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विज्ञान भैरि तंत्र विधि—66 (ओशो) ‘मित्र और अजनबी के प्रतत, िान और अपिान िें, असिता और सिभाि रखो।’
‘मित्र और अजनबी के प्रति, िान और अपिान िें , असििा और सिभाव रखो।’—-osho
‘असििा के बीच सिभाव रखो।’ यह आधार है । िुम्हारे भीिर या ि ि हो रहा है । दो चीजें ि ि हो रही है ।
िुम्हारे भीिर कोच चीज तनरर िर वैसी ही रहिी है ; वह कभी नहीर बदलिी। शायद िुिने इसका तनरीक्षण न ककया
हो। शायद िुिने अभी इसका साक्षात्कार न ककया हो। लेककन अ र तनरीक्षण करो े िो जानगे े कक िुम्हारे भीिर कुछ है जो तनरर िर वही का वही रहिा है । उसी के कारण िुम्हारा अपने को कें िि अनुभव करिे हो; अन्यथा िुि
क यक्ित्व होिा है । उसी के कारण िुि
क अराजकिा हो जाग े।
िुि कहिे हो; ‘िेरा बचपन।’ अब इस बचपन का या बच रहा है ? यह कौन है जो कहिा है : ‘िेरा बचपन’ यह
िेरा, िुझ,े िैं कौन है । िुम्हारे बचपन का िो कुछ भी शेन नहीर बचा है । य द िुम्हारे बचपन के तचत्र िुम्हें पहली दफा दखा
जाये िो िुि उन्हें पहचान भी नहीर सको े। सब कुछ इिना बदल
नहीर है । उसकी
क कोमशश भी वही नहीर है ।
शरीर शास्तत्री कहिे है कक शरीर
या है । िुम्हारा शरीर अब वही
क प्रवाह है —सररि-प्रवाह। प्रत्येक क्षण अनेक पुरानी कोमशका र िर रही है । और
अनेक नच कोमशका र बन रही है। साि वनों के भीिर िुम्हारा शरीर लबलकुल बदल जािा है । अ र िुि सत्िर
साल जीने वाल हो िो इस बीच िुम्हारा शरीर दस बार बदल जाये ा। पारा का पारा बदल जािा है । प्रत्येक क्षण िुम्हारा शरीर बदल रहा है ।
और िुम्हारा िन बदल रहा है । जैसे िुि अपने बचपन के शरीर का तचत्र नहीर पहचान सकिे हो वैसे ही य द
िुम्हारे बचपन के िन का तचत्र बनाना सरभव हो िो िुि उसे भी नहीर पहचान पाग े। िुम्हारा िन िो िुम्हारे शरीर से भी ज्यादा प्रवाहिान है। हर
क क्षण िें बदल जािा है ।
क क्षण के मल
भी कुछ स्तथाच नहीर है ।
ठहरा हुआ नहीर है । िन के िल पर सुबह िुि कुछ थे; शाि िुि लबलकुल ही मभन्न यक्ि हो जािे हो।
जब भी कोच यक्ि बध स ु से मिलने आिा था िो उसे दवदा होिे सिय बध स ु उससे कहिे थे: ‘’स्तिरण रहे , जो यक्ि िुझ से मिलने आया था वही आदिी वापस नहीर जा रहा है । िुि अब लबलकुल मभन्न आदिी हो। िुम्हारा िन बदल
या है ।
बुध स जैसे यक्ि से मिलकर िुम्हारा िन वही नहीर रह सकिा, उसकी बदलाह भले के मल
हो या बुरे के मल । िुि
आग े। कुछ बदल
क िन लेककर वही
या है । कुछ नया उससे जुड़
अतनवायय है —वह बदलाह
चाहे
ये थे; िुि मभन्न ही िन लेककर वहार सक वापस
या है । कुछ पुराना उससे अल
हो
या है ।
और अ र िुि ककसी से नहीर भी मिलिे हो, बस अपने साथ अकेले रहिे हो, िो भी िुि वही नहीर रह सकिे। पल-पल नदी वह रही है । हे रालाइ स ने कहा है कक िुि बाि िनुष्य के सरबरध िें सही है । िुि
क ही नदी िें दो बार नहीर प्रवेश कर सकिे। यही
क ही िनुष्य से दो बार नहीर मिल सकिे । असरभव है यह। और इसी
िथ्य के कारण—और इसके प्रति हिारे अज्ञान के कारण—हिारा जीवन सरिाप बन जािा है । यगेकक िुम्हारी अपेक्षा रहिी है । कक दस ा रा सदा वही रहे ा।
िुि अपने शरीर को दे खो, वह बदल रहा है । िुि अपने िन को सिझो, वह भी बदल रहा है । कुछ भी वही का वही नहीर रहिा है । वहार िक की ल ािार दो क्षणगे के मल
भी कुछ िुिने अपने मित्र को अजनबी की भारति नहीर
दे खा है िो िुिने दे खा ही नहीर है । अपनी पत्नी को दे खा; या िुि सच ही उसको जानिे हो? हो सकिा है िुि
उसके साथ बीस वनों से, या उसे भी ज्यादा सिय से रह रहे हो। लेककन वह अजनबी ही रहिी है । िुि क्जिना ज्यादा उसके साथ रहिे हो उिनी ही सरभावना है अपररतचि ही रहो। िुि उससे ककिना ही प्रेि करिे हो उससे कुछ फकय नहीर पड़िा।
सच िो यह है कक िुि उसे क्जिना ज्यादा प्रेि करो े वह उिनी ही रहस्तयिय िालाि पड़े ी। कारण यह है कक िुि उसे क्जिना ज्यादा प्रेि करो े। िुि उिने ही अतधक
हरे उसिे प्रवेश करो े। और िुम्हें िालाि पड़े ा कक
वह ककिनी नदी जैसी प्रवाहिान है , पररवियनशील है , जीवरि है और प्रति पल नच और मभन्न है । अ र िुि िुिने
हरे नहीर दे खिे हो, अ र िुि इसी िल से बरधे हो कक वह िुम्हारी पत्नी है , कक उसका यह नाि है , िो
क हस्तसे को पकड़ मलया है , और उस हस्तसे को िुि अपनी पत्नी की भारति दे खिे रहिे हो। और िब
जब भी िुम्हारी पत्नी िें कुछ बदलाह
हो ी, वह उस बदलाह
को िुिसे तछपाये ी। जब वह प्रेिपण ा य नहीर हो ी
िब भी िुिसे प्रेि का अमभनय करे ी, यगेकक िुम्हें उससे प्रेि की अपेक्षा है । और िब उसके कुछ नकली और
झाठ रूप िुम्हारे सािने हगे े। यगेकक उसे बदलने कक इजाजि नहीर है । उसे स्तवयर होने की इजाजि नहीर है । कुछ ऊपर से लादा जा रहा है और िब सारा सरबरध िुदाय हो जािा है ।
िुि क्जिना ही प्रेि करो ,े उिना ही पररवियन का पहला दखाच दे ा। िब िुि प्रत्येक क्षण अजनबी हो; जब िुि भदवष्यवाणी नहीर कर सकिे कक िुम्हारा पति कल सुबह कैसे भदवष्यवाणी कर सकिी है । भदवष्यवाणी िो िभी हो सकिी है । य द िुम्हारा पति िुदाय हो; िब िुि भदवष्यवाणी कर सकिी है । केवल वस्तिुगर के सरबरध िें
भदवष्यवाणी हो सकिी है । यक्ियगे के सरबरध िें भदवष्यवाणी नहीर हो सकिी। अ र ककसी यक्ि के सरबरध िें भदवष्यवाणी की जा सके िो जान लो कक वह िुदाय है, वह िर चुका है । उसका जीदवि होना झाठ है । इसीमल
उसके बारे िें भदवष्यवाणी हो सकिी है । यक्ियगे के सरबरध िें कोच भदवष्यवाणी नहीर हो सकिी है । यगेकक बदलाह
सरभव है ।
अपने मित्र को अजनबी की भारति दे खो; वह अजनबी ही है । और डरगे िि। हि अजनबी से डरिे है ; इसमल
हि
भाल जािे है । कक मित्र भी अजनबी है । अ र िुि अपने मित्र िें भी अजनबी को दे ख सको िो िुम्हें कभी
तनराशा नहीर हो ी। यगेकक अजनबी से िुि अपेक्षा नहीर होिी है । मित्र के सरबरध िें िुि सदा तनक्चि होिे है ।
िुि उससे जो कुछ चाहो े। वह नहीर होिा है । इससे ही अपेक्षा पैदा होिी है । और तनराशा हाथ ल िी है । यगेकक कोच यक्ि िुम्हारी अपेक्षागर को नहीर परा ा कर सकिा है । कोच यहार िुम्हारी अपेक्षा र परा ी करने के मल है । सब यहार अपने अपेक्षा र परा ी करने के मल
है । कोच िुम्हारी अपेक्षा र परा ी करने के मल
नहीर
नहीर है। लेककन िम् ु हें
अपेक्षा है कक दस ा रे िुम्हारी अपेक्षा र परा ी करें । और दस ा रगे को अपेक्षा है कक िुि उनकी अपेक्षा र परा ी करो। और िब कलह है , सरिनय है , हरसा है और दुःु ख है । अपने मित्र को अजनबी की भारति दे खो; वह अजनबी ही है । और डरगे िि। हि अजनबी से डरिे है ; इसमल
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भाल जािे है कक मित्र भी अजनबी है । अ र िुि अपने मित्र िें भी अजनबी को दे ख सको िो िुम्हें कभी तनराशा नहीर हो ी। यगेकक अजनबी से िुम्हें अपेक्षा नहीर होिी है । मित्र के सरबरध िें िुि सदा तनक्चि होिे हो कक िुि उससे जो कुछ चाहो े वह परा ा करे ा; इससे ही अपेक्षा पैदा होिी है । और तनराशा हाथ ल िी है । यगेकक कोच यक्ि िुम्हारी अपेक्षागर को नहीर परा ा कर सकिा है । कोच यहार िुम्हारी अपेक्षा र परा ी करने के मल
नहीर है । सब
यहार अपनी अपेक्षा है । कक दस ा रे िुम्हारी अपेक्षा र परा ी करें ,और दस ा रगे को अपेक्षा है कक िुि उनकी अपेक्षा र परा ी करो। और कब कलह है , सरिनय हरसा है और दुःा ख है ।
अजनबी को सदा स्तिरण रखो। िि भालगे कक िुम्हारा ितनष्ठ मित्र भी अजनबी है । दरा से भी दरा है । अ र यह
भाव, यह ज्ञान ि ि हो जा , िो कफर िुि अजनबी िें भी मित्र को दे ख सकिे हो। य द मित्र अजनबी हो सकिा है िो अजनबी भी मित्र हो सकिा है ।
ककसी अजनबी को दे खो; उसे िुम्हारी भाना नहीर आिी है । वह िुम्हारे दे श का नहीर है । िुम्हारे धिय का नहीर है । िुम्हारे रर
का नहीर है । िुि
ोरे हो और वह काला है । या िुि काले हो और वह
िुम्हारे और उसके बीच कोच सरवाद सरभव नहीर है । िुम्हारे और उसके पाजा स्तथल भी
ोरा है । भाना के जरर
क नहीर है । राष्र, धिय,
जाति, वणय, रर —कहीर भी कोच सिान भामि नहीर है । वह लबलकुल अजनबी है । लेककन उसकी आरखगे िें झारको, वहार
क ही िनुष्यिा मिले ी। वह सिान भामि है । उसके भीिर वहीर जीवन है जो िुििें है ; वह सिान भामि है । और
अक्स्तित्व भी वहीर है ; वह िुि दोनगे के मित्र होने का आधार है । िुि उसकी भाना भले हीन सिझो, लेककन उसको िो सिझ सकिे हो। िौन से भी सरवाद ि ि होिा है । उसकी आँखो िें और अ र िुि
हरे , झारकने भर से प्रक
हो सकिा है ।
हरे दे खना जान लो िो शत्रु भी िुम्हें धोखा नहीर दे सकिा; िुि उसके भीिर मित्र को दे ख
लो े। वह यह नहीर मसध स कर सिा कक वह िुम्हारा मित्र नहीर है। वह िुिसे ककिना ही दरा हो, िुम्हारे पास ही है ; यगेकक िुि उसी अक्स्तित्व की धारा िें हो, उसी नदी िें हो, क्जसिे वह है । िुि दोनगे अक्स्तित्व के िल पर
क
ही जिीन पर खड़े हो।
और अ र वह भाव प्र ाढ़ हो िो
क वक्ष ु से बहुि दरा नहीर है । िब क पत्थर भी बहुि अ ल नहीर है । ृ भी िि क पत्थर ककिना अजनबी है । उसके साथ िुम्हारा कोच िालिेल नहीर है ; उसके साथ सरवाद की कोच सरभावना
नहीर है । लेककन वहार भी वही अक्स्तित्व है ; पत्थर का भी अक्स्तित्व है , वह भी अक्स्तित्व का अरश है । वह भी होने के ज ि िें भा ीदार है । वह है । उसिें भी जीवन है । वह भी स्तथान िेरिा है; वह भी सिय िें जीिा है । सारज उसके मल
भी उ िा है । जैसे िुम्हारे मल
जैसे िुि िर जाग े। वह भी िर जा हो जा
उ िा है ।
ा। पत्थर भी
क दन वह नहीर था। जैसे िुि नहीर थे। और
क दन
क दन दवदा
ा।
अक्स्तित्व िें हि मिलिे है ; यह मिलन ही मित्रिा है । यक्ित्व िें हि मभन्न है, अमभयक्ि िें हि मभन्न है ; लेककन ित्वि: हि
क ही है । अमभयक्ि िें रूप िें हि अजनबी है ; उस िल पर हि
क दस ा रे के ककिने ही
करीब आ र, लेककन दरा ही रहें े। िुि पास-पास बैठ सकिे हो, क दस ा रे को आमलर न िें ले सकि हो; लेककन इससे ज्यादा तनक
आने की सरभावना नहीर है । जहार िक िुम्हारे बदलिे यक्ित्व का सरबरध है , िुि
क नहीर हो
सकिे हो। िुि कभी सिान नहीर हो। िुि सदा मभन्न हो, अजनबी हो। उस िल पर िुि नहीर मिल सकिे यगेकक मिलने के पले ही िुि बदल जािे हो। मिलन की कोच सरभावना नहीर है । जहार िक शरीर का सरबरध है , िन का सरबरध है , मिलन सरभव नहीर है । यगेकक इसके पहले कक िुि मिलो िुि वही नहीर रहिे। या िुिने कभी याल ककया है। िुम्हें ककसी के प्रति प्रेि उि िा है ।
हन प्रेि िुि उस प्रेि से भर जािे हो;
लेककन जैसे ही िुि जािे हो और कहिे हो कक िैं िुम्हें प्रेि करिा हार, वह प्रेि दवलीन हो जािा है । या िुिने तनरीक्षण ककया है कक वह प्रेि अब नहीर रहा, उसकी स्तितृ ि भर शेन है । अभी वह था और अभी वह नहीर है । िुिने उसे अमभयि ककया, उसे प्रक
ककया; यही िथ्य उसे पररवियन के ज ि िें ले आया। जब उसकी प्रिीति
हुच थी, हो सकिा है वह प्रेि िुम्हारे प्राणगे का हस्तसा रहा हो; लेककन जब िुि उसे अमभयि करिे हो िो िुि उसे सिय और पररवियन के ज ि िें ले आिे है ; अब वह सररि प्रवाह िें प्रदवष् हो रहा है । जब िुि कहिे हो कक िैं िुम्हें करिा हार, िब िक शायद वह लबलकुल ही तनरीक्षण करो े िो यह िथ्य बन जा ा।
ायब हो चुका हो। यह बहुि क ठन है ; लेककन अ र िुि
िब िुि दे ख सकिे हो कक मित्र िें अजनबी है और अजनबी ने मित्र है । और िब िुि ‘असिानिा के बीच सिभाव’ रख सकिे हो। पररतध पर िुि बदलिे रहिे हो, लेककन केंि पर, प्राणगे िें वही बन रहिे हो। ‘िान और अपिान िें ……।‘ कौन सम्िातनि होिा है । और कौन अपिातनि होिा है ? िुि? कभी नहीर। जो सिि बदल रहा है और जो िुि
नहीर हो, मसफय वहीर िान अपिान अनुभव करिा है । कोच िुम्हारा सम्िान करिा है । और अ र िुिने सिझा कक
यह यक्ि िेरा सम्िान कर रहा है। िो िि ु क ठनाच िें पड़ो ।े वह िम् ु हें नहीर, िम् ु हारी ककसी खास अमभयक्ि
को, ककसी रूप दवशेन को सम्िातनि कर रहा है । वह िुम्हें कैसे जान सकिा है ? िुि स्तवयर अपने को नहीर जानिे हो। वह िुम्हारे सिि बदलिे यक्ित्व के ककसी रूप दवशेन का सम्िान कर रहा हार; वह िुम्हारी ककसी अमभयक्ि का सम्िान कर रहा है । िुि दयावान हो, प्रेिपाणय हो; वह उसका सम्िान कर रहा है। लेककन वह
दया, वह प्रेि पररतध पर है । अ ले क्षण िुि िण ृ ा से भर सकिे हो। हो सकिा है फाल न रहें ; कार े ही कार े हगे।
िुि इिने प्रसन्नन रहो; उदास और दुःु खी होग। िुि कठोर हो सकिे हो, क्रोध िें हो सकिे हो। िब वह िुम्हारा अपिान करे ा। और हो सकिा है । और दस ा रे दन साधु कर सकिे है । आज वे िुम्हें िहात्िा कह सकिे है । और कल वे िुम्हारे लखलाफ हो सकिे हो। िुम्हें पत्थर िार सकिे है ।
यह या है? वे िुम्हारी पररतध से पररतचि होिे है । वे कभी िुिसे पररतचि नहीर होिे। यह स्तिरण रहे कक जो कुछ भी कह रहे है । वह िुम्हारे सरबरध िें नहीर है । िुि बाहर छा
जािे हो; िुि परे रह जािे हो। उसकी तनरदा,
उसकी प्रशरसा,वह जो भी करिे है , उसका िुम्हारे साथ कोच भी सरबरध नहीर है । ारव िें
क लड़की
भयविी हो
च। उसने अपने िार बाप से कहा कक उसके
भय के मल
है । और सारा
यह साधु ही क्जम्िेदार
ारव उसके लखलाफ उठ खड़ा हुआ। लो आ और उन्हगेने उसके झगेपड़े िें आ ल ा दी। सुबह का सिय था। और बड़ी सदय सब ु ह थी—जाड़े की सुबह। उन्हगेने नवजाि मशशु को उस मभक्षु के ऊपर फेंक दया। और लड़की के दपिा ने मभक्षु से कहा: ‘यह िुम्हारा बचा है; इसे सम्हालो।’ मभक्षु ने इिना ही कहा: ‘ऐसा है या?’ और िभी बचा रोने ल ा। िो मभक्षु भीड़ को भल ा कर,बचे को सम्हालने ल ा। भीड़ मभक्षु के झगेपड़े को जलाकर वापस लौ पैसे नही थे। िो वह न र िें बचे के मल
च। इधर बचे को भाख ल ी, लेककन मभक्षु के पास दध ा खरीदने के
भीख िार ने
या। लेककन अब उसे कौन भीख दे िा? वह जहार भी
या, लो गे ने अपने िरगे के दरवाजे बरद कर मल । सब ज ह उसे तनरदा और
ामलयार ही मिली।
आलखर िें मभक्षु उसी िर के सािने पहुरचा जो उस बचे की िार का िर था। वह लड़की बहुि सरिाप िें थी। िभी उसे बचे के रोने की आवाज सुनाच दी। वह वावार पर खड़ा मभक्षु कह रहा था। ‘िुझे िि दो, िैं पापी हार, लेककन यह बचा िो पापी नहीर है । इसके मल
थोड़ा दध ा दे दरो।’ िब उस लड़की से नहीर रहा
मलया कक बचे के असली दपिा को तछपाने के मल अब पारा न र कफर साधु के पास जिा हो
या। लो
या। उसने कबल ा कर
उसने इस मभक्षु का नाि मलया था। वह लबलकुल बेकसार है । उसके पैरगे िें त रकर क्षिा िार ने ल े। और लड़की के
दपिा ने आकर मभक्षु से बचे को वापस ले मलया और आरसुगर से भरी आरखगे से कहा: ‘ऐसा है या? आपने सुबह ही इनकार यगे नही ककया? कक यह बचा आपका नहीर है । मभक्षु ने केवल इिना ही कहा कक ऐसा है या?’
अ र िुि अनासि रहने का प्रयत्न करिे हो िो िुि पररतध पर ही हो; िुम्हें अभी केंि का कुछ पिा नहीर है । केंि अनासि है । वह सदा अनासि है । वह पार है ; वह सदा अस्तपमशयि है । नीचे कुछ भी ि े , यह केंि सदा अनछुआ ही रहिा है । सदा करु वारा ही रहिा है ।
िो परस्तपर दवरोधी क्स्तथतियगे िें इस दवतध का प्रयो
करो; और अपने भीिर उसे अनुभव करिे चलो जो सदा
सिान है । जब कोच िुम्हारा अपिान करे िो अपने यान को उस लबरद ा पर ले जाग जहार िुि मसफय उस आदिी
को सुन रहे हो, लबना ककसी प्रतिकक्रया के बस सुन रहे हो। यह अपिान की क्स्तथति है । कफर कोच िुम्हारा सम्िान कर रहा है । उसे भी सुनो, मसफय सुनो। तनरदा-प्रशरसा, िान-अपिान, सब िें मसफय सुनो। िुम्हारी पररतध बेचैन हो ी,
उसे भी दे खो। केवल दे ख बदलने की कोमशश िि करो। उसे दे खो, और स्तवयर केंि से जुड़े रहो। िब िुम्हें वह अनासक्ि उपलध हो ी जो आरोदपि नहीर है । जो सहज है , स्तवाभादवक है । और
क बार िुिने इस सहज अनासक्ि की प्रिीति हो जा
िो कफर कुछ भी िुम्हें बेचैन नहीर कर सके ा।
िुि शारि बने रहो े। सरसार िें कुछ भी हो ा िुि अकरप बने रहो े। िब कोच िुम्हारी हत्या भी करे ा िो मसफय शरीर ही स्तपशय करे ा। िुि अस्तपमशयि रहो े। िुि सबके पार रहो े। और यह पार रहना ही िुम्हें अक्स्तित्व िें प्रवेश दे ा। वह पार रहना ही िुम्हें आनरद से, शावि से, सत्य िें प्रतिक्ष्ठि करे ा।
शरकर कहिे है कक िैं उस यक्ि को सरन्यासी कहिा हार, जो जानिा है कक या अतनत्य है और या तनत्य है । या चलायिान है और या अचल है । भारिीय दशयन इसे ही दववेक कहिा है । पररवियन और सनािन की पहचान ही दववेक है , बोध है । िुि जो कुछ भी कर रहे हो, उसिे इस सात्र का प्रयो
बड़ी
हराच के साथ और बड़ी सरलिा के साथ ककया जा
सकिा है । िुम्हें भाख ल ी है ; इसिे दोनगे क्स्तथतियगे को स्तिरण रखो। भाख की प्रिीति पररतध को होिी है । यगेकक पररतध को ही भोजन की जरूरि है । ईंधन की जरूरि है । िुम्हें भोजन की कोच जरूरि नहीर है ; िुम्हें ईंधन की कोच जरूरि नहीर है । यह शरीर की जरूरि है ।
स्तिरण रहे , जब भी भाख ल िी है । शरीर को ल िी है । िुि बस उसके जानने वाल हो। अ र िुि नहीर होिे िो भाख नहीर जानी जा सकिी है । और अ र शरीर नहीर होिा िो भाख नहीर होिी। शरीर को भाख िो ल
सकिी है ,
लेककन उसे उसका ज्ञान नहीर हो सकिा है । और िुि जानिे िो हो, लेककन िुम्हें भाख नहीर ल िी।
िो कभी िि कहो कक िुझे भाख ल ी है । सदा यही कहो,और िहसास करने का प्रयास करो की ककसे भाख ल ी
है । उपवास की दवतध यानी के यही क्स्तथति उत्पन्न करिा है । की िेरा शरीर भाखा है । अपने जानने पर जोर दो। यह दववेक है । िुि बाढ़े हो, कभी िि कहो कक िैं बाढ़ा हार, इिना ही कहो कक यह शरीर बाढा हो या है । और िब ित्ृ यु के क्षण िें िुि जान सको े की िैं नहीर िर रहा। यह शरीर िर रहा है । िैं केवल शरीर बदल रहा हार। िर बदल रहा हार। और अ र यह दववेक प्र ाढ़ हो िो ककसी दन अचानक बुध सत्व ि ि हो जा ओशो
ा।
विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-तीन प्रिचन-41
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—67 (ओशो)
‘यह ज ि पररवियन का है , पररवियन ही पररवियन का। पररवियन के वावारा पररवियन को दवसक्जयि करो।’
पररवियन के वावारा पररवियन को दवसक्जयि करो–मशव
पहली बाि िो यह सिझने की है कक िुि जो भी जानिे हो वह पररवियन है , िुम्हारे अतिररि जानने वाले के अतिररि सब कुछ पररवियन है। या िुिने कोच ऐसी चीज दे खी है । जो पररवियन न हो। जो पररवियन के अधीन न हो। यह सारा सरसार पररवियन की ि ना है ।
हिालय भी बदल रहा है । हिालय का अयन करने वाले वैज्ञातनक कहिे है कक हिालय बढ़ रहा है । बड़ा हो रहा है । हिालय सरसार का सबसे कि उम्र का पवयि है । वह अभी बचा है और बढ़ रहा है । वह अभी प्रौढ़ नहीर हुआ है । वह अभी उस अवस्तथा को नहीर प्राि हुआ है । जहार पहारच कर ्ास या त राव शुरू होिी है । हिालय बचे जैसा है । दवरयाचल सरसार के सबसे पुराने पवयिगे िें हैं। कुछ िो उसे दतु नयार का सबसे परु ाना पवयि िानिे है । स दयगे से वह अपने बुढ़ापे के कारण क्षीण हो रहा है । िर रहा है । िो इिना क्स्तथर और अगड
और ढ़ढ़ िालाि पड़ने वाला हिालय भी बदल रहा है । वह बस पत्थरगे कीर नदी जैसा
नहीर है । पत्थर होने से कोच फकय नहीर पड़िा। पत्थर भी प्रवाहिान है , बह रहा है । िुलनात्िक ढ़क्ष् बदल रहा है । लेककन ऐसा सापेक्षि: है ।
कोच भी चीज, क्जसे िुि जान सकिे हो बदलाह
से सब कुछ
के लबना नहीर है । िेरी बाि खयाल िें रहे । क्जसे िुि जानिे हो
वह वस्तिु तनत्य बदल रही है । जाननेवाले के अतिररि कुछ भी तनत्य नहीर है । शावि नही है । लेककन जानने वाला सदा पीछे है । वह सदा जानिा है ; वह कभी जाना नहीर जािा। वह कभी आजे्स नहीर बन सकिा; वह सदा सजै
ही रहिा है । िि ु जो कुछ भी करिे हो या जानिे हो, जाननेवाला सदा उससे पीछे है । िुि उसे नहीर
जान सकिे हो।
और जब िैं कहिा हार कक िुि जाननेवाले को नहीर जान सकिे, िो इससे परे शान िि होग। जब िैं कहिा हार कक िुि उसे नहीर जान सकिे हो िो उसका ििलब है कक िुि उसे दवनय की िरह नहीर जान सकिे हो। िैं िुम्हें दे खिा हार , लेककन िैं उसी िरह अपने को कैसे दे ख सकिा हार। यह असरभव है । यगेकक ज्ञान के मल दो चीजें जरूरी है । ज्ञािा और ज्ञेय। िो जब िैं िुम्हें दे खिा हार िो िुि ज्ञेय हो और िैं ज्ञािा हार। और दोनगे के बीच ज्ञान सेिु की िरह है । लेककन ज्ञान का यह सेिु कहार बने ा। जब िैं अपने को ही दे खिा हार। जब िैं अपने को ही
जानने की कोमशश करिा हार। वहार िो केवल िैं ही हार, पारी िरह अकेला िैं हार। दस ा रा ककनारा लबलकुल अनुपक्स्तथि है । कफर सेिु कहार तनमियि ककया जा ? स्तवयर को जाना कैसे जा र? िो आत्िज्ञान
क नेति-नेति प्रकक्रया है । िुि अपने को सीधे-सीधे नहीर जान सकिे; िुि मसफय ज्ञान के दवनयगे को
ह ािे जा सकिे हो। ज्ञान के दवनयगे को
क- क करके छोड़िे चले जाग। और जब ज्ञान का कोच दवनय न रह
जा , जब जानने को कुछ भी न रह जा । मसफय दवनयगे को छोड़िे जाना—िब
क शान्य, क खाली पन रह जा —और यही यान है । ज्ञान के
क क्षण आिा है जब चेिना िो है लेककन जानने के मल
कुछ नहीर है । जानना िो
है , लेककन जानने को कुछ नहीर बचिा है । िब जानने की सहज-शुध स ऊजाय रहिी है । लेककन जानने को कुछ नहीर बचिा है । कोच दवनय नहीर रहिा है । उस अवस्तथा िें जब जानने को कुछ नहीर रहिा, िुि
क अथों िें स्तवयर को
जानिे हो। अपने को जानिे हो।
लेककन यह ज्ञान अन्य सब ज्ञान से सवयथा मभन्न है । दोनो के मल इसीमल
क ही शद का उपयो
करना ्ािक है ।
अनेक रहस्तयवा दयगे ने कहा है कक आत्िज्ञान शद दवरोधाभासी है । ज्ञान सदा दस ा रे को होिा है । अरि:
आत्ि ज्ञान सरभव नहीर है । जब दस ा रा नहीर होिा है िो कुछ होिा है , िुि उसे आत्ि ज्ञान कह सकिे हो। लेककन यह शद ्ािक है ।
िो िि ु जो भी जानिे हो वह पररवियन है । ये जो दीवारें है, ये भी तनरर िर बदल रही है । और भौतिक शास्तत्र भी
इसका सिथयन करिा है । जो दीवार है , ये स्तथाच िालाि पड़िी है । ठहरी हुच ल िी है । वह भी प्रति पल बदल रही है । क- क परिाणु बह रहा है । प्रत्येक चीज बह रही है । लेककन उसकी ति इिनी िीर ह है कक उसका पिा नहीर चलिा है । दोपहर भी वह ऐसे ल िी थी याि भी ऐसे ल िी है ।
यह सात्र कहिा है कक सभी चीजें बदल रही है । ‘यह ज ि पररवियन का है …..।’ इस सात्र पर ही बुध स का सिस्ति दशयन खड़ा है । बुध स कहिे है कक प्रत्येक चीज बहाव है , बदल रही है । क्षणभर ुर है । और यह बाि प्रत्येक यक्ि को जान लेना चा ह । बुध स का सारा जोर इसी इसी बाि पर आधाररि है । िुम्हें
क बाि पर है ; उनकी पारी ढ़क्ष्
क चेहरा दखाच दे िा है , बहुि सुरदर है । और जब िुि सुरदर रूप को दे खिे हो िो भाव होिा है कक यह रूप
सदा ही ऐसा रहे ा। इस बाि को ठीक से सिझ लो ऐसी अपेक्षा कभी िि करो। और अ र िुि जानिे हो कक यह रूप िेजी से बदल रहा है , कक यह इस क्षण सुरदर है और अ ले क्षण कुरूप हो जाये ा। िो कफर आसक्ि कैसे पैदा हो ी? असरभव है ।
क शरीर को दे खो,वह जीदवि है ; अ ले क्षण वह िि ृ हो सकिा है । अ र िुि
पररवियन को सिझो िो सब यथय है ।
बुध स ने अपना िहल छोड़ दया, पररवार छोड़ दया। सुरदर पत्नी छोड़ दी, यारा पुत्र छोड़ दया। और जब ककसी ने पाछा कक यगे छोड़ रहे हो, िो उन्हगेने कहार: ‘जहार कुछ भी स्तथाच नहीर है,वहार रहने का या प्रयोजन? बचा
क
न
क दन िर जाये ा।’ और बचे का जन्ि उसी राि हुआ था। उसके जन्ि के कुछ िर े बाद ही उन्हगेने उसे अरतिि बार दे खा। अपनी पत्नी के किरे िें ये। पत्नी की पीठ दरवाजे की और थी और वह बचे को अपनी बारहगे िें मल
सो रही थी। बुध स ने अलदवदा कहना चाहा। लेककन वे लझझके। उन्हगेने कहा: ‘ क क्षण उनके िन
िें यह दवचार कौंधा कक बचे के जन्ि के कुछ िर े ही हु है । िैं उसे अरतिि बार दे ख हार। िब उनके िन ने कहार, या प्रयोजन है , सब िो बदल रहा है । आज बचा पैदा हुआ है । कल िर जाये ा। क दन पहले यह नहीर था, अभी वह है । और ये।
क दन कफर नहीर रहे ा। िो या प्रयोजन है सब बदल रहा है ।’ वे िुड़े और दवदा हो
जब ककसी ने पाछा कक आपने यगे सब कुछ छोड़ दया? िैं अपनी खोज िें हार। जो कभी नहीर बदलिा,जो शावि है । य द िैं पररवियनशील के साथ अ का रहार ा। िो तनराशा ही हाथ आये ी। क्षण भर ुर से आसि होना िाढ़िा
है । वह कभी ठहरने वाला नहीर है । िैं िाढ़ नहीर हार। िैं िो उसकी खोज कर रहा हार जो कभी नहीर बदलिा, जो तनत्य है । अ र कुछ शावि है िो ही जीवन िें अथय है , जीवन िें िाल्य है । अन्यथा सब यथय है । यह सात्र सुरदर है । यह सात्र कहिा है । ‘पररवियन के वावारा पररवियन को दवसक्जयि करो।‘’ बध स ु कभी दस ा रा हस्तसा नहीर कहिे। यह दस ा रा हस्तसा बतु नयादी रूप से िरत्र से आया है । बध स ु इिना ही कहें े। कक सब कुछ पररवियनशील है । इसे अनुभव करो। और िुम्हें आसक्ि नहीर हो ी। और जब आसक्ि नहीर हो ी िो धीरे -धीरे अतनत्य को छोड़िे-छोड़िे िुि अपने केंि पर पहुरच जाग े। जो तनत्य है । शावि है । पररवियन को छोड़िे जाग और िुि अपररवियन पर केंि पर, चक्र के केंि पर पहुरच जाग े। इस मल
बुध स ने चक्र को अपने धिय का प्रिीक बनाया है । यगेकक चक्र चलिा रहिा है । लेककन उसकी धुरी,
क्जसके सहारे चक्र चलिा है , ठहरी रहिी है । स्तथाच है । िो सरसार चक्र की भारति चलिा रहिा है । िुम्हारा यक्ित्व चक्र की भारति बदलिा रहिा है । धुरी अचल रहिी है ।
िरत्र कहिा है कक जो पररवियनशील है उसे छोड़ो िि, उसिे उिरो, उसिें जाग। उससे आसि िि होग। लेककन उसिें जीगर। उससे डरना या है ? उसे ि ि होने दो। और िुि उसिें
ति कर जाग। उसे उसके वावारा ही
दवसक्जयि करो। डरगे िि; भा गे िि। भा कर कहार जाग े। इससे बचो े कैसे? सब ज ह िो पररवियन है । िरत्र कहिा है ,बदलाह
ही मिले ी। सब भा ना यथय है । भा ने की कोमशश ही िि करो। िब करना या है ?
आसक्ि िि तनमियि करो। िुि पररवियन हो जाग। उसके साथ कोच सरिनय िि खड़ा करो। उसके साथ बहो।
नदी बह रही हे । उसके साथ बहो। िेरो भी िि। नदी को ही िुम्हें ले जाने दो। उसके साथ लड़गे िि; उससे लड़ने से िुम्हारी शक्ि बरबाद हो ी। और जो होिा है , उसे होने दो। नदी के साथ बहो। इससे या हो ा? अ र िुि नदी के साथ लबना सरिनय कक
बह सके; लबना ककसी शिय के बह सके, अ र नदी की
दशा ही िुम्हारी दशा हो जा , िो िुम्हें अचानक यह बोध हो ा कक िैं नदी नहीर हार, िुम्हें यह बोध हो ा कक िैं नदी नहीर हार, इसे अनुभव करो; ककसी दन नदी िें उिर कर इसका प्रयो करो। नदी िें उिरो, दवश्राि पाणय रहो और अपने को नदी के हाथगे िें छोड़ दो। उसे िुम्हें बहा ले जाने दो। लड़गे िि, नदी के साथ अचानक िुम्हें अनुभव हो ा कक चारगे िरफ नदी है, लेककन िै नदी नहीर हार। य द नदी िें लड़ो े िो िुि यह बाि भाल जा सकिे हो। इसीमल
क हो जाग। िब
िरत्र कहिा है : ‘पररवियन से पररवियन को
दवसक्जयि करो।’ लड़ो िि, लड़ने की कोच जरूरि नहीर है । यगेकक पररवियन िुििें नहीर प्रवेश कर सकिा है । डरो नहीर; सरसार िें रहो। डरो िि;यगेकक सरसार िुििें प्रवेश नहीर कर सकिा है । उसे जीगर। कोच चुनाव िि करो। दो िरह के लो
है ।
क वे जो पररवियन के ज ि से तचपके रहिे है । और
लेककन िरत्र कहिा है कक ज ि पररवियन है , इसमल
क वे है जो उससे भा
जािे है ।
उससे तचपकना नहीर है । दोनगे यथय है । इससे भा ने को। वह
बदल ही रहा है । िुि नहीर थे िब यह बदल रहा था। िुि नहीर रहो े िब भी यह बदलिा रहे ा। कफर इसके मल इिना शोर
ाल यो?
‘पररवियन को पररवियन से दवसक्जयि करो।’
यह
क बहुि हन सरदेश है । क्रोध को क्रोध से दवसक्जयि करो; काि को काि से दवसक्जयि करो; लोभ को लोभ से दवसक्जयि करो, सरसार को सरसार से दवसक्जयि करो। उससे सरिनय िि करो, दवश्रािपाणय रहो। यगेकक सरिनय से
िनाव पैदा होिा है ; िनाव से तचरिा और सरिाप पैदा होिा है । दवश्रािपाणय रहो। िुि नाहक उपिव िें पड़ो े। सरसार जैसा है उसे वैसा ही रहने दो। दो िरह के लो
है जो सरसार को वैसा ही नहीर रहने दे ना चाहिे जैसा वह है । वे क्रारतिकारी कहलािे है । वे उसे
बदलें े ही; वे उसे बदलने के मल
जद्दोजहद करें े। वे उसे बदलने िें अपना सारा जीवन ल ा दें े। और यह
ज ि अपने आप बदल रहा है । उनकी कोच जरूरि नहीर है । वे अपने को नष् खुद खत्ि हगे े। और सरसार बदल ही रहा है ; इसके मल
करें े। दतु नया को बदलने िें वे
ककसी क्रारति की जरूरि नहीर है । सरसार स्तवयर
क क्रारति
है ; वह बदल ही रहा है ।
िुम्हें आचयय हो ा। की भारि िें िहान क्रारतिकारी यगे नहीर पैदा हु । यह इसी अरिढ़क्ष् का पररणाि है कक सब अपने आप ही बदल रहा है । उसके मल क्रारति की कोच जरूरि नहीर है । िुि उसे बदलने के मल यगे परे शान होिे हो। िुि न उसे बदल सकिे हो और न बदलाह
को रोक सकिे हो।
क िरह का यक्ित्व सदा सरसार को बदलने की चेष् ा करिा है । धिय की ढ़क्ष् रूग्ण है । सच िो यह है अपने साथ रहने िें उसे भय ल िा है। इसमल
िें वह िानमसक िल पर
वह भा िा कफरिा है। और सरसार िें
उलझा रहिा है । राज्य को बदलना है , सरकार को बदलना है; सिाज , यवस्तथा, अथयनीति, सब कुछ को बदलना है । और इसी सब िें दव िर जा
ा। और उसे आनरद का, उस सिातध का
क कण भी नहीर उपलध हो ा। क्जसिें
वह जान सकिा था कक िैं कौन हार। और सरसार चलिा रहे ा। सरसार चक्र िाििा रहे ा। सरसार चक्र ने अनेक क्रारतिकारी दे खे है । और वह िाििा ही जािा है । िि ु न िो इसे रोक सकिे हो, और न िुि उसकी बदलाह को िेज ही कर सकिे हो।
रहस्तयवा दयगे की, बुध सगे की यह ढ़क्ष्
है । वे कहिे है कक सरसार को बदलने की कोच जरूरि नहीर है । लेककन बुध सगे
की भी दो को यार है । कोच कह सिा है कक सरसार को बदलने की जरूरि नहीर है , लेककन अपने को बदलने की
जरूरि िो है । वह भी पररवियन िें दववास करिा है । वह ज ि को बदलने िें नहीर, लेककन अपने िें बदलने िें दववास करिा है । लेककन िरत्र कहिा है । कक ककसी को भी बदलने की जरूरि नहीर है —न सरसार को और न अपने को। रहस्तय का, अयात्ि का यह
हनत्ि िल है । यह उसका अरिरिि केंि है । िुम्हें ककसी को भी बदलने की जरूरि नहीर है —
न सरसार को और न अपने को। िुम्हें इिना ही जानना है कक सब कुछ बदल रहा है , और िुम्हें उस बदलाह
के
साथ बहाना है , उसे स्तवीकार करना है ।
और जब बदलने को कोच पररवियन नहीर है , िो िुि सिग्ररिुः: दवश्रािपाणय हो सकिे हो। जब िक प्रयत्न है । िुि दवश्रािपाणय नहीर हो सकिे। िब िक िनाव बना रहे ा। यगेकक िुम्हें अपेक्षा है कक भदवष्य िें कुछ होने वाला है, ज ि बदलने वाला है । सरसार िें साम्यवाद आने वाला है । या पथ ृ वी पर स्तव य उिरने वाला है । या भदवष्य िें कोच ऊ ोदपया आने वाला है । या िुि प्रभु के राज्य िें प्रवेश करने वाले हो। स्तव य िें दे वदि ा िुम्हारा स्तवा ि करने के मल रहो ।े
िैयार खड़े है —जो भी हो; िुि भदवष्य िें कही अ के हो। इस अपेक्षा के साथ िुि िनावपाणय
िरत्र कहिा है , इन बािगे को भाल जाग। सरसार बदल ही रहा है । और िुि भी तनरर िर बदल रहे हो। बदलाह अक्स्तित्व है । इसमल
बदलाह
िुि भदवष्य की कोच तचरिा कक
की तचरिा िि करो। िुम्हारे लबना ही बदलाह
ही
हो रही है । िुम्हारी जरूरि नहीर है ।
लबना उसिे बहो; और िब अचानक िुम्हें अपने भीिर के उस केंि का बोध हो
ा जो कभी नहीर बदलिा है , जो सदा वही का वही रहिा है ।
ऐसा यगे होिा है ? यगेकक जब िुि दवश्रािपाणय होिे हो िो बदलाह
की पष्ृ ठभामि िें दवपरीि दखाच पड़िा है ।
पररवियन की पष्ृ ठभामि िें िुम्हें सनािन का, शावि का बोध होिा है । अ र िुि सरसार को या अपने को बदलने का प्रयत्न िें ल े हो िो िुि अपने भीिर छो े से अकरप, क्स्तथर ठहरे हु बदलाह िें इिने तिरे हो कक िुि उसे नहीर दे ख पािे हो जो है । सब िरफ पररवियन है । यह पररवियन पष्ृ ठभामि बन जािा है । कररास्त दवश्राि िें होिे हो, इसमल
केंि को नहीर दे ख पाग े। िुि
बन जािा है । और िुि मशतथल होिे हो।
िुम्हारे िन िें भदवष्य नहीर होिा। भदवष्य के दवचार नहीर होिे। िि ु यहार और अभी
होिे हो। यह क्षण ही सब कुछ होिा है । सब कुछ बदल रहा है —और अचानक िुम्हें अपने भीिर उस लबरद ा का बोध है जो कभी नहीर बदला है ।
‘पररवियन से पररवियन को दवसक्जयि करो।’ इसका अथय यही है । लड़ो िि। ित्ृ यु के वावारा अिि ृ को जान लो; ित्ृ यु के वावारा ित्ृ यु को िर जाने दो। उससे लड़ाच िि करो। िरत्र की ढ़क्ष्
को सिझना क ठन है । कारण है कक हिारा िन कुछ करना चाहिा है । और िरत्र है कुछ न करना।
िरत्र किय नहीर, पाणय दवश्राि है । लेककन यह
क सवायतधक
ुह्ि रहस्तय है । और अ र िुि इसे सिझ सको। अ र
िुम्हें अ र िुम्हें इसकी प्रिीति हो जा ,िो िुम्हें ककसी अन्य चीज की तचरिा लेने की जरूरि नहीर है । ये अकेली दवतध िुम्हें सब कुछ दे सकिी है ।
िब िुम्हें कुछ करने की जरूरि नही है । यगेकक िुिने इस रहस्तय को जान मलया है जो पररवियन से पररवियन
का अतिक्रिण कर रहा हे । ित्ृ यु से ित्ृ यु का अतिक्रिण हो सकिा है । काि से काि का अतिक्रिण हो सकिा है । क्रोध से क्रोध का अतिक्रिण हो सकिा है । अब िुम्हें यह करु जी मिल
च है कक जहर से जहर का अतिक्रिण
हो सकिा है । ओशो
विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-तीन प्रिचन-43
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—68 (ओशो) जैसे िुगी अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है , िैसे ही यथाथथ िें विशेष ज्ञान और विशेष कृत्य का पालनपोषण करो।
दवशेन ज्ञान और दवशेन कृत्य का पालन-पोनण करो।–मशव
इस दवतध िें िालभाि बाि है : ‘यथाथय िें ।’ िुि भी बहुि चीजगे का पालन पोनण करिे हो; लेककन सपने िें , सत्य िें नहीर। िुि भी बहुि कुछ करिे हो; लेककन सपने िें सत्य िें नहीर। सपनगे को पोनण दे ना छोड़ दो। सपनगे को बढ़ने िें सहयो
िि दो। सपनगे को अपनी ऊजाय िि दो। सभी सपनगे से अपने को पथ ृ क कर लो।
यह क ठन हो ा, यगेकक सपनगे िें िुम्हारे न्यस्ति स्तवाथय है । अ र िुि अपने को अचानक सपनगे से लबलकुल अल आ
कर लो े िो िुम्हें ल े ा कक िैं डाब रहा हार, िैं िर रहा हार। यगेकक िुि हिेशा स्तथत ि सपनगे िें रहिे हो। िुि कभी यहार और अभी नहीर रहे ; िुि सदा कहीर और रहिे आ हो। िुि आशा करिे रहे हो।
या िुिने परडोरा का डबा यानानी कहानी सन ु ी है । ककसी आदिी ने बदला लेने के मल डबा भेजा। इस डबे िें से सब रो जब वह डबा खुला िो सभी रो दया। केवल
क रो
रह
परडोरा के पास
बरद थे जो अभी िनुष्य जाति के बीच फैले है । वे रो
बाहर तनकल आ । परडोरा रो गे को दे खकर डर
या। गर वह थी आशा। अन्यथा आदिी सिाि हो
क
उसके पहले नहीर थे;
च गर उसने डबा बरद कर
या होिा; ये सारे रो
उसे िार
डालिे, लेककन आशा के कारण वह जीदवि रहा। िुि यगे जी रहे हो? या िुिने कभी यह प्रन पाछा है? यहार और अभी जीने के मल
कुछ भी नहीर है । मसफय
आशा है । िुि भी परडोरा का डबा ढो रहे हो। ठीक अभी िुि यगे जीदवि हो? हरे क सुबह िुि यगे लबस्तिर से उठ रहे हो। यगे िुि रोज-रोज कफर वही करिे हो जो कल ककया था? यह पुनरूक्ि यगे? कारण या है ? िनुष्य आशा िें जीिा है । लेककन यह जीवन नहीर है । अपने को ढो नहीर जीिे हो, िुि जीवन नहीर हो। िुि
चला जािा है । जब िक िुि यहार और अभी
क िि ृ बोझ हो। और वह कल िो कभी आने वाला नहीर है । जब
िुम्हारी सब आशा र परा ी हो जा र ी। और जब ित्ृ यु आ
ी िो िुम्हें पिा चले ा कक अब कोच कल नहीर है , और
अब स्तथत ि करने का भी उपाय नहीर है । िब िुम्हारा ्ि ा े ा; िब िुम्हें ल े ा कक यह धोखा था। लेककन ककसी दस ा रे ने िुम्हें धोखा नहीर दया। अपनी द ु तय ि के मल
िि ु स्तवयर क्जम्िेदार हो।
इस क्षण िें , वियिान िें जीने की चेष् ा करो और आशा र िि पालो—चाहे वे ककसी भी ढर
की हगे। वे लौककक हो
सकिी है, पारलौककक हो सकिी है । इससे कुछ फकय नहीर पड़िा है । वे धामियक हो सकिी है । ककसी भदवष्य
िें ,ककसी दस ा रे लोक िें, स्तव य िें , ित्ृ यु के बाद, तनवायण िें ; लेककन इससे कोच फकय नही पड़िा। िि ु कोच आशा िि करो। य द िुम्हें थोड़ी तनराशा भी अनुभव हो, िो भी यही रहो। यहार और इसी क्षण से िि ह ो। ह ो ही
िि। दुःु ख सह लो, लेककन आशा को िि प्रवेश करने दो। आशा के वावारा स्तवन प्रवेश करिे है। तनराशा रहो।
अ र जीवन िें तनराशा है िो तनराशा रहो। तनराशा को स्तवीकार करो। लेककन भदवष्य िें होनेवाली ककसी ि ना का सहारा िि लो। और िब अचानक बदलाह
हो ी। जब िुि वियिान िें ठहर जािे हो िो सपने भी ठहर जािे है। िब वे नहीर उठ
सकिे, कयगेकक उनका स्तत्रोि ही बद हो जािा है । सपने उठिे है । यगेकक िुि उन्हें सहयो पोनण दे िे हो। सहयो
िि दो; पोनण िि दो।
दे िे हो। िुि उन्हें
यह सात्र कहिा है : ‘दवशेन ज्ञान का पालन-पोनण करो।’ दवशेन ज्ञान या है? िुि भी पोनण दे िे हो; लेककन िुि दवशेन मसध सारिगे को पोनण दे िे हो। ज्ञान को नहीर। िुि दवशेन शास्तत्रगे को पोनण दे िे हो, ज्ञान को नहीर। िुि दवशेन ििवादगे को, दशयन शास्तत्रगे को, दवचार-पध सतियगे को
पोनण दे िे हो। लेककन दवशेन ज्ञान को कभी पोनण नहीर दे िे। यह सात्र कहिा है कक उन्हें ह ागर, दरा करो, शास्तत्र
और मसध सारि ककसी काि के नहीर है । अपना अनुभवप्राि करो जो प्रािालणक हो; अपना ही ज्ञान हामसल करो, और
उसे पोनण दो। ककिना भी छो ा हो, प्रािालणक अनुभव असली बाि है । िुि उस पर अपने जीवन को आधार रख सकिे हो। वे जैसे भी हो, जो भी हो। सदा प्रािालणक अनुभवगे की तचरिा लो जो िुिने स्तवयर जाने है । या िुिने स्तवयर कुछ जाना है?
िुि बहुि कुछ जानिे हो; लेककन िुम्हारा सब जानना उधार है । ककसी से िुिने सुना है ; ककसी ने िुम्हें दया है । मशक्षकगे ने, िार-बाप ने, सिाज ने, िुम्हें सरस्तकाररि ककया है । िुि चवर के बारे िें जानिे हो, िुि प्रेि के बारे िें जानिे हो, िुि प्रेि के सरबरध िें जानिे है, िुि यान को जानिे हो। लेककन िुि यथाथयि: कुछ भी नहीर जानिे। िुिने इनिें से ककसी का स्तवाद नहीर मलया है । यह सब उधार है। ककसी दस ा रे ने स्तवाद मलया है ; स्तवाद िुम्हारा तनजी नहीर है । ककसी दस ा रे ने दे खा है ; िुम्हारी भी आरखें है । लेककन िुिने उनका उपयो अनुभव ककसा—ककसी बध स ु ने, ककसी जीसस ने—और िुि उनका ज्ञान उधार मल
बैठे हो।
नहीर ककया है । ककसी ने
उधार ज्ञान झाठा है । और वह िुम्हारे काि का नहीर है । उधार ज्ञान अज्ञान से भी खिरनाक है । यगेकक अज्ञान
िुम्हारा है , और ज्ञान उधार है । इससे िो अज्ञानी रहना बेहिर है । कि से कि िुम्हारा िो है । प्रािालणक िो है ,
सचा है , चिानदार है । उधार ज्ञान िि ढ़ोग; अन्यथा िुि भाल जाग े कक िुि अज्ञानी हो; और िुि अज्ञानी के अज्ञानी बने रहो े। यह सात्र कहिा है : ‘दवशेन ज्ञान का पालन-पोनण करो।’ सदा ही जानने की कोमशश इस ढर
से करो कक वह सीधा हो, सच हो, प्रत्यक्ष हो। कोच दववास िि
पकड़ो;दववास िुम्हें भ का दे ा। अपने पर भरोसा करो। श्रध सा करो। और अ र िुि अपने पर ही श्रध सा नहीर कर सकिे िो ककसी दस ा रे पर कैसे श्रध सा कर सकिे हो?
साररपुत्र बुध स के पास आया और उसने कहा: ‘िैं आपिें दववास करने के मल
आया हार;िैं आ या हार। िुझे आप िें श्रध सा हो, इसिें िेरी सहायिा करें ।’ बुध स ने कहा: ‘अ र िुम्हें स्तवयर िें श्रध सा नहीर है िो िुझिें श्रध सा कैसे करो ?े िुझे भाल जाग। पहले स्तवयर िें श्रध सा करो; िो ही िुम्हें ककसी दस ा रे िें श्रध सा हो ी।’
यह स्तिरण रहे , अ र िुम्हें स्तवयर िें ही श्रध सा नहीर है । िो ककसी िें भी श्रध सा नहीर हो सकिी। पहली श्रध सा सदा
अपने िें होिी है । िो ही वह प्रवा हि हो सकिी है । बह सकिी है । िो ही वह दस ा रगे िक पहुरच सकिी है । लेककन अ र िुि कुछ जानिे ही नहीर हो िो अपने िें श्रध सा कैसे करो ?े अ र िुम्हें कोच अनुभव ही नहीर है िो स्तवयर िें श्रध सा कैसे हो ी? अपने िें श्रध सा करो। और िि सोचो कक हि परिात्िा को ही दस ा रगे की आरखगे से दे खिे है;
साधारण अनुभवगे िें भी यही होिा है । कोमशश करो कक साधारण अनुभव भी िुम्हारे अपने अनुभव हगे। वे िुम्हारे दवकास िें सहयो ी हगे े। वे िुम्हें प्रौढ़ बना ँ े। वे िुम्हें पररपविा दें े।
बडी अजीब बाि है कक िुि दस ा रगे की आँख से दे खिे हो िुि दस ा रगे की क्जरद ी से जीिे हो। िुि कहिे हो। या यह सच िें ही िुम्हारा भाव है । या िुिने दस ा रगे से सुन रखा है । कक
ुलाब को सुरदर
ुलाब सुरदर होिा है। या
यह िुम्हारा जानना है ? या िुिने जाना है? िुि कहिे हो कक चाँदनी अछी है , सुरदर है । या यह िुम्हारा जानना है? यह कदव इसके
ीि
ािे रहे है और िुि बस उन्हें दहु रा रहे हो?
अ र िुि िोिे जैसे दहु रा रहे हो िो िुि अपना जीवन प्रािालणक रूप से नहीर जी सकिे हो। जब भी िुि कुछ
कहो, जब भी िुि कुछ करो, िो पहल अपने भीिर जारच कर लो कक या यह िेरा अपना जानना है ? िेरा अपना
अनुभव है । उस सबको बाहर फेंक दो जो िुम्हारा नहीर है ; वह कचरा है । और मसफय उसको ही िाल्य दो, पोनण दो, जो िुम्हारा है । उसके वावारा ही िुम्हारा दवकास हो ा।
‘यथाथय िें दवशेन ज्ञान और दवशेन कृत्य का पालन-पोनण करो।’ यहार यथायथ िें , को सदा स्तिरण रखो। कुछ करो। या कभी िुिने स्तवयर कुछ ककया है । या िुि केवल दस ा रगे के हुि बजािे रहे हो? केवल दस ा रगे का अनुसरण करिे रहे हो, कहिे है : ‘अपनी पत्नी को प्रेि करो।’ या िुिने यथाथयि: अपनी पत्नी को प्रेि ककया है ? या िुि मसफय कियय तनभा रहे हो; यगेकक िुम्हें कहा या है , मसखाया
या है कक पत्नी को प्रेि करो, या िार को प्रेि करो। या दपिा को प्रेि करो। िुम्हारा प्रेि भी अनुकरण िात्र है ।
या िुिने कभी ऐसा िहसास ककया है िुि और प्रेि साथ थे। लबना ककसी दवचार के या सरस्तकार के। या
िुम्हारे प्रेि िें ऐसा कभी हुआ है कक िुम्हारे प्रेि िे ककसी की मसखावन न काि कर रही हो? या कभी ऐसा हुआ है कक िुि ककसी का अनक ु रण नहीर कर रहे हो। या िि ु ने कभी प्रािालणक रूप से प्रेि ककया है । िुि अपने को धोखा दे रहे हो। िुि कह सकिे हो कक हार ककया है । लेककन कुछ कहने के पहले ठीक से तनरीक्षण कर लो। अ र िुिने सचिुच प्रेि ककया होिा िो िुि रूपारिररि हो जािे; प्रेि का यह दवशेन कृत्य ही िुम्हें बदल डालिा। लेककन उसने िुम्हें नहीर बदला। यगेकक िुम्हारा प्रेि झाठा है । और िुम्हारा पारा जीवन ही झाठ हो है । िुि ऐसे काि कक करो।
या
जािे हो जो िुम्हारे अपने नहीर है । कुछ करो जो िुम्हारा अपना हो; और उसका पोनण
बुध स बहुि अछे है ; लेककन िुि उनका अनुसरण नहीर कर सकिे। जीसस बहुि, िहावीर बहुि अछे है , लेककन िुि उनका अनुसरण नहीर कर सकिे हो। और अ र िुि अनुसरण करो े िो िुि कुरूप हो जाग ।े िुि काबयन कापी हो जाग े। िब िुि झाठे हो जाग े। और अक्स्तित्व िुम्हें स्तवीकार नहीर करे ा। वहार कुछ भी झाठ स्तवीकार नहीर है ।
बुध स को प्रेि करो, जीसस को प्रेि करो; लेककन उनकी काबयन कापी िि बनो। नकल िि करो। सदा अपनी तनजिा को अपने ढर
से लखलनें दो। िुि ककसी दन बुध स जैसे हो जाग ;े लेककन िा य बुतनयादी िौर पर िुम्हारा
अपना हो ा। ककसी दन िुि जीसस जैसे हो सकिे हो। लेककन िुम्हारा यात्रा-पथ मभन्न हो ा। िुम्हारे अनुभव
मभन्न हो े।
क बाि पकी है । जो भी िा य हो, जो भी अनुभव हो, वह प्रािालणक होना चा ह । असली होना
चा ह । िुम्हारा होना चा ह । िब िुि ककसी ने ककसी दन पहुरच जाग े।
असत्य से िुि सत्य िक नहीर पहारच सकिे। असत्य िुम्हें और असत्य िें ले जा ा। जब कुछ करो िो भली भारति स्तिरण करो कक यह िुम्हारा अपना कृत्य हो, िुि खुद कर रहे हो। ककसी का अनुकरण नहीर कर रहे हो। िो
क छो ा सा कृत्य भी, क िुस्तकुराह
भी सिोरी का, सिातध का स्तत्रोि बन सकिी है ।
िुि अपने िर लौ िे हो और बचगे को दे खकर िुस्तकरािे हो। यह िुस्तकुराह िुि इसमल
िुस्तकरािे हो यगेकक िुस्तकराना चा ह । यह ऊपर से तचपकायी
झाठी है । िुि अमभनय कर रहे हो। च िुस्तकुराह
कृलत्रि है , यारलत्रक है । और िि ु इसके इिने अभ्यस्ति हो चुके हो कक िुि लबलकुल भाल ही िुस्तकुराह
है । यह िुस्तकुराह
ये हो सची
या है । िुि हर स सकिे हो। लेककन सरभव है वह हर सी िुम्हारे केंि से न आ रही हो।
सदा यान रखो कक िुि जो कर रहे हो उसिें िुिहारा केंि सक्म्िमलि है या नहीर। अ र िुम्हारा केंि उस कृत्य
िे सक्म्िमलि नहीर है िो बेहिर है कक उस कृत्य को न करो। उसे लबलकुल भाल जाग। कोच िुम्हें कुछ करने के मल
िजबार नहीर कर रहा है । लबलकुल िि करो। अपनी उजाय को उस िड़ी के मल
बचा कर रखो जब कोच
सचा भाव िुम्हारे भीिर उठे । और िब िुि उस िें डाब कर उसे करो। यो ही िि िुस्तकुराग; उजाय को बचाकर रखो। िुस्तकुराह
आ
ी, जो िुम्हें पारा का पारा बदल दे ी। वह सिग्र िुस्तकुराह
क- क कोमशका िुस्तकुरा
ी। िब वह दवस्तफो
हो ा, अमभनय नहीर हो ा।
हो ी। िब िुम्हारे शरीर की
और बचे जानिे है , िुि उन्हें धोखा नहीर दे सकिे हो। और जब िुि उन्हें धोखा दे सको, सिझ लेना वे बचे नहीर रहे । वे जानिे है कक कब िुम्हारी िुस्तकुराह
झाठी होिी है । वे झ
िाड़ लेिे है । वे जानिे है कक कब िुम्हारे
आरसा झाठे है । िुम्हारी हर सी झाठी है । ये छो े -छो े कृत्य है, लेककन िुि छो े -छो े कृत्यगे से ही बने हो। ककसी बड़े कृत्य की िि सोचो; िि सोचो कक ककसी बड़े कृत्य िें सचाच बरिार ा। अ र िुि छो ी-छो ी चीजगे िें झाठे हो िो िुि सदा झाठे ही रहो े। बड़ी चीजगे िें झाठ होना िो और भी सरल है । पर यह सब झाठा है । थोड़ी कल्पना करो। कक अ र सिाज की ढ़क्ष्
बदल जा
जब सोदवयि रूस िें या चीन िें हुच िो िुररि साधु-िहात्िा वहार से दवदा हो आदर नहीर है । िुझे याद आिा है कक िेरे
िो या हो ा। ऐसी ही बदलाह
ये। अस वहार उनके मल
क मित्र, जो बौध स मभक्षु है , स्त ै मलन के दनगे िें सोदवयि रूप
कोच
ये थे। उन्हगेने लौ कर
िुझे बिाया कक वहार जब भी कोच यक्ि उससे हाथ मिलािा था िो िुररि लझझक कर पीछे ह
जािा था। और
कहिा था कक िुम्हारे हाथ बुजआ य है । शोनण के हाथ है ।
उनके हाथ सचिुच सुरदर थे; मभक्षु होकर उन्हें काि नहीर करना पड़िा था। वे फकीर थे, शाही फकीर,उनका श्रि से वास्तिा नहीर पडा था। उनके हाथ बहुि कोिल थे। सुरदर कोिल और स्तत्रैण थे। भारि िें जब कोच उनके हाथ छािा िो कहिा कक ककिने सुरदर हाथ है । लेककन सोदवयि रूस िें जब कोच उनके हाथ अपने हाथ िें लेिा िो िुररि मसकुड़कर पीछे ह
जािा। उसकी आरखगे िें तनरदा भर जािी। और वह उन्हें कहिा कक िुम्हारे हाथ बुजआ य
है । शोनक के हाथ है । वे वापस आकर िुझसे बोले कक िैंने इिना तनर दि िहसास ककया कक िेरा िि होिा है कक िजदरा हो जाउर ।
रूस िें साध-ु िहात्िा दवदा हो
; यगेकक आदर न रहा। सब साधुिा दखाव ी थी। प्रदशयन की चीज थी। आज
रूस िें केवल सचा सरि ही सरि हो सकिा हे । झाठे नकली सरिगे के मल वहार सरि होने के मल सबसे सु ि ढर ही लाभ है ।
वहार कोच
ुरजाइश नही है । आज िो
भारी सरिनय करना पड़े ा। यगेकक सारा सिाज दवरोध िें हो ा। भारि िें िो जीने का
साधु-िहात्िा होना है । सब लो
आदर दे िे है। यहार िुि झाठे हो सकिे हो। यगेकक उसिे लाभ
िो इसे स्तिरण रखो। सुबह से ही, जैसे ही िुि आँख खोलिे हो,मसफय सचे और प्रािालणक होने की चेष् ा करो। ऐसा कुछ िि करो जो झाठ और नकली हो। मसफय साि दन के मल नकली हो। कुछ भी अप्रिालणक नहीर करना है । जो भी
यह स्तिरण बना रहे कक कुछ भी झाठ और
रवाना पड़े जो भी खोना पड़े खो जा र। जो भी होना हो,
हो जा ;लेककन सचे बने रहो। और साि दन के भीिर न
जीवन का उन्िे न अनुभव होने ल े ा। िुम्हारी िि ृ
पिें ा ने ल ें ी। और नयी जीवरि धारा प्रवा हि होने ल े ी। िुि पहली बार पुनजीरवन अनुभव करो े। कफर से जीदवि हो उठो े।
कृत्य का पोनण करो, ज्ञान का पोनण करो—यथाथय िें, स्तवन िें नहीर। जो भी करना चाहो करो। लेककन यान
रखो कक यह काि सच िें िैं कर रहा हार। या िेरे वावारा िेरे िार बाप कर रहे है ? यगेकक कब के जा चुके िरे हु लो , िि ृ िािा-दपिा, सिाज, परु ानी पी ढ़याँ, सब िुम्हारे भीिर अभी सकक्रय है । उन्हगेने िुम्हारे भीिर ऐसे सरस्तकार भर द
है कक िुि अब भी उनको ही परा ा करने िें ल े हो। िम् ु हारे िार-बाप अपने िि ृ िार-बाप को परा ा करिे
रहे और िुि अपने िि ृ िार बाप को परा ा करने िे ल े हो। और आचयय कक कोच भी परा ा नहीर हो रहा है । िुि उसे कैसे परा ा कर सकिे हो जो िर चाका है । लेककन िुदे ये सब िुदे िुम्हारे बीच जी रहे है । जब भी िुि कुछ करो िो सदा तनरीक्षण करो कक यह िेरे िायि से िेरे दपिा कर रहे है । या िैं कर रहा हार। जब िुम्हें क्रोध आ िो यान दो कक यह िेरा क्रोध है या इसी ढर ककया करिे थे क्जसे-क्जसे िें दोहरा भर रहा हार। िैंने दे खा है कक पीढ़ी दर पीढ़ी वही मसलमसला चलिा रहिा है । पुराने ढर
से िेरे दपिा क्रोध
ढारचे दोहरािे रहिे है। अ र िुि
दववाह करिे हो िो वह दववाह करीब-करीब वैसा ही हो ा जैसा िुम्हारे िार-बाप ने ककया था। िुि अपने दपिा की भारति यवहार करो े। िुम्हारी पत्नी अपनी िार की भारति यवहार करे ी। और दोनगे मिलकर वही सब उपिव करो े जो उन्होने ककया था। जब क्रोध आ
िो
ौर से दे खो कक िैं क्रोध कर रहा हार या कक कोच दस ा रा यक्ि क्रोध कर रहा है रहे है । या िैं कर रहा हार। जब िुि प्रेि करो िो याद रखो; िुि ही प्रेि कर रहे हो या कोच और, जब िुि कुछ बोलगे िो दे खो कक िैं बोल रहा हार या िेरा मशक्षक बोल रहा है । जब िुि कोच भाव-भरत िा बनाग िो दे खो कक यह िुम्हारी भरत िा है या कोच दस ा रा ही वहार है ।
यह क ठन हो ा; लेककन यही साधना है , यही आयाक्त्िक साधना है । और सारे झाठगे को दवदा करो। थोड़े सिय के मल
िुम्हें सुस्तिी पकड़े ी, उदासी िेरें ी; यगेकक िुम्हारे झाठ त र जा र े। और सत्य को आने िें और
प्रतिक्ष्ठि होने िें थोड़ा सिय ल े ा। अरिराल का
क सिय हो ा; उस सिय को भी आने दो। भयभीि िि
होग। आिरककि िि होग। दे र-अबेर िुम्हारे िुखौ े त र जा र ।े िुम्हारा झाठा यक्ित्व दवलीन हो जा और उसकी ज ह िुम्हारा असली चेहरा िुम्हारा प्रािालणक यक्ित्व अक्स्तित्व िें आ प्रािालणक यक्ित्व से िुि चवर को साक्षात्कार कर सकिे हो।
ा। प्रक
ा।
हो ा। और उसी
इसमल
यह सात्र कहिा है : जैसे िु ी अपने बचगे का पालन पोनण करिी है । वैसे ही यथाथय िें दवशेन ज्ञान और
दवशेन कृत्य का पालन-पोनण करो। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-तीन प्रिचन-45
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—69 (ओशो) ‘यथाथथत: बंिन और िोक्ष सापेक्ष है ; ये केिल विश्ि से भयभीत लोगों के मलए है । यह विश्ि िन का प्रततबबंब है । जैसे तुि पानी िें एक सूयथ के अनेक सूयथ दे खते हो, िैसे ही बंिन और िोक्ष को दे खो।’
‘यथाथयि: बरधन और िोक्ष सापेक्ष है ;–मशव
यह बहुि हरी दवतध है; यह हरी से हरी दवतधयगे िें से क है । और दवरले लो गे ने ही इसका प्रयो ककया है । झेन इसी दवतध पर आधाररि है । यह दवतध बहुि क ठन बाि कह रही है —सिझने िें क ठन, अनुभव करने िें क ठन नहीर है । परर िु पहले सिझना जरूरी है ।
यह सात्र कहिा है, कक हि सरसार और तनवायण दो नहीर है । वे है । वैसे ही बरधन और िोक्ष दो नहीर है , वे भी
क ही है । स्तव य और नरक दो नहीर है । वे
क ही
क ही है । यह सिझना क ठन है , यगेकक हि ककसी चीज को
आसानी से िभी सोच पाि है जब वह ध्रुवीय दवपरीििा िें बर ी हो। हि कहिे है कक यह सरसार बरधन है ; इससे छा ा जा
और िुि हुआ जा ? िब िुक्ि कुछ है जो बरधन के दवपरीि है , जो बरधन नहीर है । लेककन यह सात्र कहिा है कक दोनगे क है , िोक्ष और बरधन क है। और जब िक िुि दोनगे से नहीर िुि होिे, िुि िुि नहीर हो। बरधन िो बाँधिा ही है ,िोक्ष भी बाँधिा है । बरधन िो ही िोक्ष भी
ुलािी है ।
ुलािी है
इसे सिझने की कोमशश करो। उस आदिी को दे खो जो बरधन के पार जाने की चेष् ा िें ल ा है । वह या कर रहा है । वह अपना िर छोड़ दे िा है , पररवार छोड़ दे िा है , धन दौलि छोड़ दे िा है , सरसार की चीजें छोड़ दे िा है । सिाज छोड़ दे िा है । िाकक बरधन के बाहर हो सके, सरसार की जरजीरगे से िुि हो सके। लेककन िब वह अपने मल
नयी जरजीरें
ढ़ने ल िा है । और वे जरजीरें नकारात्िक है । परोक्ष है ।
िैं
क सरि को मिला जो धन नहीर छािे है । वे बहुि सम्िातनि सरि है । उनका सम्िान वे लो जरूर करें े जो धन के पीछे पा ल है । यह यक्ि उनके दवपरीि ध्रुव पर चला या है । अ र िुि उनके हाथ िें धन रख दो िो वे उसे ऐसे फेंक दें े जैसे कक वह जहर हो या कक िुिने उनके हाथ पर सारप रख दया हो। वे उसे फेंक ही नहीर दें े, वे आिरककि हो उठें े। उनका शरीर कारपने ल े ा।
या हुआ है ? वे धन से लड़ रहे है । वे पहले जरूर ही लोभी, अति लोभी यक्ि रहे हगे ।े िभी वे दस ा री अति पर पहारच है । उनकी धन की पकड़ आत्यरतिक रही हो ी;वे धन के मल पा ल रहे हगे े। वे धन से ग्रस्ति रहे हगे े। वे अब भी धन से ग्रस्ति है , लेककन अब उनकी दशा बदल वे धन के दवपरीि भा
च है । वे पहले धन की िरफ भा
रहे थे; अब
रहे है ।
िैं
क सरन्यासी को जानिा हार जो ककसी स्तत्री को नहीर दे खिा। वे बहुि िबरा जािे है । अ र कोच स्तत्री िौजाद हो िो आरखें झुका रखिे है । वे सीधे नहीर दे खिे। या सिस्तया है? तनक्चि ही, वे अति कािुक रहे हगे े। कािवासना से बहुि ग्रस्ति रहे हगे े। वह ग्रस्तििा अभी भी जारी है । लेककन पहले वे क्स्तत्रयगे के पीछे भा िे थे अब वे क्स्तत्रयगे से दरा भा रहे है । पर क्स्तत्रयगे से ग्रस्तििा बनी हुच है ; चाहे वे क्स्तत्रयगे की और भा रहे हगे या क्स्तत्रयगे से दरा भा रहे हो। उनका िोह बना ही हुआ है । वे सोचिे है कक अब क्स्तत्रयगे से िुि है , लेककन यह
क नया बरधन है । िुि प्रतिकक्रया करके िुि नहीर हो
सकिे। क्जस चीज से िुि भा ो े वह पीछे के रास्तिे से िुम्हें बाँध ले ी; उससे िुि बच नहीर सकिे हो। य द कोच यक्ि सरसार के दवरोध िें िुि होना चाहिा है िो वह कभी िुि नहीर हो सकिा; वह सरसार िें ही रहे ा। ककसी चीज के दवरोध िें होना भी
क बरधन है ।
यह सूत्र कहता है : ‘यथाथथत: बंिन और िोक्ष सापेक्ष है ……।’
वे दवपरीि नहीर, सापेख है । िोक्ष या है? िुि कहिे हो, जो बरधन नहीर है । वह िोक्ष है । और बरधन या है ? िब िुि कहिे हो, जो िोक्ष नहीर है वह बरधन है । िुि की भारति है । दवपरीि नही है ।
िाप की िात्रा र है । लेककन चीज
क दस ा रे से उनकी पररभाना कर सकिे हो। वे
िी या है और ठर डक या है ? वे
क ही चीज की कि और ज्यादा िात्रा र है —
क ही है ; िी और ठर डक सापेक्ष है ।
िरत्र कहिा है , बरधन और िोक्ष सरसार और तनवायण दो चीजें नहीर है ; वे सापेक्ष है , वे है । इसमल
िी और ठर डक
क ही चीज की दो अवस्तथा र
िरत्र अनाठा है । िरत्र कहिा है कक िुम्हें बरधन से ही िुि नहीर होना है , िुम्हें िोक्ष से भी िुि होना
है । जब िक िुि दोनगे से िुि नहीर होिे, िुि िुि नहीर हो।
िो पहली बाि कक ककसी भी चीज के दवरोध िें जीने की कोमशश िि करो, यगेकक ऐसा करके िुि उसी चीज की कोच मभन्न अवस्तथा िें प्रवेश कर जाग े। वह दवपरीि दखाच पड़िा है । लेककन दवपरीि है नहीर। कािवासना से
ब्रह्िचयय िें जाने की चेष् ा करो े िो िुम्हारा ब्रह्िचयय कािुकिा के मसवाय और कुछ नहीर हो ा। लाभ से अलोभ िें जाने की चेष् ा िि करो, यगेकक वह अलोभ भी सा्ि लोभ ही हो ा। इसीमल
अ र कोच परर परा अलोभ
मसखािी है िो उसिें भी िुम्हें कुछ लालच दे िी है । जो लो
लोभी है , पर लोभ के लोभी है । वे इस उपदे श से बहुि प्रभादवि हगे े। वे इसके लालच िें बहुि कुछ छोड़ने को िैयार हो जायें े। कक ‘अ र िुि लोभ को छोड़ दो े िो िुम्हें परलोक िें बहुि मिले ा’। लेककन पानी की प्रवतृ ि,पाने की चाह बनी रहिी है । अन्यथा लोभी आदिी अलोभ की िरफ यगे जा िक्ृ ि के मल
कुछ अमभप्राय कुछ हे िु िो चा ह
ही।
ा? उनके लोभ की सा्ि
िो दवपरीि ध्रुवगे का तनिायण िि करो। सभी दवपरीििा र परस्तपर जुड़ी है । वे िात्रा र है । गर अ र िुम्हें इसका बोध हो जा सके, और अ र यह अनुभव िुम्हारे भीिर
क ही चीज की मभन्न-मभन्न
िो िुि कहो े कक दोनगे ध्रुव
क है । अ र िुि यह अनुभव कर
हरा हो सके िो िुि दोनगे से िुि हो जाग े। िब िुि न सरसार
चाहिे हो न िोक्ष। वस्तिुि: िब िुि कुछ भी नहीर चाहिे हो; िुिने चाहना ही छोड़ दया। और उस छोड़ने िें ही िुि िुि हो
। इस भाव िें ही कक सब कुछ सिान है , भदवष्य त र
य द कािवासना और ब्रह्िचयय
या। अब िुि कहार जाग े?
क है , िो कहार जाना है । य द लोभ और अलोभ
क ही है । हरसा और अ हरसा
क ही है , िो कफर जाना कहा है ? कहीर जाने को न बचा। सारी
ति सिाि हुच; भदवष्य ही न रहा। िब िुि ककसी चीज की भी कािना, कोच भी कािना नहीर कर सकिे, यगेकक सब कािना क ही है । फकय केवल पररिाण को हो ा। िुि या कािना करो े। िुि या चाहो ?े कभी-कभी िैं लो गे से पछ ा िा हार, जब िेरे पास आिे है । िैं पछ ा िा हार: ‘सच िें िुि या चाहिे हो?’ उनकी चाहि उनसे ही पैदा होिी है । वे जैसे है उसिें ही उनकी जड़ होिी है । अ र कोच लोभी है । िो वह अलोभ की चाह करिा है । अ र कोच कािी है िो वह ब्रह्िचयय की कािना करिा है । कािी कािवासना से छा ना चाहिा है । यगेकक वह उससे पीगड़ि है । दुःु खी है । लेककन ब्रह्िचयय की लो
क कािना की जड़ उसकी कािुकिा िें की है ।
पाछिे है : ‘इस सरसार से कैसे छा ा जा ?’
सरसार उन पर बहुि भरी पड़ रहा है । वे सरसार के बोझ के नीचे दबे जा रहे है । और वे सरसार से बुरी िरह तचपके भी है । यगेकक जब िक िुि सरसार से तचपकिे नहीर हो िब िक सरसार िुम्हें बोलझल नहीर कर सकिा। यह बोझ िुम्हारे मसर िें है ; और उसका कारण िुि हो बोझ नहीर। िुि इसे ढो रहे हो। लो
सारा सरसार उठा
है ; और कफर वे दुःु खी होिे है । और दुःु ख के इसी अनुभव से दवपरीि कािना का उदय होिा है । और वे दवपरीि के मल
लालातयि हो उठिे है ।
पहले वह धन के पीछे भा भा भा
रहे थे; अब वे यान के पीछे भा
दौड़ कर रहे थे; अब वे परलोक िें कुछ पाने के मल
भा
रहे है । पहले वह इस लोक िें कुछ पाने के मल दौड़ कर रहे है । लेककन भा
दौड़ जारी है । और
दौड़ ही सिस्तया है; दवनय अप्रासरत क है । कािना सिस्तया है ; चाह सिस्तया है । िुि या चाहिे हो, यह
अथयपाणय नहीर है । िुि चाहिे हो, यह सिस्तया है ।
और िुि चाह के दवनय बदलिे रहिे हो। आज िुि ‘क’ चाहिे हो, कल ‘ख’ चाहिे हो, और िुि सिझिे हो कक िैं बदल रहा हार। और कफर परसगे िुि ‘ ’ चाह करिे हो। और िुि सोचिे हो कक िैं रूपारिररि हो या। लेककन िुि वही हो। िुिने ‘क’ की चाह की, िुिने ‘ख’ की चाह की। और िुिने ही ‘ ’की चाह की; लेककन क-ख- ये सब िुि नही हो। िुि िो वह हो जो चाहिा है । जो कािना करिा है । और वह वही का वही रहिा है ।
िुि बरधन चाहिे हो। और कफर उससे तनराशा हो जािे हो। ऊब जािे हो। और िब िुि िोक्ष की कािना करने ल िे हो। लेककन िुि कािना करना जारी रखिे हो। और कािना बरधन है ; इसमल करिे। चाह ही बरधन है । इसमल छा
जाना िोक्ष है ।
िुि िोक्ष नहीर चाह सकिे। जब कािना दवसक्जयि होिी है िो िोक्ष है ; चाह का
इसी मलए यह सूत्र कहता है : ‘यथाथथत: बंिन और िोक्ष सापेक्ष है ।’ िो दवपरीि से ग्रस्ति िि होग।
िुि िोक्ष की कािना नहीर
‘ये केिल विश्ि से भयभीत लोगों के मलए है ।’ बरधन और िोक्ष, ये शद उनके मल
है जो दवव से भयभीि है।
‘यह दवव िन का प्रतिलबरब है ।’ िुि सरसार िें जो कुछ दे खिे हो वह प्रतिलबरब है । अ र वह बरधन जैसा दखिा है िो उसका ििलब है कक वह िुम्हारा प्रतिलबरब है । और अ र यह दवव िुक्ि जैसा दखिा है िो भी वह िुम्हारा प्रतिलबरब है । ‘जैसे तुि पानी िें एक सूयथ के अनेक सूयथ दे खते हो, िैसे ही बंिन और िोक्ष को दे खा।’
सुबह सारज ऊ िा है । और सरोवर उनके—बड़े और छो े , सुरदर और कुरूप,अनेक ु कड़े कर दे िा है । इन अनेक छदवयगे िें प्रतिलबरलबि होिा है । अनेक रूप और आकारगे िें कहीर प्रतिलबरब को दे ख कर यथाथय को दे खे ा उसे
क ही सायय दखाच दे ा।
क ही सारज
रदा और कही शुध स। लेककन जो
क्जस सरसार को िुि दे खिे हो वह िुम्हारा प्रतिलबरब है । अ र िुि कािुक हो िो सारा सरसार िुम्हें कािुक िालाि पड़े ा। और अ र िुि चोर हो िो सारा सरसार िुम्हें उसी धरधे िें सरलग्न िालाि पड़े ा।
क बार िुल्ला नसरूद्दीन और उसकी पत्नी, दोनगे िछली पकड़ रहे थे। और वह ज ह प्रतिबरतधि थी। केवल
लाइसेंस लेकर ही लो
वहार िछली पकड़ सकि थे। अचानक
क पुमलस का मसपाही वहार आ
या। िुल्ला की
पत्नी ने कहा: ‘िुल्ला, िुम्हारे पास लाइसेंस है , िुि भा गे; इस बीच िैं यहार सक लखसक जाऊ ी।’ िुल्ला भा ने ल ा, वह भा िा
या। भा िा
दया और भा ने ल ा।
या। और मसपाही उसका पीछा करिा रहा। िुल्ला ने अपनी पत्नी को वही छोड़
दौड़िे-दौड़िे िुल्ला को ऐसा ल ा की उसकी छािी फ
जा
ी। िभी उस मसपाही ने उसे पकड़ मलया। मसपाही
भी पसीने से िरबिर था। उसने िुल्ला से पाछा: ‘िुम्हारा लाइसेंस कहार है ?’ िुल्ला ने लाइसेंस तनकाल कर दखाया। मसपाही ने
ौर से लाइसेंस को दे खा और उसे सही पाया। और िब उसने पाछा: नसरूद्दीन,कफर िुि भा
यगे रहे थे? िुम्हारे पास िो लाइसेंस था। िुल्ला ने कहा: ‘िैं
क डा र के पास जािा हार, और वह कहिा है कक भोजन के बाद आधा िील दौड़ करो।’ मसपाही ने कहा: ‘लेककन वह िो ठीक है , लेककन िुि दे ख रहे थे कक िैं िुम्हारे पीछे भा रहा हार, तचल्ला रहा हार। िब िुि यगे नहीर रुके’? िुल्ला ने कहा: ‘िैं सिझा कक शायद िुि भी उसी डा र के पास जािे हो।’
लबलकुल िकयसर ि है ; यही हो रहा है । िुि अपने चारगे और जो कुछ दे खिे हो वह िुम्हारा प्रतिलबरब ज्यादा है । यथाथय कि है । िुि अपने को ही सब ज ह प्रतिलबरलबि दे ख रहे हो। और क्जस क्षण िुि बदलिे हो, िुम्हारा
प्रतिलबरब भी बदल जािा है । और क्जस क्षण िुि सिग्ररिुः: िौन हो जािे हो, शारि हो जािे हो, सारा सरसार भी शारि हो जािा है । सरसार बरधन नहीर है , बरधन केवल
क प्रतिलबरब है । सरसार िोक्ष भी नहीर है । िोक्ष भी प्रतिलबरब
है । बुध स को सारा सरसार तनवायण िें दखाच पड़िा है । कृष्ण को सारा ज ि नाचिा- ािा, आनरद िें , उत्सव िनािा हुआ दखाच पड़िा है । उन्हें कही कोच दुःु ख नहीर दखाच पड़िा है ।
लेककन िरत्र कहिा है कक िुि जो भी दे खिे हो वह प्रतिलबरब ही है । जब िक सारे ढ़य नहीर दवदा हो जािे और
शुध स दपयण नही बचिा—प्रतिलबरबर हि दपयण। वही सत्य है । अ र कुछ भी दखाच दे िा है िो वह प्रतिलबरब ही है ।
सत्य
क है । अनेक िो प्रतिलबरब ही हो सकिे है । और
क बार यह सिझ िें आ जा —मसध सारि के रूप िें नहीर,
अक्स्तित्व ि, अनुभव के वावारा—िो िुि िुि हो, बरधन और िोक्ष दोनगे से िुि हो। इसे इस ढर
से दे खो। जब िुि बीिार होिे हो िो स्तवास्तथ्य की कािना करिे हो। यह स्तवास्तथ्य की कािना
िुम्हारी बीिारी का ही अर
है । अ र िुि स्तवस्तथ ही हो िो िुि स्तवास्तथ्य की कािना नहीर करो े। कैसे करो े?
अ र िुि सच िें स्तवस्तथ हो िो कफर स्तवास्तथ्य की चाह कहार है ? उसकी जरूरि नहीर है ।
अ र िुि यथाथयि: स्तवस्तथ िो िुम्हें िहसास नहीर होिा कक िैं स्तवस्तथ हार। मसफय बीिार, रो ग्रस्ति लो ही िहसास कर सकिे है कक हि स्तवस्तथ है । उसकी जरूरि या है । िुि कैसे िहसास कर सकिे हो की िि ु स्तवस्तथ हो। अ र िुि स्तवास्तथ ही पैदा हु सको े?
और कभी नहीर बीिार हु , िो या िि ु कभी अपने स्तवास्तथ को िहसास कर
स्तवास्तथ िो है , लेककन उसका अहसास नहीर हो सकिा। उसका अहसास िो दवपरीि के वावारा, दवरोधी के वावारा ही हो सकिा है । दवपरीि के वावारा ही, उसकी पष्ृ ठभामि िें ही ककसी चीज का अनुभव होिा है । अ र िुि बीिार हो
िो स्तवास्तथ का अनुभव कर सकिे हो; और अ र िुम्हें स्तवास्तथ्य का अनुभव हो रहा है िो तनक्चि जानो कक िुि अब भी बीिार हो।
िो नरोपा ने कहा: ‘हार और नहीर दोनगे। हार इसमल जाने के साथ िुक्ि भी दवलीन हो और न िोक्ष िें ।’
कक अब कोच बरधन नहीर रहा। और नहीर इसमल
कक बरधन के
च। िुक्ि बरधन का ही हस्तसा थी। अब िैं दोनगे के पार हार; न बरधन िें हार,
धिय को चाह िि बनाग। धिय को कािना िि बनाग। िोक्ष को, तनवायण को कािना का दवनय िि बनाग। वह िभी ि ि होिा है जब सारी कािना
खो जािी है ।
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-तीन प्रिचन-45
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—70 (ओशो) ‘अपनी प्राण शक्त को िेरुदं ड के ऊपर उठती, एक केंद्र की और गतत करती हुई प्रकाश ककरण सिझो, और इस भांतत तुििें जीिंतता का उदय होता है ।’
‘अपनी प्राण शक्ि को िेरुदर ड के ऊपर उठिी,….मशव
यो प्रयो
के अनेक साधन अनेक उपाय इस दवतध पर आधाररि है । पहले सिझो कक यह या है, और कफर इसके को लें े।
िेरुदर ड, रीढ़ िुम्हारे शरीर और िक्स्तिष्क दोनगे का आधार है । िुम्हारा िक्स्तिष्क, िुम्हारा मसर िुम्हारे िेरुदर ड का ही अरतिि छोर है । िेरुदर ड परा े शरीर की आधारमशला है । और अ र िेरुदर ड युवा है िो िुि युवा हो। और अ र
िेरुदर ड बाढा है िो िुि बढ़े हो। अ र िुि अपने िेरुदर ड को युवा रख सको िो बढ ा ा होना क ठन है । सब कुछ इस िेरूदर ड पर तनभयर है । अ र िुम्हारा िेरूदर ड जीवरि है िो िुम्हारे िन िक्स्तिष्क िें िेधा हो ी। चिक हो ी। और अ र िुम्हारा िेरूदर ड जड़ और िि ृ है िो िुम्हारा िन भी बहुि जड़ हो ा। सिस्ति यो िेरूदर ड को जीवरि, युवा,िाजा और प्रकाशपण ा य की चेष् ा करिा है ।
अनेक ढर
से िुम्हारे
िेरूदर ड के दो छोर है । उसके आरर भ का काि-केंि है और उसके मशखर पर सहस्तत्रार है —मसर के ऊपर जो सािवार चक्र है । िेरूदर ड का जा आरर भ है वह पथ्ृ वी से जुड़ा है । कािवासना िुम्हारे भीिर सवायतधक पातथयव चीज है ।
िुम्हारे िेरूदर ड के आरर मभक चक्र के वावारा िुि तनस य के सरपकय िें आिे हो। क्जसे सारय प्रकृति कहिा है — पथ्ृ वी,पदाथय। और अरतिि चक्र से सहस्तत्रार से िुि परिात्िा के सरपकय िें होिे हो।
िुम्हारे अक्स्तित्व के ये दो ध्रुव है । पहला काि केंि है, और उसके मशखर पर सहस्तत्रार है । अरग्रज े ी िें सहस्तत्रार के मल
कोच शद नहीर है । ये ही दो ध्रुव है । िुम्हारा जीवन या िो कािोन्िुख हो ा या सहस्तत्रोन्िुख हो ा। या िो
िुम्हारी ऊजाय काि केंि से बहकर पथ्ृ वी िें वापस जा िें सिा जा
ी,या िुम्हारी ऊजाय सहस्तत्रार से तनकलकर अनरि आकाश
ी। िुि सहस्तत्रार से ब्रह्ि िें , परि सत्िा िें प्रवा हि हो जािे हो। िुि काि केंि से पदाथय ज ि
िें प्रवा हि होिे हो। ये दो प्रवाह है ; ये दो सरभावना र है ।
जब िक िुि ऊपर की और दवकमसि नहीर होिे, िुम्हारे दुःु ख कभी सिाि नहीर हो े। िुम्हें सुख की झलकें मिल सकिी है; लेककन वे झलकें ही हो ी और बहुि ्ािक हगे ी। जब ऊजाय ऊवय ािी हो ी। िुम्हें सुख की अतधकातधक सची झलकें मिलने ल ें ी। और जब ऊजाय सहस्तत्रार पर पहुँचे ी िुि परि आनरद को उपलध हो जाग े। वही तनवायण है । िब झलक नहीर मिलिी, िुि आनरद ही हो जािे हो।
यो
और िरत्र की परा ी चेष् ा यह है कक कैसे ऊजाय को िेरूदर ड के वावारा ऊरव ािी बनाया जा ,कैसे उसे
ुरूत्वाकनयण के दवपरीि
तििान ककया जाये। काि या सेस आसान है, यगेकक वह
ुरूत्वाकनयण के दवपरीि
नहीर है । पथ्ृ वी सब चीजगे को अपनी गर खीरच रही है । िुम्हारी काि ऊजाय को भी पथ्ृ वी नीचे खीरच रही है । िुिने शायद यह नहीर सुना हो, लेककन अरिररक्ष यालत्रयगे ने यह अनुभव ककया है कक जैसे ही वे पथ्ृ वी के
ुरूत्वाकनयण के
बाहर तनकल जािे है ,उनकी कािुकिा बहुि क्षण हो जािी है । जैसे-जैसे शरीर का वजन कि होिा है । कािुकिा दवलीन हो जािी है । पथ्ृ वी िुम्हारी जीवन-ऊजाय को नीचे की िरफ खीरचिी है । और यह स्तवाभादवक है । यगेकक जीवन-ऊजाय पथ्ृ वी से आिी है । िुि भोजन लेिे हो, और उससे िुि अपने भीिर जीवन ऊजाय तनमियि कर रहे हो। यह ऊजाय पथ्ृ वी से आिी है । और पथ्ृ वी उसे वापस खीरचिी है । प्रत्येक चीज अपने िाल स्तत्रोि को लौ
जािी है । और अ र यह ऐसे
ही चलिा रहा, जीवन ऊजाय कफर-कफर पीछे लौ िी रहे , िुि विुल य िें िुििे रहे । िो िुि जन्िगे-जन्िगे िक ऐसे ही िाििे रहो े। िुि इस ढर
से अनरिकाल िक चलिे रह सकिे हो। य द िुि अरिररक्ष यालत्रयगे की िरह छलार
नहीर लेिे। अरिररक्ष यालत्रयगे की िरह िुम्हें छलार ुरूत्वाकनयण का पै नय ा
लेना है और विुल य के पार तनकल जाना है । िब पथ्ृ वी के
जािा है । यह िोड़ा जा सकिा है ।
यह कैसे िोड़ा जा सकिा है । ये उसकी ही दवतधयार है । ये दवतधयार इस बाि की किक करिी है कक कैसे ऊजाय ऊवय
ति करे , नये केंिगे िक पहुचे; कैसे िुम्हारे भीिर नच ऊजाय का आदवभायव हो और कैसे प्रत्ये क ति के साथ वह िुम्हें नया आदिी बना दे । और क्जस क्षण िुम्हारे सहस्तत्रार से, कािवासना के दवपरीि ध्रुव से िुम्हारी ऊजाय िुि होिी है । िुि आदिी नहीर रह
; िब िुि इस धरिी के न रहे,िब िुि भ वान हो
।
जब हि कहिे है कक कृष्ण या बुध स भ वान है िो उसका यही अथय है । उनके शरीर िो िुम्हारे जैसे है । उनके
शरीर भी रूग्ण हगे े और िरें े। उनके शरीरगे िें सब कुछ वैसा ही होिा है जैसे िुम्हारे शरीरगे िें होिा है । मसफय क चीज उनके शरीरगे िें नहीर होिी जो िुम्हारे शरीर िें होिी है । उनकी ऊजाय ने
दया है । लेककन वह िुि नहीर दे ख सकिे; वह िुम्हारी आरखगे के मल
ढ़य नहीर है ।
ुरूत्वाकनयण के पै नय को िोड़
लेककन कभी-कभी जब िुि ककसी बध स ु की सक्न्नतध िें बैठिे हो िो िुि यह अनुभव कर सकिे हो। अचानक
िुम्हारे भीिर ऊजाय का ज्वार उठने ल िा है और िुम्हारी ऊजाय ऊपर की िरफ यात्रा करने ल िी है । िभी िुि
जानिे हो कक कुछ ि ि हुआ है । केवल बध स ु के सत्सर िें ही िुम्हारी ऊजाय सहस्तत्रार की िरफ ति करने ल िी है । बध स ु इिने शक्िशाली है कक पथ्ृ वी की शक्ि भी उनसे कि पड़ जािी है । उस सिय पथ्ृ वी की ऊजाय
िुम्हारी ऊजाय को नीचे की िरफ नहीर खीरच सकिी है । क्जन लो गे ने जीसस,बध स या कृष्ण की सक्न्नतध िें इसका अनुभव मलया है, उन्हगेने ही उन्हें भ वान कहा है । उनके पास ऊजाय का शक्िशाली है ।
क मभन्न स्तत्रोि है जो पथ्ृ वी से भी
इस पै नय को कैसे िोड़ा जा सकिा है । यह दवतध पै नय िोड़ने िें बहुि सहयो ी है । लेककन पहले कुछ बुतनयादी बािें याल िें ले लो। पहल बाि कक अ र िुिने तनरीक्षण ककया हो ा िो िुिने दे खा हो ा कक िुम्हारी काि ऊजाय कल्पना के साथ
ति करिी है । मसफय कल्पना के वावारा भी िुम्हारी काि-ऊजाय सकक्रय हो जािी है । सच िो यह है कक कल्पना के
लबना वह सकक्रय नहीर हो सकिी हे । यही कारण है कक जब िुि ककसी के प्रेि िें होिे हो िो काि-ऊजाय बेहिर
काि करिी है । यगेकक प्रेि के साथ कल्पना प्रवेश कर जािी है। अ र िुि प्रेि िें नहीर हो िो बहुि क ठन है ; वह काि नहीर करे ी।
इसीमल
परु ाने दनगे िें परू ु न-वेया र नहीर होिी थी। मसफय स्तत्री वेया र होिी थी। परू ु न वेया के मल
िल पर सकक्रय होना क ठन है । अ र वह प्रेि िें नहीर है । और मसफय पैसे के मल िुि ककसी पुरून को िुम्हारे साथ सरभो
िें उिरने के मल
काि के
वह प्रेि कैसे कर सकिा है ।
पैसे दे सकिी हो; लेककन अ र उसे िुम्हारे प्रति भाव
नहीर है । कल्पना नहीर है िो वह सकक्रय नहीर हो सकिा। क्स्तत्रयार यह कर सकिी है । यगेकक उनकी कािवासना
तनक्ष्क्रय है ,सच िो यह है कक उन्हें कोच भी भाव न हो। उनके शरीर लाश की भारति पड़े रहे सकिे है । वेया के साथ िुि
क जीदवि शरीर के साथ नहीर, क िि ृ शरीर या लाश के साथ सरभो
करिे हो। क्स्तत्रयार आसानी से
वेया हो सकिी है । कयगेकक उनकी काि ऊजाय तनक्ष्क्रय है । िो काि केंि कल्पना से काि करिा है । इसीमल
स्तवनगे िें िुम्हें इरे शन हो सकिा हे । और वीययपाि भी हो
सकिा है । वहार कुछ भी वास्तिदवक नहीर है । सब कुछ कल्पना का खेल है । कफर भी दे खा
को, अ र वह स्तवस्तथ है , राि िें कि से कि दस दफा इरे न होिा है । िन की जरा सी जरा सा दवचार उठने से ही इरे शन हो जा
ति के साथ, काि का
ा।
िुम्हारे िन की अनेक शक्ियार है , अनेक क्षििा र है ; और उनिें से कृत्य िें नहीर उिर सकिे; काि के मल
या है कक प्रत्ये क पुरून
क है सरकल्प। लेककन िि ु सरकल्प से काि
सरकल्प नपरस ु क है । अ र िुि सरकल्प से ककसी के साथ सरभो
उिरिे की चेष् ा करो े िो िुम्हें ल े ा कक िुि नापरस ु
हो
िें
। कभी चेष् ा िि करो। कािवासना िें सरकल्प
नहीर, कल्पना काि करिी है । कल्पना करो, गर िुम्हारा काि केंि सकक्रय हो जा िुम्हारे िन की अनेक शक्ियार है , अनेक क्षििा र है । और उनिें से
ा।
क है सरकल्प। लेककन िैं यगे इस िथ्य
पर इिना जौर दे रहा हार, यगेकक य द कल्पना ऊजाय को तििान करने िें सहयो ी है िो िुि मसफय कल्पना के वावारा उसे चाहो िो ऊपर ले जा सकिे हो। और चाहगे िो नीचे ला सकिे हो। िुि अपने खान को कल्पना से तििान नहीर कर सकिे; िुि शरीर िें और कुछ कल्पना से नहीर कर सकिे। लेककन काि ऊजाय कल्पना से
तििान की जा सकिी है । िुि उसकी दशा बदल सकिे हो।
यह सात्र कहिा है : ‘अपनी प्राण-शक्ि को प्रकाश ककरण सिझो।’ स्तवयर को अपने होने को प्रकाश ककरण सिझो। यो
ने िुम्हारे िेरूदर ड को साि चक्रगे िें बार ा है । पहला काि केंि है । और अरतिि सहस्तत्रार है । और इन दोनगे के
बीच पाँच चक्रा है । कोच-कोच साधना पध सति िेरूदर ड को नौ केंिगे िें बाँ िी है । कोच िीन िें ही और कोच चार िें । यह दवभाजन बहुि अथय नही रखिा है । प्रयो के मल पाँच केंि प्रयायि है । पहला काि-केंि है ; दस ा रा ठीक नामभ के पीछे है ; िीसरा ्दय के पीछे है । चौथा केंि िुम्हारी दोनगे भौंहगे के बीच िें है —ठीक लला के बीच िें ; और अरतिि केंि सहस्तत्रार िुम्हारे मसर के मशखर पर है । ये पाँच पयायि है ।
यह सात्र कहिा है : ‘अपने को सिझो,’ उसका अथय है कक भाव करो, कल्पना करो। आरखे बरद कर लो और भाव
करो कक िैं बस प्रकाश हार। यह भाव या कल्पना नहीर है । शुरू-शुरू िें कल्पना ही है । लेककन यथाथय िें भी ऐसा ही है । यगेकक हरे क चीज प्रकाश से बनी है । अब दवज्ञान कहिा है कक सब कुछ दववायुि है । िरत्र ने िो सदा से कहा कक सबकुछ प्रकाश कणगे से बना है और िुि भी प्रकाश कणगे से ही बने हो। इसीमल परिात्िा प्रकाश है । िुि प्रकाश हो।
कुरान कहिा है कक
िो पहले भाव करो िैं बस प्रकाश-ककरण हार। और कफर अपनी कल्पना को काि केंि के पास ले जाग। अपने अवधान को वहार काग्र करो और भाव करो कक प्रकाश ककरणें काि केंि से ऊपर उठ रही है । िानगे काि केंि से ऊपर उठ रही है । िानो काि केंि प्रकाश का स्तत्रोि बन ऊपर उठ रही है ।
या है । और प्रकाश ककरणें वहार से नामभ कें ि की और
दवभाजन इस मल दवभाजन इसमल
जरूरी है , यगेकक िुम्हारे मल
काि केंि को सीधे सहस्तत्रार से जोड़ना क ठन है । छो े -छो े
उपयो ी है । य द िुि सीधे सहस्तत्रार से जुड़ सको िो ककसी दवभाजन की जरूरि नहीर हे । िुि
काि केंि के ऊपर के सभी दवभाजन त रा दे सकिे हो। और उजाय जीवन शक्ि प्रकाश की भारति सीधे सहस्तत्रार की और उठने ल े ी। जब िुि अनुभव करो कक अब नामभ पर क्स्तथि दस ा रा केंि प्रकाश का स्तत्रोि बन आकर इकट्ठी होने ल ी है । िब ्दय केंि कीगर
ति करो। और ऊपर बढ़ो। और जैसे-जैसे प्रकाश ्दय केंि पर
पहुरचिा है , वैसे ही िुम्हारे ्दय केंि की धड़कने बदल जाये ी। िुम्हारी वास ्दय िें रिाह पहुरचने ल े ी। िब उससे भी और आ े और ऊपर बढ़ो। और जैसे-जैसे िुम्हें
रिाह
या है । कक प्रकाश ककरणें वहार
अनुभव हो ी,वैसे-वैसे ही, िुम्हारे भीिर
हरी होने ल े ी, और िुम्हारे
क जीवरििा का उन्िेन हो ा।
क
आरिररक प्रकाश का उदय हो ा। काि-ऊजाय के दो हस्तसे है ।
क हस्तसा शारीररक है और दस ा रा िानमसक है । िुम्हारे शरीर िें हरे क चीज के दो
हस्तसे है । िुम्हारे शरीर िन की भारति ही िुम्हारे भीिर प्रियेक चीज के दो हस्तसे है :
क भौतिक है और दस ा रा
अभौतिक। काि-ऊजाय के भी दो हस्तसे है । वीयय उसका भौतिक हस्तसा है । वीयय उपर नहीर उठ सकिा। उसके मल िा य नहीर है । इसीमल
पक्चि के अनेक शरीर शास्तत्री कहिे है कक िरत्र और यो
इनकार ही करिे है । काि-ऊजाय ऊपर की और कैसे उठ सकिी है । इसके मल
की साधना बकवास है ; वे उन्हें
कोच िा य नहीर हे । और वह ऊपर
नहीर उठ सकिी। वे शरीर शस्तत्री सही है । और कफर भी
लि है । काि ऊजाय का जो भौतिक हस्तसा है , वह जो वीयय है ,वह िो ऊपर
नहीर उठ सकिा;लेककन वही सब कुछ नहीर है । सच िो यह है कक वीयय काि-ऊजाय का शरीर भर है । वह स्तवयर
काि ऊजाय नहीर हे । काि-ऊजाय िो उकसा अभौतिक हस्तसा है । और यह अभौतिक ित्व ऊपर उठ सकिा है । और उसी अभौतिक ऊजाय के मल
िेरूदर ड िा य का काि करिा है । िेरूदर ड और उसके चक्र िा य का काि करिे है ।
लेककन उसका िो अनुभव से जानना हो ा। और िुम्हारी सरवेदनशीलिा िर जब कोच हाथ िुम्हें स्तपशय करिा है िो हाथ नहीर , दबाव और वह बुदध स है , भाव नहीर।
रिाह
रिाह
च है ।
अनुभव होिी है । हाथ िो अनुभव भर है ।
और दबाव अनुभातियार है । हिने अनुभातियार लबलकुल खो दी है । िुम्हें कफर से
उसे दवकमसि करना हो ा। केवल िभी इन दवतधयगे को प्रयो
िें ला सकिे हो। अन्यथा ये दवतधयार काि नहीर
करें ी। िुि केवल बुदध स से सोचो े कक िैं अनुभव करिा हार। और कुछ भी ि ि नहीर हो ा। यही कारण है कक लो िेरे पास आिे है और कहिे है कक यह दवतध बहुि िहत्व पाणय है , लेककन कुछ ि ि नहीर होिा। उन्हगेने प्रयो
िो ककया है परर िु वह
क आयाि चुक
ये। वे अनुभव का आयाि चुक
आयाि को दवकमसि करना हो ा। और उसके कुछ उपाय है क्जन्हें िुि प्रयो िुि
क काि करो, अ र िुम्हारे िर िें कोच छो ा बचा है िो प्रति दन
ये। िो िुम्हें पहले इस
िें ला सकिे हो।
क िर ा उसे बचे के पीछे -पीछे चलो।
बुध स के पीछे चलने से उनके पीछे चलना बेहिर है । और कही ज्यादा िक्ृ ि दायी हो सकिा है। बचे को अपने चारगे हाथ-पाँव पर चलने को कहो, िु नगे के बल चलने को कहो, बचे के पीछे िुि भी चलो। और पहली बार िुम्हें अपने िें
क नव जीवन का उन्िेन हो ा। िुि कफर बचे हो जाग े। बचे को दे खो।
और उसके पीछे -पीछे चलो। बचा िर के कोने-कोने िें जा
ा। वह िर की हरे क चीज को स्तपशय करे ा। न
केवल स्तपशय करे ा। वह
क- क चीज का स्तवाद ले ा। वह
करो;वह जो भी करे िुि भी वही करो।
क- क चीज को सरािे ा। िि ु बस उसका अनुकरण
िनुष्य बचगे से बहुि कुछ सीख सकिा है । और दे र-अबेर िुम्हारी सची तनदतनिा प्रक हो जा कभी बचे थे। और िुि जानिे हो कक बचा होना या है । मसफय उसका दवस्तिरण हो या है ।
ी। िुि भी
िो अनुभाति के केंिगे को कफर से दवकमसि करो। िो ही ये दवतधयार कार र हो सकिी है । अन्यथा िि ु सोचिे
रहो े कक ऊजाय ऊपर उठ रही है । लेककन उसकी कोच अनुभता ि नहीर हो ी। और अनुभाति के अभाव िें कल्पना यथय है, बारझ है । अनुभाति भरा भाव ही पररणाि ला सकिा है ।
िुि और भी कच चीजें कर सकिे हो। और उन्हें करने िें कोच दवशेन प्रयत्न भी नहीर है । जब िुि सोने जाग िो दवस्तिर को, िकक
कर लो और मसफय
को िहसास, उसकी ठर डक को िहसास करो। िकक
को छुग उसके साथ खेलो। अपनी आरखें बरद
यरकरडीशनर की आवाज को सुनो। िड़ी की आवाज कोया चलिी सड़क के शोर ुल को सुनो।
कुछ भी सुनो उसे नाि िि दो कुछ कहो ही िि िन का उपयो
की िि करो। बस अनुभाति िें जीगर।
सुबह जा ने के पहले क्षण िें, जब िुम्हें ल े कक नीरद जा चुकी है िो िुररि सोच-दवचार िि करने ल ो। कुछ क्षणगे के मल
िुि कफर से बचे हो सकिे हो। तनदतन और िाजे हो सकिे हो। िुररि सोच-दवचार िें िि ल
जाग। यह िि सोचो कक या-या करना है । कब दतरिर के मल सोच-दवचार िि शुरू करो। उन िाढ़िागर के मल मल
मसफय वतनयगे पर यान दो।
क पक्षी
रवाना होना है , कौन सी
ाड़ी पकड़नी है ।
िुम्हें काफी सिय मिले ा। अभी रुको और अभी कुछ क्षणगे के
ािा है । वक्ष ृ गे से हवा ँ
ुजर रही है । कोच बचा रोिा है या दध ा
दे ने वाला आया है । और पुकार रहा है । या वह पिीले िें दध ा डाल रहा है । जो भी हो रहा है उसे िहसास करो, उसके प्रति सरवेदनशील बनो। खुले रहो। उसकी अनुभाति िें डुबो। और िुम्हारी सरवेदनशीलिा बढ़ जाये ी।
जब स्तनान करो िो उसे अपने पारे शरीर पर अनुभव करो; पानी की प्रत्येक बारद को अपने ऊपर त रिे हु िहसास करो। उसके स्तपशय को, उसकी शीिलिा और उष्णिा को िहसास करो। पारे दन इसका प्रयो करो; जब भी अवसर मिले प्रयो
करो। और सब ज ह अवसर ही अवसर है । वास लेिे हु मसफय वास को अनुभव करो। भीिर जािी और बाहर आिी वास को िहसास करो। केवल अनुभव करो1 अपने शरीर को ही िहसस ा करो। िुिने उसे भी नहीर अनुभव ककया है ।
हि अपने शरीर से भी इिने ही भयभीि है । कभी अपने शरीर को प्रेिपावक य स्तपशय नहीर करिा है । कया िुिने कभी अपने शरीर को ही प्रेि ककया है । सिाची सभ्यिा इस बाि से भयभीि है । कोच अपने को स्तपशय करे ।
यगेकक बचपन िें स्तपशय वक्जयि रहा है । अपने को प्रेिपावक य स्तपशय करना हस्तििैथुन जैसा िहसास होिा है । लेककन अ र िुि अपने को ही प्रेि से स्तपशय नहीर कर सकिे हो। िो िुम्हारा शरीर जड़ हो जािा है । िि ृ हो जािा है । वह दरअसल जड़ और िि ृ हो
या है ।
अपनी आरखगे को स्तपशय करो। िुम्हारी आरखगे िुररि िाजी और जीदवरि हो उठे ी। अपने पारी शरीर को िहसास करो; अपने प्रेिी के शरीर को िहसास करो; अपने मित्र के शरीर को िहसास करो।
क दस ा रे को सहलाग; क दस ा रे
की िामलश करो। अपने मित्र के शरीर छुग, उसकी छाआन को िहसास करो। िुि अतधक सरवेदन शील हो जाग े।
सरवेदनशीलिा और अनुभता ि पैदा करो। िभी िुि इन दवतधयगे का प्रयो
सरलिा से कर सकिे हो। और िब
िुम्हें अपने भीिर जीवन ऊजाय के ऊपर उठने का अनुभव हो ा। इस ऊजाय को बीच िें िि छोड़ो। उसे सहस्तत्रार िक जाने दो। स्तिरण रहे कक जब भी िाि यह प्रयो यान रहे कक इस प्रयो
करो िो उसे बीच िें िि छोड़ो; उसे पारा करो। यह भी
िें कोच िुम्हें बाधा न पहुँचा । अ र िुि इस ऊजाय को कहीर बीच िें छोड़ दो े िो उससे िुम्हें हातन हो सकिी है । इस ऊजाय को िुि करना हो ा। िो उसे मसर िक ले जाग। और भाव करो कक िुम्हारा मसर
क वावार बन
या है ।
इस दे श िें हिने सहस्तत्रार को हजार परखुगड़यगे वाले किल के रूप िें तचलत्रि ककया है । सहस्तत्रार का यही अथय है । िो धारणा करो कक हजार परखुगड़यगे वाला किल लखल रहा है । और उसकी प्रत्येक परखुडी से यह प्रकाश ऊजाय ब्रह्िारड िें फैल रही है । यह कफर है । और कफर
क अथों िें सरभो
क आ ायज्ि ि ि होिा है ।
आ ायज्ि दो प्रकार का होिा है ।
है ; लेककन यह प्रकृति के साथ नहीर , परि के साथ सरभो
क सेसुअल और दस ा रा क्स्तप्रचुअल सेसुअल आ ायज्ि तनम्निि केंि से आिा
है । और क्स्तप्रचुअल उचिि केंि से। उचिि केंि से िि ु उचिि से मिलिे हो और तनम्निि केंि से तनम्निि से।
साधारण सरभो
िें भी िुि यह प्रयो
बनाग। और िब सरभो
कर सकिे हो। दोनगे लो
यह प्रयो
कर सकिे हो। ऊजाय को ऊवय ािी
िरत्र साधना बन जािा है । िब वह यान बन जािा है ।
लेककन ऊजाय को कही शरीर िें , ककसी बीच के केंि िि छोड़ो। कोच यक्ि बीच िें आ सकिा है क्जसके साथ िुम्हें यावसातयक सरोकार हो, या कोच फोन आ जा सिय िें प्रयो
और िुम्हें प्रयो
को बीच िें ही छोड़ना पड़े। इसमल
ऐसे
करो कक कोच िुम्हें बाधा न दे । और ऊजाय को ककसी केंि पर न छोड़ना पड़े। अन्यथा वह केंि
जहार िुि ऊजाय को छोड़ो े धाव बन जा िो सावधान रहो;अन्यथा यह प्रयो
ा और िुम्हें अनेक िानमसक रूग्णिागर का मशकार होना पड़े ा।
िि करो। इस दवतध के मल
तनिारि
कारि आवयक है । बाधा र हििा
आवयक है । और आवयक है कक िुि उसे पारा करो। उजाय को मसर िक जाना चा ह । और वहीर से उसे िुि होना चा ह ।
िुम्हें अनेक अनुभव हगे े। जब िुम्हें ल े ा कक प्रकाश ककरणें काि केंि से ऊपर उठने ल ी है िो काि केंि पर इरे शन का गर उत्िेजना का अनुभव हो ा। अनेक लो
बहुि भयभीि और आिरककि क्स्तथति िें िेरे पास आिे है । और कहिे है कक जब हि यान करिे है, जब हि यान िें हरे जािे है । हिें इरे शन होिा है । और वे चककि होकर पाछिे है कक यह या है । वे भयभीि हो जोि है यगेकक वे सोचिे है कक यान िे कािुकिा के मल
ज ह नहीर होनी चा ह । लेककन िुम्हें
जीवन के रहस्तयगे कापिा नहीर है। यह अछा लक्षण है । यह बिािा है । कक ऊजाय उठ रही है । उसे जरूरि है । िो आिरककि िि होग। और यह िि सोचो कक कुछ
लि हो रहा है । यह शुभ लक्षण है । जब िुि
यान शुरू करिे हो िो काि-केंि ज्यादा सरवेदनशील, ज्यादा जीवरि, ज्यादा उत्िेक्जि हो जा शीिल हो जा
ा। अब उष्णिा मसर िें आ जा
ी।
और यह शारीररक बाि है । जब काि केंि-उत्िेक्जि होिा है िो वह
ति की
ा। वह लबलकुल
रि हो जािा है । िुि उस
रिाह
को
िहसास कर सकि हो। वह शारीररक है । लेककन जब ऊजाय ऊपर उठिी है िो काि केंि ठर डा होने ल िा है । बहुि
ठर डा होने ल िा है । और उष्णिा मसर पर पहुरच जािी है । िब िुम्हें मसर िें चकर आने ल े ा। जब ऊजाय मसर िें पहुँचे ी िो िुम्हारा मसर िािने ल े ा। कभी-कभी िुम्हें िबराह भी हो ी;यगेकक पहली बार ऊजाय मसर िें पहुरची है । और िुम्हारा मसर उससे पररतचि नहीर है । उसे ऊजाय के साथ सािरजस्तय लबठाना पड़े ा।
मसर िें पहुरच जा िो िुि बेहोश भी हो सकिे हो। लेककन यह बेहोशी क िर े से ज्यादा दे र िक नहीर रह सकिी। िर े भर के भीिर ऊजाय अपने आप ही वापस लौ जा ी। या िुि हो जाये ी। िुि उस अवस्तथा िें कभी मिन
क िर े से ज्यादा दे र नहीर रह सकिे। िैं कहिा िो हार क िर ा, लेककन असल िें यह सिय अड़िालीस है । यह उससे ज्यादा नहीर हो सकिा,लाखगे वनों के प्रयो के दौरान कभी ऐसा नहीर हुआ है ।
िो डरो िि; िुि बेहोश भी हो जाग िो ठीक है। उस बेहोशी के बाद िि ु इिने िाजा अनभ ु व करो े कक िम् ु हें ल े ा। कक िैं पहली बार नीरद से, हनत्ि नीरद से कहा जािा हे । यह बहुि और अ र िुम्हारा मसर
ज ु रा हुर। यो िें इसका क दवशेन नाि है ; उसे यो -िरिा हरी नीरद है । इसिे िि ु अपने हनत्ि केंि पर सरक जािे हो। लेककन डरो िि।
रि हो जा
िो यह भी शुभ लक्षण है । ऊजाय को िुि होने दो। भाव करो कक िुम्हारा
मसर किल के फाल की भारति लखल रहा है । भाव करो कक ऊजाय ब्रह्िारड िें िुि हो रही है । फैलिी जा रही है । और जैसे-जैसे ऊजाय िुि हो ी, िुम्हें शीिलिा का अनुभव हो ा। इस उष्णिा के बाद जो शीिलिा आिी है । उसका िुम्हें कोच अनुभव नहीर है । लेककन दवतध को पारा प्रयो
करो; उसे कभी आधा अधारा िि छोड़ा।
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-तीन प्रिचन-47
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—71 (ओशो) प्रकाश-संबंिी दस ू री विधि:
बबजली कौंिने जैसा है —ऐसा भाि करो।
‘या बीच के ररत स्थानों िें यह बबजली कौंिने जैसा है—ऐसा भाि करो। थोडे से फकथ के साथ यह विधि भी पहली विधि जैसी ही है । या बीच के ररत स्थानों िें यह बबजली कौंिने जैसा है —ऐसा भाि करो।’
क केंि से दस ा रे केंि िक िाकी हुच प्रकाश-ककरणगे िें लबजली के कौंधने का अनुभव करो—प्रकाश की छलार का भाव करो। कुछ लो गे के मल यह दस ा री दवतध ज्यादा अनुकाल हो ी, और कुछ लो गे के मल पहली दवतध ज्यादा अनुकाल हो ी। यही कारण है कक इिना सा सरशोधन ककया ऐसे लो
या है ।
है जो क्रिश: ि ि होने वाली चीजगे की धारणा नहीर बना रहिे ; और कुछ लो
है जो छलाँ गे की
धारणा नहीर बना सकिे। अ र िुि क्रि की सोच सकिे हो, चीजगे के क्रि से होने की कल्पना कर सकिे हो, िो िुम्हारे मल
पहली दवतध ठीक है । लेककन अ र िुम्हें पहली दवतध के प्रयो
केंि से दस ा रे केंि पर सीधे छलार दवतध बेहिर है ।
लेिी है । िो िुि पहली दवतध का प्रयो
‘यह बबजली कौंिने जैसा है—ऐसा भाि करो।’ भाव करो कक प्रकाश की
क तचन ारी
सच है , यगेकक प्रकाश सचिुच छलार छलार
से पिा चले कक प्रकाश-ककरणें
क केंि से दस ा रे केंि पर छलार
िि करो। िब िुिहारे मल
क
यह दस ा री
ल ा रही है । और दस ा री दवतध ज्यादा
लेिा है । उसिें कोच क्रमिक, कदि-ब-कदि दवकास नहीर होिा। प्रकाश
है ।
दववायुि के प्रकाश को दे खो। िि ु सोचिे हो कक यह क्स्तथर है; लेककन वह ्ि है । उसिें भी अरिराल है ; लेककन वे अरिराल इिने छो े है कक िुम्हें उनका पिा नहीर चलिा है । दववायुि छलाँ गे िें आिी है ।
क छलार , और उसके
बाद अरधकार का अरिराल होिा है । कफर दस ा री छलार , और उसके बाद कफर अरधकार का अरिराल होिी हे । लेककन िुम्हें कभी अरिराल का पिा नहीर चलिा है । यगेकक छलार है ; पहले प्रकाश की छलार
इिनी िीर ह है । अन्यथा प्रत्येक क्षण अरधकार आिा
और कफर अरधकार। प्रकाश कभी चलिा नहीर, छलार
की धारणा कर सकिे है । यह दस ा री सरशोतधि दवतध उनके मल
ही लेिा है । और जो लो
छलार
है ।
‘या बीच के ररि स्तथानगे िें यह लबजली कौंधने जैसा है —ऐसा भाव करो।’ प्रयो
करके दे खो। अ र िुम्हें ककरणगे का क्रमिक ढर
वह अछा न ल े। और ल े कक ककरणें छलार कौंधने वाली दववायुि की, बादलगे के बीच छलार क्स्तत्रयगे के मल
से आना अछा ल िा है । िो वही ठीक है । और अ र
ले रही है । िो ककरणगे की बाि भाल जाग और आकाश िें
लेिी दववायुि की धारणा करो।
पहली दवतध आसान हो ी और पुरूनगे के मल
दस ा री । स्तत्री–तचि क्रमिकिा की धारणा ज्यादा
आसानी से बना सकिा है और पुरून-तचि ज्यादा आसानी से छलार करिा है; वह
क्रमिकिा की इिने अल
क से दस ा री चीज पर छलार
लिा है । पुरून-तचि िें
ले ा सकिा है । पुरून तचि उछलकाद पसरद
क सा्ि बेचैनी रहिी है । स्तत्री-तचि िें
क प्रकक्रया है । स्तत्री-तचि उछलकाद नहीर पसरद करिा है । यही वजह है कक स्तत्री और पुरून के िकय
होिे है । पुरून
ल िी है । उसके मल
क चीज से दस ा री चीज पर छलार
दवकास क्रमिक दवकास जरूरी है ।
लेककन चुनाव िुम्हारा है । प्रयो
ल ािा रहिा है । स्तत्री को यह बाि बड़ी बेबाझ
करो, और जो दवतध िुम्हें रास आ
उसे चुन लो।
इस दवतध के सरबरध िें और दो-िीन बािें । लबजली कौंधने के भाव के साथ िुम्हें इिनी उष्णिा अनुभव हो सकिी है । जो असहनीय िालाि पड़े। अ र ऐसा ल े िो इस दवतध को असहनीय है िो इसका प्रयो िुम्हारे मल
िि करो। िब
पहली दवतध है । अ र वह िुम्हें रास आ । अ र बेचैनी िहसास हो िो दस ा री दवतध का प्रयो
करो। कभी-कभी दवस्तफो
इिना बड़ा हो सकिा है । िुि भयभीि हो जा सकिे हो। और य द िुि
िो कफर िुि दब ु ारा प्रयो
न कर सको े। िब भय पकड़ लेिा है ।
िि
क दफा डर
िो सदा यान रहे कक ककसी चीज से भी भयभीि नहीर होना है । अ र िुम्हें ल े कक भय हो ा गर िुि बरदाि न कर पाग े िो प्रयो
िि करो। िब प्रकाश ककरणगे वाली पहली दवतध सवयश्रेष्ठ है ।
लेककन य द पहली दवतध के प्रयो यगेकक लो
िें भी िुम्हें ल े कक अतिशय
िी पैदा हो रही है —और ऐसा हो सकिा है ।
मभन्न-मभन्न है —िो भाव करो कक प्रकाश ककरणें शीिल है, ठर डी है । िब िुम्हें सब चीजगे िें उष्णिा
की ज ह ठर डक िहसास हो ी। वह भी प्रभावी हो सकिा है । िो तनणयय िुि पर तनभयर है ; प्रयो
करके तनणयय
करो।
स्तिरण रहे , चाहे इस दवतध के प्रयो
िें चाहे अन्य दवतधयगे के प्रयो
िें , य द िुम्हें बहुि बेचैनी अनुभव हो या कुछ असहनीय ल े। िो िि करो। दस ा रे उपाय भी है ; दस ा री दवतधयार भी है । हो सकिा है, यह दवतध िुम्हारे मल न हो। अनावयक उपिवगे िें पड़कर िुि सिाधान की बजाय सिस्तया र ही ज्यादा पैदा करो े। इसीमल
भारि िें हिने
क दवशेन यो
का दवकास ककया क्जसे सहज यो
कहिे है । सहज का अथय है सरल,
स्तवाभादवक, स्तवि: स्तफािय। सहज को सदा याद रखो। अ र िुम्हें िहसास हो कक कोच दवतध सहजिा से िुम्हारे अनुकाल पड़ रही है । अ र वह िुम्हें रास आ
अ र उसके प्रयो
सुखी अनुभव करो, िो सिझो कक वह दवतध िुम्हारे मल
से िुि ज्यादा स्तवस्तथ,ज्यादा जीवरि,ज्यादा
है । िब उसके साथ यात्रा करो; िुि उस पर भरोसा कर
सकिे हो। अनावयक सिस्तया र िि पैदा करो। आदिी की आरिररक यवस्तथा बहुि ज ल है । अ र िुि कुछ भी जबरदस्तिी करो े िो िुि बहुि ज ल है । अ र िुि कुछ भी जबरदस्तिी करो े िो िुि बहुि सी चीजें नष् कर दे सकिे हो। इसमल अछा है कक ककसी ऐसी दवतध के साथ प्रयो करो क्जसके साथ िुम्हारा अछा िालिेल हो। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-तीन प्रिचन-47
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—72 (ओशो) प्रकाश-संबंिी तीसरी विधि—
‘’भाि करो कक ब्रहिांड एक पारदशी शाश्ित उपक्स्थतत है ।‘’
‘’भाव करो कक ब्रह्िारड
क पारदशी शावि उपसतथति है ।‘’
अ र िुिने
ल.
स. डी. या उसी िरह के िादक िय का सेवल ककया हो, िो िुम्हें पिा हो ा कक कैसे िुम्हारे
चारगे और का ज ि प्रकाश गर रर गे के ज ि िें बदल जािा है । जो कक बहुि पारदशी और जीवरि िालाि पड़िा है । यह
ल.
स. डी. के कारण नहीर है । ज ि ऐसा ही है । लेककन िुम्हारी ढ़क्ष्
धामिल और िरद पड़
च है ।
ल.
स. डी. िुम्हारे चारगे रर ीन ज ि नहीर तनमियि करिा है , ज ि पहले से ही रर ीन है , उसिें कोच भाल नहीर है ।
यह रर गे के इरिधनुन जैसा है; इसीमल
िुम्हें कभी नहीर प्रिीि होिा है । कक ज ि इिना रर -भरा है ।
डी. मसफय िुम्हारी आरखगे से धुरध को ह ा दे िा है । वह ज ि को रर ीन नहीर बनािा।
ल.
जािा न
स.
स. डी. मसफय िुम्हारी
आरखगे धुरध को ह ा दे िा है । वह ज ि को रर ीन नहीर बनािा। क लबलकुल नया ज ि िुम्हारे सािने होिा है ।
ल.
क िािाली कुसी भी चित्कार बन जािी है । फशय पर पडा
रर गे से, नच आभा से भर जािा है । सज जािा है ; िब यािायाि का िािाली शोर
ाल भी सर ीि पाणय हो
उठिा है । क्जन वक्ष ृ गे को िुिने बहुि बार दे खा हो ा और कफर भी नहीर दे खा हो ा, वे िानगे नया जन्ि ग्रहण कर लेिे है । यवायदप िुि बहुि बार उनके पास ाजरें हो और िुम्हें याल है कक िुिने उन्हें दे खा है । वक्ष ृ का पत्िापत्िा
क चित्कार बन जािा है ।
और यथाथय ऐसा ही है ; ल.
स. डी.
क यथाथय का तनिायण नहीर करिा है ।
ल.
