू पौपदे’, ‘िनहालदे सुलतान’, ‘अचलदास ख ची री वचिनका’, ‘बेिल कृ ण कमणी री कथा’, ‘पाबूजी वीरा मक का य’, ‘प रहारी सूविटय ’, ‘ओ यँू’ जैसे लोक गीत का अ य भ डार राज थान के लोक सािह य क समृि है। इन लोक सां कृ ितक िवरासत म सहज एवम् सरल मनोभाव को य त करने वाले लांगु रये मान कमल िखलते हए तीत हो रहे ह। भारतीय सं कृ ित के गुलद ते म संगिठत फल ू म लोक सािह य गुलद ते क भूिमका के स दभ म चचा कर तो, एक फल ू राज थानी लोक सािह य क महक देता

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है। वेद, वेदांग, ा ण, उपिनषद्, रामायण, महाभारत, बौ व जैन धम के चारसार म लोक वाङ् मय क पृ भूिम के सहज दशन होने लगते ह। कथास रत-सागर, ृ वृह कथा, पंचत , िहतोपदेश आिद सािह यक कितय का भी अपना मह व है। लोक म चिलत मौिखक पर पराओं को इन यगु म सािहि यक व प देने का यास िकया गया और उनके व थ एवं उ वल अिभ यंजना को शा ीय का याधर बनाया गया।1 लोक सािह य वाता का मह वपूण अंग है। अं ेज के शासन का य म ई ट इि डया क पनी के कमचारी एवम् कछ ु चच के पाद रय ने भी सबसे पहले भारतीय लोक सािह य क ओर अपना यान के ि त िकया। कनल टॉड, सी.ई. ोवर, फे स रेवरेड एस िहल प आिद इस े म मुख रह। 2 इसी काल म िह दी े म लोकवाता स ब धी काय हआ। लोक श द का यु पित परक अथ लोक श द ‘लोक दशने’ धातु म ध ञ् यय लगाने से यु प न है। िजसका शाि दक अथ ‘देखने वाला’ होता है। इस िन पि के अनुसार जो सम त जन समुदाय को देखने का काय स प न करता है, लोक कहलाता है। लोक श द के कई अथ िमलते ह, जैसे िव व, भुवर, वग, पृ वी3, पाताल, िव व का एक भाग संसार, भूभाग, लोक, समाज, जा, समूह, मानव, जाित, यश, िदशा, ा, िव णु, महेश और ाणी आिद। पर िवशेषत: दो अथ अिधक चिलत है। एक अथ है, िजससे लोक-परलोक और तीन लोक का ान होता है। दसरा ू अथ है जा , जनता व जनसमुदाय। इसी दसरे ू श दाथ का वाचक ‘लोक’ श द सािह यालंकार है।4 1. 2. 3. 4.

सं क ा नानूराम ‘राज थानी लोक सािह य’ पृ. 13-14 नानूराम सं क ा राज थानी लोक सािह य पृ. 15 सोहनदान चारण ‘राज थानी लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन’ पृ. 1-2 नानूराम ‘राज थानी लोक सािह य’ पृ. 1, 2, 4

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ऋ वेद म सु िस पु ष सू त म ‘लोक’ श द का योग जीव एवं थान दोन अथ म हआ है — ‘‘ना या आसीद त र ं शी णोर ौ समवतत। पद यां भूिमिदश: ो ा तथा लोकां अक पयन।। ऋ वेद म ‘लोक’ श द के िलए ‘जन’ श द भी यु त हआ है- ‘य म य इमे रोदसी उमे अहिम मतु टवं। िव वािम य र ित ोदं भारतं जनं ’ यजुवद म लोक (समाज) क िवराट् क पना क है। महिष वेद यास ने ‘लोक श द का योग जन साधारण के अथ म िकया है -‘ य दश लोकानां सवदश भवे नर।’1 ीमत् भागवत् गीता म ीकृ ण ने लोक सं ह पर बल देते हए अजुन को उपदेश कछ ु इस कार िदया:‘‘कमणेवे िह संिसि माि थता जनकादय:। लोकसं हमेवािप संप य कतुमहष ।’’2 लोक श द यापक अथ िलए हए है। इस श द का योग वैिदक कालीन स यता व सं कृ ित म भी यु त हआ है। काला तर म धीरे-धीरे समाज म चिलत हो गया और आज भी यापक स दभ को िलए हए है। डॉ. वासुदेव शरण अ वाल के अनुसार ‘‘िकसी त िनयम या छ द के भीतर बँधा हआ जो धािमक जीवन है, वह शा ीय या माग य या िनयमानुगत कहा जायेगा। इसके अित र त जो शा ीय सीमाओं और त से यि र त है, िजसे अथववेद के श द म ा य जीवन कहगे। वह लोक धरातल पर िवकिसत होने वाले समाज का िवराट जीवन माना जायेगा।” शा प र कृ त उपवन है और लोक अर य है। शा क ि बुि

1. सोहनदान चारण ‘राज थानी लोक सािह य’ पृ. 1, 2, 4 2. ीमत भागवत गीता अ याय 3/20 लोक

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के मंथन दय और बुि का अंतर ही लोक और शा गोसाई ने कहा है ‘‘ दय िस धु मित सीप समाना।’’1

का अ तर है, जैसा िक

एक जगह और लोक श द को प रभािषत करते हए कहा है िक ‘‘लोक हमारे जीवन का महासमु है। उसम भूत, भिव य, वतमान सभी कछ ु संिचत रहता है। लोक रा ट का अमर व प है, लोक ान और स पूण अ ययन म सब शा का पयावसान है। अवाचीन मानव के िलए लोक सव च जापित है। लोक क धा ी सवभूत माता पृ वी और लोक का य त प मानव, यही हमारे नये जीवन का अ या म शा है। इसका क याण हमारी मुि का ार है और िनमाण का नवीन प है। लोक पृ वी का मानव इसी ि लोक म जीवन का क याणतम प है।’’2 िह दी सािह य कोश के अनुसार-लोक मनु य-समाज का वह वग है , जो अिभजा य सं कार शा ीयता और पांिड य क चेतना और पांिड य के अहंकार से शू य है। यह एक पर परा के वाह म जीिवत रहता है। ऐसे लोक क अिभ यि म जो त व िमलते ह वे लोक त व कहलाते ह।3 आचाय हजारी साद ि वे ी के श द म ‘‘लोक श द का अथ जनपद या ा य नह है, बि क नगर और गाव म फै ली हई समूची जनता है । िजसके यावहा रक ान का आधार पोिथयाँ नह ह। ये लोग नगर म प र कृ त िच स प न तथा सुसं कृ त समझे जाने वाले लोग क अपे ा अिधक सरल और अकिृ म जीवन के अ य त होते ह और सुकु मारता को जीिवत रखने के िलए जो कछ ु भी व तुएँ आव यक होती ह, उनको उ प न करते ह।’’4

1. 2. 3. 4.

वासुदेव शरण अ वाल : वरदा (पि का) भारतीय सं कृ ित लोकत व जनवरी 1958 अंक 1 पृ. 3, 4 सं क ा नानूराम ‘राज थानी लोक सािह य’ पृ. 4 स. धीरे वमा ‘िह दी सािह य कोश’ भाग-1 पृ.स. 747 हजारी साद ि वेदी, जनपद अंक 1 पृ. 65

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रामनाथ सुमन ने महाकिव तुलसी दास क उि को इस कार दोहराया है ‘‘लोक क वेद बडेरो कहा है।’’1 डॉ. स ये ने लोक श द को इस कार प रभािषत िकया है ‘‘लोक मानवजाित का वह एक समूह है, जो ामीण सं कार, उ नत स यता, िनर र िक तु सं कार म मंिडत तथा किथत िश ा अनिभ ा और साथ-ही-साथ सवण स यता के घम ड से बहत दरू है तथा ाचीन पर परा क अटटू धारा म अख ड िकलोल करता रहता है। उसक वाणी म रस है , अिनवचनीय सुख है और उसक स दयता पर सुनहली छाप है। ’’2 लोक श द का अथ मेरी िवन स मित “ ामीण व शहरी प रवेश म या त समुदाय के िलए यु त होना चािहए। िजसम िबना भेद भाव के जाित धम एवम् िलंग भेद के परे आम आदमी के क याण क भावना हो, वह समूह ही लोक कहलाता है।” भाषािव ान म डॉ. भोलानाथ ितवारी ने लोक श द के िलए ाम श द सीिमत माना है ‘जन’ अपे ा िनकट है िक तु लोक का समीचीन पयायवाची श द फोक है। फोक श द ऐ लो सै सन् श द FOLC का िवकिसत प है। जमन म यह VOLK हो गया है । फोकलौर के स दभ म फोक का अथ ‘असं कृ त लोग’ है । दसरा ू श द लोकर एँ लो सै सन् LOR से िनकला है और इसका अथ होता है वह जो सीखा जाये। इस कार फोकलोर का शाि दक अथ असं कृ त लोग का ान है।’’3 भि कालीन िनगुणधारा के वतक किव महा मा कबीरदास जी ने बह चिलत लोक श द क या या िन नानुसार क है। ‘‘जब म अ ानवश लोक व 1. रामनाथ सुमन स मेलन पि का (लोक सं कृ ित िवशेषांक) लेख 2010 पृ. 35 2. सं क ा नानूराम ‘राज थानी लोक सािह य’ पृ. 1 3. रामनाथ सुमन स मेलन पि का लोक सं कृ ित िवशेषाक सं. 2010 पृ. 433

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वेद का सहारा लेकर, सवसाधारण के पीछे लगा चला जा रहा था, िक माग म सद्गु िमल गये और उ ह ने मेरे हाथ म ान का दीपक थमा िदया।’’1 मेरी िवन स मित म लोक श द पर परागत जन ुितय म िमलता है। यदाकदा दो सं कृ ितय के संघष म िकसी अ य अथ के संकेत तैयार हो जाते ह। भारत म आय के आगमन पर अनाय और आय संघष हआ। वेद वेदे तर संघष मुख ह। पा चा य मतानुसार :- ‘लोक’ का आंगल ित श द फोक (Folk) है। इस (Folk) श द को म ययगीन ु अं ेजी म (Folc) कहा जाता था एवं यही एं लो-से सन् भाषा म (Volk) नाम से चिलत रहा। सामा य जन का एक श द म य त करने के िलए ‘फोक श द’ का योग िकया गया, िक तु आम जन क सां कृ ितक धरोहर को शा ीय प म िवभािजत करने का न आया तो ‘लोक अथवा’ ‘फोक’ का अथ गँवार ामीण (हीन अथ) म मूढ़ के प म भी िकया गया िक तु यह अथ व संक ण मनोवृि का प रचायक था। एनसाइ लोपीिड़ या ि टेिनका म कहा गया है ‘‘िक िकसी भी रा ट क नगरे तर सां कृ ितक धारा को ‘फोक’ के अ तगत वीकार करना होगा।’’2 डॉ. बाकर के अनुसार ‘‘फोक से ता पय स यता से दरू रहने वाली िकसी पूरी जाित का बोध होता है। पर तु इसका िव तृत अथ लेती। िकसी सुसं कृ त रा ट के सम लोग इसी नाम से पुकारे जायगे। ’’3 वतमान म लोक का अथ :- लोक भारतीय समाज क नाग रक और ामीण दोन अिभ न सं कृ ितय म या त है। के वल ाम क प रिध म लोक को बाँधना उिचत नह है, य िक ाम और नगर का भेद तो इितहास क िपछली कितपय सिदय 1. सं क ा नानूराम ‘राज थानी लोक सािह य’ पृ. 2, 3 2. सं क ा नानूराम ‘राज थानी लोक सािह य’ पृ. 4 3. सोहनदास चारण : राज थानी लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन पृ. 7

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म ही थािपत हआ है। अत: यही लोक नामक सं ा जन समाज का उ ोगी एवं गितशील अंग है। लोक सािह य का व प सािह य श द अपने आपम यापक अथ िलए हए है। जो लोक और सािह य म सम वया मक ि कोण से अिभ े रत है। स पूण जीवन जगत क चेतना स प न अिभ यि को प ट करता है। सम त जीवन लोक के ान को अिजत कर आ मसात करने क बल क पना ारा श द संयोजन शि , यि िवशेष क अपे ा जाित व समाज ारा ही संभव है। यही कारण है िक समाज क ि याि वित अपने लोक सािह य के आधार पर होती है। तुत िवकास म क िवषमता को प रभािषत करना बड़ा दलभ काय है, उसका उ लेख िकया जाना आव यक है। सािह य श द सं कृ त के ‘सिहत’ श द म षयञ् यय लगने से बनता है। िजसका अथ है िहत सिहत होना। ‘‘सिहत य भाव: सािह य’’ अथात् सािह य उस रचना को कहगे िजसम िहतकर भावना या त हो। अथात् सािह य को भाव और िवचार का सु दर चयन या श दाथ का सु दर सम वय कह सकते ह। का यशा के अनुसार ‘‘िहतेन सह सिहतंत त य भाव: सािह यम्’’1 म यापक अथ क या या कर तो लोक िहत क अिभ यि करने वाली समृ रचना सािह य क कोिट म आती है। िजसम स पू ण वाङ् मय समावेिशत हो जाता है। सीिम त अथ क बात कर तो ‘का यशा ’ का वाचक है तथा अं ेजी के ‘िलटरेचर’ श द का पयायवाची है। िव ान ारा सािह य क िविवध प रभाषाएँ दी गई ह:- आचाय कु तक ने व ोि जीिवतम् का य- ंथ म िलखा है िक ‘‘िकसी भी िव ान् ने अभी तक सािह य के परमाथ क या या नह क है। यह काय मेरे ारा स प न िकया गया है। 1. स यदेव चौधरी, शांित व प गु ‘भारतीय एवं पा चा य का य शा का संि त िववेचन पृ. 319

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‘‘सािह य मनयो: शोभाशािलतां ित का यसौ अ यूनानित र त वं-मनोहा र य व ि थित।। (व ोि जीिवतम्) रिव नाथ ठाकरु के अनुसार ‘सािह य श द म िमलन का एक भाव ि गोचर होता है। वह के वल भाव का भाव के साथ, भाषा का भाषा के साथ, थ का थ के साथ िमलन है। यही नह वरन् यह भी बतलाता है िक मनु य के साथ मनु य का, अतीत के साथ वतमान का दरू के साथ िनकट का िमलन कै सा होता है ? ेमच द के अनुसार :- सािह य जीवन क आलोचना है चाहे वह िनब ध के प म हो चाहे कहानी के या का य के प म, उसम हमारे जीवन क या या होनी चािहए। आचाय महावीर सार ि वेदी के अनुसार :- ‘सािह य क मह ता’ शीषक म िलखा है िक ‘‘ ान रािश के संिचत कोश का नाम ही सािह य है।’’ डॉ. हजारी साद ि वेदी के अनुसार :- जो मनु य को दगित ु हीनता और परमुखा पेि ता से न बचा सके , जो उसक आ मा को तेजोद्दी त न कर सके , जो उसके दय को परद ु:खकातर और संवेदनशील न बना सके , उसे सािह य कहने म मुझे संकोच होता है।1 डॉ. नगे के अनुसार :- “आ मािभ यि ही वह मूल है िजसके कारण ृ सािह य बन पाती है।” कोई यि सािह यकार और उसक कित डॉ. भगवानदास के अनुसार :- “सािह य एवं का य से हमारा ता पय लिलत सािह य क िविश ट रचना से होता है।” 1. डॉ. हजारी साद ि वेदी : सािह य क मह ता पृ. 15

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डॉ. गणपितच द गु के अनुसार :- सािह य भाषा के मा यम से रिचत वह सौ दय या आकषण से यु त रचना है, िजसके अथ बोध से सामा य यि को आन द क अनुभूित होती है। मेरी िवन स मित म सािह य म जीवन एवं जगत् क स दयमय झाँक और ान व प के िशव व का समावेश होता है , अत: वाङमय ही क याणकारी सािह य है। ‘‘गित ही जीवन है। गित नह तो जीवन समा है , इसिलए लोक-सािह य, जीवन का सािह य है, वह जीवन से अलग नह , जो पूव सं कृ ित क उ तम िनिध के सिहत वतमान िश टता एवं स यता के मंगल द अ युदय का सूचक है।1 मेरी िवन स मित म िन कष प म लोक-सािह य लोक-मानस क पर परा से िवरिचत वह सािह य है जो जनगण क वाणी से मुख रत होता है। िजसम जीवन क सहज संवेदनाओं क अकृ ि म अिभ यि होती है। यह सामािजक श द करौली व सवाई माधोपुर के ामीण अंचल से जुडा हआ है तथा डांग े क लोक सं कृ ित लोक सािह य, लोक संगीत का समावेश िनिहत है । ऐितहािसक िकवदंितय , पौरािणक त य को आधार बनाकर लोक जीवन, लोक िढ़य एवं लोक िव वास के प म समाज म आज भी चिलत ह तथा नवीन पर पराओं का सृजन करते हए तीत होते ह। इ ह लोक िढ़य , िव वास एवं मा यताओं के आधार पर ही लोकसािह य का िव लेषण करना है। राज थानी लोक सािह य क अवधारणाएँ लोक-सािह य का व प अपने आप म यापक स दभ को िलए हए है। लोक जीवन से जुड़ी िविवध रीित- रवाज , िढ़य व पर पराओं का उ लेख सािह य म िव मान है। िक तु राज थानी सािह य का िव लेषणा मक अ ययन इस धारणा को पु ट करता है िक पुरातन िढ़ य , पर पराओं, सं कार , ामीण और शहरी सं कृ ित म आये प रवतन को यगु सापे मानते हए भी सं कृ ित क िवराट् 1. सं क ा नानूराम : राज थानी लोक सािह य पृ. 3

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सम वयता आज भी िव मान है। लोक सािह य का े िवशद प िलए हए है। भारतीय समाज म या त टोने-टोटक , अनु ठान , सं कार उ सव क पर परा है, जो राज थानी लोक-सािह य म रंगा हआ है। भोपा, देवी-देवताओं, पीर, िपतृ, भूत व भूत आ माओं, हवाओं स त क वािणय धूणी, मसान िविवध देिवयाँ व उन पर क जाने वाली बिलयाँ। एक और तो टोटके ह, दसरी ू और उनक पूजा का ावधान है। एक ही प रवार म अनु ठान के प एवम् िवप म वैचा रक िभ नता रहती है। सुधारवृि का सं कार भी िदखाई देता है। राज थानी समाज म येक तर के अनुकू ल िच रचना, मूित िवधान कथा कहानी, संगीत नृ य, पूजा-पाठ, भोजन यव था, शरीर तथा गृह क स जा आिद त व भी िमलगे। यँू तो सोलह सं कार बनाये गये ह िक तु ज म िववाह और मृ यु तीज यौहार का उ लेख राज थानी सािह य म विणत है। सामािजक िढ़य चौथ का त (करवाचौथ) गणेश पूजा शंकर चौथ आिद िवषय का लोक जीवन के ित आ थावादी ि कोण प ट प रलि त है। नागपूजा, वृ पूजा, जूआ खेलना तथा घूमर नृ य करती मनभावन ी का ेम कथा, िवरह क यथा राज थानी लोकसािह य क मूल अवधारणा है। िजसने राज थानी स यता, सं कृ ित व प रवेश से ओत- ोत िविवधता म एकता के दशन होते ह। लोक सं कृ ित का मु य प, लोकगीत , लोकगाथाओं, लोककथाओं एवं लोकना तक फै ला हआ है। साथ-ही-साथ यहाँ के तीज यौहार , त व सोलह सं कार म लोक सं कृ ित का िवराट व प प ट प रलि त है। डॉ. राम साद दाधीच के अनुसार ‘‘ त यौहार उ सव मेले राज थानी लोक जीवन के अटटू अंग ह। देवी-देवताओं म अटटू िव वास यहाँ के लोक समाज क िवशेषता है।’’1 आज यगु प रवतन होने पर इस िव वासी धारणा को िपछड़ापन, 1. राम साद दाधीच राज थानी भाषा सािह य सं कृ ित पृ. 77

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अनपढ़ और अ धिव वासी कहा जाता है लेिकन मेरी िवन स मित म लोक का ृ म रमा हआ है। डॉ. स ये ने लोक सं कृ ित को शरीर, मन व व प कित मनोिदनी तीन प म य त िकया है। लोक देवी देवताओं क पूजा ामीण सीमाओं के बाहर भी पूजा करने क पर परा है। इस स दभ म क याण िसंह शेखावत का कथन प ट है ‘‘पाबूजी, हड़बूजी, गोगाजी, तेजाजी, मि नाथ जी, रामदेव आिद लोकदेवता है तथा सितय के भी मेले आयोिजत िकये जाते ह। इनके अित र त करणी जी, जीणमाता, िहंगलाज माता, पपलाज आिद ऐसी देिवयाँ रह , िजनक मृित म आज भी मेले आयोिजत िकये जाते ह।’’1 राज थानी लोक सं कृ ित म दया, ेम, याग एवं ा अपार है। देवीदेवताओं के मंिदर चबूतरे चाहे गाँव म या िफर जंगल म हो इनक पाठ-पूजा लौिकक रीित से ही िकया जाता है। ये देवी देवता वे है , िज ह ने राज थानी समाज व सं कृ ित म ज म लेकर यह देह का अपण िकया है। यहाँ क ि याँ भी देिवयाँ और मासीजा के प म लोकसं कृ ित का अंग बन गई। शरतच पा ड् या के अनुसार ‘‘वागड् मएं लोक देवता नी सेवा-पूजा अणा िव वास थक थाती रे है िक वागड़वािसयाँ नां रोग दौग ने संकट आस् लोक देवता मेर करी सकै ।’’2 ‘‘ससुर के अंगना जलपूजन जाऊँ गी। सात सखी राहरे ते उतरी, हंसत खे लत मु कात, चलो री सखी बाबा न द चाल, जसोदा ने जायो न दलाल। हाथ सरदी, पैर पांतरी, जर रए जनन िकवार। ं चलो री सखी उलट घर चाले यां न आदर भाव।।3

1. डॉ. क याण िसंह शेखावत : राज थानी भाषा सािह य सं कृ ित पृ. 362 2. शरतच पा ड् या : वागड़नी सं कृ ित पृ. 86 3. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 7

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डॉ. भोलानाथ ितवारी के अनुसार ‘फोक िलटरेचर फोक लोर का एक अंश है िजसका स ब ध के वल लोकगीत, गाथा, कथा, नाटक, उि तथा पहेली आिद से है। एक िवशेष भौगोिलक स पू ण े के करौली सवाई माधोपुर े का िववरण इसी त य को मािणत कर मौिखक पर परा को िलिपब करता है। क याण िसंह शेखावत के मत का समथन कर लोक अवधारणा क ितपुि िन नानुसार स ेिषत करता हँ लोकसािह य का वग करण लोकसािह य ग लोककथाएँ

प लोकगाथाएँ लोकना

लोकगीत लोककहावत लोकदोहे लोकसोरठा

लोकनृ य

लोकानुरंजन

हरजस

लोकमेले

लो रयां चुटकले ु लोको सव

लोकम

राज थानी लोकसं कृ ित क गौरवशाली मिहमा का बखान इन ग -प मय गूँथी हई कलाओं से पता लगाया जा सकता है, जो सम देश क एक िविश ट पहचान बन चुक है िजसका भाव स पूण देश को एक नयी पहचान बनाने म समथ है। लोकरीितयां , लोकिव वास, पर पराएँ, त -म , जादू-टोने आिद के िविवध उदाहरण का उ लेख मवार तुत शोध ब ध म दगे। इस कार पूव अंचल के सवाई माधोपुर तथा करौली िजले क प ट त वीर इ ह िब दुओं के स दभ म प ट प रलि त है। िशवाड़, महावीर जी, मदनमोहन जी, कै ला मैया आिद देवी-देवताओं क कथा म तुितव दन को भी यथा थान तुत िकया है।

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वग करण - प (1) लोकगीत :- मानव उपलि धय म गीत का मह वपूण थान है। स भवत: आिदम मानव ने वाणी का थम दशन ‘गीत’ के प म ही िकया था। िजतना गीत मानव के वभािवक भावना मक प दन से संबं है, उतना वाणी का कोई और प नह । आवेग एक सकल शरीरी ि या है। शरीर का ये क अवयव ही आवेग से आ ांत होकर ग या मकता यु त हो जाता है। इसी के अधीन क ठ वर फटता ू है। यह आवेग लययु त होता है। लय और ताल वर से प रचय होता है। सवृंत और िववृ वर के बाद श द का वेश हआ इस कार लोकगीत म वर और श द पर पर गुँथे रहते ह। लोकगीत क पर परा बहत पुरानी है। सं कृ त िव ान् किवय तथा िह दी के भि कालीन किवय का समय िनि चत है पर गीत क रचनाओं का कोई िनि चत समय नह है। गीत क ाचीनता िचि हत है। ऋ वेद म गािथक श द है।1 वह गाने के काम म िलया गया है। ा ण एवं आर यक थ म इस समय क अनेक गाथाओं से लोकगीत क साकारता के माण िमलते ह। ा ण थ म ऋक को देवी और गाथा को मानवी से स बि धत बताया गया है। श द या वर :- सभी लोक गीत म सामा यत: यह बात िमलती है िक श द गौण होते ह। लय (Tunes) से और इसी कारण कभी-कभी यह कहा जाता है िक यह लय है िजसका सवापे ता अिधक मह व था। यह िव वास स य से बहत दरू है। स चाई यह है िक क ठ से क ठ पर उतरते हए श द ने मश: लघु िवकार और संशोधन को झेला है। संगीत अिधक यथावत् प म मृ त रहा है, य िक लोक नायक के िलए गीत का स पूण अथ आवेग स पृ त (Emotional) होता है

1. सं कृ ा नानूराम : राज थानी लोक सािह य पृ. 43

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उतना नैगिमक (Logical) नह ।1 आवेग क पूण ता ही वर क धानता को कट करती है। भारत म दो प म देखने को िमलते ह : एक फु ट द ूसरा ब धमय। सामा यत: फु ट व मु तक प म वर गौरव क अपनी िवशेषता रहती है ; लेिकन ब धमय प म श द गौरव बढ़ जाता है। मु तक अथवा फु ट गीत म अथ अथवा श द गीत या वर के बीच मह वपूण भूिमका अदा करते ह। लोकगीत क प रभाषा :- वह गीत जो लोक-मानस क अिभ यि हो अथवा िजसम लोक मान सभास भी हो लोकगीत के अ तगत आएगा। 2पा चा य िव ान ने ांस के गीत या तो सु दर ( वादु) होते ह या नाटक य जमनगीत बोिझल एवं दय पश , सामा य योरोपीय गीत गेय , गुनगुनाने यो य पु ट एवं अस ब , सी गीत उदास और अनगढ़, पेनी मंद और वि नल तथा िहबू गीत आ याि मक और भावशाली होते ह। अमरीक िन ो गीत िवल ण सु दर एवं गहरी मािमकता िलए हए होते ह।3 आचाय हजारी साद ि वेदी ने ‘िह दी सािह य क भूिमका’ म िलखा है। लोकगीत क एक-एक बह के िच ण पर रीितकाल क सौ-सौ मु धाएँ खिडताएँ ं

और धाराएँ यौछावर क जा सकती है, य िक िनरलंकार होने पर भी ाणमयी है और अलंकार से लदी हई भी िन ाण है। ये अपने जीवन के िलए िकसी शा िवशेष क मुखापे ी नह है और अपने आप म प रपूण है।4 डॉ. सुदेश ब ा के अनुसार “लोकगीत किव क प र ानुभूितपरक ि कोण से सहज प म अद्भुत संगीता मक श द योजना को कहा जा सकता है।”5 1. 2. 3. 4. 5.

डॉ. स ये : लोक सािह य िव ान म लेख पोइटी ए ड द पीपल पृ. 184 डॉ. स ये : लोक सािह य िव ान् पृ. 315 याम परमार : भारतीय लोक सािह य आचाय हजारी साद ि वे ी : िह दी सािह य क भूिमका पृ. 138 डॉ. सुदेश ब ा : राज थानी व पंजाबी सं कार गीत .स. 2004 पृ. 4

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ृ के उदगार ह। इनम ी रामनरेश ि पाठी के अनुसार ‘लोकगीत कित अलंकार नह के वल रस है, छ द नह के वल लय ह, लािल य नह , के वल माधुय ृ जब तरंग म आती है , तब वह गान करती है। उसके गीत म दय का है। कित इितहास इस कार या त रहता है , जैसे ेम म आकषण ा म िव वास और ृ के गान म मनु य समाज इस कार ितिबि बत होता है । क णा म कोमलता। कित जैसे किवता म किव मा म मनोबल और तप या म याग।’1 बृज सु दर शमा के अनुसार ‘लोकगीत लोक-मानस के ितिब ब ह। िवजय दान देथा ने लोकगीत सामुिहक जनमानस क अचेतन भावधार का ितफलन माना है।’2 देखे तुलसी किवतावली म बधाई का उ ले ख। ‘‘जायो कल ु मंगल बधावनो बजायो पुिन। भयो प रताप पाप जननी जनक को।।’’ िशविसंह चोयल के अनुसार ‘लोकगीत मानव जीवन का आदरणीय व अपूव संगीत है। मानव दय एवं मानव जीवन क अशेष भावनाओं का एक िव वास सं हालय है।’3 पु षो तम लाल मैना रया के अनुसार ‘लोकगीत हमारी जनता के वाभािवक उदगार ह, िजनका ादभाव सुख द :ु ख, हष-शोक आिद िविवध ू अनुभूितय के प रणाम व प हआ ह।’4 ल मी कमारी चू डावत के अनुसार ‘सािह य अ तरा मा क आवाज है , ु ानमय ि है, िवचार क सृि है। उसी सािह य का िविश ट अंग है लोकसािह य, लोकवाता और लोकगीत। िजसका सृजन लोक-मानस से बनता है। एक 1. 2. 3. 4.

डॉ. सुदेश ब ा : राज थानी व पंजाबी सं कार गीत .स. 2004, पृ. 6, 7 सं. िवजयदान देथा : राज थानी लोक गीत पृ. 9 िशविसंह चोयल समपा. राज थानी लोकगीत भाग-2 पृ. 3 पु षो म लाल मेना रया : राज थानी लोकगीत .स. िदस वरावडप ई.पृ. 1

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यि क सामूिहक सामािजक अिभ यि होती है। लोकमानस क इसिलए यह लोक-मानस का दपण है। लोकगीत म सं कृ ित का स चा इितहास है।’1 डॉ. तारा काश जो िस गीतकार के अनुसार ‘लोकगीत सां कृ ितक सृजन है, जो समाज म ेम एवं पू य भाव को ज म देते ह।’2 डॉ. अशोक शा ी के अनुसार ‘लोक यानी ामीण अंचल म या त सामािजक ेम, ेष व अ य िवचार को प रवेश से जोड़ा जाता है। वह लोक सं कृ ित का प रचय देने वाले गीत का समूह लोकगीत कहलाता है।’3 भारतीय ितभा स प न िव ान ने लोक गीत के स दभ म प रभाषाएँ िलखी है िजनम मेरी िवन स मित म लोक जीवन संघष, पर पराएँ, पौरािणक जीवन से जुड़े गीत को लोक गीत कहना ही सव िचत रहेगा। पा चा य िवचारक म पैटी, िसजिवक व ि म जैसे ितमा स प न िवचारक ने लोक जीवन म होने वाले गीत के िवषय म पया त िलखा है पैटी ने ‘लोकगीत आिद सृि सािह य क सृि से यहाँ तक वणमाला क सृि से पहले का है। वह अनु ुित का अंग है। 4 राज थानी लोकगीत का िवकास म म धरा क मृगमरीिचका सािह य म ही नह वरन् मानव जीवन को लोकगीत के मा यम से यथाथ से अवगत कराने म स म ह। राज थानी िमट् टी के कण-कण म याग, ेम एवं समपण व बिलदान का भाव देखने को िमलता है। सामािजक, राजनीितक व धािमक िविवधताओं के होते हए भी एकता के दशन लोकगीत के 1. िव ाभूषण महिष मुरारीलाल (सं हकता) पार प रक मांगिलक लोकगीत जयपुर सं करण थम 1 जून 2001 पृ. सं. 2-9 2. डॉ. तारा काश जोशी एक सा ा कार 3. िह दी नयी किवता म राज थान का योगदान डॉ. अशोक शा ी 4. कु . उिमला सैनी : राज थानी सं कृ ित म िचि त सं कृ ित समाज शोध ब धी पृ. 42

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िमठास म देखने व सुनने को िमलती है। मधुर भाषा म ‘गैर तथा घूमर’ नृ य से राज थानी गीत पर परा को चार चाँद लगा िदए ह। गम क रात म सहारे ही पूरी करते ह। ावण भा क बरसात क रात म जब ‘तीजणी’ ि यतम क राह देखती बेचैन हो उठती है, तो िवरह लोक गीत म उद्गार कट करता हआ ि गोचर होता है। वीररस का योग राज थानी लोकगीत म पया त देखा गया है। लोक गीत का स ब ध समाज व प रवार से है। मांगिलक शुभ अवसर पर भी लोक गीत गाने क पर परा है। शादी, ज म, तीज, यौहार पर देवताओं के व अ य लोकगीत को गाने क पुरातन पर परा आज भी िव मान है। िकसान हल ँ लड् डा चलाते समय लोकगीत क चलाते समय, क ली देते समय, चरखा व ऊट धुन गुन-गुनाते ह। लोकगीत का सृजन समूह समाज ही िजसम पव सव पर भी लोक गीत के गाने का अपना िविश ट मह व है। लोकगीत म लय का अपना मह व होता है। वह इनक आ मा है। सरल अिभ यि ारा गाये जाने वाले गीत ही लोक गीत कहना मेरी स मित म समीचीन है। दय क अिभ यि सरल श द के मा यम से उपमा, पक, उ े ा आिद अलंकार क आव यकता को मह व नह देती है। येक कड़ी को कम-से-कम दो बार दोहराने से पुनरावृि क वृि भी कट होती है। गीत के मा यम से सामािजक व यावहा रक ान क उपलि ध भी होती है। वतमान जीवन म या त ाचार घूसखोरी से उि न हो एक लोक किव अपने भाव को इस कार य त करता है — ‘बलम जी मेरी समझ म नाय परी, जै कै सो भयो वराज। बालम मेरे चोर पंच तो बन गये, युिसयन को ब यो समाज।। बालम जी घूस लेते चौपार पै जै कै सो भयो भारत को राज। बलम मेरे अ याचार यादा हो रहयो, भारत को डबे ू गो जहाज।।

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लोक गीत व उनके कार लोक गीत का वग करण करना दलभ ु है। लोक जीवन व सं कृ ित, स यता, प रवेश को मुखाकार करने का काय लोकगीत का ही है। मने इनका स यक् अ ययन व िव लेषण करने पर 14 कार को तुत करने का िवन यास िकया है, जो िन नानुसार है (1) सं कार गीत (2) ऋतुओं के गीत (3) देवी-देवताओं के गीत, लोक देवताओं के गीत (4) रातीजुगा के गीत (5) संयोग के गीत (6) िवयोग के गीत (7) िवदाई के गीत (8) थान के मह व के गीत (9) म के गीत (10) वीरगित (11) जातीय गीत (12) संतो या िस के गीत (13) मेले के गीत (14) घुड़ले के गीत आिद मुख ह। लोक सािह य तो वैसे स पूण राज थान देश के े का ही लाघनीय है िक तु मेरा शोध काय े स पू ण राज थान देश क अपे ा पूव राज थान के करौली, सवाई माधोपुर े के लोकगीत का िव ले षणा मक अ ययन है। पूव अंचल के लोकगीत म इ ह व प को देखा गया है। य िप भाषा बोली म िभ नता है; लेिकन अथ व प व पर परा का िम ण एक ही है। ि य क ासदी से िव ु ध होकर किव कहता है। ‘भारत म अबलान क हो रही िमट् टी खार। होय अनादर कट ु ु ब म, पावे नह स कार।।’1 लोकगीत लोकगीत का ज देश म अपार भ डार है। ज म येक अवसर के येक सं कार के गीत चिलत ह। ज के लोकगीत को डॉ. कु दनलाल उ ेती ने दो वग म िवभािजत िकया है — 1. अनु ठान या आचार स ब धी 2. मनोरंजन-परक 1. डॉ. गोिव द रजनीय राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य पृ. 47

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अनु ठान या आचार-स ब धी गीत मनु य के िकसी-न-िकसी सं कार से स ब होते ह। भारतीय पर परा के अनुसार मनु य के जीवन म सोलह सं कार क अिनवायता वीकार क गई है। इन सोलह सं कार म से तीन अ य त मह व के ह—ज म, िववाह तथा मृ यु। ये मानव जीवन के िवशेष अवसर ह। शेष अ य सं कार मु डन, उपनयन, कणछेदरन आिद इतने अिधक मह व के नह है। ये शेष तेरह सं कार मु य तीन सं कार से िभ न भूिमका रखते ह। ये क सं कार के हम दो प िदखाई देते ह। एक पौरोिह य स ब धी दसरा ू लौिकक। पौरोिह य प वह है, जो िकसी पुरोिहत के ारा म आिद के ारा स प न कराया जाता है। लौिकक वह है , िजसे लोकाचार के आधार पर िकया जाता है। उसका उ ले ख िकसी मृित म नह िमला, न ही उसका स पादन करने के िलए िकसी पुरोिहत क आव यकता होती है। इसे बहधा ि याँ ही कर लेती ह। घर क ि याँ प रजन के यहाँ एवं मोह ले-पड़ोस म बुलावा भेजकर घर पर आयोजन करती है और िमल-बैठकर अवसरानुकू ल गीत गाती ह। मनोरंजनपरक गीत म िकसी-न-िकसी लोक चिलत कथा का पुट रहता है। कछ ु गीत तो बहत ल बे होते ह। जैसे—ढोला। (क) ज म गीत ज देश म ज म स ब धी अनु ठान का ल बाकाय म होता है। गभाधान से सव तक का सं कार ‘पुंसवन’ सं कार होता है। यह सं कार लोक समाज म इस सं कार के नाम से िव यात नह है। वह इसे ‘साध पूजना’ कहा जाता है। लोक क तीक शैली म इसे ‘चौक’ भी कहते ह। गभ के सातव मास म यह सं कार होता है। पित और प नी को चौक पर िबठाया जाता है। इस अवसर पर गाये जाने वाले गीत को ‘सौहर’ कहा जाता है। ‘सौहर’ गीत म एक गीता ऐसा होता है जो गिभणी क येक मास क दशा को विणत करता है।

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पहला महीना जब लािगए, बाकौ फलु ू ग ो फलु लािगए ए बाई दजौ ु महीना जब लािगए राजे तीजौ महीना जब लािगए, बकौ खीर खांड मन आइए। (ख) िववाह गीत ज म के उपरा त िववाह सं कार ही सबसे अिधक मह वपूण है। िववाह सं कार का आर भ ‘प क ’ से होता है। प क हो जाने के उपरा त सगाई होती है। लड़क वाला कछ ु भट नाई तथा ा ण के हाथ भेजता है। ‘लड़का’ चौक पर बैठकर उस भट को हण करता है। जो स ब धी वहाँ आते ह, उ ह सगाई चढ़ जाने पर पान के बीड़े तथा बताशे बाँटे जाते ह। सगाई पर यह गीत गाया जाता है — चंदनऊ क चंदन पिलिकया गिढ़ लाऊ लाल लुहारके । अंचनिव-मंचविन मँमर डराये, पािटन अरसी लगाद ् ए। रेसम बान बुनाई पािलिकया, दौिन लगाई मखतुल क । आदतू-पादतू िगङु आऔ लागै, सबाउ द रयाए क सौ रए। जा पर बैठ दोऊ िमिल साजन खे लत झुझना सा रए। वैवािहक मंगल काय का आर भ ‘पीली िच ी’ से होता है। क या प से ‘पीली िच ी’ आती है। उसम िववाह क ितिथ िनि चत होती है तथा लगुन क ितिथ भी तय होती है। इसके उपरा त बुआ एवं बेटी-बिहन को िनम ण भेजे जाते ह। ये सभी लगुन िलखे जाने से पहले ही िववाह वाले घर म आ जाते ह। िनि चत ितिथ को ‘ल नपि का’ आती है। यह िविधवत् लड़क के हाथ पर रखी जाती है। उधर वर पि का लड़क के हाथ पर रखी जाने के प चात् लड़के के यहाँ आती है। ‘ल नपि का’ पंिडत िलखता है िजसम िववाह का पूरा काय म िलखा होता है। लगुन िलखकर िजस लड़क का िववाह होता है, उसके हाथ पर रोली-अ त लगाकर कलाई से बाँ धकर लगुन रखी जाती है। उस समय मिहलाएँ लगुन गीत गाती है —

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लगुन गीत-हाथ डंडा मुख और खेलत है चौहान मनोहर साँवरे। घर आओ न लाल लड़ाइते, लगुनादतू ऊबे हार मनोहर साँवरे। लला कौन के तुम नौितयाँ, और कौन बबुल के पूत, मनोहर सांवरे। लला अपुने अजुल के नौितया, अ अपने बबुल रजपूत मनोहर सांवरे। इस लगुन गीत म स पू ण वंश जैसे बाबा, ताऊ, िपता, चाचा, दादी, ताई, माता, चाची, बहन आिद के वणन िमलते ह। पूरा प रवार इस िववाह से स न है और क या प के लोग को लगता है िक अब तो बेटी परायी हो रही है। भाँवर गीत िह दू सं कृ ित म भाँवर (फे रे) लेने पर क या प नी के प म पित क हो जाती है। मीन मेख मृदंग बाजै , गीत मुिनयर परािह भाँ वर सबरी, अजु या, िमिथलापुरी को राज रामच सीता भाँ वर-परै। पहली भव रयाँ जेऊ बेटी बाप क , दजी ू भव रयाँ जेऊ बेटी बाप क । तीजे भव रयाँ जेऊ बेटी बाप क , चौथी भव रयाँ जेऊ बेटी बाप क , × × × सातव भव रयाँ अब बेटी ससुर क ।1 िववाह के अवसर पर होने वाले सभी रीित- रवाज व र म के प चात् अ त म लड़क क िवदाई होती है। यह िववाह का सबसे दय पश , मािमक, ददभरा समय होता है िक लड़क अपने घर के सभी सद य माँ-बाप, भाई-बहन, भाभी, दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई को छोड़कर अपने िपया के घर जाती है। इस अवसर पर ि याँ िवदाई गीत गाती है —

1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोकसािह य, पृ. 12

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ओहो मेरी सोनू िचरैया उड़ चली बाबूल तैने दई मै िनकार जैसे जल क माछरी मैया मेरी रिखयो दलार ु चाचा मेरे दईऊँ िनकार जैसे जल क माछरी चाची ने रािखयो दलार ु जैसे गुर क माथरी।1 एक िवदाई गीत — और हे कौरे गुिड़ या ओ घोड़ी। रोवत घोड़ी सहेलीरी।। अपनो बाबुल कौ देस छोड़यो। अपने ससुर के साथ चाली। ले न बासुल घर आपनौ। छोटे िबरन पकरौ रथ को डंडा। हमारी बहन कहाँ जाइ। छोड़ौ िबरन मेरे रथ कौ डंडा।। अपनी परायी पराई अपनी। जै किलयगु यौहा ।। (ग) त- यौहार और देवी गीत ज लोकगीत के त-धम एवं देवी-गीत का िवशेष थान है। मूलत: ज का लोकजीवन धािमक आ थाओं पर आधा रत जीवन है। अत: इस जीवन म त, यौहार , उ सव का अपना िवशेष मह व है। त, अनु ठान ज जीवन म ाय: होते रहते ह। येक मास म कोई-न-कोई त एवं यौहार जवासी धूमधाम से मनाते ह, 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोकसािह य, पृ. 12

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िजनम इन अवसर पर सामूिहक या एकाक प म लोक भजन आिद गाते ह। इन भजन का प गीत जैसा ही होता है। करौली व सवाई माधोपुर िजल म अनेक देवी, देवताओं के गीत गाये जाते ह— देवीगीत ज लोक जीवन वैसे तो कृ ण मय जीवन है पर तु यहाँ येक देवी-देवता को मह व िदया जाता है। लोकजीवन देवी पूजा, आराधना तथा भि भी त मय होकर करता है। ज म नव दगा ु अथवा नवराि चै मास म होती है। इस अवसर पर देवी जागरण, देवी दशन आिद िकया जाता है। रात-रात भर जागकर देवी के गीत गाये जाते ह। घर-घर म देवी पूजा होती है। त रखे जाते ह। क या लांगुरा िजमाये (िखलाये) जाते ह। देवी जागरण के गीत भगत कहलाते ह। देवी गीत ी और पु ष सभी गाते ह। इन गीत म देवी के ित भि , माता क उदारता एवं माता के जनक याण प का ही वणन रहता है। देवी पु िवहीना मिहला को पु देती है — मैया रही है नंदन वन छाय फलन ू को लोिभिमयां मैया लै ारे पल बाँस पुलार ठाडी मैया देऊ पूत घर जाय मैया के ारै प िनरधन पुलार ठाडौ, मैया देऊ अ न धन घर जाय। लागु रयाँ राज थान ि थत करौली नामक नगर म कै ला देवी का िस मि दर एक पहाड़ी पर ि थत है। यहाँ भ त के ठहरने के िलए आस-पास अनेक धमशालाएँ भी बनी हई ह। यहाँ आस-पास चार ओर घने जंगल ह तथा काली िसंध नदी पास से िनकलती है। ज के लोकजीवन म कै ला माँ क उपासना का बहत मह व है। ज लोक जीवन म लागु रयां गीत बहत चिलत ह। इन गीत क धुन बड़ी सरल व रसीली है। नवराि य म घर-घर लागु रयां गाया जाता है। लागु रयां के िवषय म यह कहा जाता

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है िक वह देवी का िवशेष उपासक था। वह सदा देवी क सेवा म रहता था। करौली म कै ला देवी के मंिदर के बाहर लागु रयां क मूित देवी क ओर मुख िकये खड़ी है। या ी लागु रयां के भी दशन करते ह। गीत म बालक तथा पु ष के िलए लागु रयां श द का योग िकया जाता है तथा ी-भ तजन को जोिगन कहा जाता है। कै ला देवी के मंिदर म जात देने वाल का तांता बना रहता है। कहा जाता है िक लांगु रया क उपासना से मन क साध भी पूरी होती है। हारे लंगु रयां जात करन तेरी हम आये हम ठाडे तेरे ार लंगु रयां, जात करन तेरी हम आये। तेरी मूरत कै सी यारी है। तेरी सूरत पर बिलहारी है। रे लंगु रयां अरज करन तेरी हम आये। हाँ लंगु रयां तेरी परक मा म भीर भरी, सब लोग लुगाई नाचत है। लाँगु रया गीत— दो-दो जोगनी के बीच अके लो लाँगु रया, छोटी जोगनी य कह काँटा लाय दे मोय। बड़ी जोगनी य कह जूड़ा लायदे मोय। दो-दो जोगनी ... छोटी जोगनी य कहे हरवा लायदे मोय। बड़ी जोगीनी य कहे सेि डल लाय दे मोय।। दो-दो जोगनी ... छोटी जोगनी य कहे मोटर लायदे मोय। बड़ी जोगीनी य कहे हेलीको टर लाय दे मोय।। दो-दो जोगनी ...

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थाली भरा भोजन िमला पानी भरा िगलास। माता तेरी याद म भूख लगे न यास।। दो-दो जोगनी ... डोरी डालू तो महल चढ़ आइयो लाँगु रया। चढ़ आइयो लाँगु रया ल खडयो लाँगु रया।। दो-दो जोगनी ... चूला चला ससुराल को पीकर नौमन तेल। हाथी घोड़े अगल-बगल क धे पर है रेल।। दो-दो जोगनी ... च टी चली बाजार को बाँध गले म ईट। ं सब बजाज य कहे ल ा लेगी के छ ट।। दो-दो जोगनी ... माताजी के ार पर भई भ तन क भीड़। शरण इ ह के पड़े रहो सबक हरेगी पीर।। दो-दो जोगनी ... नैन से नीर जारी माँ शरण हँ ितहारी। यास हँ दशन को दशन दो माँ एकबारी।। दो-दो जोगनी ... लाँगु रया गीत— माता मैया के भवन म घुटवन खे ल लांगु रया। घुटवन खे ले लांगु रया रे सरपट दौड़े लांगु रया। कै ला मैया के भवन ... माता तेरी गैल म चार जोिगनी जाय। दो गौरी दो सांवरी रे जोड़ा िबछड़ जाय।।1।। कै ला मैया के भवन ...

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मैयो तेरी गैल म ल बो पेड़ खजूर। चढ़े तो मीठे फल चखे और िगने तो चकनाचूर।।2।। कै ला मैया के भवन ... मैया दशन दीिजए चढ़कर िसंह सवार। एक हाथ म ख पर लेकर एक हाथ म तलवार।।3।। कै ला मैया के भवन ... मैया तेरे भवन म नौबत बजती ार। घ टन क घनघोर विन है रही जय जयकार।।4।। कै ला मैया के भवन ... संगमरमर के महल म कै ला रही िबराज। चामु डा माँ संग म तीन लोक म राज।।5।। कै ला मैया के भवन ... ी मधुर उ ेती ने अपनी पु तक ‘ ज लोक सािह य’ म लगु रयां गीत के स ब ध मिलखा है —‘जब लोग तीथया ा करने के िलए जाते ह, तो माग क थकावट दरू करने के िलए और दसरे ू उस देव क आराधना म एक िवशेष कार के समयोिचत लोकगीत का आयोजन कर व दना के प म उस देवता को स न करते ह। जैसे िशवया ा म ‘ब बो से’। ज म समय-समय पर गाये जाने वाले लोकगीत म देवी के साथ ‘लंगु रया’ का भी मह वपूण थान है। लंगु रया करौली, वरैयावारी, नगरकोटवारी, बैलोनवारी, इटौरावारी, साँचौलीवारी आिद देवी क जात के िलए जाते समय गाते ह। जोिगन नाचती है; लांगु रया ताल देता है और जाती (या ी) गाते ह। दै दै ल बे चौक लंगु रया बरसन िदन म आिमंगे। अबकै तो हम दकले ू ही आये अबक जोिगन संग लै आिमंगै। दै दै।

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जाहरपीर क योित ज म जाहरपीर क योित भी जगायी जाती है। देवी जागरण क भाँित इसका भी जागरण होता है। भा पद म गु जु गा का ज म होने के कारण इस मास म ाय: ‘ योित’ जगायी जाती है। इसम जािहरपीर का गीत गाया जाता है , जो इस कार है— गु गैला गु बाबरा करै गु न क सेवा है गु ते चेला अित बड़ा तौऊ करै गु क सेवा है। होई आठे के गीत यह त काितक बदी अ टमी को ि याँ रखती ह। चावल के आटे से िच बनाकर उसक पूजा क जाती है। अहोई देवी के िच के साथ ब चे के िच भी बनाये जाते ह। ये ब च क मंगल कामना हेतु पूजन है। के वल पु वती माताएँ ही पूजन करती ह। माताएँ पूरे िदन उपवास करने के उपरा त राि म च मा और तार को सात बार अ य देती है। हौर हौर हम िफरै, अहोई रात क रात। अहोई मइया अब जुहार िफर जुहार खसम पूत क आस।। करवा चौथ काितक कृ ण प क चतुथ को यह त िकया जाता है। करवा चौथ का त पूजन ि याँ अपने सौभा य के िलए करती है। ि याँ दीवार पर करवा चौथ बनाती ह। ि याँ पूजन करते समय चूड़ी, मेह दी, िब दी, िबछआ ु , महावर आिद रखकर पूजा करती है। करवा चौथ म सात भाइय क इकलौती बहन भी बनाई जाती है। करवे, कु हा रन, महावर लगाने वाली नाइन चूड़ी पहनाने वाली मिनहा रन इसम बनाई जाती है। इसक एक चिलत कथा भी है। पूजन करते समय ि याँ गाती है—

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क वा ले क वा ले वीर िपयारी क वा ले बाप भाई क ख ी खानी क वा ले क वा ले धोले नाड़े, धोले साढ़े तेरौ जनम जाइयो क वा ले क वा ले। एक अ य गीत के मा यम से भी करवा चौथ त क मिहमा का गुणगान िकया गया है— वीरा किडये करवड़ा ु सव सुहागन करवड़ा ए कही ना अटेरी ना × × × बहन यारी वीरा ले सव सुहागन करवड़ा। शीतला देवी करौली व सवाईमाधोपुर म भी चेचक क बीमारी को शीतला माता के नाम से पुकारा जाता है। जनमानस का मानना है िक शीतला माता के कोप से ही लोग को चेचक िनकलती है। यहाँ के लोग इस बीमारी म कोई औषिध नह देते बि क बीमार ृ पर छोड़ िदया जाता है। देवी माँ क पूजा कर उनके गीत आदमी को देवी माँ क कपा गाकर, उनक शंसा कर उस बीमार आदमी के व थ करने क ाथना क जाती है। िजस घर म िकसी यि पर शीतला माता का कोप होता है, उस घर म अनेक कड़े िनयम का पालन िकया जाता है । एक उदाहरण ट य है—

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चलौ मना शीतला पूजन को माता देवी को आओ पूजन को। जासी दया से संकट नास। द:ु ख दा र सब जासे ासे। ऐसी मैया को आओ पूजन को, चलौ मैना शीतला पूजन को।। होली गीत फा गुन महीने म होली का यौहार भारतवष म बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर जवासी बस त के उ माद म मदम त होकर होली और रिसया गाते ह। इन गीत म ेम और यौवन का िच ण अिधक मा ा म देखने को िमलता है। ज म बस त पंचमी के िदन से ही होली का आर भ हो जाता है। जगह-जगह होली के डांडे लगा िदये जाते ह। गुलाल क होली आर भ हो जाती है। बस त के आगमन के साथ ही लोकजीवन म होली के डफ बजने ार भ हो जाते ह। मन म उ साह, नयन म नवीन योत, साँस म सुग ध इस अवसर पर सभी के मन म उतर आती है। ीकृ ण व राधा क होली खेलने का वणन इन लोकगीत म अ यिधक रहता है। करौली व सवाई माधोपुर िजले म होली का यौहार िवशेष प से मनाया जाता है। इसे रंग का यौहार भी कहते ह— ऐसे यामु िखलार, रंग म रंग हारी काहै को पचरंग बनायौ-काहै को काहे क िपचकारी, रंग म रंग डारी ऐसे यामु िखलार, रंग म रंग डारी। एक अ य गीत— होली आ जईयो याम बरसाने गाँव तोय होरी खबू िखलाय दऊगी ं तोय रंग म खबू रंगाय दऊगी। ं

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1.

2.

3.

4.

का हा यो मत जाने भोरी है। हम बरसाने क गोरी ह। तेरे कर सोलह शृंगार याम तोय नर से ना र बनाय दऊगी। ं तोय होरी खबू िखलाय दऊगी। ं आ जईयो याम ... ये बंसी सौत हमारी है। तेरे ाणन से यारी है। तेरे पतले-पतले होठ, होठ पै लाली चटक लगाय दऊगी। ं तोय होरी खबू िखलाय दऊगी। ं आ जईयो याम ... तोय लहंगा चोली पहनाऊगी। ं तेरे माथे िबंिदयां लगाऊगी। ं तोय पहनाके पायल, उढाके चूंदर ठमक ु ठमक ु नयवाय दऊगी ं तोय होरी खबू िखलाय दऊगी। ं आ जईयो याम ... तोय सखा मनसुखा यार है। तेरी आंखन को तार है। तेरे याम सलोने गाल, गाल पै रोरी खबू लगाय दऊगी। ं तोय होरी खबू िखलाय दऊगी। ं आ जईयो याम ...

लोक कहावत कहावत कछ ु श द का समूह है जो िविश ट सांकेितक अथ क यंजना के िलए जन सामा य ारा यु त है। व तुत: कहावत एक ‘श द है जो िविश टाथ यंजना को अपने म समावेिशत करती तीत होती है। सामािजक चलन के कारण उसी अथ को वीकार कर लेता है। सूि य के पीछे सामािजक अनुभव क अचेतन ृ के काय यापार म स ा काय करती है। िविभ न काय के दौरान घटनाओं म कित पशु-पि य के यवहार म और मानिसक उ ेलन क ि थितय म सा य या िवरोधमूलकता शाि दक ले ष या श द वैिच य ास था तुक क पना से अनुभूत ृ का ज म स यि वा य या पद म िनिमत हो जाता है। िनि चत है िक इस कित वाणी या भाषा के साथ ही हो गया होगा और मनु य के िवकास के म म उसने िन य नवीनता हण क होगी।

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लोकोि या कहावत लोक सािह य क मह वपूण िनिध ह। कहावत श द का योग सं कृ त सािह य व िह दी लोक सािह य म यु त होता है। वैिदक कालीन तथा पौरािणक कालीन का य म लोक गीत , लोक कथाओं व लोक उि य व कहावत का योग बहतायत देखने को िमलता है। तु त श द का वै ािनक अनुसंधान नह हआ ह। थम नीित मंजरी नामक थ उपल ध ह।1 तुत मंजरी के आठ अ याय म दो सौ लोक ह। लोक के पूव म कोई सूि या कहावत है और उ रा म ऋ वेद क कथा का प टीकरण है। सूि याँ और सुभािषत श द कहावत या लो कोि ि गोचर होती ह। जनसाधारण म कहावत का िविश ट मह व ितपािदत है। कहावत श द को लेकर िव ान म पया त मतमता तर ह। डॉ. वासुदेव ृ ‘कहाप’ धातु से भाववाचक सं ा बनाने के िलए ‘त’ यय शरण अ वाल ाकत जोड़कर ‘कहावत’ होना िस करते ह। रामदिहन िम के अनुसार ‘कहावत’ से कहावत श द क यु पित माना है। कितपय िव ान् कह धातु के आगे अरबी का ‘आवत’ यय लगाकर ‘कहावत’ श द क यु पित मानते ह। अ य ‘कथाप य’ कथापु ‘कहाउत’ आिद अनुमािनक श द से कहावत क यु पित मानी है। कह + आवत से कहावत के िलए कहनावित श द को अपनाया है। डॉ. क हैया लाल सहल ने कहावत श द क यु पि के स ब ध म दो बात कह है। थम तो कहावत श द िकसी सं कृ त के श द से आया है तो ‘कथावत’ श द से ही इसका घिन ठ स ब ध बैठता है। दसरा ू यिद कहावत श द सा य के आधार पर चिलत हआ है तो िलखावट, सजावट आिद के सा य के आधार पर कहावट (कहावत) श द का बन सकना असंभव नह है।2 कहावत का मूल आधार पुरातन प रपािटय या े ीय िढ़य को भी मह व दान करती है। भाषा चाहे िह दी हो या राज थानी। यिद राज थानी भाषा-िव ान क चचा कर तो ‘कहावत’ श द के िलए ‘कै वत’ के हावत, कहावट , कवावट व कहावत श द का योग िकया जाता है। ‘कहावत’ का िह दी ु ु ु 1. नानूराम सं क ा : राज थानी लोक सािह य पृ. 149 2. सं. क हैया लाल सहल : राज थानी कहावत ि तीय सं करण 2005 पृ. 44

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पयायवाची लोकोि ही है। इसके अित र त अपने कथन क पुि हेतु तक व प जब िकसी कहावत को यवहार म लाया जाता है तो कभी-कभी कहावत के उ चारण से पूव िभ न दो वा याश का योग ाय: सुनने म आता है।1 िन कष प म कहावत वह पार प रक वा य है िजसम िपता का अनुभव अ तिनिहत है एवं वह अनुभव कथन पु का माग दशन करता रहता है। (यहाँ िपता पु से जो अथ लगाया है वह िवगत, वतमान तथा भिव य तीन पीिढ़ य से है।) इस कार एक पीढ़ी से दसरी ू पीढ़ी म कहावत का ह ता तरण होता है और िविवध भाषाओं म नया-नया प धारण करते ह। इस िव ा म श द शि य का योग बहतायत देखा गया है। प रभाषाएँ :- भारतीय िव ान के मतानुसार डॉ. स ये के अनुसार :- लोकोि के वल कहावत ही नह है, येक कार क उि लोकोि है। इस िव तृ त अथ को ि म रखकर लोकोि के दो कार माने जा सकते ह - ‘एक पहेली, दसरा ू कहावत।’2 डॉ. उदयनारायण ितवारी के अनुसार ‘लोकोि याँ’ अनुभूत ान क िनिध ह।3 डॉ. शंकर लाल यादव के अनुसार ‘लोकोि वह लोकािभ यि है जो ईमानदारी के साथ लोक के अनुभव को लेकर कही गई है। 4 रामे वर अशा त के अनुसार ‘कहावत हमारे देश क िनिध ह, जो ाचीन महानता क प रचायक ह।’5 नानूराम सं क ा के अनुसार ‘कहावत कितपय श द के समूह ह, जो िविश ट सांकेितक अथ क यंजना के िलए जनसामा य ारा योग म िलया जाता है। 1. 2. 3. 4. 5.