स डी िुम्हारी जड़िा को,
िुम्हारी सरवेदनहीनिा को मि ा दे िा है । और िब िुि ज ि को ऐसे दे खिे हो जैसे िुम्हें सच िें उसे दे खना चा ह । लेककन
ल
स डी िुम्हें मसफय
क झलक दे सकिा है । और अ र िुि
अबेर वह भी िुम्हारी आरखगे से धुरध का ह ाने िें असिथय हो जा
ल
स डी पर तनभयर रहने ल ,े दे र-
ा। कफर िुम्हें उसका अतधक िात्रा की जरूरि
पड़े ी, और िात्रा बढ़िी जाये ी और उसका असर करि होिा जाये ा। कफर िुम्हें य द की चीजें लेना छोड़ दो े िो ज ि िुम्हारे मल और भी सरवेदनहीन हो जाग े। अभी कुछ दन पहले
ल
स डी या उस िरह
पहले से भी ज्यादा उदास आरे फीका िालाि पड़े ा। िब िुि
क लड़की िुझसे मिलने आच । उसने कह कक िुझे सरभो
नहीर होिा है । उसने अनेक परू ु नगे के साथ प्रयो
िें आ ायज्ि का कोच अनुभव
ककया; लेककन आ ायज्ि का कभी अनभ ु व नहीर हुआ। वह मशखर कभी आिा ही नहीर। और वह लड़की बहुि हिाश हो च। िो िैंने उस लड़की से कहा कक िुझे अपने प्रेि और काि जीवन के सरबरध िें दवस्तिार से बिाग, पारी कहानी कहो। और िब िुझे पिा चला कक वह सरभो
के मल
लबजली के
क यरत्र का ,इलेरातनक वाचब्रे र का उपयो
कर रही थी। आजकल पमशचि िें इसका बहुि उपयो हो रहा है । लेककन िुि अ र क बार पुरून जननें िय के मल इलेरातनक वाचब्रे र का उपयो कर लो ,े िो कोच भी परू ु न िुम्हें िृ ि नहीर कर पा ा। यगेकक इलेरातनक वाचब्रे र आलखर इलेरातनक वाचब्रे र ही है । िुम्हारी जननें ियार जड़ हो जा र ी। उस हालि िे आ ायज्ि, काि का मशखर अनुभव असरभव हो जा
ा। िुम्हें काि सरभो
ुदाय हो जा
ी।
का मशखर कभी प्राि न
हो सके ा। और िब िुम्हें पहलेसे ज्यादा शक्िशाली इलेरातनक वाचब्रे र की जरूरि पड़े ी। और यह प्रकक्रया उस अति िक जा सकिी है कक िुम्हारा पारा काि यरत्र पत्थर जैसा हो जाये। और यही दि ु य ना हिारी प्रत्येक इर िय के साथ ि िो िुि जड़ हो जाग े।
ल
रही है । अ र िुि कोच बाहरी उपाय; कृलत्रि काि िें लाग े,
स डी िुम्हें अरिि: जड़ बना दे ा; यगेकक उससे िुम्हारे दवकास नहीर होिा है , िुि
ज्यादा सरवेदनशील नहीर होिे हो।
अ र िुि दवकमसि होिे हो िो यह
क मभन्न प्रकक्रया है । िब िुि ज्यादा सरवेदनशील हो े। और जैसे-जैसे िुि
ज्यादा सरवेदनशील होिे हो, वैसे-वैसे ज ि दस ा रा होिा जािा है । अब िुम्हारी इर ियाँ ऐसी अनेक चीजें अनुभव कर सकिी है क्जन्हें उन्हगेने अिीि िें कभी नहीर अनुभव ककया था। यगेकक िुि उनके प्रति खुले नहीर थे। सरवेदनशील नहीर थे।
यह दवतध आरिररक सरवेदनशीलिा पर आधाररि है । पहले सरवेदनशीलिा को बढ़ागर। अपने वावार-दरवाजे बरद कर लो। किरे िें अँधेरा कर लो, और कफर
क छो ी सी िोिबत्िी जलाग। और उस िोिबत्िी के पास प्रेिपाणय
िुिा िें बक्ल्क प्राथयना पाणय भाव दशा िें बैठो और ज्योति से प्राथयना करो: ‘’अपने रहस्तय को िुझ पर प्रक
करो।‘’ स्तनान कर लो, अपनी आरखगे पर ठर डा पानी तछड़क लो और कफर ज्योति के सािने अत्यरि प्राथयना पाणय भाव दशा िें होकर बैठो। ज्योति को दे खो गर शेन सब चीजें भाल जाग। मसफय ज्योति को दे खो। ज्योति को दे खिे रहो।
पाँच मिन
बाद िुम्हें अनभ ु व हो ा कक ज्योति िें बहुि चीजें बदल रही है । लेककन स्तिरण रहे , यह बदलाह ज्योति िें नहीर हो रही है ; दरअसल िुम्हारी ढ़क्ष् बदल रही है । प्रेिपाणय भाव दशा िें सारे ज ि को भालकर, सिग्र रहो, िुम्हें ज्योति के चारगे और न
काग्रिा के साथ, भावपाणय ्दय के साथ ज्योति को दे खिे
रर , नच छ ा र दखाच दें ी। जो पहले कभी नही दखाच दी थी। वे रर , वे
छ ा र सब वहार िौजाद है ; पारा इरिधनुन वहार उपक्स्तथति है । जहार-जहार भी प्रकाश है , वहार-वहार इरिधनुन है । यगेकक
प्रकाश बहुरर ी है उसिें सब रर है । लेककन उन्हें दे खने के मल सा्ि सरवेदना की जरूरि है । उसे अनुभव करो और दे खिे रहो। य द आरसा भी बहने ल ें िो भी दे खिे रहो। वे आरसा िुम्हारी आरखगे को तनखार दें े, ज्यादा िाजा बना जायें े।
कभी-कभी िुम्हें प्रिीि हो ा कक िोिबत्िी या ज्योति बहुि रहस्तयपाणय हो च है । िुम्हें ल े ा कक यह वही साधारण िोिबत्िी नहीर है जो िैं आपने साथ लाया था। उसने क नच आभा क सा्ि दयिा, क भ वत्िा प्राि कर ली है । इस प्रयो िेरे
को जारी रखो। कच अन्य चीजगे के साथ भी िुि इसे कर सकिे हो।
क मित्र िुझे कह रहे थे कक वे पाँच-छह मित्र पत्थरगे के साथ
कक कैसे प्रयो प्रयो
करना, और लो
कर िुझे पारी बाि कह रह थे। वे
क प्रयो कारि िें
कर रहे थे। िैंने उन्हें कहा था क नदी के ककनारे पत्थरगे के साथ
कर रहे थे। वे उन्हें फील करने की कोमशश कर रह थे—हाथगे से छाकर, चेहरे से ल ा कर। जीभ से चकर,
नाक से सारिकर—वे उन पत्थरगे का हर िरह सक फील करने कक कोमशश कर रहे थे। साधारण से पत्थर, जो उन्हें नदी ककनारे मिल उन्हगेने
ये थे।
क िर े िक यह प्रयो
ककया—हर यक्ि ने
क पत्थर के साथ। और िेरे मित्र िुझे कह रहे थे
क
बहुि अद्भुि ि ना ि ी। हर ककसी ने कहा: ‘’या यह पत्थर िैं अपने पास रख सकिा हार।‘’ िैं इसके प्रेि िें पड़ या हार। क साधारण सा पत्थर, अ र िुि सहानुभातिपाणय ढर
से उससे सरबरध बनािे हो िो िुि प्रेि िें पड़ जाग े। और
अ र िुम्हारे पास इिनी सरवेदनशीलिा नहीर है । िो सुरदर से सुरदर यक्ि के पास होकर भी िुि पत्थर के पास ही हो; िुि प्रेि िें नहीर पड़ सकिे हो।
िो सरवेदनशीलिा को बढ़ाना है । िुम्हारी प्रत्येक इर िय को ज्यादा जीवरि होना है । िो ही िुि इस दवतध का प्रयो
कर सकिे हो।
‘’भाव करो कक ब्रह्िारड
क पारदशी शावि उपक्स्तथति है ।‘’
सवयत्र प्रकाश है ; अनेक-अनेक रूपगे और रर गे िें प्रकाश सवयत्र याि है । उसे दे खो। सवयत्र प्रकाश है । यगेकक सारी सक्ृ ष्
प्रकाश की आधारमशला पर खड़ी है ।
क पत्िे को दे खा
क फाल को दे खो या
क पत्थर को दे खा। आरे
दे र-अबेर िुम्हें अनुभव हो ा कक उससे प्रकाश की ककरणें तनकल रही है । बस धैयय से प्रिीक्षा करो। ज्यादा जल्द िि करो। यगेकक जल्दी बाजी िें कुछ भी प्रक
नहीर होिा। िि ु जब जल्दी िें होिे हो िो िि ु जड़ हो जािे हो।
ककसी भी चीज के साथ धीरज से प्रिीक्षा करो। और िुम्हें िौजाद था, लेककन क्जसके प्रति िुि सज ‘’भाव करो कक ब्रह्िारड
क अद्भि ु िथ्य से साक्षात्कार हो ा। जो सदा से
नहीर थे। सावचेि नहीर थे।
क पारदशी शावि उपक्स्तथति है ।‘’
और जैसे ही िुम्हें इस शावि अक्स्तित्व की उपक्स्तथति अनुभव हो ी वैसे ही िुम्हारा तचि लबलकुल िौन और शारि हो जा
ा। िुि िब उसके
क अरश भर हो े। ककसी अद्भि ु सर ीि िें
है । कफर कोच िनाव नहीर है । बारद सिुि िें त र लेककन आरर भ िें
च, खो
क स्तवर भर। कफर कोच तचरिा नहीर
च।
क बड़ी कल्पना की जरूरि हो ी। और अ र िुि सरवेदनशीलिा बढ़ाने के अनय प्रयो
हो, िो वह सहयो ी हो ा। िुि कच िरह के प्रयो
करिे
कर सकिे हो। ककसी का हाथ अपने हाथ िें ले लो। आरखें बरद
कर लो। और दस ा रे के भीिर के जीवन को िहसास करो; उसे िहसास करो उसे अपनी और बहने दो; ति करने दो। कफर अपने जीवन को िहसास करो, और उसे दस ा रे की और प्रवा हि होने दो। ककसी वक्ष ृ के तनक
बैठ जाग
और उसकी छाल को छुग,स्तपशय करो। अपनी आरखें बरद कर लो। और वक्ष ृ िें उठिे-जीवन ित्व को अनुभव करो। और स्तपशय करो। िुम्हें िुररि बदलाह
अनुभव करो े।
िैंने
क डा र कुछ लो गे पर प्रयो
क प्रयो
के बारे िें सुना है ।
कर रहा था कक या भाव दशा से शरीर िें
रासायतनक पररवियन होिे है । अब उसके तनष्कनय तनकाला है कक भाव दशा से शरीर िें ित्काल रासायतनक पररवियन होिे है ।
उसने बारह लो गे के सिाह पर यह प्रयो सबकी पेशाब साधारण,सािान्य पाच क्रोध, हरसा, हत्या, िार-पी
ककया। उसने प्रयो
के आरर भ िें उन सबकी पेशाब की जारच की। और
च। कफर हर यक्ि को
से भरी कफल्ि दखाच
च। िीस मिन
कफल्ि थी। लेककन वह यक्ि उस भाव दशा िें रहा। दस ा रे को च। वह आनर दि रहा। और उसी िरह से बाहर लो गे पर प्रयो
कफर प्रयो
के बाद उनकी पेशाब की जारच की
क भाव दशा के प्रयो
िें रखा
या।
िक उसे भयावह कफल्ि दखाच
क को च। वह िात्र
क हर सी खुशी की, प्रसन्निा की कफल्ि दखाच
ककया।
च; और अब सबकी पेशाब अल
थी। शरीर िें रसायतनक
पररवियन हु थे। जो हरसा और भय की भाव दशा िें रहा वह अब बुझा-बुझा, बीिार था। और हर सी-खुशी की प्रसन्निा की कफल्ि दखाच च। वह प्रफुल्ल था। उसकी पेशाब अल थी। उसके शरीर की रासायतनक यवस्तथा अल
थी।
िुम्हें बोध नहीर है । िुि अपने साथ कर रहे हो। जब िुि कोच खान ाबराबे की कफल्ि दे खने जािे हो िो िुि नहीर जानिे हो कक िुि या कर रहे हो। िुि अपने शरीर की रसायतनक यवस्तथा बदल रहे हो। जब िुि कोच
जासासी उपन्यास पढ़िे हो। िुि अपनी हत्या स्तवयर कर रहे हो। िुि उत्िेक्जि हो जाग ;े िुि भयभीि हो
जाग े। िुि िनाव से भर जाग े। जासासी उपन्यास का यही िो िजा है । िुि क्जिने उत्िेक्जि होिे हो, िुि
उसका उिना ही साख लेिे हो। आ े या ि ि होने वाला है , इस बाि को लेकर क्जिना सस्तपें स हो ा; िुि उिने ही अतधक उत्िेक्जि हो े। और इस भारति िुम्हारे शरीर का रसायन बदल रहा है ।
ये सारी दवतधयार भी िुम्हारे शरीर का रसायन बदलिी है । अ र िुि सारे ज ि को जीवन और प्रकाश से भरा अनुभव करिे हो, िो िुम्हारे शरीर का रसायन बदलिा है । और यह
क चेन रर शन है , इस बदलाह
की
क
शरख ृ ला बन जािी है । जब िुम्हारे शरीर का रसायन बदलिा है और िुि ज ि को दे खिे हो। िो वही ज ि
ज्यादा जीवरि दखाच पड़िा है । और जब वह ज्यादा जीवरि दखाच पड़िा है िो िुम्हारे शरीर का रासायतनक यवस्तथा और भी बदलिी है । ऐसे
क शरख ृ ला तनमियि हो जािी है ।
य द यह दवतध िीन िहीने िक प्रयो मभन्न यक्ि हो जाग े।
की जा , िो िुि मभन्न ही ज ि िें रहने ल ो े। यगेकक अब िुि ही
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-तीन प्रिचन-47
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—73 (ओशो) ‘ग्रीष्ि ऋतु िें जब तुि सिस्त आकाश को अंतहीन तनिथलता िें दे खो, उस तनिथलता िें प्रिेश करो।‘’
‘ग्रीष्ि तिु िें जब िुि सिस्ति आकाश को अरिहीन तनियलिा िें दे खो, उस तनियलिा िें प्रवेश करो।‘’
िन दव्ि है ; िन उलझन है । उसिें स्तपष् िा नहीर है । तनियलिा नहीर है । और िन सदा बादलगे से तिरा रहिा है । वह कभी तनर्, शुन्य आकाश नहीर होिा। िन तनियल हो ही नहीर सकिा। िुि अपने िन को शारि-तनियल नहीर बना सकिे हो। ऐसा होना िन के स्तवभाव िें ही नहीर है । िन अस्तपष्
रहे ा, धुरधला-धुरधला ही रहे ा। अ र िुि
िन को पीछे छोड़ सके, अ र िुि िन का अतिक्रिण कर सके, उसके पार जा सके, िो
क स्तपष् िा िुम्हें
उपलध हो ी। िुि वावरवाव र हि हो सकिे हो। िन नहीर। वावरवाव र हि िन जैसी कोच चीज होिी ही नहीर। न कभी अिीि िें थे और न कभी भदवष्य िें हो ी। िन का अथय ही वावरवाव है उलझाव है ।
िन की सररचना को सिझने की कोमशश करो और िब यह दवतध िुम्हें स्तपष् दवचारगे की
क प्रकक्रया है , दवचारगे का
हो जा
ी। िन या है ? िन
क सिि प्रवाह है —चाहे वे दवचार सर ि हगे या असर ि हो। चाहे वे
प्रासरत क हो या अप्रासरत क हो। िन सब ज हगे से सरग्र हि कक िुम्हारा सारा जीवन
बहुआयािी प्रभावगे का क लरबा जलास है । क सरग्रह है —धाल का सरग्रह। और यह मसलमसला अनवरि चलिा रहिा है।
क बचा जन्ि लेिा है । बचे की ढ़क्ष्
तनियल है ; यगेकक उसके पास िन नहीर है । लेककन जैसे ही िन प्रवेश
करिा है, उसके साथ ही वावरवाव और उलझन भी प्रवेश कर जािी है । बचा तनियल है । तनियलिा ही है । लेककन उसे ज्ञान, साचना, सरस्तकृति, धिय और सरस्तकारगे का सरग्रह करना ही पड़े ा। वे जरूरी है । उपयो ी है , उसे अनेक ज हगे से, अनेक स्रोिगे से इकट्ठा करे ा। और िब उसका िन
क बाजार बन जा
ा— क िेला, क मभड़। और
यगेकक उसके स्तत्रोि अनेक है , उलझन और ्ारति और दव्ि का होना है । और िुि ककिना भी इकट्ठा करो, कुछ भी तनक्चि नहीर हो पािा है । यगेकक ज्ञान सदा बदलिा रहिा है । और बढ़िा रहिा है । िुझे स्तिरण आिा है कक ककसी ने िुझे उसके
क चु कला सन ु ाया था। वह
क बड़ा शोधकिाय था और यह चु कला
क प्रोफेसर के बाबि था क्जन्हगेने उसे िेगडकल कालेज िें पाँच वनों िक पढ़ाया था। वह प्रोफेसर अपने
दवनय का भारी दववावान था। और उसने जो अरतिि काि ककया वह यह था कक उसने अपने सारे दववायातथययगे को जिा ककया और कहा: ‘िुझे िुम्हें
क और चीज मसखानी है । िैंने िुम्हें जो कुछ पढ़ाया है उकसा पचास प्रतिशि
ही सही है । और शेन पचास प्रतिशि लबलकुल
लि है । लेककन क ठनाच यह कक िैं नहीर जानिा कक कौन सा
पचास प्रतिशि सही है और कौन सा पचास प्रतिशि
लि है ।’
ज्ञान की सारी इिारि ऐसे ही खड़ी है । कुछ भी तनक्चि नही है । कोच नहीर जानिा है ; हर कोच अरधेरे िें रहा है । ऐसे ही शास्तत्र बन
ोल-
ोल
ोल कर हि शास्तत्र तनमियि करिे है ; दवचार पध सतियार बनािे है । और ऐसे ही हजारगे-हजारगे
है । हरद ा कुछ कहिे है ; चसाच कुछ और कहिे है । िुसलिान कुछ और कहिे है । और सब
क
दस ा रे का खरडन करिे है । उनिें कोच सहिति नहीर है । और कोच भी तनक्चि नहीर है । असर दग्ध नहीर है । और ये सारे स्तत्रोि ही िुम्हारे िन के स्तत्रोि है । िुि इनसे ही अपना सरग्रह तनमियि करिे हो। िुम्हारा िन खाना बन जािा है । दव्ि अतनवायय है ; उलझन अतनवायय है ।
क कबाड़
केवल वही आदिी तनक्चि हो सकिा है । जो बहुि जानिा है । िुि क्जिना अतधक जानगे ,े उिने ही ्मिि हो े। उलझन ग्रस्ति हो े। आ दवासी लो ज्यादा तनक्चरि थे और उनकी आरखें ज्यादा तनियल िालाि पड़िी है । यह ढ़क्ष्
की तनियलिा नहीर थे। यह मसफय परस्तपर दवरोधी िथ्यगे के प्रति उनका अज्ञान था। अ र आधुतनक तचि
ज्यादा ्मिि है िो उसका कारण है कक आधुतनक तचि बहुि ज्यादा जानिा है । अ र िुि ज्यादा जानगे े िो िुि ज्यादा ्मिि हो े। यगेकक अब िुि बहुि कुछ जानिे हो। और िुि क्जिना ज्यादा जानगे े उिने ही ज्यादा अतनक्चि हो े। केवल िाढ़ ही असर दग्ध हगे े। केवल िाढ़ ही ििारध हगे े; केवल िाढ़ ही कभी लझझक िें नहीर पड़िे। िुि क्जिना ही जानगे े उिनी ही िुम्हारे पारव के नीचे से जिीन लखसक जा उधेड़बन ु िें पड़ो े।
ी। िि ु उिनी ही अतधक
िैं यह कहना चाहिा हार कक िन क्जिना ही बड़ा हो ा िुि उिना ही जानगे े कक ्ारति िन का स्तवभाव है । और जब िैं कहिा हार कक केवल िाढ़ ही तनक्चि हो सकिे है । िो उसका अथय यह नहीर है कक बुध स िाढ़ है । यगेकक वे सर दग्ध नहीर है । इस भेद को स्तिरण रखो; बुध स ने तनक्चि है न अतनक्चि; बुध स की ढ़क्ष्
स्तपष्
है । िनके साथ
अतनचय है ; िाढ़ िन के साथ तनक्चि है ; और अ-िन के साथ तनचय-अतनक्चय दोनगे दवदा हो जािे है ।
बध स ु परि होश है, शुध स बोध है —खुले आकाश जैसे है । वे तनक्चि नहीर है ; तनक्चि होने को या है ? वे अतनक्चि
भी नहीर है ; अतनक्चि होने का या है ? केवल वही अतनक्चि हो सकिा है जो तनक्चि की खोज िें है । िन सदा अतनक्चि रहिा है । और तनचय की खोज करिा है । िन सदा कन्तरयाज रहिा है और लैरर ी की िलाश करिा है । बुध स ने िन को ही त रा दया है । और िन के साथ सारे दव्ि को, सारे तनचय-अतनचय को,सब कुछ को त रा दया है ।
इसे इस िरह दे खा। िुम्हारी चेिना आकाश जैसी है और िुम्हारा िन बदलगे जैसा है । आकाश बादलगे से अछािा रहिा है । बादल आिे है जािे है , लेककन आकाश पर उनका कोच तचन्ह नहीर छा िा है । बादलगे की कोच स्तितृ ि कुछ भी नहीर पीछे रहिा है । बादला आिे-जािे है , आकाश अनुवादवग्न शारि रहिा है ।
िुम्हारे साथ भी यहीर बाि है , िुम्हारी चेिना अनुवादवग्न, अक्षुध शारि रहिी है । दवचार आिे है और जािे है , िन उठिे है और खो जािे है । ऐसा िि सोचो कक िुम्हारे पास क भीड़ है । और िुम्हारे िन बदलिे रहिे है ।
िुि कम्युतनस्त
हो; िो िुम्हारे पास
क ही िन है , िुम्हारे पास अनेक िन है । िनगे की
क िरह का िन हो ा। कफर िुि कम्यातनज छोड़कर कम्यातनजि दवरोधी
बन सकिे हो। िब िुम्हारे पास मभन्न िन हो ा। मभन्न ही नहीर हो ा, सवयथा दवपरीि िन हो ा। िुि वस्तत्रगे की भारति अपने िन बदलिे रह सकिे हो। और िुि बदलिे रहिे हो; िुम्हें इसका पिा हो या न हो। ये बादल आिे है जािे है ।
तनियलिा िो िब प्राि होिी है जब िुि अपनी ढ़क्ष् होिे हो। अ र िुम्हारी ढ़क्ष्
को बादलगे से ह ािे हो। जब िुि आकाश के प्रति बोधपाणय
आकाश पर नहीर है िो उसका अथय है कक वह बादलगे पर ल ी है । उसे बादलगे से
ह ाकर आकाश पर कें िि करो। यह दवतध कहिी है : ‘ग्रीष्ि तिु िें जब िुि सिस्ति आकाश को अरिहीन तनियलिा िें दे खो, उस तनियलिा िें प्रवेश करो।’
आकाश पर यान करो। ग्रीष्ि तिु का तनर् आकाश, दरा -दरा िक ररि और तनियल, तनप
खाली अस्तपमशयि
और करु वारा। उस पन िनन करो। यान करो। उस तनियलिा िें प्रवेश करो। वह तनियलिा ही हो जाग—आकाश जैसी तनियलिा।
अ र िुि तनियल, तनर् आकाश पर यान करो े िो िुि अचानक िहसास करो े कक िुम्हारा िन दवलीन हो
रहा है । दवदा हो रहा है । ऐसे अरिराल हगे े। क्जनिें अचानक िुम्हें बोध हो ा कक तनियल आकाश िुम्हारे भीिर प्रवेश कर सानी हो
या है । ऐसे अरिराल हगे े। क्जनिें कुछ दे र के मल
दवचार खो जायें े। िानगे चलिी सड़क अचानक
च है । और वहार कोच नहीर चल रहा है ।
आरर भ िें यह अनुभव कुछ क्षणगे के मल की
हो ा; लेककन वे क्षण भी बहुि रूपारिरण कारी हो े। कफर धीरे -धीरे िन ति धीिी होने ल े ी और अरिराल बड़े होने ल ें े। अनेक क्षणगे िक कोच दवचार, कोच बादल नहीर हो ा।
और जब कोच दवचार, कोच बादल नहीर हो ा िो बाहरी आकाश और भीिरी आकाश
क हो जा र े। यगेकक दवचार
ही बाधा है , दवचार ही दीवार तनमियि करिे है ; दवचारगे के कारण ही बाहर भीिर का भेद खड़ा होिा है जब दवचार नहीर होिे िो बाहरी और भीिरी दोनगे अपनी सीिा र खो दे िे है । और
क हो जािे है । वास्तिव िें सीिा र वहार
कभी नहीर थी। मसफय दवचार के कारण, दवचार के अवरोध के कारण सीिा र िालाि पड़िी थी।
आकाश पर यान करना बहुि सरुदर है । बस ले जाग, िाकक पथ्ृ वी को भाल सको। ककसी कारि सा र ि या कहीर भी जिीन पर पीठ के बल ले जाग और आकाश को दे खो। लेककन इसके मल तनियल आकाश
पर,
सहयो ी हो ा—तनियल और तनर् आकाश। और आकाश को दे खिे हु ,उसे अपलक दे खिे हु उसकी तनियलिा को, उसके तनर् फैलाव को अनुभव करो। और कफर उस तनियलिा िें प्रवेश करो, उसके साथ क हो जाग। अनुभव करो कक जैसे िुि आकाश ही हो
हो।
आरर भ िें अ र िुि मसफय कुछ और नहीर करो खुले आकाश पर ही यान करो। िो अरिराल आने शुरू हो जा र े। यगेकक िुि जो कुछ दे खिे हो वह िुम्हारे भीिर प्रवेश कर जािा है । िुि जो कुछ दे खिे हो वह िुम्हें भीिर से उवावेमलि कर दे िा है । िुि जो कुछ दे खिे हो वह िुििें लबरलबि-प्रतिलबरलबि हो जािा है । िुि
क िकान दे खिे हो। िुि उसे िात्र दे खिे ही िुम्हारे भीिर कुछ होने भी ल िा है । िुि
क परू ु न को या
क स्तत्री को दे खिे हो, क कार को दे खिे हो, या कुछ भी दे खिे हो। वह अब बहार हीन ही; िम् ु हारे भीिर भी
कुछ होने ल िा है । कोच प्रतिलबरब बनने ल िा है । और िुि प्रतिकक्रया करने ल िे हो िुि जो कुछ दे खिे हो वह िुम्हें ढालिा है , ढ़िा है ; वह िुम्हें बदलिा है । तनमियि करिा है । बाह्ि सिि भीिर से जड़ ा ा है ।
िो खुले आकाश को दे खना ब ढ़या है । उसका असीि दवस्तिार बहुि सुरदर है । उस असीि के सरपकय िें िुम्हारी सीिा र भी दवलीन होने ल िी है ; यगेकक वह असीि आकाश िुम्हारे भी प्रतिलबरलबि होने ल िा है । और िुि अ र आरखगे को झपके लबना अपलक िाक सको िो बहुि अछा है । अपलक िाकना बहुि अछा है । यगेकक अ र िुि पलक झपकिे हो दवचार प्रकक्रया चाला रहे ी। िो लबना पलक झपका अपलक दे खो। शान्य िें दे खो; उस शान्य िें डाब जाग। भाव करो कक िुि उससे
क हो
हो। और कफर आकाश िुििें उिर आ
ा।
पहले िुि आकाश िें प्रवेश करिे हो कफर आकाश िुि िें प्रवेश करिा है । िब मिलन ि ि होिा है । आरिररक
आकाश बाह्ि आकाश से मिलिा है । और उस मिलन िें उपलक्ध है । उस मिलन िें िन नहीर होिा। यगेकक वह मिलन ही िब होिा है जब िन नहीर होिा। उस मिलन िें िुि पहली दफा िन नहीर होिे हो। और इसके साथ सारी ्ारति दवदा हो जािी है । िन के लबना ्ारति नहीर हो सकिी है । सारा दुःा ख सिाक्ि हो जािा है । यगेकक दुःा ख भी िन के लबना नहीर हो सकिा है ।
िुिने या कभी इस बाि पर यान दया है । दुःु ख िन के लबना नहीर हो सकिा हे । िुि िन के लबना दुःु खी नहीर हो सकिे हो। उसका स्तत्रोि ही नहीर रहा। कौन िुम्हें दुःु ख दे ा। कौन िुम्हें दुःु खी बना
ा? और उल ी बाि
भी सही है । िुि िन के लबना दुःु खी नहीर हो सकिे हो। िुि िन के रहिे आनर दि नहीर रह सकिे हो। िन कभी आनरद का स्तत्रोि नहीर हो सकिा है ।
य द भीिर और बाहरी आकाश क्षण भर के मल जीवन से भर जाग े। उस जीवन की जीवन।
भी मिलिे है और िन दवलीन हो जािा है । िो िुि
क न
ुणविा ही और है । यहीर शावि जीवन है —ित्ृ यु से अस्तपमशयि शावि
उस मिलन िें िुि यहार और अभी हो े। वियिान िें हो े। कयगेकक अिीि दवचार का हस्तसा है और भदवष्य भी
दवचार का हस्तसा हे । अिीि और भदवष्य िन के हस्तसे है ; वियिान अक्स्तित्व है ; वह िुम्हारे िन का हस्तसा नहीर है । जो क्षण बीि
या वह िन का है , जो क्षण आने वाला है वह िन का है । लेककन वियिान क्षण कभी िुम्हारे
िन का हस्तसा नहीर हो सकिे है। बक्ल्क िुि ही इस क्षण के हस्तसे हो। िुि यहीर हो, ठीक अभी और यहीर हो। लेककन िुम्हारा िन कहीर और होिा है । सदा कहीर और होिा है । िो अपने को भार-िुि करो। िैं
क साफी सरि की कहानी पढ़ रहा था। वह
रहा था। रास्तिा तनजयन हो चला था, िभी उसे िें फरस
क ककसान अपनी बैल ाड़ी के पास दखाच पडा। बैल ाड़ी कीचड़
च थी। रास्तिा उबड़-खाबड़ था। ककसान अपनी
ाड़ी का दपछला ििा खुल
इसका पिा नहीर था। जब उसके सब प्रयत्न यथय
क सुनसान रास्तिे से यात्रा कर
या था और सेब त रिे
ाड़ी िें सेब भर कर ला रहा था; लेककन रास्तिे िें कहीर थे। लेककन उसे इसकी खबर नहीर थी। ककसान को
ाड़ी कीचड़ िे फरसी िो पहले िो उसने उसे तनकालने की भरसक चेष् ा कक, लेककन
। िब उसने सोचा कक िैं
ाड़ी को खाली कर लार िो तनकालना आसान हो जा
ा।
उसने जब लौ कर दे खा िो िुक्कल से दजयन भर सेब बचे थे। सब बोझ पहले ही उिर चाका था। िुि उसकी पीड़ा सिझ सकिे हो। उस साफी ने अपने सरस्तिरणगे िें मलखा है कक थके-हारे ककसान ने ाड़ी फरसी और उिारने को कुछ भी नहीर है ।’यही
आ
क आशा बची थी कक
क आह भरी: ‘नरक िें
ाड़ी खाली हो िो कीचड़ से तनकल
ी। पर अब खाली करने को भी कुछ नहीर है ।
सौभाग्य से िुि इस िरह नहीर फरसे हो। िुि खाली कर सकिे हो। िुम्हारी खाली कर सकिे हो। और जैसे ही िन
ाड़ी बहुि बोलझल है । िुि िन को या कक िुि उड़ सकिे हो। िुम्हें परख ल जािे है ।
यह दवतध—आकाश की तनियलिा िें झारकने और उसके साथ
क होने की दवतध—उन दवतधयगे िें सक
क है
क्जनका बहुि उपयो ककया या है । अनेक परर परागर ने इसका उपयो ककया है । और खास कर आधुतनक तचि के मल यह दवतध बहुि उपयो ी है । यगेकक पथ्ृ वी पर कुछ भी नहीर बचा है क्जस पर यान ककया जा सके। मसफय आकाश बचा है । िुि य द अपने चारगे गर दे खो ें िो पाग े कक प्रत्ये क चीज िनुष्य तनमियि है । प्रत्येक चीज सीमिि हो करने के मल
च है ; प्रत्येक चीज सीिा िें मसकुउ
च है । सौभाग्य से आकाश अब भी बचा है । जो यान
उपलध है ।
िो इस दवतध करो; यह उपयो ी हो ी। लेककन िीन बािें याद रखने जैसी है । पहली बाि की पलकें िि झपकना, अपलक दे खो। अ र िुम्हारी आरखें दख ु न ल े और आरसा बहने ल ें िो भी तचरिा िि करना। वे आरसा भी िुम्हारे तनभायर करने िें सहयो ी हगे े। वे आरसा िुम्हारी आरखगे को ज्यादा तनदतन और िाजा बना जा र े। वे उन्हें नहला दें े। िुि अपलक दे खिे जाग।
दस ा री बाि आकाश के बारे िें सोच-दवचार िि करो। इस बाि को याल िें रख लो। िुि आकाश के सरबरध िें सोच दवचार करने ल
सकिे हो। िुम्हें आकाश के सरबरध िें अनेक कदविा र, सुरदर-सुरदर कदविा र याद आ सकिी
है । लेककन िब िुि चाक जाग े। िुम्हें आकाश के बारे िें सोच-दवचार नहीर करना है । िुम्हें िो उसिें डाबना है । िुम्हें उसके साथ जा
क होना है । अ र िुि उसके सरबरध िें सोच-दवचार करने ल े िो कफर अवरोध तनमियि हो
ा। िब िुि आकाश को चाक जाग े। और अपने ही िन िें बरद हो जाग े।
आकाश के सरबरध िें सोच-दवचार िर करो; आकाश की हो जाग। बस उसिे झारको और उसिें प्रवेश करो और उसे भी अपने िें प्रवेश करने दो। अ र िुि आकाश िें डाबो े िो आकाश भी िुििें डाबने ल े ा। यह आकाश िें प्रवेश कैसे हो ा? यह कैसे सरभव हो ा कक िुि आकाश िें
ति करो? आकाश िें
अपलक दे खिे जाग। िानो िुि उसकी सीिा खोजने की कोमशश कर रहे हो। उसकी
हरे और
हरे
हराच िें झाँकिे जाग।
जहार िक सरभव हो। यह मिन
हराच ही अवरोध को िोड़ दे ी। और इस दवतध का अभ्यास कि से कि चालीस
िक करना चा ह । उससे कि िें काि नहीर चले ा। उससे कि सिय करना बहुि उपयो ी नहीर हो ा।
जब िुम्हें वास्तिव िें ल े कक िुि आकाश के साथ िुििें प्रवेश कर जा
क हो
हो िो िुि आरखें बरद कर सकिे हो। जब आकाश
िो िुि आरखें बद कर सकिे हो। िब िुि उसे अपने भीिर दे खने िें भी सािथ्यय हो सकिे
हो। िब बहार दे खना जरूरी नहीर है । िो चालीस मिन या, िुि उसके हस्तसे हो
अनुभव कर सकिे हो।
के बाद जब िुम्हें ल े कक
किा सध
च। सरवाद सध
ये। और अब िन नहीर है , िो िुि आरखें बरद कर सकिे हो और भीिर आकाश को
आकाश तनियल है , शुध स है , अक्स्तित्व की शध स ु िि चीज है । कुछ भी उसे अशध स ु नहीर करिा। सरसार आिे है , और चले जािे है। पथ्ृ वीयार बनिी है,और खो जािी है। लेककन आकाश तनियल का तनियल बना रहिा है। िो शध स ु िा है; िम् ु हें उसे प्रक्षेदपि नहीर करना है । िुम्हें मसफय उसे अनुभव करना है ,उसके प्रति सरवेदनशील होना है । िाकक उसका
अनुभव हो सके। तनियलिा िो िौजाद ही है । िुि आकाश को राह दो। िुि उसे जबरदस्तिी नहीर ला सकिे हो। िुम्हें उसे मसफय प्रेिपव य राह दे नी हे । ा क
सभी यान मसफय प्रेि पावक य राह दे ने की बाि है । कभी आक्रिण की भाना िें िि सोचो; कभी जबरदस्तिी िि
करो। िुि जबरदस्तिी कुछ भी नहीर कर सकिे हो। सच िो यह है कक िुम्हारी जबरदस्तिी करने की चेष् ा से ही िुम्हारे सभी दुःु ख तनमियि हु है । जबरदस्तिी कुछ भी नहीर हो सकिा है । लेककन िुि चीजगे को ि ि होने दे सकिे हो। स्तत्रैण बनो; चीजगे को ि ि होने दो। तनक्ष्क्रय बनो। आकाश पाणि य : तनक्ष्क्रय है, कुछ भी िो नहीर
करिा है । बस है । िुि भी तनक्ष्क्रय होकर आकाश को दे खिे रहो। खुल ग्रहण शील, स्तत्रैण अपनी और से ककसी िरह की भी जल्दबाजी कक
लबना। और िब आकाश िुििें उिरे ा।
‘ग्रीष्ि ऋतु िें जब तुि सिस्त आकाश को अंतहीन तनिथलता िें दे खो, उस तनिथलता िें प्रिेश करो।’
लेककन अ र ग्रीष्ि तिु न हो िो िुि कया करो े? अ र आकाश िें बादल हगे,आकाश साफ न हो। िो अपनी
आरखे बरद कर लो और आरिररक आकाश को दे खो। आरखे बरद कर लो अ र कुछ दवचार दखाच पड़े िो उन्हें वैसे ही दे खा जैसे कक आकाश िें िैरिे बादल हो। पष्ृ ठभामि के प्रति, आकाश के प्रति सज
हो जाग। और बादलगे के
प्रति उदासीन रहो।
हि दवचारगे से इिने जुड़ रहिे है कक बीच के अरिरालगे के प्रति कभी यान नहीर दे पािे है । है और इसके पहले कक दस ा रा दवचार प्रवेश करे , वहार
क दवचार
ुजरिा
क अरिराल होिा है । उस अरिराल िें ही आकाश की झलक
है । जब दवचार नहीर होिा है िो या होिा है ? क शान्यिा होिी है ।
क खालीपन होिा है । अ र आकाश बादलगे
से आछा दि है—ग्रीष्ितिु नहीर है और आकाश साफ नहीर है —िो अपनी आरखें बरद कर लो और पष्ृ ठभामि पर िन को
काग्र करो; उस आरिररक आकाश पर यान करो क्जस पर दवचार आिे-जािे है । दवचारगे पर बहुि यान िि दो; उस आकाश पर यान दो क्ज पर दवचार की भा -दौड़ होिी है । उदाहरण के मल
हि लो
क किरे िें बैठे है । िैं इस किरे को दो ढर गे से दे ख कसिा हार। क कक िैं िुम्हें दे खा और उस स्तथान के प्रति उदासीन रहाँ क्जसिें िुि बैठे हो। उस किरे के प्रति ि स्तथ रहाँ क्जसिें िुि बैठे हो। िैं िुम्हें दे खिा हार, िेरा यान िुि पर है । उस खाली स्तथान पर नहीर क्जसिें िुि बैठे हो। अथवा िैं अपने ढ़क्ष् कोण बदल लेिा हार और किरे को, उसके खाली स्तथान को दे खिा हार और िुम्हारे प्रति उदासीन हो जािा हार। िुि यही हो, लेककन िेरा यान, िेरा फोकस किरे पर चला
या है । िब सारा पररप्रे्य बदल जािा है ।
यही आरिररक ज ि िें करो; आकाश पर यान दो। दवचार वहार चल रहे है , उसके प्रति उदासीन हो जाग। उन पर कोच यान िि दो वह है , चल रहे है , दे ख लो कक ठीक है , दवचार चल रहे है । सड़क पर लो लो और उदासीन रहो। यह िि दे खो कक कौन जा रहा है । इिना भर जानगे कक कुछ स्तथान के प्रति सज
होग क्जसिें
चल रहे है ; दे ख
ुजर रहा है । और उस
ति हो रही है । िब ग्रीष्ि तिु का आकाश भीिर ि ि हो ा।
ग्रीष्ि तिु की प्रिीक्षा की जरूरि नहीर है । अन्यथा हिारा िन ऐसा है कक वह कोच भी बहाना पकड़ ले सकिा
है । वह कहे ा कक अभी ग्रीष्ि तिु नहीर है । और य द ग्रीष्ि तिु भी हो िो वह कहे ा की आकाश तनियल नहीर है ।
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-49
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—74 (ओशो) ‘हे शक्त, सिस्त तेजोिय अंतररक्ष िेरे मसर िें ही सिाहहत है , ऐसा भाि करो।’
‘हे शक्ि, सिस्ति िेजोिय अरिररक्ष िेरे मसर िें ही सिा हि है , ऐसा भाव करो।’
अपनी आरखे बरद कर लो। जब इस प्रयो
को करो िो आरखें बरद कर लो और भाव करो कक सारा अरिररक्ष िेरे
मसर िें ही सिा हि है । आरर भ िें यह क ठन हो ा। यह दवतध उचिर दवतधयगे िें से अछा हो ा। िो
क काि करो। य द इस दवतध को प्रयो
क है । इसमल
इसे
िें लाना चाहिे हो िो
क- क कदि सिझना क- क कदि चलो,क्रि से
चलो। पहला चरण: सोिे सिय, जब िुि सोने जाग िो दवस्तिर पर ले करो कक िुम्हारे पाँव कहार है , अ र िुि छह कफ
जाग। और आरखे बरद कर लो और िहसास
लरबे हो या पाँच फी
हो, बस यह िहसास करो कक िुम्हारे पाँव
कहार है , उनकी सीिा या है । और कफर भाव करो कक िेरी लरबाच छह इरच बढ़ या हार। आरखें बरद कक
च है । िैं छह इरच और लरबा हो
बस यह भाव करो। कल्पना िें िहसास करो कक िेरी लरबाच छह इरच बढ़
च है ।
कफर दस ा रा चरण: अपने मसर को अनुभव करो कक वह कहार है । भीिर-भीिर अनुभव करो कक वह कहार है । और कफर भाव करो कक मसर भी छह इरच बड़ा हो जा
या है । अ र िुि इिना कर सके िो बाि बहुि आसान हो ी। कफर उसे और भी बड़ा ककया जा सकिा है । भाव करो कक िुि बारह फी हो हो। और िुि पारे
किरे िें फैल
हो। अब िुि अपनी कल्पना िें दीवारगे को छा रहे हो; िुिने पारे किरे को भर दया है । और
िब क्रिश: भाव करो कक िुि इिने फैल
ये हो कक पारा िकान िुम्हारे अरदर आ
या है । और
क बार िुिने
भाव करना जान मलया िो ये बहुि आसान है । अ र िुि छह इरच बढ़ सकिे हो िो ककिना भी बढ़ सकिे हो। अ र िुि भाव करा सके कक िैं पाँच फी लरबा हार िो कफर कुछ भी क ठन नहीर है । िब यह दवतध बहुि ही आसान है ।
पहले िीन दन लरबे होने का भाव करो और कफर िीन दन भाव करो कक िैं इिना बड़ा हो
या हार कक किरे िें भर या हार। यह केवल कल्पना का प्रमशक्षण है । कफर और िीन दन यह भाव करो कक िैंने फैलकर पारे िर को िेर मलया है । कफर िीन दन भाव करो कक िैं आकाश हो या हुर। िब यह दवतध बहुि ही आसान हो जा ी। ‘हे शक्ि, सिस्ति िेजोिय अरिररक्ष िेरे मसर िें ही सिा हि है , ऐसा भाव करो।’ िब िुि आरखें बरद करके अनुभव कर सकिे हो कक सारा आकाश, सारा अरिररक्ष िुम्हारे मसर िें सिा हि है । और
क्जस क्षण िुम्हें यह अनुभव हो ा, िन दवलीन होने ल े ा। यगेकक िन बहुि क्षुििा िें जीिा है । आकाश जैसे दवस्तिार िें िन नहीर क सकिा; वह खो जािा है । इस िहादवस्तिार िें िन असरभव है । िन क्षुि और सीमिि िें ही हो सकिा है । इिने दवरा
आकाश िें िन को जीने के मल
यह दवतध सुरदरिि दवतधयगे िें से
ज ह कही नहीर मिलिी है ।
क है । िन अचानक लबखर जािा हे । और आकाश प्रक
िहीने के भीिर यह अनुभव सरभव है और िुम्हारा सरपाणय जीवन रूपारिररि हो जा लेककन
क- क कदि चलना हो ा। यगेकक कभी-कभी इस दवतध से लो
हो जािा है । िीन
ा।
दवक्षक्षि भी हो जािे है । अपना
सरिुलन खो दे िे है । यह प्रयो
और इसका प्रभाव बहुि दवरा है । अ र अचानक यह दवरा आकाश िुि पर ा पड़े और िुम्हें बोध हो कक िुम्हारे मसर िें सिस्ति अरिररक्ष सिा हि हो या है और िुम्हारे मसर िें चाँद-िारे और पारा ब्रह्िारड िाि रहा है । िो िुम्हारा मसर चकराने ल े ा। इसमल
अनेक परर परागर िें इस दवतध के प्रयो
िें बहुि सावधातनयार बरिी जािी है । इस सदी िें
क सरि, राि िीथय ने इस दवतध का प्रयो
ककया था। और अनेक लो गे को, जो जानिे है , सरदेह है
कक इसी दवतध के कारण उन्हगेने आत्ििाि कर मलया। राि िीथय के मल मलया था कक सारा अरिररक्ष उसिें सिा हि है । उसके मल
आत्ििाि नहीर था। यगेकक उसने जान
आत्ििाि असरभव है —वह आत्ििाि नहीर कर सकिा।
वहार कोच आत्ििाि करने वाला ही नहीर बचा। लेककन दस ा रगे के मल , जो बाहर से दे ख रहे थे, यह आत्ििाि है । राि िीथय को ऐसा अनुभव होने ल ा कक सारा ब्रह्िारड उनके भीिर, उनके मसर के भीिर िाि रहा हे । उनके
मशष्यगे ने पहले िो सोचा कक वे काय की भाना िें बोल रहे है । लेककन कफर उन्हें ल ने ल ा कक वे पा ल हो ये है । यगेकक उन्हगेने दावा करना शुरू कर दया कक िैं ब्रह्िारड हार और सब कुछ िेरे भीिर है । और कफर दन वे क पहाड़ की चो ी से नदी िें काद ये।
क
राि िीथय ने नदी िें कादने के पहले
क सरुदर कदविा मलखी। क्जसिें उन्हगेने कहा है : ‘िैं ब्रह्िारड हो
िेरा शरीर भार हो
या है , इस शरीर को िैं अब अनावयक िानिा हार। इसमल िुझ ककसी सीिा की जरूरि नहीर है । िैं तनस्तसीि ब्रह्ि हो या हार।’ िनोतचककत्सक िो सोचिे है कक वे दवक्षक्षि हो आयािगे का पिा है , वे कहिे है कक िुि हो
। वह पा ल हो ये। बुध स हो
या हार,अब िैं इसे वापस करिा हार। अब
। लेककन क्जन्हें िनुष्य चेिना के
ये। लेककन सािान्य तचि के मल
हन
यह आत्ििाि है ।
िो ऐसी दवतध से खिरा हो सकिा है । इस कारण िें कहिा हार उनकी िरफ क्रिश: बढ़ो, धीरे -धीरे चलो। िुम्हें इसका पिा नहीर है , अि: कुछ भी सरभव है । िुम्हें अपनी सरभावनागर का ज्ञान नहीर है । िुम्हारी ककिनी िैयारी है , इसकी भी िुम्हें प्रत्यमभज्ञा नहीर है । गर कुछ भी सरभव है । अरि: सावधानीपव य इस प्रयो ा क
को करने की जरूरि
है ।
पहले छो ी-छो ी चीजगे पर अपनी कल्पना का प्रयो िुि दोनगे िरफ जा सकिे हो। िुि य द पाँच फी िीन फी
का हो
या हा….दो फी
का हो
करो। भाव करो कक शरीर बड़ा हो
या है । छो ा हो रहा है ।
छह इरच के हो िो भाव करो कक चार फी
या हार….. क फी
का हो
का हो
या हार…. क लबरद ा िात्र रह
या हुर, या हार।
यह िैयारी भर है , इस बाि की िैयारी है कक धीरे -धीरे िुि जो भी भाव करना चाहगे वह कर सकिे हो। िुम्हारा आरिररक तचि भार करने के मल
लबलकुल स्तविरत्र है । उसे कुछ भी भाव करने िें कोच बाधा नहीर है । यह िुम्हारा
भाव है , िुि चाहगे िो फैल कर बड़े हो सकिे हो और चाहो िो मसकुड़कर छो े हो सकिे हो। और िुम्हें वैसा बोध भी होने ल े ा।
और अ र िुि इस प्रयो
को ठीक से करो िो िुि बहुि आसानी से अपने शरीर से बाहर आ सकिे हो। अ र िुि कल्पना से शरीर को छो ा-बड़ा कर सकिे हो िो िुि शरीर से बहार आने िें सिथय हो। िुि मसफय कल्पना करो कक िैं अपने शरीर के बाहर खड़ा हार, और िुि बाहर खड़े हो जाग े। लेककन यह इिनी जल्दी नहीर हो ा। पहले छो े -छो े चरणगे िें प्रयो
करने हो ें । और जब िुम्हें ल े कक िुि
शारि रहिे हो, िबरािे नही, िब भाव करो कक िुम्हारे पारे किरे को भर दया है । और िुि वास्तिव िें दीवारगे का स्तपशय अनुभव करने ल ो े। और िब भाव करो कक पारा िकान िुम्हारे भीिर सिा भीिर अनुभव कर रहे हो। इस भारति
या है । और िुि उसे अपने
क- क कदि आ े बढ़ो। और िब, धीरे -धीरे आकाश को अपने मसर के
भीिर अनुभव करो। और जब िुि आकाश को अपने भीिर अनुभव करिे हो। जब िुि आकाश को अपने साथ िहसास करिे हो, उसके साथ
क हो जािे हो। िो िन
क दि दवदा हो जािा है । अब वहार उसका कोच काि
नहीर है ।
इस दवतध को ककसी
ुरु या मित्र के साथ रह कर करना अछा हो ा। अकेले िें प्रयो
करना खिरनाक भी हो
सकिा हे । िुम्हारे पास कोच होना चा ह । जो िुम्हारी दे खभाल कर सके। यह सिाह दवतध है । िें प्रयो प्रयो
करने की दवतध है । ककसी आश्रि िें जहार अनेक लो
ुरूकुल या आश्रि
मिलकर काि करिे हगे। वहार इस दवतध का
आसान है । कि खिरनाक और कि हातनकारक है । यगेकक जब भीिर का आकाश दवस्तफो ि होिा है । िो
सरभव है कक कच दनगे िक िुम्हें अपने शरीर की सुध ही नहीर रहे । िुि भाव िें इिने आदवष् िुम्हारा बाहर आना ही सरभव न हो। यगेकक उस दवस्तफो नहीर चले ा कक ककिना सिय यिीि हो िुि िो आकाश हो जािे हो।
हो जाग कक
के साथ सिय दवलीन हो जािा है । िो िुम्हें पिा ही
या है । शरीर का पिा ही नहीर चले ा। शरीर का बोध ही नहीर रहिा।
िो कोच चा ह
जो िुम्हारे शरीर की दे खभाल करे । बहुि ही प्रेिपण ा य दे खभाल की जरूरि हो ी। इसीमल ककसी रू ु या सिाह के साथ प्रयो करने से यह दवतध कि हातनकारक हो जािी हे । कि खिरनाक रह जािी हे । और
सिाह भी ऐसा होना चा ह , जो जानिा हो कक इस दवतध िें या-या सरभव है, या-या ि ि हो सकिा है और िब या ककया जा सकिा है । यगेकक िन की इस अवस्तथा िें अ र िुम्हें अचानक ज ा दया जा दवक्षक्षि भी हो सकिे हो। यगेकक िन को वापस आने के मल
िो िुि
सिय की जरूरि होिी है । अ र झ क से िुम्हें
शरीर िें वापस आना पड़े िो सरभव है कक िुम्हारा स्तनायु सरस्तथान उसे बदायि न कर सके। उसे कोच अभ्यास नहीर है । उसे प्रमशक्षक्षि करना हो ा। िो अकेले प्रयो
न करें ;सिाह िें या मित्रगे के साथ
कारि ज ह िें यह प्रयो
कर सकिे है । और धीरे -धीरे , क-
क कदि बढ़े , जल्दबाजी न करे । ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-49
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—75 (ओशो)
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‘जागते हुए सोते हुए, स्िप्न दे खते हुए, अपने को प्रकाश सिझो।’
‘जा िे हु
पहले जा रण से शुरू करो। यो
सोिे हु , स्तवन दे खिे हु , अपने को प्रकाश सिझो।’
गर िरत्र िनुष्य के िन के जीवन को िीन भा गे िें बाँ िा है —स्तिरण रहे , िन
के जीवन को। वे िन को िीन भो गे िें बार िे है : जाग्रि,सुनक्ु ि और स्तवन। ये िुम्हारी चेिना के नहीर, िुम्हारे िें के भा
है ।
चेिना चौथी है —िुरीय। पावय िैं इसे कोच नाि नहीर दया
या है । मसफय िुरीय या चिुथय कहा
या है । िीन के
नाि है । वे बादल है क्जनके नाि हो सकिे है । कोच जा िा हुआ बादल है , कोच सोया हुआ बादल है । और कोच स्तवन दे खिा हुआ बादल है । और क्जस आकाश िें वह िाििे है , वह अनाि है , उसे िात्र िुरीय कहार जािा है ।
पक्चि का िनोदवज्ञान हाल िें ही स्तवन के आयाि से पररतचि हुआ है । असल िें िायड के साथ स्तवन िहत्वपाणय हुआ। लेककन हरदग ु र के मल यह अत्यरि प्राचीन धारणा है । कक िि ु िब िक ककसी िनुष्य को सच िें
नहीर जान सकिे जब िक िुि यह नहीर जानिे कक वह अपने स्तवनगे िें या करिा है । यगेकक वह जा िे सिय िें जो भी करिा है वह अमभनय हो सकिा है । झाठ हो सकिा है । यगेकक वह जा िे सिय िें वह जो करिा है बहुि िजबारी िें करिा है । वह स्तविरत्र नहीर है ; सिाज है, तनयि है , नैतिक यवस्तथा है । वह तनरर िर अपनी कािनागर के साथ सरिनय करिा है , उनका दिन करिा है । उनिें हे र-फेर करिा है । सिाज के ढारचे के अनुरूप
उन्हें बदलिा है । और सिाज िुम्हें कभी िुम्हारी सिग्रिा िें स्तवीकार नहीर करिा है । वह चुनाव करिा है, का छार
करिा है ।
सरस्तकृति का यही अथय है ; सरस्तकृति चुनाव है । प्रत्येक सरस्तकृति
क सरस्तकार है । कुछ चीजें स्तवीकृि है और कुछ
चीजें अस्तवीकृि है । कहीर भी िुम्हारे सिग्र अक्स्तित्व को, िुम्हारी तनजिा को स्तवीकृति नहीर दी जािी है । कही भी नहीर। कहीर कुछ पहला स्तवीकृि है ; कहीर कुछ और पहला स्तवीकृि है । कहीर भी सिग्र िनुष्य नहीर है । िो जाग्रि अवस्तथा िें िुि झाठे, नकली कृलत्रि और दमिि होने के मल
िजबरा हो। िुि जा िे हु प्रािालणक नहीर हो सकिे, अमभनेिा भर हो सकिे हो। िुि सहज नहीर हो सकिे। िुि अरि: प्ररे णा से नहीर चलिे, बाहर से धका
जािे हो।
केवल अपने स्तवनगे िें िुि प्रािालणक हो सकिे हो। िुि अपने स्तवनगे िें जो चाहे कर सकिे हो। उससे ककसी को लेना-दे ना नहीर है । वहार िुि अकेले हो। िुम्हारे मसवाय कोच भी उसिें प्रवेश नहीर कर सकिा है । कोच भी
िुम्हारे स्तवनगे िें नहीर झारक सकिा है । और ककसी को इसकी तचरिा भी नहीर है । कक िुि अपने स्तवनगे िें या करिे हो। इससे ककसी को या लेना-दे ना। सपने िुम्हारे लबलकुल तनजी है । यगेकक वे लबलकुल तनजी है और उनका ककसी से कोच लेना दे ना नहीर है । इसमल
िुि स्तविरत्र हो सकिे हो।
िो जब िक िुम्हारे सपनगे को नहीर जाना जािा, िुम्हारे असली चेहरे से भी पररतचि नहीर हुआ जा सकिा हे । हरदग ु र को इसका बोध था। सपनगे िें प्रवेश करना अतनवायय है । लेककन सपने भी बादल ही है । यवायदप ये बादल तनजी है, कुछ स्तविरत्र है ; कफर भी बादल ही िो है । उनके भी पार जाना है ।
ये िीन अवस्तथा र है : जाग्रि सुनक्ु ि और स्तवन। िायड के साथ सपनगे पर काि शुरू हुआ। अब सुनुक्ि पर, हरी नीरद पर काि होने ल ा है । पक्चि िें अनेक प्रयो शालागर िें यह जानने के मल काि हो रहा है कक नीरद या है । यगेकक यह बहुि आचयय की बाि ल िी है कक हिें यह भी नहीर पिा कक नीरद या है ? कक नीरद िें या यथाथयि: ि ि होिा है। यह अभी वैज्ञातनक ढर से नहीर जाना या है । और अ र हि नीरद को नहीर जान सकिे िो िनुष्य को जानना बहुि क ठन हो ा। यगेकक िनुष्य अपने क्जरद ी का क तिहाच हस्तसा नीरद से ुजारिा है । जीवन का क तिहाच हस्तसा, अ र िुि साठ साल जीने वाले हो िो बीस साल िुि सौकर
ुजारिे हो। इिना बड़ा हस्तसा है यह। जब िुि सो
हो िो िुि या कर रहे हो?
जा रण की अवस्तथा िें िुि सिाज के साथ होिे हो। स्तवन के अवस्तथा िें िुि अपनी कािनागर के साथ होिे हो। और
हरी नीरद िें िुि प्रकृति के साथ होिे हो। प्रकृति के
हन
भय िें होिे हो। यो
है कक इन िीनगे के पार जाने पर ही िुि ब्रह्ि िें प्रवेश कर सकिे हो। इन िीनगे से जाना हो ा, इनका अतिक्रिण करना हो ा।
और िरत्र का कहना
ुजरना हो ा। इनके पार
क फकय है । अभी पक्चि का िनोदवज्ञान इन अवस्तथागर के अययन िें उत्सुक हो रहा है । पव ा य के साधक इन
अवस्तथागर िें उत्सुक थे। इनके अययन िें नहीर। वे इसिे उत्सुक थे कक कैसे इनका अतिक्रिण ककया जा । यह दवतध अतिक्रिण की दवतध है ।
‘जागते हुए, सोते हुए,स्िप्न दे खते हुए, अपने को प्रकाश सिझो।’ बहुि क ठन है । िुि जा रण से शुरू करना हो ा। िुि स्तवनगे िें कैसे स्तिरण रख सकिे हो? या िुि सचेिन
रूप से कोच स्तवन पैदा कर सकिे हो? या िुि स्तवन को यवस्तथा दे सकिे हो। उसिें हे र-फेर कर सकिे हो? आदिी ककिना नापुरस लबलकुल असहाय हो।
है । िुि अपने स्तवन भी नहीर तनमियि कर सकिे हो। वे भी अपने आप आिे है ; िुि
लेककन कुछ दवतधयार है क्जनके वावारा स्तवन तनमियि कक
जा सकिे है । और ये दवतधयार अतिक्रिण करने िें
बहुि सहयो ी है । यगेकक अ र िुि स्तवन तनमियि कर सकिे हो िो िुि उसका अतिक्रिण भी कर सकिे हो। लेककन आरर भ िो जाग्रि अवस्तथा से ही करना हो ा। जा िे सिय—चलिे सिय, खािे सिय,काि करिे सिय। अपने को प्रकाश रूप िें स्तिरण रखो। िानो िुम्हारा ्दय िें
्दय िें
क ज्योति जल रही है और िुम्हारा शरीर उस ज्योति का प्रभािरडल भर है । कल्पना करो कक िुम्हारे क लप
जल रही है । और िुम्हारा शरीर उस लप
िुम्हारा शरीर उस लप
के चारगे और प्रभािरडल के अतिररि कुछ नहीर है ;
के चारगे और फैला प्रकाश है । इस कल्पना को, इस भाव को अपने िन गर चेिना की
हराच िें उिरने दो। इसे आत्िसाि करो।
थोड़ा सिय ल े ा। लेककन य द िुि यह स्तिरण करिे रहे,कल्पना करिे रहे ,िो धीरे -धीरे िुि इसे पारे दन
स्तिरण रखने िें सिथय हो जाग े। जा िे हु , सड़क पर चलिे हु , िुि क चलिी कफरिी ज्योति हो जाग े। शुरू-शुरू िें ककसी दस ा रे को इसका बोध नहीर हो ा; लेककन अ र िुिने यह स्तिरण जारी रखा िो िीन िहीनगे िें दस ा रगे को भी इसका बोध होने ल े ा।
और जब दस ा रगे को आभास होने ल े िो िुि तनक्चरि हो सकिे हो। ककसी से कहना नहीर है । मसफय ज्योति का
भा करना है । और भाव करना है कक िुम्हारा शरीर उसके चारगे और फैला प्रभािरडल है । यह स्तथाल शरीर नहीर हे । दववायुि शरीर है । प्रकाश शरीर है । अ र िुि धैयय पावक य ल े रहे िो िीन िहीनगे िें , करीब-करीब िीन िहीनगे िें दस ा रगे को बोध होने ल े ा। कक िुम्हें कुछ ि ि हो रहा हे । वे िुम्हारे चारगे और करें ें । जब िुि तनक
जाग ,े उन्हें
क िरह की अल
क सा्ि प्रकाश िहसास
उष्िा िहसास हो ी। िुि य द उन्हें स्तपशय करो े िो
उन्हें उष्िा स्तपशय िहसास हो ी। उन्हें पिा चल जाये ा कक िुम्हें कुछ अद्भुि ि ि हो रहा है । पर ककसी से कहो िि और जब दस ा रगे को पिा चलने ल े िो िुि आवस्ति हो सकिे हो। और िब िुि दस ा रे चरण िें प्रवेश कर सकिे हो। उसके पहले नहीर।
दस ा रे चरण िें इस दवतध को स्तवनावस्तथा िें ले चलना है । अब िुि स्तवन ज ि िें इसका प्रयो
शुरू कर
सकिे हो। यह अब यथाथय है , अब यह कल्पना ही नहीर है । कल्पना के वावारा िुि ने सत्य को उिाड़ मलया है ।
यह सत्य है । सब कुछ प्रकाश से बना है । सब कुछ प्रकाश िय है । िुि प्रकाश हो; हालारकक िुम्हें इसका बोध नहीर है । यगेकक पदाथय का कण-कण प्रकाश है । वैज्ञातनक कहिे है कक पदाथय इलेरॉन से बना हे । वह वही बाि है । प्रकाश ही सब का स्तत्रोि है । िुि भी िनीभाि प्रकाश हो। कल्पना के जरर प्रक
िुि मसफय सत्य को उिाड़ रहे हो।
कर रहे हो। इस सत्य को आत्िसाि करो। और जब िुि उससे आपार हो जाग िो उसे दस ा रे चरण िें ,
स्तवन िें ले जा सकिे हो। उसके पहले नही।
िो नीरद िें उिरिे हु ज्योति को स्तिरण करिे रहो। दे खिे रहो, भाव करिे रहो कक िैं प्रकाश हार। और इसी स्तिरण के साथ नीरद िें गर उिर जाग, और नीरद िें भी यही स्तिरण जारी रहिा है । आरर भ िें कुछ ही स्तवन ऐसे हगे े क्जनिें िुम्हें भाव हो ा कक िुम्हारे भीिर ज्योति है । कक िुि प्रकाश हो। पर धीरे -धीरे स्तवन िें भी िुम्हें यह भाव बना रहने ल े ा।
और जब यह भाव स्तवन िें प्रवेश कर जा होने ल ें े। और
ा। सपने दवलीन होने ल ें े। सपने खोने ल ें े। सपने कि से कि
हरी नीरद की िात्रा बढ़ने ल े ी। और जब िुम्हारी स्तवनावस्तथा िें यह सत्य प्रक
हो कक
िुि प्रकाश हो, ज्योति हो प्रज्वमलि ज्योति हो, िब स्तवन दवदा हो जायें े। और जब स्तवन दवदा हो जािे है , िभी इस भाव को सुनक्ु ि िें नहीर। अब िुि वावार पर हो। जब सपने दवदा हो
हन नीरद िें ल जाया जा सकिा है । उसके पहले
है और िि ु अपने को ज्योति की भारति स्तिरण रखिे हो
िो िि ु नीरद के वावार पर हो। अब िुि इस भा के साथ नीरद िें प्रवेश कर सकिे हो। और य द िुि
क बार
नीरद िें इस भाव के साथ उिर
ये। कक िैं ज्योति हार। िो िुम्हें नीरद िें भी बोध बना रहे ा। और अब नीरद केवल िुम्हारे शरीर को ि ि हो ी। िुम्हें नहीर। कृष्ण
ीिा िें यही कहिे है कक यो ी कभी नहीर सोिे; जब दस ा रे सोिे है िब भी वे जा िे है । ऐसा नहीर है कक
उनके शरीर को नीरद नही आिी। उनके शरीर िो सोिे है । लेककन शरीर ही। शरीर को दवश्राि की जरूरि है ।
चेिना को दवश्राि की कोच जरूरि नहीर है । यगेकक शरीर यरत्र है । चेिना यरत्र नहीर है । शरीर को ईंधन चा ह । उसे दवश्राि चा ह । यही कारण है । कक शरीर जन्ि लेिा है, युवा होिा है, वध स ृ होिा है । और िर जािा है । चेिना न
कभी जन्ि लेिी है , न कभी बाढी होिी है ,और न कभी िरिी है । उसे न ईंधन की जरूरि है और न दवश्राि की। यह शुध स ऊजाय है; तनत्य-शावि ऊजाय।
अ र िुि इस ज्योति के, प्रकाश के लबरब को नीरद के भीिर ले जा सके िो िुि कफर कभी नहीर सोग े। मसफय
िुम्हारा शरीर दवश्राि करे ा। और जब शरीर सोया है िो िुि यह जानिे रहो े। और जैसे ही यह ि ि होिा है —िुि िुरीय हो, चिुथय हो। स्तवन ग सुनुक्ि िन के अरश है । वे अरश है और िुि िुरीय हो हो। िुरीय वह है जो उनिें से
ज ु रिा है, लेककन उनिें से कोच भी नहीर।
य हो। चिुथय हो
वस्तिुि: यह लबलकुल सरल है । अ र िुि जाग्रि हो गर कफर िुि स्तवन दे खने ल िे हो िो िुि दोनगे नहीर हो
सकिे। अ र िुि जाग्रति हो िो िुि स्तवन नहीर दे ख सकिे। और अ र िुि स्तवन हो िो िुि सुनुक्ि िें कैसे उिर सकिे हो, जहार कोच सपने नहीर होिे? िुि
क यात्रा हो और ये अवस्तथा र पड़ाव है —िभी िुि यहार से वहार जा सकिे हो। और कफर वापस आ सकिे
हो। सुबह िुि कफर जाग्रि अवस्तथा िें वापस आ जाग े। ये अवस्तथा र है ; और जब इन अवस्तथागर से
ुजरिा है
वह िुि हो। लेककन वह िुि चिुथय हो। और इसी चिुथय को आत्िा कहिे है । इसी चिुथय को भ विा कहिे है; इसी चिुथय को अिि ृ ित्व कहिे है , शावि जीवन कहिे है ।
जागते हुए,सोते हुए,स्िप्न दे खते हुए, अपने को प्रकाश सिझो। यह बहुि सुरदर दवतध है । लेककन जाग्रि अवस्तथा से आरर भ करो। और स्तिरण रहे कक जब दस ा रगे को इसका बोध
होने ल े िभी िुि सफल हु । उन्हें बोध हो ा। और िब िुि स्तवन िें और कफर तनिा िें प्रवेश कर सकिे हो। और अरि िें िुि उसके प्रति जा ो े जो िुि हो—िुरीय।
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-49
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—76 (ओशो) अंिकार—संबंिी पहली विधि
‘िषाथ की अंिेरी राि िें उस अंिकार िें प्रिेश करो,जो रूपों का रूप है ।’
‘िषाथ की अंिेरी राि िें उस अंिकार िें प्रिेश करो,जो रूपों का रूप है ।’ अिीि िें
क बहुि परु ाना ह् ु ि दवधा का सरप्रदाय था। क्जसके बारे िें शायद िि ु ने न सन ु ा हो। यह सरप्रदाय ‘इसेनी’ नाि से जाना जािा था। जीसस की मशक्षा-दीक्षा उसी सरप्रदाय िें हुच थी। जीसस उस सरप्रदाय के सदस्तय थे। इसेनी सरप्रदाय सरसार िें अकेला सरप्रदाय है क्जसने परिात्िा की धारणा परि अरधकार के रूप िें कक है ।
कुरान कहिी है कक परिात्िा प्रकाश है। वेद कहिे है कक परिात्िा प्रकाश है। बाइलबल भी कहिी है की परिात्िा प्रकाश है । पारी दतु नयार िें मसफय इसेनी की परर परा कहिी है कक परिात्िा िनिोर अरधकार है । परिात्िा सवयथा अरधकार है; क अनरि राि जैसा है ।
यह धारणा बहुि सुरदर है । आचययजनक है, पर बहुि सुरदर है । और बहुि अथयपाणय भी है । िुम्हें इसका अथय जरूर सिझना चा ह । और िब यह दवतध बहुि सहयो ी हो जा ी। यगेकक इस दवतध का प्रयो इसेनी साधक अरधकार िें प्रवेश करने के मल , उसके साथ
क होने के मल
करिे थे।
थोड़ा इस पर दवचार करो कक यगे परिात्िा को सब ज ह प्रकाश की भारति तचलत्रि ककया यगेकक परिात्िा प्रकाश है , बक्ल्क इसमल
या है । इसमल
नहीर
यगेकक िनुष्य अरधकार से भयभीि है । यह िानवीय भय है । हि
प्रकाश को पसरद करिे है और अरधकार से डरिे है । इसमल
हि अरधकार या कामलिा के रूप िें चवर की धारणा
नही बना सकिे। वह िानवीय धारणा है । हि चवर को प्रकाश की भारति सोचिे है । यगेकक हि अरधकार से भयभीि है । हिारे चवर हिारे भय की ही तनमियति है । हि ही उन्हें आकार और रूप दे िे है । और यगेकक आकार और रूप हि दे िे है । ये आकार और रूप हिारे सरबरध िें खबर दे िे है । परिात्िा के सरबरध िें नहीर। वे हिारी तनमियति है । हि अरधकार से भयभीि है ; इसमल लेककन ये दवतधयार
परिात्िा प्रकाश है ।
क मभन्न सरप्रदाय की दवतधयार है । इसेनी कहिे है कक चवर अरधकार है । और इस बाि िें
कुछ सार है । पहली िो बाि की अरधकार शावि है । प्रकाश आिा है जािा है । अरधकार सदा है। सुबह सायय उ िा है । और प्रकाश होिा है । अरधकार सदा है । डाबिा है और अरधकार छा जािा है । अरधकार के मल
कुछ उदय नहीर
होिा है; अरधकार सदा है । वह न कभी उ िा है और न डाबिा हे। प्रकाश आिा है जािा है । अरधकार बन रहिा है । और प्रकाश का सदा कोच स्तत्रोि है । अरधकार स्तत्रोि हीन है । और क्जसका कोच स्तत्रोि है वह शावि नहीर हो
सकिा है । असीि और शावि िो वही हो सकिा है । क्जसका कोच स्तत्रोि न हो, जो स्तत्रोि हीन हो। और प्रकाश िें थोड़ा िनाव है । यही कारण है कक िुि प्रकाश िें कभी सो नहीर सकिे। वह िनाव पैदा करिा है । अरधकार दवश्राि है —सिग्र दवश्राि।
लेककन हि अरधकार से भयभीि यगे है । कारण यह है कक प्रकाश हिें जीवन जैसा िालाि पड़िा है । वह जीवन है । और अरधकार ित्ृ यु जैसा प्रिीि होिा है ; वह ित्ृ यु है । जीवन प्रकाश से आिा हे । और जब िुि िरिे हो िो ऐसा ल िा है कक िुि शावि अरधकार िें त र रहे हो। यही कारण है हि ित्ृ यु को काले रर है । और काला रर
शोक का रर
बन
से तचलत्रि करिे
या है । चवर प्रकाश है गर ित्ृ यु अरधकार है ।
लेककन ये हिारे भय है —प्रक्षेदपि और आरोदपि भय। वस्तिुि: अरधकार असीि है ; प्रकाश सीमिि है । अरधकार
भय
जैसा है । क्जसिें सब चीजें जन्ि लेिी है और क्जसिें कफर दवलीन हो जािी है ।
यह इसेतनयगे का ढ़क्ष् कोण बहुि सुरदर है । और बहुि सहयो ी भी। यगेकक अ र िुि अरधकार को प्रेि कर सको िो िुि ित्ृ यु से तनभयय हो जाग े। अ र िुि अरधकार िें प्रवेश कर सको—और यह प्रवेश िभी हो सकिा है जब भय न हो—िो िुि सिग्र दवश्राि को उपलध हो जाग े। अ र िुि अरधकार के साथ
क हो सको िो िुि
खो जाग े। दवलीन हो जाग े। सही सिपयण है । अब कोच भय न रहा। यगेकक जब िुि अरधकार के साथ हो
िो िुि ित्ृ यु के साथ
क हो
। अर
िुम्हारी ित्ृ यु नहीर हो सकिी। िुि अब अिि ृ हो
क
। अरधकार
अिि ृ है । प्रकाश जन्ििा है और िर जािा है । अरधकार बस है । वह अिि ृ है । इस दवतधयगे के सरबरध िें पहली बाि यह स्तिरण रखना चा ह प्रति कोच भय न रहे । अन्यथा िुि यह प्रयो के रूप िें
प्रेिपाणय ढ़क्ष्
कक िुम्हारे िन िें अरधकार के प्रति, कामलिा के
नहीर कर सको ।े पहले भय को छोड़ना हो ा। िो आरर मभक चरण
क काि यह करो; अरधकार िें बैठ जाग, रोशनी बुझा दो और अरधकार को अनुभव करो। उसके प्रति रखो; अरधकार को िुम्हें छाने दो। उसे दे खो। अरधेरे किरे िें या अरधेरी राि िें अपनी आरखे खोलगे
और अरधकार को अनुभव करो। उसके साथ सरवाद करो, उससे िैत्री बारधगे। य द िुि भयभीि हो
िो ये दवतधयार िुम्हारे मल
ककसी काि की नहीर है । िब िुि इनका प्रयो
सको े। पहले अरधकार के साथ ितनष्ठ िैत्री की जरूरि है । कभी राि िें , जब सब लो
सोने के मल
नहीर कर चले
जाये,िुि अरधकार के साथ रहो। कुछ िि करो,बस उसके साथ रहो। और उसके साथ िात्र रहना ही िुम्हें उससे प्रति
हन भाव से भर दे ा। कारण यह है कक अरधकार बहुि दवश्राि दायी है । मसफय भय के कारण िुम्हें अरधकार के इस पहला से पररतचि नहीर हु । अ र राि िें िुि नीरद न आ िो िि ु िुररि बत्िी जला लो े और कुछ करने या पढ़ने ल ो े। लेककन िुि अरधकार के साथ नहीर रह सकिे। अरधकार के साथ रहो। और अ र िुि उसके साथ रह सके िो िुम्हारा उसके साथ
क नया सरपकय बने ा, िुम्हें उसिें
क नया वावार मिले ा।
िनुष्य ने अपने को अरधकार के प्रति लबलकुल बरद कर मलया है। उसके कारण थे ऐतिहामसक कारण थे। पुराने जिाने िें िनुष्य जर लगे और
फ ु ागर िें रहा करिा था। वहार रािें बहुि खिरनाक होिी थी। दन िें िो वह सुरक्षक्षि अनुभव करिा था। चारो और दे ख सकिा था। दन िें वह अपने को जर ली जानवरगे के हिने से बचा सकिा था। कि से कि उनसे भा
िो सकिा था। लेककन राि िें चारगे िरफ अँधेरा होिा था। और वह बहुि असहाय हो जािा था। इससे ही वह अरधकार से भयभीि हो या।
और यह भय उसके अचेिन िें
हरा सिा
या है । हि अब भी भयभीि है । िुम्हारा अचेिन िुम्हारा अपना
अचेिन नहीर है; वह सािा हक है , वरशानु ि है । वह िुम्हें दवरासि िें मिला है । वह भय वहार है और उस भय के कारण िुि अरधेरे के साथ सरवाद नहीर कर सकिे हो।
क और बाि इस भय के कारण ही िनुष्य ने अक्ग्न को पाजना शुरू कर दया। जब आ
दे विा बन
च। ऐसा नहीर कक आ
कारण वह दे विा बन
को पाजना शुरू ककया। ऐसा नहीर है कक आ
खोजी
च िो आ
दे विा है । पर अरधेरे के डर के
च। िो जब आ
सुरक्षक्षि और दववास िुल्य बन की मित्र और सुरक्षा बन
का आदवष्कार हुआ िो वह दे विा बन च। वह उस सिय सबसे च। पारसी लो आज भी अक्ग्न की पाजा करिे है । राि के कारण आ आदिी
च—दै वी सुरक्षा बन
च।
यह भय आज भी बना हुआ है । भले ही िुम्हें उसका बोध न हो; यगेकक उसके प्रति बोधपण ा य होने की क्स्तथतियाँ नहीर है । लेककन ककसी भी राि रोशनी बझ ु ा दो और अरधकार िें बैठो। और वह आ दि भय आज भी िुम्हें िेर ले ा। िुम्हें अपने िर िें ल े ा कक चारगे और जर ली जानवर खड़े है । कोच आवाज हो ी और िुम्हें जर ली जानवरगे का भय पकड़ ले ा। प्रयो
कर सकिे हो यह अद्भि ु है। िब िुि ऐसे प्र ाढ़ दवश्राि िें प्रवेश करो े
क्जसका अनुभव िुम्हें कभी न हुआ हो ा।
लेककन पहले अपने अचेिन भयो को उिाड़ो िथा अरधकार को जीना और प्रेि करना मसखगे। वह बहुि आनरददायी है । क बार िुि इसे जान लेिे हो और इसके सरपकय िें होिे हो िो िुि क बहुि हन जा तिक ि ना के सरपकय िें आ जािे हो।
जब भी िुम्हें अरधेरे िें होने का िौका मिले िो जा े रहने का याल रखो। यगेकक िुि दो काि कर सकिे हो:
या िो िुि रोशनी जला लो े या नीरद िें चल जाग े। ये दोनगे अरधकार से बचने की िरकीबें है । अ र िुि सो
जािे हो िो भय चला जािा है । यगेकक िुि चेिन नहीर रहे । या अ र िुि चेिन रहे िो िुि रोशनी जला लो े। न रोशनी जलाग और न नीरद िें उिरो। अरधकार के साथ रहो।
बहुि से भय पकड़े े उन्हें अनुभव करो। उनके प्रति सज होग। उन्हें अपने चेिन िें ले आग। वह अपने आप ही आ ँ े। और वह जब आ र िो उनके साक्षी भर रहो। वे भय दवदा हो जा र े। और शीध्र ही वह दन आ ा जब िुि अरधेरे िें पारे सिपयण के साथ रहो े। और िुम्हें कोच डर नहीर िेरे ा। िब िुि सहजिा से अरधकार के साथ रह सकिे हो। और िब
क सुरदर ि ना ि िी है । और िभी िुि इसेतनयगे के इस विय को सिझ
सको े। परिात्िा अरधकार है । परि अरधकार है ।
‘वनाय की अरधेरी राि िें उस अरधकार िें प्रवेश करो, जो रूपगे का रूप है ।’ मशव कहिे है कक यह दवतध वनाय की राि िें करने योग्य है । जब सब कुछ अरधकार िें डाबा हो। जब काले बादलगे िें िारे भी नहीर दखाच दे िे हो। अरधेरी राि िें जब चाँद न हो ‘उस अरधकार िें प्रवेश करो, जो रूपगे का रूप है ।’
उस अरधकार के साक्षी बनगे। और कफर उसिे दवलीन हो जाग। वह सब रूपगे का रूप है । िुि रूप हो; िुि उसिे दवलीन हो सकिे हो।
जब प्रकाश होिा है िो िुि पररभादनि हो जािे हो, सीमिि हो जािे हो। िैं िुम्हें दे ख सकिा हार। यगेकक प्रकाश है । िुम्हारे शरीर की सीिा र है । िुम्हारी सीिा र बन जािी है । िुम्हारी हदे तनमियि हो जािी है । िुम्हारी सीिा र
प्रकाश के कारण है । जब प्रकाश नहीर होिा िो सीिा र खो जािी है । अरधकार िें कहीर कोच सीिा नहीर है । हर चीज दस ा री चीज िें सिा जािी है । रूप दवसक्जयि हो जािा है । वह भी हिारे भा का
क कारण हो सकिा है । यगेकक िब िुम्हारी पररभाना नही रहिी है । और िुि नहीर जानिे
हो कक िुि कौन हो। िब िुम्हारा चेहरा नहीर दे खा जा सकिा, िुम्हारा शरीर नहीर दे खा जा सकिा है । सब कुछ रूप ही अक्स्तित्व िें िुल मिल जािा है । वह भय का
क कारण हो सकिा है । यगेकक िुम्हें िुम्हारे सीमिि
अक्स्तित्व का अहसास नहीर रहिा। अक्स्तित्व धुरधला-धुरधला हो जािा है । और भय िुम्हें पकड़ लेिा है । यगेकक अब िुि नहीर जानिे कक िुि कौन हो। िब अहर कार नहीर रह सकिा। सीिा के लबना अहर कार का होना क ठन है । आदिी भय अनुभव करिा है । वह प्रकाश चाहिा है ।
धारण और यान करिे हु प्रकाश की बजा र अरधकार िें दवलीन होना आसान है । प्रकाश िोड़िा है । पथ ृ किा पैदा करिा है । अरधकार सभी पथ ृ किा और फकय मि ा दे िा है । प्रकाश िें िुि सरुदर हो या कुरूप हो। अिीर हो या
रीब हो। प्रकाश िुम्हें यक्ित्व दे िा है । दवमशष् िा दे िा है । मशक्षक्षि हो, अमशक्षक्षि हो, पण् ु य आत्िा हो या
पापी हो। प्रकाश िुम्हें पथ ृ क यक्ि की िरह प्रक
करिा है । अरधकार िुम्हें अपने िें सिे
लेिा है । िुम्हें
स्तवीकार कर लेिा है । वह िुम्हें पथ ृ क यक्ि की िरह नहीर लेिा है । वह िुम्हें लबना ककसी पररभाना के स्तवीकार कर लेिा है । िुि उसिें डाब जािे हो। िि ु उसिें
क हो जािे हो।
अरधकार िें सदा ही ऐसा होिा है । लेककन भयभीि होने के कारण िुि नहीर सिझ पािे हो। अपने भय को अल करो और उससे
क हो जाग।
‘उस अरधकार िें प्रवेश करो, जो रूपगे का रूप है । उस अरधकार िें प्रवेश करो।’ िुि अरधकार िें कैसे प्रवेश कर सकिे हो। िी बाि है ।
ककसी रोशनी के स्तत्रोि को दे खना आसान है ; यगेकक वह
क अरधकार को दे खो। यह क ठन है । ककसी ज्योति को, क आजे्स की भारति सािने है और िुि उसे दे ख
सकिे हो। अरधकार कोच आजे्स नहीर है । वह सब ज ह है , चारगे और है । िुि उसे
क आजे्स की िरह
नहीर दे ख सकिे हो। शान्य िें दे खो, खालीपन िें झारको। वह सब और है । िुि बस दे खा। मशतथल होकर दवश्राि
पावय दे खिे रहो। वह िुम्हारी आरखगे िें प्रवेश करने ल े ा। और जब अरधकार िुम्हारी आरखगे िें प्रवेश करिा है िो िुि भी उसिें प्रवेश करिे हो।
अरधेरी राि िें इस दवतध का प्रयो िुि
क अल
करिे हु अपनी आरखें खुली रखो। आरखगे को बरद िि करो। बरद आरखगे से िरह के अरधकार िें होिे हो। वह िुम्हारा तनजी अरधकार है । िुम्हारे िन का अरधकार है । वह
यथाथय नहीर है । सच िो यह है कक बरद आरखगे का अरधकार नकारात्िक हे; वह दवधायक अरधकार नहीर है ।
यहार प्रकाश है ; और िुि अपनी आरखें बरद कर लेिे हो। िब िुम्हें जो अरधकार दखाच दे िा है वह मसफय प्रकाश का नकारात्िक रूप है । वह सचा अरधकार नहीर है । जैसे कक िुि लखड़की को दे खिे हो गर कफर आरखें बरद कर लेिे हो। िो िुम्हारी आरखगे िें लखड़की की नकारात्िक आकृति िैरिी रहिी है । हिारे सभी अनुभव प्रकाश के है । इसमल
हि जब आँख बरद करिे हे िो हिें प्रकाश का नकारात्िक अनुभव होिा है । क्जसे हि अरधकार कहिे है
वह असली अरधकार नहीर है । उससे काि नहीर चले ा।
अपनी आरखें खुली रखो और अरधकार िें खुली आरखगे से दे खिे रहे । िब िुम्हें मिले ा—दवधायक अरधकार। वह सचिुच है । उसिें
क अ र ही ककस्ति का अरधकार
क की ल ाग । अरधकार को िारिे रहो। िुम्हारे आरसा बहने
ल ें े। िुम्हारी आरखें दख ा ने ल े ी। इसकी तचरिा िि करना। प्रयो अरधकार िुम्हारी आरखगे िें प्रवेश करे ा, वह िुम्हें राही को िनी छाया मिल
को जारी रखो। क्जस क्षण अरधकार असली
क सुखद भाव से भर दे ा। िानगे कड़ी िाप िें चलने वाली
च हो। और दवधायक अरधकार का प्रवेश िुम्हारे भीिर से सभी नकारात्िक अरधकार
को ह ा दे ा। यह बहुि अद्भि ु अनुभव है ।
असली अरधकार से इसेतनयगे के और मशव के अरधकार से हिारा सरपकय खो
या है । उसके साथ हिारा कोच सरपकय
नहीर है । हि उससे इिने भयभीि है कक हि उससे लबलकुल ही दविुख हो
है । हिने उसकी िरफ अपनी पीठ
कर ली है ।
िो यह दवतध प्रयो
िें क ठन हो ी। लेककन अ र िुि इसे कर सको िो यह अद्भि ु है । िब िुम्हारा होना सवयथा
मभन्न हो ा; िब िुि और ही यक्ि हो े।
जब अरधकार िुििें प्रवेश करिा है िो िुि उसिें प्रवेश करिे हो। यह सदा पारस्तपररक है । दोनगे िरफ से है । िुि ककसी जा तिक ित्व िें नहीर प्रवेश कर सकिे हो। अ र वह ित्व िुम्हारे प्रवेश न करो। िुि जबरदस्तिी नहीर कर सकिे; उसिें जबरदस्तिी प्रवेश नहीर हो सकिा है । अ र िुि उपलध हो, खुले हो वलनरे बल हो, अ र िुि ककसी जा तिक ित्व को अपने भीिर प्रवेश दे िे हो, िो ही िुि उस ित्व िें प्रवेश कर सकिे हो। यह सदा पारस्तपररक है , साथ-साथ है । िुि जबरदस्तिी नहीर कर सकिे, िुि उसे मसफय ि ि होने दे सकिे हो। अभी िो शहरगे िें हिारे िरगे िें असली अरधकार का मिलना क ठन हो हिारा सब कुछ नकली हो अरधकार के अनुभव के मल
या है । और नकली प्रकाश के साथ
या है । हिारा अरधकार भी प्रददा नि है ; वह भी शुध स नहीर है । िो अछा है कक मसफय
हि कहीर दरा तनकल जा र। िो ककसी
ारव िें चले जाग; जहार अभी लबजली न पहुरची हो। या ककसी पहली पर चले जाग और वहार हतरिे भर रहो। िाकक शुध स अरधकार का अनुभव हो सके। िुि वहार से और ही आदिी होकर लौ ो े। पाणय अरधकार िें लबिा
उन साथ दनगे िें िुम्हारे सारे भय, सारे आ दि भय उभर कर ऊपर आ जा र े। भयानक
जीव-जरिुगर से िुम्हारा सािना हो ा। िुम्हें िुम्हारे अचेिन का साक्षाि हो ा। ऐसा ल े ा कक िुि उस पारे दवकास क्रि से
ुजर रहे हो। क्जससे पारी िनुष्यिा
ुजरी है । अचेिन की
हराच िें दबी बहुि चीजें ऊपर आ जा र ी। और वे यथाथय िालाि पड़े ी। िुि भयभीि हो सकिे हो। आिरककि हो सकिे हो। यगेकक वह चीजें यथाथय िालाि पड़े ी—और वे िुम्हारी िानमसक तनमियतियार भर है ।
हिारे पा ल खानगे िें अनेक पा ल बरद है जो ककसी और चीज से नहीर, इसी आ दि भय से पीगडि है । जो भय उनके अचेिन से उभरकर बाहर आ
या है । यह भय वहार िौजाद है , और दवक्षक्षि लो
उससे ही हिेशा भयभीि
है , आिरककि है । और हि अभी िक नहीर िालाि है कक इन आ दि भयो से िुि कैसे हुआ जा । य द इन पा लगे को अरधकार पर यान करने के मल राजी ककया जा सके िो उनका पा ल पन दवदा हो जा ा। मसफय जापन िें इस दशा िें इस कुछ प्रयास ककया है । वे अपने पा ल लो गे के साथ लबलकुल मभन्न यवहार करिे है । य द कोच यक्ि पा ल हो जािा है दवक्षक्षि हो जािा है , िो जापन िें वे उसे उसकी जरूरि के िुिालबक िीन या छह हतरिगे के मल
कारि िें रख दे िे है । वे उसे मसफय
कारि िें रहने के मल
उसकी अन्य जरूरिें पारी करिे रहिे है । वे उसे सिय पर भोजन दे िे है । लेकक
छोड़ दे िे है ।
क काि ककया जािा है , राि िें
रोशनी नहीर जलाच जािी। उसे अरधेरे िें अकेले रहना पड़िा है । तनक्चि ही उसे बहुि पीड़ा से ज ु रना होिा है । अनेक अवस्तथागर से ुजरना पड़िा है । उसकी सब दे ख की जािी है , लेककन उसे ककसी िरह का साथ-सर नहीर
दया जािा। उसे अपनी दवक्षक्षििा का साक्षात्कार सीधे और प्रत्यक्ष रूप से करना पड़िा है । और िीन से छह सिाह के अरदर उसका पा लपन दरा होने ल िा है । दरअसल कुछ नहीर ककया
या, उसे मसफय
कारि िें रखा
या है। बस इिना ही ककया
या। पक्चि के
िनोतचककत्सक चककि है । उन्हें यह बाि सिझ िें नहीर आिी कक यह कैसे हो सकिा है । वे खुद वनों िेहनि
करिे है । वे िनोदवलेनण करिे है , उपचार करिे है । वे सब कुछ करिे है । लेककन वे रो ी को कभी अकेला नहीर
छोड़िे। वे उसे कभी स्तवयर ही अपने आरिररक अचेिन का साक्षात्कार करने का िौका नहीर दे िे। यगेकक िुि उसे क्जिना ही सहारा दे िे हो, वह उिना ही बेसहारा हो जािा है । वह उिना ही िुि पर तनभयर हो जािा है । और
उिना ही िुि पर तनभयर हो जािा है । और असली सवाल आरिररक साक्षात्कार का है । स्तवयर को दे खने का है । सच िें कोच भी कुछ सहारा नहीर दे सकिा हे । िो जो जानिे है वे िुम्हें अपना साक्षात्कार करने को छोड़ दें े। िुम्हें अपने अचेिन को भर आँख दे खना हो ा।
और अरधकार पर ककया जानेवाला यान िुम्हारे सारे पा लपन को पी जाये ा। इस प्रयो िर िें भी इस प्रयो अरधकार िें
को कर सकिे हो। रोज राि को
को करो। िि ु अपने
क िर ा अरधकार के साथ रहो। कुछ िि करो; मसफय
क की ल ाग, उसे दे खो। िुम्हें दपिलने जैसा अनभ ु व हो ा। िुम्हें
हसास हो ा कक कोच चीज
िुम्हारे भीिर प्रवेश कर रही हे । और िुि ककसी चीज िें प्रवेश कर रहे हो। िीन िहीने िक रोज राि
क िर ा
अरधकार के साथ रहने पर िुम्हारे वैयक्िकिा के, पथ ु वावीप नहीर ृ किा के सब भाव दवदा हो जाये े। िब िि रहो ,े िुि सा र हो जाग े। िि ु अरधकार के साथ और यह अरधकार इिना दवरा
क हो जाग े।
है , कुछ भी उिना दवरा
और शावि नहीर है । और कुछ भी उिना तनक
नहीर है ।
और िुि इस अरधकार से क्जिने भयभीि हो त्रस्ति हो उिने भयभीि और त्रस्ति ककसी अन्य चीज से नहीर हो। और यह िुम्हारे पास ही है , सदा िुम्हारी प्रिीक्षा िें है ।
‘वनाय की अरधेरी राि िें उस अरधकार िें प्रवेश करो, जो रूपगे का रूप है ।’ उसे इस िरह दे खो कक वह िुििें प्रदवष् दस ा री बाि: ले
हो जा ।
जाग और भाव करो कक िुि अपनी िार के पास हो। अरधकार िार है —सब की िार। थोड़ा दवचार
करो कक जब कुछ भी नहीर था िो या था? िुि अरधकार के अतिररि गर ककसी चीज की कल्पना नहीर कर सकिे हो। और य द सब कुछ दवलीन हो जा िो ले
िो या रहे ा? अरधकार रहे ा। अरधकार िािा है , भय है ।
जाग और भाव करो कक िैं अपनी िार के
भय िें पडा हार। और वह सच िें वैसा अनुभव हो ा। वह उष्ण िालाि पड़े ा। और दे र अबेर िुि िहसास करो े कक अरधकार का भय िझ ु े सब िरफ से िेरे है । और िैं उसिे हार।
और िीसरी बाि: चलिे हु , काि करिे हु , भोजन करिे हु , कुछ भी करिे हु अपने साथ अरधकार का क हस्तसा साथ मल चलो। जो अरधकार िुििें प्रवेश कर या है उसे साथ मल चलो। जैसे हि ज्योति को साथ मल
चलने की बाि करिे थे। वैसे ही अरधकार को साथ मल
अपने साथ ज्योति को मल
चलो। और जैसे िैंने िुम्हें बिाया कक अ र िुि
चलो और भाव करो कक िैं प्रकाश हार िो िुम्हारा शरीर क अद्भुि प्रकाश दवकीररि करे ा और सरवेदनशील लो उसे अनुभव भी करें े। ठीक वही बाि अरधकार के इस प्रयो के साथ भी ि ि हो ी।
अ र िुि अपने साथ अरधकार को मल शीिल हो जा लो
चलो िो िुम्हारा सारा शरीर इिना दवश्रारि हो जा
ा, इिना शारि और
ा कक वह दस ा रगे को भी अनुभव होने ल े ा। और जैसे साथ िें प्रकाश साथ मल
िुम्हारे प्रति आकदनयि हगे े वैसे ही साथ िें अरधकार मल
चलने पर कुछ लो
िुिसे दवकदनयि हगे े, दरा
भा े े। वे िुिसे भयभीि और त्रस्ति हगे े। वे ऐसा उपक्स्तथति को झेल नहीर पा र े। यह उनके मल अ र िुि अपने साथ अरधकार मल
चलो े िो अरधकार से भयभीि लो
चलने पर कुछ असह्य हो ा।
िुिसे बचने की कोमशश करें ,े वे
िुम्हारे पास नहीर आ ँ े। और प्रत्येक आदिी अरधकार से डरा हुआ है । िब िुम्हें ल े ा कक मित्र िुझे छोड़ रहे है । जब िुि अपने िर आग े िो िुम्हारा पररवार परे शान हो ा। यगेकक िुि िो शीिलिा के पुरज की िरह प्रवेश करो े। और लो िा ी की िरह
अशारि गर क्षुध है । उनके मल
िुम्हारी आरखगे िे दे खना क ठन हो ा; िुम्हारी आरखें
हन खाच की िरह हगे ी। अ र कोच यक्ि िुम्हारी आरखगे िे झारके ा िो वहार उसे ऐसी अिल
खाच दखे ी कक उसका सर चकराने ल े ा।
दन भर अपने साथ अरधकार चलना िुम्हारे मल
बहुि उपयो ी हो ा। यगेकक जब िुि राि िें अरधकार पर यान करो े िो जो आरिररक अरधकार िुि अपने साथ दन भर मल चले रहे थे वह िुम्हें बाहरी अरधकार से जुड़ने िें सहयो
दे ा। आरिररक बाह्ि से मिलने के मल
उभर आये ा।
और मसफय इसके स्तिरण से—कक िैं अरधकार मल
चल रहा हार कक िैं अरधकार से भरा हार कक िेरे शरीर की कक कोमशका अरधकार से भरी है। िुि बहुि दवश्राि अनुभव करो े। इसे प्रयो करो; िुम्हारे भीिर सब कुछ शारि
और दवश्रािपाणय हो जा
ा। िब िुि दौड़ नहीर सको े। िुि बस चलो े र वह चलना भी धीिे-धीिे हो ा। िुि
धीरे -धीरे चलो — े जैसे की कोच अपने साथ कुछ मल
भयविी स्तत्री चलिी है । िुि धीरे -धीरे चलो े और बहुि सज िा से चलो े। िुि चल रहे हो।
और जब िुि अपने साथ ज्योति लेकर चलो े िो उल ी बाि ि ि हो ी। िब िुम्हारा चलना िेज हो जा बक्ल्क िुि दौड़ना चाहो े। िुम्हारी
तिदवतध बढ़ जाये ी। िुि ज्यादा सकक्रय हो े। अरधकार को साथ मल
िुि दवश्राि अनुभव करो े और दस ा रे लो
सिझें े कक िुि आलसी हो
क्जन दनगे िैं दववदववायालय िें था, दो वनों िक िैंने इस दवतध का प्रयो
ये हो।
ा। हु
ककया। और िैं इिना आलसी हो
या कक सुबह लबस्तिर से उठना भी िुक्कल था। िेरे प्रायापक इससे बहुि तचरतिि थे और उन्हें ल ािा था कक िेरे साथ कुछ ड़बड़ हो च है । वे सोचिे थे कक या िो िैं बीिार हार या लबलकुल उदासीन हो या हार। क प्रायापक िो, जो दवभा ीय अयक्ष थे और िुझे बहुि प्रेि करिे थे इिने तचरतिि थे कक परीक्षा के दनगे िें वे खाद िुझे सुबह होस्त ल से लेकर परीक्षा कक्ष पहुरचा आिे थे। िाकक िें वहार सिय पर पहुरचार। यह उनका रोज का काि था कक वे िुझे परीक्षा कक्ष िें दालखल करके चैन लेिे थे और िर चले जािे थे। िो इस प्रयो
िें लाग। अपने भीिर अरधकार मल
चलना, अरधकार ही हो जाना, जीवन के सुरदरिि अनुभवगे िे
क है । चलिे हु , बैठे हु , भोजन करिे हु , कुछ भी करिे हु स्तिरण रखो कक िैं अरधकार हार। कक िैं अरधकार से भरा हार। और कफर दे खो कक चीजें ककस िरह बदलिी है । िब िुि उत्िेक्जि नही हो सकिे, बहुि सकक्रय नही हो सकिे, िनावग्रस्ति नही हो सकिे। िब िुम्हारी नीरद इिनी
हरी हो जा
ी कक सपने दवदा हो जा र े। और
पारे दन िुि िदहोश जैसे रहो ।े साकफयगे ने, उनके
क सरप्रदाय ने इस दवतध का प्रयो
वे इसी अरधकार के नशे िें चार रहिे थे। वे जिीन िें
ककया है । और वे िस्ति साकफयगे के नाि से जाने जािे है । ड़े खोदकर उसिें पड़े-पड़े यान करिे थे। अरधकार पर
यान करिे है । और अरधकार के साथ
क हो जािे है । उनकी आरखें िुम्हें कहे ी कक वी पी
िुम्हें उनकी आरखगे िें ऐसे प्र ाढ़ दवश्राि का
हु है । नशे िें है । हसास हो ा जो िभी ि ि होिा है जब िुि हरे नशे िें होिे
हो। या जब िुम्हें नीरद आिी हे । िभी िुम्हारी आरखगे िें वैसी अमभयक्ि होिी है । वे िस्ति साकफयगे के नाि से प्रमसध स है । और उनका नशा अरधकार का नशा है । ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-51
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—77 (ओशो) अंिकार—संबंिी दस ू री विधि:
‘जब चंद्रिाहीन िषाथ की रात िें उपलब्ि न हो तो आंखें बंद करो और अपने सािने अंिकार को दे खो।
‘जब चंद्रिाहीन िषाथ की रात िें उपलब्ि न हो तो आंखें बंद करो और अपने सािने अंिकार को दे खो। कफर आंखे खोकर अंिकार को दे खो। इस प्रकार दोष सदा के मलए विलीन हो जाते है ।’
िैंने कहा कक अ र िुि आरखें बरद कर लो े िो जो अरधकार मिले ा वह झाठा अरधकार हो ा। िो या ककया जा अ र चरििाहीन राि, अरधेरी राि न हो। य द चाँद हो और चाँदनी का प्रकाश हो िो या ककया जा ? यह सात्र उसकी करु जी दे िा है ।
‘जब चरििाहीन वनाय की राि उपलध न हो िो आरखें बरद करो और अपने सािने अरधकार को दे खो।’ आरर भ िें यह अरधकार झाठा हो ा। लेककन िुि इसे सचा बना सकिे हो, और यह इसे सचा बनाने का उपाय है ।
‘कफर आरखें खोलकर अरधकार को दे खो।’
पहले अपनी आरखें बरद करो और अरधकार को दे खो। कफर आरखें खोलगे और क्जस अरधकार को िि ु ने भीिर दे खा उसे बाहर दे खो। अ र बाहर वह दवलीन हो जा झाठा था।
िो उसका अथय है कक जो अरधकार िुम्हारे भीिर दे खा था वह
यह कुछ ज्यादा क ठन है । पहली दवतध िें िुि असली अरधकार को भीिर मल
चलिे हो। दस ा री दवतध िें िुि
झाठे अरधकार का बाहर लािे हो। उसे बाहर लािे रहो। आरखें बरद करो अरधेरे को िहसास करो। आरखे खोलगे और खुली आरखगे से अरधेरे को बाहर फेंको। इस भारति िुि भीिर के झाठे अरधकार को बाहर फेंकिे हो। उसे बाहर फेंकिे रहो।
इसिें कि से कि िीन से छह सिाह का सिय ल े ा। और िब
क दन िुि अचानक भीिर के अरधकार को
बाहर लाने िें सफल हो जाग ।े और क्ज दन िुि भीिर के अरधकार को बाहर ला सको,िुिने सचे आरिररक अरधकार को पा मलया। सचे को ही बाहर लाया जा सकिा है । झाठे को नहीर लाया जा सकिा है । यह
क बहुि अद्भि ु अनुभव है । अ र िुि भीिरी अरधकार को बाहर ला सकिे हो िो िुि इसे प्रकामशि किरे िें भी बाहर ला सकिे हो। और अरधकार का ु कड़ा िुम्हारे सािने फैल जा ा। यह बहुि अद्भुि अनभ ु व है , यगेकक किरा प्रकामशि है । सय ा य के प्रकाश िें भी यह सरभव है ; अ र िुि आरिररक अरधकार को पा सके िो िुि उसे बाहर भी ला सकिे हो। िि ु उसे दे ख सकिे हो। क बार िुि जान
कक ऐसा हो सकिा है िो िुि भरी दोपहरी िें भी अरधेरी से अरधेरी से अरधेरी राि जैसा
अरधकार फैला सकिे हो। सायय िौजाद है और िुि अरधकार को फैल सकिे हो।
तिबि िें इसी िरह की अनेक दवतधयार है । वे चीजगे को भीिरी ज ि से बाहरी ज ि िें ला सकिे है । िुिने क प्रमसध स दवतध के सरबरध िें साना हो ा। वे इसे िाप-यो
रही है ।
कहिे है । सदय राि िें , बफय जैसी सदय राि िें बफय त र
क तिबिी लािा उस सदय राि िें जब चारगे और बफय त र रही है । और िापिान शान्य से नीचे हो, खुले
आकाश के नीचे बैठिा है और उसके शरीर से पसीना बहने ल िा है ।
शरीर शास्तत्र के हसाब से ये चित्कार है । पसीना कैसे तनकलने ल िा है । वह भीिरी िाप को बाहर ला रहा है । वैसे ही आरिररक शीिलिा को भी बाहर लाया जा सकिा है ।
िहावीर के जीवन िें उल्लेख है ; अब िक ककसी ने भी उसको सिझा नहीर है । जैन सोचिे है कक िहावीर कोच िप कर रहे थे। अब िक ककसी ने भी उसको सिझा नहीर है । कहार जािा है कक जब
िी होिी है , सायय िपिा है ।
िो िहावीर सदा ऐसी ज ह खड़े होिे थे जहार कोच छाया, कोच वक्ष ृ नहीर होिा, कुछ भी नहीर होिा।
िी के दनगे
िें वे जलिी धाप िें खड़े होिे। और सदी के दनगे िें वे कोच शीिल स्तथान, वक्ष ृ की छाया या नदी का ककनारा चुनिे थे। जहार िाप शान्य से नीचे हो। सदी के सिय िें वे यान करने के मल के दनगे िें
कर रहे थे।
िय स्तथान चुनिे थे। लो
सोचिे थे वे पा ल हो
िी
ये है । और उनके अनुयायी सोचिे है कक वे िप
ऐसी बाि नहीर है । असल िें िहावीर इसी िरह की ककसी आरिररक दवतध का प्रयो थी िो वे भीिरी शीिलिा को बाहर लाने का प्रयो
सदय स्तथान चुनिे थे और
कर रहे थे। जब
िी पड़िी
कर रहे थे। और यह दवपरीि क्स्तथति िें ही अनुभव ककया
जा सकिा है । जब सदी पड़िी थी िो भीिरी िाप को बाहर लाने का प्रयत्न करिे थे। और यह भी प्रतिकाल
पष्ृ ठभामि िें ही िहसास हो सकिा है । वे शरीर के शत्रु नही थे, वे शरीर के दवरोध िें नहीर थे, जैसा जैन सिझिे है ।
जैन सिझिे है कक िहावीर शरीर को मि ाने िें ल े थे। यगेकक अ र िुि अपने शरीर को मि ा सको िो िुि
अपनी कािनागर को भी मि ा सकिे हो। यह तनरी बकवास है । वे िप-वप नहीर कर रहे थे। वे बस आरिररक को बाहर ला रहे थे। और वे आरिररक वावारा सुरक्षक्षि थे। जैसे तिबिी लािा त रिी बफय के नीचे िाप पैदा करके पसीना बहा सकिे थे। वैसे ही िहावीर जलिी धाप िें खड़े रहिे और उन्हें पसीना नहीर आिा था। वे अपनी
आरिररक शीिलिा को बाहर ला रहे थे। वह आरिररक शीिलिा बाहर आकर उनके शरीर की रक्षा करिी थी। इस िरह िुि अपने आरिररक अरधकार को बाहर ला सकिे हो। और वह अनुभव बहुि शीिल होिा है । अ र िुि उसे ला सके िो िुि उससे सुरक्षक्षि रहो े। कोच उत्िेजना कोच िनोवे िुम्हें दवचमलि नहीर कर सके ा। िो प्रयो
करो। ये िीन बािें है ।
क अरधकार िें खुली आरखगे से दे खा और अरधकार को अपने भीिर प्रवेश करने
दो। दस ा री अरधकार को अपने चारगे और िार के
भय की िरह अनुभव करो, उसके साथ रहो गर उसिें अपने को
अतधकातधक भाल जाग। और िीसरी बाि जहार भी जाग अपने ्दय िें अरधकार का जाग।
अ र िुि यह कर सके िो अरधकार प्रकाश बन जा
क ु कड़ा साथ मल
ा। िुि अरधकार के वावारा बुध सत्व को उपलध हो जाग े।
‘जब चंद्रिाहीन िषाथ की रता उपल्बि न हो तो आंखें बंद करो, और अपने सािने अंिकार को दे खो, कफर आंखें खोल कर अंिकार को दे खो।’
यह दवतध है । पहले इसे भीिर अनुभव करो, हन अनुभव करो, िाकक िुि उसे बाहर दे ख सको। कफर आरखगे को अचानक खोल दो और बाहर अनुभव करो। इसिे थोड़ा सिय जरूर ल े ा। ‘इस प्रकार दोष सदा के मलए विलीन हो जाते है ।’
अ र िुि आरिररक अरधकार को बाहर ला सके िो दोन सदा के मल अरधकार अनुभव िें आ जा नहीर रह सके ा।
दवलीन हो जािे है । यगेकक आरिररक
िो िुि इिने शीिल, इिने शारि इिने अनुवादवग्न हो जाग े। कक दोन िुम्हारे साथ
स्तिरण रहे । दोन िभी िक रहिे है जब िक िुि उत्िेक्जि होने की हालि िें रहे हो। दोन अपने आप नहीर रहिे; वे िुम्हारी उत्िेजना की क्षििा िें ही रहिे है । कोच यक्ि िुम्हारा अपिान करिा है और िुम्हारे भीिर उस अपिान को पीने के मल
अरधकार नहीर है , िुि जल भाल जािे हो। क्रोतधि हो जािे हो। और िब कुछ भी सरभव
है । िुि हरसक हो सकिे हो। िुि हत्या कर सकिे हो। िुि वह सब कर सकिे हो जो मसफय पा ल आदिी कर सकिा है । कुछ भी सरभव है; अब िुि दवक्षक्षि हो। कफर कोच यक्ि िुम्हारी प्रशरसा करिा है और िुि दस ा रे
छोर पर दवक्षक्षि हो। िुम्हारे चारगे और क्स्तथतियाँ है और िुि उन्हें चुपचाप आत्िसाि करने िें सिथय नहीर हो। ककसी बुध स का अपिान करो। वे आत्िसाि कर लें े। वे उसे पचा जा र े। कौन अपिान को पचा जाि है ?
अरधकार का, शारति का आरिररक पुरज उसे पचा लेिा है । िुि कुछ भी दवनाि फेंको, वह आत्िसाि हो जािा है । उससे कोच प्रति कक्रया नही लौ िी हे । इसे प्रयो
करो। जब कोच िुम्हारा अपिान करे िो इिना ही स्तिरण रखो। कक िें अरधकार से भरा हार। और सहसा िुम्हें प्रिीि हो ा कक कोच प्रतिकक्रया नहीर उठिी है । िुि रास्तिे से ुजर रहे हो और क सुरदर स्तत्री या पुरून दखाच दे िा है और िुि उत्िेक्जि हो उठिे हो। याल करो कक िैं अरधकार से भरा हुआ हुर। और
कािवासना दवदा हो जा
ी। प्रयो
जरूरि नहीर है ।
करके दे खो। वह लबलकुल प्रायोत क दवतध है । इसिें दववास करने की
जब भी िुम्हें िालाि पड़े कक िैं वासना से, या कािना से, या कािवासना से भरा हुआ हार िो आरिररक अरधकार को स्तिरण करो। क क्षण के मल आरखें बरद करो। अरधकार की भावना करो और िुि दे खो ें कक वासना दवलीन हो
च है । कािना दवदा हो
च है । आरिररक अरधकार ने उसे पचा मलया। िुि
क्जसिें कोच भी चीज त र कर कफर वापस लौ इसमल
सकिी है । िुि अब
क असीि शान्य हो
हो।
क अिल खाच है ।
मशव कहिे है : ‘इस प्रकार दोष सदा के मलए विलीन हो जाते है ।’
ये दवतधयार आसान िालाि पड़िी है । वे आसान है । लेककन यगेकक वे सरल दखिी है , इसमल ब ैर िि छोड़ दो। वे िुम्हारे अहर कार को चन ु ौिी न भी दें िो भी प्रयो चीजगे को प्रयो
उन्हें प्रयो
कक
करो। यह हिेशा होिा है कक हि सरल
नहीर करिे है । हि सोचिे है कक वे इिनी सरल है कक सच नहीर हो सकिी है । और सत्य सदा
सरल होिा है । वह कभी ज ल नहीर होिा। उसे ज ल होने की जरूरि ही नहीर है । मसफय झाठ ज ल होिा है । वह सरल नहीर हो सकिा। अ र वह सरल हो िो उसका झाठ जा हर हो जाये ा। और यगेकक कोच चीज सरल िालाि पड़िी है । हि सोचिे है कक इससे कुछ नहीर हो ा। ऐसा नहीर है कक उससे कुछ नहीर होिा है । लेककन हिारा अहर कार िभी चुनौिी पािा है जब कोच चीज बहुि क ठन हो।
िुम्हारे ही कारण अनेक सरप्रदायगे ने अपनी दवतधयगे को ज ल बना दया है । उसकी कोच जरूरि नहीर है । लेककन
वे उसिे अनावयक ज लिा और अवरोध तनमियि करिे है । िाकक वे क ठन हो सकें। िाकक वे िुम्हें भा र। उनसे
िुम्हारे अहर कार को चुनौिी मिले। अ र कोच चीज बहुि क ठन हो, क्जसे बहुि थोड़े लो करने िें सिथय हगे, िो िुम्हें ल िा है कक यह करने जैसा है । यह िुम्हें मसफय इसमल करने जैसा ल िा है । यगे कक बहुि थोड़े लो ही इसे कर सकिे है । ये दवतधयार
क दि सरल है । मशव िुम्हारा दवचार नहीर करिे है ; वे दवतध का वणयन ठीक वैसा कर रहे है जैसा
वह है । वे उसे सरलिि रूप िें , कि से कि शदगे िें सात्र के रूप िें प्रक
चुनौिी िि खोजगे। ये दवतधयार िुम्हें अहर कार की यात्रा पर ले जाने के मल चुनौिी नहीर दे िी। लेककन य द िि ु इनका प्रयो
कर रहे है । िो अपने अहर कार के मल नहीर है । वे िुम्हारे अहर कार को कोच
करो े िो वे िम् ु हें रूपारिररि कर दें ी। और चन ु ौिी कोच अछी
बाि नहीर है । यगेकक चुनौिी से िुि ज्वर-ग्रस्ति हो जािे हो। दवक्षक्षि हो जािे हो। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-51
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—78 (ओशो) अंिकार संबंधि तीसरी विधि:
‘’जहां कहीं भी तुम्हारा अििान उतरे , उसी बबंद ु पर अनुभि।‘’
‘’जहां कहीं भी तुम्हारा अििान उतरे , उसी बबंद ु पर अनुभि।‘’
या? या अनुभव? इस दवतध िें सबसे पहले िुम्हें अवधान साधना हो ा, अवधान का दवकास करना हो ा। िुम्हें
इस भारति का अवधान पाणय रूख, रुझान दवकमसि करना हो ा; िो ही यह दवतध सरभव हो ी। और िब जहार भी िुम्हारा अवधान उिरे , िुि अनुभव कर सकिे हो—स्तवयर को अनुभव कर सकिे हो।
क फाल को दे खने भर से
िुि स्तवयर को अनुभव कर सकिे हो। िब फाल को दे खना मसफय फाल को ही दे खना नहीर है । वरन दे खने वाले को भी दे खना है । लेककन यह िभी सरभव है जब िुि अवधान का रहसय जान लो।
िुि भी फाल को दे खिे हो और िुि सोच सकिे हो कक िैं फाल को दे ख रहा हार। लेककन िुिने िो फाल के बारे िें दवचार करना शुरू कर दया और िुि फाल को चाक ये। िुि वहार नहीर हो जहार फाल है । िुि कहीर और चले , िुि दरा ह
। अवधान का अथय है कक जब िुि फाल को दे खिे हो िो िुि फाल को ही दे खिे हो। कोच दस ा रा
काि नहीर करिे हो—िानगे िि ठहर
या है । अब कोच दवचारणा नहीर हे । फाल का सीधा अनुभव भर है । िुि
यहार हो और फाल वहार है । और कोच दवचारण नहीर, दोनगे के बीच कोच दवचार नहीर। य द यह सरभव हो िो अचानक िुम्हारा अवधान फाल से लौ कर स्तवयर पर आ जा िुि फाल को दे खो ें और वह ढ़क्ष्
ा।
क विुल य बन जा
ा।
वापस लौ ें ी; फाल उसे वापस कर दे ा, िष् ा पर ही लौ ा दे ा। अ र दवचार
नहीर िो यह ि ि होिा हे । िब िुि फाल को ही नहीर दे खिे, िुि दे खने वाले को दे खिे हो। िब दे खने वाला और फाल दो आजे्स हो जािे है । िुि दोनगे के साक्षी हो जािे हो।
लेककन पहले अवधान को प्रमशक्षक्षि करना हो ा। िुििें अवधान लबलकुल नहीर है । िुम्हारा अवधान सिि बदलिा रहिा है —यहार से वहार से कही और। िुि
क क्षण के मल
भी अवधान पाणय नहीर रहिे हो। जब िैं यहार बोल रहा
हार िो िुि िेरी बाि भी कभी नहीर सुनिे। िुि क शद सुनिे हो और कफर िुम्हारा अवधान और कहीर चला जािा है । कफर िुम्हारा अवधान वापस िेरी बाि पर आिा है । कफर िुि क शद सुनिे हो, कफर िुम्हारा यान कही और चला जािा है ।
िुि थोड़े से शद सन ु िे हो और बाकी के खाली स्तथानगे पर अपने शद डाल लेिे हो। और सोचिे हो कक िुिने
िुझे सुना। और िुि जो भी यहार से ले जािे हो वह िुम्हारी अपनी रचना है , िुम्हारा अपना धरधा है । िि ु ने िेरे थोड़े से शद सन ु े और खाली ज ह पर अपने शद भर दये। और िुि क्जिनी खाली ज ह को भरिे हो, वह परा ी चीज को बदल दे िी है ।
िैं
क शद बोलिा हार और िि ु ने उसके सरबरध िें झ सोचना शुरू कर दया; िुि िौन नहीर रह सकिे। य द िुि सुनिे हु िौन रह सको िो िुि अवधान पाणय हो। अवधान का अथय है वह िौन सज िा। वह शारि बोध। क्जसिें दवचारगे का कोच यवधान न हो, बाधा न हो।
िो अवधान का दवकास करो। और उसे करके ही िुि उसका दवकास कर सकिे हो; इसके अतिररि कोच िा य नहीर है । अवधान दो, उसे बढ़ािे जाग,प्रयो
से वह दवकमसि हो ा। कुछ भी करिे हु । कहीर भी िुि अवधान को दवकमसि कर सकिे हो। िुि कार िें या रे ल ाडी िें यात्रा कर रहे हो। वही अवधान को बढ़ाने का प्रयो करो। सिय िि
रवाग। िुि आधा िर ा कार या रे ल ाड़ी िें रहने वाले हो; वही अवधान साधो। बस वहार होग। दवचार
िि करो। ककसी यक्ि को दे खो, रे ल ाड़ी को दे खो या बाहर दे खो,पर िष् ा रहो। दवचार िि करो। वहार होग और दे खो। िुम्हारी ढ़क्ष्
सीधी, प्रत्यक्ष और
हरी हो जा
ल े ी। और िुि िष् ा के प्रति बोध से भर जाग े।
ी। और िब सब िरफ से िुम्हारी ढ़क्ष्
िुम्हें अपना बोध नहीर है । िुि अपने प्रति सावचेि नहीर हो। यगेकक दवचारगे की को दे खिे हो िो पहले िम् ु हारे दवचार िम् ु हारी ढ़क्ष्
प्रत्येक ढ़क्ष् करने के मल प्रयो
क दीवार है । जब िुि
को बदल देिे है; वह उसे अपना रर
वापस आिी है । वह िुम्हें कभी वहार नहीर पािी; िुि कहीर और चले
वापस लौ ने
क फाल
दे दे िे है। और वह ढ़क्ष्
होिे हो। िुि वहार नहीर होिे हो।
वापस लौ िी है । प्रत्येक चीज प्रतिलबरलबि होिी है। प्रतिसरवे दि होिी है । लेककन िुि उसे ग्रहण वहार िौजाद नहीर होिे। िो उसके ग्रहण के मल
िौजाद रहो। पारे दन िुि अनेक चीजगे पर यह
कर सकिे हो। और धीरे -धीरे िुम्हारा अवधान दवकमसि हो ा। िब इस अवधान के साथ
क प्रयो
करो।
‘जहार कहीर भी िुिहारा अवधान उिरे , उसी लबरद ु पर, अनुभव।’ िब कहीर भी दे खा, लेककन दे खो। अब अवधान वहार है । अब िुि स्तवयर को अनुभव करो े। लेककन पहली शिय है अवधान पाणय होने की क्षििा को प्राि करना। और िुि इसका अभ्यास कही भी कर सकिे हो। उसके मल अतिररि सिय की जरूरि नहीर है । िुि जो भी कर रहो हो, भोजन कर रहे हो, या स्तनान कर रहे हो, बस अवधान पाणय होग।
लेककन सिस्तया या है ? सिस्तया यह है कक हि सब काि िन के वावारा करिे है । और हि तनरर िर भदवष्य के मल
योजना र बनािे है । िुि रे ल ाड़ी िें सफर कर रहे हो और िुम्हारा िन ककन्हीर दस ा री यात्रागर के आयोजन
िें यस्ति है । उनके काययक्रि बनाने िें सरलग्न है । इसे बरद करो। झेन सरि बोकोजा ने कहा है : ‘िैं यही
क यान जानिा हार। जब िें भोजन करिा हार िो भोजन करिा हार। जब िैं चलिा हार िो चलिा हार। और जब िुझे नीरद आिी है िो िैं सो जािा हार। जो भी होिा है ; होिा है , उसिें िैं कभी हस्तिक्षेप नहीर करिा।’ इिना ही करने को है कक हस्तिक्षेप िि करो। और जो भी ि ि होिा हो उसे ि ि होने दो। िुि मसफय वहार िौजाद रहो। यही चीज िुम्हें अवधान पाणय बना हाथ िें है ।
ी। और जब िुम्हें अवधान प्राि हो जा
‘जहार कहीर भी िुम्हारा अवधान उिरे , उसी लबरद ु पर, अनुभव।’
िो यह दवतध िुम्हारे
िुि अनभ ु व करने वाले को अनभ ु व करो े। िुि स्तवयर पर लौ ज ह से िुि प्रतिवतनि हो े। सारा अक्स्तित्व दपयण बन जा अक्स्तित्व िुम्हें प्रतिलबरलबि करे ा।
आग े। सब ज ह से िुि प्रतिलबरलबि हो े। सब ा। िुि सब ज ह प्रति लबरलबि हो े। पारा
और केवल िभी िुि स्तवयर को जान सकिे हो। उसके पहले नहीर । जब िक सिस्ति अक्स्तित्व ही िुम्हारे मल दपयण न बन जा । जब िक अक्स्तित्व का कण-कण िुम्हें प्रक
न करे ; जब िक प्रत्येक सरबरध िुम्हें दवस्तिि ृ न
करे …। िुि इिने असीि हो कक छो े दपयणगे से नहीर चले ा। िुि अरिस से इिने दवरा आक्स्तित्व दपयण न बने, िुम्हें झलक नहीर मिल पा
हो कक जब िक सारा
ी। जब सिस्ति अक्स्तित्व दपयण बन जािा है , केवल िभी िुि
प्रतिलबरलबि हो सकिे हो। िुम्हारे भीिर भ विा दवराजिान है ।
और अक्स्तित्व को दपयण बनाने की दवतध है : अवधान पैदा करो, ज्यादा सावचेि बनो, और जहार कहीर िुम्हारा अवधान उिरे —जहार भी, क्जस ककसी दवनय पर भी िुम्हारा यान जा —अचानक स्तवयर को अनभ ु व करो। यह सरभव है । लेककन अभी िो यह असरभव है । यगेकक िुिने बुतनयादी शिय नहीर पारी की है । िुि
क फाल को
दे ख सकिे हो। लेककन वह अवधान नहीर है । अभी िो िुि फाल के चारगे और बाहर-भीिर धाि रहे हो। िुिने भा िे-भा िे फाल को दे खा है; िुि उसके साथ क्षण भर के मल
नहीर रहे हो। रुको, अवधान पैदा करो, सावचेि
बनो, और सिस्ति जीवन यान पाणय हो जािा है ।
‘जहां कहीं भी तुम्हारा अििान उतरे , उसी बबंद ु पर, अनुभि।’ बस स्तवयर को स्तिरण करो।
इस दवतध के सहयो ी होने का
क
हरा कारण है । िुि
क
ें द को दीवार पर िारो; ें द वापस लौ
जब िुि ककसी फाल या ककसी चेहरे को दे खिे हो िो िुम्हारी कुछ उजाय उस दशा िें
आये ी।
ति कर रही है । िुम्हारा
दे खना ही उजाय है । िुम्हें पिा नहीर है कक जब िुि दे खिे हो िो िुि उजाय दे रह हो। थोड़ी ऊजाय फेंक रहे हो। िुम्हारी ऊजाय का, िुम्हारी जीवन ऊजाय का
क अरश फेंका जा रहा है । यही कारण है कक दन भर रास्तिे पर
दे खिे-दे खिे िुि थक जािे हो। चलिे हु लो , दवज्ञापन, भीड़ दक ु ानें—इन्हें दे खिे दे खिे। िुि थकान अनुभव करिे हो। और आराि करने के मल आरखें बरद कर लेना चाहिे हो। या हुआ? िुि इिने थके िाँदे यगे हो? िुि ऊजाय फेंकिे रहे हो।
बुध स और िहावीर दोनगे इस पर जोर दे िे थे। कक उनके मशष्य चलिे हु दरा िक न दे खें। जिीन पर ढ़क्ष् रखकर चलें। बुध स कहिे थे कक िुि मसफय चार फी आ े िक दे ख सकिे हो। इधर-उधर कहीर िि दे खो। मसफय अपनी राह को दे खो क्ज पर चल रहे हो। चार फी
आ े सरक जा
अकारण अपनी ऊजाय का अपयय नहीर करना है ।
ी। उससे ज्यादा दरा िि दे खो। यगेकक िुम्हें
जब िुि दे खिे हो िो िुि थोड़ी ऊजाय बाहर फेंकिे हो। रुको, िौन प्रिीक्षा करो,उस ऊजाय को वापस आने दो। और िुि चककि हो जाग े। अ र िुि ऊजाय को वापस आने दे िे हो िो िुि कभी नहीर थकगे े। इसे प्रयो सुबह इस दवतध का प्रयो करो। और लो
करो। कल
करो। शारि हो जाग। ककसी चीज को दे खो। शारति रहो। उसके बारे िें दवचार िि
क क्षण धैयय से प्रिीक्षा करो। ऊजाय वापस आ
तनरर िर िुझसे पाछिे है; िैं सिि पढ़िा रहिा हार। इसमल आप क्जिना पढ़िे है , आपको कि का चिा ल जाना चा ह
ी। असल िें िुि और भी प्राणवान हो जाग े। वे पाछिे है ; आपकी आरखें अभी भी ठीक कैसे है?
था। िुि पढ़ सकिे हो लेककन अ र िुि
तनदवयचार िौन होकर पढ़ो िो ऊजाय वापस आ जािी है । वह यथय नहीर होिी है । और िुि कभी थकान अनुभव नहीर करो े। िैं क्जरद ी भर रोज बारह िर े पढ़िा रहा हार। कभी-कभी अठारह िर े भी; लेककन िैंने थकाव िहसास नही की। िैंने अपनी आरखगे िें कभी कोच अड़चन, कभी कोच थकान नहीर अनुभव की। तनदवयचार अवस्तथा िें उजाय लौ
कभी
आिी है । कोच बाधा नहीर पड़िी है । और अ र िुि वहार िौजाद हो िो िुि उसे
पुन: आत्िसाि कर लेिे हो। और वह पान: आत्िसाि करना िुम्हें पुनरुज्जीदवि कर दे िा है । सच िो यह है कक िुम्हारी आरखें थकनें के बजाय ज्यादा मशतथल, ज्यादा प्राणवान, ज्यादा ऊजायवान हो जािी है । ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-51
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—79 (ओशो) अक्न संबंधि पहली विधि:
‘भाि करो कक एक आग तुम्हारे पााँि के अंगूठे से शुरू होकर पूरे शरीर िें ऊपर उठ रही है ।
‘भाि करो कक एक आग तुम्हारे पााँि के अंगूठे से शुरू होकर परू े शरीर िें ऊपर उठ रही है । और अंतत: शरीर जलकर राख हो जाता है । लेककन तुि नहीं।’
यह बहुि सरल दवतध है और बहुि अद्भुि है, प्रयो करनी होिी है ।
करने िें भी सरल है । लेककन पहले कुछ बुतनयादी जरूरिें पारी
बुध स को यह दवतध बहुि प्रीतिकर थी और वे अपने मशष्यगे को इस दवतध िें दीक्षक्षि करिे थे। जब भी कोच यक्ि बुध स से दीक्षक्षि होिा था िो वे उससे पहली बाि यही कहिे थे; कक िरि चले जाग और वहार ककसी जलिी तचिा को दे खो, जलिे हु िो साधक
ारव के िरि
िरि
िें बैठकर दे खना था।
िें चला जािा था और िीन िहीने िक दन-राि वही रहिा था। और जब भी कोच
िुदाय आिा, वह बैठकर उस पर यान करिा था। वह पहले शव को दे खिा; कफर आ
जलाच जािी और शरीर
जलने ल िा और वह दे खिा रहिा। िीन िहीने िक वह इसके मसवाय कुछ और नहीर करिा। वह िुदों को जलिे दे खिा रहिा।
बुध स कहिे थे, ‘उसके सरबरध िें दवचार िि करना, उसे बस दे खना।’
और यह क ठन है कक साधक के िन िें यह दवचार न उठे कक दे र -अबेर िेरा शरीर भी जला दया जाये ा। िीन िहीने लरबा सिय है । और साधक को राि दन तनरर िर जब भी कोच तचिा जलिी, उस पर यान करना था। दे र अबेर उसे दखाच दे ने ल िा कक तचिा पर िेरा शरीर ही जल रहा है । तचिा पर िैं ही जलाया जा रहा हार। लो
अपने स -े सरबरतधयगे को जलाने ले जािे है । लेककन वे कभी उस ि ना को दे खिे नहीर। वे दस ा री चीजगे के
सरबरध िें या ित्ृ यु के सरबरध िें ही बािचीि करने ल िे है । वे दववाद करिे है । दववेचन करिे है , वे बहुि कुछ करिे है , पशप करिे है , लेककन वे कभी दाह-सरस्तकार कक्रया का तनरीक्षण नहीर करिे है । इसे िो यान बना लेना चा ह । वहार बािचीि की इजाजि नहीर होनी चा ह । अपने ककसी दप्रय को जलिे हु दे खना दल य अनुभव है । ु भ वहार िुम्हें यह भाव अवय उठे ा कक िैं जल रहा हार। अ र िुि अपनी िार को जलिे हु दे ख रहे हो, या दपिा को, या पत्नी को, या पति को, िो यह असरभव है कक िुि अपने को भी उस तचिा िें जलिे हु न दे खो। यह अनुभव इस दवतध के मल
सहयो ी हो ा—यह पहली बाि।
दस ा री बाि कक अ र िुि ित्ृ यु से बहुि भयभीि हो िो िुि इस दवतध का प्रयो नहीर कर सको े। यगेकक यह भय ही अवरोध बन जा ा। िुि उसिें प्रवेश न कर सको े। या िि ु ऊपर-ऊपर कल्पना करिे रहो े। ि र िुि अपने
हन प्राणगे से उसिें प्रवेश नहीर करो े।
िब िुम्हें कुछ भी नहीर हो ा। िो यह दस ा री बाि स्तिरण रहे कक िुि चाहे भयभीि हो या नहीर हो, ित्ृ यु तनक्चि
है । केवल ित्ृ यु तनक्चि है । उससे कोच फकय नहीर पड़िा। कक िुि भयभीि हो या नहीर; यह अप्रासरत क है । जीवन िें ित्ृ यु के अतिररि कुछ भी तनक्चि नहीर है । सब कुछ अतनक्चि है । केवल ित्ृ यु तनक्चि है । सब कुछ सारयोत क है —हो सकिा है या नहीर भी हो सकिा है । लेककन ित्ृ यु सारयोत क नहीर है ।
लेककन िनुष्य के िन को दे खा। हि सदा ित्ृ यु की चचाय इस भारति करिे है िानगे वह दध ु य ना हो। जब भी ककसी की ित्ृ यु होिी है , हि कहिे है कक वह असिय िर
या। जब भी कोच िरिा है िो हि इस िरह की बािें
करने ल िे है । िानगे यह कोच अनहोनी ि ना है । मसफय ित्ृ यु अनहोनी नहीर है । मसफय ित्ृ यु सुतनक्चि है । बाकी सब कुछ सारयोत क है । ित्ृ यु लबलकुल तनक्चि है । िुम्हें िरना है ।
और जब िैं कहिा हार कक िुम्हें िरना है िो ऐसा ल िा है कक यह िरना कहीर भदवष्य िें है, बहुि दरा है । ऐसी बाि नहीर है । िुि िर ही चक ु े हो। क्जस क्षण िुि पैदा हु , िुि िर चुके। जन्ि के साथ ही ित्ृ यु तनक्चि है । उसका
क छोर, जन्ि का छोर ि ि हो चुका है । अब दस ा रे छोर को, ित्ृ यु के छोर को ि ि होना है । इसमल
िुि िर चुके हो, आधे िर चुके हो। यगेकक जन्ि लेने के साथ ही िुि ित्ृ यु के िेरे िें आ
, दालखल हो
।
अब कुछ भी उसे नहीर बदल सकिा है । अब उसे बदलने का उपाय नहीर है । और दस ा री बाि कक ित्ृ यु अरि िें नहीर ि े ी, वह ि
ही रही है । ित्ृ यु
क प्रकक्रया है । जैसे जीवन प्रकक्रया है ,
वैसे ही ित्ृ यु भी प्रकक्रया है । वावैि हि तनमियि करिे है । लेककन जीवन गर ित्ृ यु ठीक िुम्हारे दो पाँवगे की िरह है । जीवन और ित्ृ यु दोनगे
क प्रकक्रया है । िुि प्रतिक्षण िर रहे हो।
िुझे यह बाि इस िरह से कहने दो: जब िुि वास भीिर ले जािे हो िो वह जीवन है ; और जब िुि वास
बाहर तनकालिे हो िो वह ित्ृ यु है । बचा जन्ि लेने पर पहला काि करिा है कक वह वास भीिर ले जािा है । बचा पहले वास छोड़ नही सकिा है । उसका पहला काि वास लेना है । वह वास छोड़ नही सकिा। यगेकक
उसके सीने िें हवा नहीर है । और िरिा हुआ बाढ़ा आदिी अरतिि कृत्य करिा है कक वह वास छोड़िा है । िरिे
हु िुि वास ले नहीर सकिे। या कक ले सकिे हो। जब िुि िर रहे हो िो िुि वास छोड़ना ही हो ा। पहला काि वास लेना है और अरतिि काि वास छोड़ना है । वास लेना जीवन और वास छोड़ना ित्ृ यु है । प्रत्येक क्षण िुि यही काि कर रहे हो।
िुिने शायद यह तनरीक्षण न ककया हो, लेककन यह तनरीक्षण करने जैसा है । जब भी िुि वास छोड़िे हो, िुि शारि अनुभव करिे हो। लरबी वास बाहर फेंको और िुम्हें अपने भीिर
क शारति का अनुभव हो ा। और जब भी
िुि वास भीिर लेिे हो िुि बेचैन हो जािे हो। िनावग्रस्ति हो जािे हो। भीिर जािी वास की िीर हिा ही िनाव पैदा करिी है ।
और सािान्यि: हि सदा वास लने पर जोर दे िे है । अ र िैं कहार कक हरी वास लो िो िुि सदा वास लने से शुरू करो े। सच िो यह है कक हि वास छोड़ने से डरिे है । यही कारण है कक हिारी वास इिनी उथली हो च है । िुि कभी वास छोड़िे नहीर, िुि वास लेिे हो। मसफय िुम्हारा शरीर वास छोड़ने का काि करिा है ।
यगेकक शरीर मसफय वास लेककन ही जीदवि नही रह सकिा। क प्रयो
करो। पारे दन जब भी िुम्हें स्तिरण रहे । वास छोड़ने पर यान दो। वास बाहर फेंको। और िुि
वास भीिर िि लो। वास लेने का काि शरीर पर छोड़ दो; िुि केवल वास छोड़िे जाग। लरबी और वास और िब िुम्हें
क
हरी
हन शारति का अनुभव हो ा; यगेकक ित्ृ यु िौन है , ित्ृ यु शारति है ।
और अ र िुि वास छोड़ने पर यान दे सके, ज्यादा से ज्यादा यान दे सके, िो िुि अहर कार र हि अनुभव
करो े। वास लेने से िुि ज्यादा अहर कारी अनुभव करो े। और वास छोड़ने से ज्यादा अहर कार र हि। िो वास छोड़ने पर ज्यादा यान दो। पारे दन जब भी याद आ , हरी वास बाहर फेंको लो िि, वास लेने का काि शरीर को करने दो; िुि कुछ िि करो।
वास छोड़ने पर यह जोर िुम्हें इस दवतध के प्रयो
िें बहुि सहयो ी हो ा; यगेकक िुि िरने के मल िैयार हो े। िरने की िैयारी जरूरी हे । अन्यथा यह दवतध बहुि काि की नहीर हो ी। और िुि ित्ृ यु के मल िैयार िभी हो सकिे हो जब िुिने ककसी ने ककसी िरह से िुम्हें उसका सवाद मिल जाये ा।
क बार उसका स्तवाद मलया हो।
हरी वास छोड़ो और
हि ित्ृ यु से भयभीि है , इसका कारण ित्ृ यु नहीर है । ित्ृ यु को िो हि जानिे ही नहीर है । िुि उस चीज से कैसे भयभीि हो सकिे हो क्जसका िुम्हें कभी सािना ही नहीर हुआ। िुि उस चीज से कैसे भयभीि हो सकिे हो क्जसे िुि जानिे ही नहीर। ककसी चीज से भयभीि होने के मल उसे जानना जरूरी है । िो असल िें िुि ित्ृ यु से भयभीि नहीर हो, यह भय कुछ और है । िुि वस्तिुि: कभी जी
ही नहीर; और इससे ही
ित्ृ यु का भय पैदा होिा है । ित्ृ यु का भय पकड़िा है । यगेकक िुि जी नहीर रहे हो। और िुम्हारा भय यह है : ‘अब िक िैं जीया ही नहीर,और ित्ृ यु आ
च िो या हो ा? िैं िो अिृ ि अन जीया ही िर जाऊँ ा।’ ित्ृ यु का
भय उन्हें ही पकड़िा है जो वस्तिुि: जीदवि नहीर है ।
य द िुिने जीवन को जीया है, जीवन को जाना है , िो िुि ित्ृ यु का स्तवा ि करो े। िब कोच भय नहीर है । िुिने जीवन को जान मलया; अब िुि ित्ृ यु को भी जानना चाहो े। लेककन हि जीवन से ही इिने डरे हु उसे नहीर जान पा है ; हि उसिें हरे नहीर उिरे है । वही चीज ित्ृ यु का भय पैदा करिी है ।
है कक हि
अ र िुि इस दवतध िें प्रवेश करना चाहिे हो िो िुम्हें ित्ृ यु के प्रति इस सिन भय के प्रति जा ना हो ा,
बोधपाणय होना हो ा। और इस सिन भय को दवसक्जयि करना हो ा। िो ही िुि इस दवतध िें प्रवेश कर सकिे हो।
इससे िदद मिले ी; वास छोड़ने पर ज्यादा यान दो। सारा यान वास छोड़ने पर दो, वास लेना भाल जाग। और डरो िि कक िर जाग े। िुि नहीर िरो े। वास लेने का काि खुद शरीर कर ले ा। शरीर का अपना दववेक है । अ र िुि
हरी वास बाहर फेंको े िो शरीर खुद
जरूरि नहीर है । और िुम्हारी सिस्ति चेिना पर और
क
हरी वास भीिर ले ा। िुम्हें हस्तिक्षेप करने की
हरी शारति फैल जा
ी। सारा दन दवश्राि अनुभव करो े।
क आरिररक िौन ि ि हो ा।
अ र िुि
परिह मिन
क और प्रयो के मल
करो िो दवश्रारति और िौन का यह भाव और भी प्र ाढ़ हो सकिा है । दन िें मसफय
हरी वास बाहर छोड़ो। कुसी पर या जिीन पर बैठ जाग कफर
हरी वास छोड़ो और
शरीर को वास लेने दो। और जब वास भीिर जाये, आरखें खोल लो और िुि बाहर चले जाग। ठीक उल ा करो: जब वास बाहर आये िुि भीिर चले जाग। और जब वास भीिर आये िो िुि बाहर चले आग।
जब िुि वास छोड़िे हो िो भीिर खाली स्तथान, अवकाश तनमियि होिा है । यगेकक वास जीवन है । जब िुि हरी वास छोड़िे हो िो िुि खाली हो जािे हो। जीवन बाहर तनकल
के मल
िर
या।
क ढर
से िुि िन
। क्षण भर
। ित्ृ यु के उस िौन िें अपने भीिर प्रवेश करो। वास बाहर जा रही है । आरखें बरद करो और
भीिर सरक जाग। वहार अवकाश है ; िुि आसानी से सरक सकिे हो। स्तिरण रहे , जब िुि वास ले रहे हो िो
िब भीिर जाना बहुि क ठन है। वहार जाने के मल ज ह कहार। िुि वास छोड़िे हु ही िुि भीिर जा सकिे हो। और जब वास भीिर हो िो िुि बाहर चले जाग। आरखें खोलगे और बहार तनकल जाग। इन दोनगे के बीच क लयववातयिा तनमियि करो लो।
परिह मिन
के इस प्रयो
से िुि
हन दवश्राि िें उिर जाग े। और िब िुि इस दवतध के प्रयो
अपने को िैयार पाग े। इस दवतध िें उिरने के मल
पहले परिह मिन
के मल
यह प्रयो
के मल
जरूर करे । िाकक
िुि िैयार हो सको—िैयार ही नहीर उसके प्रति स्तवा ि पण ा य हो सको। खल ु े हो सको। ित्ृ यु का भय खो जाये।
कयगेकक अब ित्ृ यु प्र ाढ़ दवश्राि िालाि पड़े ी। अब ित्ृ यु जीवन के दवरूध स नहीर,वरन जीवन का स्तत्रोि जीवन की ऊजाय िालाि पड़े ा। जीवन िो झील की सिह पर लहरगे की भारति है और ित्ृ यु स्तवयर झील है । और जब लहरें
नहीर है िब भी झील है । और झील िो लहरगे के लबना हो सकिी है , लेककन लहरें झील के लबना नहीर हो सकिी। जीवन ित्ृ यु के लबना नहीर हो सकिा। लेककन ित्ृ यु जीवन के लबना हो सकिी है । यगेकक ित्ृ यु स्तत्रोि है । और िब िुि इस दवतध का प्रयो ‘प्रयो बस ले
करो कक
क आ
कर सकिे हो।
िुम्हारे पाँव के अर ाठे से शुरू होकर पारे शरीर िें ऊपर उठ रही है ……।’
जाग। पहले भाव करो कक िुि िर
के अर ाठे पर ले जाग। आरखें बरद करके भीिर कक वहार से आ
हो। शरीर
क शव िात्र है । ले े रहो और अपने यान को पैर
ति करो। अपने यान को अँ ाठगे पर ले जागर और भाव करो
ऊपर बढ़ रही है । और सब कुछ जल रहा है……जैसे-जैसे आ
दवलीन हो रहा है । अर ाठे से शुरू करो और ऊपर बढ़ो।
बढ़िी है वैसे-वैसे िुम्हारा शरीर
अर ठ ा े से यगे शुरू करो। यह आसान हो ा। यगेकक अर ठ ा ा िम् ु हारे ‘िैं’ से, िुम्हारे अहर कार से बहुि दरा है । िुम्हारा अहर कार मसर िें कें िि है ; वहार से शुरू करना क ठन हो ा। िो लबरद ु से शुरू करो; भाव करो कक अर ठ ा े जल रहे है । और वहार अब राख ही बची है ।
और कफर धीरे -धीरे ऊपर बढ़ो और जो भी आ जा र े। और दे खिे जाग कक अर -अर हो
की राह िें पड़े उसे जलािे जाग। सारे अर —पैर,जारि—दवलीन हो
राख हो रहे है ; क्जन अर गे से होकर आ
ुजरी है वे अब नहीर है । वे राख
है । ऊपर बढ़िे जाग; और अरि िें मसर भी दवलीन हो जािा है । प्रत्ये क चीज राख हो
मिल रही है । और िुि दे ख रहे हो।
च है ; धाल-धाल िें
‘और अरिि: शरीर जलकर राख हो जािा है । लेककन िुि नहीर।’ िुि मशखर पर खड़े िष् ा रह जाग े, साक्षी रह जाग े। शरीर वहार पडा हो ा, िि ृ जला हुआ, राख—और िुि िष् ा हो े, साक्षी हो े। इस साक्षी का कोच अहर कार नहीर है । यह दवतध तनरहर कार अवस्तथा की उपलक्ध के मल
बहुि उपयो ी है । यो? यगेकक इसिें बहुि सी बािें ि िी है । यह दवतध सरल िालाि पड़िी है। लेककन यह उिनी सरल है नहीर। इसकी आरिररक सररचना बहुि ज ल है । पहली बाि यह है कक िुम्हारी स्तितृ ियार शरीर का हस्तसा है । स्तितृ ि पदाथय है ; यही कारण है कक उसे सरग्रहीि
ककया जा सकिा है । स्तितृ ि िक्स्तिष्क के कोष्ठगे िें सरग्रहीि है । स्तितृ ियार भौतिक है , शरीर का हस्तसा है । िुम्हारे िक्स्तिष्क का आपरे शन करके अ र कुछ कोमशकागर को तनकाल दया जा
िो उनके साथ कुछ स्तितृ ियार भी
दवदा हो जाये ी। स्तितृ ियार िक्स्तिष्क िें सरग्रहीि रहिी है । स्तितृ ि पदाथय है ; उसे नष्
ककया जा सकिा है ।
और अब िो वैज्ञातनक कहिे है कक स्तितृ ि प्रत्यारोदपि कक जा सकिी है । दे र-अबेर हि उपाय खोज लें े कक जब आइरस्त ीन जैसा यक्ि िरे िो हि उसके िक्स्तिष्क की कोमशकागर को बचा लें। और उन्हें ककसी बचे िें प्रत्यारोदपि कर दें । और उस बचे को आइरस्त ीन के अनुभवगे से जा
ी।
ाजरें लबना ही आइरस्त ीन की स्तितृ ियार प्राि हो
िो स्तितृ ि शरीर का हस्तसा है । और अ र सारा शरीर जल जा , राख हो जा ,िो कोच स्तितृ ि नहीर बचे ी। याद रहे ,यह बाि सिझने जैसी है । अ र स्तितृ ि रह जािी है िो शरीर अभी बाकी है । और िुि धोखे िें हो। अ र िुि सचिुच
हराच से इस भाव िें उिरो े कक शरीर नहीर है । जल
या है , आ
ने उसे पारी िरह राख कर दया
है । िो उसे क्षण िुम्हें कोच स्तितृ ि नहीर रहे ी। साक्षक्षत्व के उस क्षण िें कोच िन नहीर रहे ा। सब कुछ ठहर जा
ा। दवचारगे की
ति रूक जा
ी। केवल दशयन,िात्र दे खना रह जा
और
क बार िुिने यह जान मलया िो िुि इस अवस्तथा िें तनरर िर रह सकिे हो।
कक िुि अपने को अपने शरीर से अल और िुम्हारे शरीर के बीच
ा कक या हुआ है ।
क बार मसफय यह जानना है
कर सकिे हो। यह दवतध िुम्हें अपने शरीर से अल
क अरिराल पैदा करने का, कुछ क्षणगे के मल
जानने का, िुम्हारे
शरीर से बाहर होने का
क उपाय है ।
अ र िुि इसे साध सको िो िुि शरीर िें होिे हु भी शरीर िें नहीर हो े। िुि पहले की िरह ही जी सकिे हो; लेककन अब िुि कफर कभी वही नहीर हो सकिे हो। इस दवतध िें कि से कि िीन िहीने ल ें े। इसे करिे रहो; यह प्रति दन इसे
जा
क दन िें नहीर हो ी। लेककन य द िुि
क िर ा दे िे हो िो िीन िहीने के भीिर ककसी दन अचानक िुम्हारी कल्पना सफल हो ी। और
क अरिराल तनमियि हो जा
ा। और िुि सचिुच दे खो ें कक िम् ु हारा शरीर राख हो रहा है । िब िुि उसका
तनरीक्षण कर सकिे हो। और उस तनरीक्षण िें
क
हन िथ्य को बोध हो ा। कक अहर कार असत्य है, झाठ है ;
उसकी कोच सत्िा नहीर है । अहरकार था; यगेकक िुि शरीर से दवचारगे से िन से िादात्म्य कक से कुछ भी नहीर हो—न िन, न दवचार, न शरीर। िुि उस सब से मभन्न हो जो िुम्हें िेर हु पररतध से सवयथा मभन्न हो। िो उपर से यह दवतध सरल िालाि पड़िी है । लेककन यह िुम्हारे भीिर पहले िरि
बैठे थे। िुि उनिें
है । िुि अपनी
हन रूपारिरण ला सकिी है । लेककन
िें जाकर यान करो, जो लो गे को जलाया जािा है । दे खो कक कैसे शरीर जलिा है । कैसे शरीर कफर
मिट्टी हो जािा है । िाकक िुि कफर आसानी से कल्पना कर सको। और जब अँ ाठगे से आरर भ करो और बहुि धीरे -धीरे उपर बढ़ो। और इस दवतध िें उिरने के पहले वास छोड़ने पर ज्यादा यान दो। इस दवतध को करने के ठीक पहले परिह मिन
िक वास छोड़ो और आरखे बरद कर लो, कफर शरीर को वास लेने दो और आरखें खोल दो। परिह मिन
िक
हन दवश्राि िें रहो। और कफर दवतध िें प्रवेश करो।
गशो दवज्ञान भैरव िरत्र, भा -चार प्रवचन-53
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—80 (ओशो) अक्न संबंधि दस ू री विधि:
‘यह काल्पतनक जगत जलकर राख हो रहा है, यह भाि करो; और िनुष्य से श्रेष्ठतर प्राणी बनो।’
अ र िुि पहली दवतध कर सके िो यह दस ा री दवतध बहुि सरल हो जा ी। अ र िुि भाव कर सके कक िुम्हारा शरीर जल रहा है िो यह भाव करना क ठन नहीर हो ा कक सारा ज ि जल रहा है । यगेकक िम् ु हारा शरीर ज ि का हस्तसा है । और िुि अपने शरीर के वावारा ही ज ि को जानिे हो। उस से जुड़े हो। सच िो यह है कक अपने शरीर के कारण ही िुि इस ज ि से जाड़े हो। ज ि िुम्हारे शरीर का फैलाव है । अ र िुि अपने शरीर के जलने की कल्पना कर सकिे हो िो ज ि के जलने की कल्पना करना क ठन नहीर है ।
और सात्र कहिा है कक यह ज ि काल्पतनक है; वह है , यगेकक िुिने उसे िाना हुआ है । और यह सारा ज ि जल रहा है, दवलीन हो रहा है । लेककन अ र िुम्हें ल े कक पहली दवतध क ठन है िो िुि दस ा री दवतध से भी आरर भ कर सकिे हो। पर पहली को साध लने से दस ा री बहुि आसान हो जािी है । और असल िें अ र कोच पहली दवतध को साध लेने से दस ा री दवतध की जरूरि ही नहीर रहिी। िुम्हारे शरीर के साथ सब कुछ अपने आप ही दवलीन हो जािा है । लेककन य द पहली दवतध क ठन ल े िो िुि दस ा री दवतध िें सीधे भी उिर सकिे हो।
िैंने कहा कक अँ ाठगे से आरर भ करो, यगेकक वे मसर से, अहर कार से बहुि दरा है । लेककन हो सकिा है कक िुम्हें अँ ठ ा गे से आरर भ करने की बाि भी न जिे। िो और दरा तनकल जाग—सरसार से शुरू करो। और िब अपनी िरफ आग; सरसार से शुरू करो। और अपने तनक उस पारे जलिे ज ि िें जलना आसान हो ा।
आग। और जब सारा ज ि जल रहा हो िो िुम्हारे मल
दस ा री दवतध: ‘यह काल्पतनक ज ि जलकर राख हो रहा है । यह भाव करो;और िनुष्य से श्रेष्ठिर प्राणी बनो।’ अ र िुि सारे सरसार को जलिा हुआ दे ख सके िो िुि िनुष्य के ऊपर उठ अति िानवीय चेिना को जान ।
, िुि अतििान हो
। िब िुि
िुि यह कल्पना कर सकिे हो; लेककन कल्पना का प्रमशक्षण जरूरी है । हिारी कल्पना बहुि प्र ाढ़ नहीर है । यह किजोर है, यगेकक कल्पना के प्रमशक्षण की यवस्तथा ही नहीर है । बदु ध स प्रमशक्षक्षि है; उसके मल दववायालय है और
िहादववायालय है । बदु ध स के प्रमशक्षण िें जीवन का बड़ा हस्तसा खचय हो जािा है । लेककन कल्पना का कोच प्रमशक्षण नहीर होिा है । और कल्पना का अपना ही ज ि है । बहुि अद्भि ु ज ि है । य द िुि अपनी कल्पना को प्रमशक्षक्षि कर सको िो चित्कार ि ि हो सकिे है । छो ी-छो ी चीजगे से शुरू करो। यगेकक बड़ी चीजगे िें कादना क ठन है । और सरभव है िुम्हें उनिें असफलिा हाथ ल े। उदाहरण के मल , यह कल्पना कक सारा सरसार जल रहा है , जरा क ठन है । यह भाव बहुि सकिा है ।
हरा नहीर जा
पहली बाि कक िुि जानिे हो कक यह कल्पना है । और य द कल्पना िें िुि सोचो भी कक चारगे और लप ें ही लप ें है िो भी िुम्हें ल े ा कक सरसार जला नहीर है । वह अभी भी है । यगेकक यह केवल िुम्हारी कल्पना है । और िुि नहीर जानिे हो कक कल्पना कैसे यथायथ बनिी है । िुम्हें पहले उसे िहसास करना हो ा। इस दवतध िें उिरने के पहले
क सरल प्रयो
लो। और भाव करो कक अब वे ऐसे ककया जा सकिा।
ँथ ा
करो। अपने दोनगे हाथगे को
क दस ा रे िें
ँथ ा लो, आरखें बरद कर
है कक खुल नहीर सकिे। और उन्हें खोलने के मल
कुछ भी नहीर
शुरू-शुरू िें िुम्हें ल े ा कक िुि केवल कल्पना कर रहे हो। और िुि उन्हें खोल सकिे हो। लेककन िुि सिि दस मिन
िक भाव करिे रहो कक िैं उन्हें नहीर खोल सकिा। िैं उन्हें खोलने के मल
िेरे हाथ खुल ही नहीर सकिे। और कफर दस मिन
कुछ नहीर कर सकिा।
के बाद उन्हें खोलने कक कोमशश करो।
दस िें से चार यक्ि िुररि सफल हो जा र े। चालीस प्रतिशि लो
िुररि काियाब हो जा र — े दस मिन
क्जिनी िाकि ल ा र े उिना ही हाथगे का खुलना क ठन होिा जा
ा। िुम्हें पसीना आने ल े ा। िुम्हारे ही
बाद वे अपने हाथ नहीर खोल सकिे। कल्पना यथाथय हो हाथ है । और िुि दे ख रहे हो कक वे बरध
के
च। वे क्जिना ही सरिनय करें े। वे हाथ खोलने के मल
है और िुि उन्हें नहीर खोल सकि।
लेककन भयभीि िि होग। कफर आरखें बरद कर लो और कफर भाव करो कक िैं उन्हें खोल रहा हार। खोल सकिा हार। और िुि उसे खोल सकिे हो। चालीस प्रतिशि लो िुररि खोल लें े। ये चालीस प्रतिशि लो प्रतिशि के मल
इस दवतध िें आसानी से उिर सकिे है। उनके मल
कोच क ठनाच नहीर है । बाकी साठ
यह दवतध क ठन पड़े ी; उन्हें सिय ल े ा। जो लो
कर सकिे है । और वह ि ि हो ा। और
बहुि भाव प्रवण है वे कुछ भी कल्पना क बार उन्हें यह प्रिीति हो जा कक कल्पना यथाथय हो सकिी है ।
कक भाव वास्तिदवक बन सकिा है । िो उन्हें आवासन मिल भाव के वावारा बहुि कुछ कर सकिे हो।
या। और वे आ े बढ़ सकिे है । िब िुि अपने
िुि अभी भी भाव से बहुि कुछ करिे हो, लेककन िुम्हें पिा नहीर होिा। िुि अभी भी करिे हो, लेककन िुम्हें उसका बोध नहीर है । शहर िें कोच नया रो फैलिा है , िैं च तरला फैलिा है , और िुि उसके मशकार हो जािे हो। िुि कभी सोच भी नहीर सकिे कक सौ िें से सत्िर लो िें रो
मसफय कल्पना के कारण बीिार हो जािे है । चारकक शहर
फैला है । िुि कल्पना करने ल िे हो कक िैं भी इसका मशकार होने वाला हार—और िुि मशकार हो जाग े। िुि मसफय अपनी कल्पना से अनेक रो पकड़ लेिे हो। िुि मसफय अपनी कल्पना से अनेक सिस्तया र तनमियि कर लेिे हो।
िो िुि सिस्तयागर को हल भी कर सकिे हो। य द िुम्हें पिा हो कक िुिने ही उन्हें तनमियि ककया है । अपनी कल्पना को थोड़ा बढ़ागर और िब यह दवतध बहुि उपयो ी हो ी। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-53
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—81 (ओशो) अक्न संबंधि तीसरी विधि: ‘जैसे विषयीगत रूप से अक्षर शब्दों िें और शब्द िायों िें जाकर मिलते है और विषयगत रूप से ितुल थ चक्रों
िें और चक्र िूल-तत्ि िें जाकर मिलते है , िैसे ही अंतत: इन्हें भी हिारे अक्स्तत्ि िें आकर मिलते हुए पाओ।’ यह भी क कल्पना की दवतध है । अहर कार सदा भयभीि है । वह सरवेदनशील होने से, खुला होने से डरिा है । वह डरिा है कक कोच चीज भीिर प्रवेश करके उसे नष्
कर न दे । इसमल
अहर कार अपने चारगे और
क ककला बरदी करिा है । और िुि
क कारा हृ िें
रहने ल िे हो। िुि अपने अरदर ककसी को भी प्रवेश नहीर दे िे हो। िुि डरिे हो कक य द कोच चीज भीिर आ च िो झरझ
खड़ा कर दे ी। िो बेहिर है कक ककसी को आने ही िि दो। िब सारा सरवाद बरद हो जािा है ;
उनके साथ भी सरवाद बरद हो जािा है । क्जन्हें िुि प्रेि करिे हो। या सोचिे हो कक िुि प्रेि करिे हो।
ककन्हीर पति-पत्नी को बा करिे हु दे खा; वे क दस ा रे से बाि नहीर कर रहे है । उनके बीच कोच सरवाद नहीर है । बक्ल्क वे शदगे के वावारा क दस ा रे से बच रहे है । वे बाि कर रहे है िाकक क दस ा रे से बचा जा । िौन िें वे क दस ा रे के प्रति खुल जा र े। िौन िें वे
रहिी है । कोच अहर कार नही रहिा हे । इसमल
क दस ा रे के सिीप आ जायें े। यगेकक िौन िें कोच दीवार नहीर पति पत्नी कभी चुप नहीर रहिे, वे सिय का ने के मल
ककसी चीज की चचाय करिे रहे ें । अन्यथा डर है कक कहीर जा र। हि
क दस ा रे से इिने भयभीि है ।
िैंने सुना है कक िुि भाल
ककसी ने
क दस ा रे के प्रति सरवेदनशील न हो जा र। खुल न
क दन िुल्ला नसरूदीन िर से बाहर तनकल रहा था कक उसकी पत्नी ने कहा: ‘नसरूदीन या
ये कक आज कौन सा दन है?’ नसरूदीन को पिा था, यह दववाह की पचीसवीर वनय ारठ का दन था।
िो उसने कहा, ‘िुझे याद है , बखाबी याद है ।‘ पत्नी ने कफर पाछा: ‘िो हि लो
इस दन को ककस िरह िनाने जा
रहे है ?’ नसरूदीन ने कहा: ‘दप्रये िुझे नहीर िालाि।’ और कफर उसने मसर खुजलािे हु ‘ककिना अछा हो ा कक हि इस उपल्य िें दो मिन िौन रहें ।’
है रानी के स्तवर िें कहा:
िुि ककसी के साथ िौन नहीर रह सकिे: िुि बेचैन होने ल िे हो। िौन िें दस ा रा िुम्हें प्रवेश करने ल िा है ।
िौन िें िुि खुले होिे हो; िुम्हारे वावार दरवाजे खुल होिे है । िुम्हारी लखड़ककयाँ खुली होिी है । िुि डरिे हो। िो िुि बािचीि करिे हो, बरद रहने के उपाय करिे हो। अहर कार कवच है , अहर कार कारा हृ है । और हि इिने
असुरक्षक्षि अनुभव करिे है । कक हिें कारा ह ृ भी स्तवीकार है । कारा हृ थोड़ी सुरक्षा का भाव दे िा है ; िुि सुरक्षक्षि अनुभव करिे हो।
इस दवतध का, इस िीसरी दवतध का प्रयो जान लो कक जीवन
करने के मल
पहली और सब से बुतनयादी बाि है कक भली भारति
क असुरक्षा है । उसे सुरक्षक्षि बनाने का कोच उपाय नहीर है । िुि जो भी करो े, उससे कुछ
होने वाला नहीर है । िुि मसफय सुरक्षा का ्ि पैदा कर सकिे हो; जीवन असुरक्षक्षि ही रहिा है । असुरक्षा ही उसका स्तवभाव है ; यगेकक ित्ृ यु उसिें अरितनय हि है , साथ-साथ जुड़ी है । जीवन सुरक्षक्षि कैसे हो सकिा है ? क क्षण के मल
सोचो, अ र जीवन परा ी िरह सुरक्षक्षि हो िो वह िि ृ ही हो ा। सवयथा सुरक्षक्षि जीवन,
सिग्ररिुः: सुरक्षक्षि जीवन जीवरि नहीर हो सकिा। यगेकक उसिें चुनौिी की पल ु क नहीर रहे ी। अ र िुि सभी खिरगे से सुरक्षक्षि हो जाग े िो िुि िुदाय हो जाग े। जीवन के होने िें ही जोलखि है , खिरा है , असुरक्षा है , चुनौिी है । उसिें िौि सक्म्िमलि है ।
िैं िुम्हें प्रेि करिा हार। अब िैं खिरनाक रास्तिे पर कदि रखा है । अब कुछ भी सुरक्षक्षि नहीर हो सकिा। लेककन अब िैं कल के मल सब कुछ सुरक्षक्षि करने की चेष् ा करूर ा। कल के मल िैं उस सब की हत्या करूर ा जो जीदवि है । यगेकक िभी िें कल के मल
सुरक्षक्षि अनुभव करूर ा। िो प्रेि दववाह िें बदल जािा है ।
दववाह सुरक्षा है । प्रेि असुरक्षक्षि है —अ ले क्षण सब कुछ बदल सकिा है । और िुिने ककिनी-ककिनी आशा र
बारधी है । और अ ले क्षण प्रेमिका िुम्हें छोड़कर चली जा सकिी है । या मित्र िुम्हें छोड़ कर जा सकिा है । िुि अपने को अचानक अकेला पािे हो। प्रेि असुरक्षक्षि है । िुि भदवष्य के सरबरध िें आवस्ति नहीर हो सकिे; कोच भदवष्यवाणी नहीर हो सकिी है ।
िो हि प्रेि की हत्या कर दे िे है । और उसकी ज ह
क सुरक्षक्षि पररपारक खोज लेिे है । उसका नाि दववाह है ।
दववाह के साथ िुि सुरक्षक्षि हो सकिे हो, उसकी भदवष्यवाणी की जा सकिी है । िुम्हारी पत्नी कल भी िुम्हारी
पत्नी रहे ी। िुम्हारा पति भदवष्य िें भी िुम्हारा पति रहे ा। लेककन यगेकक िुिने सब सुरक्षा कर ली, अब कोच खिरा नहीर है । प्रेि िर
या। वह नाजुक सरबरध िर
चीजें बदले ी ही, वे बदलने का बाय है । बदलाह िो जो भी जीवन की िें जीने के मल
या। यगेकक िि ृ चीजें ही स्तथाच हो सकिी है । जीदवि
जीवन का
ण ु है ; और बदलाह
हराइयगे िें उिना चाहिे है उन्हें असुरक्षक्षि रहने के मल
िैयार रहना चा ह । उन्हें अज्ञाि िें जीने के मल
िें असुरक्षा है ।
िैयार रहना चा ह ; उन्हें खिरे
िैयार रहना चा ह । उन्हें ककसी भी िरह
भदवष्य को बारधने की सुरक्षक्षि करने की चेष् ा नहीर करनी चा ह । यह चेष् ा ही सब चीजगे की हत्या कर दे िी है ।
और यह भी स्तिरण रहे , असुरक्षा जीवरि ही नहीर है, सुरदर भी है । सुरक्षा कुरूप और
रदी है । असुरक्षा जीवरि और
सुरदर है । िुि िभी सुरक्षक्षि हो सकिे हो, य द िुि अपने सभी वावार दरवाजे , सभी लखड़ककयाँ, सब झरोखे बरद
कर लो। न हवा को अरदर आने दो और न रोशनी को, कुछ भी अरदर िि आने दो। िब ककसी िरह िुि सुरक्षक्षि हो जािे हो। लेककन िब िुि जीदवि नहीर हो, िुि अपनी कब्र िें प्रवेश कर
।
यह दवतध िभी सरभव है जब िि ु खुले हु अपने िें प्रवेश दे ने की दवतध है ।
हो, ग्रहणशील हो, भयभीि नहीर हो। यगेकक यह दवतध परा े ब्रह्िारड को
‘’जैसे दवनयी ि रूप से अक्षर शदगे िें और शद वायगे िें जाकर मिलिे है और दवनय ि रूप िें विुल य चक्रगे िें और चक्र िाल ित्व िें जाकर मिलिे है , वैसे ही अरिि: इन्हें भी हिारे आक्स्तित्व िें आकर मिलिे हु
पाग।‘’
प्रत्येक चीज िेरे अक्स्तित्व िें आकर मिल रही है । िैं खुले आकाश के नीचे खड़ा हार और सभी दशागर से, सभी कोने-कािर से सारा आक्स्तित्व िुझिें मिलने चला आ रहा है । इस हालि िें िुम्हारा अहर कार नहीर रह सकिा।
इस खुलेपन िें जहार सिस्ति अक्स्तित्व िुििें मिल रहा है, िुि ‘िैं’ की भारति नहीर रह सकिे हो। िुि खुले आकाश की भारति िो रहो ,े लेककन
क ज ह कें िि ‘िैं’ की भारति नहीर।
इस दवतध को छो े -छो े प्रयो गे से शुरू करो। ककसी वक्ष ृ के नीचे बैठ जाग। हवा बह रही है । और वक्ष ृ के पत्िगे से सरसराह
की आवाज हो रही है । हवा िुम्हें छािी है, िुम्हारे चारगे और डोलिी है । िुम्हें छा कर
लेककन िुि उसे ऐसे िि
ुजरने दो। उसे अपने भीिर प्रवेश करने दो और अपने िें होकर
कर लो। और जैसे हवा वक्ष ृ से होकर
ुजरे और पत्िगे िें सरसराह
ाजर रही है ,
ुजरने दो। आरखें बरद
हो, िुि भाव करो कक िैं भी वक्ष ृ के सिान
खुला हुआ हार। और हवा िुझिें से होकर ुजर रही है । िेरे आस-पास से नहीर, ठीक िेरे भीिर से होकर वह बह रही है । वक्ष ृ की सरसराह िुम्हें अपने भीिर अनुभव हो ी और िुम्हें ल े ा कक िेरे शरीर के रर ध्र-रर ध्र से हवा ुजर रही है ।
और हवा वस्तिुि: िुिसे होकर
ुजर रही है । यह कल्पना ही नहीर है , यह िथ्य है । िुि भाल
ही वास नहीर लेि,े िुम्हारा पारा शरीर वास लेिा है ।
क- क रर ध्र से वास लेिा है । लाखगे तछिगे से वास लेिा
है । अ र िुम्हारे शरीर के सभी तछि बरद कर दये जाये,उन पर रर वास लेने दया जा
ये हो। िुि नाक से
पोि दया जाये और िुि मसफय नाक से
िो िुि िीन िर े के अरदर िर जाग े। मसफय नाक से वास लेकर िुि जीदवि नहीर रह
सकिे। िुम्हारे शरीर का प्रत्येक कोष्ठ जीवरि है और प्रत्येक कोष्ठ वास लेिा है । हवा सच िें िुम्हारे शरीर से होकर
ुजरिी है, लेककन उसके साथ िुम्हारा सरपकय नहीर रहा है ।
िो ककसी झाड़ के नीचे बैठो और अनुभव करो। आरर भ िें यह कल्पना िालाि पड़े ी। लेककन जल्दी ही कल्पना यथाथय बन जा
ुजर रही है । और कफर उ िे हु सारज के नीचे बैठो और अनुभव करो कक सारज की ककरणें न केवल िुझे छा रही है। बक्ल्क िुझिें प्रवेश कर रही है । और िुझसे होकर
ी। वह यथाथय ही है कक हवा िुिसे होकर
ुजर रही है । इस िरह िुि खुल जाग े, ग्रहणशील हो जाग े।
और यह प्रयो
ककसी भी चीज के साथ ककया जा सकिा है । उदाहरण के मल , िैं यहार बोल रहा हार,और िुि सुन रहे हो। िुि िात्र कानगे से भी सान सकिे हो और अपने पारे शरीर से भी सान सकिे हो। िुि अभी और यहीर यह प्रयो
कर सकिे हो। मसफय थोड़ी सी बदलाह
की बाि है । और अब िुि िुझे कानगे से ही नहीर सुन रहे हो, िुि
िुझे अपने पारे शरीर से सान रहे हो। िुम्हारा कोच अरश नहीर सुनिा है, िुम्हारी ऊजाय का कोच
क खरड नहीर
सुनिा है ; पारे के पारे सुनिे हो। िुम्हारा सिाचा शरीर सुनने िें सरलग्न होिा है । और िब िेरे शद िुिसे होकर ुजरिे है ; अपने प्रत्येक कोष्ठ से, प्रत्येक रर ध्र से, प्रत्येक तछि से िुि उन्हें पीिे हो। वे सभी और से िुििें
सिा हि होिे है ।
िुि
क और प्रयो
कर सकिे हो: जाग और ककसी िर दर िें बैठ जाग। अनेक भि आ ँ े जा र े गर िर दर
का िर ा बार-बार बजे ा। िुि अपने पारे शरीर से उसे सुनो। िर ा बज रहा है और पारा िर दर उसकी वतन से ारज रहा है । िर दर की प्रत्येक दीवार उसे प्रतिवतनि कर रही है। उसे िुम्हारी गर वादपि फेंक रही है ।
इस मल
हिनें िर दर को
ोलाकार बनाया है । िाकक आवाज हर िरफ से प्रतिवतनि हो और िुम्हें अनुभव हो
कक हर िरफ से वतन िुम्हारी और आ रही है । सब िरफ से वतन लौ ा दी जािी है । सब िरफ से वतन िुििें आकर मिलिी है । और िुि उसे अपने पारे शरीर से सुन सकिे हो। िुम्हारी प्रत्येक कोमशका, प्रत्येक रर ध्र उसे सुनिा है । उसे पीिा है । अपने िें सिा हि करिा है । वतन िुम्हारे भीिर होकर हो। सब िरफ वावार ही वावार है। अब िुि ककसी चीज के मल मल ,न वतन के मल —न ककरण के मल , ककसी के मल करिे हो। अब िुि दीवार न रहे ।
ुजरिी है । िुि रर ध्र िय हो
बाधा न रहे हो। अवरोध न रहे —न हवा के
भी नहीर। अब िुि ककसी भी चीज का प्रतिरोध नहीर
और जैसे ही िुम्हें अनुभव होिा है कक िुि अब प्रतिरोध नहीर करिे,सरिनय नहीर करिे। वैसे ही अचानक िुम्हें बोध होिा है कक अहर कार भी नहीर है । यगेकक अहर कार िो िभी है जब िुि सरिनय करिे हो। अहर कार प्रतिरोध है । जबजब िुि कहिे हो, ‘नहीर’ अहर कार खड़ा हो जािा है । जब-जब िुि कहिे हो ‘हार’ अहर कार दवदा हो जािा है ।
िैं उस यक्ि को आक्स्तिक कहिा हार,सचा आक्स्तिक क्जसने अक्स्तित्व को हाँ कहार है । उसिें कोच ‘नहीर’ नहीर रहा, कोच प्रतिरोध नही रहा। उसे सब स्तवीकार है ; वह सब कुछ को ि ि होने दे िा है । अ र ित्ृ यु भी आिी है िो वह अपना वावार बरद नहीर करे ा। उसके वावार ित्ृ यु के मल
भी खुले रहें े।
इस खुलेपन को लाना है; िो ही िुि यह दवतध साध सकिे हो। यगेकक यह दवतध कहिी है कक सारा अक्स्तित्व िुििें बहा आ रहा है । िुििें आकर मिल रहा है । िुि सिस्ति अक्स्तित्व के सर ि हो, िुम्हारी िरफ से दवरोध नहीर स्तवा ि है ; िुि उसे अपने िें मिलने दे िे हो। इस मिलन िें िुि िो दवलीन हो जाग े, िुि िो शुन्य आकाश हो जाग — े असीि आकाश। यगेकक यह दवरा
ब्रह्िारड अहर कार जैसी क्षुि चीज िें नहीर उिर सकिा। वह
िो िभी उिर सकिा है जब िुि भी उसके जैसे ही असीि हो
हो। जब िुि स्तवयर दवरा
आकाश हो
लेककन यह होिा है । धीरे -धीरे िम् ु हें ज्यादा से ज्यादा सरवेदनशील होना है और िुम्हें अपने प्रतिरोधगे के प्रति
हो।
बोधपण ा य होना है ।
हि बहुि प्रतिरोध से भरे है । अ र िैं अभी िुम्हें स्तपशय करूर िो िुि िहसास करो े कक िुि िेरे स्तपशय का प्रतिरोध कर रहे हो। िुि क बाधा खड़ी कर रहे हो। िाकक िेरी ऊष्िा िुििें प्रदवष् न हो सके। िेरा स्तपशय िुििें प्रदवष्
न हो सके। हि
है िो िुि सज
क दस ा रे को छाने को इजाजि भी नहीर दे िे। अ र कोच िुम्हें जरा सा भी छा दे िा
हो जािे हो और दस ा रा कहिा है : ‘क्षिा करें ।’
हर ज ह प्रतिरोध है । अ र िैं िुम्हें
ौर से दे खिा हार िो िुि प्रतिरोध करिे हो; यगेकक िेरा दे खना िुििें प्रवेश कर सकिा है , िुििें उिर सकिा है , िुम्हें उवावेमलि कर सकिा है । िब िुि या करो ?े और ऐसा अजनबी यक्ि के साथ ही नहीर होिा है । वैसे िो अजनबी यक्ि के साथ अजनबी है । के नीचे रहने से अजनबी नहीर है । या कहें कक हर कोच अजनबी है । कैसे मि
क ही छि
क ही छि के नीचे रहने से अजनबीपन
सकिा है । या िुि अपने दपिा को जानिे हो क्जन्हगेने िुम्हें जन्ि दया है? वह भी अजनबी है । िो
या िो हर कोच अजनबी है या कोच भी अजनबी नहीर है । लेककन हि डरे हु
है । और हि सब ज ह अवरोध
तनमियि करिे है । और ये अवरोध हिें असरवेदनशील बना दे िा है । और िब कुछ भी हििें प्रवेश नहीर कर सकिा है ।
लो
िेरे पास आिे है और वे कहिे है : ‘कोच प्रेि नही करिा, कोच िुझे प्रेि नहीर करिा है।’ और िैं उस यक्ि
को छािा हार और िहसास करिा हार कक वह स्तपशय से भी डर जािा है । क सा्ि लखरचाव है , िैं उसका हाथ अपने हाथ िें लेिा हार और वह अपने को मसकोड़ लेिा है । वह अपने हाथ िें िौजाद ही नहीर है । िेरे हाथ िें उसका िुदाय हाथ है । वह िो पीछे ह
चुका है । और वह कहिा है कक ‘कोच िुझे प्रेि नहीर करिा है ।’
कोच िुम्हें प्रेि कैसे कर सकिा है । और अ र सारा सरसार भी िुम्हें प्रेि करे िो भी िुि उसे अनुभव नहीर
करो े। यगेकक िुि बरद हो। प्रेि िुििें प्रवेश नहीर कर सकिा है । कोच वावार-दरवाजा नहीर है । और िुि अपने ही कारा हृ िें बरद होकर दुःु ख पा रहे हो।
अ र अहर कार है िो िुि बरद हो—प्रेि के प्रति, यान के प्रति, परिात्िा के प्रति। इसमल
पहले िो ज्यादा
सरवेदनशील,ज्यादा ग्राहक, ज्यादा खुले होने की चेष् ा करो; जो िुम्हें होिा है उसे होने दो। िो ही भ विा ि ि
हो सकिी है । यगेकक वह अरतिि ि ना है । अ र िुि साधारण चीजगे को ही अपने िें प्रवेश नहीर दे सकिे हो िो परि ित्व को कैसे प्रवेश दो े? यगेकक जब िुम्हें परि ि ि हो ा िब िो िुि लबलकुल नही रहो े; िुि लबलकुल खो जाग े।
कबीर ने कहा है : ‘जब िैं था िब हरर नहीर, अब हरर है िैं ना हर।’ खोजने वाला कबीर अब नहीर रहा? वह िो रहा नहीर। कबीर आचयय से पाछिे है : ‘ये कैसा मिलन है ? जब िैं था िो परिात्िा नहीर था और अब जब परिात्िा है िो िैं नहीर हार।’
लेककन वस्तिुि: यही मिलन-मिलन है । यगेकक दो नहीर मिल सकिे। सािान्यि: हि सोचिे है कक मिलन के मल दो की जरूरि है । अ र है । मिलन के मल
क ही है िो मिलन कैसे हो ा। सािान्य िकय कहिा है कक मिलन के मल
दस ा रा जरूरी है । लेककन सचे मिलन के मल , उस मिलन के मल
दो जरूरी
क्जसे हि सिातध कहिे है ,
क ही होना चा ह । जब साधक है िो साय नहीर है । और जब साय आिा है िो साधक दवलीन हो जािा है । ऐसा या होिा है ? यगेकक अहर कार बाधा है । जब िुम्हें ल िा है कक िैं हार िो िुि इिने िौजाद होिे हो कक िुििें कुछ भी प्रवेश नही कर सकिा। िुि अपने से ही इिने भरे होिे हो। जब िुि नहीर होिे हो िो सब कुछ िुिसे होकर ुजर सकिा है । िुि इिने दवरा िुिसे होकर
हो
होिे हो कक परिात्िा भी िुिसे होकर
ुजरने को िैयार है ; यगेकक िुि िैयार हो।
धिय की सारी कला इसिें है कक कैसे स्तवयर को खोया जा शुन्य आकाश हुआ जा । ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-53
ुजर सकिा है । अब पारा अक्स्तित्व
कैसे दवलीन हुआ जा । कैसे सिदपयि हुआ जा ,कैसे
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—82 (ओशो) अनुभि करो: िेरा विचार,िैं-पन, आंतररक इंहद्रयााँ—िुझ यह बहुि ही सरल दवतध है और अति सुरदर भी। पहली बाि यह है कक दवचार नहीर करना है , अनुभव करना है । दवचार करना और अनुभव करना दो मभन्न-मभन्न आयाि है । और हि बुदध स से इिनी ग्रस्ति हो
है कक जब हि यह भी कहिे है कक हि अनुभव करिे है िो
भी हि अनुभव नही करिे,सोच-दवचार ही करिे है । िुम्हारा भाव-पक्ष, िुम्हारा ्दय-पक्ष, लबलकुल बरद हो
या है ।
िुदाय हो
या है । जब िुि कहिे हो कक, ‘िैं िुम्हें प्रेि करिा हार।’ िो भी वह भाव नहीर होिा, दवचार ही होिा है । और भाव और दवचार िें फकय या है? अ र िुि भाव करो े िो िुि अपने को ्दय के पास कें िि अनुभव करो े। अ र िैं कहिा हार कक िुम्हें िैं प्रेि करिा हार िो िेरा यह प्रेि का भाव िेरे ्दय से प्रवा हि हो ा। उसका स्तत्रोि कहीर ्दय के आसपास हो ा। और अ र वह दवचार िात्र हो ा िो वह मसर से आिा हो ा। जब
िुि ककसी यक्ि को प्रेि करिे हो िो यह िहसास करने की कोमशश करो कक यह प्रेि मसर से आ रहा है या ्दय से।
जब भी िुि ककसी प्र ाढ़ भाव िें होिे हो िो िुि मसर के लबना होिे हो। उस क्षण कोच मसर नहीर होिा है ; हो भी नहीर सकिा। िब ्दय िुम्हारा सिस्ति अक्स्तित्व होिा है —िानगे मसर है ही नहीर। भाव की अवस्तथा िें ्दय िुम्हारे होने का केंि होिा है ।
जब िुि सोच-दवचार कर रहे होिे हो िब मसर िुम्हारे होने का केंि होिा है । और यगेकक दवचार करना जीने के मल
बहुि उपयो ी मसध स हुआ। इसमल हिने और सब कुछ बरद कर दया। हिारे जीवन के अन्य सभी आयाि बरद हो ये है । हि मसर ही मसर रह ये है । और हिारे शरीर मसर के आधार भर है । हि सोच दवचार ही करिे रहिे है । हि अपने भावगे के बारे िें भी दवचार ही करिे रहिे है । िो भाव िें उिरने की कोमशश करो। िुम्हें थोड़ी िेहनि करनी पड़े ी; यगेकक भाव की क्षििा करो। भाव का करु ठि पडा है । उस सरभावना का वावार पुन: खोलने के मल िुि
िुम्हें कुछ करना हो ा।
ुण
क फाल को दे खिे हो, और दे खिे ही कहिे हो कक यह सरुदर है । थोड़ा रुको, जरा प्रिीक्षा करो। जल्दी तनणयय
िि करो। प्रिीक्षा करो। और कफर दे खो कक कहीर िुिने मसर से ही िो यह नहीर कह दया कक यह सरद ु र है। या है िुिने यह अनुभव ककया है ? या मसफय यह आदिवश िो नहीर? यगेकक िुि जानिे हो कक ल ु ाब को सरुदर सिझा जािा है । लो
ल ु ाब सरुदर होिा है ।
कहिे है कक यह सरुदर है और िुिने भी अनेक बार कहा है कक सरुदर है ।
जैसे ही िुि
ुलाब को दे खिे हो, िन आ े आ जािा है । िन कहिा है कक यह सुरदर है । बाि खत्ि हुच। अब ल ु ाब से कोच सरपकय नहीर रहा। उसकी जरूरि न रही; िुिने कह दया। अब िुि अन्यत्र जा सकिे हो। ुलाब से
कोच मिलन न हुआ; िन ने िुम्हें ुलाब के सरपकय िें न आ सका।
ुलाब की
क झलक भी नहीर मिलने दी। िन बीच िें आ
केवल ्दय कह सकिा है कक यह सुरदर है या नहीर। यगेकक सौंदयय नहीर कह सकिे कक यह सुरदर है। कैसे कह सकिे हो? सौंदयय कोच वस्तिुि: केवल
या और ्दय
क भाव है , कोच दवचार नहीर है । िुि बुदध स से
लणि नहीर है ; वह
ुलाब िें नहीर है । यगेकक सरभव है कक ककसी अन्य के मल
णनातिि है । और सौंदयय
वह जरा भी सुरदर न हो। और कोच
अन्य उसे दे खे लबना ही उसके पास से हो। िो सौंदयय केवल
ज ु र जा । और यह भी सरभव है कक ककसी अनय के मल
ुलाब िें नहीर है । सौंदयय िो ्दय गर
ल ु ाब के मिलन िें है । जब ्दय
ल ु ाब कुरूप
ुलाब से मिलिा
है िो सौदयय का फाल लखलिा है। जब ्दय ककसी चीज के प्र ाढ़ सरपकय से आिा है िो बड़ी अद्भि ु ि ना ि िी है ।
जब िुि ककसी यक्ि के प्र ाढ़ सरपकय िें आिे हो िो वह यक्ि सुरदर हो जािा है । और यह मिलन क्जिना ज्यादा
हरा होिा है उिना ही ज्यादा सौंदयय प्रक
होिा है । िो सौंदयय वह भाव है जो ्दय को ि ि होिा है ।
िक्स्तिष्क को नहीर। सौंदयय कोच हसाब-ककिाब नहीर है और न सौंदयय को परखने की कोच कसौ ी है । वह
क
भाव है । य द िैं कहार कक ुलाब सुरदर नहीर है । िो िुि दववाद नहीर कर सकिे हो, कक यगे? दववाद करने की जरूरि भी नहीर है । िुि कहो े: ‘यह िुम्हारा भाव है । और ुलाब सुरदर है —यह िेरा भाव है ।’ वहार दववाद का कोच प्रन ही नहीर है । िक्स्तिष्क दववाद कर सकिा है , ्दय दववाद नहीर कर सकिा। बाि वहीर खत्ि हो दवराि आ
या। अ र िैं कहिा हार कक यह िेरा भाव है , िो दववाद की जरूरि ही नहीर है ।
च: पाणय
मसर के िल पर दववाद जारी रह सकिा है । और कफर हि ककसी तनष्कनय पर पहुरच सकिे है । ्दय के िल पर तनष्कनय पहले ही आ चुका है । ्दय से तनष्कनय िक पहुरचने की कोच प्रकक्रया नहीर है । कोच दवतध नहीर है । उसका
तनष्कनय ित्काल होिा है । िुररि होिा है । मसर से तनष्कनय पर पहुचने की क प्रकक्रया है, क यवस्तथा है : िुि िकय करिे हो, िुि दववाद करिे हो, िुि दवलेनण करिे हो, और िब तनष्कनय पर पहुरचिे हो कक ऐसा है या नहीर। ्दय के मल यह िात्कालीन ि ना है ; तनष्कनय पहले ही आ जािा है । मसर के िल पर दववाद जारी रहा सकिा है और कफर हि ककसी तनष्कनय पर पहुरच सकिे है । ्दय के िल पर तनष्कनय पहले ही आ चुका है । ्दय से तनष्कनय पर पहुरचने की कोच प्रकक्रया नही है । कोच दवतध नहीर है । उसका
तनष्कनय ित्काल होिा है । ित्क्षण होिा है । िुररि होिा है । मसर के तनष्कनय पर पहुरचने की क प्रकक्रया है । क यवस्तथा है ; िुि िकय करिे हो, िुि दववाद करिे हो, िुि दवलेनण करिे हो, और िब तनष्कनय पर पहुरचिे हो कक ऐसा है या नहीर है । ्दय के मल इस पर
यह िात्कामलक ि ना है ; तनष्कनय पहले ही आ जािा है ।
ौर करो। मसर के िल पर तनष्कनय अरि िें आिा है ; ्दय के िल पर तनष्कनय पहले ही आिा है । ्दय
से िुि तनष्कनय पहले ले लेिे हो और िब िुि प्रकक्रया खोजिे हो। यह प्रकक्रया खोजना मसर का काि है । िो ऐसी दवतधयगे के प्रयो
िें पहली क ठनाच यह है कक िुम्हें यही पिा नहीर है कक भाव या है । पहले भाव को
दवकमसि करने की कोमशश करो। जब िुि ककसी चीज को छुग िो आरखें बरद कर लो—दवचार िि करो। अनुभव करो। उदाहरण के मल ,िैं िुम्हारा हाथ अपने हाथ िें लेिा हार, और कहिा हार कक आरखें बरद करो और िहसास करो कक या हो रहा है । िो िुि िुररि कहो े कक आपका हाथ िेरे हाथ िें है । लेककन यह भाव नहीर हे । यह दवचार है । िैं कफर कहिा हार: ‘दवचार नहीर, अनुभव करो।’ िब िुि कहिे हो: ‘आप प्रेि प्रक कर रहे है ।’ वह भी दवचार है । अ र िैं कफर जोर दँ ा और आपसे कहार की अनुभव करो। मसर को बीच
िें िि लाग। बिाग की ठीक-ठीक या अनुभव हो रहा है । िो ही िुि कुछ अनुभव कर पाग े। और कहो े: ‘उष्िा अनुभव कर रहा हार।’ यगेकक प्रेि भी
क तनष्पक्त्ि है। ‘आपका हाथ िेरे हाथ िें है ।’ यह मसर से तनकला हुआ दवचार है । सची बाि यह है कक िेरे हाथ से िुम्हारे हाथ िें या िुम्हारे हाथ से िेरे हाथ िें क उष्िा प्रवा हि हो रही है । हिारी
जीवन-ऊजायगर का मिलन हो रहा है । और मिलन का लबरद ु उष्िा से भरा है । यह भाव है । अनुभव है , सरवेदना है । यह यथाथय है ।
लेककन हि तनरर िर मसर िें रहिे है । वह हिारी आदि हो अपने बरद ्दय को कफर से खोलना हो ा।
च है। हिें उसका ही प्रमशक्षण मिला है । िो िुम्हें
भावगे के साथ रहने की चेष् ा करो। दन िें कभी-कभी—जब िुि कोच धरधा नहीर कर रहे हो। यगेकक धरधे िें
यस्ति रहकर शुरू-शुरू िें भावगे के साथ जीना क ठन हो ा। वहार मसर बहुि कुशल मसध स हुआ है और वहार भावगे का भरोसा नहीर ककया जा सकिा है । लेककन जब िि ु अपने िर पर बचगे के साथ खेल रहे हो िो वहार मसर की जरूरि नहीर है —यह धरधा नहीर है। लेककन िुि िो वहार भी अपने मसर को अल
नहीर करिे हो।
िो अपने बचगे के साथ खेलिे हु ,या अपनी पत्नी के साथ बैठे हु ,या कुछ भी न करिे हु , कुसी पर दवश्राि करिे हु —भाव िें जीगर, अनुभव करो। कुसी की बन ु ाव को अनुभव करो, िुम्हारा हाथ कुसी को स्तपशय कर रहा
है । िुम्हें कैसा अनुभव हो रहा है । हवा चल रही है । हवा अरदर आ रही है , वह िुम्हें स्तपशय कर रही है , िुम्हें कैसा िहसास हो रहा है । रसोचिर से
रध आ रही है ; वह कैसी ल
रही है । उसे िहसास करो;उस पर दवचार िि करो।
सोच-दवचार िि करने ल ो कक रसोचिर िें कुछ पक रहा हे । िब िुि उसके बारे िें सपना दे खने ल ो े। नहीर, िो भी िथ्य है उसे िहसास करो। और िथ्य के साथ रहो; दवचार िें िि भ कगे।
िुि चारगे और से ि नागर से तिरे हो; िुम्हारी िरफ चारगे और से बहुि कुछ आ रहा है । िुिसे आकर मिल रहा है । सभी और से अक्स्तित्व िुिसे मिलने के मल आ रहा है । िुम्हारी सभी इर ियगे से होकर िुििें प्रवेश कर रहा है । लेककन िुि हो कक अपने मसर िें बरद हो। िुम्हारी इर ियाँ िुदाय हो िो इसके पहले कक िुि यह दवतध प्रयो
च है । वे कुछ भी िहसास नहीर करिी है ।
करो, थोड़ा सरवेदना का दवकास जरूरी है । यगेकक यह आरिररक प्रयो
है । जब िुि बाह्य को ही नहीर अनुभव कर सकिे िो िुम्हारे मल
आरिररक को अनुभव करना बहुि क ठन है । यगेकक आरिररक सा्ि है; अ र िुि स्तथाल को नहीर अनुभव कर सकिे िो सा्ि को कैसे कर सकिे हो। अ र िुि वतनयगे को नहीर सान सकिे हो िो आरिररक िौन को, तनशद को, अनाहि नाद को सुनना क ठन हो ा। बहुि क ठन हो ा। वह बहुि ही सा्ि है ।
िुि बगीचे िें बैठे हो और सड़क पर रै कफक है , शोर ुल है और िरह-िरह की आवाजें आ रही है । िुि अपनी
आरखें बरद कर लो और वहार होने वाली सबसे सा्ि आवाज को पकड़ने की कोमशश करो। कोच कौआ कारव-कारव कर रहा है ; कौ
की इस कारव-कारव पर अपने को
काग्र करो। सड़क पर यािायाि का भारी शोर है । इसिें कौ
की आवाज इिनी धीिी हे , इिनी सा्ि है कक जब िक िुि अपने बोध को उस पर उसका पिा नहीर चले ा। लेककन अ र िुि कौ
की आवाज केंि बन जा
लेककन िुि उसे सुन पाग े।
काग्र नहीर करो े िुम्हें
काग्रिा से सुनगे े िो सड़क का सारा शोर ुल दरा ह
जा
ा। और
ी। और िुि उसे सुनगे ,े उसके सा्ि भेदगे को भी सुनगे े। वह बहुि सा्ि है ।
िो अपनी सरवेदनशीलिा को बढ़ागर। िब कुछ स्तपशय करो। जब कुछ सुनो, जब भोजन करो,जब स्तनान करो िो
अपनी इर ियगे को खुला रहने दो। और दवचार िि करो। अनुभव करो। िुि स्तनान कर रहे हो; अपने ऊपर त रिे
हु पानी की ठर डक को िहसास करो। उस पर दवचार िि करो। यह िि कहो कक पानी ठर डा है । बहुि अछा है । कुछ िि कहो, काच शद िि दो। यगेकक जैसे ही िुि शद दे िे हो, िुि अनुभव से चाक जािे हो। जैसे ही शद
आिे है , िन सकक्रय हो जािा है । कोच शद िि दो। शीिलिा को अनुभव करो,ि र यह िि कहो कक पानी ठर डा है । कुछ कहने की जरूरि नहीर है ।
लेककन हिारा िन दवक्षक्षि है; हि कुछ न कुछ कहे ही चले जािे है । िुझे स्तिरण है , िैं
क दववदववायालय िें था। िेरे साथ वहार
कुछ बोलिी ही रहिी थी। उसके मल
क ि हला प्रोफेसर भी थी जो ल ािार कुछ न
असरभव था की वह कभी भी चुप रहे ।
क दन िैं कालेज के बरािदे िें
खड़ा था और सायायस्ति हो रहा था। अत्यरि सरुदर सय ा ायस्ति था। और वह स्तत्री ठीक िेरे ब ल िें खड़ी थी। िैंने
कहा: ‘दे खो।’ वह कुछ बोल रही थी, िो िैंने उससे कहा: ‘दे खो कैसा सरुदर सायायसि है ।’ बह बहुि अतनछा से दे खने को राजी हुच। कफर उसने कहा: ‘या आप नहीर सोचिे की बायी और य द कुछ और जािुनी रर रहिा िो ठीक था।’ यह कोच तचत्र नहीर था असली सायायस्ति था।
हि ल ािार बोलिे रहिे थे। और हिें यह भी बोध नहीर रहिा कक हि या बोल रहे है । िन की इस सिि बािचीि को बरद करो िो ही िुि अपने भावगे को प्र ाढ़ कर सकिे हो। और अ र भाव प्र ाढ़ हो िो यह दवतध िुम्हारे मलये चित्कार कर सकिी है । ‘अनुभव करो: िेरा दवचार……।’ आरखगे को बरद कर लो और दवचार को अनुभव करो। दवचारगे की सिि धारा चल रही है ; दवचारगे का
क प्रवाह,
क धारा बही जा रही है । इन दवचारगे को अनुभव करो। और उनकी उपक्स्तथति को अनुभव करो। िुि क्जिना ही
उन्हें अनुभव करो े, वे उिने ही अतधक प्रक
हगे े। पिय दर पिय, न मसफय वे दवचार प्रक
हगे े जो सिह पर है ;
उनके पीछे और भी दवचारगे की पिें है ; और उनके पीछे भी और पिें है —पिों पर पिें। और दवतध कहिी है , ‘अनुभव करो, िेरा दवचार।’ और हि कहे चले जािे है : ‘ये िेरे दवचार है ।’ लेककन अनभ ु व करो: या वे सचिुच िुम्हारे दवचार है । या िुि कह सकिे हो कक वे िेरे है ? िुि क्जिना ही अनुभव करो े। उिना ही िुम्हारे मल िेरे है । वे सब उधार है ; वे सब बाहर से आ
है । वे िुम्हारे पास आ
वह कहना क ठन हो ा कक वे
है । लेककन वे िुम्हारे नहीर है । कोच दवचार
िुम्हारा नहीर है । वह धाल है जो िुि पर आ जिी है । चाहे िुम्हें यह पिा हो या न हो। कक स्तत्रोि से यह दवचार
आया है । िो भी दवचार िुम्हारा नहीर है । और अ र िुि पारी चेष् ा करो े िो िुि जान लो े कक यह दवचार कहीर से आया है ।
मसफय आरिररक िौन िुम्हारा है । ककसी ने िुम्हें यह नहीर दया है । िुि इसके साथ ही पैदा हु थे। और इसके साथ ही िुि िरो े। दवचार िुम्हें द ये है । िुि उनसे सरस्तकाररि हो। अ र िुि हरद ा हो िो िुम्हारे दवचार क िरह के है । अ र िुि िुसलिान हो िो िुम्हारे दवचार और िरह के है । और अ र िुि कम्युतनस्त
िुम्हारे दवचार कुछ और ही है । वे िुम्हें दये लेककन कोच दवचार िुम्हारा नहीर है ।
हो िो
ये है । या सरभवि: िुिने उन्हें स्तवेछा से ग्रहण ककया हुआ है ।
अ र िुि दवचारगे की उपक्स्तथति, उनकी भीड़ की उपक्स्तथति िहसास कर सको िो िुि यह भी िहसास करो े कक वे दवचार िेरे नहीर है । यह भीड़ बाहर से िुम्हारे पास आच है । यह िुम्हारे चारगे िरफ इकट्ठी हो
च है । लेककन
यह िुम्हारी नहीर है । और अ र िुम्हें यह अनुभव हो कक कोच दवचार िेरा नहीर है । िो ही िुि िन को अपने से
अल
कर सकिे हो। अ र वे दवचार िुम्हारे है िो िुि उनका बचाव करो े। यह भाव कक यह दवचार िेरा है ।
यही िो आसक्ि है । ल ाव है । िब िैं उसे अपने भीिर जड़ें दे िा हार, िब िैं जीवन बन जािा हार और दवचार िुझिें जड़ें जिा सकिा है । और जब िैं दे खिा हार कक कोच दवचार िेरा नहीर है िो वह तनिाल य हो जािा है । उखड़़़ जािा है ,िब िेरा उससे कोच ल ाव नहीर रहिा है । ‘िेरे’ का भाव ही ल ाव पैदा करिा है । िुि अपने दवचारगे के मल मल
लड़ सकिे हो। िुि अपने दवचारगे के मल
शहीद हो सकिे हो। िुि अपने दवचारगे के
हत्या कर सकिे हो। खान कर सकिे हो। और दवचार िुम्हारे नहीर है । चैिन्य िुम्हारा है : लेककन दवचार
िुम्हारे नहीर है । और यगेकक इस बोध से िदद मिलिी है ?
अ र िुि दे ख सको कक दवचार िेरे नहीर है िो कुछ भी िुम्हारा नहीर रह जािा है । यगेकक दवचार ही हर चीज की जड़ िें है । िेरा िर, िेरी सरपति, िेरा पररवार—ये चीजें िो बाहरी है । लेककन
हरे िें दवचार िेरे है । अ र
दवचार िेरे है िो ही ये चीजें, इनका दवस्तिार, इनका फैलाव िेरा हो सकिा है । अ र दवचार िेरे नहीर है िो कुछ भी िहत्व का न रहा। यगेकक यह भी
क दवचार ही है । कक िुि िेरी पत्नी हो। कक िुि िेरे पति हो। यह भी
क दवचार ही है । और अ र बतु नयादी िौर से दवचार ही िेरा नहीर है िो पत्नी िेरी कैसे हो सकिी है । या पति
िेरा कैसे हो सकिा है । दवचार के मि िे ही सारा सरसार मि नहीर रहिे हो।
जािा है । िब िुि सरसार िें रह कर भी सरसार िें
िुि हिालय चले जा सकिे हो, िुि सरसार छोड़ सकिे हो, लेककन अ र िुि सोचिे हो कक दवचार िेरे है िो िुि कहीर नहीर
। िुि वहीर हो। हिालय िें बैठे हु िुि सरसार िें उिने ही हो े क्जिने यहार रह कर हो। यगेकक दवचार सरसार है । िुि हिालय िें भी अपने दवचार साथ मल जािे है । िुि िर छोड़ दे िे हो, लेककन असली िर अरदर है । असली िर दवचार की च गे से बना है । बाहर का िर असली िर नहीर है । यह अजीब बाि है , लेककन यह रोज ही ि िी है । िैं
क यक्ि को दे खिा हार कक उसने सरसार छोड़ दया और कफर भी वह हरद ा ही है । वह सरन्यासी हो जािा है । और कफर भी हन्द ा जैन बना रहा था। इसका या ििलब है । यह सरसार का त्या
कर दे िा है। लेककन दवचारगे का त्या
नहीर करिा। वह अभी भी जैन है । वह अभी भी हरद ा
है । उसका दवचारगे का सरसार अभी भी कायि है । और दवचारगे का सरसार ही असली सरसार है ।
अ र िुि दे ख सको कक कोच दवचार िेरा नहीर है……गर िुि दे ख सको े। यगेकक िुि िष् ा हो े, और दवचार
दवनय बन जा र े। जब िुि शारि होकर दवचारगे का तनरीक्षण करो े िो दवचार दवनय हगे े और िुि दे खने वाले हो े। िुि िष् ा हगे े। िुि साक्षी हो े और दवचार िुम्हारे सािने िैरिे रहें े। और अ र िुि
हरे दे ख सके, हरे अनुभव कर सके। िो िुि दे खो ें कक दवचारगे की कोच जड़ें नहीर है । िुि
दे खो ें कक दवचार आकाश िें बादलगे की भारति िैर रहे है और िुम्हारे भीिर उसकी कोच जड़ें नहीर है । वे आिे है और चले जािे है । िुि नाहक उनके मशकार हो का जो भी बादल िुम्हारे िर से
ये हो। नाहक िुम्हारा उनके साथ िादात्म्य हो
ुजरिा है, िुि कहिे हो कक यह िेरा बादल है ।
दवचार बादलगे जैसे है । िुम्हारी चेिना के आकाश से वे हो। िुि कहिे हो कक यह बादल िेरा है । और मसफय जा
ा।
या है । दवचार
ुजरिे रहिे है और िुि उनसे ल ाव तनमियि करिे रहिे
क आवारा बादल है , जो
ुजर रहा है । और यह
ुजर
अपने बचपन िें लो गे। उस सिय भी िुम्हारे कुछ दवचार थे। और उनसे िुम्हारा ल ाव था। और िुि कहिे थे कक वे िेरे दवचार है । और कफर बचपन दवदा हो
या। और बचपन के साथ वे दवचार, वे बादल भी दवदा हो
ये।
अब वे िुम्हें याद भी नहीर है । कफर िुि जवान हु । और िब दस ा रे बादल आ , जो जवानी से आकदनयि होकर आिे है । और िुिने उनसे भी अपना ल ाव बनाया। और अब िुि बढ़ ा े हो। जवानी के दवचार अब नहीर है ; वे अब िुम्हें याद िक नहीर है । और कभी वे इिने िहत्वपाणय थे कक िुि उनके मल िक नहीर है । अब िुि अपनी उस िाढ़िा पर हर स सकिे हो। िुि उसके मल शहीद हो सकिे थे। अब िुि उनके मल बादल चले
जान िक दे सकिे थे। वे अब याद
िर सकिे थे। कक िुि उसके मल
दो कौड़ी भी खचय करने को राजी नहीर हो। वे अब िुम्हारे न रहे । वे
। लेककन उनकी ज ह दस ा रे बादल आ
है और िुि उन्हें पकड़कर बैठ
हो।
बादल बदलिे रहिे है , लेककन िुम्हारा ल ाव, िुम्हारी पकड़ नहीर बदलिी। यही सिस्तया है । और ऐसा नहीर है कक िुम्हारे बचपन के जाने पर ही बादल बदलिे है । वे प्रतिपल बदल रहे है ।
क मिन
पहले िुि
क िरह के
बादलगे से तिरे थे, अब िुि और िरह के बादलगे से तिरे हो। जब िुि यहार आये थे, क िरह के बादल िुि पर िरडरा रहे थे। जब िुि यहार से जाग े, दस ु री िरह के बादल िरडरा र े। और िुि प्रत्येक बादल के साथ तचपक जािे हो। उससे ल ाव बना लेिे हो। अ र अरि िें िुम्हारे हाथ कुछ भी नहीर आिा है िो यह स्तवाभादवक है ,यगेकक बादलगे से या मिल सकिा है ? और दवचार बादल ही है ।
यह दवतध जड़ से ही शरू ु करिी है । और दवचार ही सबकी जड़ है । अ र ‘िेरे’ के भाव को उसकी जड़ िें ही का सको िो वह कफर प्रक
नहीर हो ा—वह कफर कहीर नहीर दखाच पड़े ा। और अ र िुि उसे जड़ से नहीर का िे हो
िो कफर और कहीर का ने से कुछ नहीर हो ा—चाहे िुि क्जिना का ो वह यथय हो ा; वह कफर-कफर प्रक
होिा
रहे ा।
िैं उसे का
सकिा हार; िैं कह सकिा हार कक कोच िेरी पत्नी नहीर है । हि लो अजनबी है और दववाह िो केवल क सािाक्जक औपचाररकिा है । िैं अपने को अल कर लेिा हार; िैं कहिा हार कक कोच िेरी पत्नी नहीर है । लेककन
यह बाि बहुि सिही है । कफर िैं कहिा हार: िेरा धिय। कफर िैं कहिा हार: िेरा सरप्रदाय। िैं कहिा हार: यह िेरा धियग्ररथ, यह बाचलबल है , यह कुरान है , यह िेरा शास्तत्र है । इस िरह ‘िेरे’ का भाव ककसी दस ा रे क्षेत्र िें जारी रहिा है । और िुि वही के वही रहिे हो।
‘िेरा दवचार’ और िब ‘िैं-पन’। पले दवचारगे की श्ररखला को दे खो। दवचारगे की प्रकक्रया को दे खो,दवचारगे के प्रवाह को दे खो। और खोजगे कक कौन से दवचार िुम्हारे है , या कक वे भ किे बादल भर है । और जब िुम्हें प्रिीि हो कक
काच दवचार िुम्हारे नहीर है । दवचारगे से ‘िेरे’ को जोड़ना ही ्ि है । िो िुि आ े बढ़ सकिे हो। िब िुि और हरे उिर सकिे हो। िब िैं-पन के प्रति होश साधो। यह ‘’िैं’’ कहा है ?
रिण अपने मशष्यगे को
क दवतध दे िे थे। उनके मशष्य पाछिे थे: ‘िैं कौन हार?’ तिबि िें भी वे क ऐसी ही दवतध का उपयो करिे है जो रिण की दवतध से भी बेहिर है । वे यह नहीर पाछिे थे कक िैं कौन हुर। वे पाछिे थे कक ‘िैं कहार हार?’ यगेकक ये ‘कौन’ सिस्तया पैदा कर सकिा है । जब िुि पाछिे हो कक ‘िैं कौन हार?’ िो िुि यह िो िान हीलेिे हो कक िैं हार, इिना ही जानना है कक िैं कौन हार। अब प्रन इिना ही है कक िैं कौन हार। केवल प्रतिमभक्षा होनी है , मसफय चेहरा पहचानना है ; लेककन वह है —अपररतचि ही सही, पर वह है ।
तिबिी दवतध रिण की दवतध से बेहिर है । तिबिी दवतध कहिी है कक िौन हो जाग और खोजगे कक िैं कहार हार। अपने भीिर प्रवेश करो। क- क कोन कािर िें जाग और पाछो: ‘िैं कहार हार?’ िुम्हें ‘िैं’ कहीर नहीर मिले ा। िुि उसे कहीर नहीर पाग े। िुि उसे क्जिना ही खोजो े उिना ही वह वहार नहीर हो ा।
और यह पछ ा िे-पछ ा िे कक ‘िैं कौन हार?’ या की िैं ‘कहार हार?’ क क्षण आिा है जब िुि उस लबरद ु पर होिे हो जहार िुि िो होिे हो, लेककन कोच ‘िैं’ नहीर होिा। जहार िुि लबना ककसी केंि के होिे हो। लेककन यह िभी ि ि हो ा जब िुम्हारी अनुभाति हो कक दवचार िुम्हारे नहीर है । यह ज्यादा
हन क्षेत्र है –यह ‘िैं’-पन’।
हि इसे कभी अनुभव नहीर करिे है । हि सिि ‘िैं-िैं’ करिे रहिे है । ‘िैं’ शद का तनरर िर उपयो जो शद सवायतधक उपयो
होिा रहिा है ।
िें ककया जाि है वह ‘िैं’ है । लेककन िुम्हें उसका अनुभव नहीर होिा। ‘िैं’ से िुम्हारा
या ििलब है ? जब िुि कहिे हो िैं िो उससे या ििलब है । िैं इशारा कर सकिा हार और कह सकिा हार कक िेरा ििलब यह है । िैं अपने शरीर की िरफ इशारा कर सकिा हार। और कह सकिा हार कक िेरा ििलब यह है 1 लेककन िब यह पाछा जा सकिा है कक िुम्हारा ििलब हाथ से है । कक िुम्हारा ििलब पैर से है। कक िुम्हारा ििलब पे
से है । िब िुझे इनकार करना पड़े ा; िुझे नहीर कहना पड़े ा। और इस िरह िुझे पारे शरीर को ही
इरकार करना हो ा। िो कफर िुम्हारा या ििलब है जब िुि ‘िैं’ कहिे हो। या िुम्हारा ििलब मसर से है ? कहीर हरे िें जब भी िुि ‘िैं’ कहिे हो, क बहुि धुरधला-सा, अस्तपष् दवचारगे का है ।
सा भाव होिा है । और यह अस्तपष्
भाव िुम्हारे
भाव िें क्स्तथि होकर, दवचारगे से पथ ृ क होकर इस ‘िैं-पन’ का साक्षाि करो, इसे सीधे-सीधे दे खो। और जैसे-जैसे िुि उसका साक्षाि करिे हो िि ु पािे हो कक वह नहीर है । वह मसफय आवयक था; लेककन वह सत्य नहीर था। बध स ु भी उसका उपयो उसका उपयो
करिे है । यह मसफय
क उपयो ी शद था। भाना ि प्रिीक था।
करिे है । बध स ु त्व को उपलध होने के बाद भी वे
क कािचलाऊ उपाय है । लेककन जब बध स ु ‘िैं’ कहिे है िो उसका ििलब
अहर कार नहीर होिा,यगेकक वहार कोच भी नहीर है ।
जब िुि इस ‘िैं-पन’ का साक्षाि करो े िो यह दवलीन हो जा
ा। इस क्षण िें िुम्हें भय पकड़ सकिा है । िुि
आिरककि हो सकिे हो। और यह अनेक लो गे के साथ होिा है कक जब वे इस दवतध िें इिने भयभीि हो जािे है कक भा
हरे उिरिे है िो वे
खड़े होिे है ।
िो यह स्तिरण रहे : जब िुि अपने िैं पन का साक्षाि करो ,े उसको अनुभव करो े। िो िुि ठीक उसी क्स्तथति िें हो े क्जस क्स्तथति िें ित्ृ यु के सिय हो ा। ठीक उसी क्स्तथति िें यगेकक ‘िैं’ दवलीन हो रहा है। और िुम्हें ल े ा कक िेरी ित्ृ यु ि ि हो रही है । िुम्हें डाबने जैसा भाव हो ा कक िैं डाबिा जा रहा हार। और य द िुि भयभीि हो ये। िो िुि बाहर आ जाग े। और कफर दवचारगे को पकड़ लो े; यगेकक वे दवचार सहयो ी हगे े। वे बादल वहार हगे ;े िुि उनसे कफर तचपक जा सकिे हो, और िुम्हारा भय जािा रहे ा।
पर स्तिरण रहे , यह भय बहुि शुभ है । यह क आशापाणय लक्षण है । यह भय बिािा है कक िुि हरे जा रहे हो। और ित्ृ यु हनत्ि लबरद ा है । य द िुि ित्ृ यु िें उिर सके िो िुि अिि ृ हो जाग े। यगेकक जो ित्ृ यु िें प्रवेश कर जािा है, उसकी ित्ृ यु असरभव है । यगेकक जो ित्ृ यु िें उिर जािा है, उसकी ित्ृ यु नहीर हो सकिी। िब ित्ृ यु
भी बाहर-बाहर है । पररतध पर है । ित्ृ यु कभी केंि पर नहीर है । वह सदा पररतध पर है । जब िैं पन दवदा होिा है िो िुि ठीक ित्ृ यु जैसे ही हो जािे हो। पुराना
या और नये का आ िन हुआ।
यह चैिन्य, जो िैं-पन के जाने पर आिा है , सवयथा नया है । अछािा है, युवा है, करु आरा है । पुराना लबलकुल नहीर
बचा और पुराने ने इसे स्तपशय भी नहीर ककया है । वह िैं-पन दवलीन हो जािा है और िुि अपने अछािे करु आरापन िें , अपनी सरपाणय िाज ी िें प्रक
होिे हो। िुिने अक्स्तित्व का
हरे से
िो इस िरह सोचो: दवचार, उसके नीचे िैं-पन, उसके नीचे िीसरी चीज:
हरािल छा मलया है ।
‘अनुभव करो: िेरा दवचार, िैं-पन, आरिररक इर ियाँ—िुझ।’ जब दवचार दवलीन हो चुके है या उन पर िुम्हारी पकड़ छा
च है —वे चल भी रहे हगे िो उनसे िुम्हें लेना-दे ना
नहीर है । िुि पथ ृ क, अनासि और दविुि हो—और िैं-पन भी दवदा हो दे खिे हो।
या है , िब िुि आरिररक इर ियगे को
ये आरिररक इर ियाँ—यह सबसे
हरी बाि है । हि अपने बाह्ि इर ियगे को जानिे है । हाथ से िैं िुम्हें छािा हार। आँख से दे खिा हार। ये बाह्ि इर ियार है । आरिररक इर ियार वे है , क्जनिें िैं अपने होने को दे खिा हार। िहसास करिा हार, अनुभव करिा हार। बाह्ि इर ियार दस ा रगे के मल है । िैं बाह्ि इर ियगे के वावारा िुम्हारे सरबरध िें जानिा हार। लेककन िैं अपने बारे िें कैसे जानिा हार? ये हार, यह भी िैं कैसे जानिा हार? िुझे िेरे होने की अनुभाति, होने की प्रिीति, होने का अहसास कौन दे िा है ? इसके मल
आरिररक इर ियार है । जब दवचार ठहर जािे है और जब िैं-पन नहीर बचिा है िो उस शुध सिा िें, उस
स्तपष् िा िें िुि आरिररक इर ियगे को दे ख सकिे हो।
चैिन्य, प्रतिभा, िेधा—ये आरिररक इर ियार है । उनके वावारा हिें अपने होने का, अपने अक्स्तित्व का बोध होिा है । यही कारण है कक अ र िुि अपनी आरखें बरद कर लो िो िुि अपने शरीर को लबलकुल भाल सकिे हो। लेककन िुम्हारा यह भाव कक िैं हार बना ही रहे ा।
और उससे ही यह बाि भी सिझ िें आिी है —और यह बाि लबलकुल सच है—कक जब कोच यक्ि िर जािा है िो हिारे मल
िो वह िर जािा है , लेककन उसे थोड़ा सिय ल
जािा है इस िथ्य को पहचानने िें कक िैं िर
या हार। यगे कक होने का आरिररक भाव वही का वही बना रहिा है । तिबि िें िो िरने के दवशेन प्रयो
है और वे कहिे है कक िरने की िैयारी बहुि जरूरी है । उनका इस प्रकार है : ‘जब भी कोच यक्ि िरने ल िा है िो रु ु या परु ो हि, या कोच भी जो बारदो प्रयो
क प्रयो जानिा है ,
उससे कहिा है कक ‘स्तिरण रखो, ‘’होश रखो’’ बोध बना
रखो कक िैं शरीर छोड़ रहा हार।‘’ यगेकक जब िुि शरीर छोड़ दे िे हो िो यह सिझने िें थोड़ा सिय ल ािा है कक िैं िर या। यगेकक आरिररक भाव वही का वही बना रहिा है । उसिें कोच बदलाह
नहीर होिी।
शरीर िो केवल दस ा रगे को छाने और अनुभव करने के मल
है । इसके वावारा िुिने कभी अपने को नहीर स्तपशय
ककया है । न अपने को जाना है । िुि अपने को ककन्हीर अनय इर ियगे के वावारा जािे हो। जो आरिररक है । लेककन
हिारी िुक्कल यह है कक हिें अपने उन इर ियगे का पिा नहीर है । और हि अपने को दस ा रगे के वावारा जानिे है ।
हिारी ही नजर िें हिारी जो िस्तवीर है । वह दस ा रगे वावारा तनमियि है । िेरे बारे िें दस ा रे जो कहिे है , वहीर िेरी िेरे सरबरध िें जानकारी है । अ र वे कहिे है कक िुि सुरदर हो, या अ र वे कहिे है कक िुि कुरूप हो, िो िैं उस पर भरोसा कर लेिा हार। िेरे बारे िें दस ा रगे के िायि से, दस ा रगे से प्रतिफमलि होकर जो कुछ िुझे बिािी है । वही िेरे सरबरध िें धारणा बन जािी है । अ र िुि अपनी आरिररक इर ियगे को पहचान लो िो िुि सिाज से लबलकुल िुि हो
। यह ििलब है जब
परु ाने शास्तत्रगे िें कहा जािा है कक सरन्यासी सिाज का हस्तसा नहीर है । यगेकक वह अब स्तवयर को आरिररक इर ियगे
के वावारा जानिा है । अब उसका अपने सरबरध िें ज्ञान दस ा रगे के िि पर आधाररि नहीर है, अब यह ज्ञान ककसी के
िायि से दे खा
या प्रतिफलन नहीर है । अब उसे स्तवयर को जानने के मल
ककसी दपयण की जरूरि नहीर है ।
उसने आरिररक दपयण को पा मलया है । और वह स्तवयर को आरिररक दपयण जानिा है । और आरिररक सत्य को िभी जाना जा सकिा है जब िुिने आरिररक इर ियगे को पा मलया हो। और िब िुि उन आरिररक इर ियगे के वावारा दे ख सकेि हो। और िब—‘िुझे’। इसे शदगे िें कहना प्रयो
ककया
या है । कोच शद
लि हो ा ‘िुझे’ भी
को ‘िैं’ से कुछ लेना-दे ना नहीर है। जब ‘िुझ’ प्रक
लि हो ा। इस मल
लि है । लेककन िैं दवलीन हो
‘िुझे’ का
या। स्तिरण रहे , इस ‘िुझ’
होिा है । िब पहली दफा िेरा असली होना प्रक
होिा है । वह
असली होना ‘िुझ’ है ।
बाहरी सरसार न रहा, दवचार न रहे ,अहर कार का भाव न रहा और िैंने अपनी आरिररक इर ियगे को, चैिन्य को, िेधा को, या उसे जो कुछ भी कहो, जान मलया है । िब इस आरिररक इर ियगे के प्रकाश िें ‘िुझ’े का आवरण होिा है । यह ‘िुझ’ िुम्हारा नहीर है ; यह िुम्हारा अरिरिि है । यह ‘िुझ’ जा तिक है, दवरा
नहीर है । इसिें सब कुछ तन हि है , सिाया है । यह लहर नहीर है ; यह सा र ही है ।
है । इस ‘िुझ’ की कोच सीिा
‘अनुभव करो: िेरा दवचार, िैं-पन, आरिररक इर ियार।‘ और िब
क अरिराल है और अचानक ‘िुझ’ प्रक
होिा है । जब यह ‘िुझ’ प्रक
होिा है िो यक्ि जानिा है
कक िैं ब्रह्ि हार, अहर ब्रह्िाक्स्ति। अहर कार का दावा नहीर है । अहर कार िो जा चाका। इस दवतध के वावारा िुि अपना रूपारिरण कर सकिे हो। लेककन पहले भाव िें क्स्तथर होग। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-55
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—83 (ओशो) (कािना के पहले और जानने के पहले िैं कैसे कह सकता हूं कक िैं हूं। वििशथ करो। सौंदयथ िें विलीन हो जाओ।) कािना के पहले और जानने के पहले िैं कैसे कह सकिा हार कक िैं हार? क कािना पैदा होिी है और कािना के साथ यह भाव पैदा होिा है कक िैं हार। क दवचार उठिा है और दवचार के साथ यह भाव उठिा है कक िैं हार। इसे अपने अनुभव िें ही दे खो; कािना के पहले और जानने के पहले अहर कार नहीर है ।
िौन बैठो और भीिर दे खो।
क दवचार उठिा है । और िुि उस दवचार के साथ िादात्म्य कर लेिे हो।
क
कािना पैदा होिी है और िुि उस कािना के साथ िादात्म्य कर लेिे हो। िादात्म्य िें िुि अहर कार बन जािे हो। कफर जरा सोचो: कोच कािना नही है । कोच ज्ञान नहीर है । कोच दवचार नहीर है —िुम्हारा ककसी के साथ िादात्म्य नहीर हो सकिा है । अहर कार खड़ा नहीर हो सकिा। बुध स ने इस दवतध का उपयो
ककया है । और उन्हगेने अपने मशष्यगे से कहा कक और कुछ िि करो,मसफय इिना ही
करो कक जब कोच दवचार उठे िो उसे दे खो। बुध स कहा करिे थे कक जब कोच दवचार उठे िो दे खो कक यह दवचार
उठ रहा है । अपने भीिर ही दे खो कक अब दवचार उठ रहा है , अब दवचार है । अब दवचार दवदा हो रहा है । बस दे खिे भर रहो। कक अब दवचार उठ रहा है । अब दवचार पैदा हो रहा है । अब दवचार दवलीन हो रहा है । ऐसा दे खने से िादात्म्य नहीर होिा। यह दवतध सुरदर है और बहुि सरल है । क दवचार उठिा है । िुि सड़क पर चल रहे हो, क सुरदर कार ुजरिी है और िुि उसे दे खिे हो। और िुिने अभी दे खा भी नहीर कक उसे पाने की कािना पैदा हो जािी है । इस पर प्रयो
करो। आरर भ िें धीिे शदगे िें कहो, धीरे से कहो कक िैं कार दे खिा हार, कार सुरदर है और उसे पाने की कािना पैदा हो रही है । पारी ि ना को शक्दक रूप दो।
शुरू-शुरू िें शाक्दक रूप दे ना अछा है । अ र िुि इसे जोर से कह सको िो और भी अछा है । जोर से कहो
कक ‘िैं दे ख रहा हार कक क कार ज ु री है और िन कहिा है कक कार सरुदर है और अब कािना उठी है कक यह कार प्राि करके रहार ा।’ सब कुछ शदगे िें कहो, स्तवयर से ही कहो और जोर से कहो; और िुररि िुम्हें अहसास हो ा कक िैं इस परा ी प्रकक्रया से अल
हार।
पहले दे खो, िन ही िन िें कािना के उठने को दे खो। और जब िुि दे खने िें तनष्णाि हो जाग िब जोर से कहने की जरूरि नहीर है । िब िन ही िन दे खो कक
क कािना पैदा हुच है । क सुरदर स्तत्री ज ु रिी है । और कािवासना उठिी है । उसे िन ही िन ऐसे दे खो जैसे कक िुम्हें उससे कुछ लेना दे ना नहीर है । िुि मसफय ि ि होने वाल िथ्य को दे ख भर रहे हो। और िुि अचानक अनुभव करो े कक िैं इससे बाहर हार। बुध स कहिे है कक जो भी हो रहा है , उसे दे खो; और जब वह दवदा हो जा हो
च है । और िुि उस दवचार से, उस कािना से
िो उसे भी दे खो कक अब कािना दवदा
क दरा ी, क पथ ृ किा अनुभव करो े।
यह दवतध कहिी है : ‘कािना के पहले गर जानने के पहले के पहले िैं कैसे कह सकिा हार कक िैं हार?’ अ र कोच कािना नहीर है, कोच दवचार नहीर है । िो िुि कैसे कह सकिे हो कक िैं हार? िैं कैसे कह सकिा हार कक िैं हार? िब सब कुछ िौन है, शारि है ; क लहर भी िो नहीर है । और लहर के लबना िैं ‘िैं’ का ्ि कैसे तनमियि कर सकिा हार? अ र कोच लहर हो िो िैं उससे आसि हो सकिा हार और उसके िायिसे िें अनुभव कर सकिा हार कक िैं हार। जब चेिना िें कोच लहर नहीर है िो कोच ‘िैं’नहीर है । िो कािना के उठने से पहले स्तिरण रखो, जब कािना आ जा
िो स्तिरण रखो, और जब कािना दवदा हो जा
िो भी स्तिरण रखो। जब कोच दवचार उठे िो स्तिरण रखो, उसे दे खो। मसफय दे खो कक दवचार उठा है । दे र अबेर वह दवदा हो जा
ा। यगेकक सब कुछ क्षलणक है । और बीच िें
क अरिराल हो ा। दो दवचारगे के बीच िें खाली
ज ह है । दो कािनागर के बीच िें अरिराल है । और उस अरिराल िें , उस खाली ज ह िें ‘िैं’नहीर है । िन िें चलिे दवचार को दे खो और िुि पाग े कक वहार है । कफर दस ा रा दवचार आिा है और कफर
क अरिराल भी है चाहे वह ककिना ही छो ा हो, अरिराल
क अरिराल। उन अरिरालगे िें ‘िैं’ नहीर। और वे अरिराल ही िुम्हारा
असली होना है । िुम्हारा अक्स्तित्व है । आकाश िें दवचार के बादल चल रहे है । दो बादलगे के अरिराल को दे खो और आकाश प्रक
हो जा
ा।
‘दविशय करो। सौंदयय िें दवलीन हो जाग।’
दविशय करो कक कािना पैदा हुच और कािना दवदा हो च—और िैं उसके अरिराल िें हार और कािना ने िुझे अशारि नहीर ककया है । दविशय करो कक कािना आच, कािना च, वह थी और अब नहीर है । और िैं अनुवादवग्न रहा
हार। वैसा ही रहा हार जैसा पहले था; िुझिें कोच बदलाह नहीर हुच है । दविशय करो कक कािना छाया की भारति आच और चली च। उसने िुझे स्तपशय भी नहीर ककया। िैं अछािा रह या। इस कािना की तिदवतध के प्रति, इस दवचार की हलचल के प्रति दविशय से भरगे। और अपने भीिर की अ ति के प्रति भी, ठहराव के प्रति भी दविशय पाणय होग। ‘दविशय करो। सौंदयय िें दवलीन हो जाग।’ और वह अरिराल सरुदर है; उस अरिराल िें डाब जाग। उस अरिराल िें डाब जाग। शान्य हो जाग। यह सौंदयय का
प्र ाढ़िि अनुभव है । और केवल सौंदयय का ही नहीर, शुभ और सत्य का भी प्र ाढ़िि अनुभव है। उस अरिराल िें िुि हो।
सारा यान भरे हु स्तथानगे से ह ाकर खाली स्तथानगे पर ल ाना है । िुि कोच ककिाब पढ़ रहे हो। उसिें शद है, उसिें वाय है । लेककन शदगे के बीच वायगे के बीच खाली स्तथान पर भी है । और उन खाली स्तथानगे िें िुि हो। का ज की जो शु्िा है, वह िुि हो; और जो काले अक्षर है वे िुम्हारे भीिर चलने वाले दवचार और कािना के बादल है । अपने पररप्रे्य को बदलगे; काले अक्षरगे को िि दे खो, शु्िा को दे खो।
अपने प्राणगे के अरिराल को दे खो। जो भरे हु स्तथान है, उनके प्रति उदासीन रहो; और अरिराल के प्रति, खाली आकाश के प्रति सावचेि बनो। और उस अरिराल के वावारा, उस आकाश के वावारा िुि परि सौंदयय िें दवलीन हो जाग े। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-55
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—84 (ओशो) अनासक्त—संबंिी पहली विधि: ‘शरीर के प्रतत आसक्त को दरू हटाओं और यह भाि करो कक िैं सिथत्र हूं। जो सिथत्र है िह आनंहदत है ।’ बहुि सी बािें सिझने जैसी है । ‘शरीर के प्रति आसक्ि को दरा ह ागर।’ शरीर के प्रति हिारी आसक्ि प्र ाढ़ है । वह अतनवायय है ; वह स्तवाभादवक है । िुि अनेक-अनेक जन्िगे से शरीर िें रहिे आ
है ; आ द काल से ही िुि शरीर िें हो। शरीर बदलिे रहे है । लेककन िुि सदा शरीर िें रहे हो। िुि
सदा सशरीर रहे हो।
ऐसे क्षण, ऐसे सिय भी रहे है जब िुि शरीर िें नहीर थे। लेककन िब िुि अचेिन थे, िातछयि थे। जब िुि िरिे हो, जब िुि िुम्हारा
क शरीर छोड़िे हो, िो िुि िाछाय की हालि िें िरिे हो और िुि िाक्छय ि ही रहिे हो। कफर
क न
शरीर िें जन्ि होिा है । लेककन उस सिय भी िुि िातछयि ही रहिे हो।
क ित्ृ यु और दस ा रे
जन्ि के बीच का अरिराल िाछाय िें बीििा है । इसमल
शरीर िें होने का; िुिने अपने को शरीर िें ही जाना है ।
िुम्हें हो िो िुम्हें
क ही बाि का पिा है और वह है
यह इिनी प्राचीन है , इिनी तनरर िर है , कक िुि भाल ही
हो कक िैं मभन्न हार। यह क दवस्तिरण है जो स्तवाभादवक है , अतनवायय है । और इसी कारण से आसक्ि है । िुम्हें ल िा है कक िैं शरीर हार; और यही आसक्ि है । िुम्हें ल िा है कक िैं शरीर के मसवाय कुछ भी नहीर हार, शरीर से अतधक कुछ भी नहीर है । शायद िुि िेरे साथ इस बाि पर सहिि न हो, यगेकक कच बार िुि सोचिे हो कक िैं शरीर नहीर हार। िैं आत्िा हार। लेककन यह िुम्हारा जानना नहीर है । यह बस िुिने सुना है । िुिने पढ़ा है । यह िुिने जाने लबना िान मलया है ।
िो पहला काि यह है कक िुम्हें इस िथ्य को स्तवीकार करना है कक वस्तिुि: िेरा जानना यही है कक िैं शरीर हार। अपने को धोखा िि दो; यगेकक धोखा दे ने से काि नहीर चले ा। अ र िुि सोचिे हो कक िैं पहले से ही जानिा हार कक िैं शरीर हार िो िुि शरीर के प्रति अपनी आसक्ि को दरा नहीर कर सकिे। यगेकक िम् ु हारे मल आसक्ि है ही नहीर। िुि जानिे ही हो। और िब अनेक क ठनाइयार उठ खड़ी हगे ी। क्जनका सिाधान नहीर हो सकिा। ककसी क ठनाच को आरर भ िें ही हल कर सकिे। हल करने के मल स्तिरण रहे , िुम्हें पहले यह भली भारति बोध होना चा ह हार। यह पहला बतु नयादी बोध है ।
िुम्हें कफर आरर भ पर लौ ना हो ा। िो यह
कक िैं नहीर जानिा कक िैं शरीर के अतिररि कुछ नहीर
यह बोध अभी िुम्हें नहीर है । िुिने जो कुछ सुना है उससे िुम्हारा िन भरा है और ्ारि है । िुम्हारा िन दस ा रगे से मिले ज्ञान से सरस्तकाररि है । यह ज्ञान उधार है । यह ज्ञान सचा नहीर है । ऐसा नहीर है कक यह
लि है ।
क्जन्हगेने कहा है उन्हगेने ऐसा जाना है । लेककन जब िक यह िुम्हारा अनुभव न हो जा , िब िक िुम्हारे मल
लि है । जब िैं कहिा हार कक कोच चीज लि है िो िेरा ििलब यह है कक यह िुम्हारा अपना अनुभव नहीर है । यह ककसी और के मल सच हो सकिा है । लेककन िुम्हारे मल सच नहीर है । और इस अथय िें सत्य वैयक्िक अनुभाति है । अनुभाि सत्य ही सत्य है । जो अनुभाि नहीर है वह सत्य नहीर है । कोच जा तिक सत्य नहीर होिा है । प्रत्येक सत्य को सत्य होने के मल
पहले वैयक्िक होना पड़िा है ।
िुि जानिे हो, िुिने सन ु ा है कक िैं शरीर नहीर हार—यह िुम्हारे ज्ञान का हस्तसा है, यह िुिने बाप दादगे से सुना है —लेककन यह िुम्हारा अनभ ु व नही है । पहले इस िथ्य का साक्षाि करो कक िैं अपने को शरीर की भारति ही
जानिा हार। यह साक्षात्कार िुम्हारे भीिर बड़ी बेचैनी पैदा करे ा। इस बेचैनी को तछपाने के मल ही िुिने यह ज्ञान इकट्ठा ककया था। िुि िाने रहिे हो कक िैं शरीर नहीर हार। और िुि शरीर की भारति रहे आिे हो। इससे िुि
दवभाक्जि हो जािे हो। इससे िम् ु हारा सारा जीवन अप्रािालणक हो जािा है । झाठ और नकली हो जािा है । वस्तिुि: यह तचि की रूग्ण अवस्तथा है, ्ारि अवस्तथा है । िुि जीिे हो शरीर की िरह और िुि बािें करिे हो आत्िा की िरह। और िब वावरवाव है । सरिनय है । िब िुि सिि
क आरिररक उपिव िें , क
हन अशारति िें जीिे हो।
क्जसका तनराकरण सरभव नहीर है।
िो पहले इस िथ्य को दे खो कक िैं आत्िा के सरबरध िें कुछ नहीर जानिा हार, िैं जो कुछ भी जनिा हार वह शरीर के सरबरध िें जानिा हार। इससे िुम्हारे भीिर क बड़ी बेचैनी की क्स्तथति पैदा हो ी। जो भी अरदर तछपा है वह उभर कर सिह पर आ
ा। इस िथ्य के साक्षात्कार से कक िैं शरीर हार। िुम्हें वस्तिुि: पसीना आने ल े ा। इस िथ्य का साक्षाि करके कक िैं शरीर हार, िुम्हें बहुि बेचैनी हो ी। िुि बहुि अजीब अनुभव करो े। लेककन इस अनुभव से
ुजरना ही हो ा; िो ही िुि जान सकिे हो कक शरीर के प्रति आसक्ि का या अथय है ।
ऐसे मशक्षक है जो कहे चले जािे है कक िुम्हें अपने शरीर से आसि नहीर होना चा ह । लेककन िुम्हें इस
बुतनयादी बाि का ही पिा नहीर है कक शरीर के प्रति यह आसक्ि या है । शरीर के प्रति आसक्ि शरीर के साथ प्र ाढ़ िादात्म्य है , लेककन पहले िुम्हें सिझना है कक यह िादात्म्य या है । िो अपने उस सारे ज्ञान को अल िरह जान लो कक िैं
ह ा दो क्जसने िुम्हें यह ्ारि धारणा दी है कक िुि आत्िा हो। यह अछी
क ही चीज को जानिा हार और शरीर है । कैसे यह बोध िुम्हारे भीिर तछपे हु िुम्हारे भीिर तछपे हु नरक को उभार कर ऊपर ले आिा है । उसे प्रत्यक्ष कर दे िा है ।
उपिव को,
जब िुम्हें बोध होिा है कक िैं शरीर हार िो पहली दफा िुम्हें आसक्ि का बोध होिा है । पहली दफा िुम्हारी चेिना िें इस िथ्य का बोध होिा है कक यह शरीर है —जो पैदा होिा है और िर जािा है । यहीर िैं हार। पहली
दफा िुम्हें इस िथ्य का बोध होिा है कक यह कािवासना, क्रोध—यही िैं हार। इस िरह सभी झठ ा ी प्रतििा र त र जािी है । िुि अपने सचाच िें प्रक हो जािे हो। यह सचाच दख ु द है , बहुि दख ु द है । यही कारण है कक हि उसे तछपािे रहिे है । यह
क
हरी चालाकी है । िुि
अपने को आत्िा को आत्िा िाने रहिे हो और जो भी िुम्हें नापसरद है उसे िुि शरीर पर थोप दे िे हो। िुि
कहिे हो कक कािवासना शरीर की है , और प्रेि िेरा। िुि कहिे हो कक लोभ और क्रोध शरीर का है और करूणा िेरी है । करूणा आत्िा की है और क्रुरिा की है । क्षिा आत्िा की है और क्रोध शरीर का है । जो भी िुम्हें और कुरूप िालाि पड़िा है । उसे िुि शरीर पर थोप दे िे हो। और जो भी िुम्हें
लि
लि और कुरूप िालाि पड़िा
है । उसे िुि शरीर पर थोप दे िे हो। और जो भी िुम्हें सुरदर िालाि पड़िा है । उसके साथ िुि अपना िादात्म्य बना लेिे हो। इस िरह िुि दवभाजन पैदा करिे हो।
यह दवभाजन िुम्हें जानने नहीर दे िा कक आसक्ि या है। और जब िक िुि यह नहीर जानिे कक आसक्ि या है और जब िक िुि उसके नरक से, उसकी पीड़ा से नहीर
ुजरिे हो, िब िक िुि उसे दरा नहीर ह ा सकिे। कैसे
दरा करो ?े िुि ककसी चीज को िभी दरा करो े जब वह रो मसध स हो, जब वह भारी बोझ मसध स हो। जब वह नरक मसध स हो। िभी िुि उसे अपने से अल
कर सकिे हो।
िुम्हारी आसक्ि अभी नरक नहीर मसध स हुच है । बुध स कुछ भी कहें , िहावीर कुछ भी कहें , वह अप्रासरत क है । वे कहे जा सकिे है कक आसक्ि नरक है । लेककन यह िुम्हारा भाव नहीर है । इसीमल िुि बार-बार पाछिे हो कक आसक्ि से कैसे छा ा जा । अनासि कैसे हुआ जाये। आसक्ि के पार कैसे हुआ जा । िुि यह ‘’कैसे’’ इसीमल पाछिे रहिे हो यगेकक िुम्हें नहीर िालाि है कक आसक्िया है। इधर िि ु जानिे हो कक आसक्ि या है िो िुि काद कर बाहर तनकल जाग ,े िभी िुि ‘कैसे’ नहीर पाछो े! अ र िुम्हारे िर िें आ
ल ी हो िो िुि ककसी से पाछने नहीर जाग ,े िुि ककसी
भी दे र नहीर करो े। िुि
ुरु की खोज भी नहीर करो े। िुि शास्तत्रगे से सलाह नहीर लो े। िुि यह जानने की
जाग े कक आ
ुरु के पास यह पाछने नहीर
से कैसे बचा जाये। अ र िर जल रहा हो िो िुि ित्क्षण बाहर तनकल जाग े। िुि
चेष् ा भी नहीर करो े कक तनकलने के उपाय या है, कक तनकलने के मल कक तनकलने के मल
क क्षण
ककन साधनगे को काि िें लाया जा ,
कौन सा वावार सही वावार है । ये चीजें अप्रासरत क है , जब िर धा-धा कर जल रहा हो।
जब िुि जानिे हो कक आसक्ि या है िो िुि यह जानिे हो कक िर जल रहा है । और िब िुि उसे अपने से दरा कर सकिे हो।
इस दवतध िें प्रवेश के पहले िुम्हें आत्िा सरबरधी उधार ज्ञान को ह ा दे ना हो ा, िाकक शरीर के प्रति आसक्ि अपनी सिग्रिा िें प्रक जा
हो सके। यह बहुि क ठन हो ा; उसका साक्षात्कार हरी तचरिा और सरिाप िें ले ा। यह आसान नहीर हो ा; क ठन हो ा, दष्ु कर हो ा। लेककन य द िुम्हें क बार उसका साक्षात्कार हो जा
िो िुि उसे दरा कर सकिे हो। और ‘’कैसे’’ पाछने की जरूरि नहीर है । यह लबलकुल ही आ उससे छलार
ल ाकर बाहर तनकल सकिे हो।
है, नरक है ; िुि
यह सात्र कहिा है : ‘शरीर के प्रति आसक्ि को दरा ह ागर और यह भाव करो कक िैं सवयत्र हार। जो सवयत्र है वह आनर दि है ।’ और क्जस क्षण िुि आसक्ि को दरा ह ाग े, िुम्हें बोध हो ा कक िैं सवयत्र हार। इस आसक्ि के कारण िम् ु हें िहसास होिा है कक िैं शरीर िें सीमिि हार। शरीर िुम्हें नहीर सीमिि करिा है , िुम्हारी आसक्ि िुम्हें सीमिि
करिी है । शरीर िुम्हारे और सत्य के बीच अवरोध नहीर तनमियि करिा है , उसके प्रति िुम्हारी आसक्ि अवरोध तनमियि करिी है ।
क बार िुि जान
कक आसक्ि नहीर है िो कफर िुम्हारा कोच शरीर भी नहीर है —अथवा सारा अक्स्तित्व
िुम्हारा शरीर बन जािा है । िुम्हारा शरीर सिग्र अक्स्तित्व का हस्तसा बन जािा है । िब वह पथ ृ क नहीर है । सच िो यह है कक िुम्हारा शरीर िुम्हारे पास आया हुआ तनक िि अक्स्तित्व है ; और कुछ नहीर। शरीर तनक िि अक्स्तित्व है । और वही कफर फैलिा जािा है । िुम्हारा शरीर अक्स्तित्व का तनक िि हस्तसा है और कफर सारा अक्स्तित्व फैलिा जािा है ।
क बार िुम्हारी आसक्ि
च कक िुम्हारे मल
शरीर न रहा। अथवा सिस्ति अक्स्तित्व
िुम्हारा शरीर बन जािा है । िब िुि सवयत्र हो, सब िरफ हो। शरीर िें िुि
क ज ह हो; शरीर के लबना िुि सवयत्र हो। शरीर िें िुि
क दवशेन स्तथान िें सीमिि हो; शरीर के
लबना िुि पर कोच सीिा न रही। यही कारण है कक क्जन्हगेने जाना है वे कहिे है कक शरीर कारा हृ है ।
दरअसल, शरीर कारा हृ नहीर है । आसक्ि कारा हृ है । जब िुम्हारी तन ाह शरीर पर ही सीमिि नहीर है िब िुि सवयत्र हो।
यह बाि बेिुकी िालाि पड़िी है। िन को, जो शरीर िें है , यह बाि बेिुकी िालाि पड़िी है । यह बाि पा लपन
जैसी ल िी है —कोच यक्ि सभी ज ह कैसे हो सकिा है । और वैसे ही बुध स पुरून को हिारा यह कहना कक िैं ‘यहार’ हार, पा लपन जैसा िालाि पड़िा है । िुि ककसी
क स्तथान िें कैसे हो सकिे हो? चेिना कोच स्तथान नहीर
लेिी है, इसीमल
अ र िुि आरखें बरद कर लो िो पिा ल ाने की चेष् ा करो कक शरीर िें ही कहार हार िो िुि है रान रह जाग ;े िुि नहीर खोज पाग े कक िैं कहा हार। अनेक धिय गर अनेक सरप्रदाय हु है जो कहिे है कक िुि नामभ िें हो। दस ा रे कहिे है िुि ्दय िें हो। कुछ कहिे है कक िुि मसर िें हो। कुछ कहिे है कक िुि इस चक्र िें हो और कुछ कहिे है कक उस चक्र िें हो। लेककन मशव कहिे है कक िुि कहीर नहीर हो। यही कारण है कक अ र िुि आरखें बरद कर लो और खोजने की कोमशश करो कक िैं कहार हार िो िुि कुछ नहीर बिा सकिे। िुि िो हो, लेककन िुम्हारे मल िुि बस हो। प्र ाढ़ नीरद िें भी िुम्हें शरीर का बोध नहीर रहिा है । िुि िो हो। सुबह जा हरी थी। बहुि आनरदपाणय थी। िुम्हें
क
कोच ‘कहार’ नहीर है ।
कर िुि कहो े कक नीरद बहुि हन आनरद का बोध था लेककन िुम्हें शरीर का बोध नहीर था। प्र ाढ़
तनिा िें िुि कहार होिे हो? और िरिे हो िो िुि कहार जािे हो? लो वह कहार जािा है ?
तनरर िर पछ ा िे है कक जब कोच िरिा है िो
लेककन यह प्रन तनरथयक है , िाढ़िा पाणय है । यह प्रन हिारे इस ्ि से ही उठिा है कक हि शरीर िें है । अ र हि िानिे है कक हि शरीर है िो कफर प्रन उठिा है कक िरने पर हि कहार जािे है ।
िुि कहीर नहीर जािे हो। जब िि ु िरिे हो िो िुि कहीर नहीर जािे हो। यही कारण है कक वे ‘तनवायण’ शद चुनिे हो। तनवायण का अथय है कक िुि कहीर नहीर हो। ज्योति के बझ ु ने को भी तनवायण कहिे है । िुि कह सकिे हो कक बझ ु ने के बाद ज्योति कहार है ? बध स ु कहें े कक यह कहीर नहीर है । ज्योति बस नहीर हो
च है । बध स ु नकारात्िक शद
चुनिे है : ‘कहीर नहीर।’ तनवायण का अथय है । जब िुि शरीर से बरधे नहीर हो िो िुि तनवायण िें हो, िुि कहीर नहीर हो। अ र िुि बुध स से पाछो े िो वे कहें े कक िुि नहीर हो। यही कारण है कक वे ‘तनवायण’ शद चुनिे है । तनवायण का अथय है कक िुि कहीर नहीर हो। ज्योति के बुझने को भी तनवायण कहिे है । िुि कह सकिे हो कक बुझने के बाद ज्योति कहार है । बुध स कहें े कक वह कहीर नहीर है । ज्योति बस नहीर हो
च है । बुध स नकारात्िक शद चुनिे है ।
‘कहीर नहीर।’ तनवायण का वहीर अथय है । जब िुि शरीर से बरधे नहीर हो िो िुि तनवायण िें हो, िुि कहीर नहीर हो। मशव दवधायक शद चुनिे है; वे कहिे है कक िुि सब कहीर हो। लेककन दोनगे शद िुि सब कहीर हो िो िुि कहीर
क ही अथय रखिे है । अ र
क ज ह नहीर हाँ सकिे। िुि सब कहीर हो, यह कहना करीब-करीब वैसा ही है
जैसा वह कहना कक िुि कहीर नहीर हो। लेककन शरीर से हि आसि है और हिें ल िा है कक हि बरधे है । यह बरधन िानमसक है ; यह िुम्हारी अपनी करनी है । िुि अपने को ककसी भी चीज के साथ बाँध सकिे हो। िुम्हारे पास
क कीििी हीरा है , और िुम्हारे प्राण उसिें अ के हो सकिे है । य द वह हीरा चोरी हो जा
आत्िहत्या कर सकिे हो। िुि पा ल हो सकिे हो। या करण है ? बहुि लो
िो िुि
है क्जनके पास हीरा नही है । उनिें
से कोच भी आत्िहत्या नहीर कर सकिा है। ककसी को हीरे के लबना कोच क ठनाच नहीर हो रही है। लेककन िुम्हें या हुआ है ?
कभी िुि भी हीरे के लबना थे और कोच सिस्तया नहीर थी। अब िुि कफर हीरे के बीना हो, लेककन अब सिस्तया
है । यह सिस्तया कैसे तनमियि होिी है ? यह िुम्हारी अपनी करनी है । अब िुि आसि हो, बरधे हो। हीरा िुम्हारा शरीर बन
या है ; अब िुि इसके लबना नहीर रह सकि। अब इसके लबना िुम्हारा जीना असरभव है ।
जहार भी िुि आसि होिे हो, नया कारा हृ बन जािा है । और हि जीवन िें यहीर करिे है; हि तनरर िर और-और कारा हृ बनािे जािे है । बड़े से बड़े कारा हृ बनािे रहिे है । और कफर हि उन कारा हृ गे को सजािे है । िाकक वे िर िालाि पड़ें और कफर हि भाल ही जािे है कक वे कारा हृ है ।
यह सात्र कहिा है कक अ र िुि शरीर से अपनी आसक्ि को दरा कर सको िो यह बोध ि ि हो ा कक िैं
सवयत्र हार,सब कहीर हार। िब िुि बारद न रहे , सा र हो ; िब िुम्हें सा र होने का भाव होिा है । अब िुम्हारी चेिना ककसी स्तथान से नहीर बरधी है ; वह स्तथान िुि है । िुि लबलकुल आकाश के सािन हो जािे हो। जो सबको िेरे हु
है । अब सबकुछ िुििें है —िुम्हारी चेिना अनरि िक फैल
और कफर सात्र कहिा है : ‘जो सवयत्र है वह आनर दि है ।’
च है ।
क ज ह से बरधे रह कर िुि दुःु ख िें रहो े यगेकक िुि सदा उससे बड़े हो जहार िुि बरधे हो। यही दुःु ख है ।
िानगे िुि अपने को
क छो े -से पात्र िें सीमिि कर रहे हो। सा र को
क िड़े िें बरद ककया जा रहा है । दुःु ख
अतनवायय है । यही दुःु ख है । और जब भी इस दुःु ख की अनुभाति हुच है , बुध सत्व की खोज, ब्रह्ि की खोज शुरू हो जािी है ।
ब्रह्ि का अथय है अनरि, असीि फैलाव। और िोक्ष की खोज स्तविरत्रिा की खोज है । सीमिि शरीर िें िुि स्तविरत्र नहीर हो सकिे हो।
क स्तथान िें िुि बरध जािे हो। कहीर नहीर या सब कहीर िें ही िुि स्तविरत्र हो सकिे हो।
िनुष्य के िन को दे खो। वह सदा स्तविरत्रिा खोज रहा है —उसकी दशा चाहे जो भी हो। दशा राजनीतिक हो
सकिी है, सािाक्जक हो सकिी है , िानमसक हो सकिी है , धामियक हो सकिी है । दशा जो भी हो, िनुष्य का िन स्तविरत्रिा की खोज कर रहा है । स्तविरत्रिा िनुष्य की िन को अवरोध मिलिा है , जहार भी उसे
हनत्ि आवयकिा िालाि पड़िी है । जहार भी िनुष्य के
ल ु ािी का बरधन का अहसास होिा है, वह उसके दवरूध स लड़िा है ।
िनुष्य का सारा इतिहास स्तविरत्रिा के युध स का इतिहास है । आयाि मभन्न हो सकिे है । िारस और लेतनन आतथयक स्तविरत्रिा के मल हजारगे िरह की
लड़िे है ।
ारधी और अब्राहि मलरकन राजनीतिक स्तविरत्रिा के मल
ुलामियार है , और सरिनय जारी है । लेककन
क बाि तनक्चि है कक कहीर
और-और स्तविरत्रिा की खोज कर रहा है ।
लड़िे है । और
हरे िें िनुष्य तनरर िर
मशव कहिे है —और यही बाि सभी धिय कहिे है—कक िुि राजनीतिक िल पर स्तविरत्र हो सकिे हो, लेककन सरिनय सिाि नहीर हो ा।
क िरह की
रूप से स्तविरत्र हो े िो िुम्हें अनय िुि अन्य
ुलामियार के प्रति सज
ुलािी ह
जा
ी लेककन और िरह की
ुलामियगे का बोध हो ा। आतथयक
ुलामियार है । जब िुि राजनीतिक
ुलािी सिाि हो सकिी है । लेककन िब
हो जाग ;े यौन और शरीर के िल पर जो
ुलामियार है उनके प्रति सज
हो
जाग े। यह सरिनय िब िक नहीर खत्ि हो ा जब िक िुि यह नहीर अनुभव करिे,यह नहीर जानिे कक िैं सवयत्र हार। क्जस क्षण िुम्हें प्रिीि होिा है कक िैं सवयत्र हार, कक िैं सब ज ह हार, िो स्तविरत्रिा प्राि हुच।
यह स्तविरत्रिा राजनीतिक नहीर है , यह स्तविरत्रिा आतथयक नहीर है , यह स्तविरत्रिा सािाक्जक नहीर है । यह स्तविरत्रिा अक्स्तित्व ि है । यह स्तविरत्रिा सिग्र है । इसीमल
हिने उसे िोक्ष कहा है —सिग्र स्तविरत्रिा। और िुि िभी
आनर दि हो सकिे हो। हनय या आनरद िभी सरभव है जब िुि पारी िरह स्तविरत्र हो। सच िो यह है कक पारी िरह स्तविरत्र होना ही आनरद है । आनरद पररणाि नहीर है । स्तविरत्रिा की ि ना ही आनरद है । जब िुि पारी िरह स्तविरत्र हो िो िुि आनर दि हो।
यह आनरद पररणाि की िरह नहीर ि ि हो रहा है । स्तविरत्रिा ही आनरद है , ुलािी दुःु ख है । सरिाप है । क्जस क्षण िुि ककसी सीिा िें बरधा अनुभव करिे हो उसी क्षण िुि दुःु ख िें पड़ जािे हो। जहार-जहार भी िुि सीमिि
अनुभव करिे हो वहार-वहार िुि दुःु ख अनुभव करिे हो। और जब िुि असीि-अनरि अनुभव करिे हो, दुःु ख दवलीन हो जािा है ।
िो बरधन दुःु ख है और िुक्ि आनरद है । जब भी िुम्हें इस स्तविरत्रिा का अनुभव होिा है । िुम्हें आनरद ि ि होिा है । अभी भी जब िुम्हें ककसी िरह की स्तविरत्रिा का अनुभव होिा है, चाहे वह सिग्र न भी हो, िो िुि प्रसन्न हो जािे हो। जब िुि ककसी के प्रेि िें पड़िे हो, िुि पर होिा है?