सं कृ ित नानूराम : राज थानी लोक सािह य ि तीय संशोिधत सं करण वष 2000 पृ. 151, 152 वह पृ. 154 वही पृ. 154 वही पृ. 154 वही, पृ. 154

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इन श द से ा य अिभ ाथ सहज िदखाता हो िक तु संगानुकू ल उनक यंजना िकसी सामािजक प से अनुभूत स य को य त करती ह।’1 डॉ. क हैया लाल सहल के अनुसार ‘अपने कथन क पुि म िकसी को िश ा या चेतावनी देने के उद्दे य से िकसी बात को िकसी क आड़ म कहने के अिभ ाय से अथवा िकसी को उपल भ देने से िकसी पर यं य कराने के िलए अपने म वत अथ रखने वाली िजस सारगिभत लोक चिलत संि त उि का लोग योग करते ह, उसे सामा यत: कहावत का नाम िदया जा सकता है। ’2 पा चा य िव ान के अनुसार अर तु के मतानुसार :- त व ान के ख डर म से चुनकर िनकाले हए टकड़े ु /बचा िलए अंश कहावते ह।3 हावेल के अनुसार :- कहावत जनता क वाणी है।4 फ ते के अनुसार :- कहावत यावहा रक जीवन के माग दशक है।5 रवारोल के अनुसार :- कहावत जनता के अनुभव का फल, एक वा य म बंद िकया हआ अनेक यगु का चातुय है। 6 ऑ सफोड अं ेजी िड सनरी के अनुसार :- जनता म चिलत कोई छोटा सारगिभत वचन अनुभव अथवा िनरी ण िनि चत या सबको ात िकसी स य को कट करने वाली कोई संि त उि कहावत है।7 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7.

सं क ा नानूराम : राज थानी लोक सािह य, 2000 पृ. 152 सं. क हैया लाल सहल : राज थानी लोक कहावत ि तीय संशोिधत सं करण 2005 पृ. 44 सोहनदास चारण : राज थान लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन पृ. 322 वही पृ. 322 वही पृ. 322 वही पृ. 322 सोहनदास चारण : राज थान लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन, पृ. 153

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अंत म भारतीय एवं पा चा य िव ान के मत मता तर का िव लेषणा मक अ ययन से प ट होता है िक कहावत एक िव तृ त जन समूह पी जननी क कोख से ज म लेती है। िजनका मह व सवकािलक और सावदेिशक है। जो आड बर रिहत और मागदशक के प म िव यात है। राज थानी लोक कहावत राज थानी सािह य म लोक कहावत का अपना मह व है। िव ान के िविवध मत के प चात् िन कष प म लोक कहावत का वग करण स यक् प को आलोिकत करता है। डॉ. क हैया लाल सहल के मतानुसार ‘ प और व य िवषय दोन को लेकर मने राज थानी कहावत का अ ययन िकया है। पा मक अ ययन करते समय मने तुक छ द, अलंकार, लौिकक याय, अ याहार, संवाद, सं या, यि आिद उन सभी त व पर िवचार िकया है िज ह ने राज थानी कहावत के प को िकसीन-िकसी अंश म भािवत िकया है। व य िवषय को लेकर मने राज थानी कहावत का िन न िलिखत वणन िकया है1:(1) (2) (3) (4) (5)

राज थानी थान स ब धी राज थानी कहावत म समाज के िच को जाित व नारी स ब ध से जोड़ा है। राज थानी कहावत धम और जीवन दशन (क) धम और ई वर स ब धी कहावत (ख) शकन ु स ब धी कहावत (ग) लोक िव वास िवषयक कहावत (घ) जीवन दशन स ब धी कहावत

1. डॉ. स ये

: लोक वाता क पगडि डयां थम सं करण 1974 पृ. 176

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ृ िवषयक कहावत (6) किष (7) वषा िवषयक कहावत (8) परक ण कहावत आिद मुख गुण ह। लोक पहेिलयाँ ‘पहेली’ श द मूलत: सं कृ त के ‘ हेिलका’ श द का िवकिसत प है। िजसका ता पय “अिभ ाय सूचन क अथ तीित होती है। इसे दिव ु ानाथ न और कूटाथ भाषा कथा जैसी सं ाओं से भी अिभिहत िकया गया है। इसम य त अथ कछ ु और ही होता है और मु याथ का व प गो य होता है। पहेली का अथ िकसी को किठन सम या म या उलझन म डाल देना।”1 डॉ. मनोहर शमा व नानूराम ने राज थानी म पहेिलय को ‘आडी’, ‘अडबी’ या ‘पाली’ कहा है।2 ‘आड़ी’ का अथ वा ोक (िक त) दे देना होता है और पाली ‘पाल’ अथवा सीमा को कहते ह। िजसम िकसी यि को पहेली पूछकर क जे म (कै द) करके अथ म बाँध िदया जाता है। राज थान क यही ‘पाली’ िह दी म ‘फाली’ कहलाती है।3 आज भी राज थान देश म बड़े बुजुग ारा नानी ारा ब च को फाली (पाली) के िवषय म तक-िवतक करते सुना जाता है। िश ािवद् एवं आलोचक पं . नानूराम ने ‘पहेली’ श द सं कृ त के उसी ोदय का पयाय एवं हेिलका का तद्भव प है। हमारे देश म इसका चलन वैिदक काल से पाया जाता है। े जर के अनुसार पहेिलय क रचना अथवा उदय

1. सं क ा नानूराम : राज थानी लोक सािह य ि तीय सं करण 2000 पृ. 189 2. मनोहर शमा : राज थानी लोक सािह य थम सं करण 1982 पृ. 84 3. सं क ा नानूराम : राज थानी लोक सािह य ि तीय सं करण 2000 पृ. 189

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उस समय हआ होगा, जब कछ ु कारण से व ता को प ट श द म िकसी बात को कहने म िकसी कार क अड़चन होगी।1 रीितकालीन किव के शव के अनुसार :‘‘बरिनयव तु दराय ु जहं क नहं एक कार। तासौ कहत हिलका किव कल बुि उदार।। आगे किव बांक दास ारा कही हई उि

ट य है :-

‘‘काढै दौसण कायवां बातां िदयै िवगोय। पूछे अरथ पहेिलयां स य मजाक सौय।।’’ बृह िह दी कोश के अनुसार :- पहेली िकसी क बुि या समझ क परी ा लेने के काम का एक कार का न वा य या वणन है। िजसम िकसी व तु का ामक या टेढ़ा-मेढ़ा ल ण देकर उसे बूझने या अिभ े त व तु का नाम बताने को कहा जाता है।2 पं. रामनरेश ि पाठी के अनुसार इ ह ने बूझोवल क पहेली का पयाय मानते हए िलखा है िक ‘ब च क बुि पर ान चढ़ाने के िलए गाव म बहत-सी पहेिलयाँ िज ह बुझौबल कहते ह, चिलत है। बुझैवल बड़े गूढाथक होते ह।’3 डॉ. सोहन दास चारण के अनुसार :- पहेली अिभ यि का वह कार है , िजसम अथ ान के िलए ल णा या यं जना का सहारा लेना पड़ता है। पहेली म बहत-से ऐसे श द क योजना रहती ह िजनका अथ तु त म कछ ु नह होता और होता भी है तो ामक या अ प ट पर तु करण म आकर उ ह श द म अथ ोतकता आ जाती है।4

1. 2. 3. 4.

सं क ा नानूराम : राज थानी लोक सािह य ि तीय सं करण 2000 पृ. 183, 184 सोहन दास चारण : राज थानी लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन, पृ. 344 वही पृ. 344 सोहन दास चारण : राज थानी लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन, पृ. 345

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लोक पहेिलयाँ 1.

ऐसा या है िजसका आना भी खराब और जाना भी खराब।

आँख आना

2.

लाल घोड़ा का रहे, काला घोड़ा भागता जाए, बताओ कौन।

आग, धुआँ

3.

काली है पर काग नह , ल बी है पर नाग नह ,

चोटी

बलखाती है पर डोर नह , बाँधते ह पर डौर नह । 4.

पूछो भैया एक पहेली, जब कटाओ तो नयी नवेली।

5.

काली काली माँ, लाल-लाल ब चे,

पैि सल टेन

िजधर जाए माँ, उधर जाये ब चे। 6.

म म म कटू , तुम य रोते हो, बताओ म कौन हँ।

7.

बीमार नह रहती म, िफर भी खाती हँ गोली,

याज ब दक ू

ब चे बूढ़े सभी डर जाते ह, सुनकर इसक बोली। 8.

अगर नाक पर चढ़ जाऊ, कान पकड़ कर तु ह पठाऊँ,

च मा

बताओ म या हँ। 9.

दिनया ु भर क करता सैर, धरती पै न रखता पैर, िदन म सोता रात म जागता, रात अंधेरी मेरी बगैर।

च मा

ज दी बताओ म कौन? 10.

काला घोड़ा, सफे द सवारी, एक उतरा दसरे ू क बारी।

तवा रोटी

11.

ऐसी कौन-सी चीज है, िजसे िजतना ख च वो उतरी ही छोटी

बीड़ी और

12.

होती है।

िसगरेट

लड़क के पास वो कौन-सी चीज है जो उसके पास शादी से पहले

सरनेम

होती है और शादी के बाद भी पर शादी वाले िदन नह होती।

(उपनाम)

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13.

खरीदने पर काला, जलाने पर लाल, फकने पर सफे द।

कोयला

बताओ ये या है? 14.

एक राजा क अनोखी रानी, दम के सहारे पीती पानी।

15.

एक फल ू है काले रंग का, िसर पर हमेशा सुआए,

िदया (दीपक) छाता

तेज धूप म िखल िखल जाता, पर छाया म मुरझाए। 16.

तुम न बुलाओ म आ जाऊँ गी, न भाड़ा न िकराया दँगू ी,

हवा

घर के हर कमरे म रहँगी, पकड़ न मुझको तुम पाओगे , मेरे िबन तुम रह न पाओगे। 17.

गम म तुम मुझको खाते, मुझको पीना हरदम चाहते,

पानी

मुझसे यार बहत करते हो, पर भाप बनू तो डरते भी हो। 18.

मुझे म भार सदा ही रहता, जगह घेरना मुझको आता,

गैस

हर व तु से गहरा र ता, हर जगह म पाया जाता। 19.

हरी ड डी, लाल कमान, तोबा तोबा करे इ सान।

20.

दो सुंदर लड़के , दोन एक रंग के ।

लाल िमच जूता

एक िबछड़ ु जाए तो दसरा ू काम न आए। 21.

पढ़ने म िलखने म, दोन म ही आता काम

च मा

पेन नह कागज नह , या है मेरा नाम 22.

सीने से सीने िमले, िमले छेद से छेद

आटा च क

ढ चर ढ चर होके , िनकले सफे द सफे द।

लोक सािह य का िव लेषणा मक परी ण एवं अ ययन करने पर यह िन कष िनकलता है िक ‘पहेली’ फाली लोक सािह य का मह वपूण अंग है जो बुि मापक

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यं का काय भी करता है। मेरी िवन स मित म ‘फाली’ मनोिव ान जगत् स जुड़ी िकवदं ं ितय का वह एक िह सा है, जो मानव मि त क सृजन पर अपना भाव छोड़ती है। उपमेय उपमान ( तुत) अ तुत क माँग करता है। इनका वग करण िन नानुसार ृ अंग यय है:- (1) खेत स ब धी (2) भोजन (3) घरेलू व तु (4) ाणी, कित और अ य। लोक गाथा (पवाड़े) ग लोक श द के अथ म यि भाव-समि भाव म िवलीन हो जाता है। अत: लोक + गाथा श द िवशेष अथ हण िकया हआ है। गाथा के िलए सं कृ त भाषा म ‘गाथ:’ श द िमलता है। गाथा श द को गाथ: से स बि धत कर कोषकार ने इसे ‘गै’ धातु से यु प न माना है। ‘गै’ का अिभ ाय है ‘गाना’।1 मेरी िवन स मित म गीत श द से ही गाथा बनता है। गीत पुरातन थ को भी ि गत होता है। गीत अथ म गाथा श द का योग सव थम वेद म देखने को िमलता है। ऋ वेद का एक उदाहरण इस यु पित परक अथ क गूढ़ता को प ट करता है। ‘‘त गाथया पुरा या पुनान यनूषत। ृ धीतयो देवानां नाम िव मसी।। ’’2 उतो कपत गेयता को संि त कथानक को ोतक कहना सवथोिचत है। आधुिनक गाथा श द का िव लेषणा मक अथ प ट कर तो िवशालता, गेयता तथा का या मकता आिद क ि वेणी वािहत होकर लोकगाथा को न यता दान करती है। आ लं भाषा के 'Ballad' (बैलेड़) श द का समानाथ श द है लोकगाथा। यह ‘बैलेड़’ श द लेिटन भाषा के Ballare के श द से बनता है। मूल अथ क बात कर हो अथ 1. सं. कृ ण कमार ु शमा, महे भानावत : राज थानी लोक गाथाऐं .सं. 1968 पृ. 03 2. ऋ वेद 9/99/4

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‘नाचना’ होता है।1 भारतीय िवचारक एवं पा चा य िवचारक ने िविवध थ के िव लेषणा मक अ ययन पय त प रभाषाएँ दी ह जो िन नानुसार ह। पौरािणक थ म भी लोकगाथा िवषय के स दभ म कहा है। ‘रामायण’ म महिष वा मीिक ने एक संग म ‘लोक वाद’ के अथ म लौिकक गाथा (गाथेयं लौिकक ) का योग िकया है। उदाहरण ट य है:‘‘क याणीवत गाथेयं लौिकक ितमाितम। ऐित जीव तमान दो नरं वष शतादिप।।’’2 िह दी सािह य कोश के अनुसार िह दी म लोकगाथा श द वृतांत या जीवनी के अथ म यु त होता है। गाथाओं म आ यान का सू म उ लेख या संकेत होने पर काला तर म यह श द आ यान, कहानी या जीवन वृ ा त के ही अथ म यु त होने लगा, ऐसा तीत होता है। डॉ. कृ णदेव उपा याय के अनुसार लोक गाथा वह गाथा या कथा है, जो गीत म कही गयी हो।3 डॉ. कृ ण कमार ु शमा के अनुसार ‘लोकगाथा लोक सािह य क वह िव ा है िजसम िकसी च र नायक क स पूण जीवन कथा वाभािवक प से विणत हो िजसम लोक मानवीय वृि याँ ह और िजसम गेयता हो।’4 झंवर च द मेघाणी ने लोक कथा को कथा गीत कहा है। 5 डॉ. कृ ण िबहारी सहल ने लोक गाथा लोक-मानस क भावनाओं क सहज अिभ यि कहा है।6

1. 2. 3. 4. 5. 6.

उषा क तू रया : राज थानी वीर गाथा मक पवाडे : संरचना एवं लोक पर परा,1989, पृ. 5, 7, 8 वही पृ. 8 सोहनदास चरण : राज थानी लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन, पृ. 207 कृ ण कमार ु शमा : राज थानी लोक कथाऐं थम सं करण 1968 पृ. 8 सोहन दास चारण : राज थानी लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन पृ. 208 कृ ण िबहारी सहल : राज थनी लोक गाथाऐं और िनहालदे सुलतान पृ. 3

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ि टेिनका श द कोष म लोक गाथा एक ऐसी प शैली है िजसका रचियता अ ात होता है, िजसम साधारण उपा यान का वणन हो और जो सरल मौिखक पर परा के िलए तथा लिलत कला क सू मताओं से रिहत हो। ो. क टीज के अनुसार बैलेड़ वह कथा है जो गीत म कही गयी हो। हैजािलट लोकगाथा को गीता मक आ यान माना है। िन कष प मं लोकगाथा सािह य के स दभ म भारतीय एवं पा चा य िव ान के तक व प रभाषओं के िव लेषण परक अ ययन से प ट हआ है िक लोक-मानस क भावनाओं क सहज मौिखक प म अिभ यि गीत के मा यम से ही संभव है। लोक कथा या गाथा का अनुसंधना मक अ ययन से त व का स यक् िववेचन संभव है जो च र नायक क स पूण कथा गेयता लोक आदश का िन पण लोक मानवीय वृि याँ वाभािवक वाह आिद का होना आव यक है। राज थानी सािह य क िवधाओं म लोकगाथा का अपना िवशेष मह व है। गाथा सािह य का लोक सािह य म मह व िन न िवशेषताओं से ओत- ोत तीत होता है। (1) मंगलाचरण :- िनिव न समाि हेतु िकसी भी रचना म मंगलाचरण होता है जो लोक सं कृ ित ही नह (वैिदक लौिकक) सं कृ त, िह दी भाषा के सािह य सृजन म थम पद ई वर के नाम या तुित, क याण क कामना से िकया जाता है। यह सब भारतीय सं कृ ित क पर परा है। राज थानी लोकदेवताओं से पूव गणेश तुित व अ य देवी देवताओं क तुित क जाती है। वैसे भी लोक गाथाओं म पौरािणक देवताओं व लोक देवताओं व देिवय क तुित क गई है। इसे मौिखक सािह य भी कह सकते ह। पूव राज थान के करौली, माधोपुर े म देवी देवताओं को लेकर गीत, गाथाएँ खबू चिलत ह तथा करौली म कै लाम या, माधोपुर म रणथ भोर ि थत गणेश जी को आज भी िववाह आिद उ सव म थम िनम ण िदया जाता है तािक िववाह आिद शुभ काय िनिव न स प न हो सक। लोक कथाओं को

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रोचक और भावी बनाने हेतु मंगलाचरण म एकाध कथा (अ तकथा) को भी जोड़ िदया जाता है। जैसे पि चम राज थान म ‘पाबूजी क फड़’ म फोपे के ारा ारंभ म गणेश तुित करके वाहन मूषक के दा प य जीवन का वणन करना आिद मुख है। (2) सा दाियक भावना का अभाव :- लोक गाथा ऐसी सरल एवं सु दर िव ा है िजसम जाित, िलंग, भेद, धम, स दाय से परे िह दी मुि लम, िस ख और ईसाई िकसी भी धम के देवी देवताओं का आह् वान िकया जाता है। िह द ू धम के लोग करौली वाली माता को मानते ह िक तु जैन मंिदर महावीर जी म भी लोग क आ था है जो मेल म जाकर आन द उठाते ह। अत: गाथा के वण म जाित, िलंग, धम का भेदभाव नह है। (3) चिलत जनभाषा का योग :- राज थानी लोक सं कृ ित बहरंगी है िजसम जाित, धम, िलंग का भेद नह है। राज थानी भाषा क बोिलय क िमठास े वार देखने को िमलेगी। सािह यकार वाचक, संगीतकार सािह य भाषा क अपे ा राज थानी के े ीय प म गीत गाता है। जैसे करौली, माधोपुर, धौलपुर, भरतपुर के आस-पास के िह से म होली के गीत। कै ला माई गीत म े ीय डांग े क ज का भाव देखने को िमलता है। (4) सि द ध ऐितहािसकता :- राज थानी लोक गाथाओं म ऐितहािसकता है। इनक कथाओं का मूल आधार इितहास है िक तु कछे ु क रचनाएँ पौरािणक स दभ को भी छती ू ह। इनक घटनाओं व थान म अिनि चतता होने के कारण संिद ध मानी जाती ह। िजनका कारण गाथा के रचनाकार का अनपढ़ होना है। इितहास का ान तो ृ होना वाभािवक है। वे ुत पर परा से ही करते ह। अत: घटनाओं का िवकत (5) संगीता मकता :- गाथा पर परा का मह वपूण िब दु गेयता है जो उसका धम है। ये क गाथा ताल, लय एवं राग म ही तु त करते ह। इसम वा के प म ‘रावण ह था’, डे ँ , थाली, चंग, त दुरा आिद लोक वा का योग िकया

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जाता है। वा गायक का क ठ माधुय तथा कथा सौ दय से परमान द क ाि होती है। इनक रचना मु त छ द म क जाती है। (6) गाथा के पा मक गठन म िभ नता :- िकसी गाथा के पा मक गठन का आधार एक जैसा नह होता है। य िप राज थानी गाथाओं म शा ीय छ द का योग न हआ हो पर इन सभी म अपना-अपना छ द िवधान है। इनम समानता भी िव मान है और वह है टेक पद क पुनरावृि । ये टेक पद कभी तो कथा के ारंभ क ही एक पंि होते ह और कभी वणन िवशेष म त स ब धी ारंिभक प क थम पंि । कई तौर पर परमा मा के नाम से नवीन श द जोड़ िलये जाते ह। इन गाथाओं क अिभ यि कला म भी पया त िभ नता ि गोचर होती है। जैसे बगडावत क गाथा अलग ढंग से ‘तेजाजी’ क अलग तरह से, पाबूजी क फड अलग ढंग है तो िनहालदे का अपना अलग तरीका है। (7) गीतांश के बीच म गा ावतरण का योग :- पूव राज थान म चिलत लोकगीत म प मयता के साथ-साथ श द िव यास कर ग ावतरण को भी तुत िकया गया है। ख ड को जोड़कर कथा भी कह दी जाती है तथा गीत म आगे क कथा का िववेचन िमलता है। करौली, सवाई माधोपुर के लोक सािह य म मुख घटनाएँ गेय प म विणत है। गाते समय प के बाद कथा कहकर वरगित से आगे क ओर बढ़ जाता है। ‘पद दंगल, क हैया, क तन सु ा आिद इसी ेणी म आते ह। (8) ऐितहािसकता का योग जन चिलत भाषा म :- जो गाथाएँ ऐितहािसक होती है, उनम के वल नायक या अ य पा के नाम ही ऐितहािसक होते ह। घटना व थान क ऐितहािसकता संिद ध होती है। इनका मुख कारण िनर रता। गाथाकार ारा गायी रचना लोक भाषा म चिलत श द का योग होता है। िचर ाचीन जन समुदाय म बोली जाने वाली भाषा होती है।

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लोक कथाएँ लोक जीवन से जुडी पुरातन घटनाएँ पर परागत प म घिटत-घटनाएँ लोक प म चिलत रहती ह। ‘मानव ने िजस समय से वाणी क स ता ा त क ठीक उसी समय कथा कहने क आिद वृि ने ज म िलया।’1 आबाल-वृ मनोरंजन का रणी लोक-कथा अपनी जीव त शि के प रणाम व प मानव क आिदम अव था से अ ाविध तथाकिथत वै ािनकता एवं तकशि धान यगु म भी सवसाधारण के क ठ का हार बनी हई है। िच और िज ासा ने लोककथा के िलए संजीवनी शि का काम िकया है। आिदम मानस का आहलादन् करने वाली लोककथा आधुिनक काल म भी मानव के मनोमोदन का मुख साधन है , इससे ही इसक कालजयी शि का प रचय िमल जाता है। ‘‘राज थान म लोक कथा के िलए ‘बात’ या ‘वात’ वाता श द का योग होता है।’’2 आं ल भाषा का ‘फोकलोर’ िह दी म लोकवाता श द बनता है। लोकवाता म फोकलोर क अपे ा अिधक प टता, भावहीनता और बोधग यता है।3 लोक कथाओं के सू भी ऋ वेद के म डल 1 सू त 24/25 म 30 से खोजते-खोजते, ा ण थ , िविश टता शतपथ ा ण म ा य पु वा उवशीकथा, ताडंव ा ण म ा य यवन, भागव और सुक या मानवी, ऐतेरेय ा ण म शुन: शेय के आ यान तथा उपिनषद म गाग , या व य तथा स यकाम-जावाल, संवाद कठोपिनषद ् म जन ुित क कथा से लेकर पुराण क कथा-भ डार तक खोजे जाते ह। पूवाचल क लोक कथाओं का िव ले षणा मक अ ययन िन नानुसार तुत ृ है:- (1) िश ा द (2) धािमक लोक कथाएँ (3) अित ाकितक (4) संवेदनापरक (5) जाितपरक (6) म संब (7) हा यपरक लोक कथा। 1. कृ ण कमार ु शमा : राज थानी लोकगाथाऐं थम सं करण पृ. 19 2. सं क ा नानूराम : राज थान लोक सािह य ि तीय सं. पृ. 102 3. मनोहर शमा, मोहनलाल पुरोिहत : राज थानी लोक सािह य अिखल भारतीय मारवाडी स मेलन 1982 .सं. पृ. 87

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प रभाषाएँ डॉ. स ये के अनुसार :- कहानी लोक-मानस क मूल भावना के प को थूल तीक से अिभ यि करती है। यह य न जीवन के सभी े म िमलता है। अत: कहानी क स ा क यापकता िस होती है।1 डॉ. मनोहर शमा के अनुसार :- लोक-वाता एक ऐसा सािह य सागर है, िजसम गोता लगाने पर अनायास ही गोताखोर को अनेक अनमोल मोती हाथ लग सकते ह। लोककथाएँ मनु य के स पूण दय और मि त क का अ ययन करने वाला शा है, जो चिलत धारणाओं पर आधा रत है।2 वासुदेव शरण अ वाल :- लोकवाता एक जीिवत शा है िजसम लोक क पूण अिभ यि है। लोक जीवन के बराबर लोकवाता का िव तार है।3 िह दी सािह य कोष के अनुसार :- लोकवाता सम त आचार-िवचार क वह स पि िजसम मानव का पार प रत प य हो उठता है और िजसका ोत लोकमानस है।4 पा चा य िव ान के मतानुसार :- पूवाचल क लोक वाता व लोक सािह य को प रभािषत करने म िह दी सािह य कोश व िव ान ने अपने -अपने िवचार रखे। अब पा चा य िव ान ारा प रभाषाएँ िन नानुसार क हैहेष कोिव स के अनुसार :- लोकवाता सं कृ ित के सौ दया मक प क वा तिवक अिभ यि है।5 आर.एस. बोगस :- लोकवाता मानवसमाज क यावहा रक अथवा अनुभवज य सं कृ ित है।6 1. 2. 3. 4. 5. 6.

उषा कसू रया : राज थानी वीरगाथा मक पंवाडे संरचना एवं लोक पर परा .सं. 1989 पृ. 1 सोहन दास चारण : राज थानी लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन पृ. 126 उपरो त पृ. 127 मनोहर शमा, मोहन लाल पुरोिहत : राज थानी लोक सािह य .सं. 1982 पृ. 92 उषा क तू रया राज थानी वीरगाथा मक पवाडे संरचना एवं लोक पर परा थम सं करण 1989 पृ.सं. 1 वही पृ. 91

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टीथ था पसन के अनुसार :- पर परा ही लोकवाता का मूल है। 1 े पल के अनुसार :- लोकवाता मनु य के अमूत इितहास का िनमाण करती है।2 कारलोस वीगा के अनुसार :- लोकवाता अितजीवन का िव ान है। 3 सोकोलोव के अनुसार :- लोकवाता म ाचीन सां कृ ितक अवशेष संिचत रहते ह।4 िन कष प म कहा जा सकता है िक लोक कथा मौिखक सािह य का वह मुख अंग है, िजसम िकसी रा ट, देश, नगर या जनपद क सं कृ ित का प ट पुट िमलता है, जो आदशवाद एवं चिलत धारणाओं पर आधा रत होती है। लोकवाता म रचियता का मह व नह लोक मानव का धा य रहता है। (1) िश ा द लोक कथाएँ :- कथा सािह य का पूवाचल म यापक चार- सार अ य सािह य क भाँित िह दी सािह य व सं कृ त सािह य से आं ल, ीक, चाइनीज, सी म बहतायत कहानी िलखी गई। सं कृ त क िहतोपदेश व पंचत क कथाएँ इसी कोिट म ह। मेरी स मित म ऐसी लोक कथाओं का ज म उस ृ ु म यगु म हआ होगा जब मानव अपने बनौकस यथू के समाज से िनकलकर किषयग िव ट हआ होगा। पशुओं के साहचय क मृित बनाने के िलए उसने ऐसी कथाएँ गढ़ली ह गी। पहले कथाओं के पा जन सामा य या राजावग थे। िफर पशुओं से ँ िसयार आिद। अपना भा य, भ िटया का हस कछ े रत ऊट ु इस कार क कहािनयाँ ह। अपना भा य को देख। ‘‘एक राजा ओ। वाकै सात लड़िकयाँ ई। वाने सब लड़क न कूँ इ ठ् ठो िकयो और बो यो कै तुम िकसके भा य का खाती ओ ? तब छै लड़क बोली कै हम तु हारे 1. 2. 3. 4.

उषा क तू रया राज थानी वीरगाथा मक पवाडे संरचना एवं लोक पर परा थम सं करण 1989 , पृ. 91 वही पृ. 91 वही पृ. 91 वही पृ. 92

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भा य का खाती ह। पर सबते ल री बोली कै म तो अपने भा य का खाती ऊ। वा राजा ने िबन छ: छोरीन क सादी तो बड़े धूमधाम तै करी और िबननै हंस क सवारी बैठा कै िबदा िकयौ। पर वा सबते लौरी छोरी क सादी एक कोढ़ी के संग करदई और वाय पैदल िबदा कर िदयौ। िबचारी तहाँ जाके वा कोढ़ी के नाम क एक पानी क लोटा ढारो करै ई, सो बू कोढी अ छी है तो गयो।’’1 इस कार क लोक कथाओं के मा यम से राजा व रंक क सामािजक जीवन से जुडी घटनाओं को लोक-कथाओं के मा यम से कट िकया है। भ िटया को हम लोक-कथा म पूवाचल क कथा को ले सकते ह। एक राजा के कोई पूत न औ। एक िदना वाके दरबार म एक साधु आयो। वा साधू से राजा ने अपना द:ु ख कहो। साधु नै कई कै अ छा कल तो साँप महल म घुसेगा बू राजकमार ु बन जावेगो। ई कह के साधु हा तै चल िदयो। दसरे ू िदना राजा के महल म एक साँप घुसो वू राजकमार ु बन गयो। तो वा राजा नै वा राजकमार ु को याह बडे धूम धाम तै कर िदयौ। ‘‘इस कार क मधुर भाषा का योग लोक कथाओं म पौरािणक व ऐितहािसक स दभ को छती ू तीत होती ह। जसराम और िबसराम क कथा म दो भाइय क कथा है िजसम साधारण प रवार म ज म भाइय को ससुराल जाने, गरीबी क यथा को तु त िकया है। ँ क कथा ‘‘ऐक िसयार और पशु परक िश ा द लोक कथाओं म िसयार ऊट ँ भायलो। एक िबना ऊट ँ बो यो ला तोय ककरी और खरबूजा खवाय एक ऊट ँ ने हाँ भरी लई कै म तोय लाऊ।ँ’’ िसयार बो यो मोय पीठ पै ले चलीऔ। ऊट लेचलूंग । ँ ने वाय पीठ बैठायके निदया के पार करदई ओ बे एक खरबूजा और ऊट ककरी के खेत म जाय लगे। वा िसयार को पेट तो बड़ो छोटो आसो बू तो ज दी ते 1. डॉ. गोिव द रजनीथ : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य पृ. 110

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ँ को पेट बहत बड सो ज दी ते नायं भरो। इस कार क मधुर भर गयो पर बा ऊट भाषा म िलिखत लोक कथाओं ने जनमानस को भािवत िकया। पंचतं ीय कथाओं वे इन िश ा द लोक कथाओं म थोड़ा ही अंतर है। पंचत ीय कथाओं म नैर तय है, उनका स पक सू एक-दसरे ू से स पृ त होता है जबिक िश ा द लोक कथाएँ अपने आप म वत रचनाएँ ह। दसरे ू वहाँ नीित वा य पहले घोिषत करके िफर टा त व प कथा तुत क जाती है। इस कार पूवाचल के येक कोने म नीित, भि व ान क गंगा वािहत कर लोक सािह य ने अनूठा संगम तुत िकया है। राज थान के पूवाचल म पशुओं पि य क लोक कथाओं के साथ-साथ ऐितहािसक, पौरािणक व धािमक लोक वृ स ब धी महा यम को िपरोया है। सामा य धािमक कथाओं लोक जीवन से जुडी धािमक आ था या िव वास के प म तुत क गई है। ई वर कु हार के सम तो कट हो गये, पर तु आल बन के ित दीघकाल से भि म लीन विणक द पित के सम नह । य िक विणक द पित क भि म वाथ का समावेश था, जबिक कु हार ने िन: वाथ भाव से भि क थी। गीता म ी कृ ण ने िन काम भि पर बल िदया है। स ची भि से ओत- ोत उदाहरण के मु य अंश ट य है - ‘‘एक ाम म सेठ, सेठानी रहो करते , वे रोज पीपर क पूजा करने जाओ करते। उनके रा ता म एक कु हारउ पड़तो, बू रोज बतन बनाते समय देखो करतो कै सेठ सेठानी रोज पीपर क पूजा करवे जायो करै , वो वाके मन म बड़ो अचरज भयौ। सो एक िदना जैसई सेठ-सेठानी वहाँ से िनकरे तो कु हार बो यो, सेठजी आप कहाँ जातओ। ‘सेठ जी बोले हम पीपर क पूजा करवे जाइये कर।’ वहाँ पे भगवान् रहे। इतनो कहकै सेठ जी तो बस चल िदए और कु हार ने वाही रोज तो अ नपानी छोड िदयो और आँख मूंद के भगवान् को यान करवे लग पड् यो। बाके यान तै भगवान् को िसंहासन िहल

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गयो, तुम या मृ युलोक म जाकर देखो तो सही। नारद जी भगवान् के पास भागे और सारो हाल कहिदयो। इतनी सुनते ही भगवान् भगत को दशन देवे कूँ दौर परे और ल मी जी देखती ई रह गई। भगवान् कु हार के आगे जाकर खड़े हो गये। कु हार ने जब मोर मुकु ट लगाये , बंशी बजाते, च चलाते भगवान् कू दे यो तो चरन म िगर पडौ। बोलो महाराज मेरे ध य भा य ह।’’1 राज थानी पूवाचल करौली, सवाईमाधोपुर े के ठेठ अंचल क लोक जीवन से जुडी िविवधताओं के आवरण का व प प ट प रलि त है। इन कथाओं म त-पव या महा य विणत है। लोक कथाएँ मिहला जगत् क धरोहर ह। इस िदन मिहलाओं के समूह काय- म म भाग लेती ह। जैसे करवाचौथ, सकटचौथ, नाग पंचमी, िशवचतुथदशी, अन त चौदस, अहोई आठे, भ यादौज, काितक, भ यापाँच, स तोषी माँ क कथा- त, स यनारायाण का त, रिववार, शिनवार सोमवार का त तथा सभी क कथाएँ। कछ ु पव और यौहार होली, दीपावली, र ाब धन, दशहरा आिद से स ब धी कथाएँ। इन कथाओं म मंगल और समृि होने का संकेत िमलता है। पालन न करने पर परलोक म भयानक और वीभ स द ड का िवधान कि पत िकया जा सकता है। इन त के प र े य म धािमक भय भी है। धमभी जनता धम क अवहेलना ाय: कम ही कर पाती है। जनता ने भी उसके धािमक प को ही आ मसात िकया है। इस कार कथाओं व त का सामािजक मह व भी धीरे-धीरे बढ़ता गया। काितक त क कथा :- एक राजा ओ। जाके सात बेटा ऐ। वाके छ: बेटा तो अमीर थे। एक बेटा गरीब ओ। बू राजा बड़े छोरा के पास जाय कै बो यो ‘मोय काितक नवहा लाओं। झट बाक बह बोली कै हम नाय नवाह म। या तरह छऊ अमीर बेटा ने मनै कर दई कै हम नाय नवाह म। छोटा छोरा गरीब ओ सो राजा वाके पास िझझकतो गयो। लौरे छोरा ने कई कै हम नवहवाय िदंगे तुम रोज यहाय आयो 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अचंल का लोक सािह य पृ. 114-115

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करो। पूवाचल े क भाषा क मधुर श दावली म ामीण श द का पया त योग देखा गया है। जो करौली, सवाई माधोपुर े के अचंल म बोली जाती है। चौथ त क कथा का उदाहरण देख :- सात भाईन के बीच म एक भइन ई। बू भाईन क बड़ी लाड़ली ई। वे भाई अपनी भैन कू पहले खाना िखलाय कै िफर खदु खायो करते। एक िदना भैन ने करवाचौथ को त िकयो। जब खाबे को व त हओ तो भ यान नै आई कै भैन ते खाबै क कई। भैन बोली आज तो मेरो त है। म तो चंदाई को देख कै खानो खाबूंगी। याई सुन कै बडो भ या जंगल गयो और वाने वहाँ जाकै घास म आग लगाई के ई। बीच को भ या बाके बीच म चालनी लै के खडो है गया। लौरे ने जाय के बिहन तै कै दई िक भैन चंदा उग आयो ए। और वाकू चंदा िदखाइ िदयौ। िह डौन, करौली, गंगापुर, माधोपुर, सपोटरा, बयाना व कछ ु भरतपुर, धौलपुर के े म इस भाषा का योग धािमक उ सव , त व लोक-कथाओं का िम ण प ट प रलि त है। एक बिहन अपने पित क ल बी उ क कामना हेतु त रखती है। यारहव त म ही पित क मृ यु हो जाती है, तब चौथमाता आती है या चािहए तुझे? मेरा पित जीिवत मोय सुहाग चइये। माता ने सुहाग दे िदया। इस लोक कथा से प ट है िक त का ख डन उसका उ लं घन ासदायी होता है। जै सा िक तुत कथा म पित क मृ यु से िविदत होता है। दसरे ू अटटू द ्दा और िन ठा से देवता स न भी हो जाते ह और खोया हआ सौभा य, कथा नाियका क तरह पुन: ा त कर सकते ह। ऐसे ही भ यादजू क कथा का संग संवेदना और क याण से आ लािवत भावुक स दय को सहज क णा से िवगिलत करने वाली है। संकट चतुथ संकट चौथ क कथा लोक कथा सािह य म मिहलाओं ारा प रवार क सुख समृि हेतु क जाने वाली कथा व त है। देवरानी जे ठानी के पर पर यवहार अमीरी-गरीबी एवं शारी रक सम याओं के कारण घर प रवार पालन म किठनाइय से

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संघष करती मिहला क यथा कथा लोक जीवन पर भाव डालने वाली है। एक प नी अपने पित ारा कठोर प र म करने के बाद भी पेट के िलए तड़पना पड़ेगा। गरीब ने शु ता पूवक घर को सजाया ‘मने लीपा-पोती, नहाई धोई और त रही सो मोय फरसत नाय िमली। बू बो य लातेरो त िनकासूँ। सोय बाने बाकूँ खबू ु मारो-पीटो और कट ू -काट कै घरते भार औटान पै पटक दई। आधी सी रात पै आयो संकट देवता। बानै कई सोटा मारी, ओटरा सोती हीगूं खाँ ? बू बोली फट ू -फटो ू घर परौ एवाम ह ग आ। संकट देवता िफर आयो और बो यो -सोटरा मारी ओटरा सोती। पौछँू खाँ? बू बोली मो कम बखत के िललार ते। बाको आदमी उसो तो बाने देखो कै घर म हीरा-मोती जगमगाय रहयो ऐ। बाने अपनी औरत तै कई कै -उस। चल। देख ृ का फल ी तो सई, हमारे घर म िकतोक धन परोए। संकट देवता ारा क गई कपा पु ष के ित आ था का के है। घरेलू लडाईय को समा करने म संकट देवता क ृ होती है। ई वर ारा दी गई भौितक सुिवधाओं धन धा य का सुख िन काम, कपा ृ िनल भ, िनरािभमान रहने से ही ा त होती है। सुपर नैचुरल टै स म अ ाकितक और अमानवीय एवं अद्भुत व तुओं का वणन िकया जाता है। भूत, ेत, डायन, दानव, परी और जादगर ू आिद कहािनयाँ इसके अ तगत आती है। सुनेहरा तोता और राजकु मार क चिलत लोककथा, प रय का नाच द रया और हंस। मैना और राजकमार ु लोक-कथाओं म ेम, यवहार, श ुता, ई या भाव क अिभ यि इस कार क द यकथाओं म देखने को िमलता है। एक राजा ओ। वाके सात छोरा ऐ। एक िदन राजा ने सुपनो देखो कै कोई बातै कह रहयौ कै राजा अगर तेरे िढग सुनहरो तोतो नाय तो तेरे िढंग सु दर परेवाई नायै। भूमरे होतई ईबात राजा ने अपने छोरा नतै कई के तुम म तै कौन सो वा सुनहरे तोता लाय सकै । या बात कूं सुनत ही छ: राजकमार ु बो ये कै हम लाय सकै । सो बै छओ बा तोताय लैवे कूं

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चल िदए। वै राजकमार ु तोता क बात कूं तो भूल गये और अपनी -अपनी तबीयत चीज खरीदवे लग परे। कई मास बीत गयै सो बा राजा कूं बड़ी िचंता भई सो बाने छोटे राजकमा ु र कू बुलाय कै कई कै तु हारे भययानै काफ िदन है गयै। का बात ऐ, कछु समझ म नाय परै। अब तुम जावो और वा सुनहरे तोताय लावौ। राजकमार ु ने साधु से तोता माँगा। साधु ने नान के िलए कहा है परी िमली उसने तोता उपल ध करवाया घिटत घटनाच को छोटे राजकमार ु ने सुनाया तो उसे घर से बाहर िनकाल िदया। इस कार परोपकार से जुडी अनेक लोक-कथाएँ चिलत ह। ‘प रय का नाच, द रया और हंस’ लोक-कथा रानी क व न कथा है जो हंस देख रही है। व न म ब चा पेट म होने क बात कहती है, तोते क क मत परी आिद क कथाएँ इस अंचल म चिलत है। मैना और राजकमार ु क कथा। डायन और डकु रया को छोरो , फलन ू दे रानी, राजकमार ु , काठ का घोड़ा और ब ग बादशाह जादी। ईचक बीजक और िसंहलदीप क रानी, आिद लोक कथाओं का चलन वाचंल क पिव धरा क सु दर सोगाते रही ह। संवेदनापरक वे कथाएँ ह िजनका मूल भाव क णा ेक से समि वत होता है। कथा के साथ-साथ ोता या पाठक का भाव साहचय या साधरणीकरण होता चलता ह। जैसे थम कथा म शेर का औदाय और ा ण क किटलता से , सहानुभूित शेर के ित ु हो जाती है, य यह सहानुभूित यथाथ क ि से असंगत भले ही लगे। दसरी ू कहानी म यह सहानुभूित साहकार क लड़क के ित हो जाती है। प टक रण के िलए दो कथाएँ तुत क जा रही है - ‘बामन और शेर’ क कथा कछ ु ऐसी ही है ‘एक बामन ओ, बू चिदयाँ, तीन रोटी को चून माँग लावे सौ। एक िदन घर बारी का वामन तै बोली कै तुम इतनो सोई चून लावो करो ओ, तुम याई सोचो करो घर जवान छोरी

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ऐ, बाको या भी करनो ऐ। खाँ ते पइसा आवेगो? बू िबरामन घर के काम-काज ते वैसेई दःखी ु रहबो करो। सोई बू बोलो ‘ले तू मोय रोज-रोज छेडाकरै सो मै तो या घर म अब नाय रऊ।ँ इकह कै बू चल िदओ। नाहर ने िशकार देखो। बामन आगे ते बो यो ‘मामा-राम-राम’ वा नाहर ने सोची कै मेरो भानजो खबू आयो। बा नाहर न कह ना सुनी। बामन बो यो मामा जबान बेटी कै याह म लगाबे को पइसा नाई। बडो दःखी ु ऊँ खा ते पइसा लाऊ।ँ नाहर को दया आई ‘‘मेरी ख उ म गलेन पया ऐ तू ले ज यो याह म मोय बुलाय लीजो। म क यादान क ं गो। नाहर के डर से कोई भी भीतर ना घुसै। बान कू आई गु सा, बानै खच कै एक तरवार दै। नाहर चुप पर गयो। बामन बो यो ‘ला मामा तोय िवदा कर आऊ।ँ’ नाहर बो यो एक तरवार और दै। वा बामन नै नाहर कै एक और तरवार दै दई। नाहर बो यो ‘अब देख कै याको घाव पुर गयौ कै पहले बारे क पुर गयो’ बामन बो यो या कौ तो पुर गयो पर पहले बारे नाय पुरो। नाहर बो यो ‘समझ जा तू तैने मामा कह कै मेरी जबान बंद कर दई। खैर म अब तो चुपचाप जा रहा ऊ।ँ इकह कै नाहर चलौ गयो।’’1 साहकार जादी और बनजारे को लड़क क कथा म पूवाचल क व तुि थित को लोक कथाओं आ यान के मा यम से तुत िकया है। देख -एक देश म एक राजा और एक साहकार ओ। िबन दोन न कै एक-एक छोरी ई। वे दोन छोरी एक गु के पास पढ़वे कूं जाया करती। राजा क छोरी एक तांबे को टका ले जाती तो गु कहतो ला समािगन जब साहकार छोरी नै ई बात अपने बाप तै जाय कई। साहकार बड़ो िचंता म परो। बू बा पंडत कै पास गयो बोलो ‘महाराज का बात ऐ, जब राजा क छोरी तांबे को टका लावे तो आप बाते ला समािगन कहौ, पर जब मेरी छोरी जाय तब ला अभािगन कहो। जी बात समझ म नाय आ रई। 1. राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य : डॉ. गोिव द रजनीश, पृ. 142

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पंडत बो यो ‘या छोरी के भाग म मुरदा क सेवा िलखी ऐ। साहकार ने सोची। देखूँ मेरी बेटी अभािगन कै से ऐ। सो बू बाय लैय कै दसरे ू नगर कूं चल िदयो। जंगल म छोरी कू यास लगी, सोई बात बाने अपने िपता तै कही। सात कोटिडयां म लड, हिड् डयां, मुदा परी है।’ कार के कई उदाहरण लोक कथाओं का उ लेख िमलता है। जाितपरक लोक कथाओं म िविभ न जाितय पर िलखी गई आ ेप मूलक, यं यपरक और उपहार ज य कहािनयाँ आती है। ये छोटी-छोटी कहािनयाँ होती है जो घटना मक होती िजनम घटना मकता के मा यम से च र ाकंन िकया जाता है। चुटु कला िक से क कथाएँ होती है। जाितपरक कथाओं म ा ण, बिनया, ठाकरु, कोरी, नाई, जाट, धोबी, माली आिद से स बि धत कथाएँ होती ह। ‘जानपांडे’ कोरी गरीब क कथा है जो एक साधारण यि का भिव यवािणयाँ राजा ारा पुर कृ त करवादी है। कोरी मानता है िक मुझे पि डतलाई का ान नह मने तो धूल म लट् ठ चलाया। ‘धूर म लट् ठ चलावे पै तीर तो नह तु का लगई जातो ऐ।’ अथात् मुझे कछ ु नह आता है। मने तो तीर का तु का लगाया था। पूवाचल देश के समाज म विणक को भी अपने यं य का ल य बनाया है। जनपदीय सं कृ ित क िवशेषता यह है िक उसम वंशानु म से यवसाय पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहता है। अभी गाव म लोग ाय: पैतृक यवसाय करते ह। यह दसरी ू बात है िक िश ा के सार, अपने पैतृक यवसाय से अ िच और प रवेश से कटाव के कारण लोग म को छोड़कर नौकरी पेशा बनने के िलए मृग भूिम के यासे मृग बने हए ह। ‘र डी और सामिलया’ ‘एक राजा ओ। बाय नाच गाने को बड़ो चाव ओ। बूँ मैिफल जोडो करै ओ। बाक मैिफल म बडे -बडे राजा औ सेठ आयो करो ऐ। वा मैिफल म एक िदना र डी बुलाई गई। वानै गाबो शु करो। सामिलया तौरी के ँ ’ सेठ ने दो बार एक-एक पइया दै िदयौ। इस कार लोक कथाओं म दऊगी। डरपोक, लोभी धनी और कजू ं स प म िचि त िकया है।

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‘ठाकरु और बिनया’ लोक कथा म ठाकरु बिनया से कजा लेता था, कज बढ़ता गया तो बिनया ने कज देने से इंकार कर िदया। यह देख ठाकरु नै बदलो बदलौ लैबो चाओ। उनई िदना म बिनया क बनैनी मरगई। सो बू ठाकरु बा बनैनी पै स ा हैवे कूँ चल िदयो। छोरान नै खबर सुनी तो बहत घबराय गयौ। ठाकरु क करतूत ए देख कै बिनया ने बदलो लैवे क सौची। उ ही िदना म ठाकरु क म या मरगई। ठाकरु ने बिनया ते कई ‘िज बात चौखी ऐ।’ म तो राजी ऊँ पर तू अपनी बात ते िपछारी मत हिटयो। बिनया ने ह बे भरदई। एक-दसरे ू को नीचे िदखाने क हा य यं यक लोक कथाएँ ह। ‘गूजर को रन’ जाट और कोरी, जाट बनाम जाट ा ण और ठाकरु, इनक लघुकथाओं के मा यम से पूव अंचल क जातीय भावना, कम और िव वास को कट िकया है। इस कार करौली, िह डौन, भरतपुर, बयाना, वैर, गंगापुर, बामनबास, सवाई माधोपुर े म लोक कथाओं के पुट पया त िमलते ह। हा यपरक लोक कथाएँ भी खबू िमलती ह। ‘मूसा और चरखा’, ‘हलालजादा और हरामजादा’, ‘हड् डु और हडनी ु ’ आिद चिलत छोटी-छोटी लोक कथाएँ ह। लोककथाओं क िवशेषताएँ पूवाचल क लोक कथाओं का अपना िविश ट थान है, पर तु जो िवशेषताएँ इन लोक कथाओं म पाई जाती ह, वे लगभग सभी देश क लोक कथाओं म उपल ध होती है। य िक लोक कथाओं का स ब ध मानव मन क मूल वृि य से है1. सं कार से जुडाव :- करौली, सवाई माधोपुर े क लोक-कथाओं म, सं कार , भावनाओं, िव वास , नैितक धारणाओं , मानवीय मू य और धािमक प रक पनाओं का वणन हआ है। िजससे सं कृ ित का सहज ही आभास होता है। कथाएँ लोकाचार से जुड़ी हई ह। पु ेषणा िव ेषणा, भाई बिहन का ेम स य क िवजय आिद सं कार िनिहत मूल भाव का प रचय िमलता है। ेम , घृणा, ई या, हष,

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शोक, िवषाद आिद वृि याँ िमलती ह। टा त प म फलने ू दे रानी क कथा का है । िजसम यं य ममाहत राजकमार ु , असंभव काय को भी संभव बनाने के िलए साहस और शौय के साथ स हो जाता है। 2. ऐिहक एवं पारलौिकक सुख क कामना से समि वत :- धािमक कथा म ऐिहक व पारलौिकक िसि क भावना से जुडी हई है। पारलौिकक कहानी क िसि द कहानी कम ही होती है। लोिकक म के िब दु मानकर अवत रत हई ह। जैसे सौभा य ाि हेतु करवाचौथ और सोमवार क कथा गढी गई। वैभव सुख ाि हेतु सोम, मंगल, गु व चतुथ क कथाएँ कही है। 3. सभी के क याण हेतु :- पूवाचल े क लोक कथाओं म एक यापक, उदारचेता, ि कोण, प रलि त है। सबके क याण का यापक े ि गत है। कहानी सुखा त होती है तो ‘जैसो वाको भयो, वैसो सब काऊ का होय। यिद अशुभ होता है तो जैसो वा को भयो, बैसो काऊ क न होय’ संकट चोथ क कहानी क यही भावना िमलती है — ‘‘दौरानी को सो काऊ कै न होय। िजठानी को सो सबकै होय।। 4. कौतुहल धान :- येक कहानी म कौतुहलता क धानता धानगुण होता है। कौतुहल रिहत नीरस, बोिझल और अ ची कारक होती है। सु दरता क तीक होती है। राज थान के पूव अंचल क लोक कथाओं म िविश टता व परी कथाओं म कोतुहल वृि अिधक देखी गई है। ‘भूतनाथ’ च कांता का मह व कौतुहल व न के कारण एक यगु म बहत अिधक रहा है। ब च म प रय कथा सुनने क लालसा रहती है। इन कथाओं को सुनने क उनक उ कट अिभलाषा औ सु यवृि क ही प रचायक है।

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ृ 5. अलौिककता से ओत- ोत :- अित ाकितक या अलौिकक घटनाओं व पा को थान िदया गया है। परी, डायन, भूत, ेत, िज द आिद के ारा िकये गये अजीबोगरीब काय। ये काय जादईु क र म से भी अिधक िव मयागार होते ह। जैसे मैना और राजकमार ु म मैना का औरत और औरत का मैना बनना, प रय का नाच, द रया, हंस म चौखटेू चौक म परी ारा दी गई अंगूठी माल रखने से इ ासन का आना, द रया का बहना, हंस का मोती चुगना ‘ईचक बीचक और िसंहलदीप क रानी’ म िज द के मा यम से माकट लगवा देना ऐसे ही अलौिकक काय ह, जो लौिकक शि य से परे ह। 6. चम कार वृि :- पूवाचल क चिलत लोक कथाओं म ोताओं को चम कृ त करने क अपूव मता थी और अबोध मन को अब भी चमृ कृ त करने म अ णी ह। पूव कि पत नह वरन् स यता िलए हए सी घटनाएँ घिटत होती ह। लकड़ी के घोड़े का उड़ना, पशुपि य को बोलना आिद। रह य और रोमांच से प रपूण कहािनयाँ अपनी चम कारवृि के कारण आकषक व भावशाली है। 7. यं यता क धानता :- इन कहािनय म य -त यं यता का समावेश देखा गया है। िश प मधुर श दावली यु त है। इन लोक कथाओं म जाितगत फलजिडयाँ छोड़ी गयी है। उनम लोकमानस क वही चेतना या त है। ु 8. हा यपरक मयािदत :- कछ ु लोक कथाओं क वृि हा यो मुख है। यह हा य िकसी मूख के ि या-कलाप संवाद त य को गलत समझने क धारणा से उद्भूत होता है। वैसे मु त अ ाहास तो चुटकल ु से होता है। पर तु मृित क अव था तक पहँचाने वाली कहािनयाँ ‘हलालजादा और हरामजादा’ तथा ‘हडु और हडनी ु ’ अव य ह। इनम मयािदत शृंगार ि गत है। नाियका के नख िशख सौ दय को संकेत मा कटकर कथा को गित दान क है। शृंगार को अ लीलता तक नह पहँचने िदया है।

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9. ेम का व प उदा :- पूवाचल क कथाओं का व प उदा भाव से पू रत है। इनका ेम िन छल, िनमल व िन कपट, िन पृह और िन: वाथ से े रत रहा है। इन कहािनय म र त को जोड़ने वाला पा रवा रक ेम है। भै यादजू क कथा व िशवचोदस क कथाएँ इनका उदाहरण है। इन कथाओं म माँ और भिगिन के र ते का मह व भी बताया गया है। भ यादजू तो भाई-बिहन के िन: वाथ ेम क अमर गाथा है। 10. कथा सुखा त :- भारतीय नाट् य पर परा के अनुसार कथा का अ त सुखपूवक होता है। पा चा य सं कृ ित के नाटक का अ त सुखा त रहा ह। फलन ू दे रानी क कथा म राज कमार ु और फलन ू दे एक-दसरे ू से िवयु त होते ह। पर तु अ त म दोन का संयोग हो जाता है। इसी कार साहकार जादी और बनजारे क लड़क म पहले साहकार जादी अ य त द:ु खी रहती है। 12 वष तक सेवा करने का ेय एक ही रोज म बनजारे क लड़क ा त कर लेती है तथा कह भी देती है। ‘‘सुन गुड् डा-सुनगुड् डी, सुनोह मारी बात। बारह बरस सेवा करी, तऊ न पाये सुख।।’’ लोकगाथाएँ (पवाड़े) : प लोकगाथा श द आं ल के बैलेड़ का समानाथ है। िह दी म ामगीत, नृ यगीत, आ यान गीत, आ यानक गीत, वीर गीत, वीर का य, कथा गीत, पवाडा, गीत-कथा आिद श द चिलत है, लेिकन ये सभी श द अपूण ह। लोकगाथा श द डॉ. कृ णदेव उपा याय ारा द है, जो अ य श द क अपे ा संगत एवं उपयु त है। वीर गाथ वीर गीत और वीर का य श द ‘वीर’ पर अिधक बल देते ह। िजसका ता पय वीर रस यंजक गीत से िलया जा सकता है िक तु इन गाथाओं म वीर रस धान न होकर शृंगार रस भी मुख होता है। कछ ु लोक गाथाओं म धािमकता भी िव मान रहती है।

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ाम व लोक गीत यापक श द है। लोकगाथाएँ, ामगीत का एक प हो सकती है, उनके समानाथ नह । आं ल म ‘िल रक’ और फॉक साँग श द चिलत है, जबिक लोकगाथा के िलए बैलेड़ श द चिलत है, जहाँ तक पवाड़ा क बात कह तो मराठी भाषा म अिधक यु त है। इस भाषा म वीर का य हेतु यु त मानते ह। म य देश के बु देलख ड म इसका अथ ल बी कथा से है, ज म यु का य से, पमारा, मालवा म पवाड़ और धीरे-धीरे उ तर देश म पवाँरा हो गया। याम परमार इस वाद और स ये परमार से यु प न मानते ह। इन सभी त य का िव लेषणा मक अनुशीलन िह दी पांतर लोकगाथा ही है। बैलेड लैिटन के बेलार से बना है िजसका अथ है नृ य करना ारंभ म नृ य के साथ गाये जाने वाले गीत को ही बैलेड कहा गया था। कालांतर अंश क पृथकता होते हए म य यगु म बिह कार हो गया। पा चा य िव ान् वडसवथ, कॉल रज, कॉट रैले आिद ने बैले स को सािहि यक प रधान िदया। बैलेड का चार जमनी, डेनमाक तथा ांस म भी रहा। जमनी म योहक लाइडर, डेनमाक म फोके वाइजर और पेन म ‘रोमेनकै रो’ कहा जाता है। प रभाषाएँ (1) बैलेड वह कथा है , जो गीत म कही गयी है। ( ो. के डीज, इंगिलश ए ड कॉिटश पापुलस बैले स) (2) बैलेड गीता मक कथानक ह। (हैजिलट िल रकल मैरेिटव) (3) बैलेड उस का य का नाम है, िजसम सीधे साधे छ द म कोई सीधी, सरल कथा कही गयी हो। (इन साइ लोिपडीयाँ िवटािनका) (4) बैलेड एक साधारण कथा मक गीत है िजसक उ पित संिद ध होती है। (लूसी प ड इन साइ लोपीिड़या अमे रकाना)

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लोक गाथाओं क उ पि िवषयक मा यता को िविवध िव ान ारा प रभािषत िकया है िजनका भाव दो प म मुख रत हआ है। लोकगाथाएँ मौिखक होती ह। इनक ह तिलिखत ित कह भी नह िमलती है। स भवतया नृ य, गीत, संगीत व लोकगाथा का आिवभाव हआ हो। लेखन कला का अभाव था। दसरा ू है लोक सािह य सरल िन कपट िनरलंकार होता है। अत: समाज का िश ट वग इसे सदैव ही िनकृ ट, अस य और असं कृ त मानकर हेय ि से देखता है। मौिखक पर परा म सुरि त इन लोक कथाओं का यान कम िदया है। आिदम सृजना म से ही माना जाना चािहए। ये अनुभािनक है लोकिनिमतवाद जाितवाद, समुदायवाद यि व हीन, यि वाद, चारणवाद आिद। लोकगाथा क िवशेषताएँ (1) अ ात रचियता :- लोकगाथाओं के रचियता अ ात जैसे ढोला मा आ हा, भतृरी, गोपीच द और सोरठा आिद के रचियता अ ात ह। िसि होने पर ृ भी कृित व कितकार का प रचय संिद ध है। राबट े स का कथन है िक आज के यगु म लोक गाथा के िकसी रचियता का अ ात रहना इस बात का सूचक है िक लेखक ृ से ल जा लगती थी अथवा वह अपना नाम देने से आशंिकत को वयं क कित रहता था। पर तु आिदम समाज म लोक गाथाओं का रचियता अपनी लापरवाही से अ ात हो गया।1 (2) मािणक मूल पास का अभाव :- अ ात मूल पाठ होता है लोक गाथाओं म दीघकालीन मौिखक पर परा से चली आई हई लोक गाथा का कोई मूल पाठ हो ही नह सकता। मौलकता से दरू होती रहती है। पीढी दर पीढी चलने वाली कथा लोक गाथा है। ो. िकटरेज के अनुसार जैसे-जैसे स यता का िवकास होता जाता है वैसे-वैसे लोकगाथाओं क भाषा भी प रवितत होती जाती है। लोकगाथा का 1. राबट े स : द इंगिलश बैलेड भूिमका, पृ. 12