क खुशी, क आनरद बरस जािा है। यह यगे
असल िें जब भी िुि ककसी के प्रेि िें पड़िे हो िो िुि शरीर के प्रति अपनी आसक्ि को दरा ह ा दे िे हो। ककसी
हरे अथय िें अब दस ा रे का शरीर भी िुम्हारा अपना शरीर हो
नहीर हो, दस ा रे का शरीर भी िुम्हारा आवास बन अब िुि दस ा रे िें
या है । िर बन
ति कर सकिे हो और दस ा रे िुििें
या है । िुि अब अपने शरीर िें ही सीमिि
या है । िुम्हें थोड़ी स्तविरत्रिा िहसास होिी है ।
ति कर सकिे है ।
क अथय िें
क अवरोध त र
या;
अब िुि पहले से ज्यादा हो।
जब िुि ककसी को प्रेि करिे हो िो िुि पहले से बहुि ज्यादा हो जािे हो। िुम्हारा होना थोड़ा फैला, थोड़ा दवरा हुआ। िुम्हारी चेिना अब पहले कक िरह क्षुि न रही; उसने नया दवस्तिार पा मलया है । प्रेि िें िुि थोड़ी स्तविरत्रिा का अनुभव होिा है । हालारकक यह सिग्र नहीर है । और दे र-अबेर िुि कफर बरधन अनुभव करो े। िुम्हें दवस्तिार िो मिला, लेककन यह दवस्तिार अभी भी सीमिि है । इसीमल
जो लो
वस्तिुि: प्रेि करिे है वे दे र-अबेर प्राथयना िें उिर जािे है । प्राथयना का अथय है ,वहृ द प्रेि। प्राथयना
का अथय है परा े आक्स्तित्व के साथ प्रेि। अब िुम्हें रहस्तय का पिा चल चल
या। कक िैंने
दरवाजे खुल अब िुम्हें
या। िुम्हें करु जी का, ुि करु जी का पिा
क यक्ि को प्रेि ककया गर क्जस क्षण िैंने प्रेि ककया, सारे अवरोध त र
और कि से कि
। सारे
क यक्ि के मल
िेरा होना दवस्तिि ृ हुआ। िेरे प्राणगे का दवस्तिार हुआ। ु ि करु जी िालाि है कक अ र िैं परा े -अक्स्तित्व को प्रेि करने ल ा िो िैं शरीर नहीर रहार ा।
प्र ाढ़ प्रेि िें िुि शरीर नहीर रह जािे हो। जब िुि ककसी के प्रेि िें होिे हो िो िुि अपने को शरीर नहीर
सिझिे हो। िो जब िुम्हें प्रेि नहीर मिलिा है , जब िुि प्रेि िें नहीर होिे हो, िब िुि अपने को शरीर ज्यादा
अनुभव करिे हो। िब िुम्हें अपने शरीर का याल ज्यादा रहिा है । िब िुम्हारा शरीर बोझ बन जािा है । क्जसे
िुि ककसी िरह ढोिे हो। जब िुम्हें प्रेि मिलिा है , शरीर तनभायर हो जािा है । जब िुम्हें प्रेि मिलिा है और िुि प्रेि िें होिे हो िो िुम्हें ऐसा नहीर ल िा कक उड़ सकिे हो।
ुरूत्वाकनयण को कोच प्रभाव है । िुि नाच सकिे हो, िुि वस्तिुि:
क अथय िें शरीर नहीर रहा—लेककन सीमिि अथय िें ही। वही बाि
क
हरे अथय िें िब ि िी है ।
जब िुि सिग्र अक्स्तित्व के साथ प्रेि िें होिे हो। प्रेि िें िुम्हें आनरद मिलिा है । आनरद सुख नहीर है । स्तिरण रहे , आनरद सुख नहीर है । सुख इर ियगे के वावारा
मिलिा है । आनरद इर िय ि नहीर है , वह अिीर िय अवस्तथा िें प्राि होिा है । सुख िुम्हें शरीर से मिलिा है । आनरद िब मिलिा है जब िुि शरीर नहीर होिे हो। जब क्षण भर के मल
शरीर दवलीन हो
या है और िुि िात्र
चेिना हो िो िुम्हें आनरद प्राि होिा है । और जब िुि शरीर हो िो िुम्हें केवल सुख मिल सकिा है । वह सदा शरीर से मिलिा है । शरीर से दुःु ख सरभव है , सुख सरभव है , लेककन आनरद िभी सरभव है जब िि ु शरीर नहीर हो।
आनरद कभी-कभी अचानक और आकक्स्तिक रूप से भी ि ि होिा है । िुि सर ीि सुन रहे हो और अचानक सब कुछ खो जािा है । िुि सर ीि िें इिने िल्लीन हो कक िुम्हें अपने शरीर की सुख भाल हो; िुि सर ीि के साथ
क हो
वाला और सुना जाने वाला, सर ीि
हो। िुि इिने
क हो
क हो
च। िुि सर ीि िें डाब
ये हो कक कोच सुननेवाला बचा ही नहीर; सुनने
है । मसफय सर ीि बचा है ; िुि नहीर बचे। िुि दवस्तिि ृ हो
, फैल
ये। िौन िें दवलीन हो रहे है और िुि भी उनके साथ िौन िें दवलीन हो रहे हो। शरीर की सुतध जािी रही।
और जब भी शरीर की सुतध नहीर रहिी। शरीर अनजाने ही, अचेिन रूप से दरा ह ि ि होिा है । िरत्र और यो
जािा है । और िुम्हें आनरद
के वावारा िुि यही चीज दवतधपावक य कर सकिे हो। िब वह आकक्स्तिक नहीर है; िब िुि उसके
िामलक हो। िब यह चीज िुम्हें अनजाने नहीर ि िी है ; िब िुम्हारे हाथ िें करु जी है और िुि जब चाहो वावार
खोल सकिे हो—या िि ु चाहो िो वावार हिेशा के मल कफर बरद करने की जरूरि नहीर रही।
खोल सकिे हो और करु जी को फेंक सकिे हो। वावार को
सािान्य जीवन िें भी आनरद ि िी होिा है ; लेककन वह कैसे ि िा है , यह िुम्हें नहीर िालाि। स्तिरण रहे , यह
सदा िभी ि िा है जब िुि शरीर नहीर होिे हो। िो जब भी िुम्हें पुन: ककसी आनरद के क्षण का अनुभव हो िो सज
होकर दे खना कक उस क्षण िें िुि शरीर हो या नहीर। िुि शरीर नहीर हो े। जब भी आनरद है , शरीर नहीर
है । ऐसा नहीर कक शरीर नहीर रहिा है । शरीर िो रहिा है , लेककन िुि शरीर से आसि नहीर हो। िुि शरीर से बरधे नहीर हो। िुि उससे बाहर तनकल सायतदय को दे खकर बाहर तनकल होने के कारण शरी से बाहर आ लेककन दरा हो
। या
हो। हो सकिा है , सर ीि के कारण िुि बाहर तनकल क बचे को हर सिे दे खकर बाहर तनकल
—कारण जो भी हो,ि र िुि क्षण भर के मल
। िुि उससे आसि नही हो। िुिने
, या खाब सारि
। या ककसी के प्रेि िें
बाहर आ
। शरीर िो है ,
क उड़ान ली।
इस दवतध के वावारा िुि जानिे हो कक जो सवयत्र है वह दख ु ी नहीर हो सकिा; वह आनर दि है । वह आनरद है । िो स्तिरण रहे , िुि क्जिने सीमिि हो े उिने ही दुःु खी हो े। फैलो, अपनी सीिागर को दरा ह ागर। और जब भी सरभव हो, शरीर को अल
ह ा दो। िुि आकाश को दे खो, बादल िैर रहे है , उन बादलगे के साथ िेरो, शरीर को
जिीन पर ही रहने दो। और आकाश िें चाँद है , चाँद के साथ यात्रा करो। जब भी िुि शरीर को भाल सको, उस अवसर को िि चाको, यात्रा पर तनकल पड़ो। और िुि धीरे -धीरे पररतचि हो जाग े कक शरीर से बाहर होने का या ििलब है ।
और यह मसफय अवधान की बाि है । आसक्ि अवधान दे ने की बाि है । अ र िुि शरीर को अवधान दे िे हो िो िुि उससे आसि हो। अ र अवधान ह ा मलया जा उदाहरण के मल
िो िुि आसि नहीर रहे ।
िुि खेल के िैदान िें खेल रहे हो। िुि हाकी या बाली-बाल खेल रहे हो। या कोच और खेल
रहे हो। िुि खेल िें इिने िल्लीन हो कक िुम्हारा अवधान शरीर पर नहीर है । िुम्हारे पैर पर चो
ल
च है
और खान बह रहा है ; लेककन िुम्हें उसका पिा नहीर है । ददय भी है , लेककन िुि वहार नही हो। खान बह रहा है । लेककन िुि शरीर के बाहर हो। िुम्हारी चेिना, िुम्हारा अवधान
ें द के साथ दौड़ रहा है ।
ें द के साथ भा
है । िुम्हारा अवधान कहीर और है। लेककन जैसे ही खेल सिाक्ि होिा है । िुि अचानक शरीर िें लौ
रहा
आिे हो
और दे खिे हो कक खान बह रहा है । पीड़ा हो रही है । और िुम्हें आचयय होिा है कक यह कैसे हुआ। कब हुआ और कैसे िुम्हें इसका बोध नहीर हुआ। शरीर िें रहने के मल
िुम्हें अवधान की जरूरि है । यह स्तिरण रहे ,जहार भी िुम्हारा अवधान है िुि वही हो।
अ र िुम्हारा अवधान फाल िें है िो िुि फाल िें हो। और अ र िुम्हारा अवधान धन िें हो िो िुि धन िें हो। िुम्हारा अवधान ही िुम्हारा होना है । और अ र िुम्हारा अवधान कहीर नहीर है िो िुि सब कहीर हो।
यान की पारी प्रकक्रया चेिना की उस अवस्तथा िें होना है जहार िुम्हारा अवधान कहीर नहीर हो, जहार िुम्हारे
अवधान का कोच दवनय न हो, कोच ल्य न हो। जब कोच दवनय नहीर है । कोच शरीर नहीर है । िुम्हारा अवधान
ही शरीर का तनिायण करिा है । िुम्हारा अवधान ही िुम्हारा शरीर है । और जब अवधान कहीर नहीर है िो िुि सब कहीर हो। और िब िुम्हें आनरद ि ि होिा है । वह कहना भी ठीक नहीर है कक िुम्हें आनरद ि ि होिा है । िुि ही आनरद हो। अब यह िुिसे अल स्तविरत्रिा आनरद है । इसीमल
नहीर हो सकिा। यह िुम्हारा प्राण ही बन
स्तविरत्रिा की इिनी अभीसा है, इिनी खोज है ।
या है ।
ओशो
दवज्ञान भैरव िरत्र, भा -चार प्रवचन-57
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—85 (ओशो) अनासक्त—संबंिी दस ू री विधि:
‘ना-कुछ का दवचार करने से सीमिि आत्िा असीि हो जािी है ।’
‘ना-कुछ का विचार करने से सीमित आत्िा असीि हो जाती है।’
िैं यहीर कह रहा था। अ र िुम्हारे अवधान का कोच दवनय नहीर है , कोच ल्य नहीर है , िो िुि कहीर नहीर हो, या िुि सब कहीर हो। और िब िुि स्तविरत्र हो िुि स्तविरत्रिा ही हो
हो।
यह दस ा रा सात्र कहिा है : ‘ना कुछ का दवचार करने से सीमिि आत्िा असीि हो जािी है ।’ अ र िुि सोच दवचार नहीर कर रहे हो िो िुि असीि हो। दवचार िुम्हें सीिा दे िा है । और सीिा र अनेक िरह की है । िुि हरद ा हो, यह
क सीिा है । हरद ा होना ककसी दवचार से, ककसी यवस्तथा से, ककसी ढर
होना है । िुि चसाच हो, यह भी
ढारचे से बरधा
क सीिा है । धामियक आदिी कभी भी हरद ा या चसाच नहीर हो सकिा। और अ र
कोच आदिी हरद ा या चसाच है िो वह धामियक नहीर है । असरभव है । यगेकक ये सब लबचार है । धामियक आदिी का अथय है कक वह दवचार से नहीर बरधा है । वह ककसी दवचार से सीमिि नहीर है । वह ककसी यवस्तथा से, ककसी ढर ढारचे से नहीर बरधा है । वह िन की सीिा िें नहीर जीिा है —वह असीि िें जीिा है । जब िुम्हारा कोच दवचार है िो वह दवचार िुम्हारा अवरोध बन जािा है । वह दवचार सुरदर हो सकिा है । लेककन
कफर भी वह बरधन है । सुरदर कारा हृ भी कारा हृ ही है । दवचार स्तवलणयि हो सकिा है , उससे कोच फकय नहीर पड़िा; स्तवलणयि दवचार भी िो उिना ही बाँधिा है ,क्जिना कोच और दवचार बाँधिा है । और जब िुम्हारा कोच दवचार है , और िुि उससे आसि हो िो िुि सदा ककसी के दवरोध िें हो। यगे कक सीिा हो ही नहीर सकिी, य द िुि ककसी के दवरोध िें नहीर हो। दवचार सदा पावायग्रह ग्रस्ति होिा है । दवचार सदा पक्ष या दवपक्ष िें होिा है । िैंने
क बहुि धामियक चसाच के सरबरध िें साना है , जो कक क रीब ककसान था। वह मित्र सिाज का सदस्तय था। वह वेकर था। वेकर लो अ हरसक होिे है । वे प्रेि और िैत्री िें दववास करिे है । वह वेकर अपनी खचर
ाड़ी पर बैठकर शहर से
ारव वापस आ रहा था।
क ज ह खचर अचानक लबना ककसी कारण के रूक
या और आ े बढ़ने से इनकार करने ल ा। उसने खचर को चसाच ढर
से, िैत्रीपण ा य ढर
से, अ हरसक ढर
से
फुसलाने की कोमशश की। वह वेकर था, वह खचर को िार नहीर सकिा था। उसे कठोर वचन नहीर कह सकिा था। उसे डार -फ कार या
ाली भी नहीर दे सकिा था। लेककन वह
ुस्तसे से भरा था।
लेककन खचर को िारा कैसे जा र। वह उसे िारना चाहिा था। िो उसने खचर से कहा: ‘ठीक से आचरण करो। िैं वेकर हार, इस मल िैं िुम्हें िार नहीर सकिा हार,लेककन स्तिरण रहे ऐ खचर, कक िैं िुम्हें ककसी ऐसे आदिी के हाथ बेच िो सकिा हार जो चसाच न हो।’ चसाच की अपनी दता नया है और
ैर-चसाच उसके बाहर है । कोच चसाच यह सोच भी नहीर सकिा कक कोच
ैर -
चसाच चवर के राज्य िें प्रवेश पा सकिा है । वैसे ही कोच हरद ा या जैन यह नहीर सोच सकिा कक उनके अलावा कोच दस ा रा आनरद के ज ि िें प्रवेश पा सकिा है ।
दवचार सीिा बनिा है । अवरोध खड़े करिा है ; और जो लो
पक्ष िें नहीर है उन्हें दवरोधी िान मलया जािा है । जो
िेरे साथ सहिि नहीर है वे िेरे दवरोध िें है । कफर िुि सब कहीर कैसे हो सकिे हो। िुि चसाच के साथ हो सकिे हो; िुि
ैर चसाच के साथ नहीर हो सकिे। िुि हरद ा के साथ हो सकिे हो; लेककन िुि
ैर हरद ा के साथ,
िुसलिान के साथ नहीर हो सकिे। दवचार को ककसी न ककसी के दवरोध िें होना पड़िा है । चाहे वह ककसी
यक्ि के दवरोध िें हो या ककसी वस्तिु के। वह सिग्र नहीर हो सकिा है । स्तिरण रहे , दवचार कभी सिग्र नहीर हो सकिा; केवल तनदवयचार ही सिग्र हो सकिा है ।
दस ा री बाि कक दवचार िन से आिा है । वह सदा िन की उप-उत्पिी है । दवचार िुम्हारा रुझान है , िुम्हारा
अनुिान है । पावायग्रह है । दवचार िुम्हारी प्रतिकक्रया है । िुम्हारा मसध सारि है । िुम्हारी धारणा है , िुम्हारी िान्यिा है । लेककन दवचार अक्स्तित्व नहीर है । वह अक्स्तित्व के सरबरध िें है । वह स्तवयर अक्स्तित्व नहीर है । क फाल है । िुि उस फाल के सरबरध िें कुछ कह सकिे हो। वह कहना
क प्रतिकक्रया है । िुि कह सकिे हो कक
फाल सुरदर है , कक असुरदर है । िुि कह सकिे हो कक फाल पदवत्र है । लेककन िुि फाल के सरबरध िें जो भी कहिे हो वह फाल नहीर है । फाल का होना िुम्हारे दवचारगे के लबना है । और िुि फाल के सरबरध िें जो भी सोच दवचार करिे हो उससे िुि अपने गर फाल के बीच अवरोध तनमियि कर रहे हो। फाल को होने के मल
जरूरि नहीर है । फाल बस है । अपने दवचारगे को छोड़ो और िब िुि फाल िें डाब सकिे हो।
िुम्हारे दवचारगे की
यह सात्र कहिा है : ‘ना-कुछ का दवचार करने से सीमिि आत्िा असीि हो जािी है ।’ अ र िुि सोच दवचार िें उलझे नहीर हो, अ र िुि मसफय हो, पारे सज लबना हो, िो िुि असीि हो। यह शरीर ही
किात्र शरीर नहीर है ; क
और सावचेि हो, दवचार के ककसी धु ँ के
हन िर शरीर भी है । वह िन है । शरीर पदाथय से बना है । िन भी
पदाथय से बना है ; वह और सा्ि से बना है । शरीर बाहरी पिय है और िन आरिररक पिय है । और शरीर से
अनासि होना बहुि क ठन नहीर है । िन से अनासि होना बहुि क ठन है । यगेकक िन के साथ िुम्हारा िादात्म्य ज्यादा हरा है । िुि िन से ज्यादा जुड़े हो। अ र कोच िुिसे कहे कक िुम्हारा शरीर रूग्ण िालि ा होिा है िो िुम्हें पीड़ा नहीर होिी है । िि ु शरीर से उिने
आसि नहीर हो; वह िुिसे जरा दरा ी पर िालाि पड़िा है । लेककन अ र कोच िुिसे कहे कक िम् ु हारा िन रूग्ण
है । अस्तवस्तथ िालाि होिा है । िो िुम्हें पीड़ा होिी है । उसने िुम्हारा अपिान कर दया। िन से िुि अपने को ज्यादा तनक
अनुभव करिे हो। अ र कोच आदिी िुम्हारे शरीर के सरबरध िें कुछ बुरा कहे िो िुि उसे बरदाि
करना असरभव हो ा। यगेकक उसने
हरे िें चो
कर दी।
िन शरीर की भीिरी पिय है । िन और शरीर दो नहीर है । िुम्हारे शरीर की बाहरी पिय शरीर है । और भीिरी पिय िन है । ऐसा सिझो कक िुम्हारा
क िर है ; िुि उस िर को बाहर से दे ख सकिे हो और िुि उस िर को भीिर
से दे ख सकिे हो। बाहर से दीवारगे की बाहरी पिय दखाच पड़े ी; भीिर से भीिरी पिय दखाच पड़े ी। िन िुम्हारी आरिररक पिय है । वह िुम्हारे ज्यादा तनक
है । लेककन कफर भी वह शरीर ही है ।
ित्ृ यु िें िुम्हारा बाहरी शरीर त र जािा है । लेककन उसका भीिरी सा्ि पिय को िुि अपने साथ ले जािे हो।
िुि उससे इिने आसि हो कक ित्ृ यु भी िुम्हें िुम्हारे िन िें पथ ृ क नहीर कर पािी। िन जारी रहिा है 1 यहीर
कारण है कक िुम्हारे दपछले जन्िगे को जाना जा सकिा है । िुि अभी भी अपने सभी अिीि के िनगे को अपने साथ मल
हु हो। वे सब के सब िुि िें िौजाद है । अ र िुि कभी कुत्िे थे िो कुत्िे का िन अब भी िुम्हारे भीिर है । अ र िुि कभी वक्ष ु न थे िो ृ थे िो वक्ष ृ का िन अब भी िुम्हारे साथ है । अ र िुि कभी स्तत्री या परू
वे तचि अब भी िुम्हारे भी िौजाद है । सारे के सारे तचि िुम्हारे पास है । िुि उनसे इिने बरधे हो कक िुि उनकी पकड़ को नहीर छोड़ सकिे।
ित्ृ यु िें बाह्ि दवलीन हो जािा है । लेककन आरिररक कायि रहिा है । वह आरिररक शरीर बहुि ही सा्ि पदाथय है । वस्तिुि: वह ऊजाय का स्तपरदन िात्र है —दवचार की िरर ें । िुि उन्हें अपने साथ मल चलिे रहिे हो। और िुि उन्हीर दवचार िरर गे के अनुरूप कफर न
शरीर िें प्रवेश करिे हो। िुि अपने दवचारगे के ढारचे के अनुकाल अपनी
कािनागर के अनुकाल अपने िन के अनुकाल अपने मल
नया शरीर तनमियि कर लेिे हो। िन िें उसका ला दप्रर ,
उसकी रूपरे खा िौजाद है । और उसके अनुरूप बाहरी पिय कफर बनिी है । िो पहला सात्र शरीर को अल िुम्हें िुम्हारे िन से अल
करने के मल
है । दस ा रा सात्र िन को अल
करने का है , आरिररक शरीर। ित्ृ यु भी
नहीर कर पािी; यह काि केवल यान कर सकिा है। यहीर कारण है कक यान ित्ृ यु
से भी बड़ी ित्ृ यु है ; वह ित्ृ यु से भी
हरी शल्य-तचककत्सा है । इसमल
यान से इिना भय होिा है । लो
यान
के बारे िें सिि बाि करें े लेककन वे यान कभी करें े नहीर। वे बाि करें े, वे उसके सरबरध िें मलखें े, वे उस पर उपदे श भी दें े;लेककन वे कभी यान करें े नहीर। यान से
क
हरा भय है । और वह भय ित्ृ यु का भय है ।
जो लो
यान करिे है वे ककसी न ककसी दन उस लबरद ा पर पहुरच जािे है जहार वे िबड़ा जािे है । जहार से वे पीछे लौ जािे है । वे िेरे पास आिे है , और कहिे है : ‘अब हि आ े प्रवेश नहीर कर सकिे; यह असरभव है ।’ क क्षण आिा है जब यक्ि को ल िा है कक िैं िर रहा हार। और वह क्षण ककसी भी ित्ृ यु से बड़ी ित्ृ यु का क्षण है । यगेकक जो सबसे अरिरस्तथ है वहीर अल हो रहा है । वहीर मि रहा है । यक्ि को ल िा है कक िैं िर रहा हार। उसे ल िा है कक िें अब अनक्स्तित्व िें सरक रहा हार। क हन अिल का वावार खुल जािा है । क अनरि शान्य सािने आ जािा है । वह िबरा जािा है । और पीछे लौ कर शरीर को पकड़ लेिा है । िाकक मि न जा ; यगेकक पाँव के नीचे से जिीन लखसक रही है । और सािने इसमल
लो
य द चेष् ा भी करिे है िो सदा ऊपर-ऊपर करिे है । वे पारी त्वरा से यान नहीर करिे है । कहीर
अचेिन िें उन्हें बोध है कक अ र हि िुि नहीर रहो े। उससे
क अिल खाच खुल रही है —शान्य की खाच।
हरे उिरें े िो नहीर बचें े। और यही सही है । यह भय सच है । िुि कफर
क बार िुिने उस अिल को, शान्य को जान मलया िो िुि कफर वही नहीर रहो े जो थे। िुि
क नया जीवन लेककन लौ ो े, िुि न
िनुष्य हो जाग े।
परु ाना िनुष्य िो मि
या; वह कहार
या, िुम्हें इसका नािगे तनशान भी नहीर मिले ा। परु ाना िनुष्य िन के
साथ िादात्म्य िें था; अब िुि िन के साथ िादात्म्य नहीर कर सकिे हो। अब िुि िन का उपयो हो। अब िुि शरीर का उपयो उनका जैसा चाहो वैसा उपयो
कर सकिे
कर सकिे हो। लेककन अब िन और शरीर यरत्र है और िुि उनसे ऊपर हो। िुि
कर सकिे हो। लेककन िुि उनसे िादात्म्य नहीर करिे हो। यह स्तविरत्रिा दे िा है ।
लेककन यह िभी हो सकिा है जब िुि ना कुछ का दवचार करो। ‘ना कुछ का दवचार’—यह बहुि दवरोधाभासी है । िुि ककसी चीज के बारे िें दवचार कर सकिे हो, लेककन ना-कुछ के बारे िें कैसे दवचार कर सकिे हो? इस ‘ना
कुछ’ का या अथय है? और िुि उसके सरबरध िें दवचार कैसे कर सकिे हो? जब भी िुि ककसी के सरबरध िें दवचार करिे हो, वह दवनय बन जािा है । वह दवचार बन जािा है । और दवचार पदाथय है । िुि ना-कुछ का दवचार कैसे
कर सकिे हो। िुि शान्य के सरबरध िें कैसे सोच सकिे हो। िुि नहीर सोच सकिे , यह सरभव नहीर है । लेककन इस प्रयत्न िें ही, ना-कुछ के दवनय िें शान्य के सरबरध िें सोचने के प्रयत्न िें ही सोच-दवचार खो जा जा
ा। दवलीन हो
ा।
िुिने झेन कोआन के सरबरध िें सुना हो ा। झेन
रु ु साधक को
क कोआन दे िा है । और कहिा है कक इस पर
दवचार करो। यह कोआन जान बझ ा कार दवचार को बरद करने के मल
दी जीिी है । उदाहरण के मल
वे साध से
कहिा है : ‘जाग और पिा ल ाग कक िुम्हारा िौमलक चेहरा या है, वह चेहरा जो िुम्हारे जन्ि के भी पहले था। अभी जो िुम्हारा चेहरा है उस पर िि दवचार करो, उस चेहरे पर दवचार करो जो जन्ि के पहले था।’
िुि इस सरबरध िें या सोच दवचार कर सकिे हो। जन्ि के पहले िुम्हारा कोच चेहरा नहीर था। चेहरा िो जन्ि के साथ आिा है । चेहरा िो शरीर का हस्तसा है । िुम्हारा कोच चेहरा नहीर है । चेहरा शरीर का है । आरखें बरद करो और कोच चेहरा नहीर हे । िुि अपने चेहरे के बारे िें दपयण के वावारा जानिे हो। िुिने खुद उसे कभी दे खा नहीर है । िुि उसे दे ख भी नहीर सकिे हो। िो कैसे िौमलक चेहरे के सरबरध िें सोच-दवचार कर सकिे हो।
लेककन साधक चेष् ा करिा है । और यह चेष् ा करना ही िदद करिा है । साधक चेष् ा वर चेष् ा करे ा—और यह असरभव चेष् ा है । यह बार-बार के पहले ही
ुरु के पास आ
रू ु कहिा है : ‘नहीर,यह
ा और कहे ा। ‘या िौमलक चेहरा यह है ?’ लेककन उसके पाछने
लि है ।’ िुि जो कुछ भी लाग े वह
लि होने ही बाला है ।
साधक िहीनगे िक बार-बार आिा जािा रहिा है । कुछ खोजिा है , कुछ कल्पना करिा है । कोच चेहरा दे खिा है और
ुरु से कहिा है : ‘यह रहा िौमलक चेहरा।’ और
ुरु कफर कहिा है : नहीर। हर बार उसे यह नहीर सुनने को
मिलिा है । और धीरे -धीरे वह बहुि ज्यादा ्मिि हो जािा है । उलझन ग्रस्ति हो जािा है । वह कुछ सोच नहीर पािा है । वह हर िरह से प्रयत्न करिा है । और हर बार असफल होिा है । यह असफलिा ही बुतनयादी बाि है ।
ककसी दन वह सिस्ति असफलिा पर पहारच जािा है । उस सिग्र असफलिा िें सब सोच-दवचार ठहर जािा है । और उसे बोध होिा है । कक िौमलक चेहरे के सरबरध िें कोच सोच-दवचार नहीर हो सकिा है । और इस बोध के साथ ही सोच दवचार त र जािा है । और जब साधक को इस अरतिि असफलिा का बोध होिा है । और वह
ुरु के पास आिा है िो
ुरु उससे कहिा
है : ‘अब कोच जरूरि नहीर है , िैं िौमलक चेहरा दे ख रहा हार।’ साधक की आरखें शान्य है । वह ुरु से कुछ कहने नहीर, मसफय उनके साक्न्नय िें रहने को आया है । उसे कोच उत्िर नहीर मिला; उत्िर था ही नहीर। वह पहली बार उिर के बाना आया है । कोच उत्िर नहीर है । वह िौन होकर आया है ।
यहीर अ-िन की अवस्तथा है । इस अ-िन की अवस्तथा िें ‘सीमिि आत्िा असीि हो जािी है ।’ सीिा र दवलीन हो जािी है । और िुि अचानक सवयत्र हो, सब कहीर हो। िुि अचानक सब कुछ हो। अचानक िुि वक्ष ृ िें हो, पत्थर िें हो, आकाश िें हो, मित्र िें हो, शत्रु िें हो—अचानक िुि सक कही हो, सब िें हो। सारा अक्स्तित्व दपयण के सिान हो
या है —और िुि सवयत्र अपनी ही प्रति छदव दे ख रहे हो।
यहीर अवस्तथा आनरद की अवस्तथा है । अब िुम्हें कुछ भी अशारि नहीर कर सकिा; यगेकक िुम्हारे अतिररि कुछ
और नहीर है । अब कुछ भी िुम्हें नहीर मि ा सकिा, यगेकक िुम्हारे मसवाय कोच और नहीर है । अब ित्ृ यु नहीर है । यगेकक ित्ृ यु िें भी िुि हो। अब कुछ भी िुम्हारे दवरोध िें नहीर है । इस
काकीपन को िहावीर ने कैवल्य कहा है —सिग्र
कारि।
सब कुछ िुििें है ।
कारि यगे? यगेकक सब कुछ िि ु िें सिा हि है,
िुि इस अवस्तथा को दो ढर गे से अमभयि कर सकिे हो। िुि कह सकिे हो, यगेकक िैं हार, अहर ब्रह्िाक्स्ति, िैं ब्रह्ि हार। िैं परिात्िा हार। िैं सिग्र हार। सब कुछ िेरे भीिर आ या है । सारी न दया िेरे सा र िें दवलीन हो
च है । अकेला िैं ही हार; और कुछ भी नहीर हार। साफी सरि यही कहिे है । और िुसलिान कभी नहीर सिझ पािे कक यगे साफी ऐसी बािें कहिे है । क साफी कहिा है : ‘कोच परिात्िा नहीर है, केवल िैं हार।’ या वह कहिा है : ‘िैं परिात्िा हार।’ यह दवधायक ढर है कहने का कक अब कोच पथ ृ किा न रही। बुध स नकारात्िक ढर । उपयो करिे है ; वे कहिे है : िैं न रहा, कुछ भी नहीर रहा।
दोनगे बािें सच है, यगेकक जब सब कुछ िुझिें सिा हि है िो अपने ‘’िै’’कहने िें कोच िुक नहीर है । ‘’िैं’’ सदा ही ‘’िा’’ के दवरोध िें है । ‘िा’ के सरदभय िें ‘िैं’ अथयपाणय है । जब िाँ न रहा िो ‘िैं यथय हो
या। इसीमल
कक ‘िैं’ नहीर हार, कुछ नहीर है ।’ या िो सब कुछ िुििें सिा अमभयक्ियार ठीक है ।
या है, या िुि शान्य हो
हो। और सबिें दवलीन हो
बुध स कहिे है
हो। दोनगे
तनशतचि ही कोच भी अमभयक्ि पारी िरह सही नहीर हो सकिी है । यही कारण है कक दवपरीि अमभयक्ि भी सदा सही है । प्रत्येक अमभयक्ि आरमशक है , अरश है ; इसीमल
दवरोधी अमभयक्ि भी सही है । दवरोधी
अमभयक्ि भी उसका ही अरश है । इसे स्तिरण रखो। िुि जो विय दे िे हो वह सच हो सकिा है । और उसका दवरोध विय भी, लबलकुल
दवरोधी विय भी सच हो सकिा है । वस्तिुि: यह होना अतनवायय है । यगेकक प्रियेक विय अरश िात्र है । और अमभयक्ि के दो ढर दवधायक ढर
है । िुि दवधायक ढर
चुनिे हो िो नकारात्िक ढर
वह दरअसल उसके दवरोध िें नहीर है ।
चुन सकिे हो या नकारात्िक ढर
लि िालाि पड़िा है । लेककन वह
िो िि ु चाहे उसे ब्रह्ि कहो या तनवायण कहो, दोनगे
चान सकिे हो। अ र िुि
लि नहीर है । वह पररपारक है ।
क ही अनुभव की िरफ इशारा करिे है । और वह अनुभव
यह है : ना-कुछ का दवचार करने से िुि उसे जान लेिे हो।
इस दवतध के सरबरध िें कुछ बतु नयादी बािें सिझ लेनी चा ह ।
क कक दवचार करिे हु िुि अक्स्तित्व से पथ ृ क हो जािे हो। दवचार करना कोच सरबरध नहीर है ; वह कोच सरवाद नहीर है । दवचार करना अवरोध है । तनदवयचार िें िुि अक्स्तित्व से सरबरतधि होिे हो, जुड़िे हो; तनदवयचार िें िुि सरवाद िें होिे हो।
जब िुि ककसी से बाि चीि करिे हो िो िुि उससे जुड़े नहीर हो। बािचीि ही बाधा बन जािी है । और िुि क्जिना ही बोलिे हो िुि उससे उिने ही दरा ह
उससे जुड़िे हो। अ र िुि दोनगे का िौन सच ही पारी िरह िौन हगे—िो िुि
हन हो, अ र िुम्हारे िन िें कोच दवचार न हो, दोनगे के िन
क हो।
दो शुन्य दो नहीर हो सकिे, दो शान्य मिलकर
जािे हो। अ र िुि ककसी के साथ िौन िें होिे हो िो िुि
क हो जािे है । अ र िि ु दो शुन्यगे को जोड़गे िो वे दो नहीर रहिे। वे
क बड़ा शान्य हो जािे है । और अ र िुि ककसी के साथ िौन िें होिे हो िो िि ु उससे जुड़िे हो।
अ र िुि दोनगे को िौन सच ही हो—िो िुि
हन हो, अ र िुम्हारे िन िें कोच दवचार न हो, दोनगे के िन परा ी िरह िौन
क हो।
यह दवतध कहिी है कक अक्स्तित्व के साथ िौन होग। और िब िुि परिात्िा को जान लो े। अक्स्तित्व के साथ सरवाद का
क ही साधन है ,िौन। य द िुि अक्स्तित्व से बािचीि करिे हो िो िुि चाकिे हो। िब िुि अपने
दवचारगे िें ही बरद हो। इसे प्रयो
की िरह करो। ककसी चीज के साथ भी, क पत्थर के साथ भी इसे प्रयो
करो। पत्थर के साथ िौन
होकर रहो; उसे अपने हाथ िें ले लो और िौन हो जाग। और सरवाद ि ि हो ा। मिलन ि ि हो ा। िुि पत्थर िें
हरे प्रवेश कर जाग े और पत्थर िुििें
जा र े। और पत्थर और रहस्तय िुम्हारे प्रति प्रक
हरे प्रवेश कर जा
ा। िुम्हारे रहस्तय पत्थर के प्रति खुल
कर दे ा। लेककन िुि पत्थर के साथ भाना का उपयो
कर सकिे हो। पत्थर कोच भाना नहीर जानिा है । और चारकक िुि भाना का उपयो सरबरतधि नहीर हो सकिे।
नही
करिे हो, िुि उसके साथ
िनुष्य ने िौन लबलकुल खो दया है । जब िुि कुछ नहीर कर रहे होिे हो िो भी िुि िौन नहीर हो। िन कुछ न कुछ करिा ही रहिा है । और इस तनरर िर की भीिरी बािचीि के कारण,इस सिि आरिररक बकवास के कारण
िुि ककसी के भी साथ सरबरतधि नहीर होिे हो। िुि अपने दप्रयजनगे के साथ भी सरबरतधि नहीर हो सकिे, यगेकक यह बािचीि चलिी रहिी है ।
िुि अपनी पत्नी के साथ बैठे हो सकिे हो; लेककन िुि अपने भीिर बािचीि िें ल े हो और िुम्हारी पत्नी
अपने भीिर बािचीि िें ल ी है। िुि दोनगे अपने-अपने भीिर बािचीि िें ल े हो और िुम्हारी पत्नी अपने भीिर बािचीि िें ल ी है । िब िुि
क दस ा रे को दोन दे िे हो। कक िुि िुझे ‘प्रेि नही करिे हो।’
असल िें प्रेि का प्रन ही नहीर है । प्रेि सरभव ही नहीर है । प्रेि िौन का फाल है । प्रेि का फाल िौन से लखलिा
है । िौन मिलन िें लखलिा है । य द िुि तनदवयचार नहीर हो सकिे हो िो िुि प्रेि िें भी हो सकिे हो। और कफर प्राथयना िें होना िो असरभव ही है । लेककन हि िो प्राथयना करिे हु बािचीि के इिने अभ्यस्ति हो
भी बािचीि िें ल े हो। हिारे मल है , इिने सरस्तकाररि हो
प्राथयना परिात्िा के साथ बािचीि है । हि
है , कक जब हि िर दर या िक्स्तजद भी जािे है िो
वहार भी अपनी बकवास जारी रखिे है । हि परिात्िा के साथ भी बोलिे रहिे है । बािचीि करिे रहिे है ।
यह लबलकुल िाढ़िा पण ा य हे । परिात्िा या अक्स्तित्व िुम्हारी भाना नहीर सिझ सकिा है । अक्स्तित्व
क ही भाना
सिझिा है —िौन की भाना और िौन न सरस्तकृि है, न अरबी, न अरग्रेजी, न हरदी। िौन जा तिक है । िौन ककसी क का नहीर है ।
पथ्ृ वी पर कि से कि चार हजार भाना र है । और प्रत्ये क िनुष्य अपनी भाना के िेरे िें बरद है । अ र िुि उसकी भाना नहीर जानिे हो िो िुि उसके साथ सरबरतधि नहीर हो सकिे हो। िब िुि हि
क दस ा रे िें प्रवेश नहीर कर सकिे है । न ही हि
प्रेि कर सकिे है । ऐसा इस मल
क दस ा रे के मल
क दस ा रे को सिझ सकिे है और न ही
अजनबी हो।
क दस ा रे को
है ; यगेकक हिें वह बतु नयादी जा तिक भाना नहीर आिी। जो िौन की है । सच िो यह है कक िौन
के वावारा ही कोच ककसी से सरबरतधि हो सकिा है । और अ र िि ु िौन की भाना जानिे हो िो िुि ककसी भी
चीज के साथ सरबरतधि हो सकिे हो। जुड़ सकिे हो। यगेकक चट्टानें िौन है । वक्ष ृ िौन है । आकाश िौन है । िौन अक्स्तित्व ि है । यह िानवीय
ण ु ही नहीर है, यह अक्स्तित्व ि है । सबको पिा है कक िौन या है , सबका
अक्स्तित्व िौन िें ही है ।
यान का अथय िौन है । कोच दवचार नहीर। दवचार लबलकुल खो
है । यान है िात्र होना—खुला,ग्रहणशील,
ित्पर, मिलने को उत्सुक, स्तवा ि िें, प्रेिपाण— य लेककन वहार सोच-दवचार लबलकुल नहीर है । और िब िुम्हें अनरि प्रेि ि ि हो ा। और िुि यह कभी नहीर कहो े कक कोच िुझे प्रेि नहीर करिा है। िुि यह कभी नहीर कहो ,े िुम्हें कभी यह भाव भी नहीर उठे ा।
अभी िो िुि कुछ भी करो, िुि यही कहो े कक कोच िुझे प्रेि नहीर करिा है । और िुम्हें यह भाव भी उठे ा कक कोच िुझे प्रेि नहीर दे िा है । हो सकिा है कक िुि यह नहीर कहो; िुि यह दखावा भी कर सकिे हो कक कोच िुझे प्रेि करिा है । लेककन प्रेिी भी
हरे िें िुि जानिे हो कक कोच िुम्हें प्रेि नहीर करिा है ।
क दस ा रे से पाछिे रहिे है : ‘या िुि िुझे प्रेि करिे हो?’ अनेक ढर गे से वे तनरर िर यही बाि पाछिे
रहिे है । सब डरे हु है । सब अतनक्चि िें है, सब असुरक्षक्षि है । बहुि िरीकगे से वे यह जानिे कक कोमशश करिे है । कक दस ा रा सच िें िुझे प्रेि करिा है । और उन्हें कभी भरोसा नहीर हो सकिा हे । यगेकक प्रेिी कह सकिा है
कक हार, िैं िुम्हें प्रेि करिा हार; लेककन इसका भरोसा या? िुम्हें पका कैसे हो ा? िुि कैसे जानगे े कक प्रेिी िम् ु हें धोखा नहीर दे रहा है ? वह िुम्हें सिझा बुझा सकिा है । वह िुम्हें यकीन दला सकिा है । लेककन इससे मसफय बुदध स सरिुष्
हो सकिी है , ्दय िृ ि नहीर हो ा।
प्रेिी-प्रेिी का सदा दुःु खी रहिे है। उन्हें कभी इस बाि का पका भरोसा नहीर होिा कक दस ा रा िुझे प्रेि करिा है । िुम्हें कैसे भरोसा आ सकिा है । असल िें भाना के जरर जरर
पाछ रहे हो। कह रहे हो। और जब प्रेिी िौजाद है िो िुि िन िें बािचीि िें उलझे हो, प्रन पाछ रहे हो।
दववाद कर रहे हो। िुम्हें कभी भरोसा नहीर आ यही
भरोसा दे ने का कोच उपाय नहीर है । और िुि भाना के
हन सरिाप बन जािा है ।
और ऐसा इसमल
ा। और िुम्हें सदा ल े ा कक िुझे प्रेि नहीर मिल रहा है । और
नहीर होिा है कक कोच िुम्हें प्रेि नहीर करिा हे । ऐसा इसमल
होिा है कक िुि बरद हो, िुि
दवचारगे िें बरद हो। वहार कुछ भी प्रवेश नहीर कर पािा है । दवचारगे िें प्रवेश नही ककया जा सकिा है । उन्हें त राना हो ा। और अ र िुि उन्हें त रा दे िे हो िो सारा अक्स्तित्व िुििें प्रवेश कर जािा है ।
ये सात्र कहिा है : ‘ना-कुछ का दवचार करने से सीमिि आत्िा असीि हो जािी है ।’ िुि असीि हो जाग े। िुि पण ा य हो जाग े। िुि जा तिक हो जाग े। िुि सब कहीर हो े। और िुि आनरद ही हो।
अभी िि ु दुःु ख ही दुःु ख हो और कुछ नहीर। जो चालाक है वे अपने को धोखे िें रखिे है कक हि दुःु खी नहीर है ।
या वे इस आशा िें रहिे है कक कुछ बदले ा,कुछ ि ि हो ा। और हिें अपने जीवन के अरि िें सब उपलध हो जा
ा। लेककन िुि दुःु खी हो। िुि दखावे और धोखे तनमियि कर सकिे हो। िुि िुखौ े गढ़ सकिे हो। िुि
तनरर िर िुस्तकरािे रह सकिे हो। लेककन
हरे िें िुि जानिे हो कक िैं दुःु खी हार, पीगड़ि हार।
यह स्तवाभादवक है । दवचारगे िें बरद रहकर िुि दुःु ख िें ही रहो े। दवचारगे से िुि होकर, दवचारगे के पार होकर— सज । सचेिन, बोधपाण,य लेककन दवचारगे से अछािे—िुि आनरद ही आनरद हो। आज इिना ही। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-57
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—86 (ओशो)
‘भाि करो कक िैं ककसी ऐसी चीज की धचंतना करता हूं जो दृक्ष्ट के परे है , जो पकड के परे है । जो अनक्स्तत्ि के, न होने के परे है —िैं।’
जो ढ़क्ष्
के परे है , जो पकड़ के परे है । जो अनक्स्तित्व के, न होने के परे है —िैं।’
‘’भाव करो कक िैं ककसी ऐसी चीज कीर तचरिना करिा हार जो ढ़क्ष् के परे है ।‘’ क्जसे दे खा नहीर जा सकिा। लेककन या िुि ककसी ऐसी चीज की कल्पना कर सकिे हो जो दे खी न जा सके। कल्पना िो सदा उसकी होिी है जो दे खी जा सके। िुि उसकी कल्पना कैसे कर सकिे हो, उसका अनुिान कैसे कर सकिे हो। जो दे खी ही न जा सके। िुि उसकी ही कल्पना कर सकिे हो क्जसे िुि दे ख सकिे हो। िि ु उस चीज का स्तवन भी नहीर दे ख
सकिे जो ढ़य न हो। जो दे खी न जा सके। यही कारण है कक िुम्हारे सपने भी वास्तिदवकिा की छाया र है ।
िुम्हारी कल्पना भी शुध स कल्पना नहीर है ; यगेकक िुि जो भी कल्पना करिे हो उसे उस सरयोजन के सभी ित्व पररतचि हगे ,े जाने-िाने हगे े।
िुि कल्पना कर सकिे हो कक
क सोने का पहाड़ आकाश िें बादलगे की भारति उड़ा जा रहा है । िुिने कभी ऐसी
चीज नहीर दे खी है । लेककन िुिने बादल दे खा है; िुिने पहाड़ दे खा है ; िुिने सोना दे खा है । ये िीन ित्व इकट्ठे कक
जा सकिे है । िो कल्पना कभी िौमलक नहीर होिी; वह सदा ही उनका जोड़ होिी है क्जन्हें िुिने दे खा है ।
यह दवतध कहिी है : ‘भाव करो कक िैं ककसी ऐसी चीज की तचरिना करिा हार जो ढ़क्ष् यह असरभव है । लेककन इसीमल जा
यह प्रयो
के परे है ।’
करने लायक है । यगेकक इसे करने िें ही िुम्हें कुछ ि ि हो
ा। ऐसा नहीर कक िुि दे खने िें सक्षि हो जाग े। लेककन अ र िुि उसे दे खने की चेष् ा करो े जो दे खी
न जा सके िो सारा दशयन खो जा हो जा
ा।
ा। ऐसी चीज के दे खने के प्रयत्न िें िुिने जो भी दे खा है वह सब दवलीन
अ र िुि इस प्रयत्न िें धैयप य ावक य ल े रहे िो अनेक तचत्र, अनेक लबरब िुम्हारे सािने प्रक
हगे े। िुम्हें उन
प्रतिलबरबगे को इनकार कर दे ना है , यगेकक िुि जानिे हो कक िुिने उन्हें दे खा है । वे दे खे जा सकिे है । हो सकिा है कक िुिने उन्हें लबलकुल वैसे ही न दे खा हो जैसे वे है; लेककन य द िुि उनकी कल्पना कर सकिे हो िो वे दे खे भी जा सकिे है । उन्हें अल
ह ा दो। और इसी िरह अल
करिे चलो। यह दवतध कहिी है कक जो नहीर
दे खा जा सकिा उसे दे खने के प्रयत्न िें ल े रहो। य द िुि िन िें उभरने वाले प्रतिलबरबगे को ह ािे
िो या हो ा? यह क ठन हो ा यगेकक अनेक तचत्र उभर
कर सािने आ ँ े। िुम्हारा िन अनेक तचत्र, अनेक लबरब, अनेक सपने सािने ले आ अनेक प्रिीक पैदा हगे े। िुम्हारा िन न -न
वह न ि ि हो जो अढ़य है । या है वह? य द िुि ह ािे ही
ा। अनेक धारणा र आ ँ ी।
ढ़य तनमियि करे ा। लेककन उन्हें ह ािे चलो, जब िक कक िुम्हें
िो बाहर से िुम्हें कुछ ि ि नहीर हो ा। मसफय िन का पदाय खाली हो जा
ा। उस पर
कोच तचत्र कोच प्रिीक कोच लबरब, कोच सपने नहीर हगे े। उस क्षण िें रूपारिरण ि ि होिा है । जब खाली पदाय रहिा है , उस पर कोच तचत्र नहीर रहिा, उस क्षण िें िुम्हें अपना बोध होिा है । सारी चेिना पीछे लौ
कर दे खने
ल िी है । स्तविुखी हो जािी है । जब िुम्हें दे खने को कुछ नहीर होिा है िब िुम्हें पहली बार स्तवयर का बोध होिा है । िब िुि स्तवयर को दे खिे हो।
यह सात्र कहिा है : ‘भाव करो कक िैं ककसी ऐसी चीज की तचरिना करिा हार जो ढ़क्ष् है । जो अनक्स्तित्व के, अन होने के परे है —िैं।’
के परे है, जो पकड़ के परे
िब िुि स्तवयर को उपलध होिे हो। स्तवयर होिे हो। िब िुि पहली दफा उसे जानिे हो। जो दे खिा है । जो
सिझिा है , जो जानिा है । लेककन यह जानने वाला सदा दवनयगे िैं तछपा होिा है । िुि चीजगे को िो जानिे हो, लेककन िुि कभी जानने वाले को नहीर जानिे हो। ज्ञािा ज्ञान िें खोया रहिा है । िैं िुम्हें दे खिा हार और कफर ककसी दस ा रे को दे खिा हार,और यह जुलास चलिा रहिा है । जन्ि से ित्ृ यु िक िैं हजार-हजार चीजें दे खिा हार। और जो ढ़ष् ा है , जो इस जुलास को दे खिा है, वह भाल िष् ा उसिें खो
या है ।
या है । वह भीड़ िें खो
या है । भीड़ दवनयगे की और
यह सात्र कहिा है कक अ र ककसी ऐसी चीज की तचरिना करने की चेष् ा करिे हो जो ढ़क्ष्
के परे है । पकड़ के
परे है । क्जसे िुि िन से नहीर पकड़ सकिे—और जो अनक्स्तित्व के, न होने के भी परे है । िो िुररि िन कहे ा कक अ र कोच चीज दे खी नहीर जा सकिी और पकड़ी नहीर जा सकिी िो वह चीज है ही नहीर। िन िुररि
प्रतिकक्रया करे ा कक अ र कोच चीज अढ़ष्य और अग्राह्य है िो वह नहीर है । िन कहे ा कक वह नहीर है , असरभव है । इस िन की बािगे िें िि पड़ो। यह सात्र कहिा है : ‘ढ़क्ष्
के परे , पकड़ के परे , अनक्स्तित्व के परे ।‘ िन कहे ा कक
ऐसा कुछ नहीर है । ऐसा हो ही नहीर सकिा। यह असरभव है । सात्र कहिा है कक इस िन का दववास िि करो।
कुछ हो जो अनक्स्तित्व के परे अक्स्तित्ववान है , जो है और कफरा भी दे खा नहीर जा सकिा, पकड़ा नहीर जा सकिा। वह िुि हो।
िुि अपने को नहीर दे ख सकिे हो। या दे ख सकिे हो? या िुि ककसी
क ऐसी क्स्तथति की कल्पना कर सकिे
हो। क्जसिें िुि अपना साक्षात्कार कर सको। क्जसिें िि ु अपने को जान सको? िुि आत्ि ज्ञान शद को दोहरािे रह सकिे हो। लेककन वह
क अथय हीन शद है । यगेकक िुि स्तवयर को, अपने को नहीर जान सकिे हो।
आत्िा सदा ज्ञािा है । उसे ज्ञान का दवनय नहीर बनाया जा सकिा है ।
उदाहरण के मल , अ र िुि सोचिे हो कक िैं आत्िा को जान सकिा हार िो क्जस आत्िा को िुि जानगे े वह िुम्हारी आत्िा नहीर हो ी। आत्िा िो वह हो ी जो इस आत्िा को जान रही है । िुि सदा ज्ञािा रहो े। िुि सदा ही पीछे रहो े। िुि जो भी जानगे े वह िुि नहीर हो सकिे। इसका यह अथय है कक िुि स्तवयर को नहीर जान सकिे हो। िुि स्तवयर को उस भारति नहीर जान सकिे हो क्जस भारति अन्य चीजगे को जानिे हो।
िैं अपने को उस भारति नही दे ख सिा क्जस भारति िैं िुम्हें दे खिा हार। दे खे ा कौन? यगेकक ज्ञान, ढ़क्ष् दशयन का अथय है कक वहार कि से कि दो है : जानने वाला और जाना जाने वाला। इस अथय िें आत्िज्ञान सरभव नहीर है ; यगेकक वहार
क ही है । वहार ज्ञािा और ज्ञेय
क है ; वहार िष् ा और ढ़य
सकिे हो। इसमल
आत्िज्ञान शद
क है । िुि अपने को दवनय नहीर बना
लि है । लेककन यह कुछ कहिा है । कुछ इशारा करिा है । जो कक सच है । िुि अपने
को जान सकिे हो, लेककन यह जानना उस जानने से मभन्न हो ा। लबलकुल मभन्न हो ा। जब सभी दवनय खो जािे है, जब जो भी दे खा और ग्रहण ककया जा सकिा है वह दवदा हो जािा है । जब िुि सबको अल
कर दे िे
हो, िब िुम्हें अचानक स्तवयर का बोध होिा है । और यह बोध वावरवावात्िक नहीर है । इसिें दो नहीर है । इसिें आजे्स गर सजै यह बोध
नहीर है । यह अवावैि है , अखरड है ।
क मभन्न ही भारति का जानना है । यह बोध िुम्हें अक्स्तित्व का
क मभन्न ही आयाि दे िा है । िुि दो
िें नहीर बर े हो; िुि स्तवयर के प्रति बोधपाणय हो। िुि उसे दे ख नहीर रहे , िुि उसे पकड़ नहीर सकिे हो; और बावजाद वह है —पारी िरह है ।
इसे इस िरह सिझो, हिारे पास ऊजाय है ; वह ऊजाय दवनयगे की िरफ बही जा रही है । ऊजाय
तिहीन नहीर हो
सकिी है । कहीर ठहरी हुच नहीर है । स्तिरण रहे , अक्स्तित्व के परि तनयि िें क तनयि यह है कक ऊजाय तिहीन नहीर हो सकिी, वह त्यात्िक है । दस ा रा कोच उपाय नहीर है । उसे सिि तििान रहना है । त्यात्िकिा उसका स्तवभाव है । ऊजाय सिि
तििान है ।
िो जब िैं िुम्हें दे खिा हार िब िेरी ऊजाय िुम्हारी िरफ बहिी है । जब िैं िुम्हें दे खिा हार िो क विुल य बन जािा है । िेरी ऊजाय िुम्हारी िरफ बहिी है । और कफर िेरी िरफ बहिी है । इस िरह क विुल य तनमियि होिा है । य द िेरी ऊजाय िुम्हारी िरफ जा , लेककन िेरी िरफ वापस न आ ऊजाय को जाना चा ह
और कफर लौ
ज्ञान का अथय है ऊजाय ने स्तत्रोि पर लौ
िो िैं नहीर जान पाऊर ा।
कर आना चा ह ।
क विुल य बनाया है । उसने भीिर से बाहर की िरफ
क विुल य जरूरी है ।
ति की; और कफर वह वापस िाल
आच। अ र िैं इसी भारति जीिा रहाँ, दस य बनािा रहाँ, िो िैं कभी स्तवयर को नहीर ा रगे के साथ विुल जान पाऊर ा। यगेकक िेरी ऊजाय दस ा रगे की ऊजाय से भरी है । वह दस ा रगे के प्रभा, दस ा रगे के प्रतिलबरब िुझे दे िी जािी है । इसी भारति िो िुि ज्ञान इकट्ठा करिे हो।
यह दवतध कहिी है कक दवनय को दवलीन हो जाने दो अपनी ऊजाय को ररििा िें,शान्य िें
ति करने दो। वह
िुम्हारी और से चलिी िो है , लेककन कोच दवनय वहार नहीर है । क्जसे वह पकड़ या क्जसे दे खे। िो वह शान्यिा से ज ु र कर िुम्हारे पास लौ
आिी है । वहार कोच दवनय नहीर है । वह िुम्हारे मल
खाली ररि और शुध स लौ प्रदवष्
कोच जानकारी नहीर लािी है । वह
आिी है । वह अपने साथ कुछ नहीर लािी है । वह करु वारी की करु वारी है ; कुछ भी उससे
नहीर हुआ है । वह दवशुध स है ।
यही यान की पारी प्रकक्रया है । िुि शारि बैठे हो और िुम्हारी ऊजाय
ति कर रही है । वहार कोच दवनय नहीर है ,
क्जससे वह ददा नि हो सके। क्जससे वह आबध स हो सके, क्जससे वह प्रभादवि हो सके। क्जसके साथ वह
क हो
सके। िब िुि उसे अपने पर लौ ा लेिे हो। वहार कोच दवनय नहीर है । कोच दवचार नहीर है । कोच प्रतिलबरब नहीर है । ऊजाय
ति करिी है । उसकी
िें वह िुिसे
ति शुध स है। और वह शुध स गर करु वारी ही िुम्हारे पास लौ
च थी उसी अवस्तथा िें वह लौ
आिी है। क्जस अवस्तथा
आिी है । अपने साथ कुछ भी नहीर लािी है । वह मसफय अपने को
अपने साथ लािी है । और शुध स ऊजाय के उस प्रवेश िें िुि स्तवयर के प्रति बोध से भर जािे हो। य द ऊजाय अपने साथ कोच जानकारी ला
िो िुि उस चीज के प्रति हो बोधपाणय हो े। िुि
हो। िुम्हारी ऊजाय फाल पर जाली है । और उस फाल को फाल, फाल के प्रतिलबरब को, फाल के रर
क फाल को दे खिे
को, फाल की
रध
को अपने साथ ले आिी है । ऊजाय फाल को िुम्हारे पास ल रही है । वह िुम्हें फाल की जानकारी दे िी है । ऊजाय
फाल से आछा दि है । िुि कभी उस शध स ु ऊजाय से पररतचि नही हो सकिे। िि ु दस ा रगे की िरफ जािे हो और स्तत्रोि पर लौ
आिे हो।
अ र इस ऊजाय को कुछ भी प्रभादवि न करे , अ र वह अप्रभादवि सरस्तकाररि, अस्तपमशयि लौ की वैसी लौ
आ
जैसी
च थी। अ र वह शुध स लौ
जा , अ र वह वैसी
आये िो कुछ साथ न ला । िो िुि स्तवयर को जानिे हो।
यह ऊजाय का शुध स विुल य है । अब ऊजाय कहीर बाहर न जाकर िुम्हारे भीिर ही विुल य बनािी है । अब कोच दस ा रा नहीर है । िुि स्तवयर अपने िें
ति करिी है । िुम्हारे भीिर ही
ति करिे हो। यह
ति ही आत्ि-प्रकाश बन
जािी है । आत्िज्ञान, आत्िबोध बन जािी है । बुतनयादी िौर से सब यान दवतधयार इसी के अल -अल ‘भाव करो कक िैं ककसी ऐसी चीज की तचरिना करिा हार जो ढ़क्ष् के, न होने के परे है —िैं।’
प्रकार है ।
के परे है । जो पकड़ के परे है। जो अनक्स्तित्व
अ र यह हो सके िो िुि पहली दफा स्तवय को जानगे े। स्तवयर के अक्स्तित्व को अक्स्तित्व को जानगे े। जानने वाले को, आत्िा को जानगे े।
ज्ञान दो प्रकार का है : दवनय ि ज्ञान और आत्ि ि ज्ञान।
क िो दवनय का ज्ञान है और दस ा रा स्तवयर का ज्ञान
है । और कोच आदिी चाहे लाखगे चीजें जान ले। चाहे वह पारे ज ि को जान ले। लेककन अ र वह स्तवयर को नहीर
जानिा है िो वह अज्ञानी है । वह जानकार हो सकिा है । परगडि हो सकिा है । लेककन वह प्रज्ञावान नहीर है । सरभव है कक वह बहुि जानकारी इकट्ठी कर ले। बहुि ज्ञान इकट्ठा कर ले, लेककन उसके पास उस बुतनयादी चीज का अभाव है जो ककसी को प्रज्ञावान बनािा है । वह स्तवयर को नहीर जानिा है । उपतननदगे िें
क कथा है ।
क युवक, वेिकेिु, अपने
ुरु के आश्रि से मशक्षा प्राि कर के िर आिा है । उसने
सभी परीक्षा
उत्िीणय कर ली थी। और उसने उनिें दवमशष् िा हामसल की थी।
सरजो कर रख मलया था। और वह बहुि अरहकार से भर
ुरु जो भी उसे दे सके, उसने सब
या था।
जब वह अपने दपिा के िर पहुरचा िो पहली बाि जो दपिा ने पछ ा ी वह यह थी: ‘िुि ज्ञान से बहुि भरे हु िालाि पड़िे हो और िुम्हारे ज्ञान ने िुम्हें बहुि अहर कारी बना दया है । यह िुम्हारे चलने के ढर से—क्जस ढर से िुिने िर िें प्रवेश ककया—प्रक
होिा है । िुझे िुिसे
क ही प्रन पछ ा ना है , या िुिने उसे जान मलया है
क्जस के जानने से सब जाना मलया जािा है । िुि स्तवय को जान
ये हो।’
वेिकेिु ने कहा: ‘लेककन हिारे दववायापीठ के पाठय क्रि िें यह नहीर था। हिारे
ुरु ने इसकी कोच चचाय नहीर
की। िैंने सब जान मलया है जो जाना जा सकिा है । आप िुझ कुछ भी पाछे और िैं उत्िर दँ ा ा। लेककन यह जो आप पाछ रहे है । यह िो कभी बिाया ही नहीर
या।’
दपिा ने कहा: ‘कफर िुि वापस जाग। और जब िक उसे नह जान लो क्जसे जानकर सब जान मलया जािा है । और क्जसे जाने लबना कुछ भी नहीर जाना जािा। िब िक िर िि लौ ना। पहले स्तवयर को जानो।’ वेिकेिु वापस
या। उसने
ुरू से कहा: ‘िेरे दपिा ने कहा कक िुम्हें िर िें नहीर आने दया जा
ा, इस िर िें
िुम्हारा स्तवा ि नहीर हो ा; यगेकक हिारे कुल िें हि जन्ि से ही ब्राह्िण नहीर है । हि ब्रह्ि को जानकर
ब्राह्िण है । हि ब्राह्िण जन्ि से ही नहीर है , प्रािालणक ज्ञान को प्राि करके हि ब्राह्िण है । िो जब िक िुि सचे ब्राह्िण न हो जाग—जो जन्ि से नहीर बह्ि को जानकर हुआ जािा है । िब िक इस िर िें प्रवेश िि करना। िुि हिारे योग्य नहीर हो। इसमल अब आप िुझे वह ज्ञान मसखा र।’ ुरु ने कहा: ‘जो भी मसखाया जा सकिा है । वह सब िैंने िुम्हें मसखा दया है । और िुि क्जसकी बाि कर रहे
हो वह मसखाया नहीर जा सकिा है । िो िुि
क काि करो; िुि बस इसके प्रति उपलध रहो, इसके प्रति खुल
रहो। यह ज्ञान सीधे-सीधे नहीर मसखाया जा सकिा है । िुि मसफय खुले रहो। और ककसी दन ि ना ि
जा
ी।
िुि आश्रि की ‘िुि
बनो।
ायगे को ले जाग।’ आश्रि िें बहुि ायें थी। कहिे चार सौ ाये थी— रु ु ने वेिकेिु से कहा: ायगे को जर ल ले जाग और ायगे के साथ रहो। दवचार करना बरद कर दो। शदगे को छोड़ो; पहले ाय ायगे के साथ रहो, उन्हें प्रेि करो, और वैसे ही िौन हो जाग। जैसे
उन्हें प्रेि करो, और वैसे ही िौन हो जाग जैसे
ायें िौन है । और जब
ायें िौन है । जब ायें
ायें के साथ रहो,
क हजार हो जा र िब वापस आ
जाना।’ वेिकेिु चार सौ
ायगे को लेकर जर ल चला
या। वहार सोचदवचार का कोच उपयो
था। क्जसके साथ बािचीि की जा सके। उसका तचि धीरे -धीरे रहिा था। और ऐसे वनत बीि
ाय जैसा हो
, यगेकक वह िभी वापस जा सकिा था। जब
नहीर था। वहार कोच नहीर
या। वह वक्ष ृ गे के नीचे िौन बैठा ा र
क हजार हो जा र। धीरे -धीरे
उसके िन से भाना दवलीन हो रहा;उसकी आरखें
च। धीरे -धीरे सिाज उसके िन से दवदा हो
ायगे की आरखगे जैसी हो
च। वह
ायगे जैसा ही हो
या।
या। धीरे -धीरे वह िनुष्य भी नहीर
और कहानी बहुि सुरदर है । कहानी कहिी है कक वेिकेिु त नना भाल या। यगेकक अ र भाना दवलीन हो जा , शद जाल खो जा िो त नना कैसा। वह भाल या कक कैसे त निी की जािी है । वह यह भी भाल या कक वापस जाना है । और आ े की कहानी िो और भी सुरदर है । िब अब हि
ुरु के िर लौ
चलें।
वेिकेिु वापस आया। और मशष्यगे ने
ुरु हिारी प्रिीक्षा करिे हगे े।’
रु ु ने दस ा रे मशष्यगे से कहा: ‘ ायगे की त निी करो।’ ायगे की त निी की
रु ु से कहा: ‘’ क हजार
वेिकेिु है ।’ वेिकेिु
ायगे ने कक: ‘वेिकेिु,अब हि हजार हो
ा र है ।‘’ रु ु ने कहा: ‘ क हजार नहीर, क हजार
ायगे के बीच खड़ा था—िौन,शारि; न कोच दवचार था, न िन था; वह लबलकुल
सरल और तनदतन हो
या था। और
ा
है —वह
च। और क
ाय की भारति शुध स और
ुरू ने उससे कहा: ‘िुम्हें यहार आने की जरूरि नहीर है , िुि अपने दपिा के
िर वापस चले जाग। िुिने जान मलया; ि ना ि ि ना ि िी है —जब तचि िें जानने के मल दवचारगे से खाली है , जब
क
च है ।
च। िि ु अब िेरे पास यगे आ
हो?’
कोच दवनय नहीर रहिा िो िुि जानने वाले को जानिे हो। जब िन
क भी लहर नहीर है , क भी करपन नहीर है , िब िुि अकेले हो, स्तवयर हो। िब िुम्हारे
अतिररि कुछ भी नहीर हो।
क आत्ि–प्रकाश ि ि होिा है । आत्िबोध ि ि होिा है ।
यह सात्र आधार भाि सात्रगे िें
क है । इसे प्रयो
करो। प्रयो
क ठन है । यगेकक दवचार करने की आदि, दवनयगे
से तचपकने की आदि, दे खे जा सकने वाले और पकड़े जा सकने वाले दवनयगे की आदि इिनी
हरी है कक उससे
िुि होने के मल , दवनयगे िें दवचारगे िें कफर ग्रस्ति न होकर िात्र साक्षी हो जाने के मल , नेति-नेति कह कर सब को ह ा दे ने के मल
बहुि सिय और सिि श्रि की जरूरि हो ी।
उपतननदगे की सिस्ति दवतध का सार तनचोड़ इन दो शदगे िें तन हि है : ‘नेति-नेति। यह भी नहीर, यह भी नहीर। जो भी िन के सािने आ
उसे कहो। यह भी नहीर। यह कहिे जाग और िन के सारे फनीचर को बाहर फेंकिे
जाग। ह ािे जाग। किरे को खाली कर दे ना है । लबलकुल खाली कर दे ना है । उसी खालीपन िें ि ना ि िी है ।’
अ र कुछ भी रह जा
ा िो िुि उससे प्रभादवि होिे रहो े। और िब िुि अपने को नहीर जान सको े। िुम्हारी
तनदतनिा दवनयगे िें खो जािी है। दवचारगे से भरा िन बाहर भ किा रहिा है । िब िुि स्तवयर से नहीर जुड़ सकिे। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-59
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—87 (ओशो)
िैं हार, यह िेरा है । यह-यह है । हे दप्रये, भाव िें भी असीिि: उिरो।
िैं हार, यह िेरा है । यह-यह है । हे दप्रये, भाव िें भी असीिि: उिरो।
‘िैं हार।’ िुि इस भाव िें कभी
हरे नहीर उिरिे हो कक िैं हार। है दप्रये, ऐसे भाव िें भी असीिि: उिरो।
िैं िुम्हें
क झेन कथा कहिा हार। िीन मित्र क रास्तिे से ज ु र रहे थे सरया उिर रही थी। और सारज डाब रहा था। िभी उन्हगेने क साधु को नजदीक की पहाड़ी पर खड़ा दे खा। वे लो आपस िें दवचार करने ल े कक साधु या कर रहा है ।
क ने कहा: ‘यह जरूर अपने मित्रगे की प्रिीक्षा कर रहा है । वह अपने झगेपड़े से िािने के मल
तनकला हो ा और उसके सर ी-साथी पीछे छा
हगे े। वह उनकी राह दे ख रहा है ।’
दस ा रे मित्र ने इस बाि को का िे हु कहा: ‘यह सही नहीर है , अ र कोच यक्ि ककसी की राह दे खिा है िो वह कभी-कभी पीछे िुड़ कर भी दे खिा है । लेककन यह आदिी िो पीछे की िरफ कभी नहीर दे खिा है । इसमल िेरा अनुिान है कक यह ककसी की राह नहीर दे ख रहा है । बक्ल्क उसकी सारज डाब रहा है । और जल्दी ही अँधेरा तिर जा की चो ी पर खड़ा दे ख रहा है । जर ल िें
ा। इसमल
ाय खो
वह अपनी
च है । सारझ तनक
आ रही है ।
ाय की िलाश कर रहा है । वह पहाड़ी
ाय कहार है ।’
िीसरे मित्र ने कहा: ‘ऐसा नहीर हो सकिा है । यगेकक वह इिना शारि खड़ा है , जरा भी इधर-उधर नहीर हलिा है । ऐसा नहीर ल िा है कक वह कहीर कुछ दे ख रहा है—उसकी आरखें भी बरद है । जरूर वह प्राथयना कर रहा हो ा। वह ककसी खोच हुच
ाय का या ककन्हीर पीछे छा
मित्रगे का इरिजार नहीर कर रहा है ।’
इस िरह वह िकय-दविकय करिे रहे । लेककन ककसी निीजे पर नहीर पहारच पा । कफर उन्हगेने िय ककया कक हिें पहाड़ी पर चलकर खुद साधु से पाछना चा ह कक आप या कर रहे है । और वे साधु के पास उपर ये। या आप अपने मित्र की प्रिीक्षा कर रहे है जो पीछे छा
है ।
साधु ने आरखें खोली और कहा: िैं ककसी की भी प्रिीक्षा िें नहीर हार। और िेरे न मित्र है और न शत्रु, क्जनकी िैं प्रिीक्षा करूर। यह कह कर उसने आरखे बरद कर ली। दस ा रे मित्र ने कहा : ‘िब िैं जरूर सही हार। या आप अपनी
ाय को खोज रहे है जो जर ल िें खो
च है ।’
साधु ने कहा: ‘नहीर िैं ककसी को नहीर खोज रहा हार—न ककसी िें भी उत्सुक नहीर हार।’
ाय को और न ककसी अन्य को। िैं स्तवयर के अतिररि
िीसरे मित्र ने कहा: ‘’िब िो तनक्चि ही आप कोच प्राथयना या कोच यान कर रहे है ।‘’ साधु ने कफर आरखे खोली और कहा: ‘िैं कुछ भी नहीर कर रहा हार िैं बस यहार हार।’ बौध स इसे ही यान कहिे है । अ र िुि कुछ करिे हो िो वह यान नहीर है । िुि बहुि दरा चले । अ र िुि प्राथयना करिे हो िो वह यान नहीर है ; िुि बािचीि करने ल े। अ र िुि कोच शबद उपयो िें लािे हो िो वह यान नहीर है ; िन उसिें प्रदवष् हार।
हो
या। उस साधु ने ठीक कहा। उसने कहा: िैं यहार बस हार, कुछ कर नहीर रहा
यह सात्र कहिा है : ‘िैं हार।’ इस भाव िें
हरे उिरो। बस बैठे हु इस भाव िें हरे उिरो कक िैं िौजाद हार। िैं हार। इसे अनुभव करो;इस पर दवचार िि करो। िुि अपने िन िें कह सकिे हो कक िैं हार; लेककन कहिे ही वह यथय हो या। िुम्हारा मसर सब
ुड़
ोबर कर दे िा है । मसर िें िि दोहरागर कक िैं जीिा हार, िैं हार। कहना यथय है ; कहना दो कौड़ी का है । िुि बाि ही चाक । इसे अपने प्राणगे िें अनुभव करो। इसे अपने पारे शरीर िें अनुभव करो। केवल मसर िें नहीर। इसे सिग्र इकाच की भारति अनुभव करो। बस अनुभव करो: ‘िैं हार।’
िैं हार, इन शदगे का उपयो िि करो। यगेकक िैं िुम्हें सिझा रहा हार, इसमल िुझे इन शदगे का उपयो पड़ रहा है । मशव पावयिी को सिझा रहे थे। इसमल उन्हें भी िैं हार को शदगे िें कहना पडा।
करना
िुि शदगे का उपयो
िि करा। यह कोच िरत्र नहीर है । िुम्हें यह दोहराना नहीर है कक िैं हार। अ र िुि दोहराग े िो िि ु सो जाग े। िुि आत्ि-सम्िो हि हो जाग े। जब िुि ककसी चीज को दोहरािे हो िो िुि आत्िा-सम्िो हि हो जािे हो। पहले दोहराने से ऊब पैदा होिी है ।
और कफर िुम्हें नीरद आने ल िी है । और कफर होश खो जािा है । िुि इस आत्ि-सम्िोहन िें जब वापस आग े िो बहुि िाजा अनुभव करो — े वैसे ही िाजा अनुभव करो ,े जैसे यह स्तवास्तथ्य के मल
हरी नीरद से जा ने पर करिे हो।
अछा है । लेककन यह यान नहीर है । अ र िुम्हें नीरद न आिी हो िो िि ु िरत्र का उपयो
कर सकिे हो। िरत्र लबलकुल रैंक्वलाइजर जैसा है —उससे भी बेहिर। िुि ककसी शद को तनरर िर दोहरािे रहो, उसका
कसुरा जाप करिे रहो। और िुम्हें नीरद ल
जा
ी। जो भी चीज ऊब लािी है । वह नीरद पैदा करिी है ।
िनोवैज्ञातनक और िनोतचककत्सक अतनिा से पीगड़ि लो गे को सलाह दे िे है कक िड़ी की और िुम्हें नीरद आ जा
ी। यह
क- क लोरी का काि करिा है । िार के
क- क सुनिे रहो
भय िें बचा तनरर जन नौ िहीने िक
सोया रहिा है । िार का ्दय तनरर िर धड़किा रहिा है और वह धड़कन नीरद का कारण बन जािी है । यही कारण है कक जब िुम्हें कोच अपने ्दय से ल ा लेिा है िो िुम्हें अछा ल ािा है । उस धड़कन के पास िुम्हें अछा ल िा है । िुि दवश्राि अनुभव करिे हो। जो भी चीज है । िुि सो जािे हो।
करसिा पैदा करिी है उसे दवश्राि मिलिा
िुि
ारव िें शहर के िुकाबले ज्यादा नीरद ले सकिे हो। यगेकक
शहर का जीवन मभन्न है । यहार प्रतिपल कुछ न कुछ नया हो ारव िें सब कुछ वहीर का वही रहिा है । सच िो यह है
ही नहीर है ।
ारव का जीवन
करस है , सपा
है , उबाऊ है ।
या है । सड़कगे का शोर ुल भी बदलिा रहिा है ।
ारव िें खबर ही तनमियि नहीर होिी है । वहार कुछ होिा
ारव िें सब कुछ विुल य िें ही िाििा रहिा है । इसमल
ारव के लो
हरी नीरद सोिे है । यगेकक
उनके चारगे और का जीवन उबाने वाला है । शहर िें नीरद क ठन है , यगेकक िुम्हारे चारगे और का जीवन उत्िेजना से भरा है ; वहार सब कुछ बदल रहा है ।
िुि कोच भी िरत्र काि िें ला सकिे हो। राि-राि या गि-गि कुछ भी चले ा। िुि जीसस क्राइस्त जप सकिे हो। अवे िाररया जप सकिे हो। कोच भी शद ले लो और उसे नीरद आ जा
ी। और िुि यह भी कर सकिे हो। रिण िहदनय साधना की
का नाि
क ही सुर िें जपिे रहो, िुम्हें
हरी
क दवतध बिािे थे कक स्तवयर पाछो
कक िैं कौन हार। लो गे ने उसको भी िरत्र बना मलया। वे आरखें बरद करके बैठिे थे और दोहरािे रहिे थे। ‘िैं कौन हार?’ िैं कौन हार? यह िरत्र बन या। लेककन वह रिण का उद्देय नहीर था। िो इसे िरत्र बनाग। बैठ कर यह िि दोहरागर कक िैं हार, उसकी कोच जरूरि नहीर है । सब जानिे है और िि ु भी जानिे हो कक िुि हो। उसकी जरूरि नहीर है । वह कफजाल है । िैं हार—यह अनुभव करो। अनभ ु व मभन्न बाि है । सवयथा मभन्न बाि है । दवचार करना अनभ ु व से बचने की िरकीब है । दवचार करना न केवल मभन्न है । बक्ल्क धोखा है ।
जब िैं कहिा हार कक अनुभव करो कक िैं हार िो उसका या ििलब है । िैं इस कुसी पर बैठा हार। अ र िैं अनुभव करने ल ा कक िैं हार िो िैं अनेक चीजगे के प्रति बोधपाणय हो जाऊँ ा। कुसी पर पड़ने वाले दबाव का बोध हो ा। िखिल के स्तपशय का बोध हो ा। किरे से हवा के
ुजरने का बोध हो ा। िेरे शरीर से वतन के स्तपशय
होने का बोध हो ा। ्दय की धड़कन का बोध हो ा। शरीर िें खान िौन प्रवाह का बोध हो ा, शरीर की सा्ि िरर
क
का बोध हो ा। हिारा शरीर जीवरि और
िरर ातयि हो रहे हो। तनरर िर
त्यात्िक है ; वह कोच क्स्तथर, ठहरी हुच चीज नहीर है । िुि क सा्ि करपन जारी है ; और जब िक िुि जीदवि हो, यह जारी रहे ा। िो क
करपन का बोध हो ा। िुि सारी बहुआयािी चीजगे के प्रति बोध से भर जाग े।
और अ र िुि इसी क्षण अपने भीिर-बाहर होने वाली चीजगे के प्रति इिने ही बोधपण ा य हो जाग, िो िैं हार का वह अनुभव हो ा जो उसका ििलब है । अ र िुि परा ी िरह बोधपण ा य हो जाग िो दवचार रूक जाये े। यगेकक जब िुि अनभ ु व ऐसी सिग्र ि ना है कक उसिें दवचार नहीर चल सकिा।
शुरू-शुरू िें िुि पाग े कक दवचार िैर रहे है । लेककन धीरे -धीरे जब अक्स्तित्व िें िुम्हारी जड़ें
हरी हो ी। क्जिने
ही िुि अपने होने के अनुभव िें तथर हो े। उिने ही दवचार दरा होिे जा र े। और िुि इस दरा ी को िहसास करो े। िुम्हें ल े ा कक यह दवचार िुझे नहीर , ककसी और को ि
रहे है —बहुि-बहुि दरा । दरा ी स्तपष्
हो ी। और िुि जब वस्तिुि: अपने केंि िें अपने होने िें क्स्तथि हो जाग ,े िब िन दवलीन हो जा हो ;े लेककन न कोच शद हो ा, न कोच प्रतिलबरब हो ा।
ऐसा यगे होिा है ? यगेकक िन दस ा रगे से सरबरतधि होने का िुझे िन का उपयो
अनुभव ा। िुि
क उपाय है । य द िुझे िुिसे सरबरतधि होना है । िो
करना हो ा। िुझे शदगे का और भाना का उपयो
करना पड़े ा। यह सािाक्जक ि ना है ,
सािा हक कक्रया है । अ र िुि अकेले िें भी बोलिे हो िो िुि अकेले नहीर हो। िुि ककसी अन्य यक्ि से बोल
रहे हो। भले ही िुि अकेले हो, लेककन अ र िुि बािचीि कर रहे हो िो िुि अकेले नहीर हो। िुि ककसी से बािें कर रहे हो। िुि अकेले कैसे बािें कर सकिे हो। कोच और िन के भीिर िौजाद है और िुि उससे बोल रहे हो।
िैं दशयन शास्तत्र के
क अयापक की आत्िकथा पढ़ रहा था। उसने अपने सरस्तिरण िें कहा है कक
क दन वह
अपनी पाँच साल कक बे ी को स्तकाल छोड़ने जा रहा था। बे ी को स्तकाल िें छोड़कर उसे दववदववायालय पहुरचना था और वहार लेचर दे ना था। िो वह रास्तिे िें अपने लेचर की िैयारी करने ल ा। वह भाल ही
या कक उसकी बे ी कार िें उसके ब ल िें बैठी है और वह
बोल-बोल कर लेचर दे ने ल ा। लड़की कुछ क्षणगे िक सब सुनिी रही और कफर उसने पाछा: ’डैडी, आप िुझसे बोल रहे है या िेरे लबना बोल रहे है ।’
जब भी िुि बोलिे हो िो ककसी से बोलिे हो—ककसी न ककसी से बोलिे हो। चाहे वह वहार उपक्स्तथि न हो, लेककन िुम्हारे मल वािायलाप है । वह
वह उपक्स्तथि है , िुम्हारे िन के मल
क सािाक्जक कृत्य है । इसमल
भाना से वरतचि रह जा
वह उपक्स्तथि है । सब दवचार वािायलाप है दवचार िात्र
अ र ककसी बचे को सिाज के बाहर बड़ा ककया जा
ा। वह बािचीि करना नहीर सीख पा
भाना नहीर हो सकिी। भाना सािाक्जक ि ना है ।
िो वह
ा। सिाज िुम्हें भाना दे िा है । सिाज के लबना
जब िुि अपने िें प्रतिक्ष्ठि हो जािे हो िो कोच सिाज नहीर रहिा है । कोच भी नहीर रहिा है । िात्र िुि होिे हो। िन दवलीन हो जािा है । िब िुि ककसी से सरबरतधि नहीर हो रहे हो—कल्पना िें भी नहीर—और इसीमल
िन
दवलीन हो जािा है । िुि िन के लबना होिे हो—और यही यान है । िन के लबना होना ही यान है । िुि िाक्छय ि नहीर हो, पाणि य : सज रहे हो। लेककन िन खो
और सावचेि हो, अक्स्तित्व को उसकी सिग्रिा िें उसके बहु-आयाि िे अनुभव कर या है ।
और िन के खोने के साथ ही अनेक चीजें दवदा हो जािी है । िन के साथ िुम्हारा नाि दवदा हो जािा हे । िन
के साथ िुम्हारा रूप दवदा हो जािा है । िन के साथ िुम्हारा हरद,ा िुसलिान या पारसी होना दवदा हो जािा है ।
िन के साथ ही िुम्हारा भला या बुरा होना, पुण्यात्िा या पापी होना सुरदर या कुरूप होना दवदा हो जािा है । िन के साथ ही िुम्हारा सब कुछ, जो िुि पर थोपा प्रक
या था, दवलीन हो जािा है । िब िुि अपनी िौमलक शुध सिा िें
होिे हो। िब िुि अपनी सिग्र तनदतनिा िें, अपने कुँवारे पन िें प्रक
झगेकगे िें उड़िे रहिे हो। िुि अक्स्तित्व िें प्रतिक्ष्ठि होिे हो। िन के साथ िुि अिीि िें
होिे हो। िब िुि तिनके की िरह
ति कर सकिे हो। िन के साथ िुि भदवष्य की यात्रा कर सकिे हो। िन के लबना
न िुि अिीि िें जा सकिे हो और न भदवष्य िें । िन के लबना िुि यहार और अभी हो। िन के दवलीन होिे ही वियिान क्षण शावि हो जािा है । वियिान क्षण के अतिररि और कुछ नहीर रहिा है । और आनरद ि ि होिा
है । िुम्हें ककसी खोज िें नहीर जाना है । वियिान क्षण िें क्स्तथि, आत्िा िें प्रतिक्ष्ठि—िुि आनर दि हो। और यह आनरद कुछ ऐसा नहीर है जो िुम्हें ि ि होिा है । िुि स्तवयर आनरद हो।
िुिने कभी अपने शरीर को अनुभव नहीर ककया। िुम्हारे हाथ है , लेककन िुिने उन्हें भी कभी अनुभव नहीर ककया। िुिने कभी नहीर जाना कक हाथ या करिे है । वे सिि िुम्हें या-या साचना र दे िे रहिे है । हाथ कभी भारी
और उदास होिा है और कभी हलका और प्रफुक्ल्लि। कभी उसिें रसधार बहिी है । और कभी सब कुछ िुदाय हो जािा है । कभी िुि उसे जीवरि और नत्ृ य करिे हु पािे हो और कभी ऐसा ल िा है कक उसिें जीवन नहीर है । वह जड़ और िि ृ है , िुिसे ल का है , लेककन जीदवि नहीर है । जब िुि अपने अक्स्तित्व को अनुभव करने ल िे हो िो सारा ज ि िुम्हारे मल उठिा है । अब िुि उसी सड़क से
ुजरिे हो क्जससे रोज
सवयथा न
रूप िें जीदवि हो
ुजरिे थे, लेककन अब वह सड़क वही सड़क नहीर है ।
यगेकक अब िुि अक्स्तित्व िें कें िि हो। िुि उन्हीर मित्रगे से मिलिे हो क्जनसे सदा मिलिे थे। लेककन अब वे वही नहीर है । यगेकक िुि बदल
हो। िुि अपने िर वापस आिे हो िो क्जस पत्नी के साथ वनों से रहिे आ
हो उसी भी सवयथा मभन्न पािे हो। वह भी वही नहीर रही। िुि सो -सो
चलिे हो और ऐसे ही सो
िुम्हें बस इिना होश है कक िुि
लो गे की भीड़ के बीच जीिे हो। प्रत्ये क यक्ि
हरी नीरद िें सो
लो गे के बीच से
हरी नीरद िें है ।
ुजरिे हो और लबना ककसी दि ु य ना के
अपने िर वापस आ जािे हो। बस इिना ही। इिना होश िुम्हें है । और िनुष्य के मल
यह अल्पिि सरभावना
है । यही कारण है कक िुि इिने ऊबे हु हो। इिने सुस्ति और िरद हो। जीवन क बोझ है । और भीिर प्रत्ये क िनुष्य िि ृ यु की प्रिीक्षा कर रहा है । िाकक जीवन से छु कारा हो। ित्ृ यु ही क िात्र आशा िालाि पड़िी है । ऐसा यगे है? जीवन परि आनरद हो सकिा है । वह इिना ऊब भरा यो है? यगेकक िुि जीवन िें कें िि नहीर हो। िुि जीवन से उखड़़़ अतधकिि पर जीिे हो।
ये हो। िुि अल्पिि पर जीिे हो। और जीवन िो िभी ि ि होिा है जब िि
यह सात्र िुम्हें अतधकिि जीवन प्रदान करे ा। दवचार िुम्हें अल्पिि ही दे सकिा है । भाव िुम्हें अतधकिि दे सकिा है । जीवन की रहा िन से होकर नहीर जािी, ्दय से होकर ही उसकी राह है । ‘िैं हार। इसे ्दय से अनुभव करो। और अनुभव करो कक यह अक्स्तित्व िेरा है ।’ ‘यह िेरा है । यह-यह है ।’ यह बहुि सुरदर है —इसे अनुभव करो। इसिे क्स्तथि होग। और कफर जानो कक यह िेरा है , यह अक्स्तित्व, यह प्रवाहिान जीवन िेरा है । िुि कहे चले जािे हो कक यह िर िेरा है, यह सािान िेरा है । िुि अपनी चीज की बािें करिे रहिे हो और िुम्हें पिा भी नहीर चलिा की िम् ु हारी सची सरपदा या है । सिग्र जीवन, सिस्ति आत्िा िुम्हारी सरपदा है । िुम्हारे भीिर
हनत्ि सरभावना है । अक्स्तित्व का आत्यरतिक रहस्तय िुििें तछपा है और िुि उसके िामलक हो।
मशव कहिे है : ‘िैं हार—इसे अनुभव करो। और अनुभव करो कक यह िेरा है । यह बाि सिि स्तिरण रखनी है कक इसे दवचार नहीर बना लेना है । इसे अनुभव करो, ्दय से अनुभव करो कक यह िेरा है । यह अक्स्तित्व िेरा है और िब िुि कृत्यज्ञिा अनभ ु व करो े, िब िुि अहोभाव अनुभव करो े।
अभी िो िुि परिात्िा को धन्यवाद कैसे दे सकिे हो? िुम्हारा धन्यवाद भी ऊपरी है । औपचाररकिा है । और कैसी हिारी दीनिा है कक हि परिात्िा के साथ भी औपचाररकिा बरििे है । िुि कृिज्ञ कैसे हो सकिे हो? कृिज्ञ होने लायक िुिने कुछ ककया ही नहीर है, कुछ ऐसा जाना ही नहीर है । अ र िुि अपने को अक्स्तित्व िें कें िि अनुभव कर सको। उसके साथ
क अनुभव कर सको, उससे पररपाररि
अनुभव कर सको। उसके साथ नत्ृ य िें सहभा ी हो सको—िब िुि अनुभव करो े कक यह िेरा है , यह अक्स्तित्व िेरा है । िब िुम्हें प्रिीति हो ी कक यह सिस्ति रहस्तयिय ब्रह्िारड िेरा है । यह सारा ज ि िेरा मल है । उसने पैदा ककया है और िैं उसका ही फाल हार।
अक्स्तित्व िें
यह चेिना जो िुम्हें मिली है , यही ज ि का सरुदरिि फाल है । और करोड़ो-करोड़ो वनत से यह पथ्ृ वी िुम्हारे होने के मल
िैयार है ।
‘’यह िेरा है । यह-यह है ।‘’ यह अनुभव करना है । अनभ ु व करना है कक यही जीवन है, ऐसा है —यह िथािा। अनुभव करना कक िैं नाहक ही
तचरिा कर रहा हार। िैं यथय ही मभखारी बना हुआ था। यथय ही अपने को मभखारी सिझ रहा था। िैं िो िामलक हार। जब िुि कें िि होिे हो िो िुि सिक्ष् के साथ पण ा य के साथ हो जािे हो। और िब सिस्ति अक्स्तित्व िुम्हारे मल
है ; िब िुि मभखारी नहीर हो, िुि अचानक सम्रा
हो जािे हो।
यह-यह है । दप्रये ऐसे भाव िें भी असीिि: उिरो। और यह अनुभव करिे हु उसकी कोच सीिा िि बनाग, उसे असीिि: अनुभव करो। उस पर कोच सीिा-रे खा िि खीरचो; कोच सीिा है भी नहीर। वह कहीर सिाि होिा है । अक्स्तित्व का न कोच आरर भ है और न अरि। और िुम्हारा भी कोच आरर भ और अरि नहीर है । आरर भ और अरि िन के कारण है । िन का आरर भ है और िन का अरि है । अपने जीवन िें वापस लो गे, पीछे की और चलो। और िुि पाग े कक
क क्षण आिा है जहार सब कुछ ठहर जािा है । वहार आरर भ है —िन का आरर भ।
िुि पीछे वहार िक स्तिरण कर सकिे हो। जब िुि िीन वनय के रहे हो े या ज्यादा से ज्यादा दो वनय के रहे
हो े। दो वनय िक लौ ना बहुि दल य है —वहार जाकर स्तितृ ि ठहर जािी है । िुि अपनी स्तितृ ि िें ज्यादा से ु भ ज्यादा वहार िक लौ सकिे हो जब िुि दो वनय के थे। इसका या अथय है? इसके पहले की, दो वनय की उम्र के पहले की कोच स्तितृ ि िुम्हारे पास नहीर है । अचानक नहीर िालाि है ।
क शान्य, क
ैप आ जािा है । िुम्हें उसके आ े कुछ भी
या िुम्हें अपने जन्ि के सरबरध िें कुछ याद है? या िुम्हें उन नौ िहीनगे का कुछ स्तिरण है जब िुि िार के पे
िें थे? िुि िो थे, लेककन िन नहीर था। िन का आरर भ दो वनय की उम्र के आसपास हुआ। यही कारण है कक दो वनय की उम्र िक िुि लौ कर स्तिरण कर सकिे हो। उसके आ े िन नहीर है । वहार स्तितृ ि ठहर जािी है । िो िन का आरर भ है । िन का अरि है । लेककन िुम्हारा कोच आरर भ नहीर है । िुि अना द हो। अ र िें , अ र ऐसे यान िें िुि अक्स्तित्व को अनुभव कर सको िो िन नहीर है । केवल का प्रवाह है , जा तिक ऊजाय का प्रवाह है । िुम्हारे चारो और
हन यान
क आरर भहीन, अरिहीन ऊजाय
क अनरि असीि सा र है और िुि उसिें िात्र
क
लहर हो। लहर का आरर भ है और अरि है । लेककन सा र का कोच आरर भ और अरि नहीर है । और जब िुि जान लेिे हो कक िुि लहर नहीर हो, सा र हो, िो सब दख ु , सब सरिाप दवलीन हो जािा है । िुम्हारे दुःु ख की नीरव िें, उसकी
हराच िें या है ? उसकी
हराच िें ित्ृ यु है । िुि भयभीि हो कक िुम्हारा अरि
हो ा, िुम्हारी ित्ृ यु हो ी। वह लबलकुल तनक्चि है । ज ि िें कुछ भी उिना तनक्चि नहीर है । क्जिनी ित्ृ यु
तनक्चि है । वही भय है । वही करपन है । वहीर दुःु ख है । कुछ भी करो। िुि ित्ृ यु के सािने असहाय हो। लाचार
हो। कुछ भी नहीर ककया जा सकिा है । ित्ृ यु होने ही वाली है । और यह बाि िुम्हारे चेिन-अचेिन िन िें चलिी ही रहिी है । जब यह बाि चेिन िन िें उभर आिी है । िुि ित्ृ यु से भयभीि हो जािे हो। कफर िुि उसे दबा दे िे हो, और वह भय अचेिन िें सरकिा रहिा है । प्रत्ये क क्षण िुि ित्ृ यु से, मि ने से भयभीि हो।
िन मि े ा, लेककन िुि नहीर मि ो े। ि र िुि अपने को नहीर जानिे हो। िुि क्जसे जानिे हो वह िन है । वह
तनमियि हुआ है । उसका आरर भ है और उसका अरि हे । क्जसका आरर भ है , उसका अरि तनक्चि है । अ र िुि अपने भीिर खोज सको क्जसका कोच आरर भ नहीर है । जो बस है , क्जसका कोच अरि नहीर है । िो ित्ृ यु का भय दवलीन हो जािा है ।
और जब ित्ृ यु का भाव खो जािा है । िब िुिसे प्रेि प्रवा हि होिा है —उसके पहले नहीर। जब िक ित्ृ यु है िब िक िुि प्रेि कैसे कर सकिे हो? िुि ककसी से तचपके रह सकिे हो। लेककन िुि प्रेि नही कर सकिे। िुि ककसी का उपयो
कर सकिे हो। िुि प्रेि नहीर कर सकिे। िुि ककसी का शोनण कर सकिे हो। िुि प्रेि का
फाल नहीर लखला सकिे हो।
प्रत्येक िनुष्य िरने वाला है , प्रत्येक िनुष्य या िें, किार िें खड़ा अपने सिय का इरिजार कर रहा है । िुि प्रेि कैसे कर सकिे हो। परा ी बाि ही बेिक ु ी िालि ा पड़िी है। ित्ृ यु है िो प्रेि अथयहीन िालि ा पड़िा है। यगेकक ित्ृ यु सब कुछ मि ा दे ी। प्रेि भी शावि नहीर है । िुि अपने दप्रयजन के मल हो। यगेकक िुि ित्ृ यु को नहीर
ाल सकिे हो। ित्ृ यु सब के पीछे खड़ी है ।
िुि ित्ृ यु को भाल सकिे हो। िुि
चाहिे हु
भी कुछ नहीर कर सकिे
क धोखा तनमियि कर सकिे हो। िुि िान सकिे हो की ित्ृ यु नहीर है ।
लेककन िुम्हारा सब िानना ऊपर का है ।
हरे िें िुि जानिे हो कक ित्ृ यु होने वाली है । अ र ित्ृ यु है िो जीवन
अथय हीन िालाि होिा है । िुि झाठे अथय रच ले सकिे हो। लेककन उनसे कुछ हल नहीर हो ा। थोड़ी दे र के मल
उनसे सहारा मिल सकिा है । लेककन कफर सचाच उभरे ी और अथय खो जा र े। िुि बस अपने को धोखे िें रख सकिे हो, िुि सिि आत्ि वरचना िें रह सकिे हो—य द िुि उसे नहीर जानिे हो जो अना द और अरनि है , जो ित्ृ यु के पार है ।
अिि ृ को जानने पर ही प्रेि सरभव है , यगेकक िब ित्ृ यु नहीर है। प्रेि सरभव है । बुध स िुम्हें प्रेि करिे है । जीसस िुम्हें प्रेि करिे है । लेककन वह प्रेि िुम्हारे मल दवलीन होने से आया है ।
लबलकुल अपररतचि है । सवयथा अज्ञाि है । वह प्रेि भय के
िुम्हारा प्रेि िो भय से बचने का उपाय भर है । इसमल
जब िुि प्रेि िें होिे हो, िुि तनभयय िालाि पड़िे हो।
कोच िुम्हें बल दे िा है । और यह पारस्तपररक बाि है । िुि दस ा रे को बल दे िे हो। दस ा रा िुम्हें बल दे िा है । दोनगे दीन-हीन है और दोनगे ककसी दस ा रे को खोज रहे है । और कफर दो दीन हीन यक्ि मिलिे है और
क दस ा रे को
बल दे ने की चेष् ा करिे है । यह चित्कार है । यह हो कैसे सकिा है ? यह केवल वरचना है , धोखा है । िुि सोचिे
हो कक कोच िुम्हारे पीछे है , िुम्हारे साथ है । लेककन िुि भली भारति जानिे हो कक ित्ृ यु िें कोच भी िुम्हारे साथ नहीर हो सकिा। और जब कोच ित्ृ यु िें िुम्हारे साथ नहीर हो सकिा िो वह जीवन िें िुम्हारे साथ कैसे हो सकिा है । यह ित्ृ यु को
ककसी की जरूरि नहीर है ।
ालने का, भुलाने का उपाय भर है । यगेकक िुि भयभीि हो, िुम्हें तनभयय होने के मल
कहा जािा है , इिसयन ने कहीर कहा है , कक बड़े से बड़ा योध सा भी अपनी पत्नी के सािने कायर होिा है । नेपोमलयन भी पत्नी के सािने कायर है । यगेकक पत्नी जानिी है कक पति को उसके सहारे की जरूरि है । उसे स्तवयर होने के मल
उसके बल की जरूरि है । पति पत्नी पर तनभयर है । जब वह युध स क्षेत्र से वापस आिा है, लड़ कर वापस
आिा है, िो कारपिा आिा है । भयभीि आिा है । पत्नी की बाँहगे िें दवश्राि पािा है । आवासन पािा है । पत्नी उसे सारत्वना दे िी है । आवस्ति करिी है । पत्नी के सािने वह बचे जैसा हो जािा है । हरे क पति पत्नी केसािने
बचा है । और पत्नी? वह पति पर तनभयर है । वह पति के सहारे जीिी है । वह पति के लबना नहीर जी सकिी है । पति उसका जीवन है । पारस्तपररक धोखा है । दोनगे भयभीि है , यगेकक ित्ृ यु है । दोनगे
क दस ा रे के प्रेि िें ित्ृ यु को भुलाने की चेष् ा
करिे है । प्रेिी-प्रेमिका तनभीक हो जािी है । या तनभीक होने की चेष् ा करिे है । वे कभी-कभी बहुि तनभीकिा के साथ ित्ृ यु का िुकाबला भी कर लेिे है । लेककन वह भी ऊपरी है ; वैसा दखिा भर है । हिारा प्रेि भय का ही अर
है । उससे बचने के मल
है । सचा प्रेि िब ि ि होिा है जब भय नहीर रहिा है ।
जब भय दवलीन हो जािा है । जब िुि जानिे हो कक न िुम्हारा कोच आरर भ है और न िुम्हारा कोच अरि है । और इस पर दवचार िि करो। भय के कारण िुि ऐसा सोचने ल
सकिे हो। िुि सोच सकिे हो। ‘हार, िैं
जानिा हार,िेरा कोच अरि नहीर है । िेरी कोच ित्ृ यु नहीर है । आत्िा अिर है ।’ िुि भय के कारण ऐसा सोच सकिे हो, लेककन उसिे कुछ भी नहीर हो ा। प्रािालणक अनुभव िभी हो ा जब िुि यान िें
हरे उिरो े। िब भय दवसक्जयि हो जा
ा। यगेकक िुि स्तवयर
को अनरि-असीि दे खिे हो। िुि अनरि की िरह फैल जािे हो—आ दहीन अिीि िें , अरिहीन भदवष्य िें । और इस क्षण िें ,इस वियिान क्षण िें उसकी िुम्हारा कभी अरि नहीर हो ा।
हराच िें िुि हो। िुि बस हो, सनािन से हो—िुम्हारा कभी आरर भ नहीर था,
इसे असीिि: अनुभव करो, अनरिि: अनुभव करो। गशो दवज्ञान भैरव िरत्र, भा -चार प्रवचन-59
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—88 (ओशो)
‘प्रत्येक िस्तु ज्ञान के द्िारा ही दे खी जाती है । ज्ञान के द्िारा ही आत्िा क्षेत्र िें प्रकामशत होती है । उस एक को
ज्ञाता और ज्ञेय की भांतत दे खो।’
प्रत्येक वस्तिु ज्ञान के वावारा ही दे खी जािी है ।….मशव
जब भी िुि कुछ जानिे हो, िुि उसे ज्ञान के वावारा, जानने के वावारा जानिे हो। ज्ञान की क्षििा के वावारा ही
कोच दवनय िुम्हारे िन िें पहुरचिा है । िुि क फाल को दे खिे हो; िुि जानिे हो कक यह ल ु ाब का फाल है । ुलाब का फाल बाहर है और िुि भीिर हो। िि ु से कोच चीज ुलाब िक पहुँचिी है । िुिसे कोच चीज फाल िक आिी है । िुम्हारे भीिर से कोच उजाय है और लौ
ति करिी है ।
कर िुम्हें खबर दे िी है कक यह
क्षििा के वावारा िुि पर प्रक जािा है ।
ुलाब िक आिी है , उसका रूप रर
और
रध ग्रहण करिी
ुलाब का फाल है । सब ज्ञान, िुि जो भी जानिे हो, जानने की
होिा है । जानना िुम्हारी क्षििा है ; सारा ज्ञान इसी क्षििा के वावारा अक्जयि ककया
लेककन यह जानना दो चीजगे को प्रक
करिा है —ज्ञाि को और ज्ञािा को। जब भी िुि
ुलाब के फाल को जानिे
हो, िब अ र िुि ज्ञािा को, जो जानिा है उसको भाल जािे हो। िो िुम्हारा ज्ञान आधा ही है । िो जानने िें िीन चीजें ि ि हुच: ज्ञेय यानी
ुलाब को
र यानी ज्ञान। ुलाब, ज्ञािा यानी िुि और दोनगे के बीच का सरबध
िो जानने की ि ना को िीन लबरदग ु र िें बार ा जा सकिा है । ज्ञािा, ज्ञेय और ज्ञान। ज्ञान दो लबरदग ु र के बीच, ज्ञािा और ज्ञेय के बीच सेिु की भारति है । सािान्यि: िुम्हारा ज्ञान मसफय ज्ञेय को, दवनय को प्रक और ज्ञािा जानने वाला अप्रक
रह जािा है । सािान्यि: िुम्हारे ज्ञान िें
करिा है ।
क ही िीर होिा है । वह िीर
ल ु ाब
की िरफ िो जािा है । लेककन वह कभी िुम्हारी िरफ नहीर जािा। और जब िक वह िीर िुम्हारी िरफ भी न
जाने ल े िब िक ज्ञान िुम्हें सरसार के सरबरध िें िो जानने दे ा। लेककन वह िुम्हें स्तवयर को नहीर जानने दे ा। यान की सभी दवतधयार जानने वाले को प्रक प्रयो
करने की दवतधयार है । जाजय
ुरक्ज फ इसी िरह की
क दवतध का
करिा था। वह इसे आत्ि-स्तिरण करिा था। उसने कहा है कक जब िुि ककसी चीज को जान रहे हो िो
सदा जानने वाले को भी जानो। उसे दवनय िें िि भुला दो; जानने वाले को भी स्तिरण रखो। अभी िि ु िुझे सुन रहे हो। जब िुि िुझे सन ु रहे हो िो िुि दो ढर गे से सुन सकिे हो।
क कक िुम्हारा िन
मसफय िुझ पर कें िि हो। िब िुि सुनने वाले को भाल जािे हो। िब बोलने वाला िो जाना जािा है , लेककन
सुनने वाला भुला दया जािा है । जानगे।
रु क्ज फ कहिा था कक सन ु िे हु
िुम्हारे ज्ञान को वादविुखी होना चा ह । वह हो। उसे
बोलने वाले के साथ-साथ सुनने वाले को भी
क साथ दो लबरदग ु र की गर, ज्ञािा और ज्ञेय दोनगे की और प्रवा हि
क ही दशा िें मसफय दवनय की दशा िें नहीर बहना चा ह । उसे
क साथ दो दशागर िें , ज्ञेय और
ज्ञािा की िरफ प्रवा हि होना चा ह । इसे ही आत्िा–स्तिरण कहिे है । फाल को दे खिे हु जो दे ख रहा है । यह क ठन है । यगेकक अ र िि ु प्रयो ल ु ाब को भाल जाग े। िुि
करो ,े अ र दे खने वाले को स्तिरण रखने की चेष् ा करो े िो िुि
क ही दशा िें दे खने के ऐसे आदी हो
दे खने िें थोड़ा सिय ल ािा है । अ र िुि ज्ञािा के प्रति सज िुि ज्ञेय के प्रति सज सज
इसे ही कफर
उसे भी स्तिरण रखो
होिे हो िो ज्ञािा दवस्तिि ृ हो जा
होने िें सिथय हो जाग े।
हो कक साथ-साथ दस ा री दशा को भी
होिे हो िो ज्ञेय दवस्तिि ृ हो जा
ा। और अ र
ा। लेककन थोड़े प्रयेत्न से िुि धीरे -धीरे दोनगे के प्रति
ुरक्ज फ आत्ि-स्तिरण कहिा है । यह
क बहुि प्राचीन दवतध है । बुध स ने इसका खाब उपयो ककया था। रु क्ज फ इस दवतध को पक्चिी ज ि िें लाया। बुध स इसे सम्यक स्तितृ ि कहिे थे। बुध स ने कहा कक िुम्हारा
िन सम्यक रूपेण स्तितृ िवान नहीर है । अ र वह
क ही लबरद ु को जानिा है । उसे दोनगे लबरदग ु र को जानना
चा ह ।
और िब
क चित्कार ि ि होिा है । अ र िुि ज्ञेय और ज्ञािा दोनगे के प्रति बोधपाणय हो िो अचानक िुि
िीसरे हो जािे हो। िुि दोनगे से अल
िीसरे हो जािे हो। ज्ञेय और ज्ञािा दोनगे को जानने के प्रयत्न िें िुि
िीसरे हो जािे हो। साक्षी हो जािे हो। ित्क्षण
क िीसरी सरभावना प्रक
होिी है —साक्षी आत्िा का जन्ि होिा
है । यगेकक िुि साक्षी हु लबना दोनगे को कैसे जान सकिे हो? अ र िुि ज्ञािा हो िो िुि क लबरद ु पर क्स्तथर हो जािे हो। उससे बरध जािे हो। आत्िा-स्तिरण िें िुि ज्ञािा के क्स्तथर लबरद ु से अल हो जािे हो। उससे बरध जािे हो। आत्ि-स्तिरण िें िुि ज्ञािा के
क अल
हो जािे हो। िब ज्ञािा िुम्हारा िन है और ज्ञेय सरसार है
और िुि िीसरा लबरद ा हो जािे हो—चैिन्य, साक्षी, आत्िा।
इस िीसरे लबरद ु का अतिक्रिण नहीर हो सकिा। और क्जसका अतिक्रिण नहीर हो सकिा,क्जसके पार नहीर जाया
जा सकिा, वह परि है । क्जसका अतिक्रिण हो सकिा है वह िहत्वपाणय नहीर है । यगेकक वह िुम्हारा स्तवभाव नहीर है । िुि उसका अतिक्रिण कर सकिे हो। िैं इस
क उदाहरण से सिझाने की कोमशश करूर ा। राि िें िुि सोिे हो और सपना दे खिे हो; सुबह िुि
जानिे हो और सपना खो जािा है । जब िुि जा े हु हो, जब िुि सपना नहीर दे ख रहे हो, िब क मभन्न ही ज ि िुम्हारे सािने होिा है । िुि रास्तिगे पर चलिे हो; िुि ककसी कारखाने या कायायलय िें काि करिे हो। कफर िुि अपने िर लौ
आिे हो। और राि िें सो जािे हो। और वह सरसार क्जसे िुिने जा िे हु जाना था, दवदा हो जािा है । िब िुम्हें स्तिरण नहीर रहिा कक िैं कौन हार। िब िुि नहीर जानिे हो कक िैं काला हार या ोरा हार। रीब हार या अिीर हार, बुदध सिान हार या बेवकाफ, िुि कुछ भी नहीर जानिे हो। कक िैं जवान हार या बाढ़ा। िुि नहीर
जानिे हो कक िैं स्तत्री हार या पुरून हार। जाग्रि चेिना से जो कुछ सरबरतधि था वह सब दवलीन हो जािा है । और िुि कफर स्तवन के सरसार िें प्रवेश कर जािे हो। िुि उस ज ि को भाल जािे हो जो िुिने जा िे िें जाना था; वह लबलकुल खो जािा है । और सुबह कफर सपने का सरसार दवदा हो जािा है । िुि यथाथय की दतु नयार िें लौ आिे हो।
इनिें से कौन सच हो? यगेकक जब िुि सपना दे ख रहे हो िब वह यथाथय सरसार, क्जसे िुि जा िे हु जानिे हो, खोजिा है । िुि िुलना भी नहीर कर सकिे; यगेकक जब िुि जा े हु हो िो सपने का सरसार नहीर रहिा है । इसमल
िुलना असरभव है । कौन सच है? िुि स्तवन ज ि को झाठा कैसे कहिे हो? कसौ ी यगे है ?
अ र िुि यह कहिे हो कक यगेकक जब िैं जा िा हार िो स्तवन ज ि दवलीन हो जािा है । िो यह दलील कसौ ी नहीर बन सकिी, यगेकक जब िुि सपना दे खिे हो िो िुम्हारा जाग्रि ज ि वैसे ही दवलीन हो जािा है । और सच िो यह है कक अ र िुि इसी को कसौ ी िानो िो स्तवन ज ि ज्यादा सच िालाि पड़िा है । यगेकक जा ने पर िुि स्तवन को याद कर सकिे हो, लेककन जब िुि स्तवन दे ख रहे हो जब जाग्रि चेिना को और
उसके चारगे गर के ज ि को लबलकुल पगेछ दे िा है । क्जसे िुि असली सरसार कहिे हो। और िुम्हारा असली
सरसार स्तवन के सरसार को पारी िरह से नहीर पगेछ पािा है । िब कसौ ी या है ? कैसे िय ककया जा ? कैसे िुलना की जा ?
िरत्र कहिा है कक दोनगे झाठ है । िब सत्य या है? िरत्र कहिा है कक सत्य वह है जो स्तवन ज ि को जानिा है
और जो जाग्रि ज ि को भी जानिा है । वही सत्य है; यगेकक उसका कभी अतिक्रिण नहीर हो सकिा। वह कभी ह ाया नहीर जा सकिा है । चाहे िुि सपना दे ख रहे हो या जा े हु हो, वह है , वह अमि है । िरत्र कहिा है कक वह जो स्तवपन को जानिा है कक अब जाग्रि ज ि खो या है । वह सत्य है —यगेकक ऐसा कोच लबरद ु नहीर है जहार वह नहीर है ; वह सदा है । क्जसे ककसी भी अनभ ु व से अल
नहीर ककया जा सकिा, वह सत्य है ।
वह क्जसका अतिक्रिण नहीर हो सकिा, क्जसके पार िुि नहीर जा सकिे हो, वह िुि हो, वह िुम्हारी आत्िा है । और अ र िुि उसके पार जा सकिे हो िो वह िुम्हारी आत्िा नहीर है ।
ुरक्ज फ की यह दवतध क्जसे वह आत्ि-स्तिरण कहिा है , यह बुध स की यह दवतध क्जसे वह सम्यक स्तितृ ि कहिे
है , या िरत्र की यह दवतध िुम्हें
क ही ज ह पहुरचा दे िी है । वह िुम्हें भीिर उस लबरद ु पर पहुरचा दे िी है जो न ज्ञेय है और न ज्ञािा है । बक्ल्क जो साक्षी आत्िा है, जो ज्ञेय और ज्ञािा दोनगे को जानिी है । यह साक्षी परि है ; िुि उसके पार नहीर जा सकिे हो। यगेकक अब िुि जो भी करो े वह साक्षी-भाव ही हो ा। िुि साक्षी भाव के आ े नहीर जा सकिे। िो साक्षी-भाव चैिन्य का परि आधार है , आत्यरतिक ित्व है । यह सात्र िुि पर साक्षी को प्रक
कर दे ा।
‘प्रत्येक वस्तिु ज्ञान के वावारा ही दे खी जािी है । ज्ञान के वावारा ही आत्िा क्षेत्र िें प्रकामशि होिी है । उस
क को
ज्ञािा और ज्ञेय की भारति दे खो।’
य द िुि अपने भीिर उस लबरद ु को दे ख सके िो ज्ञािा और ज्ञेय दोनगे है । िो िुि आजे्स और सजै दोनगे के पार हो दोनगे के पार हो
। िब िुि उस पदाथय और िन दोनगे का अतिक्रिण कर । िब िुि उस लबरद ु पर आ
जहार ज्ञािा और ज्ञेय
; िब िुि बाह्ि और आरिररक
क है । उनिें कोच दवभाजन नहीर है ।
िन के साथ दवभाजन है ; साक्षी के साथ दवभाजन सिाि हो जािा है । साक्षी के साथ िुि यह नहीर कह सकिे कक कौन ज्ञेय है और कौन ज्ञािा है ; वह दोनगे है ।
लेककन इस साक्षी का अनुभव होना चा ह ; अन्यथा वह दाशयतनक ऊहा पोह बन कर रह जािा है । इसमल प्रयो
करो। िुि
ुलाब के फाल के पास बैठे हो; उसे दे खो। पहला काि यान को
इसे
क ज ह कें िि करना है ।
ल ु ाब के प्रति परा े यान को ल ा दे ना है —जैसे कक सारी दतु नया दवलीन हो या है । िुम्हारी चेिना
च है । और मसफय
ुलाब के अक्स्तित्व के प्रति पारी िरह उन्िुख हो।
और अ र यान सिग्र हो िो सरसार दवलीन हो जािा है । यगेकक यान क्जिना ही के बाहर की दतु नया खो जा
ी। सारा सरसार दवलीन हो जािा है । केवल
यह पहला कदि है । ज्ञािा की िरफ िरफ जाने के मल
ल ु ाब पर
काग्र होना पहला कदि है । अ र िुि
काग्र हो ा,उिना ही
ुलाब रहिा है ।
हो जािा है ।
ल ु ाब पर
अब िुि भीिर की िरफ
ति कर सकिे हो; अब
ुलाब
ुलाब ही सारा सरसार
काग्र नहीर हो सकिे िो िुि
ति नहीर कर सकिे; यगेकक िब िुम्हारा िन सदा भ क-भ क जािा है । इसमल काग्रिा पहला कदि है । िब मसफय
ल ु ाब ही रह
यान की
ल ु ाब बचिा है और सारा सरसार दवलीन हो जािा है ।
ल ु ाब वह लबरद ु है जहार से िुि
ति कर सकिे हो। अब
को दे खो और साथ ही स्तवयर के प्रति, ज्ञािा के प्रति जा रूक होग। आरर भ िें िुि चाक-चाक जाग े। अ र िुि ज्ञािा की और जा
ा। िब
ुलाब धुरधला जा
ा, खो जा
ति करो े िो
ा। जब िुि कफर
ल ु ाब
ुलाब िुम्हारी चेिना से गझल हो
ुलाब पर आग े िो स्तवयर को भाल जाग े। यह
लुकातछपी का खेल कुछ सिय िक चलिा रहे ा। लेककन अ र िुि प्रयत्न करिे ही रहे , करिे ही रहे िो दे रअबेर
क क्षण आ
ा जब िुि अपने को दोनगे के बीच िें पाग े। ज्ञािा हो ा,िन हो ा।
ल ु ाब हो ा। और
िुि ठीक िाय िें हो े,दोनगे को दे ख रहे हो े। वह िय लबरद,ु वह सरिुलन का लबरद ु ही साक्षी है । और
क बार िुि यह जान
िो िुि दोनगे हो जाग े। िब
जा र े। िब आजे्स और सजै
ुलाब और िन, ज्ञेय और ज्ञािा,िुम्हारे परख हो
दो परख है और िुि दोनगे के केंि हो। िब वे िुम्हारे ही दवस्तिार है । िब
सरसार और भ विा दोनगे िुम्हारे ही दवस्तिार है । िुि अपने अक्स्तित्व के केंि पर पहुरच िात्र है । ‘उस
। और यह केंि साक्षी
क को ज्ञािा और ज्ञेय की भारति दे खो।’
ककसी चीज पर
काग्रिा शुरू करो। और जब
काग्रिा सिग्र हो िो भीिर की और िुड़ो, स्तवयर के प्रति जा रूक
होग। और िब सरिुलन की चेष् ा करो। इसिें सिय ल े ा। िहीनगे ल
सकिे है । वनों भी ल
सकिे है । यह
इस पर तनभयर है कक िुम्हारा प्रयत्न ककिना िीर ह है । यगेकक यह बहुि सा्ि सरिुलन है । लेककन यह सरिुलन आिा है । और जब यह आिा है िो िुि अक्स्तित्व के केंि पर पहुरच । उस केंि पर िुि आत्िस्तथ हो। अचल हो, शारि हो, आनर दि हो, सिातधस्तथ हो। वहार वावैि नहीर रह जािा है । इसे ही हरदग ु र ने सिातध कहा है । इसे ही जीसस ने प्रभु का राज्य कहा है ।
इसे मसफय शाक्दक रूप से, मसफय शदगे के िल पर सिझना बहुि काि का नहीर है । लेककन अ र िुि प्रयो करिे हो िो िुम्हें आरर भ से ही अनुभव होने ल े ा कक कुछ ि ि हो रहा है । जब िि ु ुलाब पर काग्रिा करो े िो सारा सरसार दवलीन हो जा
ा। यह चित्कार है कक सारा सरसार दवलीन हो जािा है । िब िुम्हें बोध
होिा है कक बुतनयादी चीज िेरा यान है । िुि जहार भी अपनी ढ़क्ष् जािा है । और जहार से िुि अपनी ढ़क्ष्
यान से सरसार की रचना कर सकिे हो।
को ले जािे हो वहीर
क सरसार तनमियि हो
ह ा लेिे हो वह सरसार खो जािा है । िो िुि अपनी ढ़क्ष्
से, अपने
इसे इस भारति दे खो। िुि यहार बैठे हो। अ र िुि ककसी यक्ि के प्रेि िें हो िो अचानक इस हॉल िें
क ही
यक्ि रह जािा है । शेन सब कुछ खो जािा है । िानो यहार और कुछ नहीर है । या हो जािा है । यगे िुम्हारे प्रेि िें होने पर मसफय
क ही यक्ि रह जािा है । सारा सरसार लबलकुल खो जािा है । जैसे कक धाप छाया का खेल हो।
क यक्ि यथाथय है , सच है । यगेकक िुम्हारा िन
क यक्ि पर कें िि है , काग्र है ; िुम्हारा िन
क
यक्ि पर पारी िरह िल्लीन है। शेन सब कुछ छाया वि हो जािा है । धाप छाया का खेल हो जािा है । िुम्हारे मल
यह यथायथ न रहा।
जब भी िुि
काग्र होिे हो, यह
काग्रिा िुम्हारे अक्स्तित्व के पारे ढर
सारी रूपरे खा बदल दे िी है । इसका प्रयो प्रयो
करो—ककसी भी चीज पर प्रयो
करो। या ककसी फाल या वक्ष ृ या ककसी भी चीज के साथ प्रयो
चेहरे पर प्रयो
ढारचे को बदल दे िी है । िुम्हारे तचि की
करो। बुध स की ककसी प्रतििा के साथ
करो। या अपनी प्रेमिका या अपने मित्र के
करो—चेहरे को मसफय दे खो।
यह सरल हो ा, यगेकक अ र िि ु ककसी चेहरे को प्रेि करिे हो िो उस पर बाि िो यह है क्जन लो गे ने बध स ु या जीसस या कृष्ण पर
करिे थे। साररपत्र ु या िौवा ल्यायन या अनय मशष्यगे के मल
काग्र होना सरल हो ा। और सच
काग्र होने की कोमशश की, वे प्रेिी थे; बध स ु को प्रेि
बध स ु के चेहरे पर यान करना सरल था। जैसे ही वे
बध स ु के चेहरे को दे खिे थे, वे सरलिा से उसकी िरफ प्रवा हि होने ल िे थे। उन्हें उनसे प्रेि था; वे उनसे िो हि थे।
िो कोच चेहरा खोज लो—और क्जस चेहरे से भी िुम्हें प्रेि हो वह काि दे ा—बस आरखगे िें झारको चेहरे पर काग्र होग। और अचानक िुि पाग े कक सारा सरसार दवलीन हो
है । िब िुम्हारा तचि ककसी
क चीज पर
बन जािी है ।
या है । और
क नया ही आयाि खुल
काग्र होिा है िब वह यक्ि या वह चीज िुम्हारे मल
या
सारा सरसार
िेरे कहने का ििलब यह है कक जब िुम्हारा यान ककसी चीज पर सिग्र होिा है , िब वह चीज ही सारा सरसार
हो जािी है । िुि अपने यान के वावारा अपना सरसार तनमियि करिे हो। िुि अपना सरसार अपने यान से बनािे हो। और जब िुि परा ी िरह िल्लीन हो, िुम्हारी चेिना जैसे नदी की धार की िरह दवनय की िरफ बह रही है । िो अचानक िुि उस िाल स्तत्रोि के प्रति बोधपण ा य हो जाग जहार से यान प्रवा हि हो रहा है । नदी बह रही है । िुि उसके उवा ि के प्रति िाल स्तत्रोि के प्रति होश पण ा य हो जाग।
आरर भ िें िुि बार-बार होश खो दो े; िुि यहार से वहार डोलिे रहो े। अ र िुि उवा ि की िरफ यान दो े िो िुि नदी को भाल जाग े। और उस दवनय को, सा र को भाल जाग े। क्जसकी और नदी प्रवा हि हो रही है । यह कफर बदले ा—य द िुि ल्य पर यान दो े िो िाल स्तत्रोि भाल जा बरधा-बरधाया ढर
है —यह ऑजे
को दे खिा है या सजै
ा। यह स्तवभादवक है ; यगेकक िन का
को।
यही कारण है कक बहुि से लो कारि िें चले जािे है । ये सरसार को छोड़ ही दे िे है । सरसार को छोड़ने का बुतनयादी कारण है कक वे दवनय को छोड़ रहे है । िाकक वे अपने आप पर काग्र हो सके। यह सरल है । अ र
िुि सरसार छोड़ दो और आँख बरद कर लो, इर ियगे को बरद कर लो, िो िुि आसानी से स्तवयर के प्रति बोधपाणय हो सकिे हो।
लेककन यह बोध भी झाठा है । यगेकक िुिने वावैि का पहले िुि दवनय के प्रति सज
थे, ज्ञेय के प्रति सज
क लबरद ा ही चुना है । यह उसी रो
की दस ा री अति है ।
थे और िुि स्तवयर का, ज्ञािा का बोध नहीर था। और अब
िुि ज्ञािा से बरधे हो और ज्ञेय को भाल न
रूप िें प्रक
हो। लेककन िुि वावैि िें ही हो। और कफर यह परु ाना ही िन है जा
हो रहा है । कुछ भी नहीर बदला है ।
यही करण है कक िैं इस बाि पर जोर दे िा हार कक आजे्स के सरसार को नहीर छोड़ना है । आजे्स के ज ि से िि भा गे; बक्ल्क ऑजे और सजै दोनगे के प्रति साथ-साथ बोधपाणय होने की कोमशश करो, बाह्ि और आरिररक दोनगे के प्रति साथ-साथ सज हो। अ र जो लो
बनो। अ र दोनगे िौजाद है िो ही िुि दोनगे के बीच सरिुमलि हो सकिे
क ही है िो िुि उससे ग्रस्ति हो जाग े।
हिालय चले जािे है और अपने को बरद कर लेिे है , वे िुम्हारे ही जैसे लो
है । िुि आजे्स से बरधे हो; वे सजै िुि हो, न वे िुि है । यगेकक
से बरध
है । िुि बाहर अ के हो; वे भीिर अ क
है । ने िुि
क के साथ िि ु िुि नहीर हो सकिे; क के साथ िुि िादात्म्य कर लेिे हो।
िुि िो िुि िभी हो सकिे हो जब िुि दोनगे के प्रति सज जािे हो। और यह िीसरा ही िुक्ि का लबरद ा है । है , बदलाह
है मसफय शीनायसन िें खड़े
होिे हो, दोनगे को जानिे हो। िब िुि िीसरे हो
क के साथ िुि िादात्म्य कर लेिे हो। दो के साथ
ति सरभव
सरभव है , सरिुलन सरभव है —और िुि िय लबरद ु पर ठीक िय लबरद ु पर पहुरच सकिे हो।
बुध स कहिे थे कक िेरा िा य िज्झि तनकाय है । िय िा य है । यह बाि ठीक से नहीर सिझी
च कक यगे वे इसे
ियिा य कहने पर इिना जोर दे िे थे। कारण यह है ; उनकी पारी प्रकक्रया सज िा की है । सम्यक स्तितृ ि की है — यह िय िा य है । बुध स कहिे है: इस सरसार को िि छोड़ो और परलोक से िि बरधो; िय िें रहो।
क अति को
छोड़कर दस ा री अति पर िि सरक जाग। ठीक िय िें रहो। यगेकक िय िें लोक और परलोक दोनगे नहीर है । ठीक िय िें िुि िुि हो। ठीक िय िें वावैि नही है । िुि अवावैि को उपलध हो दवस्तिार भर है —जैसे दो परख हो।
और वावैि िुम्हारा
बुध स का िज्झि तनकाय इसी दवतध पर आधाररि है । यह बहुि सुरदर दवतध है । अनेक कारणगे से यह सुरदर है । क कक यह बहुि वैज्ञातनक है ; यगेकक िुि केवल दो के बीच सरिुलन को उपलध हो सकिे हो। अ र क ही लबरद ु हो िो असरिुलन अतनवाययिुः: अतनवाययिुः: रहे ा। इसमल
बुध स कहिे है । कक जो सरसारी है िो असरिुमलि और
जो त्या ी है वे भी दस ा री अति पर असरिुमलि है । सरिुमलि आदिी वह है जो न इस अति पर है और न उस अति पर; जो ठीक िय िें है । िुि उसे सरसारी नहीर कह सकिे; िुि उसे ति करने के मल
पर पहुरच
या है ।
ैर सरसारी भी नहीर कह सकिे। वह
स्तविरत्र है ; वह ककसी से भी आसि नहीर है , बरधा नहीर है । वह िय लबरद ा पर स्तवलणयि िय
दस ा री बाि: दस ा री अति पर चला जाना बहुि आसान है—बहुि ही आसान। अ र िुि बहुि भोजन लेिे हो िो िुि उपवास आसानी से कर सकिे हो; लेककन सम्यक भोजन लेना क ठन है । अ र िि ु बहुि बािचीि करिे हो िो िुि िौन िें आसानी से उिर सकि हो। लेककन िुि मििभानी नहीर हो सकिे। अ र िुि बहुि खािे हो िो लबलकुल न खाना बहुि आसान है —यह दस ा री अति है । लेककन सम्यक भोजन लेना, िय लबरद ु पर रूक जाना बहुि िुक्कल है । ककसी को प्रेि करना सरल है , ककसी को धण ृ ा करना भी सरल है; लेककन उदासीन रहना बहुि िुक्कल है । िुि क अति से दस ा री अति पर जा सकि हो। लेककन िय िें ठहरना बहुि क ठन है । यगे? यगेकक िय िें िुम्हें अपना िन
रवाना पड़े ा। िुम्हारा िन अतियगे िें जीिा है । िन का ििलब अति है । िन
सदा अतियगे िें डोलिा रहिा है । िुि या िो ककसी के पक्ष िें होिे हो यह दवपक्ष िें ; िुि ि स्तथ नहीर हो सकिे। िन ि स्तथिा िें नहीर हो सकिा है । वह यहार हो सकिा है या वहार हो सकिा है । यगेकक िन को दवपरीि की
जरूरि है; उसे ककसी के दवरोध िें होना जरूरी है । अ र वह ककसी के दवरोध िें नह हो िो वह तिरो हि हो जािा है । िब उसकी कोच प्रयोजन नहीर रहा जािा है । इसे प्रयो
करो। ककसी भी बाि िें ि स्तथ हो जाग, उदासीन हो जाग, और िुि पाग े कक अचानक िन को
कोच काि न रहा। अ र िुि पक्ष िें हो िो िुि सोच-दवचार कर सकिे हो। अ र िुि दवपक्ष िें हो िो भी िुि सोच दवचार कर सकिे हो। लेककन अ र िुि न पक्ष िें हो न दवपक्ष िें िो सोच दवचार के मल
या रह जािा
है ।
बध स ु कहिे है कक उपेक्षा िज्झि तनकाय का आधार है । उपेक्षा—अतियगे की उपेक्षा करो। बस इिना ही करो के अतियगे के प्रति उदासीन रहो, और सरिुलन ि ि हो जा यह सरिुलन िुिहें अनुभव का
ा।
क नया आयाि दे ा। जहार िुि ज्ञािा और ज्ञेय दोनगे हो, लोक और परलोक, यह
और वह शरीर और िन दोनगे हो; जहार िुि दोनगे हो और साथ ही साथ दोनगे नहीर हो, दोनगे के पार हो, क लत्रकोण तनमियि हो
या।
िुिने दे खा हो ा कक अनेक रहस्तयवादी का
ुह्ि सरप्रदायगे ने लत्रकोण को अपना प्रिीक चुना है । लत्रकोण
ुह्ि दववाया
क अति प्राचीन प्रिीक रहा, उसका यही कारण है । लत्रकोण िें िीन कोण है । सािान्यि: िुम्हारे दो कोण ही
है । िीसरा कोण
ायब है । िीसरा कोण अभी नहीर है । वह अभी दवकमसि नहीर हुआ है । िीसरा कोण दोनगे के पार है । दोनगे कोण इस िीसरे कोण के अर है । और कफर भी यह कोण उनके पार है और दोनगे से ऊँचा है । अ र िुि यह प्रयो
करो िो िुम्हें अपने भीिर लत्रकोण तनमियि करने िें सहयो ी हो ा। िीसरा कोण धीरे -धीरे
ऊपर उठे ा। और जब वह अनुभव िें आिा है िो िुि दुःु ख िें नहीर रह सकिे। नहीर रह सकिा है । दुःु ख का अथय है ककसी चीज के साथ िादात्म्य बना लेना। लेककन
क बार िुि साक्षी हु
कक दुःु ख
क सा्ि बाि याद रखने जैसी है —िब िुि आनरद के साथ भी िादात्म्य नहीर जोड़ो े। यही कारण है कक
बुध स कहिे है : ‘िैं इिना ही कहा सकिा हार,कक दुःु ख नहीर हो ा। सिातध िें दुःु ख नहीर हो ा। िैं यह नहीर कहा सकिा कक आनरद हो ा। बुध स कहिे है : िैं यह बाि नहीर कह सकिा; िैं यही कह सकिा हार कक दुःु ख नहीर हो ा।’
और बुध स ठीक कहिे है । यगेकक आनरद का अथय है कक ककसी भी िरह का िादात्म्य नहीर रहा, आनरद के साथ भी िादात्िय नहीर रहा। यह बहुि बारीक बाि है । सा्ि बाि है । अ र िुम्हें याल है कक िैं आनर दि हार िो दे र अबेर िुि कफर दुःु खी होने की िैयारी कर रहे हो। िुि अब भी ककसी िनोदशा से िादात्म्य कर रहे हो। िुि सुखी अनुभव करिे हो; अब िुि सुख के साथ िादात्म्य कर रहे हो। और क्जस क्षण िुम्हारा सुख से
िादात्म्य होिा है उसी क्षण दख ु शुरू हो जािा है । अब िुि सुख से तचपको ;े अब िुि उसके दवपरीि से, दुःु ख से भयभीि हो े और चाहो े कक सुख सदा िुम्हारे साथ रहे । अब िुिने वे सब उपाय कर मल मल
जरूरी है । और कफर दुःु ख आ
कर लो े। िादात्म्य ही रो
है ।
जो दुःु ख के होने के
ा। और जब िुि सुख से िादात्म्य करिे हो िो िुि दुःु ख से भी िादात्म्य
इस िीसरे लबरद ु पर िुि ककसी के साथ भी िादात्म्य नहीर करिे हो। जो भी आिा-जािा है, बस आिा-जािा है ।
िुि िात्र साक्षी रहिे हो। दे खिे हो—ि स्तथ, उदासीन और िादात्म्य र हि। सुबह आिी है , सारज उ िा है । और
िुि उसे दे खिे हो, िुि उसके साक्षी रहिे हो। िाि यह नहीर कहिे कक िैं सुबह हार। कफर जब दोपहर आिी है िो
िुि यह नहीर कहिे कक िैं दोपहर हार। और जब सारज डाबिा है , अँधेरा उिरिा है और राि आिी है , िब िुि यह नहीर कहिे कक िैं अँधेरा हार, कक िैं राि हा। िुि उनके साक्षी रहिे हो। िुि कहिे हो कक सुबह थी, कफर दोपहर हुच कफर याि हुच, अब राि है । और कफर सुबह हो ी और यह चक्र चलिा रहे ा। और िैं केवल िष् ा हार। दे खनेवाला हार, िैं दे खिा रहिा हार। और अ र यही बाि िुम्हारी िनोदशा गर के साथ ला ा हो जा —सुबह की िनोदशा, दोपहर की िनोदशा, याि
की, राि की िनोदशा और उनके अपने विुल य है, वे िाििे रहिे है । िो िुि साक्षी हो जािे हो। िुि कहिे हो: अब साख आया है —ठीक सुबह की भारति,और अब राि आये ी—दुःा ख की राि। िेरे चारगे और िन:क्स्तथतियार बदलिी
रहें ी और िैं स्तवयर िें कें िि, क्स्तथर बना रहार ा। िैं ककसी भी िन क्स्तथति िें आसि नही होऊर ा। िैं ककसी भी िन: क्स्तथति िें तचपकरा ा नहीर, बाधार ा नहीर। िैं ककसी चीज की आशा नहीर करुर ा और न िैं तनराशा ही अनुभव करूर ा। िैं केवल साक्षी रहार ा। जो भी हो ा िैं उसका दे खाँ ा। जब वह आ जा ा िैं उसका जाना दे खाँ ा।
ा,िैं उसका आना दे खाँ ा; जब वह
बध स ु इसका बहुि प्रयो करिे है। वे बार-बार कहिे है कक जब कोच दवचार उठे िो उसे दे खो। दुःा ख का दवचार उठे , साख का दवचार उठे , उसे दे खिे रहो। जब वह मशखर पर आ िब उसे दे खो, उसके साक्षी रहो। और जब वह
उिरने ल े िब भी उसके िष् ा बने रहो। दवचार अब पैदा हो रहा है । वह अब है , और अब वह दवदा हो रहा है — सभी अवस्तथागर िें िुि उसे दे खिे रहो। उसके साक्षी बने रहो। यह िीसरा लबरद ु िुम्हें साक्षी बना दे िा है । और साक्षी चैिन्य की परि सरभावना है । गशो दवज्ञान भैरव िरत्र, भा -चार प्रवचन-61
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—89 (ओशो)
‘हे वप्रये, इस क्षण िें िन, ज्ञान, प्राण, रूप, सब को सिाविष्ट होने दो।’
‘हे दप्रये, इस क्षण िें िन, ज्ञान, प्राण, रूप, सब को सिादवष्
यह दवतध थोड़ी क ठन है । लेककन अ र िुि इसे प्रयो
होने दो।’
कर सको िो यह दवतध बहुि अद्भि ु और सुरदर है । यान सब को—िुम्हारे शरीर, िुम्हारे िन, िुम्हारे प्राण, िुम्हारे
िें बैठो िो कोच दवभाजन िि करो;यान िें बैठे हु दवचार, िुम्हारे ज्ञान—सब को सिादवष् कर लो। सब को सिे
लो, सब को सक्म्िमलि कर लो। कोच दवभाजन
िि करो, उन्हें खरडगे िें िि बार ो।
साधारणि: हि खड़गे िें बार िे रहिे है । िोड़िे रहिे है । हि कहिे है : ‘यह शरीर िैं नहीर हार।’ ऐसी दवतधयार भी है जो इसका प्रयो करिी है । लेककन यह दवतध सवयथा मभन्न है , बक्ल्क ठीक दवपरीि है । िो कोच दवभाजन िि करो। िि कहो कक िैं शरीर नहीर हार। िि कहो कक िैं वास नहीर हार। िि कहो कक िैं िन नहीर हार। कहो कक िैं सब हार और सब हो जाग। अपने भीिर कोच दवभाजन, कोच बँ ाव िि तनमियि करो। यह क भाव दशा है । आरखें बरद कर लो और िुम्हारे भीिर जो भी है । सब को सक्म्िमलि कर लो। अपने को कहीर
क ज ह कें िि िि
करो—अकें िि रहो।
वास आिी है और जािी है । दवचार आिा है और चला जािा है । शरीर का रूप बदलिा रहिा है । इस पर िुिने
कभी यान नहीर दया है । अ र िुि आरखें बरद करके बैठो िो िुम्हें कभी ल े ा कक िेरा शरीर बहुि बड़ा है और कभी ल े ा कक िेरा शरीर लबलकुल छो ा है । कभी शरीर बहुि भारी िालाि पड़िा है । और कभी इिना हलका कक िुम्हें ल े ा कक िैं उड़ सकिा हार। इस रूप के ि ने-बढ़ने को िुि अनुभव कर सकिे हो। आरखगे को बरद कर लो और बैठ जाग। और िुि अनुभव करो े कक कभी शरीर बहुि बड़ा है । इिना बड़ा कक सारा किरा भर जा और कभी इिना छो ा ल े ा जैसे कक अणु हो। यह रूप यो बदलिा है ?
जैसे-जैसे िुम्हारा यान बदलिा है । वैसे-वैसे िुम्हारे शरीर का रूप भी रूप बदलिा है । अ र िुम्हारा यान
सवयग्राही है िो रूप बहुि बड़ा हो जाये ा। और अ र िुि िोड़िे हो करिे हो, दवभाजन करिे हो, कहिे हो कक िैं यह नहीर हार, िो िुि बहुि छो ा, बहुि सा्ि और आणदवक हो जािा है । यह सात्र कहिा है : ‘हे दप्रय, इस क्षण िें िन, ज्ञान, रूप, सब को सिादवष्
होने दो।’
अपने अक्स्तित्व िें सब को सक्म्िमलि करो, ककसी को भी अल
िि करो, बाहर िि करो। िि कहो कक िैं यह
नहीर हार, कहो कक िैं यह हार और सब को सक्म्िमलि कर लो। अ र िुि इिना ही कर सको िो िुम्हें लबलकुल न अनुभव, अद्भि ु अनुभव ि ि हगे े। िुम्हें अनुभव हो ा कक कोच केंि नहीर है । िेरा कोच केंि नहीर है । और केंि के जािे ही अहर भाव नहीर रहिा। अहर भाव नहीर रहिा। केंि के जािे ही केवल चैिन्य रहिा है —आकाश जैसा चैिन्य जो सब को िेरे हु है । और जब यह प्रिीति बढ़िी है िो िुििें न मसफय िुम्हारी वास सिा हि हो ी, न केवल िुम्हारा रूप सिा हि हो ा, बक्ल्क अरिि: िुि िें सारा ब्रह्िारड सिा हि हो जा ा। स्तवािी राििीथय ने अपनी साधना िें इस दवतध का प्रयो
ककया था। और
क क्षण आया जब उन्हगेने कहना शुरू
कर दया कक सारा ज ि िुझिें है और ग्रह-नक्षत्र िेरे भीिर िि ा रहे है । कोच उनसे बाि कर रहा था और उसने कहा कक यहार हिालय िें सब कुछ ककिना सरुदर है । राििीथय हिालय िें थे। और उस यक्ि ने उनसे कहा: यह हिालय ककिना सरुदर है । और कहिे है राििीथय ने उससे कहा: ‘ हिालय? हिालय िेरे भीिर है ।’
उस आदिी ने सोचा कक राििीथय पा ल है । हिालय कैसे उनके भीिर हो सकिा है ? लेककन य द िुि इस दवतध का प्रयो
करो िो िुि यह अनुभव कर सकिे हो। कक हिालय िुििें है । िैं िुम्हें थोड़ा स्तपष्
करूर कक यह
कैसे सरभव है ।
सच िो यह है कक जब िुि िुझे दे खिे हो िो उसे नहीर दे खिे जो कुसी पर बैठा हुआ है , िुि दरअसल िेरी िस्तवीर को दे खिे हो जो िुम्हारे भीिर है । जो िुम्हारे िन िें बनिी है । िुि इस कुसी िें बैठे हु िुझको कैसे
जान सकिे हो? िुम्हारी आरखें केवल िेरी िस्तवीर ले सकिी है । िस्तवीर भी नहीर, मसफय प्रकाश की ककरणें िुम्हारी
आरखगे िें प्रवेश कर सकिी है । कफर िुम्हारी आरखें खुद िन के पास नहीर पहुँचिी है ; मसफय आरखगे से होकर ुजरने वाली ककरणें भीिर जािी है । कफर िुम्हारा स्तनाय-ु िरत्र जो उन ककरणगे को ले जािा है । उन्हें ककरणगे की भारति नहीर ले जा सकिा । वह उन ककरणगे को रासायतनक पदाथों िें रूपारिररि कर दे िा है । िो केवल रासायतनक पदाथय
यात्रा करिे है । वहार इन रासायतनक पदाथों को पढ़ा जािा है । उन्हें गडकोड़ ककया जािा है । उन्हें उनके िाल तचत्र िें कफर बदला जािा है । और िब िुि अपने िन िें िुझे दे खिे हो। िुि कभी अपने िन के बाहर नहीर
हो। सम्पाणय ज ि को, क्जसे िुि जानिे हो। िुि अपने िन िें दे खिे हो।
िन िें ही उिाड़िे हो। िन िें ही जानिे हो। सारे हिालय, सिस्ति सायय और चाँद-िारे िुम्हारे िन के भीिर
अत्यरि सा्ि अक्स्तित्व िे िौजाद है । अ र िुि अपनी आरखें बरद करो और अनुभव करो कक सब कुछ सक्म्िमलि है िो िुि जानगे े कक सारा ज ि िुम्हारे भीिर िाि रहा है ।
और जब िुि यह अनुभव करिे हो कक सारा ज ि िेरे भीिर िाि रहा है । िो िुम्हारे सभी यक्ित्व दुःु ख दवसक्जयि हो
। दवदा हो
अक्स्तित्व हो
।
। अब िुि यक्ि न रहे , अयक्ि हो
। परि हो
। अब िुि सिस्ति
यह दवतध िुम्हारी चेिना को दवस्तिि ृ करिी है । उसे फैलाव दे िी है । अब पक्चि िें चेिना को दवस्तिि ृ करने के मल
अनेक नशीली चीजगे का प्रयो
िारीजुआना है, दस ा री िादक िय है । भारि िें भी पुराने दनगे िें उनका प्रयो चेिना के दवस्तिार का
क झाठा भाव पैदा कर दे िे है । और जो लो
दवतधयार बहुि सुरदर है, बहुि काि की है । यगेकक वे लो
हो रहा है ।
ल
स डी है ,
होिा था। यगेकक ये िादक िय
भी िादक िय लेिे है , उनके मल
चेिना के दवस्तिार के मल
लालातयि है ।
ये
जब िुि
इसके प्रयो
ल
स डी लेिे हो िो िुि अपने िें ही सीमिि नही रहिे, िब िुि सब को अपने िें सिे
के अनेक उदाहरण है ।
लेिे हो।
क लड़की साि िरक्जल के िकान से काद पड़ी, यगेकक उसे ल ा कक िैं नहीर
िर सकिी हार। कक ित्ृ यु असरभव है । उसे ल ा कक िैं उड़ सकिी हार, और उसे ल ा कक इसिें कोच बाधा नहीर है । कोच भय नहीर है । वह लड़की साि िरक्जल िकान से काद पड़ी और िर च। उसकी दे ह ा फा कर लबखर च लेककन उसके िन िें —नशे के प्रभाव िें —कोच सीिा का भाव नहीर था। ित्ृ यु का याल नहीर था। चेिना का दवस्तिार
क सनक का रूप ले चुकी है । यगेकक जब िुम्हारी चेिना फैलिी है िो िुि अपने को बहुि ऊँचाच पर अनुभव करिे हो,सारा सरसार धीरे -धीरे िुििें सिा जािा है । िुि दवरा हो जािे हो। अति दवरा हो जािे हो। और िुम्हारे यक्ित्व दुःु ख दवदा हो जािे है । लेककन
ल
स डी या अन्य ऐसी चीजगे से पैदा होने
वाला यह भाव ्ािक है , झाठा है ।
िरत्र की इस दवतध से यह भाव वास्तिदवक हो जािा है । यथाथयि: सारा सरसार िुम्हारे भीिर आ जािा है । इसके दो कारण है ।
क हिारी यक्ि ि चेिना दरअसल यक्ित्व नहीर है । बहुि हराच िें यह सािा हक ऊपर हि वावीपगे जैसे अल -अल दखिे है । लेककन हरे िें सभी वावीप पथ्ृ वी से जुड़े है । हि वावीपगे जैसे दखिे है —िैं चेिन हार िुि चेिन हो—लेककन िुम्हारी चेिना और िेरी चेिना ककसी धरिी से िाल आधार से सरबध स है ।
हराच िें
क ही है । वे
यही कारण है कक ऐसी बहुि सी बािें ि िी है जो बेबाझ ल िी है । अ र िुि अकेले यान करिे हो िो यान िें प्रवेश बहुि क ठन होिा है । लेककन अ र िुि सिाह िें यान करिे हो िो प्रवेश बहुि ही आसान हो जािा है । कारण यह है कक सिाचा सिाह
क इकाच की िरह काि करिा है । यान-मशदवरगे िें िैंने दे खा है , अनुभव
ककया है कक दो या िीन दन के बाद िुम्हारी वैयक्िकिा जािी है । िुि हो। और िब बहुि सा्ि िरर ें अनुभव होने ल िी है, बहुि सा्ि िरर ें चेिना दवकमसि होिी है ।
क वहृ ि चेिना के हस्तसे बन जािे
ति करने ल िी है । और
क सिाह
िो जब िुि नाचिे हो िो असल िें िुि नहीर नाच रहे होिे हो, वरन सिाह-चेिना नाच रही होिी है । और िुि उसके अर
भर होिे हो। नत्ृ य िुम्हारे ही नहीर है , िुम्हारे बाहर भी है । िुम्हारे चारगे िरफ
िुि नहीर होिे हो, सिाह ही होिा है । वावीप होने की सिही ि ना भाल जािी है । और
क िरर
क होने की
है । सिाह िें हरी ि ना
ि िी है । सिाह िें िुि भ विा के तनक िर होिे हो। अकेले िें िुि उसके बहुि दरा होिे हो। यगेकक अकेले िें िुि कफर अपने अहर कार पर सिही भेद पर सिही अल ाव पर कें िि हो जािे हो। यह दवतध सहयो ी है , यगेकक सचाच यही है कक िुि ब्रह्िारड के साथ आदवष्कृि ककया जा , कैसे इसिें उिरा जा
क हो। प्रन इिना ही है कक कैसे इसे
और इसे उपलध हुआ जा ।
ककसी िैत्री पण ा य सिाह के साथ होना िुम्हें सदा ऊजाय से भरिा है । ककसी ऐसे यक्ि के साथ होने िें , जो
शत्रुिापाणय है , िुम्हें सदा अनुभव होिा है कक िेरी ऊजाय चासी जा रही है । यगे? अ र िुि मित्रगे के साथ हो, पररवार के साथ हो और आनर दि हो और सुख ले रहे हो, िो िुि ऊजयस्तवी अनुभव करिे हो। शक्िशाली अनुभव करिे
हो। ककसी मित्र के मिलने पर िुि ज्यादा जीवरि िालाि पड़िे हो—उससे ज्यादा क्जिना मिलने के पहले जीवरि थे। और ककसी दु िन के पास से ल िे हो। या होिा है ?
ुजरने पर िुम्हें ल िा है कक िुम्हारी थोड़ी ऊजाय कि हो
च, िुि थके-थके
जब िुि ककसी िैत्रीपण ा ,य सहानुभातिपण ा य सिाह से मिलिे हो िो िि ु अपनी वैयक्िकिा को भल ा जािे हो। िुि उस िाल आधार पर उिर आिे हो जहार पर मिल सकिे हो। जब ककसी शत्रुिापाणय यक्ि से मिलिे हो िो िुि
ज्यादा वैयक्िक, ज्यादा अहर कारी हो जािे हो। िुि अपने अहर कार से तचपक जािे हो। और इसी अहर कार से
तचपकने के कारण िुि थके-थके ल िे हो। सब ऊजाय िाल स्तत्रोि से आिी है । सब ऊजाय सािा हक जीवन के भाव से आिी है । यह यान करिे सिय प्रारर भ िें िुम्हें सािा हक जीवन के भाव का अनुभव हो ा, और अरि िें
जा तिक चेिना का अनुभव हो ा। जब सब भेद त र जािे है , सारी सीिा र दवलीन हो जािी है। और अक्स्तित्व क इकाच हो जािा है । पाणय होिा है, िब सब सक्म्िमलि हो जािा है । सिा हि हो जािा है । यह सब को
सिादवष्
करने का प्रयत्न अपने तनजी अक्स्तित्व से शुरू होिा है । सब कुछ को सिादवष्
हे दप्रय, इस क्षण िें िन, ज्ञान,प्राण, रूप, को सिादवष्
होने दो।‘
याद रखने की बतु नयादी बाि है सिावेश—सब को अपने िें सिादवष् रखो। इस सात्र की करु जी है : सब का सिावेश। सब को सिादवष् करो और बढिे जाग। सिादवष्
करो। ककसी को अल
िि करो, बाहर िि
करो, सब को अपने भीिर सिे
करो और दवस्तिि ृ होग। पहले अपने शरीर से यह प्रयो
बाहरी सरसार के साथ भी यही प्रयो
करो।
करो।
लो। सिादवष्
शरू ु करो और कफर
ककसी वक्ष ृ के नीचे बैठकर वक्ष ृ को दे खो। और कफर आरखें बरद कर लो और अनुभव करो कक वक्ष ृ िेरी भीिर है ।
आकाश को दे खो; और कफर आरखें बरद करके िहसास करो कक आकाश िेरे भीिर है । उ िे हु सारज को दे खो;कफर आरखें बरद करके भाव करो कक सारज िेरे भीिर उ रहा है । और-और फैलिे जाग। दवरा होिे जाग। क अद्भुि अनुभव िुम्हें हो ा। जब िुि अनुभव करिे हो कक वक्ष ृ िेरे भीिर है िो िुि ित्क्षण ज्यादा युवा हो
जािे हो। और यह कल्पना नहीर है । यगेकक वक्ष ृ और िुि दोनगे पथ्ृ वी के अर की जड़ें
क ही धरिी िें
ड़ी है । और अरिि: िुम्हारी जड़ें
हो। पथ्ृ वी से आ
क ही अक्स्तित्व िें सिाच है । िो जब िुि भाव
करिे हो कक वक्ष ृ िेरे भीिर हो ा। वक्ष ृ की जीवरििा उसकी हररयाली उसकी िाज ी, उससे िुम्हारे भीिर िुम्हारे ्दय िें अनुभव हो ा।
िो अक्स्तित्व को और-और अपने भीिर सिादवष् अनेक ढर गे से अनेक ज ह
हो। िुि दोनगे
ुजरिी हुच हवा, सब
करो,कुछ भी बाहर िि छोड़ो।
ुरु इसकी मशक्षा दे िे रहे है । जीसस कहिे है : ‘अपने शत्रु को वैसे ही प्रेि करो जैसे
अपने को करिे हो।’ यह सिावेश का प्रयो
है ।
िायड कहा करिा था: ‘िैं यगे अपने शत्रु को अपने सिान प्रेि करूर? वह िेरा शत्रु है ; कफर यगे िैं उसे स्तवयर की भारति प्रेि करूर? और िैं उसे प्रेि कैसे कर सकिा हार?
उसका प्रशन सर ि िालाि पड़िा है । लेककन िायड को पिा नहीर है कक यगे जीसस कहिे थे कक अपने शत्रु को वैसे ही प्रेि करो जैसे अपने को करिे हो। यह ककसी सािाक्जक राजनीति की बाि नहीर है । यह कोच सिाज-
सुधार की, क बेहिर सिाज बनाने की बाि नहीर है । यह िो मसफय िुम्हारे जीवन और िुम्हारे चैिन्य को दवस्तिार दे ने की बाि है ।
अ र िुि शत्रु को अपने िें सिादवष्
कर सको िो वह िुम्हें चो
नहीर पहुरचा सकिा है । इसका यह अथय नहीर है कक वह िुम्हारी हत्या नहीर कर सकिा। वह िुम्हारी हत्या कर सकिा है । लेककन वह िुम्हें चो नहीर पहुरचा
सकिा। चो
िो िब ल िी है जब िुि उसे अपने से बारह रखिे हो। जब िि ु उसे अपने से बाहर रखिे हो िो
िुि अहर कारी हो जािे हो। पथ ृ क और अकेले हो जािे हो, िुि अक्स्तित्व से दवक्छन्न हो जािे हो। क अ र िुि को अपने भीिर सिादवष्
कर सको िो सब सिादवष्
िो कफर वक्ष ृ और आकाश यगे सिादवष् शत्रु पर जोर इसमल
नहीर हो सकिे।
हो जािा है । जब शत्रु सिादवष्
जािे हो।
हो सकिा है
है कक अ र िुि शत्रु को सक्म्िमलि कर सकिे हो िो िुि सब को सक्म्िमलि कर सकिे
हो। िब ककसी को बाहर छोड़ने की जरूरि नहीर रही। और अ र िुि अनुभव कर सको कक िुम्हारा शत्रु भी िुििें सिादवष्
है िो िुम्हारा शत्रु भी िुम्हें शक्ि दे ा। ऊजाय दे ा,वह अब िुम्हारे मल
हातनकारक नहीर हो
सकिा। वह िुम्हारी हत्या कर सकिा है ; लेककन िुम्हारी हत्या करिे हु भी वह िुम्हें हातन नहीर पहुरचा सकिा। हातन िो िुम्हारे िन से आिी है । जब िुि ककसी को पथ ृ क िानिे हो, अपने से बाहर िानिे हो। लेककन हिारे साथ िो बाि परा ी िरह दवपरीि है, लबलकुल उल ी है । हि िो मित्रगे को भी अपने िें सक्म्िमलि
नहीर करिे। शत्रु िो बाहर होिे ही है ; मित्र भी बाहर ही होिे है । िुि अपने प्रेिी-प्रेमिकागर को भी बाहर ही रखिे हो। अपने प्रेिी के साथ होकर भी िुि उसिें डाबिे नहीर, क नहीर होिे; िुि पथ ृ क बने रहिे हो। िुि अपने को तनयरत्रण िें रखिे हो। िि ु अपनी अल
पहचान
रवाना नहीर चाहिे हो।
और यही कारण है कक प्रेि असरभव हो
या है । जब िक िुि अपनी अल
पहचान नहीर छोड़िे हो, अहर कार को
दवदा नहीर दे िे हो। िब िक िुि प्रेि कैसे कर सकिे हो? िुि-िुि बने रहिे हो, िुम्हारा प्रेिी भी अपने को बचा रहिा है । िुि दोनगे िें कोच भी
क दस ा रे िें डाबने को सिादवष्
होने को राजी नहीर है । िुि दोनो
क दस ा रे को
बाहर रखिे हो। िुि दोनगे अपने-अपने िेरे िें बरद रहिे हो। पररणाि यह होिा है कक कोच मिलन नहीर होिा है , कोच सरवाद नहीर होिा है । और जब प्रेिी भी सिादवष्
नहीर हो सकिे है िो यह सुतनक्चि है कक िुम्हारा जीवन
दररििि जीवन है । िब िुि अकेले हो, दीन-हीन हो। मभखारी हो। और जब सारा अक्स्तित्व िुििें सिादवष् है । िो िुि सम्रा
होिा
हो।
इसे स्तिरण रखो। सिादवष्
करने को अपनी जीवन-शैली बना लो। उसे यान ही नहीर,जीवन शैली, जीने का ढर
बना लो। अतधक से अतधक को सक्म्िमलि करने की चेष् ा करो। िुि क्जिना ज्यादा सक्म्िमलि करो े िुम्हारा उिना ही ज्यादा दवस्तिार हो ा। िब िुम्हारी सीिा र अक्स्तित्व के और-छोर को छाने ल ें ी। और िुि हो े। सिस्ति अक्स्तित्व िि ु िें सिादवष्
क दन केवल
हो ा। यही सभी धामियक अनुभवगे का सार सात्र है।
‘’हे वप्रय, इस क्षण िें िन, ज्ञान,प्राण, रूप, सब को सिाविष्ट होने दो।’ ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन–61
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—90 (ओशो)
‘आाँख की पुतमलयों को पंख की भांतत छूने से उनके बीच का हलकापन ह्रदय िें खुलता है । और िहां ब्रहिांड
व्याप जाता है ।’
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—90 (गशो)
दवतध िें प्रवेश के पहले कुछ भामिका की बािें सिझ लेनी है । पहली बाि कक आँख के बाबि कुछ सिझना जरूरी है । यगेकक परा ी दवतध इस पर तनभयर करिी है ।
पहली बाि यह है कक बाहर िुि जो भी हो या जो दखाच पड़िे हो वह झाठ हो सकिा है । लेककन िुि अपनी
आरखगे को नहीर झुठला सकिे। िि ु झाठी आरखें नहीर बना सकिे हो। िुि झाठा चेहरा बना सकिे हो। लेककन झाठी आरखें नहीर बना सकिे। वह असरभव है । जब िक कक िुि
रु क्ज फ की िरह परि तनष्णाि हीन हो जाग। जब
िक िुि अपनी सारी शक्ियगे के िामलक न हो जाग। िुि अपनी आरखगे को नहीर झुठला सकिे। सािान्य आदिी यह नहीर कर सकिा है । आर खगे को झुठलाना असरभव है ।
यहीर कारण है कक जब कोच आदिी िुम्हारी आरखगे िें झाँकिा है , िुम्हारी आरखगे िें आरखें डालकर दे खिा है िो
िुम्हें बहुि बरु ा ल ािा है । यगेकक वह आदिी िुम्हारी असमलयि िें झारकने की चेष् ा कर रहा है । और वहार िुि कुछ भी नहीर कर सकिे; िुम्हारी आरखें असमलयि को प्रक कर दें ी,वे उसे प्रक कर दें ी िो िुि सचिुच हो। इसीमल
ककसी की आरखगे िें झारकना मशष् ाचार के दवरूध स िाना जािा है । ककसी से बािचीि करिे सिय भी िुि
उसकी आरखगे िें झारकने से बचिे हो। जब िक िुि ककसी के प्रेि िें नहीर हो। जब िक कोच िुम्हारे साथ प्रािालणक होने को राजी नहीर था। िब िक िुि उसकी आँख िें नहीर दे ख सकिे।
क सीिा है । िनक्स्तवदगे ने बिाया है कक िीस सेकेंड सीि है । ककसी अजनबी की आरखगे िें िुि िीस सेकेंड िक
दे ख सकिे हो—उससे अतधक नहीर। अ र उससे ज्यादा दे र िक दे खें े िो िुि आक्रािक हो रहे हो और दस ा रा
यक्ि िुररि बुरा िाने ा। हार, बहुि दरा से िुि ककसी की आँख िें दे ख सकिे हो; यगेकक िब दस ा रे को उकसा बोध नहीर होिा। अ र िुि सौ फी
की दरा ी पर हो िो िैं िुम्हें िारिा रह सकिा हार। लेककन अ र मसफय दो फी की दरा ी हो िो वैसा करना असरभव है । ककसी भीड़-भरी रे ल ाड़ी िें , या ककसी मलतर
िें आस-पास बैठे या खड़े होकर भी िि ु
दे खिे हो। हो सकिा है ककसी का शरीर छा जा
क दस ा रे की आरखगे िें नहीर
वह उिना बरु ा नहीर है ; लेककन िुि दस ा रे की आरखगे िें कभी नहीर
झाँकिे हो। यगेकक वह जरा ज्यादा हो जा
ा। इिनी तनक
जाग े।
से िुि आदिी की असमलयि िें प्रवेश कर
िो पहली बाि कक आरखगे का कोच सरस्तकाररि रूप नहीर होिा; आरखें शुध स प्रकृति है । आरखगे पर िुखौ ा नहीर है । और दस ा री बाि याद रखने की यह है कक िुि सरसार िें करीब-करीब मसफय आँख के वावारा
ति करिे हो। कहिे हो
कक िुम्हारी अस्तसी प्रतिशि जीवन यात्रा आँख के सहारे होिी है । क्जन्हगेने आरखगे पर काि ककया है उन
िनोवैज्ञातनक को का कहना है कक सरसार के साथ िुम्हारा अस्तसी प्रतिशि सरपकय आरखगे के वावारा ही होिा है । िुम्हारा अस्तसी प्रतिशि जीवन आँख से चलिा है ।
यही कारण है कक जब िुि ककसी अरधे आदिी को दे खिे हो िो िुम्हें दया आिी है । िुम्हें उिनी दया और
सहानुभाति िब नहीर होिी जब कक बहरे आदिी को दे खिे हो। लेककन जब िुम्हें कोच अरधा आदिी दखाच दे िा है िो िुम्हें अचानक उसके प्रति सहानुभाति और करूणा अनुभव होिी है । यगे? यगेकक यह अस्तसी प्रतिशि िरा हुआ है । बहरा आदिी उिना िरा हुआ नहीर है । अ र िुम्हारे हाथ-पाँव भी क जा र िो भी िि ु इिना िि ृ अनुभव नहीर करो े। लेककन अरधा आदिी अस्तसी प्रतिशि िुदाय है। वह केवल बीस प्रतिशि जीदवि है । िुम्हारी अस्तसी प्रतिशि ऊजाय िुम्हारी आरखगे से बाहर जािी है । िुि सरसार िें आरखगे के वावारा इसमल
जब िुि थकिे हो िो सबसे पहले आरखें थकिी है । और कफर शरीर के दस ा रे अर
ति करिे हो।
थकिे है । सबसे पहले
िुम्हारी आरखें ही ऊजाय से ररि होिी है । अ र िुि अपनी आरखें िुम्हारी अस्तसी प्रतिशि ऊजाय है । अ र िुि अपनी आरखगे को पुनजीदवि कर लो िो िुिने अपने को पुनजीवन दे दया।
िुि ककसी प्राकृतिक पररवेश िें कभी उिना नहीर थकिे हो क्जिना ककसी अप्राकृतिक शहर िें थकिे हो। कारण यह है कक प्राकृतिक पररवेश िें िुम्हारी आरखगे को तनरर िर पोनण मिलिा है । वहार की हररयाली, वहार की िाजी हवा,वहार की हर चीज िुम्हारी आरखगे को आराि दे िी है । पोनण दे िी है ।
क आधुतनक शहर िें बाि उल ी है ;
वहार सब कुछ िुम्हारी आरखगे को शोनण करिा है ; वहार उन्हें पोनण नहीर मिलिा।
िुि ककसी दरा दे हाि िें चले जाग। या ककसी पहाड़ पर चले जाग जहार के िाहौल िें कुछ भी कृलत्रि नहीर है । जहार सब कुछ प्राकृतिक है, और वहार िुम्हें मभन्न ही ढर
की आरखें दे खने को मिलें ी। उनकी झलक उनकी
ुणविा और हो ी। वह िाजी हगे ी। पशुगर जैसी तनियल हगे ी।
हरी हगे ी। जीवरि और नाचिी हुच हगे ी। आधुतनक शहर िें आरखें िि ृ होिी है । बुझी-बुझी होिी है । उन्हें उत्सव का पिा नहीर है । उन्हें िालाि नहीर है कक िाज ी या है । वहार आरखगे िें जीवन का प्रवाह नहीर है । बस उनका शोनण होिा है ।
भारि िें हि अरधे यक्ियगे को प्रज्ञाचक्षु कहिे है । उसका दवशेन कारण है । प्रत्ये क दभ ु ायग्य को िहान अवसर िें रूपारिररि ककया जा सकिा है । आरखगे से होकर अस्तसी प्रतिशि ऊजाय काि करिी है ; और अरधा आदिी अस्तसी
प्रतिशि िुदाय होिा है , सरसार के साथ अस्तसी प्रतिशि सरपकय ा ा होिा है । जहार िक बाहरी दतु नया का सरबरध है ,
वह आदिी बहुि दीन है । लेककन अ र वह इस अवसर का, इस अरधे होने के अवसर का उपयो करना चाहे िो वह इस अस्तसी प्रतिशि ऊजाय का उपयो कर सकिा है । वह अस्तसी प्रतिशि ऊजाय, क्जसके बहने के वावार बरद है । लबना उपयो
के रह जािी है । य द वह उसकी कला नहीर जानिा है ।
िो उसके पास अस्तसी प्रतिशि ऊजाय का भरडार पडा है । और जो ऊजाय सािान्यि: ब हयायत्रा िें ल िी है वही ऊजाय अरियायत्रा िें ल दववेकवान हो जा
सकिी है । अ र वह उसे अरियायत्रा िें सरलग्न करना जान ले िो वह प्रज्ञाचक्षु हो जा ा।
ा।
अरधा होने से कही कोच प्रज्ञाचक्षु नहीर होिा है । लेककन वह हो सकिा है । उसके पास सािान्य आरखें िो नहीर है । लेककन उसे प्रज्ञा की आरखें मिल सकिी है । इसकी सरभावना है । हिने उसे प्रज्ञाचक्षु नाि यह बोध दे ने के इरादे से दया कक वह इसके मल
दुःु ख न िाने कक उसे आरखें नही है । वह अरिचयक्षु तनमियि कर सकिा है । उसके पास
अस्तसी प्रतिशि उजाय का भरडार अछािा पडा है । जो आँख वालगे के पास नहीर है । वह उसका उपयो
कर सकिा है ।
य द अरधा आदिी बोधपाणय नहीर है िो भी वह िुिसे ज्यादा शारि होिा है । ज्यादा दवश्रािपाणय होिा है । ककसी अरधे आदिी को दे खो वह ज्यादा शारि है । उसका चेहरा ज्यादा दवश्राि पाणय है । वह अपने आप िें सरिुष्
है , उसिें
अरसिोन नहीर है । यह बाि बहरे आदिी के साथ नहीर होिी है । बहरा आदिी िुिसे ज्यादा अशारि हो ा और
चालाक हो ा। लेककन अरधा आदिी न अशारि होिा है और न चालाक और हसाबी-ककिाबी होिा है । यह बुतनयादी िौर से श्रध सावान होिा हे । अक्स्तित्व के प्रति श्रध सावान होिा है ।
ऐसा यगे होिा है । यगेकक उसकी अस्तसी प्रतिशि ऊजाय,हालारकक वह उसके बारे िें कुछ नहीर जानिा है । भीिर की और प्रवा हि हो रही है । वह ऊजाय सिि भीिर त र रही है । ठीक जलप्रपाि की िरह त र रही है । उसे इसका
बोध नहीर है । लेककन यह ऊजाय उसके ्दय पर बरसिी रहिी है। वही ऊजाय जो बाहर जािी है , उसके ्दय िें जा रही है । और यह चीज उसके जीवन का
ण ु धिय बदल दे िी है । प्राचीन भारि िें अरधे आदिी को बहुि आदर मिलिा था—बहुि-बहुि आदर। अत्यरि आदर िें हिने उसे प्रज्ञाचक्षु कहा है । िुि यही अपनी आरखगे के साथ कर सकिे हो। यह दवतध उसके मल
ही है । यह िुम्हारी बाहर जाने वाली ऊजाय
को वापस लाने, िुम्हारे ्दय केंि पर उिारने की दवतध है । अ र वह ऊजाय िुम्हारे ्दय िें उिर जा
िो िुि
बहुि हलके हो जाग े। िुम्हें ऐसा ल े ा कक सारा शरीर क परख बन या है , कक िुि पर अब ुरूत्वाकनयण का कोच प्रभाव न रहा। और िुि िब िुररि अपने अक्स्तित्व के हनत्ि स्तत्रोि से जुड़ जािे हो। और वह िुम्हें पुनरुज्जीदवि कर दे िा है । िरत्र के अनुसार
ाढ़ी नीरद के
ाद िुम्हें जो नव जीवन मिलिा है , जो िाज ी मिलिी है उसका कारण नीरद नहीर
है । उसका कारण है कक जो ऊजाय बाहर जा रही थी, वही ऊजाय भीिर आ जािी है । अ र िुि यह राज जान लो िो जो नीरद सािान्य यक्ि छह या आठ िर गे िें परा ी करिा है । िुि कुछ मिन गे िें परा ी कर सकिे हो। छह
या आठ िर े की नीरद िें िुि खद ु कुछ नहीर करिे हो, प्रकृति ही कुछ करिी है । और इसका िुम्हें बोध नहीर है कक यह या करिी है । िुम्हारी नीरद िें
क रहस्तयपण ा य प्रकक्रया ि िी है । उसकी
क बतु नयादी बाि यह है कक
िुम्हारी ऊजाय बाहर नहीर जािी है । वह िुम्हारी ्दय पर बरसिी रहिी है । और वहीर चीज िुम्हें नया जीवन दे िी है । िुि अपनी ही ऊजाय िें इस
हन स्तनान कर लेिे हो।
तिशील ऊजाय के सरबरध िें कुछ और बािें सिझने की है । िुिने
ौर ककया हो ा कक अ र कोच यक्ि
िुिसे ऊपर है िो वह िुम्हारी आरखगे िें सीधे दे खिा है । और अ र वह िुिसे किजोर है िो वह नीचे की िरफ दे खिा है । नौकर
ुलाि या कोच भी कि िहत्व का यक्ि अपने से बड़े यक्ि की आरखगे िें नहीर दे खे ा।
लेककन बड़ा आदिी िार सकिा है । सम्रा आँख मिलाकर नहीर दे ख सकिे हो। वह
ुनाह सिझा जा
असल िें िुम्हारी ऊजाय िुम्हारी आरखगे से के मल
ही नहीर, पशुगर के मल
के सािने खड़े होकर िुि उसकी आरखे से
ा। िुम्हें अपनी आरखगे को झुका र रहना है ।
ति करिी है । और वह सा्ि हरसा बन सकिी है । यह बाि िनुष्यगे
भी सही है । जब दो अजनबी मिलिी है , दो जानवर मिलिे है । िो वे
की आँख नीची कर ली िो िािला िय हो उनिें कौन श्रेष्ठ है ।
िार सकिा है । लेककन सम्रा
या; कफर वे लड़िे नहीर। बाि खत्ि हो
च। तनशतचि हो
क-दस ा रे या कक
बचे भी
क दस ा रे की आँख िें िारने का खेल खेलिे है ; और जो भी आँख पहले ह ा लेिा है । वह हार
िाना जािा है । और बचे सही है । जब दो बचे
या
क दस ा रे की आरखगे िें िारिे है िो उनिें जो भी पहले बेचैनी
अनुभव करिा है । इधर-उधर दे खने ल िा है । दस ा रे की आँख से बचिा है । वह पराक्जि िाना जािा है । और िो िारिा ही रहिा है । वह शक्िशाली िाना जािा है । अ र िुम्हारी आरखें दस ा रे की आरखगे को हरा दे िो वह इस बाि का सा्ि लक्षण है कक िुि दस ा रे से शक्िशाली हो। जब कोच यक्ि भानण दे ने या अमभनय करने के मल वह कारपने ल िा है । जो लो
िरच पर खड़ा होिा है । िो वह बहुि भयभीि होिा है । पुराने अमभनेिा है, वे भी जब िरच पर आिे है िो उन्हें भय पकड़ लेिा है । कारण
यह है कक उन्हें इिनी आरखें दे ख रही है । उनकी और इिनी आक्रािक ऊजाय प्रवा हि हो रही है । उनकी और हजारगे लो गे से इिनी ऊजाय प्रवा हि होिी है वे अचानक अपने भीिर कारपने ल िे है । क सा्ि ऊजाय आरखगे से प्रवा हि होिी है ।
क अत्यर ि सा्ि, अत्यरि पररष्कृि शक्ि आरखगे से प्रवा हि होिी
है । और यक्ि-यक्ि के साथ इस ऊजाय का बुध स की ऊजाय
ण ु धिय बदल जािी है ।
क िरह की आरखगे से प्रवा हि होिी है, ह लर की आरखगे से सवयथा मभन्न िरह की ऊजाय प्रवा हि
होिी है । अ र िुि बुध स की आरखगे से दे खो िो पाग े कक वह आरखें िुम्हें बुला रही है । िुम्हारा स्तवा ि कर रही है । बुध स की आरखें िुम्हारे मल
वावार बन जािी है । और अ र िुि ह लर की आरखगे से दे खो िो पाग े कक वे
िुम्हें अस्तवीकार कर रही है । िुम्हारी तनरदा कर रही है । िुम्हें दरा ह ा रही है । ह लर की आरखें िलवार जैसी है और बुध स की आरखें किल जैसी है , ह लर कक आरखगे िें हरसा है , बुध स की आरखगे िें करूणा। आरखगे का
ुणधिय अल -अल
है । दे र अबेर हि आँख की ऊजाय को नापने की दवतध खोज लें ।े और िब
िनुष्य के सरबरध िें जानने को बहुि नहीर बचे ा। मसफय आँख की ऊजाय आँख का पीछे ककस ककस्ति का यक्ि तछपा है । दे र-अबेर इसे नापना सरभव हो जा ा।
ुणधिय बिा दे ा कक उसके
सह सात्र यह दवतध इस प्रकार है: ‘आँख की पुिमलयगे को परख की भारति छाने से उनके बीच का हलकापन ्दय िें खुलिा है और वहार ब्रह्िारड याप जािा है ।’
‘आँख की पुिमलयगे को परख की भारति छाने से…..।’ दोनगे हथेमलयगे का उपयो
करो, उन्हें अपनी आरखगे पर रखो और हथेमलयगे से पुिमलयगे को स्तपशय करो—जैसे परख
से उन्हें छा रहे हो। पुिमलयगे पर जरा भी दबाव िि डालगे। अ र दबाव डालिे हो िो िुि पारी बाि से चाक जािे हो। िब पारी दवतध ही यथय हो
च। कोच दबाव िि डालगे; बस परख की िरह छुग।
ऐसा स्तपशय, परखवि स्तपशय धीरे -धीरे आ
ा। आरर भ िें िुि दबाव दो े। इस दबाव को कि से कि करिे जाग—
जब िक कक दबाव लबलकुल न िालाि हो, िुम्हारी हथैमलयार पुिमलयगे को स्तपशय भर करें । िात्र स्तपशय। इस स्तपशय िें जरा भी दबाव न रहे । य द जरा भी दबाव रह
या िो दवतध काि न करे ी। इसमल
इसे परख-स्तपशय कहा
या
है । यगे? यगेकक जहार साच से काि चले वहार िलवार चलाने से या हो ा। कुछ काि है क्जन्हें सुच ही कर सकिी है । उन्हें िलवार नहीर कर सकिी। अ र िुि पि ु मलयगे पर दबाव दे िे हो िो स्तपशय का आक्रािक हो
ण ु बदल
या; िब िुि
। और जो ऊजाय आरखगे से बहिी है वह बहुि सा्ि है । बहुि बारीक है । जरा सा दबाव, और
स्तपशय, क सरिनय, क प्रतिरोध पैदा कर दे िा है । दबाव पड़ने से आरखगे से बहने वाली ऊजाय लड़ें ी, प्रतिरोध करे ी। क सरिनय चले ा। िो लबलकुल दबाव िि डालगे; आँख की ऊजाय को हलके से दबाव का भी पिा चल जािा है । वह बहुि सा्ि है , कोिल है । िो दबाव लबलकुल नहीर, िुम्हारी हथैमलयार परख की िरह पुिमलयगे को ऐसे छु ँ जैसे न छा रही हो।
आरखगे को ऐसे स्तपशय करो कक वह स्तपशय पिा भी न चले। ककर तचि भी दबाव न पड़े;बस हलका सा अहसास हो कक हथेली पुिली को छा रही है । बस। इससे या हो ा? जब िुि ककसी दबाव के लबना स्तपशय करिे हो िो ऊजाय भीिर की और
ति करने ल िी है ।
और अ र दबाव पड़िा है िो ऊजाय हाथ से लड़ने ल ािी है । और वह बाहर चली जािी है । लेककन अ र हलका सा स्तपशय हो, परख-स्तपशय हो, िो ऊजाय भीिर की और बहने ल िी है । लौ
क वावार बरद है । और ऊजाय पीछे की िरफ
पड़िी है । और क्जस क्षण ऊजाय पीछे की िरफ बहने ल े ी, िुि अनुभव करो े कक िुम्हारे परा े चेहरे पर
और िुम्हारे मसर िें
क हलकापन फैल
या। यह प्रतिक्रिण करिी हुच ऊजाय ही, पीछे लौ िी है ।
और इन दो आरखगे िें िाय िें िीसरी आँख है । प्रज्ञाचक्षु है । इन्हें दो आरखगे के िय िें मशवनेत्र कहिे है । आरखगे से पीछे की और बहने वाली ऊजाय िीसरी आँख पर चो हो। जिीन से ऊपर उठिे िालाि पड़िे हो। िानगे चलकर ्दय पर बरसिी है ।
करिी है । और उसके कारण ही हल्का पन िहसास करिे
ुरूत्वाकनयण सिाि हो
या। और यही ऊजाय िीसरी आँख से
यह
क शारीररक प्रकक्रया है । बारद-बारद ऊजाय नीचे त रिी है । ्दय पर बरसिी है । और िुम्हारे ्दय िें बहुि हलकापन अनुभव हो ा। ्दय की धड़कन बहुि धीिी हो जा ी और वास की ति धीिी हो जा ी और िुम्हारा शरीर दवश्राि अनुभव करे ा।
य द िुि इसे यान की िरह नहीर भी करिे हो िो भी यह प्रयो
िुम्हें शारीररक रूप से सहयो ी हो ा। दन िें
कभी भी कुसी पर बैठे हु , या य द कुसी न हो िो रे ल ाड़ी या कहीर भी बैठे हु , आरखें बरद कर लो, पारे शरीर को मशतथल छोड़ दो और अपनी हथेमलयगे को आरखगे पर रखो। लेककन आरखगे पर दबाव िि डोलो—यही बाि बहुि िहत्व पाणय है —परख की भारति छुग भर।
जब िुि लबना दबाव के छािे हो िो िुम्हारे दवचार ित्क्षण बरद हो जािे है । शारि िन िें दवचार नहीर चल सकिे है । वह ठहर जािे है । दवचारगे को
ति करने के मल
पा लपन जरूरी है । िनाव जरूरी है । दवचार िनाव के सहारे
जीिे है । जब आरखें िौन, मशतथल और शारि है और ऊजाय पीछे की िरफ जािे है । िुम्हें
ति करने ल िी है िो दवचार ठहर
क सा्ि सुख का अनुभव हो ा जो रोज प्र ाढ़ होिा जािा है ।
दन िें यह प्रयो
कच बार करो।
क क्षण के मल
भी यह छाना अछा रहे ा। जब भी िुम्हारी आरखें थक जा ,र
जब भी उनकी ऊजाय चुक जा । वे बोलझल अनुभव करें —जैसा पढ़ने, कफल्ि दे खने या
ी वी शो दे खने से होिा
है —िो आरखें बरद कर लो और उन्हें स्तपशय करो। उसका असर ित्क्षण हो ा।
लेककन अ र िुि इसे यान बनाना चाहिे हो िो कि से कि चालीस मिन बाि इिनी है कक दबाव िि डालगे, मसफय छुग। यगेकक ऐसा स्तपशय चालीस मिन
क क्षण के मल
िक इसे करना चा ह । और कुल
िो परख जैसा स्तपशय आसान है । लेककन
रह, यह क ठन है । अनेक बार िुि भाल जािे हो, और दबाव शुरू हो जािा है ।
दबाव िि डालगे। चालीस मिन
िक यह बोध बना रहे कक िुम्हारे हाथगे िें कोच वचन नहीर है । वे मसफय स्तपशय
कर रहे है । इसका सिि होश बना रहे कक िुि आरखगे को दबािे नहीर, केवल छािे हो। कफर वह वास की भारति हरा बोध बन जा
ा। जैसे बध स ु कहिे है कक पारे होश से वास लो, वैसे ही स्तपशय भी पारे होश से करो। िुम्हें
सिि स्तिरण रहे कक िैं लबलकुल दबाव न डालु। िुम्हारे हाथगे को परख जैसा हलका होना चा ह । लबलकुल वजन शान्य िात्र स्तपशय। िुम्हारा अवधान आरर भ िें ऊजाय बारद-बारद आ
काग्र होकर वहार रहे ा। और ऊजाय तनरर िर बहिी रहे ी।
ी। कफर कुछ ही िहीनगे िें िुि दे खो ें कक वह सररि प्रवाह बन
भर के भीिर वह बाढ़ बन जा
या है । और वनय
ी। और जब वह ि ि हो ा—‘आँख की पुिमलयगे को परख की भारति छाने से
उनके बीच का हलकापन’—जब िुि छाग े िो िुम्हें हलकापन अनुभव हो ा। िुि इसे अभी ही अनुभव कर सकिे हो। जैसे ही िुि छािे हो, ित्काल िें खुलिा है , वह हलकापन
क हलकापन पैदा हो जािा है । और वह उनके बीच का हलकापन ्दय
हरे उिरिा है , ्दय िें खुलिा है ।
्दय िें केवल हल्कापन प्रवेश कर सकिा है । कुछ भी जो भारी है वह ्दय िें नहीर प्रवेश कर सकिा है । ्दय िें मसफय हलकी चीजें ि ि हो सकिी है । दो आरखगे के बीच का यह हलकापन ्दय िें त रने ल े ा और ्दय उसे ग्रहण करने को खुल जा
ा।
‘और वहार ब्रह्िारड याप जािा है।’ और जैसे-जैसे यह ऊजाय की वनाय पहले झरना बनिी है , कफर नदी बनिी है और कफर बाढ़ बनिी है । िुि उसिें खो जाग े। बह जाग े। िुम्हें अनुभव हो ा कक िुि नहीर हो। िुम्हें अनुभव हो ा कक मसफय ब्रह्िारड है । वास लेिे हु , वास छोड़िे हु िुि ब्रह्िारड ही हो जाग े। िब वास के साथ-साथ ब्रह्िारड ही भीिर आ ब्रह्िारड ही बाहर जाये ा। िब अहर कार, जो सदा रहे हो, नहीर रहे ा। िब अहर कार या।
ा। और
यह दवतध बहुि सरल है ; इसिें खिरा नहीर है । िुि जैसे चाहो इसके साथ प्रयो कर सकिे हो। लेककन इसके सरल होने के कारण ही िुि इसे करने से भाल भी सकिे हो। पारी बाि इस पर तनभयर है कक दबाव के लबना छाना है ।
िुम्हें यह सीखना पड़े ा। प्रयो दबाव द
करिे रहो।
क सिाह के भीिर यह सध जाये ा। अचानक ककसी दन जब िुि
लबना छाग ,े िुम्हें ित्क्षण वह अनुभव हो ा क्जसकी िैं बाि कर रहा हार। खुलना और ककसी चीज का मसर से ्दय िें उिरना अनुभव हो ा। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-63
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—91 (ओशो) दस ू री विधि:
क हलकापन, ्दय का
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—91 (गशो)
‘’हे दयाियी, अपने रूप के बहुत ऊपर और बहुत नीचे, आकाशीय उपक्स्थतत िें प्रिेश करो।‘’ यह दस ा री दवतध िभी प्रयो की जा सकिी है , जब िुिने पहली दवतध पारी कर ली है । यह प्रयो ककया जा सकिा है । लेककन िब यह बहुि क ठन हो ा। इसमल और िब यह दवतध बहुि सरल भी हो जाये ी।
अल
से भी
पहली दवतध पारी करके ही इसे करना अछा है ।
जब भी ऐसा होिा है —कक िि ु हलके-फुलके अनुभव करिे हो, जिीन से उठिे हु अनुभव करिे हो,िानगे िि ु उड़ सकिे हो—िभी अचानक िुम्हें बोध हो ा कक िुम्हारा शरीर को चारगे और क नीली आभा िरडल िेरे है । लेककन यह अनुभव िभी हो ा जब िुम्हें ल े कक िैं जिीन से ऊपर उठ सकिा हार, कक िेरा शरीर आकाश िें उड़ सकिा है । कक यह लबलकुल हलका और तनभायर हो या है । कक वह पथ्ृ वी के ुरूत्वाकनयण से लबलकुल िुि हो या है ।
ऐसा नहीर है कक िुि उड़ सकिे हो; वह प्रन नहीर है । हालारकक कभी-कभी यह भी होिा है । कभी-कभी ऐसा
सरिुलन बैठ जािा है । कक िुम्हारा शरीर ऊपर उठ जािा है । लेककन यह प्रन ही नहीर है । उसकी सोचो ही िि। बरद आरखगे से इिना िहसास करना काफी है कक िुम्हारा शरीर ऊपर उठ
या है । जब िुि आँख खोलो े िो
पाग े कक िुि जिीन पर ही बैठे हो। उसकी तचरिा िि करो। अ र िुि बरद आरखगे से िहसास कर सके कक शरीर ऊपर उठ यान के मल
या है , कक उसिें कोच वजन रहा, िो इिना काफी है ।
इिना काफी है । लेककन अ र आकाश िें उड़ना सीखने की चेष् ा कर रहे हो िो यह काफी नहीर
है । लेककन िैं उसिें उत्सुक नहीर हार,और िैं िुम्हें उसके सरबध र िें कुछ नहीर बिाऊर ा। इिना पयायि है कक िुम्हें िहसास हो कक िुम्हारे शरीर पर कोच भार नहीर है, वह तनभायर हो या है । और जब भी यह हलकापन िहसास हो िो आरखें बरद रखे हु ही अपने शरीर के आकार के प्रति बोधपाणय होग। आरखगे को बरद रखिे हु अँ ाठगे को और उनके आकार को िहसास करो, पैरगे को और उनके आकार को िहसास
करो। अ र िुि बुध स की भारति मसध सासन िें बैठे हो िो बैठे ही बैठे अपने शरीर के आकार को अनुभव करो। िुम्हें
अनुभव हो ा, स्तपष्
अनुभव हो ा। और उसके साथ ही साथ िम् ु हें बोध हो ा कक उस आकार के चारगे और नीला
आरर भ िें यह प्रयो
आरखगे को बरद रख कर करो। और जब यह प्रकाश फैलिा जा
सा प्रकाश फैला है ।
और नीला प्रकाश िरडल िहसास हो, िब कभी यह प्रयो िुि अपने शरीर के चारगे और
और िुम्हें आकार के चारगे
राि िें , अरधेरे किरे िें करिे सिय आरखें खोल लो, और
क नीला प्रकाश, क नीला आभा िरडल दे खो ें । अ र िुि इसे बरद आरखगे से
नहीर, खुली आरखगे से दे खना चाहिे हो िो इसे सचिुच दे खना चाहिे हो िो यह प्रयो
अरधेरे किरे िें करो जहार
कोच रोशनी न हो।
यह नीला प्रकाश, यह नीला आभा िरडल िुम्हारे आकाश शरीर की उपक्स्तथति है । िुम्हारे शरीर
क वावार है । यह
दवतध आकाश-शरीर से सरबरध रखिी है । और िुि आकाश शरीर के वावारा ऊरची से ऊरची सिातध िें प्रवेश कर सकिे हो।
साि शरीर है और भ वत्िा िें प्रवेश के मल यह दवतध आकाश शरीर का उपयो
प्रत्येक शरीर का उपयो
हो सकिा है । प्रत्येक शरीर
क वावार है ।
करिी है । और आकाश शरीर को प्राि करना सबसे सरल है । शरीर के िल
पर क्जिनी ज्यादा तनक
हराच हो ी उिनी ही उसकी उपलक्ध क ठन हो ी। लेककन आकाश शरीर िुम्हारे बहुि है , स्तथाल शरीर के बहुि तनक है । आकाश शरीर िुम्हारा दस ा रा शरीर है । जो िुम्हारे चारगे और है —िुम्हारे
स्तथाल शरीर के चारगे और। यह िुम्हारे शरीर के भीिर भी है और यह शरीर को चारगे और से की िरह, नीले प्रकाश को िरह ढीले पररधार की िरह िेर हु
है ।
क धुँधली आभा
‘हे दयाियी, अपने रूप के बहुि ऊपर और बहुि नीचे, आकाशीय उपक्स्तथति िें प्रवेश करो।’ बहुि ऊपर, बहुि नीचे—िुम्हारे चारगे और सवयत्र। य द िुि अपने सब और उस नीले प्रकाश को दे ख सको िो दवचार िुररि ठहर जा ा। यगेकक आकाश शरीर के मल दवचार करने की जरूरि नही है । और यह नीला प्रकाश बहुि शारति दायी है । यगे? यगेकक वह िुम्हारे आकाश शरीर का प्रकाश है । नीला आकाश ही ककिना दवश्रािपाणय है । यगे? यगेकक वह िुम्हारे आकाश शरीर का रर है । और आकाश-शरीर स्तवयर बहुि दवश्रािपण ा य है । जब भी कोच यक्ि िुम्हें प्रेि करिा है , जब भी कोच यक्ि िुम्हें प्रेि से स्तपशय करिा है , िब वह िुम्हारे आकाश शरीर को स्तपशय करिा है। इसीमल मलया जा चुका है । जब दो प्रेिी िें सरभो चालीस मिन
िुम्हें वह इिना सुखदायी िालाि पड़िा है । इसका िो फो ोग्राफ भी
िें उिरिे है , और य द उनका सरभो
से ऊपर चले और स्तखलन न हो, िो
क खास अवतध िक चले,
हन प्रेि िें डाबे उन दो शरीरगे के चारगे गर
क नीला
प्रकाश छा जािा है । उनका फो ो भी मलया जा सकिा है ।
और कभी-कभी िो बहुि अजीब ि ना र ि िी है । यगेकक यह प्रकाश बहुि ही सा्ि दववायुि शक्ि है । सारे सरसार िें बहुि सी ऐसी ि ना र ि ी है । न प्रेमियगे का क जोड़ा हनीिान िनाने के मल न किरे िें ठहरा है ; पहली राि है और वे
क दस ा रे के शरीर से पररतचि नहीर है , वे नहीर जानिे है कक या सरभव है । अ र दोनगे
के शरीर प्रेि के आकनयण के ल ाव और हा दयकिा के है , ग्रहणशील है कक उनके शरीर इिने दववायुत्िय हो
क दवशेन िरर
से िरर ातयि है ।
क दस ा रे के प्रति खुले
या है । उनके आकाश शरीर इिने आदवष्
है कक उनके प्रभाव से किरे की चीजें त रने ल ी है ।
और जीवरि हो
बहुि अजीब ि ना र ि ी है । िेज पर क िातिय रखी है । वह जिीन पर त र जािी है । िेज का शीशा अचानक ा जािा है । वहार कोच िीसरा यक्ि नही है । िात्र वह जोड़ा है वहार। उन्हगेने िेज या शीशे को स्तपशय भी नहीर
ककया और ऐसा भी हुआ है कक अचानक कुछ जलने ल िा है । दतु नयाभर िें ऐसे िािलगे की खबरें पुमलस चौककयगे िें दजय हुच है । उन पर खोजबीन की च है गर पाया या है कक हन प्रेि िें सरलग्न दो यक्ि ऐसी दववायुि शक्ि का सज ृ न कर सकिे है कक उससे उनके आस-पास की चीजें प्रभादवि हो सकिी है ।
वह शक्ि भी आकाश शरीर से आिी है । िुम्हारा आकाश शरीर िुम्हारा दववायुि शरीर है । जब भी िुि ऊजाय से भरे होिे हो िब िुम्हारा आकाश-शरीर बड़ा हो जािा है । और जब िुि उदास,बुझे-बुझे होिे हो िो िुम्हारा आकाश शरीर मसकुड़कर शरीर के भीिर मसि
जािा है । इसीमल
उदास और दुःु खी यक्ि के पास िुि भी
उदास और दुःु खी हो जािे हो। अ र कोच दुःु खी यक्ि इस किरे िें प्रवेश करे िो िुम्हें ल े ा कक कुछ
ड़बड़
हो रही है , यगेकक उसका आकाश शरीर िुम्हें िुररि प्रभादवि करिा है । वह शक्ि चासिा है ; यगेकक उसकी अपनी शक्ि इिनी बुझी-बुझी है कक वह दस ा रगे की शक्ि चासने ल िा है ।
उदास आदिी िुम्हें उदास बना दे िा है । दुःु खी आदिी िुम्हें दुःु खी कर दे िा है । बीिार यक्ि िुम्हें बीिार कर
दे ा। यो? यगेकक वह उिना ही नहीर है क्जिना िुि दे खिे हो, उसके भीिर कुछ तछपा है जो काि कर रहा है । हालारकक उसने कुछ नहीर कहा है । हालारकक वह बाहर से िुस्तकुरा रहा है ; िो भी य द वह दुःु खी है िो वह िुम्हारा शोनण करे ा, िुम्हारे आकाश शरीर की ऊजाय क्षीण हो जा
ी। वह िुम्हारी उिनी शक्ि खीरच ले ा, वह िुम्हें
उिना चास ल ा। और जब कोच सुखी यक्ि किरे िें प्रवेश करिा है िो िुि भी ित्क्षण सुख िहसास करने ल िे हो। सुखी यक्ि इिनी आकाशीय शक्ि लबखेरिा है कक वह िुम्हारे मल
भोजन बन जािा है । वह
िुम्हारा पोनण बन जािा है । उसके पास अतिशय ऊजाय उससे बह रही है । जब कोच बुध स, कोच क्राइस्त , कोच कृष्ण िुम्हारे पास से
ुजरिे है िो वह िुम्हें तनरर िर
क सा्ि भोजन दे रहे
है । और िुि तनरर िर उनके िेहिान हो। और जब िुि ककसी बध स ु के दशयन करके लौ िे हो िो िुि अत्यरि पुन जीदवि, अत्यरि िाजा,अत्यरि जीवरि अनुभव करिे हो। हुआ या? बुध स कुछ बोले भी न हगे; िात्र दशयन से िुम्हें ल िा है कक िेरे भीिर कुछ बदल या है । िेरे भीिर कुछ प्रदवष् हो या है । या प्रदवष् हो या है ? बध स ु इिने आिकाि है, इिने आपाररि है , इिने लबालब भरे है । कक वे ऊजाय का सा र बन
है । और उनकी ऊजाय
बाढ़ की भारति बहा रही है ।
जो भी यक्ि स्तवास्तथ होिा है , शारि होिा है, वह सदा बाढ़ बन जािा है । यगेकक अब उसकी ऊजाय उन यथय की बािगे िें उन ना सिलझयगे िें यय नहीर होिी क्जनिें िुि अपनी ऊजाय
रवा रहे हो। उसके साथ उसके चारगे और
सदा ऊजाय की बाढ़ चलिी है । और जो भी उसके सरपकय िें आिा है । वह उसका लाभ ले सकिा है । जीसस कहिे है : ‘िेरे पास आग, अ र िुि बहुि बोलझल हो िो िेरे पास आग। िैं िुम्हें तनबतझ कर दँ ा ा।’ असल िें जीसस कुछ नहीर करिे है , बस उनकी उपक्स्तथति िें कुछ होिा है । कहिे है कक जब कोच भ विा को उपलध पुरून, कोच िीथंकर, कोच अविार, कोच क्राइस्त
पथ्ृ वी पर चलिा है िो उसके चारो और
क दवशेन
वािावरण, क प्रभाव-क्षेत्र तनमियि होिा है । जैन योत यगे ने िो इसका िाप भी मलया है । वे कहिे है कक यह प्रभाव-क्षेत्र चौबीस िील होिा है । िीथंकर के चारगे और चौबीस िील की पररतध होिी है । चाहे उसे इसका बोध हो या न हो, चाहे वह मित्र हो या शत्रु हो, अनुयायी हो या दवरोधी हो, इससे कोच फकय नहीर पड़िा है ।
हार,य द िुि अनुयायी हो िो िि ु खाब भर जािे हो। यगेकक िि ु खुले हु हो। दवरोधी भी भरिा है , लेककन उिना नहीर। यगेकक दवरोधी बरद होिा है । लेककन ऊजाय िो सब पर बरसिी है । क अकेला यक्ि य द अनुवादवग्न है , शारि है, िौन है , आनर दि है , िो दव शक्ि का पुरज बन जािा है —ऐसा पुरज कक उसके चारगे और चौबीस िील िें क दवशेन वािावरण बन जािा है । और उस वािावरण िें िुम्हें
क सा्ि पोनण मिलिा है ।
यह ि ना आकाश-शरीर के वावारा ि िी है । िुम्हारा आकाश शरीर दववायुि शरीर है । जो शरीर हिें दखाच पड़िा है । वह भौतिक है , पातथयव है । यह सचा जीवन नहीर है । इस शरीर िें दववायुि शरीर आकाश शरीर के कारण जीवन आिा है । वहीर िुम्हारा प्राण है ।
िो मशव कहिे है : ‘हे दयाियी, आकाशीय उपक्स्तथति िें प्रवेश करो।’ पहले िुम्हें अपने भौतिक शरीर को िेरने वाले आकाश शरीर के प्रति बोधपाणय होना हो ा। और जब िुम्हें उसका बोध होने ल े िो उसे बढ़ागर। बड़ा करो, फैलाग। इसके मल
िुि या कर सकिे हो?
बस चुपचाप बैठना है और उसे दे खना है । कुछ करना नहीर है ; बस अपने चारो और फैले इस नीले आकार को
दे खिे रहना है । और दे खिे-दे खिे िुि पाग े कक वह बढ़ रहा है । बड़ा हो रहा है । मसफय दे खने से वह बड़ा हो रहा है । यगेकक जब िुि कुछ नहीर करिे हो िो पारी ऊजाय आकाश शरीर को मिलिी है । इसे स्तिरण रखो। और जब िुि कुछ करिे हो िो आकाश शरीर से ऊजाय बाहर जािी है ।
लागत्से कहिा है : ‘िैं कुछ नहीर करिा हार और िुझसे शक्िशाली कोच नहीर है । िैं कभी कुछ नहीर करिा है । और कोच िुझसे शक्िशाली नहीर है । जो कुछ करने के कारण शक्ि शाली है , उन्हें हराया जा सकिा है । लागत्से कहिा है ; ‘िुझे हराया नहीर जा सकिा यगेकक िेरी शकति कुछ न करने से आिी है । िो असली बाि कुछ न करना है ।’’
बोतधवक्ष ृ के नीचे बुध स या कर रहे थे? कुछ नहीर कर रहे थे। वे उस क्षण कुछ भी नहीर कर रहे थे। वे शान्य हो
या थे। और िात्र बैठे-बैठे उन्हगेने परि को पा मलया। यह बाि बेबाझ ल िी है । यह बाि बहुि है रानी की ल िी है । हि इिना प्रयत्न करिे है और कुछ नहीर होिा है । और बुध स बोतधवक्ष ृ के नीचे बैठे-बैठे लबना कुछ ककये परि को उपलध हो जािे है ।
जब िुि कुछ नहीर करिे हो िब िुम्हारी ऊजाय बाहर
ति नहीर करिी है । िब वह ऊजाय आकाश-शरीर को मिलिी
है । और वहार इकट्ठी होिी है । कफर िुम्हारा आकाश-शरीर दववायुि शक्ि का भरडार बन जािा है । और वह भरडार
क्जिना बढ़िा है । कफर िुम्हारी शक्ि उिनी ही बढ़िी है । और िुि क्जिना ज्यादा शारि होिे हो उिनी ही ऊजाय का भरडार भी बढ़िा है । और क्जस क्षण िुि जान लेिे हो। कक आकाश शरीर जो ऊजाय कैसे दी जा ऊजाय को यथय नष्
न ककया जा , उसी क्षण
ुि करु जी िुम्हारे हाथ ल
और कैसे
च।
और िब िुि आनर दि हो सकिे हो। वस्तिुि: िभी िुि आनर दि हो सकिे हो। उत्सव िना सकिे हो। िुि अभी
जैसे हो ऊजाय से ररि, िुि कैसे उत्सवपाणय हो सकिे हो? िुि कैसे उत्सव िना सकिे हो? िुि कैसे फाल की िरह लखल सकिे है । फाल िो अतिररि ऊजाय का वैभव है । वक्ष ृ ऊजाय से लबालब होिे हो िो उसिें फाल लखलिे है । वक्ष ृ य द भाखा हो िो उसिे फाल नहीर आ ँ े। यगेकक पत्िगे के मल पयायपि भोजन नहीर है ।
भी पयायि पोनण नहीर है । जड़गे के मल
भी
उनिें भी
क क्रि है । पहले जड़गे को भोजन मिले ा। यगेकक वे बतु नयादी है । अ र जड़ें ही सख ा
सरभावना कहार रहे ी? िो पहले जड़गे को भोजन दया जा
कफर भी ऊजाय शेन रह जा , िब पत्िगे को पोनण दया जा सिग्रि: सरिुष्
हो, जीने के मल
ईं िो फाल की
ा। कफर शाखागर को। अ र सब ठीक-ठाक चले और ा। और उसके बाद भी भोजन बचे और वक्ष ृ
और भोजन की जरूरि न रहे , िब अचानक उसिें फाल ल िे है । ऊजाय का
अतिरे क ही फाल बन जािा है । फाल दस ा रगे के मल
दान है । फाल भें
है । फाल वक्ष ृ की िरफ से िुम्हें भें
है ।
और यही ि ना िनुष्य िें भी ि िी है । बुध स वह वक्ष ृ है क्जसिें फाल ल े। अब उनकी ऊजाय इिनी अतिशय है कक उन्हगेने सबको पारे अक्स्तित्व को उसिे सहभा ी होने के मल पहले पहली दवतध को प्रयो
आिरलत्रि ककया है ।
करो और कफर दस ा री दवतध को। िि ु दोनगे को अल -अल
भी प्रयो
कर सकिे
हो। लेककन िब आकाश-शरीर के नीले आभा िरडल को प्राि करना थोड़ा क ठन हो ा। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग-चार प्रिचन-63
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—92 (ओशो)
‘धचत को ऐसी अव्याख्य सूक्ष्िता िें अपने ह्रदय के ऊपर, नीचे और भीतर रखो।’
SHIVA दवज्ञान भैरव िरत्र (भा –5—दवतध-92 गशो
िीन बािें । पहली,य द ज्ञान िहत्वपाणय है िो िक्स्तिष्क केंि हो ा। य द बचगे जैसी तनदतदनिा िहत्वपाणय है िो
्दय केंि हो ा। बचा ्दय िें जीिा है । हि िक्स्तिष्क िें जीिे है । बचा अनुभव करिा है । हि दवचार करिे है । जब हि कहिे है कक हि अनुभव कर रहे है । िब भी हि दवचार करिे है । कक हि अनुभव कर रहे है । सोचना हिारे मल
अनुभव धिय का।
िहत्वपाणय हो जािा है । और अनुभव
ौण हो जािा है । दवचार दवज्ञान का ढर
है । और
िुम्हें कफर से अनुभव करना शरू ु करना चा ह । और दोनगे ही आयाि लबलकुल अल हो, िुि अल क
के मल
बने रहिे हो। जब िुि अनुभव करिे हो, िुि दपिलिे हो।
ुलाब के फाल के बारे िें सोचो। जब िुि सोच रहे हो िो िुि अल दरा ी की जरूरि है । दवचारगे को
ति करने के मल
हो; दोनगे के बीच
क दरा ी है । सोचने
दरा ी चा ह । फाल को अनुभव करो और अल ाव
सिाि हो जािा है दरा ी दवदा हो जािी है । यगेकक भाव के मल तनक
है । जब िुि दवचार करिे
आिे हो, उिना ही अतधक उसे अनुभव कर सकिे हो।
दरा ी बाधा है । क्जिने ही िुि ककसी चीज के
क क्षण आिा है कक जब तनक िा भी
क िरह
की दरा ी ल िी है—और िब िुि दपिलिे हो। िब िुि अपनी गर फाल की सीिागर को अनुभव नहीर कर सकिे, िुि नहीर कह सकिे कक िुि कहार सिाि होिे हो और फाल कहार शुरू होिा है । िब सीिा र हो जािी है । फाल
क िरह से िुि िें प्रवेश कर जािा है और िुि
क दस ा रे िें दवलीन
क िरह से फाल िें प्रवेश कर जािे हो।
भाव है सीिागर का खो जाना; दवचार है सीिागर का बनना। यही कारण है कक दवचार सदा पररभाना र िार िा है ; यगेकक पररभानागर के लबना िुि सीिा र नहीर खड़ी कर सकिे। दवचार कहिा है पहले पररभाना कर लो; और भाव कहिा है पररभाना िि करो। य द िुि पररभाना करिे हो िो भाव सिाि कर जािे हो। बचा अनुभव करिा है ; हि दवचार करिे है । बचा अक्स्तित्व के तनक
आिा है , वह दपिलिा है और अक्स्तित्व
को स्तवयर िें दपिलने दे िा है । हि अकेले, अपने िक्स्तिष्क िें बरद है । हि ऐसे है जैसे वावीप। यह सात्र कहिा है कक ्दय के केंि पर लौ
आग। चीजगे को अनुभव करना शुरू करो। य द िुि अनुभव करना
शुरू करो िो अद्भि ु अनुभव हो ा। जो भी कुछ िाि करो अपनी थोड़ा सिय और थोड़ी ऊजाय भाव को दो। िुि यहार बैठे हो, िुि िुझे सुन सकिे हो—लेककन वह सोच-दवचार का हस्तसा हो ा। िुि िुझे यहार िहसास भी कर सकिे हो। लेककन वह सोच-दवचार का हस्तसा नहीर हो ा। य द िुि िेरी उपक्स्तथति को िहसास कर सको िो
पररभाना र खो जािी है । िब वास्तिव िें य द िुि भाव की सम्यक क्स्तथति िें पहुरच जाग िो िुम्हें पिा नहीर रहिा कक कौन बोल रहा है , और कौन सुन रहा है । िब विा श्रोिा बन जािा है , श्रोिा विा बन जािा है । िब वास्तिव िें वे दो नहीर रहिे। बक्ल्क िें है —जो कक जीवन है , प्रवाह है ।
क ही ि ना के दो ध्रुव है, अल -अल । वास्तिदवक चीज िो दोनगे के िय
जब भी िुि अनुभव करिे हो िो िुम्हारे अहर कार को अतिररि कुछ और िहत्वपण ा य हो जािा है । दवनय और दवनयी अपनी पररभाना र खो दे िे है ।
क प्रवाह
क िरर
िय िें जीवन की धारा।
बचिी है — क और विा और दस ा री और श्रोिा,लेककन
िक्स्तिष्क िुम्हें याया दे िा है । और इस याया के कारण बहुि ्ारति पैदा हुच है । यगेकक िक्स्तिष्क साफसाफ पररभाना करिा है , सीिा बाँधिा है । नशे बनािा है । िकय से सब सुस्तपष् हो जािा है । ककसी प्रकार की
अतनचििा, ककसी रहस्तय की कोच सरभावना नहीर रह जािी। हर अतनक्चििा अस्तवीकृि हो जािी है । केवल जो स्तपष्
है वही वास्तिदवक है । िकय िुम्हें
क स्तपष् िा दे िा है । और इस स्तपष् िा के कारण ्ि पैदा होिा है ।
वास्तिदवकिा का स्तपष् िा से लेना-दे ना नहीर है । सत्य सदा बेबाझ है । धारणा र सुस्तपष्
होिी है। सत्य रहस्तयिय
होिा है । धारणा र सर ि होिी है। सत्य असर ि होिा है । शद स्तपष्
होिे है , िकय स्तपष्
है । ्दय सत्य के अतधक तनक को ल्य बना मलया है । इसमल
होिा है । परर िु जीवन अतनक्चि रहिा है । ्दय िुम्हें
क िरल अतनक्चिा दे िा
पहुरचिा है । परर िु िकय की सुस्तपष् िा नहीर होिी। और यगेकक हिने सुस्तपष् िा हि सत्य को चाकिे चले जािे है । सत्य िें दोबारा प्रवेश करने के मल िुम्हें
आरखें चा ह । िुम्हें िरल होना चा ह , िुम्हें धारणा-शुन्य, अियय, दवस्तियकारी और जीवरि सत्य िें प्रवेश करने के मल
िैयार रहना चा ह ।
सुस्तपष् िा िो िि ृ है । उसिें बदलाह
नहीर है । जीवन
क बहाव है , उसिें कुछ भी ठहरा हुआ नहीर है । अ ले क्षण कुछ भी वैसा नहीर रहिा। िो जीवन के प्रति िुि कैसे सुस्तपष् हो सकिे हो। य द िुि सुस्तपष् िा का अतधक ही आग्रह करो े िो जीवन िें िुम्हारा सरबरध ा
जा
ा। यही हुआ है ।
यह सात्र कहिा है कक पहली बाि है । अपने ्दय के केंि पर वापस लौ
आग। लेककन वापस कैसे लो े ।
‘तचि को ऐसी अयाय सा्ििा िें अपने ्दय के ऊपर, नीचे और भीिर रखो।’ िन का अथय है िानमसक प्रकक्रया, सोच-दवचार। और तचि का अथय है वह पष्ृ ठभामि क्जस पर दवचार िैरिे है—ऐसे ही जैसे आकाश िें बादल िैरिे है । बादल है दवचार और आकाश है वह पष्ृ ठभामि क्जस पर वे िैरिे है । उस आकाश उस चेिना को तचि कहा
या है । िुम्हारा िन दवचार-शानय हो सकिा है ; िब वह तचि है , िब वह शुध स
िन है । जब दवचार होिे है िो िन अशुध स होिा है ।
दवचार शान्य िन अक्स्तित्व की सा्ििि ि ना है । इससे अतधक सा्ि सरभावना की िुि कल्पना भी नहीर कर
सकिे। चेिना अक्स्तित्व की सबसे सा्ि ि ना है । िो जब िन िें कोच दवचार नहीर होिे िब िुम्हारा िन शुध स होिा है । शुध स िन ्दय की और
ति कर सकिा है । अशुध स िन नहीर कर सकिा। अशुध सिा से िेरा अथय िन िें
अशुध स दवचारगे का होना नहीर है , अशुध सिा से िेरा अथय है सारे दवचार—दवचार िात्र ही अशुदध स है ।
य द िुि परिात्िा के बारे िें सोच रहे हो िो भी यह अशुध सिा है , यगेकक बादल िो िैर ही रहे है । बादल बहुि शु् है , लेककन कफर भी है और आकाश तनियल नहीर है । आकाश तनर् नहीर है । बादल काला हो सकिा है । िन िें कोच कािुक दवचार
ुजर जा ,या बादल सफेद हो सकिा है —िन िें कोच सुरदर प्राथयना
ुजर सकिी है । लेककन
दोनगे ही क्स्तथतियगे िें िन शुध स नहीर है । िन अशुध स है , बादलगे से तिरा है । और िन य द बादलगे से तिरा हो िो िुि ्दय की और नहीर बढ़ सकिे।
यह सिझ लेने जैसा है , यगेकक दवचारगे के रहिे िुि िक्स्तिष्क से जुड़े रहिे हो। दवचार जड़ें है, और जब िक िुि उन जड़गे को ही का
डोलो िुि वापस ्दय पर नहीर लौ
सकिे। बचा उस क्षण िक ्दय िें रहिा है क्जस
क्षण िक दवचार उसके िन िें पैदा होने शुरू नहीर होिे। कफर वे जड़ें जिािे है ; कफर मशक्षा; सरस्तकृति और सभ्यिा से दवचार जििे हे । कफर धीरे -धीरे चेिना ्दय से िक्स्तिष्क की और िुड़ने ल िी है । चेिना िक्स्तिष्क िें केवल िभी रह सकिी है जब दवचार हगे। यही आधार है । जब दवचार नहीर होिे िो चेिना ित्क्षण ्दय िें अपनी वास्तिदवक तनदतनिा पर वापस लौ इसीमल
आिी है ।
यान पर तनदवयचार अवस्तथा पर, दवचार-शुन्य सज िा पर, चुनाव-र हि बोध पर इिना जोर दया
है । या बुध स के ‘सम्यक तचि’ पर इिना जोर दया
या है । क्जसका अथय है दवचार शान्य तचि का होना, केवल
होश पाणय होना। िब या होिा है ? क अद्भुि ि ना ि िी है । यगेकक जड़ें क पर,अपने िाल स्तत्रोि पर लौ
या
जािी है िो चेिना ित्क्षण ्दय
आिी है । िुि कफर बचे बन जािे हो।
जीसस कहिे है , ‘केवल वे ही िेरे प्रभु के राज्य िें प्रवेश कर पा र े जो बचगे जैसे है ।’
वह ऐसे ही लो गे की बाि कर रहे है क्जनकी चेिना अपने ्दय पर लौ जैसे हो
आच है ; जो तनदतन हो
है । बचगे
है । लेककन पहली आवयकिा है तचि को अयाय सा्ििा िें ले जाना।
दवचारगे को अमभयि ककया जा सकिा है । ऐसा कोच भी दवचार नहीर है क्जसे अमभयि न ककया जा सके। य द उसे अमभयि न ककया जा सके िो िुि उसे सोच भी नहीर सकिे। य द िुि उसे सोच सकिे हो िो उसे अमभयि भी कर सकिे हो। ऐसा उसे सोचा,वह वचनीय हो
क भी दवचार नहीर है । जैसे िुि अतनवयचनीय कह सको। क्जस क्षण िुिने
या—िुिने उसे अपने से िो कह ही दया।
चेिना शुध स चैिन्य, अयाय है । इसीमल
िो सरि कहिे है कक वे जो जानिे है उसे अमभयि नही कर सकिे।
िाककयक सदा यह प्रन उठािे है कक अ र िुि जानिे हो िो कह यगे नहीर सकिे। और उनके िकय िें अथय है , बल है । अ र िुि सच िें कह सकिे हो कक िि ु जानिे हो िि ु अमभयि यगे नही कर सकिे? िाककयक के मल
ज्ञान याया होना चा ह —क्जसे जाना जा सकिा है , उसे दस ा रगे को जनाया भी जा सकिा है ।
उसिें कोच सिस्तया नहीर है । य द िुिने जान ही मलया है िो कफर या सिस्तया है? िुि उसे दस ा रगे को भी जना सकिे हो। लेककन सरि का ज्ञान दवचारगे को नहीर होिा। उसने दवचार की भारति नहीर जाना है ।
क अनुभाति की
भारति जाना है । िो वास्तिव िें यह कहना ठीक नहीर है , ‘िैं परिात्िा को जानिा हार।’ यह कहना बेहिर है , ‘िैं अनुभव करिा हार।’ यह कहना ठीक नहीर है , परिात्िा को जाना है । यह कहना अछा है । िैंने उसका अनुभव
ककया है । यह उस ि ना की ज्यादा उतचि अमभयक्ि है । यगेकक ज्ञान ्दय के वावारा होिा है । वह अनुभाति की िरह है । जानने की िरह नहीर।
‘तचि को ऐसी अयाय सा्ििा िें रखो…….।’ तचि अयाय है । य द कोच दवचार चल रहा हो िो वह याया है । इसमल
िन को ऐसी अयाय सा्ििा िें
रखने का अथय है ऐसी क्स्तथति िें पहारच जाना जहार िुि चैिन्य िो हो, पर ककन्हीर दवचारगे के प्रति नहीर; िुि पारी िरह सज िो हो, पर िुम्हारे िन िें कोच दवचार नहीर चल रहे । यह बहुि सा्ि और बहुि क ठन बाि है—िुि आसानी से इसे चाक सकिे हो। हि िन की दो अवस्तथागर को जानिे है ।
क अवस्तथा िो वह जब दवचार होिे है । जब दवचार होिे है िो िुि
्दय की और नहीर जा सकिे। कफर हि िन की
क दस ा री अवस्तथा जानिे है—जब दवचार नहीर होिे। जब दवचार
नहीर होिे िुि सो जािे हो। हर राि कुछ क्षणगे कुछ िर गे के मल
िुि दवचार से बाहर हो जािे हो। दवचार खो
जािे हो। पर िुि ्दय िक नहीर पहुरचिे यगेकक िुि अचेिन हो। िो क बड़े सा्ि सरिुलन की जरूरि है । दवचार ऐसे ही खो जाने चा ह जैसे वे हरी नीरद िें खो जािे है । जब कोच सपने नहीर चलिे —और िुम्हें उिना सज
होना चा ह
क्जिना िुि जा िे हु होिे हो। िन उिना दवचार र हि होना चा ह क्जिना हरी नीरद िें होिा है । लेककन िुम्हें सोया हुआ नहीर होना चा ह । िुम्हें परा ी िरह जाग्रि, होश पाणय होना चा ह । जब जा रण और इस दवचार शान्यिा का मिलन होिा है िो यान ि ि होिा है । इसीमल कक सिातध सुनुक्ि की िरह है । परि आनरद होिे। लेककन जा रूक।
हनत्ि नीरद की िरह है , बस
ुण वही है —दवचार शुन्य, स्तवन शुन्य,शारि कोच िरर
नहीर।
पिरजमल कहिे है
क ही भेद है ; इसिें िुि सोये नहीर
कदि शारि और िौन, लेककन
जब िुि होश िें होिे हो और कोच दवचार नहीर होिा िो िि ु अपनी चेिना िें अचानक करिे हो। केंि बदल जािा है । िुि वापस फेंक द
क रूपारिरण अनुभव
जािे हो। िुि ्दय पर वापस फेंक द
जािे हो। और ्दय
से जब िुि सरसार को दे खिे हो िो सरसार नहीर होिा। बस परिात्िा होिा है । बुदध स से जब िुि अक्स्तित्व को दे खिे हो िो परिात्िा नहीर होिा है , बस भौतिक अक्स्तित्व होिा है ।
पदाथय, भौतिक अक्स्तित्व, सरसार और परिात्िा दो चीजें नहीर है । दे खने के दो ढर अक्स्तित्व को दो अल -अल
केंिगे से दे खी
है , दो पररप्रे्य है । दव
क ही
च ि ना र है ।
‘तचि को ऐसी अयाय सा्ििा िें अपने ्दय के ऊपर, नीचे और भीिर रखो।’ पारी िरह से उसिें डाब जाग। दवलीन हो जाग। ्दय के ऊपर, नीचे और भीिर ्दय बस
क चेिना से तिर जा , ककसी बारे िें भी िि सोचो, बस सज
क चैिन्य िात्र रह जा —पारा
रहो। लबना ककसी शद के, लबना ककसी
दवचारा के बस होग। तचि को ्दय के ऊपर नीचे और भीिर रखो और िुम्हारे मल
सब कुछ सरभव हो जा
ा। दे खने के सब वावार
स्तवछ हो जा र े। और रहस्तयगे के सब वावार खुल जा र े। अचानक कोच सिस्तया न रहे ी। अचानक कोच दुःु ख न रहे ा। जैसे अरधकार पारी िरह मि
या हो।
क बार िुि इसे जान लो िो िुि वापस बुदध स पर जा सकिे हो, पर िुि अब वहीर नहीर होग े। अब िुि बुदध स
का
क यरत्र की िरह उपयो
कर सकिे हो। उससे काि ले सकिे हो। पर िुि उसके साथ िादात्म्य नहीर
बनाग े। उससे काि लेिे सिय भी जब िुि सरसार को दे खो ें िो िुम्हें पिा हो ा कक जो भी िुि दे ख रहे हो वह बुदध स के कारण है । अब िुि िुि चाहो िुि वापस लौ
क उचिर अवस्तथा, क
हन िर ढ़क्ष् कोण से पररतचि हो—और क्जस क्षण
सकिे हो।
क बार िुम्हें िा य का पिा ल
जा
और याल आ जा
कक कैसे चेिना वापस लौ िी है , कैसे िुम्हारी आयु,
िुम्हारा अिीि, िुम्हारी स्तितृ ि और िुम्हारा ज्ञान सिाि हो जािा है । और िुि दोबारा जािे हो।
क नवजाि मशशु हो
क बार िुम्हें इस रहस्तय का पिा चल जा —िो िुि जब चाहे केंि की यात्रा कर सके हो और पुन:
जीवरि, िाजे, प्राणवान हो सकिे हो। य द िुम्हें कफर बुदध स िें लौ ना पड़े िो िुि उसका उपयो
कर सकिे हो।
िुि सािान्य सरसार िें जा सकिे हो। िुि उसिे कायय करो े पर उससे िादात्म्य नहीर करो े। यगेकक
हरे िें
िुि जानिे हो कक बुदध स के वावारा जो भी जाना जािा है वह आरमशक है , वह पाणय सत्य नहीर है। और आरमशक सत्य झाठ से भी खिरनाक होिा है । यगेकक वह सत्य जैसा प्रिीि होिा है िुि उससे धोखा खा सकिे हो। कुछ और बािें । जब िुि ्दय पर लौ िे हो िो िुि अक्स्तित्व को दवभाक्जि अर
हस्तसा है , पाँव
नहीर है । ्दय िुम्हारा क हस्तसा है , पे
जािा है । पर ्दय
क हस्तसा
क हस्तसा नहीर है । ्दय का अथय है िुम्हारी सरपाणय सिग्रिा। िन
क हससा है । पारे शरीर को अ र हि अल -अल
क नहीर है । यही कारण है कक अ र िेरा हाथ का
रहार ा। िेरा िक्स्तिष्क भी तनकाल दया जा वास्तिविें िेरा पारा शरीर अल
क पाणय इकाच की िरह दे खिे हो। ्दय
भी िें जीदवि रहार ा। लेककन िेरा ्दय
क
लें िो वह हस्तसगे िें बर
दया जा
िो भी िैं जीदवि
या कक िैं
या।
ककया जा सकिा है । लेककन अ र िेरा ्दय धड़क रहा है िो िैं जीदवि हार। ्दय का अथय है । िुम्हारी पाणि य ा। िो जब िुम्हारा ्दय बरद होिा है, िुि नहीर रहिे। और दस ा री सब चीजें हस्तसे
है । दस ा री ल ाच जा सकिी है । य द ्दय धड़क रहा िो िि ु सरु क्षक्षि हो े। ्दय का केंि िुम्हारे अक्स्तित्व का अरिरिि केंि लबरद ु है ।
िैं अपने हाथ से िुम्हें छा सकिा हार। वह स्तपशय िुझे िुम्हारे बारे िें क जानकारी दे ा। िुम्हारी त्वचा के बारे िें जानकारी दे ा कक वह तचकनी है या नहीर। हाथ िुझे कुछ जानकारी दे ा। लेककन वह जानकारी बस आरमशक
हो ा यगेकक हाथ िेरी सिग्रिा नहीर है । िैं िुम्हें दे ख सकिा हार। िेरी आरखें िुम्हारे बारे िें क अल जानकारी दें ी। लेककन वह भी पारी नहीर हो ा। िैं िुम्हारे बारे िें सोच सकिा हार—कफर वह बाि। लेककन िैं िुम्हें हस्तसगे िें िहसास नहीर कर सकिा। य द िैं िुम्हें िहसास करिा हार िो िुम्हारी पारी सिग्रिा िें ही िहसास करिा हार। यही कारण है कक जब िक िुि प्रेि के वावारा न जानो,िुि ककसी यक्ि को उसकी सरपाणि य ा िें नहीर जान सकिे। केवल प्रेि से ही पाणय यक्ित्व,सिग्र अक्स्तित्व िुम्हारे सािने प्रक
होिा है । यगेकक प्रेि का अथय है ्दय से
जानना। ्दय से अनुभव करना। िो िेरे दे खे अनुभव करना और जानना, िुम्हारे अक्स्तित्व के दो हस्तसे नहीर है । अनुभव है िुम्हारी पाणि य ा और जानकारी बस उसका धिय के मल
प्रेि परि ज्ञान है । इसीमल
क हस्तसा है ।
धिय की अमभयक्ि वैज्ञातनक ढर
के बजाय कायात्िक शैली िें
अतधक हुच है । वैज्ञातनक भाना का उपयो नहीर हो सकिा,यगेकक उसका सरबरध जानकारी के ज ि से है । काय का उपयो हो सकिा है । काय का उपयो हो सकिा है । और जो प्रेि के वावार सत्य िक पहुरचे है । वे जो भी कहिे है काय हो जािा है । उपतननद, वेद, जीसस या बध स ु या कृष्ण के वचन से सब कायात्िक विय है । यह सरयो
ही नहीर है कक पुराने सभी धिय-ग्ररथय काय िें मलखे
कक कदव के ज ि िें और तदन के ज ि िें करिा है ।
है । इसिें बड़ा अथय है । इससे पिा चलिा है
क िरह की सिानुभाति है । तदन भी ्दय का भाना का उपयो
कदव केवल कुछ क्षणगे की उड़ान िें तदन बन जािा है । ऐसे ही जैसे जब िुि कादिे हो िो पथ्ृ वी के से दरा हो जािे हो। लेककन कफर वापस लौ
आिे हो। कदव का अथय है जो कुछ क्षणगे के मल
उड़ान भर आया हो। उसे कुछ झलकें मिली है । सरि वह है जो
सरिगे के ज ि िें
ुरूत्वाकनयण के लबलकुल पार चला
प्रेि के सरसार िें जीिा है , जो ्दय से जीिा है । ्दय क्जसका तनवास बन
ुरूत्वाकनयण
या है । कदव के मल
या है । जो
िो यह बस
क झलक भर है । कभी-कभी वह बदु ध स से ्दय िें उिर आिा है । लेककन ऐसा बस कुछ क्षणगे के मल
है —वह कफर बदु ध स िें वापस लौ
ि िा
जािा है ।
िो अ र िुि कोच सुरदर कदविा दे खो िो उस कदव से मिलने िि चले जाना क्जसने उसे मलखा हे । यगेकक िुि उसी यक्ि से नहीर मिलगे े। िुि बहुि तनराश होग े। यगेकक िुम्हारा क बहुि साधारण आदिी से मिलना हो ा। उसे क झलक मिली है । कुछ क्षणगे के मल सत्य उस पर प्रक नहीर हुआ है । वह ्दय पर उिर आया जरूर है । लेककन उसे िा य का पिा नहीर है । वह उसका िामलक नहीर है । यह िो बस क आकक्स्तिक ि ना है । और वह अपनी िजी से इस आयाि िें
ति नहीर कर सकिा।
जब कालररज िरा िो चालीस हजार अधारी कदविा र छोड़कर िरा। उसने अपने पारे जीवन िें बस साि ही कदविा र पारी की। वह िहान कदव था। सरसार के िहानिि कदवयगे िें से
क था। लेककन कच बार उससे पाछा
या, ‘’िुि अधारी कदविागर को ढे र यगे ल ाये जा रहे हो। और िुि उन्हें कब पारा करो ?े ‘ वह कहिा है , िैं कुछ
नहीर कर सकिा। कभी-कभी कुछ परक्ियार िुझे उिरिी है और कफर वह रूक जािी है । िो िैं उन्हें कैसे पारा कर सकिा हार। िैं प्रिीक्षा करूर ा। िुझे प्रिीक्षा करनी ही हो ी। य द दोबारा िुझे झलक मिलिी है और दोबारा
अक्स्तित्व िुझ पर सत्य को प्रक
करना है ,िो कफर िैं उसे परा ा करूर ा। लेककन अपने आप िो िैं कुछ नहीर कर
सकिा।
वह बड़ा चिानदार कदव था। इिने चिानदार कदव खोज पाना क ठन है । यगेकक िन की प्रवतृ ि है पातिय करना। य द िीन परक्ियार उिरिी है िो िुि चौथी जोड़ लो े। और बस चौथी बाकी िीन की भी हत्या कर दे ी। यगेकक वह िन की बड़ी तनम्न अवस्तथा से आ जब िुि उछले िो कुछ क्षणगे के मल आयाि िें चले
िुि
ी। जब िुि पथ्ृ वी पर वापस लौ
रू ु त्वाकनयण से ि ु ि हो
ये। कदव धरिी पर रहिा है पर कभी-कभी ऊरची छलार
चुके होग ।े
। िुि अक्स्तित्व के
क अल
लेिा है । उस छलार
मिलिी है । सरि ्दय िें रहिा है । वह धरिी पर नहीर चलिा, ्दय उसका तनवास बन
िें उसे झलकें
या होिा है । िो वास्तिव
िें वह कदविा रचिा नहीर, लेककन वह जा भी कहिा है , कदविा बन जािा है । वास्तिव िें सरि नहीर करिा, यगेकक उसका
ही
वाय का प्रयो
ही
वाय भी कदविा है । वह उसके ्दय से आ रहा है । उसके प्रेि से आ रहा है ।
‘तचि को ऐसी अयाय सा्ििा िें ्दय के ऊपर, नीचे और भीिर रखो।’ ्दय िुम्हारा सरपाणय अक्स्तित्व है । और जब िुि सिग्र को केवल िभी िुि सिग्र को जान सकिे हो—इसे याद रखना। केवल सिान ही सिान को जान सकिा है । जब िुि आरमशक हो िो सिग्र को नहीर जान सकिे। जैसा भीिर होिा है वैसा ही बाहर होिा है । य द भीिर िुि सिग्र हो िो बाहर की सिग्र वास्तिदवकिा िुि पर प्रक हो ी, िुि उसे जानने िें सक्षि हो
, िुिने उसे जानने की पात्रिा अक्जयि कर ली। जब िुि भीिर बर े होिे हो
िो बाहर सत्य भी बर ा दखिा है । जो भी िुि भीिर हो वही िुम्हारे मल ्दय की
हराइयगे िें पारा सरसार मभन्न है, क अल
िक्स्तिष्क से दे खा,बुदध स से दे खा, जानने के अपने अल -अल ।
ही
बाहर का ज ि हो ा।
ेस्त ाल्
है । िैं िुम्हें दे ख रहा हार। य द िैं िुम्हें क हस्तसे से दे खा, िो यहार कुछ मित्र है, यक्ि है , अहर कार है —
लेककन य द िैं िुम्हें ्दय से दे खा िो यहार यक्ि नहीर हगे ।े कफर बस यहार
क सा रीय चेिना है और यक्ि
बस उसकी लहरें है । य द िैं िुम्हें ्दय से दे खा िो िुि और िुम्हारा पड़ोसी दो नहीर हगे े; िब िुम्हारे और िुम्हारे पड़ोसी के बीच सत्य है । िुि बस दो ध्रुव हो और बीच िें सत्य है । िो कफर यहार चेिना का है । क्जसिें िुि लहरगे की िरह हो। लेककन लहरें अल -अल क्षण
नहीर है । वे
क दस ा रे िें मिल रहे हो। चाहे िुम्हें इसका पिा हो या न हो।
क सा र
क साथ जुड़ी हुच है । और िुि हर
जो वास कुछ क्षण पहले िुििें थी अब िुिसे तनकल चुकी थी—अब िुम्हारे पड़ोसी िें प्रवेश कर रही है । कुछ ही क्षण पहले यह िुम्हारा जीवन थी और इसके लबना िुि िर
होिे,और अब यह िुम्हारे पड़ोसी िें जा रही
है । अब यह उसका जीवन है । िुम्हारा शरीर ल ािार करपन दवकीररि कर रहा है । िुि
क रे गड
र हो, िुम्हारी
जीवन-ऊजाय सिि िुम्हारे पड़ोसी िें प्रवेश कर रही है और उसकी जीवन ऊजाय िुििें प्रवेश कर रही है ।
य द िैं िुम्हें अपने ्दय से दे खा य द िैं िुम्हें प्रेिपाणय आरखगे से दे खा, य द िैं िुम्हें सिग्रिा से दे खा, िो िुि सब ऊजाय के पुरज हो, ऊजाय के सिन लबरद ा हो और जीवन सिि िुिसे दस ा रगे िें और दस ा रगे से िुििें और इस किरे िें ही नहीर, यह परा ा ज ि जीवन-ऊजाय का सिि प्रवाह है । यह सिि वैयक्िक इकाइयार नहीर है । यह
ति कर रहा है ।
तििान है । यहार कोच
क ब्रह्िारडीय सिग्रिा है । लेककन बदु ध स के वावारा अखरड ब्रह्िारड कभी प्रक
नहीर
होिा, केवल हस्तसे, आणदवक हस्तसे ही दखाच पड़िे है । और यह कोच प्रन नहीर है । क्जसे बदु ध स से सिझा जा
सके। य द िुि इसे बुदध स से सिझने का प्रयास करिे हो िो इसे सिझना असरभव ही हो ा। यह अक्स्तित्व के क लबलकुल अल
लबरद ु से दे खा
या, क लबलकुल मभन्न ढ़क्ष् कोण है ।
अ र िुि भीिर सिग्र हो िो बाहर की सिग्रिा िुि पर प्रक
हो जािी है । ककसी ने उसे परिात्िा का
साक्षात्कार कहा है । ककसी ने उसे िोक्ष कहा है , ककसी ने उसे तनवायण कहा है । अल -अल मभन्न शद है, लेककन वे
क ही अनुभव
आधारभाि है—कक यक्ि मि
क ही सत्य को दशायिे है ।
शद है , लबलकुल
क बाि उन सभी अमभयक्ियगे िें
जािा है । िुि इसे परिात्िा का साक्षात्कार कह सकिे हो, िब िुि यक्ि की
िरह न रह जाग ;े िुि इसे िोक्ष कह सकिे हो, कफर िुि कक सकिे हो—जैसे बुध स ने कहा है —कक जैसे दी
क स्तव की भारति नहीर रह जाग े; िुि इसे तनवायण
की ज्योति बझ ु जािी है । खो जािी है । िुि दोबारा उसे कहीर
खोज नहीर सकिे, पा नहीर सकिे, वह अनक्स्तित्व िें चली
च, ऐसे ही यक्ि सिाक्ि हो जािा है ।
लेककन यह बाि सोचने जैसी है । सभी धिय यह यगे करिे है कक जब िुि सत्य को साक्षात्कार करिे हो िो यक्ि, स्तवय, अहर कार मि
जािा है । य द सभी धिय इस पर जोर दे िे है िो इसका अथय है कक यह स्तव जरूर
मिथ्या हो ा—बरना िो वह मि केवल वही मि
कैसे सकिा है । यह दवरोधाभासी ल
सकिा है ; जो है वह िो अक्स्तित्व िें रहे ा ही, वह मि
िक्स्तिष्क के कारण
सकिा है लेककन ऐसा ही है , जो नहीर है नहीर सकिा।
क झाठी इकाच का आभास होिा है—यक्ि। य द िुि ्दय िें उिर जाग िो झाठी इकाच
खो जािी है । वह बुदध स की रचना थी। ्दय िें िो बस ब्रह्िारड रह जािा है । यक्ि नहीर; पाणय रह जािा है । अरश
नहीर। और स्तिरण रहे । जब िुि नहीर हो िो िुि नकय तनमियि नहीर कर सकिे। जब िुि नहीर हो िो िुि दुःु ख नें नहीर हो सकिे। जब िुि नहीर हो िो कोच पीड़ा नहीर हो सकिी। सब सरिाप, सब पीड़ा र िुम्हारे कारण है । छाया
की भी छाया। स्तव झाठ है और उस झाठे स्तव के कारण बहुि सी झाठी छाया र तनमियि हो च है । वे िुम्हारा पीछा करिी है । िुि उनके साथ लड़िे रहिे हो। लेककन िुि कभी जीि न पाग े। यगेकक उनका आधार िो िुम्हीर िें तछपा रहिा है ।
स्तवािी राििीथय ने कहीर कहा है कक वह
क
झगेपड़े के सािने खेल रहा था। और सारज उ
रीब ग्रािीण के िर ठहरे हु थे। उस ग्रािीण को छो ा बचा रहा था और बचे को अपनी छाया दखाच दी। वह उसे पकड़ने
की कोमशश करने ल ा। लेककन क्जिना वह बढ़िा, छाया उिनी ही आ े बढ़ जािी। बचा रोने ल ा। असफलिा उसके हाथ ल ी थी। उसने हर िरह से पकड़ने की कोमशश की, पर पकड़ पाना असरभव था। छाया को पकड़ना असरभव है —इसमल बचा उसे पकड़ने के मल
नहीर कक छाया को पकड़ना बड़ा क ठन है । यह असरभव इसमल
है यगेकक
दौड़ रहा था। जब वह दौड़ रहा था िो छाया भी दौड़ रही थी। िुि छाया को नहीर
पकड़ सकिे। यगेकक छाया िें कोच सार नहीर है । और सार को ही पकड़ा जा सकिा है ।
राििीथय वहार बैठे हु थे। वह हर स रहे थे और बचा रो रहा था। और िार है रान थी कक या करे । बचे को कैसे सारत्वना दे । िो उसने राििीथय से पाछा, ‘स्तवािी जी, या आप कुछ िदद कर सकिे है ?’ राििीथय बचे के पास , बचे का हाथ पकड़ा और उसके मसर पर रख दया। छाया पकड़ी
हाथ रख दया िो छाया पकड़ िें आ को पकड़ मलया है ।
च। अब जब बचे ने अपने ही मसर पर
च। बचा हर सने ल ा। अब वह दे ख सकिा था कक उसके हाथ ने छाया
िुि छाया को िो नहीर पकड़ सकिे पर स्तवयर को पकड़ सकिे हो। और क्जस क्षण िुि स्तवयर को पकड़ लेिे हो छाया पकड़ िें आ जािी है ।
पीड़ा अहर कार की ही छाया है । हि सब उसे बचे की िरह पीड़ा सरिाप और दवनाद के साथ लड़ रहे है । और उन्हें मि ाने का प्रयास कर रहे है । हि इसिे कभी जीि नहीर सकिे। यह िो कोच िाकि का प्रन नही है । सारा प्रयास ही यथय है । असरभव है । िुम्हें स्तवयर को, अहर कार को पकड़ना चा ह । और जैसे ही िुि इसे पकड़ लेिे हो, सारी पीड़ा मि ऐसे लो
जािी है । वह बस छाया थी।
है जो स्तवयर से लड़ने ल िे है । यह मसखाया
या है , ‘स्तव को मि ा दो, अहर कार-शान्य हो जाग। और
िुि आनर दि हो जाग े।’ िो वह स्तव से, अहर कार से लड़ने ल िे है । लेककन य द िुि लड़ रहे हो िो इिना िो िुि िान ही रहे हो कक स्तव हे । िुम्हारी लड़ाच उसके मल
भोजन बन जा
ी। उसके मल
ऊजाय का
क स्तत्रोि
बन जा र ी, िुि उसका पोनण करने ल ो े।
यह दवतध कहिी है कक अहर कार के बारे िें सोचो िि, बस बुदध स पर उिर आग। और अहर कार मि
जा
ा।
अहर कार बुदध स का प्रक्षेपण है । उससे लड़ो िि। िुि जन्िगे-जन्िगे िब उससे लड़िे रहे सकिे हो। पर य द बुदध स िें ही बने रहे िो उसे जीि नहीर सकिे।
अपने ढ़क्ष् कोण का बदल डालगे। बुदध स से उिर कर और सब कुछ बदल जािा है । यगेकक अब िुि
क दस ा रे िल पर, अक्स्तित्व के
क अल
ढ़क्ष्
नहीर पैदा कर सकिा। इसी कारण हि ्दय से भयभीि हो
क
हरे पर उिर आग।
कोण से दे ख सकिे हो। ्दय से कोच अहर कार
है । हि कभी उसे अपने आप नहीर चलने दे िे ,
उसिें सदा हस्तिक्षेप करिे रहिे है । सदा िन को बीच िें ले आिे है । हि ्दय को िन से तनयरलत्रि करने का प्रयास करिे है । यगेकक हि भयभीि हो
है —य द िुि ्दय की और
खोना लबलकुल ित्ृ यु जैसा ल िा है । इसीमल
प्रेि क ठन ल िा है । इसीमल
िो स्तवयर को खो दो े। और यह
प्रेि िें पड़ने िें भय ल ािा है । यगेकक िुि स्तवयर को खो दे िे हो। िुि
तनयरत्रण िें नहीर रहिे। कोच िुिसे बड़ी चीज िुम्हें अपने प्रभाव पकड़ िें ले लेिी है । और िुम्हें वशीभाि कर
लेिी है । कफर िुम्हें कुछ तनक्चि नहीर रहिा और कुछ पिा नहीर होिा कक िुि कहार जा रहे हो। िो बुदध स कहिी है , ‘िुखय िि बनो, सिझ से काि लो। पा ल िि बनो।’
जब भी कोच प्रेि िें होिा है िो सब सोचिे है वह पा ल हो
या है । वह स्तवयर ही सिझिा है कक वह पा ल हो
या है । ‘िैं अपने होश िें नहीर हार,’ ऐसा या होिा है ? यगेकक अब कोच तनयरत्रण न रहा। कुछ ऐसा हो रहा है क्जसे वह तनयरत्रण नहीर कर सकिा। क्जसे वह चला नहीर सकिा। वश िें नहीर कर सकिा है । बक्ल्क कुछ और उसे चला रहा है ।
क बड़ी शक्ि ने उसे बस िें कर मलया है । वह वशीभाि है……।
लेककन जब िक िुि वशीभाि होने के मल िुि वशीभाि होने के मल प्रेि से, प्राथयना से दवरा
िैयार नहीर हो, िब िक िुम्हारे मल
राजी नहीर हो, िब िक िुम्हारे मल
कोच परिात्िा नहीर है । जब िक
कोच रहस्तय, कोच आनरद कोच अहोभाव नहीर है । जो
से वशीभाि होने को राजी है , उसका ििलब है कक वह अहर कार की िरह िरने के मल
राजी है । केवल वही जान सकिा है कक वास्तिव िें जीवन या है । कक जीवन के पास दे ने के मल है । जो सरभव है वह ित्क्षण साकार हो जािा है । लेककन िुम्हें स्तवयर को दारव पर ल ाना हो ा।
या सरपदा
यह दवतध सरुदर है । यह िुम्हारे अहर कार के बारे िें कुछ नहीर कहिी है । यह उस सरबरध िें कुछ कहिी ही नहीर। यह बस िुम्हें
क दवतध दे िी है । और य द िुि दवतध का अनुसरण करो अहर कार सिाि हो जा
ा।
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-65
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—93 (ओशो) दस ू रा सूत्र:
अपने ितथिान रूप का कोई भी अंग असीमित रूप से विस्तत ृ जानो।
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—93 (गशो)
क दस ा रे वावारा से यह वही दवतध है । िौमलक सार िो वहीर है कक सीिागर को त रा दो, िन सीिा र खड़ी करिा
है । य द िुि सोचो िि िो िि ु असीि िें
ति कर जािे हो। या, क दस ा रे वावार से, िुि असीि के साथ प्रयो
कर सकिे हो और िन के पार हो जाग े। िन असीि के साथ, अपररभादनि, अना द,अनरि के साथ नहीर रहा सकिा। इसमल
य द िि ु सीिा-र हि के साथ कोच प्रयो
यह दवतध कहिी है । ‘अपने वियिान रूप का कोच भी अर
करो िो िन मि
जा
ा।
असीमिि रूप से दवस्तिि ृ जानो।’
कोच भी अर । िुि बस अपनी आरखें बरद कर ले सकिे हो और सोच सकिे हो कक िुम्हारा मसर असीि हो
या
है । अब उसकी कोच सीिा न रही। वह बढ़िा चला जा रहा है । और उसकी कोच सीिा र न रहीर। िुम्हारा मसर पारा ब्रह्िारड बन
या है , सीिाहीन।
य द िुि इसकी कल्पना कर सको िो दवचार नहीर रहें े। य द िुि अपने मसर की असीि रूप िें कल्पना कर सको िो दवचार नहीर रहें े। दवचार केवल
क बहुि सरकीणय िन िें हो सकिे है । िन क्जिना सरकीणय हो, उिना ही
दवचार करने के मल
बेहिर है । क्जिना ही दवशाल िन हो, उिने ही कि दवचार होिे है । जब िन पण ा य आकाश
बन जािा है । िो दवचार लबलकुल नहीर रहिे।
बुध स अपने बोतधवक्ष ृ के नीचे बैठे हु है । या िुि कल्पना कर सकिे हो कक वे या सोच रहे है । वे कुछ भी सोच नहीर रहे । उनका मसर पारा ब्रह्िारड है 1 वे दवस्तिि है। अनरि रूप से दवस्तिि है । ृ हो ृ हो यह दवतध उन्हीर के मल
अछी है जो कल्पना कर सकिे है । सब के मल
यह ठीक नहीर रहे ी। जो कल्पना कर
सकिे है और क्जनकी कल्पना इिनी वास्तिदवक हो जािी है । कक यह भी नहीर कह सकिे कक यह कल्पना है या वास्तिदवकिा है , उनके मल
यह दवतध बहुि उपयो ी हो ी। वरना यह अतधक उपयो ी नहीर हो ी। लेककन डरो िि, यगेकक कि से कि िीस प्रतिशि लो इस िरह की कल्पना करने िें सक्षि है । ऐसे लो े बहुि शक्िशाली होिे है । य द िुम्हारा िन बहुि मशक्षक्षि नहीर है िो िुम्हारे मल कल्पना करना बहुि सरल हो ा। य द िन मशक्षक्षि है िो सज ृ नात्िकिा खो जािी है , िब िुम्हारा िन क तिजोरी, क बैंक बन जािा है । और पारी मशक्षा यवस्तथा क बैंककर
यवस्तथा है । वे िुििें चीजें डालिे जािे है ठाँसिे जािे है। उन्हें जो भी िुििें ठारसने जैसा ल िा है , ठारस
दे िे है । वे िुम्हारे िन का उपयो
स्त ोर की िरह करिे है । कफर िुि कल्पना नहीर कर सकिे। कफर िुि जो भी
करिे हो वह बस उसकी पुनरावतृ ि होिी है । जो िुम्हें मसखाया िो जो लो
या है ।
अमशक्षक्षि है , वे इस दवतध का बड़ा सरलिा से उपयो
कर सकिे है , और जो लो
युतनवमसय ी से
लबना दवकृि हु वापस आ है , वे भी इसे कर सकिे है । जो वास्तिव िें अभी भी जीदवि है , इिनी मशखा के बाद भी जीदवि है , वे इसे कर सकिे है । क्स्तत्रयार इसे पुरूनगे की अपेक्षा अतधक सरलिा से कर सकिी है । जो लो भी कल्पनाशील है , स्तवन-ढ़ष् ा है , वे लो
इसे बहुि आसानी से कर सकिे है ।
लेककन यह कैसे पिा चले कक िुि इसे कर सकिे हो या नहीर? िो इसिें प्रवेश करने से पहले िुि
क छो ा सा प्रयो
लो और आरखें बरद कर लो। ककसी भी सिय, पाँच मिन
कर सकिे हो। अपने दोनगे हाथगे को के मल
ककसी कुसी पर आराि से बैठ जाग। दोनगे
हाथगे को आपस िें फरसा लो और कल्पना करो कक हाथ इिने जुड़ खोल सकिे।
क दस ा रे िें फरसा
है कक िुि कोमशश भी करो िो उन्हें नहीर
यह बड़ी बेिुकी बाि ल े ी यगेकक वे जुड़े हु नहीर है, लेककन िुि सोचिे रहो कक वे जुड़े हु है । पाँच मिन िक ऐसे सोचिे रहो और कफर िीन बार अपने िन से कहो, ‘अब िैं अपने हाथ खोलने की कोमशश करूर ा। लेककन िैं जानिा हार कक यह असरभव है । ये जुड़
है और िैं इन्हें खोल नहीर सकिा।’
कफर उन्हें खोलने की कोमशश करो। िुििें से िीस प्रतिशि लो
उन्हें नहीर खोल पा र े। वे सच िें जुड़ जा र े
और क्जिनी िुि खोलने की कोमशश करो े उिना ही िुम्हें ल े ा कक यह असरभव है । िुम्हें पसीना आने ल े ा—कफर भी अपने हाथ नहीर खोल पाग े। िो यह दवतध िुम्हारे मल सकिे हो।
है । िब िुि इस दवतध का उपयो
य द िुि आसानी से अपने हाथ खोल सको और कुछ भी न हो िो यह दवतध िुम्हारे मल
कर
नहीर है । िुि इसे न
कर पाग े। लेककन अ र िुम्हारे हाथ न खुले िो डरो िि और ज्यादा प्रयास िि करो, यगेकक क्जिना ही िुि
प्रयास करो े उिना ही क ठन होिा जाये ा। बस कफर से अपनी आरखें बरद कर लो और सोचो कक िुम्हारे हाथ अब खुल
है । िुम्हें कफर से सोचने के मल
जा र े। और वे
पाँच मिन
कदि से खुल जा र े।
ल ें े कक अब जब िुि हाथगे को खोलो े िो वे खुल
जैसे िुिने उन्हें कल्पना वावारा बरद ककया था, वैसे ही खोलगे। य द यह सरभव है कक िुम्हारे हाथ बस कल्पना
वावारा जुड़ जािे है और िुि उन्हें खोल नहीर सकिे िो यह दवतध िुि पर चित्काररक रूप से कायय करे ी। और इन
क सौ बारह दवतधयगे िें कच दवतधयार है जो कल्पना पर कायय करिी है । उन सब दवतधयगे के मल
बारधने वाली दवतध अछी रहे ी। बस इिना याद रखो, पहले प्रयो
करके दे ख लो कक यह दवतध िुम्हारे मल
या नहीर। ‘अपने वियिान रूप का कोच भी अर
यह हाथ है
असीमिि रूप से दवस्तिि ृ जानो।’
कोच भी अर ….िुि पारे शरीर की कल्पना भी कर सकिे हो। अपनी आरखें बरद कर लो और कल्पना करो कक िुम्हारा पारा शरीर फैल रहा है, फैल रहा है , फैल रहा है । और सब सीिा र खो
च है । शरीर असीमिि हो
या है ।
िो या हो ा? या हो ा इसकी िुि कल्पना भी नहीर कर सकिे हो। य द िुि इसकी कल्पना कर सको कक िुि ब्रह्िारड हो
हो—असीमिि का यही अथय है —िो जो कुछ भी िुम्हारे अहर कार के साथ जुड़ा है , खो जा
िुम्हारा नाि, िुम्हारा पररचय। सब खो जा र े। िुम्हारी अिीरी या दुःु ख—सब खो सकिे है । यगेकक वे िुम्हारे सीमिि शरीर के अर और
क बार िुम्हें यह पिा ल
जा
ा।
रीबी, िुम्हारा स्तवास्तथ या बीिारी, िुम्हारे
है । असीमिि शरीर के साथ वे नहीर रह सकिे।
िो अपने सीमिि शरीर िें लौ
आग। लेककन अब िुि हर स सकिे हो।
और सीमिि िें भी िुि असीमिि का स्तवाद ले सकिे हो। िब िुि इस झलक का साथ मल
चल सकिे हो।
इसे अनुभव करके दे खो। और अछा हो ा कक पहले िुि मसर से शुरू करके दे खो;यगेकक वहीर सब बीिाररयगे की जड़ है । अपनी आरखें बरद कर लो, जिीन पर ले
जाग या ककसी कुसी पर आराि से बैठ जाग। और मसर के
भीिर दे खो। मसर की दीवारगे को फैलिे, दवस्तिि ृ होिे अनुभव करो। य द िबराह पहले सोचो कक िुम्हारा मसर पारे किरे िें फैल
िालाि हो िो धीरे -धीरे करो।
या है । िुम्हें सच िें ल े ा की िुम्हारा सर दीवारगे को छा रहा
है । अ र िुि अपने हाथगे को बाँध सकिे हो िो ऐसा स्तपष्
अनुभव हो ा। िुम्हें दीवारगे की शीिलिा िहसास
हो ी। क्जन्हें िुम्हारी त्वचा छा रही है । िुम्हें दबाव िहसास हो ा। बढ़िे जाग। िुम्हारा मसर पार चला
या है —अब िर मसर के भीिर सिा
या है , कफर पारा शहर मसर िें सिा
या है । फैलिे चले जाग। िीन िहीने के भीिर-भीिर धीरे -धीर िुि ऐसी क्स्तथति पर पहुरच जाग ।े जहार सायय िुम्हारे मसर िें उ दि हो ा। िुम्हारे भीिर ही चकर ल ा ा। िुम्हारा मसर अनरि हो या। इससे िुम्हें इिनी
स्तविरत्रिा मिले ी क्जिनी िुिने पहले कभी नहीर जानी। और सब दुःु ख जो इस सरकीणय िन से सरबरतधि है , सिाि हो जा र े। ऐसी क्स्तथति िें ही उपतननद के तदनयगे ने कहा हो ा, ‘अहर ब्रह्िाक्स्ति—िैं ब्रह्ि हार।’ ऐसे ही आनरद के क्षण ने अनलहक़ की उदधोनणा हुच हो ी।
िरसार परि आनरद से तचल्लाया, ‘अनलहक़, अनलहक़—िैं परिात्िा हार।’ िुसलिान उसे सिझ नहीर पाये। असल िें कोच भी परर परावादी ऐसी चीजें नहीर सिझ पा ा। उन्हगेने सोचा कक वह पा ल हो या है । लेककन वह पा ल नहीर था। वह िो परि स्तवस्तथ आदिी था। उन्हगेने सोचा कक वह अहर कारी हो
या। वह कहिा है , ‘िैं परिात्िा
हार।’ उन्हगेने उसे िार डाला। जब उसे िारा जा रहा था और उसके हाथ पाँव का े जा रहे थे। िब वह हर स रहा था। और कह रहा था, ‘अनलहक़’, अहर ब्रह्िाक्स्ति—िैं परिात्िा हार। ककसी ने पाछा, ‘िरसार, िा हर स रहा यगे रहा है? िेरी िो हत्या हो रही है ।’ वह बोला, ‘िुि िुझे नहीर िार सकिे। िैं िो सरपाणय हार।’
िुि बस
क हस्तसे को िार सकिे हो। सरपण ा य को िो िुि कैसे िार सकिे हो। िुि उसके साथ कुछ भी करो,
उसके कोच अरिर नहीर पड़ने वाला।
कहिे है कक िरसार ने कहा, ‘य द िुि िुझे िारना चाहिे थे िो िुम्हें कि से कि दस साल पहले आना चा ह
था। िब िैं था। िब िुि िुझे िार सकिे थे। लेककन अब िुि िुझे नहीर िार सकिे हो। यगेकक अब िैं नहीर हार। िैंने स्तवयर ही उस अहर कार को िार दया है । क्जसे िुि िार सकिे थे।’ िरसार कुछ इसी िरह की साफी दवतधयगे का अभ्यास कर रहा था। क्जसिें यक्ि िब िक फैलिा चला जािा है जब िक कक दवस्तिार इिना असीि न हो जा
कक यक्ि रह ही न। कफर बस पण ा य ही रहिा है । यक्ि नहीर।
इन दपछले दो िीन दशकगे िें पक्चि िें नशीली दवा र बहुि प्रचमलि हो च है । और उनका आकनयण दवस्तिार का आकनयण ही है , यगेकक उन दवागर के असर िें िुम्हारी सरकीणयिा, िुम्हारी सीिा र खो जािी है । लेककन यह बस
क रासायतनक पररवियन है , इससे कुछ आयाक्त्िक रूपारिरण नही हो पािा। यह यवस्तथा पर लादी
क हरसा है —िुि यवस्तथा को ा ने के मल इससे िुम्हें शायद
च
बाय करिे हो।
क झलक मिले कक िुि अब सीमिि न रहे । कक िुि असीि हो
िुि हो
यह रासायतनक दबाव के कारण है ।
। लेककन
क बार वापस लौ े कक कफर से िुि सरकीणय शरीर िें पहुरच जाये े। और अब शरीर पहले से भी ज्यादा सरकीणय ल े ा। िुि कफर से उसी कारा हृ िें कैद हो जाग े। लेककन अब कारा हृ और असह्य हो जा थी। इसमल
िुि उसके
िहसास हो ी। यह दवतध
ा। यगेकक िुि उसके िामलक नहीर हो। िुि
क झलक उस रसायन के वावारा प्राि हुच ल ु ाि ही हो। िुि आदी हो जाग े उस रसायन के। अब िुम्हें और भी अतधक जरूरि
क अयाक्त्िक िस्तिी है । य द िुि इसका अभ्यास करो िो
क आयाक्त्िक रूपारिरण हो ा जो
रासायतनक नहीर हो ा। और क्जसके िुि िामलक होग े।
इसे कसौ ी सिझो। य द िुि िामलक हो िो वह चीज आयाक्त्िक है । अ र िुि
ुलाि हो िो सावधान—भले
ही वह दखाच आयाक्त्िक पड़े। लेककन हो नहीर सकिी। जो भी चीज िुम्हें आदी करने वाली, शक्िशाली, ुलाि बनने वाली,बरधन बन जा ,वह िुम्हें और िो इसे
ुलािी गर परिरत्रिा की और ले जा रही है ।
क कसौ ी सिझना कक िुि जो भी करो। उससे िुम्हारी िलककयि बढ़नी चा ह । िुम्हें और-और
उसका िामलक बनना चा ह । ऐसा कहा
या है और िें इसे जोर-जोर से बार-बार दोहरािा हार। कक जब यान िुम्हें वास्तिव िें ि ि हो ा िो िुम्हें उसे करने की जरूरि नहीर पड़े ी। य द अभी भी िुम्हें करना पड़िा है िो
यान अभी हुआ ही नहीर है । यगेकक वह भी क ुलािी बन च है । यान को भी जाना चा ह । क ऐसा क्षण आना चा ह जब िुम्हें कुछ भी करना न पड़े। जब िुि जैसे ही दय हो; िुि जैसे हो, िुि आनरद हो, परिानरद हो।
लेककन यह दवतध दवस्तिार के मल , चेिना के दवस्तिार के मल वाला प्रयो
अछी है । लेककन इसे करने से पहले हाथ बारधने
करो। िाकक िुि अनुभव कर सको। य द िुम्हारे हाथ बरध जािे है िो िुम्हारी कल्पना बहुि सज ृ नात्िक है , नपुरसक नहीर है । कफर िुि इस दवतध से चित्कार ि ा सकिे हो। ओशो
विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-65
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—94 (ओशो) पहली विधि:
अपने शरीर, अक्स्थयों िांस और रत को ब्रहिांडीय सार से भरा हुआ अनुभि करो।
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—94 (गशो)
सरल प्रयो गे से शुरू करो, साि दन के मल
क सरल सा प्रयो
करो। अपने खान अपनी हड्डी
अपने िारस, अपने शरीर को उदासी से भरा अनुभव करो। िुम्हारे शरीर का रोआर-रोआर उदास हो जा । राि िुम्हारे चारगे और छा जा , बोलझल और दवनादयुि हो जाग। जैसे कक प्रकाश की
क काली
क ककरण भी दखाच न
पड़िी हो कोच आशा न बचे, िनी उदासी हो, जैसे कक िुि िरने वाले हो। िुििें जीवन नहीर है । िुि बस िरने की प्रिीक्षा कर रहे हो। जैसे कक ित्ृ यु आ
च हो। या धीरे -धीरे आ रही है ।
साि दन िक भार करिे रहो कक ित्ृ यु पारे शरीर से हड्डी-िारस िज्जा िक प्रवेश कर
च हो। लबना इस भाव
को िोड़े, इसी िरह सोचिे रहो। कफर साि दन के बाद दे खो कक िुि कैसे अनुभव करिे हो। िुि केवल
क िि ृ बोझ रह जाग े। सब सरवेदना र सिाि हो जा र ी, शरीर िें कोच जीवन अनुभव नहीर हो ा।
और िुिने ककया या है ? िुिने खाना भी खाया और िुिने सब भी ककया जो िुि हिेशा से करिे रहे हो। किात्र अरिर वह कल्पना ही थी—िुम्हारे चारो और कल्पना की
क नच शैली खड़ी हो
च है ।
य द िुि इसिें सफल हो जाग……आर िुि सफल हो जाग ,े असल िें िुि इसिे सफल हो ही चुके हो। िुि ऐसा कर ही रहे हो, अनजाने ही िुि इसे करने िें तनष्णाि हो। इसीमल
िैं कहिा हार कक तनराशा से शुरू करो। ा। िुि ऐसा सोच भी नहीर सकिे। लेककन य द
य द िैं कहार कक आनरद से भर जाग िो वह बहुि क ठन हो जा तनराशा के साथ िुि यह बहुि क ठन हो जा ा। िुि ऐसा सोच भी नहीर सकिे। लेककन य द तनराशा के साथ
िुि यह प्रयो
करिे हो िुम्हें पिा चले ा। कक इस िरह य द तनराशा आ सकिी है । िो सुख यगे नहीर आ
सकिा। य द िुि अपने चारगे और
क तनराशापाणय िरडल िैयार करक
क िि ृ वस्तिु हो सकिे हो िो िुि
जीदवि िरडल िैयार करके जीवरि िरडल िैयार करके जीवरि और नत्ृ य पाणय यगे नहीर हो सकिे। दस ा रे िुम्हें इस बाि का पिा चले ा कक जो दुःु ख िुि भो
रहे थे वह वास्तिदवक नहीर था। िुिने उसे पैदा ककया
था। अनजाने िें िुि उसे पैदा कर रहे थे। रचा था, अनजाने िें िुि उसे पैदा कर रहे थे। इस पर दववास करना बड़ा क ठन है । कक िुि दुःु ख िुम्हारी ही कल्पना है , यगेकक उससे सारा उिरदातयत्व िुि पर ही आ जािा है ।
िब दस ा रा कोच उिरदायी नहीर रह जािा। और िुि कोच उिरदातयत्व ककसी परिात्िा पर भाग्य पर, लो गे पर, सिाज पर, पत्नी पर या पति पर नहीर फेंक सकिे; ककसी अन्य पर उत्िर दातयत्व नहीर लाद सकिे। िुि ही तनिायिा हो, जो कुछ भी िुम्हारे साथ हो रहा है वह िुम्हारा ही तनिायण है । िो साि दन के मल
सज िा से इसका प्रयो
यगेकक िुम्हें िरकीब कापिा ल कफर साि दन के मल
जा
करो। आर कहिा हार उसके बाद िुि कभी भी दुःु खी नहीर होग े।
ा।
आनरद की धारा िें होने का प्रयास करो, उसिे बहो, अनुभव करो कक हर वास िुम्हें
आनरद दवभोर कर रही है । साि दन के मल
दुःु ख से शुरू करो और कफर साि दन के मल
जाग। और जब िुि लबलकुल दवपरीि ध्रुव पर प्रयो स्तपष्
अरिर नजर आ
उसके दवपरीि चले
करो े िो िुि उसे बेहिर अनुभव करो े। यगेकक उसिें
ा। उसके बाद ही िुि यह प्रयो
कर सकिे हो। यगेकक यह सुख से भी
पररतध है , सुख िय िें है । और यह अरतिि ित्व है , अरिरिि लबरद ु है —ब्रह्िारडीय सार।
हन है । दुःु ख
‘अपने शरीर, अक्स्तथयगे, िारस आर रि को ब्रह्िारडीय सार से भरा हुआ अनुभव करो।’ शावि जीवन दय ऊजाय ब्रह्िारडीय सार से भरा हुआ अनुभव करो। लेककन इसे सीधे ही िि शुरू करो, नहीर िो िुि इिने हरे स्तपशय न कर पाग े। दुःु ख से शुरू करो, कफर सुख पर आग, उसके बाद ही जीवन के स्तत्रोि, ब्रह्िारडीय सार, पर जाग। और स्तवयर को उससे भरा हुआ अनुभव करो।
शुरू िें िो बार-बार िुम्हें ल े ा कक िुि केवल कल्पना कर रहे हो, लेककन रुको नहीर। कल्पना करना भी अछा
ह। य द िुि ककसी िाल्यवान बाि की कल्पना भी कर सको िा अछा है । िुि कल्पना कर रहे हो। और कल्पना करने से ही िुि बदलने ल िे हो। िुि ही िो कल्पना कर रहे हो। कल्पना करिे रहो; और धीरे -धीरे िुि भाल जाग े कक िुि इसकी कलपना कर रहे हो। यह बौध स ग्ररथ लरकाविार सात्र िहानिि ग्ररथगे िें
क वास्तिदवकिा बन जा
ी।
क है । बार-बार बुध स अपने मशष्य िहापिी से कहिे है कक वे कहे
चले जािे है । ‘िहािति यह केवल िन है । नकय भी िन है और स्तव य भी िन है । सरसार िन है , बुध सत्व िन है । िहापिी बार-बार पाछिे है , ‘िन है ? केवल िन है ? यहार िक कक तनवायण, जा रण, केवल िन? और बुध स कहिे है, केवल िन, िहािति।’
और जब िुि सिझिे हो कक सब कुछ िन ही है । िुि िुि हो जािे हो। िब कोच बरधन नहीर। िब कोच कािना नहीर। लरकाविार सात्र िें बुध स कहिे है कक पारा सरसार
रधवय-न री है, जाद-ा न री है । जैसे ककसी जाद ा र ने
क सरसार रचा हो। हर चीज ऐसे भासिी है । लेककन वह दवचार के कारण ही है ।
लेककन बाह्ि सत्य से प्रारर भ िि करो, वह बहुि दरा है । वह भी िन है । लेककन बहुि दरा है । बहुि पास से, अपनी ही भाव दशा से शुरू करो। और य द िुि दे ख लो, जान लो कक वे िुम्हारा ही तनिायण है िो िुि उनके िामलक हो
।
जब भी िुि दुःु ख की भाना िें सोचने ल िे हो िुि दुःु खी हो जािे हो और चारगे और के दुःु ख के प्रति ग्रहणशील हो जािे हो। कफर हर कोच िुम्हें दुःु खी होने िें सहयो सहयो
दे ने ल िा है। हर कोच सहयो
दे िा है, परा ा सरसार िुम्हें
दे ने को िैयार रहिा है । िुि चाहे जो भी करो। जब िुि दुःु खी होना चाहिे हो िो पारा सरसार िुम्हें
सहयो
दे ने को िैयार रहिा है । िुि चाहे जो भी करो। जब िुि दुःु खी होना चाहिे हो िो पारा सरसार दुःु खी होने
िें िुम्हारी िदद करिा है । सहयो
करिा है । िुि सब और से दुःु ख ग्रहण करने ल िे हो। असल िें िुि ऐसी
भाव दशा िें पहारच जाि हो जहार केवल दुःु ख ही ग्रहण ककया जा सकिा है । िो य द कोच िुम्हें प्रसन्न करने के मल
भी आिा है , वह िुम्हें और दुःु खी कर जा
ा। वह िुम्हें मित्रवि नहीर
दखाच पड़े ा। सिझदार नहीर ल े ा। िुम्हें ल े ा कक वह िुम्हारा अपिान कर रहा है । यगेकक िुि दुःु खी हो
और वह िुम्हें प्रसन्न करने की कोमशश कर रहा है । वह सोच रहा है कक िुम्हारा दुःु ख यथय है । वह िुम्हें रभीरिा से नहीर ले रहा है ।
और जब िुि सुखी होने को िैयार होिे हो िो िुि
क अल
भाव दशा िें पहारच जािे हो। अब िुि सारे सुख के प्रति खुल जािे हो जो सरसार दे सकिा है । हर और फाल लखलनें ल िे है । हर वतन हर कोलाहल सर ीििय हो जािा है । और हुआ कुछ भी नहीर है । पारा सरसार वही का वही है । पर िुि बदल ये हो। िुम्हारा दे खने का ढर , िुम्हारा ढ़क्ष् कोण, िुम्हारा नजररया अल हो या; उस ढ़क्ष् कोण से क अल ही सरसार िुम्हारे सािने प्रक
होिा है ।
लेककन दुःु ख से शुरू करो, यगेकक उसिे िुि तनष्णाि हो। िैं
क प्राचीन हसीद सरि का
क वाय पढ रहा था।
िुझे वह बहुि अछा ल ा। वह कहिा है कक ऐसे लो होिे है । क्जनका पारा जीवन भी अ र फालगे की सेज हो जा िो वह िब िक खुश नहीर हगे े। जब िक कक उन्हें फालगे से कोच पीड़ा न होने ल ।े ुलाब उन्हें खुश नहीर कर सकिा, जब िक उन्हें उनसे
लजी न हो जा । अ र उनसे कोच पीड़ा होने ल े केवल िभी वे जीदवि
अनुभव करें े। वे केवल दुःु ख पीड़ा और रो वे कोच
ही ग्रहण कर सकिे है । कुछ और नहीर। वे दुःु ख ही खोजिे रहिे है ।
लिी, कोच दख ु , कोच दवशाद या अरधकार ही खोजने िें ल े रहिे है । वे ित्ृ यु उन्िुख होिे है ।
िैं सैकड़गे-सैंकड़ो लो ो से बहुि हराच से, बहुि आत्िीयिा से, बहुि तनक से मिला हार, जब वे अपने दुःु ख के बारे िें बिाने ल िे है िो िुझे भ र ीर होना पड़िा है। नहीर िो उन्हें ल े ा कक िैं सहानभ ु ातिपण ा य नहीर हार। यह उन्हें अछा नहीर ल िा। कफर वे लौ कर िेरे पास न आ ँ े। िुझे उनके दुःु ख के साथ दुःु खी और उनकी रभीरिा के साथ
रभीर होना पड़िा है । िाकक वे उससे बाहर तनकल सकें। और यह सब उनका ही तनिायण है , उसे तनमियि
करने के मल
वे हर सरभव प्रयास कर रह है । और जब िैं उन्हें दुःु ख से बाहर तनकालने की कोमशश करिा हार िो वे हर िरह की बाधा खड़ी करिे है । तनक्चि ही, वे जानिे है कक बाधा खड़ी कर रहे है । जान-बाझकर िो कोच भी ऐसा नहीर करे ा।
इसे ही उपतननाद अज्ञान कहिे है । अनजाने ही िुि अपने जीवन को अस्तियस्ति कक सरिाप खड़े करिे हो, चाहे कुछ भी हो जा है । िेरे पास लो
जािे हो। सिस्तया र और
उससे िुििें कोच अरिर नहीर पड़िा, यगेकक िुम्हारा
आि है , कहिे है , हि अकेले है । इसमल
क ढराय बन
या
वे दुःु खी है । अ ले ही क्षण कोच और आिा है । और
कहिा ह कक उसे ऐसी ज ह नहीर मिल रही जहार वह अल हो सके। इसमल
वह दुःु खी है । कफर कुछ ऐसे लो
है जो इस बाि से दुःु खी है कक उनके पास करने को कुछ नहीर है । कोच दववाह करके दुःु खी है । िो कोच दववाह न होने से दुःु खी है । ऐसा ल िा है कक िुि दुःु खी होने के उपाय खोजने िें िाहरथ है , िनुष्य को सुखी होना असरभव है । इसीमल