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मूल णेता उसके ता कािलक व प एवं सुर को सुने तो िन चय ही वह अपनी रचना को नह पहचान सके गा।1 इिलयट ारा एकि त पाहालोचन आ हा ख ड का पता नह लगा सका। वतमान म बावन यु का वणन िमलता है। आ हा का मूल प इतना वृहत नह रहा होगा। (3) संगीत का सहयोग :- लोकगाथाओं क लोकि यता संगीता मकता के कारण ही है इसके अभाव म रसा वादन असंभव है। लोक संगीत ‘फॉक युिजक कहलाता है। भतृहरी व गोपीच द क कथाएँ क णामय संगीत से क ण हो जाती है। इन कथाओं को जोगी (नाथ) पूंगी से गाते ह। आ हा म ढोल से गाते ह। अ ययन कर तो लोक गाथाओं म नृ य का थान नह है। (4) थानीयता :- लोकगाथाओं म थानीयता का फट ु पाया जाता है। देशीय िवशेषताओं क झलक को दिशत करती है। धािमक मा यताएँ, सामािजक जीवन, थाएँ, रीित- रवाज, सं कार और िव वास क ितछाया अथवा उ ले ख ँ म भूिम आिद का वणन इन लोक गाथाओं म िमलता है। ढोला मा रा दहा ू म ऊट कर देता है। लैला मजनूँ और आ हा क गाथाओं म लोक का वणन होता है। (5) मौिखक पर परा :- गु िश य पर परा लोक समाज म जीवंत है। िकटरेज के मतानुसार िलिपब लोकगाथा लोक स पि न रहकर सािह य क स पि हो जाती है।2 क िसजिवक का कथन ह िक लोकगाथा तभी तक जीिवत रहती है, जब तक वह मौिखक सािह य के प म सुरि त रहती है। उसे िलिपब करने का अथ है उसे मार डालना। 3 ो. गूमर ने मौिखक पर परा को लोकगाथाओं क स ची कसौटी बताया है।4 डॉ. बै रयर एि वन का मत है िक गीत क िलिप क 1. एफ.जे. चाइ ड ई. का.पा. बै. भूिमका पृ. 17 2. चाइ ड इ.ए ड का.बै. भूिमका, पृ. 23 3. क िसजिवक, द बैलेड, पृ. 39 4. गूमर ओ.इ. बै. भूिमका, पृ. 29

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शृंखला म बाँधने पर उसका िवकास न ट हो जाता है। अत: लोक सािह य के ेमी इनका सं ह कर बड़ा अपकार करते ह।1 (6) अलंकृ त शैली का अभाव :- अलंकृ त का य नह होने के कारण अलकत ंृ शैली का अभाव रहा है। जन का य एवं अलंकृ त का य के बीच दरीू होती है। किव, छ द, अलंकार, रस आिद के नये योग से का य सौ दय म चार चाँद लगा देता है लेिकन जनका य म इन सबका का अभाव होता है। लोकगाथाओं पर वािम व वैयि क न होकर सामूिहक होता है। दसरे ू लोक -गाथाओं म िश प क अपे ा अनुभूितय के सरलीकरण क मुखता होती है। कारण है िक का य क बाह्य और आतं रक स जा क और लोक किव यान नह देते ह। इस बारे म टन टप का कथन है िक लोक गाथाओं क वणन प ित म एक ऐसी नैसिगकता होती है जैसी माँ और िशशु के संलाप म िमलती है।2 (7) उपदेशा मक वृि का अभाव :- कथा मकता का भाव कथानक को गित देना है न िक उपदेश सदाचार क िश ा देना। इस स दभ म राबट े स ने ठीक ही कहा है िक गाथाएँ नीित या सदाचार क िश ा दान नह करती और न वे अलाव क भावना को ही चा रत करती ह। यिद गाथाओं म ये बात उपल ध होती ह, तो इसका ता पय यह है िक चारण अपने समुदाय से पृथक् हो गया है। अथवा वह स यता के स पक म है। प पात क भावना का समुदाय के काय से सामंज य थािपत नह हो सकता है।3 (8) ल बा कथानक :- इनका कथानक ल बा भी होता है। गाथाओं का या यान िवशद होता है य िक उसम पा के जीवन सांगोपांग िच ण होता है। िफर 1. बै रयर फॉक साइंस ऑफ मैकल िह स भूिमका 2. गुमटे ओ.ई. बै. पृ. 31 3. राबट े स द इंगिलश बैलेड़ पृ. 81

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भी ि तकार अपनी ओर से भी ा ेप करते जाते ह। लोक गाथाओं का कलेवर फलता चला जाता है। अ हा सोरठी, भतृहरी क लोकगाथाएँ महाका य से कम नह ू है। आं ल म ‘ऐजे ट आव रािबन हई’ जैसी लोक गाथा सातमग तथा 456 प म ंिथत है। जो लोक गाथा िजतनी ाचीन होगी उसका आकारा भी उतना ही िव पुल होगा। (9) ऐितहािसकता संिद ध :- लोकगाथाओं क ऐितहािसकता संिद ध है। लोक गाथाओं म कछे ु क म ऐितहािसकता का पूण अभाव , कछ ु का इितहास िमलता है िक तु संिद ध होता है। जैसे आ हा गोपीच द भतृहरी का उ लेख इितहास म िमलता है िकतु ं ऐितहािसकता िववािद त है। राज थान के पूवाचल म इन लोकगाथाओं का चलन है। ढोला मा , भ त पूरनमल, नरसीभात, गोपच द भतृहरी लीला, मोर वज लीला और आ हा आिद मुख है1. ढोला मा :- ज मालवा और उ तर भारतीय िह दी देश क सु िस लोकगाथा है। इसका गायन िचकाडे पर िकया जाता है। इसके गायक ढलै ु या कहलाते ह। सुरइया व दलइया एक-दो गाव क बीच होते ह। नरवर नल पु ढोला ु िपंगल क राजकमारी ु मा क ेम गाथा है। चार वष क उ म ढोला का िववाह रेखा से हो गया। कामास त होकर सहेिलय से कहा तब उ ह ने कहा तेरा िववाह ढोला से हो चुका है। हीरामन के मा यम से िवरह स दे श भेजे। बारहमासा शैली म वणन है। यह एक लोक गाथा है। लोकगाथा होने के कारण ही कथा म प रवतन व प रव न हए है। जहाँ तक पूवाचल म चिलत ढोला क लोककथा का न है। उसम ारंिभक त य को छोड़कर शेष का पिनक एवं ि त तीत होते ह। एक उदाहरण ट य है—

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सोरिठयो दहो ू भलो, भली मरवण री वात जोबन-छाई धण भली, ताराँ छाई रात।1 2. भ त पूरनमल :- भ त पूरनमल क गाथा योग कथा मक लोकगाथाओं म आती है। इस गाथा पर नाथ स दाय िविश टतया गोरखनाथ का िवशेष भाव। यह अपने आप म पूणगाथा है िजसम एक पु ारा सौतेली माँ क वासना से पु व क मयादा रखने का संदेश मुख है। यालकोट नृप शंखपित क क या के वयंवर म जाता है। थम प नी दसरे से िववाह कर लेता है। ू ू िववाह के िलए रोकती है। फलनदे पूरन चलने लगे तो अपशकन ु होने लगे। रानी ने वासना का र ता बनाना चाहा तो ँ उसने मना कर िदया। फलनदे ने उसे फसाया मार िदया गया। उधर गोरखनाथ ने ू जीिवत कर िदया। वह योगी बनकर चीन चला गया। वहाँ रानी सु ा ने पूरनमल के सौ दय के कारण माँग िलया। िवषय वासना क बात हई, तो अ त यान होकर गु के पास आ गये। सु ा ने ाण याग िदए। यालकोट वापस घर बार िमल गया। कभ ुं म याग राजकमारी ु ने पूरनमल के सौ दय क चचा सुनकर बुलावा भेजा। कामतृि चाही तथा तोता बना िदया। गु महे नाथ, गु भाई थे गोरखनाथ जी के । कल ु िमलाकर नाथ स दाय से अनु े रत लोक गाथा है। नाथ स दाय क मूल चेतना शैव दशन पर आधा रत है। डॉ. हजारी साद ि वेदी ने बताया िक ‘यह िव वास िकया जाता है िक आिदनाथ वयं िशव ही है और मूलत: सम नाथ स दाय बौ धम एवं शा त धम के बीच ि थत है।2 िजसे पातंजल के हठयोग से पु ट िकया गया है।’3 3. नरसी भात-लीला :- यह पूवाचल ही नह स पूण उ तरभारत व गुजरात देश तक कृ णभ त के प म िस भि परक लोकगाथा है। नरसी क 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोकसािह य, पृ. 89 2. डॉ. हजार साद ि वेदी नाथ स दाय पृ. 3 3. डॉ. राम कमार ु वमा िह दी सािह य का आलोचना मक इितहास, पृ. 153

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द र ता रामा के दय म वेदना मुख है। जूनागढवासी नरसी, प नी सुशीला, पु ी रामा िसरसागढ म पु ी परणदी भि भाव म नरसी ने कमाना-धमाना छोड िदया। सास ने नरसी के बारे म भूँखा, कंगाल न जाने या- या कहा तथा अपमािनत करने के िलए ल बा िचट् ठा भात का बनाया। जब भात भरने को िसरसागढ पहँचे तो भगवत या हई। उ म ेणी का भात भरा गया। करौली, सवाई माधोपुर, धौलपुर आिद पूवाचल म नरसी भगत से स बि धत ब ध और मु तक गीत पाये जाते ह। ‘‘गारी दे रई रामा बाई, बात तोय नैक सरम नह भाई, तैने हाँसी य करवाई। दजी ू टेर सुिन जब दौडे आये कमिण लाये संग म भगवान् हाथन ते पहरावे रामा फली ू नह समावे वाको यश जग म छाजावे हो।’’1 िसरसागढ व जूनागढ पुरानी रयासत थी। गुजरात के मुख स त म नरसीभगत का नाम मुख है। भि साधना को गाढ बनाने वाली लोकगाथा है। 4. भतृहरी :- इनका जयकारा ‘जोगी’ सारंगी बजाकर करते ह। भतृहरी क पूणगाथा को िलखना व िलखाना अमंगलकारी मानते ह, कान म बड़े-बड़े कु डल धारण करते ह। नाथ परवत स दाय म स मानपूवक नाम ले सकते ह। नाथ स दाय म ‘वैरा यप ’ का चलन िकया। इनके धान िश य म ेमनाथ व रतन नाथ क गणना होती है। पूवाचल म भतृहरी क लोकगाथा म व य िवषय क मुखता 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोकसािह य, पृ. 96

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है। (सामदेई) को माँ स बोिधत करते ह। च सैन के पु उ जैन म ज म। िद ली म िपंगला ने भतृहरी क माँ सामदेवी को पूवज म के कथानक से जोड़ा है। अंितम तप या व देह याग स र का ि थत अलवर िजले म कशालगढ़ के पास पहाड़ के ु बीच तपोभूिम भतृहरी के नाम से आज भी पूजी जाती है। भा प क अ टमी को मेला लगता है। डॉ. रामकमार ु वमा ने 1 भतृहरी क कथा म रानी िपंगला को बताया है। भतृहरी िशकार करने जाते ह। िपंगला क परी ा होती है। िपंगला सती हो जाती है। गोरखनाथ प नी को जीिवत करते ह तथा भतृहरी गोरखनाथ के िश य हो जाते ह। डॉ. स य त िसंह के जो मौिखक भौजपुरी म तु त िकया है िजसम पलंग क पाटी टटने ू क स यता मानी है।2 जहाँ तक भतृहरी िज ह ने शृंगार शतक, नीितशतक तथा वैरा य शतक िलखा है। गोरख िश य भतृहरी िज ह ने वैरा य पंथ चिलत िकया।3 भतृहरी जो उ जैन के शासक थे और बाद म गोरखनाथ के िश य बन गये। िवर त होकर भाई िव मािद य को रा य स प िदया। इनका स ब ध बंगाल के पाल वंश के राजा गोपी च द और मायावती से था।4 एक िकवंदती है िक भतृहरी गोरखपुर उ तर देश े के शासक थे।5 5. गोपीच द :- िकवदं ं ितय म गोपीच द भतृहरी के बहन के लड़के थे, नाथ स दाय के संत थे। माँ मैनावती जालंधरनाथ क िश य थी। बिहन च पावती रानी र नाकमारी थी। इ ह वैरा य क िश ा माँ से िमली। च पावती के घर िभ ा ु माँगने गये। देखकर बिहन िगर पड़ी तथा ाण याग िदये। गोरखनाथ से ाथना क 1. 2. 3. 4. 5.

डॉ. रामकमार ु वमा िह दी सािह य का आलोचना मक इितहास, पृ. 71 डॉ. स य त िसंह भोजपुरी लोकगाथा, पृ. 181 आचाय ह. . ि वेदी, नाथ स दाय, पृ. 167 वही, पृ. 167 दगाशं ु कर साद िसंह भोजपुरी लोकगीत म क णारस पृ. 13

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पुन: जीिवत हई। लोकगाथा म कचनवन , वेदलीवन का वणन सुनते ह। कछ ु ं लोकगाथाओं म म ये नाथ को गोपीच द का गु बताते ह। डॉ. हजारी साद ि वेदी ने अनुमान िकया है िक “गोपीचंद जलं धरपाद के िश य का नाथ ारा िस स दाय म दीि त हए थे।’’1 6. मोर वज :- पूवाचल क मुख व िस गाथाओं म मोर वज लीला का िवशेष मह व है। स यवादी राजा के प म यात है। पु को चीरकर मांस खाने क ित ा संत और धम के बीच पु ेम आता है। रानी से पूछने पर पु के थान पर वयं को समिपत करने को त पर है। अ त म धम क िवजय होती है। ‘‘मेरे ानन यारे लाल िसंह बन काल क हैया आयो। तेरो दानो पानी आज कँु अर उिठ आयो। बारे मेरे कमर ु तो िबना सबर न बँधे बंधायो। क र मोह ले लयो गोद क ठ िचपटायो।।’’2 यिथत माता और पु के संवाद पया त िपता पु का क ण संलाप चलता रहता है। पु को आरे पर चला िदया दो टकड़े ु हो गये। रानी क आँख अ ुपू रत हई। एक टकड़ा ु िसंह को व दसरा ू महल म ले जाओ और हम चौका लगावो। इस पर रानी ने उ र िदया‘‘िपया मै चौका कै से महल लगाऊँ । सुन सोई रहयो न द सुख न जाय जगाऊ। महाराज मोह तुम िदयो कमर ु को तोड। जाग पड़े रोबेगी कै से जाऊँ अके ला छोड़।।’’3

1. िह दी सािह य कोश भाग-2, पृ. 139 2. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोकसािह य, पृ. 102 3. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोकसािह य, पृ. 103

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जैसे-तैसे रोते-रोते रानी ने चौका लगाया। पु को बुलाओ स त ने कहा। तब राजा बोला मेरा पु तो िसंह का िशकार हो गया है। तब संत बोले वह तो महल म डोल रहा है। आवाज देते ही पु आ गया। यह लोक गाथा धम और संत के स देश को लेकर िलखी गई है। 7. आ हा :- वीरकथा मक लोकगाथा के प म िस रचना है। उ र और म य भारत क लोकि य गाथा है। िजसका गायन वषा ऋतु म िकया जाता है। ृ आचाय रामच शु ल ने रासोका य पर परा क बारह कितय का वणन िकया है उनम से ही है। जगिनक किव क रचना है। महोबा के दो वीर आ हा और उदल के वीर च र का वणन िकया है। मूल आ हा क अभी तक मूल ित नह िमली है। इसी पर आ ृत गीत सम त उ री भारत के गाँव-गाँव म सुनाई पड़ते ह। वषा ऋतु म गाये जाने वाले इन गीत को आ हा कहा जाता हे। ि यसन का मत था िक जगिनक परमाल का भानजा था। उनका मत इस कार था। ‘‘यहै िवचारत म हनारानी, तुरतै बोिल ली ह ितहार। तुरत बुलावा जगनायक का भैने जौन चंदेल यार।’’1 वीर का य सं ह क भूिमका म डॉ. उदयनारायण ितवारी ने संकेत िकया है ‘पृ वीराज रासो म एक महोबा ख ड है। वह परमाल रासो के नाम से भी िस है। अपने वतमान प म पृ वीराज रासो के अंत म संकिलत महोबा ख ड का ही पा तर लगता है। पृ वीराज रासो और परमाल रासो के अंितम छंद क तुलना करके डॉ. माता साद गु ने इस सा य क और प ट संकेत िदया है।’2 पूव अंचल म आ हा का जो प चिलत है वह लोकगाथा मक ही है, यह गेय है, येय मनोरंजन है, चम कार पाि ड य दशन और अलंकरण का अभाव है। िनज धरी 1. They lay of alha, introduction by griesson 2. िह दी सािह य ि तीय ख ड, पृ. 127

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कथाओं का वणन है। मु यतया आ हा उदल के यु नामक पु तक म ब ीस यु ँ के 51 यु का वणन है। महोबे क लड़ाई मांड क का वणन है। आ हा म ऊट लड़ाई, िसरसागढ़ क लड़ाई, िद ली क लड़ाई, पथरीगढ क लड़ाई, नरवरगढ़ क लड़ाई, िसरसागढ़ क दसरी ू लड़ाई और गांधार क लड़ाई आिद मुख है। आ हा के आये नाम म बहत-से का पिनक ह। तीन नाम पृ वीराज, जयचंद परमाल ऐितहािसक नाम है। संयोिगता वयंवर (पृ वीराज रासो) से ही िस हई है। इसका मुख छंद वीर या आ हा ही है। इस कार पूवाचल म चिलत लोक गाथाओं म लोकमानस का ितिब ब प ट प रलि त है। उनके च र अनुकरणीय उदा एवं आदश मूलक और महान् ह। उनम इहलोक और परलोक क मंगल कामना है। लोक नृ य वर क त मयता होने पर लय क उ पि होती है। लय और ताल संगीत और नृ य दोन का आव यक अंग है। सृि के आरंभ म भावहीन मानव समाज ने भाव- काश के िलए शरीर के हाव-भाव का ही आ य िलया होगा। भाव काशन क साथक मु ाओं को ही भाषा म नृ य कहा है। िशव नृ य के आिद देव कहे जाते ह। नृ य म शरीर के अंग क िविवध भंिगमाओं ारा दयगत भाव को यथाथ अिभ यंजना होती है। अंग के समय से नृ य के सौ दय म आकषण बढ़ता है। वा तव म आंिगक भंिगमाएँ नृ य का अपार वैभव है , जो जन-मानस को स मोिहत करने के िलए उनको अद्भुत शि दान करता है। अत: नृ य पु य के समान है और भंिगमाएँ इ ह जनि य बनाने के िलए अनेक अ तिनिहत ग मय पराग का िवल ण काय करती ह। भंिगमा स प न नृ य िवनाश के भाव से मु त होकर अनेक पीिढ़ य तक लोकानु ृजन के साधन बने चलते ह और ऐसे नृ य अपने देश क सां कृ ितक िनिध के िद य र न बनकर चमकते ह।

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मनोहर भाकर के अनुसार :- जब िकसी मादक पश से दय त ी के तार िछड़ उठते ह अथवा िकसी मािमक हार से वेदना के वर कि पत हो उठते ह तभी उ मादक संगीत क लह रयाँ सहसा फट ू िबखर पड़ती ह। इसी कार फिु त अथवा उ पीिड़ त दय क भावनाएँ ही नतक के पद म चाचं य गित म ग रमा, भाव भंिगमा अंग भंिगमा क मु ाओं तथा चे टाओं म सहज और सौ दय घुंघु ओ क छन छन ( विन) म रािश-रािश मादकता का रस संचार तरंिगत कर सकती ह।1 ृ गुण आड बरहीन ी शांता अव थी के अनुसार ‘लोक नृ य दय से कत आल बन ह। इसके अिभ यि करण ने जीवन सरसता दान कर लोक सं कृ ित और कला को यगु-यगु से सुरि त रखा है।2 पूवाचल क सं कृ ित स यता व प रवेश म राज थानी धरा म िसमटी सं कृ ित का एक अंश करौली, िह डौन, धौलपुर, गंगापुर व सवाई माधोपुर के े म िकये जाने वाले टोने -टोटक के साथ-साथ नृ य, संगीत, भाव क भंिगमा अपने आप म अनूठी व िस रही है। स पादक मनोहर भाकर ने इनको िन नानुसार तुत िकया है। (1) गृह थ लोक नृ य (2) धािमक स दाय के लोकनृ य (3) पेशेवर जाितय के लोकनृ य (4) घूमर नृ य (5) डांिडया नृ य 1. रामनाथ सुमन : स मेलन पि का ‘लोक जीवन म रोने और टोटके क मा यताऐं िह दी सािह य सं. याग सं. 2010, पृ. 467 2. सं. मनोहर भाकर : राज थनी सािह य और सं कृ ित काशक मोहन लाल जैन .स. 1965 पृ. 97

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लोक िव वास जनसाधारण म बहसं यक िव वास ब मूल देखे जाते ह। उनके पीछे कोई तक नह होता, पर तु सु ढ़ आ ह होता है। भाँित-भाँित के लोक िव वास राज थानी लोकजीवन म घुले िमले िदखाई देते ह। लोक िव वास का ऐितहािसक म तु त नह िकया जा सकता य िक ये िव वास िजस काल एवं समय म उिदत हए उस समय क साम ी अनुपल ध होने के कारण पुरानी पर पराओं व िढ़य के आधार पर ही इ ह मानते आ रहे है जो िक राज थान के डांग े म भी इनका अपना िवशेष मह व है। 1. भूत- ेत :- इनक कहािनयाँ नानी या दादी माँ सुनाती थी, तथा इनके साये म आने वाले क मौत होना, पागल होना, तथा िवि त होने क बाते भी आज के यगु म सुनी और देखी गयी ह। माताएँ ब च को दधू िपलाकर भभूत लगा देती ह , िजससे िकसी कार क गलत शि य का िशकार न हो सके । यह पर परा पुरातन काल से चली आ रही जो िक कथाओं व पुराण म भी उ लिखत है िक तु इनके सा य का अभाव है। 2. तं म यं :- आज भी वे लोक िव वास पीछा नह छोड रहे है। अथववेद म विणत म शा िजसम मांि क तथा के वल वैधािनक दोन ही कार के त है। म शा के नाम पर जो पुराण तथा परवत थ म उपल ध थी, उसे ही एकमा शा ीय मानकर म शा के नाम पर अनेक लाभदायक तथा हािन द योग चल पड़े । कालांतर म इ ही योग को उनक उपयोिगता के आधार पर टोनाटोटका नाम पड़ा। टोटके मु यत: मंगल सूचक अिन ट-िनरावक, रोग-िनवारक या टोने के बचाव के िलए िकये जाते ह। इसिलए टोटका ी जाित म लोक ि य िव वसनीय ह। इनसे पर पर ेम क बजाय श ुता बढ़ती िदखाई देती है।

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इनके िवपरीत टोना :- अमंगल सूचक, रोग उदपादक, मारण, उ चाटन, अनुिचत आकषण, स मोहन, वशीकरण आिद के िलए िकया जाता है। िजससे यिद यि िवशेष क मनोकामना पूण होती है तो िकसी को हािन भी पहँचती है। टोने के वल सयाने िस , ओझा अघोरी शैव, शा त तथा अ य वाममािगय क िवरासत म रह गये। इसिलए जन साधारण इन यि य को भय अथवा घृणा क ि से देखते ह। टोटक का चलन के वल अिशि त गृहिणय म ही नह अिपतु म यम वग क अ िशि त तथा सुिशि त गृहिणयाँ भी टोटक का आ य लेती ह। टोटक म िकसी शा ीय प ित क आव यकता नह होती और न उसम िकसी म क आव यकता है िक तु टोने म िन चय ही पूरी-पूरी शा ीय प ित काम म लाई जाती है। म ोचारण से लेकर अनु ठान और बिलदान तक सब कछ। ु अत: टोना शा ीय अनु ठान ह तथा टोटका एकदम लौिकक। 1 लो रयाँ राज थानी लोक सािह य म लो रय का बड़ा मह व रहा है। माँ को घर म काय करने होते ह और उस समय उसका ब चा बीच म ही उठ जाता है तथा िच ला-िच ला कर माँ-माँ रोता है। माँ कभी भी अपने ब चे को रोता नह देख सकती है, साथ ही गृह थी के िन य आव यक काय भी नह छोड़ सकती है। वह मधुर तोतली भाषा बोलकर सीने से लगाकर सु ला देती है। िजसम ेममय मधुर श दावली क भाषा का योग करती हई उसे लो रयां सुनाती है। लो रय को राज थानी भाषा म ‘टील ’ भी कहते ह। आं ल सािह य म Cradde Songs (पालने के गीत) अथवा ब च को सुलाने के गीत कहते ह।2 1. मनोहर शमा : भाषा सािह य लोक सािह य (सां कृ ितक राज थान) काशन अ.भा. मारवाडी स मेलन, .सं. 1982 पृ. 87 2. हष हरदान : भाषा सािह य और सं कृ ित काशन कै लाश च द जैन आशीवाद पि लके शन बी.-9 ल मी िसनेमा के पास जयपुर, .सं. 1994 पृ. 206

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लोक वा :- राज थानी सं कृ ित म लोक वा का अपना िविश ट मह व है। लय को िकसी वै ािनक ढंग से विन लहर म बदल जाये तो िनि चत प से एक झंकार का प होगा। यही झंकार हमारे लोकगीत क आ मा है। त मयता क चरम ि थित लय है। िकसी ि थित म त मयता लाने के िलए इस झंकार क आव यकता है। इसिलए लोकगीत म दय को त मय करने के िलए लय (झंकार) क आव यकता पड़ी। फल व प वा का योग ारंभ हआ। लोक जीवन से लेकर साधना पथ तक इस झंकार का अपना मह व है। ‘कबीरदास’ जी ने दय वीणा से झंकृ त होने वाली इस झंकार का ‘अनहद नाद’ क सं ा दान क है। लोक वा ने ब धन को कभी-भी वीकार नह िकया है। ाय: सभी शाि य वा को मा यम बनाकर ारंभ हआ। लोक जीवन म वा के दो व प प ट ि गोचर हए ह। (1) ि या वा :- मनु य क ि याएँ वा का व प धारण कर लेती ह। जैसे देकली के चलने से उ प न विन। (2) व तु वा :- जहाँ िकसी व तु को हम वा के व प म पाते ह। जैसे ढोलक आिद। पूव राज थान क लोक सं कृ ित म सािह य, संगीत व वा का मह व रहा है। माता के भजन म लोक वा का योग कर िविभ न भंिगमाओं म नृ य िकये जाते ह। इस कार तु त िव ा का योगदान अपूव रहा है। पूव राज थान के सवाई माधोपुर, वामनवास, करौली, िह डौन, गंगापुर े म िविवध जाितय के अपने गीत ह। पूवाचल के ये दो िजले मीणा जाित क अिधकता वाले है। िजनम लोक संगीत व याल आिद का बोलबाला पया त मा ा म ँ नीच क भावना समाज म चलती रहती है , िक तु रही है। पूवाचल क धरोहर म ऊच

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ना रयाँ यं योि य ारा मन म छाये वा प को इस बहाने अवसर आते ही उगलती रहती है। एक प रवार म भोज था। उस प रवार क एक औरत पान खाती हई िनकली तो यं य छट ू ही गया। ‘‘बाप दादा चबे न पान। दाँत िनपोरत गये पान।।’’ सवाई माधोपुर, करौली े म लोकगीत व याल के मा यम से ही नह , कथा सािह य के िम ण से लोक जीवन को नवीन राह िनकाली है। आज के बदलते प रवेश म तथा िश ा के बढ़ते बदलाव म सं कृ ित का िनर तर ास कट हो रहा है तथा सरकारी गैर सरकारी संगठन को िद य सं कृ ित के लु त होते सं कार को िढ़य व लोकरीितय को बचाना होगा तभी सं कृ ित जीिवत रहेगी। िन कष साम यवान पूवाचल क सं कृ ित क सु दर छटा का िसंहावलोकन ट य है। याग, तप, वािभमान, लोकसािह य म सव ि गोचर है। तु त शोध ब ध म पूव राज थान के सवाई माधोपुर करौली व धौलपुर के ज भरतपुर व आस-पास क लोकपर पराओं को उके र कर लोकदशन िकया है। लोकजीवन म भी कम क धानता व आचरण को मह व िदया है। राज थानी लोकसािह य क अवधारणा का प टीकरण पूवाचल के िविवध स दभ से जागृत हआ है। लोकसािह य के िविवध प का िवशद िववे चन पूव अंचल सुग ध से प ट होता है। ग /प प म लोककथाएँ , लोकगाथा, लोकनृ य, लोकना , लोकानुरंजन, लोकगीत, लोककहावत, दोहे, लोकिच ण, हरजस व िविवध सािह य का िवशद िववेचन पूव अंचल क िविश ट पर परा एवं पहचान कहना सवथा उिचत होगा। सोलह सं कार, बारहमासा, यौहार , होली, दीपावली, दशहरा, गणगौर, नवरा ा, ीकृ ण

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ज मा टमी आिद लोकपव के मा यम से पूव राज थान क लोकसं कृ ित के दशन होते ह। लोक चिलत कथाएँ व द तकथाएँ, लोकगीत क माला िपरोकर हरी-भरी वसु धरा मु कराती तीत होती है िजसके फल ू म एक पहचान बनकर साकार ऊजावान प कट करती है। किलयगु म पूिजत दे वी कै ला म या, ी मदनमोहन, गणेश जी, रणतभँवर के लाड़ले, िशव भगवान् के ादश योितिलंग म से एक है जो िशवाड़ नाम से िस चम कारी है। ऊजावान लोकसािह य के िवहंगम य पूव अंचल के लोकगीत , िबखरते फल ू क मृितयाँ ि गोचर होती ह, जो िविवधता म एकता क प रचाियका के प म प ट प रलि त है। सवाई माधोपुर, धौलपुर, भरतपुर, करौली े क जिमि त राज थानी क िमठास को भािवत करने वाली सरल शैली क अिभ यि से सरोबार तीत होती है। 

अ याय-तृतीय

सं कृ ित एवं समाज का सामा य अ ययन राज थान क म धरा के कण-कण से सं कृ ित क मधुर महक उठती है , िजससे खशबू ु म एकता, अख डता व सौहाद का भाव प ट प से िदखाई देता है। पुराने समय से राजपूताना या राज थान क सं कृ ित का िसंहावलोकन कर तो यह प ट सामने आता है िक भारतीय समृ इकाइय का मह वपूण थान राज थान रहा है, िजसम अ तर वेद, सौवीर, म का तार, लाट, गुजर आिद भाग क सीमाएँ स मिलत थी। अं ेज ने िनजी वाथपूित हेतु सीमांकन कर राजपूत े का नाम राजपूताना नाम रख िदया। वत ता के बाद जब देशी रयासत का िवलय हआ तो हषकालीन शासक य यव था के आधार पर राज थान नाम रखा गया। राज थान ा त के करौली, सवाईमाधोपुर व धौलपुर भरतपुर का कछ ु िह सा बयाना, गंगापुर तक के े का लोकजीवन लोकसािह य सजीवता दान करता है। सं कृ ित का यु पित परक अथ सं कृ ित श द मूलत: सं कृ त भाषा क ‘कृ ’ धातु से स ब है िजसका अथ है ‘करना’। तुत श द के पूव म सम् उपसग तथा घात (ित) यय लगने से ृ (काय यापार) अथात् सं कार श द बनता है, िजसका अथ है सम् (समान) कित समानता, समान करना, पूरा करना, सुधारना, स त करना, माँजकर चमकाना शृंगार सजावट आिद मुख ह। इसी से स ब सं कृ त श द जो सम् + कृ + त से बना है तथा िजसके अथ ‘पूरा िकया हआ ह। माँ जकर चमकाया हआ सुधरा हआ आिद है। इसी िवशेषण क सं ा ही सं कृ ित है। सं कृ ित ऊजावान प रवेश को कट

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कर जनसमुदाय को एक कार कर जन-मानस म सामािजक एवं सां कृ ितक चेतना उ प न करती है िजसका भाव लोकजीवन पर अिधक पड़ता है। िह दी सािह य कोश के अनुसार सं कृ त के सम् उपसग क (ऽ) कृ (आ) धातु से बनता है । िजसका मूल अथ है साफ या प र कृ त करना है। आज िह दी म यह अं ेजी श द क चर का पयाय माना गया है। सं कृ ित श द का योग कम-से-कम दो अथ म होता है, एक यापक और एक संक ण अथ म। यापक अथ म उ त श द का योग नर िव ान म िकया जाता है। नर िव ान के अनुसार सं कृ ित सम त सीखे हए यवहार या उस यवहार का नाम है जो िक सामािजक पर परा से ा त होता है। इस अथ म सं कृ ित को ‘सामािजक था’ (क टम) का पयाय भी कहा जा सकता है। संक ण अथ म सं कृ ित एक वांछनीय व तु मानी जाती है, और सुसं कृ त यि एक स य यि समझा जाता है। इस अथ म सं कृ ित ाय: उन गुण का समुदाय समझी जाती है , जो यि व को प र कृ त, प रमािजत एवं समृ बनाती है।1 लोक सािह य क िविश ट पर परा का करौली, सवाई माधोपुर, धौलपुर के े क सां कृ ितक पर परा म िवशेष योगदान रहा है। बृहत् िह दी कोश के अनुसार सं कृ ित श द अित ाचीन है िजसका अथ व व प भी ाचीनता िलए हए है। सं कृ ित का अथ है पूण करना, शुि सुधार, प र कार, िनमाण, पिव ीकरण, सजावट, िन चय, उ ोग आचरणगत पर परा, स यता का वह व प जो आ याि मक एवं मानिसक वैिश ट् य का ोतक होता है। 24 अ र का वण त2 मेरी िवन स मित म सं कृ ित वह पुरातन समृ पर परा है जो मानव को मानवे र 1. क याण िसंह शेखावत : राज थानी सं कृ ित सं करण 2003 पृ. 2, 3 2. सं. राजे साइवाल, धनराज द तरी : राज थानी सं कृ ित स दभ और व प सं करण 2005, पृ. 105

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बनाने तथा उसके क याण हेतु त पर है। सािह य लोकजीवन, लोकगीत, लोकिव वास, पुरातन पर परा आिद का उ ले ख सं कृ ित क पृ भूिम को कट करता है। पा चा य िवचारक के मतानुसार मै यू आन ड के अनुसार ‘‘िकसी समान रा ट क े ठतम उपलि धयाँ ही सं कृ ित है।’’ हर को िव स के अनुसार ‘‘सं कृ ित पयावरण का मानव िनिमत भाग है। ’’ मजूमदार एवं मदान के अनुसार ‘‘लोग के जीवन जीने के ढंग को ही सं कृ ित कहते ह। डॉ. स यके तु के अनुसार ‘‘िचंतन ारा अपने जीवन को सरस, सु दर और क याणमय बनाने के िलए मनु य जो य न करता है , उसका प रणाम सं कृ ित के प म होता है। डॉ. बलदेव साद िम के अनुसार ‘‘माँजी, सँवरी जीवन-वृि कथा जीवन धम ही सं कृ ित है।’’ डॉ. अशोक शा ी के अनुसार “समाज वृि व समान भाव को कट करने वाली भावना मक स ा ही सं कृ ित है।”1 रामधारी िसंह िदनकर के अनुसार ‘‘सं कृ ित िज दगी का एक तरीका है और यह तरीका सिदय से जमा होकर उस समाज म छाया रहता है िजसम हम ज म लेते ह।’’2 हजारी साद ि वेदी के अनुसार ‘‘सं कृ ित मानव क िविवध साधनाओं क सव म प रिणित है। स यता का आतं रक भाव ही सं कृ ित है। 1. भारत का लाल : सं. अशोक शा ी, 2016 2. रामधारी िसंह िदनकर : सं कृ ित के चार अ याय .सं. िदसंबर 1965 ि .सं. 1962 नवीन सं करण 2005, पृ. 98

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डॉ. भोलानाथ ितवारी के अनुसार ‘‘मानव के सामािजक और वैचा रक यवहार तथा उससे िवकिसत चीज जैसे िवचार, सािह य, कला, कानून, नैितकता, जाित, धम, दशन, िव वास, रीित- रवाज आिद के समवेत प को सं कृ ित कहते ह, जो तरह-तरह के प रवेश तथा पर पराओं को प रणाम होता है। ये समवेत प सां कृितक है। अत: एक कार के सां कृ ितक घटक ह। व. रामनारायण िम के अनुसार ‘‘सं कृ ित का स ब ध हमारे मन दय मि त क के सं कार से रहता है।’’1 रामनाथ सुमन के अनुसार ‘‘सं कृ ित अंधकार से उठकर काश, अस य से स य और मृ यु से अमृ व के ोत क ओर या ा करने क वृि है।’’2 ी मनोहर शमा के अनुसार ‘‘मानव मन क अ तमुखी वृि य से जो उसका िवकास हआ है। उसका नाम सं कृ ित है।’’ डॉ. स पूणान द के अनुसार ‘‘सं कृ ित अंत:करण है, स यता शरीर है। सं कृ ित वह साँचा है , िजसम समाज के िवचार ढलते ह, वह िब दु है, जहाँ से जीवन क सम याएँ देखी जाती ह।’’ डॉ. अशोक शा ी के अनुसार, “मानवीय स यता, प रवेश तथा जीवन म क ऊजावान शि ही सं कृ ित है।” 3 रानी ल मी कमारी चूड़ावत के अनुसार ु ‘‘सं कृ ित श द का अथ बड़ा गहन एवं िवशाल है। के वल सािह य और संगीत ही इसके अ तगत नह आता है। कला कौशल, िश प, हमारे ये महल, मंिदर, िकले ही नह झ पिड़याँ भी हमारी सं कृ ित क दपण ह। हमारी पोशाक य हार, 1. रानी ल मी कमारी ु चूढ़ावत : सां कृ ितक राज थान, .सं. 1994, पृ. 87 2. राम नाथ सुमन ‘स मेलन पि का’ लोक सं कृ ित िवशेषांक’ िह दी सािह य याग सं. 2010 पृ. 08 3. डॉ. अशोक शा ी : सा ा कार, 19.6.15

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रहन-सहन, खान-पान तहजीब तमीज, सभी सं कृ ित के अ तगत आते ह। थोड़े -से श द म कहा जाये तो जो मनु य को मनु य बनाती है वह सं कृ ित है।’’1 डॉ. तारा काश जोशी के अनुसार ‘‘सं कृ ित मनु य क वह सृजनशीलता है, जो उसे परम सौ दय का आराधक बनाकर मानवीय बना देती है और इस कार मनु य को सु िचपूण जीवन क ओर े रत करती है। द:ु ख से सुख क ओर, अशुभ क और अ याय से याय क ओर, असु दर से सु दर क ओर, अकम यता से कम य सृजन क ओर, अशांित से शांित क ओर जाने का नाम ही सं कृ ित है।’’2 डॉ. अशोक शा ी ने सं कृ ितको संि त प म इस कार से प रभािषत िकया है ‘‘िक स पूण समाज को अस य प रवेश से स यता क ओर िनर तर उ मुख करने वाली साथक ि या ही सं कृ ित है जो सभी वाद व भेद से परे ह।’’3 वामी ई वारान द िग र, यामचरण दबेु, बलदेव साद िम भृित िव ान ने व छ प रवेश से आबध ि या को ही सं कृ ित माना है। अंत म मेरी िवन स मित म सं कृ ित वह सनातन पर परा या धारा है , जो अबाध गित से वािहत होकर स पूण समाज को े रत करती है। िवकास के सोपान :- सं कृ ित क चचा कर तो भारतीय सं कृ ित अ य सं कृ ितय से ाचीन है। यहाँ का धम भी सनातन है और देश क सं कृ ित का िवकास भी भारतीय सं कृ ित के बाद ही हआ है। सं कृ ित जीव सं कृ ित िवकास क कथा है। दशावतार क स पूण कथा से ही भारतीय सं कृ ित के िवकास का पता लगता है। (1) म यावतार (2) कमा ु ) अवतार (3) वराह अवतार (4) ू (कछआ नरिसंह अवतार (5) वामन अवतार (6) परशुराम अवतार (7) रामावतार (8) 1. ल मी कमारी ु चूड़ावत : सां कृ ितक राज थान .सं. 1994, पृ. 87 2. डॉ. तारा काश जोशी से सा ा कार 3. डॉ. अशोक शा ी से सा ा कार

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कृ णावतार (9) बु ावतार तथा (10) कि कअवतार। ये सभी धरती पर अधम अिधक बढ़ने पर तथा धम क र ा व सं कृ ित के य को रोकने हेतु समय-समय पर अवतार लेते ह तथा जनक याण करते ह। ये सब पौरािणक कथाएँ मानव जीवन पूण घिटत है , जो िक िभ न-िभ न े म सं कृ ित के तीक ह। वराहवतार म जल व थल दोन का सां कृ ितक जीव है। वामन अवतार म वामन लघुमानव का तीक है। ी कृ ण लीला के तीक ह। बुध ान के तीक ह। कि क आधुिनक ान व सृजन का तीक है। इस कार जीव सृि िवकास के साथ-साथ सं कृ ित का िनमाण भी होता रहा है । ी पु ष के िमलन से ही सृि का िनमाण हआ, वंश वृि कर आने वाली पीढ़ी का तीक बनी। धीरे-धीरे ृ पर सृि म नवीनता का संचार होने लगा और मानव जाित जब थायी प से किष आधा रत जीवन जीने लगी, उससे पहले भी िशकारी व पशुपालक के प म सां कृ ितक सृजन होता था। मांस भ ण, पशु-पालन तथा नृ य गीत क पर परा के दशन भी इस सं कृ ित क पहचान है। कालांतर म जंगली जीवन के बाद धीरे -धीरे मकान बनाकर थायी प से रहने लगे। धीरे-धीरे जंगली छाल का प बदला पालतु पशुओं क ऊन से व बनाना शु िकया। यिद सं कृ ित िविवध आयाम क चचा कर तो किठन होगा; िक तु उपयोिगता व सृजन के कारण अलग-अलग सं ा से अिभिहत िकया जाने लगा। पेड़, पोध का बीजारोप, संवधन करने वाली जाित ‘वनपालन’ कही जाती थी। िजसे आज ‘मालाकार’ या माली कहते ह। पहले धागे बनाते थे। वे अब ‘िपजारा’ कहलाते ह। ई कपास से सूत बनाकर धागे का प देने वाले ‘जुलाहा’ कहे जाने लगे तथा दरी-पिट् टयाँ इ धनुषी रंग से सुशोिभत होने लग और सं कृ ित क सृजनशीलता कट होने लगी, िव वकमा इनके इ ट देवता हो गये। भारतीय सं कृ ित के वल उपयोिगतावादी न होकर सृजन कला मकता से ओत- ोत है। ‘मांडण’ से ही

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िच कला िवकिसत हई जो लोक और शा म याित अिजत क । रंग के सृजन के बाद ‘नाद ’ का उदय हआ। इसका उदय ‘ताल’ और ‘ताली’ से हआ। िफर यह क ठ-लय, वा -लय म नवीन नृ य और राग के सृजन का आधार बना। यह म करने के समय ारंभ से ही उपयोगी था और बाद म इस नाद्मय कला म सौ दय क सृि होती रही। इसी स दभ म डॉ. तारा काश जोशी का मत लाघनीय है ‘‘भाषा, स ेषण का मा यम ही नह है, बि क मनु य क मौिलक सोच, अिभ यि स ेषण एवं सृजन का मा यम भी है। जब भाषा को नए-नए अथ म योग करने लगते ह, तब सौ दय क सृि होती है। यह लोक जीवन का सव धान गुण है। सािह य का सृजन भाषा क अ यतम् सृि है।’’ डॉ. राजगोपालाचारी ने सं कृ ित के पाँच सोपान को मुखता दी है जो इस कार ह। थाप य कला, मूितकला, िच कला, संगीतता व सािह य आिद मुख है, जो िक सं कृ ित स यता व प रवेश को भावशाली बनाते ह तथा आम जन म नवीन सं कार उ प न करते ह। स यता प रवेश को भािवत करती है। राज थान क भौगोिलक ि थित व सं कृ ित पर पड़ने वाला भाव ृ राज थान ांत क भौगोिलक ि थित व ाकितक संरचना इस कार क बनी है, िक आम आदमी को भािवत िकये िबना नह रहती है। अरावली पवतमाला क ेणी के अचंल म यहाँ क मौिलक जन-जाित को बाह् य भाव से अलग रखा है , तािक पुरातन सं कृ ित को सुरि त रख सके । यही कारण है िक भारतीय सं कृ ित क पुरातन पर परा ने राज थानी सं कृ ित म वे गुण छोड़े ह। उ र भारत म होने वाले आ ांताओं के आ मण से बचाने म अरावली पवतमाला क शृंखला ने पया त योगदान िदया है साथ ही सं कृ ित को समय-समय पर य न िमलता रहा है। बाहरी िवजेताओं राज थानी सं कृ ित, मू य व पर पराओं के स पक म आने के बाद सं कृ ित को गृहण कर पोषक बन गये। राज थानी सं कृ ित के संव न म

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अपना सव व य छावर कर िदया। राज थान क पिव तम वीर भूिम क चचा कर तो गुजरात, म य देश व ह रयाणा रा य के लोग भी यहाँ आकर बसे और धम और पु यकाय म आगे बढ़कर आये। रणकपुर मंिदर व देलवाड़ा के मंिदर इसके वलंत उदाहरण ह। पवतीय वृ स पदा ने भारतीय ही नह , िव व के पयटक को भी भािवत िकया है। राज थान क तीज य हार क छाप पूरे देश म िस है। मधुर वाणी व सु दर वेशभूषा भी भावशाली रही है। म धरा क गंध क महक ने स पू ण भारत को महका रखा है। रेिग तान क मृगम रिचकाओं क शु कता तथा िनजनता ने कई आ मणका रय क घुसपैठ को रोककर सां कृ ितक धरोहर क र ा क है। जैसलमेर म मंिदर व जैन भ डार क िवरासत दशनीय है। ताड़प पर िलिखत सािह य का पया त भ डार है। वीर भूिम राज थान के रणबाँकु र ने माटी क लाज रखने के िलए अपन सव व यौछावर कर मातृभूिम क लाज रखी। वीरागंनाओं ने जौहर िकये तथा माँ ने पु को मातृभूिम क र ा के िलए दधू क कसम तक िदला दी है इला न देणी आपणी हाल रया हलराय। पूता िसखावे पालणे मरण बड़ाई माय।। माता व मातृभूिम राज थान सं कृ ित के सदैव आदश रहे ह। निदय क धाराएँ आज म भूिम को हरा-भरा कर रही है। गुजर देश व मालवा क सीमा भी हरीभरी ह, तथा यहाँ से यापा रक स ब ध पुराने है। राजनीितक क चचा कर तो राज थान को अकबर स ाट् ने राजनीितक के बनाया। सं कृ ित क अिवरल पर परा क िनवाह 21व शता दी म भी मा य है। राज थानी मूल भाषा म िह दी सािह य के साथ लोक सािह य भी पया त देखने को िमलता है।

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राज थानी एवं पूवाचल (करौली एवं सवाई माधोपुर) िजले क सं कृ ित क मौिलक एकता भारतीय वेद-पुराण म सं कृ ित क िविवध िवचारधाराओं का िव ले षणा मक अनुसंधान ाचीनकाल से िनर तर होता आ रहा है। राज थानी पूव अंचल क सं कृ ित सबसे पृथक् नह वरन् उसीका एक अंशमा है। चतुवण धम , अथ, काम और मो क सतत् पर परा का अनुसरण पूव राज थान के सं कार म समािहत है, और ेरणा का ोत रही है। ईसाई िमशन रय , यहिदय , मुि लम आ ा ताओं के अनाचार के बाद भी सा दाियकता का िवशेष भाव नह पड़ा है। ऐसी अ ु ण पर परा का िनवाह वतमान प रवेश म भी चिलत है। यहाँ िविवधता म एकता का िनवाह वतमान प रवेश म भी चिलत है , िजसके कई उदाहरण ह, जो मौिलकता को दशाते ह— 1. अिवि छ नता ाचीनकाल से भारतवष पर िनर तर आ मण होते रहे ह, िजससे छोटे-छोटे रा य पर पर एक-दसरे ू पर आ मण करते रहे ह , िजससे आ त रक सुर ा कमजोर हई है। उस आपदा को सहष सहा तथा डटकर उसका मुकाबला िकया। िवषम एवं भयावह ि थितय म भी श ुओं से मुकाबला कर सवसमाज म सम वया मकता क भावना को जीिवत रखना पूव राज थान क पर परा रही है। याग, परोपका रता, कमठता, सहज जीवन क अिभ यि बन गयी। वचन क ढ़ता, कत यपरायणता, ‘अितिथ देवो भव’ क भावना पूव राज थान के कण-कण से बोलती है, वीरभूिम राज थान क अिवरल पर परा का इितहास भी बखबी ू दशाता है। सं कृ ित का ास करने के िलए आ ांताओं ारा रचे पंच िक तु पर परा को िकसी कार आघात नह पहँचने िदया।

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2. पूव अंचल म सािह य और कला क उ कृ टता भारतीय सं कृ त सािह य व अ य सािह य क कला ने सं कृ ित म चार चाँद लगा िदए ह। आ याि मक, सामािजक तथा का पिनक प पर िवशेष यान िदया है। ृ भारतीय ान, दशन तथा सािह य क झाँक कलाकितय म प ट ि गोचर है। पूव अंचल का करौली एवं सवाई माधोपुर इस े म पीछे नह है। सगुण भि का चार- सार अपने आरा य देव गणेश जी, कै ला मै या, मदनमोहन जी, महावीर जी, िशव भगवान् क ितमाओं का व प सा ात् बोलता तीत होता है। यहाँ क कला व सं कृ ित का सि म ण सु दर स य और िशवमय तीत होता है। आबू पवत, ओिसया जी, रणकपुर, बाडोली जगत् अथवा ओिसया आिद देवालय क देवी, देवताओं क मूितय म हम वही गौरव तथा स नता क अिभ यि देखने को िमलती है जो हम देवगढ़, खजुराहो तथा भीतरगांव आिद क मूितय म देखने को िमलती है। मंिदर के गभगृह , अ पताल , म डल , िशखर का िनयोजन उसी तज पर है, जो भारतीय मि दर म िमलता है। आ या म का के पूव राज थान है। 3. उदारता व सिह णु ता भारतीय भूिम िविवध धम स दाय के लोग का जीवन जीने क नई-नई ेरणाएँ देती ह, मू य क नैितकता वेद-पुराण के साथ धािमक थ से सद्माग क ेरणा िमलती है। िवदेशी जाितय ने धीरे -धीरे देश म वेश िकया िक तु उ ह िकसी कार क आपि िकए िबना शरणाथ के प म देश म पूण अिधकार िदए गए। ‘िह द,ू मुि लम, िस ख, ईसाई आपस म ह भाई-भाई।’ का नारा आज भी चिलत है। आज राजनीितक, सामािजक व मह वपूण पद पर इनको थान ा त है। इनके साथ िवभेद क अपे ा सिह णुतापूण यवहार होता है।

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4. वनवािसय के ित स मान द भावनाएँ राज थान देश के राजा-महाराजा व नेताओं ने अपने राजनीितक उ े य क पूित म बाधक नह माना, अिपतु अपने उ थान के िलए तथा जनक याण के िलए साधक माना। मा यताओं, िव वास , िढ़य तथा चिलत पर पराओं व यु कौशल को भी अंगीकार िकया। स पूण राज थान मौिलक सं कृ ित क धारा म अवगाहन करता रहा है। आज के भौितकवादी प रवेश भी एकता एवं अख डता म िव वास करता है। य िप राज थान ांत के दि ण पि चम े म उनक ि थित इतनी सु ढ़ नह हो पायी िजसका कारण अिश ा व उनक िढ़वािदता मुख रही है िक तु सां कृ ितक प रवेश अंचल के अनु प है। 5. सहानुभूित रेत के धार से लेकर च बल नदी के छोर —पांचना बाँध तक वसु धरा के िविवध प के दशन होते ह। कह रेत के टीले, कह पहािड़याँ, मैदान व घािटयाँ ह। भौगोिलक ि से िविभ नता तीत होती है; िक तु मौिलकता, च र , िन ठा, याग, ेम, एकता, समपण, वीरता, बिलदान आिद के सामने कछ ु नह है। ऐितहािसक स यता, सं कृ ित का प रवेश, मौिलकता क किड़याँ मेवाती, हाड़ौती, ज, ढंू ढाड़ी, मारवाड़ी व मेवाड़ी े क आन, बान और शान से स पूण होती है। 6. सम वया मकता िवदेशी आ मण के बाद िविभ न सं कृ ितय का आगमन भारत म हआ। उनसे हम सीखने को िमला। भारतीय सं कृ ित ने अ य सं कृ ितय को समावेिशत कर पर पर सम वय क भावना, वेद-वेदांग, करान ु शरीफ, गु थ साहेब आिद से ेरणा हण क है। मि जद, मंिदर म िह द ओ ू ं का गमन, शहीद का थान आिद। कै लादेवी मंिदर, रणथ भोर गणेश जी, िजसे ि ने गणेश जी भी कहते ह तथा महावीर वामी जैन का तीथ थल है। मदनमोहन जी बां के िबहारी का मंिदर है। ये

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समाज म एकता, आपसी भाई चारा व सौहा बढ़ाते ह। तपोभूिम राज थान म ऋिषय , मुिनय व साधक ने इि छत िसि याँ अिजत क है। तीथराज पु कर म ा ृ तथा जी का िव व म एक ही मंिदर है, वाजामुइदीन िच ती क दरगाह। खनन, किष िश ा के े म आज अ णी रा य क ेणी म है राज थान। 7. माता व िपता का पू य थान भारतीय सं कृ ित म ‘वसुधैव कट ु ु बकम्’ तथा िविवधता म एकता क भावना कट ू -कट ू कर भरी है। सां कृ ितक प के दशन येक नर-नारी म िव मान ह। िह द ु िपताओं ने मुि लम बेिटय क शािदयाँ क है। आज क अपनी बेिटय से यादा नेह ृ का सौ द य लोकगीत क धुन, देकर माताओं ने अपनी िमशाल पेश क है। कित मेल के य का मनोहर प, कै ला मै या के लांगु रय म रस, जभाषा, कृ ण राधा का बाल, यवा ु व अ य प म दशन, ीराम क मयादा, आदश, याग तप का भाव प ट ि गोचर है। हजार वष पुरानी सं कृ ित के कारण ही भारत को जगद् गु क उपािध अिजत है। स पूण िव व पर राज करने वाले च गु त, अशोक स ाट् , बाबर, िसक दर जैसे शासक को नमन करके राज थानी पिव तमा भूिम ध य हो गई है। 8. नैितकता, आदश एवं मयादा भारतीय सं कृ ित के आदश वेद, पुराण, रामायण, महाभारत व गीता के िनयम व मयादा का पालन कर अपने आप को देशवासी ध य मानते ह। षड् ऋतुओं तथा बारहमास के य हार , पव , नवरा , होिलका, दीपावली, ईद, ि सिमस, गु नानक जय ती उ सव म नैितकता क सीख लेकर मयािदत ी राम क उपासना करते ह तथा उनके ारा बताये माग का सहष पालन करते ह। 9. ेरणा के ोत वैसे मानवीय स यता का इितहास िनर तर गितमान होकर सं कृ ित म िव ट होकर अमानव से मानव बनाने म सफल रही है। पा चा य और भारतीय सं कृ ित का

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मुख अ तर यही है िक यहाँ र त क पहचान होती है। माता-िपता-भाई-बिहनप नी-पु आिद। बुजुग क बात सुनकर आशीवाद लेते ह तथा उनक ेरणा से े रत होकर सद्माग पर चलते हए जीवन क नूतन राह का अ वे षण कर समाज को स यक् गित दान करने म अ सर रहते ह। 10. चतुवग म आ था यह शा वत वै ािनक त य ह िक येक मानव म चार वग का समावेश है। धम जो िक भारतीय सं कृ ित म ‘धमिनरपे ता’ िविवध धम को मा यता ा त है। मि दर, मि जद, गु ारा, चच आिद। येक यि को धनाजन कर प रवार का पालन करने क ृ के साथ संसार क सृि करना, संचालन छट ू है। काम क चचा कर तो मानवीय कित कर मानिसक दैिहक शांित के साथ र त क नजदीक होती है। मो अथात् इस सृि म ज म लेकर मयािदत इस संसार से देवलोक गमन है। यह िविध का िवधान है जो शा वत स य है। पूवाचल क लोक सं कृ ित लोकवाङ् मय क सभी िवधाओं म लोकगीत, याल , नाटक , नृ य आिद का िविश ट मह व है। इन िवधाओं म लोक जीवन मनोरंजन और सं कृ ित का अनुपम प िनहारने को िमलता है । इन िवधाओं के िलए न कोई शा रचे गये ह, न इनके णेता कोई ऋिष मुिन ह। इनके अ तगत जो गीत या नृ य ह, उनके रचियता भी अ ात ह। सामुदाियक वातावरण और पर परागत अ यास ारा इन कलाओं म ाण बसे ह। मरण कर िढ़य क जीिवत रखने म इस कला का अपूव योगदान रहा है। पुरातन यगु से चली आ रही पर परा राज थानी सं कृ ित का ाण बनी हई है। इस िवधा का लोकनाट् य, लोकनृ य , लोक याल व अ य िवधाओं का मुख थान है। मनोरंजन के साधन, ामीण, क बाई े व नगर म समान प से िमलते ह। सामािजक जीवन व सं कृ ित के तीक के म य कोई सीमा नह रहती; बि क इनक

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अिभ यि , मनोवै ािनक, बौि क तथा धािमक वृि य मं सव िमलती है िजनका रसा वादन स पूण जनता करती है। पूवाचल क सं कृ ित क िविश ट पर परा करौली सवाई माधोपुर के लोकजीवन म देखने को िमलता है। लोक सं कृ ित क प रभाषाएँ रामलाल के अनुसार ‘‘लोक जीवन का समाज के तर पर समीकरण ही सं कृ ित है, भारत म इस सं कृ ित क मूल भूिम अ या म या आ मो नित वीकार क है।’’1 डॉ. कृ णदेव उपा याय ‘लोक सं कृ ित मानव जीवन के सम त अंग से स बि धत होने के अित र त, उसके लोक सािह य को भी आ मसात िकये हए है। यिद लोक सं कृ ित को िकसी िवशाल वृ से उपमा दी जाये तो लोक सािह य उसक शाखा के समान है , यिद लोक सं कृ ित एक िव तृत नदी है, तो लोक सािह य एक छोटी-सी नदी के समान है। यिद लोक सं कृ ित क तुलना रा ट से क जाय तो लोक सािह य उसके स तांग म से एक मह वपूण अंग है। यिद लोक सं कृ ित क उपमा शरीर से दी जाये तो लोक सािह य उसके एक अंग के समान है। ृ क गोद म पलती गोपीनाथ किवराज के अनुसार ‘‘लोक सं कृ ित कित और पनपती है। इसके उपासक या संर क बाहर क पु तक न पढ़कर अ दर क पु तक ह। उनके दय सरोवर म ा के संदेश सुमन िखले रहते ह। लोक सं कृ ित क िश ा णाली म ा भि क ाथिमकता रहती है। उसम अिव वास तक का कोई थान नह रहता। इसी से ान और िसि क सहज ाि होती है। ‘ ावान लभते ानम् त पर : संयेितइ य’ यह िस ा त लोक सं कृ ित के उ नायक भगवान् ‘ ीकृ ण’ के मुख से उ चा रत हआ है। लोक सं कृ ित म ा भावना क पर परा शा वत है। वह अ त सिलला सर वती क भाँित जनजीवन म सतत वािहत हआ 1. कु . उिमला सैनी राज थानी लोक सािह य म िचि त सं कृ ित और समाज पृ. 109 (शोध ब ध) 2007

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करती है।’’1 करौली व सवाई माधोपुर क लोक सं कृ ित क छटा लोकगीत, लोकगाथा व लोकजीवन, लोक िव वास म देखी जाती है, जो छोटे-छोटे गीत म राज थानी के अित र त जभाषा का सम वय प रणत है। सं कृ ित क सारगिभत अथयु त प रभाषा म शारी रक अंग क तुलना क गई है। लोक सं कृ ित व लोक सािह य को एक-दसरे ू से अलग करना असंभव है। सं कृ ित अंगी है तो सािह य अंग है‘‘लोक सं कृ ित अंगी यात् सािह यमगंमु यते इित ते सशयता भूत उमयोज तरंमहत।’’2 लोक सं कृ ित के मूल त व वैसे तो सं कृ ित क िवशाल पृ भूिम है िक तु लोक जीवन व लोक यवहार म िविभ न त व म समावेश िकया जा सकता है। भारतीय सं कृ ित का व प िन न िब दुओं म ट य है— (1) िविवधता म एकता :- राज थानी ही नह भारतीय सं कृ ित क पहचान है िक िविभ न धमावल बी, िविभ न जाित, धम के अनुयायी यहाँ रहते ह। उनम अनेक बात म िभ नता के िवचार होने पर भी पव सव म तथा सां कृ ितक िवषय म एकता के वर फु ट होते ह तथा सं कृ ित क पर पराओं के अनुसार ही चलते ह। यह राज थानी लोक सं कृ ित क मुख िवशेषता है। सवाई माधोपुर, गंगापुर, धौलपुर, भरतपुर व करौली िजले के आस-पास के े म ि गोचर है। 1. रामनाथ सुमन ‘स मेलन पि का’ (लोकसं कृ ित िवशेषांक) िह दी सािह य स मेलन याग, पृ. 20, 21 2. गोपीनाथ शमा : राज थान का सां कृ ितक इितहास, पृ. 197

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(2) बा प म प रवतन पर ताि वक ि थरता :- राज थानी सं कृ ित नवीन नह वरन् अित ाचीन है। बाह् या मण के कारण हताहत हई िछ न-िभ न सं कृ ित का बाह् य प है, जो पि चम म पड़ोसी देश पािक तान क सीमा तक है। उसम बाहरी लोग पर सीमा पर वाद-िववाद िकये ह िक तु राज थानी लोक सं कृ ित क पर परा िनर तर अपने पुरातन व प व सं कार से पू रत है िजसम स पूण राज थान क लोकचेतना कट होती है। (3) मानवता और सिह णु ता :- राज थानी लोक जीवन म मानवीय सं कार ि थत है। मानवीय जीवन म आपसी ेम एवं सौहा , उ सव व सं कार म देखने को िमलता है। पर पर िमलन व सहयोग क वृि प ट ि गोचर होती है। पूव राज थान के भरतपुर, करौली, धौलपुर व सवाई माधोपुर क ामीण सं कृ ित म मानवीय संवेदना प ट प रलि त है। यहाँ मनाये जाने वाले य हार म सभी जाित धम के लोग एक-दसरे ु क मनौती माँ गते ह। ू को बधाई देकर खशी ृ क उपासना :- राज थानी लोक सं कृ ित म दैवीय शि क (4) कित उपासना क पर परा आिदकाल से पूव क है। मोहन जोदड़ा एवं हड् ड पा कालीन ृ ृ क ाकितक अवशेष म पूजा-अचना, देवी, देवताओं के प िमलते ह तथा कित पूजा, पेड़-पौध क पूजा। शमी वृ (खेजड़े) क पूजा पहाड़ी मैदान क ह रयाली म अ यार य म जंगली जानवर मान स नता क मु ा म नृ य करते तीत होते ह। पीपल म सभी देव का िनवास होता है अत: पूव राज थान म पीपला पू यो को पूजा होती है तथा िप का तपण, ा कम व ि या कम करते ह। इसके अित र त सूय ृ क उपासना के तीक है। नान करना, च मा क चौथ का त करना आिद कित (5) अमर स य का जो सदा सरल होता है, पालन :- हमारी मातृभूिम के कण-कण म स य के िलए समपण व याग क भावना येक यि म िव मान है। वीरभूिम म राणा ताप, सांगा जैसे वीर यौ ाओं ने स य क र ा के िलए तथा

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सं कृ ित क ित ठा के िलए अपने आप को समिपत कर िदया। वत ता सेनानी िज ह ने गुलामी के समय मातृभूिम क र ा के िलए सव व यौछावर िकया। उनक यागमय भावना का अ रस पालन िकया जाता है तथा समय-समय पर उनके याग व समपण को याद िकया जाता है। (6) आ याि मक िवकास :- आ याि मकता राज थानी सं कृ ित के कण-कण म या त है। धम क पालना, पव सव को उ लास पूवक मनाना । देवी देवताओं क गाथाओं को सुनना-सुनाना व उनक िविधवत् पलना करना। वैसे भी भारतीय सं कृ ित म यह िनि चत है िक वह दैवीय िस ा त म िव वास करती है। यहाँ का आ याि मक सािह य भी ेरणा को ोत रहा है। तपोभूिम करौली (कै ला म या) धौलपुर व गढ़ गणेश जी, महावीर जी, सवाई माधोपुर, चौथमाता आिद थान का मह व है। (7) स त , त व ािनय , महापु ष का यगु यगा ु तर म अटटू भाव—राज थानी भूिम वीर पिव तमा है। य िक वैिदक कालीन प रवेश से ृ , पािल अप ंश और िह दी सािह य के पया त भ डार ह तथा िविवध सं कृ त, ाकत भाषाओं के िव ान को ज म देने वाली भूिम है किव लेखक, राजनेता, वत ता सेनानी आिद मुख और यापार े तक म शेखावाटी ने पूरे िव व म राज थान का नाम मारवाडी िकये हए ह। कहा है– “जहाँ न पहँचे बैलगाड़ी वहाँ पहँचे मारवाडी।” (8) जापालक शासन :- पुरातन काल म तर यगु से राजाओं का शासन रहा िफर राजपूत, मुगल शासक आये इ ट इि डया क पनी के अं ेज ने राज िकया। देश क आजादी के बाद जात क थापना हई। ैध शासन यव था हई िफर पंचायती राज यव था से जात पहँच कर उसक सेवा करने वाला शासन बना।

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इन सभी त व , गहन अ ययन तथा िव लेषण करने से यह त व तो प ट हो गया िक राज थानी लोक सं कृ ित म या त मूल त व म यहाँ सं कृ ित िवरल पर परा का अवसान नह हआ, अिपतु नवीन राह देखने को िमली है । इस स दभ म रामनारायण िम का व त य सटीक तीत होता है। सं कृ ित श द िविश ट जन समुदाय के िवचार का बोध है और लोक सं कृ ित साधारण जन समुदाय का। मेरी स मित म लोक सं कृ ित म िव मान त व का सू म िव लेषण करने पर यह िन कष िनकलता है िक राज थानी लोक जीवन से जुडी पर पराओं, उ सव , पव , आँचिलक प रवेश के िवचार का लोक-मानस पर आज भी भाव अिमट है। लोक सं कृ ित के उ े य िकसी भी सं कृ ित का िव लेषणा मक अ ययन कर तो उसका सािह य, पव, उ सव, लोकनाट् य, संगीत, यौहार, धािमक सिह णुता, देवी-देवता, वैर, ीित थाएँ, रीितयाँ धम, स ब ध क िनकटता, िववाह क िह द ू णाली आिद का सू म गहन व त यपरक िव लेषण तुत है। लोक सं कृ ित का थम व मूल उद्दे य है सामािजक स दभ म अथात् वा तिवक जीवन म उसका सि वेश। लोक सं कृ ित िकसी देश क स यता का दपण है, अथात् िकसी देश के िनवािसय क लोक सं कृ ित को तभी जान सकते ह। जब उसक स यता का पूण ान हो। अत: दोन अ यो याि त ह। लोक सं कृ ित का दसरा ू मह वपूण उद्दे य समाज म चिलत स यता का पुि करण तथा िविभ न िवधान अथवा सं थान को औिच य दान करना है। िकसी देश के िमथक सां कृ ितक पर परा को बल दान करते ह। इसी कार से जादू टोना, धािमक अनु ठान आिद सामािजक संरचना के प को बतलाने म यावहा रक माग दशक का काय करते ह। तीसरा मह वपूण उद्दे य िश ा मुख मा यम हो। िवशेषतया उन अस य तथा अ स य समाज म जहाँ स यता का चार नह हआ है यह िश ा का

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अ यतम मा यम है। पालने के गीत तथा लोरी सुनकर ब च को आन द क ाि होती है। िश ा द कथाओं , कहावत आिद से उपदेश िदया जाता है। नैितक िश ा का ान देना होता है िजससे च र उ वल भिव य क कामना क जाती है। लोक सं कृ ित का चतुथ व अंितम उ े य समाज म चिलत आचार या लोक ृ शैली या रीित क एक पकता को ि थर तथा ढ़ बनाये रखना यवहार क वीकत है। यिद कोई यि समाज के िव काय करता है तो उसे उपदेश द कथाओं के मा यम से सद्माग क ओर उ मुख िकया जा सकता है। िन कष :- राज थानी लोक सं कृ ित क अिवरल अमृत धारा का रसपान कर जीवनो सग करने वाले धीर-वीर क धरा है, िजसके म कण म याग, शौय, वािभमान आिद गुण को देखा जा सकता है। यहाँ क पर पराओं का ास क सं कृ ित को मैली करने क कोिशश को वीर के शौय ने रोका है। वैिदक काल से आज तक ान क सह धाराओं को जो झरना फटा ू था। वह अब पूण बहाव को लेकर बह रहा है। यहाँ के लोक गीत, मीरा क वेदना, भि राज थानीय के दय का हार बनकर आज भी ी चेतना को जा त करती है। यही समि गत आ म काश लोकसं कृ ित है तथा उसक जीव त चेतना को नये -नये आयाम देती है। पूव राज थान (करौली एवं सवाई माधोपुर ) क सां कृ ितक गितिविधयाँ ध य है वह पिव धरा िजसके सौ दय को रा टीय उ ान के िवशाल भू -भाग तथा उसम िवराजमान थम आरा य ी गणेशजी क पुरातन िसि दायक मूित िवराजमान है। पूवाचल क सं कृ ित का तीक िच है, जो िव वमानस पटल पर है। ृ ृ तथा वन से िघरा े , जहाँ देिवय म पहाड़ी, निदयाँ, कषक ारा पशु -पालन, किष े ठ माँ कै लादेवी, महावीर जी तथा मदनमोहन जी, पानी का सागर पांचना बाँध क तराई से हरी-भरी भूिम व च बल से सटे इलाके क भूिम का सौ दय देखते ही बनता है। बनास क रेत से बने शहर के सुस त भवन, शालाएँ, खनन के प थर से बनी

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प याँ, िह डौन े म पाटौर (पाटोल) के नाम से लगाकर छाया का काय करती ह। यहाँ मेले, उ सव म पर पर ेमभाव उ प न होता है। िविवधधम स दायवादी साधु-संत का पदापण होने से सं कृ ित िखल उठती है। लोग के चेहर पर ज के लांगु रय क धुने िमलती है। ेम से बोला ‘जयमाता दी’ के नारे व लांगु रया गाते राज थान ही नह अ य ा त से भी लोग यहाँ आते ह। पूव राज थान क इ धनुषी सं कृ ित म कोस-कोस पर बदले पानी आठ कोस पर बरसे पानी। खान-पान, रहन-सहन, त- य हार िववाह आिद मांगिलक काय एवं पूजापाठ का िवधान है। करवाचौथ का त व पूजा के िलए माता पपलाज, चौथ का बरवाड़ा, िशवाड़ िशवजी क ादश योितिलग क पिव थली। उ ोगधंध क चचा कर तो लाखेरी का सीमट उ ोग, िहंडौन का लेट उ ोग, करौली का खनन यवसाय िनर तर गितमान है। मु बई टेक पर देवी का तीथ थान है। इस कार पूव राज थान के धौलपुर, कछ ु भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुर के िजले के जनजीवन, आचार-िवचार, प रवेश व र त क सघनता के ये सब माण है। पूवाचल का समाज मनु य वभाव एवं आव यकता से सामािजक ाणी है। य िक वह समाज म रहता है तथा समाज म होने वाली ि या- िति याओं को देखता है तथा सं कृ ित से सरोकार रखने वाली सामािजक गितिविधय के संचालन म अपना स पू ण योगदान देता है। जाित, धम, िलंग, भेद से परे रहकर समाज क याण क सोचता है। समाज का अथ व प एवं प रभाषा ‘समाज’ लेिटन भाषा के ‘सोिशयस’ (Socius) से बना है। िजसका अथ है ‘समाज’ (सोिशयल) के दो अथ होते ह। सामा य अथ म इस श द का योग यि य के समूह के प म, िकसी सिमित के प म और िकसी सं था के प म िकया जाता है। समाज शा म ‘समाज’ श द का योग िवशेष अथ म िकया गया

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है। वहाँ यि - यि के म य पाए जाने वाले सामािजक स ब ध के आधार पर िनिमत यव था को ही समाज कहते ह। मेकाइवर व पेज के अनुसार ‘समाज रीितय एवं काय णािलय को अिधकार एवं पार प रक सहायता क अनेक समूह तथा िवभाग क मानव यवहार के िनय ण तथा वत ताओं क एक यव था है। इस सदैव य नशील जिटल यव था को हम समाज कहते ह। यह सामािजक स ब ध का जाल है और यह हमेशा प रवितत होता रहता है।1 यूटर के अनुसार ‘‘समाज एक अमूत धारणा है जो एक समूह के सद य के बीच पाये जाने वाले पार प रक स ब ध जिटलता (स पूणता) का बोध कराती है।’’2 पारस स के अनुसार ‘‘समाज के उन मानवीय स ब ध क स पूण जिटलता के प म प रभािषत िकया जा सकता है। जो साधन सा य स ब ध के प म ि या करने म उ प न हए ह , चाहे ये यथाथ ह या तीका मक।’’3 मेकाइवर एवं पेज समाजशाि य ने समाज के मह वपूण त व पर काश डाला है वह िन नानुसार है- (1) रीितयाँ (2) काय णाली (3) अिधकार (4) पार प रक सहायता (5) समूह एवं िवभाग (6) मानव यवहार का िनय ण (7) वत ता। इन त व और उपुय त प रभाषाओं के िव ले षणा मक अ ययन से सामािजक िवसंगितयाँ एवं िवकास क जिटलताओं क सम अ ययन प रवेशगत चुनौितय का स यक् व प तुत करता है। उसम तीन बात पर िवशेष यान देना आव यक है1. एम.एल. गु ा, डी.डी. शमा : समाज शा के मूल त व पृ. 56-59 2. एम.एल. गु ा, डी.डी. शमा : समाज शा के मूल त व पृ. 56-59 3. एम.एल. गु ा, डी.डी. शमा : समाज शा के मूल त व पृ. 59

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(1) यि य क बहलता (2) सामािजक स ब ध (3) सामािजक अ त:ि या मेरी स मित म समाज म जाग क िशि त यि य का समूह है जो आम यि के उ वल भिव य के िनमाण क न व रखता है। उनका समाज से आव यक क याणकारी स ब ध बनता है। ऐसी जिटल यव था ही समाज है। ागैितहािसक स यता, आिदमानव, पाषाणकालीन, जंगली पशुओं का िशकार कर उदरपूित करता था। धीरे -धीरे समूह नदी घाटी स यता का िवकास हआ। धीरे -धीरे संगिठत समूह समाज कहलाने लगा। िफर समाज म जाितय वण यव था क शु आत हई िजसम िवसंगितयाँ पनपने लगी। ईसा क एक हजार शता दी के आस-पास (पूव) आय का आगमन सर वती और यवती निदय के आस-पास आकर संघष और सम वया मक ि कोण अपनाते हए बसना ारंभ िकया। पि चम दि ण राज थान क ओर िनर तर बढ़ना शु हो गया। वण यव था के अ तगत जाित यव था क कमानुसार िवभािवत कर िदया। इसका ारंिभक लचीलेपन जिटलता म प रिणत हो गया। पुरातन पर पराएँ िढ़ यां, रीित- रवाज, आदश-भाषाएँ, मत-मता तर तथा सां कृ ितक मू य अ ुण बने हए ह। समाज के िवकास के िलए समाज को कई वग म िवभािजत कर समाज क याण क योजनाएँ ि याि वत हई। वण यव था :- ईसा के लगभग तीन हजार वष पूव म य एिशया से आई हई आय जाित ने सर वती और यवती निदय के आस-पास आकर संघष एवं ृ भूिम और चरागा ह सम वय क ि या ारा बसना ारंभ िकया। कालांतर म किष

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क खोज म पूव -पि चमी एवं दि णी राज थान क और बढ़ना ारंभ कर िदया। थानीय कबील और आग तु म वग म मेल तथा पृथकता क प रि थितयाँ भी आती रही। बढ़ते हए समाज म गुण और कम का िवभाजन घर करता गया। कबील व नव आग तुक क सम वया मकता से यि िवशेष के गुण व िच के अनुसार व अनु प समाज का पुन : वग करण हआ िजसे हम वण यव था कहते ह। जातीयता :- पूव म यकालीन यगु के ारंभ होने से पूव ही वण य व था के अ तगत िविवध जाितयाँ व उपजाितयाँ पेशे व थान िवशेष के नाम से पनपगई जो समाज का यावहा रक प था। इसका ारंिभक लचीलापन जिटलता म प रिणत हो गया। वतमान के भौितकवादी यगु म खान -पान िववाह खलकर होने लगे। य िक ु पा चा य सं कृ ित का पड़ने वाला भाव सीमाएँ लांघने लगा। िफर भी अिधकांश लोग जाित और वण यव था म आज भी िव वास रखते ह। िजसका आधार है जनमानस क िव वसनीयता, रीितयाँ, रवाज, पुरातन पर पराएँ, आदश, े िवशेष म य त भाषा व बोिलय का अपना मह व है। सां कृ ितक िवरासत सतत् सत् ेरणा देती रहती है। यही कारण है िक वण यव था का सां कृ ितक पहलू तथा जाितगत जीवन एक-दसरे ू पर आि त बनकर अधावित जीिवत है। एक जाित िवशेष के हाथ म कोई िश प या यवसाय बने रहने से उनक कशलता उ रो र बढ़ती चली गई। ु ऐसी अव था म वह प रवार और देश के ित अिधक िन ठावान रहता है। लेिकन अब समाज म कोई ब धन नह है िक पर परागत प से जो जाित यवसाय करती थी वह अब भी कर। कोई भी यि िकसी भी यवसाय को अपना सकता है और यह भी संभव है िक इतर जाित का सद य िनधा रत यवसाय से जुडे हए यि से अिधक यो य और कशल ु िस हो सकता है ।

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सामािजक िवसंगितयाँ ृ भी रहती है। ये समाज म कई अ छाइयाँ होने के बावजूद िवकित प रि थितय एवं िवसंगितय के कारण जमीदार, सामंत, अिधकारी वग स पूण भौितक सुख सुिवधाओं के साथ जीवन यापन करते ह; िक तु ठीक िवपरीत दासदासी उ च वग क सेवा म सादा जीवन यतीत करते थे। उनके रहन-सहन का तर िन न होता था। भील मीणा (मीना) आिद जंगली जाित घास-फस ू या लकड़ी आिद व तुओं को बटोर कर अपना जीवन िनवाह करते थे। आधुिनक काल म सामािजक ा प का िव ले षणा मक परी ण के अ ययन से यह िन कष िनकाला है िक वग भेद के सामंती प रवेश के चलते अमीर और अमीर व गरीब और गरीब होता जा रहा है। उनके पास जीवन क मू लभूत ज रत (रोटी, मकान और कपड़ा) जैसी पूित का अभाव रहता है। आज भी मजदरू को अ यिधक प र म करने के बाद भी रोटी तक मय सर नह होती है। सरकार ने अनेक क याणकारी योजनाओं के बावजूद ि थित जस क तस है। राज थान के पूव े म धनपितय ने अनेक सं थाएँ चला रखी है। िव ालय महािव ालय का संचालन कर रखा है, िक तु उनका लाभ वग िवशेष को ही िमलता है आमजन को िवशेष लाभ नह होता। पूव राज थान क सामािजक सं थाएँ य िप राज थान के सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर े म पुरातन सं कृ ित के सं कार , संयु त प रवार क पहचान ि गत होती है। सरकारी नौकरी म थाना तरण, शहरीकरण, उ ोग-धंध , स पित का बँटवारा आिद कारण है , िजनके चलते संयु त प रवार म प रवितन होने लगे। सोलह सं कार का भी पूण िनवाह नह करते ह। इधर सभी जाितय के लोग का िनवास है िक तु करौली व सवाई माधोपुर म मीना (मीणा) जाित का भाव भी अिधक देखने को िमलता है। सामािजक, आिथक

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व राजनीितक प रि थितय के कारण मुि लम व अं ेज ने भारतीय सं कृ ित म अनेक बार आ मण कर अ त- य त करने क कोिशश क , लेिकन भारतीय सं कृ ित म िविवधता म एकता वाली बात प ट प रलि त है िजससे स पूण राज थान ही नह , भारत वष म जाित, धम एवं िलंग के आधार पर समानत प ट िदखाई देती है। ृ भौगोिलक ि से भारत के पाँच ाकितक भाग है1. उ र का पवतीय देश :- उ र म क मीर से नेफा तक 1600 मील ल बी 150 से 200 मील चौड़ी िहमालय क पवत मालाओं का िव तार है। इधर ृ अनेक धािमक, दाशिनक, ाकितक एवं रोचक थान है। जहाँ ितवष हजार िवदेशी पयटक एवं देश के तीथ याि य का आवागमन होता है। ि लोक क पिव साधना का े है तथा भारत वष का वेश ार या तोरण ार कह सकते ह। 2. गंगा िस धु का मैदान :-उ र म ि थत िहमालय से लेकर दि ण पठार के बीच का मैदानी भाग, उ र का बड़ा भाग है, जहाँ मैदानी भूिम है तो गंगा, िस धु, पु तथा सर वती व सतलज नदी के कारण पंजाब े क भूिम अिधक उपजाऊ है। उपरो त थान भारतीय सं कृ ित व स यता क उपजाऊ भूिम उद्भव थल एवं बाह् य सं कृ ितय का संगम थल रही है। तपोभूिम गंगा क पिव ता का तीक िच ह, मो ार ह र ार, याग व वाराणसी जैसे पिव तीथ थल के कारण देवभूिम क ृ होते ह। सामािजक प रवेश, राजनीितक गितशीलता, पिव ता से भारतवासी कताथ शै िणक ितमा, सां कृ ितक पृ भूिम एवं ऐितहािसकता क ि से स प न व समृ ृ आजीिवका का मुख ोत है। े है। भारत क भूिम म किष 3. दि ण का पठार :- भारत का दि णी भाग ाय ीप है, जो एक पठारी े है तथा तीन ओर से समु ी े के िघराव से दबा है। यहाँ िव व क ाचीनतम जन जाितयाँ, ई ला, कदार, चेचूं माला पा म आिद रहती है। बहपित िववाही टोड़ा एवं कोटा तथा मातृ स ा मक नायर भी इसी े म रहते ह। भारत के मूल िनवासी

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िवड का मु य िनवास यही रहा है। ाचीनकाल म चोल, प लव, चालु य आिद वंशज का रा य रहा है साथ ही मराठ क राजपूत क गाथाएँ भावशाली रही है। 4. राज थान पर म धरा का भाव :- राज थान देश पािक तान क सीमा, गंगा नदी क घाटी के पि चम क ओर एक शु क देश रेतीला भाग है, जो िक थार का म थल व रेिग तान के नाम से जाना जाता है। रेिग तान के कारण ही िस ध से उ र क और िवदेिशय के आ मण िवफल होते रहे ह। सोमनाथ से वापस आते हए महमूद गजनवी क िवजयी वािहनी इसी म भूिम म लगभग लु त हो गयी। धरातल म पानी के अभाव और वषा क कमी के कारण यह े बहत कम उपजाऊ है। यह े रण बाँकु रे राजपूत का ितिनिध राजकाज का प रचय देता है। मान , आन, शान व मातृ भूिम के िलए सव व समिपत करने क भावना से ओत- ोत भूिम है। वीरता क कहािनयाँ, याग व बिलदान क गाथाएँ, ‘ ेम क मह ा’ ‘ढोला मा ’ जैसी वीरता क ‘पृ वीराज रासो’ जैसी आिदकालीन रचनाओं के साथ-साथ, रहनसहन, खान-पान, मारवाड़ी भाषा क मधुरता िव व-िव यात है। 5. समु तटीय े :- दि ण पठारी े के पूव म और पि चमी दि णी म गौड देश का समु ी े है। समु ी ब दरगाह ने ाचीनकाल से ही भारत को अ तरा टीय यापार का के बनाया, सामािजक एवं सां कृ ितक पृ भूिम का महज एक सौ दया मक ि कोण भी है। जावा, िह दी, चीन, सुमा ा, बमा, अरब, ईरान एवं फारस क खाड़ी के देश से स ब ध बनाएँ हए है। दि ण समु ी सीमा क बात कर तो भारतीय पिव तीथ , क याकमारी ु , रामे वरम् के े को पारकर ीलंका क सीमा मा 80 िक.मी; दरू से ही शु हो जाती है। अत: सम िव लेषणा मक अ ययन से यह िन कष सामने आता है िक िविवधता म एकता भारत क िवशेषता वाली उि क समृ पर परा दृि गोचर होती है। जो रेतीली धरती क गंध म ेम, याग, तप व बिलदान क गंध महसूस होती है।

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भारतीय समाज व सं कृ ित क िवशेषताएँ पूव राज थान के करौली व सवाई माधोपुर अंचल क सं कृ ित क अनूठी देन है सं कार, जो समाज के सम वया मक ि कोण को तुत करता है। मनु य क ृ है िक वह समाज से अलग नह रहता है। वह िकसी भी समाज व समुदाय म कित रहकर िकसी भी धम का पालन करने के िलए वत है, य िक वह समाज म रहते हए भी वत है जो िक संवैधािनक प से भी उिचत है। भारतीय समाज एवं सं कृ ित मानव समाज क अमू य िनिध है। भारतीय सं कृ ित अमर या सनातन है जो िक पुरातन काल से आज तक अवि थत है। भौगोिलक ि से स प न सुदीघ पर परा का अनुसरण करने वाली है। भारतीय सं कृ ित, स यता, प रवेश, कला, धम, दशन आिद िचरकालीन पर पराओं का यह स मान िमलता है। भारतीय सं कृ ित क िचरकालीन पर पराओं क िन न िवशेषताएँ ि गोचर ह। 1. ाचीनता एवं थािय व :- भारतीय सं कृ ित एवं समाज यव था िव व क ाचीनतम सं कृ ित एवं समाज यव था का मह वपूण अंश है। रोम, यनान ू , िम , सी रया, बेबीलोिनया और भारतीय सं कृ ित िव व क ाचीन सं कृ ितय म मुख है। हजार वष से चली आ रही पर परा वैिदक कालीन, उ र वैिदक कालीन, म यकालीन और आधुिनक कालीन प रवेश व प रि थितय म बदलाव ज र आय है; िक तु आधार वह है। सं कृ त भाषा म रिचत थ का आज भी उतना मह व है िजतना वैिदक व उ र वैिदक काल म था। सोलह सं कार व कम का, गीता का उपदेश, रामायण के आदश क ा पूव क पालना क जाती है। संयु त प रवार, ज म, मृ यु, िववाह आिद पार प रक काय का संचालन उन के आधार पर ही स प न होते ह। बौध धम का स य, अिहंसा का माग, गाँधी क िवचार धारा दशन को स मान िमला हआ है। पुरातन जातक थ , धािमक थ , पुराण का वैिदक रीितय का स मान िकया जाता है। ‘‘भारतीय जीवन का मूल आधार वह है, जो

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ाचीन भारत म थे। सिदयाँ बीत गयी, न जाने िकतने उ थान और पतन हए, िवदेशी आ मण हए, िक तु भारतीय समाज व सं कृ ित का दीपक आज भी विलत है, उसका अतीत वतमान म जीिवत है। ’’1 2. ऋतुओं का आन द :- भारत म छ: ऋतुएँ होती ह जो पूरे िव व म कह भी नह है। डांग े के लोग गम , वषा, शरद, हेम त, िशिशर एवं बस त आिद के अनुसार भारतीय प रवेश म सव छओं ऋतुओं का आन द लेते ह। खान-पान, तीज- यौहार, वेशभूषा म लह रया बस त म पीला, ी म सूती के ह के व धारण करते ह। सद म ऊनी व धारण करते ह। बारह माह य हार ही य हार होते ह। सदैव खशहाली मय वातावरण देखने को िमलता है। होली , दीपावली, ईद, ि सिमस ु सभी धमावल बी यौहार को उ साह पूवक मनाते ह। देवी देवताओं क आ था मातृभूिम क पिव ता क प रचायक ह। हरी-भरी सि जयां, गाय का दधू मीठे पन को और अिधक बढ़ा देता है। 3. सिह णु ता :- भारतीय सं कृ ित क मधुरतम िवशेषता सिह णु ता है। देश म िविवध धमावल बी होने के बाद भी उदर समिपत भाव ेम, याग क भावना से ओत- ोत है। भारत म हण, शक, यहदी, अं ेज आिद कई सं कृ ितयाँ भारत म आई, िक तु काला तर म भारत से ानाजन करके ही अपने देश म भारतीय सं कृ ित व सनातन धम क चचा व पालन करने म लीन रही है। इसिलए भारतीय सं कृ ित ृ इ ह िवशेषताओं िव व के िलए अनुकरणीय मानी जाती है एवं पूवाचल क सं कित से ओत- ोत है। 4. सम वया मकता :- भारतीय सं कृ ित म िविवध सं कृ ितय का सम वय हआ। देश क सं कृ ित क अपार याित व समृि है , जो िक िविवध भाषी स रताएँ वही थी। िह दू + मुि लम सं कृ ित म सम वय हआ। ानमाग , ेममाग , सूफ , 1. एम.एल. गु ा, डी.डी. शमा : भारतीय समाज, पृ. 2-6

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आ या मवाद योग साधना और रह यवाद का मुि लम सं करण है। बु अवतार रावावतार क मिहमा का गुणगान िकया जाता है। 5. आ या मवाद :- करौली एवं सवाई माधोपुर क सं कृ ित म आ या मवाद का अपना मह व है। भौितकवादी इ छाओं के पीछे च कर लगाते रहना जीवन का वा तिवक येय नह है। हमारे वेद , पुराण, रामायण के आदश व गीता के उपदेश म कमवाद क मह ा को प ट िकया गया है। दैिहक सुख का प र याग कर ई वरीय भि करने वाला ाणी सदैव सुखी रहता है। 6. धम धान सं कृ ित :- भारतीय सं कृ ित का गुण है चतु वग ाि धम, अथ, काम व मो है। िजसम धम का िवशेष थान है। िजसका अथ है धारण करना। ृ का वातावरण शु रहता है। धम का े धािमक अनु ठान व य ारा कित िव तृत है। यहाँ ऋिष मुिनय ने तप या क है। महाभारत जैसे महाका य म धम क थापना एवं अधम का नाश करने हेतु ई वर अवतार लेते ह ऐसी मा यता बताई है। पूवाचल क सं कृ ित धम धान मानी जाती है। 7. वणा म यव था :- वैिदक कालीन स यता म कमानुसार जाितय यव था को चार वण म िवभािजत िकया है। ा ण, ि य, वै य तथा शू मुख ह तथा इनके कम का िवभाजन िन नानुसार िकया। ा ण का िश ा देने का ि य का देश क र ा करने का वै य का यापार अथ यव था का संचालन व भरण पोषण करने का तथा शू वण सभी वग क सेवा करने हेतु उ ृत रहते ह। चया म 25 वष क उ तक 50 तक गृह थ, 75 तक वान थ एवं 100 तक सं यास आ म म िवभािजत कर उ को बाँटा है। चतु वग क पूित इस जीवन का मुख येय माना है। िजससे समाज के सभी वग का पालन करने से समाज सुखी व समृि क ओर अ सर होता है।

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8. ऋण तथा य :- जीवन म ऋण व य का भी मह व है। पाँच ऋण का उ लेख िमलता है। देव, िपतृ, मातृ, गु अितिथ व भूिम ऋण का िवशेष मह व है। इनके ित यि क ा व समपण का िवशेष उ ले ख िकया है। यि का जीवन इन क प रिध म रहते हए मयािदत व सुखी जीवन यतीत करता है। डाँग सं कृ ित म अितिथ को भगवान् के समान माना जाता है। 9. सं कार :- पूव राज थान क सं कृ ित म सोलह सं कार ह। ज म से लेकर मृ यु पय त इन सं कार से गुजरना अिनवाय है। गभधान, पुंसवन, सीम तो नयन, जात कम, नामकरण, िन मण, अ न ाशन, चूड़ाकरण, कण वे , िव ारंभ, उपनयन, समावतन, िववाह एवं अ येि आिद मुख सं कार म मानवीय र त क पहचान व क य िन ठता कट होती है। इनके स दभ म डॉ. गोपीनाथ के अनुसार ‘इसका सबसे बड़ा मह व यह रहा िक सं कार के प रपालन ारा यि सुसं कृ त व अनुशािसत बन सके । करौली व सवाई माधोपुर, भरतपुर के सभी समाज म इन सं कार का पूरी तरह पालन िकया जाता है । 10. संयु त प रवार :- सं कार का अपना मह व है। भारतीय सं कृ ित अित ाचीन है िजसम पाषण काल से आज तक संयु त प रवार था िनर तर चली आ रही है। तीन-चार पी िढ़य तक एक साथ प रवार सं यु त रहते ह। सामुिहक रहनसहन, खान-पान व स पित भी सामुिहक ही रहती है। संयु त प रवार से आिथक यव था सु ढ़ रहती है। डांग े म मीणा, गुजर व अ य जाितय के समूह म एकता देखने को िमलती है वही सवाई माधोपुर, गंगापुर, िह डौन तथा करौली े म भी इस पर परा को सभी समाज म देखा गया है । सां कृ ितक बहलतावाद िविवधता म एकता भारत क िवशेषता वाली उि च रताथ तीत होती है। िविवध सं कृ ितय क रंग -िबरंगी िवचार धाराओं का सम वय प ट ि गत होता है।

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भौगोिलक ि से बा ा मण को रोकने म स म, लुटेर से ित को रोकने म पया त सहयोग िमला है। धम, भाषा, िलंग, भेद क नीितय को अलग कर एक वर म लाना ही सां कृ ितक बहलतावाद है। िविभ न सं कृ ितय का संगम ही बहलतावाद का प रचायक है। पूव राज थान म उ च, म यम तथा िन न तीन वग के लोग िबना भेदभाव के पर पर सहयोगी होते ह। 1. सजातीयता :- नृजाितक समूह िकसी समाज क जनसं या का वह भाग है जो प रवार क प ित, भाषा, मनोरंजन, था, धम, सं कृ ित एवं उ पि के आधार पर अपने को दसर ू से अलग समझना है। यदा-कदा आिथक, सामािजक व राजनीितक उ े य क पूित के िलए लोग का एक संजातीय समूह के प म एक ीकरण देखा जा सकता है। ऐसी ि थित म वे अ य समूह के साथ िवदेिशय जैसा यवहार करते ह। िबहार के संथाल छोटा नागपुर, परगना के आिदवासी अपनी िविश ट सं कृ ित एवं भाषा के कारण एक अलग झारख ड रा य क माँग कर रहे थे। आ देश के तेलगांना रा य क माँग कर रा य का दजा दे िदया है। 2. धािमक िविभ नताएँ :- िव व म भारत ही एक ऐसा देश है िजसम धम क इतनी िविवधता एवं बहलता ि गोचर है जो िक िह द ू, मुि लम, िस ख, ईसाई, बौध, जैन, यहदी आिद मुख है। िह दी धम म शैव व वै णव मत , शा त समाज, आय समाज, इ लाम म िशया व सु नी, ईसाई धम म ोटे टै ट तथा कै थोिलक, िस ख धम म अकालीदल व गैर अकाली बौध धम म हीनयान व महायान, जैन धम म वेता बर िदग बर आिद का अपना मह व है। यह उि सही च रताथ होती है “िह दु मुि लम िस ख ईसाई आपस म सब भाई-भाई।” 3. भाषा स ब धी :- भारत म 179 भाषाएँ 544 बोिलयाँ चिलत है। िजसम भौगोिलक प रि थितयाँ व िवदेशी लोग के आने से पड़ने वाला भाव भी शािमल है। इ डोआयन, िवडभाषा प रवार एवं आि क भाषा प रवार को भी

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शािमल िकया गया है। करौली व सवाई माधोपुर िजले क सभी तहसील म राज थानी के साथ-साथ ज, ढँूढाड़ी व अविध का िमि त भाव देखने को िमला है। 4. भौगोिलक िभ नताएँ :- समु ी तट से िघरा म थलीय पठार वाला ँ -ऊची ँ पहािड़ य वाला िहमालय र क के प म खड़ा हआ िदखाई देता े व ऊची है। िजसम उ च जाित, अनुसूिचत व अनुसूिचत जनजाितय के रहन-सहन एवं वेशभूषा म पया त िभ नताएँ, ि गोचर होती है। सवाई माधोपुर करौली का पाँचना बाँध अपनी लोक सं कृ ित क भौगोिलकता को कट करता है। 5. िश ा का चार- सार :- पुरातन सं कृ ित, गु व महान् िवचारक णेता भारत देश म वैिदककाल से आज तक िश ा का चार- सार, मौिखक, सै ाि तक िशलालेख से िश ा का मह व िमला है। त िशला, नाल दा और बनारस जैसे ाचीन िश ा के ह। काला तर म बाहरी जाितय का आगमन हआ। सं कृ त, िह दी, उदू व अं ेजी का चलन आज भी िश ा रोजगार वधक है, जो भारतीय वै ािनक पूरे िव व म नाम रोशन िकये हए है। राज थान के करौली े को डांग के नाम से जाना जाता है। िजसम दौसा, करौली, सवाई माधोपुर के कछ ु िह से को िमलाकर िजला बनाया तब के बाद िश ा का तर सुधरता ही गया है। साथ ही सरकारी गैर सरकारी संगठन के सहयोग से िश ा, सं कृ ित व समाज से जुड़े काय म िकये जा रहे ह। िश ा के े म करौली व सवाईमाधोपुर के जनजाती के लोग मह वपूण थान पर कािबज ह और न के वल राज थान म ही बि क पूरे भारत म अपनी शासिनक मता के िलए िस ह। 6. जनजातीय िभ नता :- स पूण भारत म 6-7-8 करोड से भी अिधक लोग जनजाित से ह। हरेक जनजातीय े क िविभ न सं कृ ितयाँ है। राज थान का पूव िह सा करौली, माधोपुर, गंगापुर के े बांरा िजला क सह रया जाितयाँ ह, जो

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िक अधिशि त ह िक तु सं कृ ित व समाज म अपनी एक िविश ट पहचान बनाएँ हए ह। िविवधता म एकता पूव राज थान क एक अ छी पर परा या िवशेषता रही है िक बहधमावल बी, बहजाितय समूह म िवभ त होने पर भी एकता, समानता, भाईचारा, सौहा ि गोचर होता है। इस िवशेषता के कारण ही आज भी िनर तर गित हो रही है। जाित, िलंग, धम भेद होने के बाद भी सां कृ ितक िवरासत एक है। राज थान क वीर भूिम म रजवाड क सं कृ ित बहत भावशाली रही है। यह िक राजघरान का अपना मह व रहा है। पूव राज थान म सवाई माधोपुर िजले म ि थत गणेश जी का मंिदर िस है। जो भी िववाह जैसे मांगिलक काय करते ह तो सव थम उ ह ही िनम ण िदया जाता है। रणथ भोर रा टीय उ ान िजसम पालतू जानवर पि य क चहक, हरी-भरी भूिम क अि तीय छटा ट य है। वही करौली का डांग े िजसम काली दोमट िमट् टी क गंध सुवािसत करती है। लोक जीवन म ामीण प रवेश तथा दंगल, याल, हेला आिद का अपना मह व है। साथ ही ता कािलक दैिवय प म ‘कै ला मैया’ के लांगु रय क अपनी िविश टता प ट ि गोचर है। पूव े क मधुर भाषा म लांगु रया ढाँचा आिद गीत का चलन है साथ ही खान-पान व वेशभूषा म पया त बदलाव सा िदखाई देता है जाित, समुदाय म तीज, यौहार व पव म एकता क भावना िदखाई देती है। होली, दीपावली जैसे रा टीय यौहार का इस े म बड़ा ही रोचक व भावशाली तरीके से आन द िलया जाता है। पुरातन िढ़ य व लोकमा यताओं, लोक िव वास का बखबी ू योग देखा गया है। इन सभी कारण को देखते हए लोक बाहलता देखने को िमलती है। इ ह िविवधताओं के होने के बाद भारत म सव एकता क लहर प ट ि गोचर होती िदखाई देती है।

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1. भौगोिलक िविवधता म एकता :- भौगोिलक िविवधता स पूण ँ भौगोिलक ि से एक इकाई का िनमाण करता है। उ र म िहमालय पवत क ऊचाई पर लहराने वाली िवजयपताका ब ीनाथ धाम दि णी सीमा म सेतु ब ध रामे वरम, पूव म जग नाथ पुरी और पि चम म ा रकाधीश आिद मुख पौरािणक धािमक थल के मा यम से धम के ित ावान एवं एकता क भावना जा त करने वाले ह। ‘माता मातृभूिम पु ो अहं पृिथ या’ अथात् पृ वी मेरी माँ है तथा वग से भी बढ़कर ज मभूिम है। राज थान ांत क करौली व माधोपुर े क सीमा पूव म धोलपुर उ र म भरतपुर पि चम म जयपुर, दि ण म कोटा क सं कृ ित व मौिलक ि थित प ट है। 2. ऐितहािसक धािमक िविवधता म एकता क भावना :- वैिदक कालीन स यता म यकाल म इ लाम का भाव तदोपरा त अं ेजो क गुलामी के बाद भी िह दू, मुि लम, िस ख, ईसाई, िमशनरी सभी म एक-दसरे ू के ित समपण क भावना है जो रा टीय एकता अख डता व धम के ित िनरपे ता का प रचय देती है। सभी धमावलि बय के राज थान म जैन धम के पा व नाथ जी का मंिदर महावीर जी करौली म मदन मोहन का मंिदर, सवाई माधोपुर म गढ़ गणेश जी व चौथ माता का मंिदर अवि थत है जो आपसी धमा धता को दरू करने के उ कृ ट उदाहरण है। 3. भाषा-सं कृ ित का व प :- राज थान क भाषा राज थानी है, िक तु इसम ज-भाषा का भाव पूरी तरह है। राज थानी करौली, भरतपुर, धौलपुर, िह डौन, सूरोठ, बयाना, बैर, भुसावर आिद े म बोली जाती है। िह दी भारतीय संिवधान ारा रा टभाषा व अं ेजी को राज भाषा का प रचय िदया गया है। जाितजाितय म िविवधता होने पर भी एकता दृि गोचर होती है। भारतीय सं कृ ित व समाज म िविवध भाषीय लोग क िविवधता होने पर भी रा टीय एकता क भावना है य िक यहाँ िविवध धमावलि बय के रहने पर भी एकता क भावना के बल ेम

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क धारा बहती है िजससे मानवीय सवेदनाओं का खला ु िपटारा सं कृ ित का भौगोिलक, सां कृ ितक, राजनीितक एवं भूम डलीकरण के दौर को स यक् प दशाता है। राज थान क राजपूताना सं कृ ित क िमट् टी के कण-कण म याग, शौय और समपण क बल भावना िलए हए है। राज थान के करौली व सवाई माधोपुर क गंगापुर, ख डार, िह डौन, वामनवास, महावीरजी पंचायत सिमितय म िविवध रंगी सं कृ ित ने च बल ि थत ह रयाली व पड़ोसी रा य म य देश क सं कृ ित को तुत िकया है। यहाँ के तीज यौहार म सभी धम के लोग बढ़-चढ़कर िह सा लेते ह। 4. धािमक एकता :- पूव राज थान के धौलपुर, भरतपुर बयाना, िह डौन, करौली व सवाई माधोपुर म िविवध धमावलि बय के रहने पर भी सभी म ातृभाव प ट ि गोचर है। भारतीय संिवधान क तावना म कहा है िक भारत एक धमिनरपे रा ट है।अत: सभी को अपने धम का पालन करने क वत ता है। वेद, पुराण, करान ु , गु थ, बाइिबल अपने-अपने थ को पढ़ने क वत ता है। एकता क अवधारणा िह द ू धम म िव मान है। िविभ न धम, स दाय, तीथ म वत ता ा त है। बौ , मुि लम, िस ख, ईसाइय के चचािद म वेश करने व पालन करने से कोई नह रोकता है। भारत जैसे िवशाल जात म सिह णु ता है। 5. सामािजक सां कृ ितक िविवधता म एकता :- पूव राज थान म सामािजक, सां कृ ितक िविवधता होने पर भी एकता सव या त है। संयु त णाली, एकल प रवार, जाित- यव था, वण- यव था, आ म यव था, ज म, धम, कम, मरण ाचीन यगु से चला आ रहा है। भारत म बारह मिहन के य हार , पव , उ सव म अवकाश क यव था समानता के भाव को कट करती है। ईद, दीवाली, होली पर पर नेह िमलन वाले यौहार है। ी राम, कृ ण, हनुमान, दगा ु , सर वती, ल मी आिद देवी-देवताओं क पूजा का िवधा के ित सभी समाज िव वास रखते ह।

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ामीण शहरी िशि त-अिशि त, रोजगार, ामीण यवसाय, खेती, पशु-पालन, खनन काय के ित समानता व सम वया मक ि कोण प ट प रलि त है। 6. राजनीितक िविवधता म एकता :- ाचीनकाल से राज यव था थी, िक तु आज जात का राज है। यहाँ संिवधान के अनुसार ये क नाग रक को भारतीय मूल का होने का अिधकार है। राजनीितक पद पर िह द ओ ु ं, िस ख , मुसलमान व ईसाइय को अिधकार है। मतदान म, चुनाव म याशी बनने व सरकार म मि य के िलए थान िनधा रत है। जातीय तर अं ेज ने भारत म धािमक एवं सा दाियकता का जहर घोलने के अथक यास ‘फट ू डालो राज करो’ क नीित का गाँधी जी ने स या ह से समा कर देश को आजादी िदलाने के िलए ‘करो या मरो’ क नीित अपनाई। उपिनवेशीय शोषण के थान पर समतावादी िवचारधारा ने िकया। आज आतंकवादी दौर म भारत पाक स ब ध क कटता ु का कारण है। भारत क िनर तर गितशीलता, जो अमे रका, चीन व जापान नह सह पाते ह। 7. जातीय, मानिसक व जात ीय एकता :- करौली व सवाई माधोपुर िजल म िविवध स दाय व जाितय का िनवास है। हमारे यहाँ चार वण ह—पहला ा ण, िजसका काय िश ा था। दसरा ीय, िजसका काय देश क र ा, तीसरा ू वै य, िजसका काय यापार काय था। चौथा वग शू था, जो िन न समझे जाने वाला ृ , पशु-पालन) काय करते थे। इनके भेद -भावपूण िवचार म एकता थािपत (किष करने के िलए सरकार ने आर ण का ावधान िनि चत िकया है। सभी धम ने इन ृ वग को वीकार िकया तथा समाज म वग करण िकया। जब-जब ाकितक आपदाएँ आई ं सभी जाित समुदाय ने एकजुट होकर पीिड़त क मदद के हाथ बढ़ाये और िवषम प रि थितय म हर स भव सहायता करने म आगे रहे।

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िन कष भारतीय सं कृ ित क पहचान िविवधता म एकता का दशन राज थान क आन-बान और शान का तीक है, जो लोकसािह य के मा यम से जनमानस को नई िवचारधारा से जोड़ने क जुगत है। वतमान प रवेश म सामािजक, राजनीितक एवं सां कृ ितक पृ भूिम का िवशद िववेचन राज थानी ामीण प रवेश को यथानु प शोधकाय क मह ा को नवीन आधार देने का िवन यास है जो तथाकिथतपूव राज थान के जनजातीय बाह य अिशि त जनमानस क यथाथपूण सामािजक चेतना क पुि करता हआ ि गोचर होता है। करौली व सवाई माधोपुर िजले क सं कृ ित म भारतीय सं कृ ित क सभी िवशेषताएँ प रलि त होती ह। 

अ याय-चतुथ

करौली एवं सवाई माधोपुर िजले के लोक सािह य म िचि त सं कृ ित भूिमका याग, शौय, परा म से पू रपूण है, िजसके कण-कण म परोपकार क भावना, सेवा, आित य भाव समािहत है ऐसी िवरल पर परामय राज थान देश क ँ -ऊची ँ अरावली क धरा िजसने वीर, वीरागंनाओं को ज म िदया। गजस य ऊची पवत ृंखलाओं ने मानो चार ओर से ढ़क िदया हो। म थल क िम ी के कणकण म वीर, साहसी सपूत को ज म देकर माँ के दधू को लजाया नह वरन् गौरवि वत िकया है :‘‘इला न देणी आपणी, हाल रया हलराय। पूत िसखावै पालणे मरण बड़ाई माय।।’’ यहाँ का येक ी-पु ष सं कृ ित के ित ावान व समिपत होकर उसक तन-मन से संर ा एवं सुर ा के िलए किटब है। राणा ह मीर, कभा ुं , राणा ताप क ित ा, दगादास का वचन पालन और इितहासकार ‘मुहणौत नैनसी’, ‘पृ वीराज ु रासो’, ‘च द बरदाई’ वीर रसा मक सािह य ने मान सं कृ ित म जीवंत ाण फक ूँ िदए ह । बाबारामदेव, गोगा जी, ांितकारी के सरी िसंह बारहठ, सूयम ल िम ण आिद मुख है। रािणय क वीरता का नमूना जौहर जो िक पद्मनी पद्मावती, नारी णय मूमल क धाय प ना िजसने राज, समाज व प रवार क आन, बान और शान के िलए

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अपने पु का बिलदान देकर राणा के बेटे उदय के ाण बचाये। भि मय मीरा क मिहमा जो आज भी भि का याधार म भजन को गाये जाने से अमृ व को दान करती है। सािह य संिचत ान रािश का मूत प है। अत: वह िकसी देश या काल क सं कृ ित के ान का सवािधक िव व त वे ामािणक द तावेज होता है। यह त य सावभौिमक है। साथ ही स यता को कट करता है। सािह य सं कृ ित का वाहक होता हे। लोक सािह य म सं कृ ित अिधक ाणवान रहती है ।1 पूव राज थान का लोकमानस गीत क झंकार लोकगीत म झूमता है। नृ य म िथरकता है, गाथाओं का मधुर गुणगान लोक जीवन क िविवध झांिकय को तुत करता है। लोको सव, मेले, अनु ठान तीज- यौहार , िववाहो सव आिद म गाये जाने वाले लोकगीत मान मीणा समुदाय ारा ढाँचा के प म गाये जाते ह, दंगल म यौहार पर होने वाली राम लीला, किु तयाँ खेल म भी लोकगीत के ारा ही काय म का ारंभ व समापन लोक शैली म स प न होता है। पार प रक िढ़ य , शकन ु -अपशकन ु म िव वास है। देवी देवताओं, म डप व थान पर काय म म म था टेकते ह। ‘लोक देवताओं क िजतनी उपासना िह द ू समाज करता है। इतनी ही पिव इबादत मुि लम समाज भी करता है। बाबा रामदेव भी ह और पीर भी इसिलए वे िह द ू मुि लम एकता के तीक ह।’2 इस कार पूव राज थान के करौली म महावीर जी, मदन मोहन जी व सवाई माधोपुर म गणेश जी क आ था और ा के साथ ‘रणथ भोर व य जीव अ यार य’ जो िक लोक सं कृ ित क िनर तरता को हराभरा व व य जीव का संर ण करने हेतु उ ृत है। करौली िजला नवीन है िक तु सं कृ ित पुरानी ह। यहाँ पर राज थानी के अित र त जभाषा का भी भाव है । यहाँ सवधम, स दाय, जाित के लोग 1. डॉ. राम कमार ु गरवा : राज थानी शेखावाटी हष और जीण, पृ. 91 2. न द लाल क ला : राज थानी लोक सािह य व सं कृ ित, पृ. 127

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ेमपूवक अपने काय म संल न रहते हए सं कित के संर ण हेतु किटब है। यहाँ के मेल म नवरा म िवशेषकर चै के नौरात म माँ करौली (कै ला देवी) का ल खी मेला भरता है तथा म नते माँगने िद ली, पंजाब, ह रयाणा, म य देश, आगरा व गुजरात तक के लोग पद या ा करते ह। गणेश जी क दाप क चतुथ को सवाई माधोपुर से 8 िकलोमीटर दरू पहािड़य को चीरकर पार कर चोटी पर गजानन जी का भ य मेला भरता है। िजसम दरू-दरू के सैलानी भी आते ह। करौली म महावीर जी का जैन स दाय का तथा िह दओ ु ं का मदन मोहन का मंिदर िस है। इन सभी मेल व उ सव भावा मक एकता को बल िमलता है। यहाँ क जनता का धम ाण है। इसका िवराट् व प उ सव और मेल म देखने को िमलता है। सं कृ ित का सव प यहाँ देखा जा सकता है।1 लोक सं कृ ित, स यता या प रवेश का अ ययन कर तो राज थानी (करौली, सवाई माधोपुर) सं कृ ित का र नाकर कहना अित योि त नह होगा। आ था, अनुभव व लोकानुभूितय क अित यंजना ही अपनी उदा व प म लोक सं कृ ित क सं ा पाती है। पूव राज थान के येक गाँव, तहसील व िजलेवार क ित क पताका आज भी राणा-ह मीर को इितहास दोहराने म पीछे नह है। आज िश ा के े म माहरत हािसल है। पाषाण यगु म राज थान म पया त उपकरण उपल ध हए है। इस काल का िव ले षणा मक अ ययन व शोध करने पर िन कष िनकाला िक ारंिभक पाषाण, म य पाषाण काल , उ तर पाषाण काल म िवभािजत िकया। जयपुर, इ गढ़, भानगढ़, िढगा रया व िवराट् नगर। भतरपुर के ‘दर’ नामक जगह पर िचि त शैला य ह। ता यगीन ु सं कृ ित राज थान के पि चम अचंल क अपूव देन है। गणे वर का टीला, नीमका थाना म कांटली नदी के िकनारे पर है। आह (उदयपुर के पास) काली बंगा उ खनन म से धविलिप क स यता आिद का िववरण प ट ि गोचर है। 1. उदयवीर शमा शेखावाटी के सािह य का इितहास, पृ. 10

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माहोली (माधोपुर), मलाह (भरतपुर) लोक स यता के अवशेष झुंझुनूं, अलवर, जयपुर, जोधपुर, गंगानगर आिद म देखने को िमलते ह। थाप य कला अ य िविवध कलाओं म थाप य कला का अपना मह व है। भारतीय सं कृ ित सबसे पुरानी है िक तु उसक थाप य कला का अपना िवशेष मह व व भाव है। शताि दय क िबखरी किड़य को जोडने का काय देश क सं कृ ित क यथाथ झलक को कट करती है। थाप य ऐसी कला है, जो सं कृ ित का स चा आईना तुत करती है। धािमक थान पर ाचीन कलाकार का िचंतन मनन और यथाथ को कट करता है। थाप य कला के सभी गुण (करौली, महावीर जी, सवाई माधोपुर) पूव राज थान क सं कृ ित को गौरवाि वत करते ह। हमारे यहाँ का ामीण व शहरी प रवेश धािमकता, मि दर , मिजद , दगु , तडाग , उ ान व अ य स पितय से उजागर होती है। लोक-मानस और लोक-सािह य लोक सािह य क मूल ेरणा लोक-मानस के मा यम से होती है। मानव जीवन म उ नित के िलए िवकास के पायदान पर पहँचकर लोक जीवन को उ कृ ट बनाने के िलए लोक-मानस, जनमानस एवं मुिन मानस को मुख माना गया है। िवकास क ि या िनर तर काय करती रहती है। िवकास तर के स दभ म हम सम त मानव समाज के मानिसक व प को 3 भाग म िवभ त कर सकते ह :(1) लोक-मानस (2) जन मानस (3) मुिन मानस। ‘लोक-मानस’ िन न तर क मानिसक ि थित है । यह वह मानिसक ि थित है, जो आज आिदम मानस क पर परा म है। यह व तु त: आिदम मानस का अविश ट अंश है। आज के स य समाज के मानिसक व प म इसे सबसे नीचे का धरातल माना जा सकता है। लोक-मानस से ही लोकवाता का ज म होता है। लोक सािह य के िनधारण म लोक-मानस सबसे मुख त व है।

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डॉ. स ये ने वै ािनक, मनोवै ािनक, भौगोिलक एवं ऐितहािसक दृि य का िववेचन तथा भाव के िव ले षण के उपरा त ‘आिदम मानव क मनौवै ािनक ि थित म सात त व का उ लेख िकया है और िफर यह मह वपूण िन कष तुत िकया है िक ‘आिदम मानव सम त सृि से अपने यि व को तट थ नह रख सकता था। वह मनत: और कमत: मानषत: और भावत: सृि के सम त यापार का अंग होता है। अत: तु य-मू त िवधान िक मा यता के साथ वह अपने िलए उपयोगी-अनुपयोगी त व को अपने ारा तु त करता था। इस तुत को अनु ठान अथवा रचुअल ृ म िवविध त व के संघष यापार म कहा जा सकता है। इसके ारा वह कित सहयोग देता था। लोक सािह य म यथाथ और क पना म भेद करने भी असमथता िजसे ाक पना भी कहते ह। ाणी, अ ाणी जड़ चेतना को आ मा से यु त जानना यह आ मशीलता है। यह िव वास के तु य से तु य पैदा होता है िजसे टोना िवचारना कहते ह यह िव वास क िवशेष िविध से काय करने से िविश ट फल या अिव ट फल ा त होगा इसे आनु ठािनक िवचारना कहा जाता है। लोक सािह य के त व—स पूण सािह य श द और अथ इन दो त व ारा होता है। िविभ न आचाय ने योजन को यान म रखते हये भाव, क पना और शैली त व को ाथिमकता दी है। भाव और भािवका स य भा के व प िश ट सािह य म भाव का ती ता ज रत सौ दय देखने को िमलता है। जबिक लोक सािह य म भाव क सरलता मनोमु धकारी व प िमलता है। लोक सािह य के रचियता क भावानुभूित िवशु अनुभूित पर आधा रत रहती है। लोक सािह य म भाव त व क मािमकता िसि जगत् से आती है इसम िकसी कार क क पना का योग नह रहता है। थाप य कला :-लोक सािह य म लोक जीवन के ाय: सभी प का िववरण होता है। राज थान के पूवाचल म करौली, भरतपुर, सवाई माधोपुर, िह डौन,

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धौलपुर के आस-पास का लोक सािह य ज भाषा से ओत- ोत दृि गोचर होता है। राज थान क सं कृ ित एवं प रवेश का अ ययन करने से यह त य उभर कर आया है िक राज थान के पूवाचल म पुरात व इितहास थाप य कला लोक कलाओं का लोक सािह य का पया त मह व है। पुरात व के अनेक अ वे ण क आधार िशला लोक वाता होती है व तुत: लोक सािह य पुरात व का एक अंग ही होता है अनक थान क खदाई ु व तुत: लोक वाता से भािवत होकर करवायी गयी है। जैसे मोहनजोदड़ हड पा आिद थान पर हयी है। पुरात व के अनेक अ वेषण क आधारिशला लोकवाता होती है। व तुत: लोक सािह य पुरात व का एक अंग ही होता है। अनेक थान क खदाई ु व तुत: लोकवाता से भािवत होकर कराई गई है। लोक सािह य म अनेक ऐसे त व िछपे रहते ह िजनम िवषय म अनुस धान करने के िलए पुरात व को प ट संकेत ा त होते ह। डॉ. स ये का कथन है िक ‘लोकवाता पुरात व िव ान के िलए आर भ म तो ेरणा देने का काम करती है बाद म घटनाओं के म य तारत य िबठाने और िविवध किड़य को िबठाने म या या म काम आती है। इस ि से लोक वाता पुरात व िव ान का एक मह वपूण सहायक त व माना गया है। लोक सािह य अपने गभ म ऐितहािसक त व को संजोए रहता है। उसम िनिहत ये त व ऐितहािसक किड़ य को जोड़ने म सहायक होते ह। ‘लोक वाता म िविवध ऐितहािसक अनैितहािसक सू का ऐसा लोकताि वक गु फन होता है िक उससे संकेत लेकर त य को खोजने क ेरणा िमलती है। काला तर म उपल ध साम ी के साथ ऐितहािसक सि ध बैठाई जा सकती है। िकसी देश का सां कृ ितक इितहास जाने के िलए लोक सािह य िवशेष प से सहायक िस होता है। इस संदभ म डॉ. शंकरलाल यादव का कथन अ य त मह वपूण है यथा- ‘िव व और मानव क रह यमयी पहेली को सुलझाने के िलए उसके ाचीनतम प क खोज के िलए

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और उसके यथाथ व प को जानने के िलए जहाँ इितहास के पृ ठतम है। िशलालेख और ता प मलीन हो गय ह वहाँ इस तमसा छ ि थित म लोक-सािह य ही िदशा िनदश करता है।’ लोक सािह य इितहास-लेखन म िकस कार हमारी सहायता करता है। इसका उदाहरण कनल टॉड ारा िलिखत एना स ऑफ राज थान नामक थ है। टॉड महोदय ने यह इितहास थ लोक वाताओं के आधार पर िलखा था। अब इ ह वाताओं को ऐितहािसक माण से परखकर इितहास तु त िकया गया है। इितहासकार लोकवाताओं का उपयोग दो कार से करता है। इितहास के क चे मसाले प म जैसा िक उपुय त उदाहरण म बताया गया है। िजसम ऐितहािसक त य दोन क तरह िबखरे रहते ह। दसरे ू लोकवाता के आधार पर लोक जी वन म ऐितहािसक व प को जानने के िलए कभी-कभी तो लोकवाता म ऐसे त य िमल जाते ह िक लोकवाता और इितहास के म य अ तर थािपत करना किठन हो जाता है। लोकमूितकला राज थान क लोक सं कृित अिवरल छटा के दशन के वल राज थान म ही नह वरन् स पूण भारत वष म थाप य कला एवं मूितकाल के िलए िस है। गु तकाल म मौयकाल, गु उ र-गु व गु तोतर काल (300-700) गुजर ितहार काल (700-1000 ई.) तक म जैन मंिदर गुजरात व राज थान म ि थत ह। ओिसया, सेवाडी, झा ोराव, झालरापाटन, देलवाडा, माउंटआबू, महावीर जी आिद थान पर ह। राज थानी धरती सं कृ ित गभा है। पुरातन अवशेष से आधुिनक सं कृ ित व मानवीय सौ दयबोध-प र कृ त अिभ िच, क पनाशील एवं उवर मि त क के प रचायक है। पुरातन साम ी का िसंहावलोकन कर तो अ वाकार मूितयाँ, िखलोन व मूितयाँ (मृण मूितयाँ) है। कषाणकालीन मूितकला शा ीय एवं लोककला क गंगाु