िैं कहिा हार कक िुि दुःु खी होने के उपाय खोजने िें तनष्णाि हो। और हिेशा िुि सफल होिे हो। िो दुःु ख से शुरू करो और साि दन के मल पहली बार पारी सज िा से दुःु खी हो जाग। यह प्रयो िुम्हें पण य या ा ि रूपारिररि कर दे ा।
होग े िभी िुि जा
क बार िुि जान जाग कक होश पाणायक िुि दुःु खी हो सकिे हो। और जब िुि दुःु खी
पाग े। कफर िुम्हें पिा हो ा कक िुि या कर रहे हो। यह िुम्हारा ही कृत्य है । और
य द िुि अपनी िजी से दुःु खी हो सकिे हो िो सुखी यगे नहीर हो सकिे। उसिें कोच अरिर नहीर है । दवतध िो वहीर है । कफर िुि इस दवतध का प्रयो
करो।
‘अपने शरीर, अक्स्तथयगे िारस और रि को ब्रह्िारडीय सार से भरा हुआ अनुभव करो।’ ऐसे अनुभव करो जैसे कक परिात्िा िुि िें बह रहा हो: िुि नहीर हो, बक्ल्क ब्रह्िारडीय ित्व िुििें भरा हुआ है । परिात्िा िुििें दवराजिान है । जब िुम्हें भाख ल िी है िो उसे भाख ल िी है—कफर शरीर को भोजन दे ना पाजा बन जािा है । जब िुम्हें यास ल िी है िो िुििें दवराजिान ब्रह्िारडीय ित्व को यास ल िी है । जब िुम्हें
नीरद आिी है । िो उसे नीरद आिी है । वह सोना, आराि करना चाहिा है । जब िुि युवा हो िो िुििें वही युवा है । जब िुि प्रेि िें पड़िे हो िो वही प्रेि िें पड़िा है ।
उससे भरा और पारी िरह उससे भर जाग। कोच भेद न करो। अछा या बुरा जो भी हो रहा है वह उसे ही हो रहा है । िुि िो बस
क और ह
जाग। अब िुि नहीर हो, वही है । िो अछा या बुरा स्तव य या नकय, जो भी
होिा है । उसको ही होिा है । सारा उिरदातयत्व उस पर आ धिय की परि अनुभाति है ।
या है । िुि िो रहे ही नहीर। यह िुम्हारा न होना,
यह दवतध िुम्हें पहुरचा सकिी है । लेककन िुम्हें उससे लबलकुल भर जाना हो ा। और िुम्हें िो ककसी प्रकार भरने का पिा ही नहीर है । िुम्हें ल िा है िुम्हारे शरीर िें खुले हु वास तछि है और िहान जीवन-ऊजाय िुम्हारे शरीर िें बह रही है । िुम्हें िो ल िा है कक िुि ठोस हो, बरद हो। जीवन केवल िभी ि ि हो सकिा है जब िुि बरद नहीर हो, बक्ल्क खुले और सरवेदनशील हो। जीवन-ऊजाय िुिसे बहिी है । और जो भी होिा है वह जीवन ऊजाय के साथ ही होिा है । िुम्हारे साथ नहीर होिा—िुि िो बस
क
अरश हो। और जाि भी सीिा र िुिने अपने चारगे और बना ली है वे वास्तिदवक नहीर है , झाठी है ।
िुि अकेले जीदवि नहीर रह सकिे। य द िुि पथ्ृ वी पर अकेले हो जाग िो या िुि जी सको े। िुि अकेले नहीर जी सकिे। िुि िारगे के लबना नहीर जी सकिे।
गडर
न ने कहीर कहा है कक पारा अक्स्तित्व िकड़ी के जाले
की िरह है । िकड़ी के जाले को िुि कहीर से भी छुग िो सारा जाला हलिा है । अक्स्तित्व को िुि कहीर से भी छुग, पारा अक्स्तित्व िरर ातयि होिा है । पारा अक्स्तित्व
क है । अ र िुि
क फाल को छुग िो िुिने सारे
ब्रह्िारड को छा मलया। िुिने अपने पड़ोसी की आरखगे िें झाँका िो िुिने ब्रह्िारड िें झारक मलया, यगेकक पारा अक्स्तित्व
क है । िुि पाणय को छु
लबना अरश को नहीर छा सकिे और अरश पाणय के लबना नहीर हो सकिा।
जब िुम्हें यह अनुभव होने ल े ा िो अहर कार सिाि हो जा
ा। अहर कार िभी पैदा होिा है । जब िुि अरश को
पाणय की िरह लेिे हो। जब िुम्हें ठीक-ठीक पिा ल ना शुरू होिा है । कक अरश-अरश है और पाण-य पाणय है । िो अहर कार त र जािा है । अहर कार केवल
क नासिझी है ।
और स्तवयर को ब्रह्िारडीय ित्व से भरा हुआ है । यह दवतध िो बहुि अद्भुि है । सुबह से ही जब िुम्हें ल े कक जीवन जा रहा है , नीरद सिाि हो चुकी है, िो यह पहला दवचार होना चा ह कक िुि नहीर परिात्िा जा रहा है । परिात्िा नीरद से वापस आ रहा है । इसीमल
िो हरद ा जो कक सरसार िें धिय के आयाि िें सवायतधक
वास परिात्िा के नाि के साथ लेिे है । अब िो यह िात्र
हरे उिरने वाली जािी है , सुबह अपनी पहली
क औपचाररकिा रह
च है । और असली बाि खो
च है । लेककन इसका िाल भाव यही था कक सुबह क्जस क्षण िुि जा गे िो स्तवयर को नहीर परिात्िा को स्तिरण
करो। परिात्िा िुम्हारा पहला स्तिरण बन जा । और राि जब सोने ल ो िो िुम्हारा अरतिि स्तिरण भी वही हो। परिात्िा का स्तिरण बना रहे : वही पहला हो गर वही अरतिि हो। और य द सच िें ही यह सब ु ह सबसे पहले और राि सबसे अरतिि स्तिरण हो िो दन भर भी वह िुम्हारे साथ रहे ा।
राि सोिे सिय िुम्हें उसी से भरे हु सोना चा ह । िुि है रान होग े कक िुम्हारी नीरद का ुणधिय ही बदल या। आज राि सोिे हु कृपया स्तवयर िि सोग, परिात्िा को ही सोने दो। जब लबस्तिर लबछाग िो परिात्िा के मल
ही लबछाग, अतितथ की िरह सत्कार करो। गर नीरद आिे-आिे यही अनुभव करिे रहो कक परिात्िा ही
है । हर वास उससे भरी हुच है । वहीर ्दय िें धडक रहा है । अब वह पारे दन काि करके थक सोना चाहिा है । और सुबह िुि अनुभव करो े। कक राि िुि अल जा
ा। यगेकक उससे
ही ढर
हरे िल पर मिलन हो ा।
जब िुि स्तवयर को दय अनुभव करिे हो। िो िुि अिल रहिा। वरना िो राि जब िुि सो भी रहे होिे हो िब भी इसमल
नहीर कक उन्हें कोच िनाव है , बक्ल्क इसमल
से सो
हो। नीरद का पारा
या है । और
ुणधिय ही ब्रह्िारडीय हो
हराइयगे िें डाब जािे हो, यगेकक िब कोच भय नहीर
हरे जाने से डरिे हो। कच लो
अतनिा से पीगडि है ।
कक वे सोने से भयभीि है । यगेकक नीरद उन्हें
हरी खाच की
िरह प्रिीि होिी है । क्जसकी कोच थाह नहीर दखिी है । िैं ऐसे लो गे को जानिा हार,जो सोने से डरिे है । क वध स ृ िेरे पास आ
और कहने ल े कक वे भय के कारण सो नहीर सकिे। िैंने पाछा, आप डरिे यगे है ।
िो वे बोले, िुझे डर है कक कहीर िैं सोिे हु ही िर या िो िुझे िो पिा ही नहीर चले ा। और िैं नीरद िें िरना नहीर चाहिा। कि से कि िुझे होश िो रहे कक िुझे या हो रहा है । िुि कुछ पकड़े रहिे हो क्जसके िो िुि सो नहीर सकिे, लेककन जब िुम्हें ल िा है कक अब िो परिात्िा ही है िो िुि स्तवीकार कर लेिे हो। कफर िो अिल हरे उिर जािे हो। और सारा
हराइयार भी दय है , कफर िुि अपनी आत्िा के िाल स्तत्रोि िें
ुणधिय बदल जािा है । और जब िुि सुबह उठिे हो और िुम्हें ल िा है कक
नीरद जा रही है िो स्तिरण रखो कक परिात्िा ही उठ रहा है । िुम्हारा पारा दन भी बदल जा
ा।
और परा ी िरह उसी से भरे रहो। जो भी िुि करो, या न करो। परिात्िा को ही करने दो। जो हो बस उसे होने दो। खाग,सोग, काि करो, लेककन सब परिात्िा को ही करने दो। केवल िभी िुि परा ी िरह उससे भर सकिे
हो, उससे मल
क हो सकिे हो। और
कबार िुम्हें अनुभव हो जा
भी—कक ऐसा मशखर का क्षण आ
बुध स हो जािे हो। उस
क क्षण के मल
भी—िैं कहिा हार क क्षण के या कक िुि न बचे। दय ने िुम्हें पारी िरह से भर दया। िभी िुि
क सियातिि क्षण िें िुम्हें जीवन के रहस्तय का ज्ञान होिा है । कफर न िो कोच भय है ,
न कोच िि ृ यु। जब िुि स्तवयर जीवन ही हो
। कफर यह
क अनरि प्रवाह है , न इसका कोच अरि है , न आ द।
िब जीवन परि आनरद हो जािा है । िोक्ष और स्तव य की धारणा र िो अवस्तथा के मल जब दा
कदि बचकानी है । यगेकक वे कोच भौ ोमलक स्तथान नहीर है । वे िो उस
प्रिीक है जब यक्ि ब्रह्िारड िें डाब जािा है । अथवा ब्रह्िारड को स्तवयर िें डाब जाने दे िा ह।
क हो जाि है , जब िन और पदाथय दोनगे ही अमभयक्ियार िीसरे पर िाल स्तत्रोि पर लौ
सारी खोज ही उसके मल
है । यही
आिी है ।
किात्र खोज है , और जब िक िुि इसको न पा लो, िृ ि नहीर होग े।
इसका कोच दवकल्प नहीर हो सकिा। चाहे जन्िगे–जन्िगे िक िुि भ किे रहो। पर जब िक यह न पा लो, िुम्हारी खोज पारी नहीर हो ी। िुि दवश्राि नहीर कर सकिे।
यह दवतध बहुि सहयो ी हो सकिी है । और इसिें कोच खिरा नहीर ह। इसको िुि लबना ककसी रु ु क कर सकिे हाँ। इस स्तिरण रखो। वे सब दवतधयार जो शरीर से शुरू होिी है । लबना रु ु के खिरनाक हो सकिी है । यगेकक शरीर बहुि-बहुि ज ल सररचना है । शरीर क ज ल यरत्र ह और इसके साथ कुछ भी शरू ु करना खिरनाक हो सकिा है । जब िक कक कोच ऐसा यक्ि न हो जा कक जानिा हाँ कक या हो रहा है । हो सकिा है िुि यरत्र का खराब कर दो और उसे ठीक करना क ठन हो जा ।
वे सब दवतधयार जो सीधे िन से शुरू होिी है , कल्पना पर आधाररि होिी है । और खिरनाक नहीर होिी। यगेकक उनिें शरीर का लबलकुल भी सहयो
नहीर होिा। वे लबना ककसी सद ुरू क भी कक जा सकिी है । तनक्चि ही, यह
थोड़ा क ठन हो ा, यगेकक िुििें आत्ि दववास नहीर है । सद ुरू कुछ करिा नहीर है । लेककन िायि, कै ामलस्त
क उत्प्रेरक
बन जािा है। वह कुछ भी नहीर करिा—और सच िें िो कुछ ककया भी नहीर जा सकिा—
लेककन िात्र उसकी उपक्स्तथति स ही िुम्हारा आत्िदववास और श्रध सा ज केवल इस भाव से ही कक कर सकिे हो। लेककन शारीररक दवतधयगे िें
जािी है । और इससे िदद मिलिी है ।
ुरु साथ है । िुििें भरोसा आ जािा है । यगेकक वह साथ ह िो िुि अज्ञाि िें प्रवेश
रु ु तनिारि आवयक है , यगेकक शरीर
क यरत्र है और उसके साथ िुि ऐसा कुछ
कर ले सकिे हो क्जसे अनककया नहीर ककया जा सकिा है । िुि स्तवयर को नुकसान पहुरचा सकिे हो। िेरे पास
क युवक आया, वह शीनायसन कर रहा था। िर गे अपने मसर के बल खड़ा रहिा था। शुरू-शुरू िें िो सब
लबलकुल ठीक था और सारे दन वह दवश्रारति और शारति और शीिलिा अनुभव करिा रहा। लेककन कफर िुसीबि होने ल ी। यगेकक जब शीिलिा सिाि होिी िा सारे शरीर िें करीब-करीब पा ल सा हो
िी ल ने ल िी। जो उसे बे चैन कर दे िी। वह
या। और कफर उसने सोचा कक शीनायसन से शुरू-शुरू िें उसे इिनी शीिलिा, इिनी
शारति, इिना आराि मिला था िो वह और शीनायसन करने ल ा। उसने सोचा कक और शीनायसन से उसे िदद मिले ी। जब कक शीनायसन ही उसे बीिार ककया जा रहा था। िक्स्तिष्क के यरत्र िें केवल
क तनक्चि िात्रा िें ही रि सरचार की जरूरि होिी है । य द रि सरचार कि हो
िो िुम्हें क ठनाच हो ी। य द रि सरचार अतधक हो िो क ठनाच हो ी। और हर अल
होिी है । वह यक्ि-यक्ि पर तनभयर करिी है । इसीमल
िुि िकक
िो िुि िकक
क यक्ि के मल
यह िात्रा
के लबना नहीर सो पािे हो। य द
के लबना सोने की कोमशश करो िो यह िो सो ही नहीर पाग े या कि सो पाग े। यगेकक मसर की
और अतधक रि दौड़े ा। िकक
िदद दे िे है । िुम्हारा मसर ऊँचा हाँ जािा है । इसमल
कि रि मसर की और
दौड़िा है । इससे नीरद आ जािी है । य द अतधक रि दौड़िा रहे िो िक्स्तिष्क जा ा रहे ा। दवश्राि नहीर कर पािा। य द िुि बहुि अतधक शीनायसन करो िो हो सकिा है कक िुम्हारी नीरद पारी िरह से उड़ जाये। हो सकिा है कक िुि लबलकुल भी सो नहीर सको। कफर और भी खिरे है । अभी खोजगे से पिा चला है कक अतधक से अतधक साि दन िक िुि लबना सो
रह सकिे हो। साि दन के बाद िुि पा ल हो जाग े। यगेकक िक्स्तिष्क की बहुि सा्ि कोमशका र है , जो कक ा जा र ी। कफर आसानी से वे जुड़ नहीर सकिी। जब िुि शीनायसन िें मसर के बल खड़े होिे हो िो सारा रि मसर की और दौड़ने ल िा है । िैंने ऐसा
क भी शीनायसन करने वाला नहीर दे खा जो
ककसी भी िरह से प्रतिभाशाली हो। य द कोच यक्ि बहुि शीनायसन करिा है िो वह जड़बुदध स हो जा ा। यगेकक िक्स्तिष्क की सा्ि कोमशका र नष् हो जा र ी। अत्यतधक रि-सरचार के कारण वे को िन कोमशका र नही बच सकिी है ।
िो यह सब
क
रु ु ही तनधायररि कर सकिा है, जो जानिा है कक कौन सी दवतध ककिना सिय िुम्हारे मल
सहयो ी हो ी। कुछ सेकेंड या कुछ मिन । और यह िो केवल
क उदाहरण हे । सारी शारीररक िुिा र, आसन
दवतधयार, रु ु की दे ख-रे ख िें ही करनी चा ह । कभी भी उन्हें अकेले नहीर करना चा ह । यगेकक िुि अपने शरीर को नहीर जानिे। िुम्हारा शरीर इिनी बड़ी ि ना है कक िुि उसकी कल्पना भी नहीर कर सकिे। िुम्हारे छो े से िक्स्तिष्क िें साि करोड़ िरिु आपस िें
क दस ा रे से सरबरतधि है । जुड़े हु आपसी सरबरध इस ब्रह्िारड क्जिना ही ज ल है ।
है । वैज्ञातनक कहिे है कक उनका
प्राचीन हरद ा तदनयगे ने कहा है कक पारा ब्रह्िारड लधु रूप से िक्स्तिष्क िें दवराजिान है । ज ि की सारी ज लिा लधु रूप से िक्स्तिष्क िें है । य द इन सारे िरिुगर का सरबरध िुम्हें सिझ आ जा
िो पारे ज ि की ज लिा
सिझ िें आ जा । न िो िुम्हें ककन्हीर िरिुगर का पिा है, न ही उनके ककसी आपसी सरबरधगे का। और अछा है
कक िुम्हें पिा नहीर है , नहीर िो इिने िहि कायय को चलिे दे ख िुि िो पा ल ही हो जाग। यह सब केवल लबना पिा ल े ही हो सकिा है ।
रि दौड़िा रहिा है , लेककन िि ु हें पिा नहीर ल िा। केवल िीन शिादी पहले ही यह पिा चल पाया कक शरीर
िें रि दौड़िा है । इससे पहले ऐसा िाना जािा था कक रि दौड़िा नहीर,भरा हुआ है । रि सरचार िो बहुि नच धारणा है । और लाखगे वनों से िनुष्य है, लेककन ककसी को नहीर ल ा कक रि दौड़िा है । िुि इसे िहसास नहीर कर सकिे। भीिर बहुि ति से बहुि सा काि चल रहा है । िम् ु हारा शरीर क बहुि बड़ी और बहुि नाजुक फै री है । शरीर हर सिय स्तवयर को िाजा और नया करने िें ल ा है । य द िुि कोच उपिव न खड़ा करो िो सत्िर वनय िक यह आराि से चले ा। अभी िक हि कोच ऐसा यरत्र नहीर बना पा
है जो सत्िर वनय िक अपनी
दे ख-भाल कर सके। िो जब भी िुि अपने शरीर पर कोच कायय शुरू करो िो इस बाि का स्तिरण रखो कक ऐसे
ुरु के पास होना
जरूरी है जो जानिा हो कक वह िुम्हें या करवा रहा है । वरना कुछ िि करो। लेककन कल्पना िें िो कोच क ठनाच नहीर है । यह बड़ी सरल बाि है । इसे िुि शुरू कर सकिे हो। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच,
प्रिचन-67
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—95 (ओशो) दस ू री विधि:
‘अनुभि करो कक सज ृ न के शुद्ध गुण तुम्हारे स्तनों िें प्रिेश करके सूक्ष्ि रूप िारण कर रहे है ।’
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—95 (गशो)
इससे पहले कक इस दवतध िें प्रवेश करूर, कुछ िहत्वपाणय बािें । मशव पावयिी से, दे वी से, अपनी सरत नी से बाि कर रहे है । इसमल बािें सिझने जैसी है । भेद है । और उनका भेद
क: परू ु न दे ह और स्तत्री दे ह
यह दवतध दवशेनि: क्स्तत्रयगे के मल
है । कुछ
क जैसी है ; लेककन कफर भी उनिें कच भेद है । और उनका
क दस ा रे का पररपरा क है । परू ु न दे ह िें जो नकारात्िक है, स्तत्री दे ह िें वही सकारात्िक
हो ा; और स्तत्री दे ह जो सकारात्िक है , वह परू ु न दे ह िें नकारात्िक हो ा। यही कारण है कक जब वे दोनगे
हन सरभो
िें मिलिे है िो
मिलिा है । धनात्िक तणात्िक से मिलिा है । और दोनगे इसीमल
क इकाच बन जािे है । तणात्िक धनात्िक से
क हो जािे है ।
िो यौन िें इिना आकनयण है । यह आकनयण इसीमल
क दववायुि विुल य बन जािे है ।
है । आधुतनक िनुष्य बहुि स्तवछर द हो अलील कफल्िें और सा हत्य इसका कारण है । इसका कारण बहुि हरा है जा तिक है । यह आकनयण इसमल
या है । कक
है यगेकक पुरून और स्तत्री दोनगे ही अधारे है । और जो भी अधारा है उसके पार जाना, पाणय
होना अक्स्तित्व की स्तवाभादवक प्रवतृ ि है । पाणि य ा की और
ति करने की प्रवतृ ि परि तनयिगे िें से
क है । जहार
भी िुम्हें ल िा है कक कुछ किी है , िुि उसे भरना चाहिे हो, पारा करना चाहिे हो। प्रकृति ककसी भी िरह के अधारे पन को नहीर पसरद करिी। पुरून भी अधारा है, स्तत्री भी अधारी है । और वे पाणि य ा का केवल सकिे है । जब उनका दववायुि विुल य इसीमल
क ही क्षण पा
क हो जा , जब दोनगे दवलीन हो जा र।
िो सभी भानागर िें प्रेि और प्राथयना दोनगे बड़े िहत्वपण ा य है । प्रेि िें िुि ककसी यक्ि के साथ
जािे हो। और प्राथयना िें िुि सिक्ष्
के साथ
क हो
क हो जािे हो। जहार िक आरिररक प्रकक्रया का सवाल है , प्रेि
और प्राथयना सिान है ।
पुरून और स्तत्री दे ह सिान है । लेककन उनके तणात्िक और धनात्िक ध्रुव मभन्न है । जब बचा िार के
भय िें
होिा है िो िैं सोचिा हार कि से कि छ: सिाह के मल वह िय क्स्तथति िें रहिा है । न िो वह पुरून होिा है न स्तत्री ही, उसका क और झुकाव जरूर होिा है, लेककन कफर भी शरीर अभी िय िें ही होिा है । कफर छ: सिाह बाद शरीर या िो स्तत्री का हो जािा है । या पुरून का। य द शरीर स्तत्री का है िो काि ऊजाय का ध्रुवस्तिनगे
के तनकल हो ा। यह उसका धनात्िक ध्रुव हो ा यगेकक स्तत्री की योतन तणात्िक ध्रुव है । य द बचा नर है िो काि केंि, मशन उसका धनात्िक ध्रुव हो ा और स्तिन तणात्िक होिे हे । स्तत्री के शरीर िें मशन का प्रतिरूप
लाइ ोररस होिा है । लेककन यह तनष्क्रय है । पुरून के स्तिनगे की भारति ही स्तत्री का लाइ ोररस भी तनष्क्रय है । शरीर शास्तत्री ये प्रन उठािे रहिे है । कक पुरून के शरीर िें स्तिन यगे होिे है । जब कक उनकी कोच आवयकिा नहीर दखाच दे िी है । यगेकक पुरून को बचे को दध ा िो दपलाना नहीर है । कफर उनकी या आवयकिा है । वे तणात्िक ध्रुव है । इसमल
िो पुरून के िन िें स्तत्री के स्तिनगे की और इिना आकनयण है । वे धनात्िक ध्रुव है ।
इिने काय, सा हत्य, तचत्र,िातिययार सब कुछ स्तत्री के स्तिनगे से जुड़े है । ऐसा ल िा है जैस पुरून को स्तत्री के पारे शरीर की अपेक्षा उसके स्तिनगे िें अतधक रस है । और यह कोच नच बाि नहीर है ।
ुफागर िें मिले प्राचीनिि तचत्र
भी स्तिनगे के ही है । स्तिन उनिें िहत्वपाणय है । बाकी का सारा शरीर ऐसा िालाि पड़िा है कक जैसे स्तिनगे के चारगे और बनाया
या हो। स्तिन आधार भाि है ।
यह दवतध क्स्तत्रयगे के मल
है । यगेकक स्तिन उनके धनात्िक ध्रुव है । और जहार िक योतन का प्रन है वह करीब-
करीब सरवेदन र हि है । स्तिन उसके सबसे सरवेदनशील अर आस-पास है ।
है । और स्तत्री दे ह की सारी सज ृ न क्षििा स्तिनगे के
यही कारण है कक हरद ा कहिे है कक जबिक स्तत्री िार नहीर बन जािी, वह िृ ि नहीर होिी। पुरून के मल सत्य नहीर है । कोच नहीर कहे ा कक पुरून जब िक दपिा न बन जा सरयो
यह बाि
िृ ि नहीर हो ा। दपिा होना िो िात्र
क
है । कोच दपिा हो भी सकिा है , नहीर भी हो सकिा है । यह कोच बहुि आधारभाि सवाल नहीर है । क पुरून लबना दपिा बने रह सकिा है । और उसका कुछ न खोये। लेककन लबना िार बने स्तत्री कुछ खो दे िी है । यगेकक उसकी पारी सज ृ नात्िकिा, उसकी पारी प्रकक्रया िभी जा िी है । जब वह िार बन जािी है । जब उसके स्तिन उसके अक्स्तित्व के केंि बन जािे है । िब वह पाणय होिी है । और वह स्तिनगे िक नहीर पहुरच सकिी य द उसे पुकारने वाला कोच बचा न हो।
िो पुरून क्स्तत्रयगे से दववाह करिे है िाकक उन्हें पक्त्नयाँ मिल सके, और क्स्तत्रयार पुरूनगे से दववाह करिी है िाकक वे िार बन सकें। इसमल
नहीर कक उन्हें पति मिल सके। उनका परा ा का परा ा िौमलक रुझान ही
क बचा पाने िें है
जो उनके स्तत्रीत्व को पक ु ारें ।
िो वास्तिव िें सभी पति भयभीि रहिे है , यगेकक जैसे ही बचा पैदा होिा है वे स्तत्री के आकनयण की पररतध पर आ जािे है । बचा केंि हो जािा है । इसमल
दपिा हिेशा चष्याय करिे है, यगेकक बचा बीच िें आ जािा है । और
स्तत्री अब बचे के दपिा की उपेक्षा बचे िें अतधक उत्सुक हो जािी है । पुरून उपयो ी, परर िु अनावयक। अब िालभाि आवयकिा पाणय हो
ौण हो जािा है। जीने के मल
च।
पक्चि िें बचगे को सीधे स्तिन से दध ा न दपलाने का फैशन हो
या है । यह बहुि खिरनाक है। यगेकक इसका अथय यह हुआ कक स्तत्री कभी अपनी सज ृ नात्िकिा के केंि पर नहीर पहुरच सके ी। जब क पुरून ककसी स्तत्री से प्रेि करिा है िो वह उसके स्तिनगे को प्रेि कर सकिा है । लेककन उन्हें िार नहीर कह सकिा। केवल बचा ही उन्हें िार कह सकिा है। या कफर प्रेि इिना
हन हो कक पति भी बचे की िरह हो जा । िो यह
सरभव हो सकिा है । िब स्तत्री परा ी िरह भाल जािी है कक वह केवल
क सरत नी है , वह अपनी प्रेिी की िार बन
जािी है । िब बचे की आवयकिा नहीर रह जािी, िब वह िार बन सकिी है । और स्तिनगे के तनक अक्स्तित्व का केंि सकक्रय हो सकिा है ।
क छो ा
उसके
यह दवतध कहिी है : ‘अनुभव करो कक सज ृ न के शुध स है ।’
ण ु िुम्हारे स्तिनगे िे प्रवेश करके सा्ि रूप धारण कर रहे
स्तत्रैण अक्स्तित्व की पारी सज ृ नात्िकिा िाित्ृ व पर ही आधाररि है । इसीमल
िो क्स्तत्रयार अन्य ककसी िरह के
सज ृ न िें इिनी उत्सुक नहीर होिी। पुरून सजयक है । क्स्तत्रयार सजयक नहीर है । न उनके तचत्र बना काय रचे है । न कोच बड़ा ग्ररथ मलखा है । न कोच बड़े धिय बना पुरून सज ृ न कक रहा है ।
है । न िहान
है । वास्तिव िें उसने कुछ नहीर ककया हे । लेककन
चला जािा है । वह पा ल है । वह आदवष्कार कर रहा है , सज ृ न कर रहा है । भवन तनिायण कर
िरत्र कहिा है , ऐसा इसमल
है यगेकक परू य रूप से सजयक नहीर है । इसमल ु न नैसत क
वह अिृ ि और िनाव िें
रहिा है । वह िार बनना चाहिा है । वह सजयक बनना चाहिा है । िो वह काय का सज ृ न करिा है । वह कच चीजगे का सज ृ न करिा है ।
क िरह से हव उसकी िार हो जाये। लेककन स्तत्री िनाव र हि होिी है । य द वह िार बन
सके िो िृ ि हो जािी है । कफर ककसी और चीज िें उत्सुक नहीर रहिी। स्तत्री कुछ और करने की िभी सोचिी है य द वह िार न बन सके। प्रेि न कर सके, अपनी सज ृ नात्िकिा के
मशखर पर न पहारच सके। िो वास्तिव िें असज ा रे ृ नात्िक क्स्तत्रयार बन जािी है । कदव, तचत्रकार, लेककन वे सदा दस दजे की रहे ी। कभी प्रथि को ी की नहीर हो सकिी। स्तत्री के मल काय और तचत्रगे का सज ृ न उिना ही असरभव
है , क्जिना पुरून को बचे का सज ृ न करना। वह िार नहीर बन सकिा। वह जैदवकीय िल पर असरभव है । और इस किी को वक अनुभव करिा है । इस किी को पारा करने के मल
वह कच कायय करिा है । लेककन कभी भी कोच
िहान से िहान सजयक भी इिना िृ ि नहीर हो पाया, या कभी कोच दवरला ही इिना पररिृ ि हो सकिा है । क्जिना कक
क स्तत्री िार बनकर हो जािी है ।
क बुध स अतधक पररिृ ि होिा है । यगेकक वह अपना ही सज ृ न कर लेिा है । वह वादवज हो जािा है । वह स्तवयर
को दस ा रा जन्ि दे दे िा है । नया िनुष्य हो जािा है । अब वह अपनी िार भी हो जािा है , दपिा भी हो जािा है । वह पाणि य या पररिृ ि अनुभव करिा है ।
क स्तत्री अतधक सरलिा से िक्ृ ि अनुभव कर सकिी है । उसका सज ृ नात्िकिा स्तिनगे के आस-पास ही होिी है ।
इसीमल
िो दवव भर िें क्स्तत्रयार अपने स्तिनगे के बारे िें इिनी तचरतिि रहिी है । जैसे कक उनका पारा अक्स्तित्व
ही वही कें िि हो। वे सदा अपने स्तिनगे के बारे िें इिनी सज तचरतिि रहिी है । स्तिन उनके सबसे के केंि है ।
ुि अर
चाहे उिाड़़़े पर उनके दवनय िें
है , उनका खजाना है , उनके अक्स्तित्व के िाित्ृ व के सज ृ नात्िकिा
मशव कहिे है : ‘अनुभव करो कक सज ृ न के शुध स स्तिनगे पर अवधान को
होिी है । दखा
काग्र करो, उन्ही के साथ
ुण िुम्हारे स्तिनगे िें प्रवेश करके सा्ि रूप धारण कर रहे हो।’ क हो जाग। बाकी सारे शरीर को भाल जाग। अपनी पारी
चेिना को स्तिनगे पर ले जाग। और कच ि ना र िुम्हारे साथ ि े ी। य द िुि ऐसा कर सको। य द पारी िरह से स्तिनगे पर अपने अवधान को कें िि कर सको, िो सारा शरीर भार-िुि हो जा िुम्हें िेर ले ा। िाधुयय की
जो भी दवतधयार दवकमसि की
क
ा। और
हन अनुभाति िुम्हारे भीिर बारह चारगे और धड़के ी।
च है वे करीब-करीब सब पुरून वावारा ही दवकमसि की
का उल्लेख होिा है जो पुरून के मल
क
हन िाधुयय
च है । िो उनिें ऐसे केंिगे
सरल होिे है । जहार िे िैं जानिा हार केवल मशव ने ही कुछ ऐसी दवतधयार
दी है जो िौमलक रूप से क्स्तत्रयगे के मल
है । कोच परू ु न इस दवतध को नहीर कर सकिा। वास्तिव िें य द कोच
पुरून अपने स्तिनगे पर अवधान को कें िि करने ल े िो उलझन िें पड़ जाये ा। करके दे खो, पाँच मिन
िें ही िुम्हारा पसीना बहने ल े ा। और िुि िनाव से भर जाग े। यगेकक पुरून के
स्तिन तणात्िक है, वे िुम्हें नकारात्िकिा ही दें े। िुम्हें कुछ िें कोच
ड़बड़ हो
च हो।
ड़बड़, कुछ अ प ापन िहसास हो ा। जैसे शरीर
लेककन स्तत्री के स्तिन धनात्िक है । य द क्स्तत्रयार स्तिनगे के पास अवधान कें िि करें िो बहुि आनर दि अनुभव करें ी। क िाधय ु य उनके प्राणगे िें छा जा ा और उनका शरीर रू ु त्वाकनयण से िुि हो जा ा। उन्हें इिना हलकापन िहसास हो ा जैसे कक वे उड़ सकिी है । और इस िाित्ृ व भाव अनुभव करो ी। चाहे िुि िार न बनो
काग्रिा से बहुि से पररवियन हगे े। िुि अतधक
लेककन स्तिनगे पर अवधान की यह िनाव से भर
काग्रिा बहुि दवश्रारि होकर करनी चा ह , िनाव से भरकर नहीर। य द िुि च िो िुम्हारे और स्तिनगे के बीच क दवभाजन हो जा ा। िो दवश्रारि होकर उन्हीर िें धुल जाग
गर अनुभव करो कक िुि नहीर केवल स्तिन ही बचे है ।
य द पुरून को यही करना हो िो स्तिनगे के साथ नहीर काि केंि के साथ करना हो ा। इसीमल
हर करु डमलनी यो
िें पहले चक्र का िहत्व है । पुरून को अपना अवधान जननें िय की जड़ पर कें िि करना होिा है । उसकी
सज ृ नात्िकिा, उसकी दवधायकिा वहार पर है । और इसे सदा स्तिरण रखो: कभी भी ककसी नकारात्िक चीज पर
अवधान को कें िि िि करो, यगेकक सभी नकारात्िक चीजें उसके साथ चली आिी है । ऐसे ही दवधायक के साथ सभी कुछ दवधायक चला आिा है । जब स्तत्री और पुरून के दो ध्रुव मिलिे है िो पुरून का ऊपर का भा होिा है । जब कक स्तत्री िें नीचे का भा
तणात्िक और नीचे का भा
तणात्िक और ऊपर का भा
धनात्िक
धनात्िक होिा है । तणात्िक और
धनात्िक के ये दो ध्रुव मिलिे है । िो
क विुल य तनमियि हो जािा है । वह विुल य बहुि आनरदपाणय है , परर िु यह कोच साधारण ि ना नहीर है । साधारणिया काि-कृत्य िें ये विुल य नही बनिा। इसीमल िो िुि काि के प्रति क्जिने आकदनयि होिे हो, उिने ही उस से दवकदनयि भी होिे हो। उसके मल
िुि ककिनी कािना करिे हो, ककिनी
िुम्हें उसकी िलाश होिी है । पर जब िुम्हें मिलिा है िो िुि तनराश हो जािे हो। कुछ भी होिा नहीर। यह विुल य केवल िभी सरभव है , जब की दोनगे शरीर शारति हो। और लबना ककसी भय या प्रतिरोध के मल
खुले हो। िब मिलन होिा है । वह पाणय मिलन दववायुि धारागर का
आनरद का उचिि मशखर है । कफर
क मिल कर विुल य बन जािा है । जो
क बड़ी अद्भि ु ि ना ि िी है । िरत्र िें इसका उल्लेख है , लेककन िुिने शायद इसके बारे िें सुना भी न
हो—यह ि ना बड़ी अद्भि ु है । जब दो प्रेिी वास्तिव िें मिलिे है और कौंध जैसी ि ना ि िी है ।
क क्षण के मल
क विुल य बन जािे है िो
हो जािा है और स्तत्री पुरून हो जािी है । यगेकक ऊजाय िो ऐसा हो ा कक कुछ मिन
के मल
क लबजली की
प्रेिी प्रेयसी बन जािा है और प्रेयसी प्रेिी बन जािी है —और
अ ले ही क्षण प्रेिी कफर प्रेिी बन जािा है । और प्रेयसी कफर प्रेयसी बन जािी है ।
जा
क दस ा रे के
ति कर रही है । और
क क्षण के मल
क विुल य बन
या है ।
पुरून स्तत्री
पुरून सकक्रय हो ा। और कफर वह दवश्राि करे ा। और स्तत्री सकक्रय हो
ी। इसका अथय है कक अब पुरून ऊजाय स्तत्री के शरीर िें चली
च है । जब स्तत्री सकक्रय हो ी िो पुरून तनष्कृय
रहे ा। और ऐस चलिा रहे ा। साधारण िय िि ु स्तत्री और परू ु न हो। मल
पुरून स्तत्री हो जा
तनक्ष्क्रयिा बदल रही है । जीवन िें
ा और स्तत्री पुरून हो जा
क लय है , हर चीज िें
रूक जािी है । उसिें कोच पैदा होिा है ।
हन प्रेि िें, हन सरभो
िें कुछ क्षण के
ी। और यह अनुभव हो ा, तनक्चि ही अनुभव हो ा कक
क लय है । जब िुि वास लेिे हो वास भीिर जािी है , कफर क्षणगे के मल
ति नहीर होिी। कफर चलिी है , बाहर आिी है । और कफर रूक जािी है ।
ति, रुकाव, ति। जब िुम्हारा ्दय धड़किा है िो
क अरिराल
क धडकन होिी है । कफर अरिराल है , कफर
धड़किा है, कफर अरिराल है । धड़कन का अथय है सकक्रयिा, अरिराल का अथय है तनक्ष्क्रयिा। धड़कन का अथय है पुरून अरिराल का अथय है स्तत्री। जीवन िुि
क लय है । जब परू ु न और स्तत्री मिलिे है िो
क स्तत्री हो िो अचानक
से स्तत्री बनिी रहो ी।
क विल ुय बन जािा है : दोनगे के मल
क अरिराल हो ा और िुि स्तत्री नहीर रहो ी परू ु न बन जाग ी। िुि स्तत्री से परू ु न
जब यह अरिराल िुम्हें िहसास हो ा िो िुम्हें पिा चले ा कक िुि मशवमलर यह
ही अरिराल हगे े।
िें इसी विुल य को दखाया
क विुल य बन
हो। मशव के प्रिीक
या है । यह विुल य दे वी की योतन और मशव के मलर
से दखाया
या है ।
क विुल य है । यह दो उच िल पर ऊजाय के मिलन की मशखर ि ना है ।
यह दवतध अछी रहे ी: ‘अनुभव करो कक सज ृ न के शुध स हे ।‘
ुण िुम्हारे स्तिनगे िें प्रवेश करके सा्ि धारण कर रहे
दवश्राि हो जाग। स्तिनगे िें प्रवेश करो और अपने स्तिनगे को ही अपना पारा अक्स्तित्व हो जाने दो। पारे शरीर को स्तिनगे के होने के मल
िात्र
क पररक्स्तथति बन जाने दो, िुम्हारा पारा शरीर
ौण हो जा , स्तिन िहत्वपाणय हो
जा र। और िुि उनिें ही दवश्राि करो, प्रवेश करो। िब िुम्हारी सज ृ नात्िकिा ज े ी। स्तत्रैण सज ृ नात्िकिा िभी
ज िी है जब स्तिन सकक्रय हो जािे है । स्तिनगे िें डाब जाग। और िुम्हें अनुभव हो ा कक िुम्हारी सज ृ नात्िकिा जा
रही है ।
सज ृ नात्िकिा के जा ने का अथय है ? िुम्हें बहुि कुछ दखने ल े ा। बुध स और िहावीर ने अपने पावय जन्िगे िें कहा था कक जब वे पैदा हगे े िो उनकी िािागर को कुछ दवशेन ढ़य, कुछ दवशेन स्तवन दखाच पड़ें े। उन कुछ दवशेन स्तवनगे के कारण ही बिाया जा सकिा था कक बुध स पैदा होने वाले है । सोलह स्तवन अनुसरण करिे हु
आ ँ े।
क दस ा रे का
इस पर िैं प्रयो
करिा रहा हार। य द कोच स्तत्री वास्तिव िें ही अपने स्तिनगे िें दवलीन हो जािी है िो क दवशेन क्रि िें कुछ दवशेन ढ़य दखाच दें ।े कुछ चीजें उसे दखाच पड़ने ल ें ी। अल -अल क्स्तत्रयगे के मल अल अल
चीजें हगे ी, लेककन कुछ िैं िुम्हें बिािा हार।
क िो कोच आकृति, िानव आकृति दखाच पड़े ी। और य द स्तत्री बचे को जन्ि दे ने वाली है िो बचे की
आकृति नजर आ
ी। य द स्तिनगे िें स्तत्री पारी िरह दवलीन हो
च है िो उसे यह भी दखाच दे ा कक ककसी
िरह से बचे को वह जन्ि दे ने वाली है । उसकी आकृति नजर आ स्तपष्
हो ी। य द अभी वह िार नहीर बनने वली है और
ी। य द वह
भयविी है िो आकृति और भी
भयविी नहीर है , िो उसके आस-पास कोच अज्ञाि सु रध
छानें ल े ी। स्तिन ऐसी िधुर सु रधगे के स्तत्रोि बन सकिे है । जो कक इस सर सार की नहीर है । जो रसायन से नहीर
बनाच जा सकिी। िधुर स्तवर, लयबध स वतनयार। सुनाच दें ी। सज ृ न के सारे आयाि बहुि से न रूपगे िें प्रक हो सके है । िहान कदवयगे और तचत्रकारगे को जो ि ि हुआ है वह उस स्तत्री को हो सकिा है । य द वह अपने स्तिनगे िें डाब जा ।
और यह इिना वास्तिदवक हो ा कक उसके पारे यक्ित्व को बदल दे ा। वह स्तत्री और ही हो जा ये अनुभव उसे होिे रहिे है िो धीरे -धीरे वे खो जा र े और
क क्षण आ
शान्यिा यान की परि क्स्तथति है ।
िो इसको स्तिरण रखो; य द िुि स्तत्री हो िो अपने मशव नेत्र पर
ा जब शान्यिा ि ि हो ी। वह
काग्रिा िि करो। िुम्हारे मल
दोनगे स्तिनगे के चुचुगर पर अवधान को कें िि करना बेहिर रहे ा। और दस ा री बाि: कें िि िि करो।
क साथ दोनगे स्तिनगे पर करो। य द िुि
िुम्हारा शरीर यतथि हो जा िो दोनगे पर
ा।
क ही स्तिन पर
ी। और य द
स्तिनगे पर, ठीक
क ही स्तिन पर अवधान
क स्तिन पर अवधान को कें िि करो ी िो ित्क्षण
काग्रिा होने पर पक्षािाि भी हो सकिा है।
क साथ ही अवधान को कें िि करो, उसिे दवलीन हो जाग, और जा हो, उसे होने दो। बस साक्षी
बनी रहो गर ककसी भी लय से िि जुड़गे,यगेकक हर लय बड़ी सुरदर, स्तव य िुल्य िालाि हो ी। उनसे िि जुड़गे। उनको दे खिी रहो और साक्षी बनी रहो।
क क्षण आ
ा जब वह सिाि होने ल ें ी। और
क शान्यिा ि ि
होिी हे । कुछ नहीर बचिा। बस खुला आकाश रह जािा है । और स्तिन खो जािे है । िब िुि बोतधवक्ष ृ के नीचे हो।
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-67
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—96 (ओशो) यह विधि एकांत से संबंधित है :
ककसी ऐसे स्थान पर िास करों जो अंतहीन रूप से विस्तीणथ हो, िक्ष ृ ों, पहाडडयों, प्राणणयों से रहहत हो। तब िन के भारों का अंत हो जाता है ।
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—96 (गशो)
इससे पहले कक हि इस दवतध िें प्रवेश करे , कारि के दवनय िें कुछ बािें सिझ लेने जैसी है । िौमलक है । आधारभाि है । िुम्हारे अक्स्तित्व का यही स्तवभाव है । िार के थे।
भय िें िुि अकेले थे, पारी िरह अकेले
और िनोवैज्ञातनक कहिे है कक तनवायण की, बुध सत्व की, िुक्ि की यह स्तव य की आकारशा िार के स्तितृ ि है । पाणय
क: अकेले होना
भय की
हन
कारि को और उसके आनरद को िुिने जाना है। िुि अकेले थे, िुि परिात्िा थे वहार और कोच
न था। जीवन सुरदर था। हरद ा उसे सियु
कहिे है । िुम्हें कोच परे शान करने वाला नहीर था। न ही कोच बाधा
डाल रहा था। अकेले िुि ही िामलक थे। कोच सरिनय नहीर था, पाणय शारति थे, िौन था, कोच भाना नहीर थी। िुि अपने अरिरात्िा िें थे। िुम्हें पिा नहीर था। लेककन वह स्तितृ ि िुम्हारे िनोवैज्ञातनक कहिे है , इसमल
हन िें, िुम्हारे अचेिन िें अरककि है ।
सब सोचिे है कक बचपन बहुि सुरदर था। हर दे श हर जाति यह सोचिी है कक अिीि िें कभी स्तव य था। जीवन सुरदर था। हरद ा उसे सियु कहिे है । अिीि िें , बहुि पहले इतिहास के भी शुरू होने से पावय सब कुछ सुरदर और आनरदपाणय था। न कोच झ डा था, न कोच फसाद,न कोच हरसा। केवल प्रेि ही प्रेि था। वह स्तवणय यु
था। चसाच कहिे है , ‘आदि और चव अदन के बगीचे िें बड़ी तनदतनिा और आनरद से
रहिे थे। कफर पिन हुआ।’ िो स्तवणय यु उस पिन से पहले था। हर दे श हर जाति, हर धिय यह सोचिा है कक स्तवणय यु कहीर अिीि िें था। और बड़ी अजीब बाि यह है कक िुि अिीि िें ककिने ही पीछे चले जाग, हिेशा ऐसा ही सोचा जािा रहा है । िैसोपो ामिया िें
क लेख खुदा हुआ है । उसे य द िुि पढ़ो िो िुम्हें िो िुम्हें ल े ा कक िुि आज के ककसी अाबबार का सरपादकीय पढ़ रहे हो। वह मशलालेख कहिा है कक यह यु
क मशला मिली है जो छ: हजार वनय परु ानी है । उस पर
पाप यु
करिी। अरधकार छा
है । सब कुछ
लि हो
या है । बे े बाप की नहीर िानिे, पत्नी पति का दववास नहीर
या है । अिीि के वे स्तवलणयि दन कहार
? यह मशलालेख छ: हजार साल परु ाना है ।
लागत्से कहिा है कक अिीि िें , पावज य गे के जिाने िें सब ठीक था, िब िाग का साम्राज्य था, िब कोच नही थी। और यगेकक कोच कि नहीर थी इसमल इसमल
लिी
कोच मसखाने वाला न था; कोच किी न थी क्जसे सुधारना पड़े।
कोच परगडि नहीर था। कोच मशक्षक नहीर था। कोच धिय
ुरु नहीर था। यगेकक िाग का साम्राज्य था और
सभी इिने धामियक थे कक ककसी धिय की जरूरि न थी। उस सिय कोच सरि न था, कोच पापी नहीर थे। हर कोच इिना सरि था कक ककसी को खबर ही नहीर थी कक कौन सरि है और कौन पापी। िनोवैज्ञातनक कहिे है कक यह अिीि कभी नहीर था। यह अिीि िो हर यक्ि के है । वह अिीि असल िें
भय िें था। िाग
अरजान, बचा आनरद िें िैर रहा था।
हन िें तछपी
भय की स्तितृ ि
भय िें था, वहार सब कुछ ठीक था, सरुदर था। सरसार से पण य या ा ि
भय िें बचा ऐसे ही था जैसे शेनना
पर ले े दवष्णु। हन्द ा िानिे है कक दवष्णु अपनी ना -शय्या पर ले े हु भय िें बचा ऐसे ही होिा है । बचा भी िैरिा है । िार का भय भी सा र के
आनरद के सा र िें िैर रहे है ।
जैसा है । और िुि है रान होग ।े कक िार के
भय िें बचा क्जस जल िें िैरिा है उसके सभी लवण वही होिे है ।
जो सा र के जल िें होिे है —वही लवण, वही अनुपाि। वह सा र का ही सुखद जल होिा है । और
भय िें सदा बचे के मल
पड़िा, बचे के मल
उतचि िापिान रहिा है । िार चाहे सदी से करप रही हो, उससे कोच फकय नहीर
भय िें सदा
क सा िापिान रहिा है । वह ऊनण रहिा है । आनरद से िैरिा रहिा है । कोच
तचरिा, कोच दुःु ख उसे नहीर होिा। िार उसके मल नहीर होिा। िार उसके मल
जैसे होिी ही नहीर।
जैसे होिी ही नहीर। वह अकेला होिा है । उसे िार का भी पिा
यह सरस्तकार, यह छाप िुम्हारे साथ रहिी है । यही िाल सत्य है । सिाज िें प्रवेश करने से पहले िुि ऐसे ही थे। और िरकर जब िुि सिाज से बाहर जाग े िब भी यही सत्य हो ा। िुि कफर अकेले हो जाग े। और
काकीपन के इन दो छोरगे के बीच िुम्हारा जीवन ििाि ि नागर से भरा होिा है । लेककन वे सब ि ना र
सारयोत क है ।
हरे िें िुि अकेले ही रहिे हो। यगेकक वहीर िाल सत्य है । उस
कारि के चारगे िरफ बहुि कुछ ि िा है । िुम्हारा दववाह होिा है । िुि दो हो जािे हो, कफर िुम्हारे बचे हो जािे है । और िुि कच हो जािे हो। सब कुछ होिा रहिा है । लेककन केवल पररतध पर, हन अरिरिि अकेला ही रहिा है । वह िुम्हारी वास्तिदवकिा है । िुि उसे अपनी आत्िा कह सकिे हो। अपना सार कह सकिे हो। हन
कारि िें इस सार को दोबारा प्राि कर लेना है । िो जब बुध स कहिे है कक उन्हें तनवायण उपलध हो
है िो असल िें उन्हें यह उपलध हो
कारि,यह आधारभाि सत्य उपलध हो
या है । कैवल्य का अथय ही है
या
या है । िहावीर कहिे है कक उन्हें कैवल्य
कारि, काकीपन। ि नागर के झरझावाि के नीचे ही यह
कारि
िौजाद है । यह
कारि िि ु िें ऐसे ही है जैसे िाला िें धा ा। िनके दखाच पड़िे है , धा ा नहीर दखाच पड़िा है । लेककन
िनके धा े से ही सम्हाले हु है । िनके िो अनेक है लेककन धा ा क ही है । वास्तिव िें िाला इस सत्य का प्रिीक है । धा ा है सत्य और िनके है ि ना र जो उसिें दपरोच च है । और जब िक िुि भीिर प्रवेश करके इस िालभाि सात्र िक नहीर पहुरच जाग, िुि सरिाप िें रहो े, दवनाद िें ही रहो े। िुम्हारा
क इतिहास है , सरयो गे का इतिहास, और िुम्हारा
क स्तवभाव है जो
िारीख को, ककसी स्तथान पर, ककसी सिाज िें , ककसी यु
ैर-ऐतिहामसक है । िुि ककसी
िें पैदा हु । िुम्हें क ढर से पढ़ाया या, िुिने कोच यवसाय ककया, ककसी स्तत्री के प्रेि िें पड़े, बचे हु —ये सब ना क के िनके है , इतिहास है । लेककन हरे िें िुि हिेशा अकेले ही हो। और य द िुि इन ि नागर िें स्तवयर को भाल िो िुि यहार होने के अपने ल्य से ही चाक
। िब िुिने स्तवयर को इस ना क िें खो दया और उस अमभनेिा को भाल
जो इस ना क का हस्तसा
नहीर था। केवल अमभनय कर रहा था—यह सब अमभनय है ।
इसी कारण हिने इतिहास नहीर मलखा। असल िें यह तनक्चि कर पाना बड़ा क ठन है । कक कृष्ण कब पैदा हु और कब राि पैदा हु , कब िरे ; या वे कभी पैदा हु भी कक नहीर, कक केवल काल्पतनक कथा र है । हिने इतिहास नहीर मलखा, और कारण यह है कक हि धा े िें उत्सुक है , िनकगे िें नहीर, वास्तिव िें , धिय के ज ि िें जीसस
पहले ऐतिहामसक यक्ि है । लेककन वह अ र भारि िें पैदा हु होिे िो ऐतिहामसक न होिे। भारि िें हि सदा धा े की खोज करिे है । िनकगे को हिने कोच खास िहत्व नहीर दया। लेककन पक्चि शावि की अपेक्षा ि नागर िें, िथ्यगे िें, क्षण भर रु िे अतधक उत्सुक है । इतिहास िो ना क है । भारि िें हि कहिे है कक हि राि और कृष्ण हर यु
िें होिे है । बहुि बार वे हो चुके है और आ े भी बहुि बार वे हगे े। इसमल उनके इतिहास को ढोने की कोच जरूरि नहीर है । वे कब पैदा हु इसका कोच िहत्व नहीर है । यह अप्रासरत क है । उनका अरिरिि केंि या है । वह धा ा या है । यह बाि अथयपाणय है । िो हिें इस बाि िें रस नहीर है । कक वे ऐतिहामसक थे या नहीर। कक उनके साथ या-या ि ना र ि ी। हिारा रस िो उनके प्राणगे के केंि िें है कक वहार या ि ा। जब िुि
कारि िें जािे हो िो िुि धा े की और जा रहे हो। जब िुि
कारि िें जािे हो िो िुि प्रकृति िें जा
रहे हो। जब िुि वास्तिव िें ही अकेले हो, दस ा रगे के बारे िें सोच भी नहीर रहे,िो पहली बार िुम्हें अपने चारगे और प्रकृति के ज ि का बोध होिा है , िुि उसके साथ जुड़ जािे हो। अभी िो िुि सिाज से जुड़े हु
हो। य द िुि
सिाज के बरधन से छा
जाग िो प्रकृति से जुड़ जाग े। जब वनाय होिी है —वनाय िो सदा से हो रही है , लेककन
िुि उसकी भाना नहीर सिझ सकिे हो। िुि उसे नहीर सुन सकिे, िुम्हारे मल से अतधक िुि केवल उसके जल के उपयो
के बारे िें सोच पािे हो। िो उपयो
सरवाद नहीर हो पािा। िुि वनाय की भाना को नहीर सिझ पािे, िुम्हारे मल लेककन कुछ सिय के मल ल े ी। वनाय आ
उसका कोच अथय नहीर है । अतधक िो हो जािा है , लेककन कोच
वनाय का कोच यक्ित्व नहीर है ।
य द िुि सिाज को छोड़ दो और अकेले हो जाग िो िुम्हें नच अनुभाति होने
ी िो िुि से
ुन ुना
ी, िब िुि उसके भावगे को सिझने ल ो े। ककसी दन वनाय बहुि स्त ु से िें हो ी। ककसी दन बहुि सुखद हो ी। ककसी दन प्रेि बरसा रही हो ी। ककसी दन पारा आकाश उदास
हो ा। ककसी दन नाच रहा हो ा। ककसी दन सायय ऐसे उ िा है जैसे लबना इछा के, जबरदस्तिी उ
रहा हो।
और ककसी दन सायय ऐसे उ िा है जैसे खेल रहा हो। िुि अपने चारगे और सभी भाव दशा र अनुभव करो े।
प्रकृति की अपनी भाना है, लेकक नवह िौन है और जब िक िुि िौन नहीर हो जािे, िुि उसे नहीर सिझ सकिे। लयबध सिा की पहली सिह सिाज से जाड़ी है । दस ा री प्रकृति के साथ, और िीसरी साथ। वह शुध स अक्स्तित्व है । कफर वक्ष ृ गर वनाय और िेध भी पीछे छा अक्स्तित्व िें भाव कक कोच िरर ें नहीर है । अक्स्तित्व सदा
हनत्ि सिह िाग या धिय के
जािे है । िब केवल अक्स्तित्व बचिा है ।
क सा रहिा है —सदा उत्सव िें लीन, उजाय से प्रस्तफु ि।
लेककन पहले सिाज से प्रकृति की और िुड़ना हो ा। कफर प्रकृति से अक्स्तित्व की और। जब िुि अक्स्तित्व से जुड़ जािे हो िो लबलकुल अकेले होिे हो। लेककन वह
कारि
भय के बचे के
कारि से मभन्न होिा है । बचा
अकेला होिा है , लेककन वास्तिव िें वह अकेला नहीर होिा, उसे िो ककसी और की खबर ही नहीर होिी। वह अरधकार से ढर का होिा है । इसमल होिी। उसका िो िुम्हारा
अकेला अनुभव करिा है । सारा सरसार उसके चारगे और होिा है । लेककन उसे खबर नहीर
कारि िो अज्ञान के कारण है । जब िुि चैिन्य होकर िौन होिे हो, अक्स्तित्व के साथ
क होिे हो,
कारि अरधकार से नहीर प्रकाश से तिरा होिा है ।
भय िें बचे के मल
सरसार नहीर होिा, यगेकक उसे उसकी खबर नहीर होिी। और िुम्हारे मल
यगेकक िुि सरसार के साथ
क हो जाग े। जब िुि
सरसार नहीर हो ा,
हनत्ि अक्स्तित्व िें प्रवेश करिे हो िो अकेले हो जािे
हो, यगेकक अहर कार सिाि हो जािा है । अहर कार सिाज वावारा दया
या है । जब िुि प्रकृति से जुड़िे हो िो भी
अहर कार थोड़ा-बहुि रह सकिा है। लेककन उिना नहीर क्जिना सिाज िें होिा है । जब िुि अकेले होिे हो िो अहर कार मि ने ल िा है । यगेकक वह सदा सरबरधगे से ही पैदा होिा है ।
इसे थोड़ा दवचार करो, हर यक्ि के साथ िुम्हारा अहर कार बदल जािा है । जब िुि अपने नौकर से बाि कर रहे हो िो भीिर अपने अहर कार को दे खो कक कैसे काि कर रहा है । य द अपने मित्र से बाि कर रहे हो िो भीिर
दे खो कक अहर कार कैसा है , जब अपनी प्रेमिका से बाि कर रहे हो िो दे खो कक अहर कार है भी या नहीर। और जब िुि
क िासाि बचे से बाि कर रहे हो िो भीिर झारको, िब अहर कार है भी या नहीर। यगेकक छो े बचे के
सािने अहर कार दखाना िाढ़िा हो ी। िुम्हें पिा है कक यह बाि िाढ़िा की हो जा
ी। छो े बचे के साथ खेलिे
हु िुि बचे ही बन जािे हो। बचा अहर कार की भाना नहीर जानिा। और बचे के सािने अहर कार दखाकर िुि लबलकुल िाढ़ ल ो े। िो जब िुि बचगे के साथ खेलिे हो, वे िुम्हें िुम्हारे बचपन िें लौ ा लािे है । जब िुि
क कुत्िे से बाि करिे
हो, खेलिे हो, िो सिाज ने जो अहर कार िुम्हें दया है वह दवदा हो जािा है । यगेकक कुत्िे के साथ अहर कार का प्रन ही नहीर उठिा।
लेककन अ र िुि बड़े सरुदर और कीििी कुत्िे के साथ
हल रहे हो और कोच िुम्हारे पास से सड़क पार कर
जािा है िो कुत्िा भी िुम्हारा अहर कार ज ा दे िा है । लेककन िुम्हारा अहर कार कुत्िे ने नहीर उस आदिी ने ज ाया है । िुि िनकर चलने ल िे हो, िुम्हें
वय िहसास होिा है । िुम्हारे पास इिना सुरदर कुत्िा है । और वह आदिी
चष्याय करिा दखाच पड़िा है । िो अहर कार है । परर िु जब िुि बन िें चले जािे हो िो अहर कार मि ने ल िा है । इसीमल
िो सभी धिों का जोर है कक चाहे थोड़े सिय के मल
ही सही, प्रकृति के ज ि िें चले जाग।
यह सात्र सरल है : ‘ककसी ऐसे स्तथान पर वास करो जो अरिहीन रूप से दवस्तिीणय हो।’ ककसी पहाड़ी पर चले जाग जहार से िुि अरिहीन दरा ी िक दे ख सको। य द िुि अरिहीन रूप से दे ख सको, िुम्हारी ढ़क्ष्
कहीर रूक नहीर, िो अहर कार मि
हो। अहर कार के मल
जािा है । अहर कार के मल
उिना ही सरल हो जािा है ।
सीिा चा ह । सीिा र क्जिनी सुतनक्चि
ककसी ऐसे स्तथान पर वास करो जो अरिहीन रूप से दवस्तिीणय हो, वक्ष ृ गे, पहागड़यगे, प्रालणयगे से र हि हो। िब िन के भारगे का अरि हो जािा है ।
िन बहुि सा्ि है । िुि क पहाड़ी पर हो जहार और कोच नहीर है । लेककन नीचे कहीर,िुम्हें कोच झोपड़ी दखाच दे जा िो िुि उस झोपड़ी से बािें करने ल गे ,े उससे सरबरध जोड़ लो े—सिाज आ या। िुि नहीर जानिे कक वहार कौन रहिा है । लेककन कोच रहिा है , और वही सीिा बन जािी है । िुि सोचने ल िे हो, वहार कोन रहिा है । रोज िुम्हारी नजरें उसे खोजने ल िी है । झगेपड़ी िनुष्यगे की प्रिीक बन जा
ी।
िो सात्र कहिा है : ‘प्रालणयगे से र हि हो।’ वक्ष ृ भी न हगे, यगेकक जो लो े अकेले होिे हो वे वक्ष ृ गे से बोलना शुरू कर दे िे है । उनसे मित्रिा कर लेिे है , बािचीि करने ल िे है । िुि उस यक्ि की क ठनाच को नहीर सिझ सकिे जो अकेला होने के मल
चला
या है
वह चाहिा है कक कोच उसके पास हो। िो वह वक्ष ृ गे को ही निस्तकार करना शुरू कर दे ा। और वक्ष ृ भी प्राणी है, य द िुि चिानदार हो िो वे भी जवाब दे ना शुरू कर दें े। वहार प्रति सरवेदन हो ा। िो िुि सिाज खड़ा कर सकिे हो।
िो इस सात्र का अथय यह हुआ कक ककसी स्तथान पर रहो और सचेि रहो कक कोच दोबारा सिाज न खड़ा कर लो। िुि क वक्ष ृ से भी प्रेि करना शुरू कर सकिे हो। िुम्हें ल सकिा है कक वक्ष ृ यासा है िो कुछ पानी ले आऊर, िुिने सरबरध बनाना शुरू कर दया। और सरबरध बनािे ही िुि अकेले नहीर रह जािे। इसीमल
इस बाि पर
जोर है कक ऐसे स्तथान पर चले जाग लेककन यह बाि याद रखो कक िुि कोच सरबरध नहीर बनाग े। सरबरध और सरबरधगे के सरसार को पीछे छोड़ जाग और अकेले ही वहार जाग।
शुरू-शुरू िें िो यह बहुि क ठन हो ा। यगेकक िुम्हारा िन सिाज वावारा तनमियि है । िुि सिाज को िो छोड़ सकिे हो लेककन िन को कहार छोड़ो ।े िन छाया की िरह िुम्हारा पीछा करे ा। िन िुम्हें डरा ा, िन िुम्हें सिा
ा। िुम्हारे सपनगे िें ऐसे चेहरे आ ँ े, जो िुम्हें खीरचने का प्रयास करें े। िुि यान करने का प्रयास
करो े। लेककन दवचार बरद नहीर हगे े। िुि अपने िर की, अपनी पत्नी की अपने बचगे की सोचने ल गे े।
यह िानवीय है । और ऐसा केवल िुम्हें ही नहीर होिा, ऐसा बध स ु और िहावीर को भी हुआ। ऐसा हर ककसी को हुआ है । कारि के छ: लरबे वनों िें बध स ु भी यशोधरा के बारे िें सोचें े ही। शुरू-शुरू िें जब िन उनका पीछा कर
रहा था, िब वह य द ककसी वक्ष ृ के नीचे यान करने बैठिे हगे े िो यशोधरा पीछा करिी हो ी। उस स्तत्री से वह प्रेि करिे थे, और उन्हें जरूर ग्लातन हुच हो ी कक लबना कुछ बिा
उसे वे पीछे छोड़ आ
थे।
इसका कही उल्लेख नहीर है , कक कभी यशोधरा के बारे िें उन्होने सोचा, लेककन िैं कहिा हार,कक उसके बारे िें उन्हगेने तनक्चि ही सोचा हो ा। यह िो लबलकुल िानवीय, लबलकुल स्तवाभादवक बाि है । यह सोचना बहुि अिानवीय हो या कक यशोधरा की याद उन्हें कफर कभी नहीर आच, और यह बुध स के मल उतचि भी न हो ा। धीरे -धीरे , बड़े सरिनय के बाद ही वह िन को सिाि कर पा
हगे े।
लेककन िन चलिा ही रहिा है , यगेकक िन और कुछ नहीर सिाज ही है । आरिररक सिाज है । सिाज जो िि ु िें प्रवेश कर
या है , िुम्हारा िन है । िुि बाह्ि सिाज, बाह्ि वास्तिदवकिा से भा
सकिे हो, लेककन आरिररक
सिाज िुम्हारा पीछा करे ा।
िो कच बार बुध स यशोधरा से बाि कक
हगे ,े अपने दपिा से बाि कक
हगे े, अपने बचे से बाि कक
छोड़ आये थे। उस बचे का चेहरा उनका पीछा करिा हो ा जब वे िर छोड़कर आ ही था। क्जस राि उन्हगेने िर छोड़ा, वे उस बचे को दे खने के मल
हगे े पीछे
थे। िो वह उनके िन िें
ही यशोधरा के किरे िें
थे। बचा केवल
क ही दन का था। यशोधरा सो रही थी और बचा उसकी छािी से ल ा हुआ था, उन्हगेने बचे की और दे खा, वह बचे को ोद िें लेना चाहिे थे, यगेकक यह अरतिि अवसर था। अभी िक उस बचे को उन्हगेने छुआ भी
नहीर था। और हो सकिा था, कक वह कभी वापस न लौ े और कभी उससे मिलना न हो। वह सरसार छोड़ रहे थे। िो वह बचे को छाना और चािना चाहिे थे। लेककन कफर डर जा
, यगे कक य द उसे
ोद िें लेिे िो यशोधरा
सकिी थी। और िब उनके मल
दे । उनके पास उनके मल
जाना बहुि क ठन हो जािा। यगेकक पिा नहीर वह रोना-तचल्लाना शुरू कर क िानवीय ्दय था। यह बहुि सुरदर है कक उन्हगेने यह बाि सोची कक य द वह रोने ल ी िो
जाना क ठन हो जा
यशोधरा को रोिे हु आ ।
ा। िब जो भी उनके िन िें था कक सरसार यथय है । सब सिाि हो जािा। वह
न दे ख पािे, वह उस स्तत्री को प्रेि करिे थे। िो यह लबना कोच आवाज कक
किरे से बाहर
अब यह यक्ि सरलिा से यशोधरा और बचे को नहीर छोड़ सका था, कोच भी न छोड़ पािा। िो जब वह मभक्षा िार िे थे िो उनके िन िें अपने िहल और साम्राज्य का दवचार उठिा हो ा। वह अपनी िजी से मभखारी हु थे। अिीि जोर िारिा हो ा, चो करिा हो ा, वापस आ जाग। कच बार वह सोचिे हगे े। िैंने भाल की है । ऐसा होना तनक्चि ही है । कहीर इस बाि का उल्लेख नहीर है । और कच बार िैं सोचिा हु कक कक उन छ: वनों िें बुध स के िन को या हुआ। उनके िन िें या चलिा रहा।
क डायरी बनाच जा
िुि कहीर भी जाग, िन छाया की िरह पीछा करे ा। िो यह सरल नहीर हो ा, यह ककसी के मल अपने को सचेि रखने के मल
सरल नहीर रहा।
बड़ा सरिनय करना पड़े ा। बार-बार सरिनय करना पड़े ा। िाकक िन के मशकार न हो
जाग। और िन अरि िक पीछा करिा है , जब िक िुि हार ही न जाग। िुम्हारे मल
कोच उपाय नहीर बचा।
कुछ भी कर न सको। िन िुम्हारा पीछा करिा ही रहे ा। िन रोज प्रयास करे ा, कल्पना र और स्तवन खड़े करे ा। सब िरह के लोभ और ्ि पैदा करे ा।
सब सरिगे का कथागर िें उल्लेख है कक शैिान उन्हें भर िाने के मल
आया। कोच और नहीर आिा। केवल िुम्हारा
िन ही आिा है । िुम्हारा िन ही शैिान है । और कोच नहीर। वह रोज प्रयास करे ा। वह िि ु से कहे ा, ‘िैं िुम्हें
सारा सरसार दे दँ ा ा। िुि वापस आ जाग।’िुम्हें तनराश करे ा। ‘िुि िाखय हो, सारा सरसार िजा ले रहा है । और
िुि यहार इस पहाड़ी पर आ
। हो पा ल हो िुि। यह धिय-विय सब बेकार की बािें है । वापस लौ
आग।
दे खो, सारा सरसार पा ल नहीर है । जो िजा कर रहा है ।‘ और िुम्हारा िन उन लो गे के सुरदर-सुरदर तचत्र बना
ा
जा िजा, कर रहे है । और सारे सरसार पहलेसे ही अतधक आकनयक ल ने ल े ा। जो भी िुि पीछे छोड़ आ
हो
िुम्हें खीरचे ा।
यही िाल सरिनय है । यह सरिनय इसमल
है कक िुम्हारा िन आदिगे का और पुनरावतृ ि का यरत्र है। पहाड़ी पर
िुम्हारे िन को नकय जैसा ल े ा। कुछ भी अछा नहीर ल े ा। सब नकारात्िकिा पैदा कर दे ा। िुि यहार कर या रहे हो। पा ल हो िुम्हारे मल
और सुरदर हो उठे ा और क्जस स्तथान पर िुि हो
लि ही ल े ा। िन िुम्हारे चारगे और हो? क्जस सरसार को िुि छोड़ आ
हो वह
क दि बेकार ल ने ल े ा।
लेककन य द िुि ढ़ढ़ रहो और सचेि रहो कक िन यह सब कर रहा है । िन यह सब करे ा। और य द िुि िन के साथ िादात्म्य न बनाग िो
क क्षण आिा है कक िन िुम्हें छोड़ दे ा। और उसके साथ ही सारे भर खो
जािे है । जब िन िुम्हें छोड़ दे िा है िुि बोझ से िुि हो जािे हो। यगेकक िन ही तचरिा कोच दवचार कोच सरिाप नहीर रहिा, िुि आक्स्तित्व के हो। िुम्हारे भीिर
क
हन िौन प्रस्तफु ि होिा हे ।
किात्र बोझ है । िब कोच
भय िें प्रवेश कर जािे हो। तनमशरचि होकर िि ु बहिे
यह सात्र कहिा है : ‘िब िन के भारगे का अरि हो जािा है ।’ उस तनजयन िें , उस
कारि िें
िुम्हें पिा हो या न पिा हो।
क बाि और स्तिरण रखने जैसी है । भीड़ िुि पर
क
हरा दबाव डालिी है । चाहे
अब पशुगर पर कायय करिे हु वैज्ञातनकगे ने क बड़े आधारभाि तनयि की खोज की है । वे कहिे है कक हर पशु का अपना क तनक्चि क्षेत्र होिा है । य द िुि उस क्षेत्र िें प्रवेश करो िो वह पशु िनाव से भर जा ा। और
िुि पर आक्रिण करे ा। हर पशु का अपना-अपना क्षेत्र होिा है । वह ककसी और को उसिें प्रवेश नहीर करने नहीर दे िा। यगेकक जब कोच दस ा रा उसके क्षेत्र िें प्रवेश करिा है, वह बेचैनी िहसास करने ल िा है । वक्ष ृ गे पर िुि कच पक्षक्षयगे को
ीि
ािे हु सुनिे हो। िुि नहीर जानिे वे या कर रहे है । वनों के अयन के बाद वैज्ञातनक अब कहिे है कक जब वक्ष ृ पर बैठकर कोच पक्षी ीि ािा है , िो वह कच चीजें कर रहा है । क िो वह अपनी िादा को बुला रहा है । दस ा रे , वह बाकी सब नर प्रतियोत यगे को सावधान कर रहा है कक यह िेरा
क्षेत्र है । इसिें प्रवेश िि करना। और य द कफर भी कोच उस क्षेत्र िें प्रवेश कर जािा है िो लड़ाच शुरू हो जािी है । और िादा आराि से बैठकर दे खिी रहिी है कक कौन जीि रहा है । यगेकक जो भ उस क्षेत्र को जीि ले ा, वहीर उसे पा ले ा। वह प्रिीक्षा करिी है । जो जीि जा
ा वह वहार ठहरे ा और जा हार जाये ा वह चला
जाये ा। हर पशु ककसी न ककसी िरह से अपना क्षेत्र बना लेिा है —आवाज से, ाने से, शरीर की
ध र से, उसे क्षेत्र िें कोच
और प्रतियो ी प्रवेश नहीर कर सकिा।
िुि ने कुत्िगे को हर ज ह पेशाब करिे दे खा हो ा। वैज्ञातनक कहिे है कक कुत्िा पेशाब करके अपना क्षेत्र बना रहा है । कुत्िा
क खरभे पर पेशाब करे ा। दस ा रे खरभे पर पेशाब करे ा। वह ककसी
करिा। यो? जब
क ज ह पर पेशाब नहीर
क ज ह पर कर सकिे हो िो बेकार िें यगे िािना? लेककन वह अपना क्षेत्र बना रहा है ।
उसके पेशाब िें
क
रध होिी है क्जससे उसका क्षेत्र तनमियि हो जािा है । अब उसिे कोच प्रवेश न करे । यह
खिरनाक है । अपने क्षेत्र िें वह अकेला िामलक है । इस सरबरध िें कच अययन चल रहे है । उन्हगेने कच पशुगर को पारी की
क ही दपरजरे िें रखकर दे खा, जहार सब जरूरिें
च—और जर लगे िें वे जैसे अपनी जरूरिें पारी कर सकि थे, उससे बेहिर ढर
से पारी की
च—लेककन
वे पा ल हो जािे है । यगेकक उनके पास अपना क्षेत्र नहीर होिा। जब हिेशा ही कोच न कोच पास होिा है िो वे िनाव से भर जािे हे । भयभीि लड़ने को िैयार हो जािे है । हर सिय लड़ने की ित्परिा उन्हें इिना िनाव से भर दे िी है कक या िो उनकी ्दय
ति रूक जािी है या वे पा ल हो जािे है । कच बार िो पशु आत्िहत्या भी
कर लेिे है । यगेकक उनके िन पर दबाब बहुि बढ़ जािा है । और कच िरह की दवकृतियार उनिें पैदा हो जािी है । जो जर ल िें रहने पर नहीर होिी। जर ल िे बरदर लबलकुल मभन्न होिे है । जब वे तचगड़यािर के दपरजरे िें बरद होिे हो िो बड़ा असािान्य यवहार करने ल िे है ।
पहले ऐसा सोचा जािा था कक बरधन के कारण यह सिस्तया पैदा हो रही है । पर अब पिा ल ा है कक इसका कारण बरधन नहीर है । य द िुि दपरजरे िें उन्हें उिनी ज ह दे दो क्जिनी उन्हें चा ह
िो वे प्रसन्न रहें े। कफर
कोच सिस्तया न हो ी। लेककन खुली ज ह उनकी आरिररक जरूरि है । जब कोच उसिें प्रवेश करिा है िो उसके िन पर दबाव पड़ने ल िा है । उनका िन िनाव से भर जािा है । न वे ठीक से सो सेिे है , न खा सकिे है , न प्रेि कर सकिे है । इन सब अययनगे के कारण अब वैज्ञातनक कहिे है कक जनसरया िें अत्यतधक वदृ ध स के कारण िनुष्य दवक्षक्षि
होिा जा रहा है । दबाव बहुि अतधक हो या है । िुि कहीर भी अकेले नहीर हो पा रहे । रे न िें , बस िें , दतरिर िें , हर ज ह भीड़ ही भीड़ है । िनुष्य को भी खुली ज ह की जरूरि है , अकेले होने की जरूरि है । लेककन कहीर कोच ज ह ही नहीर है । िुि कभी भी अकेले नहीर हो। जब िुि िर आिे हो िो वहार पत्नी है, बचे है , स े-सरबरधी है ।
और अभी भी वे सिझिे है की अतितथ भ वान का रूप है । पहले ही इिने दबाव के कारण िुि दवक्षक्षि हो रहे हो। िुि पत्नी को यह नहीर कह सकिे, ‘िुझे अकेला छोड़ दो।’ वह से िुम्हारी प्रिीक्षा कर रही है । िन को दवश्रारि होने के मल
ुस्तसे से कहे ी, या ििलब है ? वह सारे दन
अवकाश चा ह ।
यह सात्र बहुि ही सुरदर है, और वैज्ञातनक भी। ‘िब िन के भारगे का अरि हो जािा है ।’ जब िुि अकेले ककसी तनजयन पहाड़ी पर चले जािे हो, िो िुम्हारे चारगे और भीड़ का, दस ा रगे का भार िुि नहीर होिा। िुम्हें अतधक
हरी नीरद आ
क खुलापन अनरि दवस्तिार होिा है ।
ी। सुबह िुम्हारे जा ने िें और ही बाि
हो ी। िुि िुि अनुभव करो े। भीिर से कोच दबाव नहीर हो ा। िुम्हें ल े ा जैसे िुि ककसी कारा हृ से बाहर आ
, ककन्हीर जरजीरगे से िुि हो
।
यह अछा है । लेककन हि भीड़ के इिने आदी हो
है कक कुछ ही दन, िीन या चार दन िुम्हें अछा
ल े ा। कफर भीड़ िें वापस जाने का िन होने ल े ा। हर छु यगे िें िुि कहीर जािे हो। और िीन दन बाद लौ ने का िन होने ल िा है । आदि के कारण िुि अपने को ही बेकार ल ने ल िे हो। अकेले िुम्हें बेकार ल ािा हे । िुि कुछ कर नहीर सकिे। और य द िुि कुछ करिे भी हो िो ककसी को पिा नहीर चले ा कोच उसकी सराहना नहीर करे ा। अकेले िुि कुछ भी नहीर कर सकिे, यगेकक जीवन भर िुि दस ा रगे के मल करिे रहे हो। िुि बेकार अनुभव करिे हो।
ही कुछ
याद रखो, य द िुि कभी भी इस
काकी पा लपन का प्रयास करो िो उपयोत िा का दवचार छोड़ दो। अनुपयो ी
हो जाग। िभी िुि अकेले हो सकिे हो। यगेकक असल िें उपयोत िा िो सिाज वावारा िुम्हारे िन पर थोपी च है । सिाज कहिा है : ‘उपयो ी बनो।’ अनुपयो ी नहीर। सिाज चाहिा है कक िुि
इकाच, क कुशल और उपयो ी वस्तिु बनो। सिाज नहीर चाहिा कक िुि बस
क तनपण ु आतथयक
क फाल बनो। नहीर, िुि अ र
क
फाल भी बनिे हो िो िुम्हें लबकने योग्य होना चा ह । सरसार िुम्हें बाजार िें रखना चाहिा है । िाकक कुछ उपयो
हो सके। केवल बाजार िें ही िुि उपयो ी हो सकिे हो। अन्यथा नहीर, सिाज मसखािा है कक उपयोत िा
ही जीवन का ल्य है । जीवन का उद्देय है । यह यथय की बाि हे ।
िैं यह नहीर कह रहा हार कक िुि अनुपयो ी हो जाग। िैं यह कह रहा हार कक उपयो ी होना ल्य नहीर है। िुम्हें सिाज िें रहना है , उसके मल उपयो ी रहना है , लेककन साथ ही कभी-कभी अनुपयो ी होने के मल भी िैयार रहना है यह क्षििा बचाकर रखनी चा ह , वरना िुि यक्ि नहीर वस्तिु बन जािे हो। जब िुि िें जाग े िो यह सिस्तया आ
कारि िें तनजयन
ी, िुि बेकार अनुभव करो े।
िैं कच लो गे के साथ प्रयो िीन िहीने के मल
करिा रहा हार। कभी-कभी िैं उन्हें सुझाव दे िा हार कक वे िीन सिाह के मल या कारि और िौन िें चले जा । और िैं उन्हें कहिा हार कक साि दन के बाद वे वापस
लौ ना चाहें े और उनका िन वहार न रहने के सभी कारण खोजे ा िाकक वे वापस आ सके। िैं उन्हें कहिा हार कक वे उन िकों को न सुनें और वह ढ़ढ़ सरकल्प कर लें कक क्जिने दनो का तनणयय मलया है उससे पहले वापस नहीर आ ँ े।
वे िुझसे कहिे है कक हि अपनी िजी से जा रहे है िो भला वापस यगे आ ँ े। िैं उनसे कहिा हार कक वे स्तवयर को नहीर जानिे। िीन से साि दन के भीिर-भीिर यह िजी सिाि हो जा ी। उसके बाद वापस आने की इछा हो ी। यगेकक सिाज िुम्हारा नशा बन
या है । शारि क्षणगे िें िुि अकेले होने की बाि सोच सकिे हो,
लेककन जब िुि अकेले होग े िो सोचने ल ो ,े िैं या कर रहा हार, यह सब िो यथय है । िो िैं उनसे कहिा हार कक अनुपयो ी हो जाग और उपयोत िा की भाना भाल जाग। कभी-कभी ऐसा होिा है कक वे िीन सिाह या िीन िहीने िक वहार रह जािे है िो वे आकर िुझसे कहिे है ,
‘बहुि सरुदर अनुभव हुआ। िैं बहुि खुश था, लेककन यह दवचार सिि िर करिा रहा कक इसका उपयो या है? िैं सुखी था, शारि था, आनर दि था, लेककन भीिर ही भीिर यह दवचार भी चल रहा था कक इसका उपयो या है ? िैं कर या रहा हार?’ स्तिरण रखो, उपयो
सिाज के मल
है । सिाज िुम्हारा उपयो
हो। यह पारस्तपररक सरबरध है । लेककन जीवन ककसी उपयो है । यह िो
करिा है । और िुि सिाज का उपयो
के मल
नहीर है । जीवन तनष्प्रयोजन है , उद्देय दवहीन
क लीला है । उत्सव है । िो जब इस दवतध को करने के मल
अनुपयो ी होने की िैयारी रखो उसका आनरद लो, उससे दुःु खी िि होग। िुि सोच भी नहीर सकिे कक िन कैसे-कैसे िकय जु ा
करिे
िुि
कारि िें जाग िो शुरू से ही
ा। िन कहे ा, ‘सरसार इिनी सिस्तयागर से तिरा है । और
िुि यहार िौन बैठे हो। दे खो दवयिनाि िें या हो रहा है , और पाककस्तिान िें, चीन िें या हो रहा है । िुम्हारा दे श िरा जा रहा है । न भोजन है , न पानी है , यहार बैठे यान करके िुि या कर रहे हो। इसका या उपयो या इससे दे श िें सिाजवाद आ जा
ा।’
है ।
िन सरुदर िकय जु ा कक िुि सिय नष्
ा, िन बहुि िाककयक है । िन शैिान है; िुम्हें फुसलाने का, दववास दलाने का प्रयास करे ा कर रहे हो। लेककन िन की िि सुनो, शुरू से ही िैयार रहो कक िैं सिय नष् करूर ा। िैं
िो बस यहार होने का आनरद लँ ा ा।
और सरसार की तचरिा न लो, सरसार चलिा रहिा है । यहार सदा ही सिस्तया र रहें ी। यह सरसार का ढर नहीर कर सकिे हो। इसमल
कोच िहान दवव प्रवियक क्रारतिकारी या िसीह बनने का प्रयास िि करो। िुि बस
स्तवयर ही बनो और ककसी पत्थर, या नदी, या वक्ष ृ की िरह अपने पत्थर का या उपयो है । काच भी उपयो
कारि िें आनरद लो। अनुपयो ी। अब
नहीर। उसे कोच तचरिा नहीर वह सदा यान िग्न है ।
क बार िुि इसकी
ही चा ह । यगेकक
क
है । जो वनाय िें , सुयय की रोशनी िें, िारगे की छारव िें पडा है । इस पत्थर का या प्रयोजन
जब िक िुि सच िें अनुपयो ी होने को िैयार न हो जाग, िि ु अकेले नहीर हो सकिे, िुि सकिे। और
है , िुि कुछ
हराच को जान लो िो िुि वापस सिाज िें आ सकिे हो। कफर िुम्हें लौ ना
काकीपन जीवन का ढर
पररप्रे्य बदलने के मल
मलया
कारि िें नहीर रह
या
क
नहीर है। बस
हन दवश्राि हे ।
क प्रमशक्षण है। यह जीवन जीने का ढर
नहीर बक्ल्क
कारि िो बस सिाज से ह ने के मल
है , िाकक िुि
स्तवयर को दे ख सको कक िुि कौन हो। िो ऐसा िि सोचो कक यह जीवन शैली है । कच लो गे ने इसे जीने का ढर
ही बना मलया है । वे
है । उन्हगेने औनतध को भोजन बना मलया है । यह जीवन का ढर
क औनतध है । कुछ सिय के मल
थोड़ा अल
ह
जाग, िाकक
नहीर, बस
लिी कर रहे
क दरा ी से दे ख सको कक िुि या हो, और सिाज िुम्हारे साथ या कर रहा है ।
सिाज से बाहर होकर िुि बेहिर ढर उसिें हु , िुि पवयि मशखर पर बैठे पक्षपाि र हि िुि दे ख सकिे हो।
से दे ख सकिे हो। िुि िष् ा हो सकिे हो। सिाज से लबना जुड़े लबना
क िष् ा
क साक्षी हो सकिे हो। िुि इिनी दरा हो—लबना दवचमलि हु ,
िो यह बाि सिझ लो कक यह जीवन का ढर
नहीर है । िैं यह नहीर कह रहा हार कक िुि सरसार छोड़ दो और हिालय िें कहीर साधु बनकर बैठ जाग। नहीर। लेककन कभी-कभी वहार जाग, दवश्राि करो, पत्थर की िरह
तनष्प्रयोजन, अकेले हो जाग। सरसार से स्तविरत्र, िुि होकर प्रकृति के हस्तसे बन जाग। िुम्हारा कायाकल्प हो जा
ा। िुि पन ु रुज्जीदवि हो जाग े। कफर सिाज िें और भीड़ िें वापस लौ
आग और उस सौंदयय, उस िौन
को अपने साथ लाने का प्रयास करो, जो िुम्हें सरबरध िि िोड़ो। भीड़ िें अकेले रहो।
कारि िें ि ि हुआ था। अब उसे अपने साथ ले लाग। उससे हरे जाग। लेककन उसका हस्तसा िि बनो। भीड़ को अपने बाहर ही रहने दो, िुि
और जब िुि भीड़ िें भी अकेले होने िें सक्षि हो जािे हो, िब िुि अपने वास्तिदवक
कारि को उपलध हो
जािे हो। पहाड़ पर अकेले होना िो सरल है , कोच बाधा नहीर होिी। सारी प्रकृति िुम्हारी िदद करिी है । बाजार िें वापस आकर दक ु ान िें, दतरिर िें , िर िें रहकर अकेले होना, यह ककया, वह िात्र पहाड़ पर होने का सरयो
क उपलक्ध है । कफर िुिने उसे उपलध
भर न रहा। अब चेिना का
ुणधिय ही बदल
या है।
िो भीड़ िें अकेले हो रहो। भीड़ िो बाहर रहे ी ही, उसे भीिर िि आने दो। जो भी िुिने उपलध ककया है उसे बचाग। उसकी रक्षा करो। उसे डारवाडोल िि होने दो। और जब भी िुम्हें ल े कक यह अनुभाति थोड़ी क्षीण हो
रही है । अब िुि चाक रहे हो। कक सिाज ने उसे दवचमलि कर दया है । िो दोबारा चले जाग। उस अनुभव को नया करने के मल , जीवरि करने के मल
सिाज से बाहर हो जाग।
कफर
क क्षण आ
कर पा
ा कक यह वसरि सदा िाजा रहे ा। और कोच भी उसे प्रददा नि नहीर कर पाये ा। सरददा नि नहीर
ा। कफर कहीर जाने की जरूरि नहीर है ।
िो यह बा
क दवतध है । जीने के मल
रहने चले जाग। जीने की शैली नहीर है । न िो साधु बन जाग। न
सावी बन जाग। न ही ककसी िठ िें सदा-सदा के मल रहने चले
रहने चले जाग। यगेकक िुि सदा-सदा के मल
िठ िें
ये िो िुि कभी नहीर जान पाग े कक जो िुम्हें मिला हुआ है, वह िुम्हारी उपलक्ध है या िठ ने िुम्हें दया है । हो सकिा है वह उपलक्ध वास्तिदवक न हो, सारयोत क हो। वास्तिदवक को कसौ ी पर सकना होिा है । वास्तिदवक अनुभव को सिाज की कसौ ी पर परखना पड़िा है 1 और जब यह अनुभव कभी न ा े , िुि उस पर भरोसा कर सको। कुछ भी उसे डारवाडोल न कर सके, िो यह सचा है , प्रािालणक है । ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-69
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—97 (ओशो) अंतररक को अपना ही आनंद-शरीर िानो।
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—97 (गशो)
यह दस ा री दवतध पहली दवतध से ही सरबरतधि है । आकाश को अपना ही आनरद-शरीर सिझो।
क पहाड़ी पर
बैठकर, जब िुम्हारे चारगे और अनरि आकाश हो, िुि इसे कर सकिे हो। अनुभव करो कक सिस्ति आकाश िुम्हारे आनरद-शरीर से भर
या है ।
साि शरीर होिे है । आनरद-शरीर िुम्हारी आत्िा के चारगे और है। इसमल आनर दि अनुभव करिे हो। यगेकक िुि आनरद-शरीर के तनक
िो जैसे-जैसे िुि भीिर जािे हो िुि
पहुरच रहे हो। आनरद की पिय पर पहारच रहे हो। आनरद-शरीर िुम्हारी आत्िा के चारगे और है । भीिर से बाहर की िरफ जािे हु यह पहला और बाहर से भीिर
की और जािे हु यह अरतिि शरीर है । िुम्हारी िाल सत्िा, िुम्हारी आत्िा के चारगे और आनरद की इसे आनरद शरीर कहिे है ।
क पिय है ,
पवयि मशखर पर बैठे हु अनरि आकाश को दे खो। अनुभव करो कक सारा आकाश, सारा अरिररक िुम्हारे आनरदशरीर से भर रहा है । अनुभव करो कक िुम्हारा शरीर आनरद से भर या है । अनुभव करो कक िुम्हारा आनरद शरीर फैल
या है और पारा आकाश उसिे सिा
या है ।
लेककन यह िुि कैसे िहसास करो े? िुम्हें िो पिा ही नहीर है कक आनरद या है िो िुि उसकी कल्पना कैसे करो ?े यह बेहिर हो ा कक िुि पहले यह अनुभव करो कक पारा आकाश िौन से भर
या है । आनरद से नहीर।
आकाश को िौन से भरा हुआ अनुभव करो। और प्रकृति इसिें सहयो
दे ी। यगेकक प्रकृति िें वतनयार भी िौन ही होिी है । शहरगे िें जो िौन भी शोर से
भरा होिा है । प्राकृतिक वतनयार िौन होिी है । यगेकक वे दवन नहीर डालिी, वे लयबध स होिी है। िो ऐसा िि
सोचो कक िौन अतनवायय रूप से वतन का अभाव है । नहीर, क सर ीििय वतन िौन हो सकिी है । यगेकक वह इिनी लयबध स है कक वह िुम्हें दवचमलि नहीर करिी बक्ल्क वह िुम्हारे िौन को
हरािी है ।
िो ज िुि प्रकृति िें जािे हो िो बहिी हुच हवा के झगेके झरने, नदी या और भी जो वतनयार है वे लयबध स होिी है , वे क पाणय का तनिायण करिी है , वे बाधा नहीर डालिी है । उन्हें सुनने से िुम्हारा िौन और हरा हो सकिा है । िो पहले िहसास करो कक सारा आकाश िौन से भर
या है ।
हरे से
होिा जा रहा है । कक आकाश ने िौन बनकर िुम्हें िेर मलया है। और जब िुम्हें ल े कक आकाश िौन से भर जैसे िौन
हरा
हरे अनुभव करो कक आकाश और शारि
या है । केवल िभी आनरद से भरने का प्रयास करना चा ह । जैसे -
ा, िुम्हें आनरद की पहल झलक मिले ी। जैसे जब िनाव बढ़िा है िो िुम्हें दुःु ख की पहली
झलक मिलिी है । ऐसे ही जब िौन
हरा
ा िो िुि अतधक शारि, दवश्रारि और आनर दि अनुभव करो े। और
जब वह झलक मिलिी है िो िुि कल्पना कर सकिे हो कक अब पारा आकाश आनरद से भरा हुआ है । ‘अरिररक्ष को अपना ही आनरद-शरीर िानो।’ सारा आकाश िुम्हारा आनरद-शरीर बन जािा है । िुि इसे अल
से भी कर सकिे हो। इसे पहली दवतध के जोड़ने की जरूरि नहीर है । लेककन पररक्स्तथति वही
जरूरी है—अनरि दवस्तिार, िौन, आस-पास ककसी िनुष्य का न होना। आस-पास ककसी िनुष्य के न होने पर इिना जोर यो? यगेकक जैसे ही िुि ककसी िनुष्य को दे खो ें िुि पुराने ढर
से प्रतिकक्रया करने ल ो े। िुि लबना प्रतिकक्रया कक
ककसी िनुष्य को नहीर दे ख सकिे। ित्क्षण िुम्हें कुछ
नक कुछ होने ल े ा। यह िुम्हें िुम्हारे पुराने ढरे पर लौ ा ला आ अर
ा। य द िुम्हें आस-पास कोच िनुष्य नजर न
िो िुि भाल जािे हो कक िुि िनुष्य हो। और यह भाल जाना अछा ही है । कक िुि िनुष्य हो। सिाज के
हो। और केवल इिना स्तिरण रखना अछा है कक िुि बस हो। चाहे यह न भी पिा हो कक िुि या हो।
िुि ककसी यक्ि से, ककसी सिाज से, ककसी दल से, ककसी धिय से जुड़े हु हो ा।
नहीर हो। यह न जुड़ना सहयो ी
िो यह अछा हो ा कक िुि अकेले कहीर चले जाग। और इस दवतध को करो। अकेले इस दवतध को करना
सहयो ी हो ा। लेककन ककसी ऐसी चीज से शुरू करो जो िुि अनुभव कर सकिे हो। िैंने लो गे को ऐसी दवतध करिे हु दे खा है क्जनका वे अनुभव ही नहीर कर सकिे। य द िुि अनुभव की न कर सको, य द भी अनभ ु व न हो, िो सारी बाि ही झाठ हो जािी है । क मित्र िेरे पास आ
क झलक का
और कहने ल े, ‘िैं इस बाि की साधना कर रहा हार कक परिात्िा सवययापी है ।’
िो िैंने उनसे पछ ा ा, ‘साधना कर कैसे सकिे हो? िुि कल्पना या करिे हो? या िुम्हें परिात्िा का कोच स्तवाद, कोच अनुभव है । यगेकक केवल िभी उसकी कल्पना कर पान सरभव हो ा। वरना िो िुि बस सोचिे रहो े कक कल्पना कर रहे हो और कुछ भी नहीर हो ा।’
िो िुि कोच भी दवतध करो, इस बाि को स्तिरण रखो कक पहले िुम्हें उसी से शुरू करना चा ह
क्जससे िुि
पररतचि हो; हो सकिा है कक िुम्हारा उससे पारा पररचय न हो। परर िु थोड़ी सी झलक जरूर हो ी। केवल िभी िुि
क- क कदि बढ़ सकिे हो। लेककन लबलकुल अनजानी चीज पर िि काद पड़ो। यगेकक िब न िो िुि
उसको अनुभव कर पाग े, न उसकी कल्पना कर पाग े। इस मल
बहुि से ुरूगर ने, दवशेनकर बुध स ने , परिात्िा शद को ही छोड़ दया। बुध स ने कहा, ‘उसके साथ िुि साधना शुरू नहीर कर सकिे। वह िो पररणाि है और पररणाि को िुि शुरू िें नहीर ला सकिे। िो आरर भ से ही शुरू करो, उन्हगेने कहा, ‘पररणाि को भाल जाग, पररणाि स्तवयर ही आ जा
ा।’ और अपने मशष्यगे को उन्हगेने कहा,
‘परिात्िा के बारे िें िि सोचो, करूणा के बारे िें सोचो,प्रेि के बारे िें सोचो।’ िो वे यह नहीर कहिे कक िुि परिात्िा को हर ज ह दे खने की कोमशश करो, ‘िुि िो बस सबके प्रति करूणा से
भर जाग—वक्ष ृ गे के प्रति, िनुष्य के प्रति, पशुगर के प्रति। बस करूणा को अनुभव करो। सहानुभाति से भर जाग। प्रेि को जन्ि दो। यगेकक चाहे थोड़ा सा सही, कफर भी प्रेि को िुि जानिे हो। हर ककसी के जीवन िें प्रेि जैसा कुछ होिा है । िुिने ककसी से चाहे प्रेि न ककया हो। पर िुि से िो ककसी ने प्रेि ककया हो ा। कि से कि िुम्हारी िार ने िो ककया ही हो ा। उसकी आरखगे िें िुिने पाया हो ा कक वह िुम्हें प्रेि करिी है।’ बुध स कहिे है , ‘अक्स्तित्व के प्रति िाित्ृ व से भर जाग और करूणा से भर
या है । कफर सब कुछ अपने आप हो जा
हन करूण अनुभव करो। अनुभव करो कक पारा ज ि
ा।’
िो इसे आधारभाि तनयि की भारति स्तिरण रखो: ‘सदा ऐसी ही चीज से शुरू करो क्जसे िुि िहसास कर सकिे हो। यगेकक उसके िायि से ही अज्ञाि प्रवेश कर सकिा है ।’ ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-69
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—98 (ओशो)
ककसी सरल िुद्रा िें दोनों कांखों के िध्य–क्षेत्र (िक्षस्थल) िें िीरे -िीरे शांतत व्याप्त होने दो।
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—98 (गशो)
यह बड़ी सरल दवतध है । परर िु चित्काररक ढर
से कायय करिी है। इसे करके दे खो। और कोच भी कर सकिा है ।
इसिे कोच खिरा नहीर है । पहली बाि िो यह है कक ककसी भी आरािदे ह िुिा िें बैठ जाग, जो भी िुिा िुम्हारे मल
आसान हो। ककसी दवशेन िुिा या आसन िें बैठने की कोमशश िि करो। बुध स
वह उनके मल
आसान है । वह िुम्हारे मल
करो, लेककन शुरू-शुरू िें यक िुम्हारे मल
भी आसान बन सकिी है । अ र कुछ सिय िुि उसका अभ्यास
आसान न हो ी। पर इसका अभ्यास करने की कोच जरूरि नहीर है ।
ककसी भी ऐसी िुिा से शुरू करो जो अभी िुम्हारे मल क कुसी पर बैठ सकिे हो। बस
होना चा ह ।
क दवशेन िुिा िें बैठिे है ।
आसान हो। िुिा के मल
सरिनय िि करो। िुि आराि से
क ही बाि का यान रखना है कक िुम्हारा शरीर
क दवश्रारि अवस्तथा िें
िो बस अपनी आरखें बरद कर लो और सारे शरीर को अनुभव करो। पैरगे से शुरू करो, िहसास करो कक उनिें कहीर िनाव िो नहीर है । य द िुम्हें ल े कक िनाव है िो
क काि करो: उसे और िनाव से भर दो। य द िुम्हें ल े
कक दा हने पाँव िें िनाव है िो उस िनाव को क्जिना सिन कर सको,उिना सिन करो। उसे आग, कफर अचानक उसे क्जिना सिन कर सको उिना सिन करो। उसे
क मशखर िक ले
क मशखर िक ले आग। कफर
अचानक उसे ढीला छोड़ दो। िाकक िुि यह िहसास कर सको कक कैसे वहार दवश्राि उिर रहा है । कफर पारे शरीर िें दे खिे जाग कक कहार-कहार िनाव है । जहार भी िुम्हें ल े कक िनाव है उसे और
हराग, यगेकक िनाव सिन
हो िो दवश्राि िें जाना सरल है। आधे-अधारे िो यह बड़ा क ठन है , यगेकक िुि उसे िहसास ही नहीर कर सकिे। क अति से दस ा री अति पर जाना बहुि सरल है । यगेकक पररक्स्तथति पैदा कर दे िी है ।
क अति स्तवयर ही दस ा री अति पर जाने के मल
िो चेहरे पर अ र िुि कोच िनाव िहसास करो िो चेहरे की िारस पेमशयगे को क्जिना खीरच सको खीचगे। िनाव को
क मशखर पर पहुरचा दो। उसे ऐसे लबरद ु िक ले आग जहार और िनाव सरभव ही न हो। कफर अचानक ढीला छोड़ दो। इस िरह से दे खो कक शरीर के साथ अर दवश्रारि हो जा र। और चेहरे की िारस-पेमशयगे पर दवशेन यान दो, यगेकक वे िुम्हारे नबे प्रतिशि िनावगे को ढोिी है । बाकी शरीर िें केवल दस प्रतिशि िनाव है । सब िनाव िुम्हारे िक्स्तिष्क िें होिा है । इसमल
िुम्हारा चेहरा उनका भरडार
बन जािा हे । िो अपने चेहरे पर क्जिना िनाव डाल सको डालगे, शिायग िि। चेहरे को परा ी िरह से सरिाप युि, दवनादयुि बना डालगे। और कफर अचानक ढीला छोड़ दो। पाँच मिन शरीर का हर अर
दवश्रारि हो जा । यह िुम्हारे मल
या जैसे भी िुम्हें आसान ल े कर सकिे हो।
के मल
ऐसा करो। िाकक िुम्हारे
बड़ी सरल िुिा है । िुि इसे बैठकर, या लबस्तिार िें ले े हु
‘ककसी सरल िुिा िें दोनगे कारखगे के िय-क्षेत्र (वक्षस्तथल) िें धीरे -धीरे शारति याि होने दो।’ दस ा री बाि: ‘जब िुम्हें ल े कक शरीर ककसी सुखद िुिा िें पहुरच या है —इस बाि को अतधक िाल िि दो—जब िहसास करो कक शरीर दवश्रारि है। कफर शरीर को भाल जाग। यगेकक असल िें , शरीर को स्तिरण रखना क प्रकार का िनाव है ।’ इसीमल
िैं कहिा हार, कक इस दवनय िें बहुि झरझ िि करो। शरीर को दवश्रारि हो जाने दो और भाल जाग। भाल जाना ही दवश्राि है । जब भी िुि बहुि याद रखिे हो िो वह स्तिरण ही शरीर को िनाव से भर दे िा है । शायद िुिने कभी इस और यान न दया हो। लेककन इसके मल
क बड़ा सरल प्रयो
है । अपना हाथ अपनी
नाड़ी पर रखो और उसकी धड़कनगे को त नो। कफर अपनी आरखगे को बरद कर लो और सारे यान को पाँच मिन के मल
नाड़ी पर ल आग, कफर उसे त नो। नाड़ी अब िेज धड़के ी, यगेकक पारच मिन
के यान ने उसे िनाव
दे दया है । िो वास्तिव िें जब भी कोच डा र िुम्हारी धड़कन को िापिा है । िो वह िाप कभी असली नहीर होिा। वह िाप
हिेशा डा र के िाप शुरू करने से पहले के िाप से अतधक होिा है । जब भी डा र िुम्हारा हाथ अपने हाथ िें लेिा है िो िुि उसके प्रति सज
हो जािे हो। और य द डा र ि हला हो िो िुि और भी सज
हो जािे हो।
धड़कन और िेज चलने ल े ी। िो जब भी कोच ि हला डा र िुम्हारी धड़कन त ने िो उसिें से दस ि ा लेना। िब वह िुम्हारी असली धड़कन हो ी। नहीर िो दस धड़कने प्रति मिन िो जब भी िुि अपनी चेिना को शरीर के ककसी अर
पर ले जािे हो। वह अर
अतधक रहें ी।
िनाव से भर जािा है । जब
कोच िुम्हें िारिा है िो िुि िनाव से भर उठिे हो। िुम्हारा सारा शरीर िनाव युि हो जािा है। जब िुि अकेले होिे हो िब मभन्न होिे हो। जब कोच किरे िें आ जािा है िब िुि वही नहीर रहिे। पारे शरीर की
ति िेज हो
जािी है । िुि िनाव से भर जािे हो। िो दवश्राि को कोच बहुि अतधक िहत्व न दो। वरना उसी के साथ अ क जाग े। पाँच मिन के मल बस आराि करो और भाल जाग। िुम्हारा भालना सहयो ी हो ा और शरीर को और हन दवश्राि िें ले जा
ा।
‘दोनगे कारखगे के िय क्षेत्र (वक्षस्तथल) िें धीरे -धीरे शारति याि होने दो।’ अपनी आरखें बरद कर लो और दोनगे कारखगे के बीच के स्तथान को िहसास करो; ्दय क्षेत्र को, अपने वक्षस्तथल को
िहसास करो। पहले केवल दोनगे कारखगे के बीच अपना पारा अवधान लाग,पारे होश से िहसास करो। पारे शरीर को भाल जाग और बस दोनगे कारखगे के बीच ्दय-क्षेत्र और वक्षस्तथल को दे खो। और उसे अपार शारति से भरा हुआ िहसास करो।
क्जस क्षण िुम्हारा शरीर दवश्रारि होिा है िुम्हारा ्दय िें स्तवि: ही शारति उिर आिी है । ्दय िौन, दवश्रारि और लयबध स हो जािा है । और जब िुि अपने सारे शरीर को भाल जािे हो और अवधान को बस वक्षस्तथल पर ले आिे हो और उसे शारति से भरा हुआ िहसास करिे हो िो ित्क्षण अपार शारति ि ि हो ी।
शरीर िें दो ऐसे स्तथान है , दवशेन केंि है , जहार होश पावक य कुछ दवशेन अनुभातियार पैदा की जा सकिी है । दोनगे
कारखगे के बीच ्दय का केंि है । और ्दय का केंि िुििें ि ि होने वाली सारी शारति का केंि है । जब भी िुि शारि हो, वह शारति ्द से आिी है । ्दय शारति दवकीररि करिा है । इसीमल
िो सरसार भर िें हर जाति ने, हर व ,य धिय, दे श और सभ्यिा ने िहसास ककया है कक प्रेि कहीर ्दय के
पास से उठिा है । इसके मल
कोच वैज्ञातनक याया नहीर है । जब भी िुि प्रेि के सरबरध िें सोचिे हो िुि ्दय
के सरबरध िें सोचिे हो। असल िें जब भी िुि प्रेि िें होिे हो िुि दवश्रारि होिे हो। और यगेकक िुि दवश्रारि होिे हो, िुि
क दवशेन शारति से भर जािे हो। वह शारति ्दय से उठिी है । इसमल
प्रेि और शारति आपस िें जुड़
है । जब भी िुि प्रेि िें होिे हो िुि शारि होिे हो। जब भी िुि प्रेि िें नहीर होिे िो परे शान होिे हो। शारति
के कारण ्दय प्रेि से जुड़
या है ।
िो िुि दो काि कर सकिे हो, िुि प्रेि की खोज कर सकिे हो: कफर कभी-कभी िुि शारि अनुभव करो े। लेककन यह िा य खिरनाक है , यगेकक क्जस यक्ि को िुि प्रेि करिे हो वह िुिसे अतधक िहत्वपाणय हो है । और दस ा रा िो दस ा रा ही है । िुि
क िरह से पराधीन हो
या
। िो प्रेि िुम्हें कभी-कभी शारति दे ा, पर सदा
नहीर। कच यवधान आ ँ े, सरिाप और दवनाद के कच क्षण आ ँ े। यगेकक दस ा रे से िुि केवल पररतध पर ही मिल सकिे हो। पररतध दवक्षुध हो जा
ी। केवल कभी-कभी,जब िुि दोनगे लबना ककसी सरिनय के
हन प्रेि िें
होग े, केवल िभी िुि दवश्रारि होग े। और िुम्हारा ्दय शारति से भर सके ा। िो प्रेि िुम्हें केवल शारति की झलकें दे सकिा है । लेककन कोच स्तथाच
हरी शारति नहीर दे सकिा है । इससे ककसी
शावि शारति की सरभावना न ही है । बस झलकगे की सरभावना है । और दो झलकगे के बीच कलह की, हरसा की, िण ृ ा और क्रोध की
हरी िा याँ हो ी।
शारति को खोजने का दस ा रा उपाय है —उसे प्रेि के वावारा नहीर, सीधे ही खोजना। य द िुि शारति को सीधे ही पा सको—और उसी की यह दवतध है । िो िुम्हारा जीवन प्रेि से भर जा अल
हो ा। उसिें िालककयि नहीर हो ी। वह ककसी
ककसी को अपने आधीन बना
ा। िुम्हारा प्रेि बस
क भाव, क करूणा, क च है ।
क दवनाद नहीर है । य द िुि प्रेि करो िो कष्
भो ो े। य द िुि प्रेि न करो िो प्रेि की अनुपक्स्तथति से कष्
उपक्स्तथति से कष्
हन सिानुभाति बन जा
ा। यगेकक शारति की जड़ें
आरिररक शारति की छाया की भारति है । पारी बाि उल ी हो
िो भी कष्
हो ा। यगेकक िुि पररतध पर हो। इसमल
कफर अरधेरी िा याँ आ जा र ी।
ुणधिय अल -
क पर कें िि नहीर हो ा। न िो वह स्तवयर पराधीन हो ा, न
अब कोच भी, कोच भी प्रेिी भी, िुम्हें अशारि नहीर कर पा
िो बुध स भी प्रेिपाणय है , पर उनका प्रेि
ा। लेककन अब प्रेि का
ा। और
हरी है और िुम्हारा प्रेि
भो ो े और प्रेि न करो
हो ा। और प्रेि करो िो प्रेि की
िुि कुछ भी करो,वह िुम्हें क्षलणक िक्ृ ि दे ा,
पहले अपनी स्तवयर की शारति िें क्स्तथर हो जाग, कफर िुि स्तविरत्र हो। कफर प्रेि िुम्हारी जरूरि नहीर है । कफर िुि जब भी प्रेि िें होग े िो बरधन अनुभव करो े। िुम्हें कभी यह नहीर ल े ा कक प्रेि क
ुलािी है, क बरधन बन
या है । िब प्रेि बस
क िरह की परिरत्रिा है ।
क दान हो ा। िुम्हारे पास इिनी शारति है कक िुि उसे
बार ना चाहिे हो। कफर वह बस दे ना िात्र हो ा,क्जसिे वापस पाने का कोच दवचार नहीर हो ा; वह बेशिय हो ा। और यह
क राज है कक क्जिना िुि दे िे हो उिना ही िुम्हें मिलिा हे । क्जिना ही िुि दे िे हो और बार िे हो
उिना ही िुि पर बरस जािा है । क्जिना िुि इस खजानें िें सबको लु ा सकिे हो। यह कभी सिाि नहीर हो सकिा।
हरे प्रवेश करिे हो, जो कक अनरि है , उिना ही िुि
लेककन प्रेि आरिररक शारति की छाया की भारति ि ि होना चा ह । साधारणि: इससे उल ा होिा है , शारति िुम्हारे प्रेि की छाया की भारति आिी है । प्रेि शारति की छाया होना चा ह , िब प्रेि सुरदर होिा है । वरना िो प्रेि भी कुरूपिा तनमियि करिा है , क रो , क ज्वर बन जािा है ।
‘दोनगे कारखगे के िय–क्षेत्र (वक्षस्तथल) िें धीरे -धीरे शारति याि होने दो।’ कारखगे के िय क्षेत्र के प्रति जा रूक हो जाग और िहसास करो कक वह अपार शारति से भर रहे है । बस शारति को अनुभव करो। और िुि पाग े कक वह भरी जा रही है । शारति िो सदा से भरी है । पर इस का िुम्हें कभी पिा नहीर चलिा। यह केवल िुम्हारे होश को बढ़ाने के मल ,िुिहें िर की और लौ ा लाने के मल िुम्हें यह शारति अनुभव हो ी, िुि पररतध से ह प्रयो
को करो े और शारति से भरगे े िो िुम्हें
है । और जब
जाग े। ऐसा नहीर कक वहार कुछ नहीर हो ा, लेककन जब िुि इस
क दरा ी िहसास हो ी। सड़क से शोर आ रहा है , पर बीच िें अब
बहुि दरा ी है । सब चलिा रहिा है , पर इससे कोच परे शानी नहीर होिी; बक्ल्क इससे िौन और
हरा होिा है ।
यह चित्कार है । बचे खेल रहे हगे े। कोच रे गडयगे सुन रहा हो ा। कोच लड़ रहा हो ा, और पारा सरसार चलिा रहे ा। लेककन िुम्हें ल े ा कक िुम्हारे और सब चीजगे के बीच िें है कक िुि पररतध से अल
हो
क दरा ी आ
पैदा हुच हो। पररतध पर ि ना र हगे ी और िुम्हें ल े ा कक वे ककसी और के साथ हो
रही है । िुि सक्म्िमलि नहीर हो। िुम्हें कुछ परे शान नहीर करिा इसमल कर
हो। यह अतिक्रिण है ।
च है । यह दरा ी इसमल
िुि सक्म्िमलि नहीर हो। िुि अतिक्रिण
और ्दय स्तवभावि: शारति का स्तत्रोि है । िुि कुछ भी पैदा नहीर कर रहे । िुि िो बस उस स्तत्रोि पर लौ
रहे हो
जो सदा से था। यह कल्पना िुम्हें इस बाि के प्रति जा ने िें सहयो ी हो ी कक ्दय शारति से भरा हुआ है । ऐसा नहीर है कक यह कल्पना शारति पैदा करे ी। िरत्र और पाचात्य सम्िोह न के ढ़क्ष् कोण से यही अरिर है । सम्िोहनदवद सोचिे है कक वे कल्पना के वावारा कुछ पैदा कर रहे हे । पर िरत्र का िानना है कक कल्पना के वावारा िुि कुछ पैदा नहीर करिे। िुि िो बस उस चीज के साथ लयवध स हो जािे हाँ जो पहले से ही है । यगेकक कल्पना से िुि जो भी पैदा कर सकिे हाँ वह स्तथाच नहीर हो सकिा: य द कोच चीज वास्तिदवक नहीर है िो वह झाठी है , नकली है, िुि
क ्ि तनमियि कर रहे
हो।
िो शारति के ्ि िें पड़ने से िो वास्तिदवक रूप से परे शान होना बेहिर हे । यगेकक वह कोच दवकास नहीर है । बस िुिने अपने को उसिें भुला दया है । दे र अबेर िुम्हें उससे बाहर तनकलना हो ा। यगेकक जल्दी ही वास्तिदवकिा ्ि को िोड़ दे ी। सचाच ्िगे को नष्
करे ी ही। केवल उचिर वास्तिदवकिा को नष्
सकिा। उचिर वास्तिदवकिा उस यथाथय को नष्
कर दे ी जो कक पररतध पर है ।
नहीर ककया जा
इसीमल उन्हें
शरकर िथा दस ा रे कच बध स ु परू ु न कहिे है कक सरसार िाया है । ऐसा नहीर है कक सरसार िाया है । लेककन
क उचिर वास्तिदवकिा का बोध हो
या है । उस ऊँचाच से सरसार स्तवनवि प्रिीि होिा है । वह मशखर
इिनी दरा है, इिनी दरा है कक यह सरसार वास्तिदवक नहीर ल
सकिा।
िो सड़क पर आिा हुआ शोर ऐसे ल े ा जैसे िुि अपना सपना दे ख रहे हो, वह वास्तिदवकिा नहीर है । वह कुछ नहीर कर सकिा बस आिा है और ाजर जािा है । और िुि अस्तपमशयि रह जािे हो। और जब िुि वास्तिदवक से अस्तपमशयि रह जाग िो िुम्हें कैसे ल े ा। कक यह वास्तिदवक है , वास्तिदवकिा िुम्हें केवल िभी िहसास होिी है जब वह िुििें
हरी प्रवेश कर जा । क्जिनी
हरी वह प्रदवष्
हो ी उिनी ही वास्तिदवक ल े ी।
शरकर कहिे है, परु ा सरसार मिथ्या है । वह ऐसे लबरद ु पर पहुरच हगे े जहार से दरा ी इिनी बढ़ जािी है कक सरसार िें जो भी हो रहा है । सपना सा ही प्रिीि होिा हे । उसकी प्रिीति होिी है । लेककन उसके साथ कोच वास्तिदवकिा की प्रिीति नहीर होिी। यगेकक वह भीिर प्रवेश नहीर कर पािी। प्रवेश ही वास्तिदवकिा का अनप ु ाि है । य द िैं िुम्हें पत्थर िारू और िुम्हें चो
ल े िो उसकी चो
पत्थर को वास्तिदवक बनािा है । य द िैं
िुम्हारे भीिर प्रवेश करिी है । और चो
क पत्थर फेंकरा और वह िुम्हें छु , पर चो
का प्रवेश करना ही
भीिर प्रवेश न करे । िो
हरे िें कही िुम्हें अपने पर पत्थर त रने की आवाज सुनाच दे ी। पर उससे कोच यवधान पैदा नहीर हो ा।
िुम्हें वह झाठ ल े ी। मिथ्या ल े ी। िाया ल े ी।
लेककन िुि पररतध से इिने करीब हो कक य द िैं िुम्हें पत्थर िारू िो िुम्हें चो पत्थर फेंकरा िो उनके शरीर को भी उिनी ही चो
ल े ी। अ र िैं बुध स पर
ल े ी क्जिनी िुम्हारे शरी को ल े ी। लेककन बुध स पररतध पर
नहीर है । केंि िें क्स्तथि है । और दरा ी इिनी अतधक है कक उन्हें पत्थर की आवाज िो सुनाच दे ी पर चो ल े ी। अरिस अस्तपमशयि रह जा सपने िें कुछ फेंका
ा। उस पर खरगेच भी न आ
नहीर
ी। इस तनदवयचार अरिस को ल े ा कक जैसे
या। यह िाया है । िो बुध स कहिे है , ककसी चीज िें कोच सार नहीर है । सब कुछ असार है ।
सरसार असार है । यह बही बाि है जैसे शरकर कहिे है कक सरसार िाया है ।
इसे करके दे खो। जब भी िुम्हें अनुभव हो ा कक िुम्हारी दोनगे कारखगे के बीच, िुम्हारे ्दय के केंि पर शारति
याि हो रही है िो सरसार िुम्हें ्ािक प्रिीि हो ा। यह इस बाि का सरकेि है कक िुि यान िें प्रवेश कर —जब सरसार िाया ल ने ल े। ऐसा सोचो िि कक सरसार िाया है । ऐसा सोचने की कोच जरूरि नहीर है ।
िुम्हें ऐसा िहसास हो ा। अचानक िुम्हारे िन िें आ हो
या है ।
क स्तवन की िरह से सारहीन हो
ा, सरसार को या हो
या है ? अचानक सरसार स्तवनवि
या है । बस इिना ही वास्तिदवक प्रिीि होिा है । जैसे पदे पर
कफल्ि। भले ही ्ी-डायिें शनल हो, पर ऐसा ल िा है जैसे कोच प्रक्षेपण हो। हालारकक सरसार प्रक्षेपण नहीर है । सरसार वास्तिव िें िाया नहीर है । नहीर,सरसार िो वास्तिदवक है , लेककन िुि दरा ी पैदा कर लेिे हो। और दरा ी बढ़िी ही जािी है । और दरा ी बढ़ रही है । या नहीर, यह िुि इस बाि से पिा ल ा सकिे हो कक सरसार अब िुम्हें कैसा ल िा है ।
यही कसौ ी है । यह
क यान की कसौ ी है । यह सच नहीर है । कक सरसार मिथ्या है । पर साथ िो कच बार ऐसा
होिा है कक पहले ही प्रयास िें िुि इसके सौंदयय और चित्कार को अनुभव करो े। िो इसे करके दे खो। लेककन पहले प्रयास िें अ र िुम्हें कुछ अनुभव न हो िो तनराश िि होना। प्रिीक्षा करो, और करिे रहो। और यह
इिनी सरल दवतध है कक िुि ककसी भी सिय इसे कर सकिे हो। राि अपने दवस्तिर पर ले े -ले े कर कसिे हो। सुबह जब िुम्हें ल े कक िुम्हारी नीरद खुल दस मिन
भी पयायि हगे े।
च है । उस सिय िुि इसे कर सकिे हो। पहले इसे करो कफर उठो।
राि सोने से पहले दस मिन
इसे करो। सरसार को मिथ्या बना दो। और िुम्हारी नीरद इिनी
क्जिनी पहले कभी नहीर थी। य द सोने से ठीक पहले सरसार मिथ्या हो जा सरसार ही कल्पना बन जा
ी
िो सपने कि आ ँ े। यगेकक य द
िो सपने नहीर चल सकिे। और य द सरसार मिथ्या हो जा
हो जाग े। यगेकक सरसार की वास्तिदवकिा िुि पर चो
हरी हो जा
नहीर करे ी। असर नहीर करे ी।
िो िुि लबलकुल दवश्रारि
यह दवतध िें उन लो गे को सुझािा हार जो अतनिा से पीगड़ि है । इससे बड़ी िदद मिले ी। य द सरसार मिथ्या है िो िनाव सिाि हो जािे है । और य द िुि पररतध पर ह सको िो िुि स्तवयर ही नीरद की हरी अवस्तथा िें चले
। इससे पहले कक नीरद आ
बहुि िाजा हो हो।
हो और युवा हो
िुि उसिें
हरे चले
। और कफर सुबह बहुि अछा ल े ा। यगेकक िुि हो। िुम्हारी ऊजाय िरर ातयि है , यगेकक िुि केंि से पररतध पर लौ रहे
और क्जस क्षण िुम्हें ल े कक नीरद जा चुकी है िो आरखें िि खोलगे। पहले इस प्रयो
को दस मिन
करो, कफर
अपनी आरखें खोलगे। शरीर परा ी राि के बाद दवश्राि िें है । और िाजा िथा जीवरि अनभ ु व कर रहा है । िुि पहले ही दवश्रारि हो िो अब अतधक सिय नहीर ल े ा। बस दवश्राि करो। अपने चेिना को दोनगे कारखगे के बीच ्दय पर ले आग। उसे लो। सरसार अल
हन शारति से भरा हुआ अनुभव करो। दस मिन
िक उस शारति िें रहो। कफर आरखें खोल
ही नजर आये ा। यगेकक शारति िुम्हारी आरखगे िें भी झलके ी। और सारा दन िुम्हें अल
अनुभव हो ा। न केवल िुम्हें अल
अनुभव हो ा। बक्ल्क िुम्हें ल े ा कक लो
यवहार कर रहे हे । हर सरबरध िें िुि कुछ सहयो
दे िे हो। य द िुम्हारा सहयो
िरह से यवहार करें े। यगेकक उन्हें ल े ा कक अब िुि मभन्न यक्ि हो
भी िुिसे अल
ही
िरह से
न हो िो लो िुिसे अल
हो। हो सकिा है उन्हें इसका
पिा भी न हो, पर जब िुि शारति से भर जाग े िो हर कोच िुिसे अल
िरह से यवहार करे ा। लो
शारति
आिे है । जब िुि परे शान होिे हो िो
प्रेिपाणय और अतधक दवनम्र हगे ।े कि बाधा डालें े। खुले हगे ,े सिीप हगे े। क चुरबक है । जब िुि शारि होिे हो िो लो
िुम्हारे अतधक तनक
क चुरबकत्व पैदा हो
अतधक
या।
सब पीछे ह िे है । और यह इिनी भौतिक ि ना है कक िुि इसे सरलिा से दे ख सकिे हो। जब भी िुि शारि हो, िुम्हें ल े ा सब िुम्हारे करीब आना चाहिे है । यगेकक शारति दवकीररि होने ल िी है । चारगे और
क िरर
बन जािी है । िुम्हारे चारगे और शारति के स्तपरदन होिे है और जो आिा है िुम्हारे करीब होना चाहिा है । जैसे िुि ककसी वक्ष ृ की छाया के नीचे जाकर दवश्राि करना चाहिे हो। शारति यक्ि के चारगे और
क छाया होिी है । वह जहार भी जा
ा सब उसके पास जाना चाहें े। खुले हगे े।
क्जस यक्ि के भीिर सरिनय है , दवनाद है , सरिाप है , िनाव है , वह लो गे को दरा ह ािा है । जो भी उसके पास
जािा है िबड़ािा है । िुि खिरनाक हो। िुम्हारे करीब होना खिरनाक है । यगेकक िुि वहीर दो े जो िुम्हारे पास है । ल ािार िुि वही दे रहे हो।
िो हो सकिा है िुि ककसी को प्रेि करना चाहो;पर य द िुि भीिर से परे शान हो िो िुम्हारा प्रेि भी िुिसे दरा ह े ा। िुिसे भा ना चाहे ा। यगेकक िुि उसकी ऊजाय को चास लो े। और वह िुम्हारे साथ सुखी नहीर हो ा।
और जब िुि उसे छोड़ो े लबलकुल थका हुआ हारा छोड़ो े। यगेकक िुम्हारे पास कोच जीवनदायी स्तत्रोि नहीर है । िुम्हारे भीिर दववरसात्िक ऊजाय है ।
िो न केवल िुम्हें ल े ा कक िि ु मभन्न हो
हो। दस ा रगे को भी ल े ा कक िुि बदल
ये हो। य द िुि थोड़ा
सा केंि के करीब सरक जाग िो िुम्हारी पारी जीवन शैली बदल जािी है । सारा ढ़क्ष् कोण सारा प्रतिफलन मभन्न हो जािा है । य द िुि शारि हो िो िुम्हारे मल
सारा सरसार शारि हो जािा है । यह केवल
जो हो वही चारगे और प्रतिलबरलबि होिा है । हर कोच
क दपयण बन जािा है ।
क प्रतिलबरब है । िुि
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-71
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—99 (ओशो) दस ू री विधि—
‘स्ियं को सभी हदशाओं िें पररव्याप्त होता हुआ िहसूस करो—सुदरू , सिीप।’
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—99 (गशो)
िरत्र और यो इसीमल
दोनगे िानिे है कक सरकीणयिा ही सिस्तया है । यगेकक िुिने स्तवयर को इिना सरकीणय कर मलया है
िुि सदा ही बरधन अनुभव करिे हो। बरधन कही और से नहीर आ रहा है । बरधन िुम्हारे सरकीणय िन से
आ रहा है । और वह सरकीणय से सरकीणयिर होिा चला जािा है । और िुि सीमिि होिे चले जािे हो।
वह सीमिि होना िुम्हें बरधन की अनुभाति दे िा है । िुम्हारे पास अनरि आत्िा है । और अरनि अक्स्तित्व है , पर वह अनरि आत्िा बरदी अनुभव करिी है । िो िुि कुछ भी करो, िुम्हें सब और सीिा र नजर आिी है । िुि कहीर भी जाग मल
क लबरद ु पर पहुरच जािे हो जहार से आ े नहीर जाया जा सकिा। सब आरे कोच खुला आकाश नहीर है ।
क सीिा-रे खा है । उड़ने के
लेककन यह सीिा िुिने खड़ी की है , यह सीिा िुम्हारा तनिायण है । िुिने कच कारणगे से यह सीिा तनमियि की है : सुरक्षा के मल , बचाव के मल । िुिने
क सीिा बना ली है । और क्जिनी सरकीणय सीिा होिी है उिने सुरक्षक्षि
िुि िहसास करिे हो। य द िुम्हारी सीिा बहुि बड़ी हो िो िुि पारी सीिा पर पहरा नहीर दे सकिे हो, िुि सब और से सावधान नहीर हो सकिे। बड़ी सीिा असुरक्षक्षि हो जािी है । सीिा के सरकीणय करो िो िुि उस पर पहरा दे सकिे हो, बरद रह सकिे हो। कफर िुि सरवेदनशील न रहे, सुरक्षक्षि हो खड़ी की है । लेककन कफर िुम्हें बरधन ल िा है ।
। इस सुरक्षा के मल
ही िुिने सीिा
िन ऐसा ही दवरोधाभासी है । िि ु सुरक्षा भी िार िे हो और साथ ही साथ स्तविरत्रिा भी। दोनगे मिल सकिी। य द िुम्हें स्तविरत्रिा चा ह
क साथ नहीर
िो सुरक्षा खोनी पड़े ी। कुछ भी हो, सुरक्षा बस ्ि िात्र है । वास्तिदवक
नहीर है । यगेकक ित्ृ यु िो हो ी ही। िुि चाहे कुछ भी करो, िुि िरो े ही। िुम्हारी सारी सुरक्षा ऊपर-ऊपर है ।
कुछ भी िदद न दे ा। लेककन असुरक्षा से डरकर िुि सीिा र खड़ी करिे हो। अपने चारो और बड़ी-बड़ी दीवारें
खीरच लेिे हो। और कफर खुला आकाश कहार है ? और कहिे हो, ‘िैं स्तविरत्रिा चाहिा हार और िैं बढ़ना चाहिा हार।’ लेककन िुिने ही ये सीिा र खड़ी की है । िो इससे पहले कक िुि यह दवतध करो, यह पहली बाि याद रख लेने जैसी है । वरना इसे कर पाना सरभव नहीर
हो ा। अपनी सीिागर को बचाकर िुि इसे नहीर कर सकिे। जब िक िुि सीिा र बनाना बरद न कर दो, िब िक िुि न िो इसे कर पाग ,े न ही िहसास कर पाग े।
‘सभी दशागर िें पररयाि होिा हुआ िहसास करो—सुदरा , सिीप।’ कोच सीिा र नहीर, अनरि हो रहे हो। अनरि आकाश के साथ
क हो रहे हो……..।
िुम्हारे िन के साथ िो यह असरभव हो ा। िुि इसे कैसे अनुभव कर सकिे हो। इसे कैसे कर सकिे हो। पहले िुम्हें कुछ चीजें करना बरद करना पड़े ा।
पहली बाि यह है कक य द िुि सुरक्षा के बारे िें ज्यादा ही तचरतिि हो िो बरधन िें ही रहो। असल िें , कारा हृ
सबसे सुरक्षक्षि स्तथान है । वहार िुम्हें नुकसान नहीर पहुरचा सकिा। कै दयगे से अतधक सुरक्षक्षि, अतधक पहरे िें और कोच नहीर रहिा। िुि ककसी कैदी को िार नहीर सकिे। उसकी हत्या नहीर कर सकिे। बहुि क ठन है । वह राजा से भी अतधक पहरे िें है । िुि ककसी राष्रपति या राजा की हत्या कर सकिे हो। यह क ठन नहीर है । रोज लो
उनकी हत्या करिे रहिे है । लेककन िुि ककसी कैदी को नहीर िार सकिे। वह इना सुरक्षक्षि है कक य द ककसी को इिनी ही सुरक्षा पानी हो िो उसे कारा हृ िें ही रहना पड़े ा। बाहर नहीर। कारा हृ से बाहर रहना खिरनाक है । िुसीबिगे से भरा है । कुछ भी हो सकिा है ।
िो हिने अपने चारगे और िानमसक कारा हृ , िनोवैज्ञातनक कारा हृ बना मलया है । और हि उन कारा हृ गे को
अपने साथ ढोिे है । िुम्हें उनिें रहने की जरूरि नहीर है । वे िुम्हारे साथ चलिे है । जहार भी िुि जािे हो िुम्हारा कारा हृ िुम्हारे साथ चलिा है । िुि सदा