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यमुना ने िविभ न धािमक स दाय क देव मूितय के िनमाण क ऐितहािसक भूिमका शुंगकाल के बाद शक कु षाणकाल म अपना िनि चत प धारण कर गु तकाल म सजीवता और मनोरम सौ दय क तीक बनी म यकाल म उनक काल क पराका ठा को ा त हई। जम डल म भरतपुर इसका धान के बन गया। य य ी क ितमाएँ जीव त उदाहरण है। बौध धम क मूितयाँ, िवशाल बाह, अधोव धारण, कण कु डल, छाती पर िटका ितकोणा हार आिद। भरतपुर (नोह) म खोजी वीराबई, पीरनगर रेउ आिद म देखी गई शैव मूितयाँ भरतपुर व आस-पास के े करौली, माधोपुर बृज े म देखने को िमलती है। भरतपुर सीकरी राजमाग पर अवि थत चौमा, भंडपुरा का 4 ँ िशविलंग अपने ऊपरी माग म पु पमाला से अलंकृ त है। िशव पंचायत, िफट ऊचा िसंह वािहनी दगा ु काल क ु , काितके य, षडानन काितके य व गणेश क मूितयाँ कषाण देन हे। वै णवकालीन कृ ण बलराम क मूितयाँ, ट क, साँभर, पीलीबंगा आिद म। बौध धम से भिवत िवराट् नगर, नीलक ठ महोदय (टहला) लालसोट आिद थान पर ि गत ह। गु तकालीन मूित पवास (भरतपुर) हेमावास (पाली) भीलमाल (जालोर) म गु तकाल के बाद अबुद, बागड, कसमा ू , झालावाड, डंू गरपुर, बसंतगढ़ आिद थान पर मूितयाँ है। म यकालीन नाँद (पु कर) लु वा (जैसलमेर) आभानेरी (दौसा) झालरापाटन, कटारा म िव णु के फलक के ह। उ तर म यकाल जयपुर, अजमेर, आमेर, उदयपुर, नाथ ारा, कोटा आिद थान पर ितमाएँ बनाई गयी। पूव राज थान म लोक मूितकाल का मुख के संगमरमर के प थर ह। िजसक मूितयाँ बनाकर िव व के कोने-कोने म भेजी जाती ह। जयपुर म खजाने वाल का रा ता, गोलाकाबास (अलवर) पृ वीपुरा (अलवर) े म प थर को काटपीटकर नया प देने क पुरातन व नवीन तकनीक का योग कर तराशी जाती ह। यह

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काय राज थान म गौड़ या आिद गौड़ जाित के लोग होते ह, िज ह ामीण भाषा म खमा ु र (पांचाल) कहते ह। कई पी िढ़याँ इस कला म िनकल चुक ह। िशव पंचायत रामल मण, हनुमान, ग ढ़ नांिदयाँ, दगा ु आिद क मूितय के साथ-साथ ऐितहािसक, पौरािणक व आधुिनक मुख राजनेता व समाज सेिवय क मूितयाँ भी यहाँ बनती है। डंू गरपुर व बांसवाडा म भी मूितकार क मूितयाँ दशिनय म िदखाते ह तथा उनका जीवन िनवाह का काय िमलता हे। सोमपुरा के मूितकार पढ़े-िलखे तथा समझदार है। का ट िनिमत मूितयाँ जयपुर, िच ोड़गढ़, उदयपुर ब सी आिद े म बनाई व तराशी जाती ह। िच ौड़ के सुथार रंगरोगन कर संजीव मूितयाँ बनाते ह। द सुथार ँ हाथी, घोडे, ऊट ँ तथा ब दर क सु दर आकितयाँ ृ तीन-चार फट बनाते ह। इन ु ऊचे मूितय का िनयात भी होता है। उदयपुर , जयपुर, कोटा, बूँदी, जोधपुर, सवाई माधोपुर, करौली, िह डौन आिद थान पर का टकला के िनमाण क ारहे ह। करौली के फटा ू कोट, गणेश गेट, चटीना आिद मौह ल म लकड़ी के बने आदमकद ‘लागुंरे खडे िदखाई दग।’ वात यो र राज थान म मूितकला क पर परा के बीजांकु र जयपुर के मूित मोह ले से टटोले जा सकते ह। वहाँ के सेठ देसी कलाकार व. उ ताद मालीराम का नाम सबसे पहले उभरता है। पहलवान का म लयु , िशव का नवीन प, िविभ न आव ितमाएँ, िघया प थर से गाय, म खी व म छर व क पना के जीव त माण ह। सवाई माधोपुर क ख डार तहसील के सेवती दौलतपुरा, झ पडी, जयलालपुरा, दमोदा ु , डांगरवाड़ा, गंगापुर, बालेर, बहरावदा, ग डावर, सीगोर कलां, डंू गरी, फलौदी, टेटरा, तलवाडा, अिनयाला, लहसोड़ा, िचरौली, िखजूरी, छाण, बहरावदा, सवांस, गोठ, िबहारी, बरनावदा, हलो दा, सवतीकला, बडवास, गोठ िबहारी ा ण, मीणा, गुजर, छीपी, कोहली, चमार, पि डत, खाती, लुहार, कु हार, रैगर, जाट, माली, राजपूत, वणकार आिद जाित के लोग ारा िकये गये मांडन , िच कार , िमट् टी के िखलोन , कशीदाकारी त वीर, मूितयाँ, पलंग, नगीन म छेद

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करने स ब धी काय सभी जाित के लोग का िविश ट योगदान रहा है। बरनावदा के गुजर अजीब कशीदाकारी। मानव सं कृ ित के इितहास म थाप य का अपना वत थान है। चाहे वह रोम का हो या िम का, यनान ू का हो या तूरान का भारतीय हो या चीनी , थाप य एक ऐसी शृंखला है जो शताि दय क िबखरी हई किड़य को जोड़कर देश और जाित क स ची सां कृ ितक झाँक तुत करता है। िकसी भी देश क यगीन गित ु का समुिचत अ ययन िबना थाप य क िविवध परत तथा ख डहर के अ ययन से नह हो सकता य िक उनम देश क वा तिवक आ मा ितिबि बत होती है। उ ह के मा यम से कला और जीवन का सामंज य एक िद य काश के प म फु िटत होता रहा है। जहाँ तक भारत क ि थित का न है, वहाँ हम अनुभव करते ह िक यहाँ धािमक िच तन, भाव, माण और गित का समूचा िच ण थाप य के अ तगत िनिहत रहा है। यहाँ कला ने िनर तर रा टीय अनुभूितय और जनजीवन के िविश ट उ े य क पूित क है और साथ-ही-साथ सौ दय और माधुय के िवरल ोत को बहाकर जीवन और आ मा को थायी त व ारा सुखमय बनाया है। थाप य के ये सभी सां कृ ितक त व िवकिसत तथा समृ प रमाण म पूव राज थान म पाए जाते ह, य िक सभी यगु और जन -समुदाय म थाप य क ओर सतत् िच बनी रही है। इस थाप य क अिभ यि गाँव , नगर , मि दर , राजभवन , दगु , जलाशय , उ ोग तथा समािधय के िनमाण ारा मािणत होती ह। लोक-संगीत लोकगीत या संगीत आिद मानव के आन दवेगमय वाणी के उद्गार और फिु त एवं आ मरत अनुभूितय के अज ोत ह। आिद मानव क हािदक भावना का ोत एवं संजीवनी शि के बल पर अब तक जीिवत है 1 और एक से दसरे ू कठ 1. वीणा ाम : सं कृ ित अंक फरवरी माच 1971 सं. मोहन उपा याय पृ. 51

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म, एक दय से दसरे ू दय से ित विनत होता सा तीत होता है। लोक संगीत क िमठास से दय गद-गद हो उठता है िजसम मानवीय क पना उ रो र कट होती रहती है। ‘लोकगीत या लोक संगीत दय के खेत म उगते ह। सुख के गीत उमंग के जोर से ज म लेते ह और द:ु ख के गीत तो खोलते लह म पनपते ह और आसूओं के साथी बनते ह।’1 यापक अनुभूित का पयाय लोकसंगीत होता है। स दय क भावना का सावजिनक व तु होना लोक संगीत क सबसे बड़ी पहचान होती है। ‘‘आ मा का आन द आंिगक चे टाओं से य त होकर नृ य बन जाता है और वािचक होकर गीत।’’2 लोक संगीत का लोक सािह य म यापक तर है। लोक गीत जीवन का कोई ऐसा पहलू नह है , ऐसा ि कोण नह , ऐसा प दन नह , जो लोकगीत क सीमा सं पश न करता हो। लोकगीत पर पराओं के उस महानद के समान है, िजसे अनेक छोटी-मोटी धाराओं ने िमलकर महानद बना िदया है। मन क िविभ न ि थितय ने इसम अपने ताने बाने बुने है। ी पु ष ने थककर इसके माधुय म अपनी थकान िमटाई। इसक विन म बालक सोये ह। जवान म ेम क म ती आई है, बूढ़ ने मन बहलाये ह। वैरािगय ने उपदेश का पान कराया है। पिथक ने थकावट दरू क है, िकसान ने अपने बड़े -बड़े खेत जोते ह, मजदरू ने िवशाल भवन पर प थर चढ़ाय ह।3 प रभाषाएँ :- पूवाचल क राज थानी स यता व सं कृ ित लोकगीत से ओत- ोत है। इस सं कृ ित क बहरंगी छटा, धोर क धरती को समृि कारक बनाती है। आलोचक एवं िव ले षक ने लोक गीत-संगीत को इस कार से तुत िकया है। 1. देवे स याथ : धरती गाती है, पृ. 106 2. डॉ. िच तामिण उपा याय : मानवीय लोकगीत एक िववेचना मक अ ययन पृ. 4 3. डॉ. याम परमार भारतीय लोक सािह य पृ. 54

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1.

आिदम मनु य दय के गान का नाम लोकगीत है। इसम मानव जीवन क , उसके उ लास क , उमंग क , क णा क दन, सुख दु:ख क कहानी िचि त है।1

2.

लोक गीत आिदम अिवरल संगीत होता है।2

3.

लोक गीत िकसी सं कृ ित के मुँह बोलते िच ह।3

4.

ृ के उदगार ह। इनम अलंकार नह , के वल रस ह। छ द नह ाम गीत कित के वल लय है। लािल य नह के वल माधुय है। ामीण मनु य के ी पु ष के ृ के वही गान म य म दय नामक आसन पर बैठकर वृि गान करती है। कित ाम गीत ह।4

लोक गीत :- संगीत बाह् याड बर व ब धन क ओर यान नह देती और ना ही िनयम ब धन क िचंता करती। मेरी स मित म लोक जीवन से जुड़े सामा य जन जीवन के धरातल पर अिच य प से फट ू पड़ने वाले दयोदगार क अिभ यि ही लोकगीत कहलाती है। पूव राज थान अचंल क सं कृ ित का प रधान धारण कर समाज क अमू य िनिध है। डांग े सवाई माधोपुर, करौली, िह डौन, गंगापुर के पुरातन माण का अभाव है। िशलालेख व ता पा के अभाव म अनुसंधान करना दलभ ु काय है। िजसम लोकगीत के िदशा िनदश ारा पुरातन सां कृ ितक पर पराओं से अवगत होते ह। सामािजक राजनैितक ऐितहािसक भौगोिलक, सां कृ ितक एवं सािहि यक ि से िवशेष मह व है। लोक संगीत :- लोक संगीत जनमानस के वभािवक उद्गार का फु टन है। िव व के सभी रा ट म आर भ से ही लोक-संगीत का मह व रहा है। कवी 1. 2. 3. 4.

सूयकरण पारीक एवं नरो म वामी राज.लो.गी. तावना, पृ. 1 एनसाइ लोपीिड़या ऑफ ि टेिनका, वा यूम व म पैरी का कथन पृ. 422 देवे स याथ आजकल (मािसक, नव बर, 1951) पृ. 17 रामनरेश ि पाठी : किवता कौमुदी ( ाम गीत का प रचय करण) तावना पृ. 1-2

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‘रवी ’ ने लोक गीत म सं कृ ित का सुखद स देश ले जाने वाली कला कहा है। महा मा गाँधी के श द म ‘‘लोकगीत ही जनता क भाषा है , लोक गीत हमारी सं कृ ित के पहरेदार है।’’ पूव राज थान के िविश ट भौगोिलक प रवेश ने यहाँ पर नानारंगी लोक जीवन का िनमाण िकया है। हरी-भरी घािटय , वन , पवत ेिणय और शु क म थल क वैिव यपूण सुषमा वाला यह देश राजपूत राजाओं के संर ण म लोक कलाओं का िनर तर िवकास करता रहा है। यहाँ के बहरंगी जीवन का स चा इितहास, उसका सामािजक और नैितक आदश लोक-संगीत म सुरि त रहकर अपनी अनूठी छटा, गीत , नाट् य , गाथाओं व नृ य के मा यम से िवक ण करता रहा है। जीवन का कोई भी संग अथवा े ऐसा नह है। िजससे स बि धत लोक गीत यहाँ पर उपल ध न हो तथा कोई भी ऐसा कम नह है िजसका अिभ यं जन लोक नाट् य व गाथाओं म न हआ है। लोक संगीत का मूल आधार लोक-गीत है, िज ह िविभ न अवसर पर सामूिहक प म गाया जाता है। लाक-वा क संगित इनके माधुय क वृि करती है और कभी गीत के भाव को नृ य ारा भी साकार िकया जाता है तब उसे लोक नृ य कहा जाता है। जब कभी गीत म विणत िकसी वीर या देव पु ष का जीवन च रत अथवा ेरणा पद कथानक अिभनीत िकया जाता है तो वह लोक नाट् य क सं ा ा त करता है। इसी कार अनेक घटनाओं से यु त दीघ-गीत लोक नाट् य क सं ा ा त करता है। इसी कार अनेक घटनाओं से यु त दीघ-गीत, लोक-गीत, लोकगाथा कहे जाते ह। शेखावाटी के िनवािसय के रहन-सहन, रीित- रवाज, वेश-भूषा, खानपान, मू य, िव वास, देवी-देवता, पव आिद गीत म अिभ यंिजत होकर यहाँ क सं कृ ित को साकार करते ह। वर, ताल, और लय म ब लोक संगीत क धुन संयोग और िवयोग, हा य और दन, रोष और भय, घृणा और िववशता, भि

168

और वैरा य, वीरता और भी ता आिद सू म मनोभाव के िविश ट सौ दय के कारण िकसी भी संवेदनशील यि को िवमोिहत िकये िबना नह रहती। करौली, सवाई माधोपुर लोक-गीत संगीत के े म अनमोल ह। इनको िकसी ने न िलखा है और न इनके रचियता का पता चला है। इनका ादभाव ु मानवमानव और वाणी से स बि धत है। ये मौिखक पर परा और अनु ुित पर आधा रत रहे ह। मानस पटल क उपज होने के नाते इनम सां कृ ितक और कला मक वृितयाँ िव ट हो जाती ह। इनम मानव समाज क िवशु मनोवृितयाँ और भावनाएँ समयोिजत संग पर हष-िवषाद, ेम-ई या उ लास-भि आिद कट होती है। मौिखक होने से एकल और बहधा सामूिहक प से इ ह गाया जाता है। इनके ारा बुि , सौ दय, सुख, भि तथा आन द का अनुभव होता है। िववाह, ज म या अ य यौहार पर पित-प नी, ननद-भौजाई, सती, मातृ-भि , शौय, रीित- रवाज, शि , आराधना, ान, दशन, नीित आिद िवषय को ाचीन और वतमानकालीन आदश और मानव धम के िस ा त को इनम य त िकया जाता है। गीत म उपदेश और याग का इतना वणन रहता है िक गाने वाले और सुनने वाल म एक नई े रणा का भाव रहता है । िववाह और पु ज म के गीत म उ ले ख है तो पु ी क िवदाई म लौिकक द:ु ख का ाब प है। इसी तरह राि जागरण के गीत ृ म ‘भि ’ रस समािहत रहता है। तीज के गीत म ाकितक छटा और पित -प नी संयोग या िवयोग तथ सहेिलय के सहवास के भाव का अ छा संयोग िदखाई देता है। जन-जीवन म या त हष, कामनाओं और अिभलाषाओं का यिद अिवरल ोत ा त करना है तो वह लोक गीत म िमलेगा। लोकगीत का मा यम िजतनी ि याँ है, उतने पु ष नह । िजतना ेम, नेह, िववाद, पीड़ा और उ लास का िच ण मिहलाएँ कर सकती है , अ य यि नह कर सकते उनके क ठ से जो वर िनकलते ह वे वा तिवकता के िनकट सहज ही पहँचते

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ह। गीत के बोल बािलका अव था म यौवन या ौढ़ अव था तक वेद वा य बन जाते ह, िजससे मिहलाओं म एक अनमोल आ था और शि उ प न होती ह। वेद क भाँित लोकगीत भी हमारी सं कृ ित के अटटू भ डार बन जाते ह और समाज के भ य-भवन को थािय व दान करते ह।1 जनसाधारण के गीत सवाई माधोपुर करौली े म लोक गीत क िविश टता ामीण प रवेश जिनत िढ़य , पर पराओं व सं कार , यौहार , पव पर गाये जाते ह। सोलह सं कार म ज म िववाह के गीत बधावे, ब ने आिद अ सर पूवाचल म सभी जगह मिहलाओं ारा गाये जाते ह। जैसे पािण हण सं कार के समय चाक-भात, ल न, फे रे, फे रपट् टा, गौणा व िवदाई के गीत का तालमेल बुजुग मिहलाओं के साथ-साथ नई औरत भी सुर िमलाती ह। तीज, होली, र ाब धन, दीपावली, भैया दजू, गणगोर पर मिहलाएँ व बािलकाएं गणगौर के गीत गाती हई ई वर पावती के सोलह िदन तक गीत-गाती है। फा गुन मास म होली के गीत रिसया, फाग आिद गाती है। पु ज म का गीत ट् य हैगाविहं मंगल मंजुलवानी। सुिन कलरव कल कठ ं लजानी।। ज म के अवसर पर ज चा गीत— िदन आज खशी ु का आया है ज चा ने ब चा जाया ज चा क दायी आवेगी, वो ललन जनाई नेग मांगेगी उनका भी नेग चुका देना नह झगड़ा हमसे डाले गी, िदन आज खशी ु का आया है ज चा ने ब चा जाया।2 1. गोपीनाथ शमा : राज थान का सां कृ ितक इितहास, पृ. सं. 207, 208 2. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 6

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एक अ य गीत— काहे कँू छाई ऊँ ची अटा रयां, काहे कँू छायो परदेश जा िदन ज मो कँ वर क हैया बाबुल बसत ार जा िदन ज मी धीमर (क या) वा िदन बाबुल बसत िखरान × × × लाला जी क ऊँ ची अटा रया वाही ते लाल िकव रया वाही म देवर भाभी साये, म तोय पूंछी बैयर वात का गुन तारो पेट कदको, लालजी ने खीर रधाई वा िदन मेरो पेट गदको। म तोय पूछू ँ वीयर वात, का िदन मुख तेरो पीरो जान लाला जी ने हरद िपसाई, वा िदन मुखड़ा मेरो िपयरो म तोय पूछू ँ बैयर वात का। मंडरापूजा, छठीपूजा लगभग 11-15-20 िदन प चात् कआँ ु पूजन कछ ु इस कार पूजा जाता है — ससुर के अंगना, जल पूजन जाऊँ गी। मोमन पिटया स कन सुमरन सारी। बोली री नाइन क िबिटया नगर बुलायो देय।। उपनयन सं कार :- ‘जनेऊ’ सं कार को सोलह सं कार म से एक माना है । यह सं कार करौली सवाई माधोपुर े म इस कार के गीत से होता है। ‘‘होय जनेऊ आज हमारे वरना को। पि डत जी ने वेदी रचा के म क आवाज हमारे। बोले वाहा आहित छोड़े है रहे मंगल काज हमारे।।1

1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 8

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िववाह के मंगल गीत म य नार के गीत का अपनी भाषा म अनूठा संगम देखा है— हाँ राम रंग बरसे गो। रंग बरसे कछ ु अमृत बरसे। और बरसे िकर ुरी। राम रंग बरसेगो। फे रे पड़ने (भाँवर) के गीत म स पूण जीवन म होने वाले प रवतन व एक दजेू का जीवन भर साथ देने क सौग ध खाई जाती है। ए मेरी पैली भाँमरी अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी दजी ू भाँमरी अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी तीजी भाँमरी अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी चौथी भाँमरी अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी पंचई भाँमरी अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी छठी भाँमरी अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी सातई भाँमरी अबऊ बेटी ससुर क ।1 िवदाई का गीत— ओ मेरी सोन िचरैया उड़ चली बाबुल मेरे तैने दइयै िनकार जैसे जल क माछरी मैया मेरी रािखयो दआर ु जैसे गुर क माथरी चाचा मेरे दईऊ िनकार जैसे जल क माछरी चाची ने रािखओ दआर ु जैसे गुर क माथरी।।

1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 12

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इस कार िववाह म िवदाई तक म लोक गीत क पर परा पूवाचल क अनूठी देन है। मृ यु के गीत भी ल बी उ ाि के समय अंितम समय गाये जाने वाले गीत का चलन चला आ रहा है। ऋतुओं के गीत भारत वष म छ: ऋतुओं के कारण येक ऋतु का अपना मह व है इन गीत का बारहमासा वणन ऋतु गीत के प म िस ह। ावण के गीत, रागम हार, बारहामासी व काजरी आिद गात का चलन करौली, िह डौन, महावीर जी, गंगापुर, ख डार, सवाई माधोपुर व उसके समीपवत धोलपुर के े म स पूण पूवाचल को समेटे इन गीत का चलन है। ताल से समा बांधने वाले गीत सुनने यो य है। सावन आयो रे िपया। कोई आई रे ह रयाली री तीज। िहडोले गड़ा दे, च पा बाग म जी। ऐ जो कोई है। ह बे कोई जी।।1 बाग म झूले पडे़ रहते ह, और सिखयाँ गाती रहती हसखी री चलो दरसन कर आएँ झूला डारो है कदम क डार सखी री एक लंग झूले रािधका रानी कोई एक लंग कृ ण मुरार ‘सखीरी’।2 ावण मास का ि यतम िवछोह असहनीय होता है। हमारे यहाँ नव िववािहत ना रयाँ पीहर म रहती है। वषा क रम-िझम म दादरू पपीहा क विनयाँ िवरह के गीत से याकल ु हो उठती है। म हार और कजरी क धुन, बूरा खाने का पव भी 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 14 2. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 15

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आता है। इन म हार म रा टीय राजनीित व टाचार से ओत- ोत गीत का भाव देखने को िमलता है। पूवाचल के गीत म लोक चिलत म हार म पु ष के समसामियक सम याओं पर ती यं य है। झूला झूलती एक नविववािहता (िवरिहणी) भेजते हए कहती है—

ी अपने ि यतम को संदेश

उड़ उड़ जा हारे कारे कागळा जब िपबजी हारे घर आवे। ि य म म हार म उनके दयानुकू ल कोमलता कट हई है — झूला तो झूले भवानी रानी भवन म जी ऐजी कोई जोगन रही झुलाय प डा करते तेरी आरती जी म या। ऐ जी कोई चौमुख िदलवा सजाय।। बारहामासा, च दना के गीत के मा यम से िवरहिणय क मनो यथा कट होती है। यह आिदकालीन सािह य से व जैन किवय के सािह य से यह पर परा जायसी क पर परा ‘बूढे क बारहमासी’ के मा यम से वृ िववाह पर ती ाघात िकया है यह भाव- यंजना वृ क नविववािहता यवा ु प नी ारा क गई है। ‘सामन महीना लागो, डोकरा पौरी म सोवे। ध धो नाही करै पजारो ानन कू खोवै। च दना के िवरह के गीत म योगी के गीत को ना रयाँ झूले पर झूलती हई बड़े क ण-रस म गाती है तीजन चचा ऐरी च दना चल रही जी। ऐजी कोई पड़ा है, नगर म शोर जी। बदनामी ऐसीच दना है रही जी।

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राजा से रानी ऐरी च दना यौ कहेगी। सुन राजा मेरी बात। िचट् ठी तो भेजे वा च दना के सासुरे जी। धौरे पै कारो िलख िदया जी।।1 पव एवं यौहार के गीत :- ह रयाली तीज, होली के रिसया सवािधक िस है। गोिपकाओं व कृ ण क नट-खट लीलाओं का अनूठा संगम गोत म देखा गया है‘‘मेरी अिखयन बीच गुलाल रिसया िजन डारो। हा हा करत तेरे पै या परत हो न द महर के लाल। सुिन है मेरी सास ननिदया तब िजय होत जलाल।। ज म मनाई जाने वाली होली का रंग तो अनूठा और भ य है ही साथ ही पूवाचल करौली, मदनमोहन के मंिदर व गंगापुर िह डौन एवं भरतपुर के आस-पास क होली का सु दर िच ण कछ ु इस कार है जो िक रिसया के मा य म से कृ ण क लीलाओं का बखान िकया जाता है। ट य है— काना बरसाने म आजइयो बुलाइगयी राधा यारी। बुलाइगयी राधा यारी। × × × ‘मेरो बारो सो क हैया, काली दह पर खे लन आयो री। रेशम क पट गद बनायी, चंदन का डंडा लायो री। मारो टोल गद गई दह म गद के संग धायोरी। हआ यु दोन म भारी अंत म नाग हराया री। 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 19

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रिसया म त मयता होती है, भाव िवद धता भी। ोता भाव के साथ डबता ू उतरता है— इकली धेरी बन म आय, याम तैने कै सी ठानीरे। याम मोय वृंदावन जानो, लौट के बरसाने आनो। मेरे कर जोरे क मानो। जो मोय होय अबेर, लड़े घर ननद िजठानी रे।। रिसयाओं म सूर व मीरा ने भी पद िलखे व गाये ह, िजनको गाया जाता है पपइया िपया मत बोले, मेरे होत िजगर म पीर। पपइया बोले िपया के बैन, िपया िबनुद तड़फत दोऊ नैन। कहै नह पायी बै रन रैन। कारी को कोिकला काहे को बैर काठत री िपपइया रे िपव क वाणी मत बोल। लोक जीवन का सरल, आ थापूण, िन कपट एवं शुिच प पूवाचल क धरा पर प ट झलकता है। यही उदगार लोक जीवन म ेम के प म कट होने वाला उदगार है िजसम बुि त व क अपे ा भाव त व क अिधकता झलकती है। भि गीत मं स यनारायण क कथा, देवी देवताओं के गीत, चतुथ (करवा) अहोई अ टमी, चेचक मुि हेतु शीतला माता क पूजा (बासेडा) पर गाये जाने वाले करौली वाली माता (कै लादेवी) के दशनािथय ारा म डिलय म गािडय म पैदाित भ तगण ारा अलग-अलगरागो ारा म नत माँगते ह। दोहा माता तेरे भवन म, घ टन क विन घोर। वन म शेर दहाड़ता, त वर कके ूं मोर।। चोपाई त वर फँू के मौर, मात तुम ऊँ चे िशखर िवराजो। याम िथला रमणी कमात ु , तुम लिखया वन म जागो। दास आस करके दशन क मंिदर तेरे भाजो।।

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नवरा म माँ के दरबार म ल खी मेले म लांगु रया के गीत क स पूण विन सुनने को िमलती है। लांगु रया देवी का भ त होता है। माँ को स न करने से पूव लांगु रया को स बोिधत करना होता है। असुर का वध करने वाला आ ा ा त भ त होता है। लांगु रया को गांजा िपलाया जाता है , उसक स नता ही माता क स नता है, यह लोक मा यता है। लांगु रया एक तीक है। मन को सुसु त भावनाओं क अिभ यि के िलए वह आड है , वजन को मुखर करने के िलए तथा कु ठाओं को ँ हआ िनकालने के िलए यौन स ब ध क व छ दता दो-दो योिगिनय के बीच फसा ँ हए कृ ण क याद िदलाता है पर गोिपकाओं ने लांगु रया गोिपकाओं के बीच फसे योिगिनय क तरह माँग नह रखी थी— दो-दो जोिगनी के बीच अके लो लांगु रया। एक जोिगनी य कहे रे हँसली ला दे मोय।। और एक जोिगनीय कहे रे कठला ला दे मोय। दो-दो जोिगनी के बीच अके ला लाँगु रया। लांगु रया को कह -कह पित के प म भी गोत म य त िकया है। परदेश गमन क लांगु रया क बात सुनकर द :ु खी हो गई। परदेश मत जाउ लांगु रया, िजया लगे ना तेरे िबना कहकर योिगनी िवरह म याकल ु हो उठती है। भतृहरी लीला, गोपीच द लीला, हलाद लीला, ोपदी चीरहरण, मोर वज लीला, सुदामा लीला, जय थवध लीला, नरसी भात लीला ृ ‘रामच रत आिद िस है। सूरदास क सूरसागर, मरगीत व तुलसी दास कत मानस’ के पद को लोकगीत म गाने क पर परा करौली व सवाई माधोपुर अंचल म अिधकता है।

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सभी जाितय के लोग गणे श जी के दशन, महावीर जी के मेले म, मदन मोहन जी के और कै ला मै या के दशनाथ भ तगण जाितगत गीत भी गाते ह। कु हार, गुजर, चमार, मािलय व मीणा बाह य े होने के कारण उनके लोक गीत जभाषा क भी बहलता ि गत होती है। देिखए ‘‘मैया का समाचार आया डाक गाड़ी म। ढोला तू आजा म आऊँ चील गाड़ी म। × × × हाथ म इ र क शीशी क धा पै थैलो। तोते य पूछू जावाड़ा कणसा गाँव को छै लो।। ु म िवनोद, नीितगत गीत का चलन भी पूवाचल क अतुल धरोहर है। इस कार करौली, िह डौन, गंगापुर, माधोपुर, भरतपुर आिद े म लोकगीत क अपनी पहचान है। लोक वा भारतीय सं कृ ित अित ाचीन है। वेद पुराण क द य कथाओं के आधार पर िशव के डम से िनकले 14 माहे वरी सू से वा उ प न हआ। चार कार के वा का वणन शा म िमलता है। तत, सुिषर, अवन तथा घन। तत-तार वा म तार क भूिमका ही मुख रहती है। इनम पशु क तांत (आँत) के अथवा धातु िनिमत (ता , पीतल, लोहे) के तार लगाये जाते ह। सुिषर, वर, फक ूँ वा से ाय: नलीदार होते ह। गले क वायु फक ूँ ही इनके वादन क मुख होती है। अनव चममि डत कु डीनुमा होते ह। चौथा घनवा ाय: धातु िनिमत होते ह। लोकवा संगीत का मह वपूण अंग है। इनके मा यम से गीत संगीत म माधुय झलकता है। करौली, सवाई माधोपुर े के लोक वा म ढोलक, मंजीरा, ताल, खजरी ं , करताल, च िपया घुघं आिद ऐसे वा ह, जो पूवाचल के मीणा जाित,

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ृ होती है। अनुसूिचत जाितय के चलन म अिधक ह। घुंघ क बेरनुमा आकित ाचीन म यकाल म इसे घघ रका, ममरा, ु घंिटका, घुंघरा आिद नाम से अिभिहत ँ भैस आिद मवेशी के गले म िकया है। करताल अंगुिलय म बांधा जाता है। ऊट बाँधने क रवाज है। झालर, मंजीरा, पीतल, तांबा व काँसे के बने होते ह। झांझ गोल च म बीच म अ गे दाकार गोल उभरा हआ होता है। च तारा (तंदराूबीणा) कामड़ जाित म चिलत ‘चौतारा’ वा भि संगीत का ुित लया मक वा है। कामड़ लोग इसका वादन ‘तेराताली’ नृ य म करते ह। िनगुण भि व रामदेव जी के भजन गाये जाते ह। लौिकक भाषा म त बूरा, तंदराू, वीणा, िनशान आिद नाम से स बोिधत िकया जाता है। सुरम डल मांगिणया लोक कलाकार म चिलत ‘वा सुर म डल’ का िनमाण लकड़ी क पिट् टय से चतु कोणीय श ल म बनाया जाता है। 21-26 तार क सं या होती है। रावण ह था राज थान का ाचीन लोक वा है। यह पाबूजी के भोप का वा है। इसक तबली ना रयल के खोल क बनती है। इकतारे क तरह बाँस का ड डा होता है।1 िचकारा मैव अलवर े के मेव लोग ारा बजाया जाने वाला वा है। लंगा जाित का वा कमायचा, शीशम आम या रोिहड़ा क लकड़ी से बनाया जाता है। सु रदां लोकवा का योग मारवाड़ के लोक कलाकार ारा बजाये जाने वाला वा है। पूव राज थान के अलवर भरतपुर े म लोक गाथाओं क संगत म बजाया जाने वाला वा ‘धानी सारंगी’ िनहालदे जोिगय का वा है। खाव भाट अथवा राव जाित का मुख वा है। इस अिधक चलन मेवाड़ म है। जंतर भोप का वा है। ढोलकनूमा काँख म आने वला वा -भपंग है, तुंबी, कद्द ू या लकड़ी का बना होता है। यह भपंग से िमलता-जुलता वा है। पूव राज थान क ि य का लोकनृ य म डिलय म गुजर ि याँ हाथ म पीतल क चू िड़याँ पहनकर वा क 1. रमेश बौराणा : राज थान के लोक वा पृ. 160-162

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तरह बजाती ह। कमट भी ऐसा ही वा है। सहनाई, सुरनई, सनही आिद नाम से जाना जाता है। लकडी क नाली बनाकर ताड क रीढ़ लगाई जाती है। मुख प से जोगी, भील, ढोली तथा जैसलमेर के लंगा लोग बजाते ह। अलगोजा म दो बाँसु रय का यु म होता है जो एक फट ु का होता है। यह चरवाह का जाितय वा है। पूवाचल म अिधकािधक योग म आता है। अलवर, भरतपुर, अजमेर व हाडौती के े कोटा, बूँदी म यु त होता है। राज थान के सेपर व काल बेिलय का मुख वा है पूंगी का ढाँचा लौक क तूंबी से बनाया जाता है। बांिकयाँ िजसे पूपांडा (शहनाई) भी कहते ह। यह िववाहो सव अगवानी आिद करने म बजाया जाता है। तुरही मंिदर ृ क तुरही कहलाती है। शंख नैसिगक प वाला वा व दगु म िचलम नुमा आकित (घ घा) समु ी जीव है। संगीत र नाकर, संगीत पा रजात, संगीतसार आिद थ म इसका वणन िमलता है। मशक म बकरी क खाल को गु बार क तरह काँख से दबाकर बजाया जाता है। पूवाचल का लोकि य वा है। भरतपुर, अलवर, सवाई माधोपुर के नाथ जोिगय ारा बजाये जाने वाला पार प रक वा है। इसे भैरोजी के भ प का वा भी माना जाता है। इस कार राज थान के पूवाचल म िह डौन, महावीरजी, सवाई माधोपुर, भरतपुर, धोलपुर व करौली अंचल म इन वा का चलन पार प रक प से रहा है। िक तु कालांतर म यगीन ु प रवेश व भौितकता के कारण इनका मह व धीरे-धीरे ीण सा हो रहा है। मंगलाचरण िवधान राज थानी सं कृ ित व सािह य क ही नह वरन् वेद , वेदांग, उपिनषद्, रामायण, महाभारत आिद सभी म मंगलाचरण का िवधान देखा गया है। िकसी काय को िनिव न समाि हेतु, अिन ट िनवारण हेतु देवी-देवताओं व राजा और महाराज क तुित क जाती है। या राजा का यशोगान िकया जाता है। सं कृ त सािह य क पर परा से िह दी सािह य म इस पर परा ने पदापण िकया है। आिदकाल से लेकर

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आधुिनक काल तक के सािह य का िव लेषण परक अ ययन से यह त य सामने आया है िक िह दी का य या लोक का य म भी मंगलाचरण का िविश ट मह व है। मिलक मुह मद जायसी का प ावत, मझन क मधुमालती, पृ वीराज िबहारी क ‘सतसई’ म सव थम गणनायक, गणपित, सर वती क व दना क गई है। िशव पावती, हनुमान, भैरव, माता आिद। कई देवी-देवताओं से क गई व दना स पूण पूव राज थानी सािह य क अनूठी पर परा है। देवी का माहा य और व प का िद दशन कराया जाता है पीकर मद का याला, भवानी मै या-िसंह चढ़ी। कै ला रानी िसंह चढ़ी पीकर मद.........1 ृ खडग ख कपाण हाथ म, और सँभाले माला। भवानी मै या िसंह चढी पीकर मद.......2 शीश मुकु ट िवकराल प ध र , गल मु डन क माला। भवानी मै या िसंह चढ़ी पीकर मद..........3 सिखया वन म दानव मारे, वहै र त को नाला। भवानी मै या िसंह चढ़ी पीकर मद...........4 बावन भरौ छ पन कलुंआ हनुमत है मतवाला। भवानी मै या िसंह चढ़ी पीकर मद...........5 राज थान के पूवाचल सवाई माधोपुर, गंगापुर व करौली के डांग े म माता करौली (कै ला देवी) क मा यता राज थान के अलावा यपी ू , एमपी व अ य दरू ांत तक है। इस कार सभी मिहमा का गुणगान करते ह।1 दिनया म रोशन नाम करौली वाली कै ला का ु करौली वाली मैया का, पवत ऊपर बसी है, डांगन म के लागांव, दरू-दरू के या ी आवे, सुिन सुिन तेरो नामकरौली वाली मैया का। 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य पृ. 29

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माता के दरबार म मंगल गीत क विन गुंजायमान होकर प रसर भि मय हो जाता है। माता के लांगु रय क धुन जाितय प म भी िस है। जैसे मीणाओं के गीत, गुजर , कु हार व चमकार के भि मय गीत ारा माता का यशोगान करते ह। गु क मिहमा का गुणगान भी िकया जाता है। गु को तो राह िदखाने वाला तथा ई वर से भी बड़ा माना गया है। वह ाणी को अ ान क राह से दरू कर ान क गंगा म नान कराकर पिव प धारण करवाता है। सद्माग क ओर े रत करता है। गु गोिव द दोऊ खड़े, काके लागूँ पॉय। बिलहारी गु आपणो, िजन गोिव द िदये िमलाय।1 लोक दोह म भी कहा गया है गु गम यान गािसयै, गु िबना यान न पाय। गु अ या गु म गिह, गोिव द का गुण गाय।।2 कै ला मै या के लांगु रय , याल , गीत म ई वर क तरह गु के ित ाभाव ि गोचर है। तुलसीदास, सूरदास मीरा क भि से जुड़े हए गीत का योग भी देखने को िमलता है। ‘दहा ू िवहार’ म नरो म दास ने कहा है — गु कु हार िशष कभ ुं है, गढ़-मढ़ काढै खोट। भीतर हाथ सहार दै बाहा बाहर चौय।। 3 देवी क भ त रमिणयाँ योिगन कहलाती है। ऐसा माना जाता है िक इनके िसर पर देवी आती है। नव दगा ु के िदन म ये भ त नर-नारी उपवास रखते ह। इनके के श खले ु होते ह। हाथ म हरी , चूिड़याँ और सफे द कोरी धोती होती है। देवी स ब धी गीत म भी माता क पूजा-अचना लांगु रया के गीत म कट होता है। नवरा म लांगु रया लाख क भीड़ गाती हई आती है। सम त पूवाचल लांगु रया मय हो उठता है। 1. पूरनच द ट डन, िविनता कमारी ु : िह दी सािह य का इितहास, पृ. 105 2. वामी नरो म दास : राज थानी दहा ू िबहार, पृ. 10 3. वामी नरो म दास : राज थानी दहा ू िबहार, पृ. 210

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दो-दो जोिगनी के बीच अके लो लांगु रया। एक जोिगनी य कहे रे हँसली ला दे मोय।। और एक जोिगनीय कहे रे कठला ला दे मोय। दो-दो जोिगनी के बीच अके ला लाँगु रया। लोक सािह य म सभी िवधाओं म ई वर के ित पू य भाव क अिभ यि प ट झलकती है। डांग े के लोक सािह य म मानस क अिभ यि प ट है। राम वन गमन से स बि धत भजन है कै के यी ने गजब कर दइयै, कै पाती िलख वनोवास दई यै। ऐजी िसया सुनत महल डकरावै। ओ िपया मोय छोड खाँ जावे, तेरे महलन पै काग पडगे। ओ छोटे िदवरा संग चलगे, मोय मत रोके भँवर हजारी।। यहाँ सीता रामजी से वनगमन हेतु आ ह कर रही है। राम वनगमन पूव माता से आ ा लेते ह। यह संग लोग गीत म बड़ा ही मनोहारी प म य त िकया है। राम बनी को जाता री माता, राम बनी को जाता री माता। चरण म शीश नवाता री माता, राम बनी को जाता री माता। िजंदा रहग िफर िमलगे काल सभी को खाता री माता। राम बनी को जाता री माता।1 आि तकता :- लोक सािह य क चाहे कोई भी िव ा य न हो? सभी म ई वर के ित पू यभाव क अिभ यि िमलती है। लांगु रया और योगिनय क यह ेम लीला, कृ ण और गोिपकाओं क ेम डाओं का मरण करा देती है। वह लांगु रया पनघट पर बाज नह आता है। करनी अनकरनी कर बैठता है। िशकायत तो देवी के दरबार म ही कर सकते ह। 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 38

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चु दरी ना ख चो ना लांगु रया। मेरे िसर मटक । मेरी एक न मानी लांगु रया डारदई गल बै या। मेरी लूटी रे दकिनयाँ कै सी झट-पट क ।।1 ु तुत कथन म देवी माँ के ित आ था लांगु रया के मा यम से भि भाव िवभोर होकर अपनी ा को कट करता है। लांगु रय के मा यम से राधा कृ ण ेम क अिभ यि , भ त-भि न क मानिसकता को कट करते ह। लांगु रया देवी का परम भ त होता है। असुर का व करने म सहयोग देता है। डांग े क हरी-भरी धरा का का या मक सौ दय प ट झलकता है, वह माधोपुर के गणेश जी क मिहमा िनराली है। िजसे िकसी भी मंगल काय म िवशेष प से िववाह म िनम ण सव थम वह पर जायेगा। राज थान देश वीर बहादरु के रजवाड क गाथा से ओत- ोत है। चाहे आमेर, जयपुर, जोधपुर हो या उदयपुर, करौली, फतेहपुर सीकरी चाहे राजा ह मीर का राज सवाई माधोपुर हो सव वीरोिचत का य िलखे गये ह तथा इनक कथाएँ महाराणा ताप, राजा ह मीर, मानिसंह, जयिसंह शेखावाटी के महाराव शेखा जी एवं उनके वंशज का शािशत देश महान् है खांटी वीरां साग सू लाह जसरे लाह। दादी घर द ु मन द हाँ शेखावाटी वाह।।2 दो-दो जोिगनी के बीच अके लो लांगु रया। एक जोिगनी य कहे रे हंसला लादे मोय। और एक जोिगनी य कह रे कहला दे मोय। दो-दो जोिगनी के बीच अके ला लाँगु रया। 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 32 2. क याण िसंह रसकलश सं. 2005 पृ. 80 क

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पूवाचल के भजन म च सखी के भजन िवशेष प से लोकि य है। ी कृ ण क िविवध लीलाएँ लोक सािह य के भाग ह। दानशीलता :- वैसे तो स पूण राज थान क लोक गाथाएँ वीरोिचत ह। मारवाड़, मेवाड़, हाडौती व पूवाचल क वीरता से ओत- ोत रचनाएँ भरी पड़ी है। वीर क उदारता, याग, धैय एवं दान वीरता क रचनाओं के उदारहण इितहास म भरे पड़े ह। ये वीर शरीर क ि से ‘व ादिप कठोर’ और दय से ‘कसु ु मादिप कोमलम्’ है। एक बार दान करने के बाद तो पृ वी पर भी पैर रखना नह चाहते। ‘िनहालदे-सुलतान’ लोकगाथा म सुलतान क दानशीलता इस कथन से प ट है‘तु हारा जैसा दाता और परिहतकारी और कौन है। वह सव व दान करने का उ साह रखता है। नरपर गढ़ म वह ितिदन सवालाख का दान देता है। ठग क सहायताथ अ व के जडाऊ झ बे देने को तुत हो जाता है। उसका वणन है — ‘‘सभा म बैठ चू कूं ना दान।’’1 सुलतान अपने िवषय म कहता है ‘‘नाडा का जती, हाथ का सती मनै जािणये।’’2 जनता के इस कथन म सुलतान क दानवीरता झलकती है ‘‘मंगत क ा या बे ताबांगढ़ शहर का। याणौ ऐसा यो दाताखी कोई दिनया ु म है नांय।।’’3 दानवीर (भामाशाह) यि य के पास अरब खरब क स पित व खजाने होते ह। वे धन का संच य न करके परोपकार म खच करते ह। दसरी ू और कजू ं स सदैव

1. उषा क तु रया : राज थानी वीरगाथा मक पवाडे संरचना एवं लोक पर परा, .सं. 1989 पृ. 175 2. वही, पृ. 176 3. वही, पृ. 176

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ँ कर उस संिचत करने पर त पर रहते ह और जीवन भर माया क आसि म फस परमिपता परमे वर को भूल जाते ह िजसने यह िमट् टी का शरीर बनाया है। राज थान क म धरा के दान का इितहास सा ी है। अपनी जुबान से कही हई बात और दान क हई व तु वापस न लेना ीय वंश क पर परा रही है। दान देने क कथाएँ पुराण , वेद-वेदांग , रामायण, महाभारत म सुनने को िमलती है। करौली के राजा के दान के चच इितहास िस ह। ह मीर राजा क वीरता व उदारता के चच इितहास म अंिकत ह। पूव राज थान के भरतपुर, धौलपुर, िह डौन, गंगापुर, माधोपुर व करौली े के राजाओं ने पया त दानपु य िकया है। माता व मातृ भूिम क र ा के िलए शहीद हए वीर ने मातृभूिम क र ा के िलए वयं को समिपत कर िदया। देशभि क भावना से ओत- ोत सेनािनय ने मातृ भि , देश भि व कल ु क रीित का प रचय िदया है। पित ता ना रयाँ राज थान क गौरव रह ह। प रिन ठा व वचन ढ़ता नारी क चह और िबखरी हई है। राजा ह र च के याल म पित ता रानी ‘तारामती’ पित के वचन र ाथ राज-पाट, धन-धा य आिद सव व याग कर पित के साथ वन म चली जाती है। पित के स य त के यान म रखते हए वे या के हाथ पु िवयोग सहती हई िबक जाती है। राजा मेघराज क प नी ‘पद्मावती’ भी अपने पित के स य धम क ँ को आरे से चीर देती है। नारी धम क र ाथ र ा हेतु इकलौते पु रतन कवर पूवाचल क ी जाित के शौय का अद य साहस भी अनुकरणीय है। भारतीय नारी का आदश सदैव पित परमे वर मानकर सव व समिपत व पित ृ ‘ढोल मखण को अमृ व दान कराने के िलए ढ़ संक प है। नानू लाल राणा कत याल’ म ढोला व मरणजी के संवाद म सत् िदखाने का य न है‘‘सांची सुण यारी बुरख क , पीवां जद पाणी सत् थारो िदखला घटजी

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कह किव नानू लाल ढोला यँू सुणावै साँच। येता कर काम नार म कू जल ि याव जो।।1 होली िह द ू धम का मुख यौहार है। इसम जाित, धम, िलंग के भेद-भाव से ऊपर उठकर ेम क महानता व सामंज य क झलक प ट है। राधा कृ ण क होली िव व िस है, जो िक पूव राज थान अचंल को भी भािवत करती है। ज क होली का उदाहरण राधा सिखय का आ ान करते हए कहती है आ जईयो याम बरसाने गाँव, तोय होरी खबू िखलाइ दँगू ी, तोय रंग म खबू रंगाय दऊगी ं , काना यो मत जाने भोरी, हम बरसाने क गोरी ह। कर सोलह शृंगार याम तोय नर से ना र बनाय दऊँ गी, तोय लहंगा चोली पहनाऊँ गी तेरे माते िबि दयाँ लगाऊँ गी तोय होरी खबू िखलायदऊँ गी।2 × × × चलो चलो सखी खे ले होरी, िग र खोरी वर जोरी। होली बरस िदना म आवेगी नैक ओड़ी डौड़ी रिहयो। ेम क महानता म लोक मयादा का अवरोध है 1. सं. मदन लाल धान, बसंत लाल शमा, म भारती जनवरी 1996 वष अंग 43, काशक राज थानी शोध िवभाग िबरला ए यूकेशनल ट ट िपलानी, पृ. 109 2. मुरारीलाल गु ा : मदनमोहनजी मंिदर म (होली के समय) गाये जाने वाला गीत : सा ा कार ारा।

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मेरी अंिखयन बीच गुलाल रिसया िजनडारो हा हा करत तेरे पीया परत हो न द महर के लाल।।1 ेम क महानता का उदाहरण रिसया म त मयता कट करता है। इकली घेरी वन म पाय याम तैने कै सी ठानी र। याम मोय वृ दावन जानो, लौटके बरसाने आनो। मेरी कर जोरे क मानो। जो मोय होय अबेर, लडे घर ननद िजठानी रे।। नव दगा ु क भि म ेम िदखाई देता है। देवी कै ला मै या के िविवध प क अिभ यि तुत है िजससे पूवाचल का सािह य ेम पूवक कथानक से ओत- ोत है। राज थानी याल पर परा म ेम क मह ा कट हई है। राज थानी सूफ िस ा त पर आधा रत है। अलख िनरंजन क साधना करते ह। संसार नाशवान है। आ मा-परमा मा का िमलन ही मुख है। इस संसार म अवतारी पु ष आये और चले गये मृ यु लोक म जो भी आया है उसे जाना िनि चत व शा वत है। मानव जीवन ई वर के अधीन है। ‘‘अनहोनी होनी नह , अ होने हो सो होय। भा यवाद और कमवाद का पर पर स ब ध है। िनराशावादी िवचारधारा को समा करने के िलए भा यवाद का सहारा िलया जाता है। कम के फल के स दभ म गीता म प ट िलखा है। कम यािधकार ते या फलेषु कदाचन्। अत: दराचरण , दबुु ि , यसन, कपट लालच ु आिद बुराई के तीक ह। सु दरका ड का दोहा इस त य को प ट करता है— काम ोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ। सब प रह र रघुवीर पद, भजह भजिहं जेिह संत।। अथात् काम, ोध, लोभ, मद, मोह सब नरक के रा ते ह। ी राम का मरण ही ऐसा है जो संसार म ेमपूवक जीवन जीन क राह िदखाता है। 1. मुरारीलाल गु ा : मदनमोहनजी मंिदर म (होली के समय) गाये जाने वाला गीत : सा ा कार ारा।

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ृ के जीव म मानव को सबसे बुि मान् ेम क मह ा :- कित य िक वह िववेक अिववेक का अ तर प ट कर िनणय लेने म स म है। श ुता मानवीय वभािवक वृि है। ेम म मनमुटाव हो जाता है वैमन य यि ेम के मह व को सम जाता है वही िव ान् है। के वल पु तक य सव परी नह । कबीरदास जी ने कहा भी है िक -

माना है ेम और नह जो ान ही

‘‘पोथी पढ़-पढ़ जगमुआ, पि डत भया न कोय। ढाई आखर ेम का पढै सो पि डत होय।।’’ — कबीर इस कार सवाई माधोपुर व करौली के अंचल व लोक सािह य म ेम क एक िन ठा उजागर कई प म होती है। दैिहक, मानिसक, साि वक, वासना मक, वाथ से ेम। पूवाचल क हरी-भरी भूिम पर भि नीित और शृंगार तीन म अनूठा िवहंगम य देखने को िमलता है। वह जभाषा िमि त बोली रहन-सहन एवं आचार िवचार ‘अितिथदेवाभव’ क मिहमा मुख है। सावन के गीत म नवोढ् या पीहर म होती है तो िवरह सताता है िवरह क वेदना चातक प ी क तरह याकल ु होकर ेम क वेदना य त करती है। क ण दय के उदगार अिभ य त हए है। उदाहरण दशनीय है — ‘‘अरी बहना हम न सुहाय, िपया िबनु सूना लगत है। तीज मनाम घर कािमनी, अरी बहना झूल बगीचा म जाय।’’1 ह रयाली तीज, होली, दीपावली, दौज, तीज पर गाये जाने वाले गीत म ेम क मह ा प ट प रलि त है। फागुन मास के गीत का वणन देख -

1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 17

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‘‘ ज को द ू हो रंग भरयो ऐसे होरी खे लत डोले, हाथ लकट ु िसर मुकु ट धारयो। गाढ़े रंग र च ज सगरो, फाग खे लको अमल भर चो, वृ दावन िहत िनत सुख बरसे, तान मान लै मनुज हर चो।।’’ संसार क न वरता :- िह दी सािह य क भाँित लोक सािह य म भी संसार क न वरता को लेकर अंचल म भाव ि गोचर हआ है। भारतीय सं कित म सोलह सं कार का उ लेख िमलता है। मृ यु का समय शोक व अवसाद से पूण है। वृ यि क मृ यु पर इतना द:ु ख नह होता िजतना िक यवा ु यि क मृ यु पर होता है। कई जगह पर वृ क मृ यु श या गाजे -बाजे से िनकलती है िक तु पूवाचल के मृ यु गीत अ य त िवरल हअरी बहना हम न सुहाय, िपया िबन सूनो लगत है। तीजे मनाम घर कािमनी, अरी बहना झूल बगीचा म जाय। अरी मौकू पित क याद रही सताय। मेढ़ बंदी का उदाहरण देिखये रोक बुरी बात को रेमन, ले राम नाम का सुिमरन कर, रख भगवत क याद, नह तो मरेगो य ही रे खर। रहा ान के वेग पकड़, चौरासी लाख से रे बाहर। र पाल भगवान् भ त के , रखले िदल म दो अ र। इस कार सवाई माधोपुर, करौली िजले म संसार क न वरता को लेकर िविव ध का य सृजन हआ, जो िक समाज के िलए ेरणा पद रहा है। ‘अितिथदेवभव’ क पर परा राज थान क नारी क सेवा, याग, परोपकार आिद सं कार को तुत

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करती है। तानामारने पर स कार पूण उ र देना या गाली देना भी कहते ह। पाबूजी के पावड म भी यह देखने को िमलता है। च र वान होना नारी जाित का आभूषण है। शेखावाटी सीकर ि थत जीणमाता के माता-िपता क मृ यु पय त भाई हष के संर ण म बड़ी हई। भौजाई से मतभेद हो गये, जीण के च र पर संदेह कट िकया और िवरि हो गई। िववेक क े ठता करौली, सवाईमाधोपुर े क मधुर ज भाषा आगरा, भरतपुर, धौलपुर े क भाषा व बोली का भाव प ट है। परािव ा का मह व उपिनषद म

ान के मह व को कट िकया है। ईशावा योपिनषद म िलखा है िव ा चािव ां च य त ेदोमयं सह। अिव ा मृ यंु ती वा िव ा भृत म नुते।।1

पूवाचल के ानी, मानी, बुि जीवी वग ने उपिनषद का अनुसरण कर समाज के सभी वग को सदमाग क ओर े रत िकया है। िन काम कम भगवान् कृ ण के वचन का गा भीय अंिकत है। ‘कम यािधकारेषु माफलेषु कदाचन’। िचंता क अपे ा िचंतन पर बल िदया है। ई वर ारा सद्बुि देने क नवीन राह क और उ मुख िकया है। आ म िचंतन के िलए कहा है ‘‘आ मिचंतना कर सदा पाप करो सब दरू । िनमल वध िनपजे तथा पावे सब सुख भरपूर।।’’2 पुराने समय म एक डक ु रयाई। वाने एक मैना पार रखी। बू डक ु रया वा मैना ए बड़े यार तै रखो करे ई वा डक ु रया को का काम जो िक वु मुसािफरन पानी िपलावो करै ई। इस कार क मधुर ाजंल भाषा म धम, राजनीित, कम, नारी शि क 1. स. मदन लाल धान, बसंत लाल शमा : म भारती वणजय ती अंक 2002 जनवरी, 2002, िदस बर, 2002 वष 50 अंक 1-4 पृ. 44 2. स. िकरण च द नाहटा : राज थानी नीितरा इहा सं. 1996 पृ. 14

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मह ा को पूवाचल के लोक जीवन म घिटत घटनाओं के प म य त िकया है। इस कार पूवाचल क लोक कथाओं, भाषा, सं कृ ित, प रवेश जिनत घटनाओं को बोलचाल क मधुरभाषा का योग कर लोक सािह य, लोकनृ य, लोकवा , लोक सं कृ ित, लोक संगीत आिद संदभ से जोड़कर म धरा से लेकर पांचना बाँध क हरी भरी धरोहर को सुशोिभत िकया है। 

अ याय-पंचम

करौली एवं सवाई माधोपुर िजले के लोक सािह य म िचि त समाज

समाज और सािह य का पर पर गहन स ब ध होता है। दोन ही पर पर यगु जीवन क चेतना का सजीव आले खन है। वा तव म ही समाज और सािह य एकदसरे ू के पूरक है। एक सजग सािह यकार को समाज क धाराओं से अलग नह वरन् एक साथ रहना होगा। वैिदक कालीन स यता का भाव राज थानी सािह य पु ष रण े म जुझा बनकर अपना करवाल जीवी यि व बनवाता है। पूव म यकाल म भ त प दशाता है तथा उ र म यकाल म सामंती िवलासी सं कृ ित क ण शृंगा रकता म आपादम तक िनम त होकर भी जब वतमान यगु बोध पुनजागरण क रणभेरी फकता है, तो जागृत होकर नवीन यगु क नूतन भाव बोधानु प अपनी ूँ कम य मनोवृि का प रचय देता है। सािह य और समाज के अकाट् य स ब ध का यह सजीव और जीवंत माण है।1 राज थान का पूवाचल करौली एवं सवाई माधोपुर े का सािह य लोक जीवन का र नागर है। े ीय बोली क अमृतवाणी सवजन को ि य है। डांग े म गंगापुर करौली व सवाई माधोपुर े िविश ट संभाग है। इन सामािजक राजनीितक एवं भौगोिलक ि से राज थान ांत के दोन िजले स प न है। अ य िजल क 1. न दलाल क ला : राज थानी सं कृ ित और लोक सािह य ि तीय सं करण 2000 पृ.सं. 2

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अपे ा लोक सािह य कम ज र िलखा है िक तु भावशाली एवं मम पश है। सािह य म े ीय सं कृ ित क िविवध छटाएँ आलोिकत हई ह। लोक सािह य ऐसी िव ा है जो लो कगीत के आधार पर ही चलती है। लोकगीत क का या मक अनुभूित का कारण प रवार क मंगल तुित रागा मकता से ओत- ोत है। पूवाचल के लोकगीत का वही स ब ध है, जो िक धरती और पौध का होता है। भूिम क िवशाल गोद म िजस कार पौधे छोटे अवयव को लेकर सुरि त एवं सु दर अनुभव करते ह। जैसी ऋतु होगी पौधे को ग रमा भी वैसी ही होगी। इसी कार समाज के अनु प गीत का उद्भव होगा। समाज म रागा मक स ब ध का िजतना वैभव ठीक होगा, उतनी ही सु दर अिभ यि याँ।1 लोकगीत जहाँ उ प न होते ह वह समाज ही ह, िक तु धरती जगह-जगह अलग प म ि गत होती है। कह काली, कह भूरी, कह रेतीली, कह दोमट िमट् टी है। उसी कार समाज के िविवध प क झलक सामािजक स दभ को तु त करती है। पशुप ी बोलते ह। पवन संदेश ले जाता है। मे िवरहणी क याद िदलाता है। करौली, सवाई माधोपुर े का जन-जीवन सामा य है। आय क ि से तीन ेिणय के लोग रहते ह। अिधकांश प रवेश ामीण जन-जीवन से अिभ े रत है। ृ व पशु -पालन हेतु त पर है। म यमवग य उ चवग य तथा िन नवग य यवसाय किष लोग क सं या िगनी चुनी है और वे अिधकतर बाहर रहते ह। इसिलए यहाँ के रहन-सहन सामा य ही अंिकत िकया जाता है। यहाँ आय के साधन , यापार, उ ोग-ध ध , कारखान , िमल आिद क कमी ह।2 पूवाचल का प रवेश संघषमय है। देवे स याथ के अनुसार ‘इसम गाँव का जीवन गाता है , रोता है, हँसता है , िख ली उडाता है , मुँह िचढ़ाता है, यं य कसता 1. स. िवजयदान देथा : मीठा वीरां रौ बोलणौ, पृ. 8 2. उदयवीर शमा शेखावाटी के सािह य का इितहास, पृ. 10

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है, ेम करता है , वछ द िवहार करता है। प दशन पर रीझता और कटा करता है, ऋतु पव पर आन द करता है। अपने द ु:ख क िशकायत करता है। थानीय महाजन, मुिखया जमीदार लगानकर, बेगार, रोग सूखा, बाढ़, िटड् डी आिद क ट पर दाँत पीसता और हाथ मलता है। घर खेत खिलहान पर हर समय के काय को गीत क वाणी देता है। भूत चूडैल से लेकर देवी देवताओं क मनोती मानता है। रमिझम वषा म जीवन रस का आ ान करता है। या फा गुन म ‘िनबुओं क कपट’ का रस लेना चाहता है तो साथ ही सामियक सम याओं जातीय भावनाओं , जन आ दोलन से उ ेिलत भी होता है।1 िन निलिखत त य का िव लेषणा मक अ ययन कर िन न प को उ लेिखत िकया है 1. संयु त प रवार :- पूवाचल ही नह वरन् स पू ण भारतीय समाज क िविश टता है। करौली सवाई माधोपुर के लोक सािह य म संयु त प रवार का िच ण हआ है। िजसम दादा-दादी, माता-िपता, चाचा-चाची, ताई-ताऊ उनके पु पुि याँ, पोते, नाती अथात् तीन पीिढ़ य तक िमलकर संयु त प रवार म रहते थे। स पित पर सामूिहक अिधकार हआ करता था। प रवार के सबसे वृ यि के िनदशन से पा रवा रक काय क ि याि वित होती थी। राज थान क यह कहावत सोटका सही है ‘बँधी भारी लाख क खली ु तो खाक़ क ।’ अथात् पर पर िमलकर भाइय का एक साथ रहना प रवार क ित ठा होती थी। संयु त प रवार का संचालन करने म गृह मुख क मह वपूण भूिमका रही है। काला तर म सामािजक मयादाओं का िवघटन होता रहता है, िक तु सामािजक काय म संगठना मक ऊजा का भाव रहता था। संयु त प रवार म येक यि का क य िनवाह क िति या अपने आप चलती रहती थी।

1.

मनोहर शमा राज थानी लोक सािह य 1982 थम सं करण, पृ. 63

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2. एकल प रवार :- पा चा य स यता के आये भाव ने संयु त प रवार को तोड़कर भौितकवादी, यांि कवादी आधुिनक वै ािनकता ने संकु िचत मनोवृि बना दी है। माता-िपता का स मान न करने क अपे ा िविवध कार के झगडे करके एकल प रवार क यव था ारंभ हई। छोटी-छोटी बात पर कलह होता है। ‘राई से बाई भली’ क उि को मानकर अलग रहना ही ठीक होगा। करौली सवाई माधोपुर ृ पर आि त है। 21 व शदी म छोटा प रवार सुखी प रवार क े स पूण किष धारणा को मानकर छोटा प रवार उ नित कर सकता है। लालन-पालन आसानी से हो सकता है। मानवीय धारणा है िक भूम डलीकरण के दौर म छोटा प रवार होने से ब च को उ चा िश ा िदलाकर उ वल भिव य क कामना करना मुख येय रहा है। 3. पु ाि कामना :- िपता को पु ाि होने पर वह गौरवाि वत महसूस करता ह। पूवाचल क देवी कै ला म या व गणेश जी, महावीर जी, नरिसंह भगवान् से पु ाि हेतु भ तगण प र मा देकर उ म गुणवान पु क कामना हेतु भि भाव म लीन रहते ह। उस पु के िलए माँ नौ माह द ु:ख पाती है। पु कपु ु बन जाता है तो माता को अपने दधू पर लािन होती है। 4. माता-िपता का वा स य पु ी के िलए धरोहर स य :- माता-िपता का यार ही लड़क के िलए थाती व प होती है। िजसके िछन जाने मा से ही पु ी का जीवन नारक य हो जाता है। ‘जीण माता’ अपने भाष हष के िलए। ‘कै ला माता भाई कृ ण के ाण क र ाथ वयं आसमान म उड जाती है। ऐसी पूवाचल क बहत-सी द यकथाएँ होती ह। 5. भाई-बिहन का ेम :- पवाचंल राज थान क ामीण सं कृ ित म भाई-बिहन का र ता िवशु ेम का होता है तथा बिहन क र ाथ भाई उद रहता है। र ाब धन य हार, भैया दोज आिद यौहार इसी स य को मािणत करता है।

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6. पित-प नी स ब ध :- पूव राज थान क गौरवशाली पर परा म गृह थी जीवन क बागडोर प रवार क धुरी के प म पित-प नी के स ब ध क मधुरता देवतु य पित मानने म याग, बिलदान व समपण क भावना नारी याग का घोतक है। नारी का याग व समपण कल ु को तार देता है। नारी सौत को कभी सहन नह कर सकती। इसिलए कािलदास ने भी ‘कमार ु संभव’ म उमा को यही आशीवाद िदलवाया है। ‘अखि डत ेम लभ य प यु:’ अथात् सुहाग क ल बी उ क कामना करना। पूवाचल के लोक गीत म सावन के गीत म ेम का उदगार कट करती है। ‘‘सावन आयो रे िपया। कोई आई रे ह रयाली री तीज। िहंडौले गढा दे च पा बाग म जी। ऐजी कोई हाँ ह बे, कोई जी।।’’1

नविववािहता झूला झूलती हई, अपना संदेश ेिषत करती है — उड़ उड़ जा हारे कारे कागजा जब िपबजी हारे घर आवै।

पित के अलावा सास, ससुर, देवर, ननद, भौजाई, नाती, पोता-पोती सभी के ित वा स य, उदारता व समपण क भावनाओं से ओत- ोत नारी म याग क भावना होती है। पूवाचल म लांगु रयाओं के मा यम से गीत क पंि या आदश व मयादा का पाठ पढ़ाती ह। सास बह के र ते को मधुर भाव क झलक पूवाचल के सािह य म बखबी ू देखा गया है। सास बह के आने पर स न होती है। बह य ही सास के चरण छती ू है य ही उसक परी ा हो जाती है। अ छी बह अपने प रवार क पहचान बन जाती है। माँ आशीवाद देती है ‘शीली सपूती’ ह। अथात् शील स प न पु वती होवे। सास बह का पु ीवत रखने पर भी इस पद को बदनाम िकया जाता है। ‘सास दारी न बऊ 1.

डॉ. गोिव द रजनीश राज थान के पूवाचंल के लोकगीत, पृ. 14

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िबचारी’1 का लोक सािह य म वणन देखा गया है। सास बह का िववािदत िवषय सदैव से ही तथा येक समाज व वग म या त है। प नी पित पर अिधकार चाहती है िक तु माँ अपने पु पर प नी से अिधक अिधकार पूण कह सकती है। पूवाचल राज थानी समाज म एकाक प रवार सास-बह के झगड़े अथवा संयु त प रवार म कटता ु का भाव देखने को िमलता है तो कहा जाता है। ऊँचे चढ़कर देखो घर-घर यो ही लेखो।2

अथात् समाज के सभी वग म घर क ि थित ऐसी ही ककश नारी, कपटी िम , चोर पु मानव के िलए अशांित कारक है ‘‘नारी करकसा कहर घोर। हािकम हैक खाय अंकौर। कपटी िम , पु है चोर। इन सबरे ने को जािहरे बोर।।’’3

पु ी, प नी व माँ तीन र त म मधुरता-कटता ु दोन रहती ह। पु ी व पु का िलंगभेद आज के यगु म बढ़ता जा रहा है तथा सामािजक करीितय के कारण ी ु र ाथ पु -िपता के बाद पित को दािय व का िनवाह करना होता है। िववाहोपरांत मृ यु के बाद दसरी ू प नी को ‘लाड़ी’ कहकर स बोिधत िकया जाता है तथा उसे उतना ही स मान िदया जाता है िजतना पहले वाली प नी को। िवधवा जीवन तो नारक य जीवन होता है। पूवाचल म िवधवा जीवन को अिभशाप तु य माना है। िह दू सं कृ ित म मांगिलक काय म कोई जगह नह िमलती है। कोई भी शृंगार करती है तो उस पर अंगुिलय के न िच खड़े हो जाते ह। कालांतर म िश ा के चार- सार ने ी 1. 2. 3.

एक मिहला से सा ा कार (मूली देवी करौली) क हैयालाल सहल : राज थानी कहावत, पृ. 72 डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूवाचंल का लोक सािह य पृ. 174

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को जीवन जीने क नई उ मीदे सरकारी, अ सरकारी व गैर सरकारी संगठन ारा सुखी जीवन िनवाह करने के िलए कई क याणकारी योजनाओं का लाभ िदया जा रहा है। पूवाचल सं कृ ित क अ ु ण यागमय पर परा का िनवाह िकया जा रहा है। िश ा के सार के कारण पूवाचल क मिहलाओं ने िविभ न राजनैितक पद को सुशोिभत िकया है। अ य धारणाएँ :- नारी स ब धी पूवाचल क िविवध धारणाएँ िव मान ह। जर, जो और जमीन पर हक हटने से दसर ू क हो जाती है। ि य क दयनीय अव था पर तरस खाकर लोककिव गा उठता है। ‘‘भारत म अबलान क हो रही िमट् टी वार। होय अनादर कट ु ु ब म पाव नह स कार।।’’

औरत के पेट म ब चा समा जाता है िक तु बात नह पचती। इस कार नारी के सदल ण , सद यवहार अथवा कल ु ण पर िनभर करता है िक वह घर क उ नित करेगी अथवा अवनित। य िक नारी प रवार क धुरी होती ह। पूवाचल करौली व सवाई माधोपुर े क ि याँ याग, तप वी, पित परायण व सित सािव ी अिधकांश है। सं कार

सं कार भारतीय िह दू सं कृ ित क अनुपम िवशेषता है। सनातन धम शा म जीवन को कम आ म क तरह मानव जीवन शरीर व मन के िवकास और शुि करण क आव यकता पर बल िदया है। सोलह सं कार का वणन वेद पुराण म भी देखा गया है। हमारी सं कृ ित म येक मानव को सं कार म बाँधा गया है। गभधान से अ ये टी सं कार तक माना है। इन सं कार का िन नानुसार वणन है। 1. गभाधान - िह दू सं कृ ित के सोलह सं कार म थम एवं मह वपूण सं कार है। िववाहोपरांत प नी गभधारण करती है। तु त सं कार का चलन वैिदक

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काल म ही हो गया।1 इसका उ े य व थ सुशील व सु दर गुणवान संतित ाि । लोकगीत म राज थानी सं कृ ित म हाक रया भी कहते ह। पूवाचल म गभवती मिहला को दो जीवा भी कहते ह। इस समय म उसे खट् टी व तुएँ अ छी लगती ह। उसे घेवर, नीबू, के र, मतीरा, फिलयाँ, अचार, बेर आिद खट् टी व तुएँ खाने क इ छा होती ह। िजसे ‘हंसपूरणी’2 कहा जाता है। भाँित-भाँित क ख ी-मीठी व तुएँ लाने के िलए वह प रवार के सद य को िनवेदन करती है। 2. पुंसवन :- गभ के तीसरे माह म िकया जाने वाला सं कार ‘पुंसवन सं कार’ कहलाता है। स तानो पित के िनिम िन प न िकये जाने वाला दसरा ू सं कार है। िजससे पु धान करने वाले देवता को स न िकया जाता है। सं कार काश म पुंसवन के संदभ म िलखा ह। ‘‘पुमान सूयते येन कमणा तत पुनसवनमी रता’’3 यह सं कार पूव राज थान क ामीण सं कृ ित का मह वपूण सं कार है, जो आज भी चिलत है। 3. सीम तो नयन सं कार :- िह दू शा कार के अनुसार सीमंत सं कार गभ के चतुथ मास म होता है। इस समय के श को ऊपर िकया जाता है। ऊपरी शि य के भय िनवारणाथ यह सं कार िकया जाता है। जापित को आहित देते ह ृ के तथा मातृ पूजा होती है। वेदो त ारा पित-प नी के गभ क र ाथ ई वरीय कपा िलएआराधना करता था। ‘‘यह वृ ऊज वी है, तुम भी ऊज वती होओ।’’4 4. गोदभराई (अ टमी पूजा) :- गभ के सातव मास म गोदभराई होती है , कह -कह आठवाँ भी पूजा जाता है िजसम पीहर प से िम ठान एवं प रधान भेजने 1. ह र शंकर शमा, सरोज पावा : भारतीय सं कृ ित के आधार सं. 2007, पृ. 271 2. सं क ा नानूराम : राज थानी लोक सािह य ि .सं. 2000 पृ. 63 3. ह र शंकर शमा, सरोज पावा : भारतीय सं कृ ित के आधार, पृ. 271 4. ह र शंकार शमा, सरोज पावा : भारतीय सं कृ ित के आधार, पृ. 271

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क प रपाटी पूव राज थान म चिलत है। उ म गुणवान स तान होने क मंगल कामना हेतु सभी सरीक होकर स नता कट करते ह। 5. ज मो सव :- चौरासी लाख यौिनयाँ पार कर े ठयोनी म ज म लेना े ठ माना गया है। राज थान देश व पूव े म थम संतान पीहर उ प न कराने क रवाज है। सोहर के गीत गाये जाते ह। तुलसीदास ने रामच रत मानस म सोहर के िलए मंगल श द का योग िकया है िदन आज खशी ु का आया ज चा ने ब चा जाया है। ज चा री दाई आवेगी वो ललन जनाई नेग मांगेगी। × × × गाविहं मंगल मंजुलवानी। सुिन कलरव कलकठ ं लजानी।।

पूवाचल म गाये जाने वाले इन गीत म क ण रस क धानता होती है। एक नारी सव पीड़ा के कारण अ य त यिथत है, वह ऐसी िवप नाव था म पित का मरण करती है‘घमरै-घमरै आबे पीर रे, सईयाय कोई बु लाय लाय’ वेदना क ती ता बढ़ती जाती है, उसका िच ण म डरा पूजने वाले िदन इस लोकगीत ारा िदया जाता है। अिलया डो , डिलया डो , फल ू बखे । मा िबछअन ु क मार, पुकार तेरी कौन सुनेगो।।

वतमान प रवेश म समय एवं प रि थित के बदलाव के कारण िचिक सालय म सव क ि या ामीण प रवेश म भी आधुिनक िवचारधाराओं का भाव है। पु ो प न होने पर डांग (करौली सवाई माधोपुर), हाडौती व मेवाती े म िवशेष

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प से थाली बजाई जाती है। िक तु क या ज म से िलंगभेद कर अिभशाप जनक मानते ह। पु के िलए गुड बाँटते ह। स य घर म ल मी क उपमा लड़क से दी जाती ह। भूल से नाम आ जाने पर माताएँ एक िदन का त रखती ह। उसको बाई अथवा ‘गुड् डी’ कहकर पुकारा जाता है।1 इस अवसर पर ‘ज चा’ और बंधाये गाने क पर परा है। पु ो प न पय त बूआ ‘बधाया’ लेकर आती है। बालक के िलए व , िखलोना आिद लेकर आती है और बूआ को स मान पूवक (माडंला) पूजन का नेग िदया जाता है। ज चा को आटे का चून व गूंद िमलाकर अजवायन स ठ आिद िवशेष प से िख लाये जाते ह, िजससे वह पुन: उसी प को हण कर सके । दोन बिहने बंधायो ले आयी बड़ी तो लायी चूना खनवारी छोटी लाई झंगा टोपी।

यशोदा ने कृ ण को ज म िदया है, उस अवसर पर नाइन ारा नगर को बुलाया िदया जा रहा है अरी माई जशोदा ने जाये है लाल, बधाई रघुन दन क । बोलो री नाइन क िबिटया, नगर बुलावा देवो। सब सब से पालागन किहयो, नैक िबरन क ओट। बधाई रघु.।। बाबान द वजाट कू िनकले, सुआ, सालू लै जैसी जाके मन म। आके ओढ़ घर जाओ, बधाई रघुन दन क च सखी मोहन का झगड़ा, होलर जीओ तेरी लाख बरस। ब दरवान बँधी दरवाजे, न द बाबा क पौली मैलन म। × × × िदन आज खशी ु का आया है ज चा ने ब चा जाया है। ज चा क दायी आवेगी, वो ललन जनाई नेग मांगेगी 1. सं क ा नानूराम राज थानी लोक सािह य ि तीय सं. 2000 पृ. 61

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उनका भी नेग चुका देना नह झगड़ा हमसे डालेगी, िदन आज खशी ु का आया है ज चा ने ब चा जाया है।

6. जातकम सं कार :- यह सं कार वतमान म समा ाय: हो चुका है। 7. सूरजपूजा :- पूवाचल राज थान म नवजात िशशु के ज मोपरांत पाँचवे या छठव िदन ‘सूरजपूजा’ या सूरज जी के छ टा देना कहा जाता है। ग डमूलन म मूलशांित 27व िदन स प न करने क रवाज है। वि त िच ह मेहंदी या गोबर के लगाये जाते ह। ज चा महावर लगाती है। डाकोत ( योितषी) ारा लोकाचार के अनु प मूलशांित पय त िव ारा अनु ठान करवाया जाता है। 21 कार के पेड के प े और 27 कओं ु का पानी िलया जाता है। पंचामृत शुि पय त व धारण कर नीम क डािलय को डालकर सूय देव को जल देने क रीित पूवाचल म चिलत है। हवन पूजन पर बैठते समय पीला प रधान धारण करती है। जो मंगल कामना का तीक है। 11, 15, 20 िदन म कआँ ु पूजन व व ण पूजा होती है। उस समय का चिलत गीत है ससुर के अंगना जलपूजन जाऊँगी। सात सखी रावरे ते उतरी, हसत, खे लत मु कात। चलोरी सखी बाबान द घर चाले, जसोदा ने जायो न द लाल। हाथ सरदी पैर पाँतरी जुर िदए जनन िकवार। ं चलोरी सखी, उलट घर चाले यां न आदर भाव।।

कप ू पूजन पर घूघरी (गेहँ-चना) उबालकर बाँटी जाती ह तथा कह -कह बतन म िम ठा न रखकर बाँटे जाते ह। पूवाचल म यह पर परा लोकि य है। पु ो प न होने पर ीितभोज क रीित भी पूवाचल देश म देखी गयी है। िजसे ‘डायजा’ दसोटन या कप ू पूजन आिद नाम से बोला जाता है। ज चा अपनी िन ापूरी करने हेतु ब चे का रोना माँ को सुहाता नह है। दादी पौ उ प न होने पर बताशे बटंवाती है। ब चे को लोरी सुनाती है।

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‘‘ल ला ल ला लोरी दधू क कटोरी दधू म बतासा मु ना करै तमासा।।’’

पु ी को सुलाती हई माँ लोरी सुनाती है — “न नी परी सी मेरी लािडली चंदा क िकरन मेरी लािडली जुग जुग िजए मेरी लािडली।”

8. नामकरण सं कार :- सोलह सं कार म नामकरण सं कार का अपना िवशेष मह व है। सनातन (िह दू) समाज म संतान को नाम दान करना भी एक सं कार माना जाता है। नव िदन यह सं कार स प न होता है।1 ज मोपरांत मुिखया िव ान् पि डत के पास जाकर ज मन एवं मुहत व कु डली के स दभ म चचा करता है। वणपाद- वा य क ि से म यम, रजतपाद े ठ, ता पाद म यम सुखदाता मानते ह। कछ ु प रवार म पि डत ारा िशशु के िलए जो नाम बताता है , वही रख लेते ह और कछ ु प रवार म ज म रािश के आधार पर सु दर संि त एवं कण ि य नाम रख ले ते ह। हमारे यहाँ कहावत है िक ‘यथा नाम तथा गुण’ िक तु िकसी यि को गुण के िवपरीत नाम िदया जाता है। आँख से अँधा है नाम नयन सुख लेिकन वह ने को सुखदेने वाला पूवाचल म नाम को इतना मह व नह िदया जाता है, य िक नाम तो पहचान मा के िलए या बुलाने हेतु होता है। नाम क अपे ा गुण को मह व अिधक िदया जाता है। 9. िन मण :- नवजात िशशु के ज म से लगभग एक मिहने बाद जब उसे थम बार बाहर िनकाला जाता है , तब उसे िन मण कहा जाता है।2 पूवाचल े म 1. सं क ा नानूराम : राज थानी लोक सािह य, ि .सं. 2000 पृ. 75 2. ह र शंकर शमा, सरोज पावा : भारतीय सं कृ ित के आधार, सं. 2007 पृ. 272

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इस सं कार से पहले माता को ब चे के साथ एक कमरे म रखा जाता है। बाहर जाने का परहेज करते ह। घर को लीपा-पोती कर गोबर लगाते थे। आज भी यह प रपाटी राज थान देश के करौली एवं सवाई माधोपुर िजले म चिलत है। शु नान व धारण कर सूय नान कराया जाता है। िशशु का चाचा छाजला ओढ़कर ब चे को गोद म लेकर घर के मु य ार तक जाता है, वापस उसी कमरे म वापस ले आता है। 10. अ न ाशन सं कार :- पाँच-छ माह म ब चा खाने यो य हो जाता है, तब ब चे का ‘अ न ाशन’ सं कार स प न िकया जाता है। इस सं कार म पंचामृत व पके हए चावल, खीर, िखचड़ी, दही, मुख से पश कराये जाते ह।1 इस सं कार बाद ही बालक को अ न खाने क शु आत क जाती है। प ी पुजाने का सं कार भी कहते ह। पूवाचल म माता क य ता के साथ उनके ारा पु के सद्माग होने क कामना क जाती है‘‘मेरा पढ़ने को जावेगा लाल, पि डत बुल वायो। ृ करी कपाल। ृ पाँच बरस का हो गया लाल, कपा पि डत बुलावो पट् टी पुजवावो, दि णा देऊ हाल। िच म पि डत इसे पढ़ाना ओम का अथ बताना। फसे न बुरे याल, िवधा म भरपूर होय लाल।।’’2

11. चूड़ाकरण सं कार :- िशशु के सव बाल मु डन कराने ‘चूडाकरण सं कार’ कहा जाता है। पूव राज थान के करौली सवाई माधोपुर े म इसे मु डन सं कार या चोटी देना कहा जाता है। लोक जीवन म इस सं कार का अपना मह व है। पहले या तीसरे वष म बाल देने क पर परा इ ट थान जैसे कै ला मै या, भै जी, हनुमान जी, गणेश जी आिद के चढ़ाकर पूण होता है। कछ ु लोग िपतर के जडला ू 1. ह र शंकर शमा सरोज पावा : भारतीय सं कृ ित के आधार सं. 2007, पृ. 272 2. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य, पृ. 8

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अ टमी को माता के ार पर चढ़ाने से पूव एक िदन रात जगा िकया जाता है। िजसम िपतर व देवी देवताओं के गीत गाकर स पूण करते ह। अिधकांशत: अमाव या से पूव चौदश को रात जगाकर अमाव या को भी करते ह। बूआ आकर बालक के के श उतरवाती है तथा नेग लेती है। गीत क शृंखला दैवीय भाई क मंगल कामना व भतीजे ल बी उ के होते ह। मु डन का यह गीत ट य है‘‘घुंघराले बाल लला के, दादा भी रहसै दादी भी रहसै, हंस कै कै रई है गरब लाल के।’’1

12. कणबंध-कणछेदन सं कार :- कण भेदन का सं कार 6 वष क उ प चात् िकया जाता है। इस काय हेतु 3, 6 वष िवशेष माना गया है िक तु पूवाचल राज थान म इस उ के पार होने के बाद भी कण छेदन करवाते ह। लड़िकय के कण छेदन के बाद नािसका छेदन क पर परा रही है। साथ ही नाथ स दाय के (योगी) लोग भी िश य व से पूव कण छेदन करवाते ह। शुभ घड़ी म कण छेदन कर गु ारा कु डल पहनाये जाते ह। 13. िव ार भ सं कार :- यह सं कार मह वपूण होता है। स पूण जीवन का आधार िब द ु एक िन ठ हो जाता है और जीवन का भिव य इसी सं कार पर िनभर करता है। य िप ‘सं कार काश’ म बालक क आयु पाँच वष क हो जाने पर उसे िश ा दान करने का उ लेख िमलता है।2 िक तु पूवाचल के डांग ‘करौली, सवाई माधोपुर’ म िश ा का चार- सार कम होने के कारण 6 वष क उ से बालक को िश ालय वेश िदलाने क पर परा रही है िक तु कछ ु िनजी िव ालय म 5 वष के बालक को िशशु म पढ़ने बैठा देते ह (एल.के .जी.)। आज करौली व सवाई मधोपुर िजले िश ा के े म अ णी माने जाते ह। 1. कु दनलाल उ ेती : लोक सािह य के ितमान पृ. 304 2. ह र शंकर शमा, सरोज पावा : भारतीय सं कृ ित के आधार पृ. 275

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13. उपनयन (य ोपवीत) सं कार :- उप नयन गु के समीप ले जाना। वैिदक कालीन स यता म बालक को गु क शरण म ानाथ भेजने से पूव उपनयन सं कार करवाना अिनवाय था। जाित िवशेष के कारण 8 वष से 12 वष क उ तक बालक का य ोपवीत सं कार होना अिनवाय था। शू वग हेतु यह सं कार आव यक नह होता था, जबिक ा ण ि य वै य के िलए अिनवाय होता था।1 पूवाचल के लोक जीवन म यह था आज भी चिलत है। िक ही प रवार म 11-13 वष क आयु म तथा िक ह के िववाह के मंगल समय भी य ोपवीत सं कार स प न करवाया जाता है। इस िदन गु ारा म ोचारण कर दी ा दे ता है। इस िदन ब े तथा याह के गीत गाये जाते ह। बटक ु ‘माता-िपता’ व गु से आशीवाद लेते ह तथा सद्माग क शपथ लेते ह। 14. वेदारंभ :- िश ा का मूल उ े य जीवन को साथक बनाना होता है, अत: िश ाजन का उ वल भिव य का आशीवाद लेकर बालक बौ िधक एवं आ याि मक ानाजन करता है जो िक राज थान देश डांग े म आज व प प रवितत हो रहा है िक तु मंगल कामना व सर वती पूजन वेद वेदाग क रीित पर स प न होता है। 15. िववाह सं कार :- अ य सं कार का अिवल ब िववाह सं कार पर ही िनभर करता है। गृह थ को जीवन का भ य वेश ार कहना अित योि नह होगी। िन न से उ च, बबर से स य सभी जाित व समुदाय म यह सं कार रीितपूवक स प न होते ह। सामािजक, धािमक व सां कृ ितक रीित से दो दय का मधुर िमलन कर जीवन क गाड़ी समृि क और ले जाने क नई राह िमलती है। समान जाित, धम व स दाय म िववाह रीित नीित पूव क करना समृि का सूचक माना है। वेद म आठ कार के िववाह का उ ले ख िमलता है। 1. ह र शंकर शमा, सरोज पावा : भारतीय सं कृ ित के आधार, पृ. 275

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स पूण पूवाचल क राज थानी गौरवशाली पर परा म मंगलकाय करने से पूव गणेश जी क तुित क गई है य िक गणेश जी को थम देवता माना जाता है। इस लोकगीत को देख सकते ह— गठ रणतभँवर से आओ िवनायक, करो ए न चीती िबडदडी। िबडद िवनायक दोनूं जी आया, आय पव या सीलै बड तलै। बूझते बूझत नगर पहेठ् या, पो ज बताओ लाडेला रै पाब क । अगणो तो बासो नगरी जी बिसयो, नगरी म बै ा बामण बिणया। चो थो तो बासो तोरण बािसयो, तोरण छायो डी िचड याँ।।1

इस लोक गीत के मु य अंश म रणथ भोर, सवाई माधोपुर के रणतभँवर के लाड़ले का आह् वान िकया है। सा ात् िवराजमान गजानन से ाथना क गई है िक वे वयं पधार कर ‘िबड़दडी’ क िचंता न कर। लोकगीत म िबडद का अथ गणेश जी अपने पाँचवे भाँवर (फे रे) म करते ह। हमारी द ु हन का चीर तथा राईबर (दू हा) का बागा और ब टली (पकडी) को िनर तर आगे बढ़ने क बात कह है। आज गजान द बाबाजी, घर नौ यौ, ताऊजी ार नौ यो, तो दादी ने यौत िजमाओ, याई ने यौत िजमाओ रे गजान द िक लर छाजे नौबत बाजे, नगाड़ा भी बाज तो रणत भँवर दर यारे गजान द िक लर छाजे।

1. मनोहर शमा : राज थानी लोक सािह य थम सं करण 1982 पृ. 60-61

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सगाई :- सव थम र ता तय होने को सगाई (रोकना) कहते ह। पु ी प ारा पु प को पया व फल-फल ू देकर ितलक करते ह , उसे रोकना या सगाई (मगनी) आिद नाम से पुकारा जाता है। इसम वरप को चाँदी का िस का व 21-11 िमठाईयां देने क पर परा है। ना रयल, पये, गुड़ व मीठे चावल पकाते ह। टीका या मुद ्दा लेने क पर परा पूव राज थान के कछ ु िह स म चिलत है। ा ण या नाई ारा भेजने क पर परा है। िफर पीलीप ी या सावा िनकलवाना होता है। ल न टीका आिद नाम से भी स बोिधत िकया जाता है।1 रघुन दन फले ू न समाये, लगुन आई हरे-हरे हमारे अंगना काका सज गये, बाबा सज गये, सज गई सारी बरात ब ना जी तो ऐसे सज गये जैसे ी भगवान् । लगन आई हरे-हरे...।

िववाह के लोकगीत गाये जाते ह उनक 26 तरह क िक म होती हैिववाह के लोकगीत वरप के लोकगीत िववाह से पूव के लोकगीत

वधुप के लोकगीत िववाह उपरांत के लोकगीत

िववाह से पूव के लोकगीत

िववाह उपरांत के लोकगीत

वरप के लोकगीत म उ लास, हष, उ साह और उमंग छलके त हए िदखलाई पड़ते ह जबिक क या प के लोकगीत म क णा, माधय, िवरह वेदना 1. सं कृ ता नानूराम : राज थानी लोक सािह य, पृ. 76

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और सरसता अिधक ि गोचर होती है। िवदाई के समय अ ु गंगा वािहत होती है। माग म जाने वाले का भी उन लोक गीत को सुनकर दय यभूत हो उठता है। पूव अंचल म िववाह से जुड़े गीत को ब ना नाम से स बोिधत िकया जाता है। भात के गीत कछ ु इस कार के होते ह‘‘िमल लै िमल लै हीरा झकोर माँ के जाये, कब िमलै? ए भइया, नैनन से िम यो हो न जाय। नैना मेरे कजरा भरे। ए भइया, नैनन से िम यो हो न जाय। िहवरा मेरा हार भरयो। एमइया मल ले िमल ले बाँह पसारे। बाह मेरी चुरला भरी।।’’1 × × × ब ना—द ू हो ठाडो कमल को सो फल ू , बलैया मैया ढंग से लीजौ ब नी—हाथी दाँत क पालिकया लाड़ो मेरी चढ़ गई बाबुल तुम कांई हारे बेटा बाला जीत के चा यो धीमर म तो जाई िदन हारो वा िदन तेने ज म िलयो।2

इसी कार तेल के गीत, मेहंदी के गीत, घोड़ी ब ना के गीत, बधाय तोरण के गीत, योनार के गीत, भाँवर के गीत, िवदा के गीत, गोने के गीत। लोक गीत के प म पूवाचल क लोक सं कृ ित का प रचय कराते हए देखे गये ह। 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल, लोक सािह य पृ. 12 2. कमला देवी (गाँवड़ा मीना) ामीण मिहला से सा ा कार।

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भात भरना :- भारत भरने क पुरातन पर परा ‘नरसी भगत’ क कथा से चिलत है। भाई बिहन के घर या पु ी के घर संतान के िववाह पूव भात भरने क र म है। भाई बिहन को चुनड़ी उढाता है। राज थानी पर परा म भात भरने वाले भाई के बीरा श द का योग चिलत है। पूवाचल म भात भरने के कई गीत है —भाई पीला व पहनाता है जो ‘पीरा पहनना’ कहलाता है। भात पोल (पोली) मु य ार तोरण ार पर े फल देवता का स मान िकया जाता है। ‘‘चंदा क शोभा चाँदनी सूरज सो छै या। भात क शोभा चूनड़ी उठावै मेरा भै या। थाली म बरसे बीरो उपर से बरसे मेवो। मन बरसे रे इ राजा मेरी माँ को जाये भीजै।।’’1

िनकाली, टिटयां ू , दकाव ु , तोरण, चँवरी, फे रे का होना, परावणी और िवदाई के लोकगीत िव मान रहगे। तोरण के गीत ट य है। िचट् टी िलख-िलख बागो भेजूँ। बाँधो रे बाँधो रे जमइया। तुझको टोना क ँ गी, वधी ग डा क ँ गी। घिडया भेजूँगी, तुझे टोना क ँ गी। दारी समधन के जाये।

एक अ य गीत के ारा भात भरने के िलए भाई अपनी बिहन से कहता है — अब मोिह पौ रन ले ले मेरी बहना अब तोिह पौ रन कै से लऊँ भैया सास मेरी ँ सी, ससुर मेरो ँ स ससुर मनाल बहना सास मनालै कट ु ु ब मनाले अपनी खशी ु ते 1. कमला देवी (गाँवड़ा मीना) ामीण मिहला से सा ा कार।

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अब मोिह पौ रन ले ले मेरी बहना अब तोिह पौ रन कै से लऊँ भैया जेठ मेरो ँ सो, िजठानी मेरी ँ सी जेठ मना ले बहना िजठानी मनालै कटम ु ु मनाले अपनी खशी ु ते देवर मनाले, देवरानी मना ले मेरी चुनरी पर रंग बरसे मेरी सारी पर रंग बरसे पौरी पै बरसै भातई मत बरसे इ दर राजा मत गरजे इ दर राजा मेरो भीजै ल मण भातई।1

एक अ य गीत— मेरे िपताजी को हिथया घुमेन घूम-घूम सजन के दरबार घूमे-घूमे बेटी के दरबार िसदोसो आजो भातई तेरो भरोसो मोह बहत िसदोसो आजो भातई मेरे चाचा को घुडलो ह सनो ह से-ह से बेटी के दरबार िसदोस आजो भातई तेरो भरोसो मोह बहत

1. फलवती मीना — दीपपुरा गाँव क मिहला से सा ा कार ारा। ू

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पोरी पे हो रही चचा बहत िसदोसो आया भातई बगले म हो रही चचा िसदोसो आज भातई।

भात के गीत अि न को सा ी कर सात फे र के सात बचन क पर परा पूव राज थान के सवाई माधोपुर व करौली े म ऐसे है। ए मेरी पैली भाँम र, अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी दजी ू भाँम र, अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी तीजी भाँम र, अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी चौथी भाँम र, अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी पँचई भाँम र, अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी छटी भाँम र, अबऊ बेटी बाप क । ए मेरी सातई भाँम र, अबऊ बेटी सास क ।।1

इस कार िवदा के गीत, मिहलाओं ारा गाये जाने वाले िविवध गीत का संगम देखने लायक होता है। िवदा के गीत म क णा वेदना क मािमक अनुभूित पाई जाती है। क या क माँ का दय तो िवछोह से िवदीण हो उठता है ‘‘ओहो मेरी उड़न िच र या उड़ चली। बाबुल मेरे दई हो िनकार, य जल माछरी। बाबुल मेरे यो है वा तो, यो जल माछरी। माय मेरी रोज चुन रया तो भीजे री।2

गोने के गीत का अप ंश म है , जाना है िपतृ गृह को याग कर पित गृह गमन को गौना कहा जाता है। कह -कह पूवाचल म फे र पट् टा या बाल िववाह के कारण 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य पृ. 12 2. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोक सािह य पृ. 12

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3, 5व वष (मुकलावा) सैिक ड मैरीज क पर परा चिलत है। माँ क ममता, सिखय का नेह के कारण वणकार से बेसर, गढ़ने के िलए (कान, नाक का आभूषण कपड़े वाले को साड़ी रंगरेज से चुनरी रंग कर लाने के िलए कहती है। औरे छोरा सुनार के बेसर गढला मोय। मेरे गोने के िदन रहे चार। ओ छोरा बजाज के। साडी लादे मोय। गोने के िदन रहे चार। ओरे छोरा रंगरेज के। चुन रया तो रंगलाय मोय। गोने के िदन रहे चार। मोय जानो ऐ प ली पार।।

दू हा-दू हन के फे र पट् टे के बाद पलंगचार (पलकाचार), जुँआरी आिद काय होते ह। सात फे र के बाद पित-प नी सफल गृह थ जीवन क मंगल कामना करते ह। 16. अ ये ठी :- जीवन णभंगुर है, िफर भी मानव जीवन को आन दमय बनाने के िलए सभी सं कार से गुजर कर अंत म मृ यु ाि अंितम ठहराव होता है। सृि का शा वत स य है। िजसने ज म िलया है उसक मृ यु िनि चत ही है। मानवदेह क मुि अंितम सं कार म अि न क पिव ता से होती है। िह द ू धम म जलाया जाता है तथा मुि लम धम दफनाया जाता है। 1 मानव जीवन सृि म सबसे मह वपूण ाणी होता है। पशु तथा मानव म के वल बुि त व क अिधकता के कारण ही सृि के सभी जीव-ज तुओं पर राज 1. ह र शंकर शमा, सरोज पावा : भारतीय सं कृ ित के आधार पृ. सं. 2007 पृ. 274

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करता है। पित क मृ यु पर प नी को सुहाग से जुडी सभी वत ताओं का याग करना पड़ता है। पंचक म मृ यु होने पर 5 पुतल को बनाकर िप डदान ि या करके दोष मुि करते ह। अ यथा पाँच मृ यु और होने का संकेत माना जाता है। पूवाचल क लोक िव वास या रीित के प म ही मानते ह। िपता को अ जलने के बीच म बड़े बेटे के ारा मुखाि व कपाल ि या कर घृत डालने क पर परा है। शु छोटा, कडामास, तृतीय िदवस (तीया) म अि थयाँ एकि त कर िवसजन हेतु गंगा, सोरो या ह र ार म जाते ह। पिव तमा गंगा क शुि हेतु जल लाकर नारायण ि या करवाई जाती। ि या करने वाले के प रवार म सादा भोजन होता है। लोकाचार के अनु प 9वां नान (नहाण) एकदाश (शु िदन) या ादश, छमाही करने क पर परा रही है। सकल पंच क िचट् ठी देकर मृ यु भोज व पगड़ी क र म होती है। िजसम बड़े बेटे के भाई ब ध , ामीण व ससुराल प के लोग ारा पगडी व कछ ु नगदी दी जाती है। ग ड पुराण सुनाकर ि याएँ स पूण क जाती है। मृ यु के बाद ये सभी लौिकक िवधान इस िलए स प न िकये जाते ह तािक मृतक क आ मा को शांित िमल सके , उसक आ मा भटके नह ।1 पूवाचल करौली, सवाई माधोपुर के डांग े म बालअ र ट या क ची मौत कहते ह, िजसम कम उ का यि मरता है। ऐसी मा यता है िक उसक मुि नह होती है। भारतीय सं कृ ित म 100 वष क आयु मानी गयी है। येक यि क मृ यु अपने कम के अनुसार िनि चत है। पूवाचल म मृ यु पर भी लोकगीत गाने क पर परा है। जीवन का स य मृ यु है, जैसा िक गीता म कहा है , िक न तो आ मा जीती है न मरती है शरीर मरता है आ मा अजर, अमर है। पूवाचल ही नह स पूण राज थान देश म मृ युभोज पर परा करीित ु के प म या त है। यहाँ कह -कह बामनवास, गंगापुर, करौली तहसील म तीसरे के िदन भी भोज क गलत प रपाटी है। यारह बौर 1. सं क ा नानूराम, राज थानी लोक गीत पृ. 84, 85

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बारह के िदन मृ युभोज (नु ते) क पर परा है। िवशेषतया मीणा जाित म इस ित ठा का न मान िलया जाता है िक तु पूवाचल म िश ा के बढ़ते भाव के कारण मृ युभोज को एक सीिमत दायरे म करना ारंभ कर िदया है। इस कार पूवाचल म सोलह सं कार क प रपाटी भारतीय सनातन धम क एक पार प रक वृि भी कह सकते ह। लोको सव

भारतीय सं कृ ित म अलग-अलग मौसम के अनुसार य हार होते ह। ये य हार ही है िजनसे राज थानी सं कृ ित क सजीवता कट होती है। इन अवसर पर लोकमानस व छ द होकर झूम उठता है। राज थान क भूिम याग, बिलदान एवं य हार क पिव धरा है। पूव राज थान म चिलत कहावत है ‘सठत वार नौ ितहवार’ अथात् स ताह के सातवार होते ह, जबिक नौ य हार मनाये जाते ह। इन य हार से पर पर ेम, सहयोग, याग एवं समपण क भावना जा त होती है। होली, दीपावली, दशहरा, र ाब ध, ीरामनवमी, ी कृ ण ज मा टमी, तीज, नवरा े, गोव न पूजा (पूवाचल) म िवशेष प से मनाया जाता है। इन सभी का लोक सािह य म वणन पव सव का िच ण मुख है। (1) गणगौर :- राज थान म गणगौर क पूजा-अचना िवशेष मह व रखती है। चै शु ल प क तीज को गणगौर (िशव पावती) क पूजा अथात् गण-िशव गौर पावती। अत: गणगौर पव म िशव व पावती क आराधना कआ ु रयाँ अपने िलए उपयु त वर व नारी अपने अख ड सुहाग क कामना करती ह।1 राज थान म गणगौर पूजा के िलए एक कथा िस है। ‘ ा के पु द बड़े बलवान थे। देवताओं म उनका बड़ा आदर था। उनके एक सु दर क या ने ज म िलया। उसका नाम पावती रखा गया। आगे चलकर उमा व पावती के नाम से िस 1. महिष मुरा रलाल िव ा भूषण (सं ह क ा), पार प रक मांकिलक लोकगीत .सं. 1998 पृ. 14

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हई। बा यकाल म ही पावती का झुकाव िशव जी क और था। जब बड़ी हई तो ृ देह हो िशवाराधना म लीन हई। पित प म पाने के िलए घोर तप िकया। वह कश गयी। तब िशव ने दशन िदए। उसक ढ़ िन ठा, िन काम भाव देखकर भगवान् शंकर स न हो गए। उ ह ने िविधपूव क पावती का पािण हण िकया और पावती ने िशव जी को पित प म ा त िकया। िववािहत के साथ अिववािहत क याएँ हरी दबू से पानी के छ टे िमट् टी क गणगौर के देती ह तथा िववाह व सुखी जीवन क कामनाएँ करती ह। होिलका दहन के दसरे ू िदन चै कृ णप ितपदा से गणगौर पूजन क शु आत होती हैखैलण दया गणगौर भँवर हाने पूजण दया गणगौर। ओ जी हारी सहे यां जोव बाट भँवर महाने पूजण दया गणगौर....।

गणगौर पूजन कर नव िववािहताएँ हरी भरी यौवन से प रपूण बाडी को देखती ह तो स निचत होकर गीत गाती ह। हारै माली री बाड़ी फल रही, हारी मालन जायो है पूत। जुग-जुग जी ओ ए वंश वधावण।।

गणगौर पूजने वाली लड़िकयाँ गणगौर माता से कहती है िक हे माता। िकवाड ं खोलो, हम पूजने वाली बाहर बैठी ह। गणगौर माता उनसे पूछती है िक आपको या वरदान चािहए। तब सभी लड़िकयाँ एक साथ कहती ह िक हम अ न धन ल मी ँ जलवल जानी िपता, संता देई माता कान कवर सवार ुँ भाई, राई सी भाभी, ऊटपर बहनोई सुहागन चूड़े वाली बहन लाल दसाता बूआ , िबणजारी आिद वरदान माँगती है। िववाह पूण बनौरा िनकालते ह। उसी कार गणगौर का बनोरा िनकालते ह। इसी िदन जयपुर क गणगौर का बनोरा िनकालते ह। इसी िदन जयपुर क गणगौर ही नह पूव राज थान का गणगौर मेला अित िस है। दसरे ू रोज भोजन पानी कराकर के ‘एक-दो-तीन-चार पाँच-छ: सात-आठ नौ-दस यारह-बारह तेरह-चौदह प ह-

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सोलहा ई वर पावती भोला कहते हए पूजती ह तथा कएँ ु आिद म ितमाओं को िवसिजत करती ह। राज थान म कहावत है ‘‘तीज यौहार बावड़ी ले डबी ू गणगौर।” जागो जागो जी बीरमाद जी रा जूत गौर चली घर आपके।

2. शीतला टमी :- चै कृ ण आठे को शीतला पूजन होता है। पूवाचल म मा यता है िक शीतला पूजन से माता (चेचक) नह िनकलती ह। इससे एक िदन पूव रा दापोआ या खाना गुलगुले, राबड़ी, गंजी रोटी आिद बनाकर राि का रखते ह। दसरे ू िदन िमट् टी के सकोर म साद रखकर माता को ठ डा भोग लगता है। पूवाचल म सेड़माई भी कहते ह। सद के बाद अचानक मौसम बदलता है तो अ सर इस बीमारी का डर रहता है अत: लोग शीतला को देवी माता कहकर पूजते ह और उसे ृ करना और उ ह िकसी कार का क ट ाथना करते ह िक तुम हमारे ब पर कपा नह होने देना।1 पूवाचल म िववाहोपरांत शेउ चौरा क भाँित नव िववािहत के गठजोड क प र मा िदलाने क पर परा है। रोली, मोली, ह दी, च दन का ितलक, दीपक करते ह तथा उसे जल के छीट घर म लगाते ह। उस िदन तक बासा खाना खराब नह होता है दसरे ू िदन से ठ डा खाना खराब होना शु हो जाता है। सूरजमण जी ओ दरवाजा खोला, थापर हैर करैगी माता शीतला, ओमपरकाश जी ओ दरवाजा खोला, थापर खश ु होय माता शीतला थाने देसी आवजइला माता शीतला।

3. नवरा रामनवमी :- चै शु ल ितपदा से नवमी तक नवरा पव मनाया जाता है। यह पव आसोज म हष लास से मनाते ह। पूवाचल म करौली वाली कै ला मै या के ल खी मेला भरता है। िजसम राज थान, म य देश, उ र देश, 1. महिष मुरा रलाल िव ाभूषण : सं ह क ा पार प रक मांगिलक लोक गीत .सं. 2001, पृ. 28

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िद ली, ह रयाणा आिद सभी देश से भ त आते ह तथा पदाितय क मेले म ठहरने क उ म यव थाएँ होती है। दगा ु तुित हेतु जवारे बोते ह तथा काय िसि हेतु पूजापाक क जाती है और दैवीय शि य के आशीवाद क कामना करते ह। कछ ु लोक नवरा करते ह, तब देवी क पूजा का उ ापन अ टमी को क याओं को भोजन व दान पु य से पूरा करते ह तथा ‘चै शु ला नवमी को रामनवमी मनाई जाती है।’ मयादापु षो म ‘ ीरामजी’ का ज म इसी िदन हआ था। अत: पौरािणक झांिकय के साथ ीरामजी क सवारी िनकाली जाती है लोग लापसी, चूरमा आिद पकवान बनाते ह।1 पूव राज थान म ‘नया संवत्’ शक संवत् आिद का ारंभ मानते हए नववष क मंगल कामना हेतु चावल बुरे को भोजन के प म शुभ मानते ह। 4. अ य तृतीय (आखातीज) :- राज थानी पूवाचल डांग े क पावन भूिम म अ य तृतीया मनाई जाती है। इस िदन लपटा या गुलवा या अथात् आटे का लपटा बनाया जाता है। इस िदन ये क शुभ काय के िलए मुहत क पूछने क आव यकता नह होती है। न व गृह वेश व िववाह आिद मांगिलक काय के िलए पंचाग क आव यकता नह है। ‘अनबूझा मुहत भला कै तेरस कै तीज’’। पूवाचल देश म मीणा जाित के छोटे -छोटे (18वष से कम) उ के बालक बािलकाओं को को प रणय सू म बाधते ह। वैसे तो वय क के भी येक िह दू जाित समुदाय म िववाह होते ह िक तु बाल िववाह अबूझ मुहत होने के कारण िकसान भी खेती से अ नो प न कर काय मु त हो जाता है तथा दसरा ू कारण फसल बेचकर धनाजन करता है। अत: उसके पास पैसा होने पर मांगिलक काय करता है। अ य तृतीया (आखातीज) के िदन बड़े तर पर अबूझ सावे (िववाह) स प न होते ह। 6. तीज :- राज थान देश का हष लास पूण मनाया जाता वाला मिहलाओं का मु य य हार है तीज। ावण शु ला तृतीया को मनाया जाता है।2 एक 1. न द लाल क ला : राज थानी लोक सािह य व सं कृ ित .सं. 2000 पृ. 13 2. कमलेश माथुर : लोक सं कृ ित के सोपान पृ.सं. 08

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िदन पूव नव िववािहत के वरप ारा िसंजारा लाने क पर परा है। पूवाचल म इसे ‘िसंजारा या िसंघारा’ कहते ह िजसम घे वर, फल-फल ू , िम ठान, शृंगार का सामान र सी, पाटकली आिद के साथ िखलौने लाने का िवधान है। बंधेज क साड़ी व लह रया पहना ि य को सुहाग के िलए उ म माना जाता है सावन आयो रे िपया। कोई आई रे ह रयाली री तीज। िहंडोले गढा दे च पा बाग म जी। हे जी कोई-हाँ ह बे कोई जी। सात सखी पर ये िपया झूलती जी। बीच म झूलती कवर ु िनहाल रे जी।।

बाग म झूले पड़ते ह और सिखयाँ गाती है सखी री चलो दशन कर आए। झूला डार है कदम क डार। सखीरी एक संग झूले रािधका रानी। कोई एक संग कृ ण मुरा र सखी।।

ावण मास म सास बह एक साथ नह रहती है तो नवोढा को ि यतम क याद सताती है, वषा ऋतु म चार और हरा-भरा य बूँद क मंद बरसात िवरह को अिधक कट करती है। पूवाचल म जगह-जगह तीज के मेले लगते ह। जयपुर म तीज क सवारी िनकलती है। “सावन आयो री बहना सुहावनो, िबिटय का यौहार सबकाऊँ पीहर को जाये, हमह तो जायगे अपनी माय के वीरा सावन आवो री बहना सुहावनो िबिटय का यौहार झूला तो ढरायदै भैया मेरी बाग म एकोई डरगई रे समडोर।”

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7. र ाबंधन :- भाई बिहन का पिव र ता नेह का तीक र ाब धन ावणमास क पूिणमा को मनाया जाता है। एक िदन पूव गोबर ितलक लगाने क पर परा पूवाचल म है। ‘शुभ-लाभ’, ‘ र ी-िसि ’ बनाकर भूण भोग लगाकर राखी बांधी जाती है। भाई ारा संकट म बहन क र ा का वचन िनभाता है। तथा बिहन भाई को मुख मीठा कर राखी बाँधती है। र ाब धन का अथ है ‘र ा का ब धन’ अथात् बिहने भाई को र ा सू बाँधती ह तथा भाई जीवनपय त बिहन क र ा का वचन िनभाता है। राखी बांधने के बाद भाई दि णा व प नगदी या उपहार भट करता है। पूवाचल िह डौन, गंगापुर, करौली, माधोपुर े म धम के भाई बिहन बनाने क रवाज है, जो खास भाई बिहन से भी बढ़कर पिव र ते को िनभाते ह। यह गीत इस को कट करता है। आयो राखी को य हार, ीत रो रंग भर गयो। बहना बांधन लागी सूत भाया को मन भर गया।। × × × सावन आयो री बहना िबिटय का यौहार सब काऊ पीहर को जाये हमऊँ तो जायगे अपने वीरा × × × िबिटय का यौहार झूला तो ढरायदै भैया मेरी बाग म ए कोई डर गयी रे समडोर।1

1. गीता देवी : ँ धपुरा (माँसलपुर) गाँव क मिहला से सा ा कार।

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भाई बिहन के ेम क पूवाचल म कई लघुकथाएँ है। िजनका लोकगीत के मा यम से बखान िकया जाता है । जाित धम व िलंग भेद से ऊपर उठकर स पूण देश को एक ब धन म बाधने वाला पिव य हार है। करौली व सवाई माधोपुर म र ाब धन के िदन पतंग उड़ाई जाती है। 8. ी कृ णा ज मा टमी :- भा प क अ टमी को मनाया जाने वाला िह दू धम का पिव पव है। पूवाचल म ज े म मनाया जाने वाला ज मो सव का अपना अपूव मह व है। कै ला मै या ी कृ ण क बिहन िबजली है जो िक देवक के आठव पु से पहले उ प न वसुदेव क सातव स तान है। उस िदन ात: काल से पूजा-अचना, दानपु य का िसल-िसला शु होता है। त म के वल जल पी सकते ह। जब तक का हा का ज म नह होता है तब तक भ तगण भजन म लीन रहकर स संग करते ह। मंिदर को सजाया जाता है तथा राि 12 बजे भगवान् के ज म क ित ा क जाती है। करौली के मदनमोहन मंिदर म िदन-भर भजन क तन का आयोजन होता है। भ तगण भि म भाव िवभोर होकर कृ ण लीला का गुणगान करते ह। ज मो सव के बाद महाआरती होती है। धिनये क पंजीरी, तुलसी का भोग दही से लगता है। त करने वाले शाकाहार करते ह। और दसरे ू िदन सीधा (आटा, नमक, िमच, घी) आिद देकर पु य अिजत करते ह। यह पव रा टीय पव है। 9. गोगानवमी :- ज मा टमी के दसरे ू िदन भा कृ ण नवमी िजसे पूवाचल म ‘गूगानवमी’ भी कहते ह। इसे सप का देवता या गोगाजी कहा जाता है। ि याँ दीवार पर 7 कार सप क लाइन ख चकर क डे पर भोग लगता है खीर व 9 पूओं से भोग लगाकर चु लू भराती ह िफर देवताओं के गीत गाती ह। र ा ब धन के नव िदन बँधी हई रािखय को खोली जाती है। कह -कह पर गोगाजी क कथा सुनाती है। 10. गणेश चतुथ :- अमंगल को मंगल करने वाले गौरी पु गणेश भा शु ल चतुथ को पूवाचल म ‘ड डा चौथ’ (गणेश चौथ) के प म मनाते ह। इस

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िदन गणेश जी के अिभषेक कर पूजन िकया जाता है तथा मंिदर म सजावट होती है तथा घर-घर म गणेश ितमा क पूजा अचनाव चोला चढ़ाया जाता है। पु तक पूजन कराने क पर परा है। पाराशर गौ वाले ा ण क राखी भी इस िदन मनाई जाती है। गंगापुर, माधोपुर, धौलपुर, करौली म कछ ु महाजन भी इस िदन राखी का य हार मनाते ह। धनव तरी क पूजा का अमाव या को सांय काल या राि को ि थर ल न म खीर बताश से ल मीपूजन िकया जाता है। सभी लोग के ारा नवीन व धारण िकये जाते ह तथा पूजा के बाद बड़े -बुजुग के आशीवाद क पर परा रही है। बही खाते का पूजन भी होता है। ब ब पटाखे चलाये जाते ह। चावल, बूरा व दाल का भो य मु य होता है। दसरे ू िदन गोव न क पूजा होती है। गोबर का बनाकर बछड़े को आगे कर ‘मानसी गंगा िसर हरदेव गोबर क प र मा देत ’ बोलते हए पकवान का भोग लगाकर नाभी म दही रखकर साद लेते ह। बाद म पटाखे छोडे जाते ह तथा राम-राम िकया जाता है। 8 िदन बाद गोपा टमी के िदन गौमाता क पूजा करते ह तथा गुड़-दिलया दान िकया जाता है। 11. तुलसी एकादशी :- तुलसी िह दू धम थ म मह वपूण दवा व दआ ु के प म मानी गयी है। तुलसी एकादशी को दसरे ू श द म तुलसी िववाह कहते ह। एकादशी को मां ड़ने बनाये जाते ह तथा देवताओं को उठाने के िलए छबड़े के नीचे बेर आिद रखकर दीपक जलाते ह तथा गीत गाते हए मिहलाएँ थाली व अ य वाध ारा देव को ाथना करती है। शािल ाम तुलसी िववाह होता है , मिहलाएँ पूजाकर बुजुग मिहलाओं से आशीवाद लेती ह। तुलसी का वृ येक घर म लगाकर पूजा जाता है। इससे कसर जैसी बीमारी पर िवजय पा सकते ह। िववाह आिद मंगल काय के अबूझ मुहत होते ह तथा कोई भी शुभ काय का ारंभ होता है इसके बाद माघ शु ल पंचमी को बसंत पंचमी मनाते ह। फा गुन कृ ण तृयोदशी को त तथा चतुदश

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को िशव िववाह होता है। इस िदन पंचामृत दधू व गाजर , बगन, बैर व भाँग धतूरा ारा िशव पावती पूजा क जाती है तथा गाजर का हलवा ारा शाकाहार िकया जाता है। 12 ा प (कनागत) :- आसोज माह के ितपदा से ा कम शु हो जाते ह। इस समय पर क ओं , गाय व ा ण को भोजन कराकर व व दि णा दी जाती है। इन िदन म खीर, पंचधारी के लड् डू, इमरती (कगन ं ) चाँदी (बड़े) बनाने का िवधान है। ऐसी मा यता है िक हमारे ा म ा ण गाय व कौओं को भोजन कराते ह, तो वे हमारे मृतक यि य को अिपत होता है।1 ये ा िपतर क आ मा क शांित िलए िकए जाते ह। 13. दशहरा :- नवरा का समापन आसोज माह म मनाया जाता है। अस य पर स य क िवजय होती है। रावण पर ीराम ने िवजय हािसल क थी। यह पूवाचल व कोटा हाड़ौती े म रावण दहन बुराई पर अ छाई क जीत, अधम पर धम क िवजय के प म मनाया जाता है। रामच रत मानस के आधार पर गाँव म ‘रामलीला’ का आयोजन प ह िदन तक चलता है। काितक का ारंभ धान के पकवान बनाते ह। आदश क नई राह िदखाई जाती है। िफर शरद क पूिणमा आती है। सोडस कला चन मा क मिहमा के कारण 108 बार सूई से धागा िपरोया जाता है। 14. दीपावली :- पूव राज थान ही नह स पूण भारत का मुख य हार है। ीराम ारा रावण िवजय पय त अयो या आगमन पर मंगल गीत ारा महा आरती क तथा रोशनी क जगमगाहट से मंगल हआ। दशहरे के बाद पूव राज थान म घर म रंगरोगन, क चे घर म िलपाई पुताई करते ह। धन तेरस के िदन नवीन बतन व खरीददारी क जाती है। छोटी दीपावली को दीपक पंचलो कपाल, दस िदकपाल देवताओं के नाम के दीपक जलाये जाते ह। दीपावली के िदन ल मी व गणेश क पूजा क जाती है और लोग सभी के घर दीपक जलाने जाते ह व सुख-समृि क कामना क जाती है। दीपावली पूव राज थान म धूमधाम व हष लास से मनायी जाती है। 1. सागरमल शमा िचड़ावा अतीत से आज तक पृ. 326

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दीपावली गोवधनपूजा का गीत— है ते जाय मानसी गंगा यालै प रक बा सात लगाले तेरे कटे ज म के पाप, सेवा गोवधन क कर ले तेरे मनचीते ह जाये, सेवा गोवधन क कर लै ीगोवधन महाराज तेरे माथे मुकु ट िवराज रहो तेरे का गा को जाये ी कृ णा-कृ णा कहने ते ी गोवधन महाराज तेरे माथे मुकु ट िवराज रहो।

15. मकर स ांित :- िह द ू धम म दान पु य का िवशेष मह व है। पुराण व योितष के अनुसार सूय का मकर रािश म वेश मकर स ांित कहलाती है। 14 जनवरी को मकर स ांित उ सव पर सूय उ रायण हो जाता है। िदन बड़े रात छोटी होती ह। इस समय पर दान कु को गु लगुले, गरीब को अ न व व दान तथा गाय को चारा दान करते ह तथा रा ता साफ करते ह व नान कर मछिलय को दाना, च िटय को आटा छोड़ते ह। पूवाचल म ब च ारा कु ती, फटबाल , बालीबाल, ु पतंगबाजी व कचे ं खेलने क पर परा हई है। 16. होली :- रा टीय एकता का तीक फा गुन को पूिणमा को मनाया जाने वाला य हार है। पूव राज थान म फाग, चंग पर गाये जाते ह तथा मिहलाएँ मंिदर म गीत क मधुर विन सुनाई देती है। आयो होली का य हार, ीत को रंग भर यो। सब खे ल न लागै फाग, गाँव म चंग बज यो। ढोल बजावे चंग बजावो सब िमल नाचो गावो।।