क दीवार के पीछे रहिे हो। बस कभी-कभी ककसी को छाने के मल
िुि अपना हाथ उससे बाहर तनकालिे हो। लेककन बस
क हाथ िुि अपने कारा हृ से कभी बाहर नहीर आिे।
िो जब भी लो
आपस िें मिलिे है , वह केवल कारा हृ गे से तनकले हु हाथगे का मिलन होिा है । डरे -डरे हि लखड़ककयगे से हाथ बाहर तनकलिे है । और ककसी भी क्षण हाथ वापस खीरच लेने को िैयार रहिे है । दोनगे लो क ही काि कर रहे है । बस
क हाथ से छा रहे है ।
और अब िो िनोवैज्ञातनक कहिे है कक यह भी
क दखावा ही है । यगेकक हाथगे के चारगे और अपना
होिा है । कोच भी हाथ दस्तिाने के लबना नहीर है । मसफय वीन
मलजाबेथ ही दस्तिाने नहीर पहनिी, िुि भी दस्तिाने
पहनिे हो िाकक िुम्हें छा न सके। और य द कोच छािा भी है िो बस ह े हु
क कवच
हो। भयभीि होकर। यगेकक दस ा रा यक्ि भय पैदा करिा है ।
क हाथ, िुदाय हाथ। िुि पहले से ही पीछे
जैसा सात्रय ने कहा है , ‘दस ा रा दु िन है ।’ य द िि ु इिने बरद हो िो दस ा रा िुम्हें दु िन की िरह ही दखाच दे ा।
बरद यक्ि से ककसी िरह की मित्रिा नहीर हो सकिी। उससे मित्रिा असरभव है । प्रेि असरभव है , ककसी िरह का सरवाद असरभव है । िुि भयभीि हो। कोच िुि पर िालककयि कर सकिा है । िुि पर हावी हो सकिा है । िुम्हें है । इससे भयभीि होकर िुिने
ल ु ाि बना सकिा
क कारा हृ , क सुरक्षा कवच का तनिायण अपने चारगे और कर मलया है । िुि
सरभलकर चलिे हो, फारक-फारक कर कदि रखिे हो। जीवन सावधान हो िो जीवन पीछे भी िो
क ऊब हो जािा है । य द िुि बहुि ज्यादा ही क अमभयान नही हो सकिा। य द िुि अपने को बहुि ज्यादा ही बचा रहे हो, सुरक्षा के
रहे हो, िो िुि पहले ही िर चुके।
क आधारभाि तनयि याद रखो: जीवन असुरक्षा है । और य द िुि असुरक्षा िें जीने को राजी होि भी िुि
जीवरि रह पाग े। असुरक्षा स्तविरत्रिा है । य द िुि असुरक्षक्षि होने को सिि असुरक्षक्षि होने को िैयार हो िो िुि स्तविरत्र रहो े। और स्तविरत्रिा परिात्िा का वावार है । भयभीि, िुि
क कारा हृ बना लेिे हो, िुदाय हो जािे हो। कफर िुि पुकारिे हो। ‘परिात्िा कहार है ?’ और कफर
िुि पाछिे हो, ‘जीवन कहार है ?’ जीवन का अथय या है ? आनरद कहार है ? जीवन िुम्हारी प्रिीक्षा कर रहा है , लेककन
उसी की शिों के अनुसार िुम्हें उससे मिलना हो ा। िुि अपनी शिें नहीर ल ा सकिे हो। जीवन की अपनी शिें है । और िाल शिय है : असुरक्षक्षि रहो। इसके बाबि कुछ नहीर ककया जा सकिा। िुि जो भी करो े
क धोखा ही
हो ा।
अ र िुि प्रेि िें पड़िे हो िो िुम्हें भय पकड़ लेिा है । कक यह स्तत्री िुम्हें छोड़ दे ी या यह ककसी पुरून के पास चली जाये ी। भय ित्क्षण प्रवेश कर जािा है । जब िुि प्रेि िें नहीर थे िो कभी भयभीि नहीर थे। अब िुि प्रेि िें हो: जीवन का प्रवेश हुआ और उसके साथ ही असुरक्षा का भी। जो ककसी से प्रेि नहीर करिा उसे कोच भय नहीर होिा है । पारा सरसार उसे छोड़ सकिा है उसे कोच भय नहीर है । िुि उसे नक ु सान नहीर पहुरचा सकिे। वह सुरक्षक्षि है । क्जस क्षण िुि ककसी के प्रेि िें पड़िे हो, असुरक्षा शुरू हो जािी है । यगेकक जीवन प्रवेश कर और जीवन के साथ-साथ ित्ृ यु प्रवेश कर
या।
च। क्जस क्षण िुि प्रेि िें पड़िे हो िुम्हें भय पकड़ लेिा है । यह
यक्ि िर सकिा है । छोड़कर जा सकिा है , ककसी और से प्रेि कर सकिा है । अब सब कुछ सुरक्षक्षि करने के मल
िुम्हें कुछ करना पड़े ा,िुम्हें दववाह करना पड़े ा। कफर
क कानानी बरधन
बनाना पड़े ा िाकक वह यक्ि िुम्हें छोड़ न सके। अब सिाज िुिहारी रक्षा करे ा। कानान िुम्हारी रक्षा करे ा। पुमलस जज, सब िुम्हारी रक्षा करें े। अब य द वह यक्ि िुम्हें छोड़ना चाहे िो िुि उसे को य िें िसी
सकिे
हो। और य द वह िलाक लेना चाहे िो उसे िुम्हारे दवरूध स कुछ मसध स करना पड़े ा। िब भी इसिे िीन से पाँच साल िक ल ें े। अब िुिने अपने चारगे और
क सुरक्षा खड़ी कर ली।
लेककन क्जस क्षण िुिने दववाह ककया िुि िर बन
। सरबरध जीदवि नहीर रहा। अब वह सरबरध नहीर रहा, क कानान
या। अब यह कोच जीवरि चीज नहीर रही, कानानी ि ना हो
च। को य जीवन को नहीर बचा सकिा। बस
सौदगे को बचा सकिा है । कानान जीवन को नहीर बचा सकिा, बस तनयिगे को ही बचा सकिा है । अब दववाह
क
िरी हुच चीज है । प्रेि अपररभाष्य है ।
दववाह के साथ िुि पररभानागर के ज ि िें आ
। पर पारी बाि ही सिाि हो
च। क्जस क्षण िुिने सुरक्षक्षि
होना चाहा, क्जस क्षण िुिने जीवन को बरद कर लेना चाहा िाकक इसिें कुछ भी नया न हो सके। िुि उसिें कैद
हो
। कफर िुि कष्
भो ो े। कफर िि ु कहो े कक यह पत्नी िुम्हारे मल
पत्नी ने उसे बाँध मलया है । कफर िुि लड़ो ,े यगेकक दोनगे लड़िे हो। अब प्रेि सिाि हो
या है । बस
क दस ा रे के मल
बरधन बन
च है । पति कहे ा कक
कारा हृ बन
हो। अब िुि
क कलह बची है । सुरक्षा के पीछे दौड़ने से यही होिा है ।
और ऐसा बस चीजगे िें हुआ है । इसे िाल तनयि की िरह याद रखो; जीवन असुरक्षक्षि है । यह जीवन का स्तवभाव है । िो जब िुि प्रेि िें पड़ो इस भय को भले ही झेल लो कक प्रेमिका िुम्हें छोड़कर जा सकिी है । पर कभी सुरक्षा िि खड़ी करो। कफर प्रेि दवकमसि हो ा। हो सकिा है प्रेमिका िर जा लेककन उससे प्रेि नहीर िरे ा। प्रेि िो और बढ़े ा।
और िुि कुछ भी न कर पाग।
सुरक्षा िार सकिी है । असली िें य द आदिी अिर होिा िो िैं कहिा हार कक प्रेि असरभव हो जािा। य द आदिी अिर होिा िो ककसी को भी प्रेि करना असरभव हो जािा। प्रेि िें पड़ना बहुि खिरनाक हो जािा। ित्ृ यु है िो जीवन ऐसे है जैसे ककसी करपिे हु पत्िे पर पड़ी गस की बरद ा । ककसी भी क्षण हवा आये ी और गस की बरद ा त रकर खो जाये ी। जीवन बस क स्तपरदन है । उस स्तपरदन के कारण, उस ति के कारण, ित्ृ यु सदा बनी रहिी हे । इससे प्रेि को त्वरा मिलिी है । प्रेि इसीमल
सरभव है । यगेकक ित्ृ यु के कारण ही प्रेि सिन हो पािा है ।
सोचो, य द िुम्हें पिा हो िुम्हारी प्रेमिका अ ले ही क्षण िरने वाली है िो सब चालाककयार, सब कलह सिाि हो जा
ी। और यही
प्रवा हि हो जा
क क्षण शावि हो जा
ा। गर इिना प्रेि उि े ा कक िुम्हारा पारा अक्स्तित्व उसिें
ा। लेककन अ र िुम्हें पिा हो कक अभी िुम्हारी प्रेमिका जीदवि रहे ी िो कफर कोच जल्दी नहीर
है । कफर अभी िुि झ ड़ सकिे हो। प्रेि को और आ े के मल
ाल सकिे हो। य द जीवन शावि हो, शरीर
अिर हो, िो िुि प्रेि नहीर कर सकिे। हरदग ु र की
क बड़ी सुरदर कथा है । वे कहिे है कक स्तव य िें जहार इरि राज्य करिा है —इरि स्तव य का राजा है —वहार
कोच प्रेि नहीर है । वहार सुरदर युवतियार है , पथ्ृ वी से अतधक सुरदर युवतियार है । वहार सरभो
िो होिा ह पर प्रेि नहीर
होिा,यगेकक वे अिर हे । हरदग ु र की कथा िें कहा
या है कक िुय असरा उवयशी ने
क पुरून से प्रेि करने के मल
क दन पथ्ृ वी पर
जाने की अनुिति िार ी। इरि ने कहा, ‘या िाखि य ा है, िुि यहार प्रेि कर सकिी हो। और इिने सुरदर लो पथ्ृ वी पर नहीर मिलें े। वे भले ही सुरदर हो पर, अिर है । इसिें कोच िजा नहीर आिा, उनका प्रेि है । सच िें वे सब िरे हु
है ।’
वास्तिव िें वे िुदाय ही है । यगेकक उन्हें जीवरि बनाने के मल है । वे सदा-सदा रहें े। वे कभी िर नहीर सकिे। इसमल
प्रेि ज ाने के मल
िुम्हें
क िुदाय प्रेि
ित्ृ यु चा ह । जो वहार पर नहीर
वे जीदवि भी कैसे हो सकिे है ? वह जीवरििा ित्ृ यु के
दवपरीि ही होिी है । आदिी जीदवि है , यगेकक ित्ृ यु सिि सरिनय कर रही है । ित्ृ यु की भामिका िें जीवन है ।
िो उवयशी ने कहार, िुझे पथ्ृ वी पर जाने की आज्ञा दो। िैं ककसी को प्रेि करना चाहिी हार। उसे आज्ञा मिल च। िो वह नीचे पथ्ृ वी पर आ च और क युवक पुरुरवा के प्रेि िें पड़ च। लेककन इरि की और से क शिय थी। इरि ने शिय रखी थी कक वह पथ्ृ वी पर जा सकिी है , ककसी से प्रेि कर सकिी है , पर जो पुरून उसे प्रेि करे उसे यह पहले ही पिा दे ना हो ा कक वह उस से यह कभी न पाछे कक वह कौन है । प्रेि के मल
यह क ठन है , यगेकक प्रेि जानना चाहिा है । प्रेि प्रेिी के दवनय िें सब कुछ जानना चाहिा है । हर
अज्ञाि चीज को ज्ञाि करना चाहिा है । हर रहस्तय िें प्रवेश करना चाहिा है । िो इरि ने बड़ी चालाकी से यह शिय
रखी, क्जसकी चालबाजी को उवयशी नहीर सिझ पाच। वह बोली, ‘ठीक है , िैं अपने प्रेिी को कह दर ा ी कक वह िेरे
बारे िें कभी कुछ न जानना चाहे । कभी यह न पाछे कक िैं कौन हार। और य द वह पाछिा है िो ित्क्षण उसे छोड़कर िैं वापस आ जाऊ ी।‘ और उसे पुरुरवा से कहा, ‘कभी िुझ से यह िि पछ ा ना कक िैं कौन हार। क्ज क्षण िुि पाछो ,े िुझे पथ्ृ वी को छोड़ना पड़े ा।’ लेककन प्रेि िो जानना चाहिा है । और इस बाि के कारण पुरुरवा और भी उत्सुक हो
या हो ा कक वह कौन हे ।
वह सो नहीर भी सका। वह उवयशी की और दे खिा रहा। वह है कौन? इिनी सुरदर स्तत्री, ककसी स्तवक्नल पदाथय की
बनी ल िी है । पातथयव, भौतिक नहीर ल िी। शायद वह कहीर और से , ककसी अज्ञाि आयाि से आच है । वह औरऔर उत्सुक होिा
या। लेककन सह और भयभीि भी होिा
या। कक वह जा सकिी है । वह इना भयभीि हो
या कक जब राि वह सोिी, उसकी साड़ी का पल्ला वह अपने हाथ िें ले लेिा। यगेकक उसे अपने पर भी भरोसा
नहीर था। कभी भी वह पाछ सकिा था, प्रन सदा उसके िन िें रहिा था। अपनी नीरद िें भी वह पाछ सकिा था। और उवयशी ने कहा था कक नीरद िें भी उसके बाबि नहीर पाछना है । िो वह उसकी साड़ी का कोना अपने हाथ िें लेकर सोिा। लेककन
क राि वह अपने को वश िें नहीर रख पाया और उसने सोचा कक अब वह उससे इिना प्रेि करिी है
कक छोड़कर नहीर जा परु ु रवा के हाथ िें रह
ी। िो उसने पछ ा मलया। उवयशी को अढ़य होना पड़ा, बस उसकी साड़ी का या। और कहा जािा है कक वह अभी भी उसे खोज रहा है ।
क ु कड़ा
स्तव य िें प्रेि नहीर हो सकिा। यगेकक असल िें वहार कोच जीवन ही नहीर है । जीवन यहार इस पथ्ृ वी पर है , जहार ित्ृ यु है । जब भी िुि कुछ सुरक्षक्षि कर लेिे हो, जीवन खो जािा है । असुरक्षक्षि रहो। यह जीवन का ही इसके बारे िें कुछ ककया नहीर जा सकिा। और यह सुरदर है ।
ुण है ।
जरा सोचो, य द िुम्हारा शरीर अिर होिा िो ककिना कुरूप होिा। िुि आत्ििाि करने के उपाय खोजिे कफरिे। और य द यह असरभव है , कानान के दवरूध स है , िो िुम्हें इिना कष्
हो ा कक कल्पना भी नहीर कर सकिे। अिरत्व
क बहुि लरबी बाि है । अब पक्चि िें लो स्तवेछा िरण की बाि सोच रहे है । यगेकक लो अब लरबे सिय िक जी रहे है 1 िो जो यक्ि सौ वनय िक पहुरच जािा है वह स्तवयर को िारने का अतधकार चाहिा है । और वास्तिव िें ,यह अतधकार दे ना ही पड़े ा। जब जीवन बहुि छो ा था िो हिने आत्िहत्या न करने का कानान बनाया था। बुध स के सिय िें चालीस या पचास साल का हो जाना बहुि था। औसि आयु कोच बीस साल के करीब थी। भारि िें अभी बीस साल पहले िक औसि आयु िेचस साल थी। अब स्तवीडन िें औसि आयु तिरासी साल है । िो लो
बड़ी आसानी से डेढ़ सौ साल िक जी सकिे है । रूप िें कोच परिह सौ लो
है जो डेढ़ सौ िक
पहुरच है । अब य द वे कहिे है कक उन्हें स्तवयर को िारने का अतधकार है । यगेकक अब बहुि हो चुका, िो हिें यह अतधकार उन्हें दे ना हो ा। इससे उन्हें वरतचि नहीर ककया जा सकिा। दे र-अबेर आत्िहत्या हिारा जन्िमसध स अतधकार हो ा। अ र कोच िरना चाहिा है िो िुि उसे िना नहीर कर सकिे—ककसी भी कारण से नहीर। यगेकक अब जीवन का कोच अथय नहीर रह
या। पहले ही बहुि हो चुका। सौ साल के यक्ि को जीने जैसा नहीर ल िा। ऐसा नहीर है कक यह परे शान हो या है । कक उसके पास भोजन नहीर है । सब कुछ है , पर जीवन का कोच अथय नहीर रह
या।
िो अिरत्व की सोचो, जीवन लबलकुल अथयहीन हो जा
ा। अथय ित्ृ यु के कारण होिा है । प्रेि का अथय हे , यगेकक
प्रेि खोया जा सकिा है । िब प्रेि धड़किा है , स्तपर दि होिा है । प्रेि खो सकिा हे । िुि उसके बारे िें तनक्चि
नहीर हो सकिे। िि ु उसे कल पर नहीर
ाल सकिे। यगेकक हो सकिा है कल प्रेि रहे ही न। िम् ु हें प्रेिी या प्रेिी
का को इस िरह से प्रेि करना हो ा कक हो सकिा है कल आ
ही न। कफर प्रेि सधन होिा हे ।
िो पहली बाि, सुरक्षक्षि जीवन पैदा करने के अपने सारे प्रयास ह ा लो। बस यह प्रयास ह ाने से ही िुम्हारे
आस-पास की दीवारें त रने ल ें ी। पहली बार िुम्हें ल े ा कक वनाय िुि पर सीधी पड़ रही है । हवा ँ सीधी िुि िक बह रही है । सायय सीधा िुि िक पहुरच रहा है । िुि खुले आकाश के नीचे आ जाग े। सुरदर है यह। लेककन िुम्हें अ र यह दवतचत्र ल िा है िो इसमल यगेकक िुि कारा हृ िें रहने के आदी हो हो। रहा है । िुम्हें इस नच स्तविरत्रिा से पररतचि होना पड़े ा। यह स्तविरत्रिा िुम्हें अतधक जीवरि,अतधक िरल, अतधक खुला अतधक सिध स ृ , अतधक जीदवि बना हन ित्ृ यु िुम्हारे तनक
ी। लेककन िुम्हारी जीवरििा िुम्हारे जीवन का मशखर क्जिना ऊँचा हो ा। उिनी ही
हो ी।
क दि करीब हो ी। िुि केवल ित्ृ यु के,ित्ृ यु की िा ी के दवरूध स ही उठ
सकिे हो। जीवन का मशखर और ित्ृ यु की िा ी सदा पास-पास होिे है । और
क ही अनुपाि िें होिे है ।
इसमल
िें कहिा हार कक नीत्शे के सात्र का पालन करना चा ह । यह बड़ा आयाक्त्िक सात्र है । नीत्शे कहिा है , ‘खिरे िें जीगर।’ ऐसा नहीर कक खिरा िुम्हें खोजना है । खिरे को अनी और से खोजने की कोच जरूरि नहीर है ।
बस सुरक्षा िि खड़ी करो। अपने चारगे और दीवारें िि खीचगे स्तवाभादवक रूप से जीगर और यही बहुि खिरनाक हो ा। खिरे को खोजने की जरूरि नहीर है । कफर िुि यह दवतध कर सकिे हो, ‘स्तवयर को सभी दशागर िें पररयाि होिा हुआ िहसास करो—सुदरा ,सिीप।’ कफर यह बहुि आसान है । य द दीवारें न हगे िो िुि स्तवयर को सब और याि होिा हुआ अनुभव करने ही ल ो े। कफर िुि कहार सिाि होिे हो। इसकी कोच सीिा नहीर हो ी। िुि बस ्दय से शुरू होिे हो। और कहीर भी सिाि नहीर होिे। बस िुम्हारे पास
क केंि है और कोच पररतध नहीर है । पररतध बढ़िी चली जािी है —आ े
और आ े। पारा आकाश उसिे सिा जािा है 1 मसिारे उसिें िाििे है । पथ्ृ वीयार उसी िें बनिी है और मि िी है । ग्रह उ िे है । और अस्ति होिे है। पारा ब्रह्िारड िुम्हारी पररतध बन जािा है । इस दवस्तिार िें िुम्हारा अहर कार कहार हो ा? इस दवस्तिार िें िुम्हारे कष्
कहार हगे े। इस दवस्तिार िें िुम्हारा
चालाक िन कहार हो ा। इिनी दवस्तिार िें िन नहीर बच सकिा, दवलीन हो जािा है । बस
क सरकीणय स्तथान पर
ही िन बच सकिा है । िन िो केवल िभी चल सकिा है जब दीवारगे िें बरद हो। कैद हो। यह बरद होना ही सिस्तया है । खिरे िें जीगर और असुरक्षा िें जीवन के मल
िैयार रहो। और िजा यह है । कक अ र िुि असुरक्षा
िे न भी रहना चाहो िो भी असुरक्षक्षि ही हो। िुि कुछ भी नहीर कर रहे हो। िैंने
क राजा के बारे िें सुना था। वह अतधक डरपोक था, सभी राजा डरपोक होिे है । यगेकक उन्हगेने इिने
लो गे को शोनण ककया होिा है । उन्हगेने इिने लो गे को दबाया कुचला हािा है । इिने लो गे पर उन्हगेने
राजनीतिज्ञ खेल खेले है । उनके कच शत्रु बन जािे है । असली राजा का कोच मित्र नहीर होिा हे । हो ही नहीर
सकिा। यगेकक ितनष्ठत्ि मित्र भी उसका शत्रु होिा है । बस अवसर की िलाश होिी है । कब उसे िार कर
उसकी ज ह बैठा जाये1 सिा िें जो यक्ि होिा है उसका कोच मित्र नहीर हो सकिा। ककसी ह लर, ककसी स्त ै मलन, ककसी तनकसन, ककसी चर ेज खार, ककसी ना दर शाह…..का कोच मित्र नहीर था। उसके बस शत्रु होिे है कक कब िौका मिलिे ही उसको धका दे कर वे स्तवयर मसरहासन पर बैठ सकें। जब भी उन्हें मिलें वह कुछ भी कर सकिे है ।
क ही क्षण पहले वे मित्र थे, लेककन उनकी मित्रिा
सत्िा िें जो है उसका कोच मित्र नहीर हो सकिा।
क छलावा है । उनकी मित्रिा
क दारव-पेंच है ।
इसीमल
लागत्से कहिा है : ‘य द िुि चाहिे हो कक िुम्हारे मित्र हगे िो सत्िा िें िि आग। कफर सारा सरसार
िुिहारा मित्र है । य द िुि सत्िा िें हो िो बस िुि ही अकेले मित्र हो। बाकी सब शत्रु है ।’
िो वह राजा बहुि डरा हुआ था। उसे ित्ृ यु का बड़ा भय था। चारगे और ित्ृ यु ही ित्ृ यु थी। उसे यही भय ल ा रहिा था कक उसके आस पास सभी उसे िारना चाहिे है । वह सो भी नहीर सकिा था। उसने अपने सलाहकारगे से पाछा कक या करना चा ह । उन्हगेने कहा कक वह
क ऐसा िहल बनवा
क्जसिे केवल
क ही वावार हो। वावार
पर सैतनकगे की साि ु कगड़यगे खड़ी की जा र। पहली ु कड़ी िहल पर नजर रखे, दस ु री ु कड़ी पहली पर। िीसरी दस ा री पर राजा ने
क ही वावार होने से कोच और नहीर भीिर आ सकिा। और आप सुरक्षक्षि रहें े।
क ही वावार वाला िहल बनवाया और उस पर सैतनकगे की साि ु कगड़यार िैनाि करवा दी जो
पर नजर रखिी थी। यह खबर चारगे और फैल
क दस ा रे
च पड़ोसी राज्य का राज उसे दे खने आया। वह भी भयभीि था।
उसे खबर मिली थी कक पड़ोसी राजा ने ऐसा सुरक्षक्षि िहल बनवाया है । जहार उसे िार पाना असरभव है । िो वह दे खने आया और दोनगे ने मिलकर इस खिरा नहीर हे ।
क ही वावार वाले िहल और सुरक्षा यवस्तथा की बड़ी प्रशरसा की—कोच
जब वे वावार की और दे ख रहे थे िो सड़क के ककनारे बैठा हर स यगे रहा है?’ मभखारी ने उत्िर दया, ‘िैं इसमल जाकर
क मभखारी हर सने ल ा। िो राजा ने उससे पाछा:’िुि
हर स रहा हार कक िुिसे क लिी हो च हे । िुम्हें अरदर क वावार को भी बरद कर लेना चा ह । यह वावारा खिरनाक है । कोच इससे भीिर धस ा सकिा है । वावार
का अथय ही है कक कोच भीिर आ सकिा है । य द और कोच न भी आ िुि
िो कि से कि ित्ृ यु िो आ
ी ही। िो
क काि करो: अरदर चले जाग और इस वावार को भी बरद कर लो। िब िुि सच िें सुरक्षक्षि हो जाग े।
यगेकक ित्ृ यु भी नहीर िुस सके ी।’
लेककन राजा ने कहा, ‘अ र िैं यह वावार भी बरद कर लार िो िैं वैसे ही िर जाऊँ ा।’ उस मभखारी ने कहा,
तनन्यानवे प्रतिशि िो िुि िर ही चाके हो। िुि उिने ही जीदवि हो क्जिना यह वावार। बस इिना ही खिरा है , इिने ही िुि जीदवि हो। यह जीवरििा भी छोड़ दो।
सभी अपनी-अपनी िरह से अपने आस-पास िहल बना रहे है । िाकक भीिर कोच न आ सके। और वे शारति से रह सकें। लेककन कफर िुि पहल ही िर
चीज नहीर है । जीवरि रहो। खिरे िें जीगर।
। और शारति बस उन्हें ही ि िी है जो जीदवि है । शारति कोच िुदाय
क सरवेदनशील, िुि जीवन जीगर। िाकक िुम्हें सब कुछ स्तपशय कर
सके। और अपने साथ सब कुछ होने दो। क्जिना िुम्हारे साथ कुछ ि े ा। उिने ही िुि सिध स ृ होग े।
कफर िुि इस दवतध का अभ्यास कर सकिे हो। कफर यह दवतध बड़ी सरल है । िुम्हें इसका अभ्यास करने की जरूरि नहीर पड़े ी। बस भाव करो, और िुि पारे आकाश िें पररयाि हो जाग े। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-71
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—100 (ओशो) पहली विधि:
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—100 (गशो)
‘िस्तुओं और विषयों का गुणििथ ज्ञानी िे अज्ञानी के मलए सिान ही होता है । ज्ञानी की िहानता यह है कक िह आत्िगत भाि िें बना रहता है । िस्तुओं िें नहीं खोता।’
यह बड़ी यारी दवतध है । िुि इसे वैसे ही शुरू कर सकिे हो जैसे िुि हो; पहले कोच शिय पारी नहीर करनी है ।
बहुि सरल दवतध है : िुि यक्ियगे से, वस्तिुगर से, ि नागर से तिरे हो—हर क्षण िुम्हारे चारगे और कुछ न कुछ है । वस्तिु र है , ि ना र है , यक्ि है —लेककन यगेकक िुि सचेि नही हो, इसमल िुि भर नहीर हो। सब कुछ िौजाद है लेककन िुि
हरी नीरद िें सो
ि ना र िुम्हारे चारगे िरफ ि
हो। वस्तिु र िुम्हारे चारगे िरफ िौजाद है, लो
रही है । लेककन िुि वहार नहीर हो। या, िुि सो
िुम्हारे चारगे िरफ िाि रहे है ।
हु
हो।
िो िुम्हारे आस-पास जो कुछ भी होिा है वहीर िामलक बन जािा है , िुम्हारे ऊपर हावी हो जािी है । िुि उसके वावारा खीरच मल
जािे हो। िुि केवल उससे प्रभादवि ही नहीर होिे। सरस्तकाररि भी हो जािे हो। खीरच मल
हो। कुछ भी चीज िुम्हें पकड़ ले सकिी है । और िुि उसके पीछे चलने ल गे े। कोच पास से चेहरा सुरदर है —और िुि प्रभादवि हो प्रभादवि हो
। कोच कार
जािे
ुजरा, िुिने दे खा
। कोच सुरदर पोशाक दे खो, उसका रर , उसका कपड़ा सुरदर है —िुि
ुजरी—िुि प्रभादवि हो
। िुम्हारे आस-पास जो कुछ भी चलिा है । िुम्हें पकड़
लेिा है । िुि बलशाली नहीर हो। बाकी सब कुछ िुिसे ज्यादा बलशाली है । कुछ भी िुम्हें बदल दे िा है । िुम्हारी भाव-दशा, िुम्हारा तचि, िुम्हारा िन, सब दस ा री चीजगे पर तनभयर है । दवनय िुम्हें प्रभादवि कर दे िे है । यह सात्र कहिा है कक ज्ञानी और आज्ञानी
क ही ज ि िें जीिे है ।
क बुध स पुरून और िुि
क ही ज ि िें
जीिे हो—ज ि वही रहिा है । अरिर ज ि िें नहीर पड़िा,अरिर बुध स पुरून के भीिर ि ि हािा है : वह अल से जीिा है । वह उन्हीर वस्तिुगर के बीच जीिी है । लेककन अल असर
ढर
ढर
से। वह अपना िामलक है । उसकी आत्िा
और अस्तपमशयि बनी रहिी है । वही राज है । उसको कुछ भी प्रभादवि नहीर कर सकिा है । बाहर से कुछ भी
उसको सरस्तकाररि नहीर कर सकिा; कुछ भी उस पर हावी नहीर हो सकिा। वह तनमलयि बना रहिा है । स्तवयर बना
रहिा है । य द वह कहीर जाना चाहे ा। लेककन िामलक बना रहे ा। य द वह ककसी छाया के पीछे जाना चाहे ा िो जा
ा, लेककन यह उसका अपना तनणयय हो ा।
इस भेद को सिझ लेना जरूरी है । तनमलयि से िरा अथय उस यक्ि से नहीर है क्जसने सरसार का त्या
कर
दया—कफर िो तनमलयि होने िें कोच सार न रहा, कोच अथय न रहा। तनमलयि वह यक्ि है जो उसी ज ि िें जी रहा है क्जसिें कक िुि—ज ि िें कोच भेद नहीर है । जो यक्ि सरसार का त्या
करिा है । वह केवल
पररक्स्तथति को बदल रहा है , स्तवयर को नहीर। और य द िुि स्तवयर को नहीर बदल सकिे िो पररक्स्तथति को बदलने पर ही जोर दो े। यह किजोर यक्ित्व का लक्षण है ।
क शक्िशाली यक्ि है , जो सिकय और सचेि है । स्तवयर को बदलना शुरू करे ा। उस पररक्स्तथति को नहीर
क्जसिें वह है । यगेकक वास्तिव िें पररक्स्तथति को िो बदला ही नहीर जा सकिा; अ र िुि
क पररक्स्तथति को
बदल दो िो कफर दस ा री पररक्स्तथतियार हो ीर। हर क्षण पररक्स्तथति बदलिी रहिी है । िो हर क्षण सिस्तया िो बनी ही रहने वाली है ।
धामियक और अधामियक ढ़क्ष् कोण के बीच यही अरिर है । अधामियक ढ़क्ष् कोण है पररक्स्तथति को , पररवेश को बदलने का। वह ढ़क्ष् कोण िुििें भरोसा नहीर करिा, पररक्स्तथतियगे िें भरोसा करिा हे । जब पररक्स्तथति ठीक हो
जािी है । िुि पररक्स्तथति पर तनभयर हो: अ र पररक्स्तथति ठीक न हुच िो िुि स्तविरत्र इकाच नहीर हो। कम्युतनस्त गे, िासय वा दयगे, सिाज वा दयगे, और उन सबके मल जो पररक्स्तथतियगे के बदलने िें भरोसा करिे है । िुि िहत्वपाणय नहीर हो। असल िें िुम्हारा अक्स्तित्व ही नहीर है । केवल पररक्स्तथति है और िुि बस
क दपयण हो,
लेककन यह िुम्हारी तनयति नहीर है —िुि कुछ और हो सकिे हो, वह हो सकिे हो जो ककसी पर तनभयर नहीर है । दवकास के िीन चरण है । पहला: पररक्स्तथति िामलक है और िुि बस पीछे -पीछे तिस िे हो। िुि िानिे हो कक िुि हो, लेककन िुि हो नहीर।
दस ा रा: िुि होिे हो, और पररक्स्तथति िुम्हें िसी िुि
क सरकल्प बन
नहीर सकिी, पररक्स्तथति िुम्हें प्रभादवि नहीर कर सकिी। यगेकक
हो। िुि कें िि और कक्रस्त लाइजेशन हो
हो।
िीसरा: िुि पररक्स्तथति को प्रभादवि करने ल िे हो—िुम्हारे होने िात्र से ही पररक्स्तथति बदलने ल िी है । पहली अवस्तथा अज्ञानी की है ; दस ा री अवस्तथा उस यक्ि कक है जो सिि सज उसे सज
रहना पड़िा है । सज
है । इसमल
है । लेककन अभी है अज्ञानी ही—
कुछ करना पड़िा है । उसका जा रण अभी स्तवाभादवक नहीर हुआ उसे सरिनय करना पड़िा है । य द वह क क्षण के मल भी होश या जा रण खोिा है िो वह वस्तिु के
प्रभाव िें आ जा
रहने के मल
ा। िो उसे सिि होश रखना पड़िा है । वह साधक है , जो साधना कर रहा है ।
शक्ि स्तिरण रखने जैसी चीज है । िुि किजोर हो इसीमल
कोच भी चीज िुि पर हावी हो सकिी हे । और
शक्ि आिी है सज िा से, होश से। क्जिने ज्यादा सज , उिने ही शक्िशाली; क्जिने कि सज
उिने कि
शक्िशाली। दे खो: जब िुि सो
होिे हो िो
िुिने सारा होश खो दया है । सरदेह नहीर कर सकिे।
क सपना भी शक्िशाली हो जािा है । यगेकक िुि
क सपना भी शक्िशाली हो
हरी नीरद िें खो
हो,
या। और िुि इिने किजोर हो कक िुि उस पर
बेिुके से बेिुके स्तवन िें भी िि ु सरदेह नहीर कर सकिे, िुम्हें उसे िानना ही हो ा। और जब िक वह चलिा है , िब िक वास्तिदवक ल िा है । सपने िें भले ही िुि बेिुकी चीजें दे खो, लेककन सपना दे खिे सिय िुि उस पर सरदेह नहीर कर सकिे। िुि ऐसा नहीर कह सकिे कक यह वास्तिदवक नहीर है ; िुि ऐसा नहीर कह सकिे कक बस क सपना है , कक यह असरभव है । िुि ऐसा कह ही नहीर सकिे हो, यगेकक िुि
हरी नीरद िें हो।
जब होश नहीर होिा िो
क सपना भी िुम्हें ककिना प्रभादवि करिा हे । जा
कर िि ु हर सो े और कहो े, ‘वह
सपना बेिुका था, असरभव था, ऐसा हो ही नहीर सकिा। वह केवल ्ि था।’ लेककन जब वह चल रहा था िो यह बाि िुम्हारे याल िें नहीर आच थी और िुि उसिें उलझे ही रहे । उससे प्रभादवि हो
ये। उसिें खो
ये।
सपना इिना शक्ि शाली यगे था? सपना शक्िशाली नहीर था, िुि शक्िहीन थे। इसे स्तिरण रखो: जब िुि शक्िहीन होिे हो िो
क सपना भी शक्िशाली हो जािा है । जब िुि जा े होिे हो
िो कोच सपना िुि पर प्रभावी नहीर हो सकिा, लेककन यथाथय, िथाकतथि यथाथय प्रभावी हो जािा है । जा ा हुआ यक्ि बुध स पुरून इिना सज होिा है कक िुम्हारा यथाथय भी उसे प्रभादवि नहीर कर सकिा। य द कोच स्तत्री कोच सुरदर सत्री पास से
ुजर जा
कािना। िुि अ र सज
िो िुम्हारा िन उसके पीछे हो लेिा है ।
हो िो स्तत्री
प्रभादवि नहीर होग े। िो िुि प्राणगे िें
हो; कुछ भी िुम्हें िुिसे बाहर नहीर िसी तनणयय है ।
क कािना उठ
च, उसे पाने की
ुजर जा
ी लेककन कोच कािना नहीर उठे ी। िुि प्रभादवि नहीर हु , िुि क सा्ि आनरद का अनुभव करो े। पहली बार िुम्हें ल े ा कक िुि सकिा। िुि य द पीछे जाना चाहो िो वह दस ा री बाि है , वह िुम्हारा
लेककन स्तवयर को धोखा िि दो। िुि धोखा दे सकिे हो। िि ु कह सकिे हो, ‘हार, स्तत्री शक्िशाली नहीर है । लेककन िैं उसके पीछे जाना चाहिा हार। िैं उसे पाना चाहिा हार, िुि धोखा दे सकिे हो। बहुि से लो धोखा द चले जािे हो। लेककन िुि ककसी और को नहीर स्तवयर को ही धोखा दे रहे हो। कफर यह यथय है । जरा ौर से दे खा: िुि कािना को वहार पाग े। कािना पहले आिी है । कफर िि ु उसी याया करिे हो।’ ज्ञानी यक्ि के मल
चीजें भी है और वह भी है । लेककन उसके और चीजगे के बीच कोच सेिु नहीर है । सेिु ा
या है । वह अकेला चलिा है । अकेला जीिा है । वह अपना ही अनुसरण करिा है । कुछ और उसे आदवष्
नहीर
कर सकिा। इस अनुभव के कारण ही हिने इस उपलक्ध को िोक्ष कहा है । िुक्ि कहा है । वह परि िुि है । सरसार िें हर ज ह िनुष्य ने िुक्ि की खोज की है । िुि ऐसा से िुक्ि न खोज रहा हो। अ ल-अल
क भी िनुष्य नहीर खोज सकिे जो अपने ढर
रास्तिगे से िनुष्य सह अवस्तथा खोजने की कोमशश करिा है । जहार वह
िुि हो सके। और ऐसी ककसी भी चीज को वह िण ृ ा करिा है जो उसे बरधन िें बारधे। कोच भी चीज जो उसे रोकिी है, बाँधिी है , उससे वह लड़िा है । उससे सरिनय करिा है । इसीमल
िो इिने राजनीतिज्ञ सरिनय है , इिने युध स है, इिनी क्रारतियार है । इसीमल
पति और पत्नी, बाप और बे ा,सभी
क दस ा रे से लड़ रहे हे । लड़ाच बुतनयादी है । लड़ाच है िुक्ि के मल । पति
बरधन अनुभव करिा है । पत्नी ने उसे बाँध मलया है —अब उसकी स्तविरत्रिा क ल िा है । दोनगे
िो इिने पाररवाररक सरिनय है — च। और पत्नी को भी ऐसा ही
क दस ा रे से लखन्न है । दानगे बरधन को िोड़ने की कोमशश करिे है । बाप बे े से लड़िा है ।
यगेकक बे े के दवकास के हर कदि का अथय है उसके मल
और स्तविरत्रिा। और बाप को ल िा है कक वह कुछ
खो रहा है । अपनी शक्ि, अपना अतधकार। िो पररवारगे िें , दे शगे िें, सभ्यिागर िें िनुष्य केवल पीछे भा
क ही चीज के
रहा है —िुक्ि।
लेककन राजनीतिक लड़ाइयगे से, क्रारतियगे से, युध सगे से कुछ भी नहीर मिलिा, कुछ भी हाथ नहीर आिा। यगेकक अ र िुि स्तविरत्रिा पा भी लो, िो वह ऊपर-ऊपर है —भीिर िोह भर
मसध स होिी हे ।
हरे िें िुि बरधन िें ही रहिे हो। िो हर स्तविरत्रिा
क
िनुष्य धन की इिनी कािना करिा है , लेककन जहार िक िैं सिझिा हार, यह धन की कािना नहीर है । िुक्ि की कािना है । धन िुम्हें स्तविरत्रिा का क भाव दे िा है । अ र िुि रीब हो िो िुि सीमिि हो, िुम्हारे साधन सीमिि हो। िुि यह नहीर कर सकिे, वह नहीर कर सकिे। वह सब करने के मल
िुम्हारे पास धन ही नहीर है ।
क्जिना धन िुम्हारे पास हो उिना ही िुम्हें ल िा है कक िुम्हारे पास स्तविरत्रिा हे । िुि जो करना चाहो कर सकिे हो।
लेककन जब धन खाब िुम्हारे पास इकट्ठा हो जािा हे और िुि वह सब कर सकिे हो जो िुि करना चाहिे
थे,क्जसकी कल्पना करिे थे। या क्जसका सपना लेिे थे—िो अचानक िुि पािे हो कक यह स्तविरत्रिा ऊपर-ऊपर
है । यगेकक भीिर से िुम्हारे प्राण अछी िरह जानिे है कक िुि शक्िहीन हो और कुछ भी िुम्हें प्रभादवि कर सकिा है । िुि वस्तिुगर और यक्ियगे वावारा प्रभादवि हो जािे हो, सम्िो हि हो जािे हो।
यह सात्र कहिा है कक िुम्हें चेिना की ऐसी अवस्तथा पर आना है जहार कुछ भी िुम्हें प्रभादवि न करे । िि ु तनमलयि बने रह सको। यह कैसे हो? दन भर इसके मल मल
अछी है । ककसी भी क्षण िुि सज
अवसर है । इसीमल
हो सकिे हो। कुछ िुम्हें आदवष्
िैं कहिा हार कक यह दवतध िुम्हारे कर रहा है । िब क हरी वास
लो, हरी वास भीिर खीरचो, हरी वास बाहर छोड़ो, और उस चीज को कफर से दे खो। जब िि ु वास को बाहर छोड़ रहे हो िो उस चीज को कफर से दे खो, लेककन दे खो य द िुि
क क्षण के मल
क साक्षी की िरह।
क िष् ा की िरह।
भी िन की साक्षी-दशा को पा सको िो अचानक िुि पाग े कक िुि अकेले हो, कुछ
भी िुम्हें प्रभादवि नहीर कर सकिा। कि से कि उस क्षण िें िो कुछ भी िुििें कािना पैदा नहीर कर सकिा।
जब भी िुम्हें ल े कक कोच चीज िुम्हें प्रभादवि कर रही है । िुि पर हावी हो रही है । िुम्हें िुिसे दरा ले जा रही है । िुिसे ज्यादा िहत्वपाणय हो रही है —िो
हरी वास लो और छोड़ा। और वास बाहर छोड़ने से पैदा हु उस छो े से अरिराल िें उस चीज की और दे खो—कोच सुरदर चेहरा, कोच सुरदर शरीर,कोच सुरदर िकान या कुछ भी। य द िुम्हें यह क ठन ल े, अ र वास बाहर छोड़ने भर से ही िुि अरिराल पैदा न कर पाग। िो और करो। वास बाहर छोड़ो। और
क कदि
क क्षण का भीिर लेना रोक लो। िाकक पारी वायु बाहर तनकल जा । रूक
जा । वास भीिर िि लो। कफर उस चीज की और दे खो। जब पारी वायु बाहर है । या भीिर है। जब िुिने वास लेना बरद कर दया है िो कुछ भी िुम्हें प्रभादवि नहीर कर सकिा। उस क्षण िें िुि सेिु हीन हो जािे हो। सेिु ा
जािा है । वास ही सेिु है ।
इसे करके दे खो। केवल मिल जा
क क्षण के मल
ऐसा हो ा कक िुि साक्षी को िहसास करो े। लेककन उससे िुम्हें स्तवाद
ा। उससे िुम्हें यह अनुभव हो जा
ा कक साक्षक्षत्व या है । कफर िुि उसकी खोज िें बढ़ सकिे हो।
दन भर िें जब भी कभी कोच चीज िुम्हें प्रभादवि करिी है और कोच कािना उठिी है , वास बाहर छोड़ो, उस
अरिराल िें रुको, और कफर उस चीज की और दे खो। चीज की और दे खो। चीज वहीर हो ी, िुि वहार होग े, लेककन बीच िें कोच सेिु नहीर हो ा। वास ही सेिु है । अचानक िुम्हें ल े ा कक िुि शक्िशाली हो, प्राणवान हो। और क्जिने शक्िशाली िुि अनुभव करो े उिने ही िि ु कें िि होग े। क्जिनी चीजें त रिी जा र ी, क्जिनी चीजगे की शक्ि िुि पर से ह िी जा अब िुम्हारे पास
ी, उिने ही अतधक कें िि िि ु होिे जाग े। अब िुम्हारा यक्ित्व शुरू हुआ। क केंि है और ककसी भी क्षण िुि केंि पर सरक सकिे हो। और वहार सरसार मि जािा है ।
ककसी भी क्षण िुि अपने केंि िें क्स्तथर हो सकिे हो। और िब सरसार शक्िहीन हो जािा है । यह सात्र कहिा है, ‘वस्तिुगर और दवनयगे का
ुणधिय ज्ञानी और अज्ञानी के मल
सिान ही होिा है । ज्ञानी की
िहानिा यह है कक वह आत्ि ि भाव िें बना रहिा है । वस्तिुगर िें नहीर खोिा।’
यह आत्ि ि भाव िें बना रहिा है । वह स्तवयर िें बना रहिा है । वह चेिना िें कें िि रहिा है । इस आत्ि ि भाव िें बने रहने को साधना पड़े ा। क्जिने भी अवसर िुम्हें मिले सकें, इसे करके दे खो। और हर क्षण अवसर है ।
क- क क्षण अवसर है । कुछ न कुछ िुम्हें प्रभादवि कर रहा है । बुला रहा है । बाहर खीरच रहा है । भीिर
धकेल रहा है । िुझे त्या
क पुरानी कहानी याद आिी है ।
क िहान राजा, भिह यृ रर ने सरसार का त्या
कर दया। उसने सरसार का
कर दया। यगेकक उसने पारी िरह उसे जीया था और पाया था कक वह यथय है । यह उसके मल
कोच
मसध सारि नहीर था। यह उसकी जीया हुआ सत्य था। अपने स्तवयर के जीवन से वह इस तनष्कनय पर पहुरचा था। वह शक्िशाली आदिी था। जीवन िें क्जिना हो सकिा था हरे या था। कफर अचानक उसने पाया कक यह यथय है , बेकार है । िो उसने सरसार को त्या क दन वह
दया और जर ल िें चला
क वक्ष ृ के नीचे बैठा यान कर रहा था। सायय उ
से जो छो ी सी प डरडी कर वापस लौ लेने की
दया। सब त्या
या।
रहा था। अचानक उसने दे खा कक वक्ष ृ के पास
ज ु रिी थी उस पर
क बहुि बड़ा हीरा पडा है । उ िे हु सारज की ककरणें उससे करा रही थी। भिह यृ रर ने भी ऐसा हीरा पहले नहीर दे खा था। अचानक, बेहोशी के क क्षण िें , उसे उठा
क कािना िन िें ज ी। शरीर िो अचल बना रहा। लेककन िन चल पडा। शरीर यान की िुिा
िें ,मसध सासन िें था। लेककन यान अब वहार नहीर था। केवल िि ु ा था—वह हीरे की ृ शरीर ही वहार था। िन जा चक और चला
या था।
लेककन इससे पहले कक राजा हल भी पािा, दो आदिी आने-अपने िोड़गे पर सवार अल -अल
दशागर से आ
और
क साथ ही दोनगे की नजर राह पर पड़े हीरे पर पड़ी। दोनगे ने हीरे को पहले दे खने का दावा करिे हु िलवार तनकाल ली। तनणयय का और िो कोच उपाय नहीर था। वे दोनगे जाझ पड़े और क दस ा रे को सिाि कर डाला। कुछ ही क्षणगे िें हीरे के तनक यान िें डाब
या।
ही दो लाशें पड़ी थी। भिह यृ रर हर सा, अपनी आरखें बद कर ली। और कफर
या हुआ? उसे कफर से यथयिा का बोध हुआ। और उन दो आदमियगे को या हुआ। हीरा उनके जीवन से भी ज्यादा िाल्यवान हो या। िालककयि का यह अथय है : क पत्थर को पाने के मल उन्हगेने अपनी जान रवा दी। जब कािना होिी है िो िुि नहीर होिे। कािना िुम्हें आत्ििाि िक ले जा सकिी है । असल िें हर कािना
िुम्हें आत्ििाि की और ले जा रही है । जब िुि ककसी कािना के वश िें होिे हो िो अपनी सुध-बुध खो दे िे हो। पा ल हो जािे हो।
िालककयि की कािना भिह यृ रर के िन िें भी उठी, क क्षणार उठ भी
के मल
कािना उठी। और वह उसे लेने के मल
या होिा। लेककन इससे पहले कक वह हलिा भी, दो दस ा रे यक्ि वहार आ , आपस िें लड़े और अ ले
ही क्षण सड़क पर दो लाशें उस पिथर के पास पड़ी थी। जो अपनी ज ह पर वैसा का वैसा पडा था। भिह यृ रर हर सा, और उसने अपने आरखें बरद कर ली। और यान िें डाब क पत्थर
सरसार मि
क हीरा, क वस्तिु ज्यादा शक्िशाली हो
या। और उसने अपने आरखें बरद कर ली।
या।
क क्षण के मल
च थी। लेककन केंि कफर लौ
उसका केंि खो
या था।
आया। हीरे के खोिे ही पारा
स दयगे से यानी अपनी आरखें बरद करिे रहे है । यगे? यह केवल प्रिीकात्िक है कक सरसार मि
या, कक दे खने
को कुछ न रहा। कक ककसी चीज का कोच िुल्य नहीर है—दे खने योग्य भी नहीर। िुम्हें यह सिि स्तिरण रखना
पड़े ा कक जब भी कािना उठिी है । िुि अपने केंि से बाहर तनकल जािे हो। यह बाहर जाना ही सरसार है । कफर वापस लौ
आग, कफर से कें िि हो जाग।
यह िुि कर पाग ,े इसकी क्षििा हर ककसी के पास हे । आरिररक सरभावना िो कोच भी कभी नहीर खोिा। वह हिेशा रहिी है । िुि वापस लौ
सकि हो। अ र िुि बाहर जा सकिे हो िो भीिर भी जा सकिे हो। अ र िैं
अपने िर से बाहर जा सकिा हार िो वापस भीिर यगे नहीर लौ सकिा? वहीर रास्तिा िय करना है ; वही पैर काि िें लाने है । अ र िैं बाहर जा सकिा हार िो भीिर भी आ सकिा हार। हर क्षण िुि बाहर जा रहे हो। लेककन जब भी िुि बाहर जाग। स्तिरण करो—और अचानक वापस लौ कें िि हो जाग। अ र शुरू िें थोड़ा क ठन ल े िो
क
आग।
हरी वास लो। वास बाहर छोड़ो। और रूक जाग।
इस क्षण िें उस चीज की और दे खो जो िुम्हें आकदनयि कर रही है । असल िें िुम्हें कुछ आकदनयि नहीर कर रहा था। िि ु आकदनयि हो रहे थे। उस तनजयन वन िें रहा पर पडा हीरा
ककसी को आकदनयि नहीर कर रहा था, वह िो बस वहार पडा हुआ था। हीरे को पिा भी नहीर था कक भिह यृ रर आकदनयि हो रहा है । कक कोच अपने यान से, अपने केंि से दवचमलि हो या। हीरे को पिा भी नहीर था कक दो लो
उसके मल
लड़े और अपनी जान
ारव बैठे।
िो कुछ भी िुम्हें आकदनयि नहीर कर रहा—िुि आकदनयि हो रहे हो। जा भीिर का सरिुलन वापस पा लो े। इसे जब भी याल आ जा क्षण आ
जाग और सेिु ा
जा
ा। और िुि
करिे रहो। क्जिना करो उिना अछा। और
क
ा जब िुम्हें इसे करना ही जरूरि नहीर पड़े ी। यगेकक िुम्हारी आरिररक शक्ि िुम्हें इिना बल दे ी
कक चीजगे का आकनयण खो जा
ा। यह िुम्हारी किजोरी ही है जो आकदनयि होिी है । अतधक शक्ि शाली बनो।
और कुछ भी िुम्हें आकदनयि नहीर करे ा। केवल िभी िुि पहली बार अपने प्राणगे के िामलक होिे हो।
और उससे िुम्हें वास्तिदवक िुक्ि मिले ी। कोच राजनैतिक स्तविरत्रिा, कोच आतथयक स्तविरत्रिा, कोच सािाक्जक
स्तविरत्रिा बहुि सहयो ी नहीर हो ी। ऐसा नहीर कक उनिें कुछ खराबी है । वे अछी है । अपने आप िें अछी है । लेककन वे स्तविरत्रिा र िुम्हें यह सब न दे पा र ी क्जसके मल िम् ु हारा अरिरिि अभीसा कर रहा हे । चीजगे से, वस्तिुगर से स्तविरत्रिा, ककसी वस्तिु या यक्ि से िो हि होने की ककसी भी सरभावना से िुि स्तवयर होने की स्तविरत्रिा। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-73
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—101 (ओशो) दस ू री विधि:
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—101 (गशो)
‘सिथज्ञ, सिथशक्तिान, सिथव्यापी िानो।’
यह भी आरिररक शक्ि पर, आरिररक बल पर आधाररि है । बड़ी बीज रूप दवतध है । िानगे कक िुि सवयज्ञा हो, िाना कक िुि सवयशक्ििान हो। िानो कक िुि सवययापी हो।
यह िुि कैसे िान सकिे हो? यह असरभव है । िुि जानिे हो कक िुि सवयज्ञ नहीर हो, िुि अज्ञानी हो। िुि जानिे हो कक िि ु सवयशक्ििान नहीर हो। िुि लबलकुल अशक्ि और असहाय हो। िुि जानिे हो कक िुि स्तवययापी नहीर हो, िुि छो ी सी दे ह िें सीमिि हो। िो इस पर िुि कैसे दववास कर सकिे हो।
और य द भली भारति जानिे हु कक ऐसा नहीर है िुि इस पर दववास करो े िो वह दववास तनरथयक हो ा। अपने ही दवपरीि िुि दववास नहीर कर सकिे। ककसी दववास को िुि जबरदस्तिी थोप नहीर सकिे हो। लेककन वह यथय हो ा, तनरथयक हो ा। िुि जानिे हो कक ऐसा नहीर है । कोच दववास िभी उपयो ी हो सकिा है , जब िुि जानिे हो कक ऐसा ही है ।
यह सिझना जरूरी है । कोच दववास िभी शक्िशाली होिा है । जब िुि जानिे हो कक ऐसा ही है । सच या झाठ का सवाल नहीर है । अ र िुि जानिे हो कक ऐसा ही है िो दववास सत्य हो जािा है । अ र िुि जानिे हो कक ऐसा नहीर है िो सत्य भी दववास नहीर बन सकिा। यगे? कच चीजें सिझनी पड़े ी। पहली बाि िो, िुि जो भी हो वह िुम्हारा दववास है : िुि उस ढर
से दववास करिे हो, उस ढर
िें िुम्हारा
पालन-पोनण हुआ है । उस ढर िें िुम्हें सरस्तकाररि ककया या है । िो उसी िें िुि दववास करिे हो। और िुम्हारा दववास िुम्हें प्रभादवि करिा है । यह क दस्त ु चक्र बन जािा है । उदाहरण के मल
ऐसी जातियार हे जहार पुरून स्तत्री से किजोर है , यगेकक उन जातियगे का दववास है कक स्तत्री
पुरून से अतधक िजबाि हे । अतधक शक्िशाली है । उनका दववास
क िथ्य बन
या है । उन जातियगे िें पुरून
किजोर है और स्तत्रीयार िाकिवर। क्स्तत्रयार वे सब काि करिी है जो साधारणिया दस ा रे दे शगे पुरून करिे है । और
पुरून वह सब काि करिे है जो दस ा रे दे शगे िें क्स्तत्रयार करिी है । इिना ही नहीर,उनकी शरीर भी किजोर है , उनकी बनाव
किजोर है । वे यह िानने ल े है कक ऐसा ही है ।
दववास ही क्स्तथति का सज ृ न करिा है । दववास सज ृ नात्िक है । ऐसा यगे होिा है ? यगेकक िन पदाथय से ज्यादा शक्िशाली हे । य द िन सच िें ही कुछ िान लेिा है िो पदाथय को उसका अनुसरण करना पड़े ा। पदाथय िन के दवपरीि कुछ भी नहीर कर सकिा, यगेकक पदाथय िो जड़ है । िो असरभव भी ि िा हे ।
जीसस कहिे है , ‘श्रध सा पहाड़गे को भी हला सकिी है ।’ श्रध सा पहाड़गे को हला सकिी है । और य द न हला सके िो उसका अथय है कक िुिहें श्रध सा नहीर है —ऐसा नहीर कक श्रध सा पहाड़गे को नहीर हला सकिी। िुम्हारी श्रध सा पहाड़गे को नहीर हला सकिी, यगेकक िुम्हें श्रध सा ही नहीर है ।
दववास की ि ना पर बड़ी शोध चली है । और दवज्ञान बहुि से अदववसनीय तनष्कनों पर पहुरच रहा हे । धिय ने िो सदा से ही उन्हें िाना है । लेककन दवज्ञान भी अरिि: उन्हीर तनष्कनों पर पहुरच रहा है । और उन तनष्कनों पर उसे पहुरचना ही हो ा, यगेकक बहुि सी ि नागर पर पहली बार खोज हो रही है ।
जैसे, िुिने लैमसबो दवाइयगे के बारे िें सुना हो ा। सैकड़गे ‘पैतथयार’ सरसार िें चलिी है — लोपैथी, आयुवे दक, युनानी, होम्योपैथी, नेचरोपैथी—सैकड़गे। और सभी का दावा है कक वे रो करिे भी है । उनके दावे अल
हे ।
क ही रो
को ठीक कर सकिे है । और वह ठीक
लि नहीर है । यह बड़ी अद्भि ु बाि है —उनके तनदान अल -अल
है , उनके दवचार अल -
है और उसके सैकड़गे तनदान है और सैकड़गे उपचार है , और हर उपचार काि दे िा है । दव
यह प्रन उठना स्तवभादवक है कक वास्तिव िें उपचार काि करिा है या कफर रो ी का दववास काि करिा है । और यह सरभव है । कच दे शगे िें , कच दववदववायालयगे िें , कच अस्तपिालगे िें बहुि ढर गे से वे काि कर रह है । वे रो ी को पानी या कुछ और दे दे िे है । और रो ी यह िानिा है कक उसे दवा दी च हे । और केवल रो ी ही नहीर डा र भी यह िानिा है , यगेकक उसे भी पिा नहीर है । अ र डा र को पिा हो कक यह दवा है या नहीर िो उसका प्रभाव पड़े ा। यगेकक दवा से ज्यादा वह रो ी को दववास दे िा है । िो जब िुि बड़े डा र के पास जािे हो और ज्यादा पैसे दे िे हो िो जल्दी ठीक हो जािे हो। यह प्रन दववास
का है । डा र अ र िुम्हें चार पैसे की,मसफय चार पैसे की दवाच दे िो िुम्हें पारा दववास होिा हे । कक उसके कुछ होने वाला नहीर है । इिनी बड़ी बीिारी वाला इिना बड़ा रो मल
चार पैसे से कैसे ठीक हो सकिा है । असरभव, इसके
दववास पैदा नहीर ककया जा सकिा। िो हर डा र को अपने आस-पास दववास का
क वािावरण बनाना
पड़िा है । वह वािावरण सहयो ी होिा है । िो अ र डा र को पिा हो कक वह जो दे रहा है वह मसफय पानी ही है िो वह भरोसे के साथ आवासन नही दे पा
ा। उसके चेहरे से पिा चल जाये ा। उसके हाथगे से पिा चल जाये ा। उसके पारे आचार-यवहार से पिा
चल जाये ा। और रो ी का अचेिन उससे प्रभादवि हो ा। डा र का दववास जरूरी है । वह क्जिना आशवस्ति हो ा उिना ही अछा है । यगेकक उसका दववास सरक्रािक होिा है । अब वे कहिे है कक िुि कुछ दवा उपयो भी उपयो
करो।
करो िीस प्रतिशि रो ी िो करीब-करीब ित्क्षण ठीक हो जा र े। कुछ
लोपैथी, नेचरोपैथी, होम्योपैथी, या कोच भी पैथी—कुछ भी उपयो
ित्क्षण ठीक हो जा र े।
करो, िीस प्रतिशि रो ी
वे िीस प्रतिशि दववास करने वाले लो िीस प्रतिशि लो
है । यही अनुपाि हर ज ह है । अ र िैं िुम्हारी और दे खा िो िुििें से
ऐसे हगे े जो ित्क्षण रूपारिररि हो जा र े।
क बार दववास उनिें बैठ जा
िो वह उसी
सिय काि करना शुरू कर दे िा है । िीस प्रतिशि िनुष्यिा को लबना ककसी क ठनाच के ित्क्षण चेिना के न िलगे पर रूपारिररि ककया जा सकिा है । बदला जा सकिा है । सवाल मसफय इिना है कक उनिें दववास कैसे ज ाया जाये।
क बार दववास ज
जा
िो कुछ भी उन्हें नहीर रो
सकिा। हो सकिा है कक िुि भी उन
सौभाग्यशामलयगे िें से, उन िीस प्रतिशि िें से ही होग। लेककन िनुष्यिा के साथ वह यह कक िीस प्रतिशि लो
तनर दि हो
है । सिाज, मशक्षा,सरस्तकृति, सब उनकी तनरदा करिे है । उनको िाखय
सिझा जािा है । नहीर, वे बड़ी सरभावना वाले लो
है । उनके पास
क बड़ी िाकि है । लेककन वे तनर दि है । और थोथे बुदध सजीदवयगे
की प्रशरसा होिी है । यगेकक वे भाना, शदगे और िकय के साथ खेल सकिे है । इसमल वास्तिव िें वे नापुरस
क बड़ा दभ ु ायग्य ि ा है । और
उनकी प्रशरसा की जािी है ।
है । अरिस के वास्तिदवक ज ि िें वे कुछ नहीर कर सकिे। वे बस अपना दिा
सकिे हे । लेककन युतनवमसय ी उनके पास है । न्याज िीगडया उनके पास है ।
क िरह से वे लो
चला
िामलक है । और
तनरदा करने िें वे कुशल है । वे ककसी भी चीज की तनरदा कर सकिे है । और िनुष्यिा का यह िीस प्रतिशि हस्तसा क्जसिें सरभावना है , वे लो
जो दववास कर सकिे है और रूपारिररि हो सकिे है , वे शदगे िें इिने कुशल
नहीर होिे—वे हो भी नहीर सकिे। वे िकय नहीर कर सकिे,दववाद नहीर कर सकिे। इसी कारण िो वह दववास कर सकिे है । लेककन यगेकक वे स्तवयर के मल उनिें कुछ
िकय नहीर दे सकिे इसमल
वे खुद ही आत्ि-तनरदक बन
लि है । अ र िि ु दववास कर सको िो िुम्हें ल िा है कक िुम्हारे साथ कुछ
है। वे सोचिे है कक लि है; अ र िुि
सरदेह कर सको िो िुि सोचिे हो कक िि ु िहान हो। लेककन सरदेह की कोच िाकि नहीर है । सरदेह के वावारा कभी भी कोच अरिरिि िक, परि आनरद िक नहीर पहुरच सकिा। अ र िुि दववास कर सकिे हो िो यह सात्र िुम्हारे मल
उपयो ी हो ा।
‘सवयज्ञ, सवयशक्ििान, सवययापी िानगे।’ िुि वह हो ही, इसमल ित्क्षण त र जा
ा।
िुम्हारे िान लेने िात्र से वह सब जो िुम्हें तछपा
लेककन उन िीस प्रतिशि के मल
हु
है , वह सब जो िुम्हें ढँ के हु
भी यह क ठन हो ा। यगेकक वे भी वही सब िानने के मल
कक सच िें नहीर है । उन्हें भी सरदेह के मल
सरस्तकाररि ककया
है ,
सरस्तकाररि है जो
या है । उनका भी मशक्षण सरदेह का है ; और वे
अपनी सीिा र जानिे है , िो वे कैसे दववास कर सकिे है ? या, कफर अ र वे यह िान लेिे है िो लो
उन्हें
पा ल सिझें े। अ र िुि कहो कक िुि िानिे हो कक िुम्हारे भीिर सवययापी है , सवयशक्ििान है , दय है , िो लो
िुम्हारी और आचयय से दे खें े और सोचें े। कक िुि पा ल हो
यह सब कैसे िान सकिे हो?
हो। जब िक िुि पा ल ही न होग।
लेककन कुछ करके दे खो। प्रारर भ से शुरू करो। इस ि ना का थोड़ा स्तवाद लो, कफर दववास पीछे -पीछे चला आ
अ र यह दवतध िुि करना चाहो िो कफर पहले यह करो। अपनी आरखें बरद कर लो और भाव करो कक िुम्हारा कोच शरीर नहीर है । भाव करो कक जैसे मि सकिे हो।
या है , खो
या है। िब िुि अपनी सवययापकिा का अनुभव कर
ा।
शरीर के साथ िो यह भाव क ठन है । इसी कारण कच परर परा र कहिी है कक िुि शरीर नहीर हो, यगेकक शरीर के साथ सीिा आ जािी है । िुि शरीर नहीर हो यह अनुभव करना बहुि क ठन नहीर है । यगेकक सच िें िुि शरीर नहीर हो। यह केवल क सरस्तकार है , यह केवल क दवचार है जो िुम्हारे िन पर थोप दया या है । िुम्हारे िन िें यह दवचार डाल दया
सीलोन िें बौध स मभक्षु आ
या है कक िुि शरीर हो। बहुि सी ि ना र है जो इस बाि को स्तपष् करिी है । पर चलिे है । भारि िें भी चलिे है , लेककन सीलोन की ि ना अद्भि ु है । वे िर गे आ
पर चलिे है । और जलिे नहीर है।
कुछ वनय पहले ऐसा हुआ की क चसाच मिशनरी या फायर-वॉक दे खने या। यह वे पालणयिा की उस राि करिे है जब बुध स ज्ञान को उपलध हु । यगेकक उनका कहना है कक उस राि ज ि को पिा चला कक शरीर कुछ भी नहीर है । पदाथय कुछ भी नहीर है । कक अरिरात्िा सवययापक है और आ उसे जला नहीर सकिी। लेककन क्जन मभक्षुगर को आ
पर चलना होिा है वे उससे पहले
क वनय िक प्राणायाि और उपवास वावारा
अपने शरीर को शध स ु करिे हे । और अपने िन को शुध स करने के मल वे शरीर नहीर है ।
क वनय वे ल ािार िैयारी करिे है ।
खाली करने के मल
वे यान करिे है । कक
क वनय िक पचास-साठ मभक्षुगर का सिाह यह भाव
करिा रहिा है , कक वे अपने शरीरगे िें नहीर है । क वनय लरबा सिय है । हर क्षण केवल बाि दोहरािे हु कक शरीर नहीर ककया जािा। उन्हें आ
क ही बाि सोचिे हु कक वे अपने शरीरगे िें नहीर है । ल ािार क ही क ्ि है । वे ऐसा ही िानने ल िे है । िब भी उन्हें आ पर चलने के मल वावाय के पास लाया जािा है । और जो भी सोचिा है कक वह नहीर जले ा, वह आ
पड़िा है । कुछ सरदेह करिे रह जािे है लझझकिे है । उन्हें आ
िें काद
िें नहीर कादने दया जािा;यगेकक यह सवाल आ
के जलाने या जलने का नहीर है । यह उनके सरदेह का सवाल है । अ र वे जरा सा भी लझझकिे है िो उन्हें रोक दया जािा है । िो साठ लो
िैयार कक
जािे है । और कभी बीस, कभी िीस लो
जले िर ो-िर गे उसिें नाचिे रहिे है ।
आ
िें कादिे है । और लबना
उन्नीस सौ पचास िें
क चसाच मिशनरी यह दे खने के मल आया था। वह बड़ा चककि हुआ। लेककन उसने सोचा कक य द बध स िें भरोसा करने से यह चित्कार हो सकिा है िो जीसस िें भरोसा करने से यगे नहीर हो ु
सकिा। िो वह कुछ दे र सोचिा रहा। थोड़ा लझझका, लेककन कफर इस दवचार के साथ कक य द बध स ु िदद करिे है िो जीसस भी करें े। वह आ
िें काद
या। वह जल
या बरु ी िरह जल
या; छ: िहीने के मल
उसे अस्तपिाल
िें भरिी करवाना पडा। और वह इस ि ना को सिझ ही नहीर पाया।
यह जीसस या बुध स िें दववास का सवाल नहीर था। यह ककसी िें दववास का सवाल नह था। यह दववास िात्र का सवाल था। और यह दववास काि नहीर करे ा।
हन होना चा ह । जब िक सह िुम्हारे प्राणगे के केंि पर न पहुरच जा
वह चसाच मिशनरी, सम्िोहन व उससे जुड़ी ि नागर का अययन करने के मल फायर-वॉककर
के सिय या होिा है । वापस इरग्लैंड
यातनवमसय ी बुलवाया। वे आ कक
पर भी चले। इस प्रयो
या। कफर उन्हगेने दो मभक्षुगर को प्रदशयन के मल को कच बार दोहराया
क प्रोफेसर उनकी और दे ख रहा है । और वह इिना
उसके चेहरे पर
या। आ
कक
ऑसफडय
या। कफर उन दो मभक्षुगर को दे खा
हरा डाब कर दे ख रहा है कक उनकी आरखगे िें और
क िस्तिी थी। वे दोनगे मभक्षु उस प्रोफेसर के पास
सकिे हो।’ ित्क्षण वह दौड़िा हुआ उनके साथ नहीर जला।
और यह जानने के मल
वह
और उससे बोले , ‘िुि भी हिारे साथ आ
िें कादा और उसे कुछ भी नहीर हुआ। वह लबलकुल
वह चसाच मिशनरी भी िौजाद था और भली भारति जानिा था कक वह प्रोफेसर िकय का प्रोफेसर था। क्जसका काि ही सरदेह करना है । क्जसका यवसाय ही सरदेह पर
का है। िो वह उस आदिी से बोला, यह या। िुिने
िो चित्कार कर दया। िैं यह नहीर कर सका जब कक िैं श्रध सालु यक्ि हुर। प्रोफेसर बोला, ‘उस क्षण िें िैं श्रध सालु था। यह ि ना इिनी वास्तिदवक थी, इिने आचययजनक रूप से वास्तिदवक थी कक उसने िुझे वशी भाि कर मलया। यह इिना स्तपष् िेरी ऐसी िारिम्यिा बैठ आ
था कक शरीर कुछ भी नहीर है । और िन सब कुछ है । और उन मभक्षुगर के साथ
च कक क्जस क्षण उन्हगेने िुझे आिरलत्रि ककया िो िुझे जरा भी लझझक नहीर हुच। पर चलना इिना आसान था जैसे आ हो ही नहीर।’
उसिें उस क्षण कोच लझझक नहीर थी। कोच सरदेह नहीर था—यहीर है करु जी। िो पहले इस प्रयो
को करके दे खो। कुछ दन के मल
आरखें बरद करके बैठो और बस यही सोचो कक िि ु शरीर
नहीर हो। केवल सोचो ही नहीर बक्ल्क भाव भी करो कक िि ु शरीर नहीर हो। और अ र िुि आरखें बरद करके बैठो िो
बन
क दरा ी तनमियि हो जािी है। िुम्हारा शरीर दरा हो जािा है । िुि भीिर की और सरक जािे हो। च। जल्दी ही िुि यह िहसास कर सकिे हो कक िुि शरीर नहीर हो।
अ र िुम्हें स्तपष्
क दरा ी
अनुभव हो कक िुि शरीर नहीर हो िो िुि िान सकिे हो कक िुि सवययापक हो, सवयशक्ििान
हो, सवयज्ञा हो। इस सवयशक्ििान का यह सवयज्ञिा का िथाकतथि जानकारी से कोच लेना दे ना नहीर है । यह अनुभव है ।
क अनुभव का दवस्तफो
क
है —कक िुि जानिे हो।
यह सिझ लेने जैसा है , खासकर पक्चि िें,यगेकक जब भी िुि कहिे हो कक िुि जानिे हो, वे कहें े, ‘या?’ िुि या जानिे हो? जानकारी ककसी चीज की होनी चा ह । कुछ होना चा ह कुछ जानने का है िो िुि सवयज्ञ नहीर हो सकिे, यगेकक जानने के मल
क्जसे िुि जानिे हो। और अ र सवाल
कफर अनरि िथ्य है । उन अथों िें िो
कोच भी सवयज्ञ नहीर हो सकिा।
यही कारण है कक जब जैन कहिे है कक िहावीर सवयज्ञ थे। िो पक्चि िें वे हर सिे है । वे हर सिे है । यगेकक य द िहावीर सवयज्ञ थे िो उन्हें जरूर यह सब पिा हो ा जो दवज्ञान अब खोज रहा है । और भदवष्य िें खोजे ा।
लेककन ऐसा ल िा नहीर। वह ऐसी कच चीजें कहिे है जो दवज्ञान के दवपरीि है । जो सत्य नहीर हो सकिी। िो िथ्य
ि नहीर है । उनकी जानकारी य द सवययापक है िो उसिे कोच
लिी नहीर होनी चा ह । लेककन उसिें
लतियार है । चसाच िानिे है कक जीसस सवयज्ञ है । लेककन आधुतनक िन हर से ा। यगेकक वह सवयज्ञ नहीर थे—सरसार के िथ्यगे को जानने के अथय िें वह सवयज्ञ नहीर थे। वह नहीर जानिे थे कक पथ्ृ वी
ोल है —वह नहीर जानिे थे। वह िो यही
िानिे थे कक पथ्ृ वी चप ी है । सह नहीर जानिे थे कक पथ्ृ वी लाखगे वनों से अक्स्तित्व िें है । वह िो यही िानिे थे कक परिात्िा ने पथ्ृ वी को उनसे केवल चार हजार वनय पहले तनमियि ककया है । जहार िक िथ्यगे का, दवनय ि िथ्यगे का सरबरध है , वह सवयज्ञ नहीर थे।
लेककन यह शद ‘सवयज्ञ’ लबलकुल मभन्न है । जब पारब के तदन ‘सवयज्ञ’ कहिे है िो उनका अथय िथ्यगे को जानने से नहीर है—उनका अथय है पररपाणय चेिन, पररपाणय जाग्रि, पाणि य : अरिरस्तथ, पाणि य : सरबुध स। िथ्यात्िक जानकारी से उनका कुछ लेना-दे ना नहीर है । उनका रस जानने की दवशुध स ि ना िें है —जानकरी िें नहीर, जानने की िें ।
ुणवत्िा
जब हि कहिे है कक बध स ु ज्ञानी है । िो हिारा अथय यह नहीर होिा कक वे सब भी जानिे है जो आचस्त ीन जानिा है । यह िो वे नहीर जानिे। लेककन कफर भी वे ज्ञानी है । वे अपनी अरिस चेिना को जानिे है । और अरिस चेिना
सवययापी है । िथािा का वह भाव सवययापी है । और उस जानने िें कफर कुछ भी जानने को नहीर बचिा—असली
बिा यह है । अब कुछ जानने की उत्सुकिा नहीर रहिी है । सब प्रन त र जािे है । ऐसा नहीर कक सब उत्िर मिल ये। सब प्रन त र जािे है । अब पाछने के मल
कोच प्रन न रहा। सारी उत्सुकिा जािी रही है । सवयज्ञिा है ।
सवयज्ञा का यही अथय है । यह आत्ि ि जा रण है ।
यह िुि कर सकिे हो। लेककन अ र िुि अपनी खोपड़ी िें और जानकारी इकट्ठी करिे चले जाग। िो कफर यह नहीर हो ा। िुि जन्िगे-जन्िगे िक जानकारी इकट्ठी करिे चले जा सकिे है । िुि बहुि कुछ जान लो े। लेककन सवय को नहीर जानगे े। सवय िो अनरि है ; वह इस प्रकार नहीर जाना जा सकिा। दवज्ञान हिेशा अधारा रहे ा। वह कभी पारा नहीर हो सकिा। वह असरभव है । यह अकल्पनीय है कक दवज्ञान कभी पारा हो जा
ा। वास्तिव िें ,
क्जिना अतधक दवज्ञान जानिा जािा है । उिना ही पािा है कक जानने को अभी बहुि शेन है । िो यह सवयज्ञिा जा रण का
क आरिररक
ण ु है । यान करो,और अपने दवचारगे को त रा दो। जब िुििें कोच
दवचार नहीर हगे े। िब िुि िहसस ा करो े। कक यह सवयज्ञिा या है , यह सब जान लेना या है । जब कोच दवचार नहीर होिे िो चेिना शुध स हो जािी है । दवशध स ु हो जािी है । उस दवशुध स चेिना िें िुम्हें कोच सिसया नहीर रहिी। सब प्रन त र
ये। िुि स्तवयर को जानिे हो, अपनी आत्िा को जानिे हो। और जब िुिने अपनी आत्िा को
जान मलया िो सब जान मलया। यगेकक िुम्हारी आत्िा हर ककसी की आत्िा का केंि है । वास्तिव िें िुम्हारी
आत्िा ही सबकी आत्िा है । िुम्हारा केंि परा े ज ि का केंि है । इन्हीर अथों िें उपतननदगे ने अहर ब्रह्िाक्स्तिुः की िोनणा की है कक ‘िैं ब्रह्ि हार,िैं पण ा य हार।’ क बार िुिने अपनी आत्िा की यह छो ी सी ि ना जान ली िो िुिने अनरि को जान मलया। िि रा को भी जान मलया िो परा े ु लबलकुल सा र की बरद ा जैसे हो: अ र क बद सा र के राज खुल
।
‘सवयज्ञ, सवयशक्ििान, सवययापी िानो।’ लेककन यह िानना भरोसे से ही आ
ा। यह िुि अपने साथ दववाद करके नहीर िान सकिे। िुि ककसी िकय से
अपने आप को नहीर सिझा सकिे। ऐसे भावगे के मल
ऐसे भावगे के स्तत्रोि के मल
खुदाच करनी हो ी।
िुम्हें अपने भीिर
हरी
यह ‘िानना’ शद बड़ा अथयपाणय है । इसका यह अथय नहीर है । कक िुिने कुछ स्तवीकार कर मलया है । यगेकक स्तवीकार कर लेना िो बड़ी िकयसर ि बाि है । िुम्हारे सोच-दवचार ककया, िुिने उसके मल
िकय कक , िुम्हारे पास
प्रिाण है उसके मल । िानने का अथय है कक िुम्हें उस चीज के प्रति कोच सरदेह नहीर है —ऐसा नह कक कोच
प्रिाण है िुम्हारे पास। स्तवीकार करने का अथय है कक िुम्हारे पास प्रिाण है : िुि मसध स कर सकिे हो। िकय दे सकिे हो। िुि कह सकिे हो कक ‘यह ऐसा ही है ।’ िुि उसके मल है कक िुम्हें कोच सरदेह ही नहीर है । िुि उसके मल जा
िो िुि हार जाग े। लेककन िुम्हारे पास
अनुभव है , कोच बौदध सक िकय नहीर।
िकयसर ि प्रिाण दे सकिे हो। िानने का अथय
दववाद नहीर कर सकिे, िकय नहीर दे सकिे,िुि से अ र पाछा
क भीिरी आधार है । िुि जानिे हो कक ऐसा ही है । यह
क
लेककन याद रखो कक ऐसी दवतधयार िभी काि दे सकिी है । जब िुि अपने भावगे के साथ काि करो, बुदध स के
साथ नहीर। िो ऐसा कच बार हुआ है कक बड़े अज्ञानी लो —अनपढ़ और असरस्तकृि—िानवीय चेिना की ऊँचाइयगे पर पहुरच जािे है और जो बड़े सुसरस्तकृि है , मशक्षक्षि है , बौदध सक है और िकय िें कुशल है , वे चाक जािे हो।
जीसस केवल
क बढ़च थे। िेडररक नीत्शे ने कहीर मलखा है कक परा े न
े स्त ािें
िें केवल
क आदिी था।
क्जसकी सच िें कोच कीिि थी। जो सुसरस्तकृि था। मशक्षक्षि था, दशयनशास्तत्र का जानकार था, बुदध सिान था—वह आदिी था पाइले , रोिन
वनयर, क्जसने जीसस से साली पर चढ़ाने की आज्ञा जारी की थी। वास्तिव िें वह सबसे
ज्यादा सुसरस्तकृि आदिी था— वनयर जनरल,वाइसरॉय। और वह जानिा था कक दशयनशास्तत्र या है । अरतिि क्षण िें जब जीसस साली पर चढ़ाये जाने को थे। िो उसने पाछा था, ‘सत्य या है ?’ यह बड़ा दाशयतनक प्रन था। जीसस चुप रहे—इसमल
नहीर कक यह प्रन जवाब दे ने जैसा नहीर था। पाइले
अकेला यक्ि था जो
हरे दशयन
को सिझ सकिा था—जीसस चुप रहे , यगेकक वे मसफय ऐसे लो गे से बोल सकिे थे जो अनुभव कर सके। सोचदवचार ककसी काि का न था। सह
क दाशयतनक प्रन पार रहा था। अछा होिा य द यह प्रन उसने ककसी
यातनवमसय ी, ककसी अकादिी िें पाछा होिा। लेककन जीसस से कोच दाशयतनक प्रन पाछना अथयहीन था। वे चुप रहे यगेकक उत्िर दे ना यथय था। कोच सरवाद सरभव नहीर था। लेककन नीत्शे,जो स्तवयर
क िाककयक यक्ि था, जीसस की आलोचना करिा है । उसने कहा है कक वे अमशक्षक्षि
थे। असरस्तकृि थे, दशयनशास्तत्र िें कुशल नहीर थे—और वे उत्िर नहीर दे पा पाचले
इसमल
चुप रहे
।
ने बड़ा यारा प्रन पछ ा ा। य द उसने यह प्रन नीत्शे से पछ ा ा होिा, िो नीत्शे वनों िक इस पर बोलिा
चला जािा। ‘सत्य या है?’ यह
क प्रन ही वनों िक बोलने और चचाय करने के मल
दशयनशास्तत्र इसी बाि का दवस्तिार है । सत्य या है । नीत्शे की आलोचना िकय वावारा की
पयायि है । परा ा
क प्रन और सारे दाशयतनक इसी िें जु े हु
च आलोचना है, िकय वावारा की
आयाि की आलोचना की है । यगेकक भाव बड़ा अस्तपष्
है ।
च तनरदा है । िकय ने सदा ही भाव के
है , रहस्तयिय है । वह है और कफर भी िुि उसके बारे िें
कुछ नहीर कह सकिे। भाव या िो िुम्हारे पास है , या नहीर है —उसके सरबरध िें िुि कुछ भी नहीर कर सकिे, न ही कोच चचाय कर सकि है ।
िुम्हारे भी कच दववास है, लेककन वे दववास स्तवीकार कर ली
च धारणा र भर है ; वे दववास नहीर है । यगेकक
िुम्हें उनके प्रति सरदेह है । िुिने उन सरदेहगे को अपने िकों से कुचल डाला है । लेककन वे अभी भी क्जरदा है । िुि
उनके ऊपर बैठे हु हो, लेककन वे वहीर के वहीर है । िुि उनसे लड़िे रहिे हो, लेककन वे अभी िरे नहीर है । वे िर नहीर सकिे। यही कारण है कक िुम्हारा जीवन भले ही क हरद ा का जीवन हो, या िुसलिान का, या चसाच का, या जैन का, लेककन वह
क धारणा ही है । श्रध सा िुम्हें नहीर है ।
िैं िुम्हें
क कहानी कहिा हार। जीसस ने अपने मशष्यगे को कहा कक वे नाव से उस झील के दस ा रे ककनारे चले जा र जहार वे सब ठहरे हु थे। और वे बोले,’िैं बाद िें आऊँ ा।’ वे लो चले ये। और दस ा रे ककनारे की और जा रहे थे िो बड़ा िेज िाफान आया। उथल-पुथल िच
च और लो
भय के िारे िबरा
ये। नाव थपेड़े खा रही थी
और वे सब रो रहे थे, चीखने-पुकारने ल ,े तचल्लाने ल े। ‘जीसस हिें बचाग।’ वह ककनारा जहार जीसस खड़े थे काफी दरा था। लेककन जीसस आ । कहिे है कक वे पानी पर दौड़िे हु आये। और पहली बाि उन्हगेने मशष्यगे को यह कहीर कक, ‘कि भरोसे के लो ो, यगे रोिे हो।’ या िुम्हें भरोसा नहीर है ?’ वे िो भयभीि थे। जीसस बोले, ‘अ र िुम्हें भरोसा है िो नाव से उिरो और चलकर िेरी और आग।’ वह पानी पर खड़े हु थे। मशष्यगे ने अपनी आरखगे से दे खा कक वे पानी पर खड़े है । लेककन कफर भी यह िानना क ठन था। जरूर अपने िन िें उन्हगेने सोचा हो ा कक ये कोच चाल है । या हो सकिा है कोच ्ि है । या यह जीसस ही न हो। शायद यह शैिान है जो उन्हें कोच प्रलोभन दे रहा है । िो वे जा
ा।
क-दस ा रे का िुरह दे खने ल े। कक कौन चलकर
कफर
क मशष्य नाव से उिर कर चला। और सच िें वह चल पाया। वह िो अपनी आरखगे पर दववास न कर
सका। वह पानी पर चल रहा था। जब वह जीसस के करीब आया िो बोला, ‘कैसे? यह कैसे हो चित्कार खो
या?’ ित्क्षण पारा
या। ‘कैसे?’—और वह डाबने ल ा। जीसस ने उसे बाहर तनकाला और बोले, ‘कि भरोसे के
आदिी,िा यह कैसे का सवाल यगे पाछिा है ।’
लेककन बुदध स ‘यगे?’ और ‘कैसे?’ पाछिी है । बुदध स पाछिी है । बुदध स प्रन उठािी है । भरोसा है सब प्रनगे को त रा दे ना। अ र िुि सब प्रनगे को त रा सको और भरोसा कर सको िो यह दवतध िुम्हारे मल
चित्कार है ।
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-73
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—102 (ओशो) पहली विधि:
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—102 (ओशो)
‘अपने भीतर तथा बाहर एक साथ आत्िा की कल्पना करो। जब तक कक संपूणथ अक्स्तत्ि आत्ििान न हो जाए।’ पहले िो िुम्हें सिझना है कक कल्पना या है । आजकल बहुि ही तनर दि शद है यह। जैसे ही ‘कल्पना’ शद सुनिे हो, िुि कहिे हो यह िो यथय है । हि कुछ वास्तिदवकिा चाहिे है । काल्पतनक नहीर। लेककन कल्पना िुम्हारे भीिर की
क वास्तिदवकिा है ।
कल्पना के वावारा िुि स्तवयर को नष्
क क्षििा है , क सरभावना है । िुि क्षििा
क वास्तिदवकिा है । इस
कर सकिे हो। और स्तवयर को तनमियि भी कर सकिे हो। यह िुि पर
तनभयर करिा है । कल्पना बहुि शक्िशाली क्षििा है । यह तछपी हुच शक्ि है । कल्पना या है ? यह ककसी धारणा िें इिना उदाहरण के मल , िुिने
हरे चले जाना है कक वह धारणा ही वास्तिदवकिा बन जा ।
क दवतध के बारे िें सुना हो ा। जो तिबि िें प्रयो
की जािी है 1 वे उसे ऊष्िा यो
कहिे है । सदय राि है , बफय त र रही है । और तिबिन लािा खल ु े आकाश के नीचे नग्न खड़ा हो जािा हे । िापिान शान्य से नीचे है । िुि िो िरने ही ल ो े, जि जाग ।े लेककन लािा है । दवतध यह है कक वह कल्पना कर रहा है कक उसका शरीर
क लप
क दवतध का अभ्यास कर रहा
है । और उसके शरीर से पसीना तनकल
रहा है । और सच ही उसका पसीना बहने ल िा है जब कक िापिान शान्य से नीचे है । और खान िक जि जाना चा ह । उसका पसीना बहने ल िा है । या हो रहा है? यह पसीना वास्तिदवक है , उसका शरीर वास्तिव िें लेककन यह वास्तिदवकिा कल्पना से पैदा की
िय है ,
च है ।
िुि कोच सरल सी दवतध करके दे खो। िाकक िुि िहसास कर सको कक कल्पना से वास्तिदवकिा कैसे पैदा की जा सकिी है । जब िक िुि यह िहसास न कर लो, िुि इस दवतध का उपयो
नहीर कर सकिे। जरा अपनी धड़कन
िुि दौड़ रहे हो। कल्पना करो कक िुि दौड़ रहे हो, िी ल
हरी वास ले रहे हो, िुम्हारा पसीना
को त नो। बरद किरे िें बैठ जाग और अपनी धड़कन को त नो। और कफर पाँच मिन तनकल रहा है । और िुम्हारी धड़कन बढ़ रही है , पाँच मिन िुम्हें अरिर पिा चल जाये ा। िुम्हारी धड़कन बढ़ जा िें दौड़ नहीर रहे थे।
रही है , िुि
के मल
कल्पना करो कक
यह कल्पना करने के बाद कफर अपनी धड़कन त नो।
ी। यह िुिने कल्पना करके ही कर मलया, िुि वास्तिव
प्राचीन तिबि िें बौध स मभक्षु कल्पना वावारा ही शारीररक अभ्यास ककया करिे थे। और वे दवतधयार आधुतनक िनुष्य के मल
बड़ी सहयो ी हो सकिी है । यगेकक सड़कगे पर दौड़ना अब क ठन है , दरा िक िािने जाना क ठन
है । कोच तनजयन ज ह खोज पाना क ठन है । िुि बस अपने किरे िें फशय पर ले
कर
क िर े के मल
यह
कल्पना कर सकिे हो कक िुि िेजी से चल रहे हो। कल्पना िें ही चलिे रहो। और अब िो तचककत्सा दवशेनज्ञ कहिे है कक उसका प्रभाव सच िें चलने के सिान ही हो ा। िो शरीर काि करने ल िा है ।
क बार िुि अपनी कल्पना से लयवध स हो जाग
िुि पहले ही ककिने ऐसे काि कर रहे हो जो िुम्हें पिा नहीर िुम्हारी कल्पना कर रही है । कच बार िुि कल्पना से ही कच बीिाररयार पैदा कर लेिे हो। िि ु कल्पना करिे हो कक फलार बीिारी,जो सरक्रािक है , सब और फैली हुच है । िुि ग्रहणशील हो , अब पारी सरभावना है कक िुि बीिारी पकड़ लो े। और वह बीिारी वास्तिदवक हो ी। लेककन यह कल्पना से तनमियि हुच थी। कल्पना क शक्ि है । िन उससे चलिा है िो शरीर अनुसरण करिा है । अिेररका के
क ऊजाय है और िन उससे चलिा है । और जब
क यातनवमसय ी होस्त ल िें
क बार ऐसा हुआ कक चार दववायाथी सम्िोहन का प्रयो कर रहे थे। सम्िोहन और कुछ नहीर कल्पना शक्ि ही है । जब िुि ककसी यक्ि को सम्िो हि करिे हो िो वास्तिव िें वह हन कल्पना िें चला जािा है । और िुि जो भी सुझाव दे िे हो, वह होने ल िा है । िो क्जस लड़के को उन्हगेने
सम्िोहन ककया हुआ था, उसे कच सुझाव द । चार लड़कगे ने क लड़के पर सम्िोहन का प्रयो ककया। उन्हगेने कच बािें करके दे खी। वे जो भी कहिे, लड़की ित्क्षण अनुसरण करिा। जब वे कहिे, ‘कुदो’ िो लड़का कादने ल िा। जब वे कहिे ‘रोग’ लड़का रोने ल िा। जब उन्हगेने कहा, ‘िुम्हारी आरखगे से आरसा त र रहे है ।’ िो उसकी आरखगे से आरसा बहने ल िे। कफर बस लड़का ले ा और िर
या।
क िजाक की िरह उन्हगेने कहा, ‘अब िुि ले
जाग, िुि िर
ये।’
यह उन्नीस सौ बावन िें हुआ। इसके बाद अिेररका िें उन्हगेने सम्िोह न के दवरूध स कानन ा बना दया। जब िक कोच शोध-कायय न चलिा हो कोच सम्िोहन का प्रयो न करे ; जब िक कोच िेगडकल इरस्त ी्या , या ककसी यातनवमसय ी का िनोदवज्ञान दवभा
िुम्हें अतधकृि न करे , िुि कोच प्रयो
खिरनाक है, उस लड़के ने िो बस दववास ककया, कल्पना की कक वह िर
नहीर कर सकिे। वरना िो यह बड़ा या है और वह िर
या।
य द कल्पना िें ित्ृ यु हो सकिी है िो जीवन, अतधक जीवन यगे नहीर मिल सकिा। यह दवतध कल्पना –शक्ि पर आधाररि है : ‘अपने भीिर िथा बाहर
क साथ आत्िा की कल्पना करो, जब िक
कक सरपाणय अक्स्तित्व आत्ि वान न हो जा ।’ बस ककसी तनजयन स्तथान पर बैठ जाग जहार िुम्हें कोच परे शान न करे । ककसी
कारि किरे से काि चले ा। और
य द िुि कहीर बाहर जा सको िो बेहिर हो ा। यगेकक जब िि ु प्रकृति के सिीप होिे हो िो अतधक कल्पनाशील होिे हो। जब िुम्हारे आस-पास बस िनुष्य तनमियि चीजें होिी है िो िुि कि कल्पनाशील होिे हो। प्रकृति स्तवन दे ख रही है और िुम्हें स्तवन दे खने की शक्ि दे िी है । अकेले िुि अतधक कल्पनाशील हो जािे हो। इसीमल
िो िुि जब अकेले होिे हो िो डरिे हो। ऐसा नहीर है कक कोच भाि िुम्हें परे शान करें े, लेककन िुम्हारी
कल्पना काि कर सकिी है । और िुम्हारी कल्पना भाि या जो भी िुि चाहो, पैदा कर सकिी है । जब िुि अकेले होिे हो िो िुम्हारी कल्पना की सरभावना ज्यादा होिी है । जब कोच और साथ होिा है िो िुम्हारी बुदध स तनयरत्रण
िें होिी है । यगेकक बुदध स के लबना िुि दस ा रगे से नहीर जुड़ सकिे। जब कोच दस ा रा साथ होिा है िो िुि प्राणगे के हरे कल्पनाशील िलगे की और लौ
जािे हो। जब िुि अकेले होिे हो, कल्पना काि करने ल िी है ।
इर िय ि सरवेदनागर के अभाव पर बहुि प्रयो कक है । य द ककसी यक्ि को सभी सरवेदनात्िक उत्िेजनाग से वरतचि कर दया जा —िुम्हें ककसी साउर ड-प्राफ किरे िें बरद दया जा क्जसिें कोच प्रकाश न
आिा हो, क्जसिें दस ा रें िनुष्यगे से जुड़ने की कोच सरभावना न हो, दीवारगे पर कोच िस्तवीर न हो, कुछ न हो क्जससे िुि जुड़ सको—िो
क,दो या िीन िर े बाद िुि स्तवयर से जुड़ने ल ो े। िुि कल्पनाशील हो जाग े। िुि स्तवयर
से बािें करने ल ो े। िुम्हीर प्रन पाछो े और िुम्हीर उत्िर दो ।े जाग े।
कल-सरवाद शुरू हो जा
ा। क्जसिें िुि बर
कफर िुि अचानक कच चीजें अनुभव करने ल गे े जो िुि सिझ नहीर पाग े। िुम्हें वतनयार सुनाच पड़ने
ल ें ी, जब कक किरा साउर ड-प्राफ है , कोच वतन भीिर नहीर आ सकिी। अब िुि कल्पना कर रहे हो। हो सकिा है िुम्हें सु रध आने ल े। जबकक वहार कोच सु रध नहीर है । अब िुि कल्पना कर रहे हो। सरवेदनागर के पररपाणय आभाव के छत्िीस िर े बाद कल्पना वास्तिदवक बन जािीहै 1 वास्तिदवकिा कल्पना ल ने ल िी है ।
यही कारण है कक पुराने दनगे िें साधक पवयिगे पर तनजयन स्तथानगे पर चले जािे थे। जहार वे वास्तिदवक और अवास्तिदवक के बीच के भेद को त रा सकिे थे। अब िुि इसका उपयो इस दवतध के मल
ककसी
क बार भेद त र जा
िो िुम्हारी कल्पना प्रबल हो जािी है ।
कर सकिे हो और इसके वावारा कुछ भी तनमियि कर सकिे हो।
कारि स्तथान पर बैठ जाग; य द आस-पास प्राकृतिक स्तथान हो िो अछा है , नहीर िो
किरे से भी काि चले ा। कफर आरखें बरद कर लो और कल्पना करो कक िुम्हारे भीिर और बहार शक्ि का आभास हो रहा है । िुम्हारे भीिर चेिना की
क आक्त्िक
क नदी बह रही है और वह सारे किरे िें भर रही है ।
फैल रही है । भीिर और बाहर िुम्हारे आस-पास सब ज ह शक्ि उपक्स्तथि है , ऊजाय उपक्स्तथि है । और केवल िन िें ही इसकी कल्पना िि करो, शरीर िें भी अनुभव करना शुरू करो।
िुम्हारा शरीर आरदोमलि होने ल े ा। जब िुम्हें ल े कक शरीर आन्दोमलि होने ल ा िो उससे पिा चलिा है कक कल्पना ने काि करना शुरू कर दया। अनुभव करो कक पारा ज ि धीरे -धीर आत्िवान होिा जा रहा है । सब
कुछ किरे की दीवारें , िुम्हारे आस-पास के वक्ष ृ —सब कुछ अभौतिक ऊजाय रह जािी है । क्जसिें कोच सीिा र नहीर होिी।
कल्पना के वावारा िुि इस लबरद ु पर पहुरच रहे हो जहार अपने चेिन प्रयास से िुि बुदध स के ढारच,े बुदध स के ढरे को नष् कर रहे हो। िुि अनुभव करिे हो कक पदाथय नहीर है । केवल ऊजाय है , केवल आत्िा है—भीिर भी, बाहर भी। जल्दी ही िुि अनुभव करो े कक भीिर िथा बाहर सिाि हो
है । जब िुम्हारा शरीर आत्ििय हो जािा है
और िुम्हें ल िा है कक यह ऊजाय ही है , िो भीिर िथा बाहर िें कोच भेद नहीर रहिा। सीिा र खो जािी है । केवल िरर ातयि, आरदोमलि ऊजाय का रहे हो।
क िहासा र बचिा है । यही सत्य भी है । िुि कल्पना के वावारा सत्य िक पहुरच
कल्पना या कर ही हो? कल्पना केवल परु ानी धारणागर को, पदाथय को िन के परु ाने ढर गे को नष् जो चीजगे को
क खास ढ़क्ष्
‘अपने भीिर िथा बाहर
कोण से दे खिे है । कल्पना उनको नष्
कर रही है । और िब सत्य प्रक
हो ा।
क साथ आत्िा की कल्पना करो, जब िक कक सरपाणय अक्स्तित्व आत्िवान न हो जा ।’
जब िक िुम्हें यह न ल ने ल े कक सब भेद सिाि हो ऊजाय का
कर रही है
क िहासा र रह
। सब सीिा र दवलीन हो
च और ज ि केवल
या है । यही वास्तिदवकिा भी है । लेककन दवतध िें िुि क्जिने
हरे उिरो े, उिने ही
भयभीि हो जाग े। िुम्हें ल े ा कक िुि पा ल हो रहे हो। यगेकक िुम्हारी बुदध स भेदगे िें बनी है । िुम्हारी बुदध स इस िथाकतथि से बनी है , और जब यह वास्तिदवकिा सिाि होने ल िी है िो साथ ही िुम्हें ल िा है कक िुम्हारी बुदध स भी नष्
हो रही है ।
सरि और पा ल दोनगे ऐसे ज ि िें जीिे है जो हिारी िथाकतथि वास्तिदवकिा के पार होिा है । दोनगे ही पार के ज ि िें जीिे है , लेककन पा ल नीचे त र जािा है , और सरि ऊपर उठ जािे है । भेद छो ा सा है । लेककन बहुि बड़ा है । य द लबना ककसी प्रयास के िुि िन और वास्तिदवक िथा अवास्तिदवक के भेद खो दो िो िुि दवक्षक्षि हो जाग े। लेककन य द चेिन प्रयास से िुि धारणागर को नष्
कर दो िो िुि दविुि हो जाग े। दवक्षक्षि
नहीर। यह दवयुििा ही धिय का आयाि है । यह बुदध स के पार है। लेककन चेिन प्रयास चा ह । िुि मशकार न बनो,िामलक ही बने रहो। जब िुम्हारा प्रयास िन के सारे आकारगे को नष् साक्षात्कार करिे हो।
करिा है िो िुि तनराकार सत्य का
उदाहरण के मल , बौध स कहिे है कक सरसार िें कोच पदाथय नहीर है । सरसार केवल वास्तिदवक नहीर है । सब कुछ कक सब कुछ
तििान है । या
क प्रकक्रया है । कुछ भी
तििान कहना भी ठीक नहीर है , िात्र
ति है । जब हि कहिे है
तििान है िो वही पुरानी भाल हो जािी है । ऐसा ल िा है जैसे कक कुछ है जो
कहिे है , कुछ भी
तििान नहीर है । केवल
ति ही है । केवल
ति है , इसके अलावा कुछ नहीर है ।
िो थाचलैंड या बिाय जैसे बौध स दे शगे िें , उनकी भाना िें ‘है ’ के मल
तििान है । बुध स
कोच शद नहीर है । जब बाइलबल पहली बार
थाच िें अनुवा दि हुच िो उसे अनुवा दि करना बड़ा क ठन हो या, यगेकक बाइलबल िें िो कहा या है ‘परिात्िा है’। बिीज या थाच िें िुि यह नहीर कह सकिे कक ‘परिात्िा है ’। िुि ऐसा कह ही नहीर सकिे। िुि जो भी कहो े उसका अथय हो ा, ‘परिात्िा हो रहा है ।’ सब कुछ हो रहा है । कुछ भी है नहीर है । जब तनवासी सरसार की और दे खिा है िो
क बिाय
ति की और दे खिा है । जब हि दे खिे है , दवशेनि: जब ग्रीक उन्िुख
पाचात्य िन दे खिा है , िो कोच प्रकक्रया नहीर होिी। केवल वस्तिु होिी है । केवल िि ृ वस्तिु र है , ति नहीर है ।
जब िुि नदी की और दे खिे हो िो नदी को ‘है ’ की िरह दे खिे हो। नदी है नहीर नदी का अथय िो बस है । कुछ जो सिि हो रहा है । और कोच लबरद ा नहीर आिा जहार िुि कहो कक यह होना पारा हो अरिहीन प्रकक्रया है । जब हि
क
या। यह
ति
क
क वक्ष ृ की और दे खिे है िो कहिे है कक वक्ष ृ है । बिी भाना िें कहिे है कक वक्ष ृ
हो रहा है । वक्ष ृ बह रहा है । वक्ष ृ बढ़ रहा है । वक्ष ृ प्रकक्रया है । िो सरसार और यथाथय लबलकुल मभन्न हगे े। िुम्हारे मल
यह मभन्न है । और यथाथय िो
क ही है । लेककन इसकी याया ककसी िरह करिे हो। उससे सब बदल
जािा है । क िाल बाि यान रखो: जब िक िुम्हारे िन के ढारचे को मि ा न दया जा , जब िक िुि उस ढाँचे से िुि
न हो जाग, जब िक िुम्हारे सरस्तकार न पगेछ द
जा र और िुि तनसयस्तकार न हो जाग। िब िक िुम्हें पिा
नहीर चले ा कक वास्तिदवकिा या है । िुि केवल याया र ही जानिे हो। वे याया र िुम्हारे िन के ही खेल है । तनराकार सत्य ही िन पर इकट्ठे हो
किात्र वास्तिदवकिा है । और यह दवतध िुम्हें तनधायरण होने िें ,तनसंस्तकार होने िें िुम्हारे
शदगे को ह ाने िें िदद दे ने के मल
सत्य जैसा ल िा है उसे मि
जाने दो।
है। उनके कारण िुि दे ख नहीर पािे। जो भी िुम्हें
ऊजाय की कल्पना करो—पदाथय की नहीर । वरन प्रकक्रया की, ति की, लय कक, नत्ृ य की। और कल्पना करिे रहा जब िक कक परा ा ज ि आत्िवान न हो जा । य द िुि धैयप य व य ल े रहे िो िीन िहीने के ा क
क िर ा प्रति दन
सधन प्रयास के बाद, िुि इस आभास को पा सकिे हो। िीन िहीने के भीिर अपने आस-पास के सारे अक्स्तित्व का िुि
क दस ा रा ही अनुभव कले सकिे हो। पदाथय नहीर बचा, िात्र अभौतिक, िहासा रीय अक्स्तित्व बचा—केवल
लहरें केवल करपन।
जब यह अनुभव होिा है िभी िुि जानिे हो कक परिात्िा या है । ऊजाय का यह िहासा र ही परिात्िा है ।
परिात्िा कोच यक्ि नहीर है । परिात्िा कहीर स्तव य िें ककसी मसरहासन पर नहीर बैठा है । वहार कोच भी नहीर बैठा है । लेककन हिारे सोचने का
क ढर
है । हि कहिे है कक परिात्िा स्तत्रष् ा है । परिात्िा स्तत्रष् ा नहीर है । बक्ल्क,
परिात्िा सज ृ नात्िक शकति है , स्तवयर सज ृ न ही है । हिारे िन पर बार-बार थोपा सिाि हो
या है कक कहीर अिीि िें परिात्िा ने सरसार की रचना की। और कफर वहीर सज ृ न
या। चसाइयगे की कहानी है कक परिात्िा ने छ: दन िें सरसार बनाया और सािवें दन दवश्राि
ककया। इसीमल
िो सािवार दन, रदववार, छुट्टी का दन है । परिात्िा ने उस दन छा ी ली। छ: दन िें उसने
सरसार को बनाया, हिेशा-हिेशा के मल , और िब से कोच सज ृ न नहीर हुआ। छठे दन के बाद कोच सज ृ न ही नहीर हुआ है । यह बड़ी िुदाय धारणा है । िरत्र कहिा है परिात्िा सज ृ नात्िकिा ही है । सक्ृ ष् कक अिीि िें कभी ि ी, यह हर क्षण ि
कोच ऐतिहामसक ि ना नहीर है । जो
रही है । परिात्िा हर क्षण सज ृ न कर रहा है । इससे ऐसा ल िा है कक
परिात्िा कोच यक्ि है जो सज ृ न करिा रहा है । नहीर वह सज ृ नात्िकिा जो हर क्षण ि िी है । वह सज ृ नात्िकिा ही परिात्िा है । िो िुि हर क्षण सज ृ न िें हो।
यह बड़ी जीवरि धारणा है । ऐसा नही है कक परिात्िा न कहीर कुछ बनाया और िबसे परिात्िा और िनुष्य के बीच कोच सरवाद नहीर रहा, कोच सरपकय, कोच सरबरध नहीर रहा; उसने सज ृ न ककया और बाि सिाि हो
च। िरत्र
कहिा है कक िुि हर क्षण तनमियि हो रहे हो। हर क्षण िुि दय के साथ, सज ृ नात्िकिा के स्तत्रोि के साथ सरबरध िें हो। यह बहुि ही जीवरि धारणा है ।
हन
इस दवतध के वावारा िुि भीिर गर बाहर सज ृ नात्िक शक्ि की झलक पाग े।
क बार िुि सज ृ नात्िक
शक्ि और उसके स्तपशय, उसके प्रभाव को िहसास कर लो िो िुि लबलकुल मभन्न हो जाग े। िुि कफर वही नहीर रह जाग े। परिात्िा िुििें प्रवेश कर
या। िुि उसके तनवास बन
।
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-75
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—103 (ओशो) दस ू री विधि:
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—103 (ओशो)
अपनी संपूणथ चेतना से कािना के, जानने के आरं भ िें ही जानो।
इस दवतध के सरबरध िें िाल बाि है ‘सरपाणय चेिना’। य द िुि ककसी भी चीज पर अपनी सरपाणय चेिना ल ा दो िो वह
क रूपारिरणकारी शक्ि बन जा
ी। जब भी िुि सरपाणय होिे हो, ककसी चीज िें भी, िभी रूपारिरण होिा है ।
लेककन यह क ठन है । यगेकक हि जहार भी है , बस आरमशक ही है । सिग्रिा िें नहीर है ।
यहार िुि िुझे सुन रहे हो। यह सुनना ही रूपारिरण हो सकिा है। य द िुि सिग्रिा से सुनो, इस क्षण िें अभी और यहीर, य द सुनना िुम्हारी सिग्रिा हो, िो वह सुनना
क यान बन जा
आयाि िें, क दस ा री ही वास्तिदवकिा िें प्रवेश कर जाग े।
ा। िुि आनरद के अल
लेककन िुि सिग्र नहीर हो। िनुष्य के िन के साथ यही िुक्कल है , वह सदै व आरमशक ही होिा है । सुन रहा है । बाकी हस्तसे शायद कहीर और हो, या शायद सो या भीिर दववाद कर रहे हो। उसिें
ही
क हस्तसा
ही हु हगे, या सोच रहे हो कक या कहा जा रहा है । क दवभाजन पैदा होिा है और दवभाजन से ऊजाय का अपयय होिा है ।
िो जब भी कुछ करो, उसिे अपने परा े प्राण डाल दो। जब िुि कुछ भी नहीर बचािे, छो ा सा हस्तसा भी अल नहीर रहिा, जब िुि
यान पाणय होिा है । कहिे है
क सिग्र, सरपाणय छलार
ले लेिे हो। िुिहारे पारे प्राण उसिें ल
क बार रररझाच अपने बगीचे िें काि कर रहा था—रररझाच
आदिी कुछ दाशयतनक प्रन पाछने आया था। वह
क झेन
जािे है । िभी कोच कृत्य
ुरु था—और कोच आया। वह
क दाशयतनक खोजी था। उसे नहीर पिा था कक जो आदिी
बगीचे िें काि कर रहा है वही रररझाच है । उसने सोचा कक यह कोच िाली है । कोच नौकर हो ा। िो उसने पाछा,
‘रररझाच कहार है ?’ रररझाच ने कहार, ‘रररझाच िो हिेशा यहीर है ।’ स्तवभावि: उस आदिी ने सोचा कक िाली कुछ पा ल
ल िा है । यगेकक उसने कहा रररझाच िो हिेशा यही है । िो उसने सोचा कक इस आदिी से और कुछ पाछना ठीक नहीर हो ा। और वह ककसी से पाछने के मल
जाने ल ा। रररझाच ने कहा, ‘कहीर िि जागर यगेकक िुि उसे कहीर
भी नहीर पाग े।’ लेककन वह िो उस पा ल आदिी से बच कर भा
या।
कफर उसने औरगे से पछ ा ा िो वे बोले, ‘क्जस पहले यक्ि से िुि मिले थे वहीर िो रररझाच है ।’ िो वह वापस आया और बोला, ‘िुझे क्षिा करे , बहुि खेद है िुझ,े िैंने सोचा कक आप पा ल है । िैं कुछ पछ ा ने आया हार। िैं जानिा चाहिा हार कक सत्य या है । उसे जानने के मल िैं या करूर?’ रररझाच ने कहा, ‘िुि जो करना चाहो वहीर करो, लेककन सिग्रिा िें रहो1’
सवाल यही नहीर है कक िुि या करिे हो। वह बाि ही असर ि है । सवाल यह है कक िुि उसे सिग्रिा से करो। ‘उदाहरण के मल ’, रररझाच बोला, जब िैं यह
ड्ढा खोद रहा था। िो िेरी सिग्रिा
कोच रररझाच नहीर था। पारा का पारा खोदने िें ल
ड्ढा खोदना हो
च थी। पीछे
या है । असल िें कोच खोदने वाला नहीर बचा। बस खोदने की
कक्रया ही बची है । य द खोदने वाला बचे िो िुि बर
।‘
िुि िुझे सान रहे हो, य द सुनने वाला बचे िो िुि सिग्र नहीर हु । य द केवल सुनना ही हो और पीछे कोच सुनने वाला न बचे िो िुि सिग्र हो । अभी और यही। कफर यह क्षण ही यान बन जािा है । इस सात्र िें मशव कहिे है, ‘अपनी सरपाणय चेिना से कािना के, जानने के आरर भ िें ही जानो।’ य द िुम्हारे भीिर कोच कािना उठे िो िरत्र उससे लड़ने को नहीर कहिा। वह यथय है । कािना से कोच भी नहीर
लड़ सकिा। वह िाखि य ा भी है, यगेकक जब भी अपने भीिर िुि ककसी चीज से लड़ने ल िे हो िो िुि स्तवयर से ही लड़ रहे हो। िुि दवक्षक्षि हो जाग ,े िुम्हारा यक्ित्व खरगडि हो जा
ा।
और इन सारे िथाकतथि धिों ने िनुष्यिा को धीरे -धीरे दवक्षक्षि होने िें सहयो
दया है । हर कोच बर ा हुआ है । हर कोच खरगडि है और स्तवयर से लड़ रहा है । यगेकक िथाकतथि धिों ने िुम्हें बिाया है । कक यह बुरा है, यह िि करो। लेककन य द कािना उठिी है िो िुि या कर रहे हो। िुि कािना से लड़ रहे हो। िरत्र कहिा है कक कािना से िि लड़ो।
लेककन इसका यह अथय नहीर है कक िुि उसके मशकार हो जाग। इसका यह अथय नहीर है कक िि ु उसिें मलि हो जाग। िरत्र िुम्हें बड़ी सा्ि दवतध दे िा है 1 जब कािना उठे िो आरर भ िें ही अपनी सिग्रिा से जा रूक हो जाग। अपनी सिग्रिा से उसको दे खो। बस ढ़क्ष्
बन जाग। िष् ा को पीछे िि छोड़ो। अपनी सिग्रिा से
उसका दे खो। बस ढ़क्ष्
बन जाग। िष् ा को पीछे िि छोड़ो। अपनी परा ी चेिना को इस उठिी हुच कािना पर ल ा दो। यह बड़ा सा्ि उपाय है । लेककन बहुि अद्भि ु है । इसके प्रभाव चित्काररक है । िीन बािें सिझने जैसी है । पहली, जब कािना उठ ही रही है िो कुछ िुि कर नहीर सकिे। िब वह अपना
रास्तिा पारा करे ी। अपना विुल य पारा करे ी। और िुि कुछ भी नहीर कर सकिे। आरर भ िें ही कुछ ककया जा सकिा है । बीज को िभी और वही जला दे ना चा ह । ल े िो कुछ करना क ठन हो ा, ल भ ऊजाय ही नष्
क बार बीज अरकुररि हो जा
और वक्ष ृ दवकमसि होने
असरभव ही हो ा। िुि जो भी करो े उससे और सरिाप ही पैदा हो ा।
हो ी। दवक्षक्षििा, तनबयलिा ही पैदा हो ी। िो जब कािना उठे आरर भ ही हो। पहली झलक िें ही
पहले आभास िें ही कक कािना उठ रही है । अपनी सरपाणय चेिना को, अपने प्राणगे की सिग्रिा को उसे दे खने िें ल ा दो। कुछ भी िि करो। और कुछ करने की जरूरि भी नहीर। सिग्र प्राणगे से दे खने पर ढ़क्ष्
इिनी आग्नेय
हो जािी है कक लबना ककसी सरिनय के, लबना ककसी दववाद के, लबना ककसी दवरोध के, बीज जल जािा है । सिग्र प्राणगे से
हरे दे खने की बाि है। और उठिी हुच कािना पारी िरह दग्ध हो जािी है ।
और जब कािना लबना ककसी सरिनय के सिाि हो जािी है िो वह िुम्हें इिना शक्ि शाली कर जािी है । इिनी उजाय से, इिने
हन होश से भर दे िी है कक िुि कल्पना भी नहीर कर सकिे। य द िुि लड़ो े िो हारो े। य द
िुि न भी हारगे गर कािना ही हार जा
िब भी बाि वही हो ी। कोच ऊजाय नहीर बचे ी। चाहे िुि जीिगे चाहे
हारगे। िुि थके हारे ही अनभ ु व करो े। दोनगे ही बािगे िें िुि अरि िें किजोर रहो जाग े। यगेकक कािना िुम्हारी उजाय से लड़ रही थी। और िुि भी उसी ऊजाय से लड़ रहे थे। ऊजाय
क ही स्तत्रोि से आ रही थी। िुि
क ही स्तत्रोि से उलीच रहे थे। िो कुछ भी पररणाि हो, स्तत्रोि तनबयल ही हो ा।
लेककन य द कािना आरर भ िें ही सिाि हो जा , लबना दवरोध के—याद रखो,यह िाल बाि है —लबना ककसी सरिनय के,बस दे खने भर से दवरोध भरी ढ़क्ष्
से नहीर,नष्
उस सिग्र ढ़क्ष्
करने वाले िन से नहीर। शत्रुिा से नहीर। बस दे खने भर से:
की सिनिा से ही बीज जल जािा है । और जब कािना उठिी हुच कािना, आकाश िें धु ँ की िरह दवलीन हो जािी है िो िुि क अद्भुि ऊजाय से भर जािे हो। वह ऊजाय ही आनरद है । वह िुम्हें क सौंदयय, क
ररिा दे ी।
िथाकतथि सरि जो अपनी कािनागर से लड़ रहे है , कुरूप है । जब िैं कहिा हार कुरूप िो िेरा अथय है वे सदै व क्षुि से उलझे है , सरिनय कर रहे है । उनका परा ा यक्ित्व ररिाहीन हो जािा है । गर वे हिेशा किजोर होिे है । हिेशा ऊजाय की किी होिी है । यगेकक उनकी सारी ऊजाय अरियध स ुय िें नष् बुध स पुरून लबलकुल मभन्न होिा है । और बुध स के यक्ित्व िें जो क्षुि से उलझे है , सरिनय या युध स के, लबना ककसी अरि हंसा के नष्
हो जािी है ।
ररिा प्रक हो
हार कुरूप िो िेरा अथय है वे सदै व च कािनागर के कारण है ।
‘अपनी सरपाणय चेिना से कािना है , जानने के आरर भ िें ही जानो।’ उसी क्षण िें बस जानो, अवलोकन करो, दे खो। कुछ भी िि करो। और कुछ भी नहीर चा ह । बस इिना ही चा ह
कक िुम्हारे सिग्र प्राण वहार उपक्स्तथि हो। िुम्हारी पाणय उपक्स्तथति चा ह । लबना ककसी हरसा के परि
बुध सत्व उपलध करने का यक
क राज है ।
और याद रखो, परिात्िा के राज्य िें िुि हरसा से प्रवेश नहीर कर सकिे। नहीर,वे वावार िुम्हारे मल
कभी नहीर
खुलें ,े भले िुि ककिनी ही दस्तिक दो। ख ख ागर और ख ख ािे ही जाग। िुि अपना मसर फोड़ ले सकिे हो
लेककन वे वावार कभी नहीर खुलें े। लेककन जो भीिर मल
हरे िें अ हरसक है और ककसी चीज से नहीर लड़ रहे । उनके
वे वावार सदा खुले है, कभी बरद ही नहीर थे।
जीसस कहिे है , दस्तिक दो और िुम्हारे मल जरूरि नहीर है । दे खो वावार खुले ही हु सरपाण,य अखरड ढ़क्ष् से दे खो।
वावार खुल जा र े। िैं िुिसे कहिा हार कक दस्तिक दे ने की भी है । वे सदा से ही खुले हु है । वे कभी बरद नहीर थे। बस क हन सिग्र
गशो दवज्ञान भैरव िरत्र, भा —पारच, प्रवचन-75
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—104 (ओशो) तीसरी विधि:
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—104 (गशो)
‘हे शक्त, प्रत्येक आभास सीमित है , सिथशक्तिान िें विलीन हो रहा है ।’
जो कुछ भी हि दे खिे है सीमिि है , जो कुछ भी हि अनुभव करिे है सीमिि है । सभी आभास सीमिि है । लेककन य द िुि जा
जाग िो हर सीमिि चीज असीि िें दवलीन हो रही है । आकाश की और दे खो। िुि
केवल उसका सीमिि भा
दे ख पाग े। इसमल
नहीर कक आकाश सीमिि है , बक्ल्क इसमल
कक िुम्हारी आरखें
सीमिि है । िुम्हारा अवधान सीमिि है । लेककन य द िुि पहचान सको कक यह सीिा अवधान के कारण है , आरखगे के कारण है , आकाश के सीमिि होने के कारण नहीर है िो कफर िुि दे खो ें कक सीिा र असीि िें दवलीन हो रही है । जो कुछ भी हि दे खिे है वह हिारी ढ़क्ष् वरना िो सब चीजें
के कारण ही सीमिि हो जािा है । वरना िो अक्स्तित्व असीि है ।
क दस ा रे िें दवलीन हो रही है । हर चीज अपनी सीिा र खो रही है । हर क्षण लहरें िहासा र
िें दवलीन हो रही है । और न ककसी को कोच अरि है, न आ द। सभी कुछ शेन सब कुछ भी है ।
सीिा हिारे वावारा आरोदपि की
च है । यह हिारे कारण है , यगेकक हि अनरि को दे ख नहीर पािे, इसमल
उसको
दवभाक्जि कर दे िे है । ऐसा हिने हर चीज के साथ ककया है । िुि अपने िर के आस-पास बाड़ ल ा लेिे हो। और कहिे हो कक ‘यह जिीन िेरी है , और दस ा री और ककसी और की जिीन है ।’ लेककन िुम्हारे पड़ोसी की जिीन िुि बर े हु
हरे िें िुम्हारी और
क ही है । वह बाड़ केवल िुम्हारे ही कारण है । जिीन बर ी हुच नहीर है । पड़ोसी और हो अपने-अपने िन के कारण।
दे श बर े हु है िुम्हारे िन के कारण। कहीर भारि सिाि होिा है और पाककस्तिान शुरू होिा है । लेककन जहार अब पाककस्तिान है कुछ वनय पहले वहार भारि था। उस सिय भारि पाककस्तिान की आज की सीिागर िक फैला हुआ था। लेककन अब पाककस्तिान बर
या, सीिा आ
च लेककन जिीन वही है ।
िैंने
क कहानी सन ु ी है जो िब ि ी जब भारि और पाककस्तिान िें बर वारा हुआ। भारि और पाककस्तिान की सीिा पर ही क पा लखाना था। राजनीतिज्ञगे को कोच बहुि तचरिा नहीर थी कक पा लखाना कहार जा । भारि िें कक पाककस्तिान िें । लेककन सुपररन ैंड ैं
को तचरिा थी। िो उसने पछ ा ा कक पा लखाना कहार रहे ा। भारि िें या
पाककस्तिान िें । दल्ली से ककसी ने उसे साचना भेजी कक वह वहार रहने वाले पा लगे से ही पछ ा ले और ििदान ले-ले कक वे कहार जाना चाहिे है। सुपररन् ें ड़ें
अकेला आदिी था जो पा ल नहीर था और उसने उनको सिझाने की कोमशश कक। उसने सब पा लगे
को इकट्ठा ककया और उन्हें कहार, ‘अब यह िुम्हारे ऊपर है , य द िुि पाककस्तिान िें जाना चाहिे हो िो पाककस्तिान िें जा सकिे हो।’
लेककन पा लगे ने कहार, ‘हि यही रहना चाहिे है । हि कहीर भी नहीर जाना चाहिे।’ उसने उन्हें सिझाने की बहुि कोमशश की। उसने कहार, ‘िुि यहीर रहो े। उसकी तचरिा िि करो। िुि यहीर रहो े लेककन िुि जाना कहार चाहिे हो।’ वे पा ल बोले, ‘लो
कहिे है कक हि पा ल है , पर िुि िो और भी पा ल ल िे हो। िुि कहिे हो कक िुि
भी यहीर रहो े और हि भी यहीर रहें े। कहीर जाने की तचिा नहीर है । ’ सुपररन् ें ड़ें
िो िुक्कल िें पड़
या कक इन्हें पारी बाि ककस िरह सिझाच जा ।
दीवार खड़ी कर दी और पा ल खाने के दो बराबर हस्तसगे िें बार हस्तसा भारि बन
दया।
क ही उपाय था। उसने
क हस्तसा पाककस्तिान हो
या
क
क
या। और कहिे है कक कच बार पाककस्तिान वाले पा ल खाने के कुछ पा ल दीवार पर चढ़
आिे है । और भारि वाले पा ल भी दीवार काद जािे है और वे अभी भी है रान है कक या हो उसी ज ह पर और िुि पाककस्तिान चले
हो हि भारि चले
है । और
या है । हि है
या कोच कहीर भी नहीर।
वे पा ल सिझ ही नहीर सकिे, वे कभी भी नहीर सिझ पा र े, यगेकक दल्ली और कराची िें और भी बड़े पा ल है । हि बार िे चले जािे है । जीवन अक्स्तित्व बर ा हुआ नहीर है । सभी सीिा र िनुष्य की बनाच हुच है । वे उपयो ी है य द िुि उसके पीछे पा ल न हो जाग और य द िुम्हें पिा हो कक वे बस कािचलाऊ है , िनुष्य की बनाच हुच है । िात्र उपयोत िा के मल है ; असली नहीर है , यथाथय नहीर है, बस िान्यिा िात्र है , कक वे उपयो ी िो है , लेककन उसिें कोच सचाच नहीर है । ‘हे शक्ि, प्रत्येक आभास सीमिि है , सवयशक्ििान िें दवलीन हो रहा है ।’
िो िि ु जब भी कुछ सीमिि दे खो िो हिेशा याद रखो कक सीिा के पार वह दवलीन हो रहा है , सीिा तिरो हि हो रही है । हिेशा पार और पार दे खो। इसे िुि
क यान बना सकिे हो। ककसी वक्ष ृ के नीचे बैठ जाग और दे खो, और जो भी िुम्हारी ढ़क्ष्
िें आ ,
उसके पार जाग, पार जाग, कहीर भी रूको िि। बस यह खोजगे कक यह वक्ष ृ कहार सिाि हो रहा है । यह वक्ष ृ िुम्हारे बगीचे िें यह छो ा सा वक्ष ृ पारा अक्स्तित्व अपने िें सिा हि कक दवलीन हो रहा है ।
हु
है । हर क्षण यह अक्स्तित्व िें
य द कल सय ा य न तनकले िो यह वक्ष ृ िर जा
ा। यगेकक इस वक्ष ृ का जीवन सायय के जीवन के साथ जुड़ा हुआ है । उनके बीच दरा ी बड़ी है । सय ा य की ककरणें पथ्ृ वी िक पहुरचने िें सिय ल िा है । दस मिन ल िे है । दस मिन
बहुि लरबा सिय है । यगेकक प्रकाश बहुि िेज ति से चलिा है । प्रकाश क सेकेंड िें क लाख तछयासी हजार िील चलिा है । और सय ा य से इस वक्ष ृ िक प्रकाश पहुरचने िें दस मिन ल िे है । दरा ी बड़ी है , दवशाल है । लेककन य द सायय न रहे िो वक्ष ृ ित्क्षण िर जाये ा। वे दोनगे
क साथ है । वक्ष ृ हर क्षण सायय िें दवलीन हो रहा
है । और सायय हर क्षण वक्ष ृ िें दवलीन हो रहा है । हर क्षण सायय वक्ष ृ िें प्रवेश कर रहा है । उसे जीवरि कर रहा है । दस ा री बाि, जो अभी दवज्ञान को ज्ञान नहीर है , लेककन धिय कहिा है कक सरवेदन के लबना जीवन िें कुछ भी नहीर रह सकिा। जीवन िें सदा हो जािी है । वक्ष ृ भी सायय को जीवन दे रहा हो ा। वे जािी है ।
क और ि ना ि
रही है । यगेकक प्रति
क प्रति सरवेदन होिा है । और ऊजाय बराबर
क ही है । कफर वक्ष ृ सिाि हो जािा है सीिा सिाि हो
जहार भी िुि दे खो, उसके पार दे खो, और कहीर भी रूको िि। दे खिे जाग। दे खिे जाग, जब िक कक िुम्हारा िन न खो जा । जब िक िुि अपने सारे सीमिि आकार न खो बैठो। अचानक िुि प्रकाशिान हो जाग े। पारा अक्स्तित्व
क है , वह
किा ही ल्य है । और अचानक िन आकार से सीिा से पररतध से थक जािा है ।
और जैसे-जैसे िुि पार जाने के प्रयत्न िें ल े रहिे हो, पार और पार जािे चले जािे हो। िन छा अचानक िन त र जािा है । और िुि अक्स्तित्व को दवरा सिा हि हो रहा है । सब कुछ
अवावैि की िरह दे खिे हो। सब कुछ
क दस ा रे िें पररवतियि हो रहा है।
जािा है । क दस ा रे िें
‘हे शक्ि, प्रत्येक आभास सीमिि है , सवयशक्ििान िें दवलीन हो रहा है ।’ इसे िुि
क यान बना ले सकिे हो।
क िर े के मल
बैठ जाग और इसे करके दे खो। कहीर कोच सीिा िि
बनाग। जो भी सीिा हो उसके पार खोजने का प्रयास करो और चले जाग। जल्दी ही िन थक जािा है । यगेकक िन असीि के साथ नहीर चल सकिा। िन केवल सीमिि से ही जुड़ सकिा है । असीि के साथ िन नहीर जुड़ सकिा; िन ऊब जािा है । थक जािा है । कहिा है , ‘बहुि हुआ,अब बस करो।’ लेककन रूको िि, चलिे जाग। क क्षण आ ा जब िन पीछे छा जािा है । और केवल चेिना ही बचिी है । उस क्षण िें िम् ु हें अखरडिा का अवावैि का ज्ञान हो ा। यही ल्य है । यह चेिना का सवतच मशखर है । और िनुष्य के िन के मल आनरद है , हनत्ि सिातध है । ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच,
यह परि
प्रिचन-75
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—105 (ओशो) चौथी विधि
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—105 (गशो)
‘सत्य िें रूप अविभत है । सिथव्यापी आत्िा तथा तुम्हारा अपना रूप अविभत है । दोनों को इसी चेतना से तनमिथत जानो।’
‘सत्य िें रूप अदवभि है ।’ वे दवभक्ि दखाच पड़िे है , लेककन हर रूप दस ा रे रूपगे के साथ सरबरतधि है । वह दस ा रगे के साथ अक्स्तित्व िें है— बक्ल्क यह कहना अतधक सही हो ा कक वह दस ा रे रूपगे के साथ सह-अक्स्तित्व िें है —बक्ल्क यह कहना अतधक सही हो ा कक वह दस ा रे रूपगे के साथ सह-अक्स्तित्व िें है । हिारी वास्तिदवकिा िें यह
क सह सही अक्स्तित्व है । वास्तिव
क पारस्तपररक वास्तिदवकिा है । पारस्तपररक आत्िीय िा है । उदाहरण के मल , जरा सोचो कक िुि इस
पथ्ृ वी पर अकेले हो। िुि या होग े? पारी िनुष्यिा सिाि हो
च हो, िीसरे दववयुध स के बाद िुम्हीर अकेले
बचे हो—सरसार िें अकेले, इस दवशाल पथ्ृ वी पर अकेले। िुि कौन होग े?
पहली बाि िो यह है कक अपने अकेले होने की कल्पना करना ही असरभव है । िैं कहिा हार, अपने अकेले होने की कल्पना करना ही असरभव है । िुि बार-बार कोमशश करो े और पाग े कक कोच साथ ही खड़ा है —िुम्हारी पिनी, िुम्हारे बचे, िुम्हारे मित्र—यगेकक िुि कल्पना िें भी अकेले नहीर रह सकिे। िुि दस ा रगे के साथ ही हो। वे िुम्हें अक्स्तित्व दे िे है । वे िुम्हें सहयो
दे िे है । िुि उन्हें सहयो
दे िे हो और वे िुम्हें सहयो
दे िे है ।
िुि कौन होग े। िुि अछे आदिी होग े या बुरे आदिी होग े? कुछ भी नहीर कहा जा सकिा। यगेकक
अछाच और बुराच सापेक्ष होिी है । िुि सुरदर होग े। कक कुरूप होग े? कुछ भी नहीर कहा जा सकिा। िुि
पुरून होग े या स्तत्री होग ?े कुछ भी नहीर कहा जा सकिा, यगेकक िुि जो भी हो, दस ा रे के सरबरध िें हो। िुि बुदध सिान होग े या िाढ़?
धीरे -धीरे िि ु पाग े कक सब रूप सिाि हो सब रूप सिाि हो
। और उन रूपगे के सिाि होने के साथ िुम्हारे भीिर के भी
है । न िुि िाखय हो न बुदध सिान, न अछे न बुरे, न कुरूप न सुरदर, न पुरून न स्तत्री। कफर
िुि या होग े। य द िुि सब रूपगे को ह ािे चलो िो जल्दी ही िुि पाग े कक कुछ भी नहीर बचा। हि रूपगे को अल -अल
दे खिे है । लेककन वे अल
है नहीर, हर रूप दस ा रगे के साथ जुड़ा है । रूप
क श्ररखला िें होिे है ।
यह सात्र कहिा है : ‘सत्य िें रूप अदवभि है । सवययापी आत्िा िथा िुम्हारा अपना रूप अदवभि है ।’ िुम्हारा रूप और सरपण ा य अक्स्तित्व का रूप भी अदवभि है । िि ु उसके साथ
क हो। िुि उसके लबना नहीर हो
सकिे। और दस ा री बाि भी सच है , लेककन उसे सिझना थोड़ा क ठन है : ज ि भी िुम्हारे लबना नहीर हो सकिा। ज ि िुम्हारे लबना नहीर हो सकिा। जैसे की िुि ज ि के लबना नहीर हो सकिे। िुि अल -अल रहे हो और अल -अल
रूपगे िें सदै व रहो े। लेककन िुि रहो े ही। िुि इस ज ि के
िुि बाहरी नहीर हो, कोच अजनबी नहीर हो, कोच परदे शी नहीर हो। िुि
रूपगे िें सदै व
क अमभन्न अर
क अरिरर , अमभन्न अर
हो।
हो। और ज ि
िुम्हें खो नहीर सकिा। यगेकक य द वह िुम्हें खोिा है िो स्तवयर भी खो दे ा। रूप दवभि नहीर है । अदवभि है । वे
क है । केवल आभास ही सीिा र और पररतधयार खड़ी करिे है ।
य द िुि इस पर िनन करो। इसिें प्रवेश करो, िो यह है । कोच मसध सारि नहीर, कोच दवचार नहीर, बक्ल्क क है ।
क अनुभाति बन सकिी है । यह
क अनुभाति है , हार, िैं ज ि के साथ
क अनुभाति बन जािी
क हार और ज ि िेरे साथ
यही जीसस यहा दयगे से कह रहे थे। लेककन वह नाराज हु ,यगेकक जीसस ने कहा, ‘िैं और स्तव य िें िेरे दपिा क ही है ।’ यहादी नजारा हु । जीसस या दावा कर रहे थे? या वह यह दावा कर रहे थे कक वह और परिात्िा क ही है ? यह िो चवर दवरोधी बाि हो
च। उन्हें दर ड मिलना चा ह । लेककन वह िो िात्र
और कुछ भी नहीर। वह िात्र यह दवतध दे रहे थे कक यह दवभि नहीर है, कक िुि और पाणय स्तव य िें िेरे दपिा
क ही है ।’ लेककन यह कोच दावा नहीर था, यह िात्र
और जब जीसस ने कहा कक ‘िैं और िेरे दपिा परिात्िा अल -अल परिात्िा
चसाइयगे ने भी
क ही हो–’िैं और
क दवतध थी।
क ही है , िो उनका यह अथय नहीर था। कक िुि और दपिा
हो। जब उन्हगेने कहा, ‘िैं िो उसिें हर ‘िैं’ आ
क है । लेककन इसे
क दवतध दे रहे थे।
या। जहार भी ‘िैं’ है वह उस िैं और
लि सिझा
या। और यहादी िथा चसाइयगे, दोनगे ने ही इसे लि सिझा। लि सिझा। यगेकक वे कहिे है कक जीसस परिात्िा के इकलौिे बे े है । परिात्िा के इकलौिे
बे े िाकक कोच और यह दावा न कर सके कक वह भी परिात्िा का बे ा है ।’ िैं
क बड़ी िजेदार पुस्तिक पढ़ रहा था। उसका शीनयक है , ”िीन क्राइस्त ।” क पा लाबाने िें िीन आदिी थे
और िीनगे ही यह दावा करिे थे कक वे क्राइस्त
है । यह
क सची ि ना है । कोच कहानी नहीर है । िो
िनोदवलेनक ने िीनगे को अययन ककया। कफर उसके िन िें मिलवाया जा
िो दे खें या होिा है । बड़ी दल्ल ी रहे ी। वे
क दवचार आया कक यह उन िीनगे को आपस िें क दस ा रे को कैसे पररचय दें े और या उनकी
प्रतिकक्रया हो ी। िो उसने उन िीनगे को इकट्ठा ककया और आपस िें पररचय करने के मल दया। पहला बोला, ”िैं इकलौिा बे ा हार, जीसस क्राइस्त ।”
क
क किरे िें छोड़
दस ा रा हर सा और उसने अपने िन िें सोचा कक यह जरूर कोच पा ल हो ा। वह बोला: ”िुि कैसे हो सकिे हो। िेरी और दे खो। परिात्िा का बे ा यहार है ।”
िीसरे ने सोचा कक दोनगे िाखय है । कक दोनगे पा ल हो दे खो। परिात्िा का बे ा यहार है ।”
कफर उस िनोदवलेनक ने उनसे अल -अल उन िीनगे ने कहा, ”बाकी दोनगे पा ल हो
है । उसने कहा, ”िुि या बाि करिे हो। िेरी और
पछ ा ा। ”िुम्हारी प्रतिकक्रया या है ।” ये है ।”
और ऐसा केवल पा लगे के साथ ही नहीर है । य द िुि चसाइयगे से पाछो कक वे कृष्ण के दवनय िें या सोचिे है िो वे उसे परिात्िा सिझिे है । िो वे कहें े कक उस पार से केवल क्राइस्त । इतिहास िें केवल
क ही आ िन हुआ है । वे है जीसस क ही बार परिात्िा सरसार िें उिरा है । और जीसस क्राइस्त के रूप िें । कृष्ण भले
है , िहान है, लेककन परिात्िा नहीर है ।
य द िुि हरदग ु र से पाछो, वे जीसस पर हर सें े। वही पा लपन चलिा है । और वास्तिदवकिा यह है कक सब परिात्िा के बे े है –सब। इससे अन्यथा सरभव ही नहीर है । िुि
कक कृष्ण हो, कक अ, ब, स कुछ भी हो, या कुछ भी नहीर हो, िुि चेिना, हर क्षण दय से सरबरतधि है । जीसस केवल
क ही स्तत्रोि से आिे हो। चाहे िुि जीसस हो, क ही स्तत्रोि से आिे हो। और हर ”िैं” हर
क दवतध दे रहे थे। वह लि सिझे
।
यह दवतध वही है : ”सत्य िें रूप अदवभि है । सवययापी आत्िा िथा िुम्हारा अपना रूप अदवभि है । दोनगे को इसी चेिना से तनमियि जानो।”
न केवल यह अनुभव करो कक िुि इस चेिना से बने हो। बक्ल्क अपने आस-पास की हर चीज को इसी चेिना से तनमियि जानो। यगेकक यह अनुभव करना िो बड़ा सरल है कक िुि इस चेिना से बने हो। इससे िुम्हें बड़े
अरहकार का भाव हो सकिा है । अहर कार को इससे बड़ी िक्ृ ि मिल सकिी है । लेककन अनुभव करो कक दस ा रा भी इसी चेिना से बना है । कफर यह
क दवनम्रिा बन जािी है ।
जब सब कुछ दय है िो िुम्हारा िन अहर कारी नहीर हो सकिा। जब सब कुछ दय है िो िुि दवनम्र हो जािे हो। कफर िुम्हारे कुछ होने का कुछ श्रेष्ठ होने का प्रन नहीर रह जािा, कफर पारा अक्स्तित्व दय हो जािा है । और जहार भी िुि दे खिे हो, दय को ही दे खिे हो। दे खने वाला ढ़ष् ा और दे खा यगेकक रूप दवभि नहीर है । सब रूपगे के पीछे अरूप तछपा हुआ है । ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-75
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—106 (ओशो) पहली विधि:
या ढ़य दोनगे दय है ।
दवज्ञान भैरव िरत्र–106
‘हर िनुष्य की चेतना को अपनी ही चेतना जानो। अंत: आत्िधचंता को त्यागकर प्रत्येक प्राणी हो जाओ।’ ‘हर िनुष्य की चेिना को अपनी ही चेिना जानो।’
वास्तिव िें ऐसा ही है , पर ऐसा ल िा नहीर। अपनी चेिना को िुि अपनी चेिना ही सिझिे हो। और दस ा रगे की
चेिना को िुि कभी अनुभव नहीर करिे। अतधक से अतधक िुि यही सोचिे हो कक दस ा रे भी चेिन है । ऐसा िुि इसीमल
सोचिे हो यगेकक जब िुि चेिन हो िो िुम्हारे ही जैसे दस ा रे प्राणी भी चेिन होने चा ह । यह
क
िाककयक तनष्कनय है; िुम्हें ल िा नहीर कक वे चेिन है। यह ऐसे ही है जैसे जब िुम्हें मसर िें ददय होिा है िो िम् ु हें उसका पिा चलिा है , िुम्हें उसका अनुभव होिा है । लेककन य द ककसी दस ा रे के मसर िें ददय है िो िुि केवल
सोचिे हो, दस ा रे के मसर-ददय को िुि अनुभव नहीर कर सकिे। िुि केवल सोचिे हो कक वह जो कह रहा है सच
ही होना चा ह । और उसे िुम्हारे मसर-ददय जैसा ही कुछ हो रहा हो ा। लेककन िुि उसे अनुभव नहीर कर सकिे। अनुभव केवल िभी आ सकिा है जब िुि दस ा रगे कक चेिना के प्रति भी जा रूक हो जाग, अन्यथा यह केवल
िाककयक तनष्पति िात्र ही रहे ी। िुि दववास करिे हो, भरोसा करिे हो कक दस ा रे चिानदारी से कुछ कह रहे है ; और वे जो कह रहे है यह भरोसा करने योग्य है, यगेकक िुम्हें भी ऐसे ही अनुभव होिे है । िाककयकगे की
क धारा है जो कहिी है कक दस ा रे के बारे िें कुछ भी जानना असरभव है । अतधक से अतधक िाना
जा सकिा है, पर तनक्चि रूप से कुछ भी जाना नहीर जा सकिा। यह िुि कैसे जान सकिे हो कक दस ा रे को भी िुम्हारे जैसी ही पीड़ा हो रही है । कक दस ा रगे को िुम्हारे ही जैसे दुःु ख है ? दस ा रें सािने है पर हि उनिें प्रवेश नहीर
कर सकिे, हि बस उनकी पररतध को छा सकिे है । उनकी अरिस चेिना अनजानी रहिी है । हि अपने िें ही बरद रहिे है ।
हिारे चारगे और का सरसार अनुभव ि नहीर है । बस िाना हुआ है । िकय से, दवचार से िन िो कहिा है कक ऐसा है , पर ्दय इसे छा नहीर पािा। यही कारण है कक हि दस ा रगे से ऐसा यवहार करिे है जैसे वे यक्ि न हो
वस्तिु र हो। लो गे के साथ हिारे सरबरध भी ऐसे होिे है । जैसे वस्तिुगर के साथ होिे है । पति अपनी पत्नी से ऐसा यवहार करिा है जैसे वह कोच वस्तिु हो: वह उसका िामलक है। पत्नी भी पति की इसी िरह िामलक होिी है । जैसे वह कोच वस्तिु हो। य द हि दस ा रगे से यक्ियगे की िरह यवहार करिे िो हि उन पर िालककयि न जिािे, यगेकक िालककयि केवल वस्तिुगर पर ही की जा सकिी है ।
यक्ि का अथय है स्तविरत्रिा। यक्ि पर िालककयि नहीर की जा सकिी। य द िुि उन पर िालककयि करने का प्रयास करो े। िो उन्हें िार डालो े। वे वस्तिु हो जा र े। वास्तिव िें दस ा रगे से हिारे सरबरध कभी भी ‘िैं-िुि’ वाले नहीर होिे।
हरे िें वह बस—‘िैं-यह’ (यह यानी वस्तिु) वाले होिे है । दस ा रा िो बस
शोनण करना है । क्जसका उपयो
क वस्तिु होिा है क्जसका
करना है । यही कारण है कक प्रेि असरभव होिा जा रहा है । यगेकक प्रेि का
अथय है दस ा रे को यक्ि सिझना, क चेिन-प्राणी, क स्तविरत्रिा सिझना, अपने क्जिना ही िाल्यवान सिझना। य द िुि ऐसे यवहार करिे हो जैसे सब लो
वस्तिु है िो िुि केंि हो जािे हो और दस ा रे उपयो
की जाने
वाली वस्तिु र हो जािी है । सरबरध केवल उपयोत िा पर तनभयर हो जािा है । वस्तिुगर का अपने आप िें कोच िाल्य नहीर होिा; उनका िाल्य यही है कक िुि उनका उपयो सरबरतधि हो सकिे हो; िर िुम्हारे मल नहीर है । न पति िुम्हारे मल क यक्ि अपने मल
है । वह
है । पति अपने मल
कर सकिे हो, वे िुम्हारे मल
है । िुि अपने िर से
क उपयोत िा है । कार िुम्हारे मल है और पत्नी अपने मल
है । लेककन पत्नी िुम्हारे मल
है ।
ही होिा है । यही यक्ि होने का अथय है । और य द िुि यक्ि को यक्ि ही रहने
दे िे हो। और उन्हें वस्तिु न बनाग। धीरे -धीरे िुि उसे िहसास करना शरू ु कर दे िे हो। अन्यथा िुि िहसास नहीर कर सकिे। िुम्हारा सरबरध बस धारणा ि, बौदध सक, िन से िन का, िक्स्तिष्क से िक्स्तिष्क का ही रहे ा। कभी ्दय से ्दय का नहीर हो पा
ा।
यह दवतध कहिी है , ‘हर िनुष्य की चेिना को अपनी ही चेिना जानो।’ यह भी वही बाि है । लेककन पहले दस ा रा िुम्हारे मल चा ह । ककसी शोनण या उपयो
के मल
क यक्ि की िरह होना चा ह । वह स्तवयर के मल
नही, ककसी साधन की िरह नहीर, उसे स्तवयर िें
होना
क साय की िरह
होना चा ह । पहले वह यक्ि होना चा ह ; वह ‘िुि होना चा ह , िुम्हारे क्जिना ही िाल्यवान। केवल िभी वह दवतध उपयो
की जा सकिी है ।’
‘हर िनुष्य की चेिना को अपनी ही चेिना जानो।’ पहले अनुभव करो कक दस ा रा भी चेिन है , िब यह हो सकिा है कक िुि िहसास करो कक दस ा रे िें भी वही चेिना है जो िुििें है । वास्तिव िें दस ा रा खो जािा है । और िुम्हारे िथा उसके बीच चैिन्य लहरािा है । िुि चेिना की क धारा के दो ध्रुव बन जािे है ।
हन प्रेि िें ऐसा होिा है कक दो यक्ि दो नहीर रहिे। दोनगे के बीच कुछ बहने ल िा है और वे दोनगे दो ध्रुव
बन जािे है । दोनगे के बीच िें कुछ आरदोमलि होने ल िा है । जब यह बहाव ि ि होिा है िो िुि आनरद से भर उठिे हो। य द प्रेि आनरद दे िा है िो इसी कारण; दो यक्ि केवल ‘दस ा रा’ खो जािा है और बस
क क्षण के मल
है , सौभाग्य है, िुि स्तव य िें प्रवेश कर यह दवतध कहिी है कक यह प्रयो
कैसे यह होिा है ।
। केवल
क क्षण गर वही क्षण िुम्हें रूपारिररि कर दे िा है ।
िुि सबके साथ कर सकिे हो, प्रेि िें िुि
क प्रवा हि जीवन हो। केवल
क बार िुि प्रयो
अपने अहर कार खो दे िे है ।
अवावैि अरिस िें उिर जािा है । य द ऐसा होिा है िो अहो भाव
परर िु यान िें सबके साथ हो सकिे हो। जो भी िुम्हारे पास आ जीवन नहीर हो। बस
क क्षण के मल
ेस्त ाल्
क यक्ि के साथ हो सकिे हो
उसिे डाब जाग और अनुभव करो कक िुि दो
बदलने की बाि है ।
क बार िुि जान जाग कक
कर लो िो बहुि आसान है । शुरू-शुरू िें यह असरभव ल िा है । यगेकक
हि अपने अहर कार से बहुि जुड़े हु है । अहर कार को छोड़ना और प्रवाह िें बहना क ठन है । िो अछा हो ा कक पहले िुि ककसी ऐसी चीज से शुरू करो क्जससे िुि भयभीि नहीर हो। िुि वक्ष ृ से ज्यादा भयभीि नहीर होग े। इसमल िहसास करो कक िुि उसके साथ
क हो
वहार से शुरू करना सरल रहे ा। ककसी वक्ष ृ के पास बैठकर
हो। कक िुम्हारे भीिर
क प्रवाह, क सरप्रेनण हो रहा है । िुि
तिरो हि हो रहे हो। ककसी बहिी हुच नदी के ककनारे बैठ जाग और प्रवाह को अनुभव करो, िहसास करो कक िुि और नदी क हो हो। आकाश के नीचे ले कर िहसास करो कक िुि और आकाश क हो हो। शुरू-शुरू िें िो यह कल्पना िात्र हो ा लेककन धीर-धीरे िुम्हें ल ने ल े ा कक िुि कल्पना के िायि से वास्तिदवकिा को छाने ल े हो।
और कफर यक्ियगे के साथ प्रयो
करो। शुरू िें िो यह क ठन हो ा। यगेकक भय ल े ा। यगेकक िुि वस्तिु
बनिे रहे हो। िुि भयभीि हो कक य द िि ु ककसी को इिने पास आने दो े िो वह िुम्हें वस्तिु बना ले ा। यही भय है िो कोच भी इिनी ितनष्ठिा नहीर होने दे िा।
क अरिराल हिेशा बना
रखना चाहिा है। बहुि अतधक तनक िा खिरनाक है । यगेकक दस ा रा िुिको वस्तिु बना ले सकिा है , वह िुि पर िालककयि करने की कोमशश
कर सकिा है । वह डर है िुि दस ा रगे को वस्तिु बनना चाहिा, कोच भी ककसी का साधन बनना नहीर चाहिा। कोच भी नहीर चाहिा, कोच भी नहीर चाहिा कक कोच उसका उपयो न रहना। सबसे तनकृष्
करे । ककसी का साधन बन जाना स्तवयर िें िाल्यवान
ि ना है । लेककन हर कोच प्रयास कर रहा है । इसी कारण इिना
हन भय है कक इस
दवतध को यक्ियगे के साथ शरू ु करना क ठन हो ा। िो ककसी नदी के साथ, ककसी पहाड़ी के साथ, िारगे के साथ, आकाश के साथ, वक्ष ृ गे के साथ शुरू करो। िुि जान जाग कक जब िुि वक्ष ृ के साथ के साथ जब िुि
क हो जािे हो िो या होिा है ।
क बार िुि जान जाग कक नदी
क हो जािे हो िो ककिना आनरद उिरिा है । कैसे लबना कुछ खो
लेिे हो—िब िुि इसे यक्ियगे के साथ शुरू कर सकिे हो। और य द
क बार
िुि पारे अक्स्तित्व को पा
क वक्ष ृ के साथ, क नदी के साथ इिना आनरद आिा है िो िुि कल्पना भी नहीर कर सकिे कक
यक्ि के साथ ककिना अतधक आनरद आ
ा। यगेकक िनुष्य उचिर ि ना है , अतधक दवकमसि चेिना है ।
यक्ि के साथ िुि अनुभव के उचिर मशखरगे पर पहुरच सकिे हो। य द िुि हो सकिे हो िो क िनुष्य के साथ परि आनर दि हो सकिे हो।
क
क
क पत्थर के साथ भी आनर दि
लेककन ककसी ऐसी चीज से शुरू करो क्जससे िुि अतधक भयभीि नहीर हो, या य द कोच यक्ि है क्जसे िुि प्रेि करिे हो—कोच मित्र है , कोच दप्रयसी, कोच प्रेिी—क्जससे िुि भयभीि नहीर हो। क्जसके साथ िुम्हें यह भय न हो कक वह िुम्हें वस्तिु बना ले ा और क्जसिें िुि अपने को मि ा सको—य द िुम्हारे पास ऐसा कोच है िो यह दवतध करके दे खो। स्तवयर को होश पावक य उसिें मि ा दो।
जब िुि होश पावक य स्तवयर को ककसी िें मि ा दे िे हो वह भी स्तवयर को िुििें मि ा दे ा; जब िुि खुले होिे हो और दस ा रे िें बहिे हो िो दस ा रा भी िुििें बहने ल िा है और ऊजायऐर
क
हन मिलन, क सरवाद ि ि होिा है । दो
क दस ा रे िें सिा हि हो जािी है । उस क्स्तथति िें कोच अहर कार, कोच यक्ि नहीर बचिा,बस चेिना बचिी
है । और य द यह
क यक्ि के साथ सरभव है िो यह पारे ब्रह्िारड के साथ सरभव है । क्जसे सरिगे ने परिानरद
कहा है । सिातध कहा है , वह पुरून गर प्रकृति के बीच
हन प्रेि की ि ना है ।
‘हर िनुष्य की चेिना को अपनी ही चेिना जानो। अरि: आत्ितचरिा को त्या
कर प्रत्येक प्राणी हो जाग।’
हि सदा अपने से ििलब रखिे है । जब हि प्रेि िें भी होिे है िो अपने िें ही उत्सुक होिे है। यही कारण है कक प्रेि
क दवनाद बन जािा है । प्रेि स्तव य बन सकिा है । लेककन नकय बन जािा है । यगेकक प्रेिी भी अपने ही
स्तवाथों िें ल े होिे है । दस ा रे को इसमल
प्रेि ककया जािा है यगेकक वह िुम्हें सुख दे िा है । यगेकक उसके साथ
िुम्हें अछा ल िा है । लेककन दस ा रे को िुिने ऐसे प्रेि नहीर ककया। वह अपने आप िें ही िाल्यवान हो। िाल्य िुम्हारी प्रसन्निा से आिा है । यह भी दस ा रे का उपयो
क िरह से िुि पररिुष्
करना ही है ।
होिे हो। सरिुष्
होिे हो। इसमल
दस ा रा िहत्वपाणय है ।
आत्ितचरिा का अथय है कक दस ा रे का शोनण। और धामियक चेिना केवल िभी उिर सकिी है जब स्तवयर की तचरिा खो जा । यगेकक िब िुि अ-शोनक हो जािे हो। अक्स्तित्व के साथ िुम्हारा सरबध र शोनण का नहीर रहिा। बक्ल्क बार ने का, आनरद का रह जािा है । न िुि ककसी का उपयो होने का उत्सव रह जािा है ।
कर रहे हो, न कोच िुम्हारा उपयो
कर रहा हे । बस
लेककन इस आत्ितचरिा को दरा करना है—और वह बहुि हरे िें जिी हुच है । यह इिनी हरी है कक िुम्हें उसका पिा नहीर है । क उपतननद िें कहा या है कक पति अपनी पत्नी को पत्नी नहीर, बक्ल्क अपने मल प्रेि करिा है । और िार अपने बे े को बे े के मल है कक िुि जो भी करिे हो अपने ही मल
नहीर, बक्ल्क अपने मल
प्रेि करिी है । स्तवाथय की जड़ें इिनी
हरी
करिे हो। इसका अथय है कक िुि सदा अहर कार का ही पोनण कर रहे
हो। िुि सदा अहर कार को, क झाठे केंि को पोदनि कर रहे हो। जो कक िुम्हारे और अक्स्तित्व के बीच बाधा बन या है ।
स्तवयर की तचरिा छोड़ दो। य द कभी कुछ क्षण के मल अक्स्तित्व से जुड़ सको िो िुि
भी िुि स्तवयर की तचरिा छोड़ सको और दस ा रे से, दस ा रे के
क मभन्न वास्तिदवकिा िें, क मभन्न आयाि िें प्रवेश कर जाग े। इसीमल
सेवा, प्रेि, करूणा पर इिना बल दया जािा है । यगेकक करूणा, प्रेि, सेवा का अथय है दस ा रे से सरबरध, अपने से नहीर।
लेककन दे खो, िनुष्य का िन इिना चालाक है कक उसने सेवा, करूणा और प्रेि को भी स्तवाथय िें बदल दया है । चसाच मिशनरी सेवा करिा है और अपनी सेवागर िें चिानदार होिा है । वास्तिव िें कोच और इिनी ल न से सेवा नहीर कर सकिा क्जिना कक
हनिा और
क चसाच मिशनरी। कोच हरद,ा कोच िुसलिान ऐसा नहीर कर सकिा।
यगेकक जीसस ने सेवा पर बहुि बल दया है । क चसाच मिशनरी रीबगे की, बीिारगे की, रोत यगे कक सेवा कर रहा है । लेककन हरे िें उसे अपने से ही ििलब है । उन लो गे से कोच लेना दे ना नहीर है । यह सेवा बस स्तव य पहुरचने का क उपाय है । उसे उनसे कुछ भी लेना-दे ना नहीर है । बस अपने स्तवाथय से ििलब है। सेवा से श्रेष्ठ जीवन पा सकिा है । इसमल वह सेवा कर रहा है । लेककन वह िाल बाि ही चाक जािा है । यगेकक सेवा का अमभप्राय है दस ा रे को िहत्व दे ना, दस ा रा केंि है और िुि पररतध बन
।
कभी ऐसा करके दे खो। ककसी को केंि बना लो। कफर उसका सुख िुम्हारा सुख हो जािा है । उसका दुःु ख िुम्हारा दुःु ख हो जािा है । जो भी होिा है । उसको होिा है लेककन िुि िक प्रवा हि होिा है । वह केंि है । य द बस
िुि
क बार भी िुि अनुभव कर सको कक कोच और िुम्हारा केंि है । और िुि उसकी पररतध बन क मभन्न अक्स्तित्व िें अनुभव के
क मभन्न आयाि िें प्रवेश कर
। यगेकक उस क्षण िुि
क बार
हो, िो क
हन
आनरद अनुभव करो े। जो पहले कभी नहीर जाना हो ा। पहले कभी िहसास न ककया हो ा। िुि स्तव य िें प्रवेश कर
।
ऐसा यगे होिा है ? ऐसा इसमल
होिा है , यगेकक अहर कार दुःु ख का िाल है । य द िुि उसे भल ा सको, उसे मि ा
सको िो सभी दुःु ख उसी के साथ मि
जािे है ।
‘हर िनुष्य की चेिना को अपनी ही चेिना जानो। अि: आत्ितचरिा को त्या कर प्रत्येक प्राणी हो जाग।’ वक्ष ृ बन जाग, नदी बन जाग, पति बन जाग। बचा बन जाग। िार बन जाग, मित्र बन जाग—इसका जीवन के हर क्षण िें अभ्यास ककया जा सकिा है । लेककन शुरू िें यह क ठन हो ा। िो कि से कि इसे करो। उस
क िर े िें िुम्हारे करीब से जो भी
क िर ा रोज
ज ा रें , वही बन जाग। िुि सोचो े कक यह कैसे हो सकिा है ।
इसे जानने का और कोच उपाय नहीर है । िुम्हें करके ही दे खना पड़े ा। ककसी वक्ष ृ के साथ बैठो और िहसास करो कक िुि वक्ष ृ बन
हो। और जब हवा चलिी है िो और पारा वक्ष ृ
डोलिा है , झाििा है , िो उस करपन को अपने भीिर िहसास करो। जब सारज उ िा है और पारा वक्ष ृ जीवरि हो जािा है , िो उस जीवरििा को अपने भीिर िहसास करो। जब वनाय होिी है और पारा वक्ष ृ सरिुष्
और िृ ि हो
जािा है , क लरबी यास, क लरबी प्रिीक्षा सिाि हो जािी है । और वक्ष ृ पररिृ ि हो जािा है , िो वक्ष ृ के साथ िृ ि और सरिुष्
अनुभव करो। और जब िुि वक्ष ृ के सा्ि भाव-भरत िागर के प्रति सज
हो जाग े।
िुि उस वक्ष ृ को अभी िक कच वनों से दे खिे रहे हो, पर िुि उसके भावगे को नहीर जान पा । कभी वह प्रसन्न होिा है; कभी दुःु खी होिा है ; कभी उदास, सरिि, तचरतिि, यतथि होिा है ; कभी बहुि आनर दि और अहोभाव से भरा होिा है , उसके भाव होिे है । वक्ष ृ जीवरि है और िहसास करिा है । और य द िुि उसके साथ क हो जाग िो िुि भी वे अनुभव ले सकिे हो। िब िुि अनुभव कर पाग े कक वक्ष ृ जवान है या बाढ़ा। वक्ष ृ अपने जीवन से सरिुष्
है या नहीर। वक्ष ृ अक्स्तित्व के साथ प्रेि िें है या नहीर। या कक दवरूध स है , दवपरीि है । क्रोतधि है ; वक्ष ृ
हरसक है या उसिे
िुि उसके साथ
हन करूणा है । जैसे िुि हर क्षण बदल रह हो वैसे ही वक्ष ृ भी हर क्षण बदल रहा है । य द
हन आत्िीयिा अनुभव कर सको, क्जसे सिानुभाति कहिे है ….।
सिानुभाति का अथय है िुि ककसी के साथ इिनी सहानुभाति से भर जाग। कक उसके साथ ही हो जाग। वक्ष ृ के भाव िुम्हारे भाव हो जा र। और य द वह
हरे से
हरा होिा चला जा
क बार िुम्हें उसकी भाव दशागर का पिा ल ना शुरू हो जा
िो िुि वक्ष ृ से बाि भी कर सकिे हो।
िो िुि उसकी भाना सिझना शुरू कर सकिे
हो। और वक्ष ु , वह िुम्हारे साथ बार ने ल े ा। ृ अपने िन की बािें िुम्हें बिाने ल े ा। अपने सुख-अपने दख और यह पारे ज ि के साथ हो सकिा है । हर रोज कि से कि
क िर े के मल
ककसी भी चीज के साथ सिानुभाति िें चले जाग। शुरू िें िो िुम्हें
ल े ा िुि पा ल हो रहे हो। िुि सोचो ,े ‘िैं ककस िरह की िाखि य ा कर रहा हार?’ िुि चारगे और दे खो ें और िहसास करो े कक य द कोच दे ख ले या ककसी को पिा ल जा िो वह सोचे ा कक िुि पा ल हो हो। लेककन केवल शुरू िें ही ऐसा हो ा। िुम्हें पा ल नजर आये ा। वे लो
क बार सिानुभाति के इस ज ि िें िुि प्रवेश कर जाग िो सारा सरसार
बेकार िें ही इिना चाक रहे है । यगेकक वे बरद है । वे जीवन को अपने भीिर
प्रवेश नहीर करने दे िे। और जीवन िुििें केवल िभी प्रवेश कर सकिा है जब कच-कच िा ों से, कच-कच आयािगे से िुि जीवन िें प्रवेश करो। कि से कि
क िर ा हर रोज सिानुभाति को साधो।
प्राररभ िें हर धिय की प्राथयना का यही अथय था। प्राथयना का अथय था ब्रह्िारड के साथ होना, ब्रह्िारड के साथ
हन
सरवाद िें होना। प्राथयना का अथय है पाणि य ा। कभी िुि परिात्िा से नाराज हो सकिे हो। कभी धन्यवाद दे सकिे
हो, पर
क बाि पकी है कक िि ु सरवाद िें हो। परिात्िा केवल
ितनष्ठ सरबरध हो
क बौदध सक धारणा नहीर रही।
क
हन और
या। प्राथयना का यही अथय है ।
लेककन हिारी प्राथयना र सड़
ल
च है । यगेकक हिें िो यह भी नहीर पिा कक प्रालणयगे से कैसे जुड़।े िुि ककसी
प्राणी से नहीर जुड़ सकिे। िुम्हारे मल
के साथ कैसे जुड़ सकिे हो। और य द
यह असरभव है । य द िुि ककसी वक्ष ृ से नहीर जुड़ सकिे िो पारे अक्स्तित्व क वक्ष ृ से बाि नहीर कर सकिे, िुम्हें पा लपन ल िा है। िो परिात्िा
से बाि करना और भी ज्यादा पा लपन ल े ा। िन की प्राथयना पण ा य दशा के मल
हर रोज
क िर ा अल
से तनकाल लो और अपनी प्राथयना को शक्दक िि
बनाग। उसिे भाव भरो। खोपड़ी से बोलने की बजाय अनुभव करो। जाग और वक्ष ृ को छुग। उसे
ले ल ाग।
चािो; अपनी आरखें बरद कर लो और वक्ष ु अपनी प्रेमिका के साथ हो। उसे िहसास ृ के साथ ऐसे हो जाग जैसे िि करो। और शीध्र ही िुम्हें
क
हन बोध हो ा कक अपने आप को छोड़ कर दस ा रा बन जाने का या अथय है ।
‘हर िनुष्य की चेिना को अपनी ही चेिना जानो। अि: आत्ितचरिा को त्या कर प्रत्येक प्राणी हो जाग।’ ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-77
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—107 (ओशो) Posted on sw anand prashad
दस ू री विधि:
‘यह चेतना ही प्रत्येक प्राणी के रूप िें है । अन्य कुछ भी नहीं है ।’
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—107 (गशो)
अिीि िें वैज्ञातनक कहा करिे थे कक केवल पदाथय ही है और कुछ भी नहीर है । केवल पदाथय के ही होने की
धारणा पर बड़े-बड़े दशयन के मसध सारि पैदा हु । लेककन क्जन लो गे की यह िान्यिा थी कक केवल पदाथय ही है वे भी सोचिे थे कक चेिना जैसा भी कुछ है । िब वह या था? वे कहिे थे कक चेिना पदाथय का ही क बाच-प्रोडे है , क उप-उत्पाद है । वह परोक्ष रूप िें , सा्ि रूप िें पदाथय ही था।
लेककन इस आधी सदी ने
क िहान चित्कार होिे दे खा है । वैज्ञातनकगे ने यह जानने का बहुि प्रयास ककया कक पदाथय या है । लेककन क्जिना उन्हगेने प्रयास ककया उिना ही उन्हें ल ा कक पदाथय जैसा िो कुछ भी नहीर है । पदाथय का दवलेनण ककया
या और पाया कक वहार कुछ नहीर है ।
अभी सौ वनय पावय नीत्शे ने कहा था कक परिात्िा िर
या है । परिात्िा के िरने के साथ ही चेिना भी बच नहीर
सकिी यगेकक परिात्िा का अथय है सिग्र-चेिना। लेककन इन सौ सालगे िें ही पदाथय िर इसमल
क लबलकुल दस ा रे तनष्कनय पर पहुरच है कक पदाथय केवल आभास है । यह केवल ऐसा दखाच पड़िा है यगेकक हि बहुि हरे नहीर दे ख सकिे। य द हि
नहीर िरा यगेकक धामियक लो
या। और पदाथय
ऐसा सोचिे है , बक्ल्क वैज्ञातनक
हरे िें दे ख सके िो पदाथय सिाि हो जािा है । बस ऊजाय बच रहिी है ।
यह उजाय, यह अभौतिक ऊजाय-शक्ि सरिगे वावारा पहले से ही जान ली उपतननदगे िें —सरसार भर िें सरिगे ने जब भी अक्स्तित्व िें
च है । वेदगे िें , बाइलबल िें , कुरान िें,
हरे प्रवेश ककया है िो पाया है कक पदाथय केवल
भासिा है ; हरे िें कोच पदाथय नहीर है केवल ऊजाय है । अब इस बाि से दवज्ञान सहिि है । और सरिगे ने भी बाि कहीर है क्जससे दवज्ञान को अभी राजी होना है — क दन उसे राजी होना ही पड़े ा—सरि तनष्कनय पर भी पहुरचे है, वे कहिे है कक जब िुि ऊजाय िें और बस चेिना बचिी है ।
क और
क दस ा रे
हरे प्रवेश करिे हो िो ऊजाय भी सिाक्ि हो जािी है
िो ये िीन पिें है । पदाथय पहली पिय है , पररतध है । पररतध के भीिर प्रवेश कर जाग िो दस ा री पिय दखाच पड़िी है । कफर दवज्ञान ने भीिर प्रवेश करने का प्रयास ककया। और सरिगे की दस ा री पिय की पक्ु ष् भासिा है , हरे िें वह बस ऊजाय है । और सरिगे का दस ा रा दावा है : ऊजाय िें भी
हो
च। पदाथय केवल
हरे प्रवेश करो िो ऊजाय भी
सिाि हो जािी है । बस चेिना बचिी है । वह चेिना ही परिात्िा है, वह अरिरिि केंि है । य द िुि अपने शरीर िें प्रवेश करो िो वहार भी ये िीन पिें है । केवल सिह पर िुम्हारा शरीर है । शरीर भौतिक दखाच पड़िा है , पर उसके भीिर प्राण की, जीवरि ऊजाय की धारा र बहिी है । उस जीवरि ऊजाय के लबना िुम्हारा
शरीर बस लेककन
क लाश रह जा
हरे और
ा। इसके भीिर कुछ बह रहा है । उसके कारण ही यह जीदवि है । वहीर ऊजाय है ।
हरे िें िुि िष्ृ ा हो, साक्षी हो। िुि अपने शरीर और ऊजाय दोनगे को दे ख सकिे हो। वह िष् ा
ही िुम्हारी चेिना है ।
हर अक्स्तित्व की िीन पिें है ।
हनत्ि पिय साक्षी चेिना की है , िय िें जीवन ऊजाय है और सिह पर पदाथय है ,
भौतिक शरीर है । यह दवतध कहिी है , यह चेिना ही प्रत्येक प्राणी के रूप िें है । अन्य कुछ भी नहीर है । हो िो अरिि: िुि इसी
तनष्कनय पर पहुरचो े कक िुि चेिना हो। बाकी सब कुछ िुम्हारा हो सकिा है । पर िुि वह नहीर हो। शरीर िुम्हारा है । पर िुि शरीर को दे ख सकिे हो। और जो शरीर को दे ख रहा है वह पथ ृ क हो जािा है । शरीर जानी जाने वाली वस्तिु हो जािा है और िुि जानने वाले हो जािे हो। िुि अपने शरीर को जान सकिे हो। न केवल
िुि जान सकिे हो, बक्ल्क अपने शरीर को आज्ञा दे सकिे हो, उसे सकक्रय कर सकिे हो। तनक्ष्क्रय कर सकिे हो। िुि पथ ृ क हो। िुि अपने शरीर के साथ कुछ भी कर सकिे हो।
और न केवल िुि अपना शरीर नहीर हो, बक्ल्क िुि अपना िन भी नहीर हो। य द दवचार आिे है िो िुि उन्हें
दे ख सकिे हो। या, िुि कुछ कर सकिे हो: िुि उन्हें लबलकुल मि ा सकिे हो, िुि दवचारशान्य हो सकिे हो। या, िुि अपने िन को
क ही दवचार पर
काग्र कर सकिे हो। िुि स्तवयर को वहार कें िि कर सकिे हो। या िुि
दवचारगे को नदी की िरह प्रवा हि होने दे िे हो। िुि अपने दवचारगे के साथ कुछ भी कर सकिे हो। िुम्हें पिा
चले ा कक अब कोच दवचार नहीर रहे , अरिस िें
क खाली पन आ
या है । लेककन िुि कफर भी होग े और उस
खालीपन को दे खो ें । केवल
क चीज क्जसे िुि अपने से अल
हो। िुि स्तवयर को उससे अल
नहीर कर सकिे, वह िुम्हारा साक्षक्षत्व है । इसका अथय है कक िुि वही
नहीर कर सकिे। िुि बाकी हर चीज को स्तवयर से अल
कर सकिे हो। िुि जान
सकिे हो कक िुि न शरीर हो, न िन हो, लेककन िुि यह नहीर जान सकिे कक िुि अपने साक्षी नहीर हो। यगेकक िुि जो भी करो े वह साक्षी ही हो ा। िुि साक्षी से स्तवयर को अल
नहीर कर सकिे। वह साक्षी ही चेिना है ।
और जब िक िुि उस अवस्तथा पर न पहुरच जाग जहार से अब और पीछे जाना असरभव हो, िब िक िुि स्तवयर िक नहीर पहुरचे। िो ऐसे उपाय है क्जनसे साधक सरबरध का िा चला जािा है —पहले शरीर, कफर िन और कफर वह उस लबरद ु पर
पहुरचिा है जहार नहीर छोड़ा जा सकिा है । उपतननदगे िें वे कहिे है , नेति-नेति। यह बड़ी हरी दवतध है । न यह , न वह। िो साधक कहिा चला जािा है , ‘यह िैं नहीर हार, यह िैं नहीर हार’ जब िक कक वह ऐसी ज ह न पहुरच जा जहार यह न कहा जा सके कक ‘यह िैं नहीर हार’। केवल क साक्षी बचिा है । शुध स चेिना बचिी है । यह शुध स चेिना ही प्रत्येक प्राणी है ।
अक्स्तित्व िें जो कुछ भी है इस चेिना का ही प्रतिफलन है , इसी की
क लहर, इसी का
क सधन रूप है । और
कुछ भी नहीर है । लेककन इसे अनुभव करना है । दवलेनण सहयो ी हो सकिा है । बौदध सक सिझ सहयो ी हो
सकिी है । लेककन इसे अनुभव करना है कक और कुछ भी नहीर है । बस चेिना है । कफर यवहार भी ऐसा करो कक बस चेिना ही है । िैंने
क झेन
ुरु मलरची के बारे िें सुना है ।
क दन वह अपनी झोपड़ी िें बैठा था कक कोच उससे मिलने
आया। जो आदिी मिलने आया था वह बहुि ुस्तसे िें था—हो सकिा है उसका अपनी पत्नी से, या अपने िामलक से, या ककसी और से झ ड़ा हुआ हो—पर वह बहुि ुस्तसे िें था। उसने स्त ु से से दरवाजा खोला, ुस्तसे से अपने जािे उिार कर फेंके और भीिर आकर बड़े आदर से वह मलरची के सािने झुका। मलरची ने कहा, ‘पहले जाग और जाकर दरवाजे से िथा जािगे से क्षिा िार ो।’ उस आदिी ने बड़ी है रानी से मलरची की और दे खा। वहार दस ा रे लो
भी बैठे थे, वे भी सभी हर सने ल े।
मलरची बोला, ‘चुप रहो।’ और उस आदिी से बोला, अ र िुि क्षिा नहीर िार ना चाहिे हो िो यहार से चले जाग। िुझे िुिसे कुछ लेना-दे ना नहीर है । वह आदिी बोला, ‘दरवाजे और जािगे से िाफी िार ना िो बड़ा दवतचत्र ल िा है ।’ मलरची ने कहा, ‘जब िुि उन पर ल
रहा है । हर चीज िें
भीिर नहीर आने दँ ा ा।’
ुस्तसा तनकाल रहे थे िब दवतचत्र नहीर ल
रहा था। अब िुम्हें यगे दवतचत्र
क चेिना है । िो िुि जाग और जब िक दरवाजा िुम्हें िाफ न कर दे , िैं िुम्हें
उस आदिी को बड़ा अजीब ल ा, पर उसे जाना पडा। बाद िें वह भी
क फकीर बन
या। और ज्ञान को
उपलध हो
या। जब वह ज्ञान को उपलध हुआ िो उसने सारी कहानी सुनाच, ‘जब िैं दरवाजे के सािने खड़ा होकर िाफी िार रहा था िो िुझे बड़ा दवतचत्र ल रहा था। लेककन कफर िैंने सोचा कक अ र मलरची ऐसा कहिा है िो इसिें जरूर कोच बाि हो ी। िुझे मलरची िें भरोसा था। िो िैंने सोचा चाहे यह पा लपन ही यगे न हो
इसे कर ही डालगे। पहले-पहले िो जो िैं दरवाजे से कह रहा था, वह झाठ था। दखाव ी था। लेककन धीरे -धीरे िैं
भाव से भर
या। िैं भाल ही
िेरा भाव वास्तिदवक हो
या कक बहुि से लो िुझे दे ख रहे है । िैं मलरची के बारे िें भी भाल या। और या। सचा हो या। िुझे ल ने ल ा कक दरवाजा और जािा अपनी िनोदशा बदल रहे
है । और क्जस क्षण िुझे ल ा कक दरवाजा और जािा अब खुश है , मलरची ने उसी सिय आवाज दी कक अब िैं भीिर आ सकिा हार। िुझे िाफ कर दया
या है ।’
यह दवतध कहिी है , ‘चेिना ही प्रत्येक प्राणी के रूप िें है । अन्य कुछ भी नहीर है ।’ इस भाव के साथ जीगर। इसके प्रति सरवेदनशील होग। और जहार भी िुि जाग। इसी िन और ्दय के साथ
जाग। कक सब कुछ चेिना है । और कुछ भी नहीर है । दे र अबेर सरसार अपना चेहरा बदल ले ा। दे र अबेर पदाथय मि
जाये ा। और प्राणी नजर आने ल े ा। असरवेदनशीलिा के कारण िुदाय पदाथय के सरसार िें रह रहे थे। वरना
िो सब कुछ जीवरि है, न केवल जीवरि है , बक्ल्क चेिना है । सब कुछ
हरे िें चेिना ही है । लेककन य द िुि
नहीर हो ा। िुम्हें इसे जीवन की
क मसध सारि की िरह ही इसिें दववास करिे हो िो कुछ भी
क शैली बनाना पड़े ा। जीवन का ढर
बनाना पड़े ा। ऐसे यवहार करना पड़े ा
जैसे कक सब कुछ चेिन है । शुरू िें िो यह ‘जैसे कक’ ही हो ा। और िुम्हें पा लपन ल े ा। लेककन अ र िुि
अपने पा लपन पर ड े ही रहो और य द िुि पा ल होने को साहस कर सको िो जल्दी ही सरसार अपने रहस्तय प्रक
करने ल े ा।
इस अक्स्तित्व के रहस्तयगे िें प्रवेश करने का अपररष्कृि ढर
किात्र उपाय दवज्ञान ही नहीर है । वास्तिव िें िो यह सबसे
है । सबसे धीिी दवतध है । सरि िो
िो उिना भीिर उिरने िें लाखगे वनय ल ा
क क्षण के भीिर अक्स्तित्व िें प्रवेश कर सकिा है । दवज्ञान
ा। उपतननद कहिे है कक सरसार िाया है । कक पदाथय केवल भासिा
है । लेककन दवज्ञान पाँच हजार साल बाद कह सकिा कक पदाथय झाठ है । उपतननद कहिे है वह ऊजाय चेिना है । दवज्ञान को अभी पाँच हजार साल ल ें े। धिय
है । दवज्ञान बहुि धीिी प्रकक्रया है । बुदध स छलार नहीर ले सकिी है । उसे िकय से चलना पड़िा है —हर िथ्य पर िकय दे ना पड़िा है । मसध स करना पड़िा है । प्रयो करना पड़िा है । लेककन ्दय छलार याद रखो, बुदध स के मल ्दय के मल
क छलार
ले सकिा है ।
क प्रकक्रया जरूरी है । कफर तनष्कनय तनकलिा है —पहले प्रकक्रया, कफर िकयपाणय तनष्पति।
तनष्कनय पहले आिा है । कफर प्रकक्रया आिी है । यह लबलकुल दवपरीि है । यही कारण है कक सरि
कुछ मसध स नहीर कर सकिे। उनके पास तनष्कनय है , पर प्रकक्रया नहीर है ।
शायद िुम्हें पिा न हो, शायद िुिने यान न दया हो। कक सरि सदा तनष्कनों की बाि करिे हो। य द िुि
उपतननाद पढ़ो िो िुम्हें तनष्कनय ही मिलें े। जब पहली बार उपतननदगे को पक्चिी भानागर िें अनुवा दि ककया या। िो पक्चिी दाशयतनक सिझ ही नहीर पा , यगेकक उनके पीछे कोच िकय नहीर था। उपतननाद कहिे है ।
‘’ब्रह्ि है ’’ और इसके मल
कोच िकय नहीर दे िे। कक िुि इस तनष्कनय पर पहुँचे कैसे। या प्रिाण है ? ककसी आधार पर िुि िोनणा करिे हो कक ब्रह्ि है ? नहीर, उपतननाद कुछ नहीर कहिे, बस तनष्कनय दे िे है । ्दय ित्क्षण तनष्कनय पर पहुरच जािा है । और जब तनष्कनय आ जा का यही अथय है ।
िो िुि प्रकक्रया शुरू कर सकिे हो। दशयन
सरि तनष्कनय दे िे है । और दाशयतनक उसकी प्रकक्रया बनािे है । जीसस तनष्कनय पर पहुरचे और कफर सरि अ स्तिीन, थाि अकीनस ने प्रकक्रया पैदा की। वह बाद की बाि है । तनष्कनय पहले आ या, अब िुम्हें प्रिाण जु ाने हो े।
प्रिाण सरि के जीवन िें है । वह इसके मल
दववाद नहीर कर सकिा। वह स्तवयर ही प्रिाण है । य द िुि उसे दे ख
सको। य द िुि दे ख न सक, िब िो कोच प्रिाण नहीर है । िब धिय यथय है ।
िो इन दवतधयगे को मसध सारि िि बनाग। ये िो छलाँ ें है —अनुभव िें , तनष्कनय िें । ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-77
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—108 (ओशो) तीसरी विधि:
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—108 (ओशो)
‘यह चेतना ही प्रत्येक की िागथ दशथक सत्ता है , यही हो रहो।’ पहली बाि, िा द य शयक िुम्हारे भीिर है, पर िुि उसका उपयो िुिने उसका उपयो
नहीर ककया है । कक िुम्हें पिा ही नहीर है कक िुम्हारे भीिर कोच दववेक भी है । िैं कास्तिानेद
की पुस्तिक पढ़ रहा था। उसका प्रयो गे िें से
क है ।
नहीर करिे। और इिने सिय से, इिने जन्िगे से
ुरु डान जुआन उसे
क अरधेरी राि िें , पहाड़ी रास्तिे पर कास्तिानेद का
क सुरदर सा प्रयो
करने के मल
दे िा है । यह प्राचीनिि
य शयक पर भरोसा करके दौड़ना ुरु कहिा है, िा भीिरी िा द
शुरू कर दे । यह खिरनाक था। यह खिरनाक था। पहाड़ी रास्तिा था। अरजान था। वक्ष ृ गे झागड़यगे से भरा था।
खाइयार भी थी। वह कहीर भी त र सकिा था। वहार िो दन िें भी सरभल-सरभलकर चलना पड़िा था। और यह िो अरधेरी राि थी। उसे कुछ सुझाच नहीर पड़िा था। और उसका
उसे िो भरोसा ही न आया। यह िो आत्िहत्या करने जैसा हो लबलकुल वन्य प्राणी की िरह दौड़िा हुआ
या और वापस आ
रू ु बोला, चल िि दौड़। या। वह डर
या। लेककन
ुरु दौड़ा। वह
या। और कास्तिानेद को सिझ नहीर आया कक
वह कैसे दौड़ रहा था। और न केवल वह दौड़ रहा था। बक्ल्क हर बार दौड़िा हुआ वह सीधी उसी के पास आिा जैसे कक वह दे ख सकिा हो। कफर धीरे -धीरे कास्तिानेद ने साहस जु ाया। जब यह बाढ़ा आदिी दौड़ सकिा है िो
वह यगे नहीर दौड़ सकिा। उसने कोमशश की, और धीरे -धीरे उसे ल ा कक कोच आरिररक प्रकाश उठा रहा है । कफर वह दौड़ने ल ा। िुि केवल िभी होिे हो जब िुि सोचना बरद कर दे िे हो। क्जस क्षण िुि सोचना बरद करिे हो। अरिस ि ि होिा है । य द िुि न सोचो िो सब ठीक है । यह ऐसे ही है जैसे कोच भीिर िा य दशयक कायय कर रहा है ।
िुम्हारी बुदध स ने िुम्हें भ काया है । और सबसे बड़ा भ काव यह है कक िुि अरिदवयवेक पर भरोसा नहीर कर सकिे। िो पहले िुम्हें अपनी बदु ध स को राजी करना पड़े ा। य द िुम्हारा दववेक कहिा भी है कक आ े बढ़ो िो िुम्हें
अपनी बदु ध स को राजी करना पड़िा है । और िब िुि अवसर चक ा जािे हो। यगेकक कच क्षण होिे है , या िो िुि उनका उपयो
कर ले सकिे हो, या उन्हें चाक जाग े। बदु ध स सिय ल ािी है । और जब िक िुि सोचिे हो,
दवचार करिे हो, िब िक अवसर हाथ से तनकल जािा है । जीवन िुम्हारे मल
इरिजार नहीर करे ा। िुम्हें ित्क्षण
जीना होिा है । िुम्हें योध सा बनना पड़िा है । जैसे झेन िें कहिे है —यगेकक जब िुि रणभामि िें िलवार लेकर लड़ रहे हो िो िुि सोचिे नहीर, िुम्हें लबना सोचे दवचारे लड़ना होिा है । झेन
ुरूगर न िलवार का यान की दवतध की िरह उपयो
ककया है । और जापान िें कहिे है कक य द दो झेन
ुरु, दो यानस्तथ। यक्ि िलवारगे से युध स कर रहे हगे िो पररणाि कभी तनकल ही नहीर सकिा। न कोच हारे ा।
न कोच जीिे ा। यगेकक दोनगे ही दवचार नहीर कर रहे । िलवारें उनके हाथगे िें नहीर है । उनके अरिदवयवेक ,
दवचारवान भीिरी िा य दशयक के हाथगे िें है । और इससे पहले कक दस ा रा आक्रिण करे ,दववेक जान लेिा है और प्रतिरक्षा कर लेिा है । िुि उसके बारे िें सोच नहीर सकिे यगेकक सिय ही नहीर है । दस ा रा िुम्हारा ्द का तनशाना बना रहा है ।
क ही क्षण िें िलवार िुम्हारे ्दय िें िुस जा
ी। इस दवनय िें सोचने का सिय ही
नहीर है । कक या करना है । जैसे ही उसके िन िें यह दवचार उठिा है कक ्दय िें िलवार धुसा दो। उसी सिय िुििें दवचार उठना चा ह िुि सिाि हो जाग े।
कक बचो। उसी क्षण लबना ककसी दवलरब के—केवल िभी िुि बच सकिे हो। बरना िो
िो वे िलवार बाजी को यान की िरह मसखिे है और कहिे है , ‘हर क्षण अरिदवयवेक से जीगर, सोचो िि। अरिस जो चाहे उसे करने दो। िन के वावारा हस्तिक्षेप िि करो।’ यह बहुि क ठन है , यगेकक हि िो अपने िन से ही इिने प्रमशक्षक्षि है । हिारे स्तकाल हिारे कालेज, हिारे दववदववायालय,हिारी सरस्तकृति, सभ्यिा,सभी हिारे िक्स्तिनक को भरिे है । हिारा अपने अरिदवयवेक से सरबरध ा
या है । सब उस अरिदवयवेक के साथ ही पैदा होिे है । लेककन उसे काि नहीर करने दया जािा। वह करीब-करीब
अपर
हो जािा है । पर उसे पुनजीदवि ककया जा सकिा है । यह सात्र इसी अरिदवयवेक के मल
है।
‘यह चेिना ही प्रत्येक की िा द य शयक सत्िा है, यही हो रहो।’ खोपड़ी से िि सोचो। सच िें िो, सोचो ही िि। बस बढ़ा। कुछ पररक्स्तथतियगे िें इसे करके दे खो। यह क ठन हो ा, यगेकक सोचने की पुरानी आदि हो ी। िुम्हें सज
रहना पड़े ा कक सोचना नहीर है । बस भीिर से िहसास
करना है कक िन िें कया आ रहा है । कच बार िुि उलझन िें पड़ सकिे हो कक यह अरिदवयवेक से उठ रहा है । या िन की सिह से आ रहा है । लेककन जल्दी ही िुम्हें अरिर पिा ल ना शुरू हो जा
ा।
जब भी कुछ िुम्हारे भीिर से आिा है िो वह िुम्हारी नामभ से ऊपर की और उठिा है । िुि उसके प्रवाह, उसकी उष्णिा को नामभ से ऊपर उठिे हु अनुभव कर सकिे हो। जब भी िुम्हारा िन सोचिा है िो वह ऊपर-ऊपर होिा है । मसर िें होिा है और कफर नीचे उिरिा है । िुम्हारा िन सोचिा है िो वह ऊपर-ऊपर होिा है , मसर िें होिा है । और कफर नीचे उिरिा है । य द िुम्हारा िन कुछ सोचिा है िो उसे नीचे धका दे ना पड़िा है । य द
िुम्हारा अरिदवयवेक कोच तनणयय लेिा है िो िुम्हारे भीिर कुछ उठिा है । वह िुम्हारे अरिरिि से िुम्हारे िन की और आिा है । िन उसे ग्रहण करिा है । पर वह तनणयय िन का नहीर होिा। वह पार से आिा है । और यही कारण है कक िन उससे डरिा है। बुदध स उस पर भरोसा नहीर कर सकिी। यगेकक वह
हरे से आिा है —लबना
ककसी िकय के लबना ककसी प्रिाण के बस उभर आिा है ।
िो ककन्हीर पररक्स्तथतियगे िें इसे करके दे खो। उदाहरण के मल , िुि जर ल िें रास्तिा भ क
हो िो इसे करके
दे खो। सोचो िि बस, अपने आँख बरद कर लो, बैठ जाग। यान िें चले जाग। और सोचो िि। यगेकक वह यथय है; िुि सोच कैसे सकिे हो? िुि कुछ जानिे ही नहीर हो। लेककन सोचने की ऐसी आदि पड़
च है कक िुि
िब भी सोचिे चले जािे हो। जब सोचने से कुछ भी नहीर हो सकिा है । सोचा िो उसी के बारे िें जा सकिा है , जो िुि पहले से जानिे हो, िुि जर ल िें रास्तिा खो
हो, िुम्हारे पास कोच नशा नहीर है, कोच िौजाद नहीर है
क्जससे िुि पाछ लो। अब िुि या सोच सकिे हो। लेककन िुि िब भी कुछ न कुछ सोचो े। वह सोचना बस तचरिा करना ही हो ा। सोचना नहीर हो ा। और क्जिनी िुि तचरिा करो े उिना ही अरिदवयवेक कि काि कर पा
ा।
िो तचरिा छोड़ो, ककसी वक्ष ृ के नीचे बैठ जाग और दवचारगे को दवदा हो जाने दो। बस प्रिीक्षा करो, सोचो िि। कोच सिस्तया िि खड़ी करो, बस प्रिीक्षा करो। और जब िुम्हें ल े कक तनदवयचार का क्षण आ जाग और चलने ल ो। जहार भी िुम्हारा शरीर जा
या है , िब खड़े हो
उसे जाने दो। िुि बस साक्षी बने रहो। कोच हस्तिक्षेप िि
करो। खोया हुआ रास्तिा बड़ी सरलिा से पाया जा सकिा है , लेककन हो।
किात्र शिय है कक िन के वावारा हस्तिक्षेप न
ऐसा कच बार अनजाने िें हुआ है । िहान वैज्ञातनक कहिे है कक जब भी कोच बड़ी खोज हुच है िन के वावारा नहीर हुच , सदा अरिुःप्रज्ञा के ही कारण हुच है । िैडि यारी वह ऊब
लणि की
क सिस्तया को सुलझाने िें ल ी हुच थी। जो कुछ भी सरभव था, उसने सब ककया। कफर च। कच दन से, हतरिगे से वह उस पर कायय कर रही थी। और कुछ हल नहीर तनकल रहा था। वह
पा ल हुच जा रही थी। हल का कोच उपाय ही नजर नहीर आ रहा था। कफर क राि थक कर वह ले च और सो च। और राि को सपने िें उसका उत्िर कदि उभर आया वह उससे इिनी जुड़ी हुच थी कक उसका सपना ा
या, वह जा
च। उसी क्षण उसने उत्िर मलख दया। यगेकक सपने िें यह िो आया नहीर था कक करना
कैसे है , बस उत्िर सािने आ
या। उसने
क का ज पर उत्िर मलख दया और कफर सो
च।
सुबह वह है रान हुच; उत्िर लबलकुल ठीक था, पर वह जानिी नहीर थी कक उसे तनकाला कैसे या था। कोच प्रकक्रया, कोच िरीका नहीर दया हुआ था। कफर उसने प्रकक्रया खोजने की कोमशश की। अब वह आसान बाि थी
यगेकक उत्िर हाथ िें था। और उत्िर लेककर पीछे बढ़ना सरल था। इस सपने के कारण उसने नोबल पुरस्तकार जीिा। लेककन वह सदा ही है रान रही कक यह हुआ कैसे।
जब िुम्हारा िन थक जािा है , और आ े नहीर बढ़ सकिा, िो वह थक कर रूक जािा है ; थकनें के उस क्षण िें अरिदवयवेक इशारे दे सकिा है । हल दे सकिा है । करु क्जयगे दे सकिा है । क्जस यक्ि को िनुष्य की कोमशश की
आरिररक सररचना की खोज के मल
नोबल परु स्तकार मिला, उसने भी उसकी सररचना को
क सपने िें दे खा। उसने
िानवीय कोमशका की पारी आरिररक सररचना को सपने िें दे खा और सुबह उठकर उसकी दपचर बना दी। उसे
खुद भी भरोसा नहीर था कक यह ठीक है , िो उसे कच वनों िक उस पर काि करना पडा। कच वनय उस पर काि करने के बाद वह इस तनष्कनय पर पहुरचा कक सपना सचा था।
िैडि यारी के साथ ऐसा हुआ कक जब उसे अरिुःप्रज्ञा की इस प्रकक्रया का पिा चला िो उसने तनचय कर मलया कक वह प्रयो करके दे खे ी। क बार क सिस्तया आ च क्जसे वह हल करना चाहिी थी। िो उसने सोचा, ‘इसके मल
यगे यथय ही तचरिा करूर, और श्रि करूर? बस सो जािी हार।’ वह िजे से सो च, पर कोच हल नहीर आया। िो वह थोड़ी परे शान हुच। कच बार उसने कोमशश की,जब भी कोच सिस्तया आिी िो वह सो जािी।
लेककन कोच हल न तनकलिा। पहले बुदध स को पारी िरह से थकाना होिा है , िभी हल आिा है । खोपड़ी को पारी िरह से थका दे ना होिा है । नहीर िो वह स्तवन िें भी चलिी रहिी है ।
िो अब वैज्ञातनक कहिे है कक सभी बड़ी खोजें अरिुःप्रज्ञा से आिी है । बौदध सक नहीर होिी। भीिर िा द य शयक का यही अथय है । ‘यह चेिना ही प्रत्येक की िा द य शयक सत्िा है, यहीर हो रहो।’ िक्स्तिष्क को छोड़ दो और इस अरि:प्रज्ञा िें उिर जाग। पुराने शास्तत्र कहिे है कक बाह्ि के
ुरु से मिलवा ने िें िदद कर सकिा है । बस इिना ही।
िो उसका काि सिाि हो जािा है ।
क बार बाह्ि
ुरु केवल िुम्हें भीिर
ुरु िुम्हें भीिरी
ुरू से मिलवा दे
ुरु के वावारा िुि सत्य िक नहीर पहुरच सकिे; ुरु के वावार िुि बस भीिर के ुरु िक पहुरच सकिे हो। और िब वह भीिर का ुरु िुम्हें सत्य िक ले जा ा। बाह्ि ुरु िो बस क प्रतितनतध है, क दवकल्प है । उसने अपना भीिरी िा य दशयक खोज मलया है और वह िुम्हारे िा य दशयक को दे ख सकिा है , यगेकक वे दोनगे िल पर है ; क ही लय िें
क ही
क ही आयाि िें है । य द िैंने अपना अरिदवयवेक खोज मलया है िो िैं िुििें झारक
कर िुम्हारे अरिदवयवेक को िहसास कर सकिा हार। और य द िें वास्तिव िें िुम्हारा पथ प्रदशयक हार िो िेरा सारा सहयो िुम्हें िुम्हारे अरिदवयवेक िक पहुरचाने के मल हो ा। क बार िुम्हारा अपने अरिदवयवेक से सरबरध बन जा
हो। िो
िो िेरी कोच जरूरि नहीर है । अब िुि अकेले चल सकिे
ुरु बस इिना ही कर सकिा है । कक वह िुम्हें खोपड़ी से नामभ पर ढकेल दे , िुम्हारी िाककयक बुदध स से
िुम्हें आस्तथावान िा द य शयक की और धका दे दे । और ऐसा केवल िनुष्यगे िें नहीर है , ऐसा पशु-पक्षक्षयगे, वक्ष ृ गे,
सबके साथ होिा है । सब िें अरि:प्रज्ञा होिी है । और अब िो कच नहीर बािें पिा चली है जो बहुि रहस्तयिय है । बहुि सी ि ना र है । उदाहरण के मल क िादा िछली अरडे दे िे ही िर जािी है । दपिा अरडगे को सेिा है । और कफर वह भी िर जािा है । अरडे लबना िािा-दपिा के रहिे है । वे पररपव हो जािे है । नच िछमलयाँ पैदा हो जािी है । ये िछमलयाँ अपने िािा-दपिा के बारे िें कुछ भी नहीर जानिी। उन्हें नहीर पिा होिा कक वे कहार से आच थी। लेककन ये िछमलयाँ सिुि के ककसी भी हस्तसे िें हगे, वे अरडे दे ने उसी ज ह पहुरच जा र ी जहार उनके िािा दपिा अरडे दे ने आ थे। वे स्तत्रोि पर लौ जा र ी। ऐसा बार-बार होिा रहा है । और जब भी उन्हें अरडे दे ने हगे े वे इसी ककनारे पर लौ
आ ँ ी, अरडे दें ी और िर जा र ी।
िो िार बाप और बचगे के बीच कोच सरपकय नहीर है । पर ककसी िरह बचे जानिे है कक उन्हें कहार जाना है , और वे कभी चाकिे नहीर। और िुि उन्हें भ का नहीर सकिे ऐसा करने की कोमशश की भ का नहीर सकिे वे स्तत्रोि पर लौ
ही जा र े। कोच अरिप्रेरणा काि कर रही है ।
सोदवयि रूस िें लबक्ल्लयगे, चाहगे और छो े जानवरगे के साथ प्रयो अल
कर मलया
च है । लेककन िुि उन्हें
या और बचगे को सिुि िें
हरे ले जाया
करिे रह है ।
क लबल्ली को उसके बचे से
या; उसे पिा नहीर ल
सकिा था कक उसके साथ
या हो रहा है । हर िरह के वैज्ञातनक यरत्र लबल्ली के साथ ल ा द
ये। िाकक यह पिा चल सके कक लबल्ली
के िन िें और ्दय िें या चल रहा है । कफर उसके बचे को िारा
या।
पिा चल
या। उसका रिचाप बदल
या। वह तचरतिि हो
हरे सिुि िें— क दि से िार को
च, उसके दल की धड़कन बढ़
च—जैसे ही बचे
को िारा
या। और वैज्ञातनक यरत्रगे ने बिाया कक उसे बड़ी पीड़ा हुच। कफर कुछ सिय बाद सब सािान्य हो या। कफर दस ा रा बचा िारा या,कफर पररवयिन हुआ। और िीसरे बचे के साथ भी ऐसा ही हुआ। हर बार
लबलकुल उसी सिय ही ऐसा हुआ। या हो रहा था। अब रूसी वैज्ञातनक कहिे है कक िार के पास
क अरिप्रेरणा होिी है । अनुभता ि का
बचगे के साथ जुड़ा होिा है , चाहे वे कहीर भी हगे। और वह ित्क्षण
क
क अरि केंि होिा है । और वह
े लीपैतथक सरवेदना अनुभव करिी है ।
िनुष्य िें िार इिना अनुभव कर सकिी। यह बड़ी है रानी की बाि है ; िनुष्य को अतधक अनभ ु व करना चा ह
यगेकक वह अतधक दवकमसि है । लेककन वह नहीर कर पािी यगेकक िक्स्तिष्क ने सब कुछ अपने हाथगे िें ले मलया है और सारे आरिररक केंि अपर
पड़
है ।
‘या चेिना ही प्रत्येक की िा द य शयक सत्िा है, यहीर हो रहो।’ जब भी िुि ककसी पररक्स्तथति िें बहुि परे शान होग और िुम्हें पिा न चले कक उसिें से कैसे तनकलना है िो सोचगे िि, बस हरे तनदवयचार िें चले जाग और अपने अरिदवयवेक को अपना िा द य शयन करने दो। शुरू-शुरू िें िो िुम्हें भय ल े ा। असुरक्षा िहसास हो ी। पर जल्दी ही जब िुि हर बार ही ठीक तनष्कनय पर पहुरचो े, जब िुि हर ठीक वावार पर पहुरच जाग े, िुििें साहस आ जा ा और िुि भरोसा करने ल ो े। य द यह भरोसा आिा है िो उसे ही िैं श्रध सा कहिा हार। यह वास्तिव िें आयाक्त्िक श्रध सा है , अरिदवयवेक िें श्रध सा। बुदध स िुम्हारे अहर कार का हस्तसा है । वह िो अपने आप पर ही भरोसा है । क्जस क्षण िुि अपने िें हरे उिरिे
हो, िुि ब्रह्िारड की आत्िा िें पहुरच जािे हो। िुम्हारी अरि:प्रज्ञा परि दववेक का अरश है । जब िुि अपना ही अनुसरण करिे हो िो सब कुछ उलझा दे िे हो और िुम्हें पिा नहीर चलिा कक िुि या कर रहे हो। िुि अपने को बहुि ज्ञानी सिझ सकिे हो पर हो नहीर।
ज्ञान िो ्दय से आिा है , बुदध स से नहीर। ज्ञान िुम्हारी आत्िा के अरिरिि से उठिा है । िक्स्तिष्क से नहीर। अपनी खोपड़ी को अल भी ले जा
ह ा कर रख दो और आत्िा का अनुसरण करो, चाहे वह जहार भी ले जा । अ र वह खिरे िें
िो खिरे िें जाग यगेकक वही िुम्हारे मल
और िुम्हारे दवकास के मल
िा य हो ा। खिरे से िुि
दवकमसि होग े और पको े। य द अरिदवयवेक िुम्हें ित्ृ यु की और भी ले कर जाये िो उसके पीछे जाग। यगेकक वहीर िुम्हारा िा य हो ा। उसका अनुसरण करो,उसिें श्रध सा करो और उस पर चल पड़ो। ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच,
प्रिचन-77
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—109 (ओशो) पहली विधि:
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—109 (गशो)
अपने तनक्ष्क्रय रूप को त्िचा की दीिारों का एक ररत कक्ष िानो—सिथथा ररत। अपने तनक्ष्क्रय रूप को त्वचा की दीवारगे का सुरदरिि दवतधयगे िें से
क ररि कक्ष िानो—लेककन भीिर सब कुछ ररि हो। यह
क है । ककसी भी यानपाणय िुिा िें, अकेले, शारि होकर बैठ जाग। िुम्हारी रीढ़ की हड्डी
सीधी रहे और परा ा शरीर दवश्रारि, जैसे कक सारा शरीर रीढ़ की हड्डी पर कुछ क्षण के मल
र ा हो। कफर अपनी आरखें बरद कर लो।
दवश्रारि, से दवश्रारि अनुभव करिे चले जाग। लयवध स होने के मल
कुछ क्षण ऐसा करो। और
कफर अचानक अनुभव करो कक िुम्हारा शरीर त्वचा की दीवारें िात्र है और भीिर कुछ भी नहीर है । िर खाली है , भीिर कोच नहीर है ।
क बार िि ु दवचारगे को
ज ु रिे हु दे खगे े, दवचारगे के िेिगे को दवचरिे पाग ।े लेककन ऐसा िि सोचो कक वे िुम्हारे है । िुि हो ही नहीर। बस ऐसा सोचो कक वे ररि आकाश िें िाि हु आधारहीन िेध है , वे िुम्हारे नहीर है । वे ककसी के भी नहीर है । उनकी कोच जड़ नहीर है ।
वास्तिव िें ऐसा ही है : दवचार केवल आकाश िें धाििे िेिगे के सिान है । न िो उनकी कोच जड़ें है , न आकाश से उनका कोच सरबरध है । वे बस आकाश िें इधर से उधर धाििे रहिे है । वे आिे है और चले जािे है । और आकाश अस्तपमशयि, अप्रभादवि बना रहिा है । अनुभव करो कक िुम्हारा शरीर लय, परु ाने सहयो
के कारण दवचार आिे
रहें े। लेककन इिना ही सोचो कक वे आकाश िें धाििे हु आधारहीन िेध है । वे िुम्हारे नहीर है , वे ककसी के भी नहीर है । भीिर कोच भी नहीर है क्जससे वे सरबरतधि हगे, िुि िो ररि हो। यह क ठन हो ा, लेककन केवल पुरानी आदिगे के कारण क ठन हो ा। िुम्हारा िन ककसी दवचार को पकड़कर
उससे जुड़ना चाहिे है । उसके साथ बहना, उसका आनरद लेना, उसिें रिना चाहे ा। थोड़ा रूको। कहो कक न िो यहार बहने के मल
कोच है , न लड़ने के मल
कोच है , इस दवचार के साथ कुछ भी करने के मल
कोच नहीर है ।
कुछ ही दनगे िें, या कुछ हतरिगे िें, दवचार कि हो जा र े। वे कि-से कि होिे जा र े। बादल छर ने ल ें े, या य द वे आर के भी िो बीच-बीच िें िेध-र हि आकाश के बड़े अरिराल हगे े जब कोच दवचार न हो ा। ुजर जा
ा, कफर कुछ सिय के मल
दस ा रा दवचार नहीर आ
ा। कफर दस ा रा दवचार आये ा और अरिराल हो ा।
उन अरिरालगे िें ही िुि पहली बार जानो े कक ररििा या है । और उसकी आनरद से भर जा
ी कक िुि कल्पना भी नहीर सकर सकिे।
असल िें, इसके बारे िें
क दवचार
क झलक ही िुम्हें इिने
क भी कहना असरभव है , यगेकक भाना िें जो भी कहा जा
हन
ा वह िुम्हारी और इशारा
करे ा और िुि हो ही नहीर। य द िें कहार कक िुि सुख से भर जाग े िो यह बेिुकी बाि हो ी। िुि िो हो े ही नहीर। िो िैं कैसे कह सकिा हार कक िुि साख से भी जाग ?े सुख हो ा। िुम्हारी त्वचा की चार दीवारी िें आनरद का स्तपरदन हो ा। लेककन िुि नहीर होग े? क िो कोच भी अशारति पैदा नहीर कर सकिा।
हन िौन िुि पर उिर आये ा। यगेकक य द िुि ही नहीर हो
िुि सदा यही सोचिे हो कक कोच और िुम्हें अशारि कर रहा है । सड़क से और खेलिे हु
ज ु रिे हु रै कफक की आवाज, चारगे बचे, रसोचिर िें काि करिी हुच पत्नी—हर कोच िुम्हें अशारि कर रहा है ।
कोच िुम्हें अशारि नहीर कर रहा है , िुि ही अशारति के कारण हो। यगेकक िुि हो इसमल कर सकिा है । य द िुि नहीर हो िो अशारति आ हो कक सब कुछ बहुि जल्दी िुम्हें छा जािा है ।
ी और िुम्हारी ररििा को लबना छु
कुछ भी िुम्हें अशारि ुजर जा
क िाव जैसे हो; कुछ भी िुम्हें ित्क्षण चो
ी। िुि ऐसे
पहुरचा जािा है ।
िैंने
क वैज्ञातनक कहानी सुनी है । िीसरे दववयुध स के बाद ऐसा हुआ कक सब िर , अब पथ्ृ वी पर कोच भी नहीर था बस वक्ष ृ और पहागड़यार ही बची थी। क बड़े वक्ष ृ ने सोचा कक चलो खाब शोर करूर। जैसा कक वह पहले ककया करिा था। वह
क बड़ी चट्टान पर त र पडा जो भी ककया जा सकिा था उसने सब ककया। लेककन कोच
शोर नहीर हुआ। यगेकक शोर के मल िुम्हारे कानगे की जरूरि होिी है । आवाज के मल है । य द िुि नहीर हो िो आवाज पैदा नहीर की जा सकिी है । यह असरभव है ।
िुम्हारे कानगे की जरूरि
िैं यहार बोल रहा हार। य द कोच न हो िो िैं बोलिा रह सकिा हार। लेककन आवाज पैदा नहीर हो ी। लेककन िैं आवाज पैदा कर सकिा हार यगेकक िैं स्तवयर िो उसे सन ु ही सकिा है । य द सुनने के मल कोच भी न हो िा आवाज पैदा नहीर की जा सकिी। यगेकक आवाज िुम्हारे कानगे की प्रतिकक्रया है । य द पथ्ृ वी पर कोच भी न हो िो सारज उ
सकिा है । लेककन प्रकाश नहीर हो ा। यह बाि अजीब ल िी है । हि
ऐसा सोच भी नहीर सकिे यगेकक हि िो सदा ही सोचिे है कक सारज उ े ा और प्रकाश हो जा
ा। लेककन
िुम्हारी आरखें चा ह , िुम्हारी आरखगे के लबना सारज प्रकाश पैदा नहीर कर सकिा। वह उ िा रह सकिा है । लेककन सब यथय हो ा। यगेकक उसकी ककरणें ररििा से ही कह सके कक यह प्रकाश है ।
ुजरें ी। कोच भी नहीर हो ा। जो प्रतिकक्रया कर सके और
प्रकाश िुम्हारी आरखगे के कारण है । िुि प्रतिकक्रया करिे हो। वतन िुम्हारे कानगे के कारण है । िुि प्रतिकक्रया करिे हो। िुि या सोचिे हो, ककसी ब ीचे िें ुजरे िो या उसिें सु रध हो ी। अकेला
है । कोच होना चा ह
क
ुलाब का फाल लखला है , लेककन य द उधर से कोच भी न
ुलाब ही सु रध पैदा नहीर कर सकिा। िुि और िुम्हारी नाक जरूरी
जो प्रतिकक्रया कर सके और कह सके कक यह सु रध है , यह
ही कोमशश करे , लबना ककसी नाक के वह
ुलाब न हो ा।
ुलाब है । चाहे
ुलाब ककिनी
िो अशारति वास्तिव िें सड़क पर नहीर है । वह िुम्हारे अहर कार िें है । िुम्हारा अहर कार प्रतिकक्रया करिा है । यह
िुम्हारी याया है । कभी ककसी दस ा री क्स्तथति िें िुि उसका आनरद भी ले सकिे हो। िब वह अशारति नहीर हो ी। ककसी दस ा रे िनोभव िें िुि उसका आनरद लो े और िब िुि कहो े, ‘ककिना सुरदर, या सर ीि है ।’ लेककन ककसी उदासी के क्षण िें सर ीि भी अशारति बन जा लेककन य द िु नहीर हो, बस बस िुिसे होकर
ुजर जा
ा।
क स्तपेस है , क ररििा है, िब न िो अशारति हो सकिी है न सर ीि। सब कुछ
ा,लबलकुल अनजाना, यगेकक अब कोच िाव नहीर है । जो प्रतिकक्रया करे , भीिर कोच
नहीर है । जो प्रत्युत्िर दे ; ककसी अहर कार का तनिायण भी नहीर हो ा। इसी को बुध स तनवायण कहिे है । और यह दवतध िुम्हारी सहायिा कर सकिी है । अपने तनक्ष्क्रय रूप को त्वचा की दीवारगे का
क ररि कक्ष िानो—सवयथा ररि।
ककसी भी तनक्ष्क्रय अवस्तथा िें बैठ जाग, कुछ भी न करो यगेकक जब भी िुि कुछ करिे हो िो किाय बीच िें आ जािा है । वास्तिव िें कोच किाय नहीर है । केवल कक्रया के कारण ही िुि सिझिे हो कक किाय है । बुध स को सिझ पाना इसीमल
क ठन है । केवल भाना के कारण ही सिस्तया र खड़ी हुच है ।
हि कहिे है कक यक्ि चल रहा है । य द हि इस वाय का दवलेनण करें िो इसका अथय हुआ कक कोच है जो चल रहा है । लेककन बुध स कहिे है कक कोच चल नहीर रहा,बस चलने की कक्रया हो रही है । िुि हर स रहे हो। भाना के कारण ऐसा ल िा है कक जैसे कोच है जो हर स रहा है । बुध स कहिे है कक हर सी िो हो रही है । लेककन भीिर कोच नहीर है जो हर स रहा है ।
जब िुि हर सिे हो, इसे स्तिरण करो और खोजा कक कौन हर सिा है । िुि कभी ककसी को न पाग े। बस हर सी
िात्र है , उसके पीछे कोच हर सने वाला नहीर है । जब िुि उदास हो िो भीिर कोच नहीर है जो उदास है , बस उदासी है । उसको दे खो। बस उदासी है । यह
क प्रकक्रया है : हर सी,सुख, दुःु ख; इनके पीछे कोच िौजाद नहीर है ।
केवल भाना के कारण ही हि वावैि िें सोचिे है । य द कुछ होिा है िो हि कहिे है कक कोच होना चा ह
क्जसने ककया,कोच किाय होना चा ह । हि कक्रया को अकेले नहीर सोच सकिे है । लेककन या कभी िुिने किाय को दे खा है । या िुिने उसे कभी दे खा है जो हर सिा है ।
बुध स कहिे है कक जीवन है, जीवन की प्रकक्रया है , लेककन भीिर कोच भी नहीर है जो जीवरि है । और कफर ित्ृ यु होिी है । लेककन कोच िरिा नहीर है । बुध स के मल
िुि बर े हु नहीर हो। भाना वावौि तनमियि करिी है । िैं बोल रहा हार। ऐसा ल िा है कक िैं कोच हार जो बोल रहा है । लेककन बध स ु कहिे है कक केवल बोलना हो रहा है । बोलने वाला कोच नहीर है । यह क प्रकक्रया है । जो ककसी से सरबरतधि नहीर है । लेककन हिारे मल
यह क ठन है। यगेकक हिारा िन वावैि िें
हरा जिा हुआ है । हि जब भी ककसी कक्रया की बाि सोचिे है िो हि भीिर ककसी किाय के बारे िें सोचिे है । यही कारण है कक यान के मल कोच शारि, तनक्ष्क्रय िुिा अछी है यगेकक िब िुि खालीपन िें अतधक सरलिा से उिर सकिे हो। बुध स कहिे है , ‘यान करो िि, यान िें होग।’
अरिर बड़ा है । िैं दोहरािा हार, बध स ु कहिे है , यान करो िि, यान िें होग।‘ यगेकक य द िुि यान करिे हो िो किाय बीच िें आ या। िुि यही सोचिे रहो े कक िुि यान कर रहे हो। िब यान क कृत्य बन या। बुध स कहिे है , यान िें होग। इसका अथय है पारी िरह तनक्ष्क्रय हो जाग। कुछ भी िि करो। िि सोचो कक कहीर कोच किाय है । इसीमल इसीमल
कच बार जब किाय कक्रया िें खो जािा है िो िुि अचानक सुख कर
होिा है यगेकक िुि कक्रया िें खो
नियक खो जािा है । िब ित्क्षण
। नत्ृ य िें ऐसा
क आशीवायदा
क सौंदयय
से भर जािा है । वहार या हुआ। केवल कक्रया ही रह युध स भमा ि िें सैतनक कच बार बड़े ित्ृ यु के इिने तनक
क स्तफुरण अनुभव करिे हो। ऐसा
क क्षण आिा है जब नत्ृ य रह जािा है । और
क आनरद बरस उठिा है । नियक
च और किाय दवलीन हो
क अज्ञाि आनरद
या।
हन आनरद को उपलध हो जािे है । यह सोच पाना भी क ठन है यगेकक वे
होिे है कक ककसी भी क्षण वे िर सकिे है । शुरू-शुरू िें िो वह भयभीि हो जािे है, भय से
कारपिे है , लेककन िि ु रोज-रोज ल ािार कारपिे और भयभीि नहीर रहा सकिे। धीरे -धीरे आदि पड़ जािी है । िनुष्य ित्ृ यु को स्तवीकार कर लेिा है , िब भय सिाि हो जािा है ।
और जब ित्ृ यु इिनी करीब हो और जरा सी चाक से ित्ृ यु ि ि हो सकिी है िो किाय भाल जािा है और केवल किय रह जािा है । केवल कक्रया रह जािी है । और वे कक्रया िें इिने
हरे डाब जािे है कक वे सिि याद नहीर रख
सकिे कक ‘िैं हार’। और ‘िैं हार’ िो परे शानी खड़ी करे ा। िुि चाक जाग े िुि कक्रया िें पारे नहीर हो पाग े। और जीवन दारव पर ल ा है । इसमल िुि वावैि को नहीर ढो सकिे। कृत्य सिग्र हो जािा है । और जब भी कृत्य सिग्र होिा है िो अचानक िुि पािे हो कक िुि इिने आनर दि हो क्जिने िुि पहले कभी भी न थे। योध सागर ने आनरद के इिने
हरे झरनगे का अनुभव ककया है क्जिना कक साधारण जीवन िुम्हें कभी नहीर दे
सकिा। शायद यही कारण हो कक युध स इिने आकदनयि करिे है । और शायद यही कारण हो कक क्षलत्रय ब्राह्िणगे
से अतधक िोक्ष को उपलध हु है । यगेकक ब्राह्िण हिेशा सोचिे ही रहिे है , बौदध सक ऊहापोह िें उलझे रहिे है । जैनगे के चौबीस िीथयकर राि, कृष्ण, बुध स, सभी क्षलत्रय योध सा थे। उन्हगेने उचिि मशखर को छुआ है । ककसी दक ु ानदार को कभी इिने ऊरचे मशखर छािे नहीर साना हो ा। वह इिनी सुरक्षा िें जीिा है कक वह वावैि िें
जी सकिा है । वह जो भी करिा है कभी पारा-पारा नहीर होिा। लाभ कोच सिग्र कृत्य नहीर हो सकिा िुि उसका आनरद ले सकिे हो, लेककन वह कोच जीवन ित्ृ यु का सवाल नहीर हो सकिा। िुि उसके साथ खेल सकिे हो। लेककन कुछ भी दारव पर नहीर ल ा है । वह
क खेल है । दक ु ानदारी
क खेल ही है । धन का खेल है । खेल कोच
बहुि खिरनाक बाि नहीर है । इसमल दक ु ानदार सदा कुनकुना रहिा है । क जुआरी भी दक ु ानदार से अतधक आनरद को उपलध हो सकिा है । यगेकक जुआरी खिरे िें उिरिा है । उसके पास जो कुछ है वह दारव पर ल ा दे िा है । पारे दारव के उस क्षण िें किाय खो जािा है । शायद यही कारण है कक जु
िें इिना आकनयण है , युध स िें इिना आकनयण है । जहार िक िैं सिझिा हार,जो भी कुछ आकनयण है कहीर उसके पीछे कुछ आनरद भी तछपा हो ा। कहीर अज्ञाि का कोच इशारा तछपा हो ा। कहीर जीवन के
हन रहस्तय की झलक तछपी हो ी। अन्यथा कुछ भी आकनयण नहीर हो सकिा।
तनक्ष्क्रयिा…..गर यान िें िुि जो िुिा लो वह शारि होना चा ह । भारि िें हिने सबसे तनक्ष्क्रय आसन, सबसे शारि िुिा दवकमसि की है । मसध सासन। और इसका सौंदयय यह है कक मसध सासन की िुिा िें क्जसिें बुध स बैठे है ।
शरीर
हनिि तनक्ष्क्रयिा की अवस्तथा िें होिा है । ले
िुम्हारी िुिा तनक्ष्क्रय नहीर होिी, कक्रयाशील होिी है ।
कर भी िुि इिने कक्रया शान्य नहीर होिे। सोिे सिय भी
मसध सासन इिना शारि यगे होिा है ? कच कारण है । इस िुिा िें शरीर की दववायुि ऊजाय शरीर का
क विुल य िें िाििी है ।
क दववायुिीय विुल य होिा है : जब विुल य पारा हो जािा है िो ऊजाय शरीर िें चक्राकर िािने ल िी है ।
बाहर नहीर तनकलिी। अब यह वैज्ञातनक रूप से मसध स िथ्य है कक कच िुिागर िें िुम्हारे शरीर से ऊजाय बाहर
तनकलिी रहिी है । जब शरीर ऊजाय को बाहर फेंकिा है िो उसे ल ािार ऊजाय पैदा करना पड़िी है । वह सकक्रय रहिा है । शरीर िरत्र को ल ािार कायय करना पड़िा है यगेकक िुि ऊजाय फेंक रह हो। जब ऊजाय शरीर िरत्र से बाहर तनकल रहा है िो उसे पारा करने के मल
भीिर से शरीर को सकक्रय होना पड़िा है । िो सबसे शारि िुिा
वह हो ी जब कोच ऊजाय बाहर नहीर तनकल रही हो।
अब पाचात्य दे शगे िें , दवशेनकर इरग्लैंड िें वे रोत यगे का इलाज उनके शरीर के दववायुिीय विल ुय बनाकर करने ल े है । कच अस्तपिालगे िें इन दवतधयगे का उपयो क जाल िें ले
होिा है । और वे बहुि सहयो ी है । यक्ि फशय पर िारगे के जािा है । िारगे का वह जाल बस उसके शरी की दववायुि का क विुल य बनाने के मल होिा है ।
बस आधा िर ा ही पयायि है —और वह इिना दवश्रारि,इिना ऊजाय से भरा हुआ, इिना शक्िशाली अनभ ु व करे ा कक वह दववास भी नहीर कर पा ा। कक जब वह आया िो इिना किजोर था। सभी पुरानी सभ्यिागर िें लो
राि को
क दवशेन दशा िें सोिे थे। िाकक ऊजाय बाहर न बहे । यगेकक पथ्ृ वी िें
क चुरबकीय शक्ि है । उस चुरबकीय शक्ि का उपयो
करने के मल
िुम्हें
क दवशेन दशा िें ले ना पड़े ा।
िब पथ्ृ वी की शक्ि सारी राि िुम्हें चुरबकत्व िें रखे ी। य द िुि इससे दवपरीि ले े हु िुिसे सरिनय िें रहे ी और िुम्हारी ऊजाय नष् हो ी। कच लो
सुबह बड़ा िनाव, बड़ी किजोरी अनुभव करिे है । ऐसा होना नहीर चा ह , यगेकक नीरद िुम्हें िरो-िाजा
करने के मल , िुम्हें अतधक ऊजाय दे ने के मल
है । लेककन कच लो
है जो राि सोिे सिय ऊजाय से भरे होिे है ।
पर सुबह वे लाश की िरह होिे है । इससे कच कारण हो सकिे है , पर यह भी उनिें से वे
हो िो वह शक्ि
लि दशा िें सो
है । य द वे पथ्ृ वी के चरुबकत्व के दवपरीि ले े हु
िो अब वैज्ञातनक कहिे है कक शरीर का अपना
क कारण हो सकिा है ।
है िो वे बझ ु ा-बझ ु ा िहसास करें े।
क दववायुि यरत्र है और ऐसे आसन हो सकिे है क्जनिें ऊजाय
सररक्षक्षि हो। और उन्हगेने मसध सासन िें बैठे हु कच योत यगे का अयन ककया है । उस अवस्तथा िें शरीर न्यानिि ऊजाय बाहर फेंकिा हे । ऊजाय सररक्षक्षि रहिी है । जब ऊजाय सररक्षक्षि होिी है िो आरिररक यरत्रो को कायय नहीर करना पड़िा। ककसी कक्रया की कोच जरूरि ही नहीर रहिी। इसमल अवस्तथा िें अतधक ररि हो सकिे हो।
शरीर अकक्रय होिा है । इस अकक्रयिा िें िुि सकक्रय
इस मसध सासन की िुिा िें िुम्हारी रीढ़ की हड्डी और पारा शरीर सीधा होिा है । अब कच अययन हु है । जब िुम्हारा शरीर पारी िरह सीधा होिा है िो िुि पथ्ृ वी के ुरूत्वाकनयण से न्यानिि प्रभादवि होिे हो। यही कारण है कक जब िुि ककसी असुदवधाजनक िुिा िें बैठिे हो—क्जसे िुि असुदवधाजनक कहिे हो—वह असुदवधाजनक इसीमल
होिी है यगेकक िुम्हारा शरीर अतधक
ुरूत्वाकनयण से प्रभादवि हो रहा है । य द िुि सीधे बैठे हु हो िो रू ु त्वाकनयण न्यानिि प्रभावी होिा है । यगेकक वह िात्र िुम्हारी रीढ़ को खीरच सकिा है । और कुछ भी नहीर।
इसीमल
िो खड़े रहकर सोना क ठन है । शीनायसन िें , मसर के बल खड़े होकर सोना िो ल भ
सोने के मल
असरभव ही हे ।
िुम्हें ले ना पड़िा है । यगे? यगेकक िब धरिी का लखरचाव िुि पर अतधकिि होिा है । और
अतधकिि लखरचाव िुम्हें अचेिन कर दे िा है । न्यानिि लखरचाव िुम्हें ज ािा है । अतधकिि लखरचाव अचेिन कर दे िा है । सोने के मल
िुम्हें ले ना पड़िा है । िाकक पथ्ृ वी का
प्रत्येक कोमशश को खीरचे। िब िुि अचेिन हो जािे हो।
रू ु त्वाकनयण िुम्हारे सारे शरीर को छु
पशु िनुष्य से अतधक अचेिन होिे है । यगेकक वे सीधे खड़े नहीर हो सकिे। दवकासवादी, इवोल्याशतनस्त कक िनुष्य इसीमल
दवकमसि हो सका यगेकक वह दो पारवगे पर सीधा खड़ा हो सका।
कि होने के कारण वह थोड़ा अतधक चैिन्य हो मसध सासन िें है । स्तवयर िें
या।
और उसकी
कहिे है
ुरूत्वाकनयण का लखरचाव
रू ु त्वाकनयण शक्ि न्यानिि होिी है । शरीर तनक्ष्क्रय और कक्रया-र हि होिा है । भीिर से बरद होिा
क सरसार बन जािा है । न कुछ बाहर जािा है , न कुछ भीिर आिा है । आरखें बरद है । हाथ जुड़े हु है , पाँव जुड़े हु है —ऊजाय विल य िें ति करिी है । वह क आरिररक ुय िें ति करिी है । और जब भी ऊजाय विुल लय
क आरिररक सर ीि तनमियि करिी है । क्जिना िुि उस सर ीि को सुनिे हो, उिने ही िि ु दवश्रारि अनुभव
करिे हो।
‘अपने तनष्क्रय रूप को त्वचा की दीवारगे का सवयथा ररि।’ उस ररििा िें त रिे जाग।
क क्षण आ
क ररि कक्ष िानो—लबलकुल जैसे कोच खाली किरा होिा है—
ा जब िुि अनुभवकरो े कक सब कुछ सिाि हो
कोच भी नहीर बचा। िर खाली है , िर का स्तवािी मि होग े िो परिात्िा प्रक इसमल
या, तिरो हि हो
या। कक अब
या। उस अरिराल िें जब िुि नहीर
हो ा। जब िुि नहीर होिे, परिात्िा होिा है । जब िुि नहीर होिे, आनरद होिा है ।
मि ने का प्रयास करो। भीिर से मि ने का प्रयास करो।
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-79
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—110 (ओशो) दस ू री विधि:
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—110 (गशो)
‘हे गररिाियी, लीला करो। यह ब्रहिांड एक ररत खोल है क्जसिें तुम्हारा िन अनंत रूप से कौतुक करता है ।’ यह दस ा री दवतध लीला के आयाि पर आधाररि है । इसे सिझे। य द िुि तनक्ष्क्रय हो िब िो ठीक है कक िुि हन ररििा िें, आरिररक
हराइयगे िें उिर जाग। लेककन िुि सारा दन ररि नहीर हो सकिे और सारा दन
कक्रया शान्य नहीर हो सकिे। िुम्हें कुछ िो करना ही पड़े ा। सकक्रय होना
क िाल आवयकिा है । अन्यथा िुि
जीदवि नहीर रह सकिे। जीवन का अथय ही है सकक्रयिा। िो िुि कुछ िर गे के मल
िो तनक्ष्क्रय हो सकिे हो।
लेककन चौबीस िर े िें बाकी सिय िुम्हें सकक्रय रहना पड़े ा। और यान िुम्हारे जीवन की शैली होनी चा ह । उसका यद
क िर े के मल
क हस्तसा नहीर। अन्यथा पाकर भी िुि उसे खो दो े।
िुि तनक्ष्क्रय हो िो िेचस िर े के मल
और तनक्ष्क्रय िें जो िुि भी पाग े वे उसे नष्
िुि सकक्रय होग े। सकक्रय शक्ियार अतधक हगे ी
कर दें े। सकक्रय शक्ियार उसे नष्
िुि कफर वही करो े: िेचस िर े िुि किाय को इकट्ठा करिे रहो े और
क िर े के मल
यह क ठन हो ा।
िो कायय और कृत्य के प्रति िुम्हें ढ़क्ष् कोण बदलना हो ा। इसीमल
कर दें ी। और अ ल दन िुम्हें उसे छोड़ना पड़े ा।
यह दस ा री दवतध है । कायय को खेल सिझना
चा ह , कायय नहीर। कायय को लीला की िरह, क खेल की िरह लेना चा ह । इसके प्रति िुम्हें
रभीर नहीर होना
चा ह । बस ऐसे ही जैसे बचे खेलिे है । यह तनष्प्रयोजन है । कुछ भी पाना नहीर है । बस कृत्य का ही आनरद लेना है ।
य द कभी-कभी िुि खेलो िो अरिर िुम्हें स्तपष् िुि
हो सकिा है । जब िुि कायय करिे हो िो अल
बाि होिी है ।
रभीर होिे हो। बोझ से दबे होिे हो। उत्िरदायी होिे हो। तचरतिि होिे हो। परे शान होिे हो। यगेकक पररणाि
िुम्हारा ल्य होिा है । स्तवयर कायय िात्र ही आनरद नहीर दे िा, असली बाि भदवष्य िें, पररणाि िें होिी है । खेल िें कोच पररणाि नहीर होिा। खेलना ही आनरदपण ा य होिा है । और िि ु तचरतिि नहीर होिे। खेल कोच है । य द िुि
रभीर बाि नहीर
रभीर दखाच भी पड़िे हो िो बस दखावा होिा है । खेल िें िुि प्रकक्रया का ही आनरद लेिे हो।
कायय िें प्रकक्रया का आनरद नहीर मलया जािा। ल्य, पररणाि िहत्वपाणय होिा है । प्रकक्रया को ककसी न ककसी िरह
झेलना पड़िा है । कायय करना पड़िा है । यगेकक पररणाि पाना होिा है । य द पररणाि को िुि इसके लबना भी पा सकिे िो िुि कक्रया को
क और सरका दे िे और पररणाि पर काद पड़िे।
लेककन खेल िें िुि ऐसा नहीर करो े, य द पररणाि को िुि लबना खेले पा सको िो पररणाि यथय हो जा उसका िहत्व ही प्रकक्रया के कारण है । उदाहरण के मल , दो फु बाल की
ीिें खेल के िैदान िें है , बस
ा। क
मसका उछाल कर वे िय कर सकिे है कक कौन जीिे ा और कौन हारे ा। इिने श्रि इिनी लरबी प्रकक्रया से यगे क
ज ु रना। इसे बड़ी सरलिा से
ीि जीि जा
ी और दस ा री
लेककन िब कोच अथय नहीर रह जा
क मसका उछाल कर िय ककया जा सकिा है । पररणाि सािने आ जा ीि हार जा
ी। उसके मल
ा। कोच ििलब नहीर रह जा
ा।
िेहनि या करनी। ा। पररणाि अथयपाणय नहीर है । प्रकक्रया का ही
अथय है । य द न कोच जीिे और न कोच हारे िब भी खेल का िाल्य है । उस कृत्य का ही आनरद है ।
लीला के इस आयाि को िुम्हारे पारे जीवन िे जोड़ना है । िुि जो भी कर रहे हो, उस कृत्य िें इिने सिग्र हो
जाग। कक पररणाि असर ि हो जा । शायद वह आ भी जा , उसे आना ही हो ा। लेककन वह िुम्हारे िन िें न हो। िुि बस खेल रहे हो और आनरद ले रहे हो।
कृष्ण का यही अथय है जब वे अजुन य को कहिे है कक भदवष्य परिात्िा के हाथ िें छोड़ दे । िेरे किों का फल परिात्िा के हाथ िें है , िा िो बस किय कर। यही सहज कृत्य लीला बन जािा है । यही सिझने िें अजन ुय को क ठनाच होिी है , यगेकक वह सकिा है कक य द यह सब लीला ही है । िो हत्या यगे करें ? युध स यगे करें ? यह
सिझ सकिा है कक कायय या है , पर वह यह नहीर सिझ सकिा कक लीला या है । और कृष्ण का पारा जीवन ही
क लीला है ।
िुि इिना
ैर- रभीर यक्ि कहीर नहीर ढारढ सकिे। उनका पारा जीवन ही
है । वे सब चीजगे का आनरद ले रहे है । लेककन उनके प्रति
क लीला है , क खेल है , क अमभनय
रभीर नहीर है । वे सिनिा से सब चीजगे का आनरद ले
रहे है । पर पररणाि के दवनय िें लबलकुल भी तचरतिि भी तचरतिि नहीर है । जो हो ा वह असर ि है । अजुन य के मल वह
कृष्ण को सिझना क ठन है । यगेकक वह हसाब ल ािा है , वह पररणाि की भाना िें सोचिा है ।
ीिा के आरर भ िें कहिा है , ‘यह सब असार ल िा है । दोनगे और िेरे मित्र िथा सरबरधी लड़ रहे है । कोच भी
जीिे, नुकसान ही हो ा यगेकक िेरा पररवार िेरे सरबरधी, िेरे मित्र ही नष्
हगे े। य द िैं जीि भी जाऊर िो भी
कोच अथय नहीर हो ा। यगेकक अपनी दवजय िैं ककसे दखलाऊर ा? दवजय का अथय ही िभी होिा है , जब मित्र,सरबरधी, पररजन उसका आनरद लें। लेककन कोच भी न हो ा,केवल लाशगे के ऊपर दवजय हो ी। कौन उसकी प्रशरसा करे ा। कौन कहे ा कक अजुन य , िुिने बड़ा काि ककया है । िो चाहे िैं जीिरा चाहे िैं हारूर, सब असार ल िा है । सारी बाि ही बेकार है ।’
वह पलायन करना चाहिा है । वह बहुि रभीर है । और जो भी हसाब-ककिाब ल िा है वह उिना ही रभीर हो ा। ीिा की पष्ृ ठभामि अद्भुि है : युध स सबसे भ र ीर ि ना है । िुि उसके प्रति खेलपाणय नहीर हो सकिे। यगेकक जीवन िरण का प्रन है । लाखगे जानगे का प्रन है । िुि खेलपण ा य नहीर हो सकिे। और कृष्ण आग्रह करिे है कक वहार भी िुम्हें खेलपाणय होना है । िुि यह िि सोचो कक अरि िें या हो ा, बस अभी और यही जाग। िुि बस
योध सा का अपना खेल पारा करो। फलकी तचरिा िि करो। यगेकक पररणाि िो परिात्िा के हाथगे िें है । और इससे भी कोच फकय नहीर पड़िा कक पररणाि परिात्िा के हाथगे िें है या नहीर। असली बाि यह है कक पररणाि िुम्हारे हाथ िें नहीर है । असली बाि यह है कक पररणाि िुम्हारे हाथ िें नहीर है । िुम्हें उसे नहीर ढोना है । य द िुि उसे ढोिे हो िो िुम्हारा जीवन यानपाणय नहीर हो सकिा। यह दस ा री दवतध कहिी है : ‘हे
ररिाियी लीला करो।’
अपने पारे जीवन को लीला बन जाने दो। ‘यह ब्रह्िारड
क ररि खोल है क्जसिें िुम्हारा िन अनरि रूप से कौिुक करिा है ।‘
िुम्हारा िन अनवरि खेलिा चला जािा है । पारी प्रकक्रया
क खाली किरे िें चलिे हु स्तवन जैसी है । यान िें दे खना होिा है । लबलकुल ऐसे ही जैसे बचे खेलिे है । और ऊजाय के अतिरे क से
अपने िन को कौिुक करिे हु कादिे-फारदिे है । इिना ही पयायि है । दवचार उछल रहे है । कौिुक कर रहे है । बस
क लीला है। उसके प्रति
रभीर िि होग। य द कोच बुरा दवचार भी आिा है िो ग्लातन से िि भरो। या कोच शुभ दवचार उठिा है —कक
िुि िानविा की सेवा करना चाहिे हो—िो इसके कारण बहुि अतधक अहर कार से िि भर जाग, ऐसा िि सोचो कक िुि बहुि िहान हो हो। केवल उछलिा हुआ िन है । कभी नीचे जािा है , कभी ऊपर आिा है । यह िो बस ऊजाय का बहािा हुआ अतिरे क है जो मभन्न-मभन्न रूप और आकार ले रही है । िन िो उिड़ कर बहिा हुआ क झरना िात्र है , और कुछ भी नहीर।
खेलपण ा य होग। मशव कहिे है : ‘हे
ररिाियी लीला करो।’
खेलपाणय होने का अथय होिा है कक वह कृत्य का आनरद ले रहा है । कृत्य ही स्तवयर िें पयायि है । पीछे ककसी लाभ की आकारक्षा नहीर है । वह कोच हसाब नहीर ल ा रहा है । जरा
क दक ु ानदार की और दे खो। वह जो भी कर रहा
है उसिें लाभ हातन का हसाब ल ा रहा हे । कक इससे मिले ा या। नहीर बस
क ग्राहक आिा है । ग्राहक कोच यक्ि
क साधन है । उससे या किाया जा सकिा है । कैसे उसका शोनण ककया जा सकिा है ।
हसाब ल ा रहा कक या करना है । या नहीर करना है । बस शोनण के मल
हरे िें वह
वह हर चीज का हसाब ल ा रहा
है । उसे इस आदिी से कुछ लेना-दे ना नहीर है । बस सौदे से ििलब है । ककसी और चीज से नहीर। उसे बस भदवष्य से, लाभ से ििलब है । पव ा य िें दे खो:
ारवगे िें अभी भी दक ु ानदार बस लाभ ही नहीर किािे और ग्राहक बस खरीदने ही नहीर आिे। वे
सौदे का आनरद लेिे है । िुझे अपने दादा की याद है । वह कपड़गे के दक ु ानदार थे। और िैं िथा िेरे पररवार के लो
है रान थे। यगेकक इसिें उन्हें बहुि िजा आिा था। िर ो-िर ो ग्राहकगे के साथ वह खेल चलिा था। य द कोच चीज दस रूपये की होिी िो वह उसे पचास रूप िार िे। और वह जानिे थे कक यह झठ ा है । और उनके ग्राहक भी जानिे थे कक वह चीज दस रूपये के आस-पास होनी चा ह । और वे दो रूपये से शरू ु करिे। कफर िर ो िक लम्बी बहस होिी। िेरे दपिा और चाचा
स्त ु सा होिे कक ये या हो रहा है । आप सीधे-सीधे कीिि यगे
नहीर बिा दे िे। लेककन उनके की अपने ग्राहक थे। जब वे लो साथ िो खेल हो जािा था। चाहे हिे
आिे िो पछ ा िे की दादा कहार है । यगेकक उनके
क दो रूपये कि ज्यादा दे ना पड़े,इसिे कोच अरिर नहीर पड़िा।
उन्हें इसिे आनरद आिा, वह कृत्य ही अपने आप िें आनरद था। दो लो दोनगे जानिे है कक यह
क खेल है । यगेकक स्तवभावि:
पक्चि िें अब िाल्यगे को तनक्चि कर मलया
बाि कर रहे है , दोनगे खेल रहे है । और
क तनक्चि िाल्य ही सरभव था।
या है । यगेकक लो
अतधक हसाबी और लाभ उन्िुि हो
है । सिय यगे यथय करना। जब बाि को मिन गे िें तनप ाया जा सकिा है । िो कोच जरूरि नहीर है । िुि सीधेसीधे तनक्चि िाल्य मलख सकिे हो। िर गे िक यगे जद्दोजहद करना? लेककन िब सारा खेल खो जािा है । और क दनचयाय रह जािी है । इसे िो िशीनें भी कर सकिी है । दक ु ानदार की जरूरि ही नहीर है । न ग्राहक की
जरूरि है । िैने
क िनोदवलेनक के सरबरध िें सुना है कक वह इिना यस्ति था और उसके पास इिने िरीज आिे थे कक
हर ककसी से यक्ि ि सरपकय रख पाना क ठन था। िो वह अपने
े प ररकाडयर से िरीजगे के मल
सब सरदेश भर
दे िा था जो स्तवयर उनसे कहना चाहिा था। क बार ऐसा हुआ कक क बहुि अिीर िरीज का सलाह के मल मिलने का सिय था। िनोदवलेनक क हो ल िें भीिर जा रहा था। अचानक उसने उस िरीज को वहार बैठे दे खा। िो उसने पछ ा ा, िुि यहार या कर रहे हो। इस सिय िो िुम्हें िेरे पास आना था। िरीज ने कहा कक: ‘िैं भी इिना यस्ति हार कक िैंने अपनी बािें ररकाडयर िें भर दी है । दोनगे े प ररकाडयर आपस िें बािें कर रहे है । जो आपको िुझसे कहना है वह िेरे े प ररकाडयर िें भर
या है । और जो िुझे आपको कहना है वह िेरे
या है । इससे सिय भी बच
े प ररकाडयर से आपके
े प ररकाडयर िें ररकाडय हो
या और हि दोनगे खाली है । ’
य द िुि हसाबी हो जाग िो यक्ि सिाि हो जािा है । और िशीन बन जािा है । भारि के भी िोल-भाव होिा है । यह
ेप
ारवगे िें अभी
क खेल है । और रस लेने जैसा है । िुि खेल रहा हो। दो प्रतिभागर के बीच
क
खेल चलिा है । और दोनगे यक्ि
हरे सरपकय िें आिे है । लेककन कफर सिय नहीर बचिा। खेलने से िो कभी भी
सिय की बचि नहीर हो सकिी। और खेल िें िुि सिय की तचरिा भी नहीर करिे। िुि तचरिा िुि होिे हो। और जो भी होिा है उसी सिय िुि उसका रस लेिे हो। खेलपाणय होना यान प्रकक्रयागर के से
क है । लेककन हिारा िन दक ु ानदार है । हि उसके मल
प्रमशक्षक्षि ककया
करिे है िो पररणाि उन्िुख होिे है । और चाहे जो भी हो िुि असरिुष् िेरे पास लो
हनत्ि आधारगे िें
या है । िो जब हि यान भी
ही होिे हो।
आिे है और कहिे है , ‘हार यान िो
हरा हो रहा है । िैं अतधक आनर दि हो रहा हार, अतधक िौन और शारि अनुभव कर रहा हार। लेककन और कुछ भी नहीर हो रहो।’ और या नहीर हो रहा? िैं जानिा हार ऐसे लो क दन आ ँ े और पछ ा ें े, ‘हार िुझे तनवायण का अनुभव िो हाँ रहा है , पर और कुछ नहीर हो रहा है । वैसे िो िैं आनर दि हार, पर और कुछ नहीर हो रहा है ।’ और या चा ह । वह कोच लाभ ढारढ रहा है । और जब िक कोच ठोस लाभ उसके हाथगे िें नहीर आ जािा। क्जसे वह बैंक िें जिा कर सके। वह सरिुष्
नहीर हो सकिा। िौन और आनरद इिने अढ़ष्य है । कक िुि उन पर िालककयि नहीर कर सकिे
हो। िुि उन्हें ककसी को दखा भी नहीर सकिे हो। रोज िेरे पास लो
आिे है और कहिे है कक वह उदास है । वे कसी ऐसी चीज की आशा कर रहे है क्जसकी
आशा दक ु ानदारी िें भी नहीर होनी चा ह । और यान िें वे उसकी आशा कर रहे है । दक ु ानदार, हसाबी-ककिाबी िन यान के भी बीच िें आ जािा है —इससे या लाभ हो सकिा है ।
दक ु ानदार खेलपाणय नहीर होिा। और य द िुि खेलपाणय नहीर हो िो िुि यान िें नहीर उिर सकिे। अतधक से
अतधक खेलपाणय हो जाग। खेल िें सिय यिीि करो। बचगे के साथ खेलना ठीक रहे ा। य द कोच और न भी हो िो िुि किरे िें अकेले उछल-काद कर सकिे हो। नाच सकिे हो। और खेल सकिे हो, आनरद ले सकिे हो। यह प्रयो
करके दे खो। दक ु ानदारी िें से क्जिना सिय तनकाल सको। तनकाल कर जरा खेल िें ल ाग। जो भी
चाहो करो। तचत्र बना सकिे हो। मसिार बजा सकिे हो। िुम्हें जो भी अछा ल े। लेककन खेलपाणय होग। ककसी
लाभ की आकारक्षा िि करो। भदवष्य की और िि दे खो। वियिान की और दे खो। और िब िुि भीिर भी खेलपाणय हो सकिे हो। िब िुि अपने दवचारगे पर उछल सकिे हो। उनके साथ खेल सकिे हो। उन्हें इधर-उधर फेंक सकिे हो। उनके साथ नाच सकिे हो। लेककन उनके प्रति दो प्रकार के लो
है ।
रभीर नहीर होग े।
क वे जो िन के सरबरध िें पाणि य या अचेि है । उनके िन िें जो भी होिा है उसके प्रति वे
िातछयि होिे है । उन्हें नहीर पिा कक कहार उनका िन उन्हें भ का
जा रहा है । य द िन की ककसी भी चाल के
प्रति िुि सचेि हो सको िो िुि है रान होग े। कक िन िैं या हो रहा है । िन
सोमस शन िें चलिा है । राह पर
क कुत्िा भौंकिा है । भौंकना िुम्हारे िक्स्तिष्क िक पहुरचिा है । और वह कायय करना शुरू कर दे िा है । कुत्िे के इस भौंकने को लेकर िुि सरसार के अरि िक जा सकिे हो। हो सकिा है कक िुम्हें ककसी मित्र की याद आ जा । क्जसके पास मित्र िुम्हारे िन िें आ
या। और उसकी
क कुत्िा है । अब यह कुत्िा िो िुि भाल
पर वह
क पत्नी है जो बहुि सुरदर है —अब िुम्हारा िन चलने ल ा। अब िुि सरसार के अरि िक जा सकिे हो। और िुम्हें पिा नहीर चलिा कक क कुत्िा िुि पर चाल चल या। बस भौंका गर िुम्हें रास्तिे पर ले आया। िुम्हारे िन ने दौड़ना शुरू कर दया।
िुम्हें बड़ी है रानी हो ी यह जानकर कक वैज्ञातनक इस बारे िें या कहिे है । वे कहिे है कक यह िा य िुम्हारे िन िें सुतनक्चि हो जािा है । य द यही कुत्िा इसी पररक्स्तथति िें दोबारा भौंके िो िुि इसी पर चल पड़ो े: वहीर मित्र,वहीर कुत्िा, वहीर सुरदर पत्नी। दोबारा उसी रास्तिे पर िुि िाि जाग े। अब िनुष्य के िक्स्तिष्क िें इलेरोड डालकर उन्होने कच प्रयो छािे है । और
कक
है । वे िक्स्तिष्क िें
क दवशेन स्तथान को
क दवशेन स्तितृ ि उभर आिी है । अचानक िुि पािे हो कक िुि पाँच वनय के हो, क बगीचे िें खेल
रहे हो। तििमलयगे के पीछे दौड़ रहे हो। कफर पारी की पारी शरख ृ ला चली आिी है । िुम्हें अछा ल
रहा है । हवा,
ब ीचा,सु रध, सब कुछ जीवरि हो उठिी है । वह िात्र स्तितृ ि ही नहीर होिी, िुि उसे दोबारा जीिे हो। कफर इलेरोड वापस तनकाल मल
जािा है । और स्तितृ ि रूक जािी हे । य द इलेरोड पुन: उसी स्तथान को छा ले िो
पुन: वही स्तितृ ि शुरू हो जािी है । िुि पुन: पाँच साल के हो जािे हो। उसी बगीचे िें, उसी तििली के पीछे दौड़ने ल िे हो। वहीर सु रध और वहीर ि ना चक्र शुरू हो जािा है । जब इलेरोड तनकाल मलया जािा है । लेककन इलेरोड को वापस उसी ज ह रख दो स्तितृ ि वापस आ जािी है ।
यह ऐसे ही है जैसे यारलत्रक रूप से कुछ स्तिरण कर रहे हो। और परा ा क्रि
क तनक्चि ज ह से प्रारर भ होिा है
और तनक्चि पररणति पर सिाि होिा है । कफर पन ु : प्रारर भ से शुरू होिा है । ऐसे ही जैसे िुि
े प ररकाडयर िें
कुछ भर दे िे हो। िुम्हारे िक्स्तिष्क िें लाखगे स्तितृ ियार है । लाखगे कोमशका र स्तितृ ियार इकट्ठी कर रही है । और यह सब यारलत्रक है ।
िनुष्य के िक्स्तिष्क के साथ कक बार दोहरायी जा सकिी है ।
ये प्रयो
क प्रयो किाय ने
अद्भि ु है । और इनसे बहुि कुछ पिा चलिा है । स्तितृ ियार बारक स्तितृ ि को िीन सौ बार दोहराया और स्तितृ ि वही की वही
रही—वह सरग्रहीि थी। क्जस यक्ि पर यह प्रयो
ककया
या उसे िो बड़ा दवतचत्र ल ा यगेकक वह उस प्रकक्रया
का िामलक नहीर था। वह कुछ भी नहीर कर सकिा था। जब इलेरोड उस स्तथान को छािा िो स्तितृ ि शुरू हो जािी और उसे दे खना पड़िा।
िीन सौ बार दोहराने पर वह साक्षी बन कक वह और उसकी स्तितृ ि अल -अल
या। स्तितृ ि को िो वह दे खिा रहा, पर इस बाि के प्रति वह जा
बहुि सहयो ी हो सकिा है । यगेकक जब िुम्हें पिा चलिा है कक िम् ु हारा िन और कुछ नहीर बस िुम्हारे चारगे और क यारलत्रक सरग्रह है । िो िि ु उससे अल
है । यह प्रयो
यातनयगे के मल
या
हो जािे हो।
इस िन को बदला जा सकिा है। अब िो वैज्ञातनक कहिे है कक दे र अबेर हि उन केंिगे को का िुम्हें दवनाद गर सरिाप दे िे है , यगेकक बार-बार दोबारा जीना पड़िा है ।
िैंने कच मशष्यगे के साथ प्रयो
कक
डालें े जो
क ही स्तथान छुआ जािा है । और पारी की पारी प्रकक्रया को
है । वही बाि दोहरागर और वे बार-बार उसी दष्ु चक्र िें त रिे जािे हे । जब
िक कक वे इस बाि के साक्षी न हो जा र कक यह
क यारलत्रक प्रकक्रया है । िुम्हें इस बाि का पिा है कक य द
िुि अपनी पत्नी से हर सिाह वहीर-वहीर बाि कहिे हो िो वह या प्रतिकक्रया करे ी। साि दन िें जब वह भाल जा
िो कफर वही बाि कहो: वहीर प्रतिकक्रया हो ी।
इसे ररकाडय कर लो, प्रतिकक्रया हर बार वही हो ी। िुि भी जानिे हो, िुम्हारी पत्नी भी जानिी है । तनक्चि है । और वही चलिा रहिा है ।
क ढारचा
क कुत्िा भी भौंक कर िुम्हारी प्रकक्रया की शुरूआि कर सकिा है । कहीर
कुछ छा जािा है । इलेरोड प्रवेश कर जािा है । िुिने
क यात्रा शुरू कर दी।
य द िुि जीवन िें खेलपण ा य हो िो भीिर िुि कन के साथ भी खेलपण ा य हो सकिे हो। कफर ऐसा सिझो जैसे े लीदवजन के पदे पर िुि कुछ दे ख रहे हो। िुि उसिे सक्म्िमलि नहीर हो। बस
क िन ा हो।
क दशयक हो।
िो दे खो और उसका आनरद लो। न कहो अछा है, न कहो बुरा है , न तनरदा करो, न प्रशरसा करो। यगेकक वे
रभीर
बािें है ।
य द िुम्हारे पदे पर कोच नग्न स्तत्री आ जािी है िो यह िि कहो कक यह
लि है , कक कोच शैिान िुि पर
चाल चल रहा है । कोच शैिान िुि पर चाल नहीर चल रहा,इसे दे खो जैसे कफल्ि के पदे पर कुछ दे ख रहे हो। और इसके प्रति खेल का भाव रखो। उस स्तत्री से कहो कक प्रिीक्षा करो। उसे बाहर धकेलने की कोमशश िि करो। यगेकक क्जिना िुि उसे बाहर धकेलो े। उिना ही वह भीिर धुसे ी। अब ि हला र िो हठी हाथी है । और उसका पीछा भी िि करो। य द िुि उसके पीछे जािे हो िो भी िुि िुक्कल िें पड़ो े। न उसके पीछा जाग। न उस से लड़ो,यही तनयि है । बस दे खो और खेलपण ा य रहो। बस हे लो या निस्तकार कर लो और दे खिे रहो, और उसके बेचैन िि होग। उस स्तत्री को इरिजार करने दो। जैसे वह आच थी वैसे ही अपने आप चली जा नहीर है । वह बस िुम्हारे स्तितृ िप
ी। वह अपनी िजी से चलिी है । उसका िुिसे कोच लेना-दे ना
पर है । ककसी पररक्स्तथति वश वह चली आच बस
क तचत्र की भारति। उसके
प्रति खेलपाणय रहो।
य द िुि अपने िन के साथ खेल सको िो वह शीध्र ही सिाि हो जा है । जब िुि ‘हे
रभीर होग।
ा। यगेकक िन केवल िभी हो सकिा
रभीर बीच की कड़ी है । सेिु है ।
ररिाियी लीला करो। यह ब्रह्िारड
क रि खोल है । क्जसिें िुम्हारा िन अनरि रूप से कौिुक करिा है ।’
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-79
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—111 (ओशो) तीसरी विधि:
‘हे वप्रये, ज्ञान और अज्ञान, अक्स्तत्ि और अनक्स्तत्ि पर ध्यान दो। कफर दोनों को छोड दो ताकक तुि हो सको।’
दवज्ञान भैरव िरत्र दवतध—111 (गशो)
ज्ञान और अज्ञान, असतित्व और अनक्स्तित्व पर यान दो। जीवन के दवधायक पहला पर यान करो और यान को नकारात्िक पहला पर ले जाग, कफर दोनगे को छोड़ दो यगेकक िुि दोनगे ही नहीर हो।
कफर दोनगे को छोड़ सको िाकक िुि हो सको। इसे इस िरह दे खो: जन्ि पर यान दो।
क बचा पैदा हुआ, िुि पैदा हु । कफर िुि बढ़िे हो, जवान होिे हो— इसे पारे दवकास पर यान दो। कफर िुि बाढ़े होिे हो। और िर जािे हो। लबलकुल आरर भ से, उस क्षण की कल्पना करो जब िुम्हारे दपिा और िािा ने िुम्हें धारण ककया था। और िार के
भय िें िुिने प्रवेश ककया था।
लबलकुल पहला कोष्ठ। वहार से अरि िक दे खो, जहार िुम्हारा शरीर तचिा पर जल रहा है । और िुम्हारे सरबरधी
िुम्हारे चारगे और खड़े है । कफर दोनगे को छोड़ दो, वह जो पैदा हुआ और वह जो िरा। वह जो पैदा हुआ और वह जो िरा। कफर दोनगे को छोड़ दो और भीिर दे खो। वहार िि ु हो, जो न कभी पैदा हुआ और न कभी िरा। ‘ज्ञान और अज्ञान, अक्स्तित्व और अनक्स्तित्व….कफर दोनगे को छोड़ दो, िाकक िुि हो सको।’ यह िुि ककसी भी दवधायक-नकारात्िक ि ना से कर सके हो। िुि यहार बैठे हो, िैं िुम्हारी और दे खिा हार। िेरा िुिसे सरबरध होिा है । जब िैं अपनी आरखें बरद कर लेिा हार िो िुि नहीर रहिे और िेरा िुिसे कोच सरबरध नहीर हो पािा। कफर सरबरध और असरबरध दोनगे को छोड़ दो। िुि ररि हो जाग े। यगेकक जब िुि ज्ञान और अज्ञान दोनगे का त्या
दो िरह के लो
कर दे िे हो िो िुि ररि हो जािे हो।
है । कुछ ज्ञान से भरे है और कुछ अज्ञान से भरे है । ऐसे लो
है जो कहिे है कक हि जाने है ;
उनका अहर कार उनके ज्ञान से बरधा हुआ है । और ऐसे लो है जो कहिे है , ‘हि अज्ञानी है ।’वे अपने अज्ञान से भरे हु है । वे कहिे है कक ‘हि अज्ञानी है ’, हि कुछ नहीर जानिे। क ज्ञान से बरधा हुआ है और दस ा रा अज्ञान से, लेककन दोनगे के पास कुछ है, दोनगे कुछ ढो रहे है । ज्ञान और अज्ञान दोनगे को ह ा दो, िाकक िुि दोनो से अल
हो सको। न अज्ञानी, न ज्ञानी। दवधायक और
नकारात्िक दोनगे को ह ा दो। कफर िुि कौन हो? अचानक वह ‘कौन’ अचानक वह कौन िुम्हारे सािने प्रक
हो
जाये ा। िुि उस अवावैि के प्रति बोधपाणय हो जाग े जो दोनगे के पार है । दवधायक और नकारात्िक दोनगे को
छोड़कर िुि ररि हो जाग े। िुि कुछ भी नहीर रहो ,े न ज्ञानी और न अज्ञानी। िण ृ ा और प्रेि दोनगे को छोड़ दो। मित्रिा और शत्रुिा दोनगे को छोड़ दो। और जब दोनगे ध्रुव छा और यह िन की
जािे है , िुि ररि हो जािे हो।
क चाल है । वह छोड़ िो सकिा है । लेककन दोनगे को
क साथ नहीर।
क चीज को छोड़
सकिा है । िुि अज्ञान को छोड़ सकिे हो। कफर िुि ज्ञान से तचपक सकिे हो हो। िुि पीड़ा को छोड़ सकिे हो। कफर िि सुख को पकड़ लो े। िुि शत्रुगर को छोड़ दो े िो मित्र को पकड़ लो े। और ऐसे लो
भी है जो
लबलकुल उल ा करें े। वे मित्रगे को छोड़कर शत्रुगर को पकड़ लें े। प्रेि को छोड़ कर िण ृ ा को पकड़ लें े। धन को छोड़कर तनधयनिा को पकड़ लें े और ज्ञान िथा शास्तत्रगे को छोड़कर अज्ञान से तचपक जा र े। ये लो
बड़े त्या ी
कहलािे है । िुि जो कुछ भी पकड़े हो वे उसे छोड़कर दवपरीि को पकड़ लेिे है । लेककन पकड़िे वे भी है । पकड़ ही सिस्तया है । यगेकक य द िुि कुछ भी पकड़े हो िो िि ु ररि नहीर हो सकिे। पकड़ो िि। इस दवतध
काय हीर सरदेश है । ककसी भी दवधायक या नकारात्िक चीज को िि पकड़ो यगेकक न पकड़ने से ही िुि स्तवयर को खोज पाग े। िुि िो हो ही, पर पकड़ के कारण तछपे हु जाग े।
हो। पकड़ छोड़िे ही िुि उिड़ जाग े। प्रक
ओशो विज्ञान भैरि तंत्र, भाग—पांच, प्रिचन-79
विज्ञान भैरि तंत्र विधि—112 (ओशो) चौथी विधि:
सन्याय स्तवािी आनरद प्रसाद
‘आधारहीन, शावि, तनचल आकाश िें प्रदवष् इस दवतध िें आकाश के, स्तपेस के िीन
होग।’
ण द ु
1–आधारहीन: आकाश िें कोच आधार नहीर हो सकिा। 2–शावि: वह कभी सिाि नहीर हो सकिा।
है ।
हो
3–तनचल: वह सदा वतन-र हि व िौन रहिा है । इस आकाश िें प्रवेश करो। वह िुम्हारे भीिर ही है । लेककन िन सदा आधार खोजिा है । िेरे पास लो
आिे है और िैं उनसे कहिा हार, ‘आरखें बरद कर के िौन बैठो और कुछ भी िि करो।’ और वे कहिे है , हिें कोच अवलरबन दो, सहारा दो। सहारे के मल कोच िरत्र दो। यगेकक
हि खाली बैठ नहीर सकिे है । खाली बैठना क ठन है । य द िैं उन्हें कहिा हार कक िैं िुम्हें िरत्र दे दर ा िो ठीक है । िब वह बहुि खुश होिे है । वे उसे दोहरािे रहिे है । िब सरल है। आधार के रहिे िुि कभी ररि नहीर हो सकिे। यही कारण है कक वह सरल है । कुछ न कुछ होना चा ह । िुम्हारे पास करने के मल
कुछ न कुछ होना चा ह । करिे रहने से किाय बना रहिा है । करिे रहने से िुि भरे
रहिे हो—चाहे िि ु गरकार से भरे हो। गि से भरे हो, राि से भरे हो। जीसस से, आविाररया से। ककसी भी चीज से—ककसी भी चीज से भरे हो, लेककन िि ु भरे हो। िब िि ु ठीक रहिे हो। िन खालीपन का दवरोध करिा है । वह सदा ककसी चीज से भरा रहना चाहिा है । यगेकक जब िक वह भरा है िब िक चल सकिा है । य द वह ररि हुआ िो सिाि हो जा आधार की खोज करिा है ।
ा। ररििा िें िुि अ-िन को उपलध हो जाग े। वही कारण है कक िन
य द िुि अरिर-आकाश, इनर स्तपेस िें प्रवेश करना चाहिा हो िो आधार िि खोजगे। सब सहारे —िरत्र, परिात्िा,
शास्तत्र–जो भी िुम्हें सहारा दे िा है वह सब छोड़ दो। य द िुम्हें ल े कक ककसी चीज से िुम्हें सहारा मिल रहा है िो उसे छोड़ दो और भीिर आ जाग। आधारहीन।
यह भयपाणय हो ा; िुि भयभीि हो जाग े। िुि वहार जा रहे हो जहार िुि पारी िरह खो सकिे हो। हो सकिा है िुि वापस ही न आग। यगेकक वहार सब सहारे खो जा र े। ककनारे से िुम्हारा सरपकय छा िुम्हें कहार ले जा हो। इसमल
ी। ककसी को पिा नहीर। िुम्हारा आधार खो सकिा है । िुि
जा
ा। और नदी
क अनरि खाच िें त र सकिे
िुम्हें भय पकड़िा है। और िुि आधार खोजने ल िे हो। चाहे वह झाठा ही आधार यगे न हो, िम् ु हें
उससे राहि मिलिी है । झाठा आधार भी िदद दे िा है । यगेकक िन को कोच अरिर नहीर पड़िा कक आधार झाठा है या सचा है, कोच आधार होना चा ह । क बार
क यक्ि िेरे पास आया। वह ऐसे िर िें रहना था जहार उसे ल िा था कक भाि-प्रेि है , और वह
बहुि तचरतिि था। तचरिा के कारण उसका ्ि बढ़ने ल ा। तचरिा से वह बीिार पड़ या, किजोर हो या। उसकी पत्नी ने कहा, य द िुि इस िर से जरा रुके िो िैं िो रहीर हार। उसके बचगे को क सरबध र ी के िर भेजना पडा। वह आदिी िेरे पास आया और बोला, अब िो बहुि िुक्कल हो चलिे है, पारा िर भािगे से भरा हुआ है । आप िेरी िदद करें । िो िैंने उसे अपना
यी है । िैं उन्हें साफ-साफ दे खिा हार। राि वे
क तचत्र दया और कहा, इसे ले जाग। अब उन भािगे से िैं तनप
करो। और सो जाग। िुम्हें तचरिा करने की जरूरि नहीर है । उनसे िैं तनप
िेरा काि है । और िुि बीच िें िि आना। अब िुम्हें तचरिा नहीर करनी है ।
लुर ा। िुि बस आराि
लुर ा। उन्हें िैं दे ख लार ा। अब यह
वह अ ले ही दन आया और बोला, ‘बड़ी राहि मिली िैं चेन से सोया। आपने िो चित्कार कर दया।’ और िैंने कुछ भी नहीर ककया था। बस साथ था।
क आधार दया। आधार से िन भर जािा है । वह खाली न रहा; वहार कोच उसके
सािान्य जीवन िें िुि कच झाठे सहारगे को पकड़े रहिे हो, पर वे िदद करिे है । और जब िक िुि स्तवयर शक्िशाली न हो जाग, िुम्हें उनकी जरूरि रहे ी। इसीमल नहीर।
िें कहिा हार कक यह परि दवतध है —कोच आधार
बुध स ित्ृ युशय्या पर थे और आनरद ने उनसे पाछा, ‘आप हिें छोड़कर जा रहे है , अब हि या करें ें ? हि कैसे
उपलध हगे े? जब आप ही चले जा र े िो हि जन्िगे-जन्िगे के अरधकार िें भ किे रहें े, हिारा िा द य शयन करने के मल
कोच भी नहीर रहे ा, प्रकाश िो दवदा हो रहा है ।’
िो बध स ु ने कहा,िुम्हारे मल
यह अछा रहे ा। जब िैं नहीर रहार ा िो िुि अपना प्रकाश स्तवयर बनगे े। अकेले चलो, कोच सहारा िि खोजगे, यगेकक सहारा ही अरतिि बाधा है । और ऐसा ही हुआ। आनरद सरबुध स नहीर हुआ था। चालीस वनय से वह बुध स के साथ था, वह तनक िि मशष्य था, बुध स की छाया की भारति था, उनके साथ चलिा था। उनके साथ रहिा था। उनका बुध स के साथ सबसे लरबा सरबरध था। चालीस वनय िक बुध स की करूणा उस पर बरसिी रही थी। लेककन कुछ भी नहीर हुआ। आनरद सदा की भारति आज्ञानी ही रहा। और क्जस दन बुध स ने शरीर छोड़ा उसके दस ा रे ही दन आनरद सरबुध स हो या—दस ा रे ही दन।
वह आधार ही बाधा था। जब बुध स ने रहे िो आनरद कोच आधार न खोज सका। यह क ठन है । य द िुि ककसी
बुध स के साथ रहो वह बुध स चला जा , िो कोच भी िुम्हें सहारा नहीर दे सकिा। अब कोच भी ऐसा न रहे ा क्जसे
िुि पकड़ सको े। क्जसने ककसी बुध स को पकड़ मलया वह सरसार िें ककसी और को पकड़ पाये ा। यह पारा सरसार खाली हो ा।
क बार िुिने ककसी बुध स के प्रेि और करूणा को जान मलया हो िो कोच प्रेि, कोच करूणा उसकी
िुलना नहीर कर सकिी।
क बार िुिने उसका स्तवाद ले मलया िो और कुछ भी स्तवाद लेने जैसा न रहा।
िो चालीस वनय िें पहली बार आनरद अकेला हुआ। ककसी भी सहारे को खोजने का कोच उपाय नहीर था। उसने परि सहारे को जाना था। अब छो े -छो े सहारे ककसी काि के नहीर, दस ा रे ही दन वह सरबध स ु हो या। वह तनक्चि ही आधारहीन, शावि तनचल अरिर-आकाश िें प्रवेश कर
या हो ा।
िो स्तिरण रखो कोच सहारा खोजने का प्रयास िि करो। आधारहीन ही जानो। य द इस दवतध को कहने का प्रयास कर रहे हो िो आधारहीन हो जाग। यही कृष्ण िातिय मसखा रहा है । ‘आधारहीन हो जाग, ककसी िि पकड़ो, ककसी शस्तत्र को िि पकड़ो। ककसी भी चीज को िि पकड़ो।’ सब
ुरु यही करिे रहे है । हर
ुरु को
ुरू का सारा प्रयास ही यह होिा हे । कक पहले वह िुम्हें अपनी और आकदनयि
करे ,िाकक िुि उससे जुड़ने ल ो। और जब िुि उससे जुड़ने ल िे हो, जब िुि उसके तनक
और ितनष्ठ होने
ल िे हो, िब वह जानिा है कक पकड़ छुड़ानी हो ा। और अब िुि ककसी और को नहीर पकड़ सकिे—यह बाि ही खिि हो
च। िुि ककसी और के पास नहीर जा सकिे—यह बाि असरभव हो
च। िब वह पकड़ को का
डालिा
है । और अचानक िुि आधारहीन हो जािे हो। शुरू-शुरू िें िोबड़ा दुःु ख हो ा। िुि रोग े और तचल्लाग े और चीखो े। और िुम्हें ल े ा कक सब कुछ खो
या। िुि दुःु ख की
‘आधारहीन, शावि, तनचल आकाश िें प्रदवष्
होग।’
से यक्ि उठिा है, अकेला और आधारहीन।
हनत्ि
हराइयगे िें त र जाग े। लेककन वहार
उस आकाश को न कोच आ द है न कोच अरि। और वह आकाश पण य : शारि है , वहार कुछ भी नहीर है —कोच ा ि आवाज भी नहीर। कोच आवाज भी नहीर। कोच बुलबुला िक नहीर। सब कुछ तनचल है ।
वह लबरद ु िुम्हारे ही भीिर है । ककसी भी क्षण िुि उससे प्रवेश कर सकिे हो। य द िुििें आधारहीन होने का साहस है िो इसी क्षण िुि उसिें प्रवेश कर सकिे हो। वावार सुला है । तनिरत्रण सबके मल चा ह —अकेले होने का, ररि होने का, मि
है। लेककन साहस
जाने का और िरने का। और य द िुि अपने भीिर आकाश िें मि
जाग िो िुि ऐसे जीवन को पा लो े जो कभी नहीर िरिा, िुि अिि ृ को उपलध हो जाग े। आज इिना ही। इतत शुभिस्तु: ओशो