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राज थानी लोक नृ य म िसि ‘घूमर’ को ही िमली है। िबलकड़ी ु व ढाल थापने क पर परा पूवाचल क है। एक माह पूव (डांडा) खेजडी क हरी टहनी चौराहे पर गाडी जाती है। िजसे हलाद भ त क तीक मानी जाती है। गोबर क होिलका बनाकर पूजते ह। पूजा के बाद मुहत अनुसार सायं के बाद ‘दहन’ क ि या होती है। जौ, चने क िसकाई करते ह। पूव अचंल म कछ ु मा य ताएँ है िजस िदशा म अि न क लौ जाती है उस िदशा म फसल अ छी होती है। ढाल क राख घर म मु य ार पर दोन िह स पर डालने से बा यापदाओं से मुि होती है। ज क होली का पूण भाव पूवाचल म है। स पूण जगत् बसंत मय ि गोचर होता है। आयो फागुन मास, या फागुन हमारो िपया घर नाई, देव रया नादान, सखीरी आयो फागुन मास। नाक चुनी नकबेस र सौहे झलकारी छिव यारी जी, आयो रे फागुन मास िपया संग खे लो न होरी।

होले के उ सव म धुल डी दसरे ू िदन मनाने म टटेू र त को जोड़ने क कवायद अचंलवािसय का दय उ साह, फूित और हष क तरंग से उ ेिलत हो उठता है— गौरी तेरे नैना बड़े कटीले। फागुन म ऐसेन चाइये, ये िदन रंग रंगीले। × × × होली खे ले उमा संग ि पुरारी कर शृंगार उमा भई ढाडी, देव हँसे सब दे तारी। × × × म तोिह संग होली खे लूँगी लोक लाज को मोिह डर नह , दिनया ु के बोलन सह लूँगी।

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ज म होली मची है। राधा सिखय का आह् वान करती है‘चलो-चलो सखी खे ल होरी। िगरी खोरी वर जोरी। बनठन सब ज योिषता, ले गुलाल िनकालो बैर।।’

रिसया व याल के प म भी होली मनाई जाती है ‘बरसाने म सामने क होरी रे, लाल गुलाल भये बदरा। मारती भर-भर झोरी रे।।’ “काना बरसाने म आजाइयो बुलायगयी राधा यारी।”

करौली के मदन मोहन मंिदर म होली के कई िदवस तक राग-रंग होता रहता है— आ जइयो याम बरसाने गाँव तोय होरी खबू िखलाय दऊँगी काना य मत जाने भोरी है हम बरसाने क गोरी ह। तेर कर सोलह शृंगार तोय नर से ना र बनाय दऊँगी तोय लहंगा चोली पहनाऊँगी तेरे माथे िबि दया लगाऊँगी तोय होरी खबू िखलाय दऊँगी।1

1. सीता देवी ामीण मिहला (छोटी उदेई) से सा ा कार।

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लोक ि य गीत म रिसया मुख ह। शृंगार व भि परक रिसया गाने वाले घासीराम और सीताराम िस ह। मेरा बारो सो क हैया कालीदह पैखेलन आयोरी। काहे क तने गद बनाई, काहे के डंडा लायो री ... मेरो रेशम क पट गद बनाई, च दन का डंडा लायारी , मेरा बारो सो क हैया, काली दह पैखेल न आयोरी।।

याल म मांसलपुर, करौली, िह डौन, गंगापुर,

वाद, वैर िस जगह

रही ह। िविभ न जाितयाँ पूव राज थान अंचल म स पूण भारत म पायी जाने वाली सभी जाितयाँ िनवास करती ह। इन जाितय ने लोकजीवन का उ नत करने म अपूव योगदान रहा है। इन सभी जाितय का िवशद िववेचन िन नानुसार है। 1. ा ण :- राज थान के पूवाचल देश म ा ण को सव च थान ा त है िक तु कत यिन ठता, लालच, िभ ावृि पाख ड का बोलबाला अिधक होने के कारण आज निच खड़ा होता है। आज इनक ि थित दयनीय व शोचनीय है— ‘‘बामन बारो बुकराट। पांडे जी पछतओगे, वही चने क खाओगे। बामन को बैल। बामण का छोकरा, खाय भरै कै चर मरै। बामन कु ा नाऊ जाित देिख बुराई। भरी मथािनयाँ फली ू बमिनयां? बामन वचन मािणक।’’1

ा ण का वचन ामािणक होता है।

1. डॉ. गोिव द रजनीश पूव राज थान के अंचल का लोक सािह य पृ. 174

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2. वै य :- विणक जाित के लोग दरदश होते ह। वभाव इनका कजू ू ं स होता है। िवपित म तथा धािमक काय म यय करता है। ‘बा य िलखै पढै करतार’। बा या िलखता है उसे ई वर ही पढ सकता है — ‘बिनया बनेटा गुर म चटा। खाय भरो कर कटा। × × × ठलुआ बिनया सेर बाँट तोले। × × × भूले बिनया भेड़ खाई, अब खाऊ तो राम दहाई। ु × × × बिनया िम न वे या सती।।’

पूवाचल े म वै य को मेवे के वृ क उपमा दी है , बिनया का इ कार कर देने पर िफर नह देता है। इसिलए उसका नह कहना बुरा है। काितक क वषा म बिनये के बुि , चातुय वाक् पटता ु अिधक होती है। 3. मालाकार :- मालाकार खेतीहर स जी, फल बोने व बेचने वाली जाित होती है। मािलय म दो कार के होते ह। वनमाली तथा फलमाली। डांग े म वन ू माली व फल ू माली दोन कार क ह। माहर , कटा रया, राजो रया गौ के सैनी समाज क पूव राज थान म सं या अिधक है। इनके कबे ु र के पु महावर दो भाग म बाँटा है। पवाँर, दइ या, िमटोबा, खडवाल, चांदोिलया, जमालपु रया, पापाटवाण, सूईवाल, राजो रया आिद मुख है। आज के समय म करौली, धौलपुर, सवाई माधोपुर, िह डोन, गंगापुर े म िश ा का भाव इस जाित म कम है लेिकन धीरे धीरे िश ा के े म मिहलाओं क सं या िनर तर बढ़ रही है। 4. जाट (चौधरी) :- वैसे तो जाट समुदाय पि चमी राज थान का शेखावाटी बाह य है िक तु पूवाचल ज भरतपुर, िह डौन, करौली म भी इनक तादाद बहत है। इस जाित का वभाव अ खडपन के िलए िस है। पूवाचल म

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ृ , पशुपालक व जम दार के प म जानी जाती है। कहावत िस है ‘‘जाट कषक जवाई भानजा रेवारी और सुनार’’ ये कभी िकसी के साथी नह होते ह। इनसे यवहार से परखा जा सकता है। अथात् यवहार म कमी क कहावत है। ज भाषा म कहा हैजाट कहे सुन जाटनी, याही गाम म रहनौ। ऊँट िबलाई लै गई तो हाँजी हाँजी कहनौ।।

आगे एक कहावत और देख नट िव ा जानी। पर जट िव ा नाही जानी।

5. राजपूत :- वैसे तो स पूण राज थान म राजपूत जाित का वच व रहा है िक तु पूवाचल क वीर भूिम म रणबाँकु र क वीरता का गुणगान करना अितशयोि नह है। मातृभूिम पर अिधकार करना ही राजपूत क पहचान है। ‘राजपूत क जात जमी।’1 माता और मातृभूिम क आन और शान के िलए मर िमटने क कसम मुख ह। 6. तेली :- तेल िनकालकर ितलहन क खल बेचने वाले तेली कहलाते ह। लोकोि यां िस ह। ‘तेली का बैल’ अ यिधक प र मी होना। ‘तेली रे तेली तेरे िसर पर को हँ।’ अथात् तेली के म तक पर को ह अथात् यथ का बोझ। तेली ते धोबी कब घािट बांको म गरा बाक लािट।। × × × तेली खसम करकै का पानी ते हाथ धोव।

7. सुनार और लुहार :- सोने के आभूषण वाला वणकार तथा लोहे का काय करने वाला लोहार (लुहार) एक कहावत है ‘सौ सुनार क एक लुहार क ’ 1. सं. क हैया लाल सहल : राज थानी कहावत ि .सं.स. 2005 पृ. 129

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अथात् सुनार क सौ चोट और लुहार क एक चोट कामयाब होती है। ‘लोहो जान, लुहार जाने, ध कन हारे क बलाय जाने।’ कहावत है िक सुनार माँ के गहने म से भी नह छोड़ता है। 8. चमकार (चमार) :- पूवाचल म मीणा जाित क तरह चमकार (चमार) जाित क सं या भी पया त ह। ढढ को सुरंग म भी बेगार कोरी जाित का काय दरी बुनना। कु हार का िमट् टी के बतन बनाना व चमड़े का काय करना चमकार का काय होता है। नट तमाशा िदखाते ह। धोबी कपड़ा धोने वाली जाित है। ‘धोबी का कु ा घर का न घाट का।’ धोबी ते न तेली घािट। बाको म गरा बािक लािट।।

इस कार पूवाचल िह डौन, धौलपुर, भरतपुर, वैर, भुसावर, करौली, गंगापुर, बामनवास, सवाई माधोपुर, ख डार े म लोक सािह य म इन सभी जाितय का िववरण िमलता है। 9. मीणा (मीना) :- पुराण के अनुसार मीणा जाित क उ पि मीन भगवान् या म यावतार से मानी गई है। आज क सवाई माधोपुर, गंगापुर, बामनबास, िह डौन, टोडाभीम, धौलपुर, करौली े मीणा बाह य े ह जहाँ ृ व पशु-पालन है। िश ा का िनर तर िवकास मीणा जाित का मुख यवसाय किष होने पर भी िपछड़ा े होने के कारण इसे डांग े कहते ह। पूव राज थान का समृ े म मीना (मीणा) मैना श दो चारण कर बोला जाता है। इनके गीत म दंगल, डाचां आिद गीत को गाया जाता है। अिधकांश े म मीना जाित अ य जाितय से अिधक है। जीना है संसार म तो चीज छोड़ दो-चार चोरी, चुगली, जािमनी और पराई नार

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चोरी कै द कराती है, चुगली दे मरवाय िसर कटवादे जािमनी, घर िमटवा दे नार। × × × मीणा का समाचार आयां डाक गाड़ी म ढोला तू तो आजा मोटड़ म, म आऊँ चीलगाड़ी म। हाथ म अतर क शीशी कधा ं पै थैली तातै यू पूछँू जावाड़ा कनसा गाँव का छैला।1 ु

रहन-सहन :- राज थान का पूवाचल हरा-भरा है तथा समृि शाली देश ह। यहाँ तीन कार (उ च, म य व िन न) के लोग ामीण प रवेश म रहते ह। इनका ृ तथा पशु -पालन है। इनक आय का ोत किष ृ व पशुओं ारा मुख यवसाय किष होता है। म यम वग के नौकरी पेश लोग ह। ये यापार करने वाले धिनक वग के िगने-चुने लोग ह। यहाँ उ ोग-ध ध का अभाव है। कमर तोड़ महँगाई म िकसान मनवांिछत पेट भी नह भर सकता है। िनधन यि क मूलभूत सुिवधाओं का अभाव है। अमीरी गरीबी का भेद भी यहाँ प ट िदखाई देता है। उपज :- वषा क ि से औसतन बा रश होती है। िक तु िसंचाई के बाँध, नहर व निदय क सं या कम होने के कारण कछ ु भू -भाग को ही पानी का लाभ िमल पाता है। वैसे तो राज थान म पि चमी िव ोब से बा रश होती है। पूवाचल म पांचना बाँध, च बल क सहायक निदय का लाभ धोलपुर, सवाई माधोपुर के े म कछ ु जगह को पानी िमल पाता है। लगभग दोन फसल होती है। खरीफ क फसल म बाजरा, मोठ, उड़द, मूँग, गँवार, चोल व रबी क फसल म गेहँ , जौ, चना, सरस , राई, आंवला, ग ना, मैथी, धिनया, याज, लहसून आिद क पैदावार होती है। फल म अनार, सवाई माधोपुर े के अम द िस ह। नीबू , कै री,

1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोकसािह य, पृ. 42

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इमली, नारंगी, लेहसवा आिद क पैदावार खबू होती है। करौली , िह डोन, सवाई माधोपुर, ख डार, महावीर जी सपोटरा क लाल िमच बहत िस ह। खान-पान :- स पूण भारत म खान-पान राज थान का है, जो िक पौि क भी है। पूवाचल म बाजरा क रोटी सिदय म चने व मैथी क आलन क स जी, म का क रोटी चुपड़ कर गुड़ के साथ खाने का वाद ही िनराला है। राबड़ी, दही, दधू, छाछ, रोटी, चूरमा, पूआ-पूडी खीर आिद यंजन है। पूवाचल क भोजन क िविध म अ यंत पिव ता शु ता व संयम का बडा मह व रहा है। शुि करण पय त ही भोजन िकया जाता है। पूवाचल क स यता है िक सव थम ास अ न देवता के नाम का िफर वयं खाता है। सिदय म गुड़ खीचड़ी या खीचड़ी व ित ली का तेल डालकर खाने का वाद ही अलग है। यहाँ पशु -पालन क अिधकता के कारण घी म िमलावट नह होती है। आित य स कार ेम पूवक िकया जाता है। पानी पीओ छानकर। र ता करो जानकर। मूली, नीबू तथा अम द का उ पादन अिधक होता है। प रधान :- प रधान भोजन क तरह आव यक है। जैसे खाने से पेट भरता है। वैसे ही व से शरीर ढकता है तथा िफटनेस जमती है। पूवाचल के वािश द क वेशभूषा, े ीय जलवायु और उपल ध पदाथ से स बि धत एवं सं कित क घोतक होती है। पूव राज थान अंचल क वेशभूषा का सां कृ ितक प इतना बल है िक सिदय के गुजर जाने पर और िवदेशी भाव होते रहने पर भी यहाँ क वेशभूषा अपनी िवशेषताओं को ि थर रखने म सफल रही ह। अंचल क वेशभूषा का कला मक प जीवन के अभाव क पूित कामनाओं क पूित जीवन क ललक कट करता है। पु ष के पहनावा म कता ु , धोती, पगड़ी, बंगडी, मोटी खाल क जूती मुख पहनावा है। ि य के प रधान म घाघरा, चोली व ओढ़ना, 64 किलय का घाघरा आिद नवीन व को धारण करने क पर परा है। िववािहत के प रधान

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व अिववािहत के प रधान म सलवार सूट, ज स व घघरी िबलाउज का अपना मह व है। पूवाचल म पगड़ी का अनुिचत स बोधन अपमान सूचक माना जाता है। के स रया, चूनडी व गुलाबी सफे द पगिडयाँ िवशेषता पहनी जाती ह। आज के पा चा य भाव के कारण धिनक वग के कमचारी कोट, पे ट, शट, टी-शट, चढ् ढा धारण करते ह। मुसलमान ाय: ल बी अंगरखी पर पायजामा पहनते ह और ि याँ चूढीदार पायजामा और चूनडी पहनते ह। आभूषण :- सौ दय का तीक आभूषण होता है। पूवाचल म ि याँ दैिहक सौ दय िनखार के िलए आभूषण धारण करती ह। टीका, बोरला, रखड़ी, शीश फल। ू पहले ‘बोरला’ सुहाग का तीक होता था। आजकल ह का टीका व मंगल सू को ही मान लेते ह। कान म बाली, नाथ क नथली, काँटा, गलपिट् टयां, कड़े, पायजेब, छ ले, कणकित, हाथ के कड़े, अंगुिठयाँ आिद सोलह शृंगार के आभूषण कहलाते ह। हाथ म ि याँ लाख का चूड़ा पहनती ह, जो सुहाग का तीक है। मेहंदी पूव अंचल म सुहाग क तीक मानी जाती ह।1 िववाह के समय वर-वधु प आभूषण पहनाते ह। द ु ह न के शृंगार म वण-रजत आभूषण चढ़ाये जाते ह या क यादान म िदए जाते ह। पूवाचल म सभी जाितय म गहना चढ़ाने क रवाज है। लड़का वाल के साथ-साथ लड़क वाल को भी देना होता है। लोक-देवता

राज थान क गौरवशाली पर परा म लोक देवी व देवताओं क पू जा-अचना व म नत का मह व है। राज थानी सं कृ ित, याग, तप और वीरता से ओत- ोत ह। वीरता को पूवाचल म दैवीय शि का तीक मानते ह। वचन का िनवाह, दानशीलता, गौर ा, मातृभूिम क र ा, ी र ा, परद:ु ख कातरता आिद गुण के 1. सीताराम लालस : राज थान नूतन पुरातन, पृ. 198

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कारण कई वीर देव क ेणी म आ गये ह। वीरोिचत मृ यु से लेकर महामारी तक इस समाज क उस अव था और िव वास को जगाते रहे और इनके आस-पास तानाबाना बुनकर इस लोक ने अपने ही ‘लोक देवता’ क उ पि क । पूवाचल के लोकदेवताओं का वग करण िन नानुसार हैपूवाचल के देवताओं का वग करण लोक मा यता के आधार पर उपचार के

ृ किष देवता

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उ पि के आधार पर अय

सा य कम देवता देवता ऐितहािसक पौरािणक

1. िप र-िपतराणी :- पूवाचल राज थान देश म ही नह वरन् स पूण भारत म अपने पूवज के ित ा भावना मन म रहती है। वेद पुराण म ा कम, िपतृऋण, माता ऋण और गु ऋण क चचा क गई है। िपतर क पूजा ा , तपण आिद ि याएँ क जाती है। क या म सूय आने पर ‘कनागत’ आते ह अथात् क या रािश म सूय ांित के बाद उतरते आसोज (आि वन) माह म ा तपण िकया जाता है। रामच रत मानस म िशव पावती को रामकथा सुनाने से पूव िपतर को णाम करते ह तथा वयं ीराम ने सीताहरण प चात् जटायु को मो करने क बात कहने पर बोले जटायु म आपको मो करता हँ िक तु वगपधार कर िप से यह मत कहना िक आपक पु वधु का अपहरण हो गया है, अ यथा उनक आ मा को शांित नह िमलेगी। ा म िव भोज, कौआ व गाय माता को भोजन कराया जाता है। पूवाचल ही नह राज थान म सव थम मांगिलक काय म िप क पूजा से ही काय ारंभ होता है तथा उनके िनिम पया, बताशे व पु पािद ारा थान िदया

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जाता है िफर अ य देव क पूजा का िवधान है। चाहे जडला ू हो या िववाह या अ य मांगिलक काय पूजा-पाठ सभी म इनका थम यान होता है। लोकाचार के अनुसार व व अ य समान बहन बेटी को इनके िनिम का िदया जाता है। 2. ी महावीर जी :- जैन धम को मानने वाल के देवता (ई वर) महावीरजी करौली िजले के िह डौन िसटी तहसील म मु बई रेलमाग के समीप है। चै शु ला योदशी से बैशाख कृ ण ितपदा तक ल खी मेला भरता है। इस मेले म स पूण भारत के जैन धमावलि बय के अलावा और भी आते ह। जैन भाइय के अित र त मीणा, गुजर, ा ण आिद भी मानते ह। मेले क शु आत वजारोहण से होती है। पहले सवाई माधोपुर िजले म आता था। इसका पूव नाम चंदन गाँव था। चमकार का हाथ लगाना ज री होता है। इस मंिदर को मूत प देने म जैन ावक अमरच द िबलाला का सव थम योगदान रहा। 3. िशवाड़ :- हमारे पौरािणक धम के सािह य म ादश योितिलग का उ लेख िमलता है। उनम बारहवाँ योितिलंग िशवालय (िशवाड़) म ि थत है। िशवाड़ सवाई माधोपुर िजले म है। ईसरदा टे शन से तीन िकलोमीटर उ र म है। घु मे वर महादेव घु मनाम ारा माँगे गये वरदान के अनुसार घु मे वर नाम चला। 4. कै लादेवी :- चै मास क शु ला अ टमी का मेला लगता है। ि कट ू पवत क घाटी, जहाँ कै ला देवी का मंिदर है हजार लाख भ त के क ठ वर से गूँज उठती है। नर नारी, बालक, यवक ु और वृ आ म िवभोर हो नाच उठते ह। मंद और धीमी-धीमी लय के साथ गाये जाने वाले गीत, जय घोष के साथ ती वर से गाये जाने लगते ह। देश के कोने -कोने से मनोती माँगते थे। यहाँ अ य देिवय क तरह बकर क बिल नह दी जाती है। यदवं ु ु शी होने के कारण इनका स ब ध ी कृ ण से जोड़ते ह। योगमाया िबजली हाथ से छट ू कर भूलोक के ि कट ू पवत पर कै लादेवी के नाम से िस हई। ये क यि के जुबान पर एक ही नाम रहता है।

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दिनया ु म रोशन नाम करौली वाली कै ला को, पवत ऊपर आय बास है, करौली वाली मैया को, डाँग न म कै ला गाँव, करौली बाली मैया को, दरू-दरू के या ी आवे, सुिन सुिन तेरो नाम बजे नगाड़े तेरे भवन पर करौली मैया को चैत महीना जगद बा को घर-घर मंगल धाम करौली वाली मैया को...।1 × × × कै ला देवी के भवन म घुटवन खैले लाँगु रया। दो-दो जोगनी के बीच अकेलो लाँगु रया।

इस े क लोक देवी के प म आज भी पूजी जा रही है। 5. रणथ भोर :- ादपद शु ला चतुथ को मेला रणतभँवर जी के भरता है। ल खी मेला भरता है। गणेश जी क मिहमा िनराली है। िद ली मु बई रेल माग पर 3 मील दरू सु दर ह रयाली भरी पहािडय म ऊपर एक कु ड के पास ी गणेशजी महाराज का छोटा मंिदर है। रि -िसि और भ डार भरने वाले गणपित चम कार जनता को आज भी आकिषत िकए हए है। कोस दरू ये क िववाह क कम ु -कम ु पि का रणथ भोर के गणेश जी को यि गत प से पहँचाई जाती है। रणतभँवर जी को थम िनम ण देकर आते ह। इस इलाके के मुख लोक देवता ह। 6. मदन मोहन जी :- करौली ि थत ाचीन राधाकृ ण मंिदर है। जो चार ओर से िघरे हए िह से म पाँच सौ वष पुरानी ितमा है। िजसके दशन करने मा से क याण हो जाता है। करौली े के ही नह , कै ला मै या क या ा करने वाले पदाितय को व याि य को कने व दशन क यव था आसान है। ठाकरु जी क पूजा िविधवत् होती आ रही है। भ त दशन लाभ ले रहे ह। 1. डॉ. गोिव द रजनीश : राज थान के पूव अंचल का लोकसािह य, पृ. 30

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राज थान के लोकदेवता रामदेव जी िणचा (रामदेवरा) का स ब ध ी कृ ण से जोडा जाता है। अजमाल ने भगवान् के लड् डू फककर मारा ‘‘अजमल ने भु के िसर पट् टी ब धी देखकर कहा िक नाथ आपको और यह कै सा क ट है। भु ने कहा िक एक मेरे भोले भ त ने लड् डू क दे मारी।’’1 अजमल जी के ारकाधीश ने पहले वीरमदेव का और बाद म वयं रामदेव के प म अवतार का वरदान िदया। वीरमदेव जी का ज म हआ िफर रामदेव जी ने अवतार िलया। रामदेवरा रामदेव जी ने बसाया। ‘‘समत चतुरदस साल नव म, ी मुख आप जगायो। भणैरामदेव चैत सुद पाँचे अजमल घर म आयो।।’’2

7. पाबूजी :- लोकदेवता पाबूजी आसनाथ जी के पौ और धाधंल जी के पु थे। डॉ. न दलाल क ला के मतानुसार ‘‘राज थानी वीर माला के सुमे र न रणबांका राठौड पाबूजी का ज म संवत् 1341 म मारवाडा के कोलूगढ़ ाम म हआ।’’3 पाबूजी ने गोगा जी को करामात िदखाई। ‘‘तब गोगाजी देखने गए तो या देखते ह िक जल का एक हौज भरा है। उसम एक नौका है। उस नौका म दोन घोड़े बैठे है और नौका सिहत तैर रहे ह। गोगाजी समझ गये िक पाबूजी ने भी अपनी करामात िदखाई है।’’4 8. गोगा जी :- अजयपाल चौहान के परपौ भीम का पु गोगा चौहान था। गोगाजी से स बि धत नवीन ात य म गोगाजी के नाग क पूजा होती है। तीन मिहलाएँ उनके वागत के िलए तैयार रहती ह। य िप उनके नीचे िलखे अ र िमट चुके ह। 1. 2. 3. 4.

रामदेव भि गीत : इितहास यावला सिहत सुभाष बेधडक पृ. 14 बाबा रामदेव : इितहास एवं सािह य डॉ. सोनाराम िव नोई क ला, पृ. 35 राज थानी लोक सािह य एवं सं कृ ित डॉ. न द लाल क ला, पृ. 50 राज थान के लोक देवता व लोक सािह य : पु पाभाटी, पृ. 120

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9. तेजाजी :- स पूण राज थान म तेजाजी क मा यता है। गोर क, परोपकारी, धमपरायण, ित ापालक एवं स यिन ठ जुझार क ेणी म जाट के कलदे ु वता तेजाजी का नाम अिव मरणीय है। खडनाल (नागौर) म ज म तथा पनगर (िकशनगढ़) म िववाह हआ। माता का नाम ‘लछमा’ िपता ‘ब ता’ प नी ‘बादल’ थी। भा प क अ टमी को मेला भरता है तथा क ड़ौ (नाग, िब छू आिद) का इलाज करते ह। इनके थान पर ा ण को चढ़ने का िनषेध होता है। अत: ामीण अंचल के पूव ेप म भी इनको पूजा जाता है तथा इनके थान पर जाकर धोक लगाते ह। 10. रामदेवजी :- पोकरण म 1461 म तोमर राजपूत वंश म अजमल जी के घर ज म हआ। आज भी राज थान, ह रयाणा, उ र देश, गुजरात के भ तगण रामदेवरा क पैदल या ा करते ह। इनके चम कार का बखान कहाँ तक कर। इनके चम कार को िह दू ही नह वरन् मुसलमान भी मानते ह। अत: सा दाियक एकता का अि तीय उदाहरण है। ये रामशाहपीर कहकर पुकारते ह। कपड़े का घोड़ा चढ़ता है। इस मंिदर के पास एक कु ड है, जहाँ या ी नान करते ह और उस पानी को गंगाजल क तरह पिव मानते ह। कु ड के ऊपर क िखड़क से कदकर नान करने ू से कोढ़ ठीक होता है तथा अंध को आँख िमलती है।1 11. भै जी :- त साधन म भैरवजी के साि वक, राजसी व तामसी प है। (i) साि वक - वेत वण, दो भुजाएँ, एक हाथ म ि शूल, दसरे ू हाथ म द ड, गले म आभूषण, दपट् ु टा कछनी घुंघ कड़े आिद। सौ य प, हरे रंग, वृ के नीचे दो वेत कु के साथ। (ii) राजसी - उदय होते सूय के समान लाल वण, िसर पर मुकु ट, चार भुजाय दो हाथ वरद और अभय मु ाओं म शेष दो हाथ म ि शूल और अि न सिहत 1. मदन लाल, बसंत लाल शमा, म भारती, पृ. 63, 64

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ख चर, तीन ने , म तक पर ि पु ड, नगर के समीप िनवास और पास म दो लाल रंग के कु े। ृ , आठ भुजाय, िजनम डम , (iii) तामसी - नीलवण भयंकर आकित परशु और अंकु श सिहत ि शूल खडग, पाश, सप, मु ड, अि न सिहत ख पर तथा एक हाथ म अ य मु ा म पीले के श गले म मु डमाला, पागा ि ने म तक म ि पु ड, िदग बर, कमर और पैर म घुंघ सुनसान थान व दो-तीन वण के कु े। िशव गण के प म सती क र ा करते समय उ प न हआ वह भैरव कहलाया। भवानी पु भी कहते ह। राज थान के पूव अंचल म े फल के प म पूजते ह। करौली, माधोपुर के भैरव जी क पूजा का िवधान कछ ु िभ न है। 12. मह दीपुर बालाजी :- मेह दीपुर घाटा पूव राज थान के दौसा िजले ृ से ऊपरी हवाओं म टोढाभीम के पास अवि थत है। हनुमान जी व ेत राज क कपा का िनदान व दशक को मनवांिछत फल िमलते ह। राज थान क अपे ा उ र देश, ह रयाणा व िद ली के भ तगण अिधक आते ह तथा दशन लाभ लेते ह। उपवास ( त)

उपवास :- उपवास या त करने से आ मा क शुि होती है। िह द ू धम म ृ हेतु ायि च के प म दैिहक मानिसक शुि के िलए उ पवास िकया ई वरीय कपा जाता है। िकसी भी काय म यवधान आने पर आय के िलए भी त (उपवास) िकया है। देवी देवताओं क पूजा का िवधान है। 1. नवरा :- ा प के समा होने पर नवरा थापना घट थापना क जाती है। नव ह क पूजा करके पंच लोकपाल दश िदकपाल क कल ु देवता थान देवता, िपतृ देवता क पूजा क जाती है। नव ह सोडस म डल बनाकर माता क त वीर रखते ह। जुआरे उगाते ह पंचप लव कलश पर रखते ह। गंगाजल से थान पिव िकया जाता है। रोली, मोली, अ त सुपारी, पान, पु प ल ग, इलायची, धूप,

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दीपक कर वजा चढ़ाते ह। जोत लेकर घी का दीपक जलाया जाता है। नव िदवस तक िन य माता क पूजा, इ टदेव क पूजा, दगाश ु तशती, रामच रतमानस व ीमद्भागवत गीता के पाठ करते ह। चने हलवा पूरी खीर का साद बनाकर नौ क याओं को कराते ह तथा ितलक लगाकर चरण पश कर फल व दि णा देते ह। 2. एकादशी व िनजला व शरदपूिणमा :- चै क पूिणमा को हनुमान जय ती पर पूजा-अचना क जाती है एवं उपवास रखते ह। ावण म िशव के सोमवार, दोष तथा पूण माह म ऊँ नम: िशवाय के जयकारे उठते ह। ालु कावड लाते ह। 3. करवा चौथ :- काितक कृ ण चतुथ को मिहलाएँ करवाचौथ माता का त करती है। कहानी सुनाती मिहलाएँ बुजुग से आशीवाद लेती है। तेरह िब द ु लगाकर लोटे को पूजती ह। गणेश जी क कहानी कही जाती ह। मीठ करवे अथात् चासनी के कु हड म चावल पया व लाऊज पीस या अ य व रखने का िवधान पूव राज थान म देखने को िमलता है। च मा का अ देकर ही त खोलती है तथा िचरायु पित के सुहाग क कामना करती है। 4. स यनारायण कथा :- येक माह क पूिणमा को पूव राज थान म िव णु भगवान् क कथा सीताराम मंिदर म कही जाती है। तुलसी (शाली ाम) क कथा सुनती ह। आटे क पंजीरी म बूरा व के ले के साथ दही या छाछ डालकर साद िदया जाता है। हवन करने क प रपाटी पूवाचल म है। सोलह सोमवार एवं सात वार के त पूजा करने का िवधान चिलत है। शमी वृ क पूजा भी दशहरे को क जाती है। लोक िव वास

राज थान सं कृ ित व स यता के साथ-साथ प रवेश क ि से पूवाचल म िविवध कार के लोक िव वास घुले िमले िदखाई पड़ते ह। लोकानु ठान िकसी शा ीय मा यता पर आधा रत होते ह। न िकसी पुरोिहत के मा यम या पार प रक

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रीित से जुड़े होते ह। कछ ु अनु ठान पा रवा रक रीित- रवाज धािमक कृ य से जुड़े होते ह। भाँित-भाँित के देवी-देवताओं क पूजा, भूत ेत, साधना, य एवं आ माओं क िसि , वृ एवं निदय क पूजा, त -म शकन ु -अपशकन ु , पशुपि य क बिल, थान चौिकय एवं गिद्दय क साधना एवं िविभ न जादू टोने आिद लोक िव वास के अ तगत ही आते ह। जैसे िववाह के समय खटाई का िनषेध िकया जाता है। य िक र त म खटाई न पड़े। सुसराल जाते समय ख ी व भुनी हई व तु साथ म नह भे जते ह। पािण हण कर पु वधु को कांकड पर पैर रखवाने से पूव ना रयल क चटक कराना शुभ मानते ह। ऐसी अंध िव वास क बात है। े पाल, िपतृ, भैरव, भौिमया, आखा देखना जोत देखना आिद लोक िव वास क ेणी म ही आते ह। शरीर म आकर न पूछने वाल क सम याओं को सुनकर उनका िनदान करते ह। ृ ा त करने के िलए जन सामा य लोक िव वास पर र क देवता क कपा चूरमा, लापसी और हलवा आिद का भोग लगाते ह। दि ण िदशा (लंका) यम क िदशा होने के कारण कोई भी शुभ काय नह करते ह। सभी शुभ काय पूव िदशा क ओर ही िकये जाते ह। बौवनी बगर उधार नह देना शुभ काय म छ क का आना। औरत अपने से बड़ ( वसुर, ये ठ, पित) का नाम नह लेना। लोक िव वास के अनुसार खरीद के ही ितल खाना नह तो बहकर देने वाला लोक िव वास है। राि म कपड़े धोना ताली बजाना अशुभ मानते ह। दािहने हाथ म खजुली धन ाि , बाँये हाथ म नुकसान होना। कान पर बाल नाक पर म सा भा यशाली होना। मुख पर म खी आना कलह होना। िब ली का रा ता काटना काय नह होना कु े का कान फटकारना अशुभ मानते ह। िहचक आना ि य यि को याद करना। कौआ आना अितिथ आगमन को सूचना देना। पु ष क बाँई तथा ी क दािहनी आँख फडकना अशुभ मानते ह।

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प ला िसर पर आना या धोती उलटना। नवीन व ा त होना। पूवाचल े म लोक िव वास व मा यताओं के साथ-साथ जादू-टोने भी देखने को िमलते ह। िढयाँ , िव वास धम आिद प म चिलत है। भोजन करने के उपरांत अंगडाई लेना गधे के पेट म भोजन जाना। नौकरी के यास म खाना साथ नह भेजते। पित परदेश म हो तो िसर नह धोती। रा ते म भरी मटक शुभ लकिड़याँ अशुभ होती है। राि म तारे का टटना। ू उ का पात मृ यु का सूचक है। तारा टटने ू पर देखने िनवृि ‘बड़ा फल का या नाम ी फल।’1 मोर को मोडी क ं धी आवाज से िकसी क मृ यु का संकेत िमलता है। कोचर राि म िकसी ाणी के होने का संकेत देती है। पूवाचल म यह मा यता है िक मोर को यमराज के दतू िद खाई देते ह। पूव राज थान म असं य जादू-टोने व टोटके चिलत है। इनम जन साधारण क दो मा यताएँ चिलत है। एक जो ज म-म क याणाथ िकये जाते ह और दसरे ू िवरोध और बुराई के िलए िकये जाते ह। भलाई वाले जाद ू टोन म भूत िनकालने वाले, आधा शीशी या बायवादी, सप िब छू, पीिलया, मोतीझरा, पानीझरा, बुखार के डोरे, पशुओं के डोरे। ब चा होने नजर न लगने के िकये जाने वाले टोटके । वैर िवरोधी ज -म म अपने श ु पर मूठ मारने, मरवाने, पुतले गाडने दाह लगाने , कलेजा िनकालने, वशीकरण आिद अनथकारी कृ य म िकये जाते ह। ब च को नजर का टोटका पूव राज थान म िचमटे पर ते ल क ब ी बनाकर आगलगव च पल से ब े के सामने 7 बार धरती पीट। लाल िमच नमक क ढली और राई से उतार कर चौराहे पर डाल। खसरे म तिकये के नीचे नीम क पि याँ रखी जाती है। नजर उतारने के िलए ब चे का झूंठा दधू कु े को िपलाया जाता है। होली दीवाली पर चौराहे पर मािसक धम म पार करने का िनषेध है। मंगल को िसर धोना, बुध को नई चूिड़याँ पहनना विजत है। ‘मंगल को धोइये न जूड़ा बुध को पहिनये 1. सं. मदन लाल शमा, बसंत लाल शमा, म भारती अ ैल 1995, पृ. 46

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चूड़ा।’ बुध रित को बेटी िवदा नह करते। गु को िसर व कपड़ा नह धोते ह। खानाखाते-पीते समय छ कने पर शुभ तथा पनघट जाने पर छ कना अशुभ मानते ह। ‘‘छ कत खाय छ कत पीये, छ कत रिहये सोये। छ कत पनघट कदे न जाये, आछी कदे न होय।।’’1

बुधवार के िदन हल जोतना तथा खेती काटना शुभ होता है। ‘बुध क बावणी, शु क लावणी।’ हण के समय कोई भी शुभ काय नह करते। गभवती मिहला को बाहर िनकलने के िलए िनषेध िकया गया तथा घर के सभी कोन म गे का िछड़काव करते ह। दशहरे, एकादशी व अमाव या को मरने वाला वग म जाता है। पूवाचल राज थान म मानवीय जीवन म िविवध प म लोक िव वास ने अपनी जगह बनाली है। त -म , टोने-टोटक व लोक िव वास म इतनी गहराई से न जानकर वै ािनक ि कोण भी अपनाने म रहता है। आज 21व शदी वै ािनक यगु क है िक तु धम, सं कार व पर पराएँ आज भी मानवीय जीवन को िकसी-न-िकसी माग म रोकती ह। लोक िव वास मा यताओं व लोक याल म जाद ू टोने देखे जाते ह। आ हा उदल िस लोकरसा मक गाथा है। इस कार वैिदक काल से आज तक सं कार, आ म व ऋण से िसत मानव लोक िव वास अ धिव वास व िढय से िसत रहा है। ृ धानता किष

ृ है। पूवाचल क भारत एक िवशाल जात ा मक देश है तथा आधार किष ृ पर ि गोचर है। छ : सं कृ ित प रवेश व स यता म ामीण जीवन क झलक किष ऋतुओं खरीफ व रिव क फसल के साथ-साथ हरी-भरी शाक-सि जय क पैदावार होती है। य िप पानी क कमी होने पर कओं ु नहर व िव ुत संसाधन से 1. सं. क हैया लाल सहल : राज थानी कहावत, ि .सं. सं. 2005, पृ. 125

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भूिमगत जल िनकालकर खेती को पानी िपलाने क यव थाएँ क जाती है। तीन वग के लोग म पर पर आपसी सहयोग व ेम क भावना होती है तथा िकसान ारा पैदा िकया अनाज, फल, स जी व पशुओं का चारा अ य लोग को बेचकर अपनी आजीिवका वहन करता है, िजसम समाज का ये क वग पर पर य-िव य करके सहयोग दान करता है। ृ प समाज का िवकत

ृ प भी देखने को पूव राज थान े क स यता सं कृ ित व समाज म िवकत िमलता है। ‘जमूरा’ नामक लोक कथा म छोटा-सा बालक एक दकान ु पर झूठे बतन धोता है तथा व के अभाव म कड़ाके क ठ ड सहता है। एक क बल िमलता उसे भी िपता जुएँ म भट चढ़ा देता है। जमूरा िचिक सालय म भत होता है तथा िज दगी और मौत से लड़ता है। िनदयता, चापलूसी, ई या, िवरोधी िवचारधारा राजनीितक सरगिमयाँ, शोषण, िवमाता को ई या, िवधवा के साथ अनुिचत यवहार, अनैितक ृ भ ड़ा प र त क आवाज आिद ऐसे स दभ ह िजनके कारण समाज का िवकत ि गोचर होता है। साथ ही समाज के ये क वग व जाित के िलए समपण भाव प ट झलकता है। शोषक-शोषण क नीितयाँ िस ा त क लड़ाई आिद। आज समाज के येक वग म सहयोग क भावना है। पुरानी सडी गली पर पराओं को छोड़कर मानवीय सोच प रवितत हो चुक है और पूवाचल े के िह डौन, करौली, सपोटरा, सवाई माधोपुर, गंगापुर, बामनवास व आस-पास के सभी े म समाज क नवीन प रिधयां बन रही है जो लोक िव वास के साथ-साथ समाज को नयी-नयी राह िदखाती ह। िन कष

पूव अंचल के लोकसािह य म स यता यहाँ के वािश द क जीवनचया, ृ , पशु-पालन, िववाह, गृह थी जीवन म होने वाले सं कार , प रवतन एवं किष

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लोकिव वास क नवीन छिवयाँ करौली, सवाई माधोपुर के लोकसािह य म ट य है। देवी-देवताओं म भै ं जी, भौिमया, गणेश, कै ला मैया, चौथ माता, िशवाड़, मदनमोहन जी, महावीर जी के गीत म लोकजीवन क प ट अिभ यि हई है। लोकजीवन क झाँक ामीण प रवेश म जीिवत समाज से िविश ट पहचान बनाती है। आज के समाज म िविवधता होते हए भी लोकसािह य सभी समाज को एक सू म िपरोकर सं कृ ित क पर पराओं को सँजोये हए है। मानवीय संवेदनाओं क मूल अिभ यि यहाँ के लोक सािह य म िव मान है। मेले, उ सव, योहार क मनमोहक छटा यहाँ के लोक जीवन म या त है। मानव एवं मानवे र स ब ध का सु दर संयोजन पूव राज थानी सं कृ ित क िविश ट पहचान है। 

अ याय-ष ठ

पूव राज थान के लोक-सािह य का वैि वक मह व पूव राज थान के लोक सािह य का अनुसंधान परक िव लेषण से यह प ट हआ है िक भारतीय वाङ् मय क एक िविश ट स पदा है, जो जीवनमयी गंगा स य पिव है। लोक सािह य क सरसता व वाभािवकता ट य है। पूवाचंल क स यता ‘वसुधैवकट ु ु बकम’ क भावना से ओत- ोत है। सािह य म लोक मंगल क कामना से भावी जीवन को नई राह िमलती है। जन सम याओं को समझने म लोक सािह य का ान आव यक है। समाज का आतं रक िवधान िजन तीिलय पर बना है , उसक मौिलक या या लोक सािह य के पास ही है। िजसके ारा िविवध स यताओं सं कृ ितय और समाज िनमाण के धरातल का िनणय हो सकता है। लोक सािह य म लोक-मानस िजतनी शु अव था म ितिबि बत होता है , सुरि त रहता है, उतना ही िकसी दसरे ू मा यम म नह रहता। इसम मानस के ाचीन प के अवशेष कट होते ह। फलत: लोक सािह य म जो साम ी िमलती है वह मानव क उस अव था के मानव अवशेष क है, जब वह स यता से बहत दरू था। जनमानस म पथ दशन क ि से भी लोक सािह य क उपयोिगता सहज ही प ट हो जाती है। सामा यत: मनु य कछ ु खोकर ही कछ ु सीखता है। डॉ. स ये के श द म ‘‘लोक सािह य का मू य के वल सािह य क ि से उतना नह होता िजतना पर पराओं क ि से होता है जो नृिव ान के िकसी पहलू पर

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काश डालती है। इस सािह य को आिद मानव क आिदम वृि य का चौथा कोस कह सकते ह।’’1 लोक सािह य संकलन ेिमय क लालसा रहती है िक चाहे वह मृित म रहे या पोिथय म, िक तु वे उन िनिधय का पूण सं ह अव य करग। राज थान म वह पर परा भी ाचीन काल से चलती आई है। िजसके प रणाम व प ह तिलिखत थ म भी लोक सािह य चुर मा ा म िमलता है। मा सािह य क अपे ा लोक सािह य ही ऐसा गु है जो देश एवं जाित क स यता के िवकास क , उसके जीवन क गितिविध तथा उसके सां कृ ितक धरातल के िविभ न तर क झांिकय के दशन करवा सकता है। इन पर पराओं को सुनने समझने और उनका ान ा त करने म लोक सािह य का अि तीय योगदान रहा है। भारतीय सं कृ ित के गौरवशाली इ धनुषीय रंग म सरोबार राज थान क बहरंगी लोक सं कृ ित क िव व मोिहनी छटा ने िव व म अपनी अनूठी पहचान बनाई है। आ चय जनक त य यह है िक ृ य अकाल या बाढ़ िकसी िवभीिषका को झेलने के बाद भी राज थान के कितज पूवाचंल े वािसय के मन म िमट् टी क गंध, उ साह, उ लास व स नता हष और आ था क बहरंगी छटा िबखेर रखी है। राज थान क गौरवशाली पर परा क अिवरल धारा म से विहत सं कार क िवल ण ितभा पूव े के जन-जन के दय मानस म प ट प रलि त ह तथा आमजन को नवीन दराु ह से अलग करती िदखाई दे रही है। 1. ऐितहािसक मह व :- राज थान के पूवाचंल के लोक सािह य म साम ी का भूत संचयन रहता है, जो यगु समाज और यि को इितहास को सजीवता दान करती है। समयाघात से िवलु त एवं िव मृत घटनाएँ लोकानुमित ारा लोक सािह य से य पाती ह। संसार के इितहासवे ाओं को लोक सािह य के मा यम से अतीत स ब धी अमू य साम ी ा त होती है। जो उनके ान को पु ट करती है। 1. सोहन लाल चारण : राज थानी लोक सािह य का सै ाि तक िववेचन थम 1980 पृ.सं. 1

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2. भौगोिलक मह व :- लोक सािह य के अ तगत िविभ न भौगोिलक थान , निदय , पवत समु दीप आिद का उ लेख िमलता है। िविवध कार के यापा रक संसाधन आवागमन िविभ न ऋतुओं के देशकाल जलवायु वातावरण आिद का वणन भी उपल ध होता है। लोक सािह य म देश क यगानु प ु प रि थितयाँ व भौगोिलक ि थितय का वणन ि गोचर ह। 3. नैितक मह व :- लोक का नैितक तर लोक-सािह य म अ य त सजीवता से िन िपत होता है। सदाचार और पिव िन ठा म पले हए पावन च र लोक-सािह य के अ येता को भाव िव ल िकये िबना नह रहते ह। आदश सती नारी ृ का िद य प, िपता का याग, पु का ाकितक वातावरण म पोिषत होने वाली लोकगीत क िनर तर वाह धारा िदखाई देती है। बस त म राज थान क धरती नवीन शृंगा धारण करती है , तो हमारी जनता भी ‘गैर’ व ‘घूमर’ जैसे नृ य को गाने लगती है। गम क ठंडी रात म ऊँ ट पर सवार ‘कता रये’ अपनी ल बी या ा गीत के सहारे ही पूरी करते ह। ावण भादो क बरसाती रात म जब ‘वीजनी’ ि यतम क राह देखती हई याकल ु हो उठती है , तो लोकगीत म उसके भाव फट ू पड़ते ह। हमारा कोई भी काय लोकगीत के िबना पूरा नह होता है। िनक मे लोग को अ ल आ नह सकती हराम का खाने क आदत जा नह सकती अपने हाथ अपनी िक मत फोड़े जा रहे ह आज करने का काम कल पै छोड़े जा रहे ह। × × × बरसात का पानी और जवानी का पैसा व त म न रोका तो अ लमंद कै सा।

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4. सां कृ ितक मह व :- पूव राज थानी सं कृ ित व स यता पुरातन है। समाज म या त सां कृितक अनु ठान का वणन भी लोक सािह य म लि त होता है। लोक-मानस क सां कृ ितक उ नित एवं अवनित का ामािणक मानिच लोक सािह य म ही ा त होता है। भारतीय सं कृ ित म लोक जीवन क याि है। सािह य म इसी लोक जीवन के सवागीण त व का िद दशन होता है। 5. आिथक मह व :- येक यगु के जीवन क आिथक ि थित का िच ण लोक-सािह य म लि त होता है। जहाँ लोक सािह य म धन-धा य से पूण स प न समाज म सोने क थाली म छ पन कार के पकवान परोसने का वणन िमलता है। वह द र ता त प रवार का िनराहार िदन काटने क क णापूण ि थित का भी उ लेख ा त होता है। 6. धािमक मह व :- धम समाज का अिभ न अंग है। पूव राज थान के लोक-सािह य म समाज और धम का यह अटटू स ब ध सव ा त होता है। िविभ न देवी-देवताओं क आराधना, निदयाँ, पवत, सप , वृ आिद क पूजा िविभ न कार के त, तप, य , दान आिद के आयोजन भी लोक सािह य म विणत रहते ह। िकसी िविश ट समाज के अनेकानेक नैितक एवं धािमक प का वा तिवक प रचय लोक सािह य ारा ही संभव है। पूवाचल के लोक सािह य म बारहमासा, ऋतुवणन, देवी-देवताओं, गाथा और वािणयाँ जीवन दशन एवं ेरक संग क अिमट छाप प ट प रलि त है— जीना है संसार म तो चीज छोड़ दो-चार चोरी, चुगली, जािमनी और पराई नार। चोरी कै द कराती है, चुगली दे मरवाय िसर कटवादे जािमनी, घर िमटवादै नार।

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7. सामािजक मह व :- लोक सािह य समाज क अिभ यि है। अत: इस समाज के पहलुओं का सुख द :ु ख, राग-िवराग, आशा-िनराशा, ई या ेष आिद मनोभाव का एक रीित- रवाज आचार-िवचार, रहन-सहन िव वास और पर पराओं का सजीव िच ण ा त होता है। समाज म या त सम त स ब ध का भावा मक िन पण तथा िविभ न जाितय का पार प रक अनुबंध इसम ा त होता है। िकसी समाज का सवािधक स चा और प ट प देखना हो तो उसके लोक सािह य म ही प ट प से देखने को िमलता है। पूवाचंल का समाज इन सभी िवशेषताओं को िलए हए है जो िक सामािजक पर पराओं से िमि त है। 8. भाषा शा ीय मह व :- लोक भाषा म वांिछत होने के कारण लोक सािह य का भाषा वै ािनक मह व भी है। भाषा िवकास के म म बोली का ृ असाधारण योग है। श द के ाकितक िन त ान के िलए हम बोिलय का ृ अ ययन करते ह। लोक बोिलय के ाकितक श द प लोक-सािह य म ही ा त होते ह। पूव राज थान का लोक सािह य सािहि यक मह व :- मानव अ तमन से उद्भूत रागानुरागमयी भावनाओं क अिभ यंजना सािह य है। लोक-सािह य क आधारभूिम भी मनु य दय त ी से झंकृ त उ लास और अवसर-यु त भावतरंग से रसा लािवत है। सुख दु:ख आशा िनराशा, हा य दन के किठन घात- ितघात से भावानुकू ल होकर मनु य संवेदनशील हो उठता है। जब दय क संवेदना ही मानव क वाणी म िवलि त होती है तो, सािह य क सृि होती है। सािह य सदैव लोक सापे भाव रािश है। लोक से मु त उसका कोई अि त व नह हो सकता। लोक एक अन त चेतनाशील स ा है। जो जीवन का तीक और जन का पयाय है। ाम या साधारण जनता तक ही इसका अथ सीिमत नह है , सम त चराचर मा म लोक क स ा से अनु ािणत है। मनु य

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का सां कृ ितक उ थान सािह य म य त होता है। भारतीय सािह य म िजस सं कृ ित का िच ण हआ है वह लोक जीवन म प रपु ट है। समि और यि त व के लोक सािह य का ऐसा उ ुंग ृंग है। िजस पर आरोहण करने के प चात् ही लोक वाता के ित अित िव तीण े म चतुिदक् ि पात िकया जा सकता है। यह सम सं कृ ित के ि ितज का वह िमलन िब द ु है। जहाँ राज थानी पूवाचंल क स यता प रवेश, पर पराओं म या त िढ़य व अ धिव वास से परे होकर सािह य क पराका ठा को अिजत िकया है जो िक ‘‘वसुधैव कट ु ु ब कम’’ क भावना से ओत- ोत रहा है। पूव राज थान का लोक-सािह य जीवन को सजना मक गित दान कर शोभायमान हो रहा है। सावजिनक स पदा के प म जन-मन का मोदन कर रहा है। िशशु अपनी िन छल अिभ यि लोक सािह य के मा यम से करते ह। यौवन उ माद लोक सािह य म अिभ य त है। सौभा यवती के मान संग, नाज नखरे, िवरिहणी का क ण दन और संदेश ेषण, सौितया डाह से पीिड़त नारी का दोष, सासन द एवं जेठानी का दु य वहार से िवि त दय नव िणता क कातर वा यावली आिद अनेक बाते लोक सािह य म ही साकार होती सी तीत हई है। परा मी वीर के शौय एवं साहस क सं तुित लोक सािह य म ही है। लोक सािह य लोक को द:ु ख क घिड़य म सां वना देता है, ढांढस बंधाता है और सुख के ण म उसका आ ाद करता है। पूव राज थान के लोक सािह य म िविवध िवधाएँ ज म से ही सं कार वान हई है। जीवन क परम आव यकता के प म नाना कार से मनु य जीवन म फु ट हआ है। कभी वह हँसी-मजाक के प म जनवाता बना, कभी उसने मानव अनुभूितय से ओत- ोत मानव कठ ं पर मुहावर एवं कहावत का प धारण िकया , कभी उसने वर लह रय को श द का वाहन बनाकर गीत को मूत प िदया, कभी वह ऊबते हए समाज के िलए नाना कार क िदलच प कहानी, िक से बन गया। कभी वह टेडी-मेडी लक र एवं रंग के टोक से जीवन क गहनता कट िकये हए

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लोक िच बन गया। अत: सादगी और वाभािवकता से प रपूण लोक सािह य से अिनवचनीय आन द क ाि होती है। िजसे हम श द म अिभ य त नह कर सकते। यनान ू िम रोम और चीन क ाचीन सं कृ ितयाँ लु त ाय: हो गई ह, िक तु हमारी भारतीय सं कृ ित अपनी स ा य क य सुरि त बनाये हए है। इसिलए िक भारतीय सं कृ ित क आ मा लोक सं कृ ित है। भारतीय लोक सं कृ ित दान अवदान है ‘आ मीयता’ अिशि त गँवार यि भी राम-कृ ण, िव णु, ा, राम-कृ ण के स ब ध म लोक जीवन व लोक सं कृ ित को समझ सकता है। िजसे देश का लोक सािह य िजतना अिधक समृ , अिधक यापक और वाभािवक होगा, उसक सं कृ ित उतनी ही समृ , शांत और थायी होगी। सािह य साधारण मानव के मि त क पर िजस अ ात और वाभािवक प म घुला िमला रहता है वह उसके य प स यता म ि गोचर होता है। आज हमारा सां कृ ितक जीवन सुखी और व थ है। उसका अनुभव हम तभी कर सकते ह, जब होली क ताल क वर िमलाकर होली के गीत का रस हण कर। लोक सािह य लोक सं कृ ित के िनमाण करने का उ रदािय व भी वहन करता है और उसका िनवाह करता है। य िप िच, क पना, लहर मा के िलए लोक सािह य म कोई भी थान नह है िफर भी लोक सािह य िजस तरह से लोग म घुल-िमल जाता है। उसम क पना का भी अभाव नह और न बुि त व क अवहेलना। रागाि मका वृि के स ब ध म तो सव स मत है िक उसका स ब ध यि से अिधक समि से है। लोक सं कृ ित का िवकास लोक सं कार पर िनभर करता है और सं कार पर परागत होकर भी िढ़ का पयाय नह है। वह यि गत सं कार से िभ न है जो यि क तरह ज म लेकर मरता नह अिपतु िवकिसत होता रहता है। ‘आन द’ उसका ोत है और मंगलभावना उसका ाण। पर तु वह आन द यि मानस का होकर लोक-

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मानस का होता है। लोक कला सािह य और संगीत के मा यम से सं कृ ित का जो प हमारे सामने आता है। उसम यि कह नह िदखाई देता, न तो संर क के प म न सृ टा के प म। यह िवशेषता समाजगत इकाई का ोतक है। लोक सं कृ ित िकसी भी िश ट समाज पर आि त नह रहती अिपतु िश ट समाज लोक सं कृ ित से समय-समय पर ेरणा ा त करता रहता है। लोक गीत म मनु य अपने आस-पास क दिनया ु क पूरी कहानी सुनाता है या सुनता है, देखता, िदखाता है। पानी क तरह बहते इस सािह य को स चे अथ म लोक सािह य कह सकते ह। लोक सािह य म कथा-कहानी, इितहास, पुराण, नाटक आिद। सभी एक थान पर िमलते ह। लोक सािह य के ऐसे मह वपूण अंग म ये चीज सहज ही आ जाती ह। लोक गीत सवािधक मह वपूण और मनोरंजक ह। काल, इितहास, िव वास, समाज-िव ान, धम नीित आिद ान क िविवध धाराओं के अ ययन म इनसे बहत अिधक सहायता िमल सकती है। समाज के प को िजतनी अकिृ मता के साथ लोक गीत सामने लाते ह उतना संभवत कोई दसरी णाली नह ू ला पाती।1 पूव राज थान (करौली एवं सवाई माधोपुर ) म लोकसािह य का िववेचन लोक जीवन क स यता सं कृ ित प रवेश क व तु ि थित समाज के सभी वग के लोग के गीत क अनुगूंज कट करती ह। सोलह सं कार , चार आ म , आठ िववाह क अनुभूित परक लोक कथाएँ, पौरािणक कथाएँ तथा लोकगीत ारा गुंजायमान सािह य ही लोक सािह य कहलाता है। इ ही ारा पु ज म, उ सव, िववाह के मांगिलक लोकगीत गौना के लोक गीत मुख है। िवशु भाव से प रपूण लोकगीत पूवाचंल क संकृित क िवराट् चे टा को कट करते ह। पूवाचंल म मातृभूिम के गभ म से िनकलने वाले गीत गंगा क तरह िनमल, िहमालय क तरह 1. स. रामनाथ सुमन, श भु बहगुणा का लेख, लोक म सािह य म लोक जीवन क यापक अनुभूित, पृ. 196

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अिडग और शरद के श द म मंिदर क भाँित पिव है। सद्गुण से स प न मिहलाओं क उि याँ भी गंभीर और चा रि क मह ा को य त करती है। उनम संकु िचत िवचार कभी नह आ पाते ह।1 ृ राज थान के िविवध कार के ाकितक वातावरण म पोिषत होने वाले लोक गीत के िलए िनर तर वाहमयी धारा भी िविवधता से पूण है। बसंत के मौसम म पूवाचंल राज थान क धरा मानो शृंगा रत हो गई है। ‘गैर’ ‘घूमर’ आिद नृ य से बसंत आगमन क सूचना िमल जाती है। ‘तीज’ के झूल म लोक गीत क म हार सिखय का पर पर हँसना, िमलना, िमलाना व एक दसरी ू के ित उ प न ेम का माहौल लोकगीत म प ट प रलि त होता है। देवी देवताओं को लोकगीत से स न िकया जाता है। अंधेरी रात म कएँ ु पर चरस चलाते ‘वा रये’ लोकगीत के ारा ही अपने प र म को सरस बनाते ह। इसी कार ी पु ष खेत म काम करते हए पशु चराते हए। च क चलाते हए दही िबलोते हए गुनगुनाते रहते ह। पूव राज थान के लोकगीत म हमारे लोक जीवन से स बि धत कोई भी िवषय अछता ू नह छोड़ा गया है। हमारी वेशभूषा, आभूषण, खा पदाथ, य हार व देवी-देवताओं का िव तृ त वणन पूव राज थान के लोक गीत म पाया जाता है। मानव समाज के ये क मनोभाव तक सू म िच ण िमलता है। कई गीत लोक कथा का य ऐितहािसक ि से मह वपूण होते ह। इन गीत के आधार पर हम भूतकाल को भी अंिकत कर सकते ह। इन लोकगीत के आधार पर पूव देश के करौली, धोलपुर, सवाई माधोपुर, िह डोन े म िनर र होते हए भी गुणी दिशत होते ह। डॉ. रामनरेश ि पाठी ने ओज पूव वर म कहा है “ ाम गीत ने जनता म एक अिनवचनीय सुख क सृि क ह। जब ह देिवयाँ एक होकर पूरे उ माद के साथ गीत गाती है। तब उ ह सुनकर चराचर के ाण तरंिगत हो उठते ह। आकाश 1. सं क ा नानूराम शमा : राज थानी लोक सािह य, ि .सं. सं करण 2000, पृ. 54

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ृ कान लगाकर सुनती हई सी िदखाई पड़ती है। म एक चिकत सा जान पड़ता है , कित अनुभवी क हैिसयत से अपने उन िम से जो क वाली और ट पे सुनने को बाहर मारे-मारे िफरते ह, सानुरोध कहता हँ िक लोट अपने अंत:पुर को लौटो क तू री मृग क तरह सुग ध ोत का तलाश म कहाँ िफर रहे हो। वग सा स चा सुख तु हारे अ त:पुर म है। वहाँ क दय त ी के तार जरा अपने मधुर वचन से छू दो। िफर देखो कै सा सुखमय जीवन जाग उठता है।1 राज थानी पूवाचंल के लोक सािह य क मह ा व थ जीवन क कसौटी है। लोकगीत क सादगी प टता अ यंत भावशाली है। जनमानस ने आकां ाओं, कोमल भावनाओं वीर भाव को लोकगीत म सजीव प दान िकया है। राज थानी वीरांगनाओं के पास तो िवरह, िमलन व ेम के गीत का राग ही अपनी आ मािभ यि को खलकर कट करने का मा य म है। राग-िवराग, घृणा, ेम और ु द:ु ख क िजन भावनाओं को नारी प ट नह कह पाती उनको गीत ारा गा-गाकर सुना िदया है। लोकाचार व सामािजक ब धन म बँधी नारी को लोकगीत का भावपूण व शि शाली आधार न िमला होता तो वे अपने भाव क शायद अिभ यि ही नह कर पाती। नारी हमारे समाज क आ मा तथा गृह थ जीवन क मे द ड है और ये लोकगीत नारी क अ तरा मा क आवाज ह।2 करौली एवं सवाई माधोपुर के लोकगीत म देवी-देवताओं के गीत का भी मह वपूण थान है। मांगिलक व पाठ-पूजा के अवसर पर देवताओं को लोकगीत गाकर मनवाया जाता है। नवरा ाओं के िदन म देवी पूजा िनर तर चलती रहती है। इन िदन कै ला देवी, बीजासन माता, इ गढ़ देवी आिद नव देिवय के गीत गाये जाते ह। कै ला मै या के गीत क गूँज स पूण पूवाचंल को भािवत िकये िबना नह रहती है। 1. ी कृ णदास : लोकगीत क सामािजक या या, .सं. 1956 पृ. 145 2. रानी ल मी कमारी ु चूढ़ावत : सां कृ ितक राज थान, सं. . पृ. 126

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िववाह आिद मांगिलक काय पर गणपित िवनायक जी का मरण करने व आमंि त करने से िववाह मंगलमय स प न होता है। वषा ऋतु म इ -इ ाणी के गुणगान करने पर ही वषा होती है। िशव पावती, भैरव, भौिमया, हनुमानजी, रामदरबार, ठाकरु जी व अ य देवी देवताओं का गुणगान करते ह। गौरा िशव क पूजा लोक देवता के प म हनुमत देवता क पूजा क जाती है। लोक जीवन म मानवीय कामुकता आन द मैथुन क िजतनी धानता है उतनी ही आन दोपभोग क उपयु त वृि य ारा सा य है। लोक जीवन म इन तीन िवलास क अिभ यि अनेकानेक प म िव मान है। य िप लोक जीवन म इनके िलए कोई यास नह िकया, न कह िश ा ा त क । उनके अंतरआ मा से िनकली हई इस धाराओं म उ ह वत: आन द आने लगा। सव थम भावनाओं का िवलास है, िजसका ाद ुभाव, ेमक णा और ोध भरे दय से हआ है, पर तु देखा गया है िक ये क ाणी अपनी भावनाओं को दसर ू तक पहँचाने म असमथ होता हे। वह तो अ ुपात और िव वा स तक सीिमत रहकर भाव उ प न कर देता है। उसके अंतर क पुकार सुनने वाला, उसके अंतरा मा म बैठकर उसक पीड़ाओं का मािमक िववेचन और दशन करने वाला दसरा ू ही यि होता है, जो आँख फाड़-फाड़कर, कान लगाकर दसर ू क य था को सुना करता है। यह ाणी कब िकसके स मु ख अपने उद्गार उगलता है। उसे िकसी ने न देखा न अनुभूत िकया है वरन् लोक जीवन क घिटत िविवध घटनाओं से जोड़ने का साहिसक य न िकया है। इसके अित र त कछ ु वे दय ह , जो आन दितरेक से वत: ही मुख रत हो सकते ह। उ ह िकसी दसरे ू के दय को मा य म बनाने क आव यकता नह रहती। उ सव , िववाह , मेल व देवाचन के उपल म फु िटत हए उद्गार त काल अंतर से िनकलकर िजह् वा पर आ जाते ह और अपनी यापकता को अमर बना देते ह।

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आज के ा यगीत उ ह अ ात वर क विनयाँ है। िजनके येक वा य म अंतर क वालाएँ अंिकत ह। ये गीत सरोवर के तट पर, वृ के नीचे, िकसी दसरे ू छ पर क म न कटीर ु म ाय: गाये जाते ह। शृंगार क िविवध भावनाएँ अनेक ेरणाएँ इनसे भरी रहती ह। ये सभी िवशेषताएँ पूवाचल के लोकसािह य म ि गोचर होती है। छोटे-छोटे गीत ही नह बड़े -बड़े का य लोक जीवन को जोड़ने क योजक कड़ी के प म है। गोगाजी, पाबूजी, महावीर जी, तेजाजी, कै ला देवी, वीजासन, बरवासन, न दे भुिमयाँ आिद लोक चिलत देवी देवताओं क मिहमा का वणन पूवाचंल म िस है। ावण मास क ह रयाली यवितय के जीवन म हष उ ला स ु का नवीन संचार उ प न कर देती है। झािड़य का लोभन वािसय को िदया जाता है। िव ुत काश म वासी क नव वधु डर जाती है। वषा के शीतल िब द ु शर क भाँित शरीर म लगते ह। मयरू क विन का आकषण, स रता के वाह, झरन क कल-कल विन, पि य के मधुर गान, चालक के ित उपाल भ इन गीत क मुख अिभ यि है। माघ क कपकपा ं ं देने वाली शरद म ि यतम का िवयोग असहनीय होता है। पूव राज थान के लोक सािह य म संगीत के साथ नृ य का भी थान मह वपूण होता है। िववाह , उ सव के नृ य स बि धय और स बि धिनय के पर पर भट होते समय के नृ य भाभी देवर के िववाह म नाचती है। माँ पु के सम नाचती ह जब वह बारात लेकर घोड़ी पर िनकासी करता है। यवक मेल म नृ य करते ु यवितयाँ ु ह तथा ताल से ताल िमलाकर िविवध कार क भंिगमाएँ करते ह। तमाश छोटे -छोटे नाटक , राम लीला, कृ ण लीला न टिकय व याल आिद के वाँग, साज-स जा भगवान के िच िदखाना। माताएँ छोटे ब च को लो रया सुनाती व आन द ा त करती है। इस स दभ म रवी नाथ टैगोर का व त य कछ ु इस कार का है। ‘‘हमारे अलंकार शा म

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नौ रस का उ लेख है, पर लो रय म जो रस ा त होता है। वह शा ोवत रस के अ तगत नह है। अभी-अभी जोती हई जमीन से जो गंध िनकलती है , या िशशु के नवनीत कोमल देह से, जो नेह को उछाल देने वाली गंध है। इसे फल ू , च दन, गुलाबजल, इ या दधू क सुग ध के साथ एक ेणी म नह रखा जा सकता। िच भेद के कारण संभव है िक यह सबको न भाय, पर इनको थायी प से सं ह करके रखना चािहए। इस स ब ध म शायद दो राय नह हो सकती। यह हमारी रा टीय स पि है।’’1 पूव राज थान के लोक सािह य का संर ण पूव राज थान के लोक सािह य क अ य िनिध चूँिक मौिखक है तथा सामािजक अवचेतन का अंश है , इसिलए यह अ य त आव यक है िक उसके संर ण का यास अिधकािधक िकया जाय। सामािजक प रवेश व प रवितत मू य के साथ लोक सं कृ ित क िवकास या ा के िच बालू के पद िच क तरह िमटते चलते ह, िक तु उनके स दय म सं कृ ित का िनमाण भी संभव है। अत: यह आव यक है िक लोक सािह य क पर परा को संरि त िकया जाय, उसका सं हण िकया जाय और उनसे िव तृ त त य के वै ािनक वग करण के आधार पर नवीन सामािजक मू य क थापना करना ही िहतकर होगा। आज भौितकवादी जीवन के चलते ाचीन थ पौरािणक कथानक व पंचत िहतोपदेश क कथाओं का िव लेषणा मक परी ण क आव यकता है, जो िक समकालीन सामािजक िवषमताओं व पर परागत िढ़य लोक िव वास के ित अना था ही मुख कारण है। भारतीय सािह य क उ नित अथवा रा टीय सािह य के िलए यह अ य त आव यक हो गया है िक लोक-मानस से उद्भूत सहज अिभ यि य का गहरा और

1. सं. रामनाथ सुमन : स मेलन पि का वृं दावन लाल वमा का लेख नया वष एक मानिच .पृ. 466

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िव तृत े सं िहत और संरि त िकया जाये। करौली सवाई माधोपुर का लोकसािह य सतत् ेरणा का ोत रहा है। पूव राज थान के लोक सािह य क िविवध िवधाओं के अ ययन एवं सुर ा के िविवध व प को देखा जा सकता है। उ ह एकि त करने क वै ािनक णािलयाँ ह एवं अ ययन क शैिलयाँ ह, उ ह अपने शु प म उपयोग म िलया जाना है , और ऐसी न व क थापना करनी है, िजससे भारतीय समाज अपनी आधुिनकतम् , अिभ यि य , तीक यव थाओं िब बगत सौ दय िनकट भारतीय िस हो सके । आज हम पि चमी सं कृ ित के रंग म इस तरह िनम त होते जा रहे ह िक भारतीय सं कृ ित व स यता के ितमान को भूलते जा रहे ह। प रणाम व प मानवीय मू य का ास िनर तर होता जा रहा है। आधुिनक करण, शहरीकरण, यांि कता और उपभो ता सं कृ ित क बाढ सारी दिनया ु को लील रही है। सामूिहक िजजीिवषा ही शेष नह है, िजसके दःखद प रणाम से चार और िवनाश व प ु ािह- ािह मच रही है। ऐसी ि थित म ाचीन भारत के पुराने सं कार व जीवन मू य से जुड़े मेले, पव , कमका ड जैसी हमारी अमू य धरोहर को बचाने और अ ुण बनाये रखने के िलए जन चेतना क मह ी आव यकता है वह इस िदशा म जो भी और िजतने भी य न िकये जाय वे कम ह। यिद समय रहते इ ह लेखब नह िकया गया तो िन चय ही हमारी आने वाले वाली पीिढ़य को कभी भी अमू य िनिधय से अलग होना पड़ सकता है। भारतीय सं कृ ित िव व म गु व प पू य है। पूव राज थानी ामीण स यता सं कृ ित आिदवासी लोग का पहनावा, खान-पान एवं काय यवसाय, लोक जीवन से जुड़े सामािजक तान बान का िवहंगम िव ले षण कर, तो धरती क गंध म से लोक क मधुर धुन म अपने आप को समेटकर स यता का प रचय देने वाली उ च व नीची जाितय से सरोकार देखने को िमलता है। मूितकला का आगार

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राज थानी स यता व उससे जुड़े स दभ क आ याि मकता के िवषय म प ट देखा और समझा जा सकता है। य िप यह त य स य है िक सं कृ ित मरती नह वरन् शा वत है िक तु देशकाल प रि थितय व प रवेश के चलते प रवतन होता रहता है तथा यह बुरा भी नह है। आमूल प रवतन िवनाशकारी भी होता है। आज के वै ािनक भौितकवादी, यांि क यगु म हम लोक सािह य के आधारभूत उ ोग-धंध व लोक कला का संव न का उपाय करना चािहए। पूव राज थान का लोक सािह य मन, आ मा व शरीर क तरह अिभ न है। जो िक लोक जीवन के ये क पहलू को अलग-अलग नह होने देता है। बि क संजोए रखता है। लोक गीत म लोकोि य और कथाओं म ामीण स यता प रवेश िविवध कलाओं का बहआयामी मह व कट होता है। लोक सािह य क र ा शासन के नेतृ व म हो सकती है। येक जनपद के गीत लोकोि यां और कथाएँ वहाँ के िश क लेखनी ब कर। मेरी स मित म राज थान के पूवाचंल को लोक सािह य पी भागीरथी क सतत् वािहनी भावधारा म अवगाहन करने हेतु अनेक िव ान ने मह वपूण योगदान तो िदया ही है, साथ ही िविभ न प -पि काओं एवं शोध सं थाओं ने भी लोकसािह य के संर ण हेतु िवशेष योगदान िदया है जो इस कार है पूवाचंल करौली सवाई माधोपुर प -पि काओं का योगदान1. म

ी (लोक सं कृित)

2. लोलमा (आंचिलक सािह य) 3. शोध पि का अंत म लोक सािह य क सां कृ ितक िवरासत को नवीन व प दान करने म राज थान ांत के िविवध व प म अनेकता म एकता क बात स य िस होती है।

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अत: आज पूव राज थान म िचि त समाज और सं कृ ित अपनी अिमट छाप भारतीय सं कृ ित पर अंिकत करती है जो अ य सं कृ ितय क तुलना म े ठतम भी है। िन कष पूव राज थान के करौली एवं सवाई माधोपुर लोकसािह य म िचि त समाज व सं कृ ित का िसंहावलोकन राज थानी धरोहर को ि गत करने म स म है। यहाँ ृ क उ मु तता, व छ दता, अिभनवता, ठहराव, बहाव, गित-अगित, कित िनमलता एवं िविवधता तथा िम ी का रंग प, उसक गंध, िव वास , अिव वास क तरलता, सघनता और अनुभाव क गूँज प ट ि गोचर होती है। पूव राज थान क सं कृ ित प रवेश लोकमानस क अिभ यि देखते ही बनती है। पूवाचल क धरोहर म या त सामंज य, सामािजक सम वय क सु दर छटा ि गत है। लोकजन म उ प न सु दर गीत क गूँज स पूण भारत म िस है। माता के भवन म घुटवन लांगु रया खेलने का सु दर य मानो अिभराम तीत होता है। लोकगीत म उ सव , सं कार व सं कृ ित क प ट छिव का तुतीकरण है। आज का सिह णु तापूण वातावरण यहाँ क सं कृ ित क अिमट छाप है। देवी-देवताओं के लोकगीत म रह य भावना, त -म , जादू-टोनो का अपना व प, तीज यौहार , होली, दीपावली क मधुरता कट होती है। 

उपसंहार पूव राज थान के करौली व सवाई माधोपुर िजल के लोक सािह य म सृजना मकता का व प िव वसािह य पर िसरमोर है। राज थानी सं कृ ित स यता व प रवेश जिनत समानता, सदाचार, स यता, लोकाचार, भौगोिलक, सामािजक व सां कृ ितक पृ भूिम का बखान रे त के कण से िनकलने वाली मृगम रिचका का ही िविश ट प िलये हए है। राज थान क पौरािणक, ऐितहािसक संरचना को देख तो तीन ओर समु से िघरी भारत भूिम म एक िह सा रेिग तान, राज थान के नाम से जाना जाता है। यहाँ क पुरातन सं कृ ित पूव राज थान के करौली सवाईमाधोपुर, गंगापुर, धौलपुर, भरतपुर के कछ ु भू-भाग के े म राज थान क सं कृ ित का िवराट सम वय देखने को िमलता है। पूवाचल क चचा करने से पूव राज थानी म भूिम के याग और तप क चचा करना आव यक है। राज थान क धरोहर के संगठना मक ढाँचे का भौगोिलक ि से वणन अ याय म िकया है। वैिदककालीन, मुि लम व अं ेजी यगु क स यता रजवाड़ का व प तुत है। अरावली पवतमालाओं से िघरा देश राजपूताना के इितहास का वणन पया त है। म य संघ, राज थान संघ, संयु त राज थान, बृहत राज थान, म य संघ का िवलय, िसरोही का िवलय और अजमेर का िवलय हआ। धीरे-धीरे पूव राज थान क स यता सं कृ ित व उससे जुड़ी लोकचेतना के िविवध प का अ ययन िकया है। वहाँ कै लादेवी का ल खी मेला, गागरौन गढ़, गणेश जी, मदनमोहन जी, महावीर जी, महदीपुर बालाजी का तीथ थान इस अंचल क लोक सं कृ ित को कट करता है। ई वरीय होने वाली आरितयाँ समयानु प होती है।

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भ तगण ल खी मेल म आते ह। देवी-देवताओं के गीत क अनुगूंज पूव अंचल क धरोहर सभी को म मु ध कर देती है। लोकदेवी व देवताओं के भजन म लांगु रया गीत गाते भ त माता के दरबार म घूमते -घूमते समूह गीत गाते नजर आते ह। राज थानी गौरवशाली अ ु ण पर परा क िवरासत करौली सवाई माधोपुर के तीथ थान, माँ कै लादेवी, गणेशजी, िशवाड़, मदनमोहन जी, नरिसंह जी, महावीर जी आिद देवी-देवता िस है। राज थानी लोक सािह य के वैि वक मह व को पूवाचल के लोकसािह य म वेद, वेदांग , ा ण, उपिनषद्, रामायण, महाभारत, बौ एवं जैन धम के चारसार म लोक वाङ् मय क पृ भूिम के सहज दशन होते ह। लोकश द का अथ समकालीन प रवेश क ऊजा को कट करता है। लोकसािह य क अवधारणा पूवाचल के सािह य क कसौटी पर खरा उतरता है। पूवाचल के मेले लोकगीत, लोकना , लोकसंगीत, पवाडे आिद को लोकगाथा म िपरोिहत कर लोकसािह य को चमकदार बना िदया गया है। लोकसािह य को ग -प म लोकवा , नृ य, अनुरंजन, लो रयां, चुटकले, मेले, उ सव के िविवध उदाहरण देकर िव तृ त चचा क है। प क बात कह तो लोकगीत, लोककहावत, लोक दोहे, लोकम , लोक सोरठा आिद का समावेश लोकसािह य क देन है। लोकगीत , सं कार, ऋतुओ,ं देवीदेवताओं, लोकदेवताओं के राितजगा, संयोग, िवयोग, िवदाई, म, वीरगित, जातीय िवशेष प से मीणा जाित के गीत। स त व िस के गीत, थुडले के गीत आिद मुख ह। लोकगीत का स पूण राज थान म भ डार है, िक तु पूव राज थान क भाषा ज के भाव वाले गीत के वल करौली, िह डौन, सवाई माधोपुर, गंगापुर े म ही संभव है। ऋतुओं के बारहमासा गीत का वणन भी िह दी प म िव मान है। लोककहावत, मुहावरे, पूव अंचल के सािह य क मह वपूण िनिध है। भारतीय एवं पा चा य िव ान ने अपने -अपने मत तुत िकये ह। राज थानी धम, थान,

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ृ िवषयक कहावत का सं कृ ित, ई वर, शकन ु स ब धी, लोकिव वास , किष अनुस धानपरक िव लेषण िकया गया है। तु त शोध- ब ध म पहेिलय का िवशद िववेचन िकया गया है। पूव राज थान म मनाये जाने वाले रा टीय पव सव के अित र त लोकजीवन म पूिजत व मनाये जाने वाले यौहार का िवशद िववेचन है। एकादशी तुलसी, गणेश चतुथ , सकट चौथ, करवाचौथ, अ यतृतीया, पीपल पू यो, गोगानवमी, दीपावली, दशहरा, नवरा ा, होिलको सव, धुल डी, मकर सं ाि त, ा प आिद मुख है। िविभ न जाितय का वणन— ा ण, बिनया, तेली, चमकार, मीणा, गुजर, कु हार, जाट, अहीर, मेह र आिद के ारा िकये जाने वाले काय को लेकर लोकजीवन म बनी िविवध पहेिलयाँ व कहावत का भरपूर योग तुत शोध- ब ध का एक िह सा है जो ऊजावान भावभंिगमा को उजागर करती है। िपतर-िपतराणी, महावीर जी, िशवाड़, कै लादेवी, महावीरजी, मदनमोहनजी, गणेश जी रणथ भोर का व य जीवन अ यार य के अ दर पलने वाले जीवज तुओं क ि या- िति याएँ मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी हई है। पांचना बाँध का पानी का ठहराव क तरह गंभीर पूवाचलवािसय म ग भीरता दान करते तीत होते ह। पूव राज थान के िनवािसय म देवी-देवताओं के ित अटटू ा है। ृ भारतीय उपवास, कथाएँ, लोकिव वास व पुरानी िढ़य को मा यता ा त है। किष ृ प भी देखने को िमलता है। समाज के समाज का मूल आधार है। समाज का िवकत हर वग म ओछी सोच के लोग रहते ह, जहाँ जाितवाद, भाई भतीजावाद, िहंसा आिद काय से अपनी आजीिवका चलाते ह। कछ ु लोग चोरी व ह या करके धनाजन कर ृ लूटपाट करते ह। कछ ु लोग म नशे क वृि होती है, जो समाज के िलए िवकत प ही है। सामािजक करीितयाँ , दहेज- था, बाल-िववाह, सामािजक अकृ य आिद ु मह वपूण सम याओं को पूव राज थान के लोकजीवन म देख सकते ह। लो रयाँ लोकवा , पवाडे आिद का योग भी पूव राज थान के लोकसािह य म ि गोचर है।

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पूव राज थान क िवराट सं कृ ित के दशन लोक समाज व लोकसािह य से ही संभव है। भारतीय एवं पा चा य िवचारक क उि याँ चिलत ह। भारतीय सं कृ ित अ य सं कृ ितय से ाचीन है। म यावतार, वामन, वराह, नरिसंह, कमा ू , परशुराम, रामावतार, कृ णावतार, बुधावतार क चचाएँ हई ह। आज कि क अवतार सव िवचारणीय अवतार है। पूव राज थानी सं कृ ित, मू य व पर पराओं से ओतोत है। अनेकता म एकता राज थान देश क िवशेषता म सिह णुता, अिवि छ नता, जीवज तुओं व जंगल म रोड पर रहने वाले लोग के ित समपण व याग क भावना येक पूव राज थान के ाणी म िव मान है। चतुवग म पूण आ थावान होकर उनक भावनाओं को मानते ह। आदश व मयादा हमारी सं कृ ित क िविश ट पहचान है िजससे ये क भारतीय अपने आपको गौरवाि वत महसूस करता है तथा ध य मानता है। तुत शोध- ब ध म लोकसं कृ ित के मूल त व का िवशद िववेचन िकया है िजसम िविवधता म एकता, मानवीय र ते व धािमक एकता का प रचय होता है। ृ का उपासक हमारा देश ार भ से ही रहा है। आ याि मकता का के ही रहा कित है। देव ऋिष महिष िव वािम , स त क तपोभूिम राज थान रहा है। किवय को कोिकल वाणी समृि का के भी राज थान ही रहा है। िह दी सािह य का भ डार है। राजाओं के शासन क बात कहनी या? जात म भी राज थान िवशाल भू -भाग वाला है। जाितगत, सा दाियक सदभावना का दसरा ू नाम ही राज था नी सं कृ ित है। ृ सामािजक िवकितय क बात कर तो सामंती प रवेश का भाव समकालीन समाज के लोकजीवन को भािवत िकये हए है। राज थान के करौली सवाईमाधोपुर ामीण ृ , पशु-पालन व औ ोिगक े क कमी नह है। प रवेश व शहरी जीवन म किष नदी, पहाड़ व कलकारखान , वन से रोजगार के नवीन अवसर सृिजत करने क मता िव मान है। ऋतुओं का प रवतन के वल भारत जैसे देश म ही स भव है।

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समानता, सम वय, आ या मवाद, वणा म, ऋण, सं कार, संयु त प रवार, य ािद ऐसी सां कृ ितक िवरासत हम िमली है जो भावी पीढ़ी क ेरणा क ोत रही ह। ये सभी िवशेषताएँ करौली एवं सवाई माधोपुर के लोकसािह य म प रलि त होती है। सां कृ ितक बहलता भी कछ ु हद तक प ट ि गोचर है। सजातीयता, धािमक िविभ नताएँ, भाषा, े , बोली, भाई-भतीजावाद, जाितवाद सा दाियकता आिद से िसत मनोदशा को भी कट िकया है। सामािजक, राजनीितक, धािमक व अ य सभी कार क िवशेषताएँ राज थानी सं कृ ित क पहचान है। लोकसािह य म करौली सवाईमाधोपुर िजले के े के लोकसािह य से जुड़े स दभ व ाचीन धरोहर से जुड़े त य क अनुसंधाना मक अ ययन तुत शोध- ब ध का मह वपूण अंग रहा है। लोकगीत , लोकउ सव , पव व यौहार म पूवाचल क लोकसं कृ ित क नई-नई त वीर देखने को िमलती है। यहाँ क थाप यकला, लोकमानस व लोकसािह य से सतत् ेरणा िमलती रहती है। लोकमूितकला का अपना िविश ट मह व है। ज मो सव के गीत, याल, ब ना, ब नी, भात व िवदाई के गीत का योग कर पूव अंचल क लोकसं कृ ित ने उ मेष कट िकया है िजसे जनसाधारण के गीत के प म उभारने का यास मा है। सोलह सं कार का मब वणन ऋतुओं के गीत यौहार , उ सव के गीत म मंगलाचरण िवधान, आि तकता, कै लादेवी के गीत का वणन, दानशीलता का भाव ि गोचर है। करौली सवाईमाधोपुर िजले के भू -भाग के िनवािसय का लोकसािह य के ित झान को तु त िकया है िजसम लोकगीत के पुट लोकभाषा म तुत िकये है। लोकसमाज म यि क लोकचेतना के ित पुि है। समाज के सभी वग म होने वाले उ सव , पव व सं कार का उ लेख सवाई माधोपुर व करौली लोकसािह य म सि िहत है। सामािजक पर पराएँ, िढ़याँ, व लोकाचार का िवशद िववेचन तु त शोध ब ध म लोकसािह य से स बि धत वणन है। लोकदेवता, देिवय का

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प रचया मक िववरण तु त है। शोध ब ध के अ त म सम िववेचन के प म लोकसािह य का िनर तर सृजन करने व भावी जीवन म उतारने का स देश है। ध य है वह धरा िजसक पिव तमा धरोहर म देशवािसय पर अनुक पा कर सवधमावलि बय को लोकजीवन म यापक प रवतनशील िवचारधाराओं से अवगत कराकर लोकसं कृ ित म अिमट छाप छोड़ी है। शोध के दौरान मुझे आ चय हआ िक लोकसािह य इतना समृ होते हए भी अभी तक िव ान के सि य अ ययन का िवषय नह बन पाया। ऐसा तीत होता है िक देश के दरू-दराज दगम ु भू -भाग, डाँग े म बसा होना, करौली व सवाई माधोपुर के लोक-सािह य के िलए उपे ा के कारण रहा, िक तु इस उपेि त सािह य के ित अपने लगाव और आकषण ने इन किठनाइय क िच ता िकये िबना अपने संक प क प रणित शोध- ब ध के प म हई। मने शोध के दौरान पाया िक करौली व सवाई माधोपुर िजले क एक सं कृ ित है, एक पहचान है , जो िक अपनी अ ुणता को आज भी बनाये हए है। यहाँ के ृ क गोद म पलने वाली धरती क संतान कहा जाये तो िनवािसय को कित ृ क उ मु तता, व छ दता, अितशयोि नह होगी। इनक जीवन साँस म कित ठहराव-बहाव, िनमलता देखने को िमलती है। तु त शोध- ब ध म स पूण करौली व सवाई माधोपुर िजले के लोकसािह य म िनिहत समाज और सं कृ ित का अ ययन कर िलिपब िकया है, अत: िनि चत प से यह करौली एवं सवाई माधोपुर के लोकसािह य को सुरि त रखने म अहम् भूिमका िनभाएगा, जो िक आने वाले लोकसािह य ेमी व वतमान राज थानी लोक सािह य के िलए अहम् योगदान होगा। यह शोध ब ध िह दी के अ येताओं को रचना मक सहयोग दान कर अपनी ासंिगकता बनाये रखेगा। 

स दभ थ सूची 1.

अ वाल, गोिव द : ‘राज थानी लोक-कथाए’ ( थम ख ड) कािशत एवं िव े ता—भा न भ डार लोकपीठ इलाहाबाद, थम सं करण, संवत् 2021

2.

उपा याय, डॉ. बलदेव : ‘लोक सं कृ ित क परेखा’, काशक : लोकभारती काशन, 15 ए, महा मा गाँधी माग, इलाहाबाद-1, सं करण : 2004

3.

क ला, न दलाल : ‘राज थानी लोक-सािह य एवं सं कृ ित’, काशक : राज थान ंथागार, सोजती गेट, जोधपुर, सं करण थम 200

4.

गु ा, एम.एल. एवं शमा, डी.डी. : ‘समाजशा के मूल त व’, काशक : सािह य भवन पि लके शन, हॉ पीटल रोड, आगरा-282003

5.

गु ा, एम. एल. एवं शमा डी.डी. : ‘भारतीय समाज’, काशक : सािह य भवन पि लके शन, हॉ पीटल रोड, आगरा-282003

6.

गो वामी, ेमच द : ‘राज थान सं कृ ित, कला एवं सािह य’, काशक : राज थान िह दी थ अकादमी, झालाना सां थािनक े जयपुर-4, सं करण थम, 2006

7.

चोयल, िशविसंह (स पादक) : ‘राज थानी लोकगीत’, भाग-2, सािह य संगम, राज थान िव विव ालय, जयपुर।

8.

चारण, मोहनदास : ‘लोक सािह य क सां कृ ितक पर परा’, काशक : रोशनलाल ए ड स स, चैनसुखदास माग, जयपुर-3

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9.

चूड़ावत, रानी ल मी कमारी ु : ‘सां कृ ितक राज थान’, काशक : राज थान िपपु स पि लके िशंग हाऊस, एम.आई.रोड, जयपुर, सं करण, थम, 1994

10. डॉ. स ये : ‘लोकवाता क पगडंिडयाँ ’, काशक : भारतीय लोककला म डल, उदयपुर, सं करण थम, 1974 11. डॉ. स ये : ‘लोक सािह य िव ान’, काशक : िशवलाल ए ड क पनी, आगरा, थम सं करण 12. डॉ. संजय गील : ‘जनजाित समाज एवं वनीय अ तिनभरता’, काशक : अंकु र काशन, उदयपुर, सं करण 2007 13. डॉ. ेमच द डाबी : ‘जनजातीय लोक सािह य’, काशक : अंकु र काशन, उदयपुर। 14. देथा, िवजयदान (स पादक) : ‘मीठा वीरा रो बोलणी’ (भाई बिहन के गीत, भाग-2) काशक : राज थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर। 15. देथा, िवजयदान (स पादक) : ‘ यू दोन पहदेश’ (ससुराल और पीहर के गीत, भाग-2) काशक : राज थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर। 16. डॉ. महे भाणावत : ‘राज थान के लोकनृ य’, काशक : मु तक काशन, उदयपुर (राज थान), 2004 17. िदनकर, रामधारीिसंह : ‘राज थानी लोक सं कृ ित क परेखा’, काशक : राज थान सािह य सिमित, िबसाऊ झु झुनू (राज.), 1959

270

18. ि वेदी, हजारी साद : ‘जनपद’ अंक-130, ‘ ीकृ ण : लोकगीत क सामािजक या या’ काशक : सािह य भवन िलिमटेड, इलाहाबाद, सं करण थम : 1956 19. दास, ीकृ ण : ‘लोकगीत क सामािजक या या’, मु क : िह दी सािह य ेस, इलाहाबाद, सं करण थम : 1956 20.

भाकर, मनोहर : ‘राज थानी सािह य और सं कृ ित’, काशक : आशा पि लिशंग हाऊस, चौड़ा रा ता, जयपुर, सं करण थम : 1956

21. भाटी, पु पा : ‘राज थान के लोक देवता एवं लोक सािह य’, काशक : किवता काशन, तेलीबाड़ा, बीकानेर, सं करण : 1996 22. मेना रया, पु षो म लाल : ‘राज थानी लोकगीत’, काशक : दी टू डे टस बुक क पनी, जयपुर-जोधपुर, सं करण थम : 1958 23. महिष िव ाभूषण मुरारीलाला : ‘पार प रक माँगिलग लोकगीत’, काशक : सािह य कला सं थान, जयपुर सं करण थम : जून, 2001 24. राजगिढ़या, च पादेवी : ‘बारह महीन का त यौहार’ (मारवाड़ी भाषा म)। 25. लोमानी, रामदेव : ‘राज थानी सािह य का मह व’, काशक : नागरी चा रणी सभा काशी, सं करण 2000 26. सं क ा, नानूराम : ‘राज थानी लोकसािह य’, काशक : राज थानी थागार सोजती गेट, जोधपुर, सं करण : 2006 27. स पादक शमा, मनोहर एवं शमा, िदवाकर, धान स पादक शा ी िव ाधर : ‘िव व भरा’ (िह दी िव वभारती क ैमािसक पि का), काशन : िह दी िव व भारती अनुसंधान प रषद्, बीकानेर, वष 10, अंक 4

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28. स पादक महिष याम, सहा. स पा. सैनी, मदन : ‘राज थानी 52’ (राज थानी माय लोक चेतना री सािहि यक पि का) काशक : हनुमान पुरोिहत, रा टभाषा िह दी चार सिमित, बीकानेर (राज थान) 29. स पादक शमा, मनोहर जोशी व ीलाल नथमल : ‘राज थानी बात सं ह’, काशक : राज थानी ंथागार, सोजती गेट, जोधपुर, सं करण थम : 2002 30. स पादक सुमन ी रामनाथ : ‘स मेलन पि का’ (लोकसं कृ ित िवशेषांक) काशक : िह दी सािह य स मेलन, याग। 31. सहल कृ ण िबहारी : ‘राज थानी लोकगाथाएँ और िनहालदे सु तान’, काशक : राज थानी सािह य सं थान, यू.आई.टी. के पास, जोधपुर, सं करण थम 2002 32. शेखावत, क याण िसंह : ‘राज थानी सं कृ ित’, काशक आन द काश, िडफै स लेव रोड, रातनाड़ा, जोधपुर, थम सं करण - 2003 प -पि काएँ 1. आलोचना : अ टू बर-िदस बर, 1972 2. कथा : 1998-2000 3. कथा म : अ टू बर-िदस बर, 2002 4. जनस ा : 1 नव बर, 1998 5. द तावेज : अंक-92 जुलाई-िसत बर 6. धमयगु : 26 से 22 माच, 1980 7. वैचा रक संकलन : जनवरी, 1998

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8. वसुधा : अंक 42 9. समकालीन भारतीय सािह य : अ टू बर-िदस बर, 1994 10. राज थान पि का 11. दैिनक भा कर 12. दैिनक नव योित श दकोश 1. कािलका साद : िह दी बृहत् कोश 2. डॉ. हरदेव बाहरी : राज थान िह दी श द कोश 3. डॉ. धीरे वमा : िह दी सािह य कोश 4. रामच वमा : संि त िह दी श द सागर 5. वामन िशवराम आ टे : सं कृ त िह दी कोश 6. याम सु दर दास : िह दी भाषा बृहत् कोश थानीय लोक कलाकार 1. सोहनिसंह म डल ह रक तन भावली (करौली) 2. रामसहाय मीना : ह रक तन गायक कलाकार (दीपपुरा) 3. राम यारी देवी : रिसया गायक कलाकार (छडकापुरा) 4. बसंताराम : पदगायक कलाकार 5. लाला राम मीना : क तन गायक कलाकार (टोडाभीम)

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थानीय किव एवं सािह यकार 1. दामोदर लाल गग 2. अजुन लाल 3. जे चकोर 4. शंकर िसंह बक ल 5. नरेश जैन 

पूव राज थान के लोक सािह य म िचि त समाज और सं कृित (करौली एवं सवाई माधोपुर िजले के िवशेष स दभ म)

कोटा िव विव ालय, कोटा क पीएच. डी. क उपािध हेतु तुत

शोध- ब ध

शोध-िनदशक : डॉ. पूरणमल मीना अ य , िह दी िवभाग

शोधाथ ह रकेश मीना या याता, िह दी

राजक य क या महािव ालय, सवाईमाधोपुर (राज.)

राजक य क या महािव ाय करौली (राज थान)

िह दी िवभाग कोटा िव विव ालय, कोटा 2016

शोध-सारांश िव व रंगमंच पर म न जाने िकतनी सं कृ ितय ने अपने वैभव का दशन िकया है तथा नाना सं कृ ितय के उ थान पतन क कथा दबी हई है , िक तु भारतीय सं कृ ित क अिमट छाप राज थानी सं कृ ित क िविश ट पहचान बन गई है। लोकसािह य म समाज व सं कृ ित को अपनी पर परा व रीितय , िढ़य , पुरातन लोकिव वास का समावेश होता है। भारतीय सं कृ ित सवजनिहताय व ‘वसुधैव कट ु ु बकम्’ क भावना से ओत- ोत है। येक नाग रक को अपने िवचार को कट करने क पूण वत ता है। िबना िकसी भेद -भाव के समान जाित, धम, स दाय व िबना िलंग भेद के सभी को धािमक, सामािजक, वैचा रक काय म सहभािगता का अिधकार ा त है। पूव राज थान क सां कृ ितक धरोहर क चचा कर तो राज थानी धरा के कण-कण म याग, तप व समपण, बिलदान क महक उठती है जो स पूण भारत के म तक म तेज को कट करती है। पूव राज थान के लोकसािह य म लोकसं कृ ित क अ ु ण और सवकािलक अमृतधारा वािहत होकर मानव मा के क याण का उद्घोष करती है। यह पर परा अतीत और वतमान को जोड़ने वाली कड़ी का काय करती है , जो समाज क आ मा का ितिब ब है। लोकजीवन क िविवध भंिगमाओं का अवलोकन लोकसं कृ ित म प ट ि गोचर है। शौय, राग-िवराग, िच तन मनन, आशाृ , पशु-पालन, नदी, तालाब, िनराशा, आदश क थापना, मयादा का पालन, किष

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फल-फल ू व ऋतुओं म होने वाले प रवतन का भाव मानवीय सोच म प रवतन कर सद् िवचार का उ मेष कट करता है। यथाथ के धरातल पर मानव एकता का स दे श देने म लोकसं कृ ित क महती भूिमका रहती है। पूव राज थान के करौली-सवाई माधोपुर े क सं कृ ित क िविश टता पिव तम तपोभूिम के थल से िमलने वाली सद् ेरणा का ही प रणाम है। यहाँ के येक ाणी का क य मातृभूिम क र ाथ सव व समपण क भावना रही है। राजा ह मीर के आदश का अनुसरण करना है। यहाँ के वन म िविभ न जीव-ज तुओं व पशुओं का वत िवचरण करना इस बात को प ट करता है िक वीरभूिम म सबको ृ म खली वत जीवन जीने का अिधकार है। कित ु साँस लेकर उ मु त गगन म पंिछय को उड़ने का अिधकार है, वैसे ही उ मु तता, व छ दता, अिभनवता, ठहराव, बहाव, गित म गमन, िनमलता एवं िविवधता तथा िम ी के िविवध रंग व उसक गंध क महक, लोकजीवन के िविवध रंग , िव वास -अिव वास , आ था, आ याि मक चेतना क अनुगूंज से स पू ण पूव अंचल म एक धुन सुनाई देती है। देवी-देवताओं क तीथ थली करौली क कै ला मैया, मदनमोहन जी, महावीर जी, ृ से स पूण रणथ भोर के गणेश जी, चौथ माता, िशवाड़ (ईशरदा) क कपा अंचलवािसय म ई वर के ित ढ़ आ था बनी हई है। पूव अंचल का लोक सािह य स पूण राज थान के लोकजीवन का उ कष है। करौली व सवाई माधोपुर े को िपछड़ा े मानते ह, िक तु लोकसािह य का अ ययन िकया तो वहाँ पया त सािह य है। लोक पर पराओं, देवी-देवताओं, ामीण व शहरी सं कृ ित म कोई िवशेष प रवतन न होकर मानव से मानव को जोड़ने क एक िविश ट पर परा है, िजसम हमारे यौहार, पव एवं उ सव म ातृभाव समानता व एकता क गूँज प ट प रलि त है। िविवध वग के स दाय , धमावलि बय के होने पर भी धम िनरपे ता है। असिह णु ता के िलए लोकसं कृ ित म कोई थान नह है।

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लोकसािह य व सं कृ ित का समावेश समाज म रहकर ही समझा जा सकता है। तुत शोध ब ध म सं कार , पर पराओं, िढ़य एवं पुरानी िवचारधाराओं का िव लेषणा मक अ ययन िकया है। तुत शोध- ब ध को छ: अ याय म िवभ त कर अनुसंधान तुत िकया है जो िन नानुसार है— ृ कर अ याय थम म राज थान देश के संगठना मक ढाँचे को वग कत उसक ाचीन पर पराओं का उ लेख है। भारतीय सं कृ ित का िवकास व पतन दोन को तुत िकया है। राज थान नाम कै से पड़ा िफर इसके नाम म िकतनी बार प रवतन होकर राज थान नाम हआ। भौगोिलक ि से राज थान ांत का े फल, जनसं या क ि से पहले और आज म िकतना प रवतन हआ। ऐितहािसक स दभ म राज थान देश के े म चार िदशाओं म या- या मह व है। पूव राज थान क सीमा अ य देश से िकतनी जुड़ी है तथा उनका प रवेश भाषा सं कृ ित व समाज से तुलना मक अ ययन िकया है। पूव राज थान के करौली व सवाई माधोपुर िजल के आस-पास के िजल से िमलती-जुलती सं कृ ित व भाषा का प रचया मक अ ययन िकया है। अ याय ि तीय म राज थान देश व पूव राज थान के लोक सािह य का अनुसंधान िकया है। लोकसािह य का िवशद िववेचन अथ व प तथा प रभाषाएँ भारतीय एवं पा चा य िवचारक के मत के अनुसार तु त है। राज थानी लोकसािह य क अवधारणा को प ट िकया है , िफर राज थानी लोक सािह य को ग -प म बाँटा है तथा लोकगीत, लोककहावत, लोकपहेिलयाँ, लोकम आिद का िव तृ त वणन उदाहरण सिहत तुत है। ग म लोककथाएँ (बात), लोकगाथाएँ (पवाड़े), पूवाचल क सं कृ ित के िविवध उदाहरण देकर तु त िकये ह। लोकना ( याल), लोकनृ य के अंचल के उदाहरण ारा प ट करने का यास िकया है।

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लोकवा , लोकिव वास क चचा क है, लो रय के िविवध उदाहरण तु त ह। अ त म करौली िजले व सवाई माधोपुर िजले का लोकसािह य तुत िकया है। अ याय तृतीय म सं कृ ित समाज का सामा य अ ययन करते हए पूव राज थान के करौली सवाई माधोपुर े क लोकसं कृ ित के व प का िव लेषणा मक अ ययन िकया है। सं कृ ित के िविवध सोपान का प रचया मक अ ययन कर भौगोिलक ि थित व सां कृ ितक ि थित पर पड़ने वाले भाव तथा प रवेश क िवसंगितय का अ ययन िकया है। लोक सं कृ ित का प रचय, प रभाषाएँ, मूल त व एवं उ े य का प रचया मक िव लेषण तुत िकया है। साथ ही करौली व सवाई माधोपुर िजले क लोकसं कृ ित क अिवरल धारा का अमृतपान िकया है। समाज का अथ व प, भारतीय समाज, स यता, सां कृ ितक धरोहर, सं कृ ित क िवशेषताएँ उि लिखत ह। सां कृ ितक बहलतावाद, िविवधता म एकता के लोकसं कृ ित व समाज म चिलत करौली, सवाई माधोपुर के लोकसािह य के नवीन उदाहरण तुत-शोध- ब ध म संकिलत ह। अ त म सम िववेचन का सारांश तुत है। अ याय चतुथ म करौली एवं सवाई माधोपुर िजले के लोकसािह य म िचि त सं कृ ित का व प प रभाषाएँ एवं िवचारक के मत को तु त िकया है। थाप य कला, लोकमूितकला, लोक िच कला, लोकसंगीत, लोकवा , लोकनृ य, लोकसािह य, मंगलाचरण िवधान दानशीलता म लोकसािह य के िविवध उदाहरण का समावेश करते हए िव तृ त चचा क है। ेम क मह ा, संसार क न वरता, बारह माह के यौहार का िवशद िववेचन तु त शोध- ब ध म उि लिखत है, जो ऊजावान जनसमुदाय के मुख से िनकलने वाले मधुर संगीत क तान से म मु ध करने वाले लोकसंगीत का भाव पूवाचल क धरोहर है।

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अ याय प चम् म करौली सवाई मधोपुर े के लोक सािह य म िचि त समाज व लोक सािह य का सम वया मक व प लोक सािह य म िकतना भावशाली है। लोकसािह य से भािवत पूव अंचल के लोग के जनजीवन का खला ु द तावेज है। पौरािणक व ऐितहािसक प से पूव राज थान के दोन िजल — करौली व सवाई-माधोपुर—का िविश ट मह व रहा है। लोकसािह य ऐसी िवधा है जो लोकगीत, संगीत, लोकगाथाओं व लोककथाओं पर चलती है। भारतीय पर परा ‘वसुधैव कट ु ु बकम्’ वाली उि सं कृ ित प रवेश व िवचारधाराओं से समाज को न यता दान करती है। ाचीनकाल से संयु त प रवार म रहने वाले लोग म सहयोग पर पर ेम क भावना अंचलवािसय म ि गोचर होती है , लेिकन आज के वातावरण म व पा चा य िश ा के भाव म होने वाले प रवतन के कारण छोटा प रवार सुखी प रवार क धारणा मानवीय सोच भी बन चुक है। लेिकन पूव राज थानी लोकजीवन म याग, तप, ा, स मान अ तनकाल म भी चिलत है। तुत शोध- ब ध म क य परायणता से ओत- ोत सामािजक िवचारधारा का िव लेषण िकया गया है। भाई-बिहन का ेम, पित-प नी स ब ध, माता-िपता के ित समपण क भावना व हमारे सं कार का िव तृत अ ययन िकया है। िववाह, भात भरने, पु ज मने के लोकगीत म राज थानी सं कृ ित के रंग-िबरंगे फल ू क छटा ि गत है। लोको सव म होिलका, दीपावली, गणगौर, र ाब धन, शीतला टमी, तीज, नवरा , अ यतृतीया, पीपल नवमी, एकादशी (देवउठनी, देवसोनी), मकर स ांित आिद उ सव पव को पूव राज थानी अंचल म गीत के मा यम से लोकचेतना क अिभ यि का िव लेषण करने का यास िकया है। अ याय ष ठ म राज थानी लोक सािह य म लोकचेतना क अिभ यि लोक सं कृ ित क िवराट सम वया मक चेतना है, जो राज थानी बहरंगी सं कृ ित क अिवरल छटा क झलक पूव राज थान के करौली व सवाईमाधोपुर अंचल म प ट

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ि गोचर है। भारतीय सं कृ ित वेद, वेदांग , उपिनषद् व पुराण, रामायण, महाभारत एवं ीमद् भगवत गीता के आदश का पालन करने म याग व अपने क य के ित सजग रहकर जीवन को सजना मक गित दान करते ह। वात यो र भारत म हमारे आदश म प रवतन ुत गित से होता आया है, जो प रवेश क सं कृ ित म िनर तर बदलाव क ि थित पैदा िकये हए ह। समकालीन जनजीवन म कई िवसंगितयाँ पैदा कर चुका है िक तु भारतीय आदश का भाव आज भी वीरभूिम राज थान क लोकचेतना, लोकजीवन के उ सव , पव , यौहार व लोकगीत के मा यम से कट होती है। उपसंहार म पूव राज थान के लोकदेवता, देिवय के ित आ था भाव क मूल चेतना जीवन क वैि वकता को भी कट करती है। तु त शोध ब ध के सारांश प म राज थानी सं कृ ित क िविश ट पर पराओं से होने वाले जुड़ाव, यहाँ क धरा क गंध, निदयाँ, पवतमालाएँ, अरावली क छटा, यहाँ के िविभ न ृ अभयार य, रणथ भोर, व यजीव अभयार य, िजसम गणेश जी महाराज क कपा देशवािसय पर रहती है तथा िवशाल मेल का आयोजन करौली वाली मैया के चै के नौरा म राज थान देश के अलावा स पू ण भारतीय इस पिव धरा पर आते ह। अ य सं कृ ितय से िभ न राज थानी सं कृ ित क छाप आज भी है जो अधुनातन स दभ को पश करते हए मने तुत शोध ब ध म नवीनतम उदाहरण देकर नवीन आयाम थािपत करने का िवन यास िकया है। पूव राज थान के करौली व सवाई माधोपुर िजल के लोक सािह य म सृजना मकता का व प िव वसािह य पर िसरमोर है। राज थानी सं कृ ित स यता व प रवेश जिनत समानता, सदाचार, स यता, लोकाचार, भौगोिलक, सामािजक व सां कृ ितक पृ भूिम का बखान रेत के कण से िनकलने वाली मृगम रिचका का ही िविश ट प िलये हए है। राज थान क पौरािणक, ऐितहािसक संरचना को देख तो तीन ओर समु से िघरी भारत भूिम म एक िह सा रेिग तान, राज थान के नाम से

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जाना जाता है। यहाँ क पुरातन सं कृ ित पूव राज थान के करौली सवाईमाधोपुर, गंगापुर, धौलपुर, भरतपुर के कछ ु भू-भाग के े म राज थान क सं कृ ित का िवराट सम वय देखने को िमलता है। पूवाचल क चचा करने से पूव राज थानी म भूिम के याग और तप क चचा करना आव यक है। राज थान क धरोहर के संगठना मक ढाँचे का भौगोिलक ि से वणन अ याय म िकया है। वैिदककालीन, मुि लम व अं ेजी यगु क स यता रजवाड़ का व प तुत है। अरावली पवतमालाओं से िघरा देश राजपूताना के इितहास का वणन पया त है। म य संघ, राज थान संघ, संयु त राज थान, बृहत राज थान, म य संघ का िवलय, िसरोही का िवलय और अजमेर का िवलय हआ। धीरे-धीरे पूव राज थान क स यता सं कृ ित व उससे जुड़ी लोकचेतना के िविवध प का अ ययन िकया है। वहाँ कै लादेवी का ल खी मेला, गागरौन गढ़, गणेश जी, मदनमोहन जी, महावीर जी, महदीपुर बालाजी का तीथ थान इस अंचल क लोक सं कृ ित को कट करता है। ई वरीय होने वाली आरितयाँ समयानु प होती है। भ तगण ल खी मेल म आते ह। देवी-देवताओं के गीत क अनुगूंज पूव अंचल क धरोहर सभी को म मु ध कर देती है। लोकदेवी व देवताओं के भजन म लांगु रया गीत गाते भ त माता के दरबार म घूमते -घूमते समूह गीत गाते नजर आते ह। राज थानी गौरवशाली अ ु ण पर परा क िवरासत करौली सवाई माधोपुर के तीथ थान, माँ कै लादेवी, गणेशजी, िशवाड़, मदनमोहन जी, नरिसंह जी, महावीर जी आिद देवी-देवता िस है। राज थानी लोक सािह य के वैि वक मह व को पूवाचल के लोकसािह य म वेद, वेदांग , ा ण, उपिनषद्, रामायण, महाभारत, बौ एवं जैन धम के चारसार म लोक वाङ् मय क पृ भूिम के सहज दशन होते ह। लोकश द का अथ समकालीन प रवेश क ऊजा को कट करता है। लोकसािह य क अवधारणा

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पूवाचल के सािह य क कसौटी पर खरा उतरता है। पूवाचल के मेले लोकगीत, लोकना , लोकसंगीत, पवाडे आिद को लोकगाथा म िपरोिहत कर लोकसािह य को चमकदार बना िदया गया है। लोकसािह य को ग -प म लोकवा , नृ य, अनुरंजन, लो रयां, चुटकले, मेले, उ सव के िविवध उदाहरण देकर िव तृ त चचा क है। प क बात कह तो लोकगीत, लोककहावत, लोक दोहे, लोकम , लोक सोरठा आिद का समावेश लोकसािह य क देन है। लोकगीत , सं कार, ऋतुओ,ं देवीदेवताओं, लोकदेवताओं के राितजगा, संयोग, िवयोग, िवदाई, म, वीरगित, जातीय िवशेष प से मीणा जाित के गीत। स त व िस के गीत, थुडले के गीत आिद मुख ह। लोकगीत का स पूण राज थान म भ डार है, िक तु पूव राज थान क भाषा ज के भाव वाले गीत के वल करौली, िह डौन, सवाई माधोपुर, गंगापुर े म ही संभव है। ऋतुओं के बारहमासा गीत का वणन भी िह दी प म िव मान है। लोककहावत, मुहावरे, पूव अंचल के सािह य क मह वपूण िनिध है। भारतीय एवं पा चा य िव ान ने अपने-अपने मत तुत िकये ह। राज थानी धम, थान, ृ िवषयक कहावत का सं कृ ित, ई वर, शकन ु स ब धी, लोकिव वास , किष अनुस धानपरक िव लेषण िकया गया है। तु त शोध- ब ध म पहेिलय का िवशद िववेचन िकया गया है। पूव राज थान म मनाये जाने वाले रा टीय पव सव के अित र त लोकजीवन म पूिजत व मनाये जाने वाले यौहार का िवशद िववेचन है। एकादशी तुलसी, गणेश चतुथ , सकट चौथ, करवाचौथ, अ यतृतीया, पीपल पू यो, गोगानवमी, दीपावली, दशहरा, नवरा ा, होिलको सव, धुल डी, मकर सं ाि त, ा प आिद मुख है। िविभ न जाितय का वणन— ा ण, बिनया, तेली, चमकार, मीणा, गुजर, कु हार, जाट, अहीर, मेह र आिद के ारा िकये जाने वाले काय को लेकर लोकजीवन म बनी िविवध पहेिलयाँ व कहावत का भरपूर योग तुत शोध- ब ध का एक िह सा है जो ऊजावान भावभंिगमा को उजागर

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करती है। िपतर-िपतराणी, महावीर जी, िशवाड़, कै लादेवी, महावीरजी, मदनमोहनजी, गणेश जी रणथ भोर का व य जीवन अ यार य के अ दर पलने वाले जीवज तुओं क ि या- िति याएँ मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी हई है। पांचना बाँध का पानी का ठहराव क तरह गंभीर पूवाचलवािसय म ग भीरता दान करते तीत होते ह। पूव राज थान के िनवािसय म देवी-देवताओं के ित अटटू ा है। ृ भारतीय उपवास, कथाएँ, लोकिव वास व पुरानी िढ़य को मा यता ा त है। किष ृ प भी देखने को िमलता है। समाज के समाज का मूल आधार है। समाज का िवकत हर वग म ओछी सोच के लोग रहते ह, जहाँ जाितवाद, भाई भतीजावाद, िहंसा आिद काय से अपनी आजीिवका चलाते ह। कछ ु लोग चोरी व ह या करके धनाजन कर ृ लूटपाट करते ह। कछ ु लोग म नशे क वृि होती है, जो समाज के िलए िवकत प ही है। सामािजक करीितयाँ , दहेज- था, बाल-िववाह, सामािजक अकृ य आिद ु मह वपूण सम याओं को पूव राज थान के लोकजीवन म देख सकते ह। लो रयाँ लोकवा , पवाडे आिद का योग भी पूव राज थान के लोकसािह य म ि गोचर है। पूव राज थान क िवराट सं कृ ित के दशन लोक समाज व लोकसािह य से ही संभव है। भारतीय एवं पा चा य िवचारक क उि याँ चिलत ह। भारतीय सं कृ ित अ य सं कृ ितय से ाचीन है। म यावतार, वामन, वराह, नरिसंह, कमा ू , परशुराम, रामावतार, कृ णावतार, बुधावतार क चचाएँ हई ह। आज कि क अवतार सव िवचारणीय अवतार है। पूव राज थानी सं कृ ित, मू य व पर पराओं से ओतोत है। अनेकता म एकता राज थान देश क िवशेषता म सिह णुता, अिवि छ नता, जीवज तुओं व जंगल म रोड पर रहने वाले लोग के ित समपण व याग क भावना येक पूव राज थान के ाणी म िव मान है। चतुवग म पूण आ थावान होकर उनक भावनाओं को मानते ह। आदश व मयादा हमारी सं कृ ित

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क िविश ट पहचान है िजससे करता है तथा ध य मानता है।

येक भारतीय अपने आपको गौरवाि वत महसूस

तुत शोध- ब ध म लोकसं कृ ित के मूल त व का िवशद िववेचन िकया है िजसम िविवधता म एकता, मानवीय र ते व धािमक एकता का प रचय होता है। ृ का उपासक हमारा देश ार भ से ही रहा है। आ याि मकता का के ही रहा कित है। देव ऋिष महिष िव वािम , स त क तपोभूिम राज थान रहा है। किवय को कोिकल वाणी समृि का के भी राज थान ही रहा है। िह दी सािह य का भ डार है। राजाओं के शासन क बात कहनी या? जात म भी राज थान िवशाल भू -भाग वाला है। जाितगत, सा दाियक सदभावना का दसरा ू नाम ही राज था नी सं कृ ित है। ृ सामािजक िवकितय क बात कर तो सामंती प रवेश का भाव समकालीन समाज के लोकजीवन को भािवत िकये हए है। राज थान के करौली सवाईमाधोपु र ामीण ृ , पशु-पालन व औ ोिगक े क कमी नह है। प रवेश व शहरी जीवन म किष नदी, पहाड़ व कलकारखान , वन से रोजगार के नवीन अवसर सृिजत करने क मता िव मान है। ऋतुओं का प रवतन के वल भारत जैसे देश म ही स भव है। समानता, सम वय, आ या मवाद, वणा म, ऋण, सं कार, संयु त प रवार, य ािद ऐसी सां कृ ितक िवरासत हम िमली है जो भावी पीढ़ी क ेरणा क ोत रही ह। ये सभी िवशेषताएँ करौली एवं सवाई माधोपुर के लोकसािह य म प रलि त होती है। सां कृ ितक बहलता भी कछ ु हद तक प ट ि गोचर है। सजातीयता, धािमक िविभ नताएँ, भाषा, े , बोली, भाई-भतीजावाद, जाितवाद सा दाियकता आिद से िसत मनोदशा को भी कट िकया है। सामािजक, राजनीितक, धािमक व अ य सभी कार क िवशेषताएँ राज थानी सं कृ ित क पहचान है। लोकसािह य म करौली सवाईमाधोपुर िजले के े के लोकसािह य से जुड़े स दभ व ाचीन धरोहर से जुड़े त य क अनुसंधाना मक अ ययन तुत शोध- ब ध का मह वपूण अंग रहा है।

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लोकगीत , लोकउ सव , पव व यौहार म पूवाचल क लोकसं कृ ित क नई-नई त वीर देखने को िमलती है। यहाँ क थाप यकला, लोकमानस व लोकसािह य से सतत् ेरणा िमलती रहती है। लोकमूितकला का अपना िविश ट मह व है। ज मो सव के गीत, याल, ब ना, ब नी, भात व िवदाई के गीत का योग कर पूव अंचल क लोकसं कृ ित ने उ मेष कट िकया है िजसे जनसाधारण के गीत के प म उभारने का यास मा है। सोलह सं कार का मब वणन ऋतुओं के गीत यौहार , उ सव के गीत म मंगलाचरण िवधान, आि तकता, कै लादेवी के गीत का वणन, दानशीलता का भाव ि गोचर है। करौली सवाईमाधोपुर िजले के भू -भाग के िनवािसय का लोकसािह य के ित झान को तु त िकया है िजसम लोकगीत के पुट लोकभाषा म तुत िकये है। लोकसमाज म यि क लोकचेतना के ित पुि है। समाज के सभी वग म होने वाले उ सव , पव व सं कार का उ लेख सवाई माधोपुर व करौली लोकसािह य म सि िहत है। सामािजक पर पराएँ, िढ़याँ, व लोकाचार का िवशद िववेचन तु त शोध ब ध म लोकसािह य से स बि धत वणन है। लोकदेवता, देिवय का प रचया मक िववरण तु त है। शोध ब ध के अ त म सम िववेचन के प म लोकसािह य का िनर तर सृजन करने व भावी जीवन म उतारने का स देश है। ध य है वह धरा िजसक पिव तमा धरोहर म देशवािसय पर अनुक पा कर सवधमावलि बय को लोकजीवन म यापक प रवतनशील िवचारधाराओं से अवगत कराकर लोकसं कृ ित म अिमट छाप छोड़ी है। शोध के दौरान मुझे आ चय हआ िक लोकसािह य इतना समृ होते हए भी अभी तक िव ान के सि य अ ययन का िवषय नह बन पाया। ऐसा तीत होता है िक देश के दरू-दराज दगम ु भू -भाग, डाँग े म बसा होना, करौली व सवाई माधोपुर के लोक-सािह य के िलए उपे ा के कारण रहा, िक तु इस उपेि त सािह य

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के ित अपने लगाव और आकषण ने इन किठनाइय क िच ता िकये िबना अपने संक प क प रणित शोध- ब ध के प म हई। मने शोध के दौरान पाया िक करौली व सवाई माधोपुर िजले क एक सं कृ ित है, एक पहचान है , जो िक अपनी अ ुणता को आज भी बनाये हए है। यहाँ के ृ क गोद म पलने वाली धरती क संतान कहा जाये तो िनवािसय को कित ृ क उ मु तता, व छ दता, अितशयोि नह होगी। इनक जीवन साँस म कित ठहराव-बहाव, िनमलता देखने को िमलती है। तु त शोध- ब ध म स पूण करौली व सवाई माधोपुर िजले के लोकसािह य म िनिहत समाज और सं कृ ित का अ ययन कर िलिपब िकया है, अत: िनि चत प से यह करौली एवं सवाई माधोपुर के लोकसािह य को सुरि त रखने म अहम् भूिमका िनभाएगा, जो िक आने वाले लोकसािह य ेमी व वतमान राज थानी लोक सािह य के िलए अहम् योगदान होगा। यह शोध ब ध िह दी के अ येताओं को रचना मक सहयोग दान कर अपनी ासंिगकता बनाये रखेगा। 

